Wednesday, December 31, 2014

अभी हमारे हुनर का अन्दाजा नहीं है आपको

कलम से____

अभी हमारे हुनर का अन्दाजा
नहीं है आपको
हम तो
उन्हें भी जीना सिखा देते हैं
जो
मरने का शौक रखते हैं

मरना तो बहुत आसां है
जीना ही मुश्किल होता है
यहाँ
हर रोज़
हर पल ही
जो
मरना होता है....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015


2014 भी बस अब समझिए गया।



2014 भी बस अब समझिए गया।
आप सभी का सहयोग मिला। कभी सराहा कभी नहीं, कभी कुछ भी नहीं कहा। बहुत से मित्र ऐसे भी हैं साथ तो रहे पर दिखते नहीं थे, पर जो भी हम पोस्ट करते थे, पढ़ते अवश्य थे। ऐसे सभी साथियों का हार्दिक धन्यवाद।
दुनियां भर में बदलाव आ रहा है। इस बदलाव से हिंदी साहित्य भी जूझ रहा है। नई पीढ़ी आगे आ रही है। पुरानी मान्यताएं बदल रही हैं। साहित्य अब किताबों तक सीमित नहीं रह गया है। इलेक्ट्रोनिक मीडिया अपना असर दिखा रहा हैं। फेसबुक और ट्विटर इत्यादि बहुत सशक्त होकर सामने आए हैं। नये रचनाकारों को नये आयाम मिले हैं। हिंदी जगत मजबूत हुआ है। यह एक, मेरे विचार, से अच्छा और स्वागत योग्य परिवर्तन हो रहा है।
कविता भी अपना रूप बदल रही है। नित नये प्रयोग हो रहे हैं। आजकल की कविता अभिव्यक्ति की महत्वपूर्ण कड़ी बन कर मुखरित हो रही है।
एहसास को आपस में बांटने की एक नई दिशा मिल रही है।
मेरी कोशिश रही है कि मैं भी आपके साथ कदम से कदम मिलाकर चलूँ। 2014 में हर रोज़ आपके साथ कुछ न कुछ शेयर किया है। कभी बहुत सराहा गया हूँ, कभी कभार नहीं भी। हर रोज़ और हर बाॅल पर छक्का नहीं लगता है, इसका मुझे भली भांति ज्ञान है। मेरे लिए यही बहुत है, जब कुछ मित्र कहते हैं कि हर रोज़ अखबार की तरह फेसबुक पर कुछ न कुछ देखने की वह भी इच्छा रखते हैं। मेरी कोशिश रही है, आपकी सेवा में उपलब्ध रहूँ और अपनी ओर से आपके मन भीतर अपनी पैठ बना सकूँ।
यह प्रयास आगे भी अनवरत चले, मैं पूरी कोशिश करूँगा।
आपका सहयोग और सानिध्य ऐसे ही प्राप्त होता रहे, यही अभिलाषा है।
2015 वर्ष आप सभी के लिए शुभ हो यही मेरी मनोकामना है और प्रभु से प्रार्थना भी।
कोशिश होगी हर दिन मुलाकात होती रहे।
— with Ramaa Singh and Puneet Chowdhary.
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अभी, अभी तो मुड़ कर देखा है !!!

कलम से_____
लिखने के लिए बहुत कुछ है बाकी,
अभी, अभी तो मुड़ कर देखा है !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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Tuesday, December 30, 2014

एक जमाना था कील लगाकर दीवार पर टांग देते थे

कलम से____
एक जमाना था कील लगाकर दीवार पर टांग देते थे
दिल में न सही यादें धागे के सहारे ही टंगी रहती थीं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

सोचने से क्या होगा

कलम से____
सोचने से क्या होगा
काम कुछ करना ही होगा
आज कुछ और नहीं है
चलो अपने से ही बातें करते हैं
अपने गुजरे वक्त से
कुछ कीमती छण निकालते हैं !!!
याद आ रहे हैं
बचपन के दिन
जब पहले पहल स्कूल गये थे
क्या हसीन पल थे
कई नये साथी बन गये थे
खेलते कूदते दिन
कट जाते थे
आज वक्त काटे नहीं कटता
पल एक एक भारी सा लगता !!!
बचपन बीता
यौवन आया
खेलकूद में वक्त खूब बिताया
किसी ने कुछ ऐसा कर दिया
जो आज तक भुलाया न गया
बस मीठी सी याद है जो रह गई
उस वक्त के कुछ लोग आज भी
जब मिलते हैं फूल गुलशन में
फिर से खिलने लगते हैं !!!
जीवन की आपाधापी में
वक्त सरकता गया
मारा-मारी करते
न जाने कहाँ से कहाँ आ गया !!!
इस राकिंग चेयर पर बैठकर
अच्छे बुरे की याद कर लेता हूँ
कुछ और नहीं तो
यादों के सहारे जी लेता हूँ !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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कलम से____ इंतजार रहता है तेरा, आखिरी वक्त तक लगता है तू आएगा बस अभी अभी इसी आस पर टिकी है जिन्दगी, टकटकी लगाए देखा करती हूँ गली के मोड़ तक जहाँ तक देख पाती हूँ मैं !!! //सुरेन्द्रपालसिंह © 2014// — with Puneet Chowdhary. कलम से____ इंतजार रहता है तेरा, आखिरी वक्त तक लगता है तू आएगा बस अभी अभी इसी आस पर टिकी है जिन्दगी, टकटकी लगाए देखा करती हूँ गली के मोड़ तक जहाँ तक देख पाती हूँ मैं !!! //सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

कलम से____
इंतजार रहता है तेराकलम से____
इंतजार रहता है तेरा,
आखिरी वक्त तक लगता है
तू आएगा बस अभी अभी
इसी आस पर टिकी है
जिन्दगी,
टकटकी लगाए देखा करती हूँ
गली के मोड़ तक
जहाँ तक देख पाती हूँ मैं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
,
आखिरी वक्त तक लगता है
तू आएगा बस अभी अभी
इसी आस पर टिकी है
जिन्दगी,
टकटकी लगाए देखा करती हूँ
गली के मोड़ तक
जहाँ तक देख पाती हूँ मैं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.


सरदी का मौसम है दिल्ली की सर्दी है



सरदी का मौसम है
दिल्ली की सर्दी है
एक कम्बल से
कुछ नहीं होगा
सोने का बहाना 
यूँ न करो
उजाले में लोग
करवटें बदलते रहते हैं
नींद आ रही हो तो
चिराग गुल कर लो।
शुभ रात्रि......
हम कल मिलेंगे। तड़के सुबह सुबह........
— with Puneet Chowdhary.

हसरतों को ज़ज्बातों की ज़रूरत होती है

कलम से____
हसरतों को ज़ज्बातों की ज़रूरत होती है
जिन्दगी मोहब्बत की मोहताज़ रहती है !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

देख लो ऐसी छोटी सी ही सही दुनियां अपनी भी हो सकती है

कलम से____
देख लो ऐसी
छोटी सी ही सही
दुनियां अपनी भी हो सकती है
दूर नहीं
आसपास में
अपने ही जहान में
सबकुछ है
छोटा सा घर
एक अदद तरणतारण ताल भी
सागर पांव धोता हुआ
हैं हरे भरे खेत भी
मीठे पानी का स्रोत भी
सुनहरी खिली खिली धूप
शांति है फैली हुई चहुँओर
कुछ और नहीं चाहिए
तो फिर चलते हैं वहाँ
बोलो हो तैयार
बहुत कहते थे न
लगता नहीं है
जी अब इस दयार में
ढूंढ लो अब कोई एक नया जहां
रह सकें सुकून में वहाँ
देखो मिल गया है
ठीक वैसा ही
छोटा सा एक जहां.......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

मैय्या मोरी मोय आजकी छुट्टी दैदे

कलम से____
मैय्या मोरी मोय आजकी छुट्टी दैदे
हाथ पांव जड़ाय रये हैं
जमुना किनारे कछु दिखात नांय है
गोपियां सिगरी कहुं और चलीं गई हैं
अकेलौ एक मैं रह गयो हूँ
तू चाहे तो माखन मत दीजो
द्विव एक दिना की छुट्टी हमकों अब दैदे
गंइयन को तू कोय संग पठय दै
आज बस तोरे संग रहूँगो
घेर में ही हुडुदंग करूँगो
सुन कान्हा की भोलीभाली बतियां
मैय्या उठ कान्हा कंठ लगायो
(कुछ लीक से हट कर अगर अटपटा लगै तो क्षमा)
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

बस आज इतना ही।

बस आज इतना ही।
चलते हैं
फिर कुछ कल के लिए भी
छोड़ते हैं.........
Good night. शुभ रात्रि।
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

याद हैं मुझे, मेरे सब वो गुनाह

कलम से____
याद हैं मुझे,
मेरे सब वो गुनाह
एक तो मोहब्बत कर ली
दूसरा तुझसे कर ली
तीसरा बेपनाह कर ली.........
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Ramaa Singh.
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सिखाया जो सबक जिन्दगी ने.......

कलम से___
वो किताबों में दर्ज़
था ही नहीं
सिखाया जो सबक
जिन्दगी ने.......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.


बहुत तलाश करने पर मिली

कलम से_____
बहुत तलाश करने
पर मिली
दो एक हैड टर्नर
जिनके साथ पार्टी में
जाने का
मजा ही दूसरा है
आपके ऊपर कम
आपके
साथ वाले पर
निगाहें ज्यादा टिकी हों
राजन जी भी
दाँत के तले
उगंली दबा के ललचाई
आखों से देख रहे हों
फोटो आपकी नहीं
उनकी खेंच रहे हों
आपको छोड
वो आगे आगे
आप पीछे पीछे भाग रहे हों
रेड कारपेट पर
ऐसा ही होता है
हमका का मालूम रहा
हमरे यिहां ससुर कौनहु
ऐसन देखा है
चलो चला जाई
यहहु इक एक्सपीरिएंस रहिन
हैड टर्नर के संग जाइब का
राजन जी भी खुश
हमहु भी खुश
अब का बताइव हाल आगे का
मारे ठ्ठा हँसि रहिन
हम दोनों आपस में हो सरकार ।
Today is birthday of Rajan Varma so it's a birthday gift to him.
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Rajan Varma.
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Good night

सुबह से सूरज चलता हुआ
पश्चिम में डूब दूर बहुत दूर चला गया
कल सुबह फिर मिलेगा
ऐसा वो कह गया
मेरे साथ आप रहिएगा
कुछ देर हो भी जाय तो कोई बात नहीं कल रविवार जो है। छुट्टी का दिन.....
शुभ रात्रि।
!Good night!
— with Puneet Chowdhary.
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तेरे और मेरे बीच में फासले की बस दो वजह रही,

कलम से____
तेरे और मेरे बीच में फासले की बस दो वजह रही,
एक जो हमने कहा और दूसरा जो हम कह न सके !!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

जाते ही क्यों हो, कुछ देर और ठहर जाते !!!

कलम से____
बेहतरीन यादों की तरह तुम क्यों आए हो
जाते ही क्यों हो, कुछ देर और ठहर जाते !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

एक पुलिस वाला ही

कलम से____
एक पुलिस वाला ही
दूसरे पुलिस वाले का दर्द समझता है
कहते हुए सिपाही ने
इन्सपेक्टर से कहा
सर आज गज़ब की सर्दी है
दिल्ली जम जाएगी
हमारा क्या होगा
अबे ड्यूटी कर
नहीं होती सरकार
रोज़ आती है जाती है
किसकी बजायें
समझ नहीं आता है
कभी मफलर वाला
तो कभी टेन्ट वाला
किसको पकड़ें
किसको छोडें
अबके न जाने क्या होगा
अबे तुझे क्या करना है
तू हुक्म बजा
लो सरकार तो मैं चला
हुक्म बजा लाता हूँ
है सरदी कांटे की
इसका ही इलाज कर आता हूँ
सीधे ठेके पर गया
लगाए दो तीन फिर चार
चढ़ गई सिर पर हो सबार
करने लगा अंटशंट हरकत
खेंच दिए दो तीन हाथ
मजबूत एक शराबी ने
पिटते देख उसे आ गया
इन्सपेक्टर भी सीन पर
फिर क्या था हुआ फ्री फौर आल
बोतलें चलने लगीं
चप्पल जूते भी चले
जो न होना था वह सब हो गया
पुलिस वालों पर
जनता शासन चल गया
ऐसी है दिल्ली की सरदी..
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.

Good night.

एक दिनऔर तमाम हो गया
सूरज धरती के दूसरे छोर पर सुबह बन कर छा भी गया
रात्रि का पहला प्रहर समाप्ति को ओर है
चलो हम भी विश्राम करें
निद्रा देवी को आने भी दें
कल फिर सुबह सुबह मिलेंगें।
Good night.

तुमको आदत है ख्वाबों में रहने की

कलम से___
तुमको आदत है ख्वाबों में रहने की
हकीकत से तो हम वाकिफ हुए हैं !!!
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Puneet Chowdhary.
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"मैं आजकल इन्सानों का मुक़ाबला नहीं कर पा रहा हूँ, ....... रंग बदलने में"......

घर के सामने वाले पेड़ पर एक "गिरगिट" ने आत्महत्या कर ली है।
पुलिस तहकीकात में लगी है। एक नोट मिला है।
सुसाइड नोट में लिखा है......
"मैं आजकल इन्सानों का मुक़ाबला नहीं कर पा रहा हूँ, .......
रंग बदलने में"......
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

हम तो घूम आये अब आप सभी को यह बुलावा है।

हम तो घूम आये अब आप सभी को यह बुलावा है।

ऐसी उन्मुक्त हँसी

ऐसी उन्मुक्त हँसी
बचपन में ही नसीब होती है
नसीब वाले हैं
वो जो इस हँसी को देख हँसते हैं
हम तो बचपन में 
हर रोज़ ही रहते हैं
//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//
— with Ramaa Singh.
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