Thursday, December 31, 2015

Touristique

Touristique






It’s in the making...

I’m on it. Intend to show case vibrant Gujarat and its colorful life and the attraction of Great white desert-Rann, Kutch.

Just wait for a while. May be it will take a month or so before it should be in your hands.

s.p.singh

Tuesday, October 27, 2015

वरना तो ये ज़िन्दगी खाली खाली सी दुकान लगे.......





कलम से____

गुलों से महकते थे जो कभी
अब गमज़दे से लगते हैं
न जाने रोग कैसा है लगा 
अब बुझे बुझे से दिखते हैं

मुरझाने को तो हर गुल
खिल के मुरझा जाता है
वक़्त की मार से पहले ही
जो मर जाये वो
मुर्दादिल कह लाता है

जीने को तो लोग
हर हाल में जीते हैं
कुछ मर मर के जीते हैं
कुछ हँस हँस के जीते हैं
किसी के ग़म को
अपना बना के जिओ
अपनेपन की बात दिखे
वरना तो ये ज़िन्दगी
खाली खाली सी दुकान लगे.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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फ़लक़ से चाँद तारे लाने की बात करते हैं




कलम से____

फ़लक़ से चाँद तारे लाने की बात करते हैं
हैं भारत की हम सन्तान
सबको साथ लेकर चलने की बात करते हैं

यहाँ घर सबके एक से हैं
इंसान सब यहाँ एक साथ मिलकर रहते हैं
मसालात गरचे कुछ हैं भी
मिल बैठके सुलझाने की बात करते हैं
सिर फिरे हैं कुछ लोग
यदाकदा जो ऊलजलूल बात करते हैं
सुनता है कौन उनकी
जब दिल दो एक साथ रहने की बात करते हैं
इस सरज़मीं की बेहतरी के लिए बहाया है खून साथ साथ
होते हैं कौन वो जो अब अलग रहने की बात करते हैं

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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देखो पी रहा है वो अकेला बैठा मयखाने में कहाँ खो गये वो आँखों से मय पिलाने वाले





कलम से____

मिलते हैं लोग दाग दिल के छिपाने वाले
लोग मिलते हैं कहाँ अब पुराने वाले

तू भी तो मिलता है मतलब से मिलता है
लग गये हैं तुझे रोग सभी वो जमाने वाले

मिन्नतें बेकार गईं दुआयें भी बेअसर हुईं
लौट के आते नहीं है छोड़के जाने वाले

पार करता नहीं आग का दरिया अब कोई
थे वो कोई और डूबके मरने वाले

अब तो सभी मिलते हैं दिल को दुखाने वाले
जाने किस राह गये वो जाने वाले

दर्द उनका जो करते हैं फुटपाथ पर बसर
क्या समझ पायेंगे महलों में रहने वाले

देखो पी रहा है वो अकेला बैठा मयखाने में
कहाँ खो गये वो आँखों से मय पिलाने वाले

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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आज तुम मुझे फिर से ......


कलम से____

आज फिर से तुम मुझे
जवां दिखने लगी हो
मैं थक सा गया हूँ
मन को और भाने लगी हो
समय की मार से
ढ़ीले पड़ रहे हैं क़दम मेरे
फिर भी तुम साथ
चल रही हो मेरे
आज फिर से तुम
जवां दिखने लगी हो

जीवन के इस मोड़ पर
तुम्हारी स्नेहिल छाँव में
बोझिल पलकों के तले
तुम और भी आज
सुंदर लग रही हो

सोचता हूँ
मिलूँगा एकांत में जब तुम्हें
सुनाऊंगा एक दिन
कृतघ्न युग की दास्तां
झेला है जो तुमने मेरे लिए
झुलसे हुए रिश्तों के बोझ को
कितना मुश्किल होता है ढ़ोना
यादें वो सब अंतस चीर गईं
चहुँ ओर हो रहा है जब अँधेरा
चेहरे पर पड़ती सूरज की रेखा
तुम्हें मेरे फिर से निकट कर गई

आज तुम मुझे फिर से ......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं


कलम से____

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं
शूल करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

बरबस ही उस निशा की याद हो आई
कोशिशों के बावजूद सो पाया मैं नहीं !
जगा पाया न तुम्हें प्रयत्न सौ बार कर
नींद प्यारी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

तन बदन मेरा दर्द से कराहता रहा,
उठ हृदय से कण्ठ फिर घुटता रहा
निकट रह कर भी, तुम दूर बहुत दूर रहीं
नींद गहरी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

आश्वस्त बहुत मैं था, जगा लूँगा तुम्हें
घाव अंत:स्थल के दिखा दूगाँ तुम्हें
थकी मांदी सी पड़ी, स्वप्न में खोई
बेहाल सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

दूर तुम थीं नहीं, आती जाती सांस पर
जीवन की घुटन महसूस, मैं करता रहा
एक ज़िद्दी लट को, भाल से तुम्हारे मैं
हटाता रहा, पर सोती रहीं तुम रात भर !!

भाल से लटें हटाते रात पूरी कट गई
यामिनी न जाने आखिर कहां खो गई
चूमने लगीं पलकें भोर की पहली किरन
नींद अखियों से तुम्हारी जाकर तब गई !!

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस द्वंद को मेरे समझा नहीं
शूल करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

चलते चलते




कलम से____

चलते चलते
दूर काफी निकल गया
सोचा साथ कुछ है मेरे नहीं
कर्ज किसी का चुकाना है नहीं
मुड़ के देखा
निशान कुछ साथ चल रहे थे
रेत पर
जैसे कि वो छोड़ेंगे
अकेला मुझे नहीं !!!

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

रास्ते बदल जाते हैं , मंजिलें बदल जाती हैं



रास्ते बदल जाते हैं , मंजिलें बदल जाती हैं ,
क्यों नहीं बदलते दिल, 
जो तकदीरें बदल जाती हैं ,
दिल वहीं रहता है , 
यादों की अनगिनत परछाइयाँ ले कर, 
आँखों की नमी छुपा कर नजरें बदल जाती है ,
रुह रहती है हर लम्हा अश्‍कवार लब हंसते हैं
बाहर और अंदर किस तरह फिजाएँ बदल जाती है
कोइ होता है रफ्ता- रफ्ता जिंदगी से दूर,
हाथों की लकीरें क्यूँ अकसर बदल जाती हैं ।


Ramaa Singh

Thursday, October 15, 2015

हमने तो जिन्दगी को इस तरह करीब से जी लिया।




कलम से____

जिन्दगी को इस मुकाम
तक लाने के बाद भी
कभी यह नहीं समझ पाये
सादगी से हट कर भी
कोई और सलीका होगा
इसे जीने का,
समझने का
जो आया उसे गले लगा लिया
जो मिल गया
हाले दिल उसको बता दिया
उसका हाल है क्या
यह जान लिया।

हमने तो
जिन्दगी को इस तरह
करीब से
जी लिया।

अब कैसे कहें
लोगों ने हमें जीने नहीं दिया
जिन्दगी हमें मिली
हर मोड़ पर मुस्कुराती हुई
हमने भी उसे मुस्कुराते हुए
गले लगा लिया।

//सुरेन्द्रपालसिंह © 2014//

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मन करता है कोई अब ऐसा मिले जो अपना सा लगे......

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......





कलम से______

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

दिखने को तो बहुत हँसी दिखते हैँ
मन भीतर जो समा जाये तो कुछ बात बने
मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

बनने को दोस्त हो जायेंगे वो तैयार
टकरा लेंगें जाम भी दो एक बार
ग़म हमारे जो अपना लें तो कुछ बात बने
तो वो अपना सा लगे......

मिले थे इस ज़माने में ऐसे कई लोग
कहते थे भाई से गर मिल जाये भाई
कमल सा फ़ूल ह्रदय में खिले
कोई बात अपनी सी लगे......

हाथ मेरा हाथ ले कहने लगे वो
चलो आज मेहँदी हम लगाते हैं
रची खूब हथेली मेरे अपनी सी लगे
वो आज बहुत अपने से लगे

चांदनी बिखरी है अंगना हमारे
चन्द्रमा देख हमें आसमां में हँसे
खुशिओं की कमी न आये कभी
मन बस यही सोचा करे......

जब भी मिले हो यहाँ या वहां
वापस जाने की ही बात करते हो
आओ जो इक बार फिर वापस न जाओ
मन बस अब यही कहे.......

मन करता है कोई अब ऐसा मिले
जो अपना सा लगे......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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नंगे पाँव तुम्हारे ही नहीं हमारे भी हैं


कलम से____

नंगे पाँव
तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
पाँव में
छाले तुम्हारे ही नहीं
हमारे भी हैं
हम दाग़ दिल के छिपा लेते हैं
कुछ उनके अफसाने बना देते हैं........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से

ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते





कलम से______

प्रेम सदैब ही मुक्त रहता संदेह के दायरों से
ख्वाब कभी हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
पृथ्वी की हलचल और प्रकृति की भाषा
अनजान लोगों की गुफ्तगू में शरीक़ नहीं होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते।

इस जीवन के सभी पात्र गर सजीव होते
सभी मानव मृत भावनाओं से नहीँ खेलते
समाप्ति की ओर कभी न सम्बंध बढ़ते
अपरिभाषित बंधनों से दूर दूर ही रहते.....

बासी कभी सम्बंध प्रेम के देखे नहीँ होते
सारे हौसले एकाकीपन में पस्त नहीं होते
बस अपने ही लोग जज़्बातों मेँ बहे न होते
फूल बाग़ में गर हर रोज़ खिले जो होते।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Wednesday, October 14, 2015

ज़िन्दगी ठहरी हुई है कहने को कुछ शेष नहीँ है......

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......



कलम से____

ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है.....

निशब्द हो चला हूँ मैं
बात करने लायक नहीँ हूँ
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

रोज़ होते देखता रहा हूँ
पाप इस जगमग सी हवेली में
कातर निग़ाहों से बचा कुछ नहीँ है
कहने को कुछ शेष नहीँ है

मुस्कान मृदुल बारम्बार उसकी
छा जाती है मानस पटल पर
भयभीत थी वह अन्जान जग़ह पर
करती क्या जब ज़ुबाँ ख़ामोश है?

इंसानों की बस्ती
हुई अब बदनाम बहुत है
ज़िन्दगी ठहरी हुई है
कहने को कुछ शेष नहीँ है......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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चलो चलें फिर जंगल की ओर.....



सुन यह सहारा भी छिनने वाला है


कलम से____

सुन यह सहारा भी छिनने वाला है
बिजली की यह केबल भी
स्मार्ट सिटी में
जमीन भीतर हो जायेगी
धरती के ऊपर कुछ नहीं रहेगा
पहले टेलीफोन के तार गये
फिर बिजली के
बैठने को कुछ नहीं बचेगा....

मोबाइल टावर के
आसपास हम जा नहीं सकते
कान हैं झन्नाते
गौरैया भी गई चली दूर
और साथी भी जा रहे हैं छोड़
कुछ दिन के हैं और सही
हम मेहमान यहां के
चलो चलें फिर जंगल की ओर.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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बीत गई अब मिलन की बेला !!!




बीत गई अब मिलन की बेला !!!




कलम से____
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
धुंधले मन से निकली
उर-तन्त्री की पीड़ा
कहती है समाप्त है
अब यह जीवन लीला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
आकाश में गतिविहीन सितारे
रहे मांग साथ दोनों हाथ पसारे
भाग्यविहीन से रहे आजीवन
खाली हाथों दुख दिन भर झेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
मनवा हो रहा बिचिलित
लयताल श्वासों का टूटा
आस मिलन की लिए,
अंतस खाली खाली सा डोला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
नभ में विचरण करता
आकुल व्याकुल सा
राह नीड़ की खोज रहा है,
बिछड़ा पंक्षी एक अकेला !!
बीत गई अब मिलन की बेला !!!
©सुरेंद्रपालसिंह 2015

बापू तुम्हें आज याद जग में सारे किया जाएगा






कलम से____

बापू तुम्हें आज याद
जग में सारे किया जाएगा
तुमने जो किया
उसे दुहराया जाएगा
कोई मानेगा
खोट कोई निकालेगा
मूल रूप में
कोई तुमको न जानेगा

छोटी छोटी बातों
से जीवन
चलता है
बडी बडी बातों
के सामने छोटों
को कौन सुनता है

श्रद्धा, नम्रता और योग्यता
मिल जायें
तो
सम्मान मिलता है

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बुझे हुए दीपक को अंजुलि भर प्रकाश तुम दे दो।

भटक गया है जो जीवन में





कलम से____

भटक गया है जो जीवन में
सही राह चले कुछ ऐसा तुम कर दो
बुझे हुए दीपक को
अंजुलि भर प्रकाश तुम दे दो।

बिखराते हो जो तुम भू पर
सोने की किरणें
एक किरण उसको भी दे दो
माथा उसका आलोकित कर दो।

जगा रहे हो तुम
दल दल के कमलों की आँखो को
उनके सोये सपनों को
एक किरण उसको भी दे दो।

बंद जो है पिंजरे में व्याकुल
भूला बैठा है जो
दुख जतलाने की भाषा
वाणी के कुछ क्षण उसको भी दे दो।

एक मात्र एक स्वप्न
उसके सोये मन में
जागृत कर दो
जीवन के कुछ पल उसको दे दो।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।


कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।




कलम से____

कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

करते थे जब प्यार यहाँ फिर लाकर कैसे छोड़ गए
साथ आए थे दूर और करीब के रिश्तेदार
साथ निभाया यहाँ तक फिर यहाँ लाकर छोड गए
दफन कर फर्ज अपना निभाकर मुछे यहाँ छोड गए
कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

हारसिगांर की सेज पर बैठ कर कीं थीं जो बातें
उन तुम इतनी आसानी से कैसे भूल गए
रातरानी महकती थी रात भर फिजाओं में
दिए से ही सही रौशन होती रही रातें
याद आती हैं वो मोहब्बत में डूबी बातें
वो हसीन लम्हात तुम कैसे भूल गए
कहो अभी भी तो तुम्हारे साथ लौट चलूँ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tuesday, September 15, 2015

इलायची के दानों सा मुक्कदर अपना




इलायची के दानों सा
मुक्कदर अपना
महक उतनी फैली
जितना पीसे गये........

😃😃😃😃😃😃😃

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

रात देर सबेर खुलती है आँख जब भी


कलम से____

रात देर सबेर
खुलती है आँख जब भी
निकल पड़ता हूँ
नंगे पाँव ही चल पड़ता हूँ
ठंडी ठंडी जमीन पर
पाँव जब हैं पड़ते
लगता है जैसे आसमां पर चला हूँ
दूधिया तारों की चादर तले
चलता रहता हूँ यही सोच कर
पड़ोस से आवाज देगा कोई
बुला लेगा मुझको
करीब अपने बिठा कर
ज़िक्र अपनी तनहाई की करेगा
रुको जाते हो कहाँ अकेले अकेले
हम भी हैं तनहा रुक जाओ न यहाँ
पास हमारे रात भर के लिए
भोर होत ही जाना चले
जाना तुम्हें है जहाँ.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

आप हमसे काश मिले होते





कलम से____

आप हमसे काश मिले होते
तो शायद हम सातवें आसमान पर होते
वक्त के साथ चलना सीखे होते
रेत पर दासतां अपनी हम लिखते
आगे आगे चलता मैं पीछे तुम रहते
परछाईं सी पीछे चलते तुम होते
मिलजुलकर जीवन की नैया खेते
नाव कागज की बना तैराया करते
सपने दिन में बुना करते
रातों को जागा करते
जीना किसे कहते हैं
जीके दिखाया करते........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Monday, September 7, 2015

हम भी हैं तनहा रुक जाओ न यहाँ






कलम से____

रात देर सबेर
खुलती है आँख जब भी
निकल पड़ता हूँ
नंगे पाँव ही चल पड़ता हूँ
ठंडी ठंडी जमीन पर
पाँव जब हैं पड़ते
लगता है जैसे आसमां पर चला हूँ
दूधिया तारों की चादर तले
चलता रहता हूँ यही सोच कर
पड़ोस से आवाज देगा कोई
बुला लेगा मुझको
ज़िक्र अपनी तनहाई की करेगा
रुको जाते हो कहाँ अकेले अकेले
हम भी हैं तनहा रुक जाओ न यहाँ
पास हमारे रात भर के लिए
भोर होत ही जाना चले
जाना तुम्हें है जहाँ.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

नज़र मिली झुकाके निगाह वो चला गया इक सवाल के जवाब कई छोड़ गया !







कलम से_____

6th September,2015/Kaushambi

न जाने क्या ख़ास था उसमें 
जो मेरा यह हाल कर गया !

अजीब शक्स था ख्वाब कई छोड़ गया
दिल में वो ख़ास इक जगह बना गया !

नज़र मिली झुकाके निगाह वो चला गया
इक सवाल के जवाब कई छोड़ गया !

पता था उसे तन्हा न रह सकूँगी मैं
गुफ्तगू के लिए महताब छोड़ गया !

गुमान हो मुझे उस पर काम वो कर गया
कैसी है पहेली जो अनसुलझी छोड़ गया !

बुझते हुये चराग रौशन वो कर गया
हरेक दरीचे पर आफताब छोड़ गया !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Thursday, September 3, 2015

मालती के फूल।




कलम से____

मालती के फूल।

बहुत दिनों 
की
तलाश के बाद
यह
ज्ञात हुआ कि
चौथी
मंजिल पर मण्डप
बना हो
मालती की बेल
आच्छादित हो
रंग बिरंगे फूलों से
मण्डप लदा हो
ऐसी मनोहारी जगह
कान्हा राधा से
मिलने
आते हैं।

तब से तलाश है
मेरी
यह आस है
ऐसा
स्थान बने
जिसमें
मेरे
राधेश्याम
पधारें मुझे अनुग्रहीत करें।

मिल गई है
ढूढं ली एक जगह
अपने ही घर में
हृदय मंदिर में
मण्डप मालती का
बनाऊँगा
फिर अपने
राधेश्याम
को बुला बिठाऊँगा।

मेरी अभिलाषा
तेरी अभिलाषा बने
जग में राधे राधे का नाम पुजै
बस यही चाहत है मेरी
तेरी भी चाहत बने।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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याद आ रही है।



याद आरही है
वो गाँव की
काम करने वाली एक लड़की
भोलोभाली सी थी
वह मुझे देखने में
कुछ औरों से हट कर लगती थी
सच कहूँ
एक सवाल तब उठता था
तब मन में
आज भी वही सवाल
कायम है मन में
क्या वाकई कमल
कीचड़ में ही खिला करता है?
वो कमल
जो आज की राजनीति का आधार है
वो कमल
जो हर मंदिर की दीवारों पर दिख जाता है
वो चाहे दक्षिण के हों
या हों उत्तर के
या चाहे हों पश्चिम के
या पूरब के
कहानी वहीं पर आके रुकती है
मानवता जहाँ शर्मशार होती है
वो लड़की फिर कभी नहीं दिखी
वही हुआ साथ उसके
अक्सर जो समाज के उस तपके के साथ होता है........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/





Agriculture and Government policy frame work in India:



Agriculture and Government policy frame work in India:



Who controls food prices in India? Farmers: answer is "No". Government: answer is "yes"and "no". Traders and Middlemen/ Hoarders: answer is a big "YES".
Next question is it the right way to go about or this very system need to be re oriented. Issue becomes significant more so that since a clear advisory, as per press reports of today, has gone out from the RSS and Government of India conclave going on in the Capital, that GOI must reorient it's policies towards agriculture and it's stake holders i.e. farmer's community and strike a good balance between industry and agriculture.
A few items like Sugar or Wheat prices to some extent are controlled by the Government as MSPs are decided by the government. But largely government does this by keeping a check on annual production. But there's is no formal body which takes care of this aspect. Farmers either keep on producing traditional crops as per their command area or decide what could be the best for them. Monsoon plays vital role on the livelihood of almost 70% population of India. It's all a big speculative market with very little control of the government. Middlemen in this sector gets the maximum returns. Government also has no clear cut policy on exports of the agricultural produces either in it's raw or processed form. It's all for public and investors to try what suits them.
When country suffered a situation very close to feminine in 1963-64 the pet slogan was "Jai Jawan-Jai Kissan". Agriculture got boost and green revolution took place thereafter. But emphasis was for more production and not on quality. Today, we grow much more in terms of per acre but in this melee quality has suffered a lot. Also, by excessive use of fertilizers and pesticides we spoiled our farms and quality of produce coming from it.
It's time for taking corrective steps on both fronts so that we produce more and improve the quality.
I think government is expected to take some policy based decisions which may improve the quality by giving proper inputs like right variety of seeds and control excessive use of chemicals which ultimately should help in checking the erosion of productivity of our soil. Also, government is well advised to fix export targets on year to year basis so that farmers know which commodity will give them good returns.
Also, government should work on R&D in this area. Though we have created a big infrastructure of R&D and Agricultural Universities all over the country but better management of these resources is the need of the hour.
Government should create proper environment for improving the quality of agricultural products as it is directly linked with the health of the people. For a healthy India it's important that we produce and supply healthy food. Good quality would eventually give us excess to better markets.
Perishable produce like Onion, Potatoes, Tomatoes do give headaches once in three or four years. We have to find answers by creating suitable infrastructure like better managed technologically warehouses and Cold Chain solutions. There's need to create infrastructure for Food preservation and processing.
Let's hope government turns it's attention on these critical aspects and give impetus to farm economy.

SURENDRA PAL SINGH

Wednesday, September 2, 2015

सांसों में घुल गई हूँ मैं हर सांस में रहूँगी मैं तुम्हारी बनके सदा....


जहाँ भी रहोगे तुम
सदा रहूँगी आसपास मैं
सांसों में घुल गई हूँ मैं
हर सांस में रहूँगी मैं
तुम्हारी बनके सदा.....


कलम से____

जैसी भी हूँ मैं, सामने हूँ तुम्हारे
तंग ख्याल हैं नहीं मेरे
खुले दिल दिमाग वाली हूँ
साथी मेरे कहते हैं अक्सर
वक्त की रफ्तार से आगे चलने वाली हूँ
बुरा नहीं लगता है मुझे
कोई मुझसे भी आगे चलके दिखाता है
बस मैं अपने आसपास की चीजों में
उलझी रहती हूँ
मुझे लगता है अच्छा
जब तुम,
और सिर्फ तुम, ख्यालों में रहते हो
हाँ, कभी आते हो, कभी जाते हो
सावन के बदरा से।

मैंनें कब कहा हटा दो उसे
जो ख्यालों में तुम्हारे रहती है
वह मैं ही तो हूँ
मेरा ही हम साया है
तुमको जो मेरा साये सा लगता है

जहाँ भी रहोगे तुम
सदा रहूँगी आसपास मैं
सांसों में घुल गई हूँ मैं
हर सांस में रहूँगी मैं
तुम्हारी बनके सदा.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Tuesday, September 1, 2015

अच्छे दिन आने वाले हैं !!!





कलम से____
अहसास है मुझे
शाम से ही तेरी
नज़र गली के हर 
आने जाने वाले पर लगी रहती है
कान भी
दरवाजे पर
दस्तक की आवाज़
सुनने को तरसा करते हैं.........

क्या करें
हालात के मारे
हम भी हैं
लाख चाहने पर भी
वक्त रहते आ नहीं पाते
हर रोज
जल्दी आने का वादा कर
वादा निभा नहीं पाते......
खाली पेट
बुझे चूल्हे की
परेशानी है
इसको सुलझाने में
लगी पूरी जिंदगानी है ........
देखो शायद
अपने दिन भी बहुरेंगे
कह सब रहे हैं
लाउडस्पीकर लगा कर
तेज़ आवाज़ में
अच्छे दिन आने वाले हैं !!!
//surendrapal singh//

Monday, August 31, 2015

चर्चा में अब तू ही होगा

भारत के पांच लाख गाँव।


चर्चा में अब तू ही होगा
वजूद मिट जो गया था
दुबारा फिर से जन्मेगा
ज़र, ज़मीन और जोरू
पर ध्यान फिर से होगा।

इलैक्शन है करीब
बातें होंगी अजीब
महरारू को आरक्षण
बढ़ा हुआ मिलेगा।

खेत खलिहान की ओर
ध्यान सबका रहेगा
उद्योग और उनके पति
आराम कुछ दिन फरमाएं
जब बजट बनेगा तो
उनके मनमाफिक बनेगा
ऊँच नीच चलता है
राजनीति का अहम हिस्सा है
यह भारत है
उत्तरप्रदेश और बिहार
जीतना आवश्यक है
प्रधान सेवक तो यहीं से आयेगा
जो सेवा करेगा वही मेवा पायेगा।




शौक कुछ अजीब थे लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे


शौक कुछ अजीब थे
लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे



शौक कुछ अजीब थे
लंबे चौड़े दालान वाले घर ही पसंद थे
कौन जानता था
वक्त की मार ऐसी होगी 
जो था नसीब में
वह भी न पास होगा
वक्त आखिरी
बहुमंजिला बिल्डिंग में काटना होगा
मन मार लेते हैं
चाँद तारे तक यहाँ दिखाई नहीं देते हैं
लगता है दिवास्वप्न था
गुजर जो गया वो कल था
बुझ गए हैं अरमान
बुझ गए सब दिये
मन अब यहीं लगा के रहते हैं
कभी बालकनी में
कभी राकिंग चेयर पर बैठे रहते हैं
ऊब जाता है मन उनको पास बुला लेते हैं
उनकी आँखों में नमी को देख सहम जाते हैं
तसल्ली दिल को देके खुश हो लेते हैं
वक्त गुजरे अच्छा बस यही दुआ करते है.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Saturday, August 29, 2015

सहर होने तक ठहर जाओ तो कुछ चैन पड़े !




कलम से____
इक बार ज़रा और पास आओ तो चैन पड़े
पैमाने को थोड़ा छलकओ तो ज़रा चैन पड़े !
सागर के किनारे बैठके हर मौज पर दिल मचलेगा
आगे बढ़ के तूफान से टकराओ तो कुछ चैन पड़े !
सुकून मिलता है तेरा अफसाना सुन के
तड़पती हुई गज़ल सुनाओ तो कुछ चैन पड़े !
यादों के सहारे कट रही है ए-जिंदगानी अपनी
वक्त रुक जाए कुछ ऐसा करो तो चैन पड़े !
दामन में चाँद सितारे जड़कर रात है आज आई
सहर होने तक ठहर जाओ तो कुछ चैन पड़े !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Wednesday, August 26, 2015

निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े!

चाहती हूँ काश मुझे कोई ऐसा मिले
मन जिससे बार बार मिलने को करे
मथ ड़ाले मेरे भीतर के समंदर को
निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े!






कलम से____

कैसा होता है मन सुन्दरता का मानसरोवर
कैसा होता है तन सुन्दरता का शिखर
चाहती हूँ काश मुझे कोई ऐसा मिले
मन जिससे बार बार मिलने को करे
मथ ड़ाले मेरे भीतर के समंदर को
निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े

लंबे अरसे से तलाश है मुझको
मुझे एक शक्सियत ऐसी मिले
देखते ही जिसे मुझे कुछ ऐसा लगे
मिट गए सब पाप इस जीवन के
कट गए हों सब बंधन जैसे
मिल गया हो मोक्ष इसी काया में

इसी आस में जीवन चले
चाहती हूँ, काश मुझे कोई ऐसा मिले........


©सुरेंद्रपालसिंह 2015


Tuesday, August 25, 2015

जीवन के कुछ पल उसको दे दो।



बंद जो है पिंजरे में व्याकुल
भूला बैठा है जो
दुख जतलाने की भाषा
वाणी के कुछ क्षण उसको भी दे दो।



कलम से____

भटक गया है जो जीवन में
सही राह चले कुछ ऐसा तुम कर दो
बुझे हुए दीपक को
अंजुलि भर प्रकाश तुम दे दो।

बिखराते हो जो तुम भू पर
सोने की किरणें
एक किरण उसको भी दे दो
भाल उसका आलोकित तुम कर दो।

जगा रहे हो तुम
दल दल के कमलों की आँखो को
उनके सोये सपनों को
एक किरण उसको भी दे दो।

बंद जो है पिंजरे में व्याकुल
भूला बैठा है जो
दुख जतलाने की भाषा
वाणी के कुछ क्षण उसको भी दे दो।

एक मात्र एक स्वप्न
उसके सोये मन में
जागृत कर दो
जीवन के कुछ पल उसको दे दो।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

Monday, August 24, 2015

खुमारी अभी उतरी नहीं है कल रात की गूँज रही है अभी तलक गजल आपकी.





खुमारी अभी उतरी नहीं है कल रात की 
गूँज रही है अभी तलक गजल आपकी.

रेप में भला इज्जत क्या चार से लुटती है?





शाम से सुबह तक
दिन से रात तक
बस एक ही चीज
वही चक चक.........

आपाधापी में
कब सुबह हुई
कब शाम हुई
पता जब चला
अहसासों की मृत्यु हुई......

अखबार के हर पन्ने पर
एक ही बात दिखती है
कभी इस गली में
कभी उस गली में
इज्जत बहन की
कभी यहाँ
कभी वहाँ
बस लुटती है
नालायक हो गया है
मुलायम सा दिल
प्रश्न जो है पूछता
रेप में भला इज्जत
क्या चार से लुटती है?

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

सूत्रधार कौन?





सूत्रधार कौन?

नाटक के सारे पात्र
नर नारी मिल कर
पत्थरों में आत्मा के संचार का प्रयास हैं करते
फिर भी नदियाँ रोती हैं
समुद्र हुंकार नहीं भरते
शब्द बासी नहीं पड़ते
प्रेम मुक्त रहता संदेह के दायरों से
ख्वाब हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
धरा की हलचल और प्रकृति की भाषा
अनचाही वस्तुओं में शरीक नहीं होती
एकाकीपन के सारे हौसले पस्त नहीं होते
नाटक के सभी पात्र गर सजीव होते
मृत प्रायः हैं सभी समाप्ति की ओर
अपरिभाषित बंधनों से दूर बहुत दूर.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

तेरे आने के खयाल भर से





तेरे आने के खयाल भर से 
इन आँखों में चमक आ जाती है
यादें ही हैं जीने का सहारा मेरा, 
जब भी आतीं हैं, रुला जातीं हैं।

आजाओ आँख मूँदें आगोश में


आजाओ आँख मूँदें आगोश में
ले आया हूँ मैं चांदी सी बूँदें
भीगेंगे आज हम बरसात में
हाथ आप दीजिये मेरे हाथ में
टोकिए न हमें न इस काम में
भीगेंगे आज हम बरसात में.......
 

कभी पास बैठ कर तो देखो




कलम से____

कभी पास बैठ कर तो देखो
फूल कैसे है खिलता
जब है खिलता 
तो कैसे है महकता
चुपके चुपके वो
अपनी व्यथा है कहता
जब वो है चटकता
खिलखिला के है हँसता
कभी वो बेकरारी से
इंतजार किसी का है करता
कभी वो किसी भँवरे के
राह देखा है करता
कभी वो बागँवा की राह है तकता
कभी वो फूल चुनने वाले का
इंतजार करता है रहता
कभी वो मुरझा के
बिखरने की चाह है रखता
फूल है इसलिए वो हर किसी को
खुश करने की कोशिश में लगा है रहता
कांटों में खिलके भी मुस्कुराता है रहता ....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

सो रहा है हमवतन यहाँ कोई






सो रहा है हमवतन यहाँ कोई
न बोलता है न बोलती है रूह उसकी
न खटखटाओ इन दरो-दीवारों को
दर्ज हैं यहाँ बेइन्तहा दर्द की दरारें.......

"दिल व दिल्ली दोनों अगर हैं खराब पर कुछ लुत्फ उस उजड़े घर में भी है !!" मीर तक मीर।



"दिल व दिल्ली दोनों अगर हैं खराब
पर कुछ लुत्फ उस उजड़े घर में भी है !!"

मीर तक मीर।
 





एक दिन और ढ़ेर
हो गया
जिन्दगी
एक सीढी
और चढ़ गई.....

जाते जाते
शाम न्योता दे गई...

आना मिल बैठेंगे
कुछ अपनी कह लेंगें
कुछ तेरी सुन लेंगें
जीवन में रंग नये भर लेंगें...

राम राम जी !

न खिलाया घेवर न खिलाई कोई और मिठाई


आज के दिन भी बार्डर पर हो रही है गोलाबारी
कब खत्म होगी भारत-पाक में यह मारामारी ?

न खिलाया घेवर न खिलाई कोई और मिठाई
दिनरात बस एक काम दनदना गोली ही चलाई !!
 

Sunday, August 23, 2015

प्रहरी तुम सजग रहना





प्रहरी तुम सजग रहना
घात लगाए बैठा है दुश्मन
हर हरकत पर ध्यान रखना
आहट हो प्रहार करारा करना
सम्पूर्ण राष्ट्र तुम्हारे है पीछे
भारत की शान बनाए रखना
अबके सिर धड़ से पहले
उनका कलम है करना
शीष को माँ के चरणों चढ़ा
असीम गौरव प्राप्त करना
सीने पर हो प्रहार कड़ा
पीठ पर वार न करना
प्रहरी टोलियाँ छोटी बना
सजग हमेशा रहना
पुरखों की गौरव गाथा का
ध्यान हमेशा करना
युद्ध भूमि में
अंगद का पावं जमा कर लड़ना
अश्त्र शश्त्र की पूजा नितदिन
पुनीत कर्तव्य समझ करना
देवी माँ का नाम ले
दुश्मन के सीने चढ़ना
भारत माता के सपूत हो
तुम इसे भूल न जाना
नाज़ करे दुनियां तुझ पर
काम सदा ऐसे करना
चढ़ जा चढ़ जा चोटी पर
हिमालय तेरा है अपना
चुस्त दुरुस्त चौकन्ने रहना
दुश्मन की सोच से सदैव
दो कदम आगे की सोच रखना
रणभेरी हो जब सदैव सजग रहना
वार पहला हो दुशमन पर
प्रयास यही हमेशा करना
प्रहरी बस तुम सजग रहना !