Thursday, February 26, 2015

तुमने सुन ली है मेरे दिल की बात





कलम से_____

नहीं मालूम कहाँ तक पहुँची
मेरी फरियाद

तुमने सुन ली है
मेरे दिल की बात
मेरे लिए
यही काफी है ....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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दूसरों के लिए भी कुछ अच्छा ही करें !!!




कलम से____

बगिया को लगाने वाला
सजाने सवांरने वाला
माली ही
फूल एक तोड़
दे गया
जाते जाते यह कह गया
आज दिन भर
आप जो भी करें
शुभ करें
दूसरों के लिए भी
कुछ अच्छा ही करें !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tuesday, February 24, 2015

अब तो आजा कन्हाई अखिंयाँ पिरान लगीं है



कलम से____

अगंड़ाई फिर से ली
मौसम ने
कोहरे की चादर है छाई
उनकी सुरितया आज भी
नज़र न आई
छिपा छिपी का खेल
है तुमने जो खेला
राधे ढूँढे तुमको
रास रचैया
कैसा है यह मेला?

अब तो आजा कन्हाई
अखिंयाँ पिरान लगीं है
सखियों संग राधे पुकारे
गलियाँ तुझ बिन सूनी पड़ी हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कली तोड़ आज एक मैं गुनाह न कँरूगा फूल न बन जाये तब तक इतंजार कँरूगा।



कलम से____

बागवां की मेहनत रंग ला रही है
बागों में बहार फिर से आ रही है।

हर शाख पर कली एक खिल रही है
देख कर उन्हें मेरी तबीयत मचल रही है।

चम्पा चमेली मोंगरा महक रहा है
गुलाब की कली बस खिल रही है।

तोड़ लूं इस कली को किसी के लिए
आशिकी मन भीतर की बोल रही है।

कली तोड़ आज एक मैं गुनाह न कँरूगा
फूल न बन जाये तब तक इतंजार कँरूगा।

कली गुलाब की हो या फूल दोनों सजेंगे
जब मैं उन्हें देकर पूछूँगा कि ये कंहा लगेंगे।

झट मुँह से उनके यूं निकल जायेगा
जहां तू चाहेगा यह फूल वहां सज जायेगा।

फूल की किस्मत तो देखिए गेसुओं में उनके टंक गया
फूल एक किसी को भा गया जो मैयत पर चढ़ गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, February 22, 2015

भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना


कलम से___


अबके गाँव में
नहर किनारे घूमते हुए
फिर से बचपन जी लिया
मन ही मन
पुल के ऊपर से कूदना
दूर कहीं जाकर निकलना
वो पानी को बालों से छिटकना
वो हँसना हँसाना
वो रोना रुलाना
भवँर में फँसी जिदंगी का छटपटाना
लहरों के साथ दूर तक चले जाना
सब कुछ जी लिया
अब चल ए मन
लौट के फिर घर को है चलना।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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अभी सूरज नहीं डूबा



अभी अभी दिल से है निकली।


कलम से____

अभी अभी दिल से है निकली।

गुज़री रात
बदरी एक पिया से बिछड़ क्या गई
अखिंयों से दर्द दिल का कह गई
आगंन की तुलसी को पुनर्जीवित कर गई
भोर से ही खोज में था मैं लगा
पाती एक शाख से अलग हो,
बात अपनी कह गई।
पतझर के मौसम में जो मैं गई
फिर मिलूँगी नये परिधान में
विरह की घड़ी को बीत जाने दो
कान में मेरे आकर वो कह गई
बात कुछ यह कह गई।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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निदिंया रानी !!!




कलम से____

अरसे से जानता हूँ
तुम्हें,
पहले तो 
कभी पूछा न था
अब आने के
पहले पूछती हो
क्या मैं आजाऊँ ?
निदिंया रानी !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Wednesday, February 18, 2015

यह पलाश रंग बदलता रहता है होलिकोत्सव के यह आसपास।


कलम से____

मौसम न मारीं हैं अबके
उल्टी पलटी अनेक
कभी सर्दी कभी लगे गर्मी
पर निश्चिंत रहो
खिलेंगे पलाश अनेक
आने तो दो हवाओं
को रंगत में
बिखरने तो दो
होली के रंग
गालों पर
गोरी के लगने तो दो
इंतजार इतंजार
बस कुछ और करो।

हमारे घर की खिड़की
से दिखता यह पलाश
रंग बदलता रहता है
होलिकोत्सव के यह आसपास।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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माँ साथ है तेरे, कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।


कलम से____

बडे दरख़्त तले गुज़ारी थी जिदंगी
करते थे दिन रात हम उसकी बदंगी।

सिर उठाके कभी कोशिश भी करी
समझा दिया लंबी पड़ी है जिदंगी।

चल न सको जब तक अपने बल बूते
अच्छा यही है रहो मातहत किसी के।

सिर कुचलने को दुश्मन तैयार बैठे हैं
रहना पड़ेगा तुम्हें सभंल बचके उनसे।

ज़माने में मिलेंगे इन्सान हर तरह के
कुछ सिला देगें, कुछ चैन पाएगें बदनाम करके।

प्यारे बच्चे रहना तुम मेरे आचंल की छांव तले
माँ साथ है तेरे, कुछ न होगा कोई चाहे कुछ भी करले।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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 — with Puneet Chowdhary.

Monday, February 16, 2015

कहा उससे, मैंने भी बहारें देखी है


कलम से____

पतझड़ की हवा कुछ ऐसी चली
मैं तो खाली खाली सा हो गया
साथ में है जो यहाँ पेड़ खड़ा
हरा भरा मुस्कराता रह गया।

कहा उससे,
मैंने भी बहारें देखी है
चंद रोज़ का करो इतंज़ार
ऋतु बसंत मुझ पर भी
मेहरबान होने वाली है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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किरण आशा की बस नज़र एक आती है





कलम से____

क्यों ले आए हो मुझे मुर्दों के इस शहर में
इन्सान एक भी नज़र मुझे आया नहीं है।

तबीयत लगेगी कैसे किसी की यहाँ
दर्द बांटने को 

कोई आता ही नहीं है।

आँखों की रौशनी है सबब परेशानी की यहाँ
अधेंरे दिल के रहते हैं रौशनी खोजते यहाँ।

किरण आशा की बस नज़र एक आती है
पास आके पूछे अन्जान, आप अच्छे तो हो यहाँ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, February 15, 2015

कहते हैं अक्सर कहावतें यूँ ही नहीं बनतीं हर कहानी एक आसूँ भरी दास्तां है कहती।



कलम से____

कचनार।

तोडी नहीं जाती है कच्ची कली कचनार की
फूलों के बाजार में यह कहावत तो सुनी ही होगी।

गुलाबी और सुफैद रंगो से रहती है सजी
हरे भरे पेड़ पर लगती है कली कचनार की।

माली बाग का वोले यही दिल में है समाती
अद़ब से कही गई सुदंर तारीफ सी है लगती।

सामने खड़े हो भगवान के कहता है पुजारी
बात इतनी सी कानों को कितनी है सुहाती।

कोठा लखनऊ पर खालाज़ान जब ये बोले
दिल को चुभती है खराब गाली सी है लगती।

कहते हैं अक्सर कहावतें यूँ ही नहीं बनतीं
हर कहानी एक आसूँ भरी दास्तां है कहती।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Saturday, February 14, 2015

निधिवन वृंदावन में कान्हा से मिलेगी राधिका रानी।

कलम से____
कल शाम ही तो
अचानक आखों में तुम आ गए
सूखे से जो थे
फिर हरे हो गए
कुछ एक दिन की बात है
जवानी तुम पर छाई होगी
फूलों से लदी तुम्हारी हर शाख होगी
लाल सुर्ख रंग के फूलों से मन मोह लोगे तुम
होली आने वाली है
रंगों से रंग दोगे तुम
मुझे भी....
उनको भी.....
पलाश के फूलों से सजेगी
होलिका रानी
निधिवन वृंदावन में
कान्हा से मिलेगी राधिका रानी।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Namaste

When a goal matters enough to a person, that person will find a way to accomplish what at first seemed impossible.
- Nido Qubein
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