Sunday, July 9, 2017

My meeting with ......God





My meeting with........God.

मेरी यह मुलाक़ात उससे कुछ अजीबोगरीब से हालात में हुई थी। 

मैं तो Max Super speciality Hospital के CCU की बेड पर Dr Manoj Kumar और उनकी टीम की देखभाल में था। मेरे चारों ओर केरल प्रदेश की वह देवियाँ थी जिनके आपस में मलयालम के वार्तालाप को सुन कर ही Gods Own Country विचारों में समा जाता है। कितने सेवा भाव से घर से हज़ारों मील दूर रह कर भी मरीज़ों की देखभाल करतीं हैं। इस उधेड़बुन में कब गहन निद्रा में एक black hole में चला गया पता ही न लगा। Cardrone injection का असर था जो मुझे heart episode के बाद administer किया गया था। blood pressure था कि गिरता ही जा रहा था और  pulse 165-170 के बीच थी। doctors के कहने के अनुसार यह एक emergency थी और कुछ भी हो सकता था पर वो sure थे कि 5-7घन्टो में situation control हो जायेगी। तभी तो उन्होंने मेरे ऑफिस की Zephyr टीम के लोगों के सुझाव Mendata या Escorts में शिफ्ट करने को नहीं माना था।

चारों तरफ अंधकार था। दूर दूर तक कहीं भी लाइट नज़र नहीँ आ रही थी। यह एक लंबी यात्रा थीपर मैं भी मानसिक रूप से इस यात्रा के लिये तैयार था। मुझे ज्ञात था कि अबकी बार third attack पड़ा है और यह मुश्किल पैदा करने वाला हो सकता। पर मैं टूटा नहीँ था मुझे  दृढ़ विश्वाश था कि अबकी बार भी पहले की तरह हॉस्पिटल से घर वापस जाना ही है। आख़िरकार दूर बहुत दूर tunnel के दूसरे मुहाने पर प्रकाश की किरण दिखाई दी।

मैंजिसका कोई बज़ूद नहीँ थान नामन धर्मन देशन अपना शहर सब कुछ अजीब सा था। चारों ओर सुंदर प्राकृतिक छटा बिखरी हुई थी।मनमोहक वातावरण और मनोहारी पर्वत श्रंखला और नदी में कल कल करता जल प्रवाह ने मेरा ध्यान उस ओर खींचा और मैं नदी किनारे बैठ गया। मानव जैसे जीवधारी नहीँ दिख रहे थे। भिन्न भिन्न प्रकार की रंग बिरंगी चिड़ियाँ इस डाल से उस डाल पर आ जा रहीं थीं। ऐसे पक्षी मैंने पहले कभी नहीँ देखे थे। सब कुछ अजीब सा लग रहा था।

इधर उधर घूमने के बाद मैं एक जगह शांति से बैठ गया।कब आँख लग गई पता ही न लगा। स्वप्न सरीखी स्थित में मैंने एक प्रकाश पुंज को अपनी ओर आते हुए महसूस किया। प्रकाश पुंज मेरे क़रीब आके रुक गया। उसने मेरे सिर के पास आकर आशीर्वाद दिया और फिर मुझे निद्रा से उठाया। उस प्रकाश पुंज का भी कोई रूप या आकर नहीँ था। उस प्रकाश पुंज से बिशिस्ट प्रकार की ध्वनि हुई जो मेरी समझ में नहीँ आ रही थी।मैं किंकर्तव्यविमूढ़म स्थित में था। प्रकाश पुंज ने मेरी दिक्कत को महसूस किया और कहा इस समस्या का शीघ्र ही कोई निदान निकल आएगा।

कुछ देर बाद जो ध्वनि आ रही थी और भी तेज हुई और फिर कुछ अजीब सा हुआ और तब वह आवाज़ मुझे सुनाई पड़ने लगी। उस प्रकाश पुंज ने मेरा नई जगह आने पर स्वागत किया और बताया कि हम दोनों की भाषा भिन्न होने के कारण  वार्तालाप नहीँ हो पा रहा था पर वह दिक्कत अब दूर करली गई है और अब हम  आपस में वार्तालाप कर सकते हैं। मुझे लगा कि यह भी कोई कंप्यूटर में सॉफ्टवेयर जैसीproblem रही होगी जो अब ठीक कर ली गई है।

प्रकाश पुंज ने मुझ से बात करते हुए कहा कि वही इस सम्पूर्ण ब्रह्मांड के रचयिता और कर्ता धर्ता हैं।उस ब्रह्मांड के जिसका न कोई छोर हैन ही कोई परिध।अनंत सूर्य और उनके चारों ओर उनके उपग्रह चक्कर लगाते रहते हैं। इनमें से कइयों के ऊपर जीवन है और कइयों के ऊपर नहीँ। यहाँ रहने वालों में भूतकाल से ही प्रतिस्पर्धा चली आ रही है।इन सब के बीच यह कहने में जिझक नहीँ की पृथ्वी पर मानव जीवन मेरी सर्वोत्तम कृति है।कालांतर में सभ्यताओं का विकास हुआ और मानव धर्मरंगभेदवर्णों में बटने लगा। यहीँ से शरुआत हुई आपस में स्पर्धा की और विकास की। धीरे धीरे समाज में आमूलचूल परिवर्तन आया और कुछ लोग विकसित हो गए और कुछ इस दौड़ में पिछड़ गये। अभी यह विकास की दौड़ और जोर पकड़ेगी मानव सत्ता दूसरे ग्रहों और ब्रह्मांडो तक पहुचेंगी। अंततः यही विकास विनाश का कारण बनेगा।

जब मानव इस भीड़ भाड़ से उकताने लगता है या घबराने लगता है तो उसे मेरी याद आती है और वह मेरे शरणागत हो जाता है। यह मानवीय प्रकृति है कि सुख में अपने में मग्न और दुःख में अपने मन को समझाने के लिये कभी यहाँ तो कभी वहाँ भटका करता है।

इन सभी ब्रह्मांडो की रचना मेरी ही की हुई है और  इनके जीवन काल की समाप्ति पर मेरे ही आदेश पर विघटन होकर समाप्त हो जाते हैं। प्रकाश पुंज के कथनानुसार सम्पूर्ण ब्रह्मांड में जो भी घटना घटित होती है वह उनके आदेशों के अनुरूप ही होती है। उन्हें पल पल की खबर रहती है।

पृथ्वी के मानव का विकास एक अदभुत रूप में हुआ है। इसके विकास को देख दूसरे ग्रहों के लोंगो में उत्कंठा बनी रहती है। अपने ज्ञान वर्धन के लिये वे कभी कभी तुम्हारी पृथ्वी पर भी जाते हैं। पृथ्वी के लोगों में इनको लेकर कई बार बहस भी हुई है परुंत अभी तक कोई ठोस विचार नहीँ बन पाया है।

अब तो पृथ्वी ले लोग भी अपने चाँदमंगल और भी अनेक ग्रहों के आसपास तक पहुँच गये हैं। अभी यह यात्रा उन्हें और आगे ले जाएगी।

तुम यहाँ आये हो वह भी मेरे आदेश पर।तुम स्वयं को धन्य समझो कि यहाँ तक आ पाये हो और तुम्हें यह अवसर प्राप्त हुआ। तुम्हारी और हमारी आपस में बातचीत हो पा रही है।अभी तुम्हें लंबी अवधि तक वहीँ रहना पड़ेगा क्योंकि अभी तुम्हें बहुत कार्य करने हैं।  इसलिए तुम अब वापस जाओ और कुछ समय के लिए पृथ्वी पर ही रहो।

मैंने कहा जैसा आपका आदेशपरुंत मुझे आपसे दो प्रश्न पूछने हैं कि मुझे यहाँ न तो राम दिखे और न ही दिखे कृष्णन ही दिखे रहीम और न ही यीशुन ही दिखे बुद्ध और न ही दिखे महावीर यह सब युग पुरुष कहाँ रहते हैं जो दिख नहीँ रहे हैं और दूसरा कि  आजकल हमारी पृथ्वी पर यह द्वेषभाव और यह आपस में समुदायों और विभिन्न धर्मिक आस्थाओं के अनुयायियों के बीच यह मारा मारी और घृणा का वातावरण क्यों है?

पृथ्वी पर जो भी घटित हो रहा है मुझे उसका पूरा ज्ञान है। मैं ही शिव हूँमैं ही रामकृष्णरहीमखुदायीशुबद्ध और महावीर हूँ। यह श्रष्टि मेरी ही बनाई हुई है और जो भी वहाँ या यहाँ घटित होता है वह भी मेरी मर्ज़ी के अनुसार। मैं ही निर्माता हूँ और मैं ही पालनहार भी हूँ। मैं किसी से नहीँ कहता कि तुम मेरी पूजा अर्चना करो। यह तो मानव ही है जब अपनी परेशानियों से घबराता है तो मेरी शरण में आता है और जब उसके भीतर के तनाव समाप्त हो जाते हैं तो वह पुनः अपनी पूर्व स्थित में चला जाता है। तुम्हारे दूसरे प्रश्न के उत्तर मैं इतना ही कहना चाहूँगा कि मैंने कभी नहीँ चाहा था कि एक मानव दूसरे के खून का प्यासा हो पर तुम्हारी पृथ्वी पर लोग धर्मवर्गरंग भेद जैसे विषयों में उलझ के रह गए हैं। कुछ लोग धर्म का उपयोग अपनी अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए कर रहे हैं अधार्मिक और पाप कर रहे हैं। विभिन्न देशों  के  बीच तनाव बना हुआ है। समाज विभिन्न वर्गों में बटा हुआ है।यही धार्मिक उन्माद और एक देश का दूसरे देश के प्रति दुर्भावना रखना ही पृथ्वी के विनाश का कारण बनेंगे। पर अभी वह समय आने में देर है। इसका विश्वाश रखो कि जो हो रहा है वह होके ही रहेगा आखिर जो सर्जन हुआ है उसका विनाश होना भी एक प्राकृतिक क्रिया के अनुकूल है। फिलहाल तुम् वापस जाओ। तुम्हारे चाहने वाले और परिजन सभी चिंतित हो रहे हैं।मुझे उनकी प्रार्थनाओं का भी ध्यान करना है।जाओ वत्स प्रसन्न रहो।

जब मेरी निद्रा टूटी तो मैंने स्वयं को हॉस्पिटल की बेड पर पाया। नहीँ समझ आ रहा था यह एक स्वप्न था या किसी परलोक की कथा।पर जो भी था अच्छा था।

धन्यवाद।



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