Wednesday, December 4, 2019

गुज़र गाह द्वारा एस पी सिंह


“गुज़र गाह”








एस पी सिंह
















       











समर्पण

माँ सा और बाबू सा की स्मृति में




































अस्वीकारोक्ति

मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस पुस्तक में वर्णित व्यक्ति और घटनाएँ काल्पनिक हैं। वास्तविक जीवन से इनका कोई सरोकार नहीं हैं। तथापि पुस्तक में उल्लिखित यदि किसी व्यक्ति या घटना का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध है, तो यह मात्र संयोग माना जाये।

























दिल से……
श्रीनगर, कश्मीर।

लगभग चार हफ़्ते होने को आए धारा 370 और 35A हटाये जाने के कारणों से कश्मीर और जम्मू में कुछ जगहों पर पाबंदियां अभी भी लागू हैं। कुछ एक जगह ये पाबंदियां हटा ली गईं हैं कुछ जगह अभी भी स्थित सामान्य न होने की वजह से इन्हें हटाया नहीं जा सका है। ख़ुदा से यही दुआ है कि अब जो होना था वह हो गया बस आगे जहां जहां नज़र जाए वहां ख़ुशहाली ही ख़ुशहाली नज़र आये।

मेरा एक ख़्वाब है कि जम्मू, कश्मीर और लद्दाख़ में अमन चैन तो आए ही उसके साथ साथ विकास भी घर घर पहुंचे। विकास होगा तो सही में देखने वाली बात अब यह होगी कि विकास की गंगा से वास्तव में किसको कितना लाभ हुआ। लाभ वहां के लोगों को मिलता है या बाहरी लोग आकर मौक़े का फ़ायदा उठा कर ऐश करते हैं।

मेरी तो तमन्ना है कि जब एक कश्मीरी की आँख जब सुबू के वक़्त खुले तो उसे कुछ नज़ारा ऐसा दिखे जिसमें डल झील के किनारे जगह जगह नए नए पाँच सितारा होटल हों साथ ही साथ शिकारे भी ख़ूब घूमते हों, उद्द्योगों की कई इकाइयां वहां काम कर रही हों, केशर की खेती जगह जगह हो रही हो, चनारों के पेड़ों से घिरी हुई सड़कों पर सरपट सरपट घोड़ा गाड़ी दौड़ रहीं हों, पर्यटन को इतना बढ़ावा मिले कि हम जैसे साधारण लोग भी श्रीनगर जाकर घाटी की फ़िज़ाओं का आनंद उठा सकें। बाबजूद इसके कि हम कभी श्रीनगर नहीं गए पर फिर भी श्रीनगर को अंतर्मन की आंखों से देख कर "मैं उसकी ख़्वाहिश हूँ" के ज़रिए से शौरेन, एक कश्मीरी काचरू विस्थापित पंडित प्रेम नाथ काचरू के पुत्र की  केशर, श्रीनगर के ख़ालिक़ मियां की खूबसूरत पुत्री, के बीच प्रेम-मोहब्बत का बीज बोने में सफ़ल हो पाए और घाटी में अमन चैन का एक ताना बाना बुन पाए। 

अब श्रीनगर जाने के लिये बैचैनी बहुत बढ़ती जा रही है। आजकल के कश्मकश भरे माहौल में न जाने किसकी आंखों में इतना प्यार उमड़ा है जो हमें वहां बार बार बुला रहा है, न जाने वो कौन है जो एक नई कहानी की भूमिका में अहम क़िरदार निभाने के लिए बेक़रार है?

जब मै यह सब सोच ही रहा था कि अचानक ख़्याल हो आया 'अज़रा' और 'जसवीर' मुझे लग रहा है कि इनके बीच श्रीनगर में झेलम दरिया के दो किनारों को मिलाने वाला लकड़ी का बना जीरो ब्रिज या "गुज़र-गाह" की वज़ह से कुछ अहम क़िरदार निभाने की तैयारी में है।

श्रीनगर जाना जब होगा तब होगा लेकिन आज ही से उस प्रेम कहानी और "गुज़र-गाह" के अफ़साने को कोरे कागज़ पर उतारने की कोशिश होगी।

"दिल गुज़र-गाह-ए ख़याल-ए मै-ओ-साग़र ही सही 
गर नफ़स जादह-ए सर-मन्‌ज़िल-ए तक़्वी न हुआ"

                                                    ग़ालिब।

एस पी सिंह
27-08-2019





















एपिसोड 1

लतीफ़ और हामिदा, पढ़े लिखे सुलझे हुए श्रीनगर के एक जाने माने शिया खानदान से ताल्लुक़ रखते थे, जो अपनी बेटी अज़रा और बेटे अशफ़ाक़ के साथ राज बाग़ मोहल्ले के दो मंजिला उस्मानिया मस्ज़िद के क़रीब निज़ी ख़ानदानी मकान में रहते थे। देवदार की लकड़ी का बना हुआ मकान उनके बड़े अब्बा हुज़ूर ने बनबाया था। धर्मभीरु होने के नाते पांच वक़्त की नमाज़ अदा करना उनके दिनचर्या का एक अहम हिस्सा था। 

अज़रा, जो देखने में भोली भाली, छरहरे बदन, ख़ास कश्मीरी शक़्ल सूरत होने के कारण बेहद खूबसूरत दिखती थी। उसकी नीले रंग की आंखे उसे अपनी अम्मी से विरासत में मिलीं थी जो उसके हुस्न में चार चांद लगाती थीं। अज़रा ने हाल ही में इंटरमीडिएट का इम्तिहान पास किया था। वह आगे पढ़ने की इच्छा रखती थी पर श्रीनगर के तनाव भरे माहौल में उसकी अम्मी उसे यूनिवर्सिटी भेजने के हक़ में नहीं थी जहां बच्चे पुलिस और आर्मी के लोगों पर किसी भी छोटी से छोटी घटना पर पत्थर फैंकते और बदले में उनकी गोली के शिकार होते। 

अज़रा पढ़ाई लिखाई को लेकर अक्सर ही हामिदा बेग़म की लतीफ़ मियां से बहसबाज़ी भी हो जाया करती थी। अज़रा को हमेशा से पढ़ने लिखने का शौक़ था और वह ख़ूब पढ़ लिख कर अपने खानदान के नाम को रौशन करना चाहती थी। अम्मी और अब्बा की बात सुनकर वह दुःखी हो जाती। अपना ग़म दूर करने के लिए वह बीच बीच में अशफ़ाक़ को लेकर पढ़ाने बैठ जाया करती थी। अज़रा चाहती थी कि अशफ़ाक़ भी उसी की तरह ख़ूब पढ़े लिखे। 

अज़रा का छोटा पांच साल का भाई अशफ़ाक़ जो बोल नहीं सकता था, जन्म से ही गूंगा था। अशफ़ाक़ सभी घर वालों की आंखों का तारा था। अज़रा दिल से यही दुआ करती कि उसका भाई किसी तरह पढ़ लिख कर उसके अब्बा की तरह एक नेक इंसान बने। श्रीनगर में कोई भी स्कूल गूंगो बहरों के लिए नहीं था इसलिए अज़रा चाहती थी कि उसे कहीं बाहर ले जाकर गूंगो बहरों के स्कूल में दाखिला करा कर पढ़ा लिखा कर क़ाबिल बना सके जिससे कि वह अपने पांव पर खड़ा हो अमन चैन की ज़िंदगी जी सके। अज़रा के इन ख़यालात से लतीफ़ मियां को तो कोई एतराज़ नहीं था लेकिन हामिदा हमेशा बीच में आ जाती और अशफ़ाक़ को बाहर भेजने के लिए तैयार नहीं होती थी।

राजबाग़ में पास ही के अरामवारी कॉलोनी में लतीफ़ मियां का बीस कमरे का एक आलीशान होटल था। होटल के मालिक होने के कारण उनका श्रीनगर घूमने आने जाने वालों से अक़सर ही मुकाबिला हुआ करता था। वह अपनी ओर से हर आने वाले का इतना ख़याल रखते कि जाते वक़्त हर आने वाला यह कह कर जाता कि वे उनकी खिदमत के इतने कायल हैं कि एक बार फिर श्रीनगर अवश्य आएंगे।

अज़रा जब इंटरमीडिएट में पढ़ रही थी तब सरदार हर भजन सिंह चंडीगढ़ से मय परिवार श्रीनगर घूमने आया आये। सरदार हर भजन सिंह को सीजन होने के कारण कोई अच्छा होटल और शिकारा जब नहीं मिला तो एक एजेंट के कहने पर वह राजबाग़ लतीफ़ मियां के होटल में आ गए। सरदार साहब की लतीफ़ मियां ने ख़ूब ख़िदमत की। यहां तक कि उनके घूमने और टैक्सी वगैरह का इंतज़ाम भी वही करा देते थे। सरदार साहब जब घूमघाम कर वापस लौटते तो लतीफ़ मियां को बताते कि दिन भर में वे कहां कहां गए, उन्हें क्या क्या अच्छा लगा और यह भी कि वह किस वजह से श्रीनगर दोबारा आना चाहेंगे। जितने दिन सरदार साहब श्रीनगर रहे उनकी लतीफ़ मियां से ख़ूब गुफ़्तगू होती या यूँ कहा जाए कि दोंनो के बीच अच्छी खासी जान पहचान हो गई और वे एक दूसरे को खूब चाहने लगे। जितने दिन सरदार साहब का परिवार श्रीनगर में रहा उतने दिनों लगभग हर शाम कभी खाने पर तो कभी चाय पर लतीफ़ मियां के घर जाकर उठना बैठना हो जाता था। सरदार साहब अज़रा से बहुत ख़ुश थे और उनकी दिली इच्छा थी कि बच्ची ख़ूब पढ़े। सरदार साहब के समझाने बुझाने पर लतीफ़ मियां ने अज़रा को चंडीगढ़ जाने की इज़ाज़त दे दी। इस तरह अज़रा को मौका मिला और वह चंडीगढ़ में रहकर अपनी बीए की पढ़ाई पूरी करने लगी।

बच्चों की पढ़ाई की कश्मकश में लतीफ़ मियां और हामिदा बेग़म के बीच तक़रार भी हो जाती। बड़ी मुश्किल से लतीफ़ मियां अज़रा के लिए हामिदा को तैयार कर पाए थे। जब बात अशफ़ाक़ की उठी कि उसे भी कहीं बाहर भेजकर पढ़ाया लिखाया जाय तो हामिदा बिल्कुल तैयार नहीं हुई। हामिदा की ज़िद के आगे लतीफ़ मियां की एक न चली और वह लाख चाहते हुए भी अशफ़ाक़ के लिए कुछ भी नहीं कर पा रहे थे। लतीफ़ मियां उसे अपने साथ उस्मानिया मस्ज़िद ले जाते और नमाज़ पढ़ने की रबायात सिखाने की कोशिश करते। दिमाग़ से तेज़ तर्रार अशफ़ाक़ ने कुछ ही दिनों में नमाज़ अदा करना सीख लिया। जब कभी लतीफ़ मियां काम धंधे की वजह से उसे उस्मानिया मस्ज़िद ले जाने में असमर्थ होते तो भी वह अशफ़ाक़ को नमाज़ पढ़ने के लिए वहां भेज दिया करते थे। मस्जिद में अशफ़ाक़ हम उम्र लड़कों की सोहबत में खेला करता और शाम होने से पहले घर लौट आता।

अज़रा चंडीगढ़ में हॉस्टल में रह कर अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी करने में जुटी थी। बीच बीच में अज़रा को सरदार हर भजन सिंह अपने यहां खाने पीने पर बुला लिया करते थे। उन्हें लगता था कि बच्ची उनके कहने पर चंडीगढ़ पढ़ने आई है तो उसे कभी अपने परिवार की कोई कमी न खले।

जब अज़रा का छुटियों में श्रीनगर आ रही थी तो उसने सिख परिवार के लोगों से जोर देकर कहा, "अंकल अबकी बार मेरे कहने पर श्रीनगर कुछ दिनों के लिए चलिए ना"

सरदार हर भजन सिंह अज़रा के बार बार कहने पर श्रीनगर आने के लिए तैयार हो गए। सरदार साहब ने अज़रा से कहा, "हमें इंतज़ार है तो बस जसवीर का कि वह छुट्टी पर घर आए तो वह भी हमारे साथ आए। पिछली बार तो वह छुट्टी न मिलने के कारण श्रीनगर नहीं जा सका था"

सरदार साहब को उत्तर में अज़रा ने बस यही कहा, "चलिए अंकल यह भी सही है"

"तेरी तो अभी जसवीर से मुलाकात भी नहीं हुई है"

"मेरे यहां रहते वह कभी आये ही नहीं", अज़रा ने कहा, "मैं कभी उनसे मिली तो नहीं पर आप लोगों से उनके बारे में बहुत कुछ सुना है इसलिए उनसे एक बार मिलने की तमन्ना ज़रूर है"














एपिसोड 2

सरदार हर भजन सिंह अपनी धर्मपत्नी कुलविंदर कौर के साथ चंडीगढ़ के पॉश सेक्टर फाइव में रहते थे। पेशे से वे होटेलियर थे और उनका फोर स्टार गुरुदेव होटल चंडीगढ़ शहर के मशहूर शॉपिंग प्लाज़ा सेक्टर सेवेन्टीन में था। लक्ष्मी देवी की असीम कृपा से धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। सरदार साहब के दो बच्चे थे। बड़ा बेटा, जसवीर सिंह और छोटी बेटी परमिंदर कौर। बेटे ने अपने दादाजी की राह चुनी और आईएमए देहरादून से कमीशन लेकर आर्मी जॉइन की। आजकल उसकी पोस्टिंग लोनावाला,पूना आर्मी बेस पर बतौर लेफ्टिनेंट थी। पूना और देहरादून में रह चुकने के बाद उसे अपनी जॉब में और भी मज़ा आने लगा था और वह अक़्सर ही अपनी मॉम से बात करते हुए कहता, "मॉम पूना ठीक देहरादून जैसा है। वही मौसम और उसी तरह के खुशमिज़ाज यहां के रहने वाले लोग"

कुलविंदर अपने बेटे की बात सुनकर हँस कर उत्तर में कहती, "चलो अच्छा है कि तुझे पूना पसंद आ रहा है लेकिन एक बात का ख्याल रखना जो जगह जब दिल के करीब हो जाती है तभी कुछ न कुछ ऐसा होता है कि वह जगह छोड़नी पड़ जाती है"

"कोई बात नहीं मॉम यह तो मैंने दादाजी के आर्मी के ग्लोरियस कैरियर से सीखा है कि एक आर्मी ऑफिसर का बेड रोल हमेशा तैयार रहना चाहिए"

"ये बात तो है तेरे दादा ने कभी अपनी पोस्टिंग पर सवाल खड़े नहीं किए"

"मॉम यह भी कोई सिविलियन सर्विस है कि अफ़सर के हाथ पांव जोड़कर अपना ट्रांसफर रुकवा लिया"

"तुसी सच बोलदे पये हो"

"चलो मॉम तो फिर बात करूँगा अभी तो परेड के लिए निकलना है"

"ठीक है पुत्तर तू चल मुझे भी किचेन में काम है"

सरदार साहब के परिवार में सब कुछ तो ठीक था बस एक कमी उनके परिवार को हमेशा खलती थी और वह थी अपनी बेटी परमिंदर कौर को लेकर जो जन्म से ही से बहरी थी और सुन नहीं सकती थी। सरदार साहब उसे लेकर अमरीका भी गए पर उसका इलाज़ न हो सका।

सरदार साहब ने परमिंदर को चंडीगढ़ के गूँगे बहरों के स्कूल भर्ती तो करा दिया था पर वह वहां होस्टल में नहीं रहती थी और उसके लिए एक कार और ड्राइवर की ड्यूटी लगा दी थी जो उसके साथ सुबह से शाम तक रहता था।

जसवीर अपनी छोटी बहन परमिंदर को बहुत प्यार करता था लेकिन क़िस्मत का खेल देखिये कि लाख चाहते हुए भी वह अपनी बहन से बात नहीं कर सकता था इसलिए वह अपनी मॉम या डैड से उसके हाल ले लिया करता था। जब कभी वह घर आता तो उसके लिये अनेकोंनेक खेल कूद का सामान और बढ़िया से बढ़िया ड्रेस लेकर आता था। वह हर हाल में अपनी बहन को ख़ुश देखना चाहता था। जब वह चंडीगढ़ में होता तो उसके साथ ही अधिक समय बिताता। वह कोशिश करता कि वह कहीं भी रहे पर राखी के दिन वह हर हाल में अपनी बहन के साथ हो।

जब अबकी बार राखी का त्योहार आया तो वह बहुत चाह कर भी चंडीगढ़ नहीं आ पाया इसका कारण यह रहा कि देश में एज अजीबोग़रीब स्थित थी जिसकी वज़ह से आर्मी और पर मिलिट्री फोर्सेज़ की छुट्टियां कैंसल कर दीं गईं थीं। जसवीर अपने भाई को राखी बांधकर बहुत ख़ुश होती थी लेकिन वह ख़ुशी का मौका जब उसे न मिला तो उसके डैड ने इशारों से समझाया कि जसवीर को फ़ौज से छुट्टी नहीं मिली इसलिए वह दुखी न हो।

तमाम हिंदुस्तानी बहनों की तरह परमिंदर अपने भाई जसवीर को राखी भी न बांध सकी। जसवीर ने अपनी बहन को किसी तरह समझा बुझा कर उससे यह वायदा किया कि वह बहुत जल्दी ही चंडीगढ़ लौटेगा तब उसे अपने साथ लेकर कहीं न कहीं घूमने अवश्य ले लाएगा।

अरज़ा को चंडीगढ़ आये हुए कुछ ही दिन हुए थे। अरज़ा श्रीनगर से पहली बार हिंदुस्तान के दूसरे शहर में रहने के लिये पहुँची थी इसलिए लतीफ़ मियां और हामिदा की उसको लेकर बेचैनी ज़ायज़ थी। लतीफ़ मियां ने अज़रा को एक नया स्मार्ट मोबाइल फ़ोन ख़रीद कर इसलिये दिया था कि वक़्त बे वक़्त अज़रा की बातचीत हामिदा से करा सकें जिससे हामिदा बेसबब अज़रा को लेकर परेशान न हुआ करे।

लतीफ़ मियां ने एक रात सोने के पहले हामिदा की बात अज़रा से कराई। हामिदा ने अज़रा से पूछा, "कैसी है मेरी बच्ची"

"ठीक हूँ अम्मी तुम किसी हो"

"ठीक ही हूँ बस तुझे लेकर परेशान रहती हूँ कि तू एक नए शहर में अपने आपको कैसे ढाल रही होगी"

"अम्मी बहुत खूबसूरत शहर है चंडीगढ़। अब मैं तुम्हें यहाँ के बारे में क्या बताऊँ तुम एक बार अब्बू के साथ आओ तो ख़ुद अपनी नज़रों से देख लो"

"क्या बात है अज़रा बड़ी तारीफ़ हो रही है चंडीगढ़ की वहां किसी से दिल तो नहीं लगा बैठी हो"
















एपिसोड 3

"क्या अम्मी तुम भी अब.."

"ऐसी कोई बात नहीं अज़रा बस मैं तो ऐसे ही मज़ाक कर रही थी"

"चलो कोई बात नहीं। अम्मी, अब्बू तो ठीक से हैं"

"उनको क्या हुआ। वह भले चंगे हैं। पांच वक़्त की नमाज़ अता कर रहे हैं और होटल चला रहे हैं। बस किसी को तेरी कमी खल रही है तो वह है अशफ़ाक़। वह तेरे चले जाने के बाद अकेला पड़ गया है"

"अम्मी मेरा कहना मानो अभी अशफ़ाक़ बहुत छोटा है उसे किसी स्कूल में भर्ती करा दो। वह पढ़ लिख लेगा तो नेक इंसान बनेगा"

हामिदा ने अज़रा की बात सुनकर उससे कहा, "कहती तो तू सही है लेकिन यहाँ श्रीनगर में गूँगे बहरों के लिए अभी कोई ऐसा स्कूल है ही नहीं जहां वह जाकर पढ़ सके"

"अम्मी यहां बहुतेरे स्कूल हैं जहां अशफ़ाक़ जैसे बच्चे पढ़ने जाते हैं"

"न बेटी, मैं अशफ़ाक़ को इतनी दूर नहीं भेजने वाली"

"अम्मी मेरी बात मान भी जाओ न"

हामिदा बातचीत के रुख़ को बदलना चाह रही थी बीच में बोल पड़ी, "चल देर हो रही अब तू सोजा। शब्बाखैर"

अज़रा ने भी अपनी अम्मी को शब्बाखैर कहा और धीरे से अपने हॉस्टल के बिस्तर पर सोने की कोशिश करने लगी।

देश दुनियां में सब कुछ ठीक चल रहा था। अज़रा अपनी पढ़ाई लिखाई में लगी हुई थी। सरदार साहब अपने होटल के काम काज में लगे हुए थे। परमिंदर अपने स्कूल में पढ़ लिख रही थी। कुलविंदर घर के काम काज में लगी रहती थी। 

एक रोज़ अचानक यह ख़बर आई कि जम्मू और कश्मीर रियासत में कुछ होने वाला है जिसके चलते वहां कर्फ्यू लगाने की बात चल रही है तो परेशान हो लतीफ़ मियां ने अज़रा से मोबाइल पर बातचीत करते हुए कहा, "अज़रा न जाने क्या होने वाला है समझ में नहीं आ रहा। अचानक ही श्रीनगर में तरह तरह की खबरें चल रहीं हैं"

"ऐसा क्या हो गया अब्बा, कुछ कुछ मैंने यहाँ के अखबारों में पढ़ा है कि अबकी बार जम्मू कश्मीर में कुछ बड़ा कांड होने वाला है", अज़रा ने अपने अब्बू को बताया, "घाटी में तो सब ठीक है न"

लतीफ़ मिया ने बेटी की समझाते हुए कहा, "अभी तक तो सब कुछ ठीक है आगे क्या होगा वह तो खुदा जाने। वैसे यहां के कुछ नेता उल्टे सीधे बयान देकर लोगों को भड़काने की कोशिश में लगे हैं"

"अब्बू मुझे चितां हो रही है। पिछले कई सालों से वहां कुछ न कुछ होता ही रहता है। कभी अलगाववादी तो कभी आतंकी वहां के आवाम को भड़काया करते हैं"

"पाकिस्तानी भी अपनी ओर से आग लगाने की कोशिश में है"

"जी अब्बू, आप अपना ख़्याल रखियेगा और झंझटो से दूर रहिएगा"

"बेटी तू जानती है कि मैं कभी भी किसी मसायल को लेकर कोई बात नहीं करता। तेरी अम्मी और भाई सभी लोग ठीक से हैं। तू अपना ख़्याल रखना"

"जी अब्बू"

"कोई बात हो तो सरदार साहब के घर चली जाना मैं उनसे अभी बात करता हूँ तुम वेफ़िजूल खबरों को लेकर परेशान मत होना"
"खुदाहाफिज़ अब्बू", कहकर अज़रा ने फोन डिसकनेक्ट किया।

अज़रा उस दिन से जम्मू कश्मीर के बारे में हर ख़बर पर निग़ाह रखने लगी। अख़बार तो पढ़ती ही थी अब रेडियो पर ख़बरें भी सुनने लगी। जब मौका मिलता तो अपने स्मार्टफोन पर टीवी की खबरें और दूसरे प्रोग्राम भी देखने लगी। 

एक दिन अचानक पता लगा कि जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री अपने डेलिगेशन के साथ प्रधानमंत्री से मुलाक़ात कर कश्मीर को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर की है और यह भी दरख़्वास्त की है किसी ख़ास रद्दोबदल को लेकर अगर कोई बातचीत चल रही है तो रियासत के लोगों को पहले विश्वास में अवश्य लिया जाय। कुछ खबरें ऐसी भी चल रहीं थी कि पाकिस्तान कोई बड़ी कार्यवाही करने की फ़िराक़ में है इसलिए जम्मू कश्मीर में सेना और अर्धसैनिक बलों को और मज़बूत किया जा रहा है। किसी का कहना था कि रियासत के आईन में मुख्य बदलाव होने की तैयारी चल रही है।

एक दिन अचानक पता लगा कि जम्मू रियासत में मोबाइल फ़ोन तथा इंटरनेट सेवाएं बंद कर दीं गईं। रियासत में हर जगह कर्फ्यू लगा दिया गया। बच्चों के स्कूल कॉलेज बंद कर दिए गए। कई अलगाववादी और मशहूर नेताओं की नज़रबंदी की जा चुकी थी वगैरह वग़ैरह। अज़रा मन ही न सहम कर रह गई और उसने सरदार साहब को फ़ोन किया, "अंकल जम्मू कश्मीर में जो चल रहा है उससे मुझे बड़ा डर लग रहा है"

सरदार हर भजन सिंह ने अज़रा से कहा, "तू किसी तरह की चिंता न कर और तू कुछ दिन के लिये हमारे यहां ही आजा"

बातचीत में तय कर सरदार साहब ने कार भेज कर अज़रा को अपने यहां बुलवा लिया। अज़रा सरदार साहब उनकी धर्पत्नी कुलविंदर कौर तथा बेटी परमिंदर कौर के साथ जब डिनर कर रही थी कि तभी लैंडलाइन फ़ोन की घँटी बजी अज़रा को लगा कि उसके अब्बू का फोन होगा इसलिये वह भी सरदार साहब के साथ फोन की ओर बढ़ी। सरदार साहब ने जैसे ही फोन उठाकर हेलो कहा तो दूसरी ओर से जसवीर ने कहा, "पापाजी तुसी कैसे हो"

"पुत्तर असी सब दे सब चंगे हैं तू अपना हाल दस"

"मैं ठीक हूँ। मम्मी और परमिंदर भी ठीक से तो हैं न.."
"की हो गया है तू कैसी बात कर रहा है यहां सब लोग ठीक हैं"

"पापा त्वानूं दसना है कि साडा कश्मीर विच ट्रांसफर हो गया है"

सरदार साहब जसवीर की बात सुनकर कुछ परेशान हुए और पूछ बैठे, "सब ठीक तो है न"

"पापाजी सब ठीक ही होगा असल हालात तो वहां पहुंच कर ही पता लगेंगे"

"चल पुत्तर चल सब ठीक ही होगा", सरदार साहब ने जसवीर को आशा दिलाते हुए कहा, "लतीफ़ मियां की बेटी अज़रा हमारे पास ही है, वह भी जम्मू कश्मीर के हालात को लेकर परेशान है"

अज़रा का जब नाम बीच में आया तो अज़रा को लगा कि जसवीर उससे बात करेगा लेकिन वैसा कुछ हुआ नही बल्कि जब सरदार साहब ने उससे पूछा, "कश्मीर पोस्टिंग पर जाने के पहले क्या तू चंडीगढ़ आएगा"

जसवीर ने उत्तर दिया, "पापाजी नहीं मालूम, शायद नहीं। हमारे मूवमेंट की ख़बर हमें भी नहीं रहती'











एपिसोड 4

सरदार साहब ने फोन को डिसकनेक्ट किया और मोबाइल के हैंडसेट को अपनी शर्ट की सीने वाली पॉकेट में रखते हुए अज़रा की ओर देखते हुए बोले, "अबकी बार भी तेरी मुलाकात जसवीर से न हो सकी"

"अंकल जी कोई बात नहीं। जब होगी तो धूम धड़ाके वाली होगी"

"अज़रा बेटी तू उससे मिली नहीं पर वह तेरे बारे में सब कुछ जानता है"

"अंकल जी वह कैसे"

कुलविंदर जो अधिकतर चुप ही रहतीं थीं बीच में पड़ते हुए बोल पड़ीं, "....वो ऐसे कि हम तेरे बारे में उसे सब कुछ बता चुके हैं"

"हाय अल्लाह, ऐसा क्या बता दिया है उन्हें मेरे बारे में.."

"यही कि अज़रा एक ऐसी कश्मीरी लड़की है जो देखने में भोली भाली, छरहरे बदन, ख़ास कश्मीरी शक़्ल सूरत होने के कारण बेहद खूबसूरत दिखती है। उसकी नीले रंग की आंखे उसे अपनी अम्मी से विरासत में मिलीं हैं जो उसके हुस्न में चार चांद लगाती हैं। अज़रा ने हाल ही में इंटरमीडिएट का इम्तिहान पास किया है और वह हमारे अपने चंडीगढ़ में रह कर अपनी बीए की पढ़ाई पूरी कर रही है", कुलविंदर इतना कह कर मुस्करा पड़ी।

अज़रा भी बच्ची नहीं थी हँसते हुए बोली, "आंटी जी एक काम और करिये कि फिर मेरी एक तस्वीर भी उन्हें भेज दीजिये..."

"....भेज दी है पगली तेरी अकेले की और तेरे अब्बू, अम्मी और अशफ़ाक़ की भी"

"सबकी"

"हां सबकी"

"आंटी कुछ मेरे लिए भी छोड़ा होता न..."

"बहुत कुछ छोड़ा हुआ है जो तुझे ही जसवीर को बताना है", कुलविंदर ने अज़रा की आंखों में झाँकते हुए कहा।

"कुलविंदर रहने भी दे", सरदार साहब बीच में बोल पड़े, "देख मेरी बेटी को और परेशान न कर"

"मैं कहाँ परेशान कर रही हूँ, छोटा मोटा मज़ाक तो आपस में चलता ही रहता है"

इसी तरह की बातचीत सभी लोगों के बीच चलती रही और परमिंदर इन सबकी बातों को बहुत ध्यान से कान लगा कर सुनता रहा। रात बहुत हो चुकी थी जब सरदार साहब अज़रा से बोले, "जा बेटी जा अब आराम कर"

अज़रा सबको शब्बाखैर कहकर अपने बेडरूम में आ गई और जसवीर सिंह के बारे में सोचने लगी। तभी उसकी निग़ाह साइड टेबल पर रखे एल्बम पर गई। झट से उसने वह एल्बम उठा लिया और एक एक पेज पलट कर हर फ़ोटो को ध्यान से देखती रही। मिलिट्री ऑफिसर की ड्रेस में एक सुंदर नौजवान की फ़ोटो जब नज़र आई तो उसने अंदाज़ लगाया कि यह फोटो किसी और की नही बल्कि जसवीर की ही होगो। यह ख़्याल आते ही उसने जल्दी जल्दी एल्बम की सभी फ़ोटो देख डालीं।

अज़रा की आंखों में अब नींद कहाँ बल्कि उसके दिमाग़ के कई सवाल चल रहे थे जिनका जवाब उसे मिल भी रहा था और नहीं भी। बस इसी उधेड़बुन में न जाने कब उसको नींद ने धर दबोचा और वह गहरी नींद में चली गई....





एपिसोड 5

अज़रा देर रात सोई थी इसलिये सुबह देर से आंख खुलना लाज़िमी था। कुलविंदर उसके कमरे में चाय देने गईं ज़रूर थी लेकिन जब उसने देखा कि वह गहरी नींद में सो रही है तो बेडरूम का दरवाज़ा धीरे से बंद किया और दबे पांव ड्राइंगरूम में वापस आ गईं जहां सरदार साहब उसका इंतजार ही कर रहे थे। कुलविंदर के हाथ मे चाय का प्याला देखकर सरदार साहब पूछ बैठे, "क्या हुआ?"

"अज़रा गहरी नींद में थी इसलिए मैंने उसे नहीं उठाया"

"बच्ची है, कल रात हम लोगों को बात करते करते देर भी तो हो गई थी"

"जी बहुत देर हो गई थी", कुलविंदर आगे बोल उठी, "मुझे लगता है कि अज़रा रात को अपना फ़ैमिली एल्बम देखती रही होगी इसलिए उसे सोते सोते और भी देर हो गई होगी"

"तुझे कैसे मालुम...?"

"एल्बम खुली हुई बेड पर पड़ी थी, कुलविंदर ने कहा, "जो मैंने उठाकर साइड स्टूल पर जहाँ रखी थी वहीं वापस रख दी है"

"कुलविंदर तुझे क्या लगता है"

"किस बारे में जी"

"यही कि बच्चे कितनी जल्दी बड़े हो जाते हैं। पता ही नहीं लगता कि कब उनके ख्यालों में कोई जगह बना ले"

"छोड़ो भी अभी से क्या सोचना। जब जो होना होगा वह होकर ही रहेगा उसे रब भी नहीं रोक सकता है"

"तेरी यह बात सौ फ़ीसद सही है", सरदार साहब ने कुलविंदर की ओर देखते हुए कहा, "चलो जी मैं सुबह की सैर करके आता हूँ इतने में अगर अज़रा जाग जाए तो उसे चायशाय पिला देना"

"तुस्सी सैर करने जाओ और चिंता ना करो मैंने अज़रा का पूरा ख़्याल रखना है"

सरदार साहब सैर के लिये अपने घर के पास ही के पार्क में चले आये। पार्क में घूमते वक़्त उनके कई दोस्त उनके साथ हो लिए। तेज तेज चलते हुए जब वे सैर कर रहे थे तो सरदार साहब के दोस्त माथुर साहब जो उम्र में कुछ बड़े थे बोल पड़े, "क्या बात है आज सबके सब बड़े तेजी में हो"

माथुर साहब की बात सुनकर अय्यर बोल उठे, "माथुर साहब आजकल सब काम तेजी से हो रहे हैं और देश की राजनीति में तूफ़ान आया हुआ है इसलिए सभी लोग तेजी में हैं"

"सुना है कल रात की ख़बर थी अबकी बार सरकार जम्मू कश्मीर से धारा 370 और 35A हटा कर ही चैन लेगी", माथुर साहब बोल पड़े।

माथुर और अय्यर की बात सुनकर सरदार साहब बोल उठे, "आओ यार बेंच पर बैठ कर बात करते हैं"

सरदार साहब के मशविरे को मानकर सभी दोस्त एक पेड़ की छांव में बेंच पर आमने सामने बैठ गए। सुबह सुबह का वक़्त देश विदेश के समाचारों पर चर्चा के लिए रहता था।  हरेक की अपनी राजनीतिक सोच एयर पार्टी फॉलोइंग होती थी इसलिए चर्चा ख़ूब मज़ेदार होती थी। कभी कभी तो लगता कि लोग आपसे में भिड़ न जाएं। जब मसायल जम्मू कश्मीर का हो तो आज की चर्चा तो ज़ोरदार होनी ही थी ज्वलंत प्रश्नों पर अगर बहस न हो तो यह जान लेना चाहिए कि वह समाज मृतप्रायः है।

माथुर साहब का कहना था कि यह हर राजनीतिक पार्टी को अधिकार है कि वह अपने पोलिटिकल एजेंडे पर काम करे लेकिन इस बात का ख़्याल अवश्य रहे कि अंततोगत्वा लोगों का भला हो। दो एक का ख़्याल था कि सरकार को कभी भी कोई क़दम जल्दबाजी में नहीं उठाना चाहिए। इस बात पर एक सज्जन तो तैश में आकर यहाँ तक बोल गए कि कितने साल और सोचते रहते सत्तर साल तो सोचते सोचते गुज़र गए। अब तो आर पार हो जाना चाहिए। कुछ लोग इस ख़्याल के थे कि हर मसले का हल केवल बातचीत करने से निकलता है इसलिए इस गंभीर विषय पर भी बातचीत होनी चाहिए। कुछ लोग इस ख़्याल के थे कि सरकार जो कर रही है वह बिल्कुल ठीक है। कुछ का ख़्याल था सरकार जो भी करे बस यह देखकर करे कि कोई संविधान का उल्लंघन न हो। कुछ का ख़्याल था कि कोई बदलाव करने के पहले घाटी के लोगों को विश्वास में लेना चाहिए वग़ैरह वग़ैरह। 

जब सभी दोस्त एक हम उम्र हों तो राजनीति के अलावा भी और कई हल्की फुल्की बातचीत उनमें हो जाया करती थी। अय्यर ने माथुर साहब से पूछा, "माथुर साहब पड़ोसन का क्या हाल है?"

"हर रोज़ जब मैं सैर करके वापस घर पहुँचता हूँ तो उनसे मुलाकात होती है। वह मुस्कुरा कर मेरा अभिवादन करतीं हैं और मैं उनका। कभी कभी उनके पतिदेव आकर हमारे बीच दीवार बन कर खड़े हो जाते हैं", माथुर साहब ने ठहाका लगाते हुए कहा।

माथुर की बात सुनकर सभी दोस्त ख़ूब हँसे। सरदार हर भजन भी बोल पड़े, "कहने को कोई कुछ भी कहे पर हरेक की निग़ाह अपनी पड़ोसन पर लगी रहती है"

"सरदार चिंता न कर तेरी बीबी भी किसी की पड़ोसन यह बात मत भूल'

"मैंने तो उसे छूट दे रखी है जो चाहे करे पर वह मुझे छोड़कर जाती है नहीं", सरदार हर भजन की बात सुनकर दोस्तों के बीच हंसीं का फब्बारा ही फूट पड़ा।

चलते चलते खन्ना साहब ने सरदार साहब से पूछ लिया, "हर भजन तेरे यहां कोई मेहमान आया हुआ है क्या"

"नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं। हाँ, हमारे कश्मीरी दोस्त लतीफ़ मियां की बेटी ज़रूर आई हुई है। वह आजकल यहीं रहकर चंडीगढ़ में ही पढ़ रही है"

"ओहो, यह तो अच्छा है जब कोई घर मे आ जाये तो रौनक हो जाती है वरना तो हम सभी के सभी जल्दी खा पीकर सोने की तैयारी करने लगते हैं", खन्ना साहब बोल पड़े।
कुछ इधर उधर की बातें हुईं और जब साडे सात बजने को हुए वे सब लोग अपने अपने घर की ओर बढ़ चले। कुलविंदर बरामदे में आकर फूलों को पानी दे रही थी। बरामदे में आते ही  सरदार साहब ने कुलविंदर से पूछा, "अज़रा जग गई क्या?"

"जी अभी नहीं'























एपिसोड 6

अज़रा जब जागी तो लगभग ग्यारह बजे चुके थे। सरदार साहब को कोई काम तो था नहीं इसलिए वह टीवी देख रहे थे। अज़रा भी उनके पास आकर बैठ गई। उस समय टीवी पर खबरें आ रही थीं। सरदार साहब जो पहले ही से खबरों को देख रहे थे अज़रा को देखकर बोल पड़े, "अज़रा बेटी तुझे कुछ पता है"

"क्या अंकल जी"

"यही कि जम्मू कश्मीर में कुछ आज बड़ा कांड होने वाला है"

अज़रा परेशान हो कर सरदार साहब से पूछ बैठी, "अंकल आप क्या कहना चाह रहे हैं?"

"यही कि आज सुबह सुबह प्रधानमंत्री निवास पर कैबिनेट की मीटिंग हुई है और कुछ ही देर में संसद में पता लगेगा कि क्या होने वाला है"

अज़रा की नजरें टीवी पर लगीं हुईं थीं। कुछ ही देर में टीवी एंकर ने घोषणा की कि गृह मंत्री जी ने संसद में राज्यसभा की ओर जा रहे हैं। कुछ ही देर में यह साफ़ हो गया कि जम्मू कश्मीर रियासत को दो भागों में बाँटने तथा धारा 370 और 35Aमें बदलाव का प्रस्ताव गृहमंत्री जी ने पेश कर दिया है। ख़बर सुनते ही अज़रा के मुँह से निकला, "अंकल तो यह बात थी जिसके लिए पिछले कई दिनों से जो कयास लगाए जा रहे थे, वह सही थे"

"हाँ, बेटी। अब जम्मू कश्मीर राज्य का एक और लद्दाख़ दूसरा हिस्सा होगा कुछ समय तक दोनों हिस्से यूनियन टेररिट्री कहलायेंगे। बाद में जम्मू कश्मीर में विधानसभा होगी और उसकी अपनी सरकार होगी। तब तक केंद्रीय सरकार का शासन वहां रहेगा"

सरदार साहब की बात सुनकर अज़रा बोल पड़ी, "सियासत को जो करना है करे उससे हम लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता बस मुझे तो चिंता इस बात की है कि इन सब बातों को लेकर घाटी में कहीं हालात ख़राब न हो जाएं"

"अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगा। वैसे सरकार ने वहाँ कानून व्यवस्था बनी रहे इसके लिए पूरी तैयारी कर रखी है"

"मुझे हमेशा से एक डर सताता रहा है कि कुछ बेवकूफ़ अलगावादियों के चक्कर में हम सीधे सादे कश्मीरी मारे न जाएं। उनके बच्चे सब अमेरिका और यूरोप में पढ़ते हैं और हम लोगों के लिए घाटी में स्कूल तक नहीं। बस मेरी अल्लाह से यही दुआ है कि लोगों में अमन चैन बना रहे और मेरे अब्बू, अम्मी और अशफ़ाक़ ठीकठाक हों"

"बेटी उम्मीद रख कुछ नहीं होगा", सरदार साहब ने कहते हुए अज़रा के सिर पर हाथ रखकर उसे आश्वस्त किया।

"मोबाइल फोन भी बंद हैं और अब्बू से बात भी नहीं हो पा रही है, मेरी समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूँ", अज़रा ने जैसे अपने आप से कहा। 

कुलविंदर चाय लेकर इसी बीच ड्राइंगरूम में आ गई और अज़रा को समझाते हुए बोली, "अज़रा हम लोग हैं न तू किसी तरह की चिंता मत कर"

अज़रा कुछ भी नहीं बोली लेकिन उसकी आँखों में एक अजीब सा खौफ़ बना हुआ था। कुलविंदर ने उसकी हालत को भांपते हुए कहा, "तू परेशान न हो कोई भी बात होगी तो हम लोग तुझे श्रीनगर तेरे अब्बू और अम्मी के पास तक छोड़कर आएंगे"

"आंटी आप कैसे छोड़कर आओगे घाटी में जाने के सभी रास्ते तो बंद हैं"

"इतना ना घबरा। अभी तो इंतज़ार कर कुछ दिनों में क्या होता है

"क्या होना है ऑन्टी। कटना तो ख़रबूज़े ने ही है चाहे चाकू ख़रबूज़े पर गिरे या खरबूजा चाकू पर", अज़रा का यह साफ कहना था कि नुकसान तो कश्मीरियों का होना है।

अज़रा को परेशान देखकर सरदार साहब ने उसे तसल्ली देते हुए कहा, "मेरे जम्मू में पुलिस में कुछ बड़े लोगों से ताल्लुक हैं। अगर ज़रूरत आन पड़ेगी तो उनकी मदद लेकर मैं तुझे अपने साथ ले चलूँगा"


























एपिसोड 7

रात को जब कुलविंदर सरदार साहब से अकेले में मिली तो बोली, "कहने को तो आपने कहा दिया कि आपके दोस्त जम्मू पुलिस में हैं लेकिन आप उन तक पहुंचोगे कैसे"

"अमरीश है, न उससे बात कर लूँगा"

"बात कैसे करोगे यह सोचा है। लैंडलाइन बंद हैं, मोबाइल भी बंद हैं"

कुलविंदर की बात सुनकर सरदार साहब सोच में पड़ गए कि अब वह क्या करें? यही सोचते सोचते वह सो गए। देर रात उन्होंने ख़्वाब में देखा कि वह अज़रा को लेकर अपनी कार से जम्मू जा रहे हैं और उन्हें कठुआ पंजाब और जम्मू बॉर्डर पर जम्मू पुलिस ने रोक रखा है और उनसे पूछताछ कर रही है। एक पुलिस इंस्पेक्टर ने सरदार साहब से पूछा, "यह लड़की आपकी क्या लगती है?"

"यह मेरे दोस्त लतीफ़ मियां की बेटी है और चंडीगढ़ में रहकर पढ़ रही है"

"क्या आप कोई डॉक्यूमेंट्री एविडेंस पेश कर सकते हैं कि आप लतीफ़ मियां को जानते हैं"

"डॉक्यूमेंट्री एविडेंस तो मेरे पास नहीं है लेकिन मैं आपको यह ज़रूर बता सकता हूँ कि लतीफ़ मियां और मैं दोनों होटेलियर हैं इसलिए हम एक दूसरे को अच्छी तरह जानते हैं"

"क्या इस लड़की के पास कोई प्रूफ़ है कि यह श्रीनगर की रहने वाली है"

इंस्पेक्टर की बात सुनकर अज़रा बोल पड़ी, "हाँ है न मेरे स्कूल का आइडेंटिटी कार्ड, उसमें मेरा होम एड्रेस है"

इंस्पेक्टर ने अज़रा को आइडेंटिटी कार्ड लेकर ध्यान से देखा और अपने सीनियर ऑफिसर के पास बात करने के लिए उनकी केबिन में गया। एएसपी रैंक का ऑफिसर अज़रा से बात करने के लिए सरदार साहब की कार के पास आया और ध्यान से सरदार साहब की ओर देखा और बोला, "सरदार जी आप अपना डीएल दिखाइए"

सरदार साहब ने अपनी जेब से डीएल निकाल कर दिया। जब इंस्पेक्टर लौट कर आया और उसने यह कहा कि हम आपको आगे नहीं जाने दे सकते हैं तो सरदार साहब मन ही न बहुत तनाव में आ गए और बोले, "ऐसा क्या देख लिया है आपने जो आप हमको आगे नहीं जाने दे सकते हैं"

"सरदार जी बुरा मत मानियेगा हम किसी को भी बॉर्डर से आगे नहीं जाने दे रहे हैं। सरकार के सख़्त ऑर्डर्स हैं"

सरदार साहब ने गुस्से में कहा, "आप मेरी बात अपने डीआईजी खजुरिया साहब से कराइये"

"आप मेरी मज़बूरी समझिए मैं आपकी बात किसी से नहीं करा सकता", इंस्पेक्टर ने सरदार साहब से कहा।

सरदार साहब की खीज और बढ़ गई और वह तैश में आकर बोल पड़े, "अरे कोई तो रास्ता होगा आप बताना नहीं चाह रहे हैं"

"आप जनाब ऐसा ही समझें"

सरदार साहब मन ही मन बहुत गुस्से में थे इसलिए इंस्पेक्टर से बोल उठे, "इंस्पेक्टर दलबीरसिंह मेरे भी दिन आएंगे तब मैं आपको देख लूँगा"

दलबीरसिंह ने सरदार साहब की ओर देखते हुए शांत मन से कहा, "आजकल खालिस्तानी आतंकी एक्टिव हैं इसलिए किसी सिख को तो हम किसी हालात में घाटी में नहीं जाने दे सकते"

यह सुनते ही सरदार साहब का गुस्सा सातवें आसमान पर था और उन्होंने गुस्से में न जाने क्या क्या नहीं कहा। सरदार साहब अनाप शनाप बके जा रहे थे उनकी जोर जोर से आवाज़ सुनकर कुलविंदर जग गई और सरदार साहब को हिला कर पूछा, "तुस्सी सपना वेख रहे थे क्या"

सरदार साहब आंख मलते हुए उठ कर बैठ गए और पूरा किस्सा कुलविंदर को सुनाया। दुःखी मन से सरदार साहब बोले,  "कुलविंदर इंस्पेक्टर की बात सुनकर मुझे लगा कि हम अपने देश में विदेशी हो गए हैं"

कुलविंदर ने पूरी बात सुनकर उन्हें राय दी, "ऐसा हो ही नहीं सकता कि इसकी कोई काट न हो, आप ऐसा करो जी कि दिल्ली में होम मिनिस्ट्री में जाकर बात करो कोई न कोई रास्ता ज़रूर निकलेगा"

कुलविंदर की बात सुनकर सरदार साहब बोले, "मुझे भी लगता है कि मुझे दिल्ली ही जाना होगा। तुस्सी एक काम करो अज़रा जैसे ही उठ जाती है तो उसको दिल्ली चलने के लिए तैयार होने को कह देना। हम जल्दी से जल्दी दिल्ली के लिए निकलेंगे"















एपिसोड 8

सुबह होते ही कुलविंदर ने अज़रा को तैयार होने के लिए कहा और उसके लिए ब्रेकफास्ट की तैयारी शुरू कर दी। रास्ते के लिए कुछ सैंडविच भी पैक कर सरदार साहब के साथ रखकर अज़रा को दिल्ली के लिए रवाना कर दिया।

चंडीगढ़ से दिल्ली तक का सफर लगभग चार घंटो में पूरा कर वे दोनों सीधे एमएचए(गृह मंत्रालय) गए और जम्मू कश्मीर डेस्क ऑफिसर से मिल कर उन्हें पूरी बात बताई। डेस्क ऑफिसर ने सरदार साहब की आंखों में वास्तव में अज़रा की मदद की ललक देखी तो उसने उन्हें हवाई जहाज से श्रीनगर जाने की इजाज़त ले दी। इज़ाज़त देते वक़्त सरदार साहब को ताक़ीद किया कि उनको इज़ाज़त इस बिनाह पर दी जा रही है कि वह स्वयं अज़रा को उसके अब्बू और अम्मी के पास तक छोड़कर आएंगे। वह श्रीनगर में किसी और से नहीं मिलेंगे और न ही कोई फोटोग्राफी करेंगे।

सरदार साहब चाहते तो अज़रा को हवाई जहाज में बिठाकर चंडीगढ़ वापस चले आते लेकिन सरदार साहब ने ऐसा कुछ नहीं किया बल्कि उन्होंने अपने पूर्व के निर्णय के अनुसार अज़रा को श्रीनगर तक छोड़ने का मन बना लिया था। हवाई जहाज में बैठने के पहले सरदार साहब ने कुलविंदर को फोन कर बता दिया कि वह अज़रा के साथ श्रीनगर जा रहे हैं और दो एक दिन बाद ही लौटेंगे।

फ्लाइट के दौरान अज़रा चुपचाप बैठी हुई थी यह देखकर सरदार साहब ने उससे पूछा, "अज़रा बेटी क्या सोच रही हो?"

"कुछ ख़ास नहीं अंकल, बस यही ख़्याल बार बार सता रहा है कि अब्बू, अम्मी और अशफ़ाक़ ठीकठाक से हों"

"फ़िजूल में तू चिंता न कर", सरदार साहब बोले, "मैं तेरे साथ हूँ न"

सरदार साहब की बात सुनकर अज़रा मुस्कुरा पड़ी। श्रीनगर एयरपोर्ट पर लैंडिंग की तैयारी हो रही थी इधर अज़रा का दिल तेजी से धड़क रहा था। हवाई जहाज जब रनवे पर टच डाउन कर गया तब जाकर उसकी साँस में साँस वापस आई। सरदार साहब अज़रा को लेकर एयरपोर्ट पर सिक्योरिटी के चीफ से मिले और उन्होंने उसे पूरी बात बताई। दिल्ली में गृह मंत्रालय से मिली परमिशन दिखाई। सिक्योरिटी चीफ ने उन्हें अपने प्रोटेक्शन में अज़रा के घर तक भेजने का इंतज़ाम कर दिया। एयरपोर्ट से अज़रा के घर तक पहुंचने में पैंतालीस मिनट लगे। जब अज़रा सरदार साहब के साथ दरवाज़े पर थी उसने कॉल बेल दबाई। दरवाज़ा खुलने में जितनी देर हुई तब तक अज़रा की साँस रुकी रही। जब उसकी अम्मी ने दरवाज़ा खोला तो अज़रा दौड़कर उनके गले से चिपक गई और पूछ बैठी, "अम्मी, अब्बू और अशफ़ाक़ कहाँ हैं?"

"अंदर है", कहकर हामिदा ने अज़रा को गले से लगाया और उसकी पेशानी चूम कर दुआ दी। 

"आइए, अंकल अंदर आइए"

सरदार साहब को देखकर हामिदा ने सरदार साहब को सलाम किया और उनसे घर में अंदर आने की गुजारिश की। अज़रा ने अब्बू और अशफ़ाक़ को आवाज़ दी तो वे दोनों दरवाज़े की ओर दौड़ पड़े। बेटी और सरदार साहब को एक साथ देखकर उनकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह निकली। अज़रा को गले लगाने के बाद उन्होंने सरदार साहब को गले लगाते हुए उनका शुक्रिया अदा किया। उन्हें अपने साथ अंदर ले जाकर ड्राइंगरूम में बिठाया और फिर सरदार साहब ने पूरी कहानी सुनाई कि श्रीनगर आने में उन्हें किस किस तरह की दिक्कतें आईं।

सरदार साहब की बातें सुनकर लतीफ़ मियां और हामिदा के मुँह से एक साथ सरदार साहब के लिए 'शुक्रिया' लफ्ज़ निकला। सरदार साहब ने हंसते हुए कहा, "अरे भाभी जान और भाई जान रहने भी दीजिये। अज़रा हमारी बेटी है उसे मुश्किल में कैसे छोड़ देते"

"फिर भी भाई जान..."

हामिदा कुछ और कह पाती इससे पहले ही सरदार साहब ने अपने होठों पर उँगली रखते हुए कहा, "....बस रहने भी दीजिये। लगता है कि अबकी बार कोई कहवा वग़ैरह भी नहीं पूछेगा"

शर्माते हुए हामिदा उठी और अंदर जाकर कश्मीरी कहवा बनाने लगी। दूसरी ओर अज़रा अपने भाई अशफ़ाक़ के साथ गले मिली और उसके गालों पर कई बार प्यार भरा चुम्बन किया। 
कहवा जब तक हामिदा लेकर आती तब तक कश्मीर के हालचाल पर सरदार साहब और लतीफ़ मियां के बीच गुफ़्तगू होने लगी। लतीफ़ मियां ने अपने दर्द को छुपाते बस यही कहा, "गलतियां तो कश्मीर के मुसलमानों से भी हुईं जब सबने मिलकर कश्मीरी पंडितों पर ज़ुल्म किया उनको अपना घरबार छोड़ने पर मजबूर किया। अगर तब ऐसा नहीं किया गया होता तो आज यह दिन न देखना पड़ता। इस सबके बाबजूद कश्मीर का अवाम भी अपने आपको ठगा हुआ महसूस करता है"

सरदार साहब के दिल दिमाग़ में भी जम्मू कश्मीर को लेकर बहुत कुछ चल रहा था पर उन्होंने इन हालातों में चुप रहना ही बेहतर समझा। लतीफ़ मियां भी बहुत कुछ कहने वाले थे लेकिन यह सोचकर कि सरदार साहब को कोई बात बुरी न लग जाये इसलिए वह भी चुप ही बने रहे। हामिदा के साथ अज़रा भी कहवा और नाश्ता लेकर आई। सभी लोगों ने सरदार साहब से पूछा, "भाईजान कहवा ठीक बना है"

"भाभीजान आपके हाथों में वह शिफ़्त है कि हर चीज में मिठास आ जाती है'"

हामिदा ने सरदार साहब से पूछा, "हमारी बेटी ने आपको बहुत परेशान तो नहीं किया"

"नहीं भाभी जान अज़रा जैसी बेटी हर मां बाप के घर पैदा हो तो वह घर ज़न्नत बन जाये"

अज़रा अपनी तारीफ़ सुनकर बोली, " अम्मी अंकल और आंटी जैसे मां बाप सभी को मिलें तो उनकी किस्मत ही चमक जाए"

"रहने भी दे इतनी तारीफ़ भी न कर। अभी तो हमने तेरे लिए कुछ किया ही नहीं है। हम लोग तो उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं जब तू पढ़ लिख कर तैयार हो जाये....तो तुझे हमेशा के लिए अपना बनालें"

वगैर कुछ कहे हामिदा और लतीफ़ मियां सरदार साहब के चेहरे को देखते रह गए....




एपिसोड 9

हामिदा या लतीफ़ मियां कुछ भी कह पाते उससे पहले ही सरदार साहब ने एक गोला और यह कह कर दाग दिया कि जसवीर की पोस्टिंग अब कश्मीर में ही हो गई है और वह कुछ ही दिनों में यहां आ जाएगा। लतीफ़ मियां भला क्या कहते बस उनके मुँह से इतना ही निकला, "यह तो अच्छी खबर है। आपका बेटा हमारा बेटा बनकर रहेगा और ...."

सरदार साहब ने लतीफ़ मिया की बात बीच में ही काटते हुए कहा, "....आपकी बेटी अज़रा हमारी बेटी बन कर। क्या पता इन दोनों के बीच कौन सा रिश्ता है कि इनकी मुलाकात कभी भी आमने सामने नहीं हई है फिर भी एक दूसरे के बारे में बहुत कुछ जानते हैं"

लतीफ़ मियां और हामिदा ने सरदार साहब की बातों से हाँ में हाँ मिलाई और पूछा, "जसवीर कब तक कश्मीर में आ जायेगा"

"यह तो उसे भी मालूम नहीं। मिलिट्री वालों को क्या पता लगता है कि वे कब कहाँ भेज दिए जाएं उनके मूवमेंट का किसी को पता नहीं होता"

"यह बात तो है", लतीफ़ मियां ने सरदार साहब से इत्तफाक रखते हुए कहा।

कुछ देर इधर उधर की बात कर सरदार साहब ने लतीफ़ मियां से गुजारिश की कि वे अब चलेंगे। देर रात की फ्लाइट मिल जाएगी और वो दिल्ली तक आराम से पहुँच जाएंगे। लतीफ़ मियां को सरदार साहब की यह बात गँवारा नहीं हुई और सरदार साहब से गुजारिश की कि कुछ रोज़ रुक जाते तो उन्हें बेहद ख़ुशी होती। सरदार साहब ने जब यह कहा, "आपकी भाभीजान और परमिंदर चंडीगढ़ में अकेले हैं और मेरी उनसे बात हो नहीं सकती वह भी चिंता कर रही होंगी कि अज़रा सही सलामत आप लोगों तक पहुंची या नहीं'

लतीफ़ मियां और हामिदा सरदार साहव की बात सुनकर बेजवाब हो गए और बड़ी मुश्किल से एक टैक्सी ड्राइवर को तैयार कर उन्हें श्रीनगर एयरपोर्ट के लिए विदा किया। जब सरदार साहब टैक्सी में बैठ रहे थे तब अज़रा आगे बढ़ी और झुककर सरदार साहब के पैर छूने की कोशिश की। सरदार साहब उसको यह करते देख सकते में आ गए और उसे बीच में ही रोककर अपनी बाहों में लेकर बोले, "बेटी हमारे यहाँ बेटियां पाँव नहीं छुआ करतीं हम उनके पाँव छूकर उनको विदा करते हैं"

"अंकल मैं आपकी ताज़िन्दगी के लिए मुरीद हो गई। खुदा आपको लंबी उम्र अता करें"

कुछ देर बाद सरदार साहब श्रीनगर की गलियों और सड़कों से होकर गुजर रहे थे। उनका मन किया कि वह कुछ फोटो सूनीसूनी गलियों की लें लेकिन गृह मंत्रालय के डेस्क ऑफिसर और श्रीनगर एयरपोर्ट के सिक्योरिटी ऑफिसर की बात याद कर उनकी हिम्मत न हुई। 

जैसे जैसे टैक्सी आगे बढ़ रही थी सरदार साहब के मन में श्रीनगर की एक अजीब सी तस्वीर बन रही थी और वह सोच रहे थे कि अगर घाटी के हालात यूँही बने रहे तो फिर क्या होगा? उनके ख्यालों में कभी यह आता कि आजकल के युवा और युवतियां और सरकार से और ख़फ़ा न हो जाएं, कहीं आतंकवाद हमेशा के लिए अपना घर न बना ले। कभी मन में ख़याल आता कि हो सकता है कुछ दिनों की सख़्ती के बाद हालात ठीक हो जाएं। कभी उनके मन में जब यह विचार घर करता कि घाटी के इन हालातों को लेकर पाकिस्तान कोई बड़ा कांड न कर बैठे। 

बीच बीच में उनकी निगाहों के सामने वादी के सुहाने दृश्य समाने आने लगते तो यही ख़्याल में आता कि दुनियां भर में अपनी प्राकृतिक खूबसूरती के लिए मशहूर कश्मीर का क्या हाल हो गया है? एक वक़्त में कितने फॉरेनर्स और बॉलीवुड के लोग यहां आया करते थे। अब हालात ये हो गए हैं कि एक भी पर्यटक दूर दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहा। जिधर नज़र जाती बस आर्मी या पुलिस के की वर्दी पहने मुस्तैद जवान दिखाई पड़ते थे।

यह सोचते सोचते वह श्रीनगर एयरपोर्ट आ पहुंचे। वहाँ पहुंच कर उन्होंने टैक्सी वाले को पेमेंट किया और जब वह लाउंज की ओर बढ़ रहे थे तो उन्होंने देखा कि सामने से जसवीर अपनी यूनिट के साथ आ रहा था। जैसे ही उन्होंने जसवीर को आवाज़ लगाई तो जसवीर अपनी यूनिट इंचार्ज से परमिशन लेकर उनसे दौड़ कर मिलने आया। पास आते ही बोला, "डैड पैरीं पाना..."

 "खुश रह पुत्तर...”, कह कर सरदार साहब ने उसे गले लगाया।

एपिसोड 10

सरदार साहब ने घर पहुंच कर जैसे ही कॉल बेल दबाया कुलविंदर दौड़ी दौड़ी आई और दरवाज़ा खोलकर सरदार साहब के हाथ से सामान लेते हुए बोली, "आइए अंदर आइए" , और फिर अगली साँस में ही यह पूछ डाला कि लतीफ़ मियां और हामिदा बेग़म को अपनी बेटी को अपने बीच पाकर कैसा लगा?.... और जसवीर और क्या कह रहा था?"
सरदार साहब ने कमीज़ उतारते हुए कहा, "अरी मेहरबान साँस तो लेने दे। तूने तो घर में घुसते ही सवालों की झड़ी लगा दी"
"तुस्सी बैठो मैं चाय बनाकर लातीं हूँ"
जब तक कुलविंदर चाय बनाकर लौटती तब तक सरदार साहब फ़्रेश होकर डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर आकर बैठ गए। चाय का प्याला हाथ में लेते हुए फिर उन्होंने श्रीनगर में उनके साथ जो गुज़रा था पूरी बात कुलविंदर को एक एक करके बताईं। जब ज़िक्र जसवीर का आया तो कुलविंदर कुछ और जानना चाहती थी यह बात सरदार साहब अच्छी तरह जान रहे थे इसलिए बोले, "जसवीर को एयरपोर्ट पर मैंने उसकी यूनिट के साथ जाते हुए देखा तो उसे आवाज़ लगाई। मेरी आवाज सुनकर जसवीर अपने यूनिट कमांडेंट के पास गया उससे परमिशन लेकर मेरे पास आया और केवल दो तीन मिनट ही वह मेरे साथ रहा। उसने मेरे श्रीनगर आने का कारण पूछा और जब मैंने उसे बताया कि अज़रा को छोड़ने आया था"
"........", कुलविंदर की आँखों में चमक सी आ गई और पूछ बैठी, "उसने अज़रा के बारे में कोई बात की...”
"नहीं वह चुप ही रहा", सरदार साहब कुछ पल के लिए रुके और फिर धीरे से कुलविंदर की आँखों में देखते हुए बोले, "कुलविंदर इक बात दस, ऐसा तो नहीं कि हम जसवीर को ग़लत समझ रहे हों। हो सकता है कि अज़रा के लिए उसके दिल में कुछ भी न हो और हम लोग अपनी दुनियां में रहते हुए ख़्याली पुलाव बना रहे हों"
कुलविंदर सरदार साहब की बात सुनकर सकते में आ गई फिर हिम्मत जुटा कर बोली, "देखो जी अब हम क्या कह सकते हैं जसवीर बहुत दिनों से आया ही नहीं। उससे इस मुतल्लिक बात हुई ही नहीं और टेलीफ़ोन पर ऐसी गलबातें करना चंगा नहीं ओ लगदा"
"ओदे टेलीफोन नूं कदी इस तरह दी गलबातां करना भी नहीं। मिलिट्री इंटेलिजेंस के वंदे हर कॉल दी मोनिटरिंग जो करदे हैं"
"इसीलिए उनाने आन दा इंतजार हैगा सी"
"अगर उन्हें ज़रा भी शक़ सुबहा हो गया तो जसवीर की नौकरी पर बन आएगी"
"मैं जानती हूँ इसलिए उससे उतनी ही बात करती हूँ जितनी बिल्कुल ज़रूरी हो"
"कुलविंदर इक बात दस, कदी कदी मैंनू लगदा है कि अपने जसवीर के दिल में कुछ कुछ तो होंदा पया है"
"वो कैसे"
"वो ऐसे जब मैं तुम्हें देखने आया था तो मुझे तुम्हें देखते ही प्यार हो गया था। जब बाऊ बोला करते थे कि जा पुत्तर कभी कुलविंदर से मिल के आ तो मुझे शर्म आती थी"
"तुस्सी कदी मिलन वास्ते आये ही नहीं"
"यही सोचकर कि लोग क्या कहेंगे"
"अब तो ज़माना बदल गया है, अब तो मुंडे कुड़ी नाल मिलने ही क्या ओना नूं पिक्चर दिखाने या डिनर कराने तक चले जाते हैं"
"अपना जसवीर ऐसा नहीं है वह बहुत सीधा सादा मुंडा है इस वास्ते कभी कभी लगता है कि जब कोई इंसान किसी को मन ही मन चाहने लगता है तो वह चुप ही जाता है। जब कोई कुछ नहीं कहता तो इसका मतलब यह भी होता है कि वह बहुत कुछ कहना चाह रहा हो बस उसे एक मौक़े की तलाश रहती है"
"रब वही करे जिसमें दोनों का भला हो"
"तेरी यह बात सही है कि खुदा वही करे जो दोनों बच्चों के लिए ठीक हो", यह कहते हुए सरदार साहब उठ खड़े हुए और अपने बेडरूम में जाते हुए बोले, "कुलविंदर मुझे बहुत जोर की नींद आ रही है। कुछ देर सो लूँ तो उसके बाद ब्रेकफास्ट के लिए जगा लेना"
"ठीक है जाओ तुस्सी आराम कर लो"
जब श्रीनगर से दिल्ली के लिए सरदार साहब लतीफ़ मियां से अलविदा कहकर निकल कर जाने लगे तो हामिदा लतीफ़ मियां से यह जानने को उत्सुक थी कि सरदार साहब ने अज़रा को लेकर वह सब क्यों कहा कि वह इंतज़ार कर रहे हैं कि अज़रा पढ़ लिख कर तैयार हो जाये तो उसे अपना बना लें। इस ख़्याल से उसने अज़रा से कहा, "अज़रा जरा देख तो सही कि अशफ़ाक़ क्या कर रहा है?"
"जी अम्मी", कहकर अज़रा घर के अंदर चली गई।
अज़रा के जाने के बाद हामिदा ने लतीफ़ मियां से पूछा, "सरदार साहब चलते चलते क्या कह रहे थे?"
"क्या कह रहे थे, मुझे क्या मालूम"
"अपनी अज़रा के मुतल्लिक़ कि वह पढ़ लिख जाए तो उसे हमेशा के लिये अपना बना लें"
"हामिदा बेग़म छोटी छोटी बातों को लेकर परेशान नहीं होते, रही होगी कोई बात अपनी अज़रा को लेकर उनके मन में...."
"ऐसा तो नहीं कि अपनी अज़रा उनके बेटे जसवीर को चाहने लगी हो"
"बेग़म रहने भी दो इतनी शक़्क़ी भी न बनो। अपनी बानो अभी तो उन्नीस की हुई है'
"इसी उम्र में तो बच्चों के क़दम बहक जाते हैं..."
"तुम चिंता नहीं करो पहले मुझे पता कर लेने दो। मैं सरदार साहब से बात करूँगा"
"कह तो ऐसे रहे हो कि अभी मोबाइल उठाओगे और सरदार साहब से बात हो जाएगी। मियां भूल जाते हो कि हम हिंदुस्तान के बाशिंदे हैं और आजकल हमारे पर कतर दिए गए हैं। हमें दीन दुनियां से अलग थलग कर दिया गया है"
"ओह यह तो मुझे याद ही नहीं रहा", लतीफ़ मियां ने सिर झुकाते हुए कहा, "बेग़म तुम अज़रा से पता करने की कोशिश करना। देखें वह क्या बताती है"












एपिसोड 11

एक  दिन अज़रा जब अशफ़ाक़ के साथ बैठी खेल रही थी तभी हामिदा भी उन लोगों के पास आकर बैठ गई। हामिदा बड़े प्यार भरे अंदाज़ में अज़रा को देखे जा रही थी, तभी अज़रा की निग़ाह अपनी अम्मी की निगाहों से जा टकराईं। अज़रा अपनो अम्मी से पूछ बैठी, "ऐसे क्या देख रही हो, मैं तुम्हारी ही बेटी अज़रा हूँ"
"यह देख रही हूँ कि मेरी बेटी देखते देखते कितनी बडी हो गई है और कितनी ख़ुश क़िस्मत है जो दूसरों की निगाह में इतनी जल्दी अपनी जगह बना लेती है"
"क्या हुआ, अम्मी किसकी बात कर रही हो"
"मैं सरदार साहब हर भजन सिंह जी की बात कर रही हूँ जो तुझे अपना बनाने की बात कर रहे थे"
"अम्मी, अंकल और आंटी दोनों ही बहुत अच्छे हैं, देखा नहीं कि वह बेचारे मुझे यहाँ छोड़ने ख़ुद ही चले आए। दूसरा भला कोई यह काम क्यों करता"
"नहीं बेटी ये बात तो है", कहकर हामिदा कुछ देर चुप रह गई और अशफ़ाक़ की ओर देखते हुए बोली, "अशफ़ाक़ देख तो सही तेरे अब्बू सो रहे हैं या जग रहे हैं, कहवे का वक़्त हो गया है अगर जग रहे हों तो उन्हें कहवा बना कर दे दूँ"
अशफ़ाक़ चुपचाप उठा और अब्बू के बेडरूम में उन्हें देखने चला गया। अशफ़ाक़ के जाते ही हामिदा ने अज़रा से पूछा, "तू क्या सरदार साहब के बेटे से मिल चुकी है"
"नहीं अम्मी मैं उनसे कभी भी नहीं मिली, बस ये जानती हूँ कि वह आर्मी में लेफ्टिनेंट हैं"
"अब तो वो यहीं श्रीनगर में आ गया है तेरा मन नहीं करता उससे मिलने को"
"ऐसा क्या ख़ास है उनमें, जब मिलना होगा तो मिल लेंगे। नहीं मिलेंगे तो भी ठीक सही"
हामिदा ने महसूस किया कि वह अज़रा और जसवीर को लेकर बेसबब ही उल्टी सीधी बातें सोच रही थी। अज़रा और जसवीर तो अभी तक आपस में मिले ही नहीं। इसी बीच अशफ़ाक़ लौट कर आकर उसने इशारों में बताया कि अब्बू अभी अभी जग गए हैं। हामिदा ने अज़रा से कहा, "जा बेटी सभी के लिए कहवा चढ़ा दे"
हामिदा लतीफ़ मियां के पास बिस्तर पर आकर पैतियाने बैठते हुए बोली, "हम लोग बेसबब ही अज़रा को लेकर परेशान हो रहे थे। अज़रा तो अभी तक जसवीर से मिली भी नहीं है"
"मैंने कहा था न कि तुम अज़रा को लेकर नाहक़ ही परेशान हो रही हो। अब खुदा से दुआ करो कि श्रीनगर में कर्फ्यू हटे तो हम उसे दोबारा चंडीगढ़ पढ़ने के लिए भेज सकें।
"यह तो अच्छा हुआ कि हम दोनों सरदार साहब की बात पर चुप्पी लगा गए अगर कुछ भी पूछ बैठते तो बहुत ख़राब होता"
"बेग़म, अज़रा अभी बच्ची है उसके खेलने कूदने के दिन हैं फिर तो एक न एक दिन उसके हाथ पीले करने ही हैं। मैं खुश ख़याल आदमी हूँ और हर इंसान को इंसानियत की नज़र से देखता हूँ। मेरे लिए हिंदू मुसलमान का कोई मतलब ही नहीं। मेरा अल्लाह किसी से भी बैर करना नहीं सिखाता"
हामिदा, लतीफ़ मियां की ओर देखती रह गई और उसे लगा कि मियां कह तो सही रहे हैं....
कश्मीर के जो हालात चल रहे थे उसमें लतीफ़ मियां का परिवार अब घर में बंद होकर रह गया था। होटल का काम भी बंद हो चला था। जब पर्यटक ही नहीं तो होटल कैसे चलता। कहने का मतलब यह हुआ कि उनकी ज़िंदगी में एक अजीब सा ठहराव आगया था। लतीफ़ मियां अपने घर के पास ही की मस्ज़िद भी नहीं जा पा रहे थे। इसलिए वह घर के सभी लोगों के साथ घर में ही नमाज़ अदा कर लिया करते थे। इन सब हालात को देखते हुए लतीफ़ मियां हामिदा बेग़म से बोले, "चार हफ़्ते हो गए हैं श्रीनगर के हालात नॉर्मल होने की नहीं आ रहे हैं। घर में बंद बंद रहने से अब दम घुटने लगा है। हालात ठीक हों तो हम सबका कुछ काम आगे बढ़े"
"मियां, परेशान न हो हमारे पास खुदा ने इतना दिया है कि हम बैठे बैठे खा पी रहे हैं जरा उनकी सोचो कि जो रोज़ कमाते थे तब दो वक़्त खाते थे उन पर अब कैसी गुज़र रही होगी"
"मैं जब उनकी सोचता हूँ तो कलेजा मुँह को आता है लेकिन हम कर भी क्या सकते हैं"
"बस जो कर सकते हैं वह कर रहे हैं। अल्लाह का नाम ले लेते हैं सबके लिए दुआ माँग लेते हैं", हामिदा ने कहा।
श्रीनगर में जैसे वक़्त थम सा गया था। कहीं कुछ होता नजर नहीं आता था। बस सुनाई पड़ती थीं तो पुलिस और आर्मी वालों की सीटियों और गाड़ियों की आवाज़ जो सूनेपन में ऐसे लगतीं थीं कि बस अपने घर के दरवाज़े के बारे पास ही सब हो रहा हो। बीच बीच में कभी कभी गोलियां चलने की आवाज़ें भी सुनाईं पड़ जातीं थीं जिससे अहसास होता था कि आतंकी अभी भी चुप होकर नहीं बैठे हैं।
एक दिन बीच में ख़बर आई कि एक लड़के को गोली लगी है और हॉस्पिटल के रास्ते में वह खुदा को प्यारा हो गया। बीच बीच में ऐसी भी उड़तीं उड़तीं खबरें आ रहीं थीं कि पाकिस्तान के जैश के दो आतंकी पकड़े गए और दो को आर्मी ने एनकाउंटर में ढेर कर दिये।
लोगों के घरों में कभी खाने पीने का समान ख़त्म हो जाता तो कभी खाना बनाने वाली गैस। कहने का मतलब यह कि इस कर्फ़्यू के चलते लोगों का उठना बैठना भी बंद हो गया था। इंटरनेट बंद, मोबाइल बंद, फोन बंद, टीवी और रेडियो ही बस एक ज़रिया था दुनियां जहां से जुड़े रहने का वह भी जब कर्रेंट सही सलामत आता रहे। लोग कभी आल इंडिया रेडियो सुनते तो कभी बीबीसी जिससे पता तो लगे कि आख़िर हो क्या रहा है तो कभी टीवी पर अपनी निग़ाह लगाए बैठे रहते।
एक दिन रेडियो पर खबर आई कि सरकार धीरे धीरे कर्फ़्यू हटाने और ज़िंदगी को पुराने ढर्रे पर लाने की सोच रही है। सरकार ने कुछ दिनों के बाद सबसे पहले लद्दाख़ और उसके बाद जम्मू में कर्फ़्यू हटा भी लिया है। सरकार की ओर से गवर्नर साहब ने यह एलान भी किया है कि धारा 370 और 35A के हटने के बाद रियासते जम्मू कश्मीर अब हिंदुस्तान की हमेशा के लिए हिस्सा बन गई है और जो पेशोपेश की स्थिति थी अब ख़त्म हो गई है। अब जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में भी वही कानून चलेगें जो हिंदुस्तान की दूसरी रियासतों में चलते हैं। अब भारत सरकार लद्दाख़, जम्मू और कश्मीर की तरक़्क़ी के लिए तमाम नई नई योजनाएं लेकर आ रही है जिसकी वजह से घाटी के लोगों को नौकरियों में जगह मिल सकेगी, पर्यटन बढ़ेगा, नए नए होटल खुलेंगे, नई नई इंडस्ट्रियल यूनिट्स लगेंगी, नए मेडिकल कॉलेज तथा आईआईएम खुलेंगे वग़ैरह वग़ैरह।
कश्मीर के लोग मन ही मन क्या सोच रहे हैं इसकी जानकारी के लिए ख़ुफ़िया तंत्र का इस्तेमाल किया गया, इधर उधर से खबर निकालने की कोशिश भी हुई लेकिन सरकार को कोई खास खबर नहीं मिली। बहुत मुश्किल के हालात बन गए थे। जैसे जैसे कर्फ़्यू हटाने में देर होती जा रही थी उतनी ही बेचैनी लोगों के बीच बढ़ती जा रही थी। दरअसल सरकार को जो काम करना चाहिए था वह कोई भी नहीं कर रहा था। लोगों में आपसी भाईचारा बढ़े, सूचना का आदान प्रदान हो, सरकारी अफ़सर छोटे छोटे ग्रुपों में आकर लोगों से बात करते उन्हें समझाते तो हालात कुछ ठीक होते नज़र आते। इसके ठीक खिलाफ एक ऐसा निज़ाम चल रहा था जिसमें कोई किसी से बात भी नहीं कर सकता था। इन सब हालात पर तफ़सरा करते हुए लतीफ़ मियां ने अपनी बेग़म और बेटी अज़रा से कहा, "मैं नहीं जानता हूँ कि हमारी क़िस्मत में क्या लिखा है पर जो भी हो रहा है वह ठीक नहीं हो रहा"
अब्बू को परेशान देख अज़रा बोली, "अब्बू आप अकेले क्यों परेशान हो रहे हैं। कश्मीर के और दूसरे लोग भी तो इन्ही हालात से गुज़र रहे हैं। वे सब एक साथ हैं"
"क्या खाक़ एक साथ हैं। अगर साथ ही रहते और कश्मीरियत की ज़िंदगी जीने को मक़सद बनाते तो यह दिन देखने को ही नहीं मिलते। सारी खता तो यहाँ के कट्टरपंथी मुल्लाओं की है जिन्होंने कश्मीरी पंडितों को यहाँ से उखाड़ फेंका। बाद में ये अलगाववादी आ गए और इन्होंने हमारे नौजवान बच्चों की ज़िंदगी के साथ खिलवाड़ करना शुरू करके ज़हर घोल दिया। दिया भी तो क्या उनके कमसिन हाथों में बंदूक"
"अरे हाटाइये भी। कहीं कोई सुन लेगा तो हम सबके खिलाफ एक मुहिम चालू हो जाएगी", हामिदा बेग़म धीरे से बोल पड़ीं।
अम्मी की बात पर अज़रा तपाक से बोल पड़ी, "अम्मी ये कौन सी बात हुई। अब्बू अपनी बात हम से नहीं कहेंगे तो भला किससे कहेंगे। हमें उनको सुनना चाहिए"

एपिसोड 12
अज़रा की बात सुनकर लतीफ़ मियां बाग़ बाग़ हो गए। उनको लगा कि बच्चे जब घर में रहते हैं तो केवल माता पिता के संपर्क में रहते हैं लेकिन जब वह घर से बाहर निकलते हैं तो दुनियां जहान में कैसे रहना है किससे क्या कहना है और कब कहना है ये सब सीखते हैं। लतीफ़ मियां मुस्कुरा कर अज़रा के सिर पर हाथ रखकर बोले, "आदमी की इज़्ज़त कम होने लगती है जैसे जैसे उसकी उम्र बढ़ने लगती है"
लतीफ़ मियां की बात सुनकर हामिदा बेग़म ने मुँह बिचकाया लेकिन अज़रा ने अब्बू से लिपटते हुए कहा, "मेरे अब्बू तो अभी केवल बीस साल के हैं"
"देखो लौंडिया को अब वह कैसे हम दोंनो का मज़ाक बना रही है", हामिदा बेग़म ने कहा।
"अगर वह मेरी उम्र कम करके बता रही है तो इसका मतलब तुम तो अभी मुश्किल से सत्रह साल यानी स्वीट सेवेन्टीन की हो"
उठते हुए हामिदा बेग़म ने लतीफ़ मियां से कहा, "छोड़ो भी मियां ये छिछोरापन हमें नही अच्छा लगता है। मुझे अभी बहुत काम करना है"
लतीफ़ मियां ने टीवी ऑन कर ख़बर सुनने का मन बनाया इसलिए वह ड्रॉइंग रूम में आ गए। टीवी पर न्यूज़ एंकर समाचार पढ़ते हुए बता रहा था कि घाटी में सामान्य हालात होने के कारण सरकार ने यह निश्चय किया है कि लैंड लाइन सेवा घाटी में चालू की जा रही है। लतीफ़ मियां ने मन ही मन सोचा कि चलो अब आपस में कम से कम कुछ लोगों से बातचीत तो हो सकेगी।
बीबीसी के न्यूज़ का समय भी हो रहा था तो हक़ीक़त जानने के लिए लतीफ़ मियां ने बीबीसी न्यूज़ चैनल लगा दिया। बीबीसी के न्यूज़ एंकर बता रहे थे कि ब्रिटेन के कई मंत्रियों और सांसदों ने यह माँग की है कि जम्मू कश्मीर में मानवाधिकार में बढ़ते हुए उल्लघंन की घटनाओं की जांच यू एन के निष्पक्ष लोगों के द्वारा की जानी चाहिए।
लतीफ़ मियां भारत के टीवी चैनेलों और बीबीसी पर चल रही ख़बर को लेकर कुछ परेशान हुए और सोचने लगे कि आजकल की दुनियां में जहां इतनी तरक़्क़ी हो चुकी है लेकिन एक कश्मीरी को हक़ीक़त क्या है इसकी सही जानकारी नहीं मिल पा रही है। फिर यह सोचकर कि जब घर के बाहर आना जाना नहीं हो पा रहा है तो कोई क्या कर सकता है। इंसानी मज़बूरी भी क्या बला है कि कोई अपना काम धंधा नहीं कर पा रहा है किसी से मिल नहीं पा रहा है यह अपने देश का कैसा निज़ाम है।
लतीफ़ मियां बैठे बैठे जब यह सब सोच रहे थे तभी उनके टेलीफोन की घंटी बजी उनको टेलीफोन की आवाज़ सुनकर इतनी ख़ुशी हुई कि जैसे उन्हें ज़िंदगी की सबसे महंगी सौगात मिल गई हो। वह टेलीफोन की तरफ ऐसे लपके जैसे कि उन्हें कोई शुभ समाचार मिलने ही वाला है। जैसे ही टेलीफोन के चौंगे को उठाकर कान के पास लगाकर हेलो कहा कि दूसरी ओर से आवाज़ आई, "क्या राजबाग़ से आप ज़नाब लतीफ़ खान बोल रहे हैं"
"जी हाँ मैं ही लतीफ़ खान बोल रहा हूँ"
"यह कॉल हम राजबाग़ टेलीफोन एक्सचेंज से इसलिए कर रहे हैं कि यह मुकम्मल हो जाय कि यह टेलीफोन आपका ही है"
"जी हाँ ज़नाब यह टेलीफोन हमारा ही है"
"लतीफ़ खान साहब अब आप मुल्क़ भर में किसी से भी बात कर सकते हैं बस यह ख़्याल रहे कि किसी ग़लत आदमी या किसी ऐसे मसायल पर बातचीत न हो जिससे कि सरकार को यह लगे कि आपका फोन किसी एन्टी स्टेट एक्टिविटीज़ के लिए नहीं किया जा रहा है। हम आपको यह भी बताना चाहेंगे कि जिस जिस का टेलीफोन चालू किया जा रहा है उसके हर कॉल की मॉनिटरिंग की जाएगी"
"ज़नाब हम बहुत ही नेकदिल इंसान हैं और हमारा किसी एन्टी स्टेट एक्टिविटी में कभी नाम नहीं आया। आप हमारी ओर से  बिल्कुल बेफिक्र रहें"
"शुक्रिया ज़नाब", कहकर टेलेफोन एक्सचेंज वाले स्टाफ ने फोन डिसकनेक्ट कर दिया।
टेलीफोन की घंटी सुनते ही आँगन से हामिदा बेग़म और अज़रा दोनों दोनों दौड़ीं आईं और पूछा, "मियां क्या टेलीफोन चालू हो गया"
"हाँ, चालू हो गया है"
"चलो तो सबसे पहले सरदार साहब को चंडीगढ़ फोन लगाकर बात करो" ,हामिदा ने लतीफ़ मियां से कहा।
"ठीक है" , कहकर लतीफ़ मियां ने सरदार साहब के घर फोन किया....














एपिसोड 13
"हेलो", कहकर सरदार साहब ने दूसरी ओर फोन उठाकर कहा।
"लतीफ़ बोल रहा हूँ श्रीनगर से"
"लतीफ़ मियां"
"हां लतीफ़"
"विश्वास ही नहीं हो रहा"
"बस अभी अभी टेलीफोन चालू हुआ है इसलिए सोचा कि आपसे बात कर लूँ। पता नहीं कब फिर बंद कर दिया जाए"
"कहिए मियां आप लोग कैसे हैं, भाभीजान कैसी हैं, अज़रा और अशफ़ाक़ कैसे हैं"
"सब ठीक से हैं आप बताइए कि आप और भाभीजान कैसे हैं"
सरदार साहब ने लतीफ़ मियां के प्रश्न के उत्तर में कहा, "सब मौज में हैं। यह बताइए कि वहां के हालात कैसे हैं"
"मत पूछिए कुछ भी कहना मुनासिब नहीं होगा। अभी तक तो हम लोग घर में बंद हैं"
"चिंता नहीं कीजिए अगर फोन चालू हो गया है तो जल्दी ही कर्फ्यू भी हट जाएगा"
"सरदार साहब आपके मुँह में घी शक़्कर", लतीफ़ मियां एक पल के लिये रुके और फिर उन्होंने पूछा, "जसवीर की क्या ख़बर है"
"जसवीर का फोन आया था बता रहा था श्रीनगर पहुंचने के बाद उसके कमांडिंग ऑफिसर ब्रिगेडियर जगजीत सिंह संधू ने एक दावत की थी। दूसरे ऑफिसर्स के साथ उसे भी दावतनामा मिला था। पार्टी के दौरान उसकी बहुत देर तक ब्रिगेडियर साहब से बातचीत हुई। कह रहा था कि ब्रिगेडियर संधू की वाइफ ने उसे एक दिन अपने घर बुलाया है। इसके पीछे क्या सबब है मुझे नहीं मालूम"
"यह तो अच्छी ख़बर है। अगर हुक्मरां अपनी जान पहचान का हो तो बहुत मदद मिलती है", लतीफ़ मियां बोल पड़े।
"क्या पता अब यह सब तो मिलट्री वाले जानें...."
"क्या सरदार साहब आप भी बहुत नादान हैं, हो सकता है कि उसके हुक्मरां की कोई बेटी हो ...."
"हटाइये भी लतीफ़ मियां आप भी न जाने कहाँ से कहाँ जा पहुंचे। अभी तो जसवीर के कॅरियर की शुरुआत हुई है"
लतीफ़ मियां ने सरदार साहब से कहा, "....और बताइए क्या हाल हैं, कुछ पता चला कि उसकी यूनिट श्रीनगर के किस इलाके में है। सोचता था कि हालात नॉर्मल हों तो एक दिन उससे जाकर मिल आऊँ"
"कुछ पता नहीं जी वह कहां है। होगा वहीं कहीं घाटी में या बॉर्डर पर जहां गोलाबारी हो रही हो। इस बारे में न तो वह बात ही करता है और न ही हमें कुछ पता चल पाता है। उसकी मॉम ने बहुत कोशिश की कि उससे बात हो जाए पर मिलिट्री एक्सचेंज से कॉल मिली ही नहीं"
"चलिये वह जहाँ भी हो बस हम यही दुआ माँगते हैं कि वह ठीक से रहे"
"बस हम लोग भी दिन रात रब से यही दुआ करते रहते हैं", सरदार साहब ने इतना कहकर फ़ोन कुलविंदर की तरफ़ बढ़ाते हुए कहा, "लीजिये आप अपनी भाभीजान से बात कर लीजिए वह अज़रा के बारे में जानना चाह रहीं हैं कि उसका अब आगे का क्या प्रोग्राम है"
"लाइए दीजिये फोन जरा", लतीफ़ मियां इन्तज़ार ही कर रहे थे कि जैसे ही कोई उधर से हेलो कहे तो वह अपनी बात कहें, "जी भाभीजान कैसी हैं"
कुलविंदर ने चंडीगढ़ के बाबत बताते हुए कहा, "यहां सब ठीक से है, आप यह बताइए कि अज़रा बेटी चंडीगढ़ कब तक आएगी"
"जल्दी ही जैसे ही यहां कर्फ्यू हटता है मैं उसे ख़ुद लेकर चंडीगढ़ आऊँगा"
इसके बाद बहुत देर तक दोनों परिवारो के बीच लंबी बातचीत हुई।  सरदार साहब अज़रा से बात करने के लिए बेचैन थे इसलिए कुलविंदर के हाथ से फोन लेकर बोले, "क्या मैं अज़रा बेटी से बात कर सकता हूँ"
लतीफ़ मियां ने अज़रा को बुलाकर फोन उसके हाथ में देते हुए कहा, "ले बेटी सरदार साहब तुझसे बात करना चाह रहे हैं"
"जी अंकल नमस्ते आप लोग कैसे हैं"
"हम लोग ठीक हैं बस तेरे चन्ड वापस आने की राह देख रहे हैं। बेटी तेरी पढ़ाई का नुकसान जो हो रहा है"
"जी अंकल जानती हूँ"
इसके बाद सरदार साहब और कुलविंदर की अज़रा से बहुत देर तक बातचीत होती रही। बातचीत का दौर थमा जब टेलीफोन ऑपरेटर कॉल को इंटरप्ट करते हुए बोला, "मैडम फोन बंद कीजिये बहुत देर हो गई। दूसरों को भी मौक़ा दीजिये वे लोग भी लाइन में हैं"
"हाँ, लीजिये मैं फोन रखतीं हूँ", कहकर हामिदा बेग़म ने टेलीफोन कॉल डिसकनेक्ट किया और लतीफ़ मियां की ओर देखते हुए कहा, "टेलीफोन एक्सचेंज वाले थे कह रहे थे कि बहुत देर से बात हो रही है टेलीफोन बंद करिये दूसरे लोग भी लाइन में हैं"
"हमको इस बात का ध्यान रखना चाहिए था"
"क्या मियां जब इतने दिनों बाद बातचीत होगी तो क्या बात भी न करें"
"नहीं यह बात नहीं, दो एक दिन में हालात ठीक हो जाएंगे तब कोई भी कितनी देर बात करे"
लतीफ़ मियां मन ही मन ख़ुश हो रहे थे कि चलो देर से ही सही अब हालात पटरी पर आ रहे हैं इसलिए उन्होंने अज़रा को बुलाकर कर कहा, "बेटी तैयारी कर ले लगता है कि अब कुछ दिन में सब ठीकठाक हो जाएगा"
"हाँ अब्बू मेरा भी मन अब ऊबने लगा है। मैं भी कॉलेज जाना चाहती हूँ मेरी पढ़ाई का बहुत नुकसान हो रहा है"
बच्ची में पढ़ने लिखने की लगन देखकर लतीफ़ मियां को बहुत अच्छा लगा और वह मन ही मन यह मानने लगे कि अब वह दिन जल्दी आएगा जब वह अज़रा को साथ ले चंडीगढ़ जा सकेंगे। रात बहुत हो चुकी थी इसलिए लतीफ़ मियां का परिवार एक एक करके सो गए।

रात के लगभग दो बजे थे कि अचानक ही एक बम फटने की आवाज़ आई और लतीफ़ मियां के साथ सभी की नींद खुल गई और वे एक दूसरे का मुँह देखने लगे...








एपिसोड 14
भड़भड़ा कर लतीफ़ मियां बम की आवाज़ सुनकर उठ बैठे और हामिदा बेग़म को जागते हुए बोले, "बेग़म उठो देखो यह कैसी आवाज़ आई"
"क्या हुआ"
"लगता है कि अपने मोहल्ले में कहीं बम फटा है"
"अरे फटा होगा तुम्हें क्या करना है। सो भी जाओ"
लतीफ़ मियां बेग़म की बात सुनकर चुप रह गए और लेट कर सोचने लगे कि आख़िर क्या हुआ होगा। कुछ ही देर बाद एक और बम फटने की आवाज़ आई तो उनसे रहा नहीं गया और वह दरवाज़े तक गए यह जानने के लिए कि आखिर चल क्या रहा है। दरवाज़ा खोलते ही उन्होंने देखा कि आर्मी वालों की गाड़ियां एक के बाद भागी जा रही हैं। कुछ लोग घरों के बाहर भी निकल आए थे। उनमें से एक नए कहा, "लगता है कि कुछ आतंकियों ने कहीं हमला किया है"
सभी लोग एक दूसरे की ओर देख रहे थे और यह जानना चाह रहे थे कि आख़िर चल क्या रहा है। भीड़ को देखकर एक पुलिस की जीप आकर रुकी और लाउडस्पीकर पर एनाउंसमेंट करके लोगों को अपने घरों में ही रहने की सलाह दे रही थी। मोहल्ले के एक नौजवान को चैन नहीं था इसलिए वह जीप के पास जाकर पूछने लगा, "ज़नाब इतना तो बता दीजिए कि आखिर ये चल क्या रहा है''
जीप में सवार एक ऑफिसर ने बताया, "हमें इत्तिला मिली है कि दो दहसत पसंदो ने राजबाग़ पुलिस चौकी पर हथगोले फेंक कर हमला किया है। अभी बस इतनी ही जानकारी है"
"शुक्रिया ज़नाब", कहकर वह नौजवान अपने घर की ओर मुड़ कर लौटने लगा। मोहल्ले भर की भीड़ उसके पास जाकर पूछने लगी कि क्या पता लगा, उसने वही बताया जो उसे पता लगा था। इसके बाद लोगों में आपस में फुसफुसाहट होने लगी तभी पुलिस वालों ने सबको फिर अपने अपने घरों में जाने को कहा। उसकी बात मानते हुए एक एक कर सभी लोग अपने अपने घर लौट गए।
लतीफ़ मियां भी अपने घर की तरफ लौट पड़े, दरवाज़े के पास देखा तो उनकी बेग़म वहां खडीं हुई थीं। लतीफ़ मियां को देखते ही पूछ बैठीं, "मियां क्या हुआ"
लतीफ़ मियां ने कहा, "चलो अंदर चलो हम सब बताते हैं"
घर के अंदर आकर उन्होंने बेग़म को वह सब बताया जितना उनको मालूम था। जब वे उन्हें बता रहे थे तभी गोलियों के चलने की आवाज़ आने लगी जिससे उन्होंने अंदाज़ लगाया कि आर्मी वाले भी वहां पहुंच गए हैं और दोनों ओर से गोलीबारी हो रही है। लतीफ़ मियां और उनकी बेग़म अपने अपने बिस्तर पर लेटे रहे। उनकी आंखों में नींद कहाँ आने वाली थी। देर रात तक गोलीबारी चलती रही भोर की पहली किरण के बाद कुछ शांति हुई। लतीफ़ मियां यह जानने के लिए बहुत उत्सुक थे कि आखिर हुआ क्या था। पड़ौसी ने आवाज़ दे जब गली के पिछवाड़े वाले दरवाज़े पर आहट की तो झट से जाकर दरवाज़ा खोला और उसे अंदर करके दरवाज़ा बंद कर दिया। उसने बताया कि कि जैश के दो दहशत पसंद आतंकियों ने पुलिस चौकी पर बमों से हमला किया था लेकिन मुस्तेद जवानों ने हिम्मत से काम लेते हुए मुकाबला किया। जब आर्मी की यूनिट वहां आ गई तो चौकी को घेर कर अपने आदमी बाहर निकाल कर आतंकियों को मज़बूर कर दिया कि वे ऊपरी हिस्से की ओर जाकर गोलीबारी करें। कुछ देर पहले आर्मी की यूनिट ने पुलिस चौकी को घेर कर दोनोआतंकियों को ढेर कर दिया।
लतीफ़ मियां ने पड़ौसी की बात सुनकर कहा, "यह दूसरी मर्तबा है जब कि आतंकियों ने डाउन टाउन में कोई आतंकी घटना को अंजाम दिया है। इससे पहले वे एक बार ज़ीरो ब्रिज पर हमला कर चुके हैं"
"वो लकड़ी का पुल"
"हाँ वही लकड़ी का पुल जिसे सरकार ने दोबारा से बनबाया है", लतीफ़ मियां ने यह कहकर उसे फिर पूरा किस्सा सुनाया। इसी बीच हमिदा बेग़म दोनों के लिए कहवा बना कर ले आईं। कहवा पीकर पड़ौसी थोड़ी देर और बैठा उसके बाद वह पिछली गली के रास्ते से ही निकल गया।
सुबह जब लतीफ़ मियां ने टेलीफोन चेक किया तो पता लगा कि उसमें कर्रेंट ही नहीं है। यह सोचकर कि रात की घटना की लेकर हो सकता है कि एतिहातन टेलीफोन बंद कर दिए गए हों। लतीफ़ मियां की बात सुनकर बेग़म बोल पड़ीं, "मुआ एक दिन ही के लिए चालू हुआ था बंद हो गया। फिर किसी से बात नहीं हो पाएगी"
"किसी से बात करनी थी क्या", लतीफ़ मियां बेग़म से पूछ बैठे।
बेग़म इस भारी माहौल को कुछ हल्का फुल्का करना चाह रहीं थीं झट से बोल पड़ीं, "अये हए अब मेरा कौन आशिक़ है जिससे बात करनी थी। सोच रही थी कि कल बातचीत पूरी हो नहीं पाई थी इसलिए आज तुम एक बार फिर सरदार साहब से बात कर लेते"
"देखते हैं, हो सकता है दिन चढ़ने के बाद शायद लाइन चालू हो जाए तब देखा जाएगा", लतीफ़ मियां बोले और भीतर जाकर ख़बर सुनने के लिए टीवी ऑन किया। टीवी में दुनियां जहान की खबरें तो आईं लेकिन श्रीनगर में हुई रात की आतंकी घटना का कोई ज़िक्र नहीं था। हो सकता है कि सरकार जानबूझकर इसे बड़ी खबर नहीं बनाना चाह रही हो। आई भी तो बस एक छोटी सी ख़बर कि सरकार शाम तक हालात पर तफ़सरा करके श्रीनगर के कुछ इलाकों में मोबाइल सेवा चालू कर सकती है। हामिदा बेग़म और लतीफ़ मियां एक दूसरे का चेहरा देखते रह गए। बेग़म बोल उठीं, "लगता है कि अब हम लोगो के अच्छे दिन आने वाले हैं"
"अच्छे दिन", कहकर लतीफ़ मियां बोल बैठे, "बेग़म अच्छे दिनों की तो तुम बात मत करो हमारे पुराने दिन ही लौट आएं वही बहुत हैं"
"इतनी जल्दी हिम्मत हार जाओगे तो काम कैसे चलेगा। जरा अपने मन की बात सुनो और यह सोचो कि अब करना क्या है"
अम्मी अब्बू की आपस में बात करते देख अज़रा भी उनके पास आ गई और बोली, "अब्बू क्या हुआ"
"कुछ नहीं बेटी हम लोग आपस में हंसी मजाक कर के अपना ग़म ग़लत कर रहे थे", बीच में टोकते हुए बेग़म बोल पड़ीं।
अज़रा को पास बिठाते हुए लतीफ़ मियां बोले, "अगर आज मोबाइल चालू हो जातें हैं तो शर्तिया दो एक दिन में ट्रैफिक और बाजार भी खुल जायेगा। बेटी जैसे ही बाजार खुलता है सबसे पहले मुझे जो काम करना है वह होगा कि मैं तुझे अपने साथ ले जाकर चंडीगढ़ छोड़ कर आऊँ"
"ठीक रहेगा, मेरी पढ़ाई बहुत छूट गई है"
"इसीलिए तो तुझे वहां ले जाना चाहता हूँ", कहकर चंडीगढ़ चलने की बात नक्की करके माँ बेटी और बाप बेटी में इधर उधर की बातें होने लगीं।
श्रीनगर में सरकार को न जाने ऐसा क्या पता चल गया कि बेहद जल्दबाजी में पहले मिडिल स्कूल और बाद में इंटरमीडिएट स्कूल खोल दिये। ताजुब्ब करते हुए लतीफ़ मियां ने अपनी बेग़म से कहा, "बेग़म ज़मीनी हालात में तो कोई खास बदलाव नहीं हुआ न जाने हम पर सरकार की इतनी मेहरबानी कैसे हो गई"
"छोड़ो भी मियां अपनी ज़िंदगी का गुजारा होता रहे हमें सियासी खेल से क्या लेना देना"
दो एक दिन बाद श्रीनगर के कुछ हल्कों में मोबाइल सेवा भी चालू कर दी। जिस दिन मोबाइल चालू हुए उसी दिन लतीफ़ मियां अज़रा को साथ लेकर चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए।






एपिसोड 15
जसवीर ने जैसे ही ब्रिगेडियर जगजीत सिंह संधू के घर पर उनसे मिलने गया तो गेट पर खड़े गॉर्ड ने जसवीर सिंह से पूछताछ की और फिर ब्रिगेडियर साहब के घर में इंटरकॉम पर मैडम संधू को ख़बर की कि लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह सर से मिलने आये हैं। मैडम न जब कन्फर्म कर दिया तब वह जसवीर को लेकर घर के बरामदे तक आया और कॉल बेल बजाई। जसवीर को इंट्रोड्यूस किया और जब श्रीमती संधू जसवीर को लेकर घर के ड्राइंगरूम में जा पहुंची उसके बाद ही गॉर्ड लौट कर अपनी ड्यूटी पर वापस गया। 
श्रीमती संधू ने खुद को इंट्रोड्यूस करते हुए जसवीर से कहा, "वैल जसवीर, मैं जसविंदर कौर संधू और बताओ क्या लेना पसंद करोगे"
"मैम कुछ भी नहीं"
"ब्रिगेडियर संधू बस अभी जॉइन करने वाले हैं तब तक कोई कोल्ड ड्रिंक या फ़्रेश लाइम"
"ओके मैम मैं फ्रेश लाइम लेना पसंद करूँगा"
जसवीर के कहते ही एक ऑर्डरली फ्रेश लाइम लाने के लिए अंदर गया। इस बीच श्रीमती संधू ने जसवीर के परिवार में कौन कौन है यह जान लिया। कुछ देर में ही ब्रिगेडियर संधू भी आ गए और ऑर्डरली सबके लिए फ्रेश लाइम लेकर आया और बहुत करीने से ड्रिंक सबके सामने टेबल पर रख कर वापस लौट गया। ब्रिगेडियर संधू ने अपने परिवार के बारे में बताते हुए कहा, "हमारी एक बेटी है जसप्रीत कौर। आजकल बेंगलुरु से मास्टर्स इन साइंसेज कर रही है", यह बताते हुए उन्होंने जसप्रीत कौर की तसवीर भी दिखाई जो दूसरे फ़ैमिली फोटोग्राफ्स के साथ दीवार की शोभा बढ़ा रही थी। जसवीर फ़ोटो देखकर यह कहने से अपने आप को नहीं रोक पाया और बोल बैठा, " स्टनिंग, शी लुक्स अमेज़िंगली ब्यूटीफुल"
श्रीमती संधू ने बातचीत की कमांड सम्हालते हुए फिर जसवीर से बहुत देर तक बातेँ करीं। जसवीर तक़रीबन एक घंटे के आसपास संधूज के साथ गुज़ारे और दोनों में बड़ी देर बात होती रही। उसके बाद अपनी यूनिट लौट आया।
जसवीर ने यूनिट पहुंच कर सबसे पहले अपने घर फ़ोन लगाया और अपनी मॉम से बात करते हुए ब्रिगेडियर संधू जी के परिवार के बारे में बताया और वहां क्या क्या बात हुई उसका भी ज़िक्र किया। कुल बात जब जसप्रीत की आई तो कुरेदते हुए कुलविंदर ने जसवीर से पूछा, "जसप्रीत नाम ते बड्डा सोणा लगदा प्या है और दस कुड़ी देखण कैदीं लगदी है''
"मॉम कुड़ी उत्थे नहीं रहण दी। वह तो बंगलूर में मास्टर्स इन साइंस कर रही है"
"चल ये तो चंगी बात है। उनादे नाल उसदा कोई न फोटोशॉटो नईं दा"
"था न"
कुलविंदर के चेहरे पर एक ख़ुशी की लहर दौड़ गई और पूछ बैठी, "त्वानूं कुड़ी सोणी लगी"
"मैंने उसकी मम्मी के पूछने पर बस इतना ही कहा", जसवीर अपनी मॉम से बोला, "स्टंनिंग, शी लुक्स अमेज़िंगली ब्यूटीफुल"
"चंगा पुत्तर, तुसी ठीक कित्ता सी"
इसीबीच सरदार साहब आ गए और कुलविंदर से पूछने लगे, "कौन है"
"जसवीर है"
"मैंनू दईं", कहकर कुलविंदर के हाथ से फोन लेकर सरदार साहब जसवीर से बात करने लगे।
"डैड पैरीं पैना"
"चंगा रह। और बता क्या हाल है"
इसके बाद पिता पुत्र में लंबी बातचीत हुई लेकिन जसप्रीत को लेकर कोई भी बात नहीं हुई। बातचीत ख़त्म करने के पहले सरदार साहब ने जसवीर से कहा, "ब्रिगेडियर संधू को मेरी ओर से गुड विशेज देना"
"चंगा डैड', कहकर जसवीर ने फोन डिसकनेक्ट किया।
जैसे ही सरदार साहब ने टेलीफोन रखा कि कुलविंदर ने वह सब बातें जो जसवीर के साथ हुईं थीं डिटेल्स में सरदार साहब को बताईं। सरदार साहब ने कुलविंदर की बात सुनकर बस इतना ही कहा, "एन्ना ख़ुश होण दी लोड नईं है। दो फौजियों दे नाल एंजे गलबातां होंदी रैन दीं हैं"
जब सरदार साहब और कुलविंदर में बातचीत हो ही रही थी उसी समय कॉल बेल बजी। सरदार साहब दरवाज़े की ओर बढ़े और दरवाजा खोला तो उनकी नज़रों के सामने थे लतीफ़ मियां और अज़रा। उन्हें देखते ही सरदार साहब ने लतीफ़ मियां को गले लगाया और अज़रा की पेशानी चूमी। लतीफ़ मियां की बांह अपने हाथों में लेते हुए उन्हें अंदर तक ले आये और कुलविंदर से कहा, "कुलविंदर देख तो सही कौन आया है"
बाहर आकर कुलविंदर ने देखा कि लतीफ़ मियां और अज़रा आये हुए हैं। वह दिल खोलकर दोनों से मिली। एक दूसरे के हालचाल जाने और अज़रा से पूछ बैठी, "अब आगे का प्रोग्राम है"
"पढ़ना है आंटी", अज़रा ने जवाब में कहा,"...और भला कर भी क्या सकती हूँ। कुछ करने के लिए काबलियत होनी चाहिए और वह आएगी पढ़ने लिखने के साथ। इसलिए पढ़ना तो पड़ेगा ही"
कुलविंदर अज़रा की बात सुनकर लतीफ़ मियां से बोली, "भाईजान कोई कुछ भी कहे आपकी बेटी बातें बहुत अच्छी अच्छी करती है"
"भाभीजान जब से यह यहां आई है जिसने बातें करना सीख लिया है जबतक श्रीनगर में थी चुप ही रहती थी"
लतीफ़ मियां की बात सुनकर कुलविंदर ने अज़रा की बालियां लीं और उसको अपने सीने से लगाकर प्यार किया। दोनों परिवारों के मिलन को कोई देखकर यह कह ही नहीं सकता था कि सिख और मुस्लिम साथ साथ रह ही नहीं सकते हैं। जो भी देखता वह यही कहता कि काश ऐसी दोस्ती समाज के हर वर्ग में होनी चाहिए।
जब शाम के खाने पीने की तैयारी हो रही थी तो अज़रा ने कहा, "आंटी हटिये आज मटन मैं बनाऊंगी"
"अरे रहने भी दे। मैं बना देती हूं"
"हटिये भी आज अपनी बेटी के हाथ का बना हुआ खाइये"
कुलविंदर और अज़रा ने मिलजुलकर खाना बनाया और डाइनिंग टेबल पर लगाकर सरदार साहब और लतीफ़ मियां की आवाज़ दी।
सरदार साहब ने मटन का पहला निवाला लेते हुए कहा, "कुलविंदर आज मटन टी बहुत बढ़िया बना है"
"अजी आपकी बेटी का जो बना हुआ है अच्छा तो होना ही है"
"अज़रा बेटी आज खाना तूने बनाया है। क्या कहने लतीफ़ मियां मज़ा आ गया"
देर रात तक उन लोगों के बीच बातचीत होती रही। जब आधी रात होने को आई तब वे लोग सोने के लिए अपने अपने बेडरूम में गए। सुबह उठकर और ब्रेकफास्ट करके लतीफ़ मियां और सरदार साहब अज़रा को उसके हॉस्टल छोड़ने गए। दो दिन रुक कर लतीफ़ मियां श्रीनगर के लिए रवाना हुए। चलते चलते जब सरदार साहब लतीफ़ मियां से गले मिले तो अचानक ही उनके मुँह से से निकल पड़ा, "लतीफ़ मियां हम दोनों लोगों को अपने रिश्ते को अब कोई और नाम दे देना चाहिए"





एपिसोड 16
जब लतीफ़ मियां चंडीगढ़ से कठुआ होते हुए श्रीनगर के रास्ते में थे उन्हें ख़बर मिली कि श्रीनगर में स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाले बच्चों ने सेना और पुलिस की गाड़ियों पर पत्थरबाज़ी की और हालात खराब होने के बाद सरकार ने कर्फ्यू फिर से लगाया। मोबाइल सेवाएं भी बाधित हुईं। लतीफ़ मियां मन ही मन यह मनाते रहे कि श्रीनगर पहुंच कर वे किसी तरह अपने घर तक पहुंच सकें नहीं तो बहुत मुश्किल होगी और बेग़म भी परेशान रहेंगी। जैसे ही लतीफ़ मियां की बस श्रीनगर पहुंची तो उन्होंने एक सेक्युरिटी के अफसर से बात कर घर तक पहुंचने का जुगाड़ कर लिया। घर के दरवाज़े पर खड़े होकर जब उन्होंने कॉल बेल दबाई तब जाकर उन्हें कहीं चैन आया। बेग़म ने लतीफ़ मिया को देखते ही चैन की सांस ली और बोली, "मियां आप सही सलामत घर लौट आये हैं यह खुदा का फ़ज़ल ही है। मैं तो बहुत डर रही थी कि आप वापस कैसे लौट पाएंगे"
"अंदर आने दोगी कि यहीं खड़े खड़े बात करती रहोगी", लतीफ़ मियां की बात सुनकर बेग़म ने उन्हें आने के लिए जगह दी और उनके हाथ से सामान से भरा हैंड बैग ले लिया।
कपड़े वग़ैरह चेंज करके लतीफ़ मियां अपने बिस्तर पर लेट गए तो उन्होंने अशफ़ाक़ के बारे में पूछते हुए कहा, "बेग़म अशफ़ाक़ किधर गया है दिखाई नहीं पड़ रहा"
"बगल वालों के यहां गया है"
"बेग़म अच्छा है पहले तो वह घर से ही नहीं निकला करता था"
"बच्चा धीरे धीरे बड़ा हो रहा है तो कुछ तो बदलाव आएगा ही"
"हमने कितनी कोशिश की कि वह बोलने लगे तो कम से कम उसकी जिंदगी अपनी राह चल निकले"
लम्बी सांस छोड़ते हुए बेग़म हामिदा बोल पड़ीं, "मियां तुम ही तो कहते थे कि पिछले जन्म में हमसे न जाने कौन सा गुनाह हो गया कि जिसकी यह सजा हमें भुगतनी पड रही है"
"हम तो मालिक से यही गुजारिश करेंगे कि उसका रहमोकरम हो तो अशफ़ाक़ भी अज़रा की तरह पढ़ने लिखने लगे"
"छोड़ो भी अब जैसी खुदा की मर्ज़ी", बेग़म हामिदा बोलीं, "यह तो बताओ कि सरदार साहब और सरदारनी साहिबा कैसी हैं"
लतीफ़ मियां ने सिलसिलेवार से अपनी मुलाकात के बारे में एक एक बात बताई। उन्होंने यह भी बताया कि जब वह चंडीगढ़ से चल रहे थे तब सरदार साहब ने न जाने क्यों यह कहा कि अब हम लोगों को अपने रिश्ते को नया नाम दे देना चाहिए। बेग़म लतीफ़ मियां की बात सुनकर खुद पशोपेश में आ गई और सोचने लगी कि इसका क्या मतलब लगाया जाये। लेकिन जब लतीफ़ मियां ने अपनी उन बातों का ज़िक्र किया कि जसवीर ब्रिगेडियर संधू के यहां मिलने गया था और ब्रिगेडियर संधू की पत्नी के सवाल में जब जसवीर ने जसप्रीत की खुल कर तारीफ़ की थी तो बेग़म हामिदा ने राहत की सांस ली और बोली, "मियां वह लोग सिख हैं और चाहेंगे कि उनके लड़के का रिश्ता सिखों के बीच ही हो। इसलिए ब्रिगेडियर संधू के घर जो कुछ हुआ वह बहुत ही आम बात है। कौन नहीं चाहता कि अपनी बच्ची की शादी एक अच्छे परिवार में हो"
"मुझे भी यही लग रहा है कि श्रीमती संधू ने अपने घर में आपस में बातचीत करके ही इस तरह की बात की हो"
"मियां तुम सही कह रहे हो, मुझे भी यही लग रहा है"
"बेग़म एक बात बताओ कि हम तुम इस मसले को लेकर इतने परेशान क्यों हो रहे हैं। यह उनका मसला है जो वो ठीक समझेंगे वैसा काम करेंगे"
"यह भी ठीक बात है। बस ऐसे ही बात उठी इसलिए हम लोगों ने इसको लेकर गुफ्तगू की"
लतीफ़ मियां बहुत देर तक कुछ सोचते रहे और अचानक ही बोल पड़े, "बेग़म अगर कहीं ऐसा हुआ कि......"
"......क्या हुआ कि"
लतीफ़ मियां ने बात को टालने की कोशिश में कहा, "कुछ भी नहीं। मेरे जहन में एक सवाल उठा था इसलिए .... वैसे कोई बात नहीं"
बेग़म हामिदा इन बातों को सुनकर उलझन में आ गईं और लतीफ़ मियां से पूछ बैठीं, "कौन सा सवाल, जरा मैं भी तो जानूँ"
"कुछ भी नहीं"
"मियां अब तो आपको बताना ही होगा नहीं तो मेरी बेचैनी और बढ़ जाएगी"
लतीफ़ मियां बहुत देर तक सोचते रहे कि वो कुछ कहें या नहीं। अपनी बेग़म का हाथ अपने हाथ में लेते हुए बमुश्किल बोले, "बेग़म वैसे तो यह सही नहीं है लेकिन अगर कल को सरदार साहब की ओर से हम लोगों के बीच नये रिश्ते बनाने को लेकर कोई बात उठे तो हम क्या करेंगे"
"किस तरह के रिश्ते की बात को लेकर"
"मैं भी नहीं जानता लेकिन जिस तरह से अज़रा ने उनके घर खाना बना कर उनसे प्यार पाया और सरदार साहब की ब्रिगेडियर संधू के रिश्ते की बात को लेकर जो कहा उससे मुझे यही लग रहा है कि वो हमारी अज़रा को बहुत प्यार भरी नज़रो से देखते हैं और हो सकता है कि कल को अगर जसवीर और अज़रा के बीच कुछ होने की बात सामने आती है तो हम क्या करेंगे"
बेग़म हामिदा लतीफ़ मियां की बात सुनकर पहले तो बहुत परेशान हो गईं लेकिन कुछ देर बाद सोच समझ कर बोलीं, "मियां हमें अपनी लौंडिया पर भरोसा करना चाहिए और मुझे नहीं लगता कि उसके और जसवीर के बीच कोई भी बात है। वह साफ साफ मना कर चुकी है यहां तक कि जब उससे पूछा था कि क्या वह जसवीर से मिल चुकी है तो उसने साफ़ साफ़ मना कर दिया था"
"हाँ यह तो मैंने भी सुना था जब उसने कहा था कि उनसे मुलाकात हो तो ठीक न हो तो ठीक"
बेग़म हामिदा ने भी लतीफ़ मियां की बात से हां में हां मिलाते हुए कहा, "अब सो भी जाओ। हम लोग बेसबब ही परेशान हो रहे हैं जहां आग नहीं लगी है वहां आग लगाने की कोशिश कर रहे हैं"
लतीफ़ मियां न जाने क्या सोच रहे थे जो वह बेग़म से कह बैठे, "बेग़म जसवीर मुझे भी बहुत पसंद है..."
"वह तो मुझे भी बहुत अच्छा लगता है लेकिन उससे हमारी अज़रा को लेकर वाली बात से क्या सबब है"
"कुछ भी नहीं हटाओ सो भी जाओ", कहकर लतीफ़ मियां ने करवट बदली और सोने की कोशिश करने लगे....










एपिसोड 17
एक दिन की बात है जब लतीफ़ मियां अपने परिवार के साथ बैठे टीवी की न्यूज़ सुन रहे थे तभी ख़बर आई कि जम्मू कश्मीर के गवर्नर साहब एक प्रेस कांफ्रेंस करने जा रहे हैं जिसमें वह अवाम को बताएंगे कि सरकार जम्मू, कश्मीर और लद्दाख़ के लिए कौन कौन सी योजनाएं लेकर आ रही है जिससे कि पूरी रियासत में चहुमुखी विकास के रास्ते खुल जाएंगे।
सबसे बड़ी बात जो गवर्नर साहब की गई थी वह थी जिस पर लतीफ़ मियां का ध्यान गया कि जल्दी से जल्दी पचास हजार नौकरियां के लिये भर्ती का काम शुरू होगा
जम्मू कश्मीर के लोगों को ही इन जगहों पर भर्ती की जाएगी। सबसे बड़ी बात यह रही कि अबकी बार पहली बार पिछड़े और दलितों को भी उनके संविधान में अधिकारों के अंतर्गत रिज़र्वेशन का फायदा होगा।
गवर्नर साहब की तरफ से यह भी बताया गया कि सरकार ऐसे लोगों के सम्पर्क में है जो जम्मू और कश्मीर में नई नई योजनाओं पर काम शुरू करना चाह रहे हैं। अब रियासत में एक से बढ़ के एक इंडस्ट्री, होटल ,आईआईएम, आईआईटी, ऐम्स खोले जाएंगे जिनमें वर्ल्ड क्लास फैसिलिटी मुहैया होंगी। अब जम्मू कश्मीर रियासत के लोगों को अपने बच्चों को पढ़ाई करने के लिए बाहर नहीं भेजना पड़ेगा। यहां जो भी फाइव स्टार होटल खोले जाएंगे उनमें बाहर से आने वाले मेहमानों को वर्ल्ड क्लास फैसिलिटीज देने का प्रोविज़न किया जाएगा जिससे यहां के टूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा।
कॉन्फ्रेंस के आखिर में यह भी बताया गया कि सब कुछ ठीक रहा तो घाटी में मोबाइल सेवा जल्दी ही शुरू की जाएगी। स्कूल, कॉलेज और यूनिवर्सिटी भी काम करने लगेंगी।
आतंकवाद से कोई समझौता नहीं होगा और लड़ाई वैसे ही चलती रहेगी जैसे कि पहले। सरकार यह उम्मीद करती है कि कश्मीर का युवा अपने भले के लिए सरकारी कदमों के साथ कदम से कदम मिला कर चलेंगे और विकास की ओर आगे बढ़ेंगे। अगर यह सब होता है जल्दी ही कश्मीर देश की सबसे बढ़िया रियासत बन जाएगी।तथा
गवर्नर साहब की बातें सुनकर लतीफ़ मियां के दिमाग़ में ख्याल आया और कि वह भी क्यों न अपनी इलायची बाग़ वाली ज़मीन पर एक आलीशान होटल के प्रोजेक्ट पर काम करें और वहाँ झेलम के दरिया के किनारे एक वर्ल्ड क्लास फाइव स्टार होटल बनाएं।
उन्होंने अपने दिल में आए ख़्याल को लेकर पूरी बात बेग़म को बताई। बेग़म हामिदा ने पहले तो ना नुकुर की लेकिन जब लतीफ़ मियां ने यह बताया कि उन्हें अपने घर से बहुत कम पैसा लगाना पड़ेगा। सरकार से लोन लेकर और एक बिज़नेस पार्टनर के साथ मिल कर वह यह प्रोजेक्ट पूरा करेंगे तो बेग़म भी मान गईं और बोलीं, "मियां जो ठीक समझो, हम तो हमेशा से आपके साथ हैं"
रात भर लतीफ़ मियां के ख्यालों में कभी होटल तो कभी अज़रा और जसवीर को लेकर कुछ न कुछ चलता रहा और वह सुबह जल्दी समय से न उठ सके। उनकी सुबू की नमाज़ भी अदा न हो पाई। बेग़म ने सोचा थके हुए होंगे इसलिए उन्होंने भी नहीं जगाया। जब लतीफ़ मियां उठे तो देखा कि घड़ी सुबू के साढ़े सात बजा रही है। आँखे मलते हुए उन्होंने बेग़म को आवाज़ दी और पूछा कि उनको क्यों नहीं उठाया। बेग़म ने भी झट से जवाब दिया, "मियां सुबू को मुझे उठाने की जिम्मेदारी तुम्हारी है न कि मेरी तुम्हें उठाने की,"फिर बाद में हंसते हुए बोलीं, "मैं तो आज साढ़े चार बजे ही उठ गई थी। चाय भी बनाकर लेकर आई थी देखा कि तुम गहरी नींद में सोए हुए थे इसलिए नहीं उठाया"
लतीफ़ मियां को ख़्याल आया कि गवर्नर साहब ने कल बहुत बड़ी बडी बातें कीं थीं देखें कि मोबाइल चालू हुआ कि नहीं तो पता चला कि मोबाइल अभी चालू नहीं है लेकिन लैंडलाइन चालू हो गई थी। लैंडलाइन को ठीक काम करते हुए देख उन्होंने सरदार साहब से बात करने का मन बनाया। देखा कि अभी आठ ही बजे हैं तो सोचा कि पता नहीं वह सैर से लौट कर आगये होंगे या नहीं। यज सब सोचते हुए उन्होंने दस बजे के बाद बात करने की ठान ली।
आज पहली बार कश्मीर टाइम्स का अखबार महीनों बाद अखबार वाला यह कहकर डाल गया कि अब कल से अखबार हर रोज़ आया करेगा। लतीफ़ साहब को लगा कि रातों रात ऐसा क्या हो गया जो सरकार ने अखबार को भी छापने की परमिशन दे दी। बेग़म से कहा, "लगता है बेग़म हमारे दिन बदलने वाले हैं, कल से आज तक बहुत कुछ हो गया"
"क्या हो गया"
"देखो मेरे हाथ में अख़बार दो महीने बाद आया है"
"पढ़ो पढ़ो न जाने तुम्हें कुछ और अच्छी खबर पढ़ने को मिल जाये"
"पढ़ कर बताऊंगा अभी तुम अपने काम करलो"
लतीफ़ मियां ने आँगन में ही एक कुर्सी डाली और आराम से अखबार की एक एक लाइन बहुत ध्यान से देखीं। अखबार की मेन ख़बर थी कि कश्मीरियों के सेव खराब न हों और नुकसान न हो इसलिए नाफेड अब सेव सीधे खरीदेगा। दूसरी अहम खबर थी कि जो भी डेवेलपमेंट के काम किये जायेंगे उनके लिए सरकारी जमीन का इस्तेमाल होगा। किसी की भी ज़मीन ली नहीं जाएगी। हर कश्मीरी को यह अख्तियार हासिल होगा कि वह अपनी ज़मीन पर कोई भी काम शुरू करना चाहे तो उसे सस्ते रेट पर ब्याज पर कर्ज़ हासिल हो सकेगा। कुछ और भी खबरें थीं। कुछ छोटी मोटी जगहों की खबरें भी शामिल थीं कि लोगों ने वहां घरों के बाहर आकर सिक्युरिटी के लोगों के ऊपर पत्थर फेंके नारेबाज़ी की।
अखबार पढ़ लेने के बाद लतीफ़ मियां मन ही न बहुत ख़श हुए कि उनका रात का सपना अब जल्दी ही पूरा होगा। इलायची बाग़ वाली ज़मीन पर एक आलीशान होटल बन कर ही रहेगा।
अपने वायदे के अनुसार लतीफ़ मियां ने एक एक ख़बर अपनी बेग़म को बताईं। सब खबरें सुना लेने के बाद उन्होंने बेग़म से एक एक करके सब खबरें सुनाईं। बेग़म को भी लगा कि श्रीनगर  के दिन अब बदलने वाले हैं। बेग़म बोल उठीं, "इस बदलाव का सबको खैरमकदम करना चाहिए''
"सरकार जो कह रही है अगर वह सब करने में सफल होटी है तो शर्तिया कश्मीरी लोग उसकी वाह वाह करेंगे"
"वाह मियां क्या बात कह दी। तुम्हारे मुँह में घी शक़्कर"
"बेग़म देर आयद-दुरुस्त आयद"
"हमें उम्मीद रखनी चाहिए बाकी खुदा की मेहरबानी पर छोड़ देना चाहिए"


एपिसोड 18
गवर्नर साहिबान ने कश्मीरियों की भलाई और विकास के लिए एक साथ इतने प्रोग्राम गिना दिये कि लोगों को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि ये प्रोग्राम कभी ज़मीन पर भी उतर सकेंगे। अभी तो इससे भी बड़ा पैकेज प्रधानमंत्री जी की ओर से भी आना बाकी था। मिला जुला कर इतना कुछ होगा तो शर्तिया कश्मीरियों की क़िस्मत ही खुल जाएगी।
स्कूल कॉलेज खुल चुके थे। बाजार में भी धीरे धीरे रौनक़ लौट रही थी। जुम्मे के दिन दोपहर की नमाज़ पढ़ने के लिए हर मस्जिद में भीड़ लगी हुई थी। यहां तक कि लोग मस्ज़िदों में समा नहीं रहे थे और मजबूरन सड़कों और गलियों में जहां भी उन्हें जगह मिल रही थी वहां नमाज़ अदा कर रहे थे। प्रशासन ने मुल्ला और इमामों को सख़्त हिदायत दी हुई थी कि कोई भी इंसान मज़हबी या सरकार के खिलाफ कोई बात नहीं करेगा और न ही लोगों को सरकार के खिलाफ लामबंद करने की कोशिश करेगा।
जब इतनी बड़ी तादात में इतने दिनों बाद मिलते हैं तो आपस में अनेक प्रकार की बातें होतीं हैं। इतनी भीड़ में बहुत से लोग ऐसे थे जो इस हक़ में थे अब जो होना था वह होगया अब हमको अपने आगे आने वाले वक़्त की चिंता करनी चाहिए। इस सोच के लोग सोचते थे कि सरकार अब वह काम कर सकेगी जो यहां के नेता और अलगाववादी पहले नहीं होने दे रहे थे। सबसे बड़ी बात उनको जो लग रही थी वह थी कि दिल्ली की सरकार इतनी बड़ी इमदाद भेजती थी और वह लोगों तक पहुंच ही नहीं पाती थी और खाने पीने वाले बीच मे ही खा पीकर हज़म कर जाया करते थे। कुछ इस सोच के लोग थे जो सोचते थे कि दिल्ली की सरकार ने घाटी के लोगों से वगैर बात किये आईन में इतने बड़े बदलाव कर दिए जिनसे उनके कई हकूकात ही ख़त्म हो गए। लोगों में दबी जुबान में यह सब बातें हुईं।
मस्जिदों के आसपास हुकूमत की ओर से किये गए मज़बूत इंतज़ाम की वजह से कोई गड़बड़ी तो नहीं हुई पर आपस में बातचीत करने का एक मसाला दे दिया था। दो एक लोग बातचीत करते भी देखे गए जिनमें एक था आफ़ताब और दूसरा मोहम्मद अल्ताफ़। आफ़ताब ने अल्ताफ़ से कहा, "सुन भाई आजकी मजलिस में सरकारी एजेंट भी जगह जगह मौजूद थे"
कुछ साल पहले की घटना की याद करते हुए जिसमें एक पुलिस इंस्पेक्टर को अलगावादियों के भड़काने पर भीड़ बेकाबू हो गई थी और उसे जान से मार दिया था आफ़ताब बोला, "अल्ताफ़ सुन मुझे ऐसे चक्करों में न फँसा। होंगे इंटेलिजेंस के आदमी तो हुआ करें हमें क्या करना है वो लोग अपना काम कर रहे हैं और यहां के शहरी अपना। तू चुप रह"
आफ़ताब और अल्ताफ़ जैसे और भी लोग थे लेकिन कोई भी खुल कर सामने नहीं आ रहा था। सबको डर सता रहा था कि अगर सिक्योरिटी वाले एक बार पकड़ कर ले गए तो घर वालों को उनकी लाश ही मिलेगी।
जैसे तैसे दिन गुज़रने लगे। लोकल लोगों के बीच आपस में मेल मिलाप भी होने लगा था। जो धंधे टूरिस्टों के सहारे नहीं थे वे ठीक चल निकले थे। लेकिन जो धंदे टूरिस्टों की दम से चलते थे उनमें अभी कोई रंगत देखने को नहीं मिली थी। लतीफ़ मियां के होटल पर भी सर्दी छाई हुई थी बस यदाकदा कोई खाना या कहवा पीने आ जाता तो ठीक वरना सब कुछ ठंडा ठंडा ही था। घर में बैठे बैठे लतीफ़ मियां क्या करते इसलिए अपने होटल पर ही आकर बैठते और वक़्त गुजरते। एक दिन सिक्योरिटी फोर्सेज कुछ जवान अपने अफ़सर के साथ होटल की चेकिंग के लिए आये। लतीफ़ मियां ने उनको अपना पूरा होटल देख लेने की छूट दी। उनके साथ के लिए अपने आदमी भी कर दिए। सिक्युरिटी फोर्सेज के अफ़सर ने जब लतीफ़ मियां के पास आकर कहा, "बहुत बढ़िया मियां बहुत बढ़िया। हमें कोई शिकायत का मौक़ा ही नहीं दिया"
लतीफ़ मिया ने जवाब में कहा, "शुक्रिया ज़नाब। हमें इधर उधर के चक्करों से कोई मतलब नहीं हम तो धंदेबाज़ हैं और हमें अपने धंधे से दो जून की रोटी जो कमानी होती है लिहाजा उसी हम अपने काम में ही लगे रहते हैं"
जब वे लोग जाने लगे तो लतीफ़ मियां ने उनसे गुजारिश की कि ज़नाब बहुत जल्दी में न हों तो एक एक कप कहवा हो जाये। पहले तो वे कहवा पीने के मूड में नहीं लगे लेकिन लतीफ़ मियां के चेहरे को देखकर सेक्युरिटी फोर्सेज के अफसर ने कहा, "ज़नाब आप भी क्या याद करेंगे वैसे तो हमें किसी के यहां भी रुकने की इजाज़त नही है पर तुम आप एक शरीफ़ इंसान लगते हैं इसलिए आपके साथ एक कप कहवा पीने में कोई उज़्र भी नहीं"
सिक्योरटी फोर्सेज के अफसर की बात सुनकर लतीफ़ मियां गदगद हो गए और अपने लोगों से सभी के लिए कहवा बनाने के लिए कहा और खुद उनके पास आकर बैठ गए। बातों ही बातों में लतीफ़ मियां ने कुछ ही देर में उनका दिल जीत लिया। उन्होंने लतीफ़ मियां के घर कर लोगों के बारे में पूछा तो लतीफ़ ने सिक्योरिटी फोर्सेज के अफ़सर से उसके घर के बारे में पूछा। लतीफ़ मियां को जब यह एहसास हुआ कि वह उनके साथ खुल कर बात कर सकते हैं तो उन्होंने उनसे पूछा, "ज़नाब अगर आप ठीक समझें तो मेरी बात का जवाब दीजिएगा नहीं तो कोई बात नहीं"
"पूछिये ऐसी कोई बात नहीं"
लतीफ़ मियां ने उस अफ़सर से बात करते हुए लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह के बारे में पूछा, "क्या आप उन्हें जानते हैं। वह हमारे दोस्त सरदार हर भजन सिंह जी के शहज़ादे हैं और चंडीगढ़ में उनका घर है। कुछ रोज़ पहले ही यहां पोस्टिंग पर आए हैं"
जसवीर सिंह की बात सुनकर अफ़सर बोल पड़ा, "जनाब आप जसवीर के बारे में पूछ रहे हैं, वह तो हमारा जोड़ीदार है। मैंने और उसने एक साथ आईएमए देहरादून से कमीशन लिया। जसवीर और मैं दोनों एक ही यूनिट में हैं"
"अच्छा, आप और जसवीर साथ साथ थे"
"जी हाँ, मैं शाम की जब मिलूँगा तो उसे बताऊंगा कि मेरी आपसे मुलाकात हुई थी"
"आप अपना इश्मशरीफ़ तो देते जाइये"
"जी मैं अपनी यूनिट में सैयद इक़बाल हुसैन के नाम से जाना जाता हूँ, मेरे जानने वाले मुझे इक़बाल कहकर बुलाते हैं"
इसके बाद तो फिर दोनों कर बीच लंबी बातचीत हुई। लतीफ़ मियां ने इक़बाल से बातों ही बातों में यह दरयाफ़्त कर लिया कि वह पहलगाम, कश्मीर से है और उसके अब्बा का लकड़ी का कारोबार है।लतीफ़ मियां ने अपनी बेटी अज़रा के बारे में इक़बाल को बताया कि वह सरदार हर भजन सिंह जी की गार्जियनशिप में रहकर चंडीगढ़ से ग्रेजुएशन कर रही है और यह भी कि वह कुछ दिनों पहले सरदार साहब के साथ रहकर लौटे हैं। कुछ देर गुजारकर इक़बाल अपने साथियों के साथ अपनी ड्यूटी पर चले गए।
उस दिन शाम को जब इक़बाल की मुलाक़ात जसवीर से हुई तो उसने लतीफ़ मियां से अपनी मुलाकात की बात बताई और पूछा, "क्यों वे तू क्या अज़रा को जानता है"
"जानता हूँ, क्यों नहीं जानूंगा। वह मेरे डैड के दोस्त की बेटी है और आजकल चंडीगढ़ में ही है"
"तू उससे कब मिला था"
जसवीर हंसकर बोला, "जब वह छोटी थी"
"क्या वे तू उससे हालफिलहाल में अज़रा से नहीं मिला"
"नहीं", कहकर जसवीर चुप हो गया और कुछ देर बाद बोला, "मेरी मॉम ने उसकी फोटो मेरे पास भेजी थी एलबम में होगी"
"दिखा न कैसी लगती है"
"क्यों तुझे क्या करना है"
"पहले अज़रा की फ़ोटो दिखा तब बताऊंगा कि मुझे क्या करना है"
"दिखाता हूँ भाई एक मिनट", कहकर जसवीर ने एलबम निकाला और अज़रा के साथ साथ उसके घर वालों की फ़ोटो भी दिखाई। फोटो देखते ही इक़बाल के चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी की लहर दौड़ गई। यह देख जसवीर उससे पूछ बैठा, "क्या हुआ मियां ठीक से तो हो न"
"ग़ज़ब, "
"क्यों दिल आ गया क्या", जसवीर ने इक़बाल से पूछा।
".....कुछ न पूछ मस्त। बहुत मस्त फ़ोटो है"
जसवीर भी बोल पड़ा, "एक पक्की कश्मीरी लड़की की तरह"
"अरे वह कश्मीरी है तो कश्मीरी तो लगेगी ही न"
इसके बाद दोनों ही दोस्त अपने कमांडेंट से मिलने चले गए। इक़बाल को आज दिनभर की रिपोर्ट जो देनी थी और जसवीर को अपनी ड्यूटी के बारे में कुछ बात करनी थी।
एपिसोड 19
होटल का काम निपटा कर लतीफ़ मियां देर रात घर पहुंचे तो अशफ़ाक़ और हामिदा बेग़म उनका इंतजार कर रहे थे। दरवाज़े से जैसे वह भीतर हुए कि बेग़म ने पूछ लिया, "आज बहुत देर हो गई मियां ख़ैरियत तो है"
"हां सब ठीक है", कहकर लतीफ़ मियां ने सिक्योरिटी फ़ोर्स की हालत की चेकिंग वाली बात बताई तो पहले तो बेग़म घबरा गईं लेकिन जब लतीफ़ मियां ने कहा, "अपने यहां सब ठीकठाक निकला इसलिए चिंता की कोई ज़रूरत नहीं"
इतना बता लेने के बाद उन्होंने फिर सैयद इक़बाल हुसैन की बात बताई और यह भी बताया कि वह और जसवीर एक साथ के ही पढ़े हुए हैं। उन्होंने साथ साथ देहरादून से कमीशन लिया और आर्मी जॉइन करी। इक़बाल के बारे में जानकर बेग़म के दिल में न जाने क्या आया कि बोल पड़ीं, "इसका मतलब तो ये हुआ मियां कि इक़बाल भी आर्मी में लेफ्टिनेंट होगा"
"होगा क्या बेग़म वो लेफ्टिनेंट ही है"
"मियां एक बात बताओ कि आर्मी की नौकरी कैसी है"
"फर्स्ट क्लास, वहां रहकर इंसान आदमी बन जाता है। हम आम लोगों से कहीं बेहतर। हम लोग तो कुत्ते बिल्ली से भी बद्दतर ज़िंदगी जी रहे हैं। बहरहाल तुम यह बात क्यों पूछ रही हो"
"इसलिए कि क्या हम अज़रा के हाथ एक आर्मी ऑफिसर को दे सकते हैं", बेग़म हामिदा ने कहा।
"बेग़म, पहले मुझे सरदार साहब वाली उस बात को समझ लेने दो कि हम अपने रिश्ते की नया नाम दे दें। उसके बाद ही कोई और बात होगी"
लतीफ़ मियां की बात सुनकर बेग़म को चैन कहाँ लिहाज़ा जब सब लोग खा पीकर सोने की तैयारी कर रहे थे तब बेग़म ने अपनी बात छेड़ी, "मियां एक बात बताओ कि अगर सरदार साहब अज़रा के लिये हां कर देते हैं तो क्या तुम अज़रा को उनके यहां दे दोगे"
"अगर अज़रा और जसवीर एक दूसरे को चाहते होंगे तो मैं ज़रूर दे दूँगा, मेरे लिए धर्म वर्म की बातें बेकार हैं। मुझे अपनी बेटी की खुशियां अज़ीज़ हैं न कि यह कि हम कौन हैं और वो लोग कौन"
बेग़म कुछ सोचकर बोलीं, "चलो माना कि तुम सही हो। कम से कम एक बार सरदार साहब से बात करके तो देख लो"
"कर लूँगा, इतनी जल्दी भी क्या है"
"मैं इसलिए कह रही कि अगर बात वहां नहीं बनती है तो हम क्यों न इक़बाल के यहाँ बातचीत चलायें"
"तुम्हारा दिमाग़ चल गया है क्या। अभी कौन हमारी लौंडिया की उम्र निकली जा रही है", लतीफ़ मियां बोले और बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "हमारी तुम्हारी शादी भी तो बाद में हुई थी जब हम सत्ताईस साल के थे और तुम बाईस साल की..."
"मियां अपनी बात तो करो मत वह तो मेरे अब्बू ने पता नहीं तुममें क्या देखा कि मेरी निक़ाह उन्होंने तुम्हारे साथ करा दिया"
"क्या मतलब। तुमने निक़ाह के रोज़ 'कुबूल है कुबूल है' नहीं कहा था। तुम्हारे लिये कुछ और भी रिश्ते आये थे"
"हमारे यहाँ तो रिश्तों की लाइन लगी थी"
यह बात सुनकर लतीफ़ मियां ने बेग़म को अपने आगोश में लिया और बोले, "हमने क्या रिश्ता सही ढंग से नहीं निभाया"
"नहीं मियां जितना मोहब्बत मुझे तुमने दी उतने की तो हमने उम्मीद भी नहीं की थी",कहकर बेग़म लतीफ़ मियां के सीने पर बेहाल हो कर लुढ़क गईं। लतीफ़ मियां ने भी उस रात अपनी मोहब्बत के इज़हार में कोई कमी नहीं रखी। उसके बाद तो वे दोनों ऐसे सोए कि अगले रोज़ उन्हें अशफ़ाक़ ने उठाते हुए इशारों से कहा, "अम्मी उठो भी न सूरज सिर चढ़ आया है"
लतीफ़ मियां भी यह कहते हुए उठे कि आज सुबह की नमाज़ भी अदा हो गई और हम सोते ही रहे। लतीफ़ मियां की बात सुनकर बेग़म के चेहरे पर भी सुकून भरी मुस्कान छा गई और उठकर अपने घर के कामकाज में लग गईं। अखबार पर निग़ाह पड़ते ही लतीफ़ मियां ने उसे उठाकर खबरों का जायज़ा लेना शुरू कर दिया और कहवे का इंतज़ार करने लगे।
कश्मीर घाटी में अधिकतर जगहों पर हालात नॉर्मल हो चुके थे और लोगों में भी सुकून था कि चलो अब उनके लिए तरक़्क़ी का रास्ता तो खुला। सरकार हर रोज़ कुछ न कुछ नई योजनाओं की घोषणा कर लोगों को रिझाया करती थी।
कुछ दिन गुज़रे होंगे कि एक रात अज़रा का फोन आया उस समय लतीफ़ मियां घर पर ही थे और बेग़म से हँसी मज़ाक चल रहा था। अज़रा की आवाज़ सुनते ही लतीफ़ मियां बोल पड़े, "कैसी है मेरी बेटी। ठीक से तो है। आज तुझे खाने में हॉस्टल में क्या दिया गया था"
"अब्बू आज तो मैंने बिरयानी बनाई और सबको खिलाई भी"
"बिरयानी बनाई और सबको खिलाई। तेरी यह बात मेरी समझ में नहीं आई"
"अरे अब्बू मैं तो अंकल और आंटी के यहां हूँ और यहां सबने बिरयानी को बेहद पसंद किया"
"तू सरदार साहब के घर में है"
"जी अब्बू"
अज़रा की बात सुनकर लतीफ़ मियां ने सरदार साहब से बात करने की इच्छा जताई तो अज़रा ने फोन उन्हें दे दिया। सरदार साहब की आवाज़ सुनकर लतीफ़ मियां बोले, "कैसे हैं भाईजान"
आपस में एक दूसरे के बारे में जान लेने के बाद सरदार साहब बोले, "मियां अब तो लगता है कि सरकार की जादुई पुड़िया चल गई। कश्मीर के लोगों ने अब यह मान लिया है कि सरकार के साथ रहने में ही भलाई है''
"जी, कभी कभी मुझे भी लगता है कि विकास के नाम की पुड़िया धीरे धीरे असर दिखा रही है लेकिन मुझे यह भी लगता है कि अगर सरकार के कामकाज में वही पहले जैसी ढील ढाल रही तो कहीं गोटी उल्टी न पड़ जाए"
"वो कैसे"
"भाईजान सरकार ने वायदे तो बहुत किये हैं लेकिन अभी तक यहां के लोकल ऑफिसरों के पास कोई खोज ख़बर नहीं है"
सरदार साहब लतीफ़ मियां की बात सुनकर कुछ देर चुप रहे लेकिन कुछ देर में अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, "लतीफ़ मियां मैं सोच रहा था कि हम लोग श्रीनगर में एक बढ़िया सा होटल क्यों न खोलें क्योंकि हालात ठीक होते ही वहां टूरिस्टों की भीड़ आएगी"
"यह तो बहुत सुंदर ख़्याल है, आप यहां आइये तो इस बारे में कुछ और बातचीत की जाय"
"चलिये तो मैं मोहर्रम के बाद अपने आने का प्रोग्राम बनाता हूँ"








एपिसोड 20
दोपहर के खाने के लिए लतीफ़ मियां होटल से घर के लिए निकले और रास्ते में उन्हें उनके पुराने दोस्त रहीम मिल गये। जुम्मे का दिन था लिहाज़ा रहीम मियां के कहने पर लतीफ़ मियां उनके साथ रास्ते में पड़ने वाली एक उस मस्ज़िद में नमाज़ पढ़ने के लिए चले गये जहां वो जाना पसंद नहीं किया करते थे। लतीफ़ मियां ने उस मस्जिद के लिए बहुत उल्टी सीधी बातें सुनीं थीं इसलिए वह उससे दूरी बनाकर रखते थे। उस रोज़ किश्तवाड़ की एक मस्जिद के इमाम आये हुए थे। रहीम मियां के कहने पर लतीफ़ उनको सुनने के लिए रुक गए। नमाज़ के बाद किश्तवाड़ से आये हुए इमाम साहब ने अपनी तक़रीर की।
मस्जिद में आज इमाम साहब जो बाहर से आये थे। जब उन्होंने बोलना शुरू किया तो उनकी भाषा से यह लगता था कि वह सरकार ने जो हाल में बदलाव किए हैं उनके सख़्त खिलाफ हैं और उन्होंने लोगों के दिमागों में यह भरने की कोशिश की कि सरकार कश्मीरियों के हकूकात को छीन कर एक ऐसी राजनीति चल रहे हैं जिससे वे पूरे हिंदुस्तान में एलेक्शन्स जीत सकें। कुछ और भी इसी तरह के भड़काऊ बयान भी वह दिए जा रहे थे। लतीफ़ मियां को यह सब ठीक नहीं लगा और उन्होंने रहीम मियां से यह कहकर मुआफी मांगी कि उन्हें कुछ ज़रूरी काम है और वो चलेंगे।
तक़रीर में कुछ बातें ऐसी भी कहीं गईं जिनसे लतीफ़ मियां बिल्कुल इत्तेफाक नहीं रखते थे। इमाम साहब की तक़रीर के बाद मस्ज़िद में इधर उधर की बातें होने लगीं। बात बढ़ते बढ़ते कुछ दिन पहले हुए हमले का ज़िक्र उठा जिसमें आतंकियों ने राजबाग़ की पुलिस चौकी पर हमला किया था। बहस इस हद तक बढ़ी कि लतीफ़ मियां को लगा कि कहीं आपस में ही झगड़ा न हो जाए। जब भीड़ में उनकी निगाह अल्ताफ़ और आफ़ताब पर पड़ी तो उन्हें याद पड़ा कि इन लड़कों को तो उन्होंने पहले भी घर के पास वाली मस्ज़िद में देखा था। ये लड़के उस दिन भी आपस में बात कर रहे थे कि आजकल मस्जिद में हर मजलिस में इंटेलिजेंस के आदमी रहते हैं। इन लड़कों को देखकर लतीफ़ मियां को पता नहीं क्यों लगा कि उनकी हरकतें सही नहीं हैं। फिर उन्होंने यह सोचा करने दो जो चाहे। जैसा करेंगे वैसा भरेंगे।
लतीफ़ मियां मस्ज़िद से निकल कर खाना खाने के लिए घर जा पहुंचे। बेग़म ने खाने की थाली रखते हुए पूछा, "आज बहुत देर हो गई क्या कोई खास वजह"
बेग़म की बात सुनकर लतीफ़ मियां ने मस्ज़िद में जो हुआ उसके बारे में तकसीद से बताया। लतीफ़ मियां की बात सुनकर बेग़म ने कहा, "मियां आपको वहां नहीं जाना चाहिए था। वह मस्जिद तो पहले ही से बहुत बदनाम है और इंटेलिजेंस वालों की उस पर निग़ाह रहती है"
"क्या बताएं हम रहीम मियां की बातों में आकर चले गए लेकिन अब क्या हो सकता है जो होना था वह तो हो ही गया। इबादत की जगह आज हमसे एक गुनाह हो गया"
"जाने भी दो। जो हो गया उसे भूल जाना ही बेहतर"
लतीफ़ मियां ने कुछ देर आराम फ़रमाया और बाद में होटल आ पहुंचे। लतीफ़ मियां जैसे ही होटल पहुंचे वैसे ही उनके पास सरदार साहब का चंडीगढ़ से फोन आ गया। सरदार साहब ने उन्हें अपने और कुलविंदर के श्रीनगर आने का प्रोग्राम बताया और बोले, "मियां अबकी बार जब हम आएंगे तो आपकी इलायची बाग़ वाली ज़मीन देखना चाहेंगे। वहां के कुछ बैंकर्स से भी मीटिंग करना चाहेंगे"
"आइए ज़नाब, आइए। आप आइये तो सही। हम सब नक्की करके रखेंगे और वह भी करेंगे जो आपने हमसे नहीं कहा है"
"वो क्या", सरदार साहब पूछ बैठे।
"कुछ सीक्रेट हमारे लिए भी रहने दीजिए। सब कुछ बता देंगे तो आपको मज़ा कैसे आएगा"
रात को जब लतीफ़ मियां घर पहुंचे और उन्होंने बेग़म को सरदार साहब के आने का प्रोग्राम जब बताया तो बेग़म के चेहरे पर ख़ुशी और कुछ देर बाद चिंता की शिकन आ गईं। बेग़म का यह हाल देखकर लतीफ़ मियां ने पूछा, "क्या हुआ बेग़म क्या हुआ आप कुछ परेशान सी लग रहीं हैं"
"मैं यह सोच रही थी कि आप उन्हें कहाँ रुकायेंगे। अपने होटल में या अपने घर में"
"यह भी कोई सोचने वाली बात है वह चाहे जहाँ आकर रुकें। हम भी तो आखिर उनके घर में ही जाकर रुकते हैं उस लिहाज़ से उन्हें घर पर ही रहना चाहिए वही ठीक रहेगा"
"मियां वह बड़े आदमी हैं दूसरा सिख हैं पता नहीं वह पसंद करेंगे भी या नहीं"
बेग़म के कहने पर लतीफ़ मियां भी पेशोपशेष में पड़ गए और बोले, "हाँ यह सब तो हमने सोचा ही नहीं"
कुछ देर बाद दोनों ने आपस में बात करके यह तय किया कि उनसे ही पूछ लिया जाय कि उनके लिए क्या ठीक रहेगा। यह सोचते ही लतीफ़ मियां ने सरदार साहब को फोन किया तो कुलविंदर ने फोन उठाया।
लतीफ़ मियां ने आदाब कहा और बातचीत में यह तय पाया कि वे लोग उनके होटल की जगह घर पर ही रुकना पसंद करेंगे। कुलविंदर ने बातों बातों में यह चुटकी भी ली कि वह अज़रा को अपनी बेटी दर्जा दे चुकीं हैं तो लतीफ़ मियां ने उनको होटल में रुकाने वाली बात सोची भी क्यों। चलते चलते लतीफ़ मियां ने कुलविंदर से कहा, "आप आइये हमारे पास भी कुछ सरप्राइज़ है उनके लिए"
सरदारनी कुलविंदर के पूछने पर बताया, "हमें आपकी मुलाकात ब्रिगेडियर संधू से जो करानी है"








एपिसोड 21
सरदार साहब जैसे ही घर लौटे तो कुलविंदर ने उन्हें बताया कि लतीफ़ मियां का फोन आया था। सरदार साहब ने इस अंदाज से कुलविंदर की ओर देखा कि वह पूछ रहे हों क्या बात थी। कुलविंदर ने यह भांपते हुए कहा, "पूछ रहे थे कि हम लोगों का श्रीनगर चलने का कब का प्रोग्राम है"
"तुमने क्या कहा"
"मैंने वही कहा जो आपने मुझे बताया था कि मोहर्रम निकल जाने दो उसके बाद"
"ठीक ही बताया"
"वो यह भी पूछ रहे थे कि हम लोग कहाँ रुकना पसंद करेंगे। उनके घर या उनके होटल में"
"फिर तुमने क्या कहा"
"यही कि जब हम अज़रा को अपनी बेटी का दर्ज़ा दे चुके हैं तो लतीफ़ मियां ने हमें होटल में रुकवाने की बात क्यों सोची"
सरदार साहब कुछ देर सोचते रहे कि कुलविंदर ने ठीक किया कि नहीं और बोले, "कुलविंदर पता नहीं वह लोग अपने घर में रोकने में कोई दिक्कत न महसूस करते हों इसलिए होटल वाली बात की हो"
कुलविंदर सरदार साहब की बात पर बिचकती हुई बोली, "मेरी जो समझ आया वह मैंने कहा दिया"
"चल ठीक है, जब चलेंगे तो देखेंगे"
"एक बात और लतीफ़ मियां कह रहे थे कि उनके पास भी हमें देने के लिए एक सरप्राइज है। मेरे पूछने पर बहुत मुश्किल से बताया कि वह हमें ब्रिगेडियर संधू के घर ले जाकर मिलवाने ले चलेंगे"
सरदार साहब कुलविंदर की बात सुनकर चक्कर में आ गए और बोले, "हम लड़के वाले हैं, हम क्यों जाएं ब्रिगेडियर से मिलने। मिलने आना है तो वह हमारे यहां आकर मिलें। हम उनके यहां नही जाने वाले"
"यह तो ठीक बात है"
"तूने कुछ कहा तो नहीं"
"मैंने कुछ भी नहीं कहा"
"चल कोई बात नहीं मैं जब बात करूँगा तो ब्रिगेडियर संधू के यहां जाना है या नहीं उसके बारे में बात कर लूँगा"
एक एक कर दिन गुजरने लगे। एक दिन सुबह की बात है जब सरदार साहब सैर के लिए घर के पास वाले पार्क में थे। उनके साथ उनके अज़ीज़ दोस्त माथुर, अय्यर और कुछ और लोग भी थे। सभी बेंच पर बैठकर गपशप कर रहे थे। जब सीनियर सिटीजन्स मिलें और देश की राजनीति पर कोई बात न हो यह तो हो ही नहीं सकता। ......और बात राजनीति पर हो और जम्मू कश्मीर की बात  न हो यह तो मुमकिन ही नही।
सभी दोस्तों के बीच बातचीत हो रही थी तो एक ने अपनी बात रखते हुए कहा, "यारो, कश्मीर पर तो सरकार की गुड्डी चल गई"
दूसरे ने पूछा, "वो कैसे"
पहले वाले दोस्त ने डिटेल्स में बताते हुए कहा कि कश्मीर के हालात तो बिल्कुल नॉर्मल हो गए हैं, बाज़ार खुल गए हैं, स्कूल कॉलेज चल रहे हैं, सिक्युरिटी फोर्सेज़ भी अब उतने प्रेशर में नही हैं, अपनी फ़ौज की ओर से अभी तक एक भी गोली नहीं चली, पत्थर बाज़ भी अब पत्थरबाज़ी नहीं कर रहे हैं। इस पर जब चर्चा होने लगी तो कई लोगों ने अपनी अपनी बात रखी। सरदार साहब ने भी अपनी बात रखते हुए कहा, "यारो सबकी जड़ तो ये अलगाववादी हैं। देख लेना जिस दिन सरकार इनको छोड़ेगी बवाल फिर से चालू हो जाएगा"
अय्यर का कहना था, "इन अलगावादियों को तो अंडमान निकोबार में ले जाकर काले पानी की सज़ा देकर जेल में डाल देना चाहिए"
माथुर साहब जो उम्र में सबसे बड़े थे और जिनकी बातों को सभी लोग बहुत ध्यान से सुनते थे बोले, "मित्रों, यह सब तो सही है लेकिन मुझे एक बात जो खल रही है वो है कि सरकार ने नेताओं को जेल में बंद जो किया हुआ है जिस दिन वो बाहर आएंगे उसके बाद शांति व्यवस्था बनी रहे तब ही यह माना जायेगा कि सरकार जो चाहती थी उसमें सफल हुई"
इस ग्रुप में एक बुजुर्ग सज्जन ऐसे भी थे आजकल सत्ता के सुख भोग रही पार्टी के बेहद खिलाफ थे वह माथुर साहब की बात सुनकर आग बबूला होते हुए बोल पड़े, "दोस्तों मेरी भी सुनो। हो सकता है कि मैं गलत हूँ और आप सब सही पर आप 2014 के बाद हुए हर एलेक्शन्स का एनालिसिस करो तो देखोगे कि जिस पार्टी ने अपने इलेक्शन कि कैम्पेन में भ्र्ष्टाचार का मुद्दा उठाया वह जीता है। 2019 के पहले हुए चार राज्यों के एलेक्शन्स में जिस दल ने जनता के दिल में यह कह कर जगह बनाई कि केंद्र की सरकार खुले आम बेईमानी करने में लगी हुई है वही पार्टी चुनाव में जीती। 2019 के चुनाव में भी भ्रष्टाचार का मुद्दा अहम बना रहा। दरअसल हम भारतीय बहुत ही जल्दी भावनाओं के वशीभूत होकर वोट दे देते हैं और अबकी बार भी देखिएगा तो पता चलेगा कि अबकी बार भो जम्मू कश्मीर के मसले में भी मुख्य मुद्दा भ्रष्टाचार का बनाया गया। हक़ीक़त क्या है वह तो जनता जाने। जनता ही जवाब देगी, आप मेरा कहना मानिए और देखिए कि कश्मीर में अबकी बार क्या बवाल होता है। अभी जो शांति देखने को मिल रही है वह छणिक और ग़फ़लत पैदा करने वाली है''
सरदार साहब ने माथुर साहब की बात को तरजीह देते हुए कहा, "मुझे न जाने क्यों लग रहा है कि जो बात माथुर साहब कह रहे हैं वह बहुत अहम बात है लेकिन मेरे को एक चीज बतानी है कि सरकार जो कह रही है कि नेता लोग पैसा खा जाते थे और बेईमानी करते थे उस पर वहाँ के लोगों को अभी भी विश्वास नहीं आ रहा है"
एक सज्जन जो सरकार के प्रबल समर्थक थे बोल पड़े, "पिछले पंचायत चुनाव के बाद वहाँ के सरपंचों की पावर बहुत बढ़ गई है और पिछले कुछ महीनों में वहाँ बहुत अच्छा काम हुआ है। अगर सरकार इस बात को कश्मीरियों के दिमाग में बिठाने में सफल हो गई तो मुझे नहीं लगता कि भविष्य में कोई प्रॉब्लम होने वाली है। विकास के सहारे ही कश्मीर का भला होगा"
दूसरे सज्जन जो सरकार विरोधी कैम्प के थे यह सुनकर बोल पड़े, "विकास की बात आप ऐसे कह रहे हैं जैसे कि 2014 के बाद हर जगह विकास की गंगा बह रही है, देश में अभी भी ग़रीबी है जब तक उन लोगों को ग़रीबी रेखा से ऊपर नहीं लाया जाता यह विकास का नारा भ्रामक और दिल बहलाने वाला ही है"
जब लोगों ने देखा कि बहस बहुत गरमागरम हो गई है तो उसे शांत करने के लिए सरदार साहब ने अपने विचार रखते हुए कहा, "सरकार अगर कश्मीरियों के दिल मे जगह बना लेती है तो मुझे लगता है कि वह दिन दूर नहीं जबकि सभी पंडित परिवार वहां जाना चाहें तो आराम से जाकर रह सकेंगे.....और यह भी कि अपने यहां का विकास देखकर पीओके वाले हिस्से के लोग भी इंडिया के साथ आना चाहेंगे"
अय्यर ने ताली बजाते हुए कहा, "यही होगा देख लेना अब पाकिस्तान बजाता रहे अपनी तुनतुनी कोई उसकी नहीं सुनने वाला। बहुत जल्द आप लोग देखेंगे कि पीओके भारत का हिस्सा बनकर रहेगा"
अय्यर की बात पर सभी लोगो ने जोरदार तालियां बजाईं और फिर अपने अपने घर की ओर चल पड़े। रास्ते में माथुर साहब ने सरदार साहब से पूछा, "हर भजन यार तुम तो श्रीनगर जाने वाले थे क्या हुआ"
"जाऊँगा, बस मोहर्रम सही सलामत निकल जाए उसके बाद", सरदार साहब ने कहा। वे दोनों भी अपने घर के पास आकर अपने अपने घरों में चले गए।




एपिसोड 22
एक दिन जब लतीफ़ मियां अपने होटल में थे तो मिलिट्री इंटेलिजेंस ब्यूरो की कई गाड़िया उनके होटल के सामने रुकीं, दो आदमी सादा कपड़ों में उनके पास आये और बोले, "क्या हम लोग अकेले में कुछ गुफ्तगू कर सकते हैं"
लतीफ़ मियां ने उनका आइडेंटिटी कार्ड देखा और उनको साथ ले वे होटल के एक कमरे में ले गए और दरवाज़ा अंदर से बोल्ट करते हुए बोले, "बताइए कि आपकी मैं क्या ख़िदमत कर सकता हूँ"
"कोई ख़ास नहीं, बस हम यह जानना चाहते हैं कि आप क्या जुम्मे के रोज़ रहीम खान के साथ किसी मस्जिद में नमाज के लिए गए थे"
लतीफ़ मियां का माथा ठनका और उस दिन की बात याद कर के बताया, "जी जनाब मैं उस दिन घर खाना खाने के लिये निकला था कि रास्ते में रहीम खान मिल गए और वो मुझे मस्जिद में ले गए थे"
"वहां क्या क्या हुआ आपको याद है", इंटेलिजेंस के दो लोगों में से एक आदमी ने पूछा।
"जी जनाब मुझे उस दिन का एक एक वाकया याद है...", कहकर लतीफ़ मियां ने एक के बाद एक सिलसिलेवार पूरी बातें उन्हें बताई।
लतीफ़ मियां की बात सुनकर दोनों ने आपस में बातचीत की और फिर यह कह कर लतीफ़ मियां से यह कहकर विदा ली, "हो सकता है कि हमें आपकी ज़रूरत पड़े, हम आपसे दोबारा मिलेंगे"
"जो आप लोगों का हुक्म मैं हमेशा आपकी ख़िदमत के लिए तैयार रहूँगा"
लतीफ़ मियां उन्हें छोड़ने के लिये होटल के गेट तक आये और मन ही मन सोचने लगे कि कहां बैठे ठाले एक मुसीबत अपने सिर ले ली। अच्छा होता कि मैं रहीम मियां के साथ उस मस्ज़िद में ही न जाता।
रात को लौट कर लतीफ़ मियां ने पूरा किस्सा बेग़म हामिदा को सुनाया तो वह भी सकते में आ गईं और बोल पड़ीं, "मियां ये कौन सी मुसीबत अपने लोगों के गले आकर पड़ गई"
लतीफ़ मियां ने बेग़म को किसी तरह समझाबुझाकर शांत किया। उन्होंने खाना पीना किया और बिस्तर पर लेट गए। दोनों की आंखों से नींद गायब थी और मन में एक उलझन। अगले दिन अज़रा का जब फोन आया तो बेग़म ने उसे पूरी बात बताई। अम्मी की बात सुनकर वह भी सकते में आ गई। उसे लगा कि अब्बू जैसे नेकदिल और खुदा से खौफ़ खाने वाले इंसान हैं पर क्या गुज़र रही होगी। दिल पक्का करके अज़रा ने अब्बू से बात की और किसी तरह इस मुआमले को ले दे कर निपटाने की सलाह दी।
अगले दिन लतीफ़ मियां और बेग़म ने साथ साथ सुबह की नमाज़ अदा की और खुदा से यह दुआ मांगी कि उन्हें इस उलझन से किसी तरह निकालें। बेग़म ने नमाज़ के बाद लतीफ़ मियां से कहा, "तुम्हें घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुमने कोई गलत काम नहीं किया है इसलिए बेसबब खौफ़ में मत रहो। जाओ रोज़ की तरह अपने काम करो"
बेग़म की बात से लतीफ़ मियां के दिल को तसल्ली मिली और चाय की दरख़्वास्त करते हुए उन्होंने कहा, "बेग़म देखना अगर अखबार आ गया हो तो बाहर से उसे भी ले आना"
लतीफ़ मियां ने आराम से चाय पी और कश्मीर टाइम्स अखबार की एक एक लाइन पढ़ डाली। अखबार में ख़बर छपी थी कि सरकार को गुप्त सूचना प्राप्त हुई है कि मोहर्रम का दौरान पाकिस्तान के कुछ दहसतपसंद लोग कुछ कश्मीरियों से मिल कर घाटी में कोई बड़ा कांड करने वाले हैं। शिया और सुन्नियों के बीच का खेल बताकर धूमधड़ाका करने की उनकी नीयत है। लतीफ़ मियां ने जानबूझकर अपना होटल मोहर्रम के तीन दिन पहले ही से बंद कर दिया और घर में खाने पीने का सामान इकट्ठा कर लिया जिससे कोई दिक्कत न हो।
मोहर्रम के ठीक चौबीस घंटे पहले प्रशासन ने जम्मू कश्मीर में कर्फ्यू का एलान कर दिया और चौकसी बढ़ा दी। किसी को भी इज़ाज़त नहीं थी कि वह किसी प्रकार की हरकत करे या ताज़िया वग़ैरह को लेकर कोई फ़साद छेड़े।
अल्लाह अल्लाह कहते किसी तरह मोहर्रम का दिन निकला। तीन दिन बाद जब हालात कुछ नार्मल हुए तब जाकर टेलीफोन और मोबाइल चालू किये गए। एक दिन लतीफ़ मियां ने सरदार साहब से बात कर उनके श्रीनगर आने का प्रोग्राम जन नक्की किया तो सरदार साहब ने पूछा, "मैं सोच रहा हूँ कि दो तीन दिन की ही तो बात है मैं अपने साथ अज़रा को भी लेता आऊँ"
"जी ठीक रहेगा", कहकर लतीफ़ मियां ने अज़रा के श्रीनगर आने का रास्ता साफ किया।
लतीफ़ मियां से सरदार साहब की बात हो गई तो देर रात कुलविंदर ने जसवीर से बात की, "जसवीर पुत्तर तुझे यह बताना था कि तेरे डैड, मैं और अज़रा कल श्रीनगर फ्लाइट से आ रहे हैं तुम हम लोगों को लेने के लिए एयरपोर्ट आ सकता है"
"ठीक है मॉम मैं एयरपोर्ट पर आपको मिलूँगा"











एपिसोड 23
तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से सरदार साहब और कुलविंदर अज़रा को साथ ले हवाई जहाज़ से श्रीनगर पहुंचे। उन्हें लेने के लिए खुद लतीफ़ मियां एयरपोर्ट पर हाज़िर थे। जब सरदार साहब एयरपोर्ट के एराइवल गेट से बाहर निकल कर आये तो अज़रा का दिल बहुत तेज रफ्तार से धड़क रहा था क्योंकि उसकी जसवीर से पहली मुलाकात जो होने वाली थी। अज़रा ने अपने दिल में जसवीर को लेकर न जाने कितने हसीन ख़्वाब संजो रखे थे।
जैसे ही लतीफ़ मियां ने सरदार साहब को देखा तो उन्होंने आगे बढ़ कर गले मिलकर उनका खैरमकदम किया। कुलविंदर को देखकर बोले, "भाभीजान आदाब, आइये श्रीनगर में आपका बहुत बहुत वेलकम"
सरदारनी कुलविंदर से मिल लेने के बाद लतीफ़ मियां अपनी बेटी अज़रा की ओर बढ़े और उसकी पेशानी प्यार से चूमी और कुछ देर उसे निहारते रहे। अज़रा की आंखे बराबर हिरणी की तरह अपने चारों ओर जसवीर को देखने के लिए बेचैन थीं। कुलविंदर खुद जसवीर को तलाश रहीं थीं।
जैसे ही लतीफ़ मियां की कार पोर्टिको में आई उन्होंने झट से सबका सामान डिक्की में रखा और सभी से बैठने की गुज़ारिश की। कुलविंदर ने तब बताया, "वह जसवीर का इंतज़ार कर रहीं हैं"
सरदार साहब कुलविंदर की इस बात पर आश्चर्यचकित थे लेकिन कुलविंदर के यह कहने पर नार्मल दिखे कि देर रात उनकी बात जसवीर से हुई थी और उसने एयरपोर्ट पर आने के लिए कहा था। कुलविंदर की बात सुनकर सरदार साहब ने कहा, "चलो कुछ देर रुक लेते हैं क्या पता वह आता ही हो"
जब वे लोग जसवीर का इंतज़ार कर रहे थे तभी सरदार साहब के मोबाइल पर मैसेज आया कि जसवीर एयरपोर्ट उनसे मिलने के लिए नहीं आ पायेगा। मैसेज देख लेने के बाद सरदार साहब ने लतीफ़ मियां से कहा, "मियां चलो, जसवीर नहीं आएगा उसका मैसेज आ गया है"
"कोई ख़ास बात"
"कुछ और नहीं लिखा है"
"हो सकता है उसे कहीं चेकिंग के लिए जाना पड़ गया हो", लतीफ़ मियां बोले और गाड़ी घर की ओर ले बढ़ चले।
रास्ते में अज़रा सूनी सूनी नज़रों से बाहर के खूबसूरत नज़ारे देखती जा रही थी और सोच रही थी कि कहीं कुछ तो गड़बड़ है जब जसवीर से मिलने की बात होती है बस उस दिन कुछ न कुछ हो जाता है। यही सोचते सोचते लतीफ़ मियां सबको साथ ले राजबाग़ में अपने घर तक आ पहुँचे।
बड़े अदब से हामिदा बेग़म ने सरदार साहब और सरदारनी कुलविंदर का इस्तकबाल किया और सभी से अंदर आने की गुजारिश की। अज़रा अशफ़ाक़ को देख उससे जा लिपटी और उसे भरपूर प्यार किया। दिन में हँसी खुशी के माहौल में खाना पीना हुआ। शाम के वक़्त लतीफ़ मियां सरदार साहब को अपने साथ अपनी इलायची बाग़ वाली ज़मीन दिखाने ले गए। ज़मीन देखने के बाद सरदार साहब बोले, "क्या बात है मियां, फाइव स्टार होटल के लिए बहुत ही मुफ़ीद जगह है। लालचौक से कुल एक किलोमीटर दूर, झेलम दरिया का किनारा, दरिया पार खूबसूरत हरियाली और पहाड़ियां और क्या चाहिए एक टूरिस्ट को"
"जगह आपको लगता पसंद आई"
"पसंद ही नहीं आई बल्कि बहुत पसंद आई। अब तो हमारा होटल बनके ही रहेगा"
"आप बड़े भाई हैं, आपको जो ठीक लगे वह करिये"
सरदार साहब बेहद उत्साहित थे इसलिए बोल पड़े, "मियां मैं तो चाहता हूँ कल से ही हमारा काम शुरू हो जाये। कश्मीर में बाहरी पैसे वाले लोगों की आमद हो उससे पहले हमारा काम हो जाये"
सरदार साहब को इतना ख़ुश देख लतीफ़ मियां बहुत ख़ुश हुए इसी बीच सरदार साहब ने एक नक्शा खोल कर दिखाते हुए बोले, "लतीफ़ मियां हमारे दिमाग़ में अपने होटल का नक्शा भी बन चुका है"
सरदार साहब की बात को आगे बढ़ाने के इरादे से लतीफ़ मियां ने नक्शा देखने के बाद कहा, "बहुत ही दिलकश और श्रीनगर के माहौल में बहुत फबता हुआ, अपना काम तो अब होना ही है। चलिये मैं आपकी मुलाकात यहां के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से कराने ले चलता हूँ, वही सरकार की ओर से नए नए प्रोजेक्ट्स की मुहिम चला रहे हैं"
साइट देखने के बाद सरदार साहब और लतीफ़ मियां डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के घर गए और वहीं उनसे होटल वाले प्रोजेक्ट के मुतल्लिक गुफ़्तगू की। बाकी सब तो ठीक रहा बस चलते चलते डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने जब यह कहा, "हर भजन सिंह जी हम आपके हर कदम पर साथ हैं, हम आपको प्रोजेक्ट कॉस्ट की नब्बे फ़ीसद बैंक से बहुत ही कम ब्याज़ पर दिलवा भी देंगे लेकिन एक बात कहनी है क्योंकि आप लतीफ़ मियां के साथ आए हैं और वह हमारे बहुत अज़ीज़ हैं कि आप प्रोजेक्ट और लोन वगैरह सैंक्शन ज़रूर करा लें पर काम शुरू करियेगा जब कश्मीर में पूरा अमन चैन हो। अभी हालात नार्मल होते होते वक़्त लगेगा"
सरदार साहब सोच में पड़ गए फिर सोचने पर उनको लगा कि डिस्ट्रक्ट मजिस्ट्रेट ने बात बहुत पते की कही है। रास्ते में लौटते वक़्त लतीफ़ मियां के साथ श्रीनगर के हालात को लेकर दोनों में एक लंबी बातचीत हुई जिसमें लतीफ़ मियां ने सरदार साहब को अपने नज़रिए से वाकिफ़ कराया।








एपिसोड 24
श्रीनगर के बाद लतीफ़ मियां सरदार साहब को अपने साथ पहलगाम भी ले गए यह दिखाने के लिए कि अगर वहाँ उन्हें कोई होटल के मुफ़ीद जगह दिखे तो वह यहीं कुछ ज़मीन तलाश करें। क्योंकि लतीफ़ मियां का अपना नज़रिया था कि पहलगाम श्रीनगर से बेहतर टूरिस्ट डेस्टिनेशन है। पहलगाम की खूबसूरती देख किसी का भी दिल मचल जाए कि होटल तो यहीं होना चाहिए लेकिन सरदार साहब ठहरे पक्के छटे छटाए बिजनेसमैन। सारे पहलू सोच कर उनकी राय यही थी कि अपना होटल बनेगा तो अब इलायची बाग़ में झेलम के किनारे नहीं तो नहीं बनेगा। सरदार साहब की बात सुनकर लतीफ़ मियां बोले, "जब आपका इरादा इतना पक्का है तो यह काम होगा ज़रूर यह मेरा आपसे वायदा है"
"बिल्कुल जी अब तो वहीं बनेगा"
सूरज पश्चिम दिशा में जाकर पहाड़ियों के पीछे जाकर छुपता उससे पहले ही सरदार साहब और लतीफ़ मियां श्रीनगर वापस लौट आए। सब लोगों ने साथ साथ अज़रा का बनाया हुआ कहवा पिया। सरदार साहब अज़रा की तारीफ़ करते नहीं थक रहे थे। सरदारनी कुलविंदर को लगा कि वे लोग जब बात करते हैं तो बेग़म हामिदा को उनके वजूद का एहसास नहीं कराते। इसे नज़र में रखते हुए कुलविंदर ने कहा, "अज़रा का तो कहना ही क्या जब वह चंडीगढ़ में रहती है तो पंजाबी चटकदार मसाले वाली चाय बनाती है और जब वह यहां आ जाती है तो कश्मीरी कहवा"
बात जब अज़रा की हो रही हो और सरदार साहब कुछ न बोलें यह तो हो ही नहीं सकता, "अज़रा के हाथों में न जाने कौनसी शिफ़्त है कि वह जिस चीज में हाथ लगाती है वह बढ़िया हो जाती है"
"अंकल जी रहने भी दीजिये। मुझे अम्मी ने जो सिखाया यह सब उसका असर है"
"बेग़म हामिदा का क्या कहना मैं तो उनकी मुरीद हुई", सरदारनी कुलविंदर ने हामिदा बेग़म के दोनों हाथों को अपने हाथों में लेकिन प्यार से चूमा।
अपनी बेग़म की जब कोई इतनी तारीफ करे और लतीफ़ मियां चुप रहें यह तो हो ही नहीं सकता इसलिए बीच में पड़ते हुए बोल पड़े, "आपने बेग़म के हाथों की बनी हुई इज़्टू डिश नहीं चखी है, कबाब का तो कहना ही क्या", फिर बेग़म की ओर देखते हुए लतीफ़ मियां बोले, "बेग़म क्या ख़्याल है तो आज कुछ ख़ास हो जाये"
हामिदा बेग़म मुस्कराते हुए बोलीं, "हो जाए"
सबकी बातें सुनकर अज़रा ने कहा, "अम्मी आपके लिए लज़ीज़ आइटम बनाएंगी तो कश्मीरी पुलाव मैं बनाऊंगी"
"जब अब सभी लोग कुछ न कुछ बना रहे हैं तो सलाद मैं काट दूँगी", कुलविंदर बोल पड़ीं, "....कुछ होर बनाना होवे तो खीरनी भी बना देणी है"
कुलविंदर कर बात पर सरदार साहब ने जोरदार ठहाका लगाया और बोले, "जसवीर की मॉम भी खाना बना लेती है"
जब सरदार साहब और कुलविंदर आराम से बैठे हुए थे और अज़रा भी उनके साथ थी तब सरदार साहब ने कुलविंदर से पूछा, "क्या तेरी बात जसवीर से हुई"
"जी नहीं, रुकिए मैं अभी ट्राई करतीं हूँ", कहकर कुलविंदर ने जसवीर को फोन लगाया। क़िस्मत की बात जसवीर तब ऑफिसर्स मेस में था उसे ढूंढ कर ऑपरेटर ने कॉल उसको ट्रांसफर किया, "जसवीरे की गल है तुस्सी मिलनी वास्ते नहीं आये"
अपनी मॉम से जब जसवीर बात कर रहा था तब अज़रा उनके मुँह की ओर देखे जा रही थी। बहुत देर माँ बेटे में बातें होतीं रहीं और जब कुलविंदर ने पूछा, "तू कब आएगा"
"कल तो नहीं मॉम पर परसों मैं जरूर जरूर आऊँगा"
"ठीक है। ले अपने डैड से बात करले", कहकर कुलविंदर ने फोन सरदार साहब को दे दिया। सरदार साहब ने भी देर तक बात की और अपनी बात ख़त्म होने के पहले ही उन्होंने फोन अज़रा की ओर बढ़ाते हुए कहा, "ले बहुत दिनों से कोई तुझसे बात करने को बेक़रार है"
जसवीर ने पूछा, "कौन"
"जी मैं, मैं अज़रा", अज़रा ने शर्माते हुए जवाब दिया।
"अज़रा, बहुत ख़ुशी हुई आपसे बात करके"
"मुझे भी, बताइए कब आ रहे हैं, एक अरसे से इंतज़ार है हमें भी एक मुलाकात का"
"आ रहा हूँ न बस परसों ही आपसे आकर मिलूँगा"
"......इंतज़ार रहेगा", बस इतना कहकर अज़रा ने कुलविंदर से पूछा, "आंटी लीजिये वह शायद आपसे बात करना चाह रहे हैं"
कुलविंदर ने फोन लेकर कुछ देर जसवीर से और बात की, "अच्छा पुत्तर बाय एंड गुड नाईट"










एपिसोड 25
लतीफ़ मियां के घर खाना पीना जब चल ही रहा था तभी टीवी पर ख़बर आई कि पाकिस्तान की तरफ से मोहर्रम के पहले आईएसआई समर्थित जैश के सौ से अधिक आतंकी भारत की सीमा में घुसने में सफल हो चुके हैं। उड़ती उड़ती खबरें हैं कि वे लोग कश्मीर के साथ साथ उत्तर भारत के जाने माने शहरों में महत्वपूर्ण सरकारी, गैरसरकारी तथा पूजा स्थलों पर आतंकी हमला कर सकते हैं।
लतीफ़ मियां तो यह ख़बर सुनकर कुछ परेशान से दिखे लेकिन सरदार साहब अपने मस्ती भरे अंदाज़ में बोले, "कुछ नहीं कर पाएंगे। अपने मुल्क की इंटेलिजेंस बहुत तगड़ी है उन्हें पहले ही धर दबोचेगी"
सरदार साहब की बात पर लतीफ़ मियां ने कहा, "ऐसा ही हो नहीं तो बेमतलब ही बहुत खून खराबा होगा"
"तुस्सी नूँ चिंता करण दी कोई लोड नइयों है", बोलते हुए सरदार साहब ने बेग़म हामिदा से गुजारिश की कि पुलाव वाली प्लेट उनकी ओर बढ़ाएं। इस बात पर हामिदा बेग़म भी बोल पड़ीं, "खाना कैसे खाया जाता है यह तो कोई सरदार साहब से सीखे"
"देखो जी खाना खाते वक़्त क्या शर्माना। हम कोई लाटसाहब के यहां बैठकर तो खाना खा नहीं रहे जो तहज़ीब और अदब के सलीकों में उलझे रहें"
लतीफ़ मियां ने कश्मीरी रबायतों के बारे में बताते हुए कहा, "कश्मीरी लोग बहुत बढ़िया मेहमाननवाज़ होते हैं और उन्हें खाना खाने के साथ साथ अच्छी अच्छी बातें करना बहुत पसंद है"
"वह तो मैं अपने पिछले दौरे में ही देख चुका हूँ, अब तो उनका यह दूसरा, तीसरा पता नहीं कौन सा दौरा है",सरदार साहब ने लतीफ़ मियां की बात कहते हुए यह बताने की कोशिश की कि वह कई मर्तबा श्रीनगर आ चुके हैं।
जब लोगों ने खीरनी का स्वाद ले लिया तो उसके बाद सभी लेडीज ने मिलकर डाइनिंग हॉल की सफाई करने की शुरुआत करनी चाही तो बेग़म हामिदा बोल पड़ीं, "आप लोग ड्राईंग हॉल में जाकर गप शप करिये हम आपके लिए कहवा वहीं भिजवा देते हैं"
"हाँ यह ठीक रहेगा, आइये सरदार साहब हम लोग उधर ही चले चलते हैं", लतीफ़ मियां अपने साथ सरदार साहब को लेकर ड्राइंग हॉल में आ गए।
बैठते हुए सरदार साहब ने लतीफ़ मियां से सवाल किया कि उनके हिसाब से कश्मीरियों की क्या सोच है उस नया कानून के बाबत जिसे दिल्ली की सरकार लेकर आई है। लतीफ़ मियां ने सरदार साहब की बात सुनकर पहले तो नानुकुर की लेकिन सरदार साहब के जोर देने पर अपने दिल की बात कहते हुए कहा, "वैसे तो मैं इस मसले पर किसी से भी गुफ़्तगू करना पसंद नहीं करता हूँ लेकिन यह मसला आपने उठाया तो आपको कुछ कड़वी बातें सुननी पड़ेंगी। 370 और 35A पर यहां के लोग भीतर ही भीतर बहुत ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। उनको लगता है कि उनके ख़यालात दिल्ली तक पहुंचाने वाला अब कोई दिखाई ही नहीं देता। उनके सब नेता तो नज़रबंद किये हुए हैं। अच्छे बुरे जैसे भी थे, कम से कम वो कश्मीरियों के बीच से तो थे। अब हालात यहां तक जा पहुंचे हैं कि कश्मीरी नेता जो दिल्ली में हैं उन्हें भी यहां अपने लोगों से मिलने नहीं दिया जा रहा है। आज ही सुना है कि पूर्व मुख्यमंत्री को पब्लिक सेफ्टी एक्ट में नज़रबंद कर दिया गया है जिसके मातहत दिल्ली की सरकार और गवर्नर साहब के लोग उन्हें दो साल तक जेल भी भेज सकते हैं"
सरदार साहब पूछ बैठे, "यह कब की ख़बर है"
"आज की। सवाल यह नहीं कि किसने किसको कब यहां या वहां गिरफ्तार किया। सवाल तो यह है जब आपको लगता है कि आपने जो कुछ किया वह कानूनी था और जनता के भले के लिए था तो अभी तक श्रीनगर में हालात ठीक क्यों नहीं हो पा रहे हैं। सरदार साहब दिल्ली की सरकार कश्मीरियों के कंधे पर बंदूक रखकर हिंदुस्तान के दूसरे हिस्सों में चुनाव जीतना चाहती है। उसे कश्मीर के लोगों से कोई लेना देना नही है। दिल्ली के हुक्मरानों को एक बात याद रखनी चाहिए कि जब तक वह एक आम कश्मीरी का दिल नहीं जीतेंगे तब तक जम्मू कश्मीर नहीं जीतेंगे। यहां आए दिन कुछ न कुछ होता ही रहेगा"
सरदार साहब क्या बोलते वह तो एक आहत कश्मीरी के अंतर्मन का दर्द सुन रहे थे। बातों बातों में लतीफ़ मियां यह कहना नहीं भूले, "सरदार साहब आपने तो खुद डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट साहब के मुँह से सुना कि अभी कुछ दिन रुक जाइये जब सब कुछ नार्मल हो जाये तभी आप अपने होटल के प्रोजेक्ट को हाथ लगाइए"
"हां, यह तो मैं खुद सुनकर आया हूँ"
लतीफ़ मियां ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा, ".... और मुझे लगता है कि इसी तरह की सलाह हर उस आदमी को दी जाती रही होगी जो यहां कुछ नया काम करने की कोशिश में होगा", सरदार साहब ने कहा, "जब नए नए काम शुरू ही न होंगे तो विकास कैसे होगा"
"छोड़िये यह राजकाज चलता रहेगा आप अब आराम फरमाइए"
रात बहुत हो चुकी थी लिहाजा सरदार साहब के कहने पर सभी लोग आराम करने के लिए अपने अपने बिस्तर की ओर चले गए। कुछ ही देर हुई होगी कि सड़क पर से गाड़ियों के इधर उधर दौड़ने की चहल पहल की आवाज़ें आने लगीं लतीफ़ मियां को लगा फिर कहीं कुछ कांड हो गया।
जब नमाज़ का वक़्त हुआ लतीफ़ मियां उठे। बेगम को भी उठाकर नमाज़ अदा करके लौटे ही होंगे कि किसी ने बाहर आकर कॉल बेल दबाई। जैसे ही दरवाज़ा खोला तो देखा कई पुलिस वाले थे। उनके साथ थे सिटी मजिस्ट्रेट। जिन्होंने आते ही कहा, "लतीफ़ खान साहब आपके यहाँ कुछ मेहमान चंडीगढ़ से आये हुए हैं"
"जी, हमारे अज़ीज़ दोस्त सरदार हर भजन सिंह अपनी बेग़म के साथ आये हुए हैं"
"आप उन्हें जल्द से जल्द चंडीगढ़ वापस रवाना कर दें किसी बाहरी इंसान को यहां रहने देने की परमीशन नहीं है", मजिस्ट्रेट जाते जाते थानेदार को हिदायत देते गए कि खान साहब को अगर कोई टैक्सी वग़ैरह चाहिए तो वह उनके लिए इंतज़ाम कर दें।
बड़े अनमने मन से सरदार साहब और कुलविंदर चंडीगढ़ वापस लौटने के लिए टैक्सी में बैठे और उन्होंने चलते चलते अज़रा से कहा, "पुत्तर पढ़ना ज़रूर। पढ़ने ही से इंसान, इंसान बनता है। जब हालात ठीक हो जाएं तो चंडीगढ़ आकर हम लोगों से मिलना ज़रूर"
एपिसोड 26
बड़े चाव और उत्साह से सरदार साहब श्रीनगर गए थे लेकिन इस तरह लौटने में उन्हें कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। आज उन्हें फिर उसी तरह लग रहा था जैसे कि ख़्वाब में उन्होंने कठुआ बॉर्डर पर इंस्पेक्टर दलबीर सिंह, जो वहां ड्यूटी पर था उनसे यह कह दिया था कि कश्मीर में आजकल किसी बाहरी आदमी के जाने की इजाज़त नहीं है खासतौर पर सिख लोगों की। क्योंकि क्या पता कोई ख़ालसा टेर्रोरसिस्ट ग्रुप का मेंबर हो। श्रीनगर से वापस लौटते हुए वह बहुत मायूस थे। उन्हें इस कदर देखकर कुलविंदर ने कहा, "इतना भी दिल पर न लो कि तबियत ही ख़राब हो जाये"
"कुलविंदर हम लोग कितनी ख़ुशी ख़ुशी श्रीनगर गए थे यह सोचकर कि वहाँ लतीफ़ मियां के साथ मिलकर फाइव स्टार होटल खोलेंगे और अपनी दोस्ती को नए आयाम तक लेकर जाएंगे। सब ख़्वाब ख़्वाब ही रह गए"
"सुनो जी मेरा कहना मानो अपने धंधे को यहीं चंडीगढ़ में ही बड़ा करने की सोचो। रिश्ते अपनों के बीच और बिजनेस जहां खूंटा हो वहीं करना चाहिए"
सरदार साहब ने कुलविंदर की बात बड़े ध्यान से सुनी फिर उन्हें भी लगा कि वह दादू की तरह कह तो सही रही है फिर भी जो उनके दिल में आ रहा था उसे कहे बिना वह रह न सके, "कुलविंदर बात तो तेरी सही है। हम लोगों ने कल कितना अच्छा वक़्त लतीफ़ मियां के साथ गुज़ारा", कुछ देर बाद आकाश की ओर देखते हुए बोले, "एक बात तो मैं तुझे बताना ही भूल गया"
"क्या जी, कौन सी बात"
"मैंने रात एक सपना देखा कि हम लोग जसवीर और अज़रा को लेकर हर मंदिर साहेब गए और वहां उन दोनों की शादी कर दी है, लतीफ़ मियां और बेग़म हामिदा भी ख़ुशी ख़ुशी शरीक़ हुए"
"ओए होए इतने अच्छे सपने देखने का मन मेरा भी करता है लेकिन हक़ीक़त में क्या होगा वह तो वाहेगुरू जी को ही पता है"
सरदार साहब के ख़्यालों में कभी श्रीनगर आ रहा था तो कभी लतीफ़ मियां तो हामिदा बेग़म। अज़रा का चेहरा बार बार घूम कर आ जाता था। इसी बीच जसवीर का फोन आया और वह पूछने लगा, "डैड कितने बजे आना ठीक रहेगा"
जसवीर की बात सुनकर एक बार तो सरदार साहब सदके में आ गए कि उसे क्या कहें। जब सरदार साहब चुप रह गए तो कुलविंदर ने उनके हाथ से फोन लेकर जसवीर से बात की और उसे आज सुबह क्या हुआ उसे बताया। जसवीर ने अपनी मॉम की बात सुनकर कहा, "मॉम एक बार मुझसे बात तो करनी थी"
"हम लोगों ने सोचा कि तुझे क्यों परेशान करें", कुलविंदर ने जवाब में कहा, "छड्ड भी अब की करणा है"
"चलो मैं छुट्टी पर आकर जल्दी ही आपसे मिलता हूँ"
"क्या पुत्तर तू चंडीगढ़ आ रहा है"
"बस छुट्टी सैंक्शन करा लूँ तो फिर आता हूँ"
"जल्दी आना पुत्तर तेरे डैड बहुत दुखी हैं"
रास्ते में सरदार साहब और कुलविंदर एक ढाबे पर नाश्ते के लिए रुके। जब तक नाश्ता परोसा जाता समय बिताने के लिए सरदार साहब ने अख़बार उठा लिया। अख़बार की हेड लाइन थी 'गुजरात  के मशहूर मंदिरो में धमाके, कई लोग मारे गए और कई घायल; पुलिस आतंकियों की तलाश में'। ख़बर पढ़ते ही सरदार साहब का माथा ठनका और वो कुलविंदर से बोले, "कुलविंदर ले शुरू हो गया अब नया तमाशा"
"की हो गया"
"जैश के जो आतंकी समंदर के रास्ते गुजरात में मोहर्रम से पहले घुस आए थे उन्होंने कई मंदिरों में धमाके किये। धमाकों में कई मारे और कई घायल हुए"
"लो जी शुरू गया आतंकवाद का एक नया दौर"
"कहीं न कहीं कुछ तो होना ही था। कश्मीर में इतना कुछ हो जाये और पाकिस्तान चुप रहे यह तो हो ही नहीं सकता"
कुछ देर रुककर सरदार साहब अपने चंडीगढ़ के सफ़र पर आगे बढ़ लिए बस उन्हें चिंता थी तो जसवीर की क्योंकि उन्हें पक्का लगता था कि पाकिस्तान कश्मीर में भी कोई न कोई हरक़त ज़रूर करेगा।
चंडीगढ़ पहुंचने के बाद जैसे ही सरदार साहब अपने घर में दाख़िल हुए ही थे कि लतीफ़ मियां का फोन आया और उन्होंने पूछा कि वे लोग चंडीगढ़ पहुंच गए हैं कि नहीं। सरदार साहब ने बताया, "मियां बस अभी अभी पहुंचे हैं"
"रास्ते में कोई तकलीफ़ तो नहीं हुई"
"मियां तकलीफ़ तो इस बात से हुई कि हम लोग अपने मुल्क़ में ही अब अजनबी हो गए"
सरदार साहब की आवाज़ में जो ग़म था उसका एहसास करते हुए मियां लतीफ़ ने कहा, "समझ सकता हूँ कि अपने घर से निकाले जाने पर कैसा लगता है, बुरा तो मुझे भी बहुत लगा था जिस तरह मजिस्ट्रेट ने आपको श्रीनगर से जाने के लिये कह दिया पर हम कर भी क्या सकते थे। सरदार साहब नोट कर लो मुल्क़ में जो अमन चैन था वह अब ख़तरे में है"
"लतीफ़ मियां वह तो दिखाई पड़ने लगा है आपने अख़बार पढ़ा होगा कि जैश के लोगों ने गुजरात के मंदिरों में कई जगह धमाके किये कई घायल हैं और कई लोग मारे गए हैं"
"जो देखा है उसीकी विनाह पर ही तो कह रहा हूँ कि दिन ब दिन हालात अब और ख़राब होंगे"
"छोड़ो मियां जो होना है वह होकर रहेगा हमारे करने के लिए अब कुछ नहीं बचा है"
"सरदार साहब रही सही कसर 'पीओके हमारा है, हम लेकर रहेंगे' का नारा पूरा कर देगा"
सरदार साहब ने अपने मन की बात कही और मियां लतीफ़ ने अपने मन की जिससे दोनों के दिल कुछ हल्के हों। बहुत देर बात करने के बाद उन्होंने एक दूसरे के लिए दुआ मांगते हुए लतीफ़ मियां ने कॉल डिसकनेक्ट की।
जब सरदार साहब से फोन पर बात करके लतीफ़ मियां फ़ारिग हुए तो बेग़म ने उनसे कहा, "बगल वाली बता रहीं थी कि मोहल्ले में से अल्ताफ़ और आफ़ताब नाम के दो लौंडो को पुलिस वाले अपने साथ उठा कर ले गए हैं"
"अरे यह कब हुआ"
"यह तो पता नहीं लगता है कि दिन में दोपहर के बाद ही हुआ होगा"
"बेग़म यह ख़बर हमारे मोहल्ले के लिए अच्छी नहीं है। ये दोनों लड़के वही हैं जो मुझे पहले भी मस्ज़िद में दिखे थे और उल्टी सीधी बात कर रहे थे'
"इसका मतलब तो यह हुआ मियां कि अपने मोहल्ले में कुछ न कुछ गड़बड़ होने वाला है"
"जो होना होगा वह होगा। हम लोग कर ही क्या सकते हैं"
"दुआ ही तो माँग सकते हैं कि सभी लोग सलामत रहें"
बेग़म की बात सुनकर लतीफ़ मियां कुछ मुस्कराए और बोले, "हर मुश्किल की घड़ी में बस एक ही तो याद आता है और हम उनसे दुआ मांगते हैं कि रसूल-अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम हम सभी को सही सलामत रखें"
"आमीन", कहकर हामिदा बेग़म ने लतीफ़ मियां की बात पर मुहर लगा दी।



एपिसोड 27
यूएनओ में आने वाले कुछ दिनों के बाद जनरल असेम्बली की मीटिंग होने वाली थी इसलिए पाकिस्तान जी जान से लगा हुआ था कि हिंदुस्तान को बदनाम करे। कश्मीर को लेकर इसीलिए पाकिस्तान सभी इस्लामिक देशों के पास जाकर रोया धोया लेकिन सिवाय चीन के किसी ने भी उसका साथ नहीं दिया। पाकिस्तान की आख़िरी उम्मीद बस अमेरिका से थी क्योंकि अमरीकी राष्ट्रपति  ने पाकिस्तानी प्रधानमंत्री को मिलने का अवसर जो दे दिया था। पाकिस्तान हमेशा से यही सोच रखता रहा था कि परमाणु हथियारों की बंदर घुड़की देकर वह अमेरिका से कुछ न कुछ रियायत या इमदाद लेने में सफल हो सकेगा।
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को यह एहसास भी था कि हाल में अमेरिका के राष्ट्रपति ने पाकिस्तान और भारत के बीच मध्यस्थता की बात पिछले कुछ महीनों में कई बार की। भारत ने हमेशा यही कहा कि पाकिस्तान के साथ उसके मसायल आपसी बातचीत से ही सुलझ सकते हैं और यह कि पाकिस्तान से बातचीत उसी हालत में होगी जब वह अपने यहां आतंकवाद को जड़ से उखाड़ फेंकेगा।
कुछ दिनों बाद हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री को यूएनओ में जाकर अपना उद्बोधन करना था दुनियां के लिए भारत की क्या सोच है उसके बारे में जानकारी देनी थी। इसलिए हिंदुस्तान भी इस कोशिश में था कि जम्मू और कश्मीर के मसले को कोई बेसबब तूल न दे सके इसलिए कश्मीर घाटी में बहुत सख़्ती के साथ कर्फ़्यू लागू किया गया था। सत्ता दल के नेता घूम घूम कर देश भर में यह कहकर अपने दल के पक्ष में मौसम बनाने में लगे हुए थे कि 'पीओके हमारा था-हमारा होकर रहेगा'। यहाँ तक कि इसी बात को हिंदुस्तान के वज़ीरे खारज़ा ने भी यह उम्मीद जताई कि बहुत जल्दी 'पीओके भारत का अभिन्न अंग बनेगा'
इन्ही सब मुद्दों को लेकर पाकिस्तान की ओर से जम्मू कश्मीर बॉर्डर पर भारी गोलाबारी की जा रही थी। पाकिस्तान इस फ़िराक़ में था कि सर्दियों का मौसम शुरू होने के पहले ही वह कुछ आतंकी बॉर्डर के रास्ते हिंदुस्तान में भेज सके। इसके लिये पाकिस्तान बाकायदा आतंकियों को फ़ायरिंग करके प्रोटेक्शन भी देता था। हिंदुस्तान की फौज पाकिस्तान के हर हमले का मुँहतोड़ जवाब देती रही थी। कई बार ऐसा हुआ कि पाकिस्तानी फायरिंग में जम्मू कश्मीर के नादान लोग घायल भी हुए। कई बार हिंदुस्तानी फौज ने फायरिंग में पाकिस्तान की फारवर्ड एरिया की चौकियों को तबाह ही नही किया बल्कि उनके कई जवानों को भी मारा।
इन सब चीजों के चलते राजनीतिक पारा दोनो देशों में बहुत चढ़ा हुआ था और श्रीनगर में खासतौर पर एक बार मोहर्रम पर कर्फ़्यू जो लगा वह फिर उठाया न जा सका। शातिर लोग कर्फ़्यू को भी धता बताकर कोई न कोई घटना यदा कदा करते ही रहते। अल्ताफ़ और आफ़ताब भी ऐसे ही मौकों की तलाश में रहते थे और इसीलिए वे पुलिस के हत्थे चढ़ गए।
लतीफ़ मियां इन सबके चलते किसी तरह अपने घर में ही रहकर अपना वक़्त गुज़ार रहे थे। अज़रा के पास बैठे हुए लतीफ़ मियां ने अज़रा से कहा, "अच्छा हुआ सरदार साहब तुझे अपने साथ यहां ले आये नहीं तो तू पिछली बार की तरह अबकी बार भी चंडीगढ़ में फँस गई होती"
"अब्बू जो होता है वह अच्छे के लिए होता है। यह बात मैंने अंकल और आंटी से सीखी है और मुझे सही भी लगती है"
"अज़रा एक बात बता तुझे अंकल और आंटी बहुत पसंद हैं"
"जी अब्बू मैं उनकी दिल से बहुत इज़्ज़त करती हूँ। मेरा बहुत मन था कि मैं चंडीगढ़ रहकर उनसे बहुत कुछ सीखूं लेकिन लगता है अल्लाह की मर्ज़ी कुछ और ही है"
"एक बात और बता अंकल आंटी तुझसे कभी जसवीर के बारे में बात करते हैं"
"अब्बू एक बार नहीं जसवीर के बारे में तो वह अक्सर ही बात करते रहते हैं। कभी उनकी तस्वीर दिखाके तो कभी उनके दादू की तसवीर दिखा कर। अंकल हमेशा से यही कहते कि जसवीर की अधिकतर आदतें उसके दादू की तरह थीं। उनके दादू बहुत शेरदिल इंसान थे। वही ज़ज़्बा जसवीर में भी है। अपनी ड्यूटी पर सख़्त और मज़बूती से काम करने वाला एक फ़ौजी। उनके लिए मुल्क और फ़ौज की ड्यूटी बहुत अहम थी। कई कई बार तो वो सालों तक घर नहीं आ पाते थे। 1965 की लड़ाई में महावीर चक्र और1971 की बंगला देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उन्होंने बहुत नाम कमाया और अशोक चक्र पदक जीता था"
"बहादुर बाप दादों के बेटे भी बहादुर होते हैं इसमें किसी को कोई शक़ नहीं"
"अब्बू जैसे वो एक बेहतरीन खानदान से हैं वैसे ही मुझे भी अपने अब्बू पर नाज़ है, मेरे अब्बू दुनियां के सबसे बेहतरीन इंसान जो हैं", कहकर अज़रा ने अपने अब्बू के दोंनो हाथों को अपने हाथों में लेकर चूमा।
अज़रा के अब्बू ने भी उसको गले लगाकर उसकी पेशानी को चूम कर दुआ मांगी कि मेरी बेटी एक नेकदिल इंसान बने। बाप बेटी को इस तरह बात करते देख बेग़म रह न सकीं और पूछ बैठीं, "बाप बेटी के बीच यह क्या चल रहा है"
"अम्मी हम दोनों एक दूसरे के लिए अल्लाहताला से एक दूसरे की बेहतरी के लिए दुआ मांग रहे थे"
बेग़म अज़रा की बात सुनकर मन ही मन बेइंतहा खुश थीं पर ऊपरी मन से अज़रा की ओर देखते हुए बोलीं, "बेटी हमारे लिए तू बहुत अहम है और तुझसे हमें ढेर सारी उम्मीदें हैं"
"अम्मी मैं आपकी बेटी हूँ और वक़्त आने पर दिखा दूँगी कि मैं किसी से कम नहीं"
अज़रा की इतनी प्यार भरी बातें सुनकर माँ बाप दोनों की आंखों में ख़ुशी के आंसू झलक आये। लतीफ़ मियां बेग़म से बोले, "आज हम लोगों के बीच इतनी अच्छी बातें हुईं है कि मैं तुम्हें बता नहीं सकता। मेरा मन कर रहा है कि आज हम शाम को दस्तगीर साहेब चलें और उनके दरबार में अपनी हाज़िरी दर्ज करा आएं।
"चलिएगा कैसे मियां बाहर तो कर्फ़्यू लगा है"
"सुना है आज शाम के वक़्त कर्फ़्यू में ख़रीद फ़रोख्त के लिए तीन घंटो की छूट दी जा रही है"
"वाह लगता है कि हमारी फ़रियाद ऊपर वाले ने सुन ली"
"तो ठीक है हम लोग चार बजे घर से निकलेंगे और छः साढ़े छः बजे तक लौट आएंगे"
"बेग़म, अज़रा और अशफ़ाक़ घर में ही रह लेंगे"
"हाँ, यही ठीक रहेगा"
एपिसोड 28
जब मियां लतीफ़ बेग़म हामिदा के साथ दस्तगीर साहब के लिए जा रहे थे तो उनके दिमाग़ में एक ही बात चल रही थी कि अगर आज कश्मीर का मुसलमान अब्दुल कादिर जिलानी साहेब के बताए उसूलों पर चलता और कश्मीरियत में विश्वास रखता जिसका मतलब ही यह है कि सबके साथ प्रेम का व्यवहार करो और सबके साथ मिलकर चलो तो जो हालात आज यहां पैदा हो गए हैं वह कभी भी न होते।
जब वे लोग खानियर इलाक़े में पहुंचे तो उनकी निग़ाह प्रसिद्ध सूफी तीर्थस्थल पर जाकर रुक गई। दो पलों के लिए वे वहीं रुक कर उसकी छटा को निहारते रहे। लतीफ़ मियां ने इस तीर्थस्थल के बारे में बेग़म को कुछ ऐसे समझाया कि जैसे वह उन्हें इस जगह पहली बार लेकर आये हों, "बेग़म यह सूफ़ी संत अब्दुल क़ादिर जिलानी साहब की मज़ार 'गौस ए आज़म दस्तगीर' के नाम से दुनियां भर में मशहूर है। यह जगह हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी धर्मों के लोगों में जानी पहचानी जाती है। इसे देखने और यहां इबादत करने के लिए सभी धर्मों के लोग आते हैं। इस जगह पर ज़नाब जिलानी का एक बाल रखा हुआ है। उनके इस बाल को 'मोपाक ए' कहा जाता है जिसे फ़ारसी भाषा में 'पवित्र बाल' कहा जाता है। यहां हज़रत अबुल बक़र द्वारा लिखी हुई पवित्र कुरान की एक प्रति भी सुरक्षित रखी गई है"
दस्तगीर साहेब के अहाते में पहुंच कर लतीफ़ मियां और बेग़म हामिदा ने मज़ार पर चद्दर चढ़ाई। अज़रा और अशफ़ाक़ की लंबी ज़िंदगी के लिए दुआएं माँगी और फिर बाहर आकर बहुत देर तक वहीं बैठे रहे। उनके ख़्यालों में रह रह कर यह बात आती कि आखिरकार ऐसा क्या हुआ जिसने कश्मीरी मुसलमान को पंडितों के ख़िलाफ़ कर दिया जिनकी वज़ह से कश्मीर में खूनखराबे जैसे हालात बने। उन्हें याद आया कि कभी किसी ने उनसे कहा था कि आज़ादी के शुरुआती दौर के बाद कश्मीरी मुसलमानों के दिल दिमाग़ में कुछ मुल्लाओं और इमामों ने यह बात कूट कूट कर भर दी थी कि बावजूद इसके कि मुसलमान घाटी में मैजोरिटी में हैं लेकिन कश्मीरी पंडितों को सियासत में अहम ओहदे मिले, जंगलात के ठेके मिले, सरकारी ज़मीनों के पट्टे मिले, रियासत में जो थोड़े बहुत कल कारखाने थे उनके लाइसेंस मिले वग़ैरह वग़ैरह लेकिन मुसलमानों को बदले में क्या मिला वही ज़लालत भरी मेहनतकश मज़दूरों की ज़िंदगी। 

लतीफ़ मियां नई पीढ़ी से थे इसलिए उन्होंने हमेशा ऐसे ख़यालात से खुद को दूर रखा। कभी ऐसी मजलिस में शरीक़ नहीं हुए जहां कश्मीरियत के ख़िलाफ़ की बातें कीं जातीं थीं। एक सवाल जो घूम घूम कर दिमाग़ में आता था कि सारी दुश्मनी केवल पंण्डितों से ही क्यों? कश्मीर में रहने वाले तो डोगरा राजपूत, सिख, पंजाबी, दलित, जनजाति के लोग भी हैं। लतीफ़ मियां इन प्रश्नों का उत्तर कभी भी न पा पाए। उन्हें महसूस हो रहा था कि आज नफ़रत की जो हवा चल रही है उसके लिए ऐसे घटिया और दो कौड़ी की सोच जिम्मेदार है। लतीफ़ मियां के दिमाग़ में बहुत उथल पुथल मची हुई थी और वह दस्तगीर साहब की मीनार की ओर टक टकी लागये देखे जा रहे थे कि शायद वहां से कुछ शाम के पहले कोई ऐसी बात हो जाए जिसमें अमन चैन और भाई चारे की नई सुबह का आगाज़ हो सके। वही पुरानी कश्मीरियत रबायत और दोस्ती कायम हो और अमन चैन की शुरूआत हो सके।
लतीफ़ मियां सोच तो कुछ रहे थे लेकिन हो गया कुछ और। कुछ देर बाद फ़ौज की कई गाड़ियाँ एक साथ आईं और मस्ज़िद को चारों ओर से घेर लिया। वहां न किसी को आने की इजाज़त थी, न किसी को बाहर जाने की। लतीफ़ मियां और बेग़म हामिदा दोनो वहाँ कैद होकर रह गए। उन्होंने बहुत कोशिश की कि किसी तरह उनको बाहर जाने दिया जाए जिससे वह अपने घर जा सकें। उनके बार बार कहने पर वहां आये हुए मजिस्ट्रेट ने उन्हें समझाया, "वह अभी किसी को भी मस्जिद से बाहर जाने की इज़ाज़त नहीं दे सकते क्योंकि शहर के कई हिस्सों में कुछ आतंकवादी देखे गए हैं जिनके बारे में सूचना मिली है कि उनके पास हैंड ग्रेनेड, एके 47 और भी कई क़िस्म के असलाह है। उनके इरादे नेक नहीं लगते क्योंकि अगर वह मस्ज़िद में घुस आए और उन्होंने यहां आकर कोई गोलाबारी की तो ठीक नहीं होगा। अपने मुल्क की बदनामी तो पूरी दुनियां में होगी है और कुछ बेगुनाह मारे भी जा सकते हैं"
मजिस्ट्रेट की बातें सुनकर दिल मसोस कर लतीफ़ मियां वहीं फंसे रह गए। कुछ देर बाद उन्ही मजिस्ट्रेट साहब ने आकर जब यह बताया कि अभी अभी ख़बर मिली है कि फौज और आतंकियो के बीच गोलियां चलीं हैं और वे लोग डाउन टाउन के ज़ीरो ब्रिज की ओर भागते हुए देखे गए हैं। यह भी ख़बर मिली है कि उनके साथ दो लड़के श्रीनगर शहर के भी हैं।
यह सुनते ही लतीफ़ मियां का दिल धक से रह गया कि कहीं वे अल्ताफ़ और आफ़ताब तो नहीं। इसलिए उन्होंने मजिस्ट्रेट साहब के पास जाकर पूछा, "...पता करिये कि वो लड़के अल्ताफ़ और आफ़ताब तो नहीं"
मजिस्ट्रेट साहब ने लतीफ़ मियां की बात सुनते ही उन्हें और उनकी बेग़म को कस्टडी में ले लिया और एक कमरे में ले जाकर पूछताछ करने लगे कि वे उन लोगों को कैसे जानते हैं।
इधर मस्ज़िद में लतीफ़ मियां से पूछताछ चल रही थी और दूसरी तरफ फ़ौजियों और आतंकियों के बीच गोला बारी चल रही थी। फ़ौज ने उनको चारों ओर से जब घेर लिया तब बचने के लिए वे लोग झेलम दरिया के पार मोहल्ले के एक मकान में घुस गए और वहां से गोलीबारी करने लगे। शुरुआती गोलाबारी में एक आतंकवादी तो मारा गया लेकिन तीन आतकंवादी मकान में घुसने में सफल रहे। बहुत देर तक गोलाबारी चलती रही। लगता था कि कभी हालात फ़ौज वालों के कब्ज़े में नज़र आते और उम्मीद बंधती कि जल्दी ही आतंकवादियों को पकड़ लिया जाएगा या मार दिया जाएगा तो कभी लगता कि आतंकियों को पकड़ना या मार पाना उतना आसान भी नहीं होगा।
मिलिट्री इंटेलिजेंस यूनिट के लोगों ने बहुत पता करने के बाद यह तो पता कर लिया कि मकान में एक परिवार रहता है। लेकिन उनको सही सही जानकारी हासिल नहीं हुई कि मकान में अभी कौन कौन है।
आतंकवादी किसी तरह कमज़ोर पड़ते नहीं दिखाई दे रहे थे और उनकी गोलाबारी में फौज के दो जवान घायल हो चुके थे जिन्हे तुरंत इलाज़ के लिए एम एच (मिलट्री हॉस्पिटल) ले जाया गया।। दोनो ओर से गोलाबारी होते होते अंधेरा हो गया। तब आर्मी ने उस मकान के आसपास के सभी मकानों को एक एक कर खाली करा लिया।
जैसे जैसे वक़्त गुज़रता जा रहा था इस बात का खतरा भी बढ़ता जा रहा था कि अंधेरे का फ़ायदा उठाकर आतंकवादी कहीं निकल न जाएं। काफी देर के बाद भी आतंकवादी किसी तरह कमजोर पड़ते नहीं दिखाई पड़ रहे थे तब आर्मी ने अपने स्पेशल स्क्वाड को बुला भेजा। स्पेशल स्क्वाड टुकड़ी का नेतृत्व लेफ्टिनेंट कर्नल वरदराजन के हाथ में था। उनके साथ थे कैप्टेन राम लाल, लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह, लेफ्टिनेंट सय्यद इक़बाल हुसैन और उनके दस साथी। अँधेरा बहुत अधिक हो चुका था और आतंकवादियों ने मकान के भीतर लकड़ी वगैरह जला कर धुंआ कर दिया था जिससे आर्मी के लोगों को ऑपरेशन चलाने में दिक्कत होने लगी। उस समय लेफ्टिनेंट कर्नल वरदराजन ने यह निर्णय लिया कि आतंकवादियों को समझाया जाए कि वे चारों ओर से घिर गए हैं और उनके पास निकलने का कोई ज़रिया नहीं है इसलिए यह उनके लिए बेहतर होगा कि वे लोग सरेंडर कर दें। आर्मी की इस पहल का भी जब कोई नतीजा नहीं निकला तब आर्मी वालों ने यह निर्णय किया कि अब मकान के भीतर घुस कर ही उन्हें पकड़ा जाए। अपने प्लान के हिसाब से आर्मी ने कई टीयर शैल मकान की ओर चलाये। धुंआ होता देख आतंकवादियों ने गोलाबारी और तेज कर दी। इसी बीच लेफ्टिनेंट जसवीर और लेफ्टिनेंट इक़बाल अपनी टुकड़ी लेकर मकान के पिछले हिस्से में घुसने में सफल रहे। इनको रोकने के लिए एक आतंकवादी इन लोगों के ऊपर एके 47 से धुंआधार फायरिंग करने लगा और दूसरा आतंकी अपने तीसरे साथी की मदद करते हुए दूसरी मंजिल पर जा पहुंचा।
लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह ने अद्भुत साहस का परिचय देते हुए ग्राउंड फ्लोर वाले आतंकी को ढेर किया। लेफ्टिनेंट इक़बाल ने पीछे की दीवार के सहारे रस्से से ऊपरी मंजिल में जा पहुंचने में सफलता पाई और सीढ़ियों के रास्ते लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह और उनके साथियों ने। दो ओर से घिरे आतंकी परेशान होकर लगातार इधर उधर बिना किसी देखे फायरिंग करते रहे। लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह की फायरिंग रेंज में जैसे ही एक आतंकी आया तो उन्होंने उसे अपनी स्पेशल नाईट विज़न रेंज वाली राइफल से ढेर कर दिया। घुप अंधेरे के कारण तीसरे आतंकी की ओर लेफ्टिनेंट इक़बाल ने एक छलाँग लगा कर उसे ज़िंदा ही पकड़ने की कोशिश की। लेकिन उस आतंकी ने जेब से एक गोली निकाली और मुँह में डाल ली शायद वह सायनाइड की गोली थी। जब उसे लगा कि वह घिर गया और  किसी भी तरफ बच नहीं सकता तो ख़ुद को सिर में गोली मार ली।
स्पेशल स्क्वाड ने बाद में यह चेक करने के लिए लाइट ऑन की तो पता लगा कि एक लडक़ी एक पांच साल का छोटे बच्चा को आतंकियों ने रस्से से बाँध कर उनके मुँह पर टेप लगा दिया था जिससे वह कुछ बोल भी न सकें। लडक़ी उस छोटे बच्चे की ओर देखे जा रही थी और आंखों के इशारे से यह समझाने की कोशिश कर रही थी कि चिंता न कर खुदा हमारी मदद करेगा। लडक़ी के सिर में चोट लगी हुई थी लग रहा था कि उसके सिर में राइफल से चोट की गई थी। लडक़ी बमुश्किल साँस ले पा रही थी। लड़की के चेहरे पर जैसे ही लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह की नज़र पड़ी तो चीख पड़ा, "......अज़रा तुम"
अज़रा ने झपकती झपकती आंखे पल भर के लिए खोलीं, "कौन जसवीर"
"हाँ, जसवीर", अपने होठों पर उंगली रखते हुए जसवीर ने कहा, "अब कुछ और नहीं बोलना....बस चुप ही रहना"
लड़खड़ाती जुबां में अज़रा ने कहा, "तुस्सी बड्डी देर कीत्ती है, आण विच"
जसवीर अज़रा की बात सुनकर चुप रह गया और बोला, "तुस्सी चंगे हो। मेरी ख़ातिर त्वानूं चंगे ही रहणा है"
जसवीर ने इक़बाल को बुलाते हुए कहा, "इक़बाल जल्दी इधर आ मैं अज़रा को लेकर नीचे जा रहा हूँ। तू अशफ़ाक़ को लेकर आ"
कुछ देर में ही लेफ्टिनेंट जसवीर सिंह और लेफ्टिनेंट इक़बाल ने दोनो घायलों को नीचे लाकर मिलिट्री हॉस्पिटल भेजने की तैयारी की और खुद कर्नल वरदराज के पास आये। कर्नल वरदराजन ने उनकी बहादुरी के लिये उनकी पीठ ठोंकी और कहा,"बॉयज आई एम प्राउड ऑफ यू"
लेफ्टिनेंट जसवीर ने कर्नल वरदराजन को जब यह बताया कि जिस लड़की और लड़के को इस ऑपरेशन में रिकवर किया गया है वह उन्हें जानता है। कर्नल ने आश्चर्य से पूछा, "वह कैसे"
"सर् वह मेरे डैड के दोस्त की बेटी और बेटा हैं"
कर्नल वरदराज ने लेफ्टिनेंट जसवीर को आदेश दिया कि फिर वह यहां कर रहा है उसे तुरंत एम एच जाना चाहिए और देखना चाहिए कि उनकी हालत कैसी है। लेफ्टिनेंट जसवीर ने लेफ्टिनेंट इक़बाल को अपने साथ ले जाने की इजाज़त ली और वे दोनों सीधे एम एच आये और इमरजेंसी वार्ड में जहां अज़रा और अशफ़ाक़ थे उनसे आकर मिले।
एम एच में लाने के बाद अज़रा और अशफ़ाक़ का चेक अप हुआ और दोनों को ठीक पाया गया। बस दोनों के सिर में कुछ चोटें थीं जिनका इलाज़ किया गया उनकी एमआरआई की गई और उन्हें फिट एंड फाइन घोषित किया गया। लतीफ़ मियां और बेग़म को जब अज़रा और अशफ़ाक़ के बारे में बताया गया तो वह दौड़े दौड़े उनसे मिलने आये। जसवीर और इक़बाल को अज़रा के पास देखकर लतीफ़ मियां ने इस शौर्य और साहसपूर्ण कार्य के लिए दोनों को गले लगाया और पीठ थपथपाई। लतीफ़ मियां की आंखें नम थीं, मन कर रहा था कि बहुत कुछ कहें पर चाह कर भी वह कुछ न कह पाए....
                        







#####समाप्त#####



























No comments:

Post a Comment