हमने “रिंनी खन्ना की कहानी” के दो खण्ड देखे और तीसरा
खण्ड सुधी पाठकों के हाथ में है। सबसे पहले तो मैं यह कहना समीचीन समझता हूँ कि
रचनाकार श्री एस पी सिंह ने अपनी कहानी की मुख्य पात्र रिंनी खन्ना के व्यक्तित्व
को कहीं झुकने नहीं दिया और ज़िंदगी के हर मोड़ पर रिंनी का चरित्र किसी की दया का
मोहताज नहीं बनता क्योंकि ज़िंदगी को अपनी शर्तों पर जीना रिंनी की आदत है। दूसरा
पहलू यह प्रतीत होता है कि रिंनी ऐसे व्यक्तित्व की धनी है कि वह लोगों को अपने
अनुसार ढाल लेती है। यह रचनाकार की विशेषता ही है कि अपने इस बृहद धारावाहिक के
माध्यम से श्री एस पी सिंह ने रिंनी के चरित्र को अनुकरणीय बना दिया। मन में यह
उत्कंठा बनी रहती है कि रिंनी अब आगे क्या करेगी|
रिंनी ज़हीन है, तक़दीर और दौलत दोनों की स्वामिनी है। ऐसा लगता है कि
परिस्थितियाँ स्वयमेव सज-धज कर उसके समक्ष उपस्थित हो रही हैं और रिंनी का स्वागत कर रही हैं। उसमें वह गुण है कि पत्थर
को अपने स्पर्श से पारस बना देती है। वावजूद इन सबके, रिंनी में एक ऐसा स्त्रीत्व
विराजमान है जो ऊँची उड़ान तो भरता है परंतु धरातल को नहीं भूलता। वह भी ईंट-पत्थर और लोहे से बने घर को बच्चों की किलकारियों से आबाद
करने को लालायित है और इस स्वप्न को पूरा भी करती है। इस तीसरे खण्ड में
रिंनी गार्हस्थ्य जीवन में प्रवेश करती है और उसका भरपूर आनंद उठाती है| परिवार के सभी सदस्यों के मध्य सौहार्द बनाये रखने की अहम्
कड़ी है|
मित्रो, जीवन सदैव सपाट, सरल, ऋजु और निष्कंटक नहीं होता।
जीवन को सर्पिल मार्गों से हो कर भी गुज़रना पड़ता है। फलस्वरूप, अनजाने हमारे समक्ष ऐसा
दुर्विपाक उपस्थित हो जाता है जहाँ हम किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाते हैं, हमारे वश में कुछ रह नहीं
जाता, हम पूर्णतया दैवाधीन
हो जाते हैं। ऐसे में जीवन की कश्ती को लहरों की मर्ज़ी पर छोड़ देने के अलावा कोई
चारा नहीं रह जाता। रिंनी भी प्रकृति के इस क्रूर परंतु अटल नियम से परे नहीं है।
आतंकवाद रिंनी की हँसती-खेलती दुनिया का उपहास करते हुए अपने कराल पंजों से ऐसा
प्रहार करता है कि उसके जीवन का प्रासाद देखते-देखते उसकी आँखों के सामने ढह जाता है। यह वही आतंकवाद है जिसकी न कोई सीमा है और न कोई देश। यह हर रोज चुन-चुन कर मानवता का नाश कर रहा है। रिंनी अपने पति रवि और
बेटे को खो देती है। उसके सामने दीर्घ जीवन का नैराश्य मुहँ बाये खड़ा है| परंतु वह अपना धैर्य
बनाये रखती है|
समग्ररूप में इस धारावाहिक में हमें जीवन की किशोरावस्था से
लेकर परिपक्वता तक पहुँचने के कई आयाम परिलक्षित होते हैं। श्री एस पी सिंह की
हरेक रचना में देश की सांस्कृतिक विरासत को पर्याप्त स्थान मिलता है और रिंनी
खन्ना की कहानी का तीसरा खण्ड भी इसका अपवाद नहीं है। रचना में कोणार्क और खजुराहो
का वर्णन बड़ा ही जीवंत बन पड़ा है। पाठक को कोणार्क से खजुराहो की लंबी यात्रा तो
करनी पड़ती है परंतु इस यात्रा में उसे कोई क्लांति और श्रांति की अनुभूति नहीं
होती|
इसप्रकार हम गर्व से कह सकते हैं कि तीन खण्डों में प्रकाशित यह
धारावाहिक देश की विरासत से परिचित तो कराता ही है, साथ-साथ हम भारतीयों की व्यापारिक सूझबूझ का परिचय देते हुए
विदेश में भी सफलता की कहानी सुना जाता है।
धन्यवाद: राम शरण सिंह
बेंगलूरु
दिनांक : 08-11-2016
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