Monday, August 15, 2016

ये दुनियाँ अगर मिल भी जाये तो क्या है

मॉल से लौटते हुए एक भूखे व्यत्क्ति को पैसे मांगते हुए देख क्या लिया, सारा नशा उत्सव का उतर गया, हक़ीक़त से ऐसे मुकावला हो गया......

बहुत मना लिया उत्सव
   देखा मेला भी
खाई नमकीन मिठाई भी
चल अपनी दुनियाँ में
   आ अब लौट चलें
देखें दुनियाँ में अपनी क्या है
ऐसी दुनियाँ वैसी दुनियाँ
   मिल भी जाये तो क्या है
तो क्या है......

मुफ़लिसी, बीमारी
कीड़े मकौड़े वाली दुनियाँ
   भूख से परेशान बिफरते
रोते हुओं इंसानो की दुनियाँ
फटे-चीकट कपड़ों की दुनियाँ
   बिकते हों शरीर जहाँ
बिखरते टूटते सपने जहाँ
   बुझते दिए, श्वासों की दुनियाँ
ऐसी दुनियाँ वैसी दुनियाँ
ये दुनियाँ मिल भी जाये 
तो क्या है ........

स्वप्न सजोये बहुत
दीप आशा के जलाए बहुत
   कहा था तुम्ही ने तो यह
पोंछ दूँगा आँसू हर आँख के मैं
   भूल गए हो कहा था जो तुमने
ग़रीब नेताओं को फ़टेहाल देखा 
रातों रात बनते अमीर देखा 
   लौट के नहीँ आते हैं
रोज़ नई गाड़ी में जो दिखते हैं
वादा कर भूल जो जाते हैं
   करे भरोसा कोई कैसे उन पर
मर जाये कोई तब भी आयें न नज़र
ऐसी दुनियाँ वैसी दुनियाँ
   नसीब से मिल भी जाये 
तो क्या है.............

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