यह कैसी ख़ामोशी है
गर्म जोशी के निशां थे जहां
अब खामोशी क्यों बनी रहती है...
जीने वालों से है ये ज़िन्दगी
सो जो गये उन्हें सो जाने दो
रात बहुत अभी है बाकी
चराग़ों को जलना है उन्हें जलने दो...
अँधेरे हैं भहुत गहन
तो क्या सूरज न निकले
जिसको आना है क्या वह न आये
जाने वाले को किसने रोका है
जाना चाहे जो उसे जाने भी दो,
जो जाये, बख़ुशी जाये...
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