कुछ रोज़ पहले 'ज़ैनन' से मुलाक़ात हुई। वह बझेड़ा गांव, साठा चौरासी, पिलुखुआ, हापुड़ (यूपी) की रहने वाली थी। बहुत बड़े बड़े ख्वाब लिए वह कैनेडी स्पेस सेंटर, फ़्लोरिडा क्या जा पहुंची कि उसकी ज़िंदगी बदल गई...
देश प्रदेश की राजनीति :
ग़ाज़ियाबाद लोक सभा कांस्टीट्यूएंसी एक वर्ग के लोगों के लिए इतनी सेफ कांस्टीट्यूएंसी है कि बस अपना नॉमिनेशन फ़ाइल करिये और मौज करिये। समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगो से संपर्क साध लीजिये चौरासी साठा बस आपके पीछे खड़ा हो जाएगा। राज नाथ सिंह दो मर्तबा एवं जनरल ( रिटायर्ड ) वी के सिंह भी दो मर्तबा ऐसे ही थोड़े जीते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कि तिंदवारी विधान सभा कांस्टीट्यूएंसी राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह राजपूतों के नेता जी के लिए या कानपुर देहात अरुण नेहरू जैसे कश्मीरी पंडितों के लिए, वही कानपुर देहात ( चौबेपुर का इलाका जहां से विकास पांडे अपना धंधा पानी चलाता था )। इन नेताओं का अपने अपने क्षेत्र में ग़ज़ब का कंट्रोल था। जैसे कि जवाहर लाल नेहरू जी का फूलपुर, इलाहाबाद, चौधरी चरण सिंह का बागपत से जाटों के समर्थन से। मैंनपुरी मुलायम सिंह यादव और सैफ़ई शिशु पाल सिंह यादव अहीरों के समर्थन से। राजीव गांधी अमेठी, सुल्तानपुर से। भदरी के राजा भइय्या रघुराज सिंह कुंडा, प्रतापगढ़ से।
देश में और भी कई कांस्टीट्यूएंसी ऐसी होंगी लेकिन हम ठहरे यूपी के रहने वाले इसलिए अपने प्रदेश की ही बात कर सकते हैं।
कभी कभी राजनीति में ऐसा भी होता है कि आपके विरोधी आपके लिए ऐसे चक्रव्यूह की रचना करते हैं कि आप अपने इलाक़े में ही रहकर चारों खाने चित्त हो जाते हैं। जैसे कि हेमवतीनंदन बहुगुणा और अटल बिहारी वाजपेयी जी के विरुद्ध राजीव गांधी, अरुण नेहरू वग़ैरह ने 1984 के जनरल इलेक्शन्स के दौरान बनाई थी। हेमवती नंदन बहुगुणा इलाहाबाद एवं टिहरी गढ़वाल से और अटल बिहारी वाजपेयी जी लखनऊ एवं ग्वालियर से चारों खाने चित्त हो गए थे।
जनरल वी के सिंह के इसी इलाके चौरासी साठा की कहानी जानिए "पुरवाई" धारावाहिक के ज़रिए से दिनांक 23/08/2020 से।
( उत्तर प्रदेश में असेम्बली के चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है )
....और मिलिए "ज़ैनन" और "ज़रीना" से.....
अपनी बात :
मैं जब 'पुरवाई' नामक कथानक पर शुरूआती काम कर रहा था तो एक रोज़ मेरी बात श्री Surendra Pal Rana से हुई जिनके माध्यम से मुझे चालीस साठा क्षेत्र के बारे में वे जानकारियां मिलीं जिन्हें हासिल करने के लिए मुझे दर दर भटकना पड़ता फिर भी वस्त्विकरूप में कोई सूचना नहीं मिल पाती।
जब मैंने अपनी कहानी के बारे में श्री राणा को बताया तो उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि कहानी जब पूरी होगी तो समाज की सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन की राह दिखा सकेगी। जिससे आपसी भाई चारा तो बढ़ेगा ही देश भी तरक़्क़ी के रास्ते आगे बढ़ेगा। देश के लोग खड़ी बोली की महत्ता को भी जानेंगे और समझेंगे। जब तक किसी विषय पर बातचीत या चर्चा नहीं होगी तब तक उसकी खूबसूरती कैसे ज़ाहिर होगी।
मैं तो ब्रज भाषा भाषी क्षेत्र का रहने वाला हूँ फिर भी मैं उस बृज भाषा को जो वृंदावन या मथुरा में बोली जाती है उसे नंम्बर एक दूंगा जब कि जो बृज भाषा हमारे ग्रामीण आँचल में बोली जाती है मुझे खुद बहुत उज्जड लगती है। लेकिन उस उज्जड पने में भी एक प्यार टपकता है। मैं यह बात एक उदाहरण के साथ आपके सामने रखना चाहूंगा।
हमारे एक मित्र देवदत्त मिश्रा के दादा जी धौली पियाऊ, मथुरा के रहने वाले थे। देवदत्त के बड़े भाई लक्ष्मी दत्त की शादी मथुरा की एक लड़की से हुई। वह लडक़ी (जिसे हम भाभी कहने लगे थे) व्याह के बाद उस कॉलोनी में अपने पति के घर आई जहां हम भी रहा करते थे। एक दिन की बात है मैं घर से निकल कर साइकिल से कहीं जा रहा था कि हमारी उक्त भाभी ने हमें देखा और कहा, "लाला जी आज तौ तुम बड़े जँच रये हौ। तुम कितकूँ जाइ रये हौ, हमकूँ भी साइकिल पै घुमा देओ"। यह मथुरा की तरफ बोली जाने वाली बृज बोली है यही बात कोई हमारे ग्रामीण क्षेत्र की भाषा में बोली जाए तो कुछ इस प्रकार से होगी, "ऐरे मौंड़ा आज तू ख़ूब जम रयौ है, कितकों जाय रयौ है, हमउँ कौ साइकिल पै घुमाइदै"। अब जो बाहरी क्षेत्र का व्यक्ति दोनों भषाएँ सुनेगा तो वह शर्तिया कहेगा कि मथुरा वाली बृज भाषा बहुत कर्णप्रिय है।
मैं बहुत लंबे समय तक अवध में रहा तो मेरे बोलने चालने का लहज़ा हिंदी उर्दू का मिक्स हो गया है। मैं कभी भी अपने लेखन को भाषा के दायरे में नहीं बंधित करना चाहता हूँ इसलिए आपने यह नोट किया होगा मैंने जो जहां जिस भाषा का शब्द फिट हो गया उसका खुल कर उपयोग किया है। मुझे जहां लगता है कि वहां अंग्रेजी का शब्द ठीक लगेगा तो मैं अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल करने से नहीं चूकता हूँ। रही बात "पुरवाई" की तो मेरे दिमाग़ में एक बार यह बात भी आई कि जितने भी डॉयलोग इस धारावाहिक में इस्तेमाल हों वह पिलखुआ में बोली जाने वाली खड़ी बोली में हों। पर जब मैं यह प्रयोग करने बैठा तो मेरे हाथ कांपने लगे कारण यह था कि सहारनपुर, रुड़की और हरिद्वार में रहे हुए मुझे एक अरसा हो चुका था और मुझे उस तरह की खड़ी बोली पर पूरा अधिकार नहीं था। अगर कोई यह काम कर दे तो मैं शर्तिया यह प्रयोग करना चाहूंगा। प्रिय Surendra Pal Rana से गुज़ारिश है कि वह यह काम अगर मुमकिन हो तो वह अपने हाथ में लेने का कष्ट करें।
मेरा मानना है कि अपने यहां पानी, भाषा, खाना पीना उठना बैठना , पहनावा हर दो कोस पर बदल जाता है। इसलिए बोलने वाली भाषा लोगों के सामने अपने बदलते हुए रूप में आती है। कोई भी व्यक्ति किसी भाषा को असभ्य नहीं कह सकता चूंकि वह उसका मर्म नहीं समझता है। जो जहां रहता है जो भाषा उसके कानों में उसके जन्म से पड़ती है वह उसे प्यार करता है और करना भी चाहिए।
आइये बात करते हैं, अब अपनी कहानी "पुरवाई" की। इस कथानक में खड़ी बोली भाषा के प्यार के मुद्दे को भी अपने ढंग से उजागर किया जाएगा। बस इंतज़ार करिये, आपके हर सवाल का जवाब दिया जाएगा। अपना धैर्य न खोइए, बस कुछ और सब्र रखिये।
श्री राणा से बातचीत के दौरान मुझे ध्यान आया कि जब डीपीएस के बच्चों का ट्रिप यूएस जा रहा था तो कुहू का कितना मन था कि काश वे लोग किसी एस्ट्रोनॉट से मिलने का अपना सपना पूरा कर सकें। ऑर्लैंडो इंटरनेशनल एयरपोर्ट, फ़्लोरिडा पर लैंड करने के बाद कुहू ने हम लोगों को फोन कर के बताया कि अगले दिन वे लोग अपने टीचर्स के साथ नासा जा रहे हैं तो हम लोगों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।
मेरे दिमाग में तभी से नासा को लेकर कुछ चल रहा था। जब मैंने "पुरवाई" कथानक के पात्र चुन लिए और उनका नामकरण कर लिया। मुझे लगा कि मेरी कहानी की नायिका "ज़ैनन" एवं "ज़रीना" का जो चरित्र उभर कर मेरे दिलो दिमाग पर छा गया है वह बेमिसाल इस लिहाज़ में हैं कि हिंदुस्तान की ग्रामीण क्षेत्र की एक लड़की जिसने अंतरिक्ष के बारे में रिसर्च करने के सपने देखे थे और एक दिन किस्मत से वह नासा पहुंच गई। उसकी छोटी बहन ने हिंदुस्तान में ही रहकर कुछ ऐसा करने की ठानी कि वह अपनी बड़ी बहन से भी बढ़कर ऐसा काम करे कि वह इतिहास बना सकने में सफल हो।
जानिए "ज़ैनन" और "ज़रीना" की कहानी "पुरवाई" कथानक के माध्यम से। बस दो दिन बाद ही...23/08/2020 से।
एस पी सिंह
21/08/2020
"मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस कथानक में वर्णित व्यक्ति और घटनाएं काल्पनिक हैं। वास्तविक जीवन में इनका कोई सरोकार नहीं है तथापि कथानक में किसी व्यक्ति या घटना का वास्तविक जीवन से सम्बंध है, तो इसे मात्र संयोग माना जाए"
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कलमकार की कलम से :
मित्रों,
हमारे बहुत ही घनिष्ट मित्र श्री Ashok Kumar जी ने कुछ रोज़ पहले आदेश किया था कि मैं एक धारावाहिक ग्रामीण जीवन पर लिखूं। मैंने उनके इस विचार का स्वागत करते हुए इस कथानक "पुरवाई" की कहानी का ताना बाना बुना है। हो सकता है कि उनके सपनों में ग्रामीण जीवन की वही मुंशी प्रेमचंद जी के ज़माने की तस्वीर रही हो लेकिन वास्तविकता में हिंदुस्तान के ग्रामीणांचल में बहुत बदलाव आया है। अब हमारा ग्रामीण परिपेक्ष्य अब वह नहीं रह गया जो एक शताब्दी पूर्व हुआ करता था। चुनावी राजनीति की उठक पटक ने आजकल के ग्रामीण परिदृश्य को एकदम बदल कर रख दिया है।
यह कथानक ग्रामीण क्षेत्र के उन पढ़े लिखे नौजवानों की आशाओं और आकांक्षाओं को लेकर लिखा गया है जिनके सामने जीवन के संघर्ष में पुरानी मान्यताओं का सम्मान करते हुए, समाज में अपने लिए सम्मानजनक स्थान सुरक्षित करते हुए आगे बढ़ने की लालसा है।
मैं नहीं कह सकता हूँ कि यह कथानक आपकी आकांक्षाओ पर कहाँ तक खरा उतरेगा। कल दिनांक 23 अगस्त से फेसबुक पर आप इसे पढ़ें और आनंदित हों यही हमारी कामना है। अपनी टिप्पणी लिखेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी तथा धारावाहिक को एक दिशा भी प्राप्त होगी।
बस और कुछ नहीं ...
धन्यवाद सहित,
एस पी सिंह
22/08/2020
फेसबुक से जुड़ने के बाद आपके कई धारावाहिकों को पढ़ने का मौका मिला मुझे. कई भाषाओं पर अच्छी पकड़ है आपकी. धारावाहिक लिखने की अद्भुत कला है आपकी. देर से मिला आपसे, दुख है कि आपसे मिलकर और सीख कर मैं खुद लिखने में असमर्थ हूँ फिलहाल. आप जैसे कुछ गिने चुने मित्रों से सम्पर्क कायम रहे, इसीलिये फेसबुक से जुड़े हुए हैं अन्यथा अब तक इस प्लेटफार्म से हट गये होते.
मेरा आग्रह भी यही है कि ग्रामीण जीवन शैली में आये बदलाव को आप अपने धारावाहिक में रेखांकित करें.सचमुच, हमारे गाँव अब वो नहीं रहे, जो हमने अपने बचपन और युवावस्था में देखा था और जिया था.गाँव आज न तो शहर है और न ही गाँव. संक्रमित है शहरीकरण से और ग्रामीण संस्कृति से मुक्त भी नहीं है. बदलाव स्वाभाविक प्रक्रिया है.
संचार माध्यमों के प्रसार, जातिगत राजनीति, रोजगार के लिये नगरों में पलायन, शहरों का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश वगैरह ने ग्रामीण जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है.आपके लेखन में इनका संकेत भी यदाकदा परिलक्षित होता है,इसलिए हमने आपसे निवेदन किया कि आप एक धारावाहिक गाँव को केन्द्र में रखकर लिखें ताकि ग्रामीण जीवन की विषमताओं से भी लोग अवगत हों.
आपने उम्र को ललकारा है,उसे चुनौती दी है.
आयु में मुझसे श्रेष्ठ हैं लेकिन आपकी सक्रियता काबिलेतारीफ हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहें.
#पुरवाई शीर्षक प्रिय लगा मुझे. आपने अनुज मानकर जो आदर दिया है, आपका बड़प्पन है.आभारी हूँ आपका.... सादर अभिवादन.
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