कलम से_____
6th September,2015/Kaushambi
न जाने क्या ख़ास था उसमें
जो मेरा यह हाल कर गया !
अजीब शक्स था ख्वाब कई छोड़ गया
दिल में वो ख़ास इक जगह बना गया !
नज़र मिली झुकाके निगाह वो चला गया
इक सवाल के जवाब कई छोड़ गया !
पता था उसे तन्हा न रह सकूँगी मैं
गुफ्तगू के लिए महताब छोड़ गया !
गुमान हो मुझे उस पर काम वो कर गया
कैसी है पहेली जो अनसुलझी छोड़ गया !
बुझते हुये चराग रौशन वो कर गया
हरेक दरीचे पर आफताब छोड़ गया !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
6th September,2015/Kaushambi
न जाने क्या ख़ास था उसमें
जो मेरा यह हाल कर गया !
अजीब शक्स था ख्वाब कई छोड़ गया
दिल में वो ख़ास इक जगह बना गया !
नज़र मिली झुकाके निगाह वो चला गया
इक सवाल के जवाब कई छोड़ गया !
पता था उसे तन्हा न रह सकूँगी मैं
गुफ्तगू के लिए महताब छोड़ गया !
गुमान हो मुझे उस पर काम वो कर गया
कैसी है पहेली जो अनसुलझी छोड़ गया !
बुझते हुये चराग रौशन वो कर गया
हरेक दरीचे पर आफताब छोड़ गया !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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