वर्ष-1943, यूनाइटेड प्रोविंस
राजा चंद्रचूड सिंह ‘कांकर’ रियासत अवध क्षेत्र के जनपद रायबरेली के दक्षिण में और प्रतापगढ़ जनपद (अब उत्तर प्रदेश) के उत्तरी दिशा में स्थित ‘कांकर’ गाँव के रहने वाले थे। उनके पूर्वज करौली रियासत, जनपद धौलपुर (राजस्थान) से तक़रीबन तीन सौ साल पहले यहाँ आये थे और यहाँ आकर उन्होंने गंगा के पूर्वी तट पर अपनी एक आलीशान पाँच आँगन वाली हवेली और एक शिव मंदिर की स्थापना की और साथ ही साथ गंगा के किनारे किनारे कई एकड़ जमीन भी खरीद ली, जिस पर खेती बाड़ी की जाने लगी। आम, अमरुद, आँवला, अनार और फलदार लगाकर बाग़ बगीचे भी लगवा दिए। खादर की जो ज़मींन थी, उसमें तालाब बना कर मछली पालन का काम भी साथ ही साथ शुरू करा दिया जो बाद में मालगुजारी के लिहाज़ से रियासत के लिए वरदान साबित हुआ और साथ में आसपास के किसान और दलित परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का भी एक अमूल्य संसाधन बना जिससे इस परिवार की प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए।
ब्रिटिश हुक़ूमत के दिनों में इस परिवार के मुखिया ने बाद में यहाँ के आसपास के चौरासी गाँव की ज़मींदारी खरीद ली इस तरह उनके परिवार के मुखिया को राजा का दर्जा हासिल हो गया और उनके खून का रंग भी ‘लाल’ से ‘नीला’ हो गया। इस तरह वे भी राज परिवारों की लंबी जानी मानी फ़ेहरिस्त में शामिल हो गए।
चन्द्रचूड़ सिंह ‘कांकर’ रियासत के आखिरी अधिकृत राजा थे जिनका राज्याभिषेक स्वयं उनके पिताश्री राजा चूड़ावत सिंह जी ने अपने कमलों से कर उन्हें गद्द्दीनशीं किया था और उसके तुरंत बाद वे वानप्रस्थ आश्रम के लिए अपनी पत्नी रानी महिमा सिंह के लिए प्रस्थान कर गये।
कांकर में एक प्रचलित किवदंती के अनुसार कुंवर चंद्रचूड़ सिंह का विवाह रायबरेली जनपद की खजूरगाँव रियासत की राणा जितेन्द्र नारायण सिंह ‘देव’ जी की एकमात्र पुत्री राजकुमारी करुणा सिंह के साथ अपने बाल्यकाल में किये गए वचन को निभाते हुए कर दिया था परंतु जब राजकुमारी कांकर पधारीं तो उनके सांवले रंग रूप होने के कारण वे रानी महिमा सिंह और कुंवर चंद्रचूड सिंह के मन को न भाईं। अपने पिताश्री के वचन का पालन करते हुए तथा अपनी कुलपरम्परा का मान सम्मान रखते हुए अपने पिताश्री को यह वचन दिया कि वे कभी भी राजकुमारी करुणा सिंह को कोई कष्ट न होने देंगे और उनके मान सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे पर साथ ही उन्होंने उस समय अपने पिताश्री से इस बात के लिए अनुरोध भी किया कि वे उचित समय पर अपनी मनपसंद का एक विवाह और करना चाहेंगे, परंतु इस बात को सुनकर राजा चूड़ावत जी बहुत दुखी हुए और उन्होंने उसी क्षण वानप्रस्थ आश्रम जाने का निश्चय कर लिया।
वर्ष-1970 के बाद
राज परिवार के वर्तमान मुखिया चन्द्रचूड़ सिंह जी जो अपनी दो धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी और छोटी रानी शारदा देवी के साथ कांकर गाँव में ही अपनी नदी किनारे वाली हवेली, जिसका नामकरण पूर्व में ही “सूर्य महल” कर दिया गया था, रहते थे। उनके महारानी करुणा देवी से एकमात्र पुत्र अनिरुद्ध सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स में एमएससी करने के बाद अमेरिका से एप्लाइड फिजिक्स में रिसर्च हेतु कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए हुए थे और छोटी रानी से एकमात्र पुत्री शिखा डीयू के मिरांडा हाउस से बीएससी करने के लिये दिल्ली में थी। इसके अलावा चन्द्रचूड़ सिंह को अपनी जवानी के दिनों चौक़, लखनऊ की नाचने वाली गौहर जान से जब वह एक जलसे में कांकर आईं तो इस कदर प्यार हो गया की फिर गौहर बेग़म बन कर वहीं सूर्य महल के पास ही नदी के किनारे बने एक अलग भवन जिसका नाम ही ‘ऐश महल’ था, वहाँ रहा रहने लगीं। कुल मिला कर यह कहा जा सकता है कि उस वक़्त की अवध की अन्य रियासतों की तरह ही चन्द्रचूड़ सिंह जी की ज़िंदगी भी बड़े ऐशो आराम से गुजर रही थी जिसमें काम धाम कम ऐश, मौज मस्ती और खाना पीना अधिकायत से था। आये दिन कभी इस रियासत के तो कभी किसी दूसरी रियासत के राजा आ जाया करते और नाच गाना खाना पीना चलता रहता। उनके इन्हीं शौकों की बदौलत कभीकभी तो चन्द्रचूड़ सिंह जी के यार दोस्त इंग्लैंड वग़ैरह से भी आकर खूब मौज किया करते थे।
कांकर कहने को तो एक गाँव था पर एक बार आप ‘सूर्य महल’ में दाखिल हुए नहीं कि फिर आपको नहीं लगेगा कि आप किसी छोटे मोटे गाँव में हैं चूंकि महल में सुख सुविधा के सभी सामान उपलब्ध थे।
अचानक एक दिन सुबह सुबह ऐश महल से राजा साहब के लिये बुलावा आया कि गौहर बेग़म ने उन्हें याद किया है। कुछ देर बाद राजा साहब ऐश महल आ पहुंचे और गौहर बेग़म से पूछा, “बेग़म ऐसा क्या हो गया कि आज आपने सुबह सुबह याद किया”
“जल्दी में तो नहीं है न आप”, गौहर बेग़म ने बड़ी अदा से राजा साहब से पूछा।
“नहीं कोई खास नहीं, आज हमें लखनऊ जाना था राजकुमारी शिखा आज दिल्ली से आ रहीं है उनको लेना था और कुछ अदालत का ज़रूरी काम भी निपटाना था”
“क्या मैं भी आपके साथ चल सकती हूँ?”
“चलिये, अगर आपकी यही मर्ज़ी है तो चलिये”
“....और भी कोई जा रहा है आपके साथ”
“छोटी रानी साहिबा साथ में रहेंगी”
“तो फिर आप उन्हीं के साथ जाइये, मेरा उनके साथ जाना ठीक नहीं रहेगा”
“आप फिर कभी चली चलिएगा”
“जी यही बेहतर होगा”
“ये तो बताइए कि आपने हमें याद क्यों किया था”
“रहने भी दीजिये, छोड़िए भी”
“नहीं नहीं अब रहने भी दीजिये”
“अगर आप नहीं बतायेंगी तो मेरा मन उलझा रहेगा”
“बस आपकी याद आ रही थी और कुछ नहीं”
“आप बताना नहीं चाह रही हैं तो और बात है, वैसे आप कुछ भी कह देंगी तो हमारे मन को तसल्ली बनी रहेगी”
“मुझे पता लगा था कि आप बाहर जाने वाले हैं बस सोचा था कि हम भी सैर सपाटे पर आपके साथ चले चलेंगे, चलिए फ़िलहाल आज आप चलिए हम बाद में कभी फिर चले चलेंगे और कोई खास बात नहीं थी। आप लखनऊ जा ही रहे हैं तो एक काम करियेगा कि हमारे लिए भी कुछ लेते आइयेगा”
"क्या यह तो बताइए?"
"हाय अल्लाह अब हमारी हैसियत यह हो गई है कि हमें यह बताना होगा कि क्या"
“जी अगर आप कुछ भी नहीं कहना चाह रही हैं तो ठीक है, हम अपनी मन मर्ज़ी के माफ़िक कोई माकूल चीज लेते आएंगे। अब इज़ाज़त दीजिये देर हो रही है"
"खुदा आपका ख़्याल रखे और सफर कामयाब रहे", कह कर गौहर बेग़म ने राजा चन्द्रचूड़ सिंह को विदा किया.....
क्रमशः
लखनऊ में राजा चन्द्रचूढ़ सिंह अपनी बेटी शिखा से जब मिले तो उन्हें पहली बार लगा कि उनकी बेटी यकायक बड़ी हो गई। हर पिता की तरह उनके मन के एक कोने में चितां होने लगी कि अब शिखा के लिए भी उचित वर ढूँढ़ने की कोशिशों को और तेज करना पड़ेगा। चन्द्रचूढ़ सिंह और छोटी रानी शारदा देवी अपनी बेटी को साथ ले अपने कैसरबाग निवास स्थान 'कांकर हाउस' में रुके। कैसरबाग के परकोटे में अवध की रियासतों के लिये उनके रुतबे के लिहाज से रिहायसी इंतज़ाम गुज़रे वक़्त में ही इंतज़ामिया द्वारा कर दिया गया था कि जब कभी वे लोग यहाँ आएं तो अपने ही निवास स्थान पर आराम से रुकें।
राजा चन्द्रचूड़ सिंह पूरे परिवार सहित शाम को अपने मित्र राजा साहब माणिकपुर के निवास ‘माणिकपुर हाउस’ में उनसे सपरिवार मिलने गए। दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल था इसलिये कोई औपचारिकता की आवश्यकता ही नहीं थी। राजा साहब माणिकपुर मानवेंद्र सिंह और उनकी धर्मपत्नी महारानी रत्ना देवी ने उन लोगों की खूब आवभगत की। शाम के समय जब सभी लोग साथ बैठे हुए थे महारानी रत्ना ने शिखा से खूब खुल कर बात की और उसके शौक़ वग़ैरह और उसका आगे क्या करने का इरादा है इत्यादि विषयों पर विस्तार से पूछताछ की। बातचीत में राजा साहब मानवेंद्र सिंह ने पाया कि राजकुमारी शिखा अत्यंत मेधावी और अपने लक्ष्य पर अर्जुन की निग़ाह रखने वाले व्यक्तित्व की धनी और सर्वसम्प्पन्न युवा है, उनके मन में बस यही चल रहा था कि क्या अभी बात करना उचित होगा या फिर कुछ समय इंतज़ार किया जाय।
इतने में राजा चन्द्रचूढ़ सिंह ने कुँवर महेंद्र के महेंद्र के बारे में पूछा कि वह आजकल वह कहाँ हैं और उनका क्या करने का इरादा है? राजा साहब मानवेंद्र सिंह ने बताया कि आजकल महेंद्र इंग्लैंड गये हुए हैं और लग रहा है वह वहीं से अपनी डॉक्टरेट पूरी करेगा। रानी शारदा देवी ने महारानी रत्ना की ओर देखा और यह प्रस्ताव रखा कि दोनों राजपरिवारों के बीच हम लोगों के जितने मधुर संबंध हैं अगर हम इन रिश्तों के कोई नया नाम दे पाएं तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता होगी। महारानी रत्ना ने इस बात पर उत्साहित होते हुए कहा, “रानी शारदा देवी आपने तो हमारे मुहँ की बात छीन ली, मुझे शिखा बेटी बहुत पसंद है”
राजा साहब चन्द्रचूढ़ सिंह ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा, “कुँवर महेंद्र का भी कोई जबाब नहीं वह तो हमारी आँखों के भी तारे हैं”
बातचीत में दोनों ओर से ऐसी बातें कहीं गईं जिससे यह साफ हो गया कि वे लोग कुँवर महेंद्र के साथ राजकुमारी शिखा के विवाह की बात सोच रहे हैं।
राजा मानवेंद्र सिंह ने यह प्रस्ताव रखा कि जब अबकी बार छुट्टियों में ये दोनों बच्चे यहाँ हों तो इन लोगों को कुछ वक़्त साथ साथ बिताना चाहिये जिससे कि वे आपस में एक दूसरे को समझ सकें और जब इन दोनों का एक दूसरे में रुझान हो तभी आगे कोई बात करना उचित होगा।
यह सब चर्चा चल रही थी और राजकुमारी शिखा चुपचाप दोनों ओर की बातें बड़े ध्यान से सुनती रहीं पर उन्होंने अपनी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। लग रहा था कि उनके मन में कुछ और ही चल रहा था।
देर रात जब वे सब कांकर हाउस लौटे तो घर के केअर टेकर ने बताया कि ऐश महल से फोन आया था और बेग़म साहिबा पूछ रहीं थीं, "कांकर हुज़ूर कहाँ हैं?"
"तो तुमने क्या कहा?" राजा चन्द्रचूड़ सिंह ने पूछा।
"मैंने उन्हें बता दिया कि आप रानी साहिबा ओर राजकुमारी जी के साथ माणिकपुर हाउस गए हैं और देर रात गए ही लौटेंगे"
"फिर उन्होंने क्या कहा?"
"कहने लगीं कि कोई बात नहीं"
इसके बाद बात आई गई हो गई पर जब राजा साहब और रानी साहिबा सोने के लिये बिस्तर पर लेटे हुए थे तो रानी शारदा देवी ने अपने दिल की बात बड़ी शालीनता से रखी और कहा, "बड़ी चिंता करतीं हैं आपकी बेग़म साहिबा, बहुत आशिक़ाना जो है आपसे। लगता है कि एक रात भी वह आपके वगैर नहीं रह सकतीं हैं"
राजा साहब ने रानी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "हमें तो सभी प्यार करते हैं क्या आप नहीं करतीं हैं?"
"एक मिनिट रुकिये पहले मेरी इन तीन उंगलियों में से कोई एक पकड़िए", और यह कहते हुए रानी साहिबा ने अपने दाएं हाथ की तीन उंगलिया राजा साहब के सामने कर दीं।
"यह क्या मज़ाक है रानी शरद जी?"
"आप एक पकड़िए तो सही"
राजा साहब धर्म संकट में थे कि क्या करें क्या न करें इसी पशोपेश के बीच उन्होंने तर्जनी उंगली पकड़ी और रानी साहिबा के चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करने लगे।
तभी रानी साहिबा खुशी से झूम उठीं और बड़े प्यार से बोलीं, "हम तो आपको दिलोजान से चाहते हैं पर हम यह नहीं जानते थे कि आपके दिल के सबसे करीब कौन है? आज आपने मेरी तर्जनी पकड़ कर यह साबित कर दिया कि आपके करीब कोई भी रहे पर दिल पर राज हमारा ही चलता है। हम आज अपने आप को बहुत खुश किस्मत मानते हैं। अब बताइये कि हम आज आपको कैसे खुश करें?"
"इधर और करीब आइए", राजा साहब ने रानी साहिबा को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "जरा इधर करीब तो आइए और अब बताइये कि आप हमें कितना प्यार करतीं हैं?"
क्रमशः
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
रैन अंधेरी बिरहा की मारी
अँखियन बरने बूंदिया मानव की,
लागी बेरिया पिया के आवन की......
नज़र का वार था दिल कि तड़प ने छोल दी
चली थी बरछी किसी पर किसी को आन लगी
हो
नजरिया की मारी
हाय
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ
कोई जरा जाके बैध बुलाओ
आके धरे मोरी नारी
हाय राम आके धरे मोरी नारी
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ
नजरिया की मारी मरी मोरी गुईयाँ....
एक दिन की बात है राजा साहब महारानी करुणा देवी के साथ थे। महारानी ने राजा साहब से कहा, "राजा साहब आप सबकी मुराद पूरी करते हैं, क्या आप एक हमारी भी ख़्वाहिश पूरी करेंगे?"
"आप हुक्म तो करिये महारानी साहिबा आपके कहने भर की देर है"
"तो लीजिये पहले यह पढ़ लीजिये", कह कर महारानी ने एक किताब का एक मुड़ा हुआ पन्ना खोलते हुए किताब राजा साहब की ओर बढ़ा दी।
राजा साहब ने किताब हाथ मे लेकर पढ़ना शुरू किया:
उमरिया धोखे में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।
पूरी कविता पढ़ लेने के बाद राजा साहब ने महारानी से कहा, "जिस किसी ने भी लिखा है अच्छा लिखा है पर कबीर जी का लिखा हुआ तो नहीं है पर यही जीवन का सत्य है"
"किसने लिखा है वह तो हम भी नहीं जानते पर इधर कुछ दिनों से हमारा मन उचट रहा है। अगर आपकी इज़ाज़त हो तो हम पशुपतिनाथ जी के दर्शनार्थ नेपाल जाना चाहते हैं", महारानी ने राजा साहब से विनती की।
"जाइये, जाइये अवश्य जाइये हम राजा साहब माणिकपुर को फोन कर देंगे उनके छोटे भाई की ससुराल नेपाल के राणा अजेय सिंह के यहाँ है वे लोग आपकी सम्पूर्ण रहन सहन से लेकर नेपाल के दूसरे पूजा स्थलों के देखने की व्यवस्था करा देंगे। आप कब जाना चाहेंगी"
"हमारी इच्छा तो आपके साथ चलने की थी"
"महारानी आप अच्छी तरह जानती हैं कि जब तक कुँवर अपनी शिक्षा पूरी कर नहीं लौट आते हैं तब तक हम यह राजपाट छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं"
महारानी ने हँसते हुए कहा, "हम आप से कौन सन्यास लेने के लिये कह रहे हैं, बस हम यही चाह रहे थे कि इस बार आप हमारे साथ देशाटन पर चलें"
"देखिये अभी हम न निकल सकेंगे चूँकि राजकुमारी शिखा भी अभी यहीँ हैं। आप ऐसा करिये अबकी बार आप घूम आइए हम अगली बार आपके साथ अवश्य चलेंगे"
"वायदा रहा"
"जी राजपूती वायदा रहा"
"तो हमारा इंतज़ाम करा दीजिये हम जितना भी जल्दी हो सके वहाँ के लिए निकलना चाहेंगे"
"जी समझिये कि आपकी तीर्थ यात्रा का इंतज़ाम हो गया"
क्रमशः
कुछ दिनों के उपरांत महारानी करुणा देवी ने अपने ड्राइवर श्याम सिंह तथा एक सेवक संतू और सेविका रनिया के साथ नेपाल के लिए प्रस्थान किया।
काठमांडू तक की दूरी एक दिन में आराम से तय नहीं की जा सकती थी इसलिए राजा साहब ने महारानी के गोरखपुर में रुकने की व्यवस्था गोरक्षनाथ मठ के गेस्ट हाउस में करवा दी। जिससे कि महारानी को रास्ते में आराम रहेगा और इसी मंतव्य से मठाधीश मंहत जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाएगा। उनके अनुदेश की प्राप्ति पर पशुपतिनाथ के दर्शन और पूजा पाठ की भी उचित व्यवस्था हो जाएगी।
इधर सूर्य महल अब केवल रह गए थे राजा साहब, रानी शारदा देवी तथा राजुकुमारी शिखा।
राजा साहब सुबह सुबह से ही राजकुमारी के साथ व्यस्त रहते। कभी बैडमिंटन खेलना, तो कभी महल की छत से गंगा नदी के विस्तार के दृश्यों को देखना, कभी कभी उनके साथ अपने मछली पालन केंद्र को देखने चला जाना, नदी में नाव में सैर करना इत्यादि। कुल मिला कर राजा साहब और रानी साहिबा ने राजकुमारी शिखा के साथ बहुत अच्छा समय बिताया। दोनों ने मिलकर भरसक प्रयास किया कि उनकी पुत्री का मन कांकर में लगा रहे।
एक दिन तीनों पारिवारिक सदस्य गंगा किनारे बने शिव मंदिर पूजा अर्चना के लिये सुबह के समय ही आ गए। वहाँ पंडित विजय शाश्त्री जी ने बहुत भक्तिभाव के साथ राजपरिवार को पूजा पाठ कराया।
राजा साहब ने पंडित जी से प्रार्थना की, "पंडित जी आपतो बहुत ज्ञानी-ध्यानी हैं आज शिखा बेटी हमारे साथ बहुत समय बाद भगवान के दरबार मे आई है तो हम चाहते हैं कि हम सभी आपके श्रीमुख से भागवत पुराण की कोई कथा सुनें"
पंडित जी ने उत्तर में कहा, "महाराज, आपकी जैसी आज्ञा"
गणपति पूजन के साथ भागवत कथा का आरंभ आचार्य पंडित विजय शास्त्री जी महाराज के मुखारविन्द से कुछ इस प्रकार हुआ कि जिसमें सर्वप्रथम भगवत महाम्य, फिर परीक्षित श्राप व शुकदेव जन्म का वर्णन हो।
उसके बाद शाश्त्री जी ने कथा के अगले चरण में कहा कि भक्ति से ज्ञान, वैराग्य पैदा होता है, संसार में पुण्य कार्य करना चाहिए, पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करना चाहिए, जिससे भक्ति में वृद्धि होती है। शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित से कहा कि भागवत अज्ञान से ज्ञान और सत्य की ओर ले जाने वाली है। संसार के प्राणी अनेक चीजों से पीडि़त है उसका एक ही समाधान है कथा का श्रवण करना, हरि नाम सिमरन करना, इससे संसार की चिंताएं दूर होती हैं, सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है।
कथा में व्यास जी के अनुसार कहा गया है कि भगवान की शरण में आने से मनुष्य का जीवन सार्थक हो जाता है, सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, व्याधियों और ङ्क्षचताओं का एक ही समाधान है श्रीमद्भागवत कथा सुनना। दैविक, भौतिक, तापों से जो पीडि़त है उनके कष्ट दूर हो जाते हैं।
विजय शास्त्री जी महाराज ने यह भी बताया कि भक्ति रूपी तत्व के जीवन में आने पर व्यक्ति का आत्मबल बढ़ने लगता है तथा प्रभु की कृपा होती है। इसलिए मानव को अपने जीवन में भक्ति भाव से ही रहना चाहिए।
उन्होंने संतों की महिमा बताते हुए कहा कि सच्चे संत के दर्शन मात्र से ही मनुष्य के जन्म जन्मातरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। आह्वान करते हुए उन्होंने ने कहा कि मनुष्य को निंदा चुगली से बचना चाहिए ताकि बुर व्यसनों में फंसकर जीवन व्यर्थ न जाए।
कथा के अंत में पंडित जी ने राजा साहब से मुख़ातिब होते हुए कहा, "महाराज अगर आपकी अनुमति हो तो अबकी बार शारदीय नव दुर्गा में हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी विशेष आयोजन किया जाय और अबकी बार हमारी इच्छा अवधूतमण्डलाश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार के प्रमुख श्री श्रीपति महाराज जी को आमंत्रित करने का मन बनाया है"
"अवश्य बुलाइये पंडित जी, अति उत्तम सुझाव है तब तक तो कुँवर अनिरुध्द भी अमरीका से वापस आ जाएंगे। आयोजन भव्य हो बस इसका विचार रहे"
"जी हम इसके लिए मुखिया जी से संपर्क कर पूरी व्यवस्था करा देंगे। महाराज हमें आपका आशीर्वाद शुरू से ही मिलता रहा है और हम आशा करते हैं कि भविष्य में भी आपका वरदहस्त बना रहेगा"
"प्रभु जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा", राजा साहब ने पंडित जी की ओर देखते बोले, "अब चलने की अनुमति दें"
"कल्याणमेवस्तु राजन", कह कर पंडित जी ने राजपरिवार को आशीर्वाद दिया और वे सभी सूर्य महल वापस आ गए।
क्रमशः
याद में दिल की ये वीरान हवेली चुप है।
अपने फूलों के लिए मेरी चमेली चुप है।
इक मुक़द्दर की तरह मेरी हथेली चुप है।
बूझ सकता नहीं कोई वो पहेली चुप है।
'सबा' ये नई बात बहारों की सहेली चुप है।
कथांश:9
अगले दिन महारानी करुणा देवी काठमांडू देर शाम तक पहुँच गईं। उनके साथ महंत जी के एक वरिष्ठ सहयोगी तथा सेवक और सेविका भी साथ थे। वहाँ पहुंच कर वे सभी लोग राणा अजेय सिंह जी के निवास स्थान पर जाकर उनसे मिले। राणा जी ने सभी लोगों की व्यवस्था अपनी ही कोठी पर की हुई थी। सभी लोग लंबी यात्रा के कारण थकान महसूस कर रहे थे, अतः शाम होते ही पूजा पाठ, भोजन इत्यादि कर निवृत हो गए और अपने अपने कमरे में आराम करने चले गए। वैसे भी पहाड़ों में अँधेरा होते ही जीवन शांत सा हो जाता है। नेपाल के लिए वैसे भी एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'जैसे ही हो सूर्यास्त उधर नेपाल मस्त'। मतलब अगर आप खाने पीने और कैसिनो जाने के जुआ खेलने के शौकीन हैं तो वहाँ की रातें रंगीन नहीं तो सूखी साखी सी।
कांकर में राजा साहब और रानी शारदा देवी अपनी पुत्री के साथ सुबह से ही अपने बाग़ बगीचे, मछली पालन केंद्र और कृषि फार्म की व्यवस्था का अवलोकन किया। दोपहर होते होते वे आम के बगीचे के बीचोबीच बने फार्म हाउस पर आराम करने के लिये आ पहुँचे। दोपहर के भोजन की व्यवस्था बहादुर सिंह मुखिया जी ने फार्म हॉउस पर ही कर रखी थी। मुखिया जी ने देशी घी में बनी दाल बाटी बनवा कर राजपरिवार के सदस्यों को खुश तो कर दिया और राजा साहब से वाह वाही लूटी पर वहीं वे मछली पालन केंद्र की अव्यवस्था के लिये डाँट-फटकार के पात्र भी बने।
राजा साहब ने उन्हें समझाया कि मछलियाँ अगर तालाब के एक टुकड़े में अधिक दिनों तक रहें तो उनकी बढ़ोत्तरी ठीक नहीं होती है। लिहाज़ा हर मत्स्य पालन केंद्र पर यह व्यवस्था की जाय कि एक हफ़्ते के बाद उनकी जगह बदल दी जाए। इस काम को सुचारू रूप से करने के लिये हर केंद्र पर एक लॉग बुक रखी जाए और उसमें से सैंपल मछली का वजन नोट किया जाय। मछली कितनी बढ़ी और अगर कोई कमी पेशी है तो उसके लिए दाने पानी की व्यवस्था ठीक की जय। राजा साहब ने उन्हें यह भी सलाह दी कि अबकी बरसात के दिनों में अपने गाँव की ओर से आने वाली बरसाती नदी पर बाँध बना लिया जाय जिससे कि किसी भी तालाब में सूखे की परिस्थिति में मछलियों को कोई नुकसान न हो।
हर हफ़्ते में दो बार मछली का जाल डाला जाय और फिर उन्हें बाद में रेलगाड़ी से कोलकता भेज देने की व्यवस्था की जाए।
राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि अबकी बरसात के सीजन में वे आसाम से बाँस की उत्तम वैराइटी का प्रबंध कर रहे हैं जिन्हें हर तालाब की मेढ़ पर लगा कर एक ओट जैसी पर्दी बना दी जाय जिससे कि गर्मियों में गरम हवाओं और आंधियों के समय पानी का भाप बन कर उड़ जाने पर नियंत्रत किया जा सके।
राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि पिछले वित्त वर्ष में मछली के व्यापार से रियासत को लगभग सवा करोड़ रुपए की लगान वसूली हुई थी। इस वित्त वर्ष में यह आय हर हालत में कम से कम बीस प्रतिशत बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। इसी तरह आम के बगीचों में समय रहते दवाई का छिड़काव करा दिया जाय जिससे दशहरी, लंगड़ा और फज़ली आम की फसल पर कोई दुष्प्रभाव न हो। अबकी बार आसपास के गाँव वालों के यहाँ मुनादी करा दी जाय कि इस वर्ष से मार्च की पंद्रह तारीख़ को नीलामी होगी और जो सबसे अधिक बोली लगाएगा उसे ही दो साल के लगान पर बाग़ उठाये जाएंगे।
इसी तरह राजा साहब ने अमरूद, अनार और आँवला के बाग़ से भी लगान को बढ़ाने की सलाह ही नहीं दी बल्कि उन्हें यह भी कहा कि वे कुछ लीक से हट कर सोचें।
मुखिया जी ने राजा साहब की बातों को बहुत ध्यान से सुना और उनसे वायदा भी किया कि उनके सभी निर्देशों का पालन होगा।
राजकुमारी ने राजा साहब के साथ घूमते हुए महसूस किया कि उनके पिताश्री अपने हर काम पर कितनी पैनी नज़र रखते हैं तभी रियासत के ख़र्चे और आमदनी में सामजस्य बना है अन्यथा दूसरी रियासतों की तरह अपने यहाँ का भी हाल ख़राब हो सकता था। रियासत की आय ठीक है इसलिये राजपरिवार और उनके आसपास रहने वालों को सही देखरेख हो पा रही है। महलों और हवेलियों की साफ सफाई और रँग रोगन हो पा रहा है देखभाल हो पा रही है नहीं तो कभी के खंडहर हो गए होते।
दिन भर इधर उधर घूमने के बाद राजा साहब अभी-अभी सूर्य महल पहुँचे ही थे कि एक सेवक ऐश महल से भागा-भागा आया और उसने हाँपते हुए टूटी फूटी आवाज़ में राजा साहब को बताया कि गौहर बेग़म दुमंज़िले से नीचे गिर गईं हैं, बेहोश हैं और उनको बहुत चोट आई है। राजा साहब ख़बर सुनते ही परेशान हो गए और रानी शारदा देवी और राजकुमारी के साथ तुरंत ऐश महल आ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर गौहर बेग़म की जो हालत उन लोगों ने देखी तो राजा साहब पल भर के लिये हक्के बक्के रह गए। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय?
क्रमशः
सईद भी जो बातों का बड़ बोला शेर था बड़ी शान के साथ बोला, "अपने शहर के बारे में भला हम कैसे तारीफ़ के क़सीदे पढ़ें, उसे तो हम आप हज़रात को दिखा कर पूछेंगे कि आप लोगों को कैसा लगा हमारा भोपाल?"
इधर से शिखा बोल पड़ी, "हमें कैसे पता लगेगा कि भोपाल आप ही का है?"
यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है|
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है|
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है|
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है|
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है|
बीच मे गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "अरे सबा हुकम ये पूछ रहे हैं कि तुम्हें कुँवर अच्छे लगते हैं"
"जी उन्हें कौन नहीं चाहेगा हम चीज़ ही क्या हैं उनके सामने?"
गौहर बेग़म इस पर बोल उठीं, "ये हुई न दिल वालों जैसी कोई बात"
राजा साहब गौहर बेग़म की बात के बाद कुछ न बोले पर अपने मन के भीतर ही भीतर कुँवर की शख्शियत पर नाज़ करने लगे।
दो दिन पंचगढ़ी में बिताने के बाद सभी लोग भोपाल लौट आए। इधर कांकर से निकले हुए बहुत दिन हो गए थे तो एक दिन राजा साहब ने गौहर बेग़म से पूछा, "अब हम कांकर वापस जाना चाहेंगे आपका क्या ख़्याल है"
"आप बताइए"
"अभी शिखा की हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग चल ही रही है तो हम चाहेंगे कि आप अभी कुछ दिन और रुकें, कुँवर को हम अपने साथ ले जाएंगे क्योंकि हमें उनके इलेक्शन की अब चिंता सताने लगी है"
गौहर बेग़म ने कहा, "आपका जो हुक़्म होगा हम वही करेंगे"
तीन चार दिन और रह कर राजा साहब और कुँवर भोपाल से लखनऊ के लिये निकल लिये। जाते-जाते राजा साहब ने सबा से कहा, "आम का सीजन आने वाला है। दशहरी तबियत से खानी हो तो एक बार शौक़त बेग़म को साथ लेकर तुम गौहर बेग़म के साथ कांकर-ज़रूर ज़रूर आना"
शौक़त बेग़म ने भी राजा साहब के भोपाल आने के लिये फिर से शुक्रिया किया और कांकर आने का वायदा किया।
राजा साहब ने कांकर पहुँचते ही कुँवर के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। आसपड़ोस के ग्राम पंचायत के प्रधानों की मीटिंग बुलाई और उनसे कहा कि कुँवर अगला चुनाव लड़ना चाह रहे हैं। जब सभी लोगों ने कुँवर के लिए काम करने का वायदा किया तब जाकर राजा साहब को चैन आया। कुँवर और राजा साहब ने अलग-अलग गाँवों का दौरा करना शुरू किया। एक-एक दिन में वे दोनों ही कम से कम बीस से पच्चीस गाँव जाते और लोगों से मिलते जन संपर्क करते और व्यक्तिगत जान पहचान बढ़ाते। कुँवर की क्षमताओं का कोई ज्ञान पहले राजा साहब को भी नहीं था पर उनकी ये याददाश्त देख कर वह बेहद खुश हुए कि जिस व्यक्ति से कुँवर एक बार मिलते तो उसे अपना बना कर ही छोड़ते साथ ही साथ यह कि वह हर व्यक्ति का नाम अपने मन में सजो लेते।
राजा साहब और कुँवर जब प्रचार के अपने कार्यक्रमों में व्यस्त थे। इधर एक दिन उन्हें खबर मिली कि कुँवर के नानाजी की तबियत बहुत खराब है। राजा साहब महारानी करुणा देवी और कुँवर के साथ खजूरगांव के लिये निकल पड़े। वहाँ पहुँच कर डॉक्टर्स ने उन्हें बताया कि राणा साहब की किडनी फेल हो चुकीं है और फेफड़ों में भी पानी भर गया है और उनकी हृदय गति भी ठीक नहीं है। राजा साहब के बार-बार पूछे जाने पर कि क्या उनको इलाज़ के लिए बाहर ले जाएं। जो डॉक्टर इलाज़ कर रहे थे उन्होंने बताया कि राणा साहब को उन्होंने बहुत पहले ही कहा था पर वह खजूरगांव छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहते थे और उन्होंने ज़िद पकड़ ली थी कि वे अपनी अंतिम सांस खजूरगांव में ही लेंगे।
राणा साहब की हालत और बिगड़ती गई और कुछ दिनों में ही वह स्वर्ग सिधार गए। राजा चंद्रचूड़ सिंह वहीं रुके रहे और महारानी के दुःख की इस घड़ी में वे उनके साथ बने रहे। राणा साहब के अंतिम संस्कार के लिये मिलने आने वालों की भीड़ आने लगी।
महारानी के पिताश्री राणा साहब के अंतकाल की ख़बर सुन कर गौहर बेग़म, शिखा को लेकर कांकर आ गईं। वहाँ से वे सभी लोग रानी शारदा देवी के साथ राणा साहब के अंतिम संस्कार और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए खजूरगांव पहुँच गए।
कुँवर अनिरुध्द सिंह ने राणा साहब के मृत शरीर को दाग क्रिया कर के पवित्र अग्नि के हवाले किया। राणा साहब की पुत्री एकमात्र महारानी करुणा देवी थीं, इसलिए राणा की पदवी कुँवर अनिरुध्द सिंह को प्राप्त हुई और तेरहवीं के बाद बिरादरी भोज की भोज की रस्म के साथ ही उन्हें गद्दीनशीं किया गया।
राजा साहब के परिवार का रुतबा खजूरगांव रियासत के उनके परिवार में मिलने की वजह से समाज में और बढ़ गया जिसका लाभ उन्हें अनिरुध्द के इलेक्शन में शर्तिया मिलने वाला था।
क्रमशः
कुछ दिनों बाद जब स्थित सामान्य हो गई तो शौक़त बेग़म, सबा को साथ लेकर एक रोज़ कांकर आ गए। कांकर में सबा को देख कर राजा साहब बहुत खुश हुए और बोले, "आज ही दशहरी की ताजा-ताजा खेप आई है मन भर खाओ और यहाँ देहात के इलाक़े में मौज करो"
"जी", कह कर राजा साहब का सबा ने शुक्रिया अदा किया।
शौक़त बेग़म और सबा ऐश महल आ गईं। होने को आई और तब तक सबा की मुलाक़ात कुँवर से जब नहीं हो पाई तो वह कुछ उदास हो गई। पहले तो उसे ये अच्छा नहीं लगा कि वह यहाँ ऐश महल में थी और शिखा वहाँ सूर्य महल में।
शाम होते ही जैसे ही कुँवर अपने जन संपर्क कार्यक्रम के बाद जब महल लौटे और शिखा से मुलाक़ात हुई तब शिखा ने उन्हें बताया, "भइया सबा भी आई है"
"कहाँ है?", कुँवर ने पूछा।
"ऐश महल में माँसी के पास"
"चल मेरे साथ उससे मिल कर आते हैं नहीं तो वह यहाँ आकर बोर ही हो रही होगी"
"जी चलिये"
कुँवर ने अपनी गाड़ी निकाली और शीघ्र ही वे लोग ऐश महल आ पहुँचे। महल की चौपड़ में उन्हें ख़ानम बेग़म देखीं और उनसे जानकारी कर वे दोनों गौहर बेग़म के ड्रॉइंग रूम में उनका इंतजार करने लगे।
सबा अपनी खाला जान गौहर के पास बैठी हुई थी उसकी निगाह जब कुँवर पर पड़ी तो उसकी जान में जान में जान आई और बोली, "कुँवर जी मैं आपको कह नहीं सकती कि मैं आज बहुत खुश हूँ क्योंकि मुझे यहाँ आकर पता लगा कि आप खजूरगांव रियासत के राणा बन चुके हैं तो मैं अब आपको राणा जी ही कह कर बुलाया करूँगी"
शिखा भी वहीं कुँवर के साथ खड़ी थी। उसे शरारत सूझ रही थी तो वह सबा को चिढ़ाने के लिये बोल पड़ी, "ये मेरा तो भाई है मैं तो इन्हें भाई ही कह कर बुलाती हूँ तेरा मन करे तो तू भी इन्हें भइय्या कह कर बुला लिया कर"
"मारूँगी शिखा भाई होंगे तेरे मेरे तो ये राणा जी हैं"
"ये सबा अभी से तूने तेरे मेरे करना शुरू कर दिया पता नहीं तू आगे जाकर क्या करेगी?"
"कुछ नहीं करूँगी मैं तेरे साथ वही सुलूक़ करूँगी जो अभी करती हूँ तू मेरी दोस्त है और दोस्त ही रहेगी"
कुँवर इन दोनों की छेड़छाड़ भरी बातें चुपचाप सुन रहे थे और मन ही मन खुश भी हो रहे थे। दोनो के बीच आते हुए बोले, "बन्द भी करो ये बेकार की बातें और काम की बात बताओ कि मौसी कहाँ है?"
"अंदर हैं खालाजान के पास"
"क्या हम मिल सकते हैं उनसे?"
"मज़ा आ गया इस 'हम' में अब हुकम वाली खनक लगती है", सबा ने एक बार फिर कुँवर से छेड़खानी करते हुए कहा, "आइये मेरे राणाजी, आइये न अंदर आइये न"
सबा के पीछे-पीछे कुँवर और शिखा दोनो जनानखाने में शौक़त बेग़म से मिलने चले आये।
क्रमशः
कुँवर ने शौक़त बेग़म का हाल चाल पूछते हुए कहा, "मैं इलेक्शन के काम मे लगा हुआ था इसलिये पिताश्री ने आपके आने की ख़बर ही नहीं की नहीं तो मैं खुद ही लखनऊ रेलवे स्टेशन आकर आपको अपने साथ ही लेकर आता"
"अरे नहीं कुँवर आप क्यों जहमत करते, मैं मुखिया जी के साथ आराम से आ गई थी। ...और बताइये आपके इलेक्शन की तैयारी कैसी चल रही है?" शौक़त बेग़म ने कुँवर से पूछा।
"अभी तो शरुआती दौर है, सब ठीकठाक है। लगता तो नहीं कोई दिक्कत होगी। मौसी इस इलेक्शन के चक्कर मे मेरी पढ़ाई बीच में ही रह गई नहीं तो मैं दो साल में डॉक्टरेट कर लेता। अब तो मैं भी वगैर पढ़े लिखे लोगों की जमात में शामिल हो गया हूँ"
"अरे छोड़िये भी आपको कौन किसी की नौकरी करनी है। आप तो अपनी मर्ज़ी के खुदमुख्तार हैं। आपको तो हुक़ूमत करनी आनी चाहिये, घुड़सवारी वग़ैरह सीखिए और मौज करिए"
"आपा, आज आपने वही बात जो हुकम को उनके प्रिंसिपल ने कही थी जब वह कॉल्विन ताल्लुकेदार में पढ़ा करते थे", बीच मे टोकते हुए गौहर बेग़म बोल पड़ीं।
"शौक़त जो हक़ीक़त है उससे क्या मुँह मोड़ना"
"जी आपा"
शिखा बीच मे बोल पड़ी, "हम लोगों ने मौसी आपके यहाँ घुड़सवारी सीखी थी। यहाँ सबा हाथियों को कैसे काबू करती हैं सीखेगी। हमारे यहाँ कई हाथी हैं"
"छोड़ मुझे महावत नहीं बनना है। हाँ, एक दिन तेरे साथ घूमने ज़रूर चलूँगी", सबा न शिखा से कहा।
कुँवर ने अपनी ओर से सुझाव देते हुए कहा, "ऐसा करते हैं हम लोग कल ही हाथियों पर सवार हो अपनी अमराई में चलेंगे और वहीं दाल बाटी का प्रोग्राम रखते हैं। मौसी आप और माँसी आप साथ रहियेगा"
गौहर बेग़म बोल उठीं, "बड़ा मजा आएगा कल हम लोग अपने साथ महारानी और रानी साहिबा को भी साथ ले चलेंगे। हुकम रहेंगे तो और भी मज़ा आएगा"
शिखा, सबा की ओर देखते हुए बोली, "देखा मेरा भाई तेरा कितना ख़्याल रखता है"
"मेरे लिये ये सब थोड़े ही हो रहा है, मैं तो उस दिन का इंतज़ार कर रही हूँ जब ख़ास मेरे लिये कोई प्रोग्राम राणा जी बनाएंगे"
कुँवर ने सभी के सामने कुछ जबाब नहीं दिया पर मन ही न एक प्रोग्राम ख़ास सबा के लिये बना लिया। कुछ देर वहाँ रह कर कुँवर जब चलने लगे तो शिखा बोली, "सबा तुम चलो आज मेरे साथ ही रहना"
सबा शिखा की बात सुनकर बहुत खुश हुई और बेग़म शौक़त की ओर देखने लगी। शौक़त बेग़म ने भी उसकी ओर देखते हुए कहा, "जा तेरा मन है तो जा, यहीं क्या करेगी? अपने कपड़े वग़ैरह लेती जाना"
गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "तू जा मैं तेरे कपड़े चोबदार के हाथों भिजवा दूँगी"
शिखा, सबा और कुँवर कुछ देर ऐश महल में बिता कर सूर्य महल आ गए।
क्रमशः
रात को जब गौहर बेग़म राजा साहब से मिलीं तो उन्होंने पूछा, "बच्चे कल अमराई जाना चाह रहे हैं, आप चलेंगे?"
"मुझे तो बताया गया है कि आप और शौक़त बेग़म भी तो जा रहीं हैं"
"कल पूरा परिवार रहेगा महारानी और रानी साहिबा भी रहेंगी आप चलेंगे तो हम सभी को अच्छा लगेगा"
राजा साहब ने जबाब दिया, "हम ज़रूर ज़रूर पहुँचेंगे पर कुछ देर से हमारी एक मीटिंग है उसे निपटा कर हम आपको अमराई में ही मिलेंगे। मुखिया जी को हमने सभी इंतज़ाम करने के लिये कह दिया है"
"आपका बहुत बहुत शुक्रिया"
राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने पास बुलाते हुए उनसे पूछा, "हमारा एक सवाल है और हम उम्मीद रखते हैं कि आप हमें सही-सही जबाब देंगी"
"जी पूछिये", गौहर बेग़म ने कहा।
राजा साहब यह सोचते हुए कि अभी पूछना ठीक होगा है या नहीं आख़िर में गौहर बेग़म से बोले, "बेग़म बड़ी ईमानदारी से बताइये कि कुँवर क्या सबा को चाहने लगे हैं?"
"मैं तो डर ही गई थी पता नहीं आप क्या पूछने वाले है? अगर मैं कहूँ जी नहीं तो आप क्या कहेंगे?"
"हम क्या कह सकते हैं, हम तो तीन-तीन बेग़मो के साथ रहते हैं हम कुँवर को क्या कहेंगे। जब हमारे दिल मे मज़हब का कोई ख़्याल नहीं है तो हम बस ये जानना चाहते हैं कि उनके बीच कुछ है या नहीं?
"मुझे आपसे यही उम्मीद थी। अब अगर आप चाहते हैं कि हम सबा को यहीं रोक दें तो हम आपकी इस ख़्वाहिश को हुक्म मानकर अंजाम तक पहुँचा देंगे"
"नहीं बेग़म हम अपने कुँवर के ख़िलाफ़ कोई भी साजिश नहीं करना चाहते हैं, बस ये चाहते थे कि ये लोग अभी बस ज़माने की निग़ाह से बच कर रहें ख़ासतौर पर जब कि अभी इलेक्शन होने वाले हैं हम तब तक बस ये चाहते हैं कि कहीं कोई इसे मुद्दा न बना दे"
"मैं आपसे इन मुआमले में इत्तफ़ाक़ रखती हूँ और आप चिंता न करें, मैं सब सम्हाल लूँगी और वैसे भी अब कुछ ही दिनों में इनके कॉलेज खुलने वाले हैं। ये लोग यहीं से दिल्ली को रवाना हो जायेंगी बस आपा कुछ दिन और रहेंगी"
"अरे बेग़म वो हमारी मुअज़्ज़िज़ मेहमान हैं वो यहाँ रहेंगी ये तो हमारी शान में चार चाँद लगने वाली बात है"
गौहर बेग़म ने उठते हुए राजा साहब से पूछा, "आपकी मेहमानदारी की दुनिया यूँही मिसाल देती है। आप अपने मेहमानों को खातिरदारी में कुछ भी कसर नहीं छोड़ते"
"बेग़म आपका बहुत-बहुत शुक्रिया"
"हुकुम कुछ पीजियेगा?"
"नहीं बेग़म मन नहीं है। चलिये अभी कुछ देर हम शौक़त बेग़म के साथ गुफ़्तगू करना चाहेंगे आज वह वैसे भी अकेली हैं। सबा तो शिखा के साथ है"
"जी बेहतर है। आइये मैं उन्हें ऊपर वाली अटारी पर बुला भेजती हूँ, हम लोग वहीं बैठ कर खाना खाएंगें"
"शायद यही बेहतर रहेगा"
इसके बाद राजा साहब और गौहर बेग़म ऊपर अटारी पर चले गए। ख़ानम बेग़म से ख़बर करा कर शौक़त बेग़म को भी उन्होंने वहीं बुलवा लिया। थोड़ी ही देर में शौक़त बेग़म भी तैयार होकर आ गईं। बातचीत का दौर जब चल निकला तो बेग़म शौक़त ने ऐश महल की तारीफ़ में न जाने क्या-क्या में कहा कि राजा साहब का दिल बाग़-बाग़ हो गया और उनके मुँह से निकल पड़ा:
"ऐश महल हमारे पितामह ने मेहमानों की ख़िदमत के लिये गंगा किनारे इसलिए बनबाया था कि जब वे लोग यहाँ आएं तो उन्हें कांकर की मेहमानदारी ता ज़िन्दगी याद रहे। उनके दोस्त अक़्सर यहाँ आते और रात भर नाच गाना और खानापीना होता। जिले का हर अफ़सर इस महल में ही आकर रुकता था। यहाँ तक कि जब देश का स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तब भी यहाँ बड़े-बड़े नेता यहाँ आकर रुके थे। इस तरह हमारा कांकर भले ही एक गाँव हो पर मेहमानदारी के लिये दुनिया भर में जाना जाता है। एक बार तो यहाँ शाम की दावत में यूनाइटेड प्रोविंस के लाट साहब भी आकर रुके थे"
तीनों लोगों ने मिलजुल कर खाना खाया। खाना खाते वक़्त भी शौक़त बेग़म राजा साहब ने और भी कई किस्से कहानियां सुना कर पुराने वक़्त की यादें ताज़ा कीं। राजा साहब इतने खुश थे कि उन्होंने अपनी विदेश यात्रओं के कई दिलचस्प वाक़्यात सुनाये जो पहले कभी भो गौहर बेग़म ने भी नहीं सुने थे।
गौहर बेग़म से जब नहीं रहा गया तो आखिर में वह बोल हो पड़ीं, "आशिक़ाना मिज़ाज़ तो आपका शुरू से ही रहा है ये हम तीनों बेगमात को बहुत अच्छे से मालूम है पर आज आपसे जाना कि आपने दूसरे मुल्क के दौरों पर भी खूब गुल खिलाये हैं"
राजा चंद्रचूड़ सिंह भी आज बहुत खुश थे और इसी अंदाज़ में बेग़म से बोल, "बेग़म ये जिंदगी अल्लाहताला एक बार ही बख्शता है। यहाँ आकर हँस लो या रो लो वह आपके खुद के ऊपर है"
क्रमशः
कुछ कही कुछ अनकही सी अपनी बात:
कुछ मित्रों ने लिखा है कि आपकी कल्पना के पात्र अधिकतर अपनी बिरादरी से सम्बंधित लोगों को ही क्यों सदैव अपनी कहानी, किस्से, धारावाहिको के केंद्र बिंदु क्यों बनाते हैं। इस पर मुझे ख़्याल आया कि इसी तरह का प्रश्न एक बार रोम में माइकेल एंजेलो से भी पूछा गया था कि आप हमेशा शिल्पकारी करते समय पुरुषों को ही अपनी शिल्पकला में क्यों ढालते हैं। आप कभी स्त्रियों को अपनी कला का हिस्सा क्यों नहीं बनाते?
उस वक़्त माइकेल एंजेलो, डेविड का ही नहीं बल्कि न जाने कितने ही जाने माने रोम (इटली) के दर्शनीय स्थलों में अपनी प्रतिभा का लोहा मनमाने वाले महान शिल्पकार ने यह उत्तर दिया था, "मैंने अपनी नग्नता को देखा है। जिसे मैंने भीतर से देखा ही नहीं है उसको मैं अपनी कृति का हिस्सा कैसे बना सकता हूँ"
धन्यवाद।
महामंडलेश्वर जी के अगले दिन के प्रवचन में उन्होंने माँ नवदुर्गा के पंचम दिन के बारे में बताते हुए कहा:
नवरात्रि का पाँचवाँ दिन स्कंदमाता की उपासना का दिन होता है। मोक्ष के द्वार खोलने वाली माता परम सुखदायी हैं। माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूर्ति करती हैं।
स्कंदमाता : माँ दुर्गा का पांचवा स्वरूप हैं।
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं माँ दुर्गा का पांचवा रूप स्कंदमाता के बारे में :-
इस देवी की चार भुजाएं हैं। यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है।
पहाड़ों पर रहकर सांसारिक जीवों में नवचेतना का निर्माण करने वालीं स्कंदमाता। नवरात्रि में पाँचवें दिन इस देवी की पूजाअर्चना की जाती है। कहते हैं कि इनकी कृपा से मूढ़ भी ज्ञानी हो जाता है। स्कंद कुमार कार्तिकेय की माता के कारण इन्हें स्कंदमाता नाम से अभिहित किया गया है। इनके विग्रह में भगवान स्कंद बालरूप में इनकी गोद में विराजित हैं। इस देवी की चार भुजाएं हैं।
यह दायीं तरफ की ऊपर वाली भुजा से स्कंद को गोद में पकड़े हुए हैं। नीचे वाली भुजा में कमल का पुष्प है। बायीं तरफ ऊपर वाली भुजा में वरदमुद्रा में हैं और नीचे वाली भुजा में कमल पुष्प है। इनका वर्ण एकदम शुभ्र है। यह कमल के आसन पर विराजमान रहती हैं। इसीलिए इन्हें पद्मासना भी कहा जाता है। सिंह इनका वाहन है।
शास्त्रों में इसका पुष्कल महत्व बताया गया है। इनकी उपासना से भक्त की सारी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। भक्त को मोक्ष मिलता है। सूर्यमंडल की अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज और कांतिमय हो जाता है। अतः मन को एकाग्र रखकर और पवित्र रखकर इस देवी की आराधना करने वाले साधक या भक्त को भवसागर पार करने में कठिनाई नहीं आती है।
उनकी पूजा से मोक्ष का मार्ग सुलभ होता है। यह देवी विद्वानों और सेवकों को पैदा करने वाली शक्ति है। यानी चेतना का निर्माण करने वालीं। कहते हैं कालिदास द्वारा रचित रघुवंशम महाकाव्य और मेघदूत रचनाएं स्कंदमाता की कृपा से ही संभव हुईं।
सिंहसनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया।
शुभदास्तु सदा देवी स्कंदमाता यशस्विनी॥
महामंडलेश्वर ने अगले दिन के कार्यक्रम में माँ दुर्गा के अगले अवतार की महिमा बताते हुए कहा कि
माँ दुर्गा के छठे स्वरूप का नाम कात्यायनी है। उस दिन साधक का मन 'आज्ञा' चक्र में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।
कात्यायनी : माँ दुर्गा का छठवां स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं छठवीं देवी कात्यायनी के बारे में :-
नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की पूजा की जाती है। इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं।
इस देवी को नवरात्रि में छठे दिन पूजा जाता है। कात्य गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन ने भगवती पराम्बा की उपासना की। कठिन तपस्या की। उनकी इच्छा थी कि उन्हें पुत्री प्राप्त हो। माँ भगवती ने उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लिया। इसलिए यह देवी कात्यायनी कहलाईं। इनका गुण शोधकार्य है। इसीलिए इस वैज्ञानिक युग में कात्यायनी का महत्व सर्वाधिक हो जाता है। इनकी कृपा से ही सारे कार्य पूरे जो जाते हैं। यह वैद्यनाथ नामक स्थान पर प्रकट होकर पूजी गईं।
माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा की थी। यह पूजा कालिंदी यमुना के तट पर की गई थी।
इसीलिए यह ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं। इनका स्वरूप अत्यंत भव्य और दिव्य है। यह स्वर्ण के समान चमकीली हैं और भास्वर हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। दायीं तरफ का ऊपर वाला हाथ अभयमुद्रा में है तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में। मां के बाँयी तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार है व नीचे वाले हाथ में कमल का फूल सुशोभित है। इनका वाहन भी सिंह है।
इनकी उपासना और आराधना से भक्तों को बड़ी आसानी से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति होती है। उसके रोग, शोक, संताप और भय नष्ट हो जाते हैं। जन्मों के समस्त पाप भी नष्ट हो जाते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस देवी की उपासना करने से परम पद की प्राप्ति होती है।
चंद्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी॥
अगले दिन के प्रवचन में उपस्थित जन समूह को बताते हुए महामंडलेश्वर ने बताया कि माँ दुर्गाजी की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। दुर्गापूजा के सातवें दिन माँ कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन 'सहस्रार' चक्र में स्थित रहता है। इसके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों का द्वार खुलने लगता है।
कालरात्रि माँ : दुर्गा का सातवां स्वरूप
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं सातवीं देवी कालरात्रि के बारे में :-
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं।
नाम से अभिव्यक्त होता है कि माँ दुर्गा की यह सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती है अर्थात जिनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। नाम से ही जाहिर है कि इनका रूप भयानक है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं और गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। अंधकारमय स्थितियों का विनाश करने वाली शक्ति हैं कालरात्रि। काल से भी रक्षा करने वाली यह शक्ति है।
इस देवी के तीन नेत्र हैं। यह तीनों ही नेत्र ब्रह्मांड के समान गोल हैं। इनकी सांसों से अग्नि निकलती रहती है। यह गर्दभ की सवारी करती हैं। ऊपर उठे हुए दाहिने हाथ की वर मुद्रा भक्तों को वर देती है। दाहिनी ही तरफ का नीचे वाला हाथ अभय मुद्रा में है। यानी भक्तों हमेशा निडर, निर्भय रहो।
बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में लोहे का कांटा तथा नीचे वाले हाथ में खड्ग है। इनका रूप भले ही भयंकर हो लेकिन यह सदैव शुभ फल देने वाली मां हैं। इसीलिए यह शुभंकरी कहलाईं। अर्थात इनसे भक्तों को किसी भी प्रकार से भयभीत या आतंकित होने की कतई आवश्यकता नहीं। उनके साक्षात्कार से भक्त पुण्य का भागी बनता है।
कालरात्रि की उपासना करने से ब्रह्मांड की सारी सिद्धियों के दरवाजे खुलने लगते हैं और तमाम असुरी शक्तियां उनके नाम के उच्चारण से ही भयभीत होकर दूर भागने लगती हैं। इसलिए दानव, दैत्य, राक्षस और भूत-प्रेत उनके स्मरण से ही भाग जाते हैं। यह ग्रह बाधाओं को भी दूर करती हैं और अग्नि, जल, जंतु, शत्रु और रात्रि भय दूर हो जाते हैं। इनकी कृपा से भक्त हर तरह के भय से मुक्त हो जाता है।
एकवेणी जपाकर्णपूरा नग्ना खरास्थिता।
लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी तैलाभ्यक्तशरीरिणी॥
वामपादोल्लसल्लोहलताकण्टकभू
वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा कालरात्रिर्भयंकरी॥
क्रमशः
महागौरी शुभं दद्यान्महादेवप्रमोदया॥
नवरात्रि में दुर्गा पूजा के अवसर पर बहुत ही विधिविधान से माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजाउपासना की जाती है। आइए जानते हैं नौवीं देवी सिद्धिदात्री के बारे में :-
सन्नाटों में आग लगा दी
जैसी चाही शक्ल बना दी
मैं ने तेरी बात बढ़ा दी
अपनी ही तस्वीर बना दी
दुनिया में तेरी शान बढ़ा दी
कथांश:52
कुँवर तो इस बीच राजनीतिक घटनाओं में इतने व्यस्त रहे कि उन्हें अपनी निज़ी ज़िन्दगी के बारे में सोचने समझने के लिये कुछ समय ही नहीं मिला। इधर राजा साहब के ऊपर राजकुमारी शिखा की शादी को शीघ्र निपटाने का जोर रानी शारदा देवी जी के द्वारा बढ़ाया जा रहा था। इन सब सवालों के बीच से गुजरते हुए एक दिन गौहर बेग़म ने राजा साहब के लिये संदेशा भिजवाया कि अगर मुनासिब हो सके तो वे ऐश महल तशरीफ़ लाएं कुछ ज़रूरी बात करनी है। राजा साहब के आते ही गौहर बेग़म ने कुँवर और सबा की आपसी रज़ामन्दी की बात बता कर राजा साहब को एक बड़ी चितां से जहाँ मुक्त कर दिया वहीं राजा साहब के ऊपर यह बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी कि वे इलाके के राजपूतों और ब्राह्मणों को क्या कह कर समझायेंगे कि वह अपने कुँवर की शादी किसी ऐसी गैर बिरादरी में कर रहे हैं जिसके बारे समाज में यह आम तौर पर कहा जाता हो कि लड़का कहीं से भी व्याह करले पर बस दलितों, पिछड़ी जातियों में और खास तौर पर मुसलमानों के यहाँ तो शादी कभी भूल कर भी न करे।
राजा साहब गौहर बेग़म की खबर पर जहाँ कुछ खुश भी हुए वहीं उनकी समस्या भी विकराल रूप धारण कर उनके सामने आकर खड़ी हो गईं। बाबजूद इसके एक राजा के रूप में कभी भी हार न मानने वाले व्यक्तित्व को धारण करने वाले इस व्यक्ति ने गौहर बेग़म से कहा, "हम दोनों की इच्छाओं के अनुरूप ही काम करेंगे। एक काम करिए आप भोपाल जाइये और हमारी ओर से कुँवर के रिश्ते की बात शौक़त बेग़म से करिए और उनसे यह भी कहिये कि हम इस निकाह के लिये तैयार हैं पर हमारी एक शर्त है कि कुँवर का निकाह शिखा की विदाई के बाद ही सम्भव हो पायेगा क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि ये रिश्ता राजा साहब माणिकपुर के गले उतरेगा कि नहीं"
गौहर बेग़म ने राजा साहब की बात से इत्तिफ़ाक़ रखते हुए यह माना कि इन दोनों की शादी के पहले शिखा बेटी की शादी हो जानी चाहिए तब तक इसके बारे में हम कहीं भी इस प्रश्न पर कोई चर्चा समाज में नहीं करेंगे। गौहर बेग़म ने अपनी ओर से प्रस्ताव रखा कि वह जल्दी से जल्दी भोपाल जाने की कोशिश करेंगी।
राजा साहब की बढ़ी हुई उलझनों और उन्हें परेशान देख कर गौहर बेग़म ने राजा साहब के लिये एक जाम बनाया और उनके हाथ मे दिया। राजा साहब ने जब दो तीन जाम पी लिये तो गौहर बेग़म से कहा, "बेग़म हम कुँवर की खुशी के लिये सब कुछ करने को तैयार हैं हम उसे किसी भी हालत में दुःखी नहीं देख सकते हैं"
"मैं इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ हुकुम"
"अब सारा दारो मदार आपके ऊपर है"
"आप मुझ पर विश्वाश रखें इस मसले को मैं ठीक ढंग से सुलझा सकूँगी"
"हमें आप पर पूरा भरोसा है", राजा साहब ने यह कहा और खाना खाया और गौहर बेग़म के आगोश में आंखें मूद कर लेट गए। गौहर बेग़म को एक पुराना नगमा याद हो आया। जिसे उन्होंने अपने सुरीले अंदाज़ में जब गाया तो राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ।
अगर मुझसे मोहब्बत है,
मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर एक आँसू,
मुझे मेरी कसम दे दो
अगर मुझसे...
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ
तो करार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छूपा लू,
तो करार आए
वो हर शय जो तुम्हे दुःख दे,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...
शरीक-ए-जिन्दगी को क्यों,
शरीक-ए-गम नहीं करते
दुखों को बाटकर क्यों,
इन दुखों को कम नहीं करते
तड़प इस दिल की थोड़ी सी,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...
इन आँखों में ना अब मुझको
कभी आँसू नजर आए
सदा हँसती रहे आँखे,
सदा ये होंठ मुसकाये
मुझे अपनी सभी आहे,
सभी दर्द-ओ-आलम दे दो
अगर मुझसे...
नगमा सुनते सुनते राजा साहब को कब नींद आ गई पता ही न लगा जब सुबह आँख खुली तो उन्होंने गौहर बेग़म को सोता पाया।
क्रमशः
कथांश:53
राजा साहब से बात कर के गौहर बेग़म ने भोपाल जाने का प्रोग्राम तय किया कि कांकर से वह भोपाल के लिये निकलेंगी और उधर से सबा रेल गाड़ी से भोपाल पहुँच जाएगी।
सईद गौहर बेग़म से रेलवे स्टेशन पर जब मिला तो गौहर बेग़म ने यही पूछा, "सबा भी पहुँच गई कि नहीं"
सईद के ये कहने पर कि वह सबा को खुद दो घँटे पहले ही रेलवे स्टेशन से शौक़त मंज़िल छोड़ कर आया है। सईद की कुछ समझ मे नहीं आ रहा था कि अचानक ही खालाजान का और सबा का प्रोग्राम भोपाल आने का क्यों बना इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। इस वजह से वह पूछ ही बैठा, "खालाजान कांकर में सब लोग ठीक से हैं, शिखा कैसी है? अचानक ऐसा क्या हो गया कि आपको भोपाल इस तरह जल्दबाज़ी में आन पड़ा?"
"चल पहले हवेली चल वहीं पहुँच कर बात करूँगी" कह कर गौहर बेग़म ने बात टालने की कोशिश की। शौक़त मंज़िल पर पहुँचने पर जो सवाल सईद ने किया वही सवाल शौक़त बेग़म ने किया। गौहर बेग़म ने उनसे भी यही कहा कि पहले मुँह हाथ तो धो लेने दो, कुछ नाश्ता वग़ैरह करवाओ तो फिर आराम से बैठ कर बात करते हैं। कुछ देर बाद जब दोनों बहनें मिलीं तो आपस में बात हुई और गौहर बेग़म ने कहा, "पहले सबा को बुला लो आगे की बातचीत उसकी हाज़िरी में हो, वही बेहतर होगा"
जब तक सबा आती तब तक गौहर बेग़म ने अपनी बात रखते हुए कहा, "आपा पता नहीं हमारी निगाहों के सामने न जाने क्या क्या होता रहा और हमें कुछ पता ही न लगा। हम उससे अनजान बने रहे और दो जवान दिल एक दूसरे से मोहब्बत कर बैठे"
"गौहर तू अपनी बात खुल कर कर बता पहेलियाँ न बुझा"
"आपा मैं जो बात कर रही हूँ, ये उस वक़्त की बात है जब हम लोग पिछली बार आपके यहाँ आये थे तब सबा कुँवर के जज़्बात से खेलते खेलते न जाने कब उसके इतने करीब आ गई कि वह कब उसकी हो गई हमें कुछ पता ही न लगा"
शौकत बेग़म ने गौहर बेग़म से अपने मन की बात कहते हुए कहा, "गौहर तू क्या कह रही है, मुझे तो शक़ था कि शिखा हमारे सईद के पीछे पड़ी हुई थी और इसके बारे में सईद ने एक बार इशारों इशारों में ये बात मुझसे कही भी थी पर मैंने इस पर कभी गौर ही नहीं किया ये मान कर बच्चे हैं ये सब थोड़ा बहुत आपस मे चलता ही रहता है। लेकिन जिस तरह से तू अब बता रही है उससे तो लगता है कि पानी सिर के ऊपर से बह निकला है"
"जी आपा"
इतने में सबा भी आ गई। गौहर बेग़म ने उसे बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और पूछा, "कैसी है? पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?"
"जी खालाजान ठीक चल रही है"
"कितने दिन तक अभी और पढ़ने का इरादा है?"
"जी मैं कुछ समझी नहीं"
"मैं ये पूछ रही हूँ कि बीए पास करने के बाद क्या इरादा है?"
सबा ने एक बार शौकत बेग़म की ओर देखा और धीरे से बोली, "मेरा बस चले तो मैं तो एमए करूँ और उसके बाद पीएचडी भी", सबा ने जवाब देते हुए कहा।
"लगता तो नहीं कि तेरे इरादे आगे पढ़ने वाले हैं"
"आप ऐसे क्यों कह रही हैं, आपको तो मेरे बारे में सब कुछ पता है", सबा ने जवाब देते हुए कहा।
सबा का जवाब सुन कर शौकत बेग़म ने पूछा, "सबा बेटे ऐसे बात नहीं करते हैं। तुम्हारी खाला ये जानना चाह रहीं हैं कि अगर तुम्हें पूरा मौका मिले तो तुम आगे क्या करना चाहोगी?"
"जी अम्मी मैं अभी और पढूँगी"
इस पर गौहर बेग़म ने पूछा, "तूने कभी इस मसले पर कुँवर से बात करी है कि नहीं?"
"जी नहीं खाला जान मेरी कभी उनसे इस मुआमाले में बात नहीं हुई है"
शौकत बेग़म बीच मे टोकते हुए बोल उठीं, "इसका मतलब हम क्या लगाएं कि तू कुँवर से बात तो करती है और खूब हँस हँस कर उनके बहुत करीब जाकर बात भी करती देखी गई है तो उनसे फिर तू किस मसायल पर उनसे बात करती है?"
शौक़त बेग़म के सवाल से जब सबा घिरती नज़र आई तो गौहर बेग़म ने बीच मे कमान सम्हालते हुए कहा, "अब पहेली बुझाने से कोई बात नहीं बनेगी आपा। मैं बताती हूँ कि आपकी बेटी सबा हमारे बेटे कुँवर अनिरुध्द सिंह से इश्क़ करने लगी है और हमारा बेटा भी सबा को दिल दे बैठा है। अब बस हमें ये पता करना है कि ये लोग निकाह कब करना चाहेंगे। मैं भी आपके पास इसी मक़सद से आई हूँ कि अब आप सबा को हमको सौंपने की तैयारी शुरू कर दीजिए"
शौक़त बेग़म ने सबा से पूछा, "सबा तेरी खाला को तो जवाब मैं बाद में दूँगी पर पहले बेटी ये बता कि क्या तू कुँवर से मोहब्बत करती है या नही?"
सबा जब कुछ वक़्त तक चुप रही तो गौहर बेग़म बीच में बोल पड़ीं, "बेटी जब इश्क़ करते हैं तो डरते नहीं है और जो डरते हैं वो इश्क़ नहीं करते"
"बता सबा मैं तेरे मुँह से सुनना चाहती हूँ कि आखिर तेरे दिल में क्या है?"
"जी अम्मी"
"क्या जी अम्मी?", शौक़त बेग़म ने फिर पूछा।
"जी मैं कुँवर से मोहब्बत करती हूँ"
"उनकी क्या मर्ज़ी है?"
"जहाँ तक मैं जानती हूँ वह भी मुझ से बेपनाह मोहब्बत करते हैं और हमारे दिल में कोई खोट नहीं है", कह कर सबा चुप हो गई।
"चल तेरी मर्ज़ी तो जान ली? गौहर चल मैं अपनी बेटी तुझे देने को तैयार हूँ पर एक शर्त पर कि तू अपनी बेटी मुझे दे दे, मेरे सईद के लिये। मेरा सईद शिखा से बेपनाह मोहब्बत करता है"
शौक़त बेग़म की ये बात सुन कर तो गौहर बेग़म के तो तोते ही उड़ गए।
कथांश:54
गौहर बेग़म की समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या कहें, इसी बीच सबा बोल उठी, "अम्मी पर शिखा की तो सगाई हो चुकी है कुँवर मानवेन्द्र सिंह माणिकपुर के साथ"
गौहर बेग़म की जान में जान आई तो वह बोलीं, "आपा ये बात कभी ज़ाहिर ही नहीं हुई कि सईद के दिल मे शिखा के लिए कुछ चल रहा है, अगर ये पता लग जाता तो आपकी बात मानने में मुझे कोई उज्र नहीं होता। तब हर लिहाज़ में मेरी बेटी सईद की दुल्हन बन सकती थी और सबा मेरी बहू"
वास्तव में दोनों बहनों के सामने ये सवालात इस तरह से उभरे कि वे समझ ही नहीं पा रहीं थीं कि वे इस प्रॉब्लम से कैसे निज़ाद पाएं। एक अजीब सा डर दोनों के दिलों में बैठ गया था। इसके बाबजूद वे दोंनों ही चाहतीं थीं कि कोई बीच का रास्ता निकल आये।
शौक़त बेग़म ने हुकुम के बादशाह का पत्ता अपने पास रखते हुए कहा, "मुझे भी कोई खबर नहीं थी कि सईद शिखा का कुछ चक्कर चल रहा है। ये तो मुझे सईद ने मुझे बाद में बताया कि शिखा उसे बहुत अच्छी लगने लगी है"
गौहर बेग़म ने अपनी बात साफ करते हुए कहा, "आपा अब तो आप शिखा की बात भूल ही जाइये और सबा की बात करिए"
"देख गौहर मैं अभी कुछ नहीं कह सकती हूँ, जब तक कि मैं सईद से इस मसले पर बात न कर लूँ"
"सबा उसकी बहन है इसलिये आपका उससे पूछना बिल्कुल बाजिब है। आने दीजिये सईद से मैं आपके सामने बात कर लूँगी", कह कर गौहर बेग़म ने कुछ देर के लिए बात सम्हाल ली।
शौकत बेग़म ने कहा, "गौहर तेरे बेटे और बेटी ने हमारे घर में तूफान ला दिया"
"आपा मैं तो बहुत खुश हुई थी कि शिखा और सबा की दोस्ती की वज़ह से ही हम ज़माने से दो बिछड़ी हुई बहनें मिल गए थे। उम्मीद पर दुनिया कायम है उम्मीद रखिये आने वाले वक़्त में भी जो होगा अच्छा ही होगा"
"खुदा करे ऐसा ही हो मुझे बड़ा डर लग रहा है कि कहीं कोई तूफान फिर से न खड़ा हो जाय जो हमें फिर से अलग कर दे", कहते हुए शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म के दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिये। उन दोनों के माथे पर शिकन की लाइनें साफ दिखाई दे रही थीं और निगाहों में अनजाना सा एक डर।
क्रमशः
कथांश:55
देर रात जब सईद लौटा तो शौक़त और गौहर बेग़म ने मिल कर उसे सारी बात बताई और पूछा, "अब तुम ही बताओ कि क्या किया जाए?"
सईद ने कहा, "ये बात तो बरसों से चली आ रही है कि हिंदू, मुसलमानों की लड़कियां तो अपने घर मे ले लेते हैं पर अपनी बेटियों की शादी मुसलमानों के यहाँ करना पसंद नहीं करते। सबा के मुआमले में भी मुझे यही अहसास हो रहा है और जो लड़कियां अपने आप किसी तरह किसी मुसलमान के यहाँ शादी कर भी लें तो हिंदुओं की पूरी जमात हो हल्ला मचाने लगती है"
गौहर बेग़म ने सईद को बीच मे टोकते हुए बोला, "सईद एक बात बता कि तूने कभी खुल के शिखा से कहा कि तू उससे मोहब्बत करता है? दूसरा यह कि सबा को अगर कुँवर अच्छा लगने लगा तो इसमें कुँवर की क्या गलती? कुँवर ने सबा के साथ कोई ज़बरदस्ती तो नहीं की"
"खालाजान नहीं। मैं सोचता ही रह गया और शिखा को कोई और ले उड़ा। अब मैं क्या करूँ खालाजान?"
"चल सईद एक चीज और बता कि फिर शिखा को कैसे पता लगता कि तू उसे दिल ही दिल चाहने लगा है। भाई, हमारे ज़माने में तो मोहब्बत लोग खुल के किया करते थे कभी इकतरफ़ा नही और अगर किसी ने इकतरफ़ा मोहब्बत किसी से की भी तो उसका कोई मायने ही नहीं", शौक़त बेग़म ने भी सईद से पूछा।
सईद क्या जबाब देता बस इतना ही कह पाया, "मैं सोच रहा था कि अबकी बार मैं सबा से कहता कि एक बार फिर शिखा को किसी बहाने अपने साथ भोपाल छुट्टियों में ले आये तो मैं उससे बात करने की सोच रहा था"
इस पर शौक़त बेग़म ने कहा, "जब चिड़िया चुग गईं खेत तो अब रोने से क्या फ़ायदा?"
गौहर बेग़म ने भी बीच में बोलते हुए कहा, "तू अपने लिये सबा की ज़िंदगी तो कुर्बान नहीं कर सकता है, मेरे बेटे?"
"मैं समझ रहा हूँ खालाजान"
"तो तू सबा के निकाह के लिये तैयार हो जा", गौहर बेग़म ने कहा।
"उसके निकाह के लिए मैं तो कोई भी बात नहीं कह रहा। बस खालाजान एक काम कर दो किसी भी तरह शिखा से एक बार मेरी मुलाक़ात करा दो। उसके बाद भी अगर उसका वही फैसला रहा तो मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा"
"तू क्या कह रहा है, कुछ समझ भी है तुझे?", गौहर बेग़म ने बीच मे टोकते हुए कहा, "अगर राजा साहब को ज़रा सा भी शक़ हो गया कि मैं किसी ऐसे मुआमले में शरीक़ हूँ तो तू जानता है कि वह क्या करेंगे? सबसे पहले तो वह मुझे गोली से उड़ा देंगे और मैं नहीं जानती कि उनका शिखा के ऊपर क्या कहर बरपेगा?"
सईद भी अपने दिल से मज़बूर बोल पड़ा, "फिर आप ही बताइए कि मैं क्या करूँ?"
शौक़त बेग़म ने बीचबचाव करते हुए कहा, "बेटा तूने हम सब को मुश्किल में डाल दिया है। अब तू जा खाना। सबा को भी साथ ले ले। हम लोगों को सोचने दे कि कोई हल है इस मसाइल का"
गौहर बेग़म ने भी सईद को याद दिलाया कि राजा साहब के अब्बा ने अपने एक दोस्त को वचन दे दिया था कि वह अपने बेटे की शादी उनकी लड़की से कर देंगे। राजा साहब ने अपने अब्बा की बात न ख़राब हो सिर्फ़ इसलिये महारानी करुणा जी से शादी की। उसके बाद उन्होंने अपनी मन मर्ज़ी की दूसरी शादी रानी शारदा देवी के साथ की।
गौहर बेग़म ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "राजा साहब के परिवार के लोगों के लिए कोई भी दिया हुआ वचन पत्थर की लकीर के समान है और जब कि शिखा की सगाई कुँवर महेंद्र से हो गई है तो मेरी समझ के तो बाहर की बात है कि अब शिखा के मसले में कुछ भी हो सकता है?"
"जा भाई जा तू खाना खा और सबा को भी खिला दे। हमें अपने हाल पर छोड़ दे", शौक़त बेग़म परेशान हो कर बोल पड़ीं।
कथांश:56
सईद डाइनिंग हॉल की ओर निकल गया और सबा को खाना खाने के लिये बुलवाया। सबा ने जब सईद को देखा तो बोल उठी, "भाई जान अम्मी और आपा दोनों ही बहुत परेशान नज़र आ रहीं हैं"
"तू चिंता मत कर बड़े लोग मिल कर कुछ न कुछ रास्ता निकाल लेंगे। तू खाना खा", कह कर सईद ने सबा को चुप कराने की कोशिश की।
"भाई जान एक बात तो जरा सोचिए शिखा की तो सगाई हो चुकी है और वह अपनी सगाई से बहुत खुश भी है तो भला क्या ये हमारे लिये अब ठीक होगा कि हम ये कहें कि आप उससे इश्क़ करते हो", सबा ने सईद से कहा।
"सही तो कुछ भी नहीं हो रहा है। तूने कब मुझे बताया कि तू कुँवर से मोहब्बत करने लगी है। क्या ये तेरा फ़र्ज़ नहीं बनता था कि तू मुझे बताती कि तेरा कुँवर से रिश्ता क्या है?"
सबा सईद की बात सुन कर एक बारगी तो चुप रह गई पर उसने सारी हिम्मत जुटा के बोली, "भाई जान क्या मैं एक बात कहूँ अगर आप नाराज़ न हों तो?"
"बोल क्या कहना है, वैसे मेरा मूड ठीक नहीं है पर मैं तेरी हर बात बड़े ध्यान से सुनूँगा क्योंकि तुझे मोहब्बत के बारे में कुछ मुझसे ज्यादा ही पता है"
"मैं नहीं जानती कि मैं कहाँ तक ठीक हूँ या गलत लेकिन फिर भी ये आपसे सबा का वायदा है कि अगर शिखा के दिल के किसी भी कोने में आपके लिये कोई भी मोहब्बत का ज़र्रा है तो मैं तुम्हें उससे मिलवा कर रहूँगी"
"तू क्या करेगी छोड़। इन बातों में अब कुछ नहीं रखा। मेरी किस्मत में जो भी होगा ठीक ही होगा, बस तू अपनी चिंता कर। एक बड़ा भाई होने के नाते मैं तेरे और कुँवर के बीच नहीं आउँगा"
"मैंने भी कुछ सोच समझ कर ही तुमसे वायदा किया है, देखना कि मैं अपना वायदा निभा के रहूँगी", सबा ने सईद को आश्वासन देते हुए कहा।
इसी बीच शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म आपस में बातचीत करती रहीं कि इस टेढ़े से सवाल का कोई रास्ता निकल सके। शौक़त बेग़म गौहर बेग़म से बोलीं, "हम लोग कहाँ बैठे ठाले इस चक्कर में फंस गए"
"मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं किस तरह इस झँझट से निकल पाऊँगी", गौहर बेग़म ने जवाब देते हुए कहा, "मैं राजा साहब को कौन सा मुहँ दिखाऊँगी?"
शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "हम लोग बरसों बाद मिले और अब देखो बच्चों के चलते हुए हम किस मुश्किल में फंस गए?"
"आपा वही ऊपर वाला कोई रास्ता निकलेगा। अब मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है"
"चल ठीक है कल बात करेंगे अभी तो खाना खाते हैं", शौक़त बेग़म गौहर बेग़म को साथ ले डाइनिंग हॉल की तरफ चल पड़ीं। सबा और सईद भी वहीं थे। वे सभी साथ साथ खाना खाने लगे पर हरेक के दिल में इन उलझे हुए सवालों को लेकर इतनी उलझनें थीं कि कोई कुछ भी नहीं बोला। खाना खाया और वे सभी अपने अपने कमरे में चली गईं।
क्रमशः
कथांश:57
गौहर बेग़म की आँखों में भला नींद कहाँ आने वाली थी उनको यही चिंता सता रही थी कि राजा साहब का अगर फोन आ गया तो वह उन्हें क्या जवाब देंगी? शौक़त बेग़म जो उनके साथ ही एक बिस्तर पर लेटी हुईं थीं, उन्होंने देखा कि गौहर बेग़म की साँस तेज तेज चल रही है और वह पसीने से लथपथ हैं तो उन्होंने तुरंत सबा और सईद को आवाज़ दी। सईद ने आते ही नब्ज़ देखी तो बोला, "अम्मी खालाजान की तो साँस बहुत तेज चल रही है, लगता है। इन्हें हार्ट अटैक पड़ा है इन्हें तुरंत हॉस्पिटल लेकर चलना होगा"
सईद ने झटपट गाड़ी निकाली और वे सभी गौहर बेग़म को लेकर हमीदिया हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज की ओर भागे। हॉस्पिटल में इमरजेंसी में भर्ती किसी तरह ले देकर भर्ती कराया और वहाँ के डॉक्टर्स ने उन्हें तुरंत ऑक्सीजन लगाई और आईसीयू में ट्रांसफर कर इंजेक्शन वगैरह दिए। देर रात तीन बजे जब उनकी हालत में कुछ सुधार दिखाई पड़ा तब जाके सबने राहत की साँस ली।
अगली सुबह सईद ने कांकर फोन कर राजा साहब को गौहर बेग़म की बीमारी की ख़बर दी। ख़बर सुनते ही राजा साहब तो सकते में आ गए पर फिर अपने आप को सम्हालते हुए बोले, "कुँवर अभी दिल्ली में है हम उसे तुरंत भोपाल भेजते हैं और शाम तक हम लोग भी किसी न किसी तरह भोपाल पहुँच जाएंगे"
दोपहर की फ्लाइट से कुँवर भोपाल पहुँच गए। एयरपोर्ट से कुँवर सीधे शौक़त मंज़िल गए वहाँ उनको कोई नहीं मिला बस सबा घर पर थी। कुँवर को देखते ही सबा उनके सीने से जा लगी और गौहर बेग़म के आने के बाद जो कुछ भी भोपाल में हुआ उसकी जानकारी कुँवर को दी। डरते डरते यह भी कहा, "कुँवर मैं नहीं जानती कि अब हमारा क्या होगा। अम्मी अभी भी खालाजान की बात मानने को तैयार नहीं हैं"
कुँवर ने सबा को तसल्ली देते हुए कहा, "ये सब बात करने का ये कोई वक़्त नहीं है अभी तो मुझे माँसी की चिंता सता रही है वह कौन से हॉस्पिटल में हैं, मुझे सबसे पहले वहाँ पहुँचना है"
"चलिये मैं आपको वहाँ ले चलती हूँ", कह कर सबा ने कार निकाली और कुँवर को लेकर वह हमीदिया हॉस्पिटल पहुँच गई। कुँवर जब शौक़त बेग़म से मिले तो उनसे यही पूछा, "माँसी का क्या हाल है?"
शौक़त बेग़म ने जवाब में कहा, "अभी तो कुछ कह नहीं सकते डॉक्टर्स ने ऑब्जरवेशन पर रखा हुआ है, आईसीयू में भर्ती है"
"क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?", कुँवर ने कहा।
कुँवर को लेकर शौक़त बेग़म आईसीयू की ओर बढ़ते हुए सबा से बोलीं, "तू हवेली जा हो सकता है राजा साहब वहाँ पहुँचे कोई तो वहाँ होना चाहिये"
शाम होते होते राजा साहब, महारानी और रानी साहिबा सहित हवाई जहाज से सीधे भोपाल आ पहुँचे। आते ही वे लोग सीधे हमीदिया हॉस्पिटल गए वहाँ गौहर बेग़म की तबियत के बारे में शौक़त बेग़म और कुँवर से जानकारी की। डॉक्टर्स से जब वे मिले तो उन्हें डॉक्टर्स ने बताया कि फ़िलहाल गौहर बेग़म की तबियत स्टेबल है पर वे चौबीस घटों के बाद ही कुछ कह सकेंगे। राजा साहब समेत सभी लोग वहीं हॉस्पिटल में अच्छी खबर का इंतजार करते रहे। डॉक्टर्स ने देर रात देखकर बताया कि गौहर बेग़म के हार्ट को पूरी ब्लड सप्लाई नहीं मिल रही है और लगता है कि उनकी एंजियोग्राफी करनी पड़ेगी तभी वे कुछ कह पाएंगे।
अगले दिन डॉक्टर्स ने गौहर बेग़म की एंजियोग्राफी की और दो स्टेंट डाल कर जो खून के वहाब में धमनियों में रुकाव आ गया था उसे दूर किया। तीन दिनों तक उन्हें ऑब्जरवेशन में रख कर डिस्चार्ज करते हुए सलाह दी कि उन्हें दवाइयाँ रेगुलरली देनी हैं और आराम की सख्त जरूरत है। इसलिए उन्हें कम से कम एक महीने कम्पलीट बेड रेस्ट की सलाह दी।
राजा साहब के यह पूछने पर कि क्या वे उनसे मिल सकते हैं तो डॉक्टर्स ने कहा, "मिलिए पर उनके दिल दिमाग़ पर कोई जोर न आये इसलिये उनसे बातें न करियेगा"
गौहर बेग़म ने अपने पास शौक़त बेग़म, राजा साहब, महारानी, रानी शारदा देवी और कुँवर को देखा तो धीमी आवाज़ में कहा, "अरे आप सभी ने बेकार ही ज़हमत उठाई हमारे दिल का क्या बहुत मजबूत है कुछ भी नहीं होगा। आप किसी तरह की चितां न करें"
महारानी करुणा देवी ने गौहर बेग़म का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा, "चिंता करना अब आप छोड़ दीजिए। अपने सब ग़म आप हमें दे दीजिये। बस आप जल्दी से ठीक हो जाइए और कांकर सही सलामत चलिये"
रानी शारदा देवी ने भी गौहर बेग़म से कहा, "आपके बिना हमारे हुकुम अधूरे हैं। अब आप जल्दी से जल्दी ठीक हो जाइए"
राजा साहब और कुँवर ने न कुछ कह कर भी गौहर बेग़म की आँखों में झाँक कर बहुत कुछ कह दिया।
कथांश:58
जब तक गौहर बेग़म को डॉक्टर्स ने भोपाल से बाहर जाने की इजाज़त नहीं दी तब तक पूरा कांकर राजपरिवार भोपाल में ही रहा।
इसी बीच जब शौक़त बेग़म को लगा कि गौहर बेग़म से आज वह अपने दिल की बात कह सकतीं हैं तो वह उनसे मिलने उनके कमरे में आईं। उनके दोनों हाथ अपने हथेलियों के बीच लिये उनको प्यार से चूमा और बड़े होने के नाते प्यार से बोलीं, "गौहर ये क्या, तूने इतना बोझ अपने दिल पर डाल लिया। तुझे क्या लगा कि हमें हमारी बेटी की खुशियाँ प्यारी नहीं हैं?"
गौहर बेग़म शौक़त बेग़म के चेहरे को देख मुस्कुरा भर दीं। शौक़त बेग़म को जब लगा कि गौहर के दिल पर अभी भी कोई बोझ है तो वह उनका हाथ लेते हुए बोली, "सबा जितनी मेरी है उससे ज़्यादा वह तेरी है। मेरी बेटी तेरी बहू रानी बनेगी तो क्या मुझे ख़ुशी नहीं होगी? जा दे दिया मैंने अपनी बेटी का हाथ ज़िन्दगी भर के लिये तेरे बेटे के हाथ में। अब ये तेरे ऊपर है कि तू उसे कब अपने घर ले जाती है?"
गौहर बेग़म शौक़त बेग़म की बात सुनी तो उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह निकली। कुछ देर बाद जब होश सम्हाल तो बोलीं, "आपा ये ख़ुशी के आँसूँ हैं। अब कम से कम मैं राजा साहब के सामने सिर उठा कर तो जा सकूँगी"
"तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, सभी लोग यहीं पर हैं। तू ये खुश ख़बरी अपने आप उनको सुना। मैं उन्हें तुझसे मिलने के लिये भेजती हूँ"
जब सभी लोग अंदर आये तो गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपका काम हो गया"
राजा साहब ने गौहर बेग़म की पेशानी चूम कर उनका शुक्रिया अदा किया और बोले, "हम किस तरह बेग़म आपका शुक्रिया अदा करें कह नहीं सकते, बस आप ठीक हो जाइए और सही सलामत हमारे साथ कांकर चली चलिये"
कुँवर जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने भी इतना ही कहा, "चलिये माँसी आपको कांकर चलना है। हमारे बहुत से काम हैं जो अधूरे हैं जो अभी आपके अपने हाथों से ही पूरे करने हैं"
महारानी और रानी साहिबान जब मिलीं तो उनकी आँखें भी नम थीं और उन्होंने भी यही कहा, "बेग़म साहिबा कांकर में सब आपकी राह देख रहे हैं"
क्रमशः
कथांश:59
कुछ दिन बाद राजा साहब सबके साथ गौहर बेग़म को लखनऊ अपने कैसरबाग़ वाले 'कांकर हाउस' पर ले आये। गौहर बेग़म का इलाज़ राजा साहब की इल्तिज़ा पर केजीएमसी मेडिकल कॉलेज के 'लॉरी हार्ट रिसर्च सेंटर' के प्रोफेसर लाल ने अपने हाथ में लिया। इधर राजा साहब माणिकपुर मानवेन्द्र सिंह को जब गौहर बेग़म की तबियत के बारे में और यह पता लगने पर कि कांकर का पूरा राजपरिवार आजकल कैसरबाग़ में है तो उनसे मिलने आये। कांकर राजपरिवार के हालचाल लिये और अपनी ओर से भरपूर मदद आश्वासन दिया।
महारानी और रानी साहिबा एक दिन बीच में समय निकाल कर माणिकपुर हाउस रानी रत्ना से मिलने गईं जिससे कि शिखा की शादी के बारे में बात आगे बढ़ाई जा सके। रानी रत्ना ने उन्हें बताया कि उनके कुल पुरोहित ने शारदीय दशहरे के दिनों में से शष्टमी का दिन कुँवर महेंद्र और राजकुमारी शिखा के विवाह के लिये शुभकारी बताया है। इस पर महारानी करुणा देवी ने रानी रत्ना से कहा कि उन दिनों में कांकर राजपरिवार की प्रथा शारदीय नव दुर्गा के भव्य आयोजन की चली आ रही है इसलिये वे राजा साहब से बात कर बाद में ख़बर करायेंगी। रानी रत्ना ने भी अपनी ओर से यही कहा शुभ विवाह की तिथि तो दोनों परिवारों की सहमति से ही सुनिश्चित होगी।
कुछ दिन लखनऊ में आराम करने के बाद जब प्रोफेसर लाल ने गौहर बेग़म को ख़तरे से बाहर होने का सर्टिफिकेट दे दिया तो उसके बाद राजा साहब मय परिवार कांकर वापस लौट आये।
एक दिन शाम को जब राजा साहब ऐश महल आये तो ख़ानम जान बोल पड़ीं, "हुकुम आप हमारी गौहर को सही सलामत वापस ले आये इसके लिये हम किस मुहँ से आपका शुक्रिया अदा करें। बस एक गुज़ारिश है कि हमारी बेटी को बस आप हमारे पास यहीं रहने दीजिये अब कभी बाहर न भेजिएगा"
राजा साहब ने सोचा कि अब ख़ानम जान को अब क्या बताया जाय कि कितने अहम सवालात को सुलझाने के लिये गौहर बेग़म को मज़बूरी के चलते अकेले उन्होंने भोपाल भेजा था इस सब के बाबजूद राजा साहब ने ख़ानम जान की बात रखते हुए कहा, "जी ख़ानम जान हम आपकी बात का ख़य्याल रखेंगे"
राजा साहब जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने उनके बालो को बड़े प्यार से सहलाया, उन्हें बहुत देर तक प्यार भरी निग़ाह से ताकते रहे जब गौहर बेग़म को ये लगा कि राजा साहब कुछ पूछना चाह रहे हैं पर कुछ भी बोल नहीं रहे हैं तो उनसे रहा नहीं गया बेचैन होकर पूछ ही लिया, "आप पूछिये जो भी हमसे पूछना चाहते हैं। हम खुदा से झूठ बोल सकते हैं पर आपसे नहीं"
"बेग़म हम परेशान इस बात से हैं कि आख़िर वह क्या बात थी जो आपके दिल को इतना बड़ा सदमा दे गई कि आपको हार्ट अटैक पड़ गया" राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने सीने से लगा के पूछा।
"मेरा खुदा मेरे साथ है पर हुकुम आप भी अपना दिल मज़बूत कर लीजिए, मैं नहीं चाहती कि आपको कुछ हो"
"ऐसी क्या बात है बेग़म?"
राजा साहब को गौहर बेग़म ने वे सब बातें बताईं जो भोपाल में उनके साथ शौक़त बेग़म, सईद और सबा के बीच हुई थीं। आख़िर में ये भी बताया कि जब मेरी तबियत ठीक हुई और जब शौक़त बेग़म उनसे मिलने आईं तब जाके वह सबा और कुँवर के निकाह के लिए तैयार हुईं।
राजा साहब के चेहरे पर एक शिकन की लहर सी आई पर उस पर काबू करते हुए बोले, "शिखा ने कभी कुछ आपसे कहा, कभी कुछ सबा से सईद के बारे में कुछ कहा?"
"मैंने कहा न हुकुम, मुझे या शौक़त को किसी को भी इसके बाबत कुछ पता नहीं है"
"हम आपकी हर बात पर विश्वास करके ही ये जानना चाहते हैं कि हम से या रानी शरद से शिखा के लालन पालन में कहाँ कुछ कसर रह गई?"
"नहीं हुकुम आपकी और रानी शारदा देवी जी तरफ से शिखा बेटी की परवरिश में कोई नहीं कमी हुई, अगर कोई ऐसी बात होती तो हम यह पक्का जानते हैं कि कोई कुछ न जानता पर हमको हमारी बेटी शिखा नहीं तो सबा हमें कुछ न कुछ ज़रूर बता देती। आप शिखा को लेकर नाहक ही परेशान हो रहे हैं उसने तो कुछ कहा ही नहीं बल्कि वह तो कुँवर महेन्द्र से मिलने के बाद बड़ी खुश थी। सईद का कोई क्या करे अगर वह इकतरफ़ा प्यार करने लगा हो?"
राजा साहब ने बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "छोड़िये भी बस अब हमें यह करना है कि शिखा की शादी जल्द से जल्द हो जाय जिससे यह मसला हमेशा हमेशा के लिये ख़त्म हो जाय"
"जी मेरे ख़य्याल में भी यही वक़्त का तक़ाज़ा है और यही हम लोगों को करना भी चाहिए"
कथांश:60
राजा साहब ने अपने कुल पुरोहित तथा दुर्गा मंदिर के पुजारी शाश्त्री जी को एकांत में अपने पास बुलाया और शिखा और कुँवर महेंद्र की के विवाह की संभावित तिथियों पर चर्चा की पर ऐसी कोई भी तिथि नहीं निकल रही थी जो निकट भविष्य में हो। जितनी भी तिथियां निकल रहीं थीं वे सब की सब नवंबर के आख़िर या दिसंबर के द्वितीय सप्ताह की निकल रहीं थीं। राजा साहब ने वे सभी तिथियां नोट कर और शाश्त्री जी को समुचित व्यवहार देकर विदा किया।
एक दिन रानी शारदा देवी को लेकर राजा साहब माणिकपुर हाउस, कैसर बाग़ लखनऊ आये और उन्होंने शिखा और कुँवर महेंद्र के विवाह की तिथि दस दिसंबर की तय कर दी। बातों ही बातों में पता चला कि कुँवर भी अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक ही इंगलेंड से भारत लौट पाएंगे। राजा साहब ने अपने मित्र मानवेंद्र सिंह, राजा साहब माणिकपुर को बताया कि अगस्त में रानी शारदा देवी और शिखा का प्रोग्राम भी लंदन जाने का है। अगर कुँवर वहाँ कुछ समय इन लोगों के साथ बिता सकें तो और भी उत्तम होगा। मानवेन्द्र सिंह ने कहा, "क्यों नहीं कुँवर को रानी साहिबा और शिखा से मिल कर प्रसन्नता होगी"
इसके बाद राजा साहब रानी शरद के साथ कांकर लौटने के लिये निकल लिये। रास्ते में जब रानी शारदा देवी ने पूछा, "महाराज ये लंदन जाने की बात बीच में कहाँ से आ गई?"
राजा साहब ने उत्तर दिया, "हम चाहते हैं कि हमारी बेटी इंग्लैंड के माहौल से पहले ही से बाक़िफ़ रहे जिससे उसमें किसी प्रकार की हीन भावना न आये। आप उसके साथ रहेंगी और आप दोंनो के साथ रहेंगे कुँवर अनिरुध्द सिंह जिससे कि आपको कोई प्रॉब्लम न हो"
राजा साहब के तर्क सुन कर रानी शारदा देवी चुप रह गईं।
कुँवर अनिरुध्द सिंह इस बीच अपनी कांस्टीट्यूएंसी का काम निबटाते रहे। आईटीआई लिमिटेड में उन दिनों इंटरव्यू का जोर चल रहा था क्योंकि फैक्टरी के लिये ऑपरेटर्स, सुपरवाइजर्स और इंजीनियर्स की बड़े स्केल पर भरती चल रही थी। उन्होंने आईटीआई लिमिटेड के अफसरों के साथ अपनी जान पहचान बढ़ाने का निश्चय किया जिससे कि अपने क्षेत्र के पढ़े लिखे लड़के लड़कियों को किसी प्रकार से वहाँ नौकरी मिल सके। वैसे भी आईटीआई लिमिटेड के लगने से पूरब-पश्चिम और उत्तर- दक्षिण लगभग सभी प्रान्तों के अफ़सरों और उनके परिवारों के वहाँ आ जाने से मरे से हुए, रायबरेली शहर में जान आ गई थी। लोगों का तो ये कहना था कि जिस तिराहे पर एक ज़माने में गधे घूमा करते थे अब वहाँ कुछ पढ़े लिखे लोग तो कम से कम नज़र आने लगे थे।
कुँवर ने आईटीआई लिमिटेड में जिन लोगों से जान पहचान बढ़ाई उसमें से कुछ वक़्त के कुछ अफ़सर जो शुरू शुरू में आये थे उनमें से प्रमुख थे श्याम लाल आहूजा, कैलाश चंद्र गुप्ता, बहादुर सिंह सोढ़ी, छवि नाथ पांडेय, एस दोराइराज, दिलीप कुमार मित्रा, के यू एस नायडू, उमा शंकर अग्रवाल, एस पी सिंह, त्रिवेणी प्रसाद शर्मा, जी सी रस्तौगी, अनिल गर्ग, एस पी त्रिपाठी और विश्व नाथ गुप्ता वगैरह। एक दिन कुँवर आईटीआई लिमिटेड के अधिकारियों के बीच बैठ कर ऐसे ही बात कर रहे थे तो उन्होंने इस बात को माना कि जब से आईटीआई लिमिटेड का कारखाना यहाँ खुला है बाजार में पैसे का चलन बढ़ा है, लोगों के सोचने का तरीका बदला है अब तो कुछ खाने पीने के लिये रेस्ट्रॉन्ट भी खुल गए हैं, इस शहर में स्कूटर कार भी खूब दिखने लगे हैं। यहाँ तक कि जो लड़के और लड़कियां फ़ैक्टरी में काम कर रहे हैं उनके बीच सम्पर्क भी बढ़ रहा है। धीरे धीरे परिवर्तन की लहर अब रायबरेली और उसके आसपास के क्षेत्रों में दिखाई पड़ने लगी है।
डी के मित्रा और के यू इस नायडू ने, जो स्वयं आर्डिनेंस फैक्टरी जबलपुर से आये थे, तो कुँवर से यहाँ तक कहा कि अगर रायबरेली शहर के वातावरण में आमूलचूल परिवर्तन देखने हों तो प्रधानमंत्री जी को यहाँ आर्मी या एयरफोर्स का कोई बेस खोलना चाहिए। जब सब जगह के खुले दिमाग और विचारों के लोग यहाँ आकर रहेंगे तो एक नई कल्चर आएगी तभी पान की दुकान पर खड़े होकर गप्प करने की लोगों की आदत बदलेगी।
कुँवर ने आश्वासन दिया था कि इस दिशा में वह रक्षा मंत्रालय से बात करेंगे। बाद में पता लगा कि रक्षा मन्त्रालय ने यह मांग यह कह कर ठुकरा दी कि लखनऊ और इलाहाबाद में रक्षा मंत्रालय के बहुतेरे विभाग हैं, इसलिये रायबरेली में वे कोई नई यूनिट नहीं खोल सकते हैं।
आईटीआई लिमिटेड के आ जाने से इस क्षेत्र के लोगों के लिये कोई दिल्ली के लिए सीधी रेल गाड़ी भी नहीं थी। लोगों को पहले लखनऊ जाना पड़ता था। रायबरेली के विधायकों और अन्य लोगों के कहने पर रेल गाड़ी के प्रश्न को लेकर एक समूह ज्ञापन लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मिला। ठीक उसी दिन तत्कालीन रेल मंत्री जी जो कि स्वयं बनारस के रहने वाले थे, वह एक प्रस्ताव बनारस और दिल्ली के बीच सीधे रेल गाड़ी चलाने का लेकर जब तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मिले। कुछ लोग यह बताते हैं कि प्रधानमंत्री जी ने उनसे केवल यह पूछा कि यह रेल गाड़ी रायबरेली कब पहुँचेगी, वह रेल गाड़ी जिसका नाम ही नाम काशी विश्वनाथ था जो कि सुल्तानपुर होती हुई लखनऊ और बाद में दिल्ली जाने वाली थी उसका रूट बदल कर बाद में तत्कालीन रेल मंत्री जी ने रायबरेली होते हुए किया। ऐसे ही न जाने कितने किस्से हैं जो आज भी रायबरेली के लोग जब मिल बैठते हैं तो बात करते हैं। बाद में दरियापुर में एक शुगर फ़ैक्टरी लगी और रायबरेली से वहाँ तक रेलवे लाइन भी बिछाई गई।
रायबरेली और आसपास के राजनीतिक क्षेत्रों में दो वर्गों राजपूत और ब्राह्मण समाज के बीच हमेशा से ही वर्चस्व की लड़ाई बनी रही और यह आज भी बदस्तूर चालू है। यह कमी प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय भी अच्छी तरह जानते थे। सभी लोग बस इस उधेड़बुन में लगे रहते कि किसी प्रकार ये दोनों समूह कांग्रेस के लिये काम करते रहें। कांग्रेस की अपनी पहुँच हरिजनों और पिछड़े वर्गों के बीच भी ठीक ठाक थी।
राजा चन्द्रचूड़ सिंह जो स्वयं एक कुशल प्रशासक थे इन सब प्रश्नों से ता ज़िंदगी उलझे रहे अब यही हाल कुँवर का भी था। उनकी दूरदृष्टि, बुद्धि और विवेक से वह भी स्थितियों को सम्हालने का प्रयास करते रहे कि राजपूतों और ब्राह्मणों के बीच सामंजस्य बना रहे।
कथांश:61
कुँवर दिल्ली तो कभी कांकर अपने क्षेत्र के बीच आते जाते रहे। देश की राजनीति में एक अजीब तरह का ठहराव सा आ गया था। उन्ही दिनों 12 जून को प्रधानमंत्री जी के चुनाव को चुनौती देने वाली रिट पिटीशन में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिन्हा जी का एक जजमेंट क्या आया जिसने भारत की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। देश मे इमरजेंसी लगा दी गई, प्रेस की आज़ादी छीन ली गई और साधारण नागरिक को उसके मौलिक अधिकारों से वंचित कर दिया गया। देश में एक अजीब तरह का माहौल बन गया था। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट की एक खण्ड पीठ ने प्रधानमंत्री जी को जिस आदेश के तहत चुनाव लड़ने से रोका था उसको अवैध करार कर दिया।
पार्टी बैक फुट पर थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जी के करीबी सलाहकार और विशेष कर उनके छोटे सुपत्र, जो कि कई सालों से एक कार बनाने की योजना पर काम कर रहे थे, वह भी बीच मे मैदान में कूद पड़े और सरकारी तंत्र को सीधे निर्देश देने लगे। इन सब बातों का घोर विरोध हुआ और सारा विपक्ष एक झंडे तले आ गया। जगह जगह रैलियां निकाली जाने लगीं। इन सबको देख लगभग सभी शीर्ष नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
इस राजनीतिक उहापोह की स्थित में राजा साहब की समझ में नहीं आ रहा था कि वह कुँवर को क्या राय दें कि कुँवर पार्टी के साथ डट कर खड़े रहें या फिलहाल कुछ समय के लिए न्यूट्रल बन के रहें। राजा साहब को कभीकभी लगता था कि यह लड़ाई कोई कांग्रेस पार्टी की नहीं वरन एक व्यक्तिविशेष की होकर राह गई है।
इस अफ़रातफ़री में सबा और शिखा के इम्तिहान का रिजल्ट आया जिसमें शिखा और सबा दोनों ही ने अपनी अपनी परीक्षा फर्स्ट डिवीज़न में पास की। अपनी पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने डीयू में ही बने रहने का तय किया।
जुलाई आते ही कॉलेज खुल गए। जिस दिन कुँवर शिखा को छोड़ने उसके हॉस्टल गए तो उनकी मुलाकात सबा से हुई। पिछली मुलाकातों उन दोंनों में तब हुई थी जब गौहर बेग़म हमीदिया हॉस्पिटल भोपाल में भर्ती थीं। इसलिए उन दोनों के बीच कोई खास बात नहीं हुई पर जब वे दोनों दिल्ली में मिले तो सबा ने कुँवर से अकेले में मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। कुँवर ने सबा से कहा कि वह शिखा के साथ उनसे उनके फ्लैट पर आ जाये। उससे वहीं बात होगी।
जब शाम को शिखा और सबा कुँवर के फ़्लैट पर पहुँची तो कुँवर वहाँ अकेले ही थे। शिखा से दिन में सबा ने वे सारी बातें बताईं थीं जो भोपाल में गौहर बेग़म के आने के बाद हुईं। उसे यह भी बताया कि सईद भाई उससे बेइंतिहा मोहब्बत करते हैं। ये सब जान कर भी शिखा ने सईद के लिये कुछ नहीं कहा सिवाय इसके, "सबा मुझे तो लगा कि तुम्हारा भाई मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं रखता है इसलिये मैंने उसकी ओर कभी दूसरी निग़ाह से देखा तक नहीं"
शिखा ये जान रही थी कि सबा कुँवर से अकेले में मिलना चाह रही है इसलिये वह पास के शॉपिंग सेंटर से कुछ सामान लेने के बहाने निकल गई। जब तक वह लौट कर आई तो दोनों को अलग अलग सोफ़े पर बैठ देख कुछ उलझन में पड़ गई। सबा शिखा को देखते ही बोली, "कहाँ चली गई थी? मैं तेरा ही इंतज़ार कर रही थी। चल चलें नहीं तो बहुत देर हो गई तो हॉस्टल के गेट भी बंद ही जायेंगे"
शिखा सबा के साथ छेडख़ानी करते हुए बोली, "तो क्या तू यहीं रह जाना भाई के कमरे में"
"चल हट पगली कुँवर नहीं चाहते कि उनके साथ मैं कहीं भी देखी जाऊँ", इतना कहते हुए सबा ने शिखा का हाथ पकड़ा और कुँवर के फ़्लैट से वे दोनों बाहर आकर टैक्सी से अपने हॉस्टल की ओर चलीं गईं।
तय प्रोग्राम के मुताबिक़ अगस्त के महीने में तय प्रोग्राम के तहत रानी शारदा देवी, कुँवर अनिरुध्द और शिखा दस दिन के प्रोग्राम से लंदन पहुँचे। लंदन पहुँच कर कुँवर अनिरुध्द सिंह ने कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह से संपर्क किया और अपने लंदन में होने की सूचना दी। कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से जब उन्हें कोई संतोषजनक उत्तर न मिला तो एक दिन रानी शारदा देवी, कुँवर और शिखा उनसे मिलने उनके फ़्लैट पर ही जा पहुँचे। सभी को एक साथ देख कर पहले तो कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह चकराए फिर उन्होंने सभी को आदर सहित बिठाया।
कथांश:62
कुँवर महेंद्र ने रानी साहिबा से पूछा, "कैसा लग रहा है आपको लंदन?"
रानी साहिबा ने उत्तर देते हुए कहा, "लंदन का क्या कहना लंदन तो लंदन है जैसा सुना वैसा पाया। परियों के देश सरीखा"
"आप कहाँ कहाँ घूमने गईं?"
"अरे बेटा ये प्रश्न तू मुझसे क्यों पूछ रहा है? पूछना है तो शिखा से पूछ जो तुझसे मिलने के लिए इतनी आतुर थी कि कहने लगी कि मैं कुँवर से लंदन जाकर ही मिलूँगी"
"चलिये अच्छा है इसी बहाने चलिये हमसे कुछ मुलाक़ात हो जाएगी कुछ बातें हो जाएंगी हैं जो कांकर में नहीं हो पाईं थीं यहाँ हो जाएंगी। राजकुमारी शिखा यू आर वेलकम इन लंदन"
"थैंक्स", कह कर शिखा चुप हो गई।
इसके बाद कुँवर अनिरुध्द में और कुँवर महेंद्र में उनकी पढ़ाई लिखाई के बारे में बात होती रही। रानी साहिबा ने कुँवर महेंद्र के घर का निरीक्षण किया कि कुँवर महेंद्र किस अन्दाज़ में यहाँ लंदन में रहते हैं? शिखा ने भी एक पैनी निगाह कुँवर के रहन सहन के ऊपर डाली। जब बहुत देर हो गई तो कुँवर अनिरुध्द ने चलने की इजाज़त चाही। कुँवर ने कहा, "वगैर डिनर किये तो मैं आप लोगों को जाने नहीं दूँगा। बताइये कि आप लोग इंडियन खाना खाना पसंद करेंगे कि यूरोपियन?"
कुँवर अनिरुध्द ने हँसते हुए टालने की कोशशि की और कहा, "रहने दो अभी कुँवर आप ज़िंदगी में बैचलर हैं कहाँ खाना बनाने के चक्कर में पड़ेंगे?"
कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुध्द को उत्तर देते हुए कहा, "तो मैं कौन खुद खाना बनाने वाला हूँ मैं भी आप सभी को किसी होटल में ले चलूँगा"
रानी साहिबा के मना करने पर कुँवर महेंद्र ने अपनी ज़िद छोड़ी और रानी साहिबा से वायदा किया कि अगले दिन वह आकर उनसे उनके होटल में अवश्य मिलेंगे। अगले दिन कुँवर महेन्द्र रानी साहिबा से आकर मिले और सभी को घुमाने के लिये ले चलने की बात की पर कुँवर अनिरुध्द ने कहा कि वे और रानी माँ का आज इंडियन एम्बेसी में कुछ काम है इसलिये वह शिखा को अपने साथ ले जाएं। रानी साहिबा ने भी इस पर सहमति जताई।
कुछ देर में जब शिखा तैयार हो गई तो कुँवर महेंद्र उसे अपने साथ ले घूमने के लिये निकल गए।
क्रमशः
कथांश:63
कुँवर अनिरुध्द सिंह रानी माँ के साथ सुबह सुबह जल्दी ही इंडियन एम्बेसी के लिये निकल गए और उनके जाने के बाद जब कुँवर महेंद्र आये तो शिखा तैयार ही हो रही थी। शिखा ने कुँवर से बैठने के लिये यह सोच कर कहा कि पहले ही दिन से उनके ऊपर जोर चले "कुँवर आप बैठिए, मैं अभी तैयार होने में कुछ और वक़्त लूँगी"
जब शिखा तैयार हो गई तो वे दोंनों घूमने के लिये निकल पड़े। अगस्त के महीने में लंदन वैसे भी बहुत प्यारा से लगता है, बसंत का ख़ुशनुमा मौसम जो यहाँ होता है। हल्की हल्की धूप जो खिली होती है, फ़िज़ाओं में मोहब्बत ही मोहब्बत बिखरी होती है। दुनिया भर के टूरिस्ट यहाँ इन्हीं दिनों में सबसे अधिक आते हैं। ऐसे रँगीन मौसम में कुँवर महेंद्र और शिखा दिन भर लंदन में सैर सपाटा करते और शाम को रानी साहिबा और कुँवर अनिरुध्द सिंह के साथ डिनर करते और अपने फ़्लैट पर लौट जाते। यही क्रम शिखा और कुँवर महेंद्र के बीच जब तक शिखा वहाँ रही चलता रहा।
दूसरी ओर रानी माँ के साथ कुँवर अनिरुध्द घूमने निकल जाते। एक दिन कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुध्द सिंह से कहा कि अगर वे लोग फ्री हैं तो क्यों न सब लोग मिल कर 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' उनके हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में चलें। वहाँ दिन में वे लोग हॉर्स राइडिंग भी कर लेंगे और लंच भी साथ साथ ले लेंगे।
कुँवर अनिरुध्द सिंह को हॉर्स राइडिंग करने का प्रोग्राम अच्छा लगा और उन्होंने यह भी सोचा कि उन्हें और शिखा को बहुत दिन हो गए हैं घुड़सवारी किये हुए तो कुँवर महेंद्र के साथ चलने में कोई एतराज़ नहीं है। अतः सब लोग तैयार हो कर कुँवर महेंद्र के 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में आ गए। कुँवर महेंद्र, कुँवर अनिरुध्द सिंह और शिखा ने घुड़सवारी का आनंद उठाया और वहीं लंच किया। लंच के दौरान कुँवर महेंद्र को ख़य्याल आया कि एक बार सबा ने उन्हें भोपाल आने के लिये कहा था तो यह याद कर वह बोल बैठे, "शिखा जब हम कांकर आये थे, उस वक़्त तुम्हारी दोस्त सबा ने जिक्र किया था कि भोपाल में उनके भाई का बहुत बड़ा कारोबार है और तुमने वहीं हॉर्स राइडिंग सीखी भी थी"
"जी मैंने अकेले ने नहीं भाई ने भी भोपाल में उसी के भाई के क्लब में हॉर्स राइडिंग सीखी थी", शिखा ने जबाब दिया।
कुँवर अनिरुध्द सिंह ने भी कहा, "भोपाल में सईद का हॉर्स राइडिंग क्लब हाउस बहुत बढ़िया ऑउटफिट है, यहाँ राइडिंग करने के बाद एक बार वहाँ फिर जाने का मन कर रहा है"
रानी माँ जो चुपचुप सी थीं वह भी अपने कुँवर की बात पर बोल पड़ीं, "तो इसमें बुराई क्या है कुँवर महेंद्र आप जब अक्टूबर में इंडिया आयें तो एक बार कुँवर और शिखा के साथ वहाँ भी चले जाइयेगा। वह भी तो अपना घर जैसा ही है"
"जी रानी माँ। सबा ने मुझे वहाँ आने का निमंत्रण भी दिया था कांकर में जब उससे मुलाक़ात हुई थी", कह कर कुँवर महेंद्र ने भोपाल चलने की बात पर सील लगाते हुए कहा।
इसके बाद जब वे लोग लंच कर के उठ ही रहे थे कि वहाँ कुँवर महेंद्र के कुछ अंग्रेज दोस्त लोग आ गए। उसमें से अधिकतर नौजवान लड़के लड़कियां थे। उनमें से एक लड़की ने कुँवर महेंद्र को अपने सीने से चिपकाया और फिर देर तक किस किया। कुँवर ने उसकी मुलाक़ात रानी माँ, कुँवर अनिरुध्द और शिखा से यह कह कर कराई कि ऐडलेडे स्टीवेन्सन है और लंदन में उनकी सबसे अच्छी दोस्त है। एडिलेड के पिता लार्ड माइकेल स्टीवेंशन की यहाँ की सरकार और उपर हाउस यानी हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बहुत इज़्ज़त है। ऐडलेडे स्टीवेन्सन और अपने अन्य दोस्तों से रानी माँ, कुँवर अनिरुध्द सिंह और शिखा का परिचय यह कह कर कराया कि वे उनके इंडिया से आये हुए मेहमान हैं।
इसके बाद वे सभी लोग देर शाम तक वहीं क्लब में रहे कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवर महेंद्र के दोस्त आपस में खूब मस्ती करते रहे। ऐडलेड स्टीवेन्सन बार बार कुँवर महेंद्र के पास जाती और बात बात में अपनी नज़दीकी जताने की कोशिश करती। इसे देख शिखा के मन में कुछ कुछ होने लगा। ऐडलेड स्टीवेन्सन ने एक बार तो शिखा को लेकर यह भी कहा, "शी लुक्स वेरी प्रिटी एंड क्यूट"
"या शी इस", कह कर कुँवर महेंद्र ने भी बात टालने की कोशिश की। इसी प्रकार वे लोग ख़ूब आपस मे घुल मिल कर बात करते रहे और शाम को कुँवर महेंद्र कुँवर अनिरुध्द, रानी माँ और शिखा को गुड नाईट कह कर उनके होटल में छोड़ गए।
शिखा को कुँवर महेंद्र और एडिलेड स्टीवेंशन के बीच इतनी नज़दीकी कुछ अच्छी नहीं लगी। रानी साहिबा ने भी यही महसूस किया पर दोनों में इस बात को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।
कुछ दिन और बिताने के बाद कुँवर अनिरुध्द अपनी रानी माँ और शिखा के साथ लंदन से दिल्ली लौट आये।
कथांश:64
कुँवर तो अपने काम के कारण दिल्ली रुक गए पर रानी साहिबा और शिखा लखनऊ के लिये हवाई जहाज से निकल गए। राजा साहब खुद तो किसी कारणवश लखनऊ नहीं आ पाए पर उन्होंने मुखिया जी को रानी साहिबा और शिखा को सीधे कांकर लाने की व्यवस्था कर दी थी।
कांकर आते ही राजा साहब ने रानी शारदा देवी से मिल कर लंदन के दौरे के हाल चाल पूछे। रानी साहिबा ने सारी बातें विस्तार में बताईं और कुँवर महेंद्र के रहन सहन के बारे में भी चर्चा खुल कर की। जो वह एक बात अपनी ओर से बताना नहीं चाह रहीं थीं वह था कुँवर महेंद्र का वह व्यवहार जो उन्होंने एडिलेड स्टीवेंसन के साथ देखा पर स्त्री हृदय आखिर कब तक वह बात छुपाता जो दिल के कोने में कहीं घर कर गई हो। राजा साहब ने रानी साहिबा की बात सुनकर अनसुनी सी कर दी तब रानी साहिबा से रहा नहीं गया और बोल पड़ीं, "आप मेरी बात पर कान भी नहीं धर रहे हैं और मैं मन भीतर भीतर ही सोच सोच कर परेशान हो रही हूँ कि कहीं कुँवर के मन में एडिलेड स्टीवेंसन कहीं कोई भी जगह है तो मेरी शिखा के वैवाहिक जीवन का क्या होगा?"
रानी शारदा देवी को परेशान देखते हुए राजा साहब बोले, "रानी शरद आप नाहक ही परेशान हो रहीं हैं। अरे कुँवर महेंद्र खानदानी आदमी हैं, अगर इस उम्र में उनके यार दोस्त न होंगे तो क्या हमारी उम्र में पहुँच कर वे अपने शौक़ पूरे करेंगे?"
रानी साहब राजा साहब से बोलीं, "आप राजसी मर्द एक जैसे ही होते हैं। आपने तीन तीन विवाह रचाये तो आप तो इसे यूँ ही कह कर हवा कर देंगे पर हुकुम यह जान लीजिये कि अब वह पुरानी वाली बात नहीं चलेगी। मेरी शिखा किसी दूसरी औरत को कुँवर महेंद्र की ज़िंदगी मे बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। उसकी शिक्षा दीक्षा बिल्कुल पुराने ज़माने से अलग अलग है"
"रानी शरद आप परेशान न हों इस विषय में हम राजा मानवेन्द्र सिंह जी से उचित समय आने पर बात कर लेंगे"
"ठीक है हुकुम। मैं यह मसला अब आप पर छोड़ रही हूँ"
राजा साहब बस मुस्कुरा दिये और रानी शारदा देवी के कक्ष से निकल कर सीधे गौहर बेग़म के पास ऐश महल आ गए।
क्रमशः
कथांश:65
गौहर बेग़म राजा साहब के चेहरे को पढ़ कर ही जान लेती थीं कि उनके दिल में क्या चल रहा है। उन्होंने राजा साहब को आराम से बिठाया उनका सिर अपने सीने के पास रख कर उनके बालों को सहलाया और धीरे धीरे चेहरे माथे की मालिश की और जब राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ तो राजा साहब से पूछा, "हुकुम वो कौन सी ऐसी बात है जो आपको नाहक ही परेशान कर रही है?"
"नहीं बेग़म कुछ खास नहीं"
गौहर बेग़म समझ गईं कि राजा साहब अभी कुछ बताने के मूड में नहीं हैं इसलिये उन्होंने भी बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "हुकुम एक नई ताज़ातरीन ग़ज़ल आज पढ़ने को मिली थी उसी को आज अपने सुर देने की कोशशि में लगी हुई थी आपके आने के ज़रा पहले तक"
राजा साहब पूछ ही बैठे, "क्या हुआ फिर आप अपने प्रयासों में सफल हो पाईं या नहीं"
"हमारे लिए तो आप ही हमारे जजमान हैं और हमारे जज भी आप ही सुन कर बताइयेगा कि बात बनी या नहीं"
"इरशाद"
इसके बाद सितार उठा कर गौहर बेग़म ने अलाप के साथ अपने सुर बिखेरने शुरू कर दिए। सात सुरों और मनमोहक शब्दजाल के मध्य जो चीज निकल कर पेश्तर हुई उस पर किसी का भी दिल आ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं।
राजा साहब के मुँह से ये बोल सुनते ही निकला, "सुभानअल्लाह क्या बात है बेग़म आपकी आवाज़ ने इस ग़ज़ल में चार चाँद लगा दिए। दिल ख़ुश हो गया"
सितार एक तरफ हटाते हुए गौहर बेग़म राजा साहब के पास बैठते हुए बोलीं, "हुकुम चलिये अब बता ही दीजिये वो बात जो आपके चेहरे पर शिकन का सबब बन के छाई हुई थी कुछ वक़्त पहले तक"
राजा साहब ने गौहर बेग़म से कहा, "ये बात आपसे भी ताल्लुक़ रखती है इसलिये जरा ध्यान लगा कर सुनियेगा"
गौहर बेग़म को लगा कि पता नहीं अब कुँवर और सबा के रिश्ते को लेकर अब ये कौन सा नया मसायल खड़ा हो गया। राजा साहब ने तरतीवबार वे बातें गौहर बेग़म को बताईं जो आज रानी शारदा देवी ने उनसे अपने लंदन दौरे के बाबत उन्हें बताईं थीं। राजा साहब की बातें सुन कर गौहर बेग़म बोल उठीं, "इसमें परेशान होने की कौन सी बात है हुकुम। ये देख कर हर माँ परेशान ही जाएगी कि उनका होने वाला दामाद उन्हीं जी नज़रों के सामने किसी और के साथ बेजा हरकतें कर रहा है। मेरे ख़य्याल में रानी साहिबा ने अपना शक़ अगर आपसे ज़ाहिर किया है तो इस पर आपको गौर करना चाहिये। इस उम्र में आजकल के बच्चे अक़सर बहक जाते हैं"
कथांश:66
राजा साहब ने गौहर बेग़म की बातों को तरज़ीह देते हुए निश्चय किया कि इस मसले में यह बेहतर होगा कि वे अपने दोस्त राजा मानवेन्द्र सिंह से बात करने के पहले एक बार शिखा से खुद बात करलें और शिखा को भी अगर कुँवर महेंद्र के व्यवहार या चरित्र में कोई खोट नज़र आता हो तो बात को आगे बढ़ाया जाय। यह सोच कर राजा साहब राजकुमारी शिखा के कक्ष में उससे मिलने चले आये और पूछा, "बता बेटी तेरा इंग्लैंड का ट्रिप कैसा रहा?"
"अच्छा था पिताश्री", कह कर शिखा चुप हो गई।
राजा साहब तो उसके दिल की बात जानना चाह रहे थे तो भला इस छोटे से उत्तर से कैसे तसल्ली करते इसलिए बात को कुरेदते हुए उन्होंने फिर पूछा, "कुँवर महेंद्र तुझे कैसे लगे?"
राजकुमारी शिखा पहले तो समझ न पाई कि पिताश्री की इन बातों के पीछे मक़सद क्या है? जब उन्होंने कुछ खुल कर बात की तो शिखा ने राजा साहब से कहा, "पिताश्री मैं दिल्ली में पढ़ती हूँ और मेरे विचार और माँ के विचार एक से नहीं हो सकते। उनकी सोच अभी भी पुराने ज़माने वाली है। मैं इन बातों को कुछ विशेष महत्व नहीं देती कि एडिलेड स्टीवेंशन कुँवर से इस तरह क्यों व्यवहार कर रही थी। इंग्लैंड में यह सब मामूली सी बात है कि लड़के लड़कियां एक दूसरे से इस तरह व्यवहार करते ही हैं परंतु मैं कुँवर को एक दम क्लीन चिट भी नहीं दे रही। मुझे लगता है कि मुझे उन्हें समझने में कुछ वक़्त लगेगा"
"मैं तुम्हारी बात की कद्र करता हूँ और बहुत खुश हूँ कि तुमने आज अपनी मानसिक परिपक्वता का परिचय दिया", राजा साहब ने इतनी बात कह कर राजकुमारी शिखा के सिर पर हाथ रख कर आर्शीवाद दिया और बोले, "बेटी अब वक़्त कहाँ बचा है, दिसंबर में तो तेरी शादी होनी है"
"मुझे कुछ न कुछ उससे पहले ही करना होगा पिताश्री", राजकुमारी ने राजा साहब से कहा, "अभी वक़्त है। कुँवर इंग्लैंड से अक्टूबर के आखिर में इंडिया आ रहे हैं। मैं एक बार उनसे फिर से मिलना चाहूँगी"
"ये कैसे मुनासिब होगा?"
"मैं नहीं जानती कि यह कैसे मुनासिब होगा पर मुझे अपने भविष्य को देखते हुए कुछ न कुछ करना होगा? आप चिंता न करें मैं कोई न कोई रास्ता खुद ब खुद निकाल ही लूँगी"
राजकुमारी ने यह बात राजा साहब से कही। राजा साहब को भी लगा कि बच्चे अब बच्चे नहीं रहे ज़माना भी अब वह पुराने वाला ज़माना नहीं रहा इसलिये कुछ स्वतंत्रता तो बच्चों को अब देनी ही होगी। राजा साहब ने राजकुमारी से अपनी बातचीत पर विराम लगाते हुए कहा, "जैसा तू ठीक समझे, अब तू बड़ी हो गई है। मुझे तुझ पर भरोसा है जो भी करेगी ठीक करेगी और दोनों राजपरिवारों की इज़्ज़त के अनुकूल ही करेगी। इस बात का ख़य्याल रखना कि राजा साहब मानवेन्द्र सिंह से हमारे बहुत पुराने पारिवारिक सम्बन्ध हैं बस उन सम्बन्धों पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए"
"आप निश्चिन्त रहें पिताश्री और मुझ पर भरोसा रखें मैं कोई भी काम ऐसा नहीं करूँगी जिससे अपने या उनके परिवार की शान में कोई बट्टा लगे"
क्रमशः
कथांश:67
कुँवर अनिरुध्द जब दिल्ली से कांकर लौट कर आये तो एक दिन राजा साहब ने एकांत में उनसे बात की जिससे कि अब वह उनके खुद के तथा शिखा के विवाह के सिलसिले में अंतिम बात कर सकें। जब कुँवर उनके ठीक सामने थे तो राजा साहब ने उनकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा, "कुँवर अब वक़्त आ गया है कि तुम्हारा भी विवाह हो और तुम भी अपना घर बसाओ। राजनीति में बहुत दिनों तक अविवाहित रहने से भी लोग गलत मतलब निकालने लगते हैं"
"मैंने तो आपसे कभी कुछ नहीं कहा आप जैसा उचित समझें वैसा निर्णय लें बस मेरी एक ही विनती है कि हमने किसी से वायदा किया है वह वायदा न टूटे बस इसका ख़य्याल रखियेगा क्योंकि मैंने भी आपकी तरह ही किसी को राजपूती वायदा किया है" कुँवर ने अपनी बात रखते हुए कहा।
"मुझे बताओ कि तुमने किससे वायदा किया है मैं तुम्हारी इच्छा और वायदे का पूरा सम्मान रखने की कोशिश करूँगा"
"चलिये फिर ऐश महल चलिये ये बात मैं माँसी के सामने ही करूँगा, मैंने उनसे कहा था कि जब भी अगर मुझे अपने बारे में कोई बात करनी होगी वह उनकी ही हाज़िरी में होगी"
"ऐसी कौन सी बात है कुँवर"
"चलिये आप मेरे साथ चलिये, कम से कम मेरा इतना कहा तो मान लीजिये"
"चलो भाई चलो अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो चलो गौहर बेग़म के सामने ही बात करेंगे"
यह कह कर राजा साहब और कुँवर दोनों ही साथ साथ गौहर बेग़म के सामने आ बैठे। राजा साहब ने कुँवर से कहा, "कुँवर अब तो गौहर बेग़म भी यहीं है अब बताओ कि तुम क्या कहना चाह रहे थे?"
गौहर बेग़म कभी राजा साहब की ओर देखतीं तो कभी कुँवर की ओर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि बाप बेटे में ये क्या हुआ जो दोनों ही उनके सामने आ बैठे हैं। कुँवर ने माँसी के पास बैठते हुए उनके एक हाथ को अपने हाथ मे लिया और बोले, "पिताश्री मैंने सबा से वायदा किया था कि अगर मैं शादी करूँगा तो सिर्फ उससे बस आप मेरी यह इल्तिज़ा है जो कृपया मत ठुकराइयेगा नहीं। ये आपके कुँवर का वायदा था सबा से और मैं नहीं चाहता कि राजपूती वायदे पर और अपने खानदान पर कोई ऊँगली उठा कर कहे कि यह महाराज श्री का परिवार है जहाँ लोग वायदा करके भूल जाते हैं, दगा करते हैं"
राजा साहब पहले तो कुछ चिन्तित से दिखे फिर अचानक जोर से अट्टहास करते हुए बोले, "बस माँगा भी तो कुँवर तुमने बस इतना ही माँगा, ये तो हम गौहर बेग़म से पहले ही कह चुके थे। चलो कुछ और माँग लो आज हम तुमसे बहुत खुश हैं। जिस पिता ने अपने बचपन के दोस्त का वायदा निभाने के लिये तुम्हारी माँ से सिर्फ़ इस बात के लिये शादी की कि उनके पिताश्री महाराज के वचन पर कोई आँच न आये तो तुम्हारे वायदे का कोई मान सम्मान क्यों कर नहीं रखेगा"
"मुझे कुछ और नहीं चाहिए पिताश्री"
"कुँवर बधाई तुम्हें हमारी ओर से हार्दिक बधाई", कह कर गौहर बेग़म ने कुँवर को अपने सीने से चिपका लिया और उनकी पेशानी चूम कर दुआ दी।
क्रमशः
कथांश:68
अब राजा साहब की चिंता यह थी कि किस तरह कुँवर के रिश्ते की बात को राजपूत और ब्राह्मण समाज के प्रमुख लोगों के बीच कैसे पहुँचायें जिससे कि यह बात कुँवर के राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई बड़ा प्रश्न न बने। इसके लिये एक दिन उन्होंने सूर्य महल में एक दावत रखी जिसमें कांकर और खजूरगांव क्षेत्र के प्रमुख लोगों को बुलवाया। इसी दावत में उन्होंने अपने हाई कोर्ट के वकील विवेक सिंह को भी बुलवा लिया था। इस दावत के दौरान ही राजा साहब ने कुँवर के सबा से रिश्ते की बात स्वीकारी। कुछ एक लोगों ने यह अवश्य कहा कि कुँवर किसी राजपूती राजघराने से शादी करते तो बेहतर होता एक बराबरी का रिश्ता बनता। इस पर राजा साहब ने शौक़त बेग़म के भोपाल के नबाबी खानदान से ताल्लुक़ातों की बात का ज़िक्र कर कुछ हद तक लोगों की इस जिज्ञासा को शांत किया। दावत के समाप्त होने तक सभी लोगों ने कुँवर के इस सबंध से जो राजनीतिक लाभ होने वाला था उसका भी ज़िक्र किया जैसे कि इस सम्बंध के होने से कांस्टीट्यूएंसी के मुसलमान समाज के वोट मिलने की उम्मीद बढ़ेगी और समाज में यह भी मैसेज जाएगा कि कांकर राजपरिवार सही मायनों में खुले दिलदिमाग़ वाला परिवार है जिसकी सोच सिर्फ़ अपने राजपूत समाज तक सीमित नहीं है।
जब राजा साहब को विश्वाश हो गया कि कहीं से कोई विरोध नहीं होगा तो उसके बाद उन्होंने माणिकपुर राजपरिवार को सूचित करने की ठानी। इसके लिये एक दिन वह और रानी शारदा देवी राजा साहब मानवेन्द्र सिंह और महारानी रत्ना से लखनऊ जाकर मिले और उन्हें सबा और कुँवर अनिरुध्द के रिश्ते के बारे में सूचित किया।
शुरू शुरू में महारानी रत्ना ने कुछ विरोध किया पर जब राजा साहब मानवेन्द्र सिंह ने समझाया कि इसमें बुराई ही क्या है? सबा देखने भालने में सुंदर ही नहीं अति सुंदर है, एक नवाबी ख़ानदान से आती है और सबसे बड़ी बात यह कि कुँवर अनिरुध्द सिंह उसे और वह उनको प्यार करती है। इस सम्बंध से कहीं कोई राजनीतिक नुकसान भी नहीं बल्कि लाभ ही मिलने वाला है। इस सबके बाबजूद राजा साहब माणिकपुर ने एक बात कही कि यह बेहतर होता कि कुँवर महेंद्र भी एक बार भोपाल हो आते और सबा के घर वालों से मिल लेते उनके समाज में रुतवे को समझ लेते तो और भी अच्छा होता। इस पर रानी शारदा देवी ने कहा, "इसमें क्या दिक़्क़त है कुँवर महेंद्र अक्टूबर के आख़िर में लखनऊ आने ही वाले हैं तो एक बार वह और कुँवर अनिरुध्द दोनों ही भोपाल चले जायेंगे और वहाँ सभी से मिल लेंगे। दोनों ही घुड़सवारी के शौकीन भी हैं तो इसी बहाने कुछ शुगल भी हो जाएगा"
राजा साहब चंद्रचूड़ सिंह ने भी रानी शारदा देवी की बात से सहमति जताई और यह तय हो गया कि दोनों कुँवर भोपाल मौका निकाल कर घूम आएंगे।
राजा साहब ने यह बात कांकर लौट कर गौहर बेग़म को बताई तो उन्होंने भी यही कहा कि यह ख़य्याल बेहतर है सभी परिवार वालों के बीच इसी बहाने मुलाक़ात भी हो जाएगी। राजा साहब ने गौहर बेग़म से बस इतनी गुज़ारिश की कि उन दिनों में वह भी कुँवर के साथ भोपाल चलीं जाएं जिससे कि शौक़त बेग़म को कोई उज्र न हो। गौहर बेग़म ने इसे खुशी खुशी कुबूल किया और ये भी कहा, "हुकुम आपने कहा और हमने किया। इसमें कोई खास बात नहीं है मैं शौक़त आपा से बात कर लूँगी। एक बात कहूँ हुकुम कि हम चाहते हैं एक बार महारानी साहिबा भी हमारे साथ भोपाल चलें तो यह बेहतर होगा"
राजा साहब ने गौहर बेग़म की यह बात मानते हुए कहा, "ठीक है तो हम उनसे भी गुज़ारिश कर लेंगे कि वह भी आपके साथ अपने होने वाले समधियाने में एक बार घूम आएं"
जब कुँवर महेंद्र लखनऊ आये तो कुँवर अनिरुध्द सिंह ने उनसे मिल कर भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया। कुँवर महेंद्र ने इच्छा जताई कि अगर राजकुमारी शिखा भी उनके साथ वहाँ चली चलतीं तो और भी बेहतर होता। कुँवर अनिरुध्द सिंह ने कुँवर महेंद्र से कहा, "ये कौन सी बड़ी बात है शिखा भी हम लोगों के साथ चलेगी"
कथांश:69
गौहर बेग़म के कहने पर राजा साहब ने महारानी से कहा, "गौहर बेग़म चाहती हैं कि जब कुँवर अनिरुध्द और शिखा जब उनके साथ भोपाल में हों तो आप भी अबकी बार उनके साथ चलें"
महारानी करुणा देवी ने राजा साहब को उत्तर देते हुए कहा, "हुकुम हमने भोपाल पिछली बार देख लिया था जब गौहर बेग़म वहाँ हॉस्पिटल में भर्ती थीं। मेरे करने के लिए अभी कुछ भी नहीं हूँ। मैं सोचती हूँ कि मेरा जाना अभी ठीक नहीं होगा। मैं उस समय ही जाना चाहूँगी जब सबा की गोद भराई का कार्यक्रम होगा"
राजा साहब ने महारानी साहिबा की बात सुन कर कहा, "यह भी ठीक है। आप रहने दीजिए हम गौहर बेग़म को समझा देंगे"
तय शुदा प्रोग्राम के तहत दोनो कुँवर गौहर बेग़म के साथ लखनऊ से सीधे भोपाल चले गए। उधर दिल्ली से शिखा और सबा दोंनों ही भोपाल पहुँच गईं। भोपाल रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर से जब सईद की मुलाक़ात शिखा से हुई तो उसके दिल में कुछ अजीब सा दर्द उठा पर उसने चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया। सईद उनको लेकर शौक़त मंज़िल आ गया वहाँ गौहर बेग़म और कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवर महेंद्र पहले ही से पहुँचे हुए थे।
शौक़त बेग़म इतने मेहमानों को एक साथ देख कर बेहद खुश थीं। उनकी खुशी का दूसरा कारण यह भी था कि उनका होने वाला दामाद कुँवर अनिरुध्द सिंह भी सभी के साथ जो थे। उन्हें लगा कि यह बेहतर मौका है जब कुँवर महेंद्र सभी लोगों से आपस में एक दूसरे से मिल लेंगे और एक दूसरे के बारे में जान भी लेंगे।
शौक़त बेग़म ने सईद को अलग से बुला कर यह ताकीद भी कर दिया था कि वह शिखा से बराबर की दूरी बनाए रखेगा और उसके लिये किसी तरह की परेशानी का सबब नहीं बनेगा।
कुँवर महेंद्र ने सईद से कहा, "कहाँ हैं भाई आपके घोड़े जिनकी तारीफ़ हमने एक अरसे से सुन रखी है?"
सईद ने भी जवाब में कहा, "चलिये जनाब हमारे अरबी घोड़े पूरी तरह तैयार हैं आपकी ख़िदमत के लिए"
जब सब लोग तैयार हो गए तो वे शौक़त मंज़िल के बाग़ बगीचों के बीच से होते हुए सईद के क्लब हाउस आ पहुँचे। अबकी बार शिखा और सबा के साथ साथ शौक़त और गौहर बेग़म भी सभी के साथ आईं थीं जिससे कि कुँवर महेंद्र को अच्छा लगे।
सईद ने कुँवर महेंद्र से कहा, "जनाब आप खुद ही चुन लीजिये कि आपके लिये कौन सा घोड़ा ठीक रहेगा?"
कुँवर ने अस्तबल का एक चक्कर काट कर एक काले और सफ़ेद चित्ती दार घोड़े के ऊपर हाथ रखा और कहा, "मेरी तो ये चॉइस है"
सईद ने घोड़े की तारीफ़ में कहा, "यह हमारे अस्तबल की शान है और इसका नाम भी शहंशाह है। इसे बड़े प्यार से हमने पाला और बड़ा किया है"
कुँवर अनिरुध्द ने अपने लिये वही पुराने वाला घोड़ा ब्लैक ब्यूटी चुना। शिखा और सबा ने भी अपने अपने लिये एक घोड़ा चुना और रेसिंग ग्राउंड की ओर निकल पड़े। शौक़त और गौहर बेग़म क्लब हाउस में ही बैठ कर इन लोगों की घुड़सवारी के करतब देखती रहीं और आपस में बात भी करती रहीं। बातों बातों में गौहर बेग़म ने पूछ लिया, "आपा अब सईद ठीक है। उसके दिलो दिमाग़ से शिखा का भूत निकल गया कि नहीं"
"गौहर तू तो जानती है कि इश्क़ एक वो बला है जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे। फिर भी सईद के दिल में ये बात मैंने कूट कूट के बिठा दी है कि अब शिखा किसी और की अमानत है और खासतौर पर जब शिखा हमारी मेहमान बन कर अपने होने वाले शौहर के साथ यहाँ आई है तो उसे किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देना है"
"चलिये आपा आपने अपना फ़र्ज़ निभाया। हम लोगों के बस यही हाथ में है बाकी ऊपर वाला जाने किसके दिल में क्या चल रहा है"
सईद के साथ ये सभी लोग बहुत दूर तक निकल गए यहाँ तक कि शौक़त और गौहर बेग़म की निगाहों से भी बहुत दूर थे। घुड़सवारी करते करते कभी कुँवर अनिरुध्द सबा के साथ हो लेते तो कभी कुँवर महेंद्र शिखा के साथ साथ। सईद इन सभी लोगों के साथ साथ अपना घोड़ा दौड़ाता रहता। बीच बीच में जब शिखा को कोई बात करने कुँवर अनिरुध्द के पास आती तो कुँवर महेंद्र सबा के साथ हँसी मज़ाक करते रहते।
कथांश:70
एक बार ऐसा हुआ कि घोड़ा दौड़ाते दौड़ाते हुए सबा अकेले बहुत दूर चली गई और उसके पीछे पीछे कुँवर महेंद्र भी अपना घोड़ा दौड़ाते चले गए। ये देख कर शिखा और कुँवर अनिरुध्द भी अपना अपना घोड़ा दौड़ाते हुए उनके पीछे पीछे चले आये। जब सब लोग घुड़सवारी कर क्लब हाउस लौटे और शौक़त और गौहर बेग़म के पास आ बैठे और चाय पी रहे थे। तब सबा को एक ओर लर जा कर, शिखा ने सबा से पूछा, "कुँवर महेंद्र बड़ा तेरे पीछे पीछे भाग रहे थे क्या बात है कहीं अब तेरा मन डोल तो नहीं रहा"
सबा शिखा की बात पर नाराज़गी से बोल पड़ी, "छी छी शिखा तू ये बात सोच भी कैसे सकती है। मेरे कुँवर से तेरा कुँवर अच्छा नहीं है। मेरा कुँवर मेरा कुँवर ही नहीं मेरा हुकुम भी है"
"मुझे लगा कि कहीं दिल न बदल गया हो?"
"शिखा तू बहुत पागल लड़की है। तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है"
इस पर शिखा ने सबा को लंदन वाली बात बताई, "किस तरह कुँवर महेंद्र से एडिलेड स्टीवेंसन से चिपक रही थी। कैसे बार बार कुँवर महेंद्र को चूम रही थी। कुँवर महेंद्र भी उसे अपने अगल बगल ही रख रहे थे और खुले आम उसको प्यार कर रहे थे। मुझे लगा कि कहीं कुँवर महेंद्र तुझ पर भी डोरे न डाल रहे हों"
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मैं तो तेरे भाई पर मर मिटी हूँ, अब मेरी ज़िंदगी पर किसी और का कोई अख़्तियार नहीं है"
शिखा सबा की बात सुन कर बोल पड़ी, "इन मर्दों के कोई भरोसा नहीं है कब किसके ऊपर फ़िदा हो जाएं?"
"तेरा भाई ऐसा नहीं है, मैंने उसे करीब से जाना पहचाना है"
"मैं अपने भाई के बारे में नहीं कह रही हूँ, मैं कुँवर महेंद्र के बारे में कह रही हूँ", शिखा बोल उठी।
सबा को शिखा की बातें अच्छी नहीं लग रहीं थीं, "तू यार पहले तो इतनी शक़्क़ी मिज़ाज़ नहीं थी। अब तुझे क्या हो गया है? जब से तू लंदन से लौटी है मुझे बहुत बदली बदली सी दिख रही है"
शिखा कुछ सोच में पड़ गई पर हिम्मत जुटा के बोली, "मैं ऐसी नहीं थी जैसी अब हो गई हूँ। मुझको भी बहुत खराब लगता है जब मैं यह सब तुमसे कहती हूँ। पर मैं करूँ क्या मेरे दिल में एक शक़ का कीड़ा बैठ गया है जो मुझे ये सब सोचने पर मज़बूर करता है?"
"तू अपने भविष्य को लेकर कुछ अधिक ही चिंतित रहने लगी है यह ठीक नहीं है इससे तेरे स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ेगा ही और तेरे वैवाहिक जीवन मे भी ख़राबी पैदा करेगा"
शिखा बोली, "मैं जानती हूँ, तू बिल्कुल ठीक कह रही है पर कुँवर महेंद्र को लेकर मैं जितनी उत्साहित थी मैं अब उतनी ही हतोत्साहित महसूस कर रही हूँ"
सबा ने कहा, "शायद इसीलिए अरेंज्ड मैरिज कभी कभी मिसकैरिज हो जाती हैं। दो दिल एक जो एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं कम से कम इस तरह एक दूसरे पर अविश्वास नहीं करते"
"सबा तू किस्मत वाली है"
दोंनों सहेलियों में यही सब बात चल ही रहीं थीं कि तभी सईद भी इन लोगों के करीब आ चुका था, शायद अपने दिल के हाथों मजबूर होकर। आते ही उसने शिखा से पूछा, "कैसा रहा आज का मॉर्निंग सेशन"
"ठीक ही था। क्या बात है बड़े उदास उदास से दिखाई दे रहे हो तबियत तो ठीक है?", शिखा ने सईद से पूछा।
इससे पहले कि सईद कुछ बोलता सबा बोल पड़ी, "भाई को क्या हुआ? वह तो हमेशा मस्त रहता है। अपने काम में लगा रहता है, उसे घोड़ों से प्यार है और उसके घोड़ों को उससे"
सईद कुछ अधिक न कह कर बस इतना ही बोला, "क्या करें जब इंसान इंसान से मोहब्बत ही न करे तो जानवर ही अच्छे हैं कम से कम अपने मालिक के प्रति बफादार तो होते हैं"
शिखा सईद की ओर देखती रह गई और वह दूर चला गया।
क्रमशः
कुछ कही-कुछ अनकही सी अपनी बात:
कल हमारे परममित्र बी एन पाण्डेय जी ने अपनी टिप्पणी में लिखा था कि अब मिलन की बेला में कुँवर महेंद्र और शिखा का मिलन और कुँवर अनिरुध्द का मिलन हो ही जाना चाहिए। उनकी आज्ञा हम अवश्य पालन करेंगे। एक फांस अभी फंसी हुई है बस वह निकल भर जाए। इसी उधेड़बुन में लगा हूँ कि कहीं से कोई रोशनी नज़र भर आये।
बाद बकिया जैसे हमारे प्रभु हमसे जो कहेंगे हम वही करने के लिये वचनबद्ध हैं।
कथांश:71
शाम के खाने पर सब लोग डाइनिंग टेबल पर इक्कट्ठे हुए तो आपस मे हँसी मज़ाक का दौर चल पड़ा। भोपाल शहर के नवाबी रंगों की बातें भी चलीं। जब भोपाल की बात हो और शौक़त बेग़म भला अपने ख़ानदान की बात न करें ये तो हो ही नहीं सकता। उन्होंने भी नवाबी वक़्त के किस्से खूब सुनाए। अपनी जवानी के वक़्त के, कुछ उसके बाद के कि कैसे कैसे ठाठ हुआ करते थे इस ज़माने में।
कुँवर महेंद्र ने भी अपने इंगलेंड के दिनों के बारे में खूब बढ़चढ़ कर बताया।
शिखा ने भी अपनी उपस्थित बनाये रहने के लिये कांकर के खूब किस्से सुनाए।
कुँवर अनिरुध्द वैसे भी कम बोलते थे और वह आज भी चुप ही बैठे हुए थे। सबा उन्हें ही देखे जा रही थी। उन्हें देख गौहर बेग़म बोलीं, "हमारा कुँवर न जाने किन ख्यालों में डूबा रहता है कि उसके पास खुद के लिये भी वक़्त नहीं है। हमेशा बस पब्लिक के कामों के बारे में सोचता रहता है"
कुँवर अनिरुध्द ने गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "माँसी ऐसी तो बात नहीं है"
"ऐसी ही बात है। पता नहीं निकाह के बाद भी ये हज़रत ऐसे ही रहेंगे कि इनकी देखा देखी सबा को भी चुपचुप रहना पड़ेगा", शौक़त बेग़म बीच में बोल उठीं।
कुँवर अनिरुध्द ने शौक़त बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं मैं आपकी बेटी को कभी कोई शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा। बस मेरा आपसे इतना ही वायदा है"
कुँवर महेंद्र ने भी सईद को छेड़ते हुए कहा, "अरे सईद भाई आप कैसे खामोश गुमशुम से बैठे हैं। आप भी कुछ बोलिये। हाँ, एक बात तो बताइए कि आप हमें अपने निकाह में बुलाएंगे या नहीं"
सईद बड़े अनमने से मन से बोल पड़ा, "कुँवर साहब आप लोग बड़ी क़िस्मत वाले हैं जिन्हें अपनी अपनी मंज़िल मिली। हमें तो आसमाँ में दूर तक कोई सितारा नज़र नहीं आता, कैसे कह दूँ कि हम आपको अपने निकाह में बुलाएंगे। हाँ अगर कोई रिश्ता लेकर आ ही गया तो ज़रूर ज़रूर बुलाएंगे"
बेटे के मुँह से इस तरह के बोल सुन कर शौकत बेग़म से रहा न गया और वह बोल पड़ीं, "मेरा चाँद से बेटा है। उसका बढ़िया कारोबार है। माशाअल्लाह अच्छा खासी ख़ानदान से है तू कहे तो सही तेरे लिये एक रिश्ता नहीं हज़ारों आएंगे। इतना ग़मज़दा होने की भी ज़रूरत नहीं है"
गौहर बेग़म ने भी शौक़त बेग़म की बातों से इत्तफ़ाक़ रखते हुए कहा, "बिल्कुल एक नहीं हज़ारों लड़कियां मिलेंगी हमारे सईद के लिये"
"अभी तो एक भी ना मिली है खालाजान", कह कर सईद ने शिखा की ओर बड़े ध्यान से देखा।
बातों का रुख दूसरी ओर ले जाने के लिहाज़ से गौहर बेग़म ने सईद से कहा, "सईद पिछली मर्तबा तूने ज़नाब बशीर बद्र से मुलाक़ात क्या कराई हम तो उनके मुरीद हो गए। क्या ये मुनासिब हो पायेगा कि एक दिन हमें उनकी हवेली पर ले चल"
"क्यों नहीं खालाजान, मैं कल के रोज़ ही बात कर आपको उनके यहाँ ले चलूँगा"
इसके बाद सभी लोगों के बीच देर रात तक हँसी मज़ाक होता रहा। जैसा अमूनन ऐसे बड़े घरों में होता है देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोना। सभी लोग अपने अपने कमरों में आराम फरमाने चले गए।
शिखा और सबा एक ही कमरे में साथ साथ थीं। उधर शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म एक साथ थीं। दोनो ही कमरों के लोग आपस में देर रात तक गुफ़्तगू करते रहे। दोनों कुँवर अपने अपने कमरों में चैन की नींद सोते रहे।
क्रमशः
कथांश:72
सबा और शिखा दोंनों की आँखों में नींद नहीं थी। दोनों ही अपने अपने ख़यालों में डूबी हुईं थीं। शिखा कुँवर महेंद्र की हरकतों से मन ही मन नाराज़ थी और उधर सबा भी यह बात अच्छी तरह जान रही थी।
सबा को लगा कि उसके पास यह एक आख़िरी मौका है जब कि एक बार सईद के दर्द को शिखा से बयाँ कर वह अपना वायदा निभा सकती है। उसने शिखा से कहा, "शिखा एक बात बता तेरे दिमाग़ में जो कुछ कुँवर महेंद्र को लेकर चल रहा है तो क्या तुझे लगता है कि तू उनके साथ चैन सुकून की ज़िंदगी बिता पाएगी?"
"सबा मैं अभी कुछ नहीं कह सकती। मुझे कुँवर महेंद्र के बारे में न जाने क्यों ऐसे वैसे ख़य्याल आते हैं? मुझे लगता है कि वह कहीं न कहीं ग़लत हैं पर मैं ये हंड्रेड परसेंट स्योरिटी से नहीं कह सकती"
"एक बात और बता अगर तुझे कोई कड़ा फैसला लेना पड़े तो क्या तू उसके लिये तैयार है?"
"क्या मतलब?"
"अगर ये प्रूव हो जाये कि कुँवर महेंद्र ठीक इंसान नहीं है तो क्या तू कुछ तय कर पायेगी कि वह तेरे क़ाबिल नहीं हैं?"
"क्यों नहीं, बिल्कुल मैं अपने भविष्य के लिये जो ठीक समझूँगी वह मैं अवश्य करूँगी"
"तो सुन कल से मैं कुँवर महेंद्र के आसपास रहने की कोशिश करूँगी और तू उन पर अपनी निग़ाह रखना। अगर वह कोई भी ओछी हरक़त करें तो तू जो ठीक समझे वह करना"
शिखा ने कहा, "मैं भी यही सोच रही थी पर समझ नहीं पा रही थी कि मैं ये बात तुझसे कैसे कहूँ?"
"तो ठीक है कल से हमारा प्रोग्राम शुरू होगा। एक बात का ख़्याल रहे कि इन सब चक्कर में कहीं मेरे और तेरे भाई के बीच कोई ग़लतफ़हमी न आ जाये"
"नहीं तू इसकी चिंता मत कर। ये मेरी ज़िमेदारी होगी। शिखा एक बात आख़िरी बार बता, तेरे दिल में कभी किसी और से प्रेम करने की बात नहीं आई?"
"सबा यह कैसा उटपटांग सवाल है?"
"ये इसलिये कि कोई तुझे बहुत प्यार करे और तू उसकी ओर एक नज़र भर के भी न देखे इसलिये"
"देख सबा देखने वाले तो हर जगह खूबसूरत लड़िकयों को घूरते ही रहते हैं तो क्या हम हर उस लड़के से मोहब्बत कर बैठें?"
"शिखा मैंने ये तो नहीं कहा। मेरा मक़सद तुझसे बस इतना जानने भर का था कि क्या तेरे दिल में सईद भाई को लेकर कभी कुछ हुआ?"
"क्या, कभी कुछ नहीं लगा और न उसकी नज़र में मुझे अपने लिये कोई प्यार दिखा !"
"तब चल सो जा। अब सो भी जा। कल देखते हैं कि क्या करना है?"
सुबह सुबह उठ कर कुँवर अनिरुध्द सिंह तो सैर के लिये निकल गए। सबा भी उनके साथ मॉर्निंग वॉक पर चल पड़ी। रास्ते में उसने वे सब बातें उन्हें बताईं जो देर रात उसके और शिखा के बीच हुईं थीं। कुँवर अनिरुध्द ने सबा की योजना के बारे में बात करते हुए पूछा, "क्या ये सब करना ज़रूरी है?"
"मेरे ख़्याल से बहुत ज़रूरी है नहीं तो शिखा की ज़िंदगी खराब ही जायेगी"
कुछ देर बाद कुँवर महेंद्र भी उठ गए। उसके बाद एक एक करके सभी लोग नीचे हाल में सुबह की चाय पर मिले। इसी बीच कुँवर अनिरुध्द और सबा भी मॉर्निंग वॉक से लौट आये। शिखा की पैनी निग़ाह कुँवर महेंद्र पर बनी हुई थी जो ये महसूस कर रही थी कि वह हमेशा सबा की ओर देखा करते हैं जैसे कि उससे कुछ कहना चाह रहे हैं पर कह नहीं पा रहे हैं।
क्रमशः
कथांश:73
जब आज सभी लोग हॉर्स राइडिंग के लिये निकले तो उन सब में सबा सबसे ज्यादा चहक रही थी। उसने आज अपने लिये वही घोड़ा चुना था जो कल कुँवर अनिरूद्ध के पास था। कुँवर महेंद्र अपने कल वाले घोड़े ब्लैक ब्यूटी पर ही थे। कुँवर अनिरुध्द और शिखा जानबूझ कर पीछे पीछे चल रहे थे। सईद इन दोंनों के पीछे अपने घोड़े पर सवार हो चला जा रहा था।
सबा ने जानबूझ कर अपने घोड़े के ऐंड लगाई और उसे दौड़ाते हुए बहुत दूर निकल गई। उसे दूर जाते देख कुँवर महेंद्र एक बार तो पलट कर देखे कि कुँवर अनिरुध्द या शिखा तो उसके पीछे नहीं आ रहे हैं और जब वह सन्तुष्ट हो गए कि वे दोंनों अपने बातचीत में मग्न हैं तो वह अपना घोड़ा दौड़ाते हुए सबा के पीछे तेजी के साथ निकल पड़े।
कुँवर अनिरुध्द और शिखा ने भी अपने अपने घोड़ों के ऐंड लगाई और फर्राटे दार तेजी से कुँवर महेंद्र के पीछे पीछे हो लिए जिससे कि वे उनके ऊपर निग़ाह रख सकें। कुँवर महेंद्र सबा के जब बहुत करीब आ गए तो उन्होंने सबा से पूछा, "आर यू ओके? मुझे लगा कि आपका घोड़ा बेकाबू होकर आपको ले उड़ा"
सबा जो इसी मौके की तलाश में थी बोली, "आई एम परफेक्टली ओके। डोंट वरी अबाउट मी"
"चलिये यह ठीक है मैं आपको लेकर चिंतित हो उठा था"
"आप नाहक ही चिंतित हो उठे"
इतने में कुँवर अनिरुध्द और शिखा भी उनके पास आते हुए देख कर बोले, "हाँ भाई। आपके हमदम कुँवर जब हैं तो हमें चिंता करनी भी नहीं चाहिए"
"जी, बज़ा फ़रमाया"
"बेहतर" कह कर कुँवर महेंद्र कुँवर अनिरुध्द और शिखा को देखते हुए बोले, "डोंट वरी, शी इज फाइन। आई केम आफ्टर हर थिंकिंग शी इज इन डेंजर"
इसके बाद वे सभी अपने अपने घोड़ों को कूल करते हुए धीरे धीरे अक्टूबर की धूप सेंकते हुए क्लब हाउस पर वापस आ गए। वहाँ गौहर और शौक़त बेग़म पहले ही से उनके लौटने की राह देख रहीं थीं। सईद के भी वहाँ आ जाने पर उन लोगों ने एक कप चाय पी और शौक़त मंज़िल अपनी हॉर्स राइडिंग के कम्पलीट हो जाने पर वापस आ गए।
दोपहर के वक़्त शिखा और कुँवर अनिरुध्द जब सबा से मिले तो उन्होंने कुँवर महेंद्र के व्यवहार के बारे में पूछा तो सबा ने बताया, "शिखा मेरे ख़्याल से तुम अपने मन से ये ख़्याल निकाल दो कि कुँवर महेंद्र ख़राब इंसान हैं। वे मेरे साथ एक इज़्ज़तदार आदमी की तरह पेश आये। मैं नहीं कह सकती कि उनकी नीयत में कोई खोट है"
कुँवर अनिरुध्द ने सबा की बात सुन कर शिखा से कहा, "अब तुम ये ख़्याल अपने दिमाग़ से हमेशा हमेशा के लिये निकाल दो। कुँवर महेंद्र के साथ अपने वैवाहिक जीवन की तैयारी करो। चिंता मत करो में हमेशा तुम्हारे साथ हूँ कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होने दूँगा"
सबा ने भी जोर देकर शिखा को समझाया कि कुँवर महेंद्र के प्रति वह अपने मन मे कोई दुर्भावना न लाये। सबा और कुँवर अनिरुध्द की बातें सुन कर शिखा को तसल्ली हुई और वह बोल उठी, "सबा मैं किन शब्दों में तेरा शुक्रिया अदा करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आज तेरी वजह से मेरे दिमाग़ की सारी उनझनें खत्म हो गईं हैं"
कुँवर ने शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "चलो अच्छा हुआ कि समय रहते हम लोगों ने कुँवर महेंद्र के बारे में तेरे शक़ दूर करने में मदद की। सबसे बढ़िया बात तो यह है कि अब तू उनके और क़रीब आने की कोशिश कर"
"जी भइय्या"
जब सईद और सबा का आमना सामना हुआ तो वह सईद से यह कहने में नहीं चुकी कि वह अब शिखा का ख़याल हमेशा हमेशा के लिए निकाल दे। उसके दिल और दिमाग़ में वह नहीं केवल कुँवर महेंद्र बसते हैं।
शाम को सईद सभी लोगों के साथ ज़नाब बशीर बद्र के यहाँ आ पहुँचा। बशीर भाई और उनके घर वालों के बीच एक लंबी बातचीत का दौर चला। बशीर बद्र की भाभी जी ने सईद की मुलाक़ात अपनी एक दोस्त की भांजी शकीला से कराई जो भोपाल यूनिवर्सिटी से एम ए कर रही थी। शकीला से मिल कर सईद का मन कुछ हल्का हुआ। बातचीत में गौहर बेग़म ने बशीर बद्र की एक ग़ज़ल अपने नाम कर ली। उसे वहीं सुर देकर सबको सुना कर सभी का दिल जीत लिया।
चलते चलते वह हो गया जिसकी उम्मीद किसी को भी न थी। शौक़त बेग़म ने सईद के लिये शकीला का हाथ माँग के सब को सकते में ला दिया। शकीला ने भी सईद से रिश्ते के लिये हाँ क्या भर दी। सब बात आनन फानन में तय हो गईं।
कथांश:74
देर रात शौक़त मंज़िल आ कर सभी ने सईद को मुबारक़बाद पेश की और उम्मीद ज़ाहिर की कि आने वाले दिन उसके लिये खुशियों भरे हों। शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का तहेदिल से शुक्रिया करते हुए कहा, "तूने अगर बशीर भाई के यहाँ चलने की जिद्द न की होती तो कुछ भी न होता" और फिर कुँवर महेंद्र की ओर पलट कर देखते हुए कहा, "हम तो आपके भी शुक्रगुज़ार हैं कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ़ क्या लाये कि हमारे सईद की तो किस्मत ही चमक गई"
कुँवर महेंद्र बोल पड़े, "चलिये सईद भाई भी अब हम लोगों के साथ ही अपना निकाह कर लेंगे"
"कुँवर आपने यह क्या बात कह दी। आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। मैं तो कहती हूँ कि तीनों शादी एक साथ एक ही जगह हो जाएं कितनी अच्छी बात होगी" शौक़त बेग़म के मुँह से अचानक ही ये बोल निकल पड़े।
दोनों कुँवर, शिखा और सबा तो हवेली के अंदर चली गईं पर शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ते हुए कहा, "गौहर जो बात जुबां से अचानक ही निकल जाए वह सच होकर ही रहती है। एक काम कर तू राजा साहब से बात कर हम लोग सारा इंतज़ाम यहीं 'नूर-ए-सबाह पैलेस' में कर देंगे। बहुत ही आलीशान ढँग से तीनों शादियां एक साथ यहीं से हो जायेंगी"
"आपा, आप कह तो ठीक रहीं हैं पर हुकुम इस बात के लिये तैयार होंगे या नहीं कहना कुछ मुश्किल है" गौहर बेग़म ने शौक़त बेग़म को जवाब देते हुए कहा, "मेरे ख़य्याल में इस पर ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है"
शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ा और बोलीं, "चल अंदर चल कर बात करते हैं कोई न कोई तो रास्ता निकले ही आयेगा। सबसे बड़ी बात तो आज ये हो गई कि हमारे सईद के चेहरे की रौनक़ दुबारा वापस आ गई"
देर रात जब दोनों बहनें आसपास ही एक ही बिस्तर पर आराम फरमा रहीं थीं। उस वक़्त गौहर बेग़म ने कहा, "एक काम तो हो सकता है कि तू पहले बशीर भाई के ज़रिए से ये बात तय कर ले कि क्या वे भी शकीला की शादी दिसम्बर में करने के लिये तैयार हैं कि नही?"
"मैं एक दो दिन में उनके यहाँ जाऊँगी तो उनसे बात कर लूँगी"
"मैं राजा साहब से यह तो कह सकती हूँ कि वे दस तारीख़ को शिखा की शादी निपटा कर बाद में किसी भी वक़्त दिसंबर में ही कुँवर अनिरुध्द के निकाह की रस्म सईद के निकाह की रस्म के साथ ही भोपाल में ही अता फरमाएँ और बाद में शानो शौक़त के साथ कुँवर का व्याह हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में रखें। क्योंकि कुँवर के राजनीतिक लोगों का भी ख़य्याल रखना होगा"
"चल ऐसे ही कुछ बात चलाना अगर मान जायें तो ठीक नहीं तो हम ही कांकर चले चलेंगे", शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म की बात रखते हुए कहा।
क्रमशः
कथांश:75
कांकर लौट कर गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपके सब ग़म हमने अपने ऊपर जो लिये थे वे सब के सब ठीक ढँग से सुलझ गए"
और फिर बाद में राजा साहब को वे सारी बातें जो भोपाल में बीतीं एक एक कर सिलसिलेबार सुनाईं। राजा साहब मारे खुशी के फूले नहीं समाए और उन्होंने गौहर बेग़म को अपनी बाहों में लेकर खूब जोरों से घुमाया। जब मन की खुशी काबू में आई तब वे गौहर बेग़म से बोले, "शुक्रिया तो बहुत ही छोटा लफ्ज़ है, आज आप जो चाहें वह माँग लें"
गौहर बेग़म को भी लगा कि इससे उपयुक्त समय और कौन सा होगा तो उन्होंने भी राजा साहब से यह कह कर सब कुछ माँग लिया जिसका वह वायदा शौक़त बेग़म से कर के आईं थी। मसलन शिखा की शादी के बाद कुँवर का निकाह भोपाल में ठीक उसी दिन हो जिस दिन कि सईद का निकाह होना हो और यह कि बाद में कुँवर को व्याह हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में जोर शोर और पूरे राजकीय तरीके से ढोल नगाड़ों के बीच हो।
अक्टूबर में शारदीय दुर्गा पूजन की इस साल विशेष व्यवस्था कांकर में की गई। इस वर्ष भी पूर्व की भाँति अवधूत आश्रम के महहमण्डलेश्वर महाराज हरिद्वार से विशेष रूप से पधारे। हर साल की तरह इस साल भी ब्रम्ह भोज और बिरादरी भोज रखा गया। बिरादरी भोज के अवसर पर कांकर राजपरिवार के कुलपुरोहित शाश्त्री जी ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर महेंद्र की शादी की तिथियों की घोषणा की और बाद में सभी को यह भी सूचित किया कि सभी के आँखों के तारे और कांकर कुँवर तथा खजूरगांव के राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह का विवाह भोपाल के राजपरिवार की नवाबज़ादी सबा के साथ होना तय पाया गया है। महामंडलेश्वर ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर अनिरुध्द सिंह को आशीर्वाद दिया। समस्त बिरादरी ने राजपरिवार को इस दुहरी खुशी के लिए मुबारक़बाद दिया और राजकुमारी शिखा और राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह को हार्दिक बधाई देते हुए उनके सुंदर भविष्य के लिए प्रार्थना की।
दस दिसंबर को राजकुमारी शिखा का विवाह ख़ूब धूम धाम के बीच कांकर में राजकुमार माणिकपुर कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह के साथ सम्पन्न हुआ। कांकर राजपरिवार ने अपनी चहेती राजकुमारी शिखा बेटी को नम आँखों से विदा किया। विदा होते ही रानी शारदा देवी राजा साहब के सीने से चिपक कर ख़ूब रोईं। महारानी करुणा देवी और गौहर बेग़म ने उन्हें समझाया कि ये रानी शारदा देवी यह समय रोने का नहीं है खुशियाँ मनाने का है। यह तो जग की रीति है कि बेटी व्याह कर पराये घर जाती है। अब तो आप अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिये बहू रानी लाने के लिये भोपाल चलने की तैयारी करें।
तयशुदा प्रोग्राम के अनुसार कांकर राजपरिवार और खजूरगांव के ओहदेदार और मंसबदारों के साथ भोपाल के लिये रवाना हो गया। भोपाल में एक शानदार जलसे में सईद का निकाह शकीला के साथ और कुँवर अनिरुध्द का निकाह सबा के साथ जोशोखरोश के साथ पूरा नूर-ए-सबाह पैलेस में सम्पन्न हुआ।
शौक़त बेग़म राजपरिवार के साथ ही भोपाल से कांकर आ गईं। बाद में पूरे राजसी ठाठबाठ के साथ राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह का विवाह नवाबजादी सबा के साथ वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच संपन्न हुआ। ऐश महल से विदा हुई सबा जिनका पुनः नामकरण कुँवरानी पद्मिनी हुआ। राणा कुँवर अनिरुध्द सिंह और कुँवरानी पद्मिनी के साथ अपनी तीनों माताश्री महारानी करुणा देवी, रानी शारदा देवी और माँसी गौहर बेग़म तथा राजा साहब के साथ शहनाई की मधुर धुन और ढोल नगाड़ों के बीच सूर्य महल में पधारे।
यथोचित स्वागत सम्मान के साथ कुँवर और कुँवरानी अपने कक्ष में आये। कुलपुरोहित शाश्त्री जी ने विधिविधान से पूजा अर्चना कराई और उपस्थित लोगों ने उन्हें हृदय से आशीष दिया।
रात्रि की मधुर बेला में दो दिल मिल रहे थे, चाँद आसमान पर खिलखिला के हँस रहा था। कुँवर अनिरुध्द सिंह कुँवरानी पद्मिनी के चेहरे को अपने सीने पर रख बड़े प्रेम से निहार रहे थे। आज कुँवर ने पहली बार कुँवरानी पद्मिनी के भाल पर पड़ी एक शोख़ लट को हटाते हुए कहा, "पद्मिनी क्या आप मेरी एक इच्छा पूरी करेंगी?"
कुँवरानी पद्मिनी ने पूछा, "क्या मेरे हुकुम?"
"मैं चाहता हूँ कि कल से आप अपना केश विन्यास कुछ इस प्रकार करें कि आपके भाल पर की माँग ठीक बीचोबीच से निकलने की जगह कुछ बाएं की ओर हट के निकले। मेरी दादी साहिबा इस तरह का केश विन्यास करतीं थीं और मुझे वे बहुत अच्छी लगतीं थीं"
"बस इतनी सी बात हुकुम", यह कह कर कुँवरानी पद्मिनी उठीं आईने के सामने आ खड़ी होकर टेडी माँग निकाली और सिंदूरदानी अपने हाथ में ले कुँवर के सामने आ खड़ी हुईं और बोलीं, "लीजिये भर दीजिये इस टेड़ी माँग में मेरे सुहाग का सिंदूर"
कथांश:76
वैवाहिक कार्यक्रमों से फुरसत पा कुँवर और कुँवरानी पद्मिनी हनीमून के लिये स्पेन और पुर्तगाल के लिए चले गए। कुछ दिन वहाँ बिता कर जब वे लौटे तो कुँवर अपने राजनीतिक काम में लग गए। इधर राजपरिवार में दो दो शादियों के कारण क्षेत्र का जो काम छूट रहा था उस पर अपनी पैनी निगाह रखना शुरू किया।
वक़्त का क्या वह तो अपने हिसाब से चलता ही रहता है। राजनीतिक उटख पटख के बीच 1977 के लोक सभा के चुनावों की घोषणा हो गई। कुँवर की सीट से ही प्रधानमंत्री जी के कनिष्ठ पुत्र ने इलेक्शन लड़ने का मन बनाया जिसके कारण कुँवर की टिकट कट गई। कुँवर अपनी टिकट कटने से दुःखी थे पर राजा साहब ने उन्हें समझाया कि यह वक़्त विरोध का नहीं है बल्कि राजनीतिक सूझबूझ से काम लेने का है। जब कुँवर की मीटिंग प्रधानमंत्री से हुई तो उन्होंने कुँवर के काम की बहुत तारीफ़ करते हुए उन्हें राज्य सभा में नामित करने तथा कैबिनेट में मंत्री पद देने का वायदा कर कुँवर से अपने कनिष्ट पुत्र के लिये मदद की गुहार की।
राजनीति का पहिया कुछ ऐसा चला कि कांग्रेस का समस्त उत्तरी प्रान्तों में सफ़ाया हो गया। प्रधानमंत्री स्वयं रायबरेली से चुनाव हार गईं। प्रधानमंत्री के स्वयं चुनाव हार जाने के कारण कांग्रेस की बहुत किरकिरी हुई। एक सज्जन जो कि रायबरेली के ही थे जब उनसे मज़ाक मज़ाक में किसी ने यह कहा कि कांग्रेस सब जगह से हार जाती उसका ग़म नहीं पर रायबरेली के लिये जिन्होंने इतना कुछ किया कम से कम रायबरेली के लोगों को उनको वोट देकर जीतना ही चाहिए था। इस पर दूसरे सज्जन जो कि रायबरेली के ही रहने वाले थे, उन्होंने तो यहाँ तक कह दिया, "कांग्रेस अगर रायबरेली से हार गई तो इसमें ताज़्ज़ुब की क्या बात है, रायबरेली के लोग भी तो आखिरकार गेहूँ की रोटी खाते हैं"
वाक़ई में उस समय देश के जिस जिस भाग में गेहूँ खाया जाता था वहाँ से कांग्रेस का बिल्कुल सफाया सा हो गया था।
देश में जनता दल की सरकार बनी। पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर सत्ता के गलत उपयोग के आरोप लगे जिनकी जाँच के लिये शाह कमीशन नियुक्त किया गया, उन्हें जेल में डाल दिया गया। शाह कमीशन के दौरान जो कुछ हुआ सो हुआ परन्तु जनता दल के अंतर्कलह के कारण जनता दल की सरकार मात्र ढाई साल में ही गिर गई और देश मे फिर से 1980 में पुनः चुनाव कराने की घोषणा हो गई।
चुनाव प्रचार में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने धुआँधार प्रचार देश भर में किया। इसी प्रचार के अंतर्गत एक चुनावी सभा को सम्बोन्धन करने हेतु जब पूर्व प्रधानमंत्री जिला गोंडा पहुँची तो वहाँ के लोकसभा के सदस्य कुँवर आनंद सिंह, राजा साहब मनकापुर ने उन्हें अपने जिले के पिछड़ेपन के बारे में बताया। उसी दिन रात्रि विश्राम के लिए वे मनकापुर कोट में रूकीं। उन्होंने राजा साहब कुँवर आनंद सिंह जी से वायदा किया कि अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में दोबारा आती है तो वह इस क्षेत्र के विकास के लिये कोई ठोस कदम अवश्य उठाएंगी।
इन चुनावों में कांग्रेस एक बार फिर से विजय श्री प्राप्त कर केंद्र में सत्ता में आ गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने वायदे के मुताबिक़ कुँवर को कैबिनेट रैंक का मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें सबसे महत्वपूर्ण विदेश विभाग भी दिया।
इसके बाद कुँवर ने राजनीति में मुड़ कर नहीं देखा और वह प्रधानमंत्री के बहुत ही नज़दीकी मन्त्रियों की श्रेणी में आ गए।
राजा साहब की सूझ बूझ और कुँवर की अपनी मेहनत रँग लाई। इस तरह एक लंबे अंतराल तक कुँवर ने अपने क्षेत्र के साथ साथ रायबरेली के हितों का भी ध्यान रखा।
रायबरेली में आई टी आई यूनिट के एक्सपेंशन के तहत बेल्जियम की बेल टेलीफ़ोन मैन्युफैक्चरिंग कंपनी के साथ सहयोग कर क्रॉस बार टाइप के एक्सचेंज बनाने का काम शुरू किया गया। इसके तहत लगभग पाँच हज़ार लोगों को रोज़गार मिला। 2 अप्रैल, 1984 को प्रधानमंत्री आई टी आई लिमिटेड के प्रांगण में पधारी और उन्होंने क्रॉस बार यूनिट का लोकार्पण कर इसे देश को समर्पित किया। इस मौके पर उन्होंने यह माना कि आई टी आई के लिये क्रॉस बार टेक्नोलॉजी नई नहीं है और यह उनका कोई अंतिम कार्य भी नही है, इसके बाद भी वे कई और काम करने की सोच रहीं हैं।
इसी बीच एक दिन प्रातः काल में कुँवर आनंद सिंह जी प्रधानमंत्री जी से अपनी कांस्टीट्यूएंसी के उत्थान के सम्बन्द्ध में मिले और उन्हें उनका किया हुआ वायदा याद दिलाया। ठीक उसी दिन दोपहर से पहले कैबिनेट मीटिंग में जब आई टी आई लिमिटेड के एक्सपेंशन की योजना लेकर तत्कालीन संचारमंत्री जो केरल प्रदेश के रहने वाले थे अपना प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष रखा। जैसे ही आई टी आई लिमिटेड के विस्तार की योजना के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जी को सूचित किया गया जिसके तहत एक प्लांट पलक्कड़ और दूसरा बंगलुरू में लागये जाने का प्रस्ताव था। इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने अपना अंतिम निर्णय लेते हुए कहा, "Let one of these plants be located in district of Gonda of Uttar Pradesh"
बस फिर क्या था और किसकी हिम्मत थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की बात को कोई काट सके। उसके बाद आई टी आई के कर्मचारियों और अधिकारियों ने बंगलुरू में प्लांट लगाने के लिये हो हल्ला किया अंततः जो एक कमेटी साइट सिलेक्शन के लिये बनी थी उसने एक एक प्लांट मनकापुर, पल्लकड तथा बंगलुरू में ई एसएस ई 10 B सिस्टम के प्लांट लगाने की संतुति दी।
इस तरह आईटीआई लिमिटेड की तीन यूनिट उत्तर प्रदेश के हिस्से में आ गईं।
रायबरेली में यूपी सरकार का उपक्रम यूपी टायर्स एंड ट्यूब लिमिटेड के साथ साथ स्वदेशी कॉटन मिल तथा पेपर मिल इत्यदि भी इसी समय में वहाँ लगे। दरियापुर में एक शुगर फैक्ट्री भी लगाई गई। फुरसरगंज में सिविल एविएशन अकादमी खोली गई। फिरोज़ गाँधी कॉलेज को अपग्रेड किया गया। कुछ और भी महत्वपूर्ण निर्णयों के कारण अवध क्षेत्र का सर्वांगीण विकास संभव हो सका।
उत्तर प्रदेश में भी सड़को की स्थित में सुधार आने लगा, किसानों की भी स्थित पहले से बेहतर हई, स्कूलों और क्षात्रों के भले के लिये भी ज़ोरदार तरीके से काम शुरू किया गया। कुँवर के कुछ ख़ास प्रोजेक्ट्स जैसे कि बनारस, इलाहाबाद और कानपुर के बीच रिवर क्रूज सेवा शुरू हो गई, गंगा नदी के तट पर एक ओर पिकनिक स्पॉट और मगरमच्छ का ब्रीडिंग सेंटर तथा नदी के दूसरे मुहाने पर एक डियर पार्क शुरू हो चुके थे, तीन लिफ्ट इर्रीगेशन की कैनाल के शुरू हो जाने से किसानों को खेती किसानी के काम में बहुत मदद मिलने लगी।
गंगा नदी को निर्मल बनाने के अंतर्गत डलमऊ के घाट पर विद्दयुत शव दाह की व्यवस्था भी शुरू की जा चुकी थी।
एक दिन राजा साहब को रात्रि के अंतिम प्रहर में स्वप्न आया कि अब यह उचित समय है जब कि उन्हें भी अपने पिताश्री महाराज चूड़ावत सिंह जी के पदचिन्हों पर चलते हुए राजपाट त्याग कर सन्यास ले वानप्रस्थ आश्रम में चले जाना चाहिए।
बस यह विचार मन में आते ही राजा चंद्रचूड़ सिंह ने अगले दिन ही कुँवर अनिरुध्द सिंह का विधवित राज्याभिषेक किया। देर रात गौहर बेग़म के साथ ऐश महल में गुज़ारी उनको समझाया कि वे कुँवर और कुँवरानी को उनके सहारे छोड़ कर जा रहे हैं। अगले दिन भोर में वे अपनी धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी तथा शारदा देवी के साथ कांकर छोड़ कर वन गमन हेतु चले गए।
कांकर में रह गए बस अब राजा कुँवर अनिरुध्द सिंह और उनकी रानी पद्मिनी तथा राजमाता के रूप में गौहर बेग़म। आज के दिन भी कांकर तथा खजूरगांव रियासतों के निवासी राजा चंद्रचूड़ सिंह के क्रिया कलापों की तारीफ़ करते नहीं अघाते और उनके सम्मान में यही कहते है कि अपने क्षेत्र के विकास और लोगों के लिये राजा चन्द्रचूड़ सिंह जी आजीवन ज़ोरशोर के साथ लगे रहे और उनके ही अथक प्रयासों के करण 'कांकर' अवध क्षेत्र में में एक विशिष्ट स्थान रखता है। सभी लोग आज भी यही कहते हैं कि इतने अच्छे शासक और बेहतरीन इंसान के रूप में ऐसे "एक थे चंद्रचूड़ सिंह"।
####समाप्त####
कुछ कही कुछ अनकही अपनी बात:
आज यह कथानक सबकी खुशियों का ध्यान रखते हुए अपने अंतिम पड़ाव तक आ पहुँचा है।
कुछ बातें जो अत्यंत महत्व की हैं। मैं उन्हें यहाँ आप सभी के समक्ष रखना चाहूँगा।
1 राजपूत अपनी आन बान शान के धनी होते थे परंतु आजकल के बदलते परिपेक्ष में यह आदर्श कहीं अपनी स्थित में यह सही है नहीं कहा जा सकता है फिर भी इस कथानक के जुड़े हुए सभी पात्रों के व्यवहार में पुराने आदर्शों का वहन करते हुए दर्शाए गए हैं।
2 समाज के दो महत्वपूर्ण वर्ग (ब्राह्मण और राजपूत) कम से कम रायबरेली और अवध के परिपेक्ष में हमेशा से एक दूसरे के विरोध में रहे जिसके कारण उत्तर प्रदेश में एक नई प्रकार की जातिगत राजनीति को जन्म दिया जिसमें दलित समाज एक तरफ तो पिछड़ा वर्ग एक तरफ हो गया। उच्च वर्ग के कुछ लोग अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिये बंट गए जिसका राजनीतिक लाभ दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं ने सत्ता हथिया कर ख़ूब पूरा किया।
2 राजा चंद्रचूड़ सिंह की तीन तीन रानियां थीं बाबजूद इसके उनके तीनों से एक जैसे सम्बंध थे। किसी भी रानी में कोई द्वेषभाव नहीं था। आजकल एक आदमी अपने वैवाहिक जीवन में अपनी सहधर्मिणी को खुश कर नहीं रह पाते। समाज में परिवर्तन आये लोगों की सोच इस मुआमले में सार्थक हो, लेखक का बस यही प्रयास है न कि Multimarrige के पुराने विचार को सही ठहराना।
3 समाज के जो लोग असरदार होते हैं, उन्हें समाज में एकता के विचार को बल देना चाहिये न कि वे तोड़फोड़ की राजनीति करें।
4 एक नेता को किस तरह का होना चाहिए यह कुँवर अनिरुध्द सिंह के चरित्र के माध्यम से जताने की कोशिश की गई है।
5 आजकल के युवाओं की सोच सकारात्मक हो इसके लिये सभी के चरित्र अपनी अपनी जगह एक उदाहरण हैं।
6 जीवन में एक सोच वाले लोग साथ साथ मिल कर चल सकते हैं यह बात भी कुँवर अनिरुध्द और सबा तथा कुँवर महेंद्र और शिखा के साथ साथ आने से प्रदर्शित होता है।
7 जीवन में शक़ का कीड़ा न लगे इस अहम मुद्दे को भी अपनी तरह से शिखा के मष्तिष्क में चल रहे द्वंद के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गई है।
8 अंत में वही परिवार तरक्की करते हैं जो मिलजुल कर चलते हैं।
9 इतना कुछ हुआ पर जो न हो सका वह था रायबरेली के बाज़ार में पोस्ट ऑफिस की बिल्डिंग के सामने धोबियाने मोहल्ले के गधों की मन्त्रणा करने की आदत, ढेंचू ढेंचू चिल्ला कर एक दूसरे को बुलाने की आदत और दूसरा पान की दुकान पर खड़े होकर मुँह ऊपर आसमान की ओर करके औओ औओ करना, जगह जगह पान की पीक करना और वहाँ पर खड़े हो देश की राजनीति को चलाना। न बदला घोशियने मोहल्ले में आराम से स्कूटर मोटर साईकल चला पाना। हालांकि यह बात भी रही कि लोग न भूल पाए राम कृपाल की दुकान की जलेबी और समोसे, डॉक्टर फ़ारुखी की होम्योपैथिक की दवाइयां और लालूपुर के ठाकुर धुन्नी सिंह चौहान का चौहान मार्केट, मिली जुली गंगा जमुनी संस्कृत।
......वैसे तो कुछ और भी बातें इस कथानक में होंगी जो पाठक अपनी अपनी सोच पर निर्भर करके मूल्यांकन करता रहेगा।
एक और महत्वपूर्ण बात यह कि यह कथानक हमारे मित्र हरीश चंद्र पाण्डेय जी जो कि इस समय आई टी आई लिमिटेड की रायबरेली इकाई में उच्च पद पर कार्यरत हैं उनके सुझाव और पहल से ही लिखा जा सका। उनको भी मुझे प्रेरित करने के लिये हार्दिक धन्यवाद।
यह कथानक मेरे उन व्यक्तिगत सम्बंधों जो कि मेरे रायबरेली प्रवास (1975 से 1996) के दौरान वहाँ के लोगों के साथ बने उनको भी समर्पित है।
आप सभी लोगों ने इसे अपना प्यार दिया, इसे सराहा और समय समय पर जो सुझाव दिए जिसकी वज़ह से यह अपने सुखद अंत आ पहुँचा। मेरे दिल दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था जिसके तहत यह कथानक सुखांत की जगह दुखांत में समापन होना था परंतु इस कथानक को हर दिन पढ़ने वाले हमारे मित्र सर्वश्री बी एन पाण्डेय, राजन वर्मा, निर्मल गर्ग और भी कई अन्य लोगों की ज़िद और हार्दिक इच्छा थी कि कथानक positive note पर समाप्त हो, अतः मैंने वही किया जो हमारे मित्रों ने चाहा। मैं उनके मार्गदर्शन के लिये मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।
सबसे बड़ी बात तो इस कथानक के साथ यह रही कि यह सुबह सुबह मित्रो के बीच हँसी मज़ाक और चकल्लसबाज़ी का केंद्र बिंदु बन कर रहा।
आने वाले दिनों में "Hi! Buddies" में पुनः मुलाक़ात होगी तब तक नमस्कार, आदाब, सत श्रीकाल, जै श्रीराम, राधे राधे.... इत्यादि इत्यादि।
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