आइरा और अजातशत्रु के प्रेम की कहानी "क़तरा - क़तरा" लिखते वक़्त यह ख़्याल आया कि हर युग में सतयुग से चलकर कलियुग तक अनेकोंनेक प्रेम की कहानियां लिखी गईं हैं। कुछ हक़ीक़त पर आधारित तो कुछ कल्पना की उड़ान के सहारे। लोगों ने इन प्रेम कहानियों में भले ही एक जैसी बात लिखी हो पर हर लिखने वाले ने इन्हें अपने अंदाज में पेश किया है। इसी खातिर शायद ये कहानियां आजतक पढ़ी जा रहीं हैं और आगे भी पढ़ी जाएंगी। न तो इन कहानियों का रंग फ़ीका हुआ और न इनके अदाकारों के बीच प्रेम का।
जब से सोशल मीडिया पर इन कहानियों को पेश करने का सिलसिला चला तो जानिए ऐसा लगा कि इन्हें एक नया जीवन मिल गया हो। समाज की जीती जागती जिंदगियों की कहानियां कुछ को पसंद आईं कुछ को नहीं। यह अपने -अपने रुझान की बात है। कुछ लोगों को कविताएं पसंद तो कुछ को शेरो शायरी। बहरहाल जैसे जिसके शौक़ उसके मन मुआफ़िक पढ़ने का मसाला सोशल मीडिया पर मिल जाता था। लेकिन जब से राजनीतिक दलों ने अपने - अपने आईटी सेल खोले तब से सोशल मीडिया का मिज़ाज़ ही बदल गया है। अब साहित्यिक आदान प्रदान को छोड़कर राजनीति मुख्य विषय हो गया है। मेरे पास कोई आंकड़ा तो नहीं पर मोटे - मोटे रूप में यह कहा जा सकता है कि लगभग 70 - 80 प्रतिशत हिस्सेदारी फेसबुक पर अकेले अब राजनीति के नाम है।
यह अच्छी बात है राजनीत पर कुछ लोग बहुत अच्छा लिख रहे हैं कुछ लोग अपनी बात कह रहे हैं। कोई इस दल की नीतियों को पसंद करता है तो कोई किसी दूसरे दल की नीतियों को। बहरहाल कभी - कभी किसी पोस्ट को देखकर मन प्रसन्न हो जाता है कि कितनी सुंदर बहस होती है। लेकिन जब सब बहस करने के बाद भी विचारों में कोई परिवर्तन न आये तो यह लगता है कि हर व्यक्ति में विचारों को लेकर हठधर्मिता है। जब यह हो तो बहस का कोई अर्थ नहीं लगता है कि हर पोस्ट करने वाला एक ख़ास राजनीतिक दल का रिप्रेजेंटेटिव होकर रह गया है। खासतौर पर जब एक प्रकार के लोग सरकार की हर नीति को ठीक ठहराने में लगे रहते हैं तो दूसरे उसके विरोध में लगे रहते हैं।
कभी -कभी मुझे तो ऐसा लगता है कि अब लोगों के लिए सोशल मीडिया एक टाइम पास का साधन बन गया है। चलिये जैसा भी हो सब ठीक है। लोग ख़ुश रहें।
"क़तरा - क़तरा"
___________
क़तरा - क़तरा मिलती है,
क़तरा - क़तरा जीने दो,
ज़िंदगी है, बहने दो,
प्यासी हूँ मैं, प्यासी रहने दो,
तुमने तो, आकाश बिछाया,
मेरे नंगे पैरों में ज़मीन है,
देखे तो तुम्हारी आरज़ू है,
शायद ऐसे ज़िन्दगी, हसीन है,
आरज़ू में बहने दो,
प्यासी हूँ, मैं प्यासी रहने दो'
......अब अगली कहानी "क़तरा - क़तरा" लिखने को दिल कर रहा है। अभी एक ख़्वाब है जो ज़हन में कहीं बन रहा है, बदली के पीछे, बस सूरज के निकलने का इंतज़ार है....
आपको, कुछ इतंजार करना होगा।
एस पी सिंह
30/12/2019
30/12/2019
क़तरा - क़तरा"
एक धारावाहिक
एक धारावाहिक
भूमिका
हर किसी के लिए ज़रूरी है कि वह अपने वायदे पर खरा उतरे। हमारी भी कोशिश है कि जो वायदा किया था उसे प्रभु पूरा करने में मददगार सिद्ध हों।
जब "कतरा - कतरा" कथानक लिखने का मन हुआ तो मुझे सबसे अच्छे पात्र वही लगे जो मेरे कथानक "खूसट बुढ्ढे" के मशहूर पात्र थे। पुरातन और नूतन के बीच सामंजस्य बनाते हुए भविष्य के भंवर में गोता लगाकर, एक ऐसे मोती की तलाश में जो सहायक बने, वह कोई और नहीं, बल्कि अपने शेखावत परिवार के ही सदस्य थे। यह वही शेखावत परिवार है जिनका संक्षिप्त परिचय कुछ इस प्रकार से है :
हमारी कहानी "खूसट बुढ्ढे" के एक और प्रमुख किरदार में हैं कुंवर हीरा सिंह शेखावत, बीकानेर के निवासी। जमींदारी समाप्त होने के पहले से ही इनके परिवार के पास भी 26 गांव की ताल्लुकेदारी थी, जो अंग्रजो के पहले से ही बीकानेर के महाराजा गंगा सिंह के समय से चली आ रही थी। अब तो गांव में उनकी गढ़ी के केवल अवशेष मात्र ही रह गए थे, क्योंकि परिवार ने एक बार शहर की ओर क्या देखा, गांव हमेशा के लिए छूट गया और गढ़ी खंडहर में तब्दील होती चली गई।
कुंवर हीरा सिंह शेखावत को केंद्रीय सरकार के पुरातत्व विभाग में पुराने ताल्लुक़ात की बिनाह पर नौकरी मिल गई। कई सालों तक तो वह राजस्थान में ही एक शहर से दूसरे शहर में बने रहे लेकिन बाद में उन्हें बीकानेर छोड़कर दिल्ली आना ही पड़ा। समय बीतने के साथ - साथ शेखावत की प्रकृति और आम आदमियों से बातचीत करने के ढंग में अजीब सा चिड़चिड़ापन आ चुका था और वह आदतन एक खुंदकी की तरह व्यवहार करने लगे थे। हीरा सिंह अपनी धर्मपत्नी कुंवरानी शिखा शेखावत के साथ मंदिर मार्ग पर बने सरकारी आवासों में से एक डी टाइप आवास में रहते थे। डी टाइप का बंगला एक बार क्या अलॉट हुआ हीरा सिंह ने उसे अपना स्थाई निवास स्थान ही बना लिया।
कुंवर हीरा सिंह शेखावत भारत सरकार के पुरातत्व विभाग में कार्यरत थे, जहां उनके कई साथियों में से एक थे वेंकटेश्वर अय्यर। कई वर्षों से साथ - साथ काम करते -करते वे एक दूसरे को अच्छी तरह से जानते थे। शेखावत को रोज़ - रोज़ सैर के लिए अजमल खाँ पार्क आना बहुत दूर पड़ता था लेकिन अपनी कार से सैर के लिए वह, अज़मल खाँ पार्क ही आया करते थे।
शेखावत स्वभाव से नम्र तथा ओशो के भक्त थे लेकिन जब खुंदक चढ़ती तो वह बेक़ाबू हो जाते थे। शेखावत लिखने पढ़ने के शौक़ीन थे इसलिए फेसबुक पर हर रोज़ कुछ न कुछ लिखते ही रहते थे। अपनी पत्नी शिखा से उन्हें बेहद प्यार था। वह अपनी पत्नी शिखा की हर मांग पूरी करते और चाहते थे कि वह हमेशा खुश रहे। उनका एक बेटा था "अजातशत्रु शेखावत" जो चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) का कोर्स पूना से कर रहा था और यह उसका वहां आख़िरी साल था।
शेखावत को जब कभी अपना बीकानेर याद आता तो उनको लगता कि उनका सब कुछ वहीं छूट गया और तब वह खुंदकी लोगों की तरह व्यवहार करने लगते।
शेखावत राजनीति और रोज़मर्रा की घटनाओं पर विशेषकर महिलाओं पर अत्याचार की खबरों पर पैनी नज़र बनाये रहते थे इसलिए ग्रुप में उनकी बड़ी अहमियत थी चूँकि हर रोज़ की बहस में उनका मुख्य किरदार भी होता था।
अय्यर के माध्यम से ही उनकी मुलाक़ात "खूसट बुढ्ढे" ग्रुप के अन्य सदस्यों के साथ हुई थी। जिसमें अहम थे देवाशीष मुखर्जी अज़मल खाँ पार्क के पास जोशी रोड पर ही रहते और वहीं से अपनी प्रिंटिंग प्रेस चलाते थे। प्रिंटिंग प्रेस का काम देवाशीष के पिता श्री ने दिल्ली आकर शुरू किया था। मुखर्जी परिवार को बर्दवान, बंगाल से दिल्ली में आये हुए लगभग सौ साल हो गये थे। एक बार वे लोग दिल्ली क्या आये कि दिल्ली के ही होकर रह गये।
देवाशीष का जवानी के दिनों में दिल्ली के ही एक त्रिपाठी ब्राह्मण परिवार की सुकन्या त्रिपाठी से प्यार हुआ उन्होंने परिवार की मर्ज़ी के ख़िलाफ़ जाकर ज़िद करके कोर्ट में सिविल मैरिज कर ली।
सुकन्या त्रिपाठी जिस परिवार से थीं और उनके घर में सामिष भोजन पके, यह तो किसी भी कीमत पर हो ही नहीं सकता था, लेकिन एक बार पति के घर क्या आईं कि फिर सब कुछ बनाना सीख ही नहीं लिया बल्कि खाना पीना भी शुरू कर दिया।
देवाशीष और सुकन्या की एक बेहद खूबसूरत बेटी थी शर्मिष्ठा जो किरोड़ीमल कॉलेज से एमए (इकनॉमिक्स) कर रही थी।
देवाशीष "खूसट बुढ्ढे" दल के एक मुख्य सदस्य रहे हैं। यह इंटरेस्टिंग होगा कि वह अपनी सहभगिता इस कथानक में किस ख़ूबी से निभाते हैं। क्या कोई रोल उनकी पुत्री शर्मिष्ठा को भी मिलेगा या नहीं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि कहानी को पढ़ते हुए पाठकों की क्या डिमांड रहेगी। यह बेहद इंटरेस्टिंग रहेगा कि घटना क्रम की इस कड़ी में आगे - आगे होता क्या है....
"खूसट बुढ्ढे" ग्रुप के लोगों में से शेखावत के खास दोस्त थे हनीफ़ मोहम्मद, जिनकी फ़तेहपुरी - चाँदनी चौक में सूखे मेवों की थोक की दुकान थी। हनीफ़, सादिया बेग़म के साथ लाल मस्ज़िद के पास कृष्णा मंदिर गली में अपने अब्बू की बनाई हुई दो मंजिला इमारत में रहते थे। अजमल खाँ पार्क से घर पास होने के कारण वह भी "कतरा - कतरा" के अहम क़िरदार बने ही रहेंगे।
हनीफ़ मियां खाना - पीना करके एक बार दुकान के लिये निकलते तो आते - आते अंधेरा हो ही जाता था। कहने को तो उनका थोक का काम था लेकिन अगर कोई छोटा - मोटा ग्राहक भी भूला भटका आ जाता तो वह उसे भी मना नहीं कर पाते थे।
अपने काम धंधे के सिलसिले में हनीफ़ मियां को काश्मीर वक़्त - वक़्त पर जाना पड़ता था तब उन्हें लगता कि वह अपनी ही ज़मीन पर हैं। वहाँ के लोग भी उन्हें अपने से लगते। बस वह उस घटना को कभी याद नहीं करना चाहते थे जिसने उन्हें अपनों से अलग कर दिया था और उन्होंने काश्मीर हमेशा के लिए छोड़ दिया।
हनीफ़ और सादिया बेग़म की एक बेटी थी जो देखने में बहुत हसीन और अपने व्यवहार में ऐसी कि हर किसी के दिल में जगह बना ले। बड़ा ही हसीऩ सा नाम है उसका, 'आ़इरा'।
शेखावत के पुत्र अजातशत्रु की मुलाक़ात जगदीश प्रसाद माथुर अंकल के घर एक पार्टी में क्या हुई कि वे एक दूसरे के करीब आते चले गये। अजातशत्रु ने आ़इरा को अपनी पढ़ाई के साथ - साथ चार्टर्ड एकाउंटेंसी का कोर्स करने के लिये मना ही लिया। कुछ दिन साथ - साथ गुज़ार कर अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिए अजातशत्रु सुबह की फ्लाइट से पूना निकल जाता है। दूसरी ओर आइरा के साथ जसवीर सिंह की शादी में जो हादसा हुआ उसके बाद की अगली सुबह जब अजातशत्रु ने आ़इरा से बात की तो.....
बस यहीं से शुरूआत होती है हमारे नए धारावाहिक "कतरा - कतरा" की कहानी।
आप सभी मित्रों को नव नूतन वर्ष 2020 के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।
एस पी सिंह
31/12/2019
अपनी बात: 2020 की आप सभी को बधाई एवं हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत सी पुरानी यादों के ढेर से बटोरते हुए जो हाथ में पड़ा बस वहीं से इस कहानी का आग़ाज़ हो रहा है। मेरा कहने का मतलब है "खूसट बुढ्ढे" का अंतिम दृश्य 'जसवीर - जसप्रीत की सगाई की रात ताज मानसिंह होटल दिल्ली, आइरा अचानक अब्बू और अम्मी के साथ जसवीर के सामने आ जाती है तो जसवीर को लगा कि अज़रा कहाँ से आ गई'.....
एपिसोड 1
अजातशत्रु ने फोन पर आ़इरा से पूछा, "तुम कैसी हो"
"वैसे ही जैसी तुम छोड़ गए थे"
"क्या मतलब"
"कुछ भी तो नहीं"
"कुछ तो हुआ होगा", अजातशत्रु ने जब आ़इरा से यह पूछा तो उसे याद आया, "अरे हां सुनो एक बात हुई। तुम तो पूना निकल गये। हम लोग कल शाम जसवीर की सगाई के फंक्शन को अटेंड करने के लिए गये हुए थे'
"उसमें तो मेरे पापा और मां भी गए होंगे"
"हां वे भी थे। मेरी बात तो सुनो"
"बोलो.....ना"
"हम सब लोग एक - एक करके जब स्टेज पर जाकर जसवीर और जसप्रीत को बधाई देने के लिए पहुंचे। तब मेरे अब्बू और अम्मी आगे - आगे थे और मैं उनके पीछे - पीछे"
"आगे भी तो बताओ....."
"मेरे अब्बू - अम्मी गिफ़्ट जसप्रीत को देकर आगे बढ़े ही थे कि जसवीर की निग़ाह जब मुझ पर पड़ी तो उसने मेरी ओर ताज़्ज़ुब से देखते हुए खड़े होकर हड़बड़ा कर जसप्रीत से हाथ छुड़ाते हुये लगभग बदहवास सी हालत में कहा 'अज़रा....., तुम्म्म्म्म, तुम तो ...' और वह यह कह कर, जसप्रीत, अपनी मॉम, डैड, दार जी, बड़ी मॉम सबको छोड़कर मेरे पीछे भागा। वह तो अच्छा हुआ कि दार जी और उसकी मॉम ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक लिया। मेरे अब्बू - अम्मी ने मुझे अपनी बाहों में जकड़ा और हम तेजी से रिसेप्शन हॉल के बाहर चले आये"
"जसवीर ने भला, ऐसा क्यों किया होगा?"
"सुनो तो सही, मुझे बाद में दार जी, उसकी मॉम ने बताया कि मेरी हम शक़्ल चचेरी बहन अज़रा को वह बहुत चाहता था जो श्रीनगर में एक मिलिट्री ऑपरेशन के बाद हॉस्पिटल में उसकी बाहों में ही मर गई थी। जब उसने मुझे देखा तो उसे लगा कि मैं ही अज़रा हूँ और उसके सामने अचानक ज़िंदा होकर आ खड़ी हुई हूँ"
अजातशत्रु ने आश्चर्य से कहा, "मेरे पापा ने मुझे इसके बारे में बताया था लेकिन मैं यह नहीं जानता था कि तुम ही उसकी अज़रा जैसी हम शक़्ल थीं"
"मेरी तो सांस ऊपर की ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई थी। मेरी सांस तो तब लौटी जब मैंने पूरी कहानी सुनी"
"चलो, छोड़ो भी, हो जाता है कभी - कभी, दो हम शक़्लों के साथ ऐसा हो ही जाता है।...
और बताओ"
"....और क्या बताऊँ......."
"इसका मतलब मैं तुम्हारे लिए..... कुछ भी नहीं", अजातशत्रु ने कहा।
"ए मेरे छोटे कुंवर तुम तो मेरे सब कुछ हो। ऐसी बात फिर कभी ना करना"
आ़इरा - अजातशत्रु में फिर देर तक इधर - उधर की बातें हुईं। अचानक नेटवर्क की ख़राबी की वजह से जब उनका कॉल डिस्कनैक्ट हो गया तो वो दोनों एक दूसरे पर शक़ करने लगे कि उनमें से किसी एक ने कॉल को डिस्कनेक्ट कर दिया। गुस्से का इज़हार करते हुए जब अजातशत्रु ने कॉल दोबारा लगा कर आ़इरा से यह पूछा कि, "कॉल डिस्कनेक्ट क्यों किया ?"
दोनों के बीच बात तब बनी जब आ़इरा ने अजातशत्रु से कहा, "तुम ऐसी बात सोच भी कैसे सकते हो कि मैं तुम्हारा कॉल डिस्कनेक्ट करूँगी"
"मुझे लगा कि तुम्हारी अम्मी या अब्बू आ गए होंगे"
"मैं क्या उनसे डरती हूँ। उन्हें हमारे तुम्हारे बारे में सब कुछ मालूम है"
"क्या"
"यही कि...."
"यही कि क्या?"
"....यही कि हम एक दूसरे को चाहते हैं"
आ़इरा की बात सुनकर अजातशत्रु ने आ़इरा से कहा, "तब तो मैं जब चाहूँ तुम्हें फोन कर सकता हूँ"
आ़इरा ने जवाब देते हुए कहा, "हाँ, कभी भी"
अजातशत्रु ने आ़इरा के मुंह से जब यह सुना तो मन ही मन वह बहुत ख़ुश हुआ और उसने आइरा से कहा, "चलो मैं अब यूनिवर्सिटी जा रहा हूँ। तुमको शाम को फ़ोन करूँगा"
"सुनो", आ़इरा ने कहा, "अपनी पढ़ाई में दिल लगाना। हमारा क्या, हम तो कभी भी दिल लगा लेंगे लेकिन जो वक़्त गुज़र जाएगा वह फिर न आयेगा"
"चिंता मत करो मैं सीए करके ही वापस आऊँगा। बस तुम अपनी सीए की तैयारी शुरू कर दो"
"मेरे छोटे कुंवर, मुझे अपनी मंज़िल पता है। तुम अपना ख़्याल रखना"
"फिर मिलेंगे"
"दसविदानिया"
अजातशत्रु ने पूछा, "क्या - क्या? यह दसविदानिया का क्या मतलब"
यह रूसी भाषा का शब्द है क्योंकि वे लोग कभी भी अलविदा कहना पसंन्द नहीं करते तो हमेशा यह कह कर अलग होते हैं कि "फिर मिलेंगे"
"इसका मतलब यह हुआ कि मुझे भी रशियन सीखनी पड़ेगी"
"तुम मुझे एकाउंट्स की बातें सिखाना और मैं तुम्हें रशियन"
"ओके, बॉय"
"फिर वही गलती कहो दसविदानिया"
"ठीक है भाई दसविदानिया"
ठहाका लगाकर आ़इरा ने अजातशत्रु से कहा, "मैं तुम्हारी वो हूँ भाई - वाई नहीं"
"ठीक है बाबा"
"....ए बाबा तो बिल्कुल नहीं"
"ओके मेरी जानम"
"यह बेहतर है या मेरे ख़ुदा"
क्रमशः
01/01/2020
01/01/2020
एपिसोड 2
ज़िन्दगी जब सही ढर्रे चल रही होती है तो वक़्त की सुईंयाँ ऐसे भागती हैं कि कोई उन्हें रोकना भी चाहे तो नहीं रोक पाता। लगा जैसे पलक झपकते ही पूना में रहते हुये अजातशत्रु ने अपना सीए का कोर्स ख़त्म किया और गोल्ड मेडलिस्ट का ख़िताब मिलने के बाद जब उसने अपनी मां को फोन किया और अपने बारे में बताया तो उसकी मां कुंवरानी शिखा शेखावत की आंखों में ख़ुशी के आँसू बहने लगे और रुंधे हुए गले से अपने बेटे को मुबारक़बाद देते हुये पूछा, "बेटा, तू घर कब आ रहा है"
"मां कुछ दिन तो मुझे पूना में दोस्तों के साथ मौज करने दो। एक बार यह शहर जो छूटेगा तो भला कौन दोबारा यहां आएगा"
"ठीक है जब तेरा मन करे तब आ जाना लेकिन मुझे यह तो बता कि तू उससे क्या कहेगा"
"किससे... मां"
"अपनी.... आ़इरा से"
"उस बंदरिया की बात अभी नहीं करो माँ, अभी तो मुझे अपने यार दोस्तों के साथ निकलने दो"
"अपने पापा से बात नहीं करेगा"
"क्या वो आपके पास हैं ! तब ज़रूर बात कराइये"
कुंवरानी शिखा शेखावत ने फोन कुंवर साहब की ओर बढ़ाते हुए कहा, "अजातशत्रु, लीजिये बात कीजिये"
कुंवर साहब ने अपने बेटे की सफलता पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, "मुझे तुमसे यही उम्मीद थी बेटा"
फिर बाप बेटे में देर तक बातचीत होती रही और चलते - चलते कुंवर साहब ने अजातशत्रु से कहा, "जा बेटा जा तेरे यार दोस्त तेरा इंतज़ार करते होंगे"
"ओके पापा। वी शैल मीट सून", कहकर अजातशत्रु अपने दोस्त मोहन आप्टे और प्रमोद टंडन के साथ जर्मन बेक़री के लिए उबेर टैक्सी से निकल लिया। जर्मन बेक़री की पॉपुलैरिटी विदेशियों में इस क़दर थी कि क्या कहने। इस पॉपुलैरिटी के पीछे के दो तीन कारण रहे एक तो यह ज्यूइश चबाद हाउस और ओशो इंटरनेशनल मैडिटेशन रिसॉर्ट के बिल्कुल क़रीब थी। चूंकि वहां विदेशी युवा लड़के लड़कियां बहुतायत में आते थे शायद इसीलिए आतंकियों ने इसे अपना टारगेट चुना। यह वही जर्मन बेक़री थी जहाँ 2010 में बम ब्लास्ट हुआ था जिसमें 17 व्यक्तियों की मृत्यु हो गई थी और 70 से अधिक लोग घायल हुए थे। कहा जाता है कि बम ब्लास्ट लश्करे तैयबा और मुजाहिदीन ने कराया था डेविड कॉलेमन हैडली भी इनके साथ शरीक़ था जिसे बाद में अमेरिकन इंटेलीजेंस विभाग वालों ने पकड़ा था। बेक़री तो दोबारा खुल गई, उसकी दीवारों पर लगे खून के दाग़ धो दिए गए और उसकी पॉपुलैरिटी में कोई कमी नहीं आई बल्कि पूना के युवा लोगों में उसके लिए क्रेज़ और बढ़ गया। जब तीनों दोस्त टैक्सी से जर्मन बेक़री के रास्ते में थे तो मोहन आप्टे ने अजातशत्रु से पूछा, "अजातशत्रु आज हमारी पूना में यह आखिरी शाम है तूने जर्मन बेक़री ही आने की बात क्यों सोची?"
"इसके दो कारण हैं। पहला तो यह मेरे पापा की बहुत ही पसंदीदा जगह रही है। दूसरा यहां खूबसूरत छोरियां जो देखने को मिल जातीं हैं",कहकर अजातशत्रु ने मोहन आप्टे के प्रश्न का उत्तर दिया।
"चल यार तो यह भी बता दे कि तुझे जर्मन बेक़री इसलिए पसंद है कि तुझे यहां खूबसूरत लड़कियां देखने को मिल जाती हैं तो क्या तेरे पापा को भी....."
मोहन आप्टे को बीच में रोकते हुए अजातशत्रु ने कहा, "देख साले बहुत मारूंगा अगर मेरे पापा के लिए ऐसा वैसा कुछ भी कहा तो। मेरे पापा ओशो भगवान के अनन्य भक्त हैं इसलिए वह जब भी पूना आते हैं तो ओशो इंटरनेशनल मेडिटेशन रिसॉर्ट ज़रूर आते हैं"
प्रमोद टंडन ने अपनी बात रखते हुए कहा, "आप्टे तू नहीं समझेगा हम नार्थ इंडियंस को सुंदर चेहरों पर मरने की बीमारी जो है"
"कह तो तू ऐसे रहा है कि जैसे हम महारास्ट्रीयन्स को लड़कियां पसंद नहीं", मोहन आप्टे ने कहा।
"तू यह बात साफ़ तौर पर समझ ले कि हम नार्थ इंडियंस की यह बहुत बड़ा टाइम पास एक्टिविटी है जबकि तुम महारास्ट्रीयन्स अपने काम से काम रखते हो"
जब तीनों दोस्त आपस में बात कर रहे थे उस वक़्त टैक्सी ड्राइवर उनकी बातों को बहुत ध्यान से सुन रहा था और प्रमोद टंडन की बात पर मुस्कुराया और बोला, "साहब तुम एकदम बरोबर बोला, मैंने भी यही नोट किया है कि नॉर्थइंडियन्स ज्यादा आशि़कमिज़ाज होते हैं और यहां का आदमी सिर्फ अपने धंधे की बात करता है"
टैक्सी ड्राइवर की बात सुनकर तीनों दोस्त एक दम चुप हो गए। टैक्सी जैसे ही जर्मन बेक़री के सामने पहुंची उसका फेयर पूछ कर पे किया और बेक़री के अंदर जाकर जब एक टेबल पर बैठ गये तब मोहन आप्टे ने कहा, "देखा, तुम लोगों के बारे में यहां के लोकल लोग भी क्या सोचते हैं"
अजातशत्रु ने आप्टे की बात पर हंसते हुए कहा, "यह तो कुछ भी नहीं, मैंने तो सुना है कि मुंबई में तो कोई भी नॉर्थइंडियन्स को मकान किराए पर इसलिए नहीं देता है क्योंकि वहां यह बात कही जाती है कि नॉर्थइंडियन्स को मकान दो तो उनके लिए आशिक़ी करने के लिए लड़की भी दो"
"अजातशत्रु तू तो कम से कम यह हरकतें करने से बच। तेरी गर्ल फ्रेंड आ़इरा तो बहुत ही खूबसूरत है। वो तुझे दिलोजान से चाहती है", आप्टे ने समझाते हुए अजातशत्रु से कहा।
"छोड़ भी यार आज की शाम तो जिंदगी जी लेने दे। दिल्ली जाकर वहां की जिंदगी जी लेंगे"
इसी बीच बेक़री का एक वेटर आर्डर लेने के लिये आया और उसने मेन्यू कार्ड सामने रखा। अजातशत्रु ने आपस में पूछकर जिसको जो पसंद था उसका आर्डर दिया और जब वेटर चला गया तो आप्टे की ओर देखते हुए बोला, "मोहन, देख हमारे नार्थ में किसी भी रेस्ट्रोरेंट में वेटर कभी खाली हाथ नहीं आता। हमेशा वह पीने के लिए पानी लेकर आता है तब आर्डर की बात करता है"
"तुम लोगों के यहां गंगा - जमुना जो है हमारे यहां पानी की किल्लत रहती है न, वो इसलिए ऐसा है"
"नहीं यार ये सब अपनी - अपनी जगहों की कल्चर होती है"
इतने में अजातशत्रु की निगाह एक फॉरनेर लड़की के ऊपर पड़ी जो आराम से बैठी एक नॉवेल पढ़ रही थी। उसे देखते ही वह बोला, "मैं तो जा रहा हूँ कुछ देर उससे बात करके आता हूँ"
"छोड़ भी यार", कहकर आप्टे ने उसे रोका और बोला, "देख यही फ़र्क होता है हमारे और उनके बीच। हम अपना वक़्त इधर - उधर झाँकने में लगाते हैं और ये लोग अपने टाइम का सही यूज़ करते हैं"
अजातशत्रु अपनी आदतानुसार इधर - उधर की टेबल्स पर बैठे लड़के लड़कियों की ओर ताका झांकी करता रहा इसी बीच वेटर उनका आर्डर का सामान उनके सामने टेबल पर सजाता रहा। जब वेटर चला गया तो प्रमोद टंडन बोला, "आज की शाम दोस्तों के नाम। कल तो हम सभी अपने - अपने घर को चले जायेंगे। यारो कम से कम आज हम यह वायदा करें कि आपस में हम सब एक दूसरे के टच में बने रहेंगे और जब कभी एक दूसरे के शहर में जाने का मौक़ा मिले तो वगैर मिले वहां से वापस नहीं आएंगे"
तीनों दोस्तों ने एक के ऊपर एक मुठ्ठी रख कर प्रॉमिस किया। उनके बीच बहुत देर तक इधर - उधर की बातें हुईं और देर रात वे अपने पीजी में लौटे।
अगली सुबह जब अजातशत्रु एयरपोर्ट के लिए निकलने लगा तो मोहन आप्टे और प्रमोद टंडन ने उससे गले लगकर अलविदा कहा। दोस्तों की बात पर अजातशत्रु को आ़इरा की बात अचानक ही याद हो आई और उसने सबको भरे गले से दसविदानिया कहकर सबसे हाथ मिला, तथा टैक्सी में बैठ कर वहां से एयरपोर्ट के लिए चल दिया।
क्रमशः
02/01/2020
02/01/2020
एपिसोड 3
दिल्ली एयरपोर्ट पर अजातशत्रु को लेने उसके पापा और मां दोनों ही आये हुये थे। जैसे ही उनकी निगाह अजातशत्रु पर पड़ी उन्होंने बढ़कर उसे गले से लगाकर प्यार किया और अजातशत्रु ने दोनों के पांव छूकर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। रास्ते में कुंवरानी शिखा शेखावत ने अजातशत्रु से पूछा, "अब आगे का क्या प्लान है"
"मां सा, अभी दम तो लेने दो। सब बताऊँगा कुछ वक़्त तो दो"
"अजातशत्रु ठीक ही तो कह रहा है कुछ दिन उसे अपनी ज़िंदगी जीने दो, आ़इरा से मिलने दो, बाद में पूछ लेना"
अपने पापा की बात पर अजातशत्रु बोला, "पापा आप भी......"
"हां बेटा यह मां बाप का प्यार ही है बस कुछ और नहीं। जब तू पापा बनेगा तब तुझे एहसास होगा। तेरी हर ख़ुशी में हमारी ख़ुशी जो है"
जब उनकी कार गोल चक्कर - पोस्ट ऑफिस पहुंची तो अजातशत्रु को लगा कि वह अब अपने घर पंहुचने ही वाला है। घर पहुंच कर जब शिखा जी चाय नाश्ता बनाने लगीं तो अजातशत्रु उनके करीब जाकर खड़ा हो गया और पूछने लगा, "मां सा सही - सही बताना आ़इरा ने आपको मेरे पीछे कभी फोन किया कि नहीं"
"एक बार....! कई बार उससे बात हुई अक़्सर वही फोन करती रहती थी, कभी - कभी मैंने भी उससे बात की। उसकी अम्मी से तो बातचीत होती ही रहती है"
"सुनकर अच्छा लगा"
"बेटा वह बहुत अच्छी लड़की है, तेरी बात हुई"
अपने सिर के बालों में हीरो की तरह उंगलियां फिरा कर अजातशत्रु बोल पड़ा, "बस कभी - कभार"
"हठ झूठा कहीं का", कहकर प्यार से शिखा जी ने मुस्कुराते हुये उसकी पीठ पर थपकी दी और अजातशत्रु से कहा, "तूने आज आ़इरा को फोन किया"
"अभी तो नहीं मां सा"
"नहीं, अभी कर..."
"मां...., अभी नहीं बाद में"
"बाद में क्यों"
"वह कहेगी मिलने आ जाओ"
"छोड़ मैं फोन कर उसे यहीं बुला लेतीं हूँ। तू उससे घर पर ही मिल लेना"
जब अजातशत्रु को लगा कि अगर वह मां सा की बात मान लेता है तो वह आ़इरा से अपने मन की बात कैसे करेगा इसलिए उसने शिखा जी से कहा, "मां सा तू रहने दे। मैं ही उससे बात कर लूंगा"
"मां सा, मेरी मोटरसाइकिल तो ठीक ठाक है"
"कल ही, सर्विस होकर शो रूम से आई है"
"मैं जरा घूम के आता हूँ"
"रुक पहले चाय - शाय तो पी ले"
"ठीक है मां सा"
चाय पीकर अजातशत्रु मोटरसाइकिल पर सवार हो सीधा आ़इरा के घर जा पहुंचा। वहां आ़इरा की अम्मी से मुलाक़ात हुई। आ़इरा की अम्मी से बातचीत करने पर पता लगा कि आ़इरा तो सीए के एक्स्ट्रा क्लासेज को अटेंड करके देर से घर लौटेगी।
"कितने बजे तक"
"यही शाम को पाँच साढ़े पाँच बजे के क़रीब"
"अम्मी आप उसको बता दीजिएगा कि मैं उससे मिलने आया था"
"उससे फोन पर बात कर लो छोटे कुंवर"
"नहीं अम्मी। वह क्लास रूम में होगी", अजातशत्रु ने कहा, "मैं फतेहपुरी जा रहा हूँ अंकल से मिलने"
आ़इरा के घर से बाहर आकर अजातशत्रु ने मोटरसाइकिल स्टार्ट की और पल झपकते ही वह फतेहपुरी पहुंच गया। आ़इरा के अब्बू की नज़र जब अजातशत्रु पर पड़ी तो उन्होंने उसे अपने सीने से लगाया और उसके हालचाल पढ़ाई - लिखाई के बारे में पूछा।
"अंकल पढ़ाई लिखाई तो पूरी हो गई बस अब आगे क्या करना उसके बारे में सोचना है"
"छोटे कुंवर आपका इरादा तो अपना काम शुरू करने का था"
"अंकल अभी भी मैं अपने इरादे पर ही कायम हूँ"
"आप अपना काम दिल्ली में ही शुरू करेंगे न"
"अभी कुछ कह नहीं सकता"
इसी बीच आ़इरा का फोन अब्बू के पास आया तो उसने छूटते पूछा, "अब्बू क्या अजातशत्रु आये हैं"
"हां बेटी छोटे कुंवर यहीं हैं मेरे पास"
"अब्बू उन्हें आप वहीं रोक लेना। मैं आधे घंटे में वहीं आ रही हूँ"
"ठीक है बेटी तू भी यहीं आजा, छोटे कुंवर मेरे ही पास रहेंगे तब तल़क"
आजातशत्रु, आ़इरा के अब्बू की बातचीत से समझ गया कि आ़इरा यहीं फतेहपुरी आने वाली है इसलिए उसने भी यही ठीक समझा कि वह आ़इरा का इंतज़ार दुकान पर रहकर ही करे।
क्रमशः
03/01/2020
03/01/2020
एपिसोड 4
जैसे ही आ़इरा अपने अब्बू की दुकान पर पहुंची और उसकी निग़ाह अजातशत्रु पर पड़ी तो वह उसकी ओर लपकी और उसका हाथ पकड़कर ऐंठते हुए बोली, "फोन नहीं कर सकते थे क्या..."
"किसके बारे में"
"अपने बारे में कि तुम दिल्ली पहुंच गए हो"
"अब तुम्हारे सामने खड़ा हूँ तो फोन करने की क्या ज़रूरत"
"मैं इतंजार कर रही थी कि फोन आएगा"
"सीधे मैं ही आ गया हूँ"
आ़इरा अपने अब्बू की ओर पलटी और बोली, "अब्बू छोटे कुंवर को मैं अपने साथ ले जा रही हूँ। आज चाट जो खानी है बहुत दिन हो गए"
"जा बेटी जा"
जब आ़इरा और अजातशत्रु दुकान से चले गए तो हनीफ़ मियां के एक मुलाज़िम असग़र मोहम्मद ने पूछा, "ये जनाब कौन थे"
हनीफ़ मियां ने अजातशत्रु और उसके परिवार के बारे सब कुछ बताया। अपने और कुंवर शेखावत के मधुर संबंधों के बारे में भी खुल कर बताया। असग़र ने डरते - डरते हनीफ़ मियां से कहा, "मियां मेरी बात का बुरा न मानना बच्चों को इतनी छूट देना ठीक नहीं"
हनीफ़ मियां ने असग़र की बात सुन तो ली पर कुछ कहा नहीं। बाद में जब वे रात को खाना पीना करके अपनी बेग़म के साथ बिस्तर पर लेटे तो उन्होंने असग़र की कही हुई बात अपनी बेग़म से कही। असग़र की बात सुनकर बेग़म पहले तो चौंकी लेकिन कुछ सोचकर बोलीं, "छोड़ो भी मियां तुम भी किसकी बातों में पड़ गए असग़र जैसे लोग क्या जानें कि हम लोगों का कैसे -कैसे लोगों के साथ उठना बैठना है। कुंवर साहब ख़ानदानी आदमी है और उनके बारे में कोई कुछ कहे तो ठीक नहीं लगता"
"बेग़म, असग़र ने कुंवर साहब के लिये या उनके खानदान के लिए थोड़े ही कुछ कहा। वह तो यह कह रहा था कि बच्चों को इतनी छूट देना ठीक नहीं"
"मियां ये हम जानते हैं कि हमारी लौंडिया को छोटे कुँवर से प्यार हो गया है, मैं भला उसके पांव में बेड़ियां क्यों डालूँ'
हनीफ़ मियां ने बेग़म की बात ध्यान से सुनी और धीरे से कहा, "बेग़म ज़माना बहुत ख़राब है। हमें इसका तो ख़्याल करना ही पड़ेगा"
"अये हये, हमारी लौंडिया करे तो तुम्हें उस पर उज़्र हो जब तुम्हारे बड़े भाईजान की लौंडिया करे तो सब ठीक। अज़रा भी तो उन सरदार जी के लड़के को बहुत चाहती थी। वह तो गज़ब हुआ कि श्रीनगर वाले हादसे में उसका इंतकाल हो गया अगर वह ज़िंदा रहती तो क्या भाईजान उसकी शादी सरदार जी के बेटे से रोक लेते"
"नहीं बिल्कुल नहीं रोक पाते"
"अगर अज़रा करे तो सब मुआफ़ अगर आ़इरा करे तो आसमां टूट पड़ा हो जैसे"
"बेग़म यह बात नहीं मैं तो तुमसे यह बात इसलिए बता रहा हूँ कि दुकान के मुलाज़िमों की निग़ाह में यह बात जब आ गई है तो किसके मुंह को पकड़ेंगे। एक बात बताओ कि आ़इरा और छोटे कुंवर की बात बड़े कुंवर और कुंवरानी साहिबा को पता है"
"हां वे सब कुछ जानते हैं"
"उन्हें एतराज़ तो नहीं"
"उन्हें तो नहीं तुम अपनी बात करो"
हनीफ़ मियां चक्कर में फंस गए तो बोले, "तुम ऐसी बात क्यों करती हो आखिर आ़इरा हमारी बेटी है उसके बारे में हम नहीं सोचेंगे तो भला कौन सोचेगा"
"सोच लिया हो तो अब सो जाओ और कल अपनी बिटिया रानी से भी एक बार बात कर लेना"
"यह ठीक रहेगा", कहकर हनीफ़ मियां ने करवट बदला और सोने की फ़िक्र करने लगे। जब सवाल बेटी का हो और बेग़म बेटी की जुबान बोल रहीं हों तो भला नींद किसे आती है। हनीफ़ मियां रात भर कभी इस करवट तो कभी उस करवट बदलते रहे और जब सुबह हुई और आ़इरा उनके लिए चाय बना कर लाई तो, उसे बड़े प्यार से अपने पास बिठाया और उसके दिल की बात जानने के लिए भूमिका बनाते हुए कहा, "आ़इरा बिटिया इधर तो आ एक पल के लिए मेरे पास तो आ", और हनीफ़ मियां ने उसके चेहरे को अपनी ओर करके बोला, "मेरी बेटी बड़ी हो गई अपने फ़ैसले लेने का हक़ मांग रही है"
"क्या हुआ अब्बू"
"कुछ भी तो नहीं जब बेटी को किसी से प्यार हो जाये तो माँ बाप को समझ लेना चाहिए कि बेटी बड़ी हो गई"
"अब्बू क्या आप छोटे कुंवर के लिए कह रहे हैं"
बेटी के सवाल पर चुप्पी लगाकर हनीफ़ मियां ने आ़इरा को यह बता दिया कि वह छोटे कुंवर और उसे लेकर कुछ उलझन में हैं। आ़इरा ने भी बेबाक़ बात करते हुए अपने अब्बू को साफ - साफ बता दिया कि उसे छोटे कुंवर से इश्क़ हो गया है। हनीफ़ मियां ने जब यह कहा, "मैं और तुम्हारी अम्मी आज शाम को ही बड़े कुंवर साहब और कुंवरानी साहिबा से मिलेंगे"
इस पर आ़इरा ने तपाक से कहा, "अभी नहीं पहले कुंवरानी साहिबा से मैं बात करूंगी जब उनकी ओर से इशारा हो तब आप लोग जाकर मिल लीजिएगा"
क्रमशः
04/01/2020
एपिसोड 5
हनीफ़ मियां समझ नहीं पा रहे थे कि आ़इरा के मना कर देने के बाद वह अब क्या करें? जब सादिया बेग़म उनके लिए नाश्ता बना कर लाईं तो उनसे रहा न गया और उन्होंने कहा, "बेग़म मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अब क्या करूँ"
"तुम कुछ न करो बस इतना करो कि तुम अपनी दिमाग़ी उलझन को मुझे बताओ, जो करना होगा वह तुम्हारी बेटी करेगी"
"तुम यह क्या कह रही हो कि आ़इरा अपने और छोटे कुंवर के बारे में जाकर कुंवर साहब से बात कर लेगी"
"ऐसा तो मैंने नहीं कहा"
"मैं तो यही समझा कि आ़इरा ने शायद तुमसे इस मसले पर बात कर यही तय किया है कि वही जाकर बात करेगी"
सादिया बेग़म समझ नहीं पा रहीं थी कि आख़िर हनीफ़ मियां के दिलो दिमाग़ में चल क्या रहा है इसलिए उन्होंने मन ही मन यह तय किया कि आ़इरा के सामने ही हनीफ़ मियां से बात की जाए। सादिया बेग़म ने आवाज़ देकर आ़इरा को बुलाया और उससे कहा, "अपने अब्बू के सामने बैठ और मुझे बता तूने उन्हें क्या कह दिया जो वह इतने परेशान हो रहे हैं"
"अम्मी मैंने तो ऐसा कुछ भी नहीं कहा", और फिर अब्बू की ओर देखते हुए बोली, "अब्बू क्या हुआ आप परेशान क्यों हैं"
हनीफ़ मियां समझ नहीं पा रहे थे कि वह अपनी उलझन को बेटी के सामने कैसे रखें। उनकी उलझन को समझते हुए सा़दिया बेग़म बोलीं, "बेटी तेरे अब्बू तुझे और छोटे कुंवर को लेकर उस वक़्त से परेशान हैं जब असग़र मियां ने तेरे अब्बू से यह कहा कि बच्चों को इतनी छूट देना ठीक नहीं"
"अम्मी कौन वही असग़र मियां जो अपनी दुकान पर काम करते हैं"
"हां, बेटी वही असग़र मियां"
"ओह! मैं अब समझी क्योंकि जब मैं छोटे कुंवर को दुकान से यह कह कर निकली थी कि 'अब्बू छोटे कुंवर को मैं अपने साथ ले जा रही हूँ। आज चाट जो खानी है बहुत दिन हो गए'। तब असग़र मियां का मुंह बन गया था"
आ़इरा की बात सुनकर हनीफ़ मियां और सादिया बेग़म ख़ामोश रहे चूंकि वह अपनी बेटी के मुंह से सुनना चाह रहे थे कि वह अपने रिश्ते के बारे में क्या कहती है? आ़इरा ने सोच समझ कर बहुत ही नपे तुले शब्दों में अपने अब्बू को समझाने की कोशिश की कि यह सही है कि छोटे कुंवर और उसके बीच एक अजीब सा रिश्ता बन गया है जिसे आम लोग मोहब्बत का नाम देते हैं लेकिन वे दोनों अपने भविष्य की योजनाओं पर काम कर रहे हैं जिसकी इज़ाज़त उसके अब्बू और अम्मी ने दी थी। वे दोनों मिलकर एक अपनी कंपनी खोलना चाहते हैं जिससे वह अवाम की ख़िदमत कर सकें और अपने लिए कुछ पैसे भी कमा सकें। छोटे कुंवर के कहने पर ही वह सीए का कोर्स भी कर रही है। अभी उनके पास एक पूरा साल पड़ा है और जब वह सीए कंपलीट कर लेगी तो वह और कुंवर अपने काम को अंजाम देंगे। आ़इरा ने यह भी कहा कि उसके अब्बू और अम्मी काश्मीर से लतीफ़ चचाज़ान की इजाज़त लेकर दिल्ली इसलिए आये थे कि वे उसको पढ़ा लिखा कर एक बेहतर इंसान बना सकें जिससे वह अपनी ज़िंदगी के रास्ते ख़ुद चुने और ज़माने में आगे बढ़े। इतना कहने के बाद आ़इरा ने पूछा, "बताइए मैं सच कह रहीं हूँ या झूठ। आप लोगों का क्या यह मक़सद नहीं था और जब आपका यह मक़सद था तो असगर मियां के एक जुमले ने ऐसा कौन सा कहर ढा दिया कि हम सब ज़ाहिल इंसानों की तरह सोचने लगें। हर इंसान अपनी ज़िंदगी में तरक़्क़ी करना चाहता है और मैं भी तरक़्क़ी करना चाहती हूँ। छोटे कुंवर भी तरक़्क़ी करना चाहते हैं उन्होंने भी यह ख़ूब देखा है कि जिनके बाप दादों के पास करोड़ों की ज़मीन ज़ायदाद हो और हालात के चलते उनके बाप को सरकारी मुलाज़िम होकर अपनी ज़िंदगी बसर करनी पड़ रही है। वह आज जहां हैं वहां से आगे बढ़ना चाहते हैं और उनके साथ - साथ वह भी आगे बढ़ने की सोच रही है। उन दोनों के ख़्वाब एक से हैं इसलिए उन्हें अपनी ज़िंदगी जीने का हक़ मिलना ही चाहिए। एक असग़र मियां जैसे इंसान की फब्ती हमारी ज़िंदगानी को नहीं बदल सकती। आख़िर में अपनी बात को साफ़गोई से रखते हुए आ़इरा ने कहा, "अब्बू - अम्मी आप दोनों मुझे वह करने दें जो मैं करना चाहती हूँ, मेरे 'पर' उड़ान भरने के पहले ही न 'कतर' दें। हमारी जिंदगी की "क़तरा - क़तरा" ख़्वाहिशों को पूरा होने दें। इस सबके बाबजूद अग़र आप कहेंगे कि आपकी बेटी छोटे कुंवर से न मिले तो यह मेरा आपको कौल है कि आपकी बेटी वही करेगी जो आप चाहेंगे बस मुझे किसी के गले की घंटी बनाकर इस घर से धकेल न दीजियेगा। आख़िरी फ़ैसला आपका जो मेरे लिए मेरे ख़ुदा का फ़ैसला होगा"
बेटी की बातें सुनकर सादिया बेग़म और हनीफ़ मियां दोनो की आंखों में ख़ुशी के आंसू टपकने लगे और आ़इरा को सीने से लगाते हुए हनीफ़ मियां ने कहा, "मुझे पता ही नहीं चला कि मेरी बेटी इतनी बड़ी हो गई कि वह अपनी अम्मी और अब्बू को सही रास्ते भी दिखा सकेगी। बेटी हमें मुआफ़ कर दे हम कुछ देर तक अरसद मियां की कहीं बातों के जाल में फंस गए थे। हम ख़ुद उन जाहिलों से दूर रहते हैं जिनकी सोच पुराने ज़माने सी हो। मैंने तेरी अम्मी से भी कभी हिज़ाब पहनने के लिए नहीं कहा तो तुझे इन दकियानूसी ख्यालातों में क्यों बांधने की कोशिश करूंगा। मेरा मज़हब मेरे लिए है कोई दिखाने की चीज नहीं। जिस दिन मुसलमान यह जान जायेगा उस दिन वह एक बेहतर इंसान बन जायेगा"
क्रमशः
05/01/2020
एपिसोड 6
अगले दिन जब छोटे कुंवर आ़इरा से मिलने आये तो हनीफ़ मियां और सादिया बेग़म ने उन्हें बड़े अदब और प्यार से बिठाया और उनकी आवभगत की जब आ़इरा ने छोटे कुंवर के साथ जाने की इजाज़त मांगी तो ख़ुशी - ख़ुशी दोनों ने मिलकर एक साथ कहा, "जा बेटी जा अपने सपने जी। हम तो कुछ न कर सके तू आसमां की ऊंचाइयों तक जा....!!!"
जब अजातशत्रु ने मोटरसाइकिल स्टैंड से उतार कर स्टार्ट की और आ़इरा को पीछे बैठने के लिए कहा तो आ़इरा ने पूछा, "आज हम लोग कहां चल रहे हैं"
"दो तीन प्रॉपर्टी डीलरों के साथ मीटिंग है, देखते हैं कोई बात बन ही जाये"
दिन भर आ़इरा और अजातशत्रु दिल्ली के कई प्रॉपर्टी डीलरों से मिले उनके साथ कई प्रॉपर्टी भी देखीं और बाद में जब शाम को जब आ़इरा घर पहुंची तो आ़इरा की अम्मी ने पूछा, "आज कहाँ - कहाँ की सैर की"
"सैर...!!! अम्मी सैर तो कहीं की नहीं की, गरचे आप यदि यह कहतीं कि कहाँ - कहाँ की, किस मोहल्ले की, किस गली की खाक़ छानी, तो सही रहता"
"ऐसा भी क्या?"
"हां अम्मी छोटे कुंवर को अपना ऑफिस जो खोलना है इसलिए हम जगह - जगह प्रॉपर्टी डीलरों के साथ घूमते रहे"
"कुछ काम बना"
"कुछ काम बना तो है", आ़इरा ने अपनी अम्मी को बताया, "छोटे कुंवर को अपने पापा से बात कर जगह फाइनल करनी है"
"बेटी यही बात है जो मुझे छोटे कुंवर की अच्छी लगती है कि वे हर काम में अपने घर वालों को साथ लेकर चलते हैं"
"बड़े लोगों की बड़ी बातें। अम्मी एक कप चाय पिलाओगी या मैं खुद ही बना लूँ"
"तू बैठ, मैं बनाती हूँ", कहकर सादिया बेग़म चौके की ओर चलीं गईं।
जब देर रात को हनीफ़ मियां दुकान से घर लौटे तो बढ़कर आ़इरा ने दरवाज़ा खोला। हनीफ़ मियां ने घर में घुसते ही आ़इरा से पूछा, "तेरी अम्मी कहां हैं"
"अपने बेडरूम में हैं। आज गज़ब की सर्दी जो है तो रज़ाई में आराम फरमा रही हैं"
"चल मैं वहीं मिल लेता हूँ। आ़इरा बस तू खाने का इंतज़ाम कर। बहुत भूख लग रही है"
"आप दोनों ड्राइंग रूम में आइये मैं डाइनिंग टेबल पर खाना लगाती हूँ", कहकर आ़इरा चौके की तरफ़ गई और हनीफ़ मियां बेडरूम की ओर। आ़इरा जब खाना गर्म करके डाइनिंग टेबल पर लेकर आई उसे उसकी अम्मी और अब्बू पहले ही से आकर बैठे मिले। दोनों को बातचीत करते देख आ़इरा समझ गई कि कोई खास बात है जिस पर वे दोनों लगे हुए हैं इसलिए वह चौके की तरफ लौटी, कुछ गरम - गरम रोटियां सेकीं और उन्हें एक प्लेट में रख कर वापस लौटी। तीनों लोगों ने बैठकर साथ - साथ खाना खाया। जब वे लोग खाना खाकर हाथ धोने के लिए उठने लगे तो सादिया बेग़म ने हनीफ़ मियां को बताया, "आज से आपकी लाड़ो छोटे कुंवर के साथ अपने ऑफिस खोलने की तैयारी लग गई है"
हनीफ़ मियां ने आ़इरा की ओर प्यार भरी नजरों से ऐसे देखा जैसे कि वह कह रहे हों कि तू अपना काम करती रह और हम लोग अपना काम। बाद में मियां बीबी में देर रात तक तमाम मसायल पर बातचीत होती रही जिसमें हनीफ़ मियां ने श्रीनगर जाने की बात भी बताई। जब सादिया बेग़म ने पूछा, "कितने दिन का प्रोग्राम रहेगा"
"कुछ कह नहीं सकता। अबकी बार कुछ ज़्यादा ही टाइम लगेगा क्योंकि वहां होटल के काम काज़ को भी देखना है और गर्मियों के लिए अपने और भाईजान वाले घरों को तैयार भी करवाना है। इस साल कश्मीर में टूरिस्ट सीजन ठीक रहने की उम्मीद है इसलिए सोचता हूँ कि दोनों घरों को लांग टर्म लीज पर उठाने के लिए ठीक ठाक करा दूँ"
"यह ठीक रहेगा, तुम फ़िक्र मत करना दुकान का काम मैं देख लिया करूँगी'
हनीफ़ मियां ने मुस्कुराकर बेग़म की बात को सुना और कहा, "कभी - कभी आ़इरा को भी अपने साथ ले जाया करना"
क्रमशः
06/01/2020
एपिसोड 7
हनीफ़ मियां एक अरसे के बाद श्रीनगर आये थे। उन्हें उम्मीद थी कि घाटी में बहुत बदलाव आ गया होगा लेकिन यहां आकर उन्हें लगा कि सब कुछ पहले ही जैसा था। इंटरनेट टुकड़ों - टुकड़ों में जगह - जगह चल रहा था। कहीं - कहीं नहीं भी चल रहा था। एक बदलाव देखने में ज़रूर आया कि अबकी बार घाटी में ख़ूब बर्फ़ गिरी इसलिए टूरिस्ट्स बेहिसाब आये हुए थे। किसी भी होटल में रुकने की जगह न थी। यहां तक कि हनीफ़ मियां का ख़ुद का होटल फुल हाउस था। लिहाजा उन्हें भी अपने राजबाग़ वाले घर में ही रुकना पड़ा। दो दिन तो अपने घर के सामान ठीक से लगाने में ही लग गए।
बाद में जब हनीफ़ मियां की मुलाक़ात डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेसन से हुई तो पता चला कि कुछ नई - नई योजनाएं बन रहीं हैं और आने वाले दिनों में योजनाओं को ज़मीन पर उतारने की तैयारी चल रही है। हनीफ़ मियां को लगा कि अबकी सर्दी का मौसम ख़त्म होते ही उन्हें एक बार फिर से आना पड़ेगा जिससे वह अपने आरामबाड़ी वाले होटल के रेनोवेशन का काम करा सकें और चंडीगढ़ जाकर हर भजन सिंह जी से बात करें कि क्या वह अभी भी नए होटल वाले प्रोजेक्ट में इंटरेस्टेड हैं या नहीं। देर रात जब हनीफ़ मियां की सादिया बेग़म से बात हुई तो सबसे पहले उन्होंने आ़इरा के बारे में पूछा, "कि आ़इरा कैसी है"
"आ़इरा ठीक है। एक अच्छी खबर यह है कि छोटे कुंवर ने अपना ऑफिस खोलने का काम हाथ में ले लिया है"
"छोटे कुंवर ऑफिस कहाँ खोल रहे हैं"
"नोएडा में"
"अरे दिल्ली में क्यों नहीं"
"छोटे कुंवर ने जब बड़े कुंवर से बात की तो यही तय पाया कि नोएडा में आजकल बहुत काम चल रहा है और वहीं ऑफिस खोलना ठीक रहेगा"
"चलो जहां ठीक लगे वहीं ऑफिस खोलना चाहिए", हनीफ़ मियां ने अपनी दुकान के हालचाल पूछते हुए कहा, "बेग़म अपनी दुकान कैसी चल रही है"
"ठीक ही चल रही है असग़र मियां हैं हम भी दोपहर तक दुकान पहुंच जाते हैं। कॉलेज से लौटते वक़्त आ़इरा भी वहीं आ जाती है और दुकान बंद करा कर ही घर लौटते हैं"
"दो एक दिन में, मैं दिल्ली पहुंच जाऊँगा तब सब ठीक हो जाएगा"
"आओ मियां तो राहत मिले", सादिया बेग़म ने कहकर फोन बंद कर दिया।
आ़इरा और अजातशत्रु एकाग्रता से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते रहे। आ़इरा सीए की तैयारी करती रही और अजातशत्रु उसे गाइड करता रहा। कुछ ही दिनों बाद आ़इरा के फर्स्ट ईयर के इम्तिहान थे जो उसने प्रथम पोजिशन में क्लियर किया। आ़इरा, अजातशत्रु से जब मिली तो वह उसकी इस सफलता को सेलिब्रेट करने के लिए उसे होटल ताज मान सिंह में ले गया। जब वे एक दूसरे के हाथ पकड़े हुए रेस्टोरेंट की ओर जा रहे थे तो अचानक ही आ़इरा सिहर कर एक दम रुक गई और उसने अजातशत्रु की बांह को कड़ाई से पकड़ लिया। अजातशत्रु ने आइरा के चेहरे की ओर देखा और पूछा, "क्या हुआ"
"यह तो वही क्रिस्टल हॉल है जहाँ जसवीर और जसप्रीत की सगाई का रिसेप्शन था, यहीं मेरे साथ वह घटना घटी जिसकी मैंने कभी कल्पना भी नहीं की थी"
अजातशत्रु ने आ़इरा को अपनी बाहों में लेकर कहा, "भूल भी जाओ जो हुआ। ना तो जसवीर ने कोई ग़लती की और ना ही तुमने। यह मानो जो होना था वह हुआ। जसवीर ने वही किया जो उसकी जगह मैं होता तो मैं भी वही करता"
"समझ सकती हूँ लेकिन मुझे जब वह सीन याद आता है तो सिहर जातीं हूँ"
"चलो हम वह करें जिसके लिये हम यहां आए हैं"
"क्या करना है"
"ऐसा वैसा कुछ नहीं बस खाएंगे पियेंगे। .....और क्या?"
रेस्टोरेंट में अंदर जाकर वे लोग एक टेबल पर बैठे ही थे कि उनको देख प्रमोद टंडन, अजातशत्रु के सामने आ खड़ा हुआ और बोला, "ओए पुत्तर क्या हाल है"
"अरे प्रमोद तू। दिल्ली कब आया और मुझे कांटेक्ट भी नहीं किया", कहकर अजातशत्रु ने प्रमोद को अपनी बाहों में जकड़ लिया। बाद में आ़इरा की ओर मुड़कर उससे मुलाकात कराने के लिए कुछ कहने ही बाला था कि प्रमोद बोल पड़ा, "ये हैं आ़इरा मेरी वो...। यही कहने वाला था न"
"हां, कहने वाला तो यही था", अजातशत्रु ने आ़इरा से, ये प्रमोद टंडन की मुलाक़ात यह कहकर कराई, "मेरा पूना का सबसे क़रीबी दोस्त"
आ़इरा उठ खड़ी हुई और प्रमोद से हाथ मिलाते हुए पूछा, "हाऊ डू यू डू"
आ़इरा को देखकर फिर अजातशत्रु की ओर देखते हुए बोला, "यार तूने तो आ़इरा को एक दम बदल दिया"
"क्या मतलब?"
"यार जैसी दिखने में लगती है यह वैसी तो नहीं। शी इज़ क्वाइट ओके लाइक ए टिपीकल देहली गर्ल। बेटा, सौ बटा सौ मार्क"
आजातशत्रु, प्रमोद के चेहरे की ओर देखे जा रहा था और सोच रहा था कि इसको क्या हो गया यह तो ऐसा नहीं था। जब उससे रहा नहीं गया तो अजातशत्रु पूछ ही बैठा, "क्या हो गया है तुझे? तू तो ऐसा न था"
"क्यों मेरी बेइज़्ज़ती कर रहा है बेटा। आ़इरा को तूने कहीं यह तो नहीं बताया कि मैं लखनऊ से हूँ"
"उसे मालूम है। इसीलिए तो हर किसी की तरह उसे भी तुझसे बैटर विहेवियर की उम्मीद थी"
"तो मैंने ऐसी कौनसी आ़इरा की बेइज़्ज़ती कर दी"
आ़इरा दोनों की बातें सुनकर पशोपेश में थी आखिर उसे बीचबचाव में पड़ना पड़ा और बोली, "यार अब चुप भी हो जाओ बहुत हो गया। बी लाइक गुड बॉयज एंड टेक योर सीट्स"
प्रमोद से नही रहा गया और आ़इरा का हाथ अपने हाथ में लेकर बोल पड़ा, "दैट्स लाइक ए टिपिकल देहली गर्ल"
इतना कहकर प्रमोद सबसे पहले बैठा और आ़इरा और अजातशत्रु दोनों से कहा, "थैंक्स। प्लीज बी सीटेड"
आजातशत्रु ने जब पूछा, ".....और बता क्या कर रहा है"
"यार वह सब बाद में पहले मुझे आ़इरा को ध्यान से देख लेने तो दे", कहकर प्रमोद ने अपनी निगाहें आ़इरा के चेहरे पर इस तरह गढ़ा दी कि न जाने कौन सी खोई हुई चीज ढूंढ रहा हो....
क्रमशः
07/01/2020
एपिसोड 08
".....ऐसे क्या देख रहे हैं मिस्टर टंडन?", आ़इरा ने प्रमोद से सीधे - सीधे ही पूछ लिया।
"देख रहा था कि आप वही हैं जिसकी तस्वीर अजातशत्रु के पर्स में मोबाइल की गैलरी में देखी थी या कोई और..?"
"ऐसे क्यों कह रहे हैं"
"इसलिए कह रहा हूँ कि अगर तस्वीरों की कोई अपनी जुबां होती है तो देखने वाला हमेशा तस्वीर के पीछे छुपी हुई तदवीर भी जान जाता है। मेरी नज़र में आप शुरू से ही एक बहुत ही सीधी सादी कश्मीरी लड़की लगीं जो अपने अब्बू और अम्मी के साथ दिल्ली केवल इस मक़सद से आई हो कि पढ़लिख कर वह फिर से कश्मीर की वादियों की हो जाएगी"
प्रमोद की बात सुनकर आ़इरा खूब हंसी और बोली, "फिर तो आपको यह भी लगा होगा कि मैं आपके दोस्त को भी अपने पल्लू से बांधकर ले जाऊंगी"
"यह तो नहीं पता लगा क्योंकि मैं अच्छी तरह से यह बात जानता हूँ कि मेरे दोस्त की रगों में जो खून बह रहा है वह इतना पतला भी नहीं कि जो चाहे उस पर अपना अख्तियार जमा ले"
चुटकी बजा कर आ़इरा ने प्रमोद से कहा, "ए मिस्टर प्रमोद, अपने दोस्त से पहले पूछ तो लीजिये कि पहल करी किसने थी"
"जानता हूँ कि मेरे यार ने ही करी होगी। ये तो फ़ितरत में है इनकी, राजपूत जो ठहरे वो भी खांटी राजस्थानी, आशिक़ मिज़ाज़ी ख़ून में है ख़ून में"
जब आजातशत्रु को लगा कि प्रमोद उसके बारे में सब कुछ कहीं बता न दे तो बीच में पड़ते हुए बोला, "प्रमोद छोड़ भी यार। तू भी किन बातों में उलझ गया"
"अजातशत्रु मेरा बस इतना कहना है कि यार तू आ़इरा का कम्पलीट मेक ओवर करवा दे"
"ठीक है यार करा दूँगा अपने हिसाब से उसे ढाल लूँगा तू चिंता न कर। ये बता कि तू कर क्या रहा है"
प्रमोद टंडन ने अपने बारे में बताते हुए कहा, "यार तू तो जानता है कि लखनऊ में कोई कुछ भी करना चाहे अंत में उसे राजनितिज्ञों की मदद चाहिए ही होती है। इसलिए मैंने फैसिलिटेशन का काम शुरू किया है। आजकल यूपी के बुंदेलखंड में 'डिफेंस डिजिटल कॉरिडोर' पर बहुत कुछ हो रहा है। मैं भी उसी काम में लगा हुआ हूँ"
"तेरा यह इनिशिएटिव बहुत बढ़िया है। मुझे उम्मीद है कि तू अपने मिशन में सफल होगा"
प्रमोद टंडन ने अजातशत्रु का धन्यवाद करते हुए कहा, "थैंक्स यार। तू अपने बारे में बता कि तेरा क्या प्लान है"
"फ़िलहाल तो मैं और आ़इरा मिलकर नोएडा में एक ऑफिस खोल रहे हैं"
"नोएडा में कहाँ?"
"सेक्टर 63 में"
"यार वह तो वीआईपी एरिया है। वहां ऑफिस खोलना तो बहुत महंगा पड़ेगा"
अजातशत्रु ने प्रमोद का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "मेरे पापा मेरे साथ हैं। अभी तो उनकी मदद से ही जो भी मुमकिन होगा करूँगा"
"चल यार ठीक है लेकिन तू अपना ध्यान रखना", कहकर प्रमोद टंडन ने बातों के रुख को पूना की ओर करते हुए कहा, "आ़इरा तेरे साथ है इसलिए अगल -बगल झाँकने की आदत छोड़ दे"
प्रमोद टंडन की इस बात पर कुछ न कहकर अजातशत्रु ने एक नज़र आइरा के चेहरे पर डाली और बोला, "मेरी दोस्त सौ लोगों में अब्बल है तो भला मैं किसी दूसरे की ओर क्यों देखने लगा"
आ़इरा भी जान रही थी कि प्रमोद टंडन बार - बार उसे बीच में लाकर कुछ ऐसा कहने की कोशिश में है जिससे उसे अजातशत्रु से कुछ नाराज़गी हो जाये। यह सोचकर आ़इरा ने प्रमोद टंडन को जवाब देते हुए कहा, "छोटे कुंवर अब मेरे हैं। उनकी निग़ाह भला अब दूसरों पर क्यों पड़ेगी, मैं हूँ ना। मिस्टर टंडन मैं आज के ज़माने की लड़की हूँ। आप चाहे कुछ भी कर लें हम लोगों के बीच कोई भी गलतफहमी की कोई गुंजाइश ही नहीं है"
प्रमोद टंडन, आ़इरा की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, "आ़इरा जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि मेरा दोस्त तुम्हें कितना चाहता है। आप दोनों की दोस्ती सलामत रहे। मेरी यही दुआ है"
इसके बाद तीनों के बीच लंच पर बहुत देर तक इधर - उधर की बातचीत होती रही और जब प्रमोद टंडन ने यह कहकर दोनों से चलने की परमिशन मांगी तो अजातशत्रु ने उससे कहा, "चल यार लेकिन जब कभी दिल्ली आना हो तो फोन करना"
"ज़रूर। अजातशत्रु एक काम करो तुम और आ़इरा कभी लखनऊ आने का प्रोग्राम बनाओ"
अजातशत्रु की जगह आ़इरा ने जवाब देते हुए कहा, आप बुलाएं और भला हम न आयें, यह तो हो ही नहीं सकता हम दोनों आएंगे और आपके ही के घर में आकर रुकेंगे"
प्रमोद टंडन को कोई उम्मीद न थी कि आ़इरा उसे इतना सीधा जवाब देगी इसलिए उससे हाथ मिलाने की उम्मीद से अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "आइये - आइये यह हमारी खुशकिस्मती होगी और लख़नवी तहज़ीब के लिहाज़ से आपका खैरमकदम करने के लिए यह बंदा रहेगा"
आ़इरा ने प्रमोद टंडन से हाथ मिलाते हुए कहा, "मुझे आपसे यही उम्मीद है"
क्रमशः
08/01/2020
".....ऐसे क्या देख रहे हैं मिस्टर टंडन?", आ़इरा ने प्रमोद से सीधे - सीधे ही पूछ लिया।
"देख रहा था कि आप वही हैं जिसकी तस्वीर अजातशत्रु के पर्स में मोबाइल की गैलरी में देखी थी या कोई और..?"
"ऐसे क्यों कह रहे हैं"
"इसलिए कह रहा हूँ कि अगर तस्वीरों की कोई अपनी जुबां होती है तो देखने वाला हमेशा तस्वीर के पीछे छुपी हुई तदवीर भी जान जाता है। मेरी नज़र में आप शुरू से ही एक बहुत ही सीधी सादी कश्मीरी लड़की लगीं जो अपने अब्बू और अम्मी के साथ दिल्ली केवल इस मक़सद से आई हो कि पढ़लिख कर वह फिर से कश्मीर की वादियों की हो जाएगी"
प्रमोद की बात सुनकर आ़इरा खूब हंसी और बोली, "फिर तो आपको यह भी लगा होगा कि मैं आपके दोस्त को भी अपने पल्लू से बांधकर ले जाऊंगी"
"यह तो नहीं पता लगा क्योंकि मैं अच्छी तरह से यह बात जानता हूँ कि मेरे दोस्त की रगों में जो खून बह रहा है वह इतना पतला भी नहीं कि जो चाहे उस पर अपना अख्तियार जमा ले"
चुटकी बजा कर आ़इरा ने प्रमोद से कहा, "ए मिस्टर प्रमोद, अपने दोस्त से पहले पूछ तो लीजिये कि पहल करी किसने थी"
"जानता हूँ कि मेरे यार ने ही करी होगी। ये तो फ़ितरत में है इनकी, राजपूत जो ठहरे वो भी खांटी राजस्थानी, आशिक़ मिज़ाज़ी ख़ून में है ख़ून में"
जब आजातशत्रु को लगा कि प्रमोद उसके बारे में सब कुछ कहीं बता न दे तो बीच में पड़ते हुए बोला, "प्रमोद छोड़ भी यार। तू भी किन बातों में उलझ गया"
"अजातशत्रु मेरा बस इतना कहना है कि यार तू आ़इरा का कम्पलीट मेक ओवर करवा दे"
"ठीक है यार करा दूँगा अपने हिसाब से उसे ढाल लूँगा तू चिंता न कर। ये बता कि तू कर क्या रहा है"
प्रमोद टंडन ने अपने बारे में बताते हुए कहा, "यार तू तो जानता है कि लखनऊ में कोई कुछ भी करना चाहे अंत में उसे राजनितिज्ञों की मदद चाहिए ही होती है। इसलिए मैंने फैसिलिटेशन का काम शुरू किया है। आजकल यूपी के बुंदेलखंड में 'डिफेंस डिजिटल कॉरिडोर' पर बहुत कुछ हो रहा है। मैं भी उसी काम में लगा हुआ हूँ"
"तेरा यह इनिशिएटिव बहुत बढ़िया है। मुझे उम्मीद है कि तू अपने मिशन में सफल होगा"
प्रमोद टंडन ने अजातशत्रु का धन्यवाद करते हुए कहा, "थैंक्स यार। तू अपने बारे में बता कि तेरा क्या प्लान है"
"फ़िलहाल तो मैं और आ़इरा मिलकर नोएडा में एक ऑफिस खोल रहे हैं"
"नोएडा में कहाँ?"
"सेक्टर 63 में"
"यार वह तो वीआईपी एरिया है। वहां ऑफिस खोलना तो बहुत महंगा पड़ेगा"
अजातशत्रु ने प्रमोद का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "मेरे पापा मेरे साथ हैं। अभी तो उनकी मदद से ही जो भी मुमकिन होगा करूँगा"
"चल यार ठीक है लेकिन तू अपना ध्यान रखना", कहकर प्रमोद टंडन ने बातों के रुख को पूना की ओर करते हुए कहा, "आ़इरा तेरे साथ है इसलिए अगल -बगल झाँकने की आदत छोड़ दे"
प्रमोद टंडन की इस बात पर कुछ न कहकर अजातशत्रु ने एक नज़र आइरा के चेहरे पर डाली और बोला, "मेरी दोस्त सौ लोगों में अब्बल है तो भला मैं किसी दूसरे की ओर क्यों देखने लगा"
आ़इरा भी जान रही थी कि प्रमोद टंडन बार - बार उसे बीच में लाकर कुछ ऐसा कहने की कोशिश में है जिससे उसे अजातशत्रु से कुछ नाराज़गी हो जाये। यह सोचकर आ़इरा ने प्रमोद टंडन को जवाब देते हुए कहा, "छोटे कुंवर अब मेरे हैं। उनकी निग़ाह भला अब दूसरों पर क्यों पड़ेगी, मैं हूँ ना। मिस्टर टंडन मैं आज के ज़माने की लड़की हूँ। आप चाहे कुछ भी कर लें हम लोगों के बीच कोई भी गलतफहमी की कोई गुंजाइश ही नहीं है"
प्रमोद टंडन, आ़इरा की बात सुनकर मुस्कुराया और बोला, "आ़इरा जानता हूँ और यह भी जानता हूँ कि मेरा दोस्त तुम्हें कितना चाहता है। आप दोनों की दोस्ती सलामत रहे। मेरी यही दुआ है"
इसके बाद तीनों के बीच लंच पर बहुत देर तक इधर - उधर की बातचीत होती रही और जब प्रमोद टंडन ने यह कहकर दोनों से चलने की परमिशन मांगी तो अजातशत्रु ने उससे कहा, "चल यार लेकिन जब कभी दिल्ली आना हो तो फोन करना"
"ज़रूर। अजातशत्रु एक काम करो तुम और आ़इरा कभी लखनऊ आने का प्रोग्राम बनाओ"
अजातशत्रु की जगह आ़इरा ने जवाब देते हुए कहा, आप बुलाएं और भला हम न आयें, यह तो हो ही नहीं सकता हम दोनों आएंगे और आपके ही के घर में आकर रुकेंगे"
प्रमोद टंडन को कोई उम्मीद न थी कि आ़इरा उसे इतना सीधा जवाब देगी इसलिए उससे हाथ मिलाने की उम्मीद से अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "आइये - आइये यह हमारी खुशकिस्मती होगी और लख़नवी तहज़ीब के लिहाज़ से आपका खैरमकदम करने के लिए यह बंदा रहेगा"
आ़इरा ने प्रमोद टंडन से हाथ मिलाते हुए कहा, "मुझे आपसे यही उम्मीद है"
क्रमशः
08/01/2020
एपिसोड 9
...बाद में आ़इरा ने अजातशत्रु से कहा, "छोटे कुंवर मैंने आपके दोस्त के साथ कोई बदगुमानी तो नहीं की..."
"नहीं आ़इरा, बिल्कुल नहीं। मुझे लगता है कि प्रमोद को यह उम्मीद ही नहीं थी कि मुस्लिम लड़की इतनी खुले ख़यालात की भी हो सकती है"
"पता नहीं क्यों लोग अक़्सर एक मुस्लिम लड़की के बारे में अधिकतर यही सोच क्यों रखते हैं? मुझे लगता है कि इस सोच के पीछे हमारी कौम की वह इमेज़ है जिसे लोग उसे घिसे - पिटे ज़माने की सोच मानकर चलते हैं। मुझे भी लगता है कि हमारा समाज अपने आप में बहुत ही सिमटा हुआ है जहां औरत जाति के लिए कोई मौक़े ही नहीं हैं कि वह भी दिखा सके कि एक मुस्लिम औरत दुनियां की हर दूसरी औरत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने को तैयार है!"
"आ़इरा, यह बहुत ही सेंसिटिव मसला है इस पर हम जितना कम बोलें उतना ही बेहतर है"
"नहीं, यही सोच हमारी कौम को सबसे घटिया स्तर पर रखती है। हमें अब इन बेड़ियों को तोड़कर निकलना ही होगा। ऐसे हिज़ाब का कोई मतलब ही नहीं जिसे आजकल की लड़कियां अपने गली मोहल्लों से निकल कर पलट देतीं हो!"
"रहने भी दो यार छोड़ो ये सब बड़ी - बड़ी बातें। कुछ बदलाव वक़्त के साथ आते हैं''
"नहीं मेरे छोटे कुंवर, मुझे यह लड़ाई अपने घर से ही शुरू करनी है और मुझे इस लड़ाई में आपका साथ चाहिये ही चाहिये"
"मैं तो हमेशा से ही तुम्हारे साथ हूँ मेरी जान", अजातशत्रु ने यह कहकर आ़इरा को आश्वस्त करने की कोशिश करते हुए कहा, "चलो अभी हमें बहुत काम निपटाने हैं और देखो कल से तुम अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दो। मैं नहीं चाहता कि मेरी मदद करने के चक्कर में तुम्हारी पढ़ाई का नुकसान हो"
आ़इरा ने अजातशत्रु का हाथ अपने हाथ में लिया और वे दोनों होटल ताज मानसिंह से बाहर निकल कर जब मोटरसाइकिल से चलने लगे तो आ़इरा ने अजातशत्रु से कहा, "अगर तुम्हें और कहीं नहीं जाना हो तो क्या तुम मुझे अपने घर लेकर चलना चाहोगे"
"क्यों नहीं, चलते हैं। मां सा कह भी रहीं थीं कि आ़इरा बहुत दिनों से नहीं आई"
अजातशत्रु की मोटरसाइकिल की आवाज़ सुनकर उसकी मां सा ने जैसे ही घर का दरवाजा खोला तो देखा वहां आ़इरा खड़ी थी। उसे अंदर आने के लिए कहते हुए पूछा, "अजातशत्रु कहां रह गया"
"छोटे कुंवर मोटरसाइकिल खड़ी करके बस आ ही रहे होंगे"
कुछ ही देर में अजातशत्रु भी वहां आ गया जहां खड़े हो उसकी मां सा और आ़इरा इंतज़ार कर रहीं थीं। जब आ़इरा को मौक़ा मिला तो उसने कुंवरानी साहिबा से पूछा, "मां सा एक बात बताईये कि मैं क्या देखने में ठीक नहीं लगती हूँ"
परेशान सी कुंवरानी साहिबा ने पूछा, "यह कैसा सवाल है आ़इरा"
"मां सा यह मैं इसलिए पूछ रही हूँ कि आज इनके पूना के दिनों के एक दोस्त प्रमोद टंडन मिले थे जो इन्हें सलाह दे रहे थे कि छोटे कुंवर को मेरा मेक ओवर करा देना चाहिए"
आ़इरा की बात सुनकर कुंवरानी साहिबा ख़ूब हंसी और कहने लगीं, "मैं यह तो नहीं जानती कि अजातशत्रु इस मुआमले में क्या सोचता है मुझे तो बस इतना याद आ रहा है कि सोनी टीवी के इंडियन आईडल प्रोग्राम में एक गायक कलाकार ऐसा है जो देखने में बहुत ही सीधा सादा और सिंपल लुक्स वाला है। उसके दोस्त उसे बाबूजी कह कर पुकारते हैं। लोगों की राय पर जब उसका मेक ओवर हुआ तो उसके लुक्स एकदम ही बदल गए। साधारण सा दिखने वाला वह कलाकार जिसने अपनी गायकी से कइयों का दिल जीता। आज उसके चाहने वाले हज़ारों में नहीं, सुना है लाखों में हो गए हैं"
"मैं समझ गई "
"क्या समझ गई आ़इरा?"
"बस जब मैं आपसे दोबारा मिलूंगी तो अपने मेक ओवर के बाद वाले अंदाज़ में ही मिलूंगी अब तो"
क्रमशः
09/01/2020
एपिसोड 10
कुछ दिन बाद जब आ़इरा, अजातशत्रु के घर कुंवरानी साहिबा से अज़ातशत्रु के साथ मिलने आई तो, उसे देख कुंवरानी साहिबा एक दम चौंक गईं और उसे गले लगाते हुए बोलीं, "आ़इरा तू तो इस रूप में और भी खूबसूरत लग रही है"
आ़इरा ने कुंवरानी साहिबा के पांव छूते हुए कहा "मां सा मैंने कहा था ना कि मैं अब आपसे अपने मेक ओवर के बाद ही मिलूंगी"
"सच में तू बहुत खूबसूरत लग रही है। आ कुंवर साहब आज घर पर ही हैं, तू उनसे भी मिल ले"
आ़इरा जैसे ही कुंवर साहब के सामने आई तो पहले तो वह उसे पहचान ही न पाए जब कुंवरानी साहिबा ने बताया कि वह उनकी आ़इरा है तो उसे गले से लगाते हुए बोले, "बेटी हर रूप में अच्छी लगती है। तू पहले भी अच्छी लगती थी। इस रूप में और भी अच्छी लगती है। बस तुम और कुंवर, ख़ुश रहो। तुम्हारी ख़ुशी में ही हमारी ख़ुशी है"
बाद में तीनों के बीच बहुत देर तक आपस में बातचीत होती रही। कुंवर साहब ने जब हनीफ़ मियां के हालचाल जानने की कोशिश की तो आ़इरा ने उन्हें बताया कि उसके अब्बू तो श्रीनगर गए हुए हैं।
"इस सर्दी के मौसम में मियां श्रीनगर टहल रहे हैं जबकि हमें तो बाथरूम में जाने से भी डर लगता है", कुंवर साहब बोल पड़े।
"उन्हें कुछ ज़रूरी काम था इसलिए उन्हें श्रीनगर जाना ही पड़ा"
"काम पहले, बाक़ी सब बात पीछे"
काम की बात पर आ़इरा को याद आया कि वह अजातशत्रु के पीछे कुँवर साहब और कुंवरानी साहिबा से मिलने एक ख़ास मक़सद से आई थी जिससे कि वह अपने जीवन के लिए एक ऐसा रास्ता चुन सके जो शेखावत परिवार के मूल्यों से मिलता जुलता हो। यह याद आते ही आ़इरा ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा, "आप दोनों यहां हैं तो मुझे आपसे यह जानना है कि आपके गांव में क्या औरतें अभी भी पर्दा करतीं हैं"
कुंवर साहब और कुंवरानी साहिबा आ़इरा के प्रश्न को सुनकर ताज़्ज़ुब में थे कि इसे क्या हुआ जो आज अचानक ऐसे सवाल करने लगी है, "करना तो पड़ता है, तू बोल तुझे इसकी क्या ज़रूरत आन पड़ी" ,कुंवरानी साहिबा ने आ़इरा से पूछा।
कुंवरानी साहिबा की बात सुनकर आ़इरा सकते में थी कि आगे क्या कहे उसे तो यह लगा था कि राजपूत समाज मुसलमानों से अपनी परिपाटियां निभाने में कहीं आगे था लेकिन यहां तो उसे लगा कि दोनों ही जगह एक सी परम्परायें हैं। इसके बाद आ़इरा ने और भी कई राजपूती परंपराओं की जानकारी हासिल की और बाद में यह कहके रुख़्सती ली कि उसे दुकान जाना है आजकल दुकान का काम उसके और उसकी अम्मी के कंधों पर जो है। जब शाम को आ़इरा अपनी अम्मी के साथ दुकान का काम निपटाकर घर पहुंची और जब वे दोनों खाना खा रहीं थीं तब आ़इरा ने अपनी अम्मी से पूछा, "अम्मी आपका जब अब्बू से निक़ाह हुआ और आप पहली मर्तबा ससुराल आईं तो क्या आपको भी पर्दा करना पड़ा था"
"करना पड़ा था बाक़ायदा करना पड़ा था लेकिन यह बता कि तू यह बात पूछ क्यों रही है"
"अब्बू तो कह रहे थे कि उन्होंने तो आप पर कभी जोर नहीं डाला कि आप हिज़ाब पहनें"
"तेरे अब्बू ने सही कहा। उन्हें हमारा हिज़ाब पहनना अच्छा नहीं लगता था इसलिए एक रोज़ उन्होंने मेरा हिज़ाब लिया तथा आँगन में रखकर व मिट्टी का तेल डालकर, आग लगा दी तबसे हमारे यहां हिज़ाब नहीं आया"
"वाह मेरे अब्बू। वाह। यह हुई न मर्दों वाली बात"
सादिया बेग़म परेशान सी आ़इरा के चेहरे की ओर देखतीं रहीं और आ़इरा ने उन्हें गले लगाते हुए पूछा, "अम्मी मुझे लगता है कि हमें उन तमाम पुरानी रस्मों को तोड़ देना चाहिए जो हमारे तरक़्क़ी के रास्ते में रोड़ा बन कर पग - पग पर खड़ी रहती हैं"
"बेटी, औरतों का क्या, ये रीति रिवाज़, ये रस्में सब आदमियों की बनाईं हुईं हैं जिससे कि एक औरत कभी भी उनसे आगे ना निकल सके। वैसे ऐसा कौन सा काम है जो हम औरतें नहीं कर सकतीं"
"अम्मी आपने तो मेरे मन की बात कह दी"
"आख़िर बता तो सही कि तू आज ये सवालात क्यों पूछ रही है। कुंवरानी साहिबा ने कुछ कहा क्या?"
क्रमशः
10/01/2020
एपिसोड 11
"नहीं अम्मी उन्होंने कुछ भी ऐसा नहीं कहा मुझे ही लगा कि हम लोग बाबा आदम के ज़माने के तौर तरीके अपनाये चले आ रहे हैं जिनका बदले हुये हालात में कोई वज़ूद नहीं रह गया??", आ़इरा ने अपनी अम्मी से कहा।
"बेटी जिसे जो देखना होता है वह कहीं ना कहीं से देख ही लेता है। हमारे यहां औरतें सिर से लेकर पांव तक ढकी - ढकी सी रहतीं हैं। इस्लाम के उसूलों पर चलते हुए ग़ैर मर्दों के सामने जाने से कतरातीं हैं। देखने वाले उनकी सूरत भले ही न देख पाएं पर हाथ पांव का रंग देखकर बता ही देते हैं कि लडक़ी गोरी है या सांवले रंग की"
अपनी अम्मी की इस बात पर आ़इरा दिल खोल कर ख़ूब हंसी। उसने हंसते - हंसते कहा, "अम्मी तुम्हारा भी जवाब नहीं। अच्छा इतना बता दिया तो एक बात और बता दो कि मेरी अम्मी को वगैर देखे हुए किसने कहा था कि बहू खूबसूरत है, गोरी चिट्टी भी है"
"तू बहुत शरारती हो गई है"
मां - बेटी इस तरह एक दूसरे से बात कर पुराने ख़्यालात पर छींटाकशी करते हुए बहुत ख़ुश हुईं और देर तक हंसती रहीं। उनकी हंसी तो तब रुकी जब हनीफ़ मियां का फोन आया और सादिया बेग़म ने पूछा, "काम धाम निपटा या तुम्हारी वहां किसी हसीना से आंख लड़ गई"
"बेग़म इस उम्र में अब किससे आंख लड़ानी है। बेटी जवान हो रही है अब तो हर समय उसकी फ़िक्र लगी रहती है"
"उसकी फ़िक्र मत करो वह अपना भला बुरा अच्छे से जानती है। बेटी से बात नहीं करोगे"
"वहीं है! तो कराओ बात"
फोन लेते ही आ़इरा ने अपने अब्बू को एक - एक कर वह सब बात बताई जो उसके और कुंवर के परिवार वालों के बीच हुई थी। चलते - चलते आ़इरा ने अब्बू से यह भी पूछ लिया कि वह वापस कब आने वाले हैं और यह भी बता दिया कि उसे उनसे ढेर सारी बातें करनी हैं।
"एक आधा सैम्पल बात अभी कर ले"
"नहीं अब जब तुम यहाँ आओगे तभी बात करूँगी"
"कुछ तो इशारा कर दे जिससे मैं तैयार हो कर आऊँ"
आ़इरा अपने किसी भी सवाल को पहले से नहीं बताना चाह रही थी लेकिन अब्बू के जोर देने पर उसने आख़िर पूछ ही लिया, "अब्बू हम लोग ओरिजिनल मुसलमान हैं या उन हिंदुओं में से एक जिन्होंने कुछ वजूहात के चलते इस्लाम के नाम का दोशाला ओढ़ लिया"
अब्बू, आ़इरा का सवाल सुनकर एकदम सकते में आ गये और सोचने लगे कि इस लड़की को क्या जवाब दूँ जिससे इसकी जिज्ञासा भी मिट जाए और उसे यह भी लगे कि जो जवाब उन्होंने दिया है बहुत हद तक सही है। बड़े नपे तुले लफ़्ज़ों में अपनी बात रखते हुये हनीफ़ मियां बोले, "सवाल तो बेटी तेरा बहुत पेचीदा है फिर भी जितना मैं जानता हूँ उसके हिसाब से यही कह सकता हूँ कि अरब की दीन दुनियां से आने वाले इस्लाम को मनाने वाले तो चंद लोग ही रहे होंगे लेकिन बाद में इस्लाम में कुछ अच्छा देखा होगा तो इस्लाम को अपना लिया होगा। मैं इस बात से इंकार भी नहीं करता कि कुछ हिंदू लोगों को ज़बरन मुसलमान बनाया गया होगा वह चाहे पैसे दौलत का लालच देकर या डरा धमकाकर। मेरी बेटी क्या मुझे बतायेगी कि तेरे दिमाग़ में ये हक़ीक़त जानने का फ़ितूर आया तो आया कैसे?"
"किसी ने भी कुछ नहीं कहा, मुझे लगा कि मेरा वजूद क्या है, पता तो करूँ"
"नहीं बेटी कुछ और बात है जो तू अपने अब्बू से छिपा रही है तुझसे किसी ने कुछ कह दिया लगता है"
"नहीं अब्बू ऐसी कोई ख़ास बात नहीं बस यह सवाल मेरे ख़ुद के दिमाग़ की उपज है। अब्बू हुआ यह कि आज एक हज़रात सामने पड़ गए जिनका नाम था तो अख़्तर खान लेकिन वह अपने नाम के आगे 'राणा' लिखते चले आ रहे हैं। जब उनसे किसी ने पूछा कि आप अपने नाम के साथ 'राणा' क्यों लगाते हैं तो कहने लगे कि वह दरअसल किसी ज़माने में हिंदू रहे होंगे और किन्ही वजूहात के चलते उनके दादा - परदादा ने इस्लाम को क़ुबूल किया तब से वह मुसलमान हो गए। उन्होंने यह भी बताया कि उनके गांव में उनके दूसरे ख़ानदानी भाई हैं जो आज भी हिंदू हैं और वह भी अपने आप को 'राणा' कहते हैं। हम लोग एक दूसरे के त्योहारों में बाक़ायदा शरीक़ होते हैं। वह हमारे यहां आते जाते हैं और हम उनके यहां। बस एक फ़र्क आ गया है कि हम लोगों के लड़के लड़कियों की शादी ब्याह उनके यहां नहीं होते और उनके यहां के हमारे यहां नहीं होते। वे अपनी कुल देवी माता की पूजा करते हैं और हम तीन वक़्त की नमाज़ अदा करते हैं"
आ़इरा की बात सुनकर हनीफ़ मियां अचंभे में पड़ गए कि उनकी बेटी किस पचड़े में फंस गई है लेकिन उसकी उलझनें और न बढ़ें इस लिए यह कह कर बात को टालने की कौशिश यह कह कर की कि इस मसायल पर जब वह दिल्ली पहुंचेंगे तो उससे देर तक बात करेंगे। वैसे उनकी जान पहचान में भी पश्चिम उत्तर प्रदेश के सहारनपुर ज़िले के गांव रणखंडी के निवासी हैं सूरज राणा और मुदस्सिर राणा। इनके गोत्र एक ही हैं। दोनों पुंडीर गोत्र के राजपूत हैं। लेकिन एक हिंदू राजपूत है तो दूसरा मुसलमान राजपूत।
क्रमशः
11/01/2020
एपिसोड 12
आइरा के सामने सवालात बढ़ते ही चले जा रहे थे और उसे कोई मुफ़ीद रास्ता भी दिखाई नहीं दे रहा था इन हालातों के चलते उसने मन बनाया कि यह बेहतर होगा कि वह इन मसायल पर छोटे कुंवर से ही क्यों न बात करे। इस नज़रिये से यूनिवर्सिटी से लौटते समय वह घर न लौट कर सीधे सेक्टर - 63, नोएडा छोटे कुंवर अजातशत्रु के ऑफिस पहुंच गई। आ़इरा को यूँ इस समय बिना बताये हुए अपने ऑफिस में देखकर छोटे कुंवर ने पूछा, "क्या हुआ जो अचानक यहां चली आई"
कुछ न बोलते हुए आ़इरा ने इतना ही कहा, "एक कप चाय मिल सकती है"
"क्यों नहीं", कहकर अजातशत्रु ने आ़इरा के लिए चाय का इंतज़ाम किया। जब दोनों चाय पीकर फुर्सत में आये तो अजातशत्रु ने आ़इरा से पूछा, "अब बताओ जानू क्या बात है"
आ़इरा ने एक - एक कर अपनी दिमाग़ी उलझनों को लेकर जब बातचीत की तो अजातशत्रु ने कहा, "तुम कहां इन पचड़ों में फंस गई हो। छोड़ो भी ज़्यादा न सोचा करो जो होगा ठीक होगा यह मानकर ज़िंदगी जियो"
"छोटे कुंवर यह कोई आसान मुद्दे नहीं बल्कि बहुत ही अहम मुद्दे हैं जो हमारी आने वाली ज़िंदगी पर असर डाल सकते हैं। मैं नहीं चाहती कि मैं तुम्हारे घर वालों की आशाओं और आकांक्षाओं पर ख़री न उतरूँ और आने वाले कल को तिरस्कार की पात्र बनूं"
छोटे कुंवर के मुंह से यह जवाब सुनकर आ़इरा और परेशान हो उठी कि वह एक ऐसे इंसान के साथ ज़िंदगी की डोर बांधने वाली है जो उसकी परेशानी को सुलझाने के बजाय कह रहा है कि वह सब कुछ भूल जाए यह सोचकर उसने कहा, "छोटे कुंवर यह क्या बात हुई ! मैं अपनी दिमाग़ी उलझन सुलझाना चाहती हूँ और एक तुम हो जो कह रहे हो कि मैं सब कुछ भूल जाऊं"
अजातशत्रु ने जब महसूस किया कि वह जितना आसान समझ रहा था यह उतना आसान भी नहीं है उसे आ़इरा की बातों को सुनना ही नहीं पड़ेगा बल्कि कुछ रास्ता भी निकालना होगा तो उसने कहा, "आ़इरा जानू एक काम करते हैं हम लोग घर चलते हैं और सारे सवालातों पर मां सा से बात करते हैं। उनसे अच्छा हम लोगों के लिए कोई और नहीं। रही मेरी बात तो मेरा दिमाग़ तो अभी बस पैसा कमाने के ऊपर लगा हुआ है"
"पैसा- पैसा कभी कुछ इससे दूर हट कर भी सोच लिया करो"
"ठीक है जानू चलो घर चलते हैं और वहीं चलकर बात करते हैं", अजातशत्रु ने कहा। ऑफिस से बाहर आते हुए उसने आ़इरा को अपनी बाहों में लिया। मोटरसाइकिल स्टार्ट की और घर की ओर निकल पड़े। रास्ते में उसे ख़्याल आया कि इधर बहुत दिन हुये उसने आ़इरा से पूछा ही नहीं कि क्या वह चाट खाना पसंद करेंगी? जब उसने आ़इरा से कहा, "चाट खाओगी"
"चलो मन तो कर रहा है"
"एक नई जगह चलते हैं जो रास्ते में भी पड़ेगी और चांदनी चौक के भीड़ भाड़ वाले इलाक़े से भी हमें बचायेगी"
"तुम क्या बंगाली मार्किट की बात कर रहे हो"
"आ़इरा एक बात बताओ कि जो मैं सोचता हूँ उसे तुम इतना जल्दी कैसे जान जाती हो?"
"यही तो केमिस्ट्री हमारे तुम्हारे बीच, जो हमारे रिश्ते को एक नया आयाम देती है"
कुछ ही देर की ड्राइव के बाद वे दोनों बंगाली मार्केट आ पहुंचे। अजातशत्रु ने अपनी मोटरसाइकिल स्टैंड पर लगाई और वे दोनों चाट हाउस आकर एक टेबल पर बैठ गए। जब अजातशत्रु ने पूछा क्या खाओगी तो आ़इरा ने कहा, "यहां की आलू टिक्की बहुत बढ़िया होती है"
"इसका मतलब तुम यहाँ पहले भी आ चुकी हो"
"एक बार नहीं कई बार"
आंख मारते हुए अजातशत्रु ने जब आ़इरा से पूछा, "अब यह भी बता देना किसके साथ"
"तुम क्या सोचते हो कि क्या तुम्हीं हमारे चाहने वाले हो। अमां यार इस हुस्न के कई और भी दीवाने हैं, कई चाहने वाले हैं हमारे भी", आ़इरा ने जब यह कहा तो अजातशत्रु का मुंह टेढ़ा सा हो गया। जैसे ही आ़इरा ने आजातशत्रु के चेहरे पर कुछ नाराज़गी का भाव देखा तो वह जान गई कि उसे उसकी यह बात पसंद नहीं आई। इस पर आ़इरा ने अजातशत्रु से कहा, "तुम मर्द सभी एक से होते हो। जब ख़ुद ताक़ाझांकी करो आसपास की लड़कियों पर नज़र डालो तो कोई बात नहीं लेकिन अगर तुम्हारी अपनी जानू ने किसी के साथ आकर चाट खा ली तो तुम्हारा मुंह टेढ़ा हो गया"
आ़इरा ने जब यह कहा तो अजातशत्रु को याद हो आया कि प्रमोद टंडन ने आइरा के सामने उसके बारे में यह सब कहा था कि उसे खूबसूरत लड़कियों की ओर ताका झांकी करने की आदत है। इससे पहले कि मुआमला और गरमाता उसने आ़इरा के चेहरे को अपनी ओर करते हुए कहा, "जानू हर किसी इंसान में अपने आसपास की अच्छी चीजों को देखने का हक़ होता है लेकिन किसी और के साथ जाकर चाट खाने का नहीं"
"चलो तो मैं भी अच्छे दिखने वाले लड़कों पर अपनी निग़ाह डाला करूँगी तो बुरा मत मानना"
"बिल्कुल ठीक बात। हमें तुम्हे बराबर के हक़ जो हैं"
"जनाबेआली तो यह जान लीजिए कि हम किसी ग़ैर के साथ नहीं अपने साथ की लड़कियों और कभी - कभी अपने अब्बू के साथ बंगाली मार्किट चाट खाने चले आते हैं ख़ासतौर पर तब, जब अब्बू को अम्मी की नाराज़गी दूर करनी होती है"
अजातशत्रु ने आ़इरा की इस बात पर कहा, "मैं भी तुम्हें यहीं चाट खिलाने लाया करूँगा जब कभी तुम नाराज़ हो जाया करोगी"
आ़इरा ने नम आंखों से अजातशत्रु की ओर देखते हुए कहा, "ख़ुदारा वह दिन कभी ना आये"
क्रमशः
12/01/2020
एपिसोड 13
आ़इरा और अजातशत्रु जब दोनों एक साथ घर पहुंचे तो शिखा शेखावत घर में अकेलीं थीं। दोनों को साथ - साथ आते देखकर बोलीं, "तुम दोनों आज साथ - साथ कैसे"
"दरअसल मां सा कुछ दिनों से आ़इरा के मन में कुछ प्रश्न चल रहे हैं जिनका उसे ठीक उत्तर नहीं मिल पा रहा है। वह मेरे पास आई थी अपने सवालों को लेकर जिनके जवाब मेरे पास भी नहीं थे। इसलिए मैं उसे अपने साथ आपसे मिलाने के लिए ले आया कि आपसे बढ़िया और कौन होगा उसके सवालातों के जवाब देने के लिए"
"ठीक किया बेटा", शिखा शेखावत ने आ़इरा की ओर मुड़ते हुए पूछा, "तेरे सवालों का उत्तर देने के पहले ये बता कि चाय पिएगी"
"नहीं मां सा रहने दीजिए"
"बेटी हमने तुझे अपना बनाया है इसलिए कोई लिहाज़ नहीं करते"
इससे पहले कि आ़इरा कुछ बोलती अजातशत्रु ने अपनी मां सा से कहा, "हम लोग बंगाली मार्किट से चाट खा कर तो आ रहे हैं वहां चाय नहीं पी थी इसलिए मां सा चाय बनवा ही दीजिये"
शिखा शेखावत किचेन में गईं और नौकरानी को सभी के लिए चाय बनाकर लाने के लिए बोल कर फिर ड्राइंग रूम में बैठकर आ़इरा से बातचीत करते हुए पूछा, "अब पूछ तुझे क्या पूछना है"
मां सा जब कुछ रोज़ पहले मैंने आपसे पूछा था कि आपके गांव में क्या औरतें अभी भी पर्दा करतीं हैं तो आपने जवाब में कहा था कि करना तो पड़ता है। ....और आपने यह भी पूछा था कि मुझे इसके जानने की क्या ज़रूरत आन पड़ी"
"याद है आगे बता"
"जब मैंने यही सवाल अपनी अम्मी से पूछा कि वे जब अब्बू से निक़ाह के बाद पहली मर्तबा ससुराल आईं तो क्या उनको भी पर्दा करना पड़ा था"
शिखा शेखावत ने आइरा से पूछा, "तो उन्होंने क्या कहा"
"जी उन्होंने यही कहा कि करना पड़ा था। बाक़ायदा करना पड़ा था। पर मेरे यह पूछने पर अब्बू तो कह रहे थे कि उन्होंने तो आप पर कभी जोर नहीं डाला कि आप हिज़ाब पहनें। ...तो उनका जवाब था कि मेरे अब्बू ने सही कहा 'उन्हें मेरा हिज़ाब पहनना अच्छा नहीं लगता था इसलिए एक रोज़ उन्होंने मेरा हिज़ाब लिया तथा आँगन में रखकर व मिट्टी का तेल डालकर, आग लगा दी तबसे हमारे यहां हिज़ाब नहीं आया"
इस पर शिखा शेखावत ने कहा, "वाह तेरे अब्बू। यह हुई न मर्दों वाली बात। लेकिन हमारे यहां अभी भी पुरानी परिपाटी चली आ रही है और औरतों को पर्दा करना पड़ता है। बस फ़र्क इतना आया है कि हम पर्दा तब करते हैं जब कि हमारे घर के बुजुर्ग आसपास हों या जब हम अपने सासरे में। वहां तो हमें हाथ भर लंबा घूँघट निकालना पड़ता है लेकिन अधिकतर नहीं। अब ज़माना बदल रहा है अब तो औरतें ऐसा घूँघट निकालतीं है कि उनका चेहरा घूँघट से साफ दिखाई देता है"
"मां सा ऐसे घूँघट निकालने का फिर मतलब ही क्या रहा?"
"तू सही कह रही है ऐसे घूँघट निकालने का कोई भी मतलब नहीं बस ये कह ले कि घूँघट के नाम पर ढकोसला किया जा रहा है"
आ़इरा को अपनी अम्मी की कही हुई बात याद आ गई तो वह झट से बोल पड़ी, "मां सा मेरी अम्मी ने भी यही बात कही थी कि रीति रिवाज़ो के नाम पर ऐसा चलन अभी भी समाज में देखने को मिलता है"
इस पर शिखा शेखावत ने कहा, "मुझे लगता है कि हमें उन तमाम पुरानी रस्मों को तोड़ देना चाहिए जो हमारे तरक़्क़ी के रास्ते में रोड़ा बन कर पग - पग पर खड़ी रहती हैं"
"सही बात है मां सा"
"बेटी, औरतों का क्या, ये रीति रिवाज़, ये रस्में सब आदमियों की बनाईं हुईं हैं जिससे कि एक औरत कभी भी उनसे आगे ना निकल सके। वैसे ऐसा कौन सा काम है जो हम औरतें नहीं कर सकतीं। तुमने शायद पढ़ा होगा कि बंगाल में ही क्या पूरे देश में यह प्रथा थी कि पति के मर जाने पर उसको अपने पति की चिता के साथ ही सती हो जाना पड़ता था। लेकिन एक लंबी लड़ाई के बाद वह प्रथा बंद हो सकी", शिखा शेखावत ने आ़इरा की बात सुनकर कहा।
"मा सा इतिहास में कई उदाहरण ऐसे भी दिए जाते हैं जबकि राजपूतानियों ने अपनी आनबानशान के बचाव में आकर *जौहर* किये और सतीत्व की रक्षा की"
"बेटी अपने सतीत्व की गरिमा के लिए रचाया हुआ जौहर गौरव की बात हुआ करती थी। हम राजपूतों को अपने इतिहास पर नाज़ है पर मुझे यह बात कहते हुए लज़्ज़ा नहीं कि हमीं लोगों के बीच कई राजपूतों ने नाक कटवा कर दुश्मन का साथ दिया। हमें उनके नाम और मान को सम्मान देना चाहिए जो अपने राज्य की स्वतंत्रता के लिए रणभूमि में लड़ते - लड़ते शहीद हो गए और उनके मुंह पर थूकना चाहिए जिन्होंने देश और राज्य के साथ गद्दारी की"
"मां सा आपने तो मेरे मन की बात कह दी"
"बेटी एक बात और इस समाज में बहुत बुराइयां हैं तो वहीं अच्छाइयां भी हैं। हमें अच्छाइयों के प्रति प्रतिबद्ध होना चाहिए"
"आप सही कह रहीं हैं मां सा"
"आ़इरा बेटी जब तक ये बेड़ियां पूरी तरह टूट न जाएं तबतक हमें इनको सम्मान देते हुए निभाते भी रहना चाहिए", शिखा शेखावत ने आ़इरा से पूछा, "आ़इरा मेरी तरफ से या कुंवर साहब की तरफ़ से तू जो करना चाहे करना, हमें तेरी हर बात मंजूर होगी"
"मां सा आपने बहुत बड़ी बात कह दी। भला मैं कोई भी ऐसा काम क्यों करने लगी जिससे खानदान की इज़्ज़त में बट्टा लगे", आ़इरा ने अपनी बात को बढ़ाते हुए बस इतना ही कहा, "मा सा मुझे उम्मीद है अगर मैं जब कभी जीन्स और टॉप पहनना चाहूँ तो आपको कोई एतराज तो न होगा"
"किस एतराज़ की बात कर रही है। मैं तो कहूँगी कि एक दो नहीं कई जीन्स और टॉप्स मेरे लिए भी ख़रीद कर लाना मैं भी पहना करूँगी"
शिखा शेखावत के मुंह से यह सब सुनकर आ़इरा का मन गद- गद हो गया और उठकर मा सा को अपने गले से लगा लिया जिस पर शिखा शेखावत ने उसे प्यार से चूमा और आशीर्वाद देते हुए कहा, बेटी न तो मैं और न कुंवर साहब कभी भी तेरे उस शौक़ के बीच नहीं आएंगे जो मेरे कुंवर को पसंद हो"
क्रमशः
13/01/2020
एपिसोड 14
जब आ़इरा ने कुंवरानी साहिबा से पूछा, "मां सा एक बात और बताइए कि क्या हिंदू मुसलमानों के बीच इतनी बड़ी खाई है जो पट नहीं सकती?"
"पट सकती है लेकिन वर्षों से चली आ रही वैमनस्यता जब तक दूर नहीं होगी तब तक कोई भी प्रयास सफल होगा मुझे उस पर संदेह है"
"मां सा फिर इसका रास्ता क्या है?"
"रास्ता है पर हमारी सुनेगा कौन? सारे के सारे फैसले तो ये मर्द लोग लेते हैं। यहां तक कि संसद तक में हमारी आवाज़ को सुनने वाला कोई नहीं। कितने सालों से वीमेन रिजर्वेशन बिल इधर से उधर घूम रहा है पर मनुष्य प्रधान समाज में हमारी कोई नहीं सुनता"
"तो मां सा इसका आख़िर रास्ता निकलेगा कैसे?"
"रास्ता निकलेगा बस वक़्त लगेगा। जब तक अपने देश में औरतें पढ़ी लिखी न होंगी तबतक कुछ नहीं होगा लेकिन जैसे - जैसे शिक्षा का प्रसार होगा ये बातें निकृष्ट होतीं जाएंगी"
"इसका मतलब तो साफ ह तबतक औरतों को अपने हकूकात से मरहूम ही रहना पड़ेगा"
"बेटी मैंने तुझसे वह कहा जो मुझे लगा बाक़ी देश कब तरक्की करेगा अपने यहां के राजनेता जब चाहेंगे तब औरतों को उनके हकूक मिलेंगे। अंग्रेज जाते - जाते एक ऐसा बीज बो गए हैं जिसका कोई तोड़ अभी तक तो नहीं निकला है। दूसरा यह मुआ पाकिस्तान रोज़ - रोज़ कोई न कोई हरक़त करके और माहौल ख़राब किये हुए है"
"मां सा आप लोगों के दिलोदिमाग में तो मुझे या मेरे मुसलमान होने पर कोई उज़्र तो नहीं है"
"नहीं बेटी तू ऐसी बात कभी सोचना ही नहीं। कुंवर साहब जो खुद ओशो के भक्त हैं उनके लिए प्यार और मोहब्बत से बढ़ कर और कोई चीज़ नहीं है"
"मां सा क्या आप पापा जी की लाइब्रेरी से ओशो की दो एक किताबें पढ़ने के लिए देंगी"
"अरे क्यों नहीं, मैं तुझे ओशो के साहित्य से उनकी कुछ चुनिंदा किताबें दूँगी तू उन्हें अवश्य पढ़ना। मैं तो कहती हूँ कि तू इतवार वाले दिन आकर कुंवर साहब से ओशो के बारे में उनके विचार सुनना। तुझे मन की शांति मिलेगी और जो व्यग्रता तुझे आज महसूस हो रही है, जो तनाव तुझे आज महसूस हो रहा है उसमें भी कमी नज़र आएगी"
"ठीक है मां सा अबकी बार इतवार को मैं सुबह - सुबह ही आ जाऊँगी और पापा जी के सानिध्य में आकर उनसे शिक्षा प्राप्त करूँगी"
आ़इरा को आये हुए बहुत देर हो गई थी जब उसने चलने की बात की तो शिखा शेखावत ने अजातशत्रु को आवाज़ लगाई और उससे कहा, "जा आ़इरा को उसके घर तक छोड़ कर आ"
अजातशत्रु ने अपनी मोटरसाइकिल निकाली और आ़इरा को लेकर वह उसे छोड़ने के लिए निकल गया।
क्रमशः
14/01/2020
एपिसोड 15
आ़इरा जब घर पहुँची और अजातशत्रु उसे छोड़कर वापस लौटने लगा तो सादिया बेग़म ने उसे रोकते हुये कहा, "छोटे कुंवर, भीतर नहीं आओगे"
सादिया बेग़म की आवाज़ सुनकर अजातशत्रु एक मिनट के लिए ठहरा और बोला, "आज नहीं फिर कभी। आज मेरा बहुत काम छूट गया है अब इज़ाज़त दीजिये"
"जैसी आपकी मर्ज़ी", कहकर सादिया बेग़म ने अजातशत्रु को रुख़सत किया। जैसे ही आ़इरा ड्राइंग रूम में पहुंची तो उसने हनीफ़ मियां को वहां सोफे पर बैठे देखा तो खुशी से चीखती हुई उनकी ओर बढ़ी और पूछा, "अब्बू तुम कब वापस लौटे?"
"बस कुछ ही देर पहले। तू बता कैसी है"
"मैं..., ठीक तो हूँ"
"उस दिन तो तू बड़े सवालात कर रही थी"
"हां, कुछ उलझन थी उस दिन"
"इसका मतलब मुझसे बात करने के बाद सब ठीक ठाक हो गया"
"नहीं अब्बू आज कुंवरानी साहिबा से बात कर बहुत तसल्ली मिली"
"क्या - क्या बातचीत हुई तुम दोनों के बीच"
"बताऊँगी लेकिन अभी नहीं जब हम लोग खाना पीना खा कर फ्री हो जाएंगे तब"
जब खाना पीना हो गया तो आ़इरा ने अब्बू से कहा, "अब्बू उस रोज हमने आप से पूछा था कि क्या हम लोग ओरिजिनल मुसलमान हैं या उन हिंदुओं में से एक, जिन्होंने कुछ वजूहात के चलते इस्लाम के नाम का दोशाला ओढ़ लिया"
"याद है बेटी और मैंने तुझे जवाब देते हुए बताया था कि अरब की दीन दुनियां से आने वाले इस्लाम को मनाने वाले तो चंद लोग ही रहे होंगे लेकिन बाद में इस्लाम में यहां के बाशिंदों ने कुछ अच्छा देखा होगा तो इस्लाम को अपना लिया होगा। मैं इस बात से इंकार भी नहीं करता कि कुछ हिंदू लोगों को ज़बरन मुसलमान बनाया गया होगा, वह चाहे पैसे दौलत का लालच देकर या डरा धमकाकर"
"जी और तब आपने पूछा था कि मेरी बेटी क्या मुझे बताएगी कि मेरे दिमाग़ में हक़ीक़त जानने का फ़ितूर आया तो आया कैसे? अब बताती हूँ कि यह फ़ितूर मेरे दिमाग़ में आया कैसे"
"कैसे?"
"बात यह हुई कि जब मैं कुंवर साहब के यहां से ओशो के साहित्य की कुछ किताबें मांग कर लाई और उनको मैंने पढ़ा : तब जाना व समझा कि...
"हिंदू - मुस्लिम को भाई-भाई समझाने से यह धार्मिक भेदभाव समाप्त नहीं होंगें। ऐसा करने से कुछ फायदा तो हुआ नहीं है, वरन नुकसान ही अधिक हुआ है।
अगर हिदुस्तान के समझदार नेता हिंदू और मुसलमान को भाई–भाई होना न समझाते तो शायद पार्टीशन न होता। उसके कारण हैं! जब हमने पचास साल तक निरंतर कहा कि हिंदू-मुसलमान भाई-भाई हैं। फिर भी हिंदू-मुसलमान साथ-साथ रहने को राजी नहीं हुए तो भाई-भाई के तर्क ने लोगों को ख्याल दिया कि अगर दो भाई साथ न रह सकें, तो सम्पत्ति का बटंवारा कर लेना चाहिये। पार्टीशन, दो भाईयों के बीच झगड़े का आखिरी निपटारा है।
अगर गांधी जी ने हिन्दुस्तान को मुसलमान-हिंदू के भाई-भाई की शिक्षा न दी होती, तो पार्टीशन का लॉज़िक ख्याल में भी नहीं आ सकता था। असल में बँटवारा सदा, दो भाईयों के बीच होता है। पार्टीशन होने के पहले दोनों भाई हैं, इसकी हवा पैदा होनी जरुरी थी। एक दफ़ा यह ख़्याल पैदा हो गया कि दोनों सगे भाई हैं और साथ रहने को मजबूर हैं, तो स्वाभाविक लॉजिकल कनक्लूज़न, जो तार्किक निष्कर्ष था वह हुआ कि फिर ठीक है, बँटवारा कर लें। जैसे दो भाई लड़ते हैं और बटंवारा कर लेते हैं। वैसे ही फिर गांधी जी को या किसी और को कहने का उपाय न रहा कि बँटवारा न होने देंगे।
हम कभी नहीं कहते कि ईसाई भाई - भाई हैं। हम ये क्यों कहते हैं कि हिन्दु - मुस्लिम भाई - भाई हैं। यह “भाई-भाई” का कहना जो है, खतरे की घंटी है। इससे पता चलना शुरु हो गया कि दोनों के बीच झगड़ा खड़ा है....
इसका हल है कि हम प्रेम करें। प्रेम का पाठ पढ़ाएँ, प्रेम का पाठ पढ़ें। क्योंकि, प्रेम शुरू पहले हो जाता है, पता पीछे चलता है - कौन हिंदू है, कौन मुसलमान है? और जब एक बार प्रेम शुरू हो जाए तो हिंदू-मुसलमान दो कौड़ी की बातें लगने लगती हैं। उनको आसानी से फेंका जा सकता है। जहां प्रेम नहीं है वहीं इन बातों का मतलब है।"
आ़इरा ने ओशो के विचारों पर अपनी बात रखते हुए अपने अब्बू से पूछा, "अब्बू तुम क्या कहते हो?"
"बेटी क्या कहूँगा। जो हुआ वह इतिहास के पन्नों में दर्ज है.... जो नहीं हुआ वह लोगों के दिलों में है। मैं बहरहाल ओशो जी की उस बात से पूरी तौर से इत्तेफ़ाक रखता हूँ कि लोग प्रेम का पाठ पढ़ें, प्रेम करें। उन्होंने बड़ी अच्छी बात कही है कि प्रेम शुरू पहले हो जाता है, पता पीछे चलता है - कि कौन हिंदू है, कौन मुसलमान है? और जब एक बार प्रेम शुरू हो जाये तो हिंदू - मुसलमान..., दो कौड़ी की बातें हैं"
क्रमशः
15/01/2020
एपिसोड 16
"अब्बू यह बताओ, कि क्या मैं जो किताबें छोटे कुंवर के यहां से लाई हूँ उन्हें पढूं या नहीं?"
आ़इरा के अब्बू ने कहा, "बेटी तू वह हर अच्छी चीज पढ़ जो तुझे एक अच्छा इंसान बनाती हो। बस इतना ख़याल रखना कि यह दुनियां वैसी भी नहीं जैसी सतही तौर पर दिखती है। यहां कई फ़रेबी ऐसे भी हैं जो अपने मन की बात पर हक़ीक़त का मुल्लमा चढ़ा कर पेश करते हैं लेकिन उनके दिल में कुछ और होता है"
"तो मैं यह पक्का करके मान लूँ कि आपको कोई एतराज़ तो नहीं"
"नहीं..., बिल्कुल नहीं..., पढ़ बेटी पढ़, कौन सा ऐसा बाप होगा जो अपने बच्चों को एक बेहतर इंसान नहीं बनाना चाहेगा"
"ठीक है अब्बू तो मैं छोटे कुंवर के यहां से कुछ और किताबें ले आऊंगी"
"जरूर ले आना। तू जो पढ़ा कर उसे मुझे भी बताया करना। तेरा बाप तो उतना पढ़ा लिखा है नहीं जो इन किताबों को पढ़ सके पर मैं तेरी नज़रों से ज़िंदगी की कहानी ज़रूर पढ़ना चाहूँगा। एक बात और छोटे कुंवर की बात भी रखना अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर जिससे तू उनके साथ काम काज में उनका हाथ पूरी जिम्मेदारी से बंटा सके"
अब्बू की बात सुनकर आ़इरा को लगा कि उसके अब्बू कितने अच्छे इंसान हैं जिनके लिए धर्म ईमान की रूढ़ियों का कोई स्थान ही नहीं हैं। वह यह भी समझ गई थी कि उसके अब्बू दूसरे कठमुल्लाओं की तरह सिर्फ़ अपने धर्म ईमान की बात नहीं सोचते बल्कि उनके लिए पूरी दुनियां एक है। यह सोचकर आ़इरा ने अपने अब्बू से पूछा, "हर धर्म में कुछ अच्छी बातें होतीं होंगी इसलिए लोग उस धर्म को अपनाते हैं"
"हां, बेटी हर धर्म में एक नहीं अनेक बातें ऐसीं होतीं हैं जो इंसानियत की भलाई के लिए होतीं हैं लेकिन यह सच नहीं कि हर कोई उस धर्म को केवल इसलिए नहीं अपनाता कि उसे उस धर्म की अमुक बात अच्छी लगी। अधिकतर इंसान वह धर्म मूढ़ होकर अपनाता है जिसमें वह पैदा हुआ है। मेरा कहने का मतलब है कि जो धर्म उसके मां - बाप का है"
"अब्बू फिर यह धर्म परिवर्तन की बात कैसे शुरू हुई?"
"ऐसा हुआ जब किसी धर्म विशेष के हुक्मरां ने यह चाहा कि लोग उसके अनुयायी बनें उसके धर्म को मानें जिससे वह सत्ता में एक लंबे अरसे तक बना रहे। इस प्रकार का धर्म परिवर्तन जबरन कराया हुआ धर्म परिवर्तन कहलाता है। दूसरा वह जब कोई दूसरे धर्म में कुछ ऐसा देखता है कि जो उसकी सोच के करीब हो तो वह स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन करता है। तीसरा कई बार ऐसा भी देखा गया है कि लोग लालचवश अपना धर्म परिवर्तन कर लेते हैं लेकिन जो ऐसा करते हैं वह न इधर के न उधर के रहते हैं बल्कि उनकी स्थिति बहुत ख़राब रहती है", हनीफ़ मियां ने जितना वह जानते और समझते थे धर्म परिवर्तन के हालातों पर अपनी बेटी आ़इरा को समझाया। हनीफ़ मियां यह जान रहे थे कि आ़इरा के मन में धर्म को लेकर जो उलझन चल रही है वह इसलिए है कि उसे छोटे कुंवर से प्यार तो है लेकिन वह उतना ही प्यार अपने अब्बू - अम्मी से भी करती है। हनीफ़ मियां को जब यह एहसास हुआ तो उन्हें लगा कि उन्हें पहले सादिया बेग़म से बात करनी चाहिए और फिर बाद में आ़इरा से जिससे आ़इरा के दिलोदिमाग में जो धूमिल सी पिक्चर बन रही है वह दूर हो सके। इसके लिए जब उन्होंने सादिया बेग़म से बात की और कहा, "बेग़म तुम्हें कुछ पता है कि तुम्हारी बेटी एक बहुत बड़ी उलझन में फंसी हुई है"
सादिया को लगा कि हनीफ़ मियां शायद आ़इरा ने जो मेकओवर कराया है उसे वह पसंद नहीं कर पा रहे हैं इसलिए वह इस मुद्दे पर बात करना चाहते हैं तो वह तपाक से बोलीं, "हां, मियां मुझे तो कुछ पता नहीं कि आ़इरा के दिलोदिमाग में क्या चल रहा है। तुम अपने दिन भूल गए जब तुम मोहब्बत में मेरे आसपास ही चक्कर काटा करते थे। अरे मियां जब कोई किसी से मोहब्बत करने लगता है तो वह चौबीसों घंटे उसी के बारे में सोचता रहता है। अपनी आ़इरा भी उसी दौर से गुज़र रही है। हमें उसको समझना होगा उसे कुछ वक़्त देना होगा"
"बेग़म मैं वह बात नहीं कर रहा हूँ मैं उसकी उस दिमाग़ी उलझन की बात कर रहा हूँ जो उसे आजकल परेशान कर रही है", यह कहकर हनीफ़ मियां ने वह सब सादिया बेग़म से कहा जो आ़इरा उनसे अक़्सर बात करती रहती थी। सादिया बेग़म ने हनीफ़ मियां की बात सुनी और फिर अपने मन की बात कही, "देखो मियां दो ही रास्ते हैं हम या तो उसे छोटे कुंवर से दूर कर दें या उसे वह करने दें जो वह चाहती है। ये धर्म - भरम की बात तभी ख़त्म होगी वरना हमें वही करना चाहिए जो वह चाहती हो जिसमें उसकी ख़ुशी हो"
"बेग़म मैंने कब कहा कि मैं उसे ख़ुश नहीं देखना चाहता हूं। जितना तुम उसकी खुशियों में शरीक़ हो उससे कहीं ज्यादा मैं उसकी खुशियों में शरीक़ रहना चाहता हूं"
"चलो तुम अपनी बात पूरी करो"
"तुम समझ नहीं रही जो मैं कहना चाह रहा हूँ वह यह है कि....."
इतने में वहां आइरा आ गई जिसकी वजह से सादिया बेग़म और हनीफ़ मियां दोनों ही चुप रह गए और उसे अपने पास बिठाकर उसकी पढ़ाई लिखाई के बारे में बात करने लगे।
क्रमशः
16/01/2020
एपिसोड 17
अगली सुबह जब अंधेरे में हनीफ़ मियां की आँख खुली तो उठकर उन्होंने सुबह की नमाज़ अदा की और सादिया बेग़म को यह बता कर कि वह सैर के लिए जा रहे हैं घर से बाहर निकल गए। अजमल खाँ पार्क में उस जगह जाकर एक बेंच पर बैठकर अपनी मित्र मंडली के आने का इंतज़ार करने लगे। जैसे ही वहां अपने हाथ में न्यूज पेपर लेकर कुंवर शेखावत वहां पहुंचे उनका उठकर स्वागत करते हुये उन्हें सलाम किया। कुंवर शेखावत ने भी उन्हें नमस्कार कहकर उनके हालचाल लिए और कुछ इस प्रकार का कटाक्ष करते हुए कहा, "मियां इस दांत कड़कड़ाती सर्दी में आप श्रीनगर क्या करने गए थे जो वहां इतने दिन लगा दिये?"
"कुंवर साहब अबकी बार कुछ काम ही ऐसे थे जिन्हें करना भी बहुत ज़रूरी था इसलिए मज़बूरी में वहां जाना व रूकना पड़ा"
इसके बाद दोनों लोगों में अपनी - अपनी पैतृक सम्पतियों के रख रखाव को लेकर बहुत देर तक बात होती रही। कुछ देर में उनके मित्र मंडली के कुछ लोग साथ - साथ वहां आ गये जिनमें प्रमुख थे माथुर साहब, सरदार साहब, वेंकटेश अय्यर, मुखर्जी दादा और श्रीवास्तव। बेंच का मुंह धूप की तरफ करते हुए सरदार साहब ने कहा, "दिल्ली में गज़ब की सर्दी पड़ रही है सौ साल पुराने रिकॉर्ड भी टूट गये हैं"
"ये बात तो है यार हरभजन पर कुछ भी हो हम 'खूसट बुढ्ढे' हर हाल में रज़ाई के मज़े को छोड़छाड़ कर सुबह - सुबह सैर के लिए निकल ही पड़ते हैं"
"ये बात तो है", सरदार साहब ने कहा, "...और फिर कुंवर साहब क्या हालचाल है। देश में क्या चल रहा है?"
"क्या चलेगा सरदार साहब आजकल जेएनयू का मुद्दा, सीएए एनआरसी मुद्दे गरमाये हुए हैं"
अय्यर बीच में टोकते हुए बोला, "पॉलिटिक्स पर हम हर रोज़ बात करते ही हैं आज कुछ स्पोर्ट्स की खबरों के बारे में बताइए कुंवर साहब"
कुंवर शेखावत ने अख़बार को खोलते हुए कहा, "एक जमाना था जब हम रेडियो से कमेंट्री सुना करते थे जिसमें जब घनघनाती आवाज़ में सुनने को मिला करता था 'डिस इज़ विज्जी रिपोर्टिंग टू यू फ्रॉम ग्रीन पार्क कानपूर'। जब हम से कोई यह पूछ लें कि पॉली उमरीगर ने किस - किस मैच में सेंचुरी लगाई थी तो हम वह भी बता दिया करते थे। आजकल क्रिकेट साल भर खेली जाती है इसलिए पता ही नहीं लगता कि कौन क्या कर रहा है"
"यह बात तो है हमारे ज़माने की बात ही कुछ और थी। फ्रैंक वोर्रेल और सर गैरी सोबर्स जैसे महान खिलाड़ी तो अब कहीं देखने को ही नहीं मिलते हैं", माथुर साहब ने कहा।
"अरे माथुर साहब आपने तो वे दिन याद दिला दिये लेकिन मुझे वे दिन याद आने लगे जब इंग्लैंड के फ़ास्ट बॉलर जारडीन ने ब्रैडमैन को एक नए प्रकार की टेक्नीक 'बॉडी लाइन' का इतेमाल आउट करने के लिये इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के बीच खेली गई एशेज सीरीज़ में किया था और ये उस वक़्त की बहुत बड़ी न्यूज़ बनी", सरदार साहब ने कहा।
"हर भजन तुझे बॉडी लाइन तो सही याद आ गईं लेकिन यह तो 1932 - 1933 सीरीज़ की बात है जो तेरे डैडी के ज़माने की बात रही होगी"
माथुर साहब की बात पर सभी मित्र ख़ूब दिल खोल कर हँसे तो खिसियाए से सरदार साहब बोल पड़े, "दोस्तों मैं तो यह कह रहा था कि मेरे डैडी भी क्रिकेट खेला करते थे और बॉडी लाइन बॉलिंग की बात बताई थी"
अय्यर बीच में हंसते हुए बोल पड़ा, "छोड़ो भी यारो ये सब बहुत पुरानी बातें हो गईं। हमें तो कुंवर साहब से यह पूछना है कि बबीता जी का क्या ख़्याल है"
कुंवर शेखावत भी जान गए कि अय्यर उन्हें शिकार बनाने की कोशिश में है इसलिए मुद्दे को छक्का लगाते हुए कहा, "बबीता जी दुर्गापुर वापस चली गई, उससे अब मुलाक़ात नहीं होती"
अय्यर ने हंसते हुए कहा, "वाह कुंवर साहब सवाल को क्या डक किया है बिल्कुल क्रिकेट गेम की तरह"
अय्यर की बात सुनकर सभी दोस्त ख़ूब हँसे। बहुत देर तक इधर उधर की गप शप करके सभी लोग जब अपने - अपने घर जाने लगे तो कुंवर साहब ने हनीफ़ मियां से कहा, "मियां इधर तो आइए हम लोग कहीं बैठ कर चाय पीते हैं और कुछ गप शप करते हैं"
"चलिये मुझे भी आपसे ढेर सारी बातें करनी हैं", हनीफ़ मियां ने कहा और वे पार्क के कोने पर टी स्टाल की ओर बढ़ चले।
क्रमशः
17/01/2020
अपनी बात : जब मैं 17वां एपिसोड लिखने बैठा तो हमें अपने जयपुर के मित्र बनबारी सिंघल जी की बात याद हो आई कि खूसट बुढ्ढों के बीच कभी कभी खेलकूद की भी बात होनी चाहिए। कल के एपिसोड पर जब हमारे मित्र भूपेंद्र ने यह टिप्पणी दी कि 'जिस तरह से किसी पिक्चर में मूल कहानी के अतिरिक्त कुछ मनोरंजन की बाते जरूर होती है उसी तरह इस एपिसोड में हर मसाला मौजूद है बहुत दिनों बाद खूसट बुड्ढों की टीम पार्क में आकर क्रिकेट की बहुत पुराने मैच की चर्चा कर रहे है यही तो मित्रो के साथ बैठकर चर्चा करने का आनन्द है।'
मैंने उपरोक्त टिप्पणी का प्रत्युत्तर कुछ इस प्रकार दिया 'भूपेंद्र तुम्हारी बात पर हमें अपने बचपन के दिन याद हो आये जब हम लोग नाटक खेला करते थे। नाटक अक़्सर ढेढ़ घंटे से ऊपर की अवधि के हुआ करते थे। स्टेज डायरेक्टर स्टेज की सजावट इस तरह किया करते थे कि सबसे पहले ड्राप पर्दा, उसके बाद एक गलियारे का पर्दा, फिर बीच में एक जंगल का पर्दा और आखिर में नाटक के हिसाब से राज महल अथवा मकान के भीतर का पर्दा। गलियारे वाला पर्दा जब कभी कोई बीच में डांस वग़ैरह कराना होता था तो उसे इस्तेमाल किया जाता था। उस ज़माने में नागिन डांस का बहुत ही प्रचलन था।
ठीक वैसे ही जैसे कि आज तुमने "खूसट बुढ्ढे" का ज़िक्र किया। बचपन और दोस्तों की यादें भुलाते हुए भी नहीं भुलाई जा सकतीं हैं।
वैसे भी यह कथानक "गुज़र गाह" और "खूसट बुढ्ढे" से जन्मे जो हैं इसलिए उनकी याद तो ताज़ा होती ही रहनी चाहिए।'
"गुज़र गाह" से शुरू हुई यह साहित्यिक यात्रा अभी कितना दूर ले जाएगी अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। बस आप लोगों का प्यार मिलता रहना चाहिए।
जय सियाराम।
एपिसोड 18
चाय का ग्लास हाथ में लेते हुए कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां से कहा, "मियां कोई कुछ भी कहे सर्दियों में चाय पीने का अपना ही मज़ा है"
"ये बात तो है कुंवर साहब"
"एक बात बताइए कि काश्मीर के रहने वाले वो कौन सी खास चाय पीते हैं जो हमारे यहां नहीं मिलती"
"कुंवर साहब बात समझाने से समझ नहीं आएगी एक दिन आप भाभीजान के साथ इस बंदे के ग़रीबखाने पर तशरीफ़ लाइये और हमें भी ख़िदमत का एक मौक़ा दीजिये"
"मियां लगता अब तो आना ही पड़ेगा"
"तो तय रहा कि आप छोटे कुंवर और भाभी जान के साथ इस सनीच़र की शाम तशरीफ़ ला रहे हैं"
"मियां इतना जोर दे रहे तो ज़रूर आएंगे", कहकर कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां के यहां जाने का प्रोग्राम पक्का कर दिया और कहा, "हनीफ़ मियां अबकी बार श्रीनगर रहने के दौरान आपने क्या महसूस किया"
"किसके मुत्तालिक"
"अरे यही जो बदलाव आया है उसके मुत्तालिक"
कुछ देर रूक कर हनीफ़ मियां ने कहा, "कुंवर साहब हक़ीक़त तो यही है कि अभी बदलाव आया ही नहीं लेकिन..."
"लेकिन क्या मियां?"
"यही कि लोगों को बड़ी उम्मीदें हैं कि कि मरकज़ी हुकूमत वहां कुछ बड़े काम करने वाली है। अगर ऐसा हुआ तो जानिए कि वहां के लोग खुले दिलोदिमाग से इस बदलाव को कुबूल करेंगे नहीं तो न जाने क्या होने वाला है। डंडे के जोर पर तो अंग्रेज यहां हुकूमत नहीं कर पाए तो किसी और की क्या बिसात", हनीफ़ मियां ने कहा।
"ख़ुदारा सब ठीक ठाक ही रहे हम तो बस यही दुआ करते हैं कि वहां जो मारा मारी का दौर चला उसका ख़ात्मा होना चाहिए। जब अमन चैन रहेगा तो लोग तरक़्क़ी करेंगे और ख़ुशहाली भी आएगी"
"इसी ख़यालात से कि आने वाली गर्मी के मौसम में टूरिस्टों की भरमार रहेगी मैनें होटल के रेनोवेशन और अपने दोनों घरों को इस तरह तैयार करवाने का काम शुरू किया है कि श्रीनगर की प्रॉपर्टी से कुछ तो कमाई हो सके"
"अरे मियां आपके पास पैसों की क्या कमी। आपकी मेवों की फ़तेहपुरी वाली दुकान चकाचक चल रही है। आपके बड़े भाई जी आपके लिए श्रीनगर में चलता हुआ होटल और मकानात छोड़ गए हैं। आपकी तो मौज ही मौज है"
"कुंवर साहब आप अपनी बात भी तो करिये कि आपको किस चीज की कमी है गांव में बड़ी गढ़ी है, बीकानेर में ठीक बीचों बाज़ार में हवेली है। और आपको क्या चाहिए"
"छोड़िये भी मियां कहाँ हम नौकरीपेशा वाले और कहां आप ख़ुद के व्यापारी जो ठहरे"
"कुंवर साहब कुछ भी हो पुरानी कहावत है कि मरे से मरा हाथी भी सवा लाख का होता है"
कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां की इस बात पर कुछ कहना ठीक नहीं समझा और हंस के बात को उड़ा दिया लेकिन जब हनीफ़ मियां ने यह कहा कि आपको क्या, छोटे कुंवर हैं वह भी अपने आप में बहुत मेहनती और पढ़े लिखे एक बेहतर इंसान हैं तो कुंवर साहब से रहा नहीं गया और बोल बैठे, "हनीफ़ मियां बस अब एक ही ख़्वाहिश है कि आ़इरा और अजातशत्रु अपनी अपनी ज़िंदगी में जल्दी से जल्दी सेटल हो जाएं तो हम इनकी शादी - वादी करके फ़ुर्सत पाएं"
कुंवर साहब की बात सुनकर हनीफ़ मियां को बहुत तसल्ली हुई कि बच्चे बेमानी ख़्वाब नहीं देख रहे हैं उनके मां - बाप का हाथ उनके ऊपर है। यह जानने के बाद हनीफ़ मियां अपने आपको यह कहने से नहीं रोक पाए, "कुंवर साहब आ़इरा बेटी को छोटे कुँवर क्या मिले कि मुझे महसूस होता है कि उसे ख़ुदा की नियामत मिल गई"
"....और हम जो मिले वह कोई बात नहीं"
"नहीं कुंवर साहब आप जैसे नेकदिल इंसान हर किसी को कहां नसीब होते हैं हमारी बेटी बहुत नसीबों वाली है जो छोटे कुंवर के साथ - साथ आप जैसे ख़ानदानी आदमी मिले। बस ये लोग एक बेहतर इंसान बनें और ख़ुशी - ख़ुशी रहें यही चाहिए"
कुछ सोचकर कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां से कहा, "मुझे कभी - कभी अजातशत्रु की तरफ से बहुत फ़िक्र होने लगती है जिस तरह उसके दिमाग़ में बस पैसा कमाने की बातें घुसीं हुई हैं कि कहीं वह इंसानियत के रास्ते से भटक न जाये"
हनीफ़ मियां ने कुंवर शेखावत को ढांढस देते हुए समझाया कि अगर छोटे कुंवर अपने काम पर इस क़दर का फ़ोकस रखते हैं तो यह उनके लिए बहुत बड़ी बात है। हनीफ़ मियां से कुंवर शेखावत ने कहा, "आ़इरा बेटी को आप समझियेगा कि वह छोटे कुवंर पर अपनी निग़ाह रखे और उसे भटकने ने दे"
"आइरा के मिज़ाज़ को मैं अच्छी तरह से जनता हूँ आप किसी तरह की फ़िक्र न करें। मुझे तो इस बात का फ़क्र है कि वह कुंवरानी साहिबा से बराबर मिलती रहती है और आजकल ओशो जी की लिखी किताबें पढ़ रही है"
"मुझे शिखा बता रही थी। आ़इरा अगर यह बात समझ जाएगी कि हमें पैदा करने वाले ने हमें खुशियों भरा संसार दिया, ये तो हमारी अपनी फ़ितरत है कि हमने अपने लिए कांटे ख़ुद बोये, उस दिन से उसकी ज़िन्दगी में कोई तकलीफ़ नहीं होगी"
"कुंवर साहब अपने बहुत बड़ी बात कह दी। हमारी कोशिश होगी कि आ़इरा आपके ख्यालों पर ख़री उतरे"
हनीफ़ मियां से बात कर कुंवर शेखावत को बहुत अच्छा लगा और जब उनकी नज़र घड़ी पर गई तो उठकर खड़े हो गए और कहने लगे, "हनीफ़ मियां बातों - बातों में टाइम का ख़्याल ही नहीं रहा। अब चलने की इजाज़त दीजिये। लगता है आज ऑफिस पहुंचने में देरी होगी"
"खुदाहाफिज़",कहकर हनीफ़ मियां भी अपने घर की ओर निकल गये।
क्रमशः
18/01/2020
एपिसोड 19
घर पहुंच कर हनीफ़ मियां ने जब सादिया बेग़म को यह बताया कि अगले सनीच़र के रोज़ कुंवर साहब हम लोगों के यहां खाने पर कुंवरानी साहिबा और छोटे कुँवर के साथ आ रहे हैं। तब सादिया बेग़म ने पूछा, "आपसे किसने कहा?"
"अरे भाई हमसे कौन कहेगा हमने उन्हें दावतनामा दिया और उन्होंने उसे कुबूल किया"
"कब की बात है"
"आज सुबह - सुबह की", हनीफ़ मियां ने बताया, "पार्क में सैर के बाद की बातचीत में तय हुआ"
"अब ये तो बता दो उनकी आने की ख़ुशी में हमें क्या - क्या करना पड़ेगा"
"बेग़म अब तुम्हें ये भी बताना पड़ेगा"
सादिया बेग़म कुछ परेशान सीं लगीं तो उन्हें आ़इरा का ख़्याल आया और जोर से आवाज़ लगाते हुए कहा, "आ़इरा तू कहाँ है जरा जल्दी से तो आ"
भागती सी आ़इरा आई और उसने अपने अब्बू और अम्मी को बैठे हुए देखा तो पूछा, "हाय अल्लाह अब क्या हुआ"
जब सादिया बेग़म ने पूरी बात बताई तो आ़इरा ख़ुशी से पागल हो अपनी अम्मी के गले से लिपट गई और बोली, "अम्मी उस दिन मैं क्या पहनूँगी"
"लो इसे क्या पहनेगी, इसकी फ़िक़्र है और हम इधर परेशान इस बात को लेकर हैं कि उनका इस्तकबाल कैसे करेंगे"
"अरे भाई लड़की है उसे तो अपने पहनावे की फ़िक्र ही तो होगी ही। खाने पीने की फ़िक़्र करो तुम। बाज़ार से जो लाना हो उसकी फ़ेहरिस्त बनाकर मुझे दे दो मैं इंतज़ाम कर दूँगा"
आ़इरा बेफ़िक्री के अंदाज़ में बोली, "अम्मी मैं उस दिन हरे रंग का सलवार सूट पहन लूंगी बस तुम मुझे अपना वह जड़ाऊ हार दे देना जो आपको अपने निक़ाह पर मिला था"
सादिया बेग़म ने आ़इरा की बलैयां लेते हुए कहा, "ले लेना बेटी, वह सब तेरा ही तो है"
"अम्मी तुम फ़िक्र मत करो ड्राइंग रूम से लेकर पूरे घर को ठीक ठाक मैं कर दूंगी बस तुम किचन का काम सम्हाल लेना"
हनीफ़ मियां ने फिर से दोनों को याद दिलाया कि आज दुकान जाने से पहले ही उन्हें सामान की फ़ेहरिस्त मिल जानी चाहिए और आख़िरी वक़्त में उन्हें नहीं दौड़ना पड़े।
आख़िर वह वक़्त आ ही गया जब कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां के दरवाज़े पर दस्तक दी और सादिया बेग़म के साथ हनीफ़ मियां ने शेखावत परिवार का स्वागत करते हुए कहा, "ज़हेनसीब आप हमारे ग़रीबखाने पर तशरीफ़ लाये। आइये - आइये अंदर तो आइए", कहकर कुँवर साहब, कुंवरानी साहिबा और छोटे कुंवर को लेकर वे दोनों ड्राइंग रूम में लाकर बड़े अदब से बैठाया।
"आप तशरीफ़ रखिये मैं आ़इरा को लेकर आती हूँ", कहकर सादिया बेग़म घर के भीतर गईं तो कुछ देर बाद आ़इरा को अपने साथ इस क़दर लेकर आईं जैसे कि उसे देखने के लिए लड़के वाले आये हुए हों। आ़इरा भी पूरी तरह तैयार होकर आई थी। उसे देखते ही कुंवरानी साहिबा ने उठकर गले से लगाया और बोलीं, "कितनी खूबसूरत लग रही है मेरी आ़इरा? आजातशत्रु बोल क्या कहता है"
अजातशत्रु तो अपनी मां सा की इस बात पर एक दम बोल्ड आउट हो गया और बोला, "बड़े लोगों के सामने मैं क्या कहूँ बस इतना ही कहूंगा कि आ़इरा आज बेहद खूबसूरत लग रही है"
शिखा शेखावत ने आ़इरा को अपने और आजातशत्रु के बीच में सोफे पर बैठाया और प्यार भरी नजरों से आ़इरा को बहुत देर तक निहारतीं रहीं। जब सब चुप थे और कोई कुछ भी नहीं कह रहा था तो कुंवर शेखावत ने कहा, "अरे भाई हम भी हैं। हमें भी हक़ है कि हम अपनी बिटिया से दो बात करें"
"आइये पापा आप इधर आइये, मैं सामने वाले सोफे पर चला जाता हूँ", कहकर आजातशत्रु ने कुंवर साहब के लिए आ़इरा के बगल में बैठने की जगह बना दी।
उसके बाद दोनों परिवारों में लंबी बातचीत हुई। एक दूसरे की रीति रिवाज़ों को लेकर भी चर्चा हुई। अपने - अपने रिश्तेदारों के बारे में एक दूसरे को बताया और हनीफ़ मियां को उस वक़्त बहुत अच्छा लगा जब कुँवर साहब ने यह कहा, "हम तो भाई रेगिस्तान के इलाक़े के रहने वाले हैं और आप ठहरे हरी भरी वादियों और खूबसूरत नज़ारे वाली जगह श्रीनगर के। हमारी तो सबसे बड़ी ख़्वाहिश है कि छोटे कुंवर की बारात लेकर श्रीनगर आएं"
इस पर सादिया बेग़म और हनीफ़ मियां ने कहा, "आपने तो हमारे मन की बात कह दी", और ये भी पूछ लिया, "हम लोग कब की तैयारी करें"
बातें जब यहां तक हो चलीं तो कुंवरानी साहिबा ने मुस्कराते हुए कहा, "अबकी बार गर्मियों में, बस एक शर्त है कि आ़इरा अपनी पढ़ाई लिखाई पूरी कर ले"
"आप बेफ़िक्र रहें हमारी आ़इरा अपनी पढ़ाई लिखाई कर अब्बल दर्ज़े में पास होगी", हनीफ़ मियां ने यह कहकर कुंवरानी साहिबा को तसल्ली दी।
"क्यों बेटी तेरे अब्बू सही कह रहे हैं न", कुंवर साहब ने आ़इरा से पूछा।
आ़इरा ने जबाव में कहा, "बिल्कुल पापा जी अब्बू सही कह रहे हैं"
इसके बाद तो दोनों परिवार के लोगों में खुलकर बातचीत का दौर जो चला कि खाना पीना होते - होते आधी रात से भी अधिक वक़्त कब गुज़र गया पता ही नहीं लगा। जब कुंवरानी साहिबा चलने लगीं तो हाथों से जड़ाऊ कंगन उतार कर आ़इरा के हाथों में पहना दिए।
क्रमशः
19/01/2020
अपनी बात : समय चक्र बहुत तेज रफ़्तार से क्या चला कि सब कुछ इतनी जल्दी में हो गया कि अजातशत्रु और आइरा को लगा कि ये क्या हुआ। आजातशत्रु को तो केवल फ़िक़्र लगी रहती थी कि वह बेशुमार दौलत कमाए और आइरा के मन में हिंदू - मुसलमानों के रिश्तों को लेकर कुछ न कुछ चलता ही रहता था। आइरा हमेशा से यह सोचती रहती थी कि बाबजूद हिंदू मिलजुल कर रहना चाहते हैं लेकिन फिर भी मुसलमान न जाने क्यों डरा - डरा सा मुख्यधारा से कटा - कटा सा रहता है। इसलिए उसने अपने अब्बू और अम्मी से कई सवाल एक साथ पूछ डाले। देखते हैं कि हनीफ़ मियां उसके इस वहम को किस हद तक दूर कर पाते हैं।
एपिसोड 20
बीच - बीच में आ़इरा के मन में हिंदू मुसलमान के आपसी रिश्तों को लेकर कई सवाल उठते। उन्हें उसके अब्बू या अम्मी नहीं तो कुंवरानी साहिबा यथासंभव दूर करतीं रहीं। एक बार ऐसे ही बातों ही बातों में जब आ़इरा ने यह सवाल अपने अब्बू से पूछा, "अब्बू एक बात बताइये कि हमारी कौम के लोग कटे- कटे से क्यों रहते हैं"
"मैं तेरा सवाल समझा नहीं"
"अब्बू बहुत कम लोग अपनी कौम के मोहल्लों से निकल कर उन जगहों पर जा बसते हैं जहाँ सब कौम के लोग रहते हों। मसलन हिंदू, सिख, ईसाई वग़ैरह। जब कि दूसरी कौमों के लोग मिलजुल कर हर जगह ख़ुशी - ख़ुशी रहते हैं"
"कई वजूहात हैं"
"आपको नहीं लगता इन सब बातों से समाज एक नहीं हो पा रहा है"
"लगता ही नहीं यह एक बहुत बड़ी हक़ीक़त है। ना एक दूसरे से मिलेंगे न कभी एक दुसरे के तीज त्योहारों पर मुबारकबाद कहेंगे, सब के सब अहमक़ ये सोचते हैं कि बस उनके हिंदू सिख बिरादर उन्हें ईद की मुबारकबाद पेश करते रहें"
"मैं भी यही सोच रही थी, एक बेहतर समाज तब बनता है जब हम एक दूसरे के ग़म और खुशियों में शरीक़ हों"
"बेटी ये वजूहात तो है ही साथ में एक और ख़ास बात है कि हिंदुस्तान के मुसलमान न जाने क्यों डरे - डरे से रहते हैं। माना कि उनके बाप दादों ने उनके लिए रिहायश ऐसी जगहों पर बनायी जहां चौड़ी सड़कें नही हुआ करतीं थीं। साफ़ सफाई पर भी कोई ध्यान नहीं दिया करता था। गरीबों के घरों पर वही टाट की और रईसों के घरों पर बांस की बनी चिलमन लटका करतीं हैं। घर के उसी आँगन में बकरी भी रहती है और उसी घर में बकिया और लोग भी"
"पूरे मुल्क़ में उन बस्तियों का वही हाल है जहां मुसलमान बहुतायत में रहते हैं", आ़इरा ने भी अपनी राय रखते हुए कहा।
"लोग कहाँ से कहाँ निकल गए। इंसान चांद पर पहुंच गया है और ये हज़रात अभी भी पिछले ज़माने की बातों में उलझे हुये हैं। बेटी धर्म चाहे हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, जैनियों, बौद्ध या भले ही मुसलमानों का या किसी और का क्यों न हो जब तक वह बदलते हुये हालात में फिर से परिभाषित नहीं किया जाएगा वह अपनी ज़मीन खोता जायेगा। एक वक़्त में जब दुनियां में लोगों की ज़रूरत थी उन्होंने बच्चे पैदा किये लेकिन जब दुनियां में भीड़ इतनी हो गई है जब ये ज़मीन ही नहीं बचने वाली है तो भला क्या होगा। बदलाव तो लाना ही होगा। बाबा आदम के ज़माने की लिखी हुईं बातें लोग कब - तक मानते रहेंगे"
"अब्बू मुझे लगता है कि एक वजह और भी है जो दोनों समाजों को अलग - थलग करती है उनका खाना पीना। हिंदू लोग अधिकतर मांस मछली खाना पसंद नहीं करते और हम लोगों के यहां वगैर इनके खाना पीना होता ही नहीं है"
"तू फ़िक़्र क्यों करती है राजस्थान के राजपूत लोग ख़ूब खाते पीते हैं। तेरी पटरी ख़ूब पटेगी कुंवर साहब के यहां। मुझे पूरा भरोसा है कि तू उनके खानदान में खुश रहेगी। छोड़ भी तू हिंदुस्तान की परेशानियों को लेकर भला कैसे जियेगी। तू अपना ख़्याल कर। हर इंसान जब अपना ख़याल करेगा तो एक न एक दिन ये मुल्क़ भी बेहतर जगह बनके रहेगा", हनीफ़ मियां ने किसी तरह समझा बुझा कर आ़इरा से यही कहा कि वह अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे जिससे कि वह छोटे कुंवर की ख़्वाहिशों पर खरी उतर सके।
वक़्त धीरे - धीरे गुज़रता रहा। हनीफ़ मियां और शेखावत परिवार के बीच सम्बंध और मधुर होते गये। कुंवर शेखावत से जब कभी आ़इरा ने बातचीत की तो उन्होंने हमेशा यही कहा कि जीवन में प्रेम से बढ़ कर और कुछ नहीं जो लोग घृणा का वातावरण फ़ैलाने का काम रहते हैं दरअसल वे लोग अपने वजूद में आख़िरी कील ठोंकने का काम कर रहे हैं। अजातशत्रु जो शुरू से ही अपने काम पर बहुत ध्यान देता रहा उसका काम भी खूब चल निकला। बीच - बीच में आ़इरा, शेखावत परिवार के घर आती जाती रही और कुंवर साहब के मुंह से ओशो के ख्यालातों को बड़े ध्यान से सुनती रही। आ़इरा का भी सीए कोर्स पूरा हुआ। बस अब इंतज़ार था तो केवल इस बात का कि सर्दियों का मौसम जितनी जल्दी ख़त्म हो और गर्मियों के दिन आएं तो शेखावत परिवार धूम धड़ाके के बीच बीकानेर से बारात लेकर श्रीनगर पहुंचे। अजातशत्रु व आ़इरा की शादी ख़ूब धूमधाम से हो।
क्रमशः
एपिसोड 21एपिसोड 20
बीच - बीच में आ़इरा के मन में हिंदू मुसलमान के आपसी रिश्तों को लेकर कई सवाल उठते। उन्हें उसके अब्बू या अम्मी नहीं तो कुंवरानी साहिबा यथासंभव दूर करतीं रहीं। एक बार ऐसे ही बातों ही बातों में जब आ़इरा ने यह सवाल अपने अब्बू से पूछा, "अब्बू एक बात बताइये कि हमारी कौम के लोग कटे- कटे से क्यों रहते हैं"
"मैं तेरा सवाल समझा नहीं"
"अब्बू बहुत कम लोग अपनी कौम के मोहल्लों से निकल कर उन जगहों पर जा बसते हैं जहाँ सब कौम के लोग रहते हों। मसलन हिंदू, सिख, ईसाई वग़ैरह। जब कि दूसरी कौमों के लोग मिलजुल कर हर जगह ख़ुशी - ख़ुशी रहते हैं"
"कई वजूहात हैं"
"आपको नहीं लगता इन सब बातों से समाज एक नहीं हो पा रहा है"
"लगता ही नहीं यह एक बहुत बड़ी हक़ीक़त है। ना एक दूसरे से मिलेंगे न कभी एक दुसरे के तीज त्योहारों पर मुबारकबाद कहेंगे, सब के सब अहमक़ ये सोचते हैं कि बस उनके हिंदू सिख बिरादर उन्हें ईद की मुबारकबाद पेश करते रहें"
"मैं भी यही सोच रही थी, एक बेहतर समाज तब बनता है जब हम एक दूसरे के ग़म और खुशियों में शरीक़ हों"
"बेटी ये वजूहात तो है ही साथ में एक और ख़ास बात है कि हिंदुस्तान के मुसलमान न जाने क्यों डरे - डरे से रहते हैं। माना कि उनके बाप दादों ने उनके लिए रिहायश ऐसी जगहों पर बनायी जहां चौड़ी सड़कें नही हुआ करतीं थीं। साफ़ सफाई पर भी कोई ध्यान नहीं दिया करता था। गरीबों के घरों पर वही टाट की और रईसों के घरों पर बांस की बनी चिलमन लटका करतीं हैं। घर के उसी आँगन में बकरी भी रहती है और उसी घर में बकिया और लोग भी"
"पूरे मुल्क़ में उन बस्तियों का वही हाल है जहां मुसलमान बहुतायत में रहते हैं", आ़इरा ने भी अपनी राय रखते हुए कहा।
"लोग कहाँ से कहाँ निकल गए। इंसान चांद पर पहुंच गया है और ये हज़रात अभी भी पिछले ज़माने की बातों में उलझे हुये हैं। बेटी धर्म चाहे हिंदुओं, ईसाइयों, सिखों, जैनियों, बौद्ध या भले ही मुसलमानों का या किसी और का क्यों न हो जब तक वह बदलते हुये हालात में फिर से परिभाषित नहीं किया जाएगा वह अपनी ज़मीन खोता जायेगा। एक वक़्त में जब दुनियां में लोगों की ज़रूरत थी उन्होंने बच्चे पैदा किये लेकिन जब दुनियां में भीड़ इतनी हो गई है जब ये ज़मीन ही नहीं बचने वाली है तो भला क्या होगा। बदलाव तो लाना ही होगा। बाबा आदम के ज़माने की लिखी हुईं बातें लोग कब - तक मानते रहेंगे"
"अब्बू मुझे लगता है कि एक वजह और भी है जो दोनों समाजों को अलग - थलग करती है उनका खाना पीना। हिंदू लोग अधिकतर मांस मछली खाना पसंद नहीं करते और हम लोगों के यहां वगैर इनके खाना पीना होता ही नहीं है"
"तू फ़िक़्र क्यों करती है राजस्थान के राजपूत लोग ख़ूब खाते पीते हैं। तेरी पटरी ख़ूब पटेगी कुंवर साहब के यहां। मुझे पूरा भरोसा है कि तू उनके खानदान में खुश रहेगी। छोड़ भी तू हिंदुस्तान की परेशानियों को लेकर भला कैसे जियेगी। तू अपना ख़्याल कर। हर इंसान जब अपना ख़याल करेगा तो एक न एक दिन ये मुल्क़ भी बेहतर जगह बनके रहेगा", हनीफ़ मियां ने किसी तरह समझा बुझा कर आ़इरा से यही कहा कि वह अपनी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दे जिससे कि वह छोटे कुंवर की ख़्वाहिशों पर खरी उतर सके।
वक़्त धीरे - धीरे गुज़रता रहा। हनीफ़ मियां और शेखावत परिवार के बीच सम्बंध और मधुर होते गये। कुंवर शेखावत से जब कभी आ़इरा ने बातचीत की तो उन्होंने हमेशा यही कहा कि जीवन में प्रेम से बढ़ कर और कुछ नहीं जो लोग घृणा का वातावरण फ़ैलाने का काम रहते हैं दरअसल वे लोग अपने वजूद में आख़िरी कील ठोंकने का काम कर रहे हैं। अजातशत्रु जो शुरू से ही अपने काम पर बहुत ध्यान देता रहा उसका काम भी खूब चल निकला। बीच - बीच में आ़इरा, शेखावत परिवार के घर आती जाती रही और कुंवर साहब के मुंह से ओशो के ख्यालातों को बड़े ध्यान से सुनती रही। आ़इरा का भी सीए कोर्स पूरा हुआ। बस अब इंतज़ार था तो केवल इस बात का कि सर्दियों का मौसम जितनी जल्दी ख़त्म हो और गर्मियों के दिन आएं तो शेखावत परिवार धूम धड़ाके के बीच बीकानेर से बारात लेकर श्रीनगर पहुंचे। अजातशत्रु व आ़इरा की शादी ख़ूब धूमधाम से हो।
क्रमशः
शादी की तारीख़ एक बार क्या तय हुई कि हनीफ़ मियां तैयारी में जुट गए। सबसे पहले तो वह श्रीनगर जाकर वहां के डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से मिलने गए। जब उनकी मुलाकात डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट से हुई तो उन्हें उन्हें आइरा - अजातशत्रु की शादी के बारे में बताया। हनीफ़ मियां की बात सुनकर एक पल के लिए तो डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट की माथे पर शिकन पड़ी लेकिन अगले पल ही उन्हें अपनी ड्यूटी का जब ख़्याल आया तो कहने लगे, "अभी आप श्रीनगर में कितने दिन रुकने वाले हैं"
"जी कम से कम दस पंद्रह दिन तो लग ही जायेंगे"
"एक काम करिये कि आप कल मुझसे सुबह ग्यारह बजे मिलिए मैं श्रीनगर के एसपी साहब को भी बुलवा लूँगा जिससे सब बातें एक बार ही तय हो जाएं"
"जी ज़नाब कोई दिक़्क़त वाली बात है"
"दिक़्क़त वाली बात तो नहीं बहरहाल फ़िक़्र की बात तो है"
"वह कैसे?"
"मियां आप भी जान रहे हो और हम भी जान रहे हैं कि आप ठहरे मुसलमान और जिनके यहां आपकी बेटी की शादी हो रही है वह ठहरे हिंदू"
"तो क्या हुआ ज़नाब? हिंदुस्तान की तवारीख़ में यह कोई पहली शादी तो नहीं जो एक मुस्लिम की लड़की की हिंदुओं के यहां हो रही है। कई मिसाल हैं जब कि हिंदुओं की शादी मुसलमानों के यहां हुई हैं"
"आप बजा फ़रमा रहै हैं लेकिन फिर भी हमें तो सभी हालात देखने होते हैं", डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट साहब ने कहा, "जैसी मैंने आपसे गुज़ारिश की है आप कल मिलियेगा, हम लोग पूरे हालात का जायज़ा लेकर आपको बताते हैं"
"ठीक है ज़नाब मैं आपसे कल मिलता हूँ"
"जी बेहतर"
हनीफ़ मियां डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के दफ़्तर से निकले ही थे कि उन्हें कुंवर साहब का फ़ोन आया, "हनीफ़ मियां आप कहाँ हैं"
"कुंवर साहब शादी के सिलसिले में श्रीनगर आया हुआ था"
"हनीफ़ मियां शादी का इंतज़ाम आला दर्ज़े का होना चाहिए"
"जी आप फ़िक़्र न करें, आपकी उम्मीदों से बेहतर ही इंतज़ाम रहेगा। बस एक दिक़्क़त है कि मुझे अभी तक डिस्ट्रिक्ट एडमिनिस्ट्रेशन की परमिशन नहीं मिली है"
"क्या मैं होम मिनिस्ट्री में अपने जानकारों से बात करूँ"
"अभी इसकी ज़रूरत नहीं लगती। सारी की सारी बात कल क्लियर होगी जब डिस्ट्रक्ट मजिस्ट्रेट और एसपी साहिबान साथ - साथ होंगे"
"देख लीजिए कोई भी दिक़्क़त हो तो मुझे बताइयेगा ज़रूर"
"जी आपको नहीं कहूँगा तो भला गैरों से कहूँगा"
"ठीक है", कहकर कुंवर साहब ने फोन रख दिया लेकिन हनीफ़ मियां की दिक्कतें इन सब बातों से कम नहीं हुईं। उन्हें जैसे ही मौक़ा मिला तो सारी की सारी बातें सादिया बेग़म को बताईं। सादिया बेग़म ने तो सपने में भी न सोचा था कि श्रीनगर से आ़इरा की शादी करने में इतने लफड़े हैं इसके बाबजूद भी उन्होंने हनीफ़ मियां से यही कहा, "देख लीजिए वहां के अफ़सरान क्या कहते हैं उसके बाद सोचते हैं कि क्या करना है"
रात भर हनीफ़ मियां के सामने परेशानी का सबब बनी रही और जैसे ही सुबह हुई तो अल्लाह से उन्होंने एक ही चीज मांगी कि आ़इरा की शादी ठीक ढंग से निपट जाये। ग्यारह बजे से पहले ही हनीफ़ मिया डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के ऑफिस में पहुंच गए। वहां एसपी साहब पहले ही से मौजूद थे। दोनों अफसरों ने अपनी मुलाकात में यही कहा, "हनीफ़ मियां हमें आपकी बेटी की शादी के मुत्तलिक स्टेट होम डिपार्टमेंट से क्लिरयेन्स मिल गया है आप ख़ुशी - ख़ुशी जाइये और शादी के इंतजामात करिये।
"बहुत - बहुत शुकिया ज़नाब"
क्रमशः
21/01/2020
एपिसोड 22
हनीफ़ मियां ख़ुश - ख़ुश दिल्ली लौट आये और सादिया बेग़म को लेकर गहने जवाहरात बनवाने की सोच ही रहे थे कि 'बैंड बाज़ा ब्राइड' गुड टाइम्स टीवी शो के स्पॉन्सरर्स सब्यसाची ग्रुप के जनरल मैनेजर ने उन्हें फ़ोन किया और पूछा कि वे लोग उनसे मिलना चाहते हैं। जब हनीफ़ मियां ने उनसे पूछा, "ज़नाब आप किस सिलसिले में मुलाकात करना चाहते हैं"
"जी हम आपको यह बताना चाहेंगे कि हमें जम्मू कश्मीर की सरकार के टूरिज़म एंड कल्चरल मिनिस्ट्री से बताया गया है कि आप अपनी बेटी की शादी दिल्ली से श्रीनगर जाकर करना चाहते हैं। हम उसी सिलसिले में आपसे मिलना चाहते हैं"
"आइये - आइये लेकिन यह बताइए कि आप कब तशरीफ़ लाएंगे"
"जी आपको तकलीफ़ न हो तो क्या हम आज शाम को आपसे और आपकी बेटी से मुलाक़ात कर सकते हैं"
हनीफ़ मियां ने उन्हें अपने घर का पता लिखवाया और उनसे कहा कि वे लोग शाम को आ जाएं। दुकान से उस रोज हनीफ़ मियां जल्दी लौट आये और जब उन्होंने सादिया बेग़म को बताया कि 'गुड टाइम्स टीवी शो' वाले प्रोड्यूसर्स हम लोगों से मिलना चाहते हैं क्या आ़इरा घर लौट आई है या नहीं। सादिया बेग़म ने बताया, "अभी कुछ देर पहले ही उससे बात हुई थी। वह कह रही थी कि वह छोटे कुँवर के साथ चाट खाकर आएगी"
"अरे उससे कहो कि वह चाट - वाट बाद में खा लेगी अभी तो वह छोटे कुंवर को लेकर जल्दी घर पहुंचे"
कुछ देर बाद जब आ़इरा और अजातशत्रु घर लौट आये तो हनीफ़ मियां ने उन्हें बताया कि बैठो कुछ टीवी वाले मिलने आने वाले हैं। सब्यसाची ग्रुप के जनरल मैनेजर एसके घोष अपनी टीम के साथ आये और उन्होंने हनीफ़ मियां ने उन सभी की मुलाक़ात आ़इरा और अजातशत्रु से कराई। मिस्टर एसके घोष ने हनीफ़ मियां से पूछा, "आप अपनी बेटी की शादी श्रीनगर से ही जाकर क्यों करना चाह रहे हैं जब कि दिल्ली अपने आप में शादियों के लिए एक इम्पोर्टेन्ट डेस्टिनेशन बन चुकी है"
तब हनीफ़ मियां ने श्रीनगर से अपने पारिवारिक सम्बंधो की जानकारी देते हुए बताया, "दरअसल हम लोग ओरिजिनली श्रीनगर के ही रहने वाले हैं दूसरा हमारे समधी जी बीकानेर के। हमारे समधी जी की दिली ख़्वाहिश है कि आ़इरा की शादी हम लोग श्रीनगर से ही करें"
"इसका मतलब बारात बीकानेर से श्रीनगर जाएगी"
"जी अभी तक तो यही तय हुआ है"
इसके बाद एसके घोष ने अपनी पूरी योजना के बारे में बताते हुए उन्हें बताया कि उनका ग्रुप हिंदुस्तानी पहनावे और गहने जवाहरात के सप्लायर्स के साथ मिलकर कुछ सिलेक्ट लोगों की शादी के जरिये अपने - अपने आइटम्स की मार्केटिंग करते हैं जिसमें शादी की तैयारियों से लेकर शादी के आखिरी प्रोग्राम तक पूरे प्रोग्राम को वीडियो शूट करते हैं और उससे अपनी पब्लिसिटी करते हैं। आपकी बेटी की शादी के सिलसिले में हमें जम्मू कश्मीर की सरकार के टूरिज़म एंड कल्चरल मिनिस्ट्री ने कहा है, "अगर आपको कोई प्रॉब्लम न हो तो इस पूरे प्रोग्राम को हमारे साथ मिलकर स्पॉन्सर करने के लिए तैयार हैं। उनकी यह सोच है कि यह इवेंट उनकी स्टेट में टूरिज़्म प्रमोशन के बहुत काम आ सकती है। अगर आपको कोई उज़्र न हो तो क्या हम लोग आपकी बेटी की शादी का पूरा इंतज़ाम हम लोग कर सकते हैं"
असमंजस की स्तिथ में पड़े हुए हनीफ़ मियां ने पहले तो सादिया बेग़म की ओर और फिर बाद में आ़इरा और अजातशत्रु की ओर देखते हुए कहा, "हमें क्या करना होगा?"
"देखिए उसके लिए आपको हमारे साथ एक कॉन्ट्रैक्ट साइन करना पड़ेगा कि शादी के मुत्तलिक पब्लिसिटी के सारे राइट्स आप हमको देंगे और बदले में हम दूल्हे और दुल्हिन की साज़ सज़्ज़ा का पूरा जिम्मा उठाएंगे"
"देखिये चूंकि यह मसला हमारे समधी जी से भी ताल्लुक रखता है इसलिए हम अकेले इस पर कोई फैसला नहीं ले सकते। आप हमें कुछ वक़्त दीजिये पहले हम लोग आपस में बात कर लें उसके बाद ही आपको बताएंगे", हनीफ़ मियां ने बड़े अदब से एसके घोष से कहा।
"कोई बात नहीं आप लोग बात करके तय कर लें और जो आपका फैसला हो वह हमें बात दें। देखिए इसमें देर मत करियेगा हमें बहुत तैयारी करनी होती है इसलिए आप जितना जल्दी बताएंगे उतना हमें आसानी होगी"
"जी आप फ़िक़्र न करें हम आपको दो एक रोज़ में ही बता देंगे"
इसके बाद एसके घोष अपनी टीम के साथ जैसे ही गए तो हनीफ़ मियां ने अजातशत्रु की ओर देखते हुए पूछा, "छोटे कुंवर आप क्या कहते हैं?"
"मैं सब्यसाची ग्रुप के बारे में जानता हूँ कि वे लोग इस तरह की एक्टिविटी करते हैं और मैंने इनके टीवी शो भी देखे हैं बाक़ी आप पापा से बात कर लीजिए"
हनीफ़ मियां ने अजातशत्रु से कहा, "चलिये हम आपके साथ चलकर अभी इस मसले के बाबत कुंवर साहब और कुंवरानी साहिबा से बात करते हैं"
जब सब लोग मिले तो हनीफ़ मियां ने एसके घोष से हुई वार्तालाप के बारे में सभी को अवगत कराया। हनीफ़ मियां की बात सुनकर कुंवर शेखावत ने भी हनीफ़ मियां से कहा, "उन्हें भी शादी के सिलसिले में होम मिनिस्ट्री से उनके जान पहचान वालों का फोन आया था कि हम बेफ़िक्र होकर बारात लेकर श्रीनगर जाएं और सेट्रल गवर्नमेंट की सिक्युरिटी सर्विसेज हमें पूरी सुरक्षा प्रदान करेंगी"
हनीफ़ मियां को यह जानकर तस्सली हुई और उन्होंने जब सब्यसाची ग्रुप के बारे में पूछा तो कुंवर साहब ने कहा, "यह तो अच्छी बात है हमारे बच्चों की शादी धूमधाम से ही नहीं होगी बल्कि हमेशा के लिए इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में धूम मचाती रहेगी"
"तो मैं उनसे इसके लिए हां कह दूं", हनीफ़ मियां ने कुंवर साहब से पूछा।
"इसमें सोचना कैसा आप उन्हें 'हां' कह दीजिये"
हनीफ़ मियां ने तुरंत ही एसके घोष को फोन कर के अपनी सहमति जता दी। एसके घोष ने हनीफ़ मियां से कहा कि वह और कुँवर शेखावत साहब उनके दफ़्तर आकर मिल कर कॉन्ट्रैक्ट संबंधी जो कार्यवाही करनी है उसे पूरी कर लें जिससे कि वे लोग आगे का काम शुरू कर सकें।
क्रमशः
22/01/2020
22/01/2020
एपिसोड 23
हनीफ़ मियां और कुंवर शेखावत ने सब्यसाची ग्रुप के साथ मिलकर कॉन्ट्रैक्ट एग्रीमेंट साइन किया जिसके तहत शादी का पूरा इंतज़ामात सब्यसाची ग्रुप को करना था लेकिन दूल्हा दुल्हन को छोड़कर बाक़ी सभी रिश्तेदारों की ड्रेस वग़ैरह की तैयारी का पूरा ख़र्चा दोनों परिवारों को मिलकर उठाना था।
सब्यसाची ग्रुप के दफ़्तर से बाहर आकर कुंवर शेखावत ने हनीफ़ मियां को गले से लगाया और बोले, "जाइये मियां अब क्या करना है ऐश करिये सारी की सारी जिम्मेदारी अब सब्यसाची ग्रुप की है"
हनीफ़ मियां ने एक बार फिरसे कुंवर शेखावत से पूछा, "आपको विश्वास है कि सब कुछ ठीक ठाक रहेगा"
"हां मियां भगवान चाहेगा सब ठीक से होगा। अब ये शादी हनीफ़ मियां की या हमारे परिवार की जिम्मेदारी ही नहीं बल्कि जम्मू कश्मीर सरकार और दिल्ली की सरकार की भी है। इस शादी की पब्लिसिटी से जम्मू कश्मीर में शादियों का जोधपुर और उदयपुर की राह पर इंटरनेशनल मार्किट तो खुलेगा ही और साथ ही साथ जम्मू कश्मीर में टूरिज्म को भी बढ़ावा मिलेगा"
उसके बाद दोनों परिवारों से बातचीत करके एसके घोष की टीम ने शादी के हर प्रोग्राम की डिटेल प्लानिंग की। प्रिवेडिंग शूट के लिए आ़इरा और अजातशत्रु को वे लोग अपने साथ श्रीनगर और बीकानेर के साथ - साथ और भी कई जगह ले गए। हनीफ़ मियां शादी के कुछ रोज़ पहले सादिया बेग़म और आ़इरा को लेकर श्रीनगर पहुंच गए और कुंवर शेखावत शिखा शेखावत और अजातशत्रु के साथ बीकानेर पहुंच गए। बीकानेर से छोटे कुंवर अजातशत्रु की बारात धूमधाम से निकली और स्पेशल ट्रेन से दिल्ली से होती हुई श्रीनगर पहुंची। दिल्ली से कुंवर साहब के 'खूसट बुढ्ढे' ग्रुप के सभी लोग माथुर साहब, हरभजन सिंह साहब, अय्यर, एस पी राणा, मुख़र्जी दादा, श्रीवास्तव परिवार बारात के साथ शरीक़ हुए। पूरी शानो शौक़त से बारात का हनीफ़ मियां के घर वालों ने स्वागत किया। बड़े ही शाही अंदाज में कुंवर अजातशत्रु और आ़इरा की शादी हुई जिसकी पूरी फिल्मिंग सब्यसाची ग्रुप ने अपने हिसाब से कराई। सबसे अहम हिस्सा शादी का श्रीनगर से विदाई समारोह वाला रहा जब डल झील में शाम के वक़्त नावों में सवार हो आइरा और अजातशत्रु बारात के सभी लोग उस पार पहुंच कर वहां इंतज़ार कर रहीं बड़ी - बड़ी कारों में बैठकर एयरपोर्ट के लिए निकल गए। कुछ दिन के बाद आइरा और आजातशत्रु हनीमून के लिए चले गए।
चुपके से चुपके से
रात की चादर तले
चाँद की भी आहट ना हो
बादल के पीछे चले
जले क़तरा क़तरा, गले क़तरा क़तरा!!
रात की चादर तले
चाँद की भी आहट ना हो
बादल के पीछे चले
जले क़तरा क़तरा, गले क़तरा क़तरा!!
रात भी ना हिले आधी आधी
रात भी ना हिले आधी आधी
चुपके से लग जा गले…
रात की चादर तले
जले क़तरा क़तरा, गले क़तरा क़तरा!!
रात भी ना हिले आधी आधी
चुपके से लग जा गले…
रात की चादर तले
जले क़तरा क़तरा, गले क़तरा क़तरा!!
### ## इति #####
आज "क़तरा - क़तरा" कथानक समाप्त होकर इतिहास के स्वर्णिम पन्नो में अंकित हो गया। इस कथानक के माध्यम से एक शशक्त समाज को सशक्त संदेश देने की कोशिश की गई है कि अगर लोगों के दिलों में मोहब्बत हो तो बहुत कुछ किया जा सकता है। जम्मू कश्मीर में बड़े बदलाव के बाद जो शून्य की परिस्थितियों का जन्म हुआ जिससे ऐसे लगा कि झेलम नदी में बहता हुआ ठंडा पानी अचानक रुक गया हो उसे भी गति प्रदान हो उसका संकल्प भी दोहराया गया।
अब देखने वाली बात यह है कि ज़मीन पर क्या होता है। क़लमकार तो बस सपनों की बात कर सकता है। ख़्वाब बेच सकता है।.... करना तो देश के कर्णधारों को है। बस प्रभु से इतनी ही प्रार्थना है कि सबको ऐसी सद्बुद्धि दे जिससे अपना देश दिन रात चौगुनी तरक्की करे और सभी समुदायों के बीच सहिष्णुता का माहौल बना रहे।
धन्यवाद सहित।
एसपी सिंह
23/01/2020
23/01/2020
दो शब्द: क़तरा - क़तरा के सम्पादक की कलम से
पुराने किसी कवि की ये लाईने यहॉ मुझे *क़तरा - क़तरा* को व्याख्ति करने के लिये याद आ रही हैं...
पत्ता टूटा डाल से ले गयी पवन उड़ाय,
अब के बिछुड़े नाय मिलेंगें दूर पड़ेगें जाय...
शादी वह भी लड़की की, बहुत ही भावुक क्षण जिन्दगी का, जिसे नाजों से पाला, वही हो जायेगी परायी.
कोई रो रहा होगा, कोई सुबक रहा होगा, किसी की हिचकी चल रही होगीं...
गमगीन हो चला होगा लालचौक आज...
जहॉ गूंजती थी कभी गोलियां वहां से डोली की हुयी विदाई...
आख़िर क्रुरता हार गई, जिन्दगी जीत गई...
पत्ता टूटा डाल से ले गयी पवन उड़ाय,
अब के बिछुड़े नाय मिलेंगें दूर पड़ेगें जाय...
शादी वह भी लड़की की, बहुत ही भावुक क्षण जिन्दगी का, जिसे नाजों से पाला, वही हो जायेगी परायी.
कोई रो रहा होगा, कोई सुबक रहा होगा, किसी की हिचकी चल रही होगीं...
गमगीन हो चला होगा लालचौक आज...
जहॉ गूंजती थी कभी गोलियां वहां से डोली की हुयी विदाई...
आख़िर क्रुरता हार गई, जिन्दगी जीत गई...
जिस भाव से लेखक ने क़तरा - क़तरा की रचना की उसकी तारीफ नहीं करूं यह मेरे लिये बहुत ही दुरूह है.
हनीफ़ मियां से जब मैं पहले - पहले रूबरू हुआ तब मैनें भरपूर नज़र अन्दाज़ किया मगर लेखक यदि कमाल ना करे तो फिर लेखक ही काहे का...
यहॉ ज्यों - ज्यों लेखक लिखता गया त्यों - त्यों हम विषय व चरित्र तथा पात्रों में डूबते चले गये, जबकि पूर्व की भांति बुरी घटनाओं ने सम्पादक का पीछा नहीं छोड़ा.
जिस प्रकार खूसट बढ्ढे के बीच मेरे अनुज ऋषि की हत्या के क्षोभ में मैं पीड़ित था, ठीक इसी प्रकार से क़तरा - क़तरा के बीच मेरी पत्नी की बड़ी बहन अल्पआयु में ही असमय हमें छोड़कर स्वर्गसिधार गयी, जोकि लम्बे समय से कैंसर नामक बीमारी से पीड़ित थी...
मन भटकाव में बना रहा मगर क़तरा - क़तरा पर नज़र बनी ही रही...
बस न्याय नहीं कर सका तो इतना की टिप्पणी आदि नहीं कर सका जिससे कि लेखन में पाठकीय हिस्सेदारी बनी रहती...
क़तरा - क़तरा में लेखक ने जिस प्रकार से अजातशत्रु व आ़इरा की शादी का संयोजन जिस सहज़ता से किया वह अनुपम है, बारात भी क्या बेहतरीन सजायी है...
सबसे मजेदार वाकिया रहा सव्यसाची ग्रुप का आगमन...
जो पूरी शादी में चार चान्द लगा देगा चूंकि सम्पादक को भी लेखक ने खूसट बुढ्ढे का एक पात्र होने के नाते बारात में सम्मलित किया है तब जीवन के दुखों से पार पानें में मेरे लिये भी यह अच्छा अवसर रहा कि श्रीनगर की बर्फिली ठन्ड के सैर सपाटे से थोड़ मन परिवर्तन हुआ...
यहां पाठकगण ध्यान देगें कि मैदानी विवाहाउपरान्त जोड़े जहॉ शादी बाद डल - झील की सैर करना पसन्द करते हैं वहीं हमारे दुल्हा व दुल्हन ने अपना हनीमून डैस्टीनेशन के लिये मुझसे राय मशवरा किया तथा मैंनें बेटे अजातशत्रु व बहू आ़इरा को उटी (उदगमंडलम) तमिलनाडु का बहुत ही सुरम्य व शान्त पहाड़ी पर्यटक स्थल का सुझाव दिया जो कि मेरा सबसे प्रिय स्थल है तथा नवविवाहित जोड़े ने मेरी यह सलाह सहर्ष स्वीकार भी कर ली...
इसके लिये नई दिल्ली से कोयम्बटूर तक केरला एक्सप्रेस 12626 द्वितीय वातानुकूलन श्यनयान में बर्थ आरक्षण पहले ही से कराया जा चुका है...
तदुपरान्त कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन स्टेशन के बाहर से ही टैक्सी द्वारा मैट्टूपालैयम, वैलिंगटन, लवडेल जैसे खूबसूरत स्थानों से होते हुये उदगमंडलम् पंहुचेगें...
मेरा मानना है कि यहॉ कि सुरम्यता विवाहित जोड़े को जीवन की सुख शान्ति के नये - नये सबक से जरूर रूबरू करायेगी...
यहॉ इनके लिये मजेदार होगा नीलगिरी खिलौना ट्रेन की सवारी, बॉटनिकल गार्डेन, बोट की सवारी, रातिसिन (डोडा आदिवासी लड़की व मेरी मित्र) की मेहमान नव़ाजी, कालहट्टी झरना, उटी के चर्च, डॉलफिन नोज़, कोट्टागिरी हिल्स, कुन्नुर व डोडा बेट्टा यहॉ से उटी का आनन्द अपने चरम पर होगा, चाय के बागानों में पत्ती बीनना अनोखा व आलौकिक होगा...
यहीं से मौसम हो यदि साफ तब मैसूर व कोयम्बटूर का भी आलौकिक दृश्य देखने का लुत्फ वैवाहिक जोड़ा उठायेगा...
अब यह साफ हो गया कि भारत सरकार, जम्मू व काश्मीर की छोटी से छोटी घटनाओं को भी यहॉ के टूरिस्ट उद्योग को मजबूत करने के प्रयोग में जुट चुकी है...
आशा है लेखक जनता में शान्ति व सुरक्षा का सन्देश जो लेकर आये इसका देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा जिसको हमेशा याद किया जायेगा...
हनीफ़ मियां से जब मैं पहले - पहले रूबरू हुआ तब मैनें भरपूर नज़र अन्दाज़ किया मगर लेखक यदि कमाल ना करे तो फिर लेखक ही काहे का...
यहॉ ज्यों - ज्यों लेखक लिखता गया त्यों - त्यों हम विषय व चरित्र तथा पात्रों में डूबते चले गये, जबकि पूर्व की भांति बुरी घटनाओं ने सम्पादक का पीछा नहीं छोड़ा.
जिस प्रकार खूसट बढ्ढे के बीच मेरे अनुज ऋषि की हत्या के क्षोभ में मैं पीड़ित था, ठीक इसी प्रकार से क़तरा - क़तरा के बीच मेरी पत्नी की बड़ी बहन अल्पआयु में ही असमय हमें छोड़कर स्वर्गसिधार गयी, जोकि लम्बे समय से कैंसर नामक बीमारी से पीड़ित थी...
मन भटकाव में बना रहा मगर क़तरा - क़तरा पर नज़र बनी ही रही...
बस न्याय नहीं कर सका तो इतना की टिप्पणी आदि नहीं कर सका जिससे कि लेखन में पाठकीय हिस्सेदारी बनी रहती...
क़तरा - क़तरा में लेखक ने जिस प्रकार से अजातशत्रु व आ़इरा की शादी का संयोजन जिस सहज़ता से किया वह अनुपम है, बारात भी क्या बेहतरीन सजायी है...
सबसे मजेदार वाकिया रहा सव्यसाची ग्रुप का आगमन...
जो पूरी शादी में चार चान्द लगा देगा चूंकि सम्पादक को भी लेखक ने खूसट बुढ्ढे का एक पात्र होने के नाते बारात में सम्मलित किया है तब जीवन के दुखों से पार पानें में मेरे लिये भी यह अच्छा अवसर रहा कि श्रीनगर की बर्फिली ठन्ड के सैर सपाटे से थोड़ मन परिवर्तन हुआ...
यहां पाठकगण ध्यान देगें कि मैदानी विवाहाउपरान्त जोड़े जहॉ शादी बाद डल - झील की सैर करना पसन्द करते हैं वहीं हमारे दुल्हा व दुल्हन ने अपना हनीमून डैस्टीनेशन के लिये मुझसे राय मशवरा किया तथा मैंनें बेटे अजातशत्रु व बहू आ़इरा को उटी (उदगमंडलम) तमिलनाडु का बहुत ही सुरम्य व शान्त पहाड़ी पर्यटक स्थल का सुझाव दिया जो कि मेरा सबसे प्रिय स्थल है तथा नवविवाहित जोड़े ने मेरी यह सलाह सहर्ष स्वीकार भी कर ली...
इसके लिये नई दिल्ली से कोयम्बटूर तक केरला एक्सप्रेस 12626 द्वितीय वातानुकूलन श्यनयान में बर्थ आरक्षण पहले ही से कराया जा चुका है...
तदुपरान्त कोयम्बटूर रेलवे स्टेशन स्टेशन के बाहर से ही टैक्सी द्वारा मैट्टूपालैयम, वैलिंगटन, लवडेल जैसे खूबसूरत स्थानों से होते हुये उदगमंडलम् पंहुचेगें...
मेरा मानना है कि यहॉ कि सुरम्यता विवाहित जोड़े को जीवन की सुख शान्ति के नये - नये सबक से जरूर रूबरू करायेगी...
यहॉ इनके लिये मजेदार होगा नीलगिरी खिलौना ट्रेन की सवारी, बॉटनिकल गार्डेन, बोट की सवारी, रातिसिन (डोडा आदिवासी लड़की व मेरी मित्र) की मेहमान नव़ाजी, कालहट्टी झरना, उटी के चर्च, डॉलफिन नोज़, कोट्टागिरी हिल्स, कुन्नुर व डोडा बेट्टा यहॉ से उटी का आनन्द अपने चरम पर होगा, चाय के बागानों में पत्ती बीनना अनोखा व आलौकिक होगा...
यहीं से मौसम हो यदि साफ तब मैसूर व कोयम्बटूर का भी आलौकिक दृश्य देखने का लुत्फ वैवाहिक जोड़ा उठायेगा...
अब यह साफ हो गया कि भारत सरकार, जम्मू व काश्मीर की छोटी से छोटी घटनाओं को भी यहॉ के टूरिस्ट उद्योग को मजबूत करने के प्रयोग में जुट चुकी है...
आशा है लेखक जनता में शान्ति व सुरक्षा का सन्देश जो लेकर आये इसका देश की सुरक्षा में महत्वपूर्ण योगदान रहेगा जिसको हमेशा याद किया जायेगा...
अजातशत्रु व आ़इरा को मेरा शुभाशीष के साथ मैं अपनी लेखनी को विराम देता हूं...
जयहिन्द
सुरेन्द्र पाल राणा
गाजियाबाद
गाजियाबाद
आपने जिस प्रकार पहले ही दिन से "क़तरा - क़तरा" को अपना आशीष दिया एवं संपादन का कार्य किया वह अत्यंत प्रशंसनीय है। "क़तरा - क़तरा" कथानक अगर सच कहा जाए तो "गुज़र गाह" और "खूसट बुढ्ढे" की कहानियों को आगे ले जाने वाला एक कदम था। ये सब कहानियां आपस में इस प्रकार गुंथी हुईं हैं कि अगर पाठक एक को न पढ़े तो वह दूसरे कथानकों की गहराई तक पैंठ नहीं कर पाएगा।
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि दिन भर मंदिर में किसी मूर्ति के सामने एक पाँव पर खड़े होकर पूजा पाठ करने से, बुद्ध की मूर्ति के समक्ष पालती मार कर बैठने से, पांच वक़्त की नमाज़ अदा करने से, हर इतवार को चर्च जाने से अथवा गुरुद्वारे जाकर गुरु की अरदास करने से कुछ नहीं होगा जब तक लोगों के दिलों में प्यार नहीं पनपेगा, एक दूसरे के साथ मिलकर जीवन जीने की ललक नहीं होगी, जब तक लोगों में प्यार और मोहब्बत नहीं होगी तब तक इंसान को इंसानियत के करीब ले जाने के मुख्य आधार नहीं बनेंगे। मेरो कोशिश भी सदैव से यही रही है कि हर इंसान भगवान का स्वरूप बनकर एक दूसरे के काम आए और तरक़्क़ी में सहायक हो। यही विचार मेरे कई कथानकों में पूर्णतः परिलक्षित होते हैं।
वैसे तो हमारी सभी पुस्तकें अमेज़न के बुक स्टोर पर उपलब्ध हैं लेकिन चूंकि आजकल के युग में लोग पैसा खर्च करके नहीं पढ़ना चाहते हैं इसलिए हमारा यह प्रयास रहेगा कि जिस श्रृंखला में ये कथानक फेसबुक पर प्रसारित हुए उसी तारतम्य में आने वाले वर्षों में इन्हें फेसबुक की मेमोरी के माध्यम से पुनः प्रसारण कर सकूँ। इसी सोच के अंतर्गत हम आजकल अपने धारावाहिक "मामू सा" का पुनः प्रसारण उन पाठकों के लिए कर रहे हैं जो इस कथानक को किसी कारणवश पूर्व में न पढ़ सके हों। दिनांक 24/01/2020 से तमन्ना का पुनः प्रसारण भी किया जाएगा।
इस साहित्यिक यात्रा में आप सभी का स्नेह बना रहा इसके लिए आप सभी का हार्दिक आभार।
एसपी सिंह
23/01/2020
यह मेरा व्यक्तिगत विचार है कि दिन भर मंदिर में किसी मूर्ति के सामने एक पाँव पर खड़े होकर पूजा पाठ करने से, बुद्ध की मूर्ति के समक्ष पालती मार कर बैठने से, पांच वक़्त की नमाज़ अदा करने से, हर इतवार को चर्च जाने से अथवा गुरुद्वारे जाकर गुरु की अरदास करने से कुछ नहीं होगा जब तक लोगों के दिलों में प्यार नहीं पनपेगा, एक दूसरे के साथ मिलकर जीवन जीने की ललक नहीं होगी, जब तक लोगों में प्यार और मोहब्बत नहीं होगी तब तक इंसान को इंसानियत के करीब ले जाने के मुख्य आधार नहीं बनेंगे। मेरो कोशिश भी सदैव से यही रही है कि हर इंसान भगवान का स्वरूप बनकर एक दूसरे के काम आए और तरक़्क़ी में सहायक हो। यही विचार मेरे कई कथानकों में पूर्णतः परिलक्षित होते हैं।
वैसे तो हमारी सभी पुस्तकें अमेज़न के बुक स्टोर पर उपलब्ध हैं लेकिन चूंकि आजकल के युग में लोग पैसा खर्च करके नहीं पढ़ना चाहते हैं इसलिए हमारा यह प्रयास रहेगा कि जिस श्रृंखला में ये कथानक फेसबुक पर प्रसारित हुए उसी तारतम्य में आने वाले वर्षों में इन्हें फेसबुक की मेमोरी के माध्यम से पुनः प्रसारण कर सकूँ। इसी सोच के अंतर्गत हम आजकल अपने धारावाहिक "मामू सा" का पुनः प्रसारण उन पाठकों के लिए कर रहे हैं जो इस कथानक को किसी कारणवश पूर्व में न पढ़ सके हों। दिनांक 24/01/2020 से तमन्ना का पुनः प्रसारण भी किया जाएगा।
इस साहित्यिक यात्रा में आप सभी का स्नेह बना रहा इसके लिए आप सभी का हार्दिक आभार।
एसपी सिंह
23/01/2020
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