Saturday, January 11, 2020

मामू सा ---- एस पी सिंह

"मामू सा"






एस पी  सिंह  
                                             














समर्पण

माँ सा और बाबू सा की स्मृति में


















अस्वीकारोक्ति

मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस पुस्तक में वर्णित व्यक्ति और घटनाएँ काल्पनिक हैं। वास्तविक जीवन से इनका कोई सरोकार नहीं हैं। तथापि पुस्तक में उल्लिखित यदि किसी व्यक्ति या घटना का वास्तविक जीवन से सम्बन्ध है, तो यह मात्र संयोग माना जाये।
























दिल से……

कुछ खासमखास लोग अपने आसपास ही होते हैं बस हमारी नज़र उन पर नहीं जाती है। उनके जीवन के कुछ क्षणों को एक बार कोई लेखक अपनी पूर्ण संवेदनशीलता से छू भर दे तो एक कथानक का जन्म हो जाता है। जैसे-जैसे आप उस मुख्य पात्र के बारे में सोचते जाते हैं उसके साथ उसके नातेदार, रिश्तेदार जुड़ते जाते हैं और जुड़ती जाती हैं उन क्षणों की यादें-बातें, उनके साथ बिताए हुए कुछ पलोंऔर हुई बातचीत की यादें जैसे-जैसे ज़हन में आती जाती हैं बस कहानी बनती जाती है।
दरअसल ‘घुमक्कड़’ का आज जब अंतिम एपिसोड फेसबुक पर पोस्ट किया और लोगों ने ‘घुमक्कड़’ कथानक को समग्र रूप में लेते हुए जब उसकी बेतहाशा तारीफ़ की और यह आशा की कि मैं ‘घुमक्कड़’ के तारतम्य में अब कोई नया धारावाहिक लेकर उनकी सेवा में उपस्थित हूँ तो मुझसे रुका न गया। आपसे जब कोई कुछ उम्मीद करे तो आपका भी यह कर्तव्य हो जाता है कि आप उनकी आशाओं और आकांक्षाओं के प्रति सजग रहें, एक प्रयास तो कम से कम करें ही जिससे कि हम कहीं उनके विचारों के अनुरूप उन्हें कुछ दे सकें।
यही सब सोचते हुए जब मैं देर रात  गए जब अपने बिस्तर पर लेटा तो ‘मामू  सा’ नामक एक चरित्र ने मेरे मन में जन्म लिया। बस यह इस कहानी ‘मामू सा धारावाहिक का सूत्रधार बन गया।
वे लोग बहुत भाग्यशाली रहे जो इस धारावाहिक को चित्रों सहित पढ़ पाए लेकिन उनका क्या जो इस आशा से जीते रहे कि चलो हमसे कुछ छूट गया अब उसको पुनः पकड़ कैसे पाएं तो यही कथानक अब आपके समक्ष पेपर बैक में लेकर मैं उपस्थित होने का दुस्साहस कर रहा हूँ।
लीजिये यह अब आपकी झोली में है आप इसे पढ़ें, मनन करें और आनंदित हों।
शुभकामनाओं सहित।
गाज़ियाबाद(उत्तर प्रदेश)                                                               एस पी सिंह।

20-01-2018


प्रस्तावना

मामू सा पुस्तक के लेखक श्री एस. पी. सिंह कल्पना के आगार हैं। इनकी कल्पनाओं ने साहित्य सृजन के क्षेत्र में तमाम अभिनव प्रयोग किये हैं और सभी प्रयोग साहित्य रचना में सफल बन पड़े हैं।
मामू सा की कहानी सामान्य वातावरण में जन्म लेती है लेकिन कथाधारा अपने आस-पास के वातावरण को समेटती हुई इतनी रोचक बन जाती है कि पाठक का कुतूहल आद्योपांत अविरल रहता है। इस कथा में एक बात जो उभर कर आई है वह है सयोंग। अभिनव की मुलाकात सोफ़िया से हांग कांग में होती है। दोनों एक दूसरे को पहले से नहीं जानते थे लेकिन यह संयोग ही है और अभिनव का स्वभाव भी है कि दोनों अनजाने मिल जाते हैं। इस कहानी में अभिनव का चरित्र ऊपरी तौर पर हल्का तो प्रतीत होता है लेकिन जब हम उसके अंतरमन में झाँकते हैं तो पता चलता है कि वह परिस्थितियों का फायदा उठाने में नहीं बल्कि उसे सकारात्मकता की ओर ले जाने में यकीन करता है। जब सोफ़िया अभिनव के बहुत निकट आने का प्रयास करती है तब भी अभिनव अपने उद्दात्त  चरित्र का परिचय देता है और मर्यादा की लक्ष्मण रेखा को पार नहीं करता। सोफ़िया भी अपने मन की निर्मलता को प्रकट करने में कुछ भी उठा नहीं रखती।
हमारा जीवन विश्वास की डोर के सहारे चलता है। यही विश्वास अभिनव और रमा में हर मोड़ पर दिखाई पड़ता है जो कि वैवाहिक जीवन के लिए एक सशक्त संदेश है। श्री एस. पी. सिंह की कहानियों और उपन्यासों में भारतीय वास्तुकला, संस्कृति, परम्परा और लोक रीति रिवाजों को पर्याप्त स्थान मिलता है। इससे उनके व्यापक भ्रमण और जानकारी का ही नहीं अपितु देश की संस्कृति से जुड़ाव और लगाव का पता भी चलता है। इस कहानी में भी राजस्थान के जयपुर, जोधपुर एवं बीकानेर के किलों और महलों को पर्याप्त स्थान मिला है। जब भारतीय संस्कृति की बात की जाए तो आध्यात्म कैसे पीछे छूट सकता है। इस पुस्तक में मथुरा, वृंदावन और बरसाना के मंदिरों, कृष्ण की लीलाओं को बहुत ही बढ़िया ढंग से उभारा गया है।
कहानी का हर पात्र अपनी भूमिका में खरा उतर पाया है। चाहे अभिनव और रमा हों या फिर सोफ़िया अथवा मामू सा और उनकी पत्नी लिंडा, सभी अपनी भूमिका में परिपक्व हैं। कृष्ण राधा के अलौकिक प्रेम का वर्णन कहानी को अध्यात्मिक दिशा प्रदान करता है। इस प्रकार इस पुस्तक में हर वर्ग के पाठक को आकर्षित करने की क्षमता है। जहाँ एक ओर जीवन की आधुनिक शैली की झलक मिलती है वहीं पुस्तक के उत्तरार्ध में पाठक का मन कृष्ण मय हो जाता है। इस प्रकार कहानी का प्रवाह सरस, सरल और सुखांत है।
धन्यवादपूर्वक,
बेंगलूर                                                                                                 राम शरण सिंह
दिनांक: 15-02-2018





हम लोग पिछले साल आज ही के दिन बीकानेर गए थे तभी से मैं बीकानेर को अपने किसी एक कथानक का हिस्सा बनाने के प्रयासों में लगा हुआ था अतः आज मुझे एक ऐसा कथानक मिल ही गया जिसमें बीकानेर बिल्कुल फिट बैठ रहा है।
तो लीजिये इस कथानक के बारे में:
दिल से……
कुछ पात्र अपने आसपास ही होते हैं बस हमारी नज़र उन पर नहीं जाती है। एक बार नज़र जहाँ पड़ी नहीं कि कथानक का जन्म हो जाता है। जैसे-जैसे आप उस मुख्य पात्र के बारे में सोचते जाते हैं उसके साथ उसके नातेदार, रिश्तेदार जुड़ते जाते हैं और जुड़तीं जातीं हैं उन क्षणों की बातें, उनके साथ बिताए हुए कुछ पलों की यादें….
बस लीजिये बन गई एक कहानी। दरअसल ‘घुम्मक्कड़’ का आज जब अंतिम एपिसोड फेसबुक पर चला गया। लोगों ने ‘घुम्मक्कड़’ कथानक को समग्र रूप में लेते हुए जब उसकी बेतहाशा तारीफ़ की और यह आशा की कि मैं ‘घुम्मक्कड़’ के तारतम्य में अब कोई नया धारावाहिक लेकर उनकी सेवा में उपस्थित होऊँ तो मुझसे रुका न गया। आपसे जब कोई कुछ उम्मीद करे तो हमारा भी यह कर्तव्य हो जाता है कि हम उनकी आशाओं और आकांक्षाओं के प्रति सजग रहें, एक प्रयास तो कर ही सकते हैं जिससे कि हम कहीं उनके विचारों के अनुरूप उन्हें कुछ दे सकें।
यही सब सोचते हुए जब मैं देर रात हुए जब अपने बिस्तर पर लेटा हुआ था तो ‘मामू सा...’ नामक एक चरित्र ने मेरे मन में जन्म लिया। बस यह इस कहानी ‘मामू सा…’ धारावाहिक का सूत्रधार फेसबुक के लिये बन गया।
अब आप हर रोज़ इस कथानक का एक एपिसोड फेसबुक पर मेरी टाइम लाइन पर पढ़िये और ‘मामू सा...’ के एक-एक पात्र की गतिविधियों के बारे में जानिये कि आखिर वे करते हैं तो करते क्या हैं और अगर कुछ भी नहीं करते हैं तो कुछ क्यों नहीं करते हैं?
मित्रों एक मेरी शर्त है कि कल ही समाप्त हुआ मेरा धारावाहिक "घुमक्कड़" आपको समग्र रूप में कैसा लगा जब कम से कम से दस/बीस लोग इस विषय में अपनी टिप्पणी इस पोस्ट के माध्यम से देंगे मैं तभी नया धारावाहिक "मामू सा..." फेसबुक पर पोस्ट करूँगा नहीं तो जो पढ़ने वाले हैं वह उस इसके प्रकाशित होने तक इंतजार करें।
धन्यवाद सहित।



एपिसोड 1



सुबह-सुबह जब मैंने अपने फेसबुक पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक “मामू सा…” का पहला एपिसोड लिख लिया तो हमेशा की भाँति मेरा मन किया कि इसे ऑन लाइन लाइव करने के पहले क्यों न एक बार अपनी श्रीमती जी को दिखा लिया जाय। इसी इरादे से मैंने टैब उनकी ओर बढ़ाते हुए कहा, “रमा तनिक सुनिए तो सही जरा इसे देखिए कि मैंने ‘मामू सा…’ कथानक का शुरुआती एपिसोड ठीक से लिखा है कि नहीं”



टैब हाथ में लेते हुए उन्होंने अपना चश्मा उठाते हुए बोलीं, “एक दो दिन रुक जाते ‘मामू सा…’ को बाद में पोस्ट करते तो ठीक रहता”



मैंने उससे पूछा, “तुम ऐसा क्यों कह रही हो तुम्हारी नज़रों से तो हमारे सभी प्रोमो पोस्ट गुज़री हैं। आज ही प्रसारण का हमने अपने पाठक प्रेमियों से वादा किया है”



“वो सब तो ठीक है लेकिन अभी तो आपके धारावाहिक ‘घुम्मक्कड़’ की चर्चा ही चल रही है। कल रात ही मैंने आपकी पोस्ट ‘आज के दिन हम पिछली साल बीकानेर में थे… पर भागलपुर वाले मुक्क्तधारी अग्रवाल साहब अपनी टिप्पणी में लिखा था, “मैं आप जो भी फेसबुक पर लिखते हैं, मैं पूरे मनोयोग से पढ़ता हूँ। मैं आपकी लेखनी का कायल हूँ और मुझे आपने जो पुस्तकें भेजीं थीं, उन्हें पढ़ने के बाद ही पता चल गया था कि आपकी लेखनी कितनी उर्वरक है’, अरे दो एक दिन रुक जाते तो आपका क्या बिगड़ जाता अभी तो आपके सूर्य समान लेखन को जग प्रसिद्ध प्राप्त हो रही है अभी तो आप उसको अंग्रेजी में क्या कहते हैं ‘bask in the glory’ को एन्जॉय कीजिये”



“नहीं भाई, अग्रवाल साहब तो बहुत ही वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार हैं उन्होंने जो भी कहा उसके लिये मैंने उनका आभार व्यक्त करते हुए लिखा तो है कि ‘आप जैसे मनीषियों और साहित्य प्रेमी का आर्शीवाद बना रहे हमारे जैसे नौसिखियों का अभी आपसे बहुत कुछ सीखना है। हार्दिक आभार सर जी।‘ बहुत से अन्य मित्रों ने भी बहुत ही प्रशंसनीय टिप्पणियां लिखीं हैं जो मेरी हिम्मत बढ़ाने वालीं हैं लेकिन मुझे लगता है कि लेखन का या किसी भी तरह की अदाकारी का क्षेत्र हो जनता के सामने से आप हटे नहीं कि जनता ने आपको भुला देती है। देखती तो हो आजकल फ़िल्मी दुनिया में भी हीरो हेरोइन अपनी पहली फ़िल्म रिलीज होने का इंतज़ार नहीं करते हैं बल्कि जब उनकी फ़िल्म की चर्चा हो रही होती है वे भी उसी समय नई फ़िल्म साइन कर लेते हैं। इसलिये मेरे विचार से तो जब गुड्डी चढ़ रही हो तो उसी समय आपको आकाश पर छा जाना चाहिए वरना जनता जनार्दन का क्या है वह भुला देगी। उनके सामने कई आये और कई गए”



“मुझे लगा था कि अभी तो बटलोई में दाल ठीक से पकी भी नहीं होगी उबाल तो आने देते मैं तो इस लिहाज़ से कह रही थी कि आप अपनी कहानी को कुछ स्वरूप तो दे दीजिये उसकी कास्ट फाइनल कर लीजिये जब यह सब हो जाये उसके बाद ही अपना सीरियल धमाके के साथ शुरू करिये”



श्रीमती जो कि हमारे जीवन के हर उस पहलू से बहुत निकट से जुड़ीं हुईं रही हैं जब उन्होंने अपने मन की बात कह ली तो मैंने उनकी तरफ प्यार भरी नजरों से देखा तो पाया कि वह मेरे कथानक को बहुत ध्यान से पढ़ने जा ही रहीं हैं उसी समय मैंने उन्हें टोकते हुए कहा, “जब शाम को सैनिक फार्म वाले मामाजी का फोन आया था ठीक उसी समय मेरे मन में ‘मामू सा…’ लिखने का मन बन गया था और यह बात मैंने तुम्हें सोने से पहले बता भी दी थी”



“हाँ भाई वह सब याद है अब चुप हो भी जाओ अब मैं आपकी कहानी पढ़ूँ या आपकी राम कहानी सुनूँ”



“ठीक है बाबा तुम मेरे धारावाहिक का पहला एपिसोड पढ़ो और बताओ कि यह कैसा रहेगा?” कहते हुए मैं भी चुप्पी लगा गया। जब मेरी श्रीमती जी एपिसोड पढ़ रहीं थीं तब मेरी निग़ाह उनके चेहरे पर टिकी हुई थी। मैं देख रहा था कि वह कभी मुस्कुरातीं तो कभी गहन चिंतन में डूबी हुई नजर आतीं। यह सब देखकर इतना आभास तो मुझे हो गया कि एपिसोड ठीक से बन गया है लेकिन जज साहब का अंतिम फ़ैसला आना अभी बाकी था इसलिये मैं टकटकी लगाए हुए उनकी ओर देखता रहा। जब उन्होंने पूरा एपिसोड पढ़ लिया तब वह बोलीं, “भाषा में लोच तो है वही पुराना वाला आशिक़ी का सुरीला सुर भी है, ठीक है मेरे हिसाब से चलेगा। चलने दीजिये, करिये पोस्ट, मज़ेदार रहेगा। बस एक ही चीज का ध्यान रखिएगा कि आप इस धारावाहिक की भाषा भी ठीक ‘घुमक्कड़’ की तरह एक आम आदमी की आम भाषा ही रखियेगा। मैं आपके स्वभाव को अच्छी तरह से जानती हूँ कि जहाँ आपको लोगों ने हवा दी नहीं कि आप फिर सातंवे आसमान पर ही नज़र आते हैं”



“नहीं मैं तुम्हारी इस बात का पूरा-पूरा ख़्याल रखूँगा, तुम किसी भी तरह की चिंता न करो।… तो ठीक है न कर दूँ पोस्ट”



“मैं सोच रही थी क्यों न आप अपने धारावाहिक को शाम के समय पोस्ट करें। सभी लोग कहानी किस्से शाम के वक़्त ही पढ़ना पसंद करते हैं”



“मैं तुम्हारी बात समझ रहा हूँ लेकिन यह बताओ हमारी मित्र मंडली में सभी तो बुजुर्गवार और रिटायर्ड लोग हैं जिनके पास कोई काम धाम तो है नहीं इसलिये मेरे विचार में सुबह का वक़्त ही सही रहेगा। दिन भर में लोग अपनी प्रतिक्रिया और टिप्पड़ियां देंगे उनको देखते पढ़ते हमारा भी वक़्त कट जाया करेगा नहीं तो भला दिन भर हम क्या करेंगे”



श्रीमती जी ने शरारत भरी निगाहों से एक बार मेरी ओर देखा और बोलीं, “जब से ये मुआ फेसबुक मार्क ज़ुकेरबर्ग ने क्या शुरू किया है लोगों की क्या कहूँ अब तो अपनों ने भी हमसे मुँह मोड़ लिया है”



“क्या कह रही हो अब तो दिन भर तुम्हारी नज़रों के सामने बैठे रहते हैं जब नौकरी पर जाया करते थे तब तुम कहतीं थीं कि नौकरी पर तो जा रहे हो देखना किसी छोकरी को साथ लिये न चले आना। हम तो तब भी अकेले ही नौकरी पर जाते थे और शाम होने से पहले ही अकेले घर लौट आते थे” मेरी बात सुनकर श्रीमती जी उठ कर मेरे पास आईं और मुझे अपने आगोश में भरते हुए कहा, “ये बात तो है कि आपने कभी भी हमें शिकायत का मौका नहीं दिया बाबजूद इसके कि आप ताज़िंदगी किलर बॉय बने रहे” इतना कहकर उन्होंने मेरे गालों को अपनी नर्म हथेलियों से छुआ और प्यार भरी नजरों से देखते हुए कहा, “पर जब से आपने ये रोमांटिक कहानी किस्सों को लिखना क्या शुरू किया है देखती हूँ कि कई जवान लडकियों ने आपको फेसबुक पर अपना फ्रेंड बना लिया है”



श्रीमती जी को अपनी बाहों में लेते हुए मैंने उनसे कहा, “मैं तो पहले भी लव गुरु था और आज भी लव गुरु हूँ”



“हटो भी छोड़ो ये बेकार की बातें मुझे नाश्ते की तैयारी जो करनी है जाइये अपना धारावाहिक पोस्ट करें”



“ठीक तो है न”



“हाँ भाई कहा न ठीक है दो एक जगह स्पेलिंग मिस्टेक्स थीं वो मैंने सही कर दीं हैं”



“धन्यवाद” कहते हुए उठा और अपना वाईफाई मॉडम ऑन किया और नेट चालू होने का इंतज़ार करने लगा….

कल सुबह तक तो इंतज़ार कर ही लेंगे न ‘मामू सा..’ के आने तक।


10-01-2017
एपिसोड 2
अभिनव की मुलाक़ात सोफ़िया से हांग कांग के विक्टोरिया पीक के एक रेस्त्रां में उस वक़्त हुई जब कि वे एक दूसरे के सामने अचानक ही आ गए। हुआ यह कि अभिनव तो वहाँ पहले ही से बैठा हुआ कॉफ़ी पी रहा था जब कि सोफ़िया ‘मैडम तुसाद म्यूजियम’ देखकर वहाँ आकर अभी-अभी बैठी थी। उसने रेस्त्रां के काउंटर पर जाकर कॉफ़ी और सैंडविच का बिल पे किया और शीशे की खिड़की के पास आकर इस तरह बैठ गई कि उसकी निग़ाह के ठीक सामने विक्टोरिया हारबर का दिलकश नज़ारा साफ दिखाई पड़े। उसने अपने बैग से एक पुस्तक निकाली जो भारत के विभिन्न टूरिस्ट स्पॉट्स के ऊपर थी जो उसने पास ही के बुक स्टाल से कुछ देर पहले ही खरीदी थी। जब वह उस पुस्तक के पन्ने पलट रही थी उसी समय अभिनव की निगाह उस पर पड़ी। पहली ही नज़र में सोफ़िया जो कि हल्के आसमानी रंग की जीन्स, गहरे नीले रंग का लूज़र टॉप, हाई हील्स शूज, आँखों पर धूप का चश्मा लगाए हुए क़िताब पढ़ने की कोशिश में पन्ने पलट रही थी।
सोफ़िया शायद कुछ जानकारी भारत के बारे में करना चाह रही थी कि उसके लिये कौन सी जगह उपयुक्त होगी जहाँ से वह अपना भारत का दौरा शुरू करे। सोफ़िया का यही रूप अभिनव की निगाहों में बस गया। अभिनव बस एक टक हो सोफ़िया को देखे जा रहा था और उसके बारे में मन ही मन अंदाज़ा लगा रहा था कि सोफ़िया भारत के टूरिज़म के बारे में किताब पढ़ रही है तो आख़िर क्यों? इन्ही प्रश्नों का उत्तर ढूँढने की तलाश में अभिनव का दिमाग़ चल रहा था कि सोफ़िया ने एक नज़र अभिनव की ओर देखा। जब कोई भारत के बारे में सोच रहा हो और ठीक उसके सामने उस समय कोई भारतीय पड़ जाए तो मुँह से अचानक ‘हाइ’ निकल जाना एक बड़ी स्वाभाविक प्रतिक्रिया होती है। बस इस एक ‘हाइ’ से एक नए रिश्ते की शुरुआत क्या हुई कि कुछ ही देर में अभिनव अपनी कॉफ़ी ले सोफ़िया की टेबल पर आमने सामने बैठते हुए बोला, “हाइ मैं अभिनव, अभिनव राठौर”
“हाइ, मैं सोफ़िया, न्यूयॉर्क से”
इसके बाद तो उन दोनों के बीच इस तरह बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। बातचीत के दौरान ही अभिनव को पता लगा कि सोफ़िया का इरादा हांग कांग घूमने के बाद भारत जाने का है। अभिनव ने भी अपने बारे में बताते हुए सोफ़िया को बताया कि उसके एक मामू हनुमंत सिंह सिसोदिया बरसों पहले अपने दो बच्चों को साथ लेकर यूएस उस समय चले गए थे जब कि उनकी पत्नी का देहांत हुए कुछ ही दिन हुए थे और उनके बड़े भाई साहब ने उन्हें फ़्लोरिडा आने के लिये कहा जिससे कि उनके छोटे बेटे का इलाज़ वहाँ आराम से हो सके। अभिनव ने सोफ़िया को यह भी बताया कि वह भी एक बार अपने मामू के साथ फ़्लोरिडा जा चुका है।
सोफ़िया ने जब अभिनव से यह पूछा कि उसके मामू फ़्लोरिडा में करते क्या हैं तो उसने जवाब में कहा, “मेरे मामू हनुमंत बहुत ही रंगीले मिज़ाज़ के इंसान हैं। वह फ़्लोरिडा में रह कर ज्यूलरी का काम करते हैं और अधिकतर यूएस में रह रहे भारतीयों की ज्यूलरी की माँग को पूरा करने के सिलसिले में भारत आया जाया करते हैं”
सोफ़िया ने अभिनव के फ़्लोरिडा कनेक्शन के बारे में जानकर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए कहा, “मुझे यह जानकर बहुत ख़ुशी हुई कि तुम्हारे रिश्तेदार फ़्लोरिडा में है”
अपने मामू के परिवार के बारे में बताते हुए अभिनव ने सोफ़िया को बताया, “उनका बड़ा बेटा धर्मेंद्र फ़्लोरिडा में ही एक जाने माने हॉस्पिटल में ऑर्थो सर्जन है जब कि उनका छोटा बेटा नागेंद्र लीगल प्रोफेशन में है। रिश्ते में धर्मेंद्र और नागेंद्र दोनों ही उसके ममेरे भाई लगते हैं”
अभिनव ने अपने मामू के रंगीन मिज़ाज़ होने के पक्ष में बताते हुए सोफ़िया को यह भी बताया कि उसके मामू ने फ़्लोरिडा में रहते हुए एक अमेरिकन महिला जिनका नाम लिंडा है उनके साथ शादी की और वे सभी एक साथ मिलकर फ़्लोरिडा में ही रहते हैं। साल के दो तीन महीने वे भारत में आकर बिताते हैं, उनका सैनिक फार्म दिल्ली में एक बहुत बड़ा घर है और जब वह दिल्ली आते हैं तो वहीं रहते हैं।
अभिनव की बातों से प्रभावित हो कर सोफ़िया ने भी अपने ख़ुद के बारे में बताते हुए अभिनव से कहा, “उसके पिता जॉनसन न्यूयॉर्क के जाने माने प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञ हैं और साथ ही साथ उनका अपना व्यापार भी है। वह न्यूयॉर्क में ही मेरी माँ नैंसी के साथ रहते हैं और मैं उनकी एक मात्र संतान हूँ”
“सोफ़िया यह जानकर बहुत अच्छा लगा कि तुम एक प्रतिष्ठित परिवार से ताल्लुक़ रखती हो लेकिन यह तो बताओ कि यहाँ होंग कोंग में क्या कर रही हो”
“मैं घूमती रहती हूँ और मुझे लिखने पढ़ने का शौक़ है। मेरी अभी तक कई पुस्तकें बाजार में आ चुकी हैं और उनमें से कुछ तो अमेरिकन यूनिवर्सिटीज के स्टूडेंट्स के रिसर्च का सब्जेक्ट भी बन चुकीं हैं”
सोफ़िया ने जब अपने बारे में यह सब बताया तो अभिनव के मुँह से अचानक निकल पड़ा, “वाओ इतनी कम उम्र में इतना नामी काम मुझे विश्वास नहीं हो रहा है”
“तुम्हारे पास विश्वास न करने के लिये कोई प्रूफ़ है अगर नहीं तो मेरी बात का विश्वास करो”
“मुझे इसलिये विश्वास नहीं हो रहा कि तुम इतनी छोटी सी उम्र में इतना बड़ा काम कर चुकी हो”
“तुम्हें क्या लगता है कि मेरी उम्र क्या है?”
“यही पच्चीस छब्बीस के आसपास”
“इतनी कम उम्र आंकने के लिये धन्यवाद पर मैं इतनी छोटी भी नहीं हूँ जितना कि तुम कह रहे हो”
“मेरा अनुमान क्या सही नहीं है”
“नहीं ग़लत है भी तो वह कारण नहीं हो सकता है इस तरह एक महिला से उसकी उम्र जानने का” इतना कहकर सोफ़िया दिल खोल कर हँसी।
“तुम ना भी बताओ लेकिन मैं तुम्हें अपनी उम्र बता देता हूँ। मेरी उम्र है बस अड़तीस साल”
“मेरी उम्र है कुल चौंतीस साल। तुमसे ठीक चार साल छोटी”
“देखने में तो तुम बस यही पच्चीस छब्बीस की ही लगती हो”
“कम उम्र बता कर तुम मुझ पर डोरे तो नहीं डाल रहे हो”
“क्या मैं तुम्हें प्यार कर सकता हूँ”
“हाँ अगर पहले किसी से नहीं किया है तो…” मुस्कुराते हुए सोफ़िया ने अभिनव की आँखों में झाँकते हुए कहा।
क्रमशः
11-01-2018
एपीसोड़ 3
कल के एपिसोड के प्रारूप को डिनर टाइम पर पढ़ाते हुए मैंने श्रीमती जी से पूछा, “अब बताओ मैं सोफ़िया से क्या कहूँ?”
मेरा प्रश्न सुनकर पल भर के लिये वह सोचतीं रहीं कि वह मेरे प्रश्न का क्या उत्तर दें फिर अचानक उनके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कुराहट की लकीर सी बन गई और बोल पड़ीं, “क्या उत्तर दोगे? बोलो न हाँ पहले किसी को कभी प्यार नहीं किया है”
“लेकिन यह तो सरासर झूठ बोलने जैसा होगा”
“मेरी नहीं मानते हो तो एक बार बोल कर तो देखो कि हाँ तुम कमल नसीम को प्यार करते थे”
“मुझे भी यही ठीक लगता है कि सच बोलना ही सही रहेगा”
“अगर सच बोल देंगें तो जान लो कि आपका धारावाहिक शुरू होने के पहले ही समाप्त हो गया”
“बताओ तो मैं फिर क्या कहूँ”
“यही कहो न यार कि मुझे अभी तक तो कोई ऐसा मिला ही नहीं जिसको देखते ही मोहब्बत हो जाए। यह भी कहो कि आपने जब से उसे देखा है आप उसके रँग रूप के दीवाने हो गए हो”
“यह तो बहुत ही घिसा पिटा डायलाग है इसको बोलने में मज़ा नहीं आएगा”
“मज़ा लेना है तो उससे कुछ ऐसा ही बोलो जो उसके दिल में तुम्हारे लिये अपनी जगह बना ले”
“सोचता हूँ”
“सोचो-सोचो पर बोलने के पहले मुझे एक बार सुना देना, एक बात और जब सोफ़िया के सामने जाना तो कपड़े वग़ैरह कायदे के होने चाहिए। ये लपूझन्ना से कन कौआ बन कर न चले जाना हर कोई रमा सिंह नहीं होता है कि चाहे कुछ भी पहन कर चले आओ तुम्हारे सभी रूप में तुम जैसे हो उसे अच्छे लगो, धूप का एक बढ़िया सा चश्मा ख़रीद लो बिल्कुल लल्लनटॉप बन कर एक हैंडसम युवक के रूप में जाना”
“ठीक है बाबा ख़रीद लूँगा, तुम चितां नहीं करो ठीक देवानंद बन कर जाऊँगा जो अपनो पहली ही मुलाक़त में सोफ़िया के दिल पर राज करने लगे”
जब श्रीमती जी ने यह कहा तो मुझे लगा कि औरत चाहे जितनी भी बोल्ड बनने की कोशिश करे पर उसके दिल में एक डर हमेशा समाया रहता है कि वो कहीं मुझे छोड़ न दें या मुझसे विमुख न हो जाएं। लेकिन हमारी श्रीमती जी न जाने किस मिट्टी की बनीं थीं कि ख़ुद बोल देतीं थीं कि अच्छे-अच्छे कपड़े पहन कर जाना। उनके इस अंदाज ने ही उन्होंने मेरे हृदय में वह स्थान बना लिया था जहाँ कोई दूसरा बैठ ही नहीं सकता था। मेरे मन में यही सब चल रहा था जब अचानक श्रीमती जी खुद से बोल उठीं, “एक काम करो तुम कुछ भी करके मेरे पास ले आओ तो मैं उसे अच्छे से समझा दूँगी कि सिंह साहब अपनी जवानी में कितने रंगीन मिज़ाज़ रहे हैं”
“मुझे भी यही ठीक लगता है। चलता हूँ मैं अब कुछ दिन सोफ़िया के साथ ही रहूँगा तुम किसी तरह की चिंता न करना और न मुझे फोन करना”
श्रीमती जी उठकर मेरे पास आईं और मेरी बलैयां लीं और बोलीं, “लो जाओ भी अब तुम्हारा कोई लाख बुरा चाहे भी तो भी वह बुरा नहीं कर सकता है मेरी दुआएं हमेशा तुम्हारे साथ हैं और यह एक कवच का काम करेंगी जैसे कि कुरुक्षेत्र में अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण द्वारा हुआ कवच”
क्रमशः

एपिसोड 4
कहने को तो मैं अपनी पत्नी को घर छोड़कर आ गया लेकिन मेरा दिल उन्हीं की कहीं हुईं एक-एक बात पर था जो उन्होंने मेरी बलैयां लेते हुए कहीं थीं। हांग कांग के विक्टोरिया पीक टावर ल के रेस्त्रां में आमने सामने बैठ कर मुझे अब सोफ़िया के उस प्रश्न का उत्तर देना था जो उसने मुझसे पिछले दिन पूछा था।
“..झूठ नहीं बोलूँगा क्योंकि प्यार मोहब्बत में झूठ का सहारा लेने वाला कभी अपनी महबूबा का नहीं हो सकता”
“तुम क्या कहना चाह रहे हो मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा” सोफ़िया ने मेरी आँखों में आँखें डाल कर देखते हुए कहा।
“मैं केवल इतना कहना चाह रहा हूँ कि प्यार में दोनों को ईमानदार होना चाहिए”
“इसका मतलब क्या मैं यह लगाऊँ कि तुम मुझ पर शक़ कर रहे हो”
सोफ़िया के इस अचानक व्यवहार से मुझे लगा कि बेटा तेरी कहानी बनने से पहले ही बिखरने वाली है लिहाज़ा गाड़ी को दोबारा से पटरी पर लाने की कोशिश में सोफ़िया के सामने मैंने अपना दिल खोलते हुए वह सब बता दिया जिसकी प्रैक्टिस मेरी श्रीमती जी ने ख़ूब ठोंक-ठोंक कर करा दी थी। मैंने भी सोफ़िया की आँखों की गहराई में गोता लगाने के बाद कहा, “माइ डिअर सोफ़िया मैं तुम्हारे ऊपर कोई शक़ नहीं कर रहा हूँ बल्कि मैं तुमसे पूरी ईमानदारी से बात कर रहा हूँ। दरअसल मैं तुम्हें यह बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि मुझे मेरे साथ बचपन से पढ़ने वाली एक लड़की जिसका नाम अनामिका था बहुत प्यार करती थी लेकिन न जाने क्यों मैं उसे कभी भी अपनी ओर से प्यार न कर सका”
“यू मीन चाइल्डहुड क्रश”
“एस माइ डिअर चाइल्डहुड क्रश। बट आई कॉल इट लव ऑफ टू अडोलसेंट्स”
“ओह दैट्स नॉट वरीइंग मी पर मुझे उस लड़की के बारे में कुछ और बताओ मैं उसके बारे में हर वो बात जानने में इंटरेस्टेड हूँ जो वह तुम्हारे साथ बचपन के दिनों में करती थी”
“यह एक लंबी दास्ताँ है उसे अगर मैं बताने बैठ जाऊँगा तो घंटों लग जायेंगे”
सोफ़िया ने जल्दी से अपना बैग उठाया, किताब उसके अंदर रखी और खड़े होते हुए बोली, “चलो तुम मेरे साथ मेरे रूम पर चलो हम लोग वहीं बैठकर खुल कर बात करेंगे”
मेरे पास अब कोई रास्ता ही नहीं था सिवाय सोफ़िया के साथ चलने के अलावा…सोफ़िया ने मेरा हाथ पकड़ा और आगे-आगे वह पीछे-पीछे मैं। पीक टावर के रेस्त्रां से बाहर आते ही उसने अपना कैमरा पास खड़ी एक चीनी लड़की को यह कहते दिया कि क्या वह हम लोगों की कुछ फोटोज वह खींच देगी। उसने जब कैमरा हम लोगों की तरफ़ फोकस किया तो बोली, “गेट अ बिट क्लोज़र प्लीज”
जब उस चीनी लड़की ने हमारे कुछ फ़ोटोज़ खींच लिए तो उसने मुझसे कहा, “बी अ मैन आई से, किस हर आई वाना यू गिव अ लवली पोज़ बोथ ऑफ यू मेक अ नाइस कपल”
यह सुनते ही सोफ़िया ने मेरा चेहरा अपनी ओर किया और मुझे अपनी ओर करते हुए अपने होंठ मेरे होठों पर रख दिये। बात इतने पर ही छूटती तो भी ग़नीमत थी मैं तो उस वक़्त शर्म से लाल हो गया जब बात लिप लॉक से आगे बढ़कर टंग लॉक पर पहुँच गई। करता क्या न करता अपनी कोई नाक थोड़े ही काटनी थी आफ्टर आल हिंदुस्तान की इज़्ज़त का जो सवाल था। उसके बाद तो मैंने एक से बढ़ कर एक पोज़ दिए और कुछ ही मिनटों में इस प्रकार हम दोनों के कई यादगार फ़ोटोज़ खिंच गए। जब हम वहाँ से पीक ट्राम स्टेशन की ओर जाने लगे तो सोफ़िया बोली, “अभिनव तुमने जिस तरह किसिंग शॉट्स दिए हैं उससे लगता तो नहीं है कि तुम लव मेकिंग में अंजान हो”
“सोफ़िया, आई डोंट अंडरस्टैंड यू व्हाट मेक्स यू गैदर दैट वाइल्ड इम्प्रैशन?”
“अभिनव तुम तो नाराज़ हो गए”
“मैं नाराज़, मैं नाराज़ कभी भी नहीं होता। चलो चलें”
हम लोग एक दूसरे का हाथ पकड़े हुए पीक ट्राम स्टेशन तक आये। मैं टिकट लेने के लिए क़यू में खड़ा हो गया और हँसते हुए सोफ़िया से बोला, “हम चीनियों और हिंदुस्तानियों को क़यू में लगने की आदत है हम दोनो ही दुनिया के सबसे पॉपुल्स देशों के नागरिक जो हैं”
सोफ़िया ने कोई टीका टिप्पणी तो नहीं की लेकिन उसकी मुस्कान सब कुछ गई कि हमारे और अमरीका के बीच अभी कितना अंतर है। कुछ देर तो लगी पर आखिर में मुझे टिकट मिल ही गई और हम दोनों ट्राम की केबिन में आकर एक दूसरे से सट कर बैठ गए। रास्ते भर सोफ़िया मुझसे बच्चों की तरह व्यवहार कहती रही कि इधर देखो तो कभी उधर देखो। आसपास के दृश्यों को देखने का आनंद ही दूसरा था। बीच रास्ते में जब हांग कांग का हारबर का व्यू दिख जाता तो उसकी ओर मेरा मुँह अपने हाथ से करके कहती, “उधर देखो मेरे चेहरे में क्या देख रहे हो”
मुझे ताज़्ज़ुब तो उस वक़्त हुआ जब सोफ़िया ने मेरी आँखों में झाँकते हुए कहा, “शाम को आज हम कुछ समय हारबर पर बिताएंगे, बहुत मज़ा आएगा। मेरे पास सोफ़िया के सामने सरेंडर करने के अलावा कोई और रास्ता नहीं था…..सोफ़िया जो कुछ कई दिनों से हांग कांग में थी यहाँ की हर स्ट्रीट और मुख्य जगहों के बारे में उसे पूरी जानकारी थी इसलिये उसने मुझसे कहा, “जब तुम एक नई जगह पर हो तो सबसे अच्छा यही होता है कि तुम वहाँ की सड़कों पर पैदल चलो। तब ही तुम वहाँ की हर एक उस बात के बारे में जान पाओगे कि बाहर के लोग वहाँ क्यों घूमने आते हैं? और जानते हो यही सबसे बेहतर रास्ता है जो मैंने पिछले दस पंद्रह दिनों से यहाँ की खूबसूरती को देखने और पहचानने के लिए”
जब सोफ़िया मेरा हाथ अपने हाथ में ले सड़क के इस ओर से दूसरी ओर ले जाती और कहती कि इधर देखो या उधर देखो, देखो-देखो यह हांग कांग चाइना बैंक की कितनी आलीशान बिल्ड़िंग है तो मुझे लगता कि उसके अंदर का मातृत्व जग पड़ा है और वह वो सब बातें मुझे ठीक उसी तरह बताने का प्रयास कर रही है जैसे कि एक माँ अपने बच्चे को कोई नई जगह दिखाने ले जाती है। सोफ़िया मुझे हांग कांग शहर की गली गलियारों, बड़े-बड़े आलीशान भवनों के सामने से गुजरते हुए वहाँ के लोगों के बारे में बताते हुए आख़िर अपने फोर सीजन नामक होटल में ले आई जो फाइनेंस स्ट्रीट विक्टोरिया हारबर कर बहुत करीब था। होटल रूम में अंदर जाते हुए उसने मुझसे कहा, “अभिनव तुम जानते हो मैं जब कभी बाहर होती हूँ तो अपना होटल मैं उस जगह लेती हूँ जहाँ भीड़ भाड़ हो खाने पीने के लिये इफ़रात जगह हों जहाँ मैं वहाँ के लोकल खानों का टेस्ट ले सकूँ उनके एरोमा को महसूस कर सकूँ और सबसे अधिक जो इम्पोर्टेन्ट बात है वह कि वहाँ के लोगों से वहाँ के नई उम्र के लड़के लड़कियों से बातें कर सकूँ जिससे मुझे पता लगे कि इस शहर की चकाचौंध करने वाली ज़िंदगी के पीछे का राज़ क्या है। वास्तव में लोग ख़ुश हैं या ख़ुशी का नाटक कर रहे हैं”
मैं एक अच्छे बच्चे की तरह वह सब सुन रहा था जैसे कि उसकी माँ उसको बता रही थी। रूम में आते ही सोफ़िया ने बेड के ऊपर अपना हैंड बैग फैंका और अपने बालों को खोलते हुए मुझसे बोली, “अभिनव बैठो या अब बेड पर लेटो यह तुम्हारी मर्ज़ी है यहाँ सोफिस्टिक्टेड लाइफ के रूल नहीं लागू होते हैं”
मैं रूम की शीशे की खिड़की की तरफ पड़ी आराम कुर्सी पर बैठ गया और अपनी टाँगे आराम से सीधी करके अँगड़ाई लेने लगा जिससे सुबह से चलते-चलते जो थकान आ गई थी उससे कुछ राहत मिले। जब मैं इस तरह रिलैक्स हो रहा था इसी बीच सोफ़िया रेस्ट रूम से फ्रेश होकर आ गई और ठीक मेरे सामने वाली दूसरी आराम कुर्सी पर बैठते हुए बोली, “अभिनव, मैं तुम्हें बताऊँ कि घर से बाहर रहते समय मेरी सोच बिल्कुल अलग होती है और मैं जब घर पर होती हूँ तो एकदम अलग। क्या तुम जानना चाहोगे कि हांग कांग में होटल सिलेक्शन के क्रयायटेरिया के ठीक विपरीत न्यूयॉर्क में रहने के लिये मैनें तुम जानते हो अपने लिये मैंने घर कहाँ लिया है”
बड़े ही शान्त मन से मैंने उसकी बात सुनने के बाद कहा, “सोफ़िया अभी तक तुमने मुझे बताया ही कहाँ जब बताओगी तभी तो मैं जानूँगा कि न्यूयॉर्क में तुम कहाँ रहती हो”
“यह तो तुमने ठीक कहा जब तक मैं तुम्हें अपने बारे में कुछ बताऊँगी ही नहीं तो तुम मेरे बारे कुछ जानोगे कैसे” यह कहकर सोफ़िया मेरे और करीब आ गई। मुझे लगा कि अब कहीं कुछ और न हो...
क्रमशः
एपिसोड 5
अपनी बात जारी रखते सोफ़िया ने कहा, “तो मैं तुम्हें अपने न्यूयार्क वाले घर के बारे में बता रही थी कि मेरा घर शहर से बिल्कुल बाहर है एक गाँव के पास चूँकि मैं बेसिकली बहुत ही शांतप्रिय ढंग से और अपने अकेलेपन के साथ रहना करती हूँ”
मैं सोफ़िया की बात सुनकर यही सोच रहा था कि एक इंसान अपनी असल ज़िन्दगी में कुछ और एवं एक बाहर वाले को दिखने में बिल्कुल अलग होता है। सोफ़िया ने अभी तक जितना भी अपने बारे में मुझे बताया उससे तो मुझे यही लगा कि वह एक बहुत ही खुशमिज़ाज़ और अपनेआप में ख़ुश रहने वाली एक खूबसूरत इंसान है। मैं जब यह सब उसके बारे में सोच रहा था कि सोफ़िया ने अभी-अभी कुछ देर पहले कहा कि उसका घर न्यूयॉर्क के बाहर एक गाँव में है तो मुझे लगा कि वह वहाँ अपने माता पिता से दूर अकेले ही रहती होगी क्योंकि मैंने अपने यूएस दौरे में और उसके पहले यूरोप के अन्य देशों में भी यही महसूस किया था कि एक उम्र के बाद बच्चे अपने माता पिता से अलग ही रहना पसंद करते हैं। मुझे इस तरह सोच में डूबे हुए देख कर सोफ़िया बोली, “क्या सोच रहे हो?”
मैंने अपने छोटे से जवाब में बस यही कहा, “कुछ भी तो नहीं। मैं बस यही सोच रहा था कि तुम शहर से इतनी दूर अकेले आखिर करती क्या होगी। तुम्हें इस तरह की ज़िंदगी से ऊब नहीं होती होगी”
“ऊब यह तो मैं आज पहली बार सुन रही हूँ कि कोई यह कहे कि मैं एक उबाऊ भरी जिंदगी जी रही हूँ”
मैंने कहने को तो कह दिया पर मुझे लगा कि शायद मैंने अपनी बात ग़लत मौके पर कह दी इसलिए सफाई देते हुए मैंने सोफ़िया से कहा, “मैंने यह सोचकर कहा कि जिस तरह का तुम्हारी लाइफ स्टाइल है उसमें अकेलापन मुझे फिट होते समझ नहीं आ रहा है”
“मेरी लाइफ स्टाइल। मेरी लाइफ स्टाइल के बारे में अभी अभिनव तुम जानते ही क्या हो”
“बस इतना कि तुम लिखती पढ़ती हो और एक आज़ाद ज़िन्दगी जीती हो। यही तो बताया था तुमने जब हम रेस्त्रां में मिले थे”
“हाँ बताया तो मैंने तुम्हें इतना ही था। उसके आगे बताने के लिये ही तो मैं तुम्हें यहाँ पकड़ कर अपने साथ ले आई हूँ। मैं यह महसूस करती हूँ कि जब मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे देश चलने की बात कर रहीं हूँ तो यह ज़रूरी है कि तुम मेरे बारे में सब कुछ जानो”
मैं अभी तक आराम की मुद्रा में बैठा सोफ़िया की बात सुन रहा था आराम की स्थिति से बदलते हुए मैं कुछ सीधा हुआ अपने पाँव सिकोड़े और सोफ़िया की बात ध्यान से सुनने के लिये तैयार होते हुए बोला, “मुझे ख़ुशी होगी तुम्हारे बारे में सब कुछ जानकर जिससे कि मैं तुम्हें अपने साथ वहाँ ले चलूँ जहाँ तुम्हारा मन लगे”
सोफ़िया ने अँगड़ाई ली और अपने शरीर में आये हुए तनाव को कम करते हुए बोली, “मुझे एकांत पसंद है चूँकि मुझे लिखना पढ़ना पड़ता है। आखिर ज़िंदगी चलाने के लिए कुछ तो करना ही पड़ता है। मैं जो पुस्तकें, आर्टिकल लिखतीं हूँ उसी से तो मेरा खर्चा पानी चलता है। मैं अपने माता पिता पर बोझ नहीं बनना चाहती हूँ यह जानते हुए भी कि मैं उनकी अकेली पुत्री हूँ और उनकी धन दौलत एक न एक दिन मुझे ही मिलने वाली है। लिखने के लिये मेरे पास सब्जेक्ट होना चाहिये और सब्जेक्ट मिलता है जब मैं लोगों से इंटरैक्ट करती हूँ जैसे कि मैं इस समय तुम्हारे साथ कर रही हूँ या जब कि मैं कोई नई जगह एक्स्प्लोर कर रही हुई होती हूँ। इस कारण मेरे लिये इंसान और एक नया परिवेश दोनों ही महत्वपूर्ण हैं”
“यह बात तो ठीक ही लगती है कि ज़िन्दगी का कुछ मक़सद तो होना ही चाहिए नहीं तो इंसान जियेगा किसकी ख़ातिर। जैसे तुम कोई काम करती हो ठीक उसी तरह मैं भी ज़िंदगी जीने के लिए काम करता हूँ। उसके बग़ैर तो जीवन का कोई मतलब ही नहीं”
सोफ़िया ने मेरी ओर देखते हुए कहा, “अपनी बात सुनाते-सुनाते मैं तो यह भूल ही गई कि मुझे तुम्हारी बातें भी सुननी हैं एक दूसरे को बेहतर ढंग से जानने के लिये और खासतौर पर उस लड़की के बारे में जिसका नाम क्या बताया था अगर मुझे ठीक से याद आ रहा है तो शायद अनामिका। मैं ठीक हूँ न मुझसे उसका नाम लेने में कोई गलती तो नहीं हुई है”
इससे पहले कि सोफ़िया मुझसे मेरे बारे में और विशेषकर अनामिका के बारे में कुछ और जाने मैंने यह निश्चय किया कि मैं पहले उसकी कहानी सुन लूँ उसके बाद ही यह निर्णय करूँ कि मुझे अपने बारे में कुछ बताना है भी या नहीं। इस विचार के मन में आते ही मैंने सोफ़िया से कहा, “नहीं तुमसे कोई ग़लती नहीं हुई है तुमने उसके नाम का उच्चारण बिल्कुल सही ही किया उसका नाम अनामिका ही था। क्या तुम यह ठीक नहीं समझती कि पहले मैं तुम्हारे बारे में जान लूँ उसके बाद मैं अपने बारे में बताऊँ”
सोफ़िया कुछ पल के लिये चुप हो गई लेकिन कुछ देर बाद उसने कहा, “तुम मेरे मेहमान हो इसके लिए तुम्हें यह अख़्तियार है कि पहले तुम मेरे बारे में सब कुछ जानो। मेरा क्या है मैं तुम्हारे बारे में जानकारी बाद में हासिल कर लूँगी। फिर अगर मैं दूसरे ढंग से सोचूँ तो मुझे लगता है कि हम दोनों में कोई एक ही अपनी बात करता रहेगा तो यह दूसरे के लिये बोझ न हो जाये इसलिये कुछ तुम कहो कुछ मैं कहूँ यही बेहतर होगा”
मैं अपनी बात कहाँ से शुरू करूँ जिससे कि सोफ़िया को लगे कि मैं भी कुछ हूँ मैं यही सोचते हुए बोला,”……


एपिसोड 6
….दरसअल मैं और अनामिका जिस कॉलोनी में रहते थे वह हम लोगों के माता पिता की कर्मस्थली भी थी। एक छोटे से शहर की एक खास इंडस्ट्री की कैप्टिव कॉलोनी जहाँ सब कुछ था बच्चों के पढ़ने के लिये स्कूल, प्ले ग्राउंड, हॉस्पिटल मसलन वह सब कुछ जो ज़िन्दगी जीने के लिए ज़रूरी होता है। अनामिका उम्र के लिहाज से मुझ कुछ बड़ी ही रही होगी जब मेरे बाबू सा, आई मीन मेरे फ़ादर जिन्हें हम प्यार से बाबू सा कहकर पुकारते थे ने एक अपने कारिंदा को भेजकर मेरा एडमिशन भी उसी स्कूल में करा दिया जहाँ वह पढ़ा करती थी। उसका घर और मेरा घर अड़ोस पड़ोस में ही था इसलिये मुझसे सीनियर होने के नाते वह मुझे अपने साथ ही स्कूल ले जाती और स्कूल में भी साथ ही रहती। यह सिलसिला केजी क्लास से शरू हुआ और इंटरमीडिएट क्लास तक चला। हमारे यहाँ का इंटरमीडिएट शायद तुम्हारे यहाँ के प्रेप के बराबर होता होगा”
“हाँ कुछ ऐसा ही समझो” सोफ़िया बोली।
“तुम समझ सकती हो जब कोई तुम्हारे साथ इतने दिनों तक रहे तो एक दूसरे के प्रति प्यार की भावना उमड़ना एक साधारण प्रतिक्रिया है। इस कारण वह मुझे कुछ अधिक ही प्यार करती थी कब कि मैं उसे अपनी सीनियर स्टूडेंट समझ कर ही बातचीत किया करता था। बचपन से जब हम जवानी में पदार्पण करते हैं तो लोगों के शौक भी अलग-अलग होते जाते हैं। वह जहाँ एक साधारण लड़की थी वहीं मैं कुछ हद तक असाधारण वयक्तित्व का धनी हुआ करता था। मेरा समय अधिकतर स्कूल में बीतता या फिर स्पोर्टिंग ग्राउंड में। जब कि वह एक बार घर गई नहीं कि उसे अपनी माँ के काम में हाथ बंटाना हुआ करता था इस कारण भी मैं उससे दूर ही दूर रहता था। धीरे-धीरे करके हम लोगों के बीच की दूरियाँ और बढ़ती चलीं गईं। मैं अपनी पढ़ाई पूरी करने के लिये दिल्ली चला आया और उसकी उसके माता पिता ने एक दिन उसकी शादी बड़ी धूमधाम से करनाल, हरयाणा स्टेट का एक छोटा से शहर के रहने वाले एक शर्मा टीचर से कर दी”
“तुमको फिर यह कैसे पता लगा कि वह तुमसे प्यार करती थी”
“हुआ यह कि वह जब एक बार अपनी पति के यहाँ से अपने माता पिता के पास आई हुई थी जब वह मुझसे मिली तो कहने लगी कि तुम अगर मेरी शादी वाले दिन घर पर होते तो मैं तुम्हारे साथ भाग कर शादी कर लेती कम से कम उस बुड्ढ़े से तो कभी नहीं जिससे मुझे मज़बूरी में उस दिन शादी करनी पड़ी”
“ओएमजी”
“क्या हुआ”
“हिंदुस्तान में शादियां दो लोगों के बीच में क्या ऐसे ही हुआ करतीं हैं”
“अब उतनी तो नहीं पर बहुतादायत में ये अभी भी ऐसे ही होतीं हैं बहुत कम ही लोग ऐसे होते हैं जो आपस में प्यार करते हैं वे आपस में शादी कर पाने में सफल होते हैं”
“ओह”
“फिर तुमने शादी की या नहीं?”
सोफ़िया को उत्तर देने के पहले मैंने सोचा कि आगे के लिये बेटा अभिनव तुम क्या कहो जिससे कि सोफ़िया का दिल भी मुझसे लगा रहे। यहाँ तक तो मैं अपनी गाड़ी बड़ी बढ़िया ढंग से हाँक लाया था परंतु अब यह समझ नहीं आ रहा था कि अब इस कहानी को आगे कैसे बढाऊँ। उसी समय मन में एक विचार आसमानी बिजली की तरह कौंधा और मैंने सोफ़िया से कहा, “क्या मैं इस प्रश्न का उत्तर बाद में दे सकता हूँ, सोच रहा हूँ कि तबतक मैं तुम्हारी कहानी सुन लूँ कि तुमने कितने लोगों से प्यार किया”
सोफ़िया ने मेरी तरफ घूर कर इस तरह देखा कि मैंने उससे यह क्या पूछ लिया। उसे इस तरह देखते हुए कहा, “सोफ़िया मैं आशा करता हूँ कि तुम भी आप बीती बहुत ही ईमानदारी से बताओगी जैसे कि मैंने तुम्हें अपनी बीती सुनाई है”
“मैं तुम्हें वह सब कुछ साफ-साफ बताऊँगी लेकिन मैं पहले यह जानना चाहूँगी कि मैं जो भी बताऊँगी उस पर तुम विश्वास करोगे”
“मुझे लगता तो नहीं है कि मेरे पास अभी तक कोई विशिष्ट कारण है कि मैं तुम्हारी कहानी पर अविश्वास करूँ”
“तो सुनो
क्रमशः

एपिसोड 7
सोफ़िया की कहानी सुनने के लिए मैं ध्यानपूर्वक उसकी ओर देखते हुए बोला, “हाँ तो बताओ कि तुम्हारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण कौन सी घटना घटी”
“जीवन की बात न करो, अगर मैं अपने जीवन को संक्षिप्त रूप में भी बताऊँगी तो भी दो तीन दिन से अधिक ही लगेंगे। फ़िलहाल मैं तुम्हें अपनी लव लाइफ के बारे में बताऊँगी बाकी बातें इस बात पर निर्भर करेगी कि मेरी आप बीती सुनने के बाद भी क्या तुम मेरी तरफ देखना चाहोगे या नहीं”
“क्या इतना डरावना भूत काल रहा है तुम्हारा”
“शायद हाँ भी और शायद नहीं भी। यह इस बात पर निर्भर करता है कि तुम किसी घटना को कैसे लेते हो”
“तो चलो सुनाओ जो भी है अच्छा या बुरा हम दोनों के लिये ज़रूरी है कि हम एक दूसरे के बारे में जानें”
“लो सुनो”
इसके बाद सोफ़िया ने बताया, “हमारा परिवार यानी कि मेरे पर दादा के समय बरसों पहले शेफील्ड, इंग्लैंड से यूएस चला गया था। वहाँ जाकर हमारे परिवार ने कमर्शियल और बैंकिंग क्षेत्रों में काम करना शुरू किया। क़िस्मत ने साथ दिया और फिर उसके बाद हम लोग वहीं के बाशिंदे हो गए। उन दिनों मैं अपने माता पिता के साथ न्यूयार्क के उस हिस्से में रहती थी जिसके बारे में यह कहा जाता रहा है कि वह न्यूयोर्क की सबसे अच्छा रेजिडेंशियल स्पेस है, ब्रूकलीन हाइट्स, एक पॉश और खूबसूरत पेड़ो से सजी हुई ईस्ट रिवर के किनारे पथरीले साजो सामान से बने हुए घर जहाँ से मैनहट्टन और स्टेचू ऑफ लिबर्टी की खूबसूरती साफ देखी जा सकती है। जहाँ वह सब कुछ है जिसके बारे में कोई एक इंसान सोच सकता है, शानदार प्लेग्रोउंड्स, लैंड्सकैपेड वॉल्कवेज, वाटर फ्रंट पार्क्स जहाँ वहाँ के रहने वाले लोग इकट्ठा होते हैं खाने पीने और ज़िंदगी जीने के लिए। सच में मैंने लोगों को यह कहते हुए सुना है कि जिस तरह की लाइफ स्टाइल वहाँ के लोगों की है वैसी तो शायद यूएस में न तो एलए और न ही वाशिंगटन जैसे दूसरे बड़े शहरों में है। लड़के लड़कियों को अगर सबसे अधिक छूट मिलती होगी तो वह वहीं के आसपास के रहने वालों को मिलती होगी। अभिनव तुम तो अमेरिका जा चुके हो और अच्छी तरह जानते हो कि वहाँ की नाईट लाइफ दुनिया में सबसे अलग है। जहाँ लोग ख़ूब एन्जॉय करते हैं। एक रात जब मैं मुश्किल से तेरह चौदह साल की रही होऊँगी, अपने दोस्त हैरी के साथ एक नाइट क्लब गई में हुई थी। वहाँ हम लोगों ने ख़ूब खाया पिया मस्ती की खूब नाचे गाये और मैं उसे अपने साथ लेकर घर आ गई। वह अक़्सर ही मेरे साथ हमारे घर आता जाता था यह बात मेरे माता पिता दोनों की पता थी इसलिए हमारे यहाँ किसी ने भी हम लोगों के ऊपर ध्यान नहीं दिया। उस रात मस्ती के माहौल में बस कुछ ऐसा हो गया कि मैं तुम्हें क्या बताऊँ…” कहकर सोफ़िया एक दम चुप हो गई।
मुझे लगा कि उन दोनों के बीच कुछ ऐसा हो गया होगा जिससे कि उनकी दोस्ती आगे न चल पाई होगी। हम हिदुस्तानी आख़िर सोचेंगे तो अपने हिसाब से ही तो सोचेंगे। मुझे इस तरह गहरी सोच में देख सोफ़िया बोली, “अभिनव क्या हुआ तुम तो एक दम सीरियस हो गए”
“तुम अपनी बीती इतना सीरियसली बता रही हो तो मैं भला तुम्हारी बातों की लाइटली के कैसे ले सकता हूँ। बस और कोई बात नहीं इसीलिए तुम्हें लगा कि मैं….”
सोफ़िया अपनी जगह से उठी और फ़्रिज के पास गई और दो केन्स बियर के लेकर आई। एक बियर मुझे देते हुए बोली, “तुम मेरे यहाँ इतनी देर से आये हुए हो और मैंने तुमसे यह भी नहीं पूछा कि तुम कुछ खाओगे पियोगे भी। तुम सोच रहे होंगे कि सोफ़िया भी कितनी कंजूस औरत है”
“अरे नहीं ऐसी कोई भी बात नहीं है”
मेरी बात सुनकर सोफ़िया ने बियर का एक घूँट पिया। कुछ सोचते हुए वह फुल साइज्ड ग्लास विंडो के पास आकर खड़ी हो गई और विक्टोरिया हार्बर के सामने का नज़ारा देखने लगी। डूबते हुए सूरज के साथ ही शाम के सुरमई रंग आसमान में धीरे- धीरे छाते जा रहे थे। दूर दिखने वाली बहुमंजिला अलग-अलग डिज़ाइन और आकार की बिल्डिंग्स पर रंग बिरंगी लाइटिंग एक-एक कर जलती जा रहीं थीं।
मैंने बियर की कैन को टक्क से खोला और एक घूँट लेते हुए कहा, “हाँ तो फिर क्या हुआ तुम्हारे और हैरी के बीच”
सोफ़िया ने शीशे के पार देखते हुए कहा, “इतनी जल्दी में क्यों हो आओ पहले कुछ देर हम शाम के इस नज़ारे को तो पूरी तरह निहार लें उसके बाद आराम से बैठकर बात करेंगे। तुम्हें कोई काम तो नहीं करना है न”
मैंने भी बातचीत को दूसरा रुख देने के लिए सोफ़िया से कहा, “काम तो मेरा कोई हांग कांग में नहीं था फिर भी मैं शेंनजेन से पता नहीं क्यों चला आया। दरअसल मेरा काम तो शेंनजेन में ही था अपने पैकेजिंग प्लांट के लिये नए मशीन का आर्डर फाइनल करना था। मैं अपना काम पूरा कर ही लौट रहा हूँ”
मेरी बात सुनकर सोफ़िया पलटी और बैठते हुए बोली, “इसका मतलब तुम अपनी रिटर्न जरनी पर हांग कांग होते हुए जा रहे हो”
“हाँ मेरी कल दोपहर की फ्लाइट है”
“इसका मतलब यह हुआ कि हमारी यह चांस मीटिंग रही”
“अगर चांस मीटिंग न होनी होती तो भला एक काम काजी आदमी विक्टोरिया पीक पर क्या करने गया था”
“हाँ मुझे भी लगता है कि हमें शायद मिलना जो था” कुछ पल ख़ामोश रहने के बाद सोफ़िया ने मुझसे पूछा, “अगर मैं तुम्हारे साथ दिल्ली चलना चाहूँ तो तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं होगा”
“भला मुझे क्या एतराज़ होगा बल्कि मुझे तो उल्टे ख़ुशी ही होगी”
“एक मिनट रुको…” कहकर सोफ़िया ने अपना मोबाइल उठाया और अपने लिये अगले रोज़ की उसी फ्लाइट की टिकट बुक कर दी ओर बोली, “चलो मैं भी तुम्हारे साथ चल रही हूँ”
“अरे इतना जल्दी। वीजा का क्या होगा”
“मैं पहले ही इंडिया का वीजा लेकर आई थी वह सब छोड़ो, मेरी फ्लाइट कन्फर्म है और मैं तुम्हारे साथ चल रही हूँ”
“यू आर वेलकम डिअर यह तो मेरे लिए डबल खुशी का मौका है”
“मैं दिल्ली में रहूँगी कहाँ? अगर तुम अपने लिये होटल बुक करा रहे हो तो मेरी भी होटल बुक करा दो”
“होटल क्यों तुम मेरे साथ हमारे घर पर ही रहना”
“तुम दिल्ली में कहाँ रहते हो”
“अरे भाई मेरा वहाँ अच्छा खासी घर है। मैंने तुम्हें बताया तो था कि हमारे मामू सा… का वहाँ बेहद खूबसूरत बंगलो है दिल्ली की प्राइम कॉलोनी सैनिक फार्म में। लगता है कि तुम शायद भूल गई होगी। लेकिन मुझे लगता है तुम शायद मेरे साथ रहना नहीं चाहो चूँकि तुम्हारे लोगों के जैसा हाइजीन और क्लिंलीनेस स्टैंडर्ड यूएस वाले हम लोगों के यहाँ न हों”
“अरे छोड़ो भी मैं तुम्हारे साथ आ रही हूँ और जहाँ तुम कहोगी वहीं रुक जाउँगी”
मैंने उसकी बात को सुनकर मन ही मन यह सोचा कि चलो यह अच्छी बात हो गई कम से कम कुछ और वक़्त अब मैं सोफ़िया के साथ गुजार सकूँगा। उसे न जाने क्या याद आया कि वह बोल पड़ी, “चलो मैंने तुमसे प्रॉमिस किया था कि शाम आज हम हार्बर पर ही गुजारेंगे”
क्रमशः

एपिसोड 8
16-0-2018
शाम का धुँधलका होने के साथ ही सोफ़िया मुझे अपने साथ लेकर रिसेप्शन मैनेजर के पास आ पहुँची और अपने लिये एक चार्टर्ड क्रूज बुक कराया। रात को नौका बिहार करने के लिए हम दोनों हाथों में हाथ डाले हुए क्रूज़ की ओर निकल पड़े। जो लोग हांग कांग गए हैं वह इस बात को ताक़ीद करेंगे कि विक्टोरिया हार्बर की शाम वैसे भी अपने आप में यादगार शाम होती है और जिस पर साथ अगर आपके अपना महबूब हो तो कहना ही क्या। सोफ़िया तो अभी अपने रिश्ते की पहचान ढूँढने में लगे हुए थे। ऐसे माहौल में नौका विहार करने का इरादा भर अपने आप में एक सुखद एक्सपीएरेंस था।
इन ऐतिहासिक पलों को अपने वीडियो में कैप्चर करने का काम सोफ़िया ने क्रूज़ के एक स्टाफ़ को दे दिया। वह दोनों की लगातार वीडियो बनाये जा रहा था बीच-बीच में सोफ़िया कभी तो कभी मैं अपने मोबाइल से एक दूसरे की पिक्स भी खींचने लगते थे। क्रूज़ जैसे ही एक सेंट्रल जगह जाकर खड़ी हो गई तो सोफ़िया ने अभिनव से कहा, “क्यों न हम आज अपनी शाम को यादगार बनाने के लिए डिनर जंबो किंगडम के जंबो ताई पाक फ्लोटिंग रेस्त्रां में करें”
सोफ़िया के इनवाइट को मंजूर करते हुए मैंने कहा, “जंबो ताई पाक फ्लोटिंग रेस्त्रां की बहुत तारीफ़ तो बहुत सुनी है पिछली बार अपने विजिट में यहाँ अपने चाइनीज दोस्तों के साथ जाना चाह रहा था लेकिन किसी खास कारणवश जा नहीं पाया था”
इसी बीच क्रूज़ के अटेंडेंट ने आकर बताया, “आप लोग अपनी नज़रें सामने क्षितिज के पार दिखने वाली उन ऊँची-ऊँची अट्टालिकाओं की ओर रखिये कुछ ही समय मे हांग कांग का स्पेक्टलर फायर वर्क्स, लाइट एंड साउंड शो शुरू होगा, जो ठीक चौदह मिनट चलेगा। हम लोगों ने इसलिये क्रूज़ को एक विंटेज पॉइंट पर लाकर खड़ा किया है जिससे कि आपकी यह शाम यादगार बन सके”
जैसे ही घड़ी ने आठ बजाए कि शो एक बैंग के साथ शुरू हो गया। शो के दौरान सोफ़िया कभी मेरी बाँह पकड़ती तो कभी मेरा चेहरा ही पकड़ कर उस दिशा में घुमा देती जिससे मैं उस दिशा में हो रहै फायर वर्क्स को आराम से देख सकूँ। जैसे ही शो ख़त्म हुआ हमारा क्रूज़ बर्थिंग स्लॉट के लिये वापस हो चला। मुझे लगा कि यहाँ सब बिल्कुल मैकेनिकल ढँग से हर काम टू द नीड ऑफ अ वाच हो रहा था। एक बारगी तो लगा कि ये सब लोग समय के कितने पाबंद हैं फिर मुझे यह भी अहसास हुआ कि मस्ती के माहौल में कुछ इधर उधर हो भी जाये तो क्या फ़र्क पड़ता है। मैं आखिरकार ठहरा एक हिदुस्तानी जो अपने देश की जग प्रसिद्ध रीति रिवाजों को एक दिन में तो बदलते हुए नहीं देखना चाह रहा था। जब हमारा क्रूज़ वापसी यात्रा पर था तो क्रूज़ पर एक छोटा सा सांस्कृतिक कार्यक्रम वहाँ के लड़के लड़कियों ने प्रस्तुत किया। देखने को तो मैं शो देख रहा था पर मेरा दिमाग़ तो गंगा की लहरों पर खेलती हुईं उन नौकाओं पर लगा हुआ था जिसमें बैठ कर कजरी, बिरहा, ठुमरी और दादरा सुनकर हम हिंदुस्तानी एक अलग तरह का आनंद उठाते हैं। मुझे महसूस हुआ कि वह भी ज़िंदगी जीने का अपना ही अजब नायाब तरीका है। कुछ ही देर में हमारा क्रूज़ अपनी बर्थिंग प्लेस पर जा पहुँचा। हम लोगों ने क्रूज़ के ऑपरेटिंग स्टाफ़ का का धन्यवाद किया और जंबो ताई पाक फ्लोटिंग रेस्त्रां में आ पहुँचे।
डिनर के दौरान हम दोनों में आपस में कई मसायल पर बातचीत हुई यहाँ तक कि सोफ़िया ने मुझसे यहाँ तक पूछ डाला कि मुझे क्या-क्या अच्छा लगता है और मुझे किस चीज से एलर्जी है। ड्रिंक्स के साथ जब हमें डिनर का पहले कोर्स की सर्विस शुरू हुई तो मैंने कहा, “सोफ़िया क्या तुम हिंदुस्तानी खाना खा पाओगी”
इस पर उसने झट से पूछा, “तुम्हें क्यों लगा कि मैं हिदुस्तानी खाना नहीं खा पाऊँगी क्योंकि उसमें तेल मसाला और खाना चटपटा होता है। मिस्टर अभिनव मैं तुम्हें यह बताना चाहूँगी कि मैं यात्रा पर निकलने के पहले तैयारी करके निकलती हूँ और उसमें अहम होता है उन देशों के खाने पीने के बारे में जानकारी हासिल करना और मुनासिब हो तो उन देशों के खाने पीने का टेस्ट लेना। मैं यह ट्रायल करके ही घर से निकली हूँ”
सोफ़िया की इस बात पर मैंने अपनी तर्जनी के साथ अन्य उंगलियों को मिला कर माथे पर लगाकर इस तरह हटाया जैसे कि मैं यह कहने की कोशिश कर रहा होऊँ कि मान गए तुम गुरु हो। देर रात हम लोग डिनर कर सोफ़िया के होटल लौटे। उसे उसके रूम में छोड़कर जब मैं अपने होटल जाने लगा तो सोफ़िया ने कहा, “क्या करोगे अपने होटल जाकर, तुम यहीं मेरे रूम में रुक जाओ”
“सोफ़िया अभी तो हम एक दूसरे को जान भी नहीं पाए है और तुम मुझसे अपने रूम में एक साथ एक बिस्तर पर रात गुजारने के लिये कह रही हो। इसका मतलब तुम समझती हो कि हम लोगों के बीच कुछ भी हो सकता है”
“मुझे नहीं पता था कि तुम इतनी जल्दी एक लड़की के जाल में फँस कर उसके हो जाओगे”
“मैं अपनी कमजोरियों की अच्छी तरह जानता हूँ इसलिये ही तो कह रहा हूँ कि मुझे जाने दो"
मेरी बात सुनकर न जाने उसको अचानक क्या हुआ और वह बोली, “ठीक है जाना चाहते हो तो जाओ मैं तुम्हें अब नहीं रोकूँगी पर कल सुबह समय से मुझे एयरपोर्ट ले चलने के लिए आ जाना मैं तुम्हारा रिसेप्शन लाउन्ज में इंतज़ार करूँगी”
मैं जैसे ही चलने के लिए मुड़ा, सोफ़िया ने मुझे एक बार फिर से नाम लेकर बुलाया और कहा, “अभिनव ऐसे ही चले जाओगे गुड नाइट भी नहीं कहोगे”
चलते-चलते मैंने भी सोफ़िया से कहा, “गुड नाइट”
सोफ़िया ने अपने हिसाब से गुड नाइट कहकर ही मुझे विदा किया….
क्रमशः

एपिसोड 9
होटल पहुँच कर बिस्तर पर लेटते ही मुझे श्रीमती जी का ख़्याल हो आया। मैंने घड़ी चेक की तो मुझे एहसास हुआ कि अभी तक रमा सोई नहीं होगी क्योंकि हांग कांग में ठीक ढाई घन्टे का फ़र्क है मतलब यहाँ रात का एक बज रहा है तो अभी हिंदुस्तान में साढ़े दस बज रहे होंगे इसका मतलब तो यह हुआ कि टीवी बंद कर वह अभी आईने के सामने सोने से पहले चेहरे पर नाइट क्रीम लगा रही होगी। बस यह ख़्याल आते ही मैंने मोबाइल पर उसे घंटी की। अरे एक ही घंटी के बाद उसने मोबाइल उठा लिया और उसकी प्यारी सी आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मेरा दिल बाग-बाग हो गया। मैंने उससे पूछा, “कैसी हो”
“मैं तो जैसे भी हूँ ठीक हूँ पहले आप इन बताइये कि आपका वो कैसा चल रहा है”
मैंने पूछा, “क्या”
“अरे वही इश्क़ सोफ़िया से जिसके लिये आपकी इतनी तैयारी कराई थी लल्लनटॉप बन कर उसके सामने जाने को कहा था”
प्रत्युत्तर में मैंने कहा, “ठीक उसी तरह जैसे तुमने कहा था वही किया मालूम है तुम्हारी बताई हुई गोली काम कर गई। सोफ़िया पर माशाअल्लाह ऐसा रंग जमाया है कि उतरते-उतरते एक जमाना लगेगा”
“मैं वारी जाऊँ आप पर। एक बात तो है आप में कोई तो ख़ास बात है जो कि आजकल की छोरियाँ आपके चक्कर में आ जातीं हैं”
“अगर ख़ास बात न होती तो क्या तुम कैसे हमारी बनती”
“रहने भी दीजिये इतना भी न इतराइये अगर हम घास न डालते तो ये घोड़ा अभी इधर उधर मुँह मार रहा होता”
“वो तो हम अभी-अभी करके लौटें हैं”
जब दूसरी ओर से श्रीमती जी की आवाज़ एक दम बदली सी लगी तो मुझे एहसास हुआ मज़ाक-मज़ाक होता है जी कभी-कभी उल्टा पड़ जाता है इसलिए मैंने सधे हुए स्वर में कहा, “अरे कुछ भी नहीं वह तो मैं ज़िद कर चला आया वरना तो सोफ़िया ने मुझे अपने बिस्तर पर बुला ही लिया था”
“क्या हुआ था जरा पूरी बात बताइये”
मैंने फिर श्रीमती जी को आप बीती शब्द दर शब्द पूरी राम कहानी सुना दी” मेरी बात ख़त्म भी नहीं हुई थी कि श्रीमती जी उधर से नार्मल होते हुए बोल पड़ी, “वहीं रह भी जाते तो क्या फ़र्क पड़ने वाला था तुम एक तरफ मुँह करके सो जाते और उधर बेड के दूसरे छोर पर सोफ़िया एक घायल शेरनी की तरह गुर्राती रहती। इतना तो मुझे आप पर विश्वास है। मैं यह भी जानती हूँ कि चाहे कोई कितनी भी खूबसूरत अप्सरा जैसी भी क्यों न हो वह आपके सानिग्ध्य में पल भर के लिए भी नहीं फटक सकती है बात करने दिल खुश करने के लिए चाहे कोई भी कितने ख्याली पुलाव क्यों न पका ले”
“इतना विश्वास करती हो मुझ पर”
“यही विश्वास ही तो हमारी वैवाहिक जीवन की पूँजी है जिसे मैं अपनी अमूल्य धरोहर मानती हूँ और इसलिये मैं आपकी पूजा करती हूँ। वह तो दिल बहलाने के लिये आपको याद कदा कह देती हूँ जिससे हमारा यह प्यार का बंधन और मज़बूत हो”
“लगता है आज तुम्हारे श्री मुख में साक्षात माँ सरस्वती आकर बैठीं हैं जो तुम आज ऐसी बात कर रही हो”
“लो अगर तुम्हें शुद्ध हिंदी नहीं भाती तो साधारण भाषा में सुनिये और बताइए दिन भर में कौन-कौन सी जगह वह आपको ले गई या आप उसे ले गए”
मैंने दिन भर में सोफ़िया के साथ क्या-क्या किया उसकी पूरी जानकारी देने के बाद कहा, “अरे तुम जानती हो हम बेकार में एक कौड़ी भी नहीं ख़र्च करते ये मौज मस्ती आज उसने ही कराई”
मेरा उत्तर सुनकर पहले तो वह ख़ूब हँसी जब उनकी हँसी कुछ काबू में आई तो बोलीं, “यह तो है लगता है कि आपने अपनी आशिक़ी की पूरी भूमिका तैयार कर ली है”
“आगे चलाऊँ या तुम कहो तो बंद कर दूँ”
“अरे अभी तो इब्तिदा हुई है । शमा रौशन भर हुई है जरा महफ़िल को शबाब पर आने तो दीजिये पब्लिक के कुछ पैसे वसूल होने तो दीजिये”
“तो ठीक है हम आगे बढ़ते हैं फिर न कहना क्या कर बैठे”
“चलो छोड़ो भी आज आपकी चाहने वाली साली का फोन आया था पूछ रही थी जीजू सा कहाँ है”
“हमने बता दिया कि आजकल वह हांग कांग में इश्क़ लड़ा रहे हैं” इतना कहने के बाद वह एक दम चुप सी हो गई जैसे कि कोई बात अचानक याद हो आई हो, “बिंदू आपके उपन्यास ‘घुम्मक्कड़’ की बहुत तारीफ़ कर रही थी”
“क्या कह रही थी”
“यही कि जब जीजू सा लिखते हैं तो अपना दिल निकाल कर रख देते हैं। उनकी लेखन शैली की जितनी भी तारीफ़ की जाय वह कम ही है। उनकी कहानी के साथ पाठक इस तरह खो जाता है जैसे कि वह भी एक कथानक का हिस्सा हो। वैसे भी आपकी एक ही साली तो है अपने जीजू सा को दिल से चाहती है”
“नहीं यह तो है वह तो एक बिंदू ही है जो हर कहानी को पढ़कर अपनी विवेचना करती है हमारा दिल ख़ुश कर देती है”
“जीजू सा की प्यारी जो है”
“नहीं यह बात तो है बिंदु मन लगा कर पढ़ती है फिर मुझ से एक-एक लाइन पर चर्चा भी करती है लेकिन तुम्हारी वो छुटंकी जो है इंदू, उसका न तो पढ़ने में मन लगता है न कुछ लिखने में। उसे मज़ा आता है तो सिर्फ़ तुमसे यही सब बात करने में कौन सी नई साड़ी या नई ड्रेस खरीदा”
“अरे भाई रहने भी दीजिये वह हमारे घर में सबसे छोटी जो थी उसे पिताजी ने और अम्मा ने मनमर्ज़ी करने की छुट्टी जो दे रखी थी”
“चलो और बताओ क्या हाल चाल है बीकानेर का”
“बीकानेर का क्या होगा, बीकानेर मज़बूती से अपनी जगह खड़ा हुआ है”
“चलो ठीक है मैं जब आऊँगा तन तुम्हारी और बिंदु और इंदू की गिफ़्ट जो मैंने शेनजेन से उनके लिये ख़रीदी है लाकर दूँगा”
“अरे वह सब लाने की क्या ज़रूरत थी हम तो जिस हाल में आप रखते हैं हम उसी हाल में ठीक हैं”
“कुछ खास नहीं छोटी मोटी चीजें हैं”
“चलिये जो आप लेकर आएंगे हम उसे पाकर ही तसल्ली कर लेंगे लेकिन आना वैसे ही जैसे हमें छोड़कर गए थे”
“उसे साथ ले आऊँ तो कोई उज्र”
“कुछ भी नहीं, वह भी रह लेगी हमारी छोटी बहना बन कर”
“चलो ऐसा कुछ भी नहीं है वह आएगी तो पर अपना बीकानेर देखने”
“आप घर पर बैठना मैं ले जाउँगी उसे अपना बीकानेर दिखाने”
“ले जाना, चलो अब रखता हूँ फिर दिल्ली पहुँच कर बात करूँगा”
“अरे रुको एक बात तो बताइए जब आप सोफ़िया से मिले थे तो आपने कौन से कपड़े पहने थे”
“क्या मतलब वही गहरे नीले ट्राउज़र और हल्के गुलाबी धारी वाली शर्ट और क्या पहनना था”
“धूप का चश्मा ले लिया था या नहीं’
“ले लिए थे एक दो नहीं बल्कि पूरे सात हफ़्ते के कलर कोड को दखते हुए। पूरे हज़ार डॉलर घुस गए तुम्हारी बात मानने के चक्कर में कि सोफ़िया से मिलने जाना तो लल्लनटॉप बन कर जाना”
“अरे आप तो फिर बिल्कुल फन्ने खाँ लग रहे होंगे”
“हाँ यह तो सही बात है लग तो फन्ने खाँ रहा था इसलिए ही तो वह पीछे पड़ गई। लो वो इंडिया आ रही है तुम्हारे सीने पर मूंग दलने”
“अरे ले आइए उसे भी झेल लेंगे आपकी खुशियों के लिये अपना क्या है बस आप ख़ुश रहिए…”
जब श्रीमती जी ने यह कहा तो मेरे मुँह से भी अनायास निकल गया, “हमारा क्या है हम तो आपके चढ़ाने पर चढ़ जाते हैं गूलर के झाड़ पर”
“दूसरी ओर से श्रीमती जी ने बाकी का डायलॉग पूरा यह कह कर किया, “….. बस यही सब कभी तान्या, तो कभी वेरॉका या कभी सोफ़िया बन कर कुछ हेरोइन हमारी अपनी ज़िंदगी का हिस्सा बन कर आ जातीं हैं तो हमें अपनी जिंदगी का नमक दे जातीं हैं बाकी अब रह ही क्या गया है”
“बुझे हुए मन से लगता है कि आज तुम ये सब कह रही हो”
“नहीं बिल्कुल नहीं हम तो बस आपको जवान हँस मुख देखना चाहते हैं इसीलिये आपको कभी अभिनव बना देते हैं तो कभी देवानंद”
“हम भी तो तुम्हें वे सब बातें बता देते हैं जो हमारे बीच कभी अनामिका कभी कमल नसीम बनकर लोग आते रह हमारी ज़िंदगी को गुलज़ार करते रहे।….जाओ अब सो भी जाओ रात बहुत हो गई है और कल सुबह सोफ़िया को लेकर निकलना भी है”
“ठीक है गुड नाइट”
“वैसी वाली नहीं करिएगा जो आप सोफ़िया से करके आए हैं। हमको बस ऐसे सूखे में ही और उसे…”
“नहीं भाई तुम्हें भी वैसे ही जैसे कि सोफ़िया को लो….” कह कर हमने अपनी श्रीमती जी को गुड नाइट कहा।
क्रमशः
एपिसोड 10
जैसे ही हमारा एयरक्राफ्ट रनवे पर दौड़ने लगा मेरी निगाह हांग कांग के समंदर के उस हिस्से पर पड़ी जिसके किनारे-किनारे यहाँ का एयरपोर्ट बना हुआ था। मुझे ऐसा लगा कि आँख झपकते ही बस हम अगले पल आकाश की ऊंचाइयों को छू रहे होंगे और यह खूबसूरत देश पीछे छूट जाएगा जहाँ कभी अंग्रेजों ने इतनी दूर आकर शासन किया डेवलपमेन्ट की नींव रखी। मुझे इस तरह विचारमग्न अवस्था में देखते हुए सोफ़िया जो मेरी बगल की सीट पर बैठी हुई थी बोली, “अभिनव क्या सोच रहे हो”
अपने मन के भीतर चल रहे उन तमाम प्रश्नों को एक तरफ हटा कर मैंने कहा, “कुछ भी नहीं बस यही कि दुनिया वाकई अब कितनी छोटी हो गई है। एक ज़माने में जब अंग्रेज यहाँ आए होंगे तब शायद यहाँ कुछ भी न रहा होगा और देखते-देखते उन्होंने अपने शासन काल में कितना सुंदर शहर बसा कर चीनियों को सौंप दिया जिसे देखने सुदूरपूर्व से तुम जैसे हसीन लोग अब यहाँ आते हैं”
“अंग्रेजों के साहस की कोई तुलना नहीं। एक समय में इनके राज में कहा जाता है कि सूरज नहीं डूबता था”
“यह बात तो है” जब मैंने यह बात सोफ़िया से कही तो मुझे लंदन का अल्बर्ट हॉल के पास वाला वह चौराहा याद हो आया जहाँ मैंने अकेले खड़े होकर बरसों पहले अपने पेंटेक्स कैमरे में टाइमर बटन सेट करके अपनी तस्वीर खींची थी, उस ज़माने में सेल्फी लेने का कोई तरीका ईजाद नहीं हुआ था। वहाँ यही दर्शाया गया था कि उस समय में उपनिवेशवाद की जड़ें इतनी गहरी थीं कि दुनिया के हर कोने में अंग्रेज छाए हुए थे उसके पूर्वी और के छोर पर जो आलेख लिखा हुआ था उनमे भारत भी शरीक़ था।
“देखो मैं तुम्हें कल अपने बारे में जब सब कुछ बता रही थी तो मैंने तुम्हें शायद यह बताया था कि मेरे दादा बरसों पहले शेफील्ड से अमेरिका गए थे और उन्होंने अपना एक नया संसार बनाया”
“हाँ मुझे याद है कि तुमने कल यह बात बताई थी”
“जिस बात पर मैं आकर रुक गई थी वह थी कि….”
“छोड़ो भी उस बात को जो हुआ वो ठीक हुआ या ख़राब हुआ उसे भूल जाओ जो भी उस समय तुम्हारे साथ क्या हुआ” मैंने सोफ़िया का हाथ अपने हाथों के बीच लेकर सांत्वना देते हुए कहा।
“नहीं मैं जब तुम्हारे बारे में सब कुछ जान गई हूँ तो यह मेरा भी फ़र्ज़ बनता है कि मैं तुम्हें आप बीती के उस हिस्से को बताऊँ जो मेरे जीवन का बहुत कटु अनुभव रहा हो”
मैं सोफ़िया के कहने के बाद कुछ भी कहने की स्थित में न था और मैंने सोचा कह भी लेने दो जो उस दिन सोफ़िया की जुबां पर आते-आते रह गया। नहीं तो इसके मन में यह एक कीड़े की तरह रेंगता रहेगा और उसे परेशान करेगा। यह सोच कर मैं सोफ़िया की ओर देखने लगा कि वह कुछ कहे।
“उस दिन मेरे साथ….” एक क्रूर हँसी हँसते हुए सोफ़िया बोली, “क्या होना था वही हुआ जो दो नौजवानों के बीच होता है आई हैड टेस्ट ऑफ सेक्स लाइफ…”
“रहने दो रहने दो आगे मत बताना मैं समझ गया”
“क्या समझ गए”
“वही जो तुम कहने जा रही हो कि ….”
“तुमने ठीक समझा। एक्चुअली यूएस में यह सब चलता है लोग इसे एक नार्मल एक्टिविटी मानते हैं। वहाँ अधिकतर लड़कियां उम्र के उस दौर तक पहुँचते-पहुँचते अपनी वर्जिनिटी खो बैठतीं हैं। उसके बाद तो हम लोग अक़्सर ही मिलते और जब मन करता तब….। लेकिन कुछ महीनों में ही मुझे उस बात का अहसास हुआ जिसे मैं अब भूलना भी चाहूँ तो भुला नहीं सकती। आई हैव टू गो थ्रू एमटीपी एंड देयराफ्टर आई हैड डेवलप्ड अ कोल्ड फ़ीट टुवर्ड्स सेक्स इन माइ लाइफ। तुम यह मान सकते हो कि उसके बाद मेरा कभी मन किया ही नहीं कि..। आज भी जब तुम मेरे साथ हो तो भी मेरा दिमाग़ उन चीजों के प्रति नहीं जा रहा है बल्कि मैं यह सोच रही हूँ कि क्या हम एक दूसरे को मित्रता की नई परिभाषा में ढाल पाने में सफल हो सकेंगे या नहीं”
क्रमशः
एपिसोड 11
मैंने सोफ़िया का हाथ धीरे से दबाया और उसको आश्वस्त करते हुए कहा, “हम लोग एक दूसरे को एक अच्छे दोस्त बन कर भी तो प्यार कर सकते हैं”
सोफ़िया को शायद मुझसे यही उत्तर सुनने की अभिलाषा थी, नम आँखों से उसने मेरी ओर देखा और मेरा चेहरा अपनी ओर झुकाते हुए मुझे धीरे से चुम्बन कर के ही छोड़ते हुए बोली, “हम लोगों के यहाँ यही परम्परा है कि हम अपनी ख़ुशी का इज़हार एक दूसरे को चूम कर करें”
सोफ़िया की बात सुनकर मैंने भी अपना यह फ़र्ज़ समझ कि मैं उसके इस असीम प्यार की परिभाषा को उसे चूम कर अपनी प्रसन्नता का उदाहरण दूँ। मैं जब सोफ़िया को चूम कर हटा ही था कि देखा एयर होस्टेस हमको देख कर मुस्कुरा रही थी और पूछ रही थी कि आप क्या पीना पसंद करेंगे। मैं कुछ कह पाता उससे पहले ही सोफ़िया बोल पड़ी, “शैम्पैन फ़ॉर बोथ ऑफ अस इफ यू हैव इट ऑन द हाउस”
“स्योर मैम” कहकर उसने दो ग्लास शैम्पैन के बनाये और हम लोगों को देकर वह आगे बढ़ गई। हमने अपनी इस दोस्ती के नाम टोस्ट कर शैम्पैन धीरे से सिप की और एक दूसरे की निग़ाह में झाँकते हुए मैंने आशा व्यक्त की, “मे योर इंडिया ट्रिप ब्रिंग यू हैपिनेस इन योर लाइफ”
मेरी तरफ देखते हुए सोफ़िया बोली, “आई होप यू विल टेक केअर ऑफ मी”
“आई विल”
इसके बाद हम लोग अपनी सीट पर लगे टीवी स्क्रीन पर एक फ़िल्म देखने लगे। फ़िल्म देखते समय सोफ़िया ने कहा, “इंडिया वास्तव में इतना खूबसूरत है जितना फ़िल्मो में दिखता है”
“है तो लेकिन बस तुम्हें एक काम करना पड़ेगा कि वहाँ इधर उधर बिखरी हुई गंदगी को झेलना होगा”
“वह क्यों” सोफ़िया पूछ बैठी।
“दरअसल तुम्हें पता होगा कि हमारे देश की पापुलेशन 1.30 बिलियन क्रॉस कर चुकी है और दिनों दिन यह बढ़ती ही जा रही है सही मायनों में अगर यह कहा जाए तो हमारा देश अब पापुलेशन के बोझ तले पिसता जा रहा है। इसीलिए हमारे रिसोर्सेज पर बहुत दवाब बढ़ता जा रहा है और हम लोग अनफोरचूनेटली इस फील्ड में कुछ कर भी नहीं पा रहे हैं”
“ओह सो सैड”
हम लोगों के बीच इसी तरह की चर्चा होती रही और कुछ देर बाद जब हमें लंच सर्व किया जाने लगा तो मैंने पूछा, “सोफ़िया क्या तुम एक ड्रिंक और लेना चाहोगी"
“अवश्य अगर तुम ले रहे हो तो”
हम लोगों ने एयर होस्टेस से एक एक-एक ड्रिंक का और आर्डर दिया। उसके ले लेने के बाद ही हम लोगों ने खाना खाया। रात देर से सोया था तो नींद पूरी नहीं हुई थी। पेट भर जाने और ड्रिंक की मस्ती में मैंने आँख क्या बंद कि मुझे नींद आ गई और मैं सो गया। मैं जब एक तरफ मुँह करके सो गया तो मुझे देखा देखी मेरे कंधे पर सिर रख कर सोफ़िया भी सो गई। दिल्ली एयरपोर्ट पहुँचने का जब आनोउंसमेन्ट हुआ तो मेरी आँख खुली। जल्दी से सीट बेल्ट चेक की सीट को अपराइट पोजीशन में किया और लैंडिंग का इंतजार करने लगे।
एयरक्राफ्ट के रुकते ही हम दोनों एयरोब्रिज के रास्ते एयरक्राफ्ट से बाहर आये। एक ट्राली ली और इमीग्रेशन काउंटर पर एक लाइन में आकर खड़े हो गए कि जल्दी से क्लेरेंस हो तो हम घर पहुँचे लेकिन पता नहीं क्या सिस्टम फेलियर हुआ कि सभी कंप्यूटर्स ने काम करना बंद कर दिया। अब क्या करते जब फ़ॉल्ट ठीक हुआ तो आधे घन्टे बाद जाकर हम लोगों का नंम्बर आया और क्लेरेंस करा कर हम लोग एरायवल लाउन्ज के शॉपिंग एरिया में आ गए। मैंने अपने लिये दो सिंगल माल्ट व्हिस्की की बोतलें खरीदीं तो सोफ़िया ने कुछ परफ्यूमरी का सामान। उसके बाद बैगेज लिया, बाहर आकर ओला टैक्सी की और हम लोग सैनिक फॉर्म आ गए।
वहाँ देखा तो मामू सा… और मामी सा.. पहले ही से आईं हुईं थीं। मैंने बढ़ कर मामू सा और मामी सा के पाँव छुए उनका आशीर्वाद लिया और जैसे ही मैं सोफिया की ओर मुड़ा कि मैं सोफ़िया को इंट्रोड्यूस करूँ उसके पहले ही मामू सा ने मेरे कान पास आकर धीमी आवाज़ में पूछा, “भांजे ये चिड़िया कहाँ से पकड़ लाये हो?”
क्रमशः
एपिसोड 12
सैनिक फ़ार्म दिल्ली की एक शाम:
“मामू सा ये है सोफ़िया और सोफ़िया ये हैं मेरे मामू सा और मामी सा जिनके बारे में मैंने तुम्हें बताया था कि वे लोग फ़्लोरिडा में सेटल्ड हैं”
सोफ़िया ने मामू सा और मामी सा से हेलो कहा और हाथ मिलाया।
सोफ़िया को देख कर मेरे मामू सा बहुत ख़ुश हुए कि भाँजे ने उनके लिये एक बातचीत करने का मसाला ढूँढ कर दे दिया। इससे पहले कि कोई और बात हो मैंने चंदू से सोफ़िया का सामान ड्राइंग रूम के बगल वाले गेस्ट रूम में रखने के लिये कहा तो मेरे मामू सा बोल पड़े, “अरे यह क्या मैं तो सोच रहा था कि सोफ़िया तुम्हारे साथ ही तुम्हारे बेड रूम में ही रहेगी”
मैंने मामू सा की ओर देखते हुए कहा, “मामू सा आप भी न बस लगे मेरी खिंचाई करने मैं सोफ़िया से एक रोज़ पहले ही तो मिला हूँ”
“तुमने मुझे यह कहाँ बताया मैं तो सोच रहा था कि तुम और सोफ़िया एक दूसरे को आपस में एक लंबे अरसे से जानते होगे”
“नहीं मामू सा” कहकर मैं मामी सा की ओर पलट कर बोला, “मामी सा आप ही समझाइए मामू सा को”
मेरी बात सुनकर मामी सा ने सोफ़िया को अपने गले से लगाया और उसे आराम से ड्राइंग रूम में बैठने के लिये कहते हुए पूछा, “तुम न्यूयॉर्क में कहाँ रहती हो…”
इतना पूछने के बाद वे दोनों फिर आपस में बहुत देर तक बात करतीं रहीं और मुझे मामू सा ने एक तरफ करते हुए पूछा, “क्या है ये सब? बहूरानी बिटिया इस पटाखा के बारे में कुछ पता है कि नहीं”
“जी वह सब जानती है। मामू सा मैंने आपसे कुछ और न सीखा हो, मुझे बिजनेस करना न आता हो, मैं आप कहेंगे कि मैं उल्लू हूँ तो मैं कहूँगा, हाँ। मैं आपकी हर वह बात मान लूँगा जो आप कहेंगे लेकिन मैंने आप से कुछ और अधिक न सीखा है लेकिन इतना तो सीखा ही है जिसका कोई और मिसाल हो ही नहीं सकती। आप ही ने तो एक दिन कहा था ज़िंदगी में कुछ भी करो सब चलता है बस नहीं चलता है तो घरवाली के साथ विश्वासघात। जीवन में कभी भी उसके विश्वास को कभी न टूटने देना”
मामू सा ने मेरे कंधे पर अपना हाथ रखते हुए कहा, “मुझे तुमसे यही उम्मीद थी लेकिन यह बताओ कि फिर भी बहूरानी ने तुम्हें इसके साथ फ़्लर्ट करने की अनुमति दी है क्या”
“जी मामू सा”
कंधे से हाथ हटाते हुए मामू सा बोले, “मुझे विश्वास नहीं हो रहा”
मामी सा की ओर देखते हुए मैंने मामू सा से कहा, “मामू सा आपका भांजा दुनिया भर से झठ बोल ले लेकिन मैं आपसे कभी झूठ नहीं बोलता हूँ। शायद इसीलिए आपकी तरह मैं जीवन में एक सफ़ल व्यक्ति नहीं बन पाया”
“बदमाश कहीं का मामी सा पर ही निग़ाह लगाए बैठा है….”
“कहाँ मामू सा मैं तो सोफ़िया को देख रहा था कि वह कुछ खा भी रही है या सिर्फ़ चाय पी रही है”
“अभिनव वाकई तू अब बड़ा हो गया है” कहकर मामू सा ने मुझे अपने गले लगाया। जब उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाकर थपकी दी तो मुझे मेरी माँ याद हो आई जो बचपन में ऐसे ही थपकी देकर कहानी सुना कर सुलाया करती थी। उसकी जो याद हो आई तो मेरी आँखों में नमी छा गई और जब मैंने अपनी आँखों की कोर से आँसू पोंछे तो मेरे मामू सा की आँखें भी नम हो गईं।
मुझसे अपना ध्यान हटाते हुए मामू सा ने मामी सा की ओर देखा और पूछा, “आज डिनर में क्या बनेगा”
मामी सा ने सोफ़िया की ओर देखा और बोलीं, “जो ये कहे”
“सोफ़िया बेटा तुम्हें क्या पसंद है” मामू सा ने पूछा।
“हिंदुस्तानी खाना वह भी नमक मिर्च मसालेदार"
यह सुनकर मेरी मामी सा के मुँह से निकल पड़ा, “क्या”
“ठीक कह रही है मामी सा। वह अमेरिका से इंडिया आई ही इसलिए है कि वह यहाँ के लोगों से मिले और यहाँ की विरासत को करीब से देखे महसूस करे”
मामू सा से यह सुनकर रहा नहीं गया और बोल पड़े, “तुम्हें ताज देखने जाना हो तो मेरे साथ चलना जितना अच्छा ताज और आगरे के बारे में मैं जानता हूँ उतना तो एक गाइड भी नहीं जानता”
“मामू सा आपने मेरे मुँह की बात छीन ली। मैं भी यही कहना चाह रहा था क्योंकि मुझे अपनी फ़ैक्टरी का कुछ काम करना है। सोफ़िया को आगरा आप ही घुमा दें। ....और दिल्ली मैं दिखा दूँगा”
“बाद में यह न कहना कि मैंने सोफ़िया को पटा लिया” मामू सा बोले।
“मामू सा आप भी…”
क्रमशः

एपिसोड 13
सोफ़िया को आये हुए दो दिन से ऊपर हो गया था लेकिन जब भी कोई प्रोग्राम बनता कि उसे कहीं बाहर ले कर जाया जाए तो वह साफ मना कर देती कि उसे कहीं भी नहीं जाना है वह मामी सा के साथ खाना पीना बनाना सीख रही है। मामी सा एक बहुत अच्छी किचन मैनेजर एक फाइव स्टार होटल में रह चुकीं थीं और उन्हें इंटरकांटिनेंटल डिशेज़ के साथ-साथ कई वैरायटीज के व्यंजन बनाने भी आते थे। सही मायने में कहा जाए तो मेरे मामू सा एक पेटू थे और उनका यही खाने पीने का शौक उन्हें लिंडा मामी सा के करीब ले आया था। इसलिये सोफ़िया उनके साथ एक अच्छा वक़्त गुज़ार रही थी।
एक दिन शाम की फ्लाइट से मामू सा के दोनों बेटे महेंद्र और नागेंद्र भी यूएस से अचानक ही आ टपके। सैनिक फार्म के बंगलो में सभी लोगों के एक साथ आ जाने से रौनक आ गई। लेकिन महेंद्र और नागेंद्र के आ जाने से रूम्स की दिक्कत भी हो गई क्योंकि फर्स्ट फ्लोर के चारों बेड रूम और टॉयलेट्स अपग्रेडएशन के काम के लिये कांट्रेक्टर को हैंड ओवर कर रखे थे।
इसे परेशानी को देखते हुए सोफ़िया बोली, “अगर दिक़्क़त हो रही है तो मैं किसी होटल में शिफ़्ट हो जातीं हूँ”
सोफ़िया की यह बात सुनते ही मामी सा इस पर नाराज़ हो उठीं और बोलीं, “ये अमेरिका नहीं है। हम इंडिया में हैं। हम लोगों के दिल छोटे हों पर इन इंडियन्स के दिल छोटे नहीं होते हैं”
मामू सा को एक मौका मेरी खिंचाई करने का जहाँ मिला नहीं तो वह फटाक से बोले, “क्या है अभिनव सोफ़िया का बैडरूम शेयर कर लेगा, क्यों सोफ़िया मैं कुछ ग़लत कह रहा हूँ”
पहले तो सोफ़िया मामू सा का जोक समझी नहीं पर जब उसको यह समझ आया कि मामू सा उसके साथ मजाक कर रहे हैं तो जोर से हँसते हुए बोली, “मैंने तो ये आफर अभिनव को हांग कांग में ही दिया था। वह अभिनव ही था जो मुझे अकेले मैदान में छोड़कर भाग खड़ा हुआ” इतना कह लेने के बाद सोफ़िया ने सभी के सामने मेरी पोल खोलते हुए बताया, “वह और मैं उस रात जंबो ताई चाई रेस्त्रां से देर से खाना खाकर लौटे थे और मैंने अभिनव से कहा था कि रात की ही तो बात है वह मेरे साथ ही रुक जाए”
सभी लोगों के बीच मेरी उस दिन इतनी खिंचाई हुई कि मैं वह सब बातें यहाँ आपके साथ शेयर भी नहीं कर पा रहा हूँ। महेंद्र और नागेंद्र की वह सैनिक फार्म में पहली रात थी इसलिए हम तीनों भाइयों ने यही निर्णय लिया कि हम सभी एक साथ बैडरूम में सो जाएंगे और सोफ़िया को किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होने देंगे।
मामू सा उस दिन हम तीनों भाइयों के साथ देर तक बातचीत करते रहे। बातों ही बातों में उन्होंने महेंद्र से कहा, “बेटा हम अगर एक बार धोखा खा जाते हैं तो उसका यह मतलब मत लगा कि हर बार धोखा होगा। एक बार तू अपनी और दिया कि शादी की बात भूल जा और एक नई शुरुआत तो करके देख”
महेंद्र ने मामू सा का यह कहकर मुँह चुप करा दिया कि वे उसकी दूसरी शादी की बात ना ही करें तो वह बेहतर होगा। बाप तो आखिर बाप होता है उसका दिल इतनी जल्दी हार कहाँ मानता है इसलिए मामू सा उस वक़्त तो चुप रह गए। लेकिन उनके मन में महेंद्र को लेकर कुछ न कुछ दुविधा बनी रहती थी। एक दिन जब महेंद्र और सोफ़िया घर के सामने वाले लॉन में बैठकर आपस में बात कर रहे थे मामू सा मेरे पास आए और उन्होंने कहा, “जा एक काम कर अपनी मामी सा और नागेंद्र को पीछे वाले लॉन में चाय के बहाने लेकर आ मुझे कुछ ज़रूरी बात करनी है”
मैंने रग्घू को तीन चाय बनाकर लाने के लिए कहा और साथ में ही मामी सा और महेंद्र को अपने साथ ले वहाँ आ गया जहाँ मामू सा हमारा इंतज़ार कर रहे थे। मामू सा ने अपनी बात शुरू करते हुए कहा, “मैं चाहता हूँ कि अबकी बार महेंद्र के लिये कोई अच्छी सी लड़की ढूँढ कर उसकी शादी करा दूँ”
मामी सा ने मामू सा की बात सुनकर कहा, “मैं आज तक यह न समझ पाई कि आप हिंदुस्तानी लोग लड़के की शादी क्यों कराते हैं हमारे अमेरिका में तो लड़का ख़ुद आकर बताता है कि उसे फलां लड़की पसंद है और वे जब चाहते हैं तो माता पिता उनकी शादी का फंक्शन कर उनकी शादी करा देते हैं”
मामी सा की बात पर मामू सा बोले, “लिंडा इंडिया इस मामले में बहुत पिछड़ा हुआ है। हम लोगों ने जिस तरह इस उम्र में एक दूसरे को प्यार किया ही नहीं वहीं अपनी शादी भी कर ली लेकिन यह सब करना अभी इंडिया में बहुत बड़ी बात है”
मामी सा ने मुँह बिचकाया और फिर वे चुप होकर हम लोगों की बातें सुनतीं रहीं। मामू सा जो कि पिछले कुछ दिनों में सोफ़िया के बहुत करीब आ गए थे उसको लेकर जब मेरी ओर देखकर बोले, “नहीं जानता हूँ कि सोफ़िया को लेकर तेरे दिल में क्या है लेकिन मैं यह कह सकता हूँ कि सोफ़िया मुझे तो बहुत मन भा रही है। तेरा कोई चक्कर है तो मुझे बता लेकिन मैं नहीं चाहता कि तू किसी भी कीमत में बहूरानी के साथ कोई खेल खेले"
मैंने मामू सा को भरपूर आश्वासन दिया कि मेरे और सोफ़िया के बीच कहीं भी कुछ नहीं वह तो हम लोग हांग कांग में बस ऐसे ही मिले और वह मेरे साथ चली आई क्योंकि उसे इंडिया देखने आना था”
“तू सच कह रहा है”
“मैं बिल्कुल सच कह रहा हूँ आप चाहें तो रमा से ख़ुद पूछ लीजिये”
“मिला फोन मिला मैं ख़ुद बात करके पूछूँगा”
क्रमशः
एपिसोड 14
मैंने रमा को फोन लगाया और कहा, “लो तुमसे मामू सा बात करना चाह रहे हैं”
“क्या हो गया”
“कुछ खास नहीं लो तुम ख़ुद ही बात कर लो”
“लाइये दीजिये मामू सा को फोन”
जैसे ही मामू सा ने ”हैलो” कहा उधर से आवाज़ आई, “मामू सा। पाय लागूँ मामू सा…”
उसके बाद मामू सा और रमा बहूरानी के बीच एक लंबी बात हुई। जब उनकी बात हुई तो मामू सा बोले, “हे रे ए कहीं के, तूने मुझे पहले क्यों न बताया कि तू इंडस्ट्री चलाने के साथ जाना माना साहित्यकार भी हो गया है”
मैं मामू सा की बात सुनकर समझ गया कि रमा ने आखिरकार मामू सा से क्या कहा होगा इसलिये मैंने मामू सा से कुछ भी ना कहना ही ठीक समझा। मामू सा कौन इतना आसानी से छोड़ने वाले थे। मेरी खिंचाई करते हुए बोले, “अरे तूने ये शौक कबसे पाल लिया। बहूरानी बता रही थी कि तेरी कई पुस्तकें मार्किट में खूब धूम मचा रहीं हैं”
“कुछ भी ना है मामू सा रमा की तो ये पुरानी आदत है कि वह मेरी बे फिजूल तारीफ़ में कुछ भी बोल देती है”
“इधर तो आ..” कहकर मामू सा ने मुझे अपने सीने से लगाते हुए कहा, “सत्यवती भी लिखने पढ़ने की बहुत शौकीन थी। उसे उस ज़माने में चार पाँच भाषाएं आतीं थी। वह दिन रात कुछ न कुछ क्रिएटिव काम करती रहती थी। उसे क्या नहीं आता था वह सब फील्ड में नंम्बर एक थी। वह चाहे गाना बजाना हो या लिखना पढ़ना। बस वह एक कला की महारथ हासिल ना कर पाई तो वह थी नाच गाने की कला। वह तो इसमें भी नाम कमाती पर हम लोगों की बिरादरी में यह काम अच्छी निग़ाह से न देखा जाता था और दूसरे बाबू सा को बिल्कुल भी पसन्द ना था इसलिए उससे ये छूट गया”
“मुझे गाँव की बड़ी बूढ़ी अम्मा बताया करतीं माँ सा के बारे में"
“अरे बेटा तुझे शायद याद भी न हो लेकिन जब सत्यवती मृत्यु शैय्या पर पड़ी हुई तेरी राह जोहा करती थी तो हमेशा मुझसे यही कहती थी कि भाई सा आप मेरे लल्लू का ख़्याल रखना। मेरे जाने के बाद वह बहुत अकेला पड़ जायेगा। हाँ एक बात और अपने जीजू सा से कहना कि मेरे जाते ही दूसरी शादी ज़रूर कर लें, घर का दरवाज़ा किसी भी मेहमान के लिये कभी भी बंद न होने दें”
इतना कहते-कहते उनकी आँखों से अविरल आँसू बहने लगे। उन्हें इस तरह बिलखते रोते देख मेरी मामी सा उनके पास आकर खड़ीं हो गईं और उन्हें याद दिलाया और बोलीं, "मैं हूँ न। अगर आपका यह हाल होगा तो भला मेरा क्या होगा"
लेकिन जब इंसान भावनाओं में डूब कर कोई बात कह रहा हो तो उसे चुप करा पाना मुश्क़िल हो जाता है। मेरे मामू सा ने रोते हुए कहा, “तेरे बाबू सा तो दूसरी शादी के लिये तैयार ही न थे वह तो हम सभी ने बहुत जोर डाला तब जाकर वह कहीं दूसरी शादी के लिये तैयार हुए। तेरी क़िस्मत बहुत अच्छी थी कि तेरी दूसरी माँ सा भी बहुत अच्छी थीं और जिस तरह उन्होंने तेरी देखभाल की वह भी अपने पूरे क्षेत्र में एक मिसाल है”
“मामू सा मुझे तो सभी अपनी ज़िन्दगी में भले लोग ही मिले। आपने क्या कम किया अपना बना बनाया बिजनेस मेरे नाम कर दिया इतना ही नहीं मुझे रहने के लिये अपनी हवेली दी। यहाँ तक कि आपने मुझे सबसे अधिक प्यार किया"
“बेटा तेरी कितनी तारीफ करूँ देख तुझे किस्मत से इतनी कर्मठ और सभ्य रमा जैसी बहूरानी मिली और छुटुआ जैसा बेटा और क्या चाहिए किसी को”
जब मामू सा ने मेरी माँ सा के लिए इतना कुछ कहा तो मेरी आँखों में आँसूँ आ गए। मेरी आँख के आँसू पोंछते हुए मामू सा बोले, “अभिनव तुझ पर कौन मामू ऐसा होगा जो अपनी जान न छिड़केगा। बेटा तुझे मेरा आशीर्वाद है तू जो भी कर उसमें तुझे भगवान सफलता दे”
मैंने मामी सा की ओर देखा तो उन्होंने भी मुझे आगे बढ़कर आशीर्वाद दिया। नागेंद्र ने भी मुझसे हाथ मिलाया और कहा, “भाई जी मुझे आपकी सभी किताबें चाहिए मैं अगर उन्हें यहाँ नहीं पढ़ पाउँगा तो उन्हें अपने साथ यूएस ले जाऊँगा वहाँ पढ़ कर सबको बताऊँगा कि ये मेरे भइय्या ने लिखीं हैं”
मेरे मुँह से बस इतना ही निकला, “दूँगा भाई अवश्य दूँगा। आप पढ़ेंगे तो आपको अच्छा लगेगा”
“वह तो लगना ही है",नागेंद्र ने कहा।
मामू सा बी बोल पड़े, “मुझे भी एक सेट देना यूएस में मेरे बहुत से दोस्त हैं जो अच्छी किताबें पढ़ना चाहते हैं"
“अवश्य मामू सा”
कुछ देर बाद जब नागेंद्र कोठी के ऊपरी हिस्से में रिपेयरिंग के काम को देखने चला गया तो मामी सा ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “सोफ़िया यहाँ है मुझे तो वह बहुत पसंद है”
मामी सा की बात पर मामू सा के मुँह से अचानक ही निकल गया,”अगर सोफ़िया और...”
“हम क्यों ने उन्हें पूरा अवसर दें कि भली और सीदी साधी सी लग रही है क्यों न हम महेंद्र से बात करें अगर वह सोफ़िया को और सोफ़िया उसे वह पसंद हो तो हम लोग उनको और करीब लाने की सोचें” मामू सा ने कहा।
मैंने मामू सा से कहा, “मामू सा ये काम आप मुझ पर छोड़िये मैं महेंद्र और सोफ़िया को साथ लाने की कोशिश करता हूँ”
मामू सा और मामी सा दोनों एक साथ बोल पड़े, “कर बेटा तू भी कोशिश कर ले वह तो हम लोगों की बात ही नहीं सुनता हो सकता है तेरो बात उसे समझ आ जाए”
हम लोग जब उनके बारे में यह सब बातें कर रहे थे तो दूसरी ओर सोफ़िया महेंद्र के प्रोफेशन के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने के प्रयास में लगी हुई थी। दूसरी ओर महेंद्र सोफ़िया के विभिन्न इंटरेस्ट्स के बारे में जानकारी लेने के प्रयास में था। शाम ढलने के को थी धीरे-धीरे सर्दी भी बढ़ रही थी इसलिए वे सभी घर के अंदर आ गए और ड्राइंग रूम में बैठ कर गपशप करने लगे।
बातों ही बातों में आगरे के घूमने की बात उठी तो मामू सा बोले कि सोफ़िया यहाँ आई है तो क्या दिल्ली में इनडोर रहने के लिये हम लोग कल ही आगरे जाएंगे। जब प्रोग्राम बनने लगा तो हरेक कोई न कोई बहाना बना कर आगरा जाने से मुकुर गया। अंत में बात मुझ पर आकर टिक गई तो मैं साफ-साफ बोला, “मैंने सोफ़िया को राजस्थान दिखाने का वायदा किया था, आगरा मैं भी न जा पाउँगा मुझे अपनी पैकेजिंग यूनिट का काम भी देखना है”
मैं जब यह सब कह रहा था तो सोफ़िया की नजरें मुझ पर गड़ी हुईं थीं पर वह यह जानती थी कि जो मैंने कहा वह बिल्कुल सत्य था इसलिये वह बोल पड़ी, “रहने भी दीजिये मैं आगरा अकेले ही चली जाउँगी, वैसे भी अगर मैं अकेले आती तो अकेले ही तो घूमने जाती न”
मेरे साफ मना कर देने से सोफ़िया कुछ उदास तो थी पर वह यह भी जान रही थी कि जो मैंने कहा वह भी बिल्कुल सच था। वह तो अच्छा हुआ कि महेंद्र ने अपने आप ही सोफ़िया के साथ जाने की बात कह दी। यह सुनकर मामू सा और मामी सा दोनों के चेहरे पर ख़ुशी की एक लहर दौड़ गई।

क्रमशः


एपिसोड 15
सुबह का नाश्ता करके महेंद्र और सोफ़िया आगरा के लिये निकल गए। उस समय तक नागेंद्र तो सो ही रहा था, मैं और मामू सा और मामी सा लॉन में बाहर बैठ कर धूप सेंक रहे थे। मेरे हाथ में अखबार था और मैं उनको हेड लाइन्स सुना रहा था। जब मामू सा बोले, “अरे अभिनव बंद तो कर ये सड़ी सड़ाई खबरें। इनको सुनके और दिमाग़ खराब होता है सरकार को करना धरना है नहीं। छोड़ इनको करने दें जो ये करना चाहें। मेरी बात सुन”
“जी मामू सा, कहिए”
मामू सा बोले, “आज यह देखने वाली बात यह होगी कि हमारे बड़े बेटे धर्मेंद्र में हमारे डीएनए का कोई एक हिस्सा भी आया है कि नहीं, उसमें हमारे जैसे गुण हैं भी अथवा नहीं”
मामू सा जी बात पर मामी सा बोल पड़ीं, “मैं जान रही हूँ कि आपका इशारा किस ओर है”
“बताओ तो ज़रा देखें तुम्हारे दिमाग़ की डोर पतंग को कहाँ तक ले जाती है”
“मतलब”
“मतलब यह कि तुम कितनी दूर तक का सोच रखती हो”
“आप यही सोच रहे हैं न कि क्या महेंद्र सोफ़िया को इम्प्रेस कर पायेगा कि नहीं”
“अरे आज तो तुम 100% सही निकली”
“अच्छा चला यह बताओ कि इसका टेस्ट क्या होगा कि क्या सोफ़िया पट गई कि नहीं”
“हाँ है न अगर वे दोनों ताज के सामने उस संगमरमर की बेंच पर बैठ कर फ़ोटो खिंचवाएंगे जिस पर बैठ कर हर प्रेमी जोड़ा अपनी तस्वीर खिंचवाने की ख़्वाहिश रखता है, समझो अगर खिंचवाई तो ‘हाँ’ और अगर नहीं खिंचवाई तो समझो ‘ना’। ठीक है न”
“हाँ ठीक है” मामी सा बोलीं।
मामू सा बोले, “ठीक है आने दो शाम को तब पूछेंगे”
मामी सा बोलीं, “इतनी ही पूछा पाछी करते तो लड़का इतने दिन तक कुँआरा न बैठा रहता”
“माना कि मेरी गलती थी लेकिन तुमने भी क्या किया। आखिर तुम भी तो उसकी माँ हो’
“हमारे यूएस में तो लड़के अपने आप लड़कियां ढूंढ लेते हैं ये तो आपके इंडिया का चलन है कि माँ बाप लड़के का ध्यान भी रखें और फिर उसके लिये लड़की भी ढूंढे”
“वो फ़र्ज़ तो हमने भी पूरा किया था अब क्या करें कि रिया का साथ उसकी क़िस्मत में ही न था”
“आप बुरा न मानें तो एक बात कहूँ सारी गलती रिया की भी नहीं थीं कुछ तो कमी धर्मेंद की ओर से भी थी। वह दिन रात अपने काम में मशगूल रहता और बीवी को नेगलेक्ट करता”
“मैं मानता हूं कि उससे यह गलती हुई लेकिन वह भी क्या करता वह उस समय अपने हॉस्पिटल के सेट अप के काम में उलझा हुआ था”
“कुछ ही हो उसे रिया की ज़रूरतों का भी ध्यान रखना चाहिए था”
“उसके लिये वह सब कुछ तो करता था पर वह भी कुछ अधिक ही डिमांडिंग थी”
“लिसन आई थिंक हर फिजिकल नीड्स वर नॉट फुल्ली मैट”
“यू मे बी राइट बट लिंडा यू बिल एग्री विद मी दैट एज पेरेंट्स न तो मैं कुछ कर सकता था और न तुम”
“मुझसे एक गलती ही गई उस समय मुझे अभिनव को यूएस बुला लेना चाहिए था वह बहुत कुछ कर सकता था” इतना कह कर मामी सा ने मेरी ओर देखा।
“मामी सा मैं भी भला वहाँ आकर क्या करता। चलिये छोडिये भी अब तो यह तय करिये कि अब क्या करना है”
“तुम ही बताओ कि हम अब क्या करें”
मैंने कहा, “मामू सा आप रहने दीजिये ये काम मैं करके आपको रिपोर्ट ही नहीं दूँगा बल्कि प्रूफ़ में वह फ़ोटो भी दिखाऊँगा”
“ठीक है” मामू सा बोले, “अगर वह यह काम करने में फेल हो गया तो मेरी नाक ही कट जाएगी”
“आपको लगता है कि आप अपनी उम्र में बहुत बड़े तीरंदाज थे” मामी सा बोलीं।
“मैं अगर तीरंदाज न होता तो तुमको अपने जाल में कैसे फँसा पाता”
यह सुनकर मामी सा के गालों पर सुर्खी सी छा गई उस समय मुझे लगा कि प्यार की अनुभूति होती ही अलग सी है वह चाहे एक अमेरिकन महसूस करे या एक हिंदुस्तानी। मामू सा और मामी सा आपस में गपशप करते रहे मैं वहाँ से उठकर अपने कमरे में आया और रमा को फोन लगाया और उसे पूरी बात बताईं जो हम लोगों के बीच हुईं थीं। मेरी बातों को ध्यान से सुनकर रमा बोली, “अब आपके सीरियल का क्या होगा”
क्रमशः
एपिसोड 16
“....क्या होगा बदस्तूर चलेगा बस अगर वहाँ अभिनव नहीं होगा तो कोई और होगा ये दुनिया न रुकी है न आगे भी रुकेगी । अभी कुछ नहीं कहा जा सकता है”
“क्या तुम्हें अभी भी उम्मीद है कि सोफ़िया आपकी हीरोइन बनी रहेगी”
“हीरोइन न रहेगी तो छोटे भाई की बहू रानी बन के रहेगी पर रहेगी हम दोनों के बीच ही जब तक वह यहाँ इंडिया में है”
रमा बोली, “कल सुबह के एपिसोड में पाठकों के सामने यह गुत्थी रखना कि वे लोग ही बताएं कि सोफ़िया को आपकी बाहों में रहना चाहिए या महेंद्र की हो जाना चाहिए”
“हाँ यह ठीक रहेगा। देखो आज तुमने मुमताज वाला काम आखिर कर ही दिया”
“क्या मतलब”
“यही कि अपने बादशाह शाहजहां को सही राय देकर एक उलझे हुए मसायल को सुलझा जो दिया। रमा एक बात बताओ कि हमारे धारावाहिक की आजकल टीआरपी कैसी चल रही है”
“चकाचक और क्या कहें” श्रीमती जी बोलीं।
मुझे अपनी तारीफ़ सुनकर अच्छा लगा कि आख़िर मेरा नाम भी जाने मने लेखकों की श्रेणी में अंतत: चल ही निकला, भले ही कोई साहित्यिक अवार्ड न मिला हो क्या करना है हम तो अपने आप को नाच गाने वाले मानते हैं, हमारे नाच गाने देखकर कुछ लोग तालियाँ बजा देते हैं या कुछ सिक्के उछाल कर कह देते हैं, ‘क्या पटक के दे मारा, वाह वाह वाह…’ तो हमारे लिये यही बहुत है’।
मेरे दिल की आवाज़ मेरी ही न बने ये तो हो ही नहीं सकता। मेरी श्रीमती जी ने पता नहीं क्या महसूस किया और कहा, “सुनते हो जी आप किसी प्रकार की भी अवधारणा अपने लेखन को लेकर मन में न बिठा लेना। आपके लेखन की शैली अन्य जाने माने और प्रतिष्ठित लेखकों से कुछ हट कर है। जहाँ दूसरे लेखक डिस्क्रिप्टिव कहानी लिखने में विश्वास करते हैं वहीं आप अपना नरेटिव डॉयलाग के माध्यम से कहने की कोशिश करते हैं, इसलिये आपका पाठक कथानक के रस में पूरी तरह डूब कर कहानी के रस का स्वाद लेकर चटखारे मारता हुआ पढ़ता है। वह आपके कथानक के साथ उदास होता है, तो वहीं वह आपके कथानक के साथ आपके चुनिंदा पात्रों से बात करता प्रतीत होता है। यह अपने आप में लेखन के क्षेत्र में एक नया प्रयोग है। जब कोई नया प्रयोग किया जाता है तो उसे समझने में लोगों को कुछ समय लगता है”
“रमा मैं तुमसे यह सब सुनकर कर तुम्हारा कृतज्ञ हो गया। आज तक यह शब्द तो मेरे लिये किसी ने भी नहीं प्रयोग किये हैं। तुम्हारा हार्दिक धन्यवाद और ढेर सारा प्यार”
पता नहीं उस दिन रमा को क्या हो गया था कि वह मेरी तारीफ़ में कसीदे पढ़े ही जा रही थी और रुकने का नाम नहीं ले रही थी। वह उसी धुन में बोली, “मुझे आपसे एक बात और भी कहनी है धारावाहिक लिखना कोई बच्चों का खेल नहीं है। टीवी या रेडियो में एक धारावाहिक जब प्रसारित होता है तो उसके पीछे सैकड़ों लोगों की टीम होती है जिसमें एक लेखक सिर्फ अकेला होता है, डायलॉग लिखने वाले अलग से होते हैं, मंझे हुए अदाकार और गुलूकार होते हैं, डायरेक्टर, लाइट मैन, न जाने कितने उसे प्रमोट करने वाले होते हैं, तब जाकर कहीं एक सीरियल टीवी या रेडियो पर प्रसारित हो पाता है। आप किसी भी तरह अपना दिल छोटा मत करना तुम अपना लेखन जारी रखना। हम रहें न रहें देखना एक दिन यही दुनिया वाले और फेसबुक के मालिकान आपको याद करेंगे कि बिना कोई पैसा लिए जो आपकी तरह धारावाहिक पेश करे। आज तक आपने जो पाठकों का भरपूर मनोरंजन किया है वह स्वयं में एक अद्भुत मिसाल है। बस आप लिखते रहियेगा, आपकी कलम से कुछ न कुछ रचनात्मक सृजन होते रहना चाहिए”
.....बाद में हँसते हुए रमा ने यह और जोड़ दिया, “कोई नई हीरोइन अगर मिली ही तो उसके बारे में मुझे एक बार बता ज़रूर दीजियेगा”
“ज़रूर मैं तो तुम्हें अपने जीवन के हर अहम पहलू में साथ लेकर चला हूँ और आगे भी वायदा करता हूँ इसी तरह चलता रहूँगा। तुम्हें एक बात और बतानी थी कि मामी सा मामू सा से आज ही कह रहीं थीं कि उनसे बहुत बड़ी गलती हो गई अगर वह मुझे यूएस उस समय बुला लेतीं जब कि रिया और महेंद्र में पटरी नहीं बैठ रही थी तो कुछ न कुछ उपाय निकल आता”
रमा बोली, “हटाइए अब जो होना था वह हो चुका”
“हाँ यह भी सही है। पुरानी कहावत भी तो है ‘बीती ताय बिसारिये आगे की सुधि लेय”
रमा ने चलते चलाते एक जुमला छोड़कर ही फोन बंद किया, “सोफ़िया को लेकर बीकानेर कब आ रहे हैं, मैं तो उसकी याद में नज़रें बिछाए बैठी हूँ”
मैंने भी अपनी ओर से उसे आश्वस्त करते हुए कहा, “अगर वह मेरी हीरोइन रहेगी तो उसे मैं तुमसे मिलवाने अवश्य लेकर आऊँगा अगर वह इसी बीच महेंद्र की हो गई तो बात कुछ दूसरी होगी”
रमा से बात करके मैं अपने कमरे से निकल कर मामू सा और मामी सा के पास जब फिर से जा बैठा तो मामू सा ने पूछा, “अभिनव एक बात तो बता कि सैनिक फार्म से आगरा पहुँचने में कितनी देर लगती होगी”
मामू सा का यह प्रश्न सुनकर मैं उनके मन की दशा को समझ रहा था कि जब कोई अनिश्चितता की स्थित में होता है तो उसका मन कितना परेशान रहता है। यहाँ तो मामू सा के अपने बड़े बेटे की बात थी। मामू सा भी महेंद्र को लेकर बेमतलब ही कुछ अधिक परेशान हो रहे थे। मैंने मामू सा से कहा, “मामू सा पहले तो वृंदावन-मथुरा से जाते हुए चार पाँच घंटे लग जाते थे लेकिन जब से ये यमुना एक्सप्रेस वे बन गया है तब से आगरे तक का सफ़र मुश्किल से दो ढाई घंटे का ही रह गया है”
“महेंद्र को निकले हुए दो घंटे से तो ऊपर ही हो गए हैं इसका मतलब अब वह सादाबाद के आसपास कहीं होगा”
“मामू सा इतनी चिंता हो रही है तो मैं उसको फोन लगा कर पूँछ लेता हूँ एक मिनट ही तो लगेगा”
“अरे नहीं-नहीं रहने दे। पहुँच ही जायेगा जब उसे पहुँचना होगा”
“आप चिंता मत करिये किशन लाल है न उनके साथ। वह गाड़ी ठीक ठाक चलाता है” कहने को तो मैंने कह दिया लेकिन मैं मामू सा को अच्छी तरह से जानता था कि जब हम लोग उनसे दूर होते तो वह शुरू से ही हम लोगों के लिये बहुत परेशान रहते थे। इधर हम घर से कहीं जाने के लिये निकले नहीं कि उधर उनकी परेशानी बढ़ने लगती थी कि फलां कहाँ होगा क्या कर रहा होगा। सब लोग बदल गए लेकिन मामू सा इतने सालों के बाद भी नहीं बदले। कहने को कोई कुछ कहे कि वह अमरीका पहुँच गए लेकिन वह दिल से हमेशा हिंदुस्तानी ही बने रहे। एक पारवारिक इंसान..
क्रमशः

25-01-2018
एपिसोड 17
दिन भर मैं अपनी यूनिट के काम में बिजी रहा। चीफ अकाउंट्स ऑफिसर के साथ फाइनेंसियल मुद्दों पर बात चीत की। बैंक ऑफ बड़ौदा में अपनी लोन की एप्लीकेशन के बारे में पता किया। स्टाफ़ की सैलरी जानी थी। उसका एनईएफटी कर के रिलीज़ किया।मार्केटिंग हैड से सप्लाई चैन की पोजीशन ली। सेल्स वालों को कल की मीटिंग के लिये नोटिस इशू किया कहने का मतलब दिन भर आज अपने काम में खटता रहा।
शाम को जब मामू सा ने चाय के लिये बुलाया तो उनके पास जा बैठा। मामू सा को देखकर मुझे लगा कि उन्हें आज कोई बात भीतर ही भीतर खाये जा रही है इसलिए मैंने उनके मन को कुरेदते हुए कहा, “मामू सा आप कुछ चिंतित लग रहे हैं”
“हाँ बेटा, मैं महेंद्र को लेकर बहुत चिंतित हूँ। तू तो जानता है कि महेंद्र अपनी बीवी रिया को कितना प्यार करता था लेकिन उसके माता पिता के हर रोज़ की गलत सलाह के चलते उसकी गृहस्थी में आग लग गई। एक दिन वह आया कि रिया ने महेंद्र को भला बुरा तो कहा ही और उस पर वार भी किया। मजबूरन महेंद्र को रिया को उसके घर भेजना पड़ा। महेंद्र के दिल में तब से महिलाओं के लिये कोई प्यार व्यार नहीं रह गया है। वो तो तू अपनी लिंडा मामी सा का धन्यवाद कर कि उन्होंने महेंद्र को किसी तरह समझा बुझा कर ज़िंदगी में अपना काम करने के लिये बहला फुसला कर तैयार किया”
“जानता हूँ, मामू सा मैं सब जनता हूँ। अगर आपकी ज़िंदगी में बड़ी मामी सा की मृत्यु के बाद वे नहीं आईं होतीं तो आप न जाने महेन्द्र और नागेंद्र को कैसे पाल पाते”
“अभिनव तुझसे तो कुछ भी छिपा हुआ नहीं है जब मैंने लिंडा से विवाह करने का निश्चय किया तो लोगों ने मेरा कितना मज़ाक बनाया था। वह तो मुझे तेरी माँ सत्यवती की बात याद हो आई जो उसने अपनी मृत्यु के पहले कही थी कि जीजू सा से कह देना की वह उसके जाने के बाद शादी ज़रूर कर लें मैंने उसकी बात याद करके के ही लिंडा की ओर प्यार का हाथ बढ़ाया”
“मामू सा मैं सब जनता हूँ”
“मेरी अब यही इच्छा है कि किसी तरह अगर सोफ़िया, महेंद्र से प्यार करने लगे तो महेंद्र की ज़िंदगी बन जाय”
“मामू सा आप चिंता न करिये यह काम आप मुझ पर छोड़िये मैं यह काम करके ही चैन लूँगा लेकिन सोफ़िया के बारे में एक बात बतानी थी”, इतना कह कर मैंने मामू सा को वह बात बता दी कि सोफ़िया के साथ बचपन में कुछ ऐसा हो गया कि वह तब से फ्रिजिड हो गई है। उसे पहले एक नार्मल महिला बनाना पड़ेगा उसके बाद ही मुझे लगता है कि कोई काम बन पाएगा। मेरी बात सुनकर मामू सा एक बार चिंता में डूब गए। उन्हें चिंताग्रस्त देख मुझे बहुत दुख हुआ मुझे लगा कि यह बात उन्हें नहीं बतानी चाहिए थी। मैं यही सोच रहा था कि उनके चेहरे पर एक चमक सी आई और बोले, “यह कोई बहुत बड़ी समस्या नहीं है। मुझे लगता है कि सोफ़िया को किसी अच्छे साइकोलॉजिस्ट को दिखाने से यह काम हो जाएगा। तुम चिंता मत करो मैं लिंडा से कहकर किसी न साइकोलॉजिस्ट को ढूँढ ही निकालूँगा”
मैं बहुत ख़ुश हुआ जब मामू सा ने सोफ़िया को किसी मनोवैज्ञानिक को दिखाने की बात सोची। कुछ पल ही गुज़रे थे कि मामू सा एक बार फिर से चिंता में डूब गए तब मैंने मामू सा से पूछा, “मामू सा अब क्या हुआ”
“एक बात की मुझे चिंता है अगर कहीं ऐसा हो गया तो क्या होगा”
“कैसा मामू सा”
“महेंद्र तो सोफ़िया को चाहने लगे लेकिन सोफ़िया उसे न चाहे”
“यह हो सकता है”, मैंने भी मामू सा की बातों से हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा।
“महेंद्र की जो बैकग्राउंड शादी के मुआमले में रही है वह हम तुम तो जानते हो लेकिन बाहर वाली एक लड़की कैसे जानेगी”
“मामू सा उसकी फ़िक्र मत करिए उस सिचुएशन को मैं हैंडल कर ले जाऊँगा”
“वह कैसे”
जब पेच यहाँ आकर फँस गया तो मुझे मामू सा को अपने बारे में सब कुछ बताना पड़ा, “न जाने मामू सा मुझमें कौन सी ऐसी खास बात है कि जिस लड़की की ओर एक बार प्यार भरी नजरों से देख भर लूँ तो लड़कियाँ अक़्सर मुझ पर फिदा हो जातीं हैं। उसके बाद मैंने मामू सा को उन सब लड़कियों के नाम गिनवा दिए जो आज तक मेरी ज़िंदगी में आईं। मैंने फिर सोफ़िया के बारे में भी उन्हें बताया कि वह उसे किस तरह रेस्त्रां में बैठी हुई दिखी और फिर हम दोनों के बीच क्या सब हुआ”
मेरे चेहरे की तरफ मामू सा एक टक देखते रह गए और बोले, “वाह मेरे शेर वाह। मैं तो सोचता था कि मैं ही इस मुआमले में नंबरी रहा हूँ इसलिए लिंडा को तेरी मामी सा बना सका लेकिन तू तो मेरा भी उस्ताद निकला। इधर तो आ जरा तेरे चेहरे को ध्यान से देखूँ कि ऐसी कौन सी खास बात है”
“मेरे चेहरे को देखकर मामू सा बोले ये जो दो तिल हैं न एक बाएं गाल पर हल्का सा ऊँची सी जगह और दूसरा दाएं गाल पर कुछ नीचे की ओर यही वे कातिलाना निशानी हैं जिन्हें देखकर अच्छी-अच्छी लड़कियाँ तुझ पर मर मिटतीं हैं”
जब मामू सा ये सब कह रहे थे उस समय मेरे दिल में वे सब बातें घूम रहीं थीं जो अलग-अलग समय में अलग-अलग लड़कियों ने मुझसे कहीं इन्हीं तिलों को लेकर कहीं थीं यहाँ तक कि अनामिका, कमल नसीम, तान्या, वेरॉका और भी वे तमाम जो कभी मेरी चहेतीं रहीं और इन सब में सबसे अहम मेरी अपनी श्रीमती जी रमा जिसने तो मेरा नाम ही एक समय में तिलोत्तम सिंह रख दिया था।
मेरी ओर देखते हुए मामू सा बोले, “ठीक इन्हीं जगह तेरी माँ सत्यवती के भी तिल थे और न जाने उसके कितने दीवाने थे लेकिन उसका दिल सिर्फ़ जीजू सा पर आ गया जब उसने उन्हें अपनी एक सहेली की शादी में देखा था। बाद में उसने अपनी ओर से बाबू सा से कहा था कि अगर वह शादी करेगी तो जीजू सा से नहीं तो नहीं। उसके बाद ही बाबू सा तेरे बड़े दादू सा के पास रिश्ता लेकर गए थे”
अपनी माँ सा के बारे में ये सब बातें जब मामू सा ने जो मुझे उस दिन बताईं जिन्हें मुझे क्या घर भर में किसी और को मालूम न थीं और अगर मालूम भी रहीं होंगी तो किसी ने कभी मुझे नहीं बताईं थीं। मुझे ये सब जानकर बहुत अच्छा लगा। मैंने मन ही मन सोचा कि जब रात को रमा से बातें होंगीं तो मैं उसे ये सब ज़रूर बताऊँगा। मुझे पूरा विश्वास था कि यह सब जानकर वह मुझसे कहेगी ‘क्या बात है जानूँ क्या बात है। मेरा सनम आखिर उस माँ सा का बेटा है जिनके चेहरे के चाहने वाले एक नहीं बल्कि अनेक रहे हैं’।
मैंने मामू सा की ओर ध्यान ही नहीं दिया मैं अपने ख्यालों में ही मगन था पर मामू सा मेरी माँ सा के बारे में जब कुछ भी बताते तो बहुत दुखी हो जाते थे। मैंने मामू सा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए यही कहना ठीक समझा, “मैंने अपनी माँ सा को बचपन में ही खो दिया था। मुझे तो यह भी याद नहीं पड़ता कि वह देखने में कैसी थीं पर जितना भी आप लोगों से सुना है उससे तो यही लगता है कि वह खूबसूरती की मिसाल तो रही ही होंगी लेकिन उससे भी बढ़ कर यह बात कि वह बहुत नेकदिल इंसान थीं”
जब मैंने मामू सा से माँ सा के लिये यह सब कहा तो एक बार उन्होंने मुझे पकड़ कर अपने सीने से लगा लिया।
क्रमशः


26-01-2018
एपिसोड 18
शाम को जब सोफ़िया और महेंद्र लौटे तो हम सभी लोग ड्राइंग रूम में बैठे उनका इंतजार ही कर रहे थे। जैसे ही वे हम लोगों के सामने आए तो मामू सा ने सोफ़िया से पूछा, “कैसा लगा हमारा ताज”
“फैबुलस, फैंटास्टिक, अमेज़िंग, वण्डवरफुल, अनपैरेलल, अनकॉम्परेबल क्लासिकल ब्यूटी और भी न जाने क्या-क्या ......और आख़िर में सिम्पली वाओ”
मामू सा के मुँह से ताज की खूबसूरती में निकले हुए चंद अल्फ़ाज़ कुछ ऐसे निकले, “इतना कुछ नहीं इसके आगे भी ‘काल के गाल पर आकर रुका हुआ आँख से एक आँसू’ यह हमारे नोबल प्राइज विनर गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर जी ने कहा था ताज जब वह देखकर बाहर निकले थे”
मामू सा की बात पर सोफिया बोली, “इंडिया इस अमेजिंग कंट्री, मुझे लगता इससे प्यार हो जायेगा”
अचानक ही मेरे मुँह से निकल गया, “हो जायेगा नहीं यह कहो कि हो गया है”
“यहाँ के लोगों से भी”
“चलो अच्छा है जो बात हाग कांग में नहीं हो पाई वह यहाँ हो गई”
“क्या मतलब तुम्हारा”
“यही की किसी इंडियन से लव हो जायेगा”
“ओह यू मीन दैट” सोफिया बोली।
मैं बस सोफिया की बात पर मुस्कुरा कर रह गया। दूसरी ओर मामी सा के साथ-साथ महेंद्र ने शायद यह समझा कि मैं सोफिया को महेंद्र से प्यार करने के लिए उकसा रहा हूँ। इसके बाद आगरे के बारे में इधर उधर की बात होती रहीं किनारी बाज़ार की रौनक से लेकर, पँछी पेठे और दालमोंठ, बालू गंज की देशी घी की कचौड़ी की बात भी हुई।
बीच में सोफिया ने अपनी यह डिमांड भी हम लोगों के सामने रख दी कि इंडिया को और करीब से जानने के लिए इतिहास के बारे में भी जानना बहुत ज़रूरी है इसलिए मैं उसके लिए कुछ बुक्स खरीद दूँ जिससे वह यहाँ इंडिया देखते समय अपने आप को उन चीजों से बेहतर ढंग से कनेक्ट कर सके। मैंने उससे वायदा किया, “मैं कल ही कुछ बुक्स मंगा दूँगा”
बाद में मामी सा ने वह बात पूछी जो हर कोई पूछने से कतरा रहा था, “तुम दोनों ने उस संगमरमर की बेंच के ऊपर बैठकर फोटो खिंचवाई जहाँ हर वह जोड़ा फोटो खिंचवाता है जिनके दिलों में थोड़ा भी प्यार एक दूसरे के लिए होता है” यह कह कर मामी सा ने धर्मेन्द्र और सोफ़िया के सामने वह फोटो कर दी जिसमें वह और मामू सा साथ-साथ ताज के सामने उसी संगमरमर की बेंच पर बैठे हुए थे। मामू सा और मामी सा की फोटो देखकर झट से सोफ़िया बोल पड़ी, “हाँ खिंचवाया है न” और इतना कहकर उसने अपना मोबाइल ऑन किया और वह एक खास फोटो तो हम लोगों को दिखाई जिसमें वह और महेंद्र साथ-साथ संगमरमर की बेंच पर बैठे थे और भी वे तमाम फोटो जो उन्होंने अपने कैमरे से खींचे थे। इतना ही नहीं महेंद्र ने जब यह बताया कि उसने तो एक ऑफिसियल वीडियोग्राफर को अपना कैमरा देकर ताजमहल की ही नहीं बल्कि आगरे के लालक़िले के विजिट की पूरी वीडियो शूट कराई है। जब महेंद्र और सोफ़िया अपने आगरे के विजिट के बारे में खुश होकर बच्चों की तरह बता रहे थे तब मैं मामू सा के चेहरे की ओर देख रहा था कि उनके चेहरे पर एक अजीब सी ख़ुशी का भाव था जो मैंने इधर बरसों में नहीं देखा था। सबकी ख़ुशी उस समय दोगुनी हो गई जब मामी सा ने यह डिक्लेअर किया, “इट्स सेलेबेब्रशन टाइम गेट मी अ बॉटल ऑफ शैम्पैन”
मामू सा बोले, “जाओ बच्चों जाओ तुम दोनों फ्रेश हो कर आओ तब तक हम लोग सेलिब्रेशन की तैयारी करते हैं”
उस दिन मामू सा ने डाइनिंग टेबल पर क्राकरी खुद अपने हाथों से सजाई, मैंने और नागेंद्र ने ड्राइंग रूम के फर्नीचर को सुव्यवस्थित कर के रखा, नागेंद्र ने सेलेबेब्रशन का वीडियो बनाने की जिम्मेदारी अपने ऊपर ली। मामी सा ने उस दिन अमेरिकन और इंडियन डेलिकेसीज से सजी हुई एक से बढ़ कर एक डिशेज़ डाइनिंग टेबल पर लगाईं।
जब सोफ़िया और महेंद्र फ्रेश होकर आए तो सभी लोगों ने मिलकर एक वेलकम गीत गाया जो मामी सा ने ख़ुद कंपोज़ किया था। उसके बाद मामू सा ने शैम्पैन की बड़ी सी बोतल को खूब हिला कर इस तरह से खोला जिससे कि उसकी बौछार सोफ़िया और महेंद्र के चेहरे पर गिरे।
उस दिन हमारा सेलेबेब्रशन रात को एक बजे तक चला और जब हम सब थक कर चूर हो गए और नींद सताने लगी तभी अपने-अपने रूम की ओर चलने को उठे। सोफ़िया को जब मैं गुड नाइट कहने लगा तो वह बोली एक मिनट जरा इधर तो आओ और सबके सामने वह मेरी बाँह पकड़ कर अपने बेड रूम में ले गई और पूछने लगी, “ये सेलेबेब्रशन आखिर किस बात के लिये था”



क्रमशः
एपिसोड 19
मैं इस बात को लेकर परेशान था कि घर के बाकी सभी लोग क्या सोच रहे होंगे जिस तरह सोफ़िया मेरा हाथ पकड़ कर अपने साथ यहाँ ले आई। मैंने उससे अपना पल्ला छुड़ाने के लिये कहा, “हम लोग इसके बारे में कल सुबह बाते करें”
“अभी क्यों नहीं” उसका प्रश्न था।
“अरे भाई इतनी रात हो गई है नींद आ रही है बस इसलिए”
“कोई और बात तो नहीं है”
उसे आश्वस्त करते हुए मैन कहा, “कोई और बात नहीं है”
जब उसने मेरे मुँह से यह सुन लिया उसके बाद ही उसने मेरे होंठों को चूम कर ही मुझे छोड़ा और हँसते हुए बोली, “गुड नाइट। गुड नाइट ऐसे कहते हैं”
मैंने सोफ़िया से गुड नाइट कहा और उसके बेड रूम से बाहर आ गया। बाहर आते ही देखा तो मामू सा मेरा इंतज़ार कर रहे थे यह जानने के लिये की सोफ़िया क्या कह रही थी। मैंने उन्हें बताया कि कुछ खास नहीं बस यह पूछ रही थी कि आज रात का सलेबेब्रशन किस खुशी में था। इस पर मामू सा पूछ बैठे, “तो तूने क्या कहा”
“मैंने उससे यही कहा कि वह और महेंद्र जो साथ-साथ आगरा घूमने गए थे इसलिए दूसरा यह कि उसे हमारे देश का गौरव ताजमहल अच्छा लगा”
“कुछ और…”
“हाँ यही कि उसे तो अभी बहुत सी जगह देखनी हैं”
“कुछ और…”
“बस मामू सा उसके बाद गुड नाइट”
मामू सा मेरे पास आए और बोले, “वह तो दिखाई पड़ रहा है। अरे बरखुरदार जरा उसके रूम से निकलने के पहले मुँह तो रुमाल से पोंछ लिया होता”
“मामू सा…” कहकर मैं अपने बैडरूम में जब पहुँचा तो वहाँ दोनों भैय्या लोगों की सुननी पड़ीं। कहने का मतलब उस दिन मेरी खूब खिंचाई हुई।
जब अगली सुबह मेरी मामी सा और मामू सा से मुलाक़त हुई तो मैं समझ नहीं पा रहा था कि मैं उनसे क्या कहूँ क्योंकि जिस तरह मामू सा ने अपना दर्द महेंद्र को लेकर बयाँ किया था उसकी वजह से मैं यह कह कर उन्हें और दुखी नहीं करना चाह रहा था कि सोफ़िया के दिल में अभी तक तो मेरी ही तस्वीर छाई हुई थी इसलिए मैंने उनसे यही कहना मुनासिब समझा, “मामू सा मैं कुछ दिनों के लिये बीकानेर जा रहा हूँ। घर से बहुत दिनों से निकला हुआ हूँ। रमा से मिले बहुत दिन हो गए हैं”
मामू सा घाट-घाट का पानी पिये हुए थे झट से मेरी बात के पीछे छिपी हुई बात को भाँप गए और बोले, “एक काम कर इसे भी अपने साथ ले जा”
मैं समझा कि वह मामी सा को साथ ले जाने के लिये कह रहे हैं तो मैंने खुशी-ख़ुशी कहा, “मामी सा का घर है अगर वह मेरे साथ आ रहीं हैं तो यह तो मेरे लिये सोने पर सुहागे जैसी बात होगी”
“अरे उल्लू के ढक्कन मैं तेरी मामी सा को कहीं नहीं भेज रहा मैं तो सोफ़िया की बात कर रहा हूँ”
मामू सा की बात सुनकर मेरे मुँह से निकला, “सोफ़िया को…”
“क्यों भाई क्या हुआ। हांग कांग से लाया तो था उसे घुमाने तो अब क्यों उससे कट रहा है”
“मामू सा मैं सोच रहा था कि अगर महेंद्र भी मेरे साथ चला चले तो अधिक ठीक रहेगा”
“एक काम कर तू उन दोनों से अकेले में बात कर अगर वे लोग जाना चाहें तो ले जा”

क्रमशः
एपिसोड 20
जब मैंने सोफ़िया से बात की तो सोफ़िया कहने लगी, “महेंद्र भी चल रहा है हमारे साथ”
मैंने सोफ़िया से कहा, “सफ़र में जितने अधिक लोग रहते हैं उतना ही अच्छा रहता है”
“….तो नागेंद्र को भी साथ ले लो उसे ही क्यों छोड़ रहे हो”
“मैंने तो सोचा था कि तुम शायद महेंद्र के साथ चलना पसंद करो चूंकि तुम उसके साथ आगरे जा चुकी हो और जैसा मुझे पता चला कि तुम दोनों ने खूब एन्जॉय किया”
“मैं कहाँ गई आगरे उसके साथ वह तो आगरा था, ताज का घर”
“हम लोग उसे प्यार से आगरा को आगरे कहते हैं”
“ओके अब समझी कि इंडिया में नाम तोड़ मरोड़ कर रखने की आदत है”
सोफ़िया की बात सुनकर मैं मुस्करा भर दिया.. मुझे मुस्कुराते हुए उसने पूछ, “चलो एक बात बताओ कि अगर तुम्हें सोफ़िया का छोटा नाम रखना हो तो क्या रखोगे”
“सोफी… और क्या मेरे ख़्याल से सोफी ही ठीक रहेगा”
“तो तुम मुझे आगे से सोफी ही कह कर बुलाओगे कुछ और नहीं”
“ठीक है”
अभी तक सोफ़िया ने बीकानेर चलने के लिये हाँ नहीं किया था और मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ता ही जा रहा था। आख़िर मुझे मामू सा और मामी सा को जवाब जो देना था कि महेंद्र मेरे साथ आ रहा है कि नहीं। पता नहीं अचानक सोफ़िया के दिमाग़ में क्या घूमा कि वह बोली, “….अगर तुम सोफी कह कर पुकारने का वायदा कर रहे हो तो महेंद्र हमारे साथ चल सकता है”
सोफ़िया के उत्तर ने मेरे वो तमाम प्रश्नों का जवाब दे दिया। मैंने उससे कहा, “हम आज ही निकल चलेंगे तुम अपना बैगेज फिक्स कर लो”
“ओके मैं वही समान अपने साथ ले चलूँगी जो हमें वहाँ चाहिये बाकी का यहीं छोड़ दूँगी”
“ठीक है लौट कर तुमको आना तो यहीं है”
“मैंने भी यही सोचा इसीलिए तुमसे डिसकस किया। अभिनव एक बात का ध्यान रखना मैं तुम्हारे मुँह से सोफी सुनना चाहूँगी किसी और के मुहँ से नहीं। सोफी में मुझे तुम्हारा प्यार झलकता सा लगता है”
“ओके डन”
मैं सोफ़िया से महेंद्र को साथ ले चलने की बात कर सीधा मामू सा के पास गया और जब उन्हें बताया कि महेंद्र हमारे साथ चल रहा है तो वह बेहद ख़ुश हुए और बोले, “अभिनव बेटा एक काम कर मेरे ख़्याल से तुम लोग दिल्ली से बीकानेर सीधे जाने की जगह पहले जयपुर जाओ वो रास्ता भी ठीक है और रात को वहीं रुको। अगले दिन सोफ़िया को जयपुर घुमा घुमू के फिर वहाँ से अजमेर किशनगढ़ होते हुए बीकानेर पहुँचो रुक-रुक कर जाने में थकान भी नहीं होगी और तुम लोगों की तबियत भी लगी रहेगी। जब सोफ़िया यहांआई है तो उसे राजस्थान देख हो लेने दो”
“जी मामू सा मेरे ख़्याल से यही प्रोग्राम ठीक रहेगा”
“बीकानेर पहुँचने के पहले रमा को फोन कर देना तो वो हवेली के ऊपरी हिस्से में इन लोगों को ठहरने की व्यवस्था कर देगी”
“मैं सोच रहा था कि सोफ़िया और महेंद्र को मैं लक्ष्मी निवास में ठहरा दूँगा वो अच्छा रहेगा क्योंकि अपनी हवेली तो बड़ी पुरानी सी लगे है पता ना सोफ़िया को पसंद भी आएगी या ना”
“चल ऐसा ही कर लियो। यही ठीक रहेगा। मैं तुम लोगों के जयपुर में रुकने के लिये अपने जान पहचान वाले रंजीत राठौर साहब को फोन कर देता हूँ, वे तुम्हारा अशोका क्लब में नहीं तो राजमहल में इंतज़ाम करा देंगे। बस वहाँ पहुँच के एक बार उन्हें फोन कर लेना”
“ठीक है मामू सा”
“किशन लाल ड्राइवर को साथ ले जा वह जयपुर, बीकानेर, जोधपुर सब जगह के बारे में जानता है तुम्हें कोई परेशानी भी न होगी”
दोपहर के ठीक बाद लंच करके तीनों लोग सैनिक फार्म से जयपुर के लिये निकल पड़े।
क्रमशः
एपिसोड 21
सैनिक फार्म से निकलते ही गेट पर वो जाम देखने को मिला कि मुझे लगा कि अब तो आधी रात तक भी हम जयपुर पहुँच जाएं तो शायद यह अपने आप में बहुत बड़ी बात होगी। मैं यह सोच ही रहा था कि सोफ़िया, जो पिछली सीट पर महेंद्र के साथ बैठी हुई थी बोल पड़ी, “क्या यह रोज़मर्रा की बात है”
“नहीं ऐसा नहीं है यह कभी-कभी हो जाता है” महेंद्र ने उत्तर देते हुए कहा।
महेंद्र के जवाब को मैं आसानी से नहीं पचा पा रहा था इसलिये मैं बीच में पड़ते हुए बोला, “सोफी मैंने तुमसे पहले भी कहा था कि हमारे देश की पापुलेशन अब हमारे लिये अभिशाप बन गई है और अब यह हमारी दिन प्रति दिन के कार्यों में भी बाधक होती जा रही है, यही हाल रहा तो हम लोगों की कुछ सालों में ही दरवाज़े बंद कर अपने-अपने घर में बैठना पड़ेगा”
मेरी बात सोफ़िया ने सुनी या नहीं जानता पर उसके चेहरे पर जिस तरह की ख़ुशी मैंने देखी उससे मुझे लगा कि उसे इस बात को देखकर ख़ुशी हुई कि मुझे उसकी कल रात की बाद याद है इसलिये ही मैंने उसे आज ‘सोफी’ कहकर संबोधित किया।
मेरी बात पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए महेंद्र ने कहा, “यह बात तो है जिस तरह का प्रेशर अब अमरीका में महसूस किया जा रहा है कि विदेशी लोगों की सँख्या वहाँ के रहने वालों से बढ़ती जा रही है वहाँ के लोगों के हकूकात के ऊपर असर डाल रहे हैं हो सकता है आने वाले दिनों में कही न कहीं यह एक विस्फोटक स्थिति न पैदा कर दें”
“हो सकता है” सोफ़िया बोली, “लेकिन अमेरिका तो बेसिकली इमिग्रेंट्स का देश रहा है और मेरे विचार में रहेगा भी”
“कोई भी देश बाहरी लोगों को अपने यहाँ एक सीमा तक ही ले सकता है” मैंने यह कहकर इस मुद्दे को बंद करने में ही अपना भला समझा और किशन लाल से कहा, “लेफ्ट से निकाल कब तक खड़ा रहेगा”
किशन लाल ने मेरी बात मानी और जैसे ही बाईं ओर कार के लिये कुछ जगह बनी उसने धड़ाक से अपनी कार वहाँ फँसा दी।
“दिल्ली में ट्रैफिक ऐसे ही चलता है” उसके इस करतब पर बोला।
“क्या ओह माइ गॉड, इंडिया में गाड़ी क्या लोग ऐसे चलाते हैं” सोफ़िया बोल पड़ी।
“ये इंडिया है मैडम यहाँ ऐसे ही चलता है हमारा देश 130 करोड़ लोगों का देश है”
“ओनली गॉड कैन सेव अस”
“यू आर राइट सोफी इस देश को भगवान ही चला रहे हैं इसलिये हम लोग चौबीसों घंटे भगवान की पूजा करते रहते हैं”
“जब तुम लोग चौबीसों घंटे पूजा करते रहोगे तो प्यार कब करते होगे”
“रात को वह भी अंधेरा हो जाने के बाद जब कोई दूसरा न देख सके” महेंद्र बीच में पड़ते हुए बोल पड़ा।
“इंटरेस्टिंग इजन्ट इट महेंद्र”
“वेरी ट्रू”
महेंद्र के इस तरह बोलने पर मुझे बहुत अच्छा लगा और मामू सा की बात याद हो आई जो उन्होंने चलते समय कही थी, “अभिनव देखियो अगर महेंद्र और सोफ़िया के बीच कुछ बात बन जाये तो ठीक रहे”
ठेला ठेली करके किसी तरह किशन लाल ने हमारी कार भीड़ भाड़ वाले इलाके से निकाली और हम लोग गुड़गांव के बॉर्डर तक आ गए मुझे याद हो आया कि कार में डीज़ल है भी या नहीं इसलिये मैंने किशन लाल से पूछा, “गाड़ी में तेल भरवाना है या नहीं”
“भरवाना है साब, यहाँ हरयाणा में भरवा लेंगे क्योंकि डीजल दिल्ली से यहाँ सस्ता है”
ड्राइवर की बात सुनकर सोफ़िया बोल उठी, “क्या तुम्हारे यहाँ आयल के यूनिफाइड प्राइसेज रेजीम नहीं हैं”
“मैंने कहा हमारे यहाँ अमेरिका की तरह डिफरेंट ग्रेड के पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स अभी लांच नहीं हुए हैं एक ही ग्रेड का आयल है और प्राइसेज भी बाइ वीकली फ़िक्स किये जाते हैं”
“धीरे-धीरे चेंजेज आ रहे हैं कुछ समय तो लगता ही है अभी हमें इंडिपेंडेंस मिले हुए कुल सेवेंटी इयर्स ही हुए हैं”
“सेवेंटी इयर्स डोंट यू थिंक आर एनफ”
“अभी मोदी जी कुछ करने को कोशिश में लगे हुए हैं देखते हैं कि कुछ हो पाता है नहीं” मैंने यह कहकर आजकल के राजनीतिक दलदल पर अपना एक्सपर्ट कमेंट दिया।
इसी तरह किसी तरह हम कुछ देर बाद एनएच 8 पर आ गए तब जाकर हमारी कार ने स्पीड पकड़ी। हम लोग कॉफी ब्रेक के लिये बरहोड़ पर रुके और अंधेरा होने के बाद ही किसी तरह जयपुर पहुँच सके…
क्रमश:
एपिसोड 22
किशन लाल ने कार जयपुर के अशोका क्लब में जब लाकर खड़ी कर दी तब मुझे याद आया कि एक बार रंजीत राठौर साहब से पूछ तो लूँ की उन्होंने हमारा रुकने का इंतज़ाम आखिर कराया है तो कहाँ यही सोचकर मैंने जब उन्हें फोन किया, “राठौर भाई सा”
“कौन”
“अरे मैं अभिनव दिल्ली सैनिक फार्म से”
“टीम, अभी कहाँ पर हो? मामू सा का फ़ोन आया था कि आप कुछ मेहमाणों के साथ लोग जयपुर पधारने वाले हो”
“जी हम लोग जयपुर पहुँच चुके हैं और अशोक क्लब के कंपाउंड में खड़े हैं”
“अरे आप वहाँ कहाँ पधार गए आपको तो राजमहल आना है, एक काम करो आप तुरंत राजमहल पधारो मैं आपको वहीं मिलूँगा”
किशन लाल से मैंने कहा, “भईया राजमहल ले चल आज यहाँ नहीं रुकेंगे”
“सिटी पैलेस”
“उल्लू के ढक्कन सिटी पैलेस नहीं राजमहल जो अब महाराजा साहब ने होटल में कन्वर्ट कर दिया है”
“वो वाला राजमहल जहाँ मामू सा अक़्सर आकर रुकते हैं” किशन लाल बोला।
“हाँ वही राजमहल”
“जी चलता हूँ, आप गाड़ी में बैठिये तो सही”
महेंद्र पूछ बैठा, “क्या हुआ”
“कुछ भी नहीं आज हम लोग राजमहल में रुकेंगे। मामू सा ने वहीं रुकाने के लिए राठौर भाई सा से कहा है”
“कोई खास बात है क्या”
“ख़ास बात ही तो है हम लोगों के साथ सोफी जो है। इज़्ज़त का मुआमला है भाई”
“आर बी गोइंग टू स्टे इन अ पैलेस” सोफ़िया पूछ बैठी।
मैंने खींसे निपोरते हुए कहा, “यस माइ डिअर सोफी यू आर गोइंग टू बी द रॉयल गेस्ट टुनाइट”
“आई फील हौनर्ड, थैंक यू सो वेरी मच”
इतने में हमारी कार एक बड़े से गेट के अंदर घुसी और लगभग दो सौ फीट चलने के बाद पोर्च में आकर खड़ी हो गई। हम लोग जैसे ही कार से उतरे कि राठौर साहब हमसे मिलने आ गए और बोले, “बहुत देर लगा दी क्या हो गया था”
“अजी भाई सा कुछ भी नहीं जैसे ही हम लोग सैनिक फार्म के गेट से निकले कि भयंकर जाम में फँस गए। हम तो सोच रहे थे कि सुबह चार बजे तक हम लोग जयपुर पहुँचेंगे वो तो हमारा किशन लाल तेज तर्रार था जो ठेला ठेली करके आठ बजे तक ले आया”
इसके बाद मैंने एक-एक कर महेंद्र और सोफ़िया की मुलाक़त राठौर साहब से कराई। राठौर साहब ने सोफ़िया से हाथ मिलाते हुए कहा, “पधारो नी म्हारे देश मा, आई मीन यू आर वेलकम इन अवर स्टेट ऑफ राजस्थान”
सोफ़िया अभिवादन स्वीकारते हुए बोली, “थैंक यू सो मच, यू आर अपटू योर रेपुटेशन ऑफ बीइंग आ गुड होस्ट’
इतने में हमारा सामान बेल बॉय आकर रिसेप्शन में लेकर आ गया। चेक इन फॉर्मलटीज़ के बाद हम लोग अपने-अपने रूम में चले गए इस प्रोग्राम के साथ कि सभी लोग दरबार हॉल में नौ बजे मिलते हैं।
जब हम लोग दुबारा दरबार हाल में डिनर के लिये मिले तो सोफ़िया बोली, “नॉइस प्रॉपर्टी एंड वैल मैन्टेनेड”
राठौर साहब ने सोफ़िया को बताया कि एक ज़माने में यह जयपुर के महाराजा का महल हुआ करता था, इसके अलावा भी ऐसी कई प्रॉपर्टी महाराजा की जयपुर शहर और देश के अन्य हिस्सों में हैं।
राठौर साहब ने सोफ़िया से यह भी कहा, “मैडम आप जिस सूइट में हैं उस सूइट में एक बार नहीं कई बार महारानी के एलिज़ाबेथ आकर रुक चुकीं हैं” फिर महेंद्र की ओर मुड़ कर बोले, “महेंद्र भाई सा आप जिस सूइट में हैं उस सूइट में प्रिंस फिलिप रुके थे। इतना ही नहीं इन्ही दोनों सुइट्स में प्रिंसेस डायना और प्रिंस चार्ल्स भी रुक चुके हैं”
राठौर साहब के यह कहने के बाद सोफ़िया के मुँह से निकल, “वाओ”
बाद में राठौर साहब ने दीवार पर लगे भित्ति चित्रों के माध्यम से दर्शाया कि जयपुर राज परिवार के इंग्लैंड के राज परिवार से कितने घनिष्ठ संबंध रहे हैं। दरबार हॉल और पैलेस में इधर उधर घूम लेने के बाद हम लोग डिनर के लिये एक बड़ी सी सर्कुलर डाइनिंग टेबल के आरपार बैठे। सोफिया की एक बाजू में तो दूसरी बाजू महेंद्र और हम लोगों के ठीक सामने राठौर साहब। अब डिनर का क्या ज़िक्र करें जहाँ राजसी ठाठ बाट होगा तो वहाँ बढ़िया से बढ़िया ड्रिंक और लज़्ज़तदार खाना खाने को मिला। सोफ़िया तो आज इतनी ख़ुश थी कि चलते समय उसने राठौर साहब को खूब किस किया हम लोगों की बात का क्या कहना। देर रात जब हम लोग अपने -अपने सुइट के लिये रिटायर हो गए तो मैं कपड़े चेंज कर रहा था जब मेरे दरवाज़े पर किसी ने नॉक किया। जब मैंने दरवाज़ा खोला तो मैंने सोफ़िया को वहाँ खड़े देखा, “मैंने उसका हाथ खींच कर जल्दी से अपने सुइट में किया और उससे पूछा, “इतनी रात तुम…अकेले मेरे सुइट में कोई देख ले तो लोग क्या समझेंगा”
बड़े बेफ़िक्री भरे अंदाज़ में मेरे किंग साइज बेड पर आराम से लेटती हुई बोली, “देखने दो क्या होता है यहाँ यह सब होता ही रहता है”
“क्या यह सब होता ही रहता है”
“यही सब दो महबूबों का इस तरह मिलना मिलाना…”
“तुम ज़रूर मरवाओगी और कुछ नहीं होने वाला….”
उस रात दो बजे सोफ़िया मेरे सुइट से निकल कर अपने सुइट में सोने के लिये गई….
क्रमश:



एपिसोड 23
अगले दिन ब्रेकफॉस्ट टाइम पर राठौर साहब फिर आकर मिले और बोले, “मैंने राजमहल का एक गाइड प्रेम सिंह आप लोगों के लिये कर दिया है आप उसे अपनी सुविधानुसार जहाँ चाहें ले जा सकते हैं। वह आपको जयपुर बढ़िया तरीके से घुमा देगा और यहाँ के इतिहास के बारे में भी बताएगा"
यह कह कर उन्होंने नाश्ते के बाद प्रेम सिंह से कहा, “साहब लोगों को जयपुर बढ़िया से घुमा देना”
प्रेम सिंह हम लोगों के साथ राजमहल की खास गाड़ी में हम सभी को बिठा कर आमेर क़िले की ओर चल पड़ा। जयपुर में इतना कुछ देखने और सुनने के लिये है कि अगर आप सात आठ दिन भी रहें तो कम पड़ जाएं। हमारी गाड़ी जैसे ही पुराने जयपुर शहर की गली गलियारों से होकर गुजरी सोफ़िया ने कहा, “मैंने इस शहर के बारे में बहुत कुछ पढ़ा है शायद यह भी इसे किसी के स्वागत के लिये एक बार ग़ुलाबी रंग से क्या रंगवाया कि तब से यह शहर ग़ुलाबी शहर के नाम से प्रसिद्ध हो गया”
सोफ़िया की बात सुनकर प्रेम सिंह को एक मौक़ा जो मिला तो उसने जयपुर का पूरा इतिहास ही एक ट्रू प्रोफेशनल गाइड की तरह एक साँस में बयां कर दिया। जब वह सोफिया को जयपुर शहर के बारे में बता रहा था इसी बीच हम लोग पहाड़ी के रास्ते से होते हुए आमेर क़िले के नीचे वाले झील के बगल वाली सड़क पर आ चुके थे। प्रेम सिंह ने वहाँ पहुँच कर दो महावतों को बुलाया और हम लोग रंग बिरंगे सजे हाथियों पर सवार हो आमेर क़िले की ओर बढ़ चले। मैंने जान बूझ कर सोफिया और प्रेम सिंह को एक हाथी पर सवार कराया और दूसरे में मैं स्वयं और महेंद्र सवार हुए जिससे कि प्रेम सिंह सोफिया को किले के बारे में आवश्यक जानकारी दे सके।
रास्ते में सोफ़िया आमेर के क़िले को निहार रही थी तो दूसरी ओर प्रेम सिंह आमेर क़िले का इतिहास बता रहा था, “आमेर किले का नाम अम्भा माता के नाम पर पड़ा था अम्भा माता को मीनाओं की देवी माना जाता है। आमेर शहर का निर्माण मीनाओं ने करवाया था। आमेर किले का निर्माण सन 1562 मे शुरू हुआ था इसके बाद कई पीढ़ियो तक इसका निर्माण चलता रहा और बाद में राजा मान सिंह प्रथम ने भी यहाँ पर शासन किया। आमेर किला हिन्दू धर्म के लिए मुख़्य माना गया है यहाँ पर हिन्दू धर्म क़ी बहुत सी चित्रकारी और आकृतियाँ हैं। आमेर के किले को बनाने में कई राजाओ का हिस्सा रहा है राजा मान सिंह ,राजा जय सिंह आदि कुछ प्रमुख थे।
आमेर के किले पर कछवाहों ने हमला करके सन 1037 के पास इस पर कब्ज़ा कर लिया था यह इनकी राजधानी थी बाद में जयपुर को बनाया गया था आमेर के किले को गुलाबी नगरी जयपुर क़ी शान माना गया है। आमेर किला पहाड़ क़ी उचाई पर बनाया गया है वहाँ से गुलाबी नगरी को देखा जा सकता है यहाँ पर एक मोटा झरना भी है जिसमे आमेर किले क़ी परछाई देखाई देती है जिसकी वजह से आमेर किले को चार चाँद लग गए है आमेर किले के अन्दर शिला माता का मन्दिर है जो हिन्दू धर्म क़ी देवी मानी गई है उस समय पर पानी क़ी परेशानी ना हो इसके लिए किले में काफी तालाबों को बनाया गया था यही पानी के मुख़्य साधन थे।आमेर के किले का मुख्य द्वार भगवान गणेश को समर्पित है। जिससे कला कृतियां दिखाई देती है”
जब हम लोग आमेर किले के मुख्य आँगन में पहँच गुए तो हाथियों से उतर गये। मैंने सोफिया से पूछा, “कैसी रही हाथियों की सवारी”
“मज़ा आ गया। मैंने इससे पहले कभी हाथी की सवारी नहीं की थी” सोफिया बोली।
सोफिया की बात पर धर्मेन्द्र बोला, “चलो हमें ख़ुशी है की यह तुम्हारा लाइफ टाइम एक्सपीरियंस रहा”
“ओह एस आई हैव फुल्ली एन्जॉयड एंड द फैबुलस पार्ट वाज व्यूइंग द फोर्ट”
उसके बाद हम लोग आमेर किले के मुख्य द्वार से अंदर दाख़िल हुए। जब प्रेम सिंह ने आम सभा गृह के बारे में बताया कि इतिहास की पुस्तकों से यह जानकारी नहीं मिलती है कि किले के इस चबूतरे वाले हिस्से का निर्माण कब के कराया गया होगा पर इसे देखने के बाद लगता है कि इसे मान सिंह प्रथम के समय जब वह बंगला देश के जाफना का युद्ध जीत कर लौटे थे क्योंकि की इस निर्माण में आगरे के लाल किले की झलक देखी जा सकती है। इस पर सोफिया बोली, “मुझे भी यही लगता है”
जब प्रेम सिंह किले के भीतरी भाग की दीवार पर बने भित्त चित्रों और कलाकृतियों की तारीफ़ में कसीदे पढ़ रहा था तब सोफिया ने उसे यह कह कर आश्चर्यचकित कर दिया, “हाँ मैंने इनके बारे में पढ़ा है की ये पेंटिंग ओरिजनल पेंट्स से बनाईं गईं हैं जो पेड़ पौधों, सब्जियों और फूलों से बनाये गए हैं और ये बहुत लंबे समय तक खराब नहीं होते हैं”
सोफिया की बात सुन कर प्रेम सिंह सकते में आ गया और बाद में उसने आमेर और जयगढ़ के किले के बाबत उतनी जानकारी दी जिसका ज़िक्र किसी इतिहास की पुस्तक में न हो....
क्रमशः




एपिसोड 24
आमेर का क़िला देखने के बाद जब वे लोग दोनों किलों के भीतरी मार्ग से जयगढ़ की और बढ़ रहे थे कि सोफिया ने एक बहुत ही इंटरेस्टिंग बात कही, “मैंने यहाँ आमेर में वह देखा जो कि आगरा के लालकिला में भी देखने को नहीं मिला”
जब मैंने उससे पूछा कि उसने यहाँ ऐसा क्या देख लिया तो उसने बताया, “मैंने यहाँ वे टॉयलेट्स देखे जो उस समय के लोग इस्तेमाल करते रहे होंगे”
सोफिया की बात सुनकर हम मैंने महसूस किया की उसकी पैनी नज़रों से कुछ भी बच कर नहीं जा सकतीं हैं उसकी इसी बात पर उसने चुटकी लेते हुए कहा, “तुमने यह भी किसी और जगह नहीं देखा होगा कि उन दिनों में मुज़रिमों को फाँसी कैसे दी जाती होगी”
“हाँ इस तरह तो कम से कम नहीं कि जो यहाँ देखा लेकिन कुछ इसी तरह का यूरोप के कई पुराने किलों और महलों में देखा था कि वहाँ फाँसी कैसे दी जाती थी”
“तुमने क्या यूरोप के किलों और महलों में टॉयलेट्स देखे थे”
“हाँ देखे थे ठीक जैसे कि यहाँ पर वहाँ वे सब अब नहीं दिखाए जाते शायद अब वे लोग वहाँ के पुराने रीति रिवाजों को वहाँ आये हुए टूरिस्ट को वह सब नहीं दिखाना चाहते हों"
बातों-बातों में हमलोग जयगढ़ पहुँच गए और वहाँ जाकर तोप गोला बारूद की फैक्ट्री देखी जो उस समय युद्ध के लिए साजो सामान बनाती रही होगी। वहाँ हम लोगों ने वह तोप भी देखी जिसके बारे में यह दर्ज़ है कि वह तोप उस वक़्त की सबसे बड़ी तोप थी जिसकी मारक शक्ति इतनी थी की जयपुर पर किसी भी हमले की चुनौती को आराम से निपटा जा सके।
प्रेम सिंह ने वह जगह भी दिखाई जिसके बारे में यह प्रचलित है कि जयपुर राजघराने का खजाना पानी की टंकी के नीचे बने तहखानों में रखा जाता है था और जिसकी चौकीदारी की जिम्मेदारी मीनाओं के ऊपर थी जिनके बारे में यह कहा जाता रहा है कि वे लोग उस जमाने में सेंध लगाकर चोरी डकैती के कामों में शरीक रहते थे। प्रेम सिंह ने यह भी जानकारी दी कि इमरजेंसी के समय प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी के आदेश से मिलिट्री ने छापा डाला था और उसमें यहाँ बहुतेरा खजाना निकला था जो राजपरिवार को आजतक नहीं मिला। सोफिया ने जब यह पूछा, “क्या यह सच बात है?”
सोफिया के प्रश्न के उत्तर में प्रेम सिंह बस मुस्करा भर दिया। तब मैनें सोफिया से कहा, “बहुत सी बातें कहावत बन जातीं हैं उनकी हक़ीक़त किसी को भी पता नहीं चलता”
मेरी बात सुनकर सोफिया भी मुस्कुरा दी और हम लोग जयगढ़ में बने म्यूजियम को देखने गये।
जब हम लोग जयगढ़ से जयपुर शहर की और वापस आ रहे थे सिटी पैलेस, हवा महल, जंतर मंतर, मोती डूंगरी क़िला देखने गए के लिए तो प्रेम सिंह बोला, मैडम यहाँ जयपुर में इतना कुछ देखने और सुनने के लिये है कि अगर सात आठ दिन भी रहें तो इतना समय भी कम पड़ जाएगा।
प्रेम सिंह ने इन दो दिनों में इतना कुछ दिखा दिया जिसको पचा पाना ही सोफिया के लिए मुश्किल हो रहा था जिसके लिए सोफिया ने प्रेम सिंह का हार्दिक धन्यवाद किया और उसे 100 डॉलर देकर उसकी तबियत खुश कर दी।
उस दिन हम लोगों ने बस हवा महल देखा और राज महल वापस लौट आये। लंच किया और फिर कुछ देर आराम किया। अगले दिन वे लोग सिटी पैलेस, जंतर मंतर, मोती डूंगरी महल देखने गये और उस दिन का लंच हम लोगों ने राम बाग़ पैलेस में किया। मैंने ने सोफिया को बताया, “सोफी किसी वक़्त में ये महल महारानी गायत्री देवी जी का हुआ करता था और वह लिली पूल वाले हिस्से में रहा करतीं थीं, अब तो इसे होटल में कन्वर्ट कर दिया गया है”
“क्या ये वही महरानी थीं जिनके बारे में यह प्रचलित है कि वे अपने ज़माने में कातिलाना हुस्न की मलिका थीं। बाबजूद इसके महाराजा मान सिंह (द्वितीय) की दो रानियाँ और थीं फिर भी उन्होंने उनके साथ शादी करी”
“वही महारानी जिसके बारे में यह सब कहा जाता रहा है कि उनके हुस्न की चर्चा यूरोप के लोगों के बीच हुआ करती थी”
कुछ देर जौहरी और बापू बाज़ार में बिताया। सोफिया ने अपने लिये कुछ ड्रेसेस और ज्वैलरी खरीदी। शाम के समय जब सूरज डूबने को हुआ तब हम लोग राजमहल वापस लौट कर आये। जब मैंने सोफ़िया से पूछा उसे जयपुर कैसा लगा तो उसने सिर्फ इतना ही कहा, “सुपर्ब नो मैच”
“सोफी एक बात बताओ कि तुमने जब वह सोने का गले का हार खरीदा तो तुम्हारा इम्प्रैशन यहाँ के आर्टिज्नस का काम कैसा लगा”
“स्प्लेन्ड़िड”
महेंद्र जो अक़्सर चुप ही रहना पसंद करता था सोफ़िया की बात सुनकर बोला, “फिर तो तुम पहले मेरे दादू सा के साथ कुछ वक़्त गुज़ारो। उन्होंने यहाँ के ज्यूलर्स के साथ न जाने कितने दिन रात गुज़ारे हैं”
“यू मीन तुम्हारे डैड”
“यस, पर तुम उन्हें आज दादू सा क्यों कह कर बुला रहे हो”
“दादू सा कह कर पुकारने में कुछ और ही मज़ा है”
“ओह आई सी”
“डैड इन यूएस एंड दादू सा इन इंडिया”
“ठीक उसी तरह जैसे कि मैं सोफ़िया औरों के लिये लेकिन सोफी सिर्फ़ अभिनव के लिये”
महेंद्र मेरे चेहरे की ओर जब देखता रह गया तो अपनी झेंप मिटाने के लिये मैनें सोफिया से पूछा, “सोफी एक बात तो बताओ कि जब तुमने अपने लिए रंग बिरंगी बांधनी तथा लहरिया साड़ी, और सलवार सूट ख़रीदा तो तम्हें यहाँ की ड्रेसस के बारे में कैसा लगा?”
“तुम मेरे दिल की सुनो तो मैं तुम्हें बताऊँ कि आई एम कमिंग बैक आफ्टर अ फ्यू मंथस ऐण्ड मीन व्हाइल मुझे किसी से साड़ी पहनना सीखना है। क्या तुम मेरी हैल्प करोगे”
मन में आया बता दूँ कि रमा सिखा देगी फिर याद आया कि उसने मना किया गया है कि सोफिया को उसके बारे में अभी कुछ भी नहीं बताना है नहीं तो सीरियल का मज़ा ही चला जायेगा। यह सोच कर मैनें सोफिया से कहा, “मैं अभी कोई इंतजाम करता हूँ”
इतना कहकर मैनें रिशैप्सन डेस्क को फोन कर पूछा कि क्या वे लोग इस मुअमाले में कोई मदद कर सकते हैं। दो ही मिनट में एक लेडी ड्रेसर आई और उसने सोफिया को साड़ी पहनना सिखाया। उस रात सोफिया ने वही ड्रेस डिनर के लिए सलेक्ट की और डिनर पर निकलने के पहले वह जब मेरे सुईट में आई तो उसे देखकर एक बार तो मेरा दिल भी डोल गया मन किया कि मैं उसे अपनी बाहों में भर कर कह दूँ, “सोफी तुम कितनी खूबसूरत लग रही हो शायद तुम भी नहीं जानती हो”
मुझे डर था कि कल रात जो कांड सोफिया ने किया था कहीं वही सीन आज रात न कर बैठे यह सोच कर मैं चुप ही रहा पर मेरी चुप्पी उसके दिल के अरमानों पर बंदिश न लगा सकी। सोफिया ने उल्टे मुझे अपने आगोश में लिया और कहा, “वोंट यू से हाउ एम आई लुकिंग ऐण्ड किस्स मी डार्लिंग”
“यू आर लुकिंग अब्सोलुटल्यली अमेज़िंग ऐण्ड स्टनिग”
मेरे इतना कहने के बाद तो बस उसने मेरा वह हाल किया ....
क्रमशः

एपिसोड 25
जब हम दोनों बात कर रहे थे तो मेरे मन में यह चल रहा था कि एक न एक दिन ये सोफ़िया भी भंडा फोड़ करके ही मानेगी। इसलिये उसका दिमाग़ उन बातों से हटाने के लिये मैंने उसको फिर से जयपुर रियासत के प्रश्न में उलझाने की कोशिश की और सोफ़िया से कहा, “अभी तो देखा ही क्या है यह तो एक रियासत की कहानी है। हमारे राजस्थान में जगह-जगह क़िले, महल और यहाँ की महान विरासत की अनमोल निशानियाँ बिखरी पड़ीं हैं कि इन राजा रजवाड़ों को यह भी नहीं पता कि उनकी प्रॉपर्टी कहाँ-कहाँ हैं"
मेरी बात सुनकर सोफ़िया का तो मुँह खुला का खुला रह गया।
सुबह जब हम लोग चलने के लिये तैयार हो रहे थे कि राठौर साहब आ गए। राठौर सहाब अपने साथ जयपुर की मिठाई और सोफिया के लिये कुछ गिफ्ट पैक लेकर आये जो उन्होने हमारी कार में रखवा दिये।
सोफिया ने राठौर साहब को धन्यवाद देते हुए उनको किस किया और उम्मीद की कि उनसे शीघ्र ही मुलाक़ात होगी। राठौर साहब ने भी अपनी ओर से यही आशा की कि वह उसके जयपुर दोबारा आने की राह देखते रहेंगे।
मैंने कार का अगला दरवाज़ा खोला, बैठते हुए सोफिया और महेन्द्र से से कहा, “चलो भाई अब बैठो भी नहीं तो देर हो जायेगी”
राठौर साहब की ओर देखते हुए हाथ हिलाते हुए उनसे विदा ली। हमारी कार राजमहल के गेट से बाहर निकल कर जयपुर की सडकों से बाहर की ओर जाते हुए सरपट भागी जा रही है थी। सोफिया जिसे जयपुर शहर बहुत अच्छा लगा था अब पीछे छूट रहा था।
मैंने किशन लाल से जब पूछा, “जोधपुर पहुँचने में कितना समय लगेगा”
“साहब मैं आपके साथ चल रहा हूँ जहाँ आप हुकुम करोगे रुक जाऊँगा जब कहोगे तो चल पड़ूंगा। अब मैं आपको क्या कहूँ कि कितना समय लगेगा”
जयपुर अजमेर हाई वे पर हमारी गाड़ी सरपट भागी जा रही थी। दो घंटे के बाद जब हम अजमेर बाई पास के पास पहुँचे तो मेरे मुँह से अचानक निकल गया, “यह शहर किसी ज़माने में हमारे पहले हिंदू दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान का गृह राज्य हुआ करता था। यहाँ लड़कों के लिय म्यो कॉलेज है जिसमें मेरी पढ्ने की बहुत तमन्ना थी लेकिन बाबू सा की माली हालत उसके लिय इजाजत नहीं देती थी”
“एजुकेशन इंडिया में क्या इतनी महँगी है” सोफिया ने पूछा।
“हाँ एक नॉर्मल आदमी के पॉइन्ट ऑफ़ व्यू से वाकई अब तो बहुत महँगी हो गई है लेकिन हमारे समय में भी कोई सस्ती नहीं हुआ करती थी”
“ओह वेरी सैड”
मेरी बात सुनकर महेंद्र बोल पड़ा, “सुना है यहाँ सूफ़ी संत मोइनुद्दीन चिश्ती, ख्वाज़ा ग़रीब नवाज़ की दरगाह है और हर साल लगने वाले उर्स में लाखों आदमी और औरतें शिरक़त और ज़ियारत करने के लिए आते हैं"
महेंद्र की बात का और खुलासा करते हुए मैंने कहा, “यहाँ के बारे में यह कहा जाता है कि ख़्वाजा गरीब नबाज़ की दरगाह पर जाकर जो कोई भी मन्नत माँगता है उसे उसकी मन मुराद मिलती है”
मेरी बात को सोफ़िया ने बहुत ध्यान से सुना और बोली, “हाँ मैंने भी यही पढ़ा है कि इंडिया में कई संत और महात्मा ऐसे हुए हैं जिन्हें मैजिकल पावर्स मिलीं हुईं थीं”
“तुमने सही सुना है” जैसे ही मैंने यह कहा वैसे ही सोफ़िया बोल पड़ी, “मैं वहाँ जाकर प्रेयर करना चाहूँगी”
सोफ़िया की मन मुताबिक़ महेंद्र भी बोल उठा, “मुझे भी खुदा से कुछ माँगना है क्या हम वहाँ चल सकते हैं”
“क्यों नहीं ज़रूर चल सकते हैं हमें क्या फ़र्क पड़ता है जोधपुर कुछ देर बाद ही पहुँचेंगे तो क्या हुआ। किशन लाल अगले मोड़ से अजमेर शहर की ओर गाड़ी मोड़कर डिग्गी बाज़ार तक ले चल”
दरगाह के कानून के मुताबिक सोफ़िया और महेंद्र ने जब चद्दर चढ़ाने का मन बनाया तो मैंने बाजार से वे सब चीजें खरीदीं जो इस काम के लिए ज़रूरी थीं। लौट कर मैंने एक दुपट्टा सोफ़िया के गले में इस तरह पहनाया कि उसका माथा और सिर अच्छी तरह ढका रहे। जब मैं यह कर रहा था तो उसने मेरे कान में कहा, “मैं खुदा से क्या माँगू?”
मैंने उसे जवाब दिया, “जो तुम्हारा मन करे। अगर मुझसे पूछोगी तो मैं यही कहूँगा कि तुम अपने लिये महेंद्र जैसा लंबा चौड़ा, हँस मुख वैल सेटल्ड लड़के को माँग करो जिससे कि वह तुम्हारा हसबैंड बन सके”
“तुम जैसे को क्यों नहीं”
“इसलिये कि मुझे लड़कियों से फलर्टिंग करने की बुरी आदत है और मैं नहीं चाहता तुम्हारी ज़िंदगी में अब कोई दूसरी घटना घटे जिससे तुम्हारा सुख चैन बर्बाद हो”
“तुम यही चाहते हो”
मैंने उत्तर दिया, “मैं हर उस लड़की का भला चाहता हूँ जो मेरे साथ फ़्लर्ट करती है”
मेरी पीठ पर मुक्का मारते हुए सोफ़िया बोली, “यू नॉटी फेलो”
मेरे कहने पर एक उसने एक अर्जी लिख दी जो उसे चद्दर के साथ रख कर चढ़ानी थी। उसने लिखी हुई इबारत को दो तीन बार बड़े ध्यान से पढ़ा और बाद में उसे चद्दर के बीच दबा कर हम सभी लोग दरगाह में अंदर दाख़िल हुए। वहाँ के थानेदार और सबसे बुजुर्गवार मौलवी ने ज़ियारत करा कर सोफ़िया और महेंद्र के सिर पर मोर पंखों की बनी हुई चमर रखी और दुआ पढ़ी। जब वहाँ की सब कार्यवाही पूरी हुई उसके बाद ही हम लोग वहाँ से जोधपुर के लिये रवाना हुए।
रास्ते में जब सोफ़िया ने पूछा, “तुम्हें भरोसा है कि मैंने अपनी अर्जी में जो लिख कर दिया है वह मेरी माँग पूरी होगी”
“ज़रूर पूरी होगी। बस एक काम करना जब तुम्हारी माँग पूरी हो जाए तो उसके बाद अपनी सहूलियत से उस धागे को आकर खोल देना जिससे कि तुम्हारा खुदा तुम्हें हमेशा ख़ुश कर सके और तुम्हारा यही शुक्राना वहाँ अल्लाह के दरबार में दाख़िल माना जायेगा”
“इसका मतलब मुझे एक बार इंडिया फिर से आना होगा”
“एक बार नहीं उसके बाद तो तुम इनकी इतनी मुरीद हो जाओ क्या पता था तुम शायद हमेशा के लिये यहीं की होकर रह जाओ.....”
मैनें जब सोफिया से यह कहा तो वह मेरे चेहरे की ओर देखती रह गई और गहरे सोच में डूब गई ....
क्रमशः

एपिसोड 26
ग़रीब नवाज़ दरगाह शरीफ़ से जोधपुर तक कि दूरी जो कि लगभग 220 किमी के करीब है जो किशन लाल ने चार घंटो में पूरी की जब उससे मैंने कहा, “किशन लाल आज तो तुमने गाड़ी बहुत धीरे चलाई”
“हुकुम आपको करना ही क्या था। यहाँ पहुँच कर खाना पीना और सो जाना जबकि मेरे ऊपर मालिक ने यह जिम्मेदारी दी है कि मैं आपको सही सलामत लेकर दिल्ली लौटूँ”
“ठीक है, ठीक है, आजकल बातें बनाना तो कोई तुमसे सीखे”
जब हम वेलकम होटल बाल समंद लेक पहुँचे तो हमने चेक इन फॉर्मलटीज़ पूरीं कीं और कुछ देर आराम किया। जब हम लोग डिनर के लिये मिले तो मैंने यह कह कर सोफ़िया और महेंद्र से मुआफ़ी माँग ली कि मेरा पेट गड़बड़ हो गया है इसलिए मैं आज खिचड़ी खाऊँगा उनको जो खाना हो वो उसका आर्डर कर दें। सोफ़िया बोली, “मैं तो आज कुछ और ही खाने के मूड में हूँ मैं वह आर्डर करुँगी”
महेंद्र ने पूछा, “आख़िर क्या”
सोफ़िया ने महेंद्र के कानों में जाकर न जाने क्या कहा कि महेंद्र के चेहरे पर ख़ुशी छा गई। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि सोफ़िया और महेंद्र आपस में करीब तो आने लगे हैं। मुझे लगा काश इन दोनों की बात बन जाये तो मामू सा को कुछ तसल्ली मिले। आज मैंने भी सोच कर रखा था कि उस दिन जैसा कि सोफ़िया ने जयपुर में किया था तो मैं आज उसे साफ-साफ बता दूँगा कि मैं एक शादी शुदा इंसान हूँ, मैं अपनी बीवी से बहुत प्यार करता हूँ यह खेल तो मैं अपनी बीवी के कहने पर खेल रहा था। मैं सोफ़िया के हाथ पाँव भी जोड़ लूँगा जिससे कि वह और महेन्द्र दोनों आपस में ज़िंदगी में आगे बढ़ने की बात सोच सकें।
सोफ़िया और महेंद्र ने मिल कर कुछ आइटम्स आर्डर किये। जब तक खाना सर्व किया जाता तब तक सोफ़िया महेंद्र के साथ गप शप करते रहे। जब हम तीनों का खाना बन कर डाइनिंग टेबल पर आ गया तो सबसे पहले खिचड़ी वाली प्लेट से कुछ खिचड़ी निकाल कर सोफ़िया ने अपनी प्लेट में ली और शैतानी भरी नजरों से मुझे देखते हुए बोली, “कम पड़ गया हो तो एक प्लेट और मँगा लो”
मैं उसके इस मज़ाक के लिये क्या कहता बस मैं चुपचाप अपनी खिचड़ी खाता रहा और वे दोनो अपनी आर्डर की हुई डिशेज़। डिनर के बाद मैं तो अपने सुइट में आ गया लेकिन सोफ़िया और महेंद्र बैराज की ओर घूमने निकल गए। मैं जब अपने सुइट में था उसी समय रमा का फोन आया और मुझसे पूछने लगी, “कैसा चल रहा है सोफी के साथ तुम्हारा नाटक”
“जानम अब मुझे उसे बताने ही दो कि हमारी तुम्हारी शादी कई सालों पहले हो चुकी है”
“रुको अभी नहीं मेरी योजना है कि…..”
रमा ने मुझे जो प्लान बताया उसके हिसाब से मुझे अभी लवर बॉय का रोल अदा करते रहना पड़ेगा और हाल फिल हाल में मुझे इससे कोई निज़ात नहीं मिलने वाली थी।
मैं जब लगभग सो चुका था उस समय सोफ़िया ने मेरे दरवाज़े पर नॉक किया। मन तो किया कि मैं तकिया उसके सिर पर मार कर कहूँ कि मुआफ़ कर मेरी माँ लेकिन रमा की बात को याद कर मैंने दरवाज़ा खोला और उससे कहा, “सोफी आज मैं बहुत थका हुआ हूँ प्लीज मुझे मुआफ़ करो”
“क्या हुआ”
मैंने उसे एक लंबी चौड़ी फर्जी कहानी सुनाई जिससे कि मेरा उससे किसी भी तरह छुटकारा मिले। अचानक उसकी समझ में न जाने क्या आया और मुझसे मुआफ़ी माँगते हुए अपने सुइट की ओर जाने के लिये उठते हुए बोली, “मुझे तुम्हें एक बात बतानी थी लेकिन कोई बात नहीं चलो किसी और दिन बता दूँगी”
जब वह जाने लगी तो मन तो किया कि पूँछ लूँ आख़िर वह क्या बताना चाह रही थी पर मैंने यही बेहतर समझा कि अब बला टली तो आज जाने भी दो बाद में फिर कभी देखा जाएगा…..
क्रमशः
(When on a trip if you can't N'joy, It means a you have lost interest in life. Stay at nice place, drink your choicest wine, eat the delicacies you love the most and above all spend some moments to remember later.... This is all I do and pen these beautiful stories for you Bro N Sises)
एपीसोड 27
हम लोग ठीक साढ़े दस बजे मेहरानगढ़ क़िले के दरवाज़े पर थे। राजस्थान के अन्य किलों की तरह यह क़िला भी सुरक्षा की दृष्टि से एक पथरीली पहाड़ी पर मारवाड़ क्षेत्र के राजपूत राजाओं ने बनबाया था। क़िले की मजबूती और शिल्पकारी देखते-देखते हम लोगों को लगभग चार घंटे से ऊपर का समय लगा। वह तो भला हो विक्रम गाइड का जो हमें लिफ्ट के रास्ते ले गया नहीं तो कम से कम एक घंटा और लग जाता। क़िले की दीवार के एक किनारे रखीं तोपों को देख कर सोफ़िया उन तोपों के बीच जा खड़ी हुई कि मैं उसकी कुछ तस्वीरें खींचूँ आखिर जब उसकी कई तस्वीरें खींच लीं गईं तब ही वह वहाँ से हटी।
जब मैं उसकी फोटो खींच रहा था ठीक उसी समय सोफ़िया महेंद्र को समझा रही थी कि उसने देर रात तक जोधपुर के सभी टूरिस्ट स्पॉट्स का इतिहास पढ़ा है और यह कि वह विक्रम को भी गाइड कर सकती है। उसने यह भी महेंद्र को बताया कि अक़्सर ये गाइड्स अपनी नॉलेज अपडेट नहीं करते हैं और रटे रटाये डॉयलाग सुना कर टूरिस्ट का दिल जीतने की कोशिश करते रहते हैं। इन लोगों का पाला कभी मुझ जैसी टूरिस्ट से नहीं पड़ा होगा। मैं उस समय ताज़्ज़ुब करता रहा गया जब सोफ़िया ने विक्रम को यह बता कर ताज़्ज़ुब में डाल दिया कि जब इस क़िले के विस्तार की योजना बनी तो उसके लिये कई बड़े-बड़े पेड़ों की आवश्यकता हुई जिसे उस समय के महाराजा ने पास ही के एक जंगल से अपने सैनिकों को भेज कर काटने के लिये भेजा लेकिन जब वहाँ के लोग राजा के आदेशों की अवहेलना करने पर उतारू हो गए तो राजा के सैनिकों और उनमें भीषण युध्द हुआ जिसमें कई नागरिक मारे गए। राजा का जब बाद में पता लगा तो वहाँ के लोगों से मिलकर उनके घावों पर मरहम लगाने की कोशिश की और उन्हें राजकीय कोष से मदद भी दिलवाई।
मेहरानगढ़ इतना विशाल क़िला है कि उसे देखने में हमें चार घंटे से ऊपर का समय लगा। महल के पास एक महल का सेवक लोगों को जोधपुरी साफ़ा बाँध कर दिखा रहा था। उसे यह करते देख सोफ़िया ने ज़िद की कि वह भी साफ़ा बंधवायेगी। मैने उस सेवक को सौ रुपये का एक नोट थमाया जिससे कि वह सोफ़िया के सिर पर साफ़ा बाँध दे। जब साफ़ा बंध गया तो सोफ़िया मेरे पीछे ही पड़ गई कि मैं भी साफ़ा पहनूँ जिससे कि महेंद्र हम लोगो की फोटो खींच सके। मुझे सोफ़िया की ज़िद के सामने झुकना पड़ा और जब हमारी कई फ़ोटो साथ-साथ खिंच गईं उसके बाद ही मुझे सोफ़िया से निजाद मिली।
क़िले से वापसी के रास्ते में एक रेस्तराँ नज़र आया जो महाराजा के स्टाफ़ द्वारा इसलिये चलाया जा रहा था कि क़िला देखने आने वालों को जोधपुर राजघराने का राजसी खाने का टेस्ट मिल सके दूसरा जब टूरिस्ट घूमते-घूमते थकान महसूस करें तो उन्हें चाय कॉफ़ी नसीब हो सके। साफ सुथरी जगह देख कर हम लोगों ने भी मन बनाया कि लंच वहीं कर लिया जाय क्योंकि बाद में खाने की तलाश में बेमतलब ही फिर से शहर की ओर जाना पड़ता।
क़िले से नीचे उतर कर हम लोग जसवंत सिंह का ठाड़ा देखने गए। इस इमारत को देखते ही सोफ़िया बोल उठी, “कितनी खूबसूरती से बनाई गई है यह इमारत भी सफ़ेद संगमरमर में ठीक उस तरह जिस तरह कि ताजमहल बनबाया गया था”
विक्रम ने सोफ़िया को महाराजा जसवंत सिंह के बारे में विस्तृत जानकारी दी। वहाँ से निकल कर हम लोग मंडोर चले गए। वहाँ भी ऐतिहासिक महत्व की इमारतें देखकर हम लोग जब अपने होटल लौटे तो शाम के पाँच बजे चुके थे। सोचा था कि अगर कुछ वक़्त मिलेगा तो उम्मेद भवन पैलेस के म्यूजियम को भी देख लेंगे पर देर इतनी गो गई थी कि विक्रम की सलाह पर उधर जाने के प्रोग्राम को कैंसिल ही करना पड़ा।
रात का डिनर हम लोगों का उम्मेद भवन पैलेस होटल में पहले ही से तय था जहाँ भारतीय कला भवन, कोलकता के स्टेज आर्टिस्ट प्रोग्राम देने वाले थे। बंगला कल्चर के बारे में जानकारी का इससे बेहतर जरिया और क्या हो सकता था कि कोलकता जाना भी न पड़े और वहाँ की विरासत के दर्शन यहीं जोधपुर में हो जाएं। हम लोगों ने रात को वह शो देखा और डिनर के बाद देर रात ही अपने होटल लौट पाए। लौटते समय कोलकता के लोगों के प्रोग्राम की सोफिया ने दिल से तारीफ़ करते हुए कहा कि उसे विश्वास ही नहीं हो रहा है कि हिंदुस्तान में कितनी प्रकार की जन जातियाँ हैं और विभिन्न तरह का उनका रहन सहन है।
वापसी के रास्ते में विक्रम ने बताया कि उम्मेद भवन पैलेस के आधे हिस्से में महाराजा जोधपुर अपने परिवार के साथ रहते हैं और आधा हिस्से में होटल है। होटल खुल जाने से जहाँ एक तरफ पैलेस का रखरखाव हो पा रहा है वहीं दूसरी ओर महाराजा को अच्छी खासी आय भी हो जाती है। उम्मेद भवन पैलेस दुनिया का नवीनतम राजमहल है जो साइज और एरिया में भारत के राष्ट्रपति भवन से भी बड़ा है। उम्मेद भवन पैलेस ही एक ऐसी मिसाल है जो कि भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद भी जिसका किसी महाराजा के निजी निवास के रूप में उद्घाटन हुआ हो। विक्रम ने उम्मेद भवन के बारे में कुछ और बातें सोफ़िया को बताईं।
रात को लौटते हुए पहले ही बहुत देर हो चुकी थी इसलिए हम लोगों ने यह निश्चय किया कि अगले दिन दोपहर को ही यहाँ से ओशियाँ के लिये निकलेंगे जिससे कि हर कोई आराम से सो सके। मैंने अकेले में सोफ़िया से मिल कर यह गुज़ारिश की कि प्लीज वह हर रात की तरह मुझे डिस्टर्ब ना करे।
अगले दिन हम लोग दो बजे के बाद उम्मेद भवन से ओशियाँ के लिये निकले। हम लोगों ने तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से अपनी शाम रेगिस्तानी माहौल में एक टेंट में रह कर गुजारी। रात भर नाच गाना चलता रहा। हम लोगों का मस्ती भरे वातावरण में खाना पीना हुआ और रात को सैंड ड्यून्स पर कालबेलियों का मशहूर साँप सपेरा डांस और राजस्थानी लोक नृत्य देखकर सोफ़िया को ख़ूब मज़ा आया। एक बार तो उसने मुझे धक्का देकर एक नाचने वाली कलाकार के साथ नाचने को मजबूर ही कर दिया यह बात और थी कि बाद में वह भी हम लोगों के साथ ख़ूब दिल खोल कर नाचीं।
मेरे डांस से हटने के बाद देखा देखी महेंद्र भी कालबेलियों के साथ खूब नाचा। मुझे यह देखकर बहुत ख़ुशी उस समय हुई जब महेंद्र ने सोफ़िया का हाथ अपने हाथों में थामा और वह उसे भी कालबेलियों के साथ डांस करने के लिये अपने साथ ले गया। वे दोनों जब नाच रहे थे तो मेरे मन में यही विचार उठ रहे थे कि किसी तरह सोफ़िया का ध्यान मेरे ऊपर से हट कर महेंद्र की ओर हो जाय जिससे कि मामू सा की ख्वाहिशों को पूरा किया जा सके। आख़िरकार हम लोग महेंद्र को सोफ़िया के करीब लाने के प्रयोजन से ही तो इतनी दूर लेकर आये थे।
ओशियाँ से हम लोगों को बीकानेर के लिये निकलना था जब विक्रम ने सुझाव दिया कि हम लोग क्यों न जैसलमेर भी हो लें क्योंकि ओशियाँ से जैसलमेर की दूरी मात्र 150 किमी थी लेकिन महेंद्र ने कहा, “जैसलमेर और उदयपुर जाने का प्रोग्राम फिर कभी बाद में रख लेंगे अभी सोफ़िया कौन यूएस वापस जाने वाली है”
मैंने भी अपनी राय ज़ाहिर करते हुए यही कहा, “एक तरह का खाना खाते हुए मन ऊब जाता है इसलिए जैसलमेर और उदयपुर फिर बाद में ही जाना ठीक रहेगा। रेगिस्तानी माहौल तो सोफ़िया ने यहाँ ओशियाँ में देख ही लिया है जो कुछ थोड़ा मोड़ा बचा खुचा है वह बीकानेर के इलाके में पूरा हो जायेगा। यही सोच कर हम लोग फिर वहाँ से बीकानेर के लिये निकल लिये।
क्रमशः


एपिसोड 28
ओशियां की रेगिस्तानी इलाके में जब सूरज आसमान पर चढ आया तो बसंती सुहाना मौसम भी कुछ गरमा गया। सोफिया ने कार में बैठने के पहले एक बार रेत के उन टीलों की ओर देखा जहाँ हम लोगों ने रात गुजारी थी और फिर मेरी ओर पलट कर बोली, “कल रात हम लोग वहीं थे न”
“हाँ हम लोगों ने वहीं रात को खूब मस्ती की थी”
इसके बाद सोफिया ने एक बार उस रेतीले टीले की ओर हसरत भरी नजरों से देखा, अपने बालों पर लगा क्ल्चर खोल दिया जिससे कि बालों को भी कुछ हवा लग सके और कार का फ्रंट सीट का दरवाज़ा खोला और ड्राईवर किशन लाल की बगल वाली सीट पर बैठ गई। मैं और महेन्द्र अबकी बार कार की पिछली सीट पर साथ-साथ बैठ गये। सोफिया ओशियां से लौटते समय रेगिस्तान के उन दृश्यों को अपनी आँखों में हमेशा के लिये बसा लेना चाहती थी। सोफिया कार के साथ-साथ दौड़ती हुई चीजों को देख रही थी और मेरे दिमाग में यह चल रहा था कि बीकानेर पहुँच कर सोफिया की मुलाक़ात रमा से क्या कह कर कराना ठीक होगा जिससे कि कोई सीन न खड़ा हो।
बीकानेर पहुँच कर जब हम लोग अपनी मोहताना चौक में भीड़ भाड़ वाले बाज़ार के बीच में पुराने ज़माने की पत्थर की बनी हुई तीन मंजिला सिसोदिया हवेली पहुँचे तो मैंने सोफ़िया की मुलाक़त रमा से यह कह कर कराई, “सोफी मीट माइ वाइफ रमा”
सोफिया ने रमा की ओर हाथ मिलाने के लिए बढ़ाया तो पर उसकी निगाह मेरे चेहरे की ओर थी लेकिन जब रमा ने कहा, “हेल्लौ सोफिया हाउ डू यू डू”
“आई एम फाइन वॉट अबाउट यू रमा”
रमा से मिलकर खुशी जाहिर करते हुए सोफ़िया ने अपने चेहरे से ये ज़ाहिर न होने दिया कि मैंने उसे पहले क्यों अपनी शादी के बारे में कुछ भी नहीं बताया। उसके बाद हम सभी लोग हवेली के ड्रॉइंग रुम में आकर बैठ गये। जो भी औपचारिकता निभानी थीं पूरी की उसके बाद जैसे ही सोफ़िया को मुझसे अकेले मिलने का मौका मिला तो उसने मेरी ओर ऐसे देखा जैसे कि मैंने उसके साथ कोई बहुत बड़ा धोखा किया हो। मैं भी करता तो क्या करता मैंने कई बार कोशिश भी की कि मैं उसे यह बता दूँ कि मैं उसके साथ एक दूरी तक तो आ सकता हूँ लेकिन उसके आगे के सभी रास्ते कम से कम मेरे लिये तो बंद ही हैं। दरअसल यह भी कंफ्यूजन जो बना रहा वह रमा के यह कहने के कारण रहा जब मैने रमा को मामू सा वाली बात बताई थी कि उन्होंने उस रात जब सोफ़िया सैनिक फार्म में मेरा हाथ में लेकर मुझे अपने कमरे में ले गई थी सोफ़िया की यह बात मामू सा ने सुन ली थी, “गुड नाइट, गुड नाइट ऐसे नहीं ऐसे कहते हैं”
उसके बाद मामू सा को यह साफ़ लगने लगा था की मेरे और सोफिया के बीच कुछ न कुछ तो चल रहा है जो एक नार्मल आदमी और महिला के बीच साधारण रिश्ता नहीं कहा जा सकता था। इसलिये मामू सा की योजना के अनुसार रमा ही अब मुझे सोफिया के रास्ते से हटाने की कोशिश करेगी और यह भी कि किसी भी तरह महेंद्र और सोफ़िया की जोड़ी बनाई जा सके।
रमा ने अपनी पहली ही मुलाक़त में सोफ़िया को यह ज़ाहिर कर दिया कि मेरे और उसके बीच में कहीं भी कोई बात छुपी हुई नहीं है और यह कि मेरी और सोफ़िया की पहली मुलाकात के रोज़ से ही मैं उसे पूरी जानकारी देता रहा था। रमा ने सोफ़िया को यह भी जताने की कोशिश की कि मैं उसे दिलो जान से भी ज्यादा चाहता हूँ और किसी पराई औरत का ख़्याल भी मैं अपने दिमाग़ में कभी नहीं ला सकता हूँ।
मुझे लगा कि सोफ़िया पूरी तरह यह सोच रही थी कि मैं एक धोखेबाज़ इंसान हूँ। उस वक़्त मुझे लगा कि अगर मैं समय रहते सोफ़िया को अपनी सफ़ाई न दे सका तो शायद मुझे इस जीवन में कभी भी दूसरा मौका नहीं मिलेगा इसलिये जब रमा हम लोगों के लिये चाय पानी की व्यवस्था कर रही थी मैं सोफ़िया को उसका कमरा दिखाने के बहाने हवेली के ऊपरी हिस्से में ले आया। मुझे अकेले में पा सोफ़िया ने मेरी कमीज का कॉलर पकड़ लिया जैसे कि वह मेरे मुहँ पर तमाचा जड़ने ही वाली हो। जब मैंने उससे कहा, “सोफी तुम पहले मेरी बात तो सुनो……
क्रमशः

एपिसोड 29
मेरी बात जब सोफ़िया ने ध्यान से सुनी तो उसे भी लगा कि सारी की सारी गलती तो उसकी ही थी। उसने ही तो शुरुआत की थी मुझे अपने करीब इतने करीब लाने की। हांग कांग के विक्टोरिया पीक वाले रेस्त्रां में मैंने केवल इतना ही तो कहा था कि क्या मैं उससे प्यार कर सकता हूँ। वह वही तो थी जो मुझे अपने साथ हाथ पकड़ कर अपने होटल रूम तक ले आई। वह वही तो थी जिसने उस लड़की फोटोग्राफर के कहने पर मुझे किस ही नहीं बल्कि लिप लॉक और उससे भी बढ़कर टंग लॉक के लिए मज़बूर किया था। वह वही तो थी जिसने अपनी बात बताते हुए कहा था कि उसके साथ न्यूयॉर्क में बचपन में क्या हुआ था। वह वही तो थी जिसने मुझे अपने बिस्तर पर अपने साथ सोने की लिये इनवाइट किया था। वह तो एक मैं ही था जो उसके इतने खुले निमंत्रण को ठुकरा कर अपने होटल रूम चला आया था। इतना सब सुना कर मैंने सोफ़िया से पूछा, “कुछ और कहूँ या इतना ही काफी है अपनी बेगुनाही साबित करने के लिये…..क्या यह तुमने नहीं कहा था कि हम दोनों कुछ और न भी हो सकें कम से कम एक दोस्त तो हो ही सकते हैं। मैं आज उसी दोस्ती की दुहाई देते हुए कहा रहा हूँ कि भूल जाओ कि मैंने तुमसे रमा के बारे में न बता कर कोई गुनाह किया है”
मेरी बातों को बहुत ही ध्यान से सुनने के बाद वह धम्म से बेड के एक किनारे बैठ गई और सिर पकड़ कर अपने बालों को नौचती रही। जब वह कुछ सम्हली और शायद उसे अपनी गलती का एहसास हुआ तो उठते हुए मुझसे उसने ‘सॉरी’ कहा पर उसके बाद उसने जो कुछ भी कहा उसने तो मेरा दिल ही तोड़ दिया, “अभिनव, क्या तुम मुझे दिल्ली जाने दोगे”
मैं स्वयं को गुनहगार मानते हुए बोला, “सोफी अगर तुम आज मेरे घर से मेरी बीबी से मिले बिना ही दिल्ली वापस चली गई तो मैं अपने आपको कभी मुआफ़ नहीं कर पाउँगा”
मेरी बात सुनकर वह मेरी बाहों में समा गई। मैंने उसकी पीठ पर थपकी देकर समझाया सहलाया जब वह होश में आई तो उसने मुझे एक बार फिर से चेहरे के हर हिस्से को अपने चुंबनों से ढक दिया और अश्रुपूर्ण आँखों से लिये हुए उसने कहा, “मुझे तुम बीकानेर दिखाओगे या नहीं। मैं बीकानेर ही तो देखने आई हूँ”
“सोफी ज़रूर दिखाऊँगा मैं ही नहीं बल्कि रमा तुम्हारे साथ तुम्हारे साये की तरह रहेगी”
जब मैं यह सब सोफिया से कह रहा था उसी समय रमा वहाँ आई और बोली, “चलो भी नीचे चलो नाश्ता तैयार है”
रमा ने देखा कि सोफ़िया डिस्टर्बड है तो उसने सोफ़िया को अपने गले लगाया और बोली, “अभिनव ने मुझे तुम्हारे और अपने बारे में सब कुछ बताया है। हमारे बीच यही खुलापन हमारे पति पत्नी के रिश्ते का आधार है। हम लोग दोनों अपनी-अपनी जिंदगी जीने के लिये आज़ाद हैं और वेबजह एक दूसरे के ऊपर शक़ नहीं किया करते। अभिनव को जो अच्छा लगता है। वह करता है और जो मुझे अच्छा लगता है। वह मैं करती हूँ”
रमा की बात जब सोफिया ने ध्यान से सुनी और समझी तो वह बोली, “नहीं मैं ही शायद गलत थी। क्या तुम मुझे मुआफ करोगी”
रमा ने उसके चेहरे को अपनी ओर करते हुए कहा, “मुझे तुम अपनी बड़ी बहन मान सकती हो”
रमा के समझाने बुझाने के बाद सोफ़िया रमा के साथ-साथ नीचे बैठक तक आई। बाद में हम लोगों ने मिलकर चाय पी और नाश्ता किया।
क्रमशः





एपिसोड 30
शाम का डिनर मैंने रमा से कहकर खास तौर पर सोफ़िया और महेंद्र के लिये लक्ष्मी निवास पैलेस में रखा था। सोफिया ने आज डिनर के लिये स्पेशल ब्लैक कलर की सिल्की ड्रेस पहनी थी और मैं अपनी निग़ाह से देखकर कहूँ तो वह उस शाम बड़ी कातिलाना लग रही थी। जब मैंने उसे बैठक में आते हुए देखा तो मुझसे उसकी तारीफ़ किये बिना रहा नहीं गया, “महेंद्र देख तो सही आज सोफी ने तेरे लिये खास ये ड्रेस पहनी है। आज ये तेरे लिये खास बन ठन के निकली है। बी अ मैन यार उसकी तारीफ़ में कुछ तो बोल ना”
महेंद्र जो ख़ुद भी उस दिन गहरे नीले रंग को जोधपुरी बंद गला सूट पहने हुआ तो और देखने में बहुत आकर्षक लग रहा था जब तक कि कुछ बोलता बीच में ही रमा बोल पड़ी, “तुम्हारी ये लड़कियों को देखकर उनकी तारीफ़ कर के फुसलाने की ये पुरानी आदत न जाने कब बदलेगी लेकिन मेरा देवर महेन्द्र भी जम रहा है। वह भी किसी से कम नहीं है”
रमा ने महेंद्र की तारीफ की लेकिन वह पास आकर खड़ी हो गई रमा ने अपनी आँख के कोने से हल्के से काजल चुराया और सोफ़िया के बाएं कान के पीछे हल्के से लगाते हुए कहा, “सोफ़िया यह हमारे यहाँ की रीति है जब कोई बहुत अच्छा लगे तो हम उसकी इस तरह नज़र उतारते हैं जिससे वह काले जादू से दूर रहे और उसे किसी की नज़र न लगे”
सोफ़िया को जब कुछ समझ नहीं आया तो वह मेरी ओर देखने लगी। मैंने उसे बताया कि भारत में यह आम चलन है कि जिस दिन कोई अच्छे ढंग और सलीके से तैयार हो तो उसकी नज़र उतार ली जाय। यह टोटका सदियों से चला आ रहा है। मुझे लगा कि सोफ़िया को मेरी बात कुछ समझ आई शायद नहीं भी इसे देख मैंने रमा को इशारे से कहा कि उसे महेंद्र की भी नज़र ठीक उसी तरह उतारनी चाहिए जैसे कि उसने सोफ़िया की उतारी थी। जब रमा ने महेंद्र की भी नज़र वैसे ही उतार कर कहा, “भइय्या ये कजरौटा इसलिए कि तुझे किसी की नज़र न लगे"
महेंद्र ने बढ़ कर रमा के पाँव छूकर आशीर्वाद लिया। महेंद्र को रमा के पाँव छूते देख सोफ़िया भी रमा के पाँव छूने के लिये जैसे ही झुकी रमा के मुँह से निकला, “भगवान तुम्हारी जोड़ी सदा बनाये रहे”
बाद में हम सभी अपनी सिसोदिया हवेली मोहताना चौक से लक्ष्मी निवास पैलेस गए वहाँ तक पहुँचने में जहाँ आम दिनों में बीस पच्चीस मिनट लगते थे उस दिन बाजार में भीड़ होने के कारण वहाँ तक कि दूरी 20 किमी पूरी करने में लगभग पैंतालीस मिनट लग गए।
किशन लाल ने गाड़ी पोर्च के नीचे जाकर लगाई और होटल के दो गार्डों ने बढ़ कर हमारा स्वागत किया। उनके गेट खोलते ही हम लोग होटल के प्रांगण में अंदर आये तो वहाँ का डेकोर देखकर सभी को बहुत अच्छा लगा। हम लोग बाईं ओर मुड़े और महल के आँगन में आये तो बाहर ही कुर्सी मेज सजीं हुई हमारा इंतज़ार कर रहीं थीं हम लोग एक ऐसी जगह जा बैठे जहाँ से सामने चल रहे संगीत और नृत्य को ठीक ढंग से निहार सकें। महल के ऊपरी हिस्सों में धीमी-धीमी लाइट जल रही थी। पूरा माहौल इस कदर बना हुआ था कि आपका मन अपने आप ही बाग-बाग हो जाए।
रमा आज शाम की हॉस्टेस थी इसलिए खाने पीने के आर्डर की जिम्मेदारी उसी की थी। रमा ने हम सभी के लिये ड्रिंक्स का आर्डर दिया। हम लोगों ने वहीं बैठकर शाम की रंगीनियत का पूरा लुत्फ़ उठाया। डाइनिंग हाल में उठकर जाने के पहले हम लोगों ने महल के निचले तल्ले का दौरा किया जिसमें वहाँ का दरबार हाल था, यूरोपियन शैली का बॉल रूम, बिलियर्ड हाल जिसमें दो बिलियर्ड टेबल्स लगीं हुईं थीं, दीवार पर अलग-अलग तरह के कलात्मक और हिरणों के सींग और चीता और शेरों के बस्ट सुरिचिपूर्ण ढंग से लगाये हुए थे जो अपना जलवा बिखेर रहे थे।
इधर उधर घूमने के बाद हल लोगों ने इस महल की जानकारी हासिल की तो पता लगा कि इसे महाराजा गंगा सिंह ने अपने निवास हेतु बनबाया था। आजकल बीकानेर का राजपरिवार पास ही बने लाल गढ़ में निवास करता है और इस प्रॉपर्टी के रखरखाव के नज़रिए से इलीट क्लास के लिए होटल में परिवर्तित कर दिया जिसमें अधिकतर विदेशी मेहमान ही आकर ठहरते हैं।
बाद में हम लोग डाइनिंग हाल में आये और वहाँ बीकानेरी राजपरिवार की बनाई हुई रेसेपी की डिशेज़ का स्वाद लिया। आखिर में स्वीट डिश के बाद ही हम लोग वहाँ से देर रात घर के लिए निकले। मेरे और रमा के लिये प्रसन्नता का विषय यह रहा कि सोफ़िया का अधिकतर समय महेंद्र के साथ गुज़रा। इसकी वजह से मुझे लगा कि मामू सा की चिंताओं के अंत अब शीघ्र ही होकर रहेगा। मैंने तो सोफ़िया से यहाँ तक कहा कि उसे और महेंद्र को दो एक दिन इसी महल में आकर रुकना चाहिए। मेरी बात सुनकर रमा बोल उठी, “जगनेर पैलेस तो यहाँ से भी अधिक अच्छा है भईया और सोफ़िया को कुछ समय एकांत में गुजारना है तो वहाँ से अच्छी कोई दूसरी जगह हो ही नहीं सकती"

एपिसोड 31
कल रात के वैभव का नशा सोफ़िया पर इस क़दर चढ़ा हुआ था कि जब वह सभी के साथ नाश्ते पर मिली तो बोली, “कल तो मज़ा आ गया”
रमा ने सोफ़िया को ख़ुश देख कहा, “चलो तुम्हें हमारे भइय्या का साथ तो अच्छा लगा ही साथ में अच्छा लगा हमारे बीकानेर का खाना पीना और लक्ष्मी निवास पैलेस”
“पैलेस तो बहुतेरे हैं लक्ष्मी निवास पैलेस जैसे इंडिया में लेकिन लक्ष्मी निवास की अम्बिएन्स जैसी है वैसी और कहीं की नहीं” मैंने अपनी ओर से चाय का प्याला उठाते हुए कहा, “अरे जब तुम आज जूनागढ़ देखोगी तो तुम्हारी तबियत ही ख़ुश हो जाएगी। यह राजस्थान का इकलौता ऐसा फ़ोर्ट है जो ज़मीन पर है बाकी सब के सब पहाड़ियों पर बनाये गए हैं”
“देखने के लिये तो यहाँ बहुत कुछ है लेकिन विदेशी टूरिस्ट्स अक़्सर ही यहाँ की पुराने ज़माने की हवेलियाँ और बाज़ार देखना पसंद करते हैं”
रमा ने कहा, “एक बात और हमारे बीकानेर में एक कैमल डेवेलपमेंट एंड प्रोटेक्शन सेंटर भी है वहाँ अगर कोई चाहे तो अपनी चॉइस का ऊँटनी का दूध आइस क्रीम वग़ैरह भी ले सकता है”
मैंने रमा की बात में जोड़ते हुए कहा, “कैमल सफ़ारी को क्यों भूल रही हो और कैमल के वग़ैर तो म्हारा राजस्थान सूना-सूना है वही तो यहाँ के रेगिस्तान का जहाज है”
“सफ़ारी का मज़ा तो सोफिया ओशियां में उठा चुकी है वह यहाँ की सफ़ारी पर जाकर क्या करेगी” मैनें रमा के प्रस्ताव पर कहा।
“तो तुम्हीं बताओ कि उसे अब कौन सी जगह दिखाएं”
“मेरे विचार में तो उसे आज जूनागढ़ किला देखने जाना चाहिए”
“तुम हवेली में रहना भइया और सोफ़िया के साथ अब मैं रहूँगी।” रमा बोली।
“क्यों अगर हवेली में मैं नहीं रहूँगा तो क्या कोई इसे उठा ले जाएगा” मैंने रमा से पूछा।
“उठा तो कोई भी नहीं ले जाएगा वह काम तो बीकानेर में कोई भी ना करे है चोरी चकारी का तो नाम मत लो। मैं तो इसलिये कह रही थी कि तुम अपने बाकी के सब काम निपटा लो। जमींदारी के बहुतेरे काम तुम्हारे यहाँ ना रहने से बेमतलब में ही लटके पड़े हैं। एक बार तुम दिल्ली निकल गए तो वे सारे के सारे काम पेंडिंग रह जाएंगे” रमा मेरी ओर देखकर बोली। रमा ने यह भी कहा, “तुम्हारे ऊपर एक जिम्मेदारी और छोड़कर जा रही हूँ कि शाम का खाना आज तुम बनबाना”
“चलो यह ठीक रहेगा कम से कम एक दिन तो मुझे मिलेगा अपनी चॉइस का खाना खिलाने का”
“तो यही प्रोग्राम तय रहा” रमा बोली, “चलो फिर चलने की तैयारी करो”
“अब तुम घर सम्हालो अब कुछ दिन मैं सोफिया के साथ गुजारुँगी” रमा मेरी ओर देखते हुए बोली।
हम लोगों की बात सुनकर सोफ़िया को लगा कि मेरे अपने काम पर ध्यान न देने से इन लोगों का नुकसान हो रहा है इसलिये वह खुद ब खुद बोली, “रमा ठीक कह रहीं हैं, तुम्हें अपना काम नहीं नेगलेक्ट करना चाहिए। बस इतना करना जिस दिन मैं यूएस वापस जाऊँ उस दिन तुम मुझसे मिलने एक बार सिर्फ़ एक बार दिल्ली ज़रूर-ज़रूर आ जाना”
“तुम कौन सी अभी वापस जा रही हो” मैंने सोफ़िया को जवाब देते हुए कहा, “अभी तक तो तुम हमारी गेस्ट थीं लेकिन मुझे पता है तुम्हें कुछ दिन तो एक्सकलुसिवली मामू सा की गेस्ट रहोगी”
“क्या मतलब”
पहली बार हम लोगों की बातों के बीच पड़ते हुए महेंद्र बोला, “जो भी उनका गेस्ट भारत आता है डैड उसे कुछ दिन के लिये मथुरा वृंदावन ज़रूर-ज़रूर ले जाते हैं विशेषकर इस बसंती मौसम में"
“वहाँ ऐसा क्या है” सोफ़िया ने पूछा।
“मुझे लगा कि तुमने पढ़ा होगा कि भगवान कृष्ण का जन्म वहीं तो हुआ था वहीं तो भगवान कृष्ण ने राधा रानी के साथ अलौकिक प्रेम प्रसंग की लीलाएँ कीं थीं, मानवता को प्रेम का पाठ पढ़ाया” महेंद्र ने उत्तर दिया।
“तुम मेरे साथ वहाँ चलोगे” सोफ़िया ने मेरी ओर देखते हुए पूछा।
“तुम कहोगी तो शायद वैसे मामू सा अपने मेहमानों को अपने साथ ही ले जाते हैं”
“ओह आई सी”
रमा ने चुटकी लेते हुए कहा, “हो सकता है सोफ़िया तुम्हारे लिए मामू सा अपने कानून कायदे बदल दें”
“मेरे लिये वह ऐसा भी करेंगे मुझे विश्वास नहीं हो रहा” कहकर सोफ़िया रमा की ओर देखकर मुस्कुराने लगी।
रमा बोल पड़ी, “देखना मेरी बात सच होगी”
बातचीत करते कराते हम लोगों का बहुतेरा समय तो हवेली में ही गुज़र गया। बाद में ग्यारह बजे के आस-पास रमा सोफ़िया और महेंद्र को जूनागढ़ दिखाने ले गई। उस दिन मैं घर पर ही रहा और अपने जो भी काम छूटे हुए थे उन्हें निपटाने में लगा रहा। गाँव से राम किशन आ गया था उससे वहाँ के हालचाल लिये फसल कैसी चल रही है उसके बारे में जानकारी भी ली।
जब राम किशन ने अबकी बार होली पर गाँव आने के लिय कहा तो उससे मैनें यही कहा, "देखता हूँ अभी से कुछ भी कह पाना संभव नहीं है क्या पता दिल्ली जाना पड़ जाय मामू सा अमरीका से आये हुए हैं अगर यहाँ रहा तो अवश्य गाँव आऊँगा"
क्रमशः

एपिसोड 32
जूनागढ़ के देखने के लिए रमा ने वहीं के एक गाइड चरण सिंह बीका को अपने साथ दिन भर के लिए ले लिया जिससे कि सोफ़िया को इस बात का ज्ञान हो सके कि क़िले के इतिहास के साथ-साथ यहाँ के विभिन्न समयों में अलग-अलग राजाओं और महाराजाओं के समय किन-किन भवनों का निर्माण कार्य सम्पन्न कराया गया। चरण सिंह ने हम सब लोगों को साथ लिया और टिकट खरीदी और क़िले के भीतर दाख़िल हो गए। चरण सिंह ने अपने बारे में बताते हुए कहा, “मैडम मैं बीकानेर में एक अरसे से गाइड का ही काम कर रहा हूँ इसलिये नहीं कि मुझे पैसों की दरकार है बल्कि यह मेरा पैशन है कि मैं हर रोज़ एक नई हस्ती से मिलूँ कुछ उनके बारे में जानूँ तो कुछ उनको अपने बारे में बताऊँ। दरअसल मैं जिनसे दिन में मिलता हूँ उनकी कहानी सुनकर मैं उसे अपने ढँग से कुछ न कुछ लिखता पढ़ता हूँ। जब कभी अवसर मिल जाता है तो मैं अपनी स्टोरीज़ को फेसबुक पर पोस्ट करता रहता हूँ। अब तो हालत यह हो गई है कि मेरे पीछे कई प्रकाशक रुपयों की थैली लेकर घूम रहे हैं पर मैं अपनी कहानियाँ सिर्फ अपने चाहने वालों को ही सुनाता हूँ। ऐसा करने से मुझे बहुत प्रसन्नता और आत्मसुख का अनुभव होता है”
“अरे फिर तो मेरा और आपका लगभग एक ही प्रोफेशन हुआ। मैं भी तो यही काम करती हूँ” सोफ़िया ने चरण सिंह बीका से पूछा, “एक बात बताइये कि आप अपने नाम के साथ बीका शब्द का इस्तेमाल क्यों करते हैं। मैंने तो जहाँ तक पढ़ा है कि मारवाड़ के राठौर राजपूत भगवान राम के वंशज ही थे इस प्रकार तो वे सूर्यवंशी हुए। जोधपुर, बीकानेर तथा मारवाड़ की और भी कई रियासतें जो राठौर राजपूतों के मातहत थीं जिन पर राठौर काबिज थे वे सब भी इसी राठौर वशंज राजघराने की शाखाएँ हैं”
“जी आपने सही कहा हम लोग भी राठौर सूर्यवंशी राजपूत हैं लेकिन चूँकि राव बीका जिन्होंने बीकानेर बसाया। उनके साथ-साथ हमारे खानदान के लोग भी उसी समय बीकानेर आ गये इसलिये लोगों ने हम लोगों को बीका कहना शुरू कर दिया, इसलिये हम लोग बीका कहलाये। मैं आपकी इस बात के लिये तारीफ़ करूँगा कि आपने बीकानेर के बारे में अच्छी खासी तैयारी की हुई है जो साधारणतया एक विदेशी टूरिस्ट करके नहीं आता है”
“यह मेरा शौक़ है और पैशन भी कि मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ के बारे में पूरी जानकारी हासिल करके ही जाती हूँ जिससे मुझे कोई अज्ञानी न समझे” सोफ़िया ने चरण सिंह बीका से कहा।
“मैडम इसका मतलब क्या मैं यह लगाऊँ कि मैं आपको कोई उल्टी सीधी बात नहीं बता सकता हूँ मुझे भी अपनी लिमिट में ही रह कर बात करनी होगी”
हँसते हुए सोफ़िया ने कहा, “जी मैं आपसे यही उम्मीद रखती हूँ”
इसके बाद क़िले की पहली मंजिल की ओर ढलान वाले रास्ते से जाते हुए चरण सिंह ने क़िले के साथ-साथ बीकानेर के इतिहास के बारे में बताते हुए जब अपनी बात शुरू करनी चाही तो सोफ़िया ने चरण सिंह बीका से कहा, “ये ढलान वाला रास्ता इसलिये बनाया गया होगा कि हाथी की सवारी क़िले के भीतरी हिस्से तक बेरोकटोक आ जा सके”
“जी मैडम आपने बिल्कुल सही फ़रमाया ये टेढ़े मेढ़े ढलान वाले रास्ते इसीलिये ही बनाये गए थे। आपने इसी प्रकार के रास्ते मेहरानगढ़ में भी देखे होंगे”
“जी आपने सही कहा”
क़िले में और अंदर बढ़ने के पहले चरण सिंह बीका एक खुले से आँगन में आकर रुके और उंन्होने जूनागढ़ के इतिहास के बारे में बताया कि:-
“इस किले का निर्माण बीकानेर के शासक राजा राय सिंह के प्रधान मंत्री करण चंद की निगरानी में किया गया था, राजा राय सिंह ने 1571 से 1611 AD के बीच बीकानेर पर शासन किया था। एतिहासिक दस्तावेजों के अनुसार जूनागढ़ पर दुश्मनों द्वारा कई बार आक्रमण किया गया, लेकिन कभी इसे कोई हासिल नही कर सका सिर्फ कामरान मिर्ज़ा ने ही एक दिन के लिये इसे अपने नियंत्रण में रख पाने में सफलता प्राप्त की थी। कामरान मुग़ल बादशाह बाबर के दूसरे बेटे थे जिन्होंने 1534 में बीकानेर पर आक्रमण किया था, और इसके बाद बीकानेर पर राव जीत सिंह राठौर का शासन रहा। 5.28 एकड़ के किले के परीसर में महल, मंदिर और रंगमंच बने हुए है। यह इमारतें उस समय की मिश्रित वास्तुशिल्प कला को दर्शाती हैं। इस क़िले में कई चरणों मे निर्माण कार्य विभिन्न राजाओं द्वारा अलग-अलग समय कराये गए लेकिन फिर भी कलात्मक एवं स्थापत्य की दृष्टि से एक समय में किये हुए जैसे लगते हैं जो इस किले की विशेषता रही है”
इतना कह कर चरण सिंह बीका ने सबको अपने साथ लेकर किले में प्रवेश किया।
क्रमशः



एपिसोड 33
चरण सिंह बीका ने अपनी बात जारी रखते हुए बताया कि जूनागढ़ किले के बारे में कुछ भी बताने के पहले यह स्पष्ट कर दूँ कि इसी नाम से गुजरात प्रदेश में एक शहर भी है लेकिन उस जूनागढ़ का इस किले से कोई ताल्लुक नहीं है। जूनागढ़ किले का नामकरण एक प्राचीन शहर के एक पुराने दुर्ग के नाम पर हुआ है। यह गिरनार पर्वत के समीप स्थित है। यहाँ पूर्व-हड़प्पा काल के स्थलों की खुदाई हुई है। इस शहर का निर्माण नौवीं शताब्दी में हुआ था। उस समय यह चूड़ासमा राजपूतों की रियासत की राजधानी हुआ करती थी। गिरनार के रास्ते में एक गहरे रंग की बेसाल्ट चट्टान है, जिस पर तीन राजवंशों का प्रतिनिधित्व करने वाला शिलालेख पर यह अंकित है:-
‘सम्राटअशोक (लगभग 260-238 ई.पू.) रुद्रदामन (150 ई.) और स्कंदगुप्त (लगभग 455-467)। यहाँ 100-700 ई. के दौरान बौद्धों द्वारा बनाई गई गुफ़ाओं के साथ एक स्तूप भी है। शहर के निकट स्थित कई मंदिर और मस्जिदें इसके लंबे और जटिल इतिहास को उद्घाटित करते हैं। यहाँ तीसरी शताब्दी ई.पू. की बौद्ध गुफ़ाएँ, पत्थर पर उत्कीर्णित सम्राट अशोक का आदेशपत्र और गिरनार पहाड़ की चोटियों पर कहीं-कहीं जैन मंदिर स्थित हैं। 15वीं शताब्दी तक राजपूतों का गढ़ रहे जूनागढ़ पर 1472 में गुजरात के महमूद बेगढ़ा ने क़ब्ज़ा कर लिया, जिन्होंने इसे मुस्तफ़ाबाद नाम दिया और यहाँ एक मस्जिद भी बनवाई, जो अब खंडहर हो चुकी है’
चरण सिंह को जब लगा कि इतनी गहन बात पचाने के लिए इन टूरिस्ट को कुछ समय लगेगा तो वह उन सभी को लेकर कई सीढिय़ों और टेढ़े-मेढ़े रास्तों से होता हुआ जूनागढ़ किले के सबसे ऊपरी हिस्से में ले आया जहाँ बादल महल था और उसके बारे में बताते हुए बोला, “बरसात को तरसते रेगिस्तानी राजस्थान, खासतौर पर उस पुराने दौर में जब बारिश राजस्थान के लिए त्योहार सरीखी हुआ करती थी, उस दौर में राज्य के शाही किलों में बादल महल बनाकर बरसात का एहसास राजा-महाराजा किया करते थे। जयपुर, नागौर और भी राजस्थान के अन्य किलो में बने बादल महल इसका उदाहरण हैं, लेकिन बीकानेर का जूनागढ़ किला खासतौर पर बने बादल महल के लिए काफी चर्चित रहा है इसका कारण है कि जूनागढ़ दुर्ग परिसर में खासी ऊँचाई पर बने इस भव्य महल को किले में सबसे ऊंचाई पर स्थित होने के कारण बादल महल कहा जाता है। महल में पहुँच कर वाकई लगता है, जैसे आप आसमान के किसी बादल पर आ गए हों। नीले रंग के बादलों से सजी दीवारें बरखा की फुहारों का अहसास दिलाती हैं। यहाँ बहने वाली ताजा हवा पर्यटकों की सारी थकान छू कर देती है”
इतना कह चुकने के बाद चरण सिंह कुछ देर के लिये चुप हो गया जिससे कि लोग उसकी बात की गहराई समझ कर अपने आप को बादलों के बीच समझने का एहसास करें। सोफिया ने बादल महल की दीवारों पर की गई नीले रंग की चित्रकारी देखकर कहा, “वाओ कितनी सुंदर कलाकारी है।मेरा मन तो खुश हो गया बादल महल देख कर”
महेन्द्र ने भी सोफिया की हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा, “सोफिया यह बात तो है। कोई माने या न माने भारत में भी इतिहास के विभिन्न समयों में कला प्रेमी रहे हैं कोई यह नहीं कह सकता है कि इन सब चीजों को केवल पश्चिमी दुनियाँ के लोग ही जानते समझते हैं”
महेन्द्र की बात सुनकर सोफिया ने महेन्द्र की ओर बड़े ध्यान से देखा और पाया कि वह भी उसके साथ किले की एक-एक बात बहुत ध्यान से देख रहा था जिसे देख उसे महसूस हुआ कि वह वहाँ अकेली नहीं है कोई एक और भी उसके साथ खडा था। सोफिया ने रमा की ओर देखा तो वह भी भित्तिचित्रों को ध्यान से देख रही थी। रमा ने सोफिया को अपनी ओर देखते हुए देखा तो उससे कहा, “राजस्थान के किले महल जहाँ लोगों के दिलों में अपनी जगह बना लेते हैं वहीं यह बात भी हक़ीक़त है कि यहाँ की गर्मियों का मौसम और धूल भरी आन्धियों के बीच बारिशों का कितनी बेसब्री से इंतज़ार किया जाता है उस वक़्त इन महलों का मह्त्व और भी बढ़ जाता है “
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए चरण सिंह बोला, “जूनागढ़ किला पूरी तरह से थार रेगिस्तान के लाल बलुआ पत्थरों से बना है। हालाकिं इसके भीतर जैसा कि आप देख रहे हैं कि यहाँ संगमरमर का उपयोग बहुतायत से किया गया है। इस किले में देखने लायक कई शानदार चीजें हैं। यहाँ राजा की समृद्ध विरासत के साथ उनकी बनाई हुई कई हवेलियां और मंदिर भी हैं। यहाँ के कुछ महलों में ‘बादल महल’ सहित गंगा महल, फूल महल आदि शामिल हैं”
रमा के लिये चरण सिंह की बातों का कोई विशेष महत्व नहीं था कि कयोंकि वह तो आये दिन किसी न किसी मेहमान के साथ किला देखने आया ही करती थी इसलिये वह बीच-बीच में इधर उधर भी हो जाया करती थी लेकिन सोफ़िया और महेंद्र चरण सिंह की बताई बातों को बड़े ध्यान से सुन रहे थे।
चरण सिंह ने बताया, “इतिहासकारों के अनुसार इस दुर्ग के पाये की नींव 30 जनवरी 1589 को गुरुवार के दिन और पहली आधारशिला 17 फरवरी 1589 को रखी गई। इसका निर्माण 17 जनवरी 1594 गुरुवार को पूरा हुआ। स्थापत्य, पुरातत्व व ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण इस किले के निर्माण में तुर्की की शैली अपनाई गई है जिसमें दीवारें अंदर की तरफ झुकी हुई होती हैं। इस दुर्ग में निर्मित महलों में दिल्ली, आगरा व लाहौर स्थिति महलों की भी झलक मिलती है जो शायद उस समय के कारीगरों की सोच को दर्शाता है। दुर्ग चतुष्कोणीय आकार में है, जो 1078 गज की परिधि में निर्मित है तथा इसमें औसतन 40 फीट ऊंचाई तक के 37 बुर्ज हैं, जो चारों तरफ से दीवार से घिरे हुए हैं। इस दुर्ग के 2 प्रवेश द्वार हैं करण पोल व चांद पोल। करण प्रोल पूर्व दिशा में बनी है जिसमें 4 द्वार हैं तथा चांद पपोल पश्चिम दिशा में बनी है, जो एक मात्र द्वार ध्रुव पोल से संरक्षित है। सभी पोलों का नामकरण बीकानेर के शाही परिवार के प्रमुख शासकों एवं राजकुमारों के नाम पर किया गया है। इनमें से कई पोल ऐसी हैं, जो दुर्ग को संरक्षित करती हैं। पुराने जमाने में कोई भी युद्घ तब तक जीता हुआ नहीं माना जाता था, जब तक कि वहाँ के दुर्ग पर विजय प्राप्त न कर ली जाती। शत्रुओं को गहरी खाई को पार करना पड़ता था, उसके बाद मजबूत दीवारों को पार करना होता था, तब कहीं जाकर दुर्ग में प्रवेश करने के लिए पोलों को अपने कब्जे में लेना होता था। पोलों के दरवाजे बहुत ही भारी व मजबूत लकड़ी के बने हुए हैं। इसमें ठोस लोहे की भालेनुमा कीलें लगी हुई हैं। सुरक्षा की दृष्टि से यह किला एक बहुत ही मज़बूत माना गया है”
क़िले के अन्य भागों को देखते वक़्त सोफिया के दिल दिमाग़ में बार-बार अभिनव की कही हुईं वे बातें याद आतीं रहीं जो उसने हांग कांग में अपनी पहली मुलाक़त के दौरान कहीं थीं विशेषकर क़िले के भीतर बने अलग-अलग महल इत्यादि जिनमें से प्रमुख था अनूप महल एक बहु-मंजिला ईमारत है, जो इतिहास में साम्राज्य का हेडक्वार्टर हुआ करता था। इसकी सीलिंग लकड़ियों से और काँच की सहायता से बनाई गयी है, साथ ही इसके निर्माण में इटालियन टाइल्स और लैटिस खिडकियों और बाल्कनी का उपयोग किया गया था। इस महल में सोने की पत्तियों से कुछ कलाकृतियाँ भी बनाईं गईं है। इसे एक विशाल निर्माण भी माना जाता है। फूल महल किले का सबसे पुराना भाग है जिसका निर्माण बीकानेर के राजा राय सिंह ने किया था, जिनका शासनकाल 1571 से 1668 तक था। गंगा महल का निर्माण 20 वी शताब्दी में गंगा सिंह ने किया था जिन्होंने 1887 से 1943 तक 56 सालो तक शासन किया था, इस किले में एक विशाल दरबार हॉल है जिसे गंगा सिंह हॉल के नाम से भी जाना जाता है।
जब बात करण महल की आई तो उसके बारे में बताते हुए चरण सिंह ने कहा कि करण महल (पब्लिक ऑडियंस हॉल) का निर्माण करण सिंह ने 1680 C. में किया था, इसका निर्माण मुग़ल बादशाह औरंगजेब के खिलाफ जीत की ख़ुशी में किया गया था। इस महल के पास एक गार्डन का निर्माण भी कराया गया है और राजस्थान के प्रसिद्ध और विशाल किलो में यह शामिल है। जूनागढ़ किला राजस्थान की इतिहासिक वास्तुकला को दर्शाता हुआ अपने गौरवशाली इतिहास के साथ दर्शकों के दिलों पर राज करता है।
किले की खिड़कियाँ रंगीन कांच की बनी हुई है और जटिलतापूर्वक चित्रित की हुई बाल्कनी का निर्माण लकडियो से किया गया है। बाद में राजा अनूप सिंह और सूरत सिंह ने भी महल की मरम्मत करवाकर इसे चमकीला बनवाया, काँच लगवाए और लाल और सुनहरा पेंट भी लगवाया। राजगद्दी वाले कक्ष में एक मजबूत आला भी बना हुआ है जिसका उपयोग सिंहासन के रूप में किया जाता है।
बादल महल, अनूप महल के अस्तित्व का ही एक भाग है। इसमें शेखावती दुन्द्लोद की पेंटिंग है जो बीकानेर के महाराजा को अलग-अलग पगड़ियो में सम्मान दे रहे है। इसमें नाख़ून, लकड़ी, तलवार और आरे पर खड़े लोगो की तस्वीरे भी लगी हुई है। महल की दीवारों पर हिन्दू भगवान श्री कृष्ण की तस्वीरे भी बनी हुई है।
चन्द्र महल किले का सबसे भव्य और शानदार कमरा है, सोने से बने देवी-देवताओ की कलाकृतियाँ और पेंटिंग लगी हुई है जिनमे बहुमूल्य रत्न भी जड़े हुए है। इस शाही बेडरूम में काँच को इस तरह से लगाया गया है की राजा अपने पलंग पर बैठे ही जो कोई भी उनके कमरे में प्रवेश कर रहा है उसे देख सकते है।
पूरा किला दिखाने के बाद लौटते समय चरण सिंह ने सोफ़िया को विशेषरूप से यह भी बताते हुए कहा, “इस किले की चहारदीवारी के भीतर ही बाद में बीकानेर के राजपरिवार ने एक संग्रहालय का निर्माण कराया जिसमें ऐतिहासिक महत्व के राजसी ठाठबाट के विभिन्न प्रकार की पोशाकें और वस्त्रों, चित्र और हथियार भी पर्यटकों के देखने के लिए प्रदर्शित किए गए हैं। इस संग्रहालय सैलानियों के लिए राजस्थान के खास आकर्षणों में से एक है। यहाँ आपको संस्कृत और फारसी में लिखी गई कई पांडुलिपियां भी मिल जाएंगी। जूनागढ़ किले के अंदर बना संग्रहालय बीकानेर और राजस्थान में सैलानियों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण है। इस किले का संग्रहालय में कुछ बहुत ही दुर्लभ चित्र, गहने, हथियार, पहले विश्वयुद्ध के बाइप्लेन आदि रखे गए हैं। आइये इधर से मेरे साथ ध्यान से चलिए”
क़िले के बाहरी इलाके में स्थित किला संग्रहालय के बारे में बताते हुए चरण सिंह बीका ने बताया कि किले के भीतर बने संग्रहालय को जूनागढ़ किला संग्रहालय का नाम दिया गया है जिसकी स्थापना 1961 में महाराजा डॉ. करनी सिंह ने “महाराजा राय सिंह ट्रस्ट” के नियंत्रण में की थी। इस संग्रहालय में पर्शियन और मनुस्मृति, इतिहासिक पेंटिंग, ज्वेलरी, शाही वेशभूषा, शाही फरमान, गैलरी, रीती-रिवाज और माने जाने वालेभगवान की मूर्तियों का प्रदर्शन किया गया है। इस संग्रहालय में एक शस्त्रागार भी है जिसमे भूतकालीन युद्धों की यादों को संजोया गया है।
सोफ़िया के साथ-साथ महेंद्र ने भी किले के बारे में चरण सिंह से बातों बातों में कुछ और भी जानकारियां हासिल कीं जैसे कि इस किले के लिये पानी की व्यवस्था उस जमाने क्या थी और यहाँ सैनिकों के अलावा घोड़े और हाथियों के अस्तबल वग़ैरह कहाँ बनाये गए थे इत्यादि।
क्रमशः
एपिसोड 34
चरण सिंह के साथ जूनागढ़ के क़िले को सात घंटे तक बहुत ध्यान से देखने के बाद जब सोफ़िया वग़ैरह शाम को घर लौटे तो एक दम थकान से चूर हो रखे थे। मैं इस बात को पहले ही से जान रहा था कि बीकानेर के जूनागढ़ क़िले के बारे सोफ़िया ने रमा से खोद-खोद कर जानकारी ली होगी और एक-एक चीज को बहुत पैनी दृष्टि से देखा होगा क्योंकि मैंने सोफ़िया के दिलोदिमाग़ पर बीकानेर की शान जाने वाले इस क़िले के बारे में बहुत कुछ कह रखा था। मैं यह भी भलीभाँति जानता था कि जब ये लोग थके मांदे घर लौटेंगे तो एक ग्लास पानी के साथ-साथ गरमागरम समोसे और कुछ नमकीन नाश्ते चाय पीने की इच्छा प्रबल होगी इसीलिए मैंने सभी के लिए पहले ही से इन सबकी की व्यवस्था की हुई थी।
चाय पीने के साथ ही सबके चेहरे खिल उठे। सोफ़िया तो जूनागढ़ की तारीफ़ करते नहीं अघा रही थी लेकिन एक चीज जो उसे परेशान कर रही थी कि इतनी खूबसूरत और आर्किटेक्ट के महत्व की जगह होते हुए फिर भी बीकानेर अभी तक इंडिया के टूरिस्ट मैप पर क्यों नहीं है जिस तरह कि आगरा-जयपुर-दिल्ली। उसके इस प्रश्न के उत्तर में क्या कहा जा सकता था सिवाय इसके कि दिल्ली-दिल्ली है, आगरा-आगरा और जयपुर राजस्थान की राजधानी जो है।
मैंने अपनी ओर से उदयपुर और जैसलमेर को जोड़ते हुए यह कहा, “जिसने उदयपुर और जैसलमेर नहीं देखा हो तो उसने कुछ नहीं देखा”
सोफ़िया ने मेरी बात सुनकर कहा, “इतना सब कुछ देखने के लिये तो मुझे तो लगता है कि यहीं आकर किसी से शादी करनी पड़ेगी”
“जोधुपर के उम्मेद भवन पैलेस में दुनिया के कई मशहूर लोगों ने हिन्दुस्तानी रीति रिवाजों से ही यहाँ आकर शादी की है। हमारे यहाँ की शादी-शादी जैसी शादी होती हैं और पूरे बैंड बाजा बारात के साथ धूमधड़ाके के साथ” मैनें सोफिया की बात पर अपनी बात रखते हुए कही।
“वो भी भला कोई शादी हुई जिसमें नाच-गाना न हो, मौज-मस्ती न हो और तो और गोला-वारी न हो” रमा ने अपनी ओर से मेरी बात में यह और जोड़ दिया, “सोफिया एक बार तुम मन बना लो तो मैं तुम्हारी शादी का पूरा इंजमाम करने की जिम्मेदारी लेतीं हूँ कि तुम्हारी शादी यहीं से धूमधाम से करेंगे”
रमा की बात सुनकर सोफिया मन ही मन कुछ सोचने लगी तो मुझे लगा कि मामू सा का महेंद्र की शादी का मंतव्य लगता है अब शीघ्र ही पूरा होने को है क्योंकि मुझे इतना तो भरोसा था की रमा कोई भी बात वगैर सोचे समझे नहिं कहती थी। मैनें मन हो मन यह भी सोचा कि दिन में आज कुछ ऐसा अवश्य हुआ होगा जिसकी वजह से रमा ने शादी वाली बात छेड़ी। मैनें इशारों-इशारों में जब रमा से यह बात पूछी तो पता लगा कि मेरी अवधारणा मात्र एक कल्पना भर थी।
रात को जब डिनर का समय हुआ तो रमा ने मुझसे पूछा, “डिनर में क्या-क्या बनवाया है। कुछ ठीक ठाक या केवल घास फ़ूस”
“आज तो तुम भी उँगली चाटती रह जाओगी इतना बढ़िया खाना बना है” मैनें रमा से कहा।
उस रात का खाना टिपिकल बीकानेरी था और मेरे सुपरविजन में बनाया गया था। थोड़ा चटपटा सा था, लेकिन सोफ़िया को खूब पसंद आया। उस रात हम सभी लोग देर तक बातचीत करते रहे। रमा ने बीकानेर की दूसरी अन्य ख़सूसियत बताते हुए सोफ़िया को राजस्थानी लोक गीत भी गाकर सुनाये। रमा के गाये हुए गीत को सुनकर सोफिया मस्त हो गई, इस तरह की ज़िंदगी की कल्पना सोफ़िया ने नहीं की थी इसलिये वह बोल पड़ी, “राजस्थान के इस रेगिस्तानी इलाके में भी लोग इतने हँसी खुशी से भरी हुई रंगीन ज़िंदगी जीते हैं इसका तो मुझे अह्सास भी नहीं था। रमा मैं तुम्हारी जितनी भी तारीफ़ करुँ वह कम ही है”
अगले दिन के प्रोग्राम के बारे में जब सोफ़िया ने मुझसे पूछा, “कल का क्या प्रोग्राम रहेगा। कल भी क्या इसी तरह दौड़ भाग करनी पड़ेगी”
मैंने उसे बताया, “तुम सुबह तैयार रहना रमा तुम्हें बीकानेर की एक मशहूर जगह दिखाने ले जाने वाली है वहाँ तुम आराम से शांत मन से महेंद्र के साथ कुछ खूबसूरत पल बिता सकती हो”
मेरी बात सुनकर सोफ़िया मेरे चेहरे की ओर एक टक देखती रही जैसे कह रही हो कि काश मैं उसके साथ होता तो बात कुछ और ही होती….
क्रमशः





एपिसोड 35
गजनेर पैलेस जो कि बीकानेर शहर से तक़रीबन चौंतीस पैंतीस किमी की दूरी पर एक झील के किनारे बना हुआ है। वहाँ के लिए निकलने से पहले मैंने रमा से कहा, “रमा देखना कि जब तक तुम इन लोगों के साथ रहो तो किसी भी बात में मेरे नाम का ज़िक्र नहीं आना चाहिए चूँकि मैं यह बात अच्छी तरह से जानता हूँ कि सोफ़िया अभी भी पूरी तरह मुझे अपने दिमाग़ से निकाल नहीं पाई है। दूसरा, हमारे पास यह एक गोल्डन अपॉरचुनिटी है कि हम लोग महेंद्र को एक पूरा मौका दें जिससे कि वे दोनों एक दूसरे को बेहतर समझ सकें। अगर महेंद्र के दिल में अगर कोई भी जगह सोफ़िया के लिये है तो वह इन्हीं दिनों में इस बात को लेकर सोफ़िया से कुछ बात करे”
रमा बोली, “यह तो सही बात है कि हम लोग एक प्लेटफॉर्म तो मुहैया करा सकते हैं पर दोनों के दिलों में कुछ होना तो चाहिये। वैसे एक बात तो बताओ कि तुम्हारे ऊपर तुम्हारी ननिहाल का बहुत असर है और तुम्हारे करीब जो एक बार आया वह तुमसे प्यार करने लगा। क्या बात है कि ये गुर तुम्हारे दोनों ममेरे भाइयों में नहीं हैं”
“मैं क्या जानूँ कि उनमें हमारे जीन्स क्यों नहीं हैं हो सकता है वे लोग बड़ी मामी सा के परिवार पर पड़े हों” मैंने रमा से कहा, “यह बात तो मामू सा भी एक दिन कह रहे थे कि जो चीज मुझमें है वो इन दोनों में नहीं”
“मामू सा तो एक परफेक्ट और बहुत ही प्रक्टिकल इंसान हैं नहीं तो बड़ी मामी सा की मृत्यु चंद महीनों में ही वे दूसरी मामी सा वह भी एक अमेरिकन महिला को अपनी धर्मपत्नी कैसे बना पाते”
“ये बात तो तुम उन्हीं से पूछना, दिल्ली तो तुम जा ही रही हो इन लोगों के संग”
“क्या मुझे वाकई मैं दिल्ली जाना पड़ेगा”
“मामू सा चाहते हैं कि तुम इनके साथ दिल्ली जाओ। मेरे लिये तो इतना ही बहुत है कि वह चाहते हैं, इसलिये तुम्हें दिल्ली तो जाना ही पड़ेगा’
“ठीक है चली जाउँगी मना थोड़े ही कर रही हूँ”

“उसी में हम दोनों की भलाई है। मैं मामू सा की किसी भी बात की अवहेलना नहीं कर सक्ता हूँ तुम यह बात अच्छी तरह से जानती हो”
“जानती हूँ बाबा अब रहने भी दो” रमा बोली।

जब मैं और रमा हवेली के ऊपरी हिस्से से नीचे आये तो देखा कि महेंद्र और सोफ़िया दोनों ही निचले हिस्से की बैठक में आकर पहले ही से बैठे हुए थे, मैंने आते ही पूछा कि क्या सब सामान गाड़ी में रख गया तो महेंद्र बोला, “हाँ भाई सा। अब हम लोगों को निकलना चाहिये”
उनके साथ मैं बाहर तक आया और जब वे लोग कार में बैठने लगे तो सोफ़िया ने एक बार मुझे देखकर फिर से कहा, “अभिनव अगर तुम भी साथ चलते तो कुछ और ही बात होती”
मैंने सोफ़िया की आँखों में देखते हुए कहा, “महेंद्र और रमा हैं न वे तुम्हें अच्छी कंपनी देंगे, चिंता नहीं करो”
जब उनकी कार चलने लगी तो मैंने उन्हें बाय कहकर विदा किया।
गजनेर पैलेस बीकानेर के पास गजनेर में जंगल के पास एक झील के किनारे स्थित एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है जिसकी अपनी हो भव्यता है। यह महल महाराजा गंगा सिंह द्वारा लाल बलुआ पत्थर से बनवाया गया था। प्राचीन काल के दौरान, यह महल शिकार और बीकानेर के राजाओं के लिए लॉज के रूप देखा जाता था। आजकल यह महल एक जाना माना टूरिस्ट रेसोर्ट है जिसकी देखभाल उदयपुर के महाराणा की द हिस्टोरिक रिसोर्ट होट्लस (द एच आर एच ग्रुप) कंपनी संचालित कर रही है।

गजनेर पैलेस के खंभे, झरोखें, महल की जालीदार स्क्रीन हवा दार कमरे इस एतिहासिक विरासत के प्रमुख आकर्षण रहे हैं जिन पर जटिलता से नक्काशी का काम किया गया है। महल के पिछ्ले हिस्से में बने हुए प्लेटफार्म पर घूमते हुए या आराम से बैठ कर पर्यटक नाना प्रकार के प्रवासी पक्षियों को देख सकते हैं। झील के उस पार के जंगलो में काले हिरण चिंकारा नील गाय तथा कई और किस्म के जंगली जानवरों को यहाँ देखा जा सकता है।
गजनेर आकर सोफ़िया और महेंद्र को वास्तव में एक ऐसा माहौल मिला जहाँ उन्होंने एक दूसरे को समझने का अच्छा अवसर दिया। सोफ़िया ने महेंद्र से दिल खोल कर बातचीत की कि किस कारण से उसकी शादी शुदा ज़िंदगी ठीक ढंग से क्यों नहीं निभ पाई। महेंद्र ने भी अपने मन की बात सोफ़िया से की। सोफ़िया ने महेंद्र को बहुत साफ तौर पर वह सब बता दिया कि उसके साथ जवानी में कदम रखते ही किस प्रकार की दुर्घटना हो गई थी जिसकी वजह से उसका मानवीय सम्बंधों, प्रेम और शादी वग़ैरह से विश्वाश ही उठ गया है। वह अकेलेपन की जिंदगी जीने में और अपने पढ्ने लिखने के काम में लगी रहती है और अपनेआप में खुश रह्ती है।
रमा के उकसाने पर महेंद्र सोफिया को लेकर कभी जंगल में एक सफ़ारी पर साथ-साथ निकल जाता तो कभी झील में बोटिंग करने। सुबह शाम वे दोनों अकेले में बैठ कर चाय नाश्ता करते। रमा ख़ुद दूर अकेले में रह कर उनके ऊपर निग़ाह रखती कि वे दोनों एक दूसरे के क़रीब आ रहे हैं या नहीं। उसे कभी-कभी लगता कि दोनों के बीच एक लंबे रिश्ते की बात बनती सी दिखाई देती तो है पर कुछ ही देर बाद उसे यह भी लगता कि शायद यह अभी मृग मरीचिका ही है।
लेकिन रमा ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी और सोफिया तथा महेन्द्र को एक दूसरे के करीब ला कर ही चैन की साँस ली। रमा का वहाँ रहना उन दोनों के बीच मधुर सम्बंध की शुरुआत कराने में बहुत मददगार साबित हुआ। इतना सब करने के बावजूद भी रमा सोफ़िया से यह वायदा न ले सकी कि वह महेन्द्र को प्यार करती है और जब उसने सोफ़िया से पूछा, “सोफ़िया तुम महेंद्र के बारे में क्या सोचती हो”
“सच कहूँ वह मुझे अच्छा तो लगने लगा है। महेंद्र अपने प्रोफेशन के प्रति बहुत कमिटेड भी नज़र आ रहा है। वह अपनी ज़िंदगी के प्रति एक पोजिटिव नज़रिया भी रखता है पर मेरे लिये यह कह पाना अभी जल्दबाज़ी होगी मैं यह कहूँ दूँ कि उसने मेरे दिल में अपने लिये कोई जगह बना ली है”
“मैं तुमसे पूरी तरह सहमत ना भी हो पाऊँ लेकिन तुमसे इतना तो कह ही सकती हूँ कि तुम अपनी अप्रोच में मुझे बहुत क्लियर लगती हो कि तुम अपने लवर से क्या हासिल करना चाहती हो। टेक योर टाइम” रमा ने सोफ़िया से कहा।
सोफ़िया ने रमा की इस बात पर अपने दिल के राज़ खोलते हुए वही सब कुछ बताया जो उसने हवाई जहाज में अभिनव को बताया था और यह भी कह, “मेरी नज़र में एक ऐसे आदमी को तलाश कर रही हूँ जिसके चेहरे से ही प्यार टपकता हो जो लगे कि वह मेरे वग़ैर नहीं रह पाएगा और मैं उसके वग़ैर शायद न रह पाऊँ”
रमा ने सोफ़िया से पूछा, “अच्छा यह बताओ कि उस घटना के बाद तुम्हें कोई एक भी आदमी आजतक मिला या नहीं”
बहुत देर तक जब सोफ़िया कुछ न बोली तो रमा ने उसे दोबारा छेड़ते हुए कहा, “सोफ़िया देखो हम और तुम लगभग एक ही उम्र के उस दौर से गुज़र रहे हैं जहाँ एक औरत को एक मर्द की ज़रूरत उस वक़्त होती है जब वह अकेली बिस्तर में होती है। तुम समझ रही हो न मैं क्या कहना चाह रही हूं”
“समझ रही हूँ, अच्छी तरह से समझ रही हूँ” सोफिया ने उत्तर दिया।
“दूसरा उस समय जब वह अपने दिल की बात किसी और से कहना चाहती है”
सोफ़िया ने बहुत सोच विचार कर जवाब में कहा, “मुझे भी लगता है कि मैं किसी एक ऐसे व्यक्ति को अपने जीवनसाथी के रूप में चुनूँ जो मेरे शरीर से अधिक मुझे समझने की कोशिश करे”
“शरीर को क्यों नहीं” रमा ने पूछा।
“शरीर को शुरुआत में नहीं लेकिन शायद उस समय जब वह मैं समझूँ कि वह पूरी तरह मेरा है और मेरे वग़ैर रह नहीं सकता है”
“हाँ यह तो ठीक बात है। चलो यह बताओ कि कोई एक भी ऐसा व्यक्ति तुम्हें आजतक यूएस में या तुम जब इधर उधर रहती ही मिला या नहीं”
“रमा मैं तुमसे झूठ नहीं बोल पाऊँगी एक व्यक्ति मुझे ऐसा मिला अवश्य पर वह कौन है प्लीज यह न पूछ बैठना”
कुछ सोचकर रमा बोली, “नहीं पूछूँगी लेकिन समझ अवश्य गई हूँ कि वह कौन रहा होगा”
“क्या गेस कर रही हो” सोफ़िया ने रमा से पूछा।
“कुछ भी तो नहीं”
“किसी गलत आदमी पर अपनी उँगली न रख देना रमा”
इसके बाद रमा भी चुप हो गई और सोफ़िया भी चुप हो गई। दोनों ही अपने-अपने ख्यालों में खो गईं…..
क्रमशः


एपिसोड 36
सोफ़िया और महेंद्र की आज की रात हमारी हवेली में आख़िरी रात थी, मैं यह महसूस कर रहा था कि सोफ़िया मन ही मन बहुत बैचैन है। मुझसे अकेले में मिल कर शायद वह बहुत कुछ कहना चाह रही थी लेकिन उसे कोई भी मौका नहीं मिल रहा था। रमा को भी यह घुटन कहीं न कहीं अंदर ही अंदर खाये जा रही थी कि सोफ़िया और मेरे बीच कहीं कुछ ऐसा तो नहीं हो गया जिसे मैं उससे छिपाने की कोशिश कर रहा हूँ। इस कश्मकश में मैंने यह पहली बार महसूस किया कि रमा भी भीतर-भीतर एक अजीब सी टूटन महसूस कर रही थी।
मेरे लिये यह विषम परिस्तिथ थी। मैं नहीं चाहता था कि सोफ़िया आज की रात कोई ऐसी हरक़त कर बैठे जिससे कि हम लोगों की वैवाहिक जीवन में बेसबब ही कोई तूफ़ान आ खड़ा हो। मैं जब आँगन में खड़ा हुआ था तो सोफ़िया ऊपर की मंज़िल पर खड़ी थी। वह शायद मेरा इंतज़ार कर रही थी। मैंने यह दृढ़ निश्चय कर लिया था कि मैं अब सोफ़िया से दूरी बनाकर रखूँगा इसलिये जैसे ही मैंने उसे देखा तो मैं चुपचाप अपने बैडरूम में आकर अपने बिस्तर पर लेट गया। रमा वहाँ पहले ही से मेरा इंतज़ार कर रही थी मुझे अंदर आते देख उसने मुझसे पूछा, ”किसी का इंतज़ार कर रहे थे क्या”
रमा ने मुझसे आज तक इस प्रकार का सवाल नहीं पूछा था। मुझे दिल के भीतर से यह आवाज़ आई कि अभिनव तू आज सच बोल और सच के अलावा कुछ और न बोल। बड़े सोच समझ कर मैंने रमा से कहा, “हाँ, मैं सोफ़िया को देख रहा था कि वह कहाँ है”
बहुत ही भरे हुए गले से रमा ने पूछा, “कुछ पता लगा कि वह कहाँ है”
“हाँ, वह ऊपरी मंजिल में आँगन की दीवार की मुंडगेरी के पास खड़ी है”
“फिर तुमने उसे बुलाया क्यों नहीं”
“सही में मैं अगर कहूँ मैं तुम्हारे उस विश्वास को कोई भी आघात नहीं पहुँचाना चाहता था जो हम लोगों के बीच बरसों के बाद भी आज तक क़ायम है। मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता और सोफ़िया के दर्द को दूर भी करना चाहता हूँ”
रमा मेरी बात सुनकर हँसी और बोली, “अभिनव तुम इतनी जल्दी टूट जाओगे, मैंने यह तुम्हारे बारे में सपने में भी नहीं कभी सोचा था। अभी तो कहानी अपने चरम पर पहुँची भी नहीं है कि तुम बिखर गए। कैसे पूरा करोगे तुम अपना उपन्यास अगर ऐसे पलों की घुटन को ख़ुद महसूस नहीं करोगे। जाओ सोफ़िया को जो कहना है कहो मैं तुम्हें इज़ाज़त देती हूँ और तुम्हें तुम्हारा आकाश। जिसका वायदा हम लोगों ने अपनी शादी के समय किया था कि हम एक दूसरे को अगर प्यार करेंगे तो इस तरह कि न मैं तुम्हारे आकाश में पदार्पण करुँगी न तुम मेरे आकाश में…जब मेरा मन करेगा तो मैं हम लोगों के बीच की नदी को एक नाव में बैठ कर पार कर तुम तक आ जाउँगी और जब तुम्हारा मन करे तो तुम नदी पार कर आ जाना लेकिन उस रात नहीं जब हम में से कोई भी एक दूसरे के आकाश में एक दूसरे को न देखना चाहें तो उस दिन तो बिल्कुल भी नहीं…..”
मैं चुपचाप रमा की बात सुन रहा था जब वह अपनी बात कह चुकी तो मैं उससे बहुत ही संतुलित भाषा में बोला, “क्या यह मुमकिन नहीं है कि हम दोनों ही उस आकाश में साथ-साथ चलें और जो बदली उस आकाश में आकर हमारे चाँद को ढकने की कोशिश में है उससे अपना प्रणय निवेदन करें कि वह हमें हमारा आकाश दे दे। वह कहीं और जाकर बरसे…जो उसका आकाश हो”
रमा ने मेरा हाथ अपने हाथ थामा मेरी आँखों के बीच एक गोता लगाया और एक झटके से उठते हुए उसने मुझे अपने साथ लिया और सोफ़िया के कमरे तक आ गई, दरवाज़े पर धीरे से नॉक किया। दरवाज़ा खुलते ही हम दोनों सोफ़िया से बिना पूछे अंदर आ गए। रमा ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया। सोफिया कुछ समझ पाती कि हम दोनों उसके कमरे में अचानक ही क्यों आ गए और रमा ने दरवाज़ा क्यों बंद कर लिया इससे पहले कि वह कुछ भी कह पाती रमा के सोफ़िया से कहा, “सोफ़िया तुम मुझ पर एक अहसान करोगी। क्या तुम मेरे अभिनव को मुझे वापस दोगी। मेरा यह तुमसे वादा है कि तुम उसकी सोफी ता ज़िंदगी बनी रहोगी….”
मैं तो सिसोदिया हवेली, मोहतना चौक, बीकानेर में ही रह गया। रमा सोफ़िया और महेंद्र के साथ अगली सुबह दिल्ली के लिए निकल गई।
जब तक दिल्ली से मेरे पास फोन नहीं आया तब तक मेरा दिल इस बात के लिए परेशान रहा कि रास्ते में सब कुछ ठीक रहा हो, गाड़ी में कोई ब्रेकडाउन न हो गया हो, कोई एक्सीडेंट न हो गया हो और सबसे बड़ी ये बात कि रमा…भगवान करे कि वह अपने मिशन में सफल हो गई हो जिससे कि मामू सा का काम आसान हो जाए नहीं तो उनको बेमतलब ही नए सिरे से कोशिश करनी पड़ेगी जिससे कि महेंद्र की जिंदगी में फिर से बहार आये।
मेरे दिल को तसल्ली तब हुई जब शाम को मामू सा का फोन आया और वो बोले, “भाँजे मान गए तू अभिनव वास्तव में अभिनव है, तू उस्ताद है। जो काम मैं न कर सका लेकिन तूने वह काम कर दिखाया”
“क्या हुआ मामू सा”
“अरे भाई धर्मेंद्र और सोफ़िया में बात बन गई”
“पक्का मामू सा”
“हाँ मेरे लाल”
“तो मामू सा इसके लिये बधाई मुझे नहीं रमा को दीजिये। जो भी किया उसने किया। उसने वह कर दिखाया जो मैं न कर सका”
“तुम में से जिसने भी किया अच्छा किया। हमारा तो काम बन गया”
“फिर भी मामू सा आप अपनी ओर से कुछ नहीं कहना चाहते तो सही लेकिन मेरी तरफ से रमा को शुक्रिया कह दीजिएगा”
“अब तू लगा मेरी टाँग खींचने। ठीक है कह दूँगा तेरी तरफ से और अपनी तरफ से भी। बस हो गई तसल्ली”
“जी मामू सा”
“क्या जी मामू सा”
“अब ये बता कि तू अब कब आ रहा है”
“मामू सा क्यों बना बनाया खेल बिगाड़ना चाह रहे हैं। दिल का मुआमला है। बड़ी मुश्किल से बात बनी है मामू सा वहाँ का काम रमा सम्हाल लेगी”
“है तो वह तेज”, मामू सा बोले, “चल ठीक है लेकिन वह कुछ दिन यहीं रहेगी तू अपना ध्यान राखियो”
“जी मामू सा”
क्रमशः

एपिसोड 37
सोफिया को जब रमा ने इशारे में यह बता दिया था कि हो सकता है मामू सा उसे अपने साथ मथुरा-वृंदावन घुमाने ले जाएँ तो एक दिन वह रमा औऱ किशन लाल के साथ दिल्ली घूमने के लिए निकल गईं और कनाट प्लेस की एक किताब की दुकान से उसने भगवान कृष्ण और राधा के उपर कई किताबें खरीद लीं जिन्हें वह अपने खाली समय में बहुत मन लगा कर पढ़ती रही।
दूसरी ओर बात जब कुछ बनती सी नज़र आई तो मामू सा ने एक दिन महेंद्र से रमा के सामने बात की, “महेंद्र देख रिया से तेरी पटरी नई खाई उसमें सारी गलती रिया अकेले की नहीं थी। कहीं न कहीं गलती तेरी भी थी। देख भाई ज़िंदगी इतनी आसानी से नहीं चलती। ज़िंदगी मियाँ बीवी को मिल कर चलानी होती है। अब जब कि तेरी बात सोफ़िया से बन रही है तो देख कि बेटा तू भी निभाना सीख”
“जी डैड”
“क्या जी डैड बेटा। देख मैं भी तो तेरी मौम से कितना निभा के चलता हूँ। देख रमा कितना एडजस्ट करके चलती है अभिनव के साथ। तू भी एडजस्टमेंट करना सीख। रमा बेटी मैं तो अब बूढ़ा हो गया पर तू ही इसे समझा”
रमा ने बीच में पड़ते हुए कहा, “मामू सा आप चिंता न करें महेंद्र भइय्या से मेरी अबकी बार ख़ूब खुल के बातें हुईं है आप आगे की सोचो कि क्या करना है”
“ठीक है बेटी तू सही कह रही है। मेरे मन में एक योजना चल रही है लेकिन उस योजना में तेरा अहम रोल है”
“आप जो कहेंगे मैं उसके लिये पूरी तरह से तैयार हूँ”
मामू सा ने महेंद्र से कहा, “जा बेटा अपनी मौम को बुला के ला”
जब लिंडा आ गई तो तीनों के बीच बात चीत हुई। जब सब तय हो गया तो उसके बाद मामू सा बोले, “तो ठीक हम लोग कल सुबह वृंदावन के लिये निकलेंगे”
रमा ने कहा, “ठीक है मामू सा”
अगले रोज़ सुबह ही मामू सा महेंद्र, सोफ़िया, रमा और अपनी पत्नी लिंडा के साथ वृंदावन के लिये निकल पड़े। वहाँ पहुँच कर वे मोह्याल आश्रम में जाकर रुके। आश्रम के मैनेजर शंकर प्रसाद से उनकी पुरानी जान पहचान थी इसलिए उन्होंने मामू सा और सभी लोगों का रुकने का फर्स्ट क्लास इन्तज़ाम पहले ही से कर दिया था।
सोफ़िया को भी वृंदावन आकर अच्छा लगा जब उसे रास्ते में मामू सा ने कृष्ण और राधा के अलौकिक प्यार के बारे में विस्तृत रूप में बताया। सोफ़िया का रुझान कृष्ण से सम्बंधित घटनाओं पर और जानकारी हासिल करने का जब मनोयोग हो गया तो एक तरह वह भी कृष्ण और राधा मय हो गई।
आश्रम में वहाँ पहले ही से कई विदेशी युगल आकर रुके हुए थे। उसमें एक जोड़ा था जेम्स और अमेलिया का। जेम्स मुश्क़िल से तीस बत्तीस के आसपास का रहा होगा और अमेलिया अठ्ठाईस उनत्तीस की। दोनों की मुलाक़त जब सोफ़िया से हुई तो उन्होंने उसे यह बताया कि पश्चिमी देशों की जिंदगी से वे दोनों ऊब कर यहाँ शांति की तलाश में आये हैं और यहाँ आकर वे बड़ा सुकून महसूस कर रहे हैं।
सोफ़िया ने भी जेम्स और अमेलिया को अपने बारे में पूरी बात बताई कि किस तरह वह अभिनव से मिली और बाद में किस तरह वह अभिनव के परिवार के दूसरे लोगों के साथ मिली। जब दोनों में कुछ और बात चीत हुई तो बाद में जेम्स और अमेलिया भी सोफ़िया और मामू सा के ग्रुप के साथ हो लिये।
मामू सा को तो अमेलिया को देखते ही और उसके नाम से ही इतना प्यार हो गया जिसके बारे में बात करते हुए वे न अघाते थे…
क्रमशः



 एपिसोड 38
एक दिन मामू सा अमेलिया से अकेले में बैठ कर बात कर रहे थे और चर्चा का विषय था कृष्ण राधा का अलौकिक प्यार। जब अमेलिया ने मामू सा से पूछ लिया, “सर कृपया मुझे यह बताइये कि क्या यह एक साधारण स्त्री पुरुष के सम्बंधों में मुमकिन है”
मामू सा ने अमेलिया से कहा, “कल तुम हमारे साथ चलना हम लोग कल सुबह एक जगह चलेंगे मैं तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर उचित समय आने पर अवश्य दूँगा लेकिन अभी नहीं”
मामू सा अपने पूरे ग्रुप के साथ सबसे पहले एक दिन सुबह-सुबह निधि वन गए। वहाँ के रमणीक वातावरण में बैठ कर वहाँ के पुजारी के द्वारा कही गई भागवत सुनी और सुनते-सुनते वे इतने रम गए कि उनकी आँखों से अश्रु धारा बह चली। मामू सा को देखकर सोफ़िया ने मामू सा से पूछा, “मामू सा आपने उस पुजारी की बात में ऐसा क्या सुना कि आप इतने भावुक हो उठे”
मामू सा सोफ़िया से बोले, “हो सकता है तुमने उस ज्ञानी ध्यानी पुजारी की बातों को ध्यान से नहीं सुना इसलिये तुम यह बात कह रही हो। अगर तुम उसकी बात दिल लगा कर सुनती तो यह बात तुम मुझसे नहीं पूछती। यह प्रेम की पहली अनुभूति है कि जब तुम किसी को प्रेम करो तो उसके प्रति समर्पण का भाव हो। यदि प्रेम में पूर्ण समर्पण का भाव ही न होगा तो यह मान कर चलो कि वह प्रेम बहुत दिनों तक नहीं चलने वाला है”
कुछ पल रुकने के बाद मामू सा बोले, “तुम इस निधि वन की लताओं, यहाँ के पेड़ पौधों, यहाँ आसपास समस्त रहने वालों के दिलों को टटोल कर देखो तो तुम यह पाओगी कि ये सब इतने कृष्ण मय हो जाते हैं कि उन्हें यह आभास होने लगता है कि वे राधा और कृष्ण को प्रेम करने के लिये एक ऐसा वातावरण दें जिससे राधा और कृष्ण के प्रेम मिलन में कोई बाधा न हो। यहाँ यह मान्यता है कि हर रात को कृष्ण और राधा आते हैं और रास लीला करते हैं। वे प्रेम में इतने मगन हो जाते हैं कि वह अपनी सुदि बुद्धि खो बैठते हैं। राधा स्वयं को कृष्ण के हवाले करतीं हैं और यह रास भोर तक होता है इसका प्रमाण बस यह देखने को मिलता है कि यहाँ अंधेरा होने से पहले फूल मालाएँ, प्रसाद और सॉज सज़्ज़ा का रखा जाता है वह सभी सामान बिखरा हुआ मिलता है जब कि रात को मंदिर के दरवाज़े पुजारी स्वयं बंद करके जाते हैं। यहाँ रात के समय कोई भी नहीं रहता है यहाँ तक कि खग और पँछी सभी अन्यत्र जा बसेरा करते हैं। बस अगर कोई रहता है तो यहाँ के यह पेड़ पौधे और मेहंदी के यह विचित्र पेड़ जिनके बारे में यह कहा जाता है कि वे यहाँ इसी तरह सदियों से कृष्ण और राधा की रास लीला के मूक दर्शक बनकर रह रहे हैं”
सोफ़िया को ताज़्ज़ुब तो उस समय हुआ जब मामू सा ने यह बताया कि यहाँ यह कहा जाता है कि इस निधि वन में अंधेरा हो जाने के बाद कोई भी प्राणी नहीं आता और ऐसा देखा गया है कि जब किसी सिर फ़िरे ने कृष्ण राधा की रास लीला को सजीव देखने का प्रयास किया भी है तो वह भोर में मृत पाया गया है। सोफ़िया ने जब मामू सा से पूछा, “क्या इस किवदंती पर विश्वास किया जा सकता है। यह भी तो हो सकता है कि यह अफ़वाह सिर्फ़ इसलिये प्रसारित की गई हो कि लोगों में भक्ति भाव पैदा किया जा सके”
“अगर मैं तुम्हारी बात एक पल के लिये मान भी लूँ कि जो तुम कह रही हो वह सत्य है तो मैं यह कहना चाहूँगा कि बस यही भावना है जो हमें अपनी अधिष्ठ से जुड़ने नहीं देती है और हमें उस सत्य से दे दूर कर देती है, हमें उस प्रेम की अनुभूति से दूर कर देती है जिसका एहसास मात्र हम इस कारण नहीं कर सकते क्योंकि हम उसके वजूद को ही न मानने का हठ किये बैठें हैं”
सोफ़िया के साथ-साथ मामू सा की यह बात जेम्स, अमेलिया, महेंद्र और मामी सा के साथ-साथ रमा ने भी ध्यानपूर्वक सुनी। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मामू सा बोले, “एक काम करो तुम रात को यहाँ निधि वन के भीतर न रहकर बाहर रह कर महसूस करो कि जो यहाँ के लोग कहते हैं उसमें कोई सत्यता है या नहीं”
सोफ़िया ने कहा, “वह यह प्रयोग आज ही रात को करना चाहेगी”
सोफ़िया ने जब अपना निश्चय सुनाया तो महेंद्र ने भी स्वयं को सोफ़िया के साथ रहने की बात कही। कुछ इसी तरह की बात जेम्स और अमेलिया ने भी कही। रमा और मामी सा ने भी बच्चों के साथ रहने का निश्चय किया।
चलते-चलते जब वे सभी लोग निधि वन से बाहर निकल रहे थे कि उनकी निगाह निधि वन की महिमा नमक एक पुस्तक पर पड़ी जिसे सोफिया ने खरीदने की इच्छा ज़ाहिर की जिसे देख रमा ने तुरंत उस पुस्तक की चार पाँच कॉपियाँ खरीद लीं और उसकी को एक-एक कॉपी सभी को दे दी जिससे वे अपने हिसाब से आराम से पढ़ सकें।
निधि वन से निकल कर पास ही बने रंग जी का मंदिर देखा और सभी लोग आश्रम वापस आ गए।
क्रमशः
एपिसोड 39
आश्रम पहुँचने के बाद सोफ़िया और महेंद्र दोनों साथ-साथ मामू सा के पास आई और अपनी पूरी कहानी कि निधि वन के प्राँगण के बाहर रात कैसी बीती सुनाई और यह भी कहा, “आज मुझे अपने जीवन में उस अलौकिक प्रेम के बारे में जानकारी हुई जिसके बारे में आज तक न मैंने कुछ सुना था न जाना था। मामू सा मुझे क्या आप राधा कृष्ण के बारे में कुछ और जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं”
“क्यों नहीं बेटी लेकिन अभी तुम जाओ तुम रात भर की थकी मांदी हो। जाओ पहले आराम करो और जब नींद पूरी हो जाए तो हम शाम को इस विषय पर आगे बात करेंगे”
“जी मामू सा”
जब सोफ़िया मामू सा के पास से उठकर अपने कमरे में चली गई तो उसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी और रमा से पूछा, “कैसा रहा मेरा यह एक्सपेरिमेंट ‘लव विद लव ऑफ लार्ड ऑफ कृष्णा’, रमा तुम बताओ”
“मामू सा अभी तक तो सब ठीक लग रहा है बाकी अब हम इस केस को आगे कैसे हैंडल करते हैं यह उसके ऊपर डिपेंड करता है” रमा ने मामू सा के प्रश्न के उत्तर में कहा।
“व्हाट डू यू से लिंडा”
“इन माइ ओपिनियन इट हैज स्ट्रक द बॉल नाउ इट आल डिपेंडस हाऊ वेल बी मूव फ्रॉम हियर”
“थैंक्स माइ हार्टी थैंक्स तो माइ टीम, बी विल अचीव व्हाट बी हैव प्लांण्ड” मामू सा बोले, “जाओ आप लोग आराम करो मैं तब तक मैं शाम की योजना के बारे में सोचता हूँ”
दिन में मामू सा कुछ ज्ञानी ध्यानी संतो से मिले और उन्हें अपने मंतव्य के बारे में बताया कि वह चाहते हैं कि सोफ़िया उनके सुपुत्र महेन्द्र के प्रति प्रेम भाव में इतनी डूब जाए कि उसे महेंद्र के अलावा कुछ और न सूझे। उन लोगों ने मिलकर एक योजना बनाई जिसके अंतर्गत उनमें से हर एक संत प्रातः काल में आकर एक घंटे का धार्मिक प्रवचन दिया करेगा जिससे कि सोफ़िया और महेंद्र दोनों ही कुछ अपने जीवन में बदलाव के लिए सोचें और मनन कर सकें।
अगले दिन इस्कॉन मंदिर के स्वामी रिचर्ड्स, जो स्वयं न्यूयॉर्क इस्कॉन मंदिर से आये हुए थे, प्रातः काल के प्रवचन के लिये पधारे और सर्वप्रथम सबसे आकर मिले। उन्हें यह जान कर अत्यंत प्रसन्नता हुई कि सोफ़िया ख़ुद न्यूयॉर्क से है और यह कि उसके पिता जोहन्सन एक सीनेट के चुने हुए मेंबर है। दूसरा जब उनकी मुलाक़त लिंडा से हुई तो उन्होंने कहा, “विश्वास नहीं हो रहा कि आप सभी एक ही परिवार से सम्बंध रखते हैं तथा जिनके संरक्षक खुद हनुमन्त सिंह सिसोदिया हैं”
जब उनकी मुलाकात जेम्स और अमेलिया से हुई तो उनकी प्रसन्नता दोगुनी हो गई और वह बोले, “नाइस टू सी यू गाइज फ्रॉम यूके”
धर्मेंद्र और रमा से मिल कर वे और भी ख़ुश हुए। जब वह अपना प्रवचन शुरू करने के लिये बैठे तो सबसे पहले उन्होंने इस्कॉन मंदिर संस्थान के बारे में बताते हुए कहा, “कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने सन् १९६६ में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरू भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने ५९ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे रामा-हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उसका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में लगभग सभी मुख्य शहरों में मंदिरों का निर्माण हो चुका है कुछ नई जगह मंदिर बनाये जा रहे हैं”
अपनी बात कहने के बाद स्वामी रिचर्ड्स ने सभी को इस्कॉन मंदिर आने का आमंत्रण दिया और यह आशा की कि वे जब कल प्रातः मंदिर में आएंगे तो पूरी पूजा पद्वति का ज्ञान वे स्वयं करें और वहाँ हो रहे प्रवचन को सुनें। बाद मैं वे सब उनके साथ ही मंदिर में बने हुए स्वादिष्ट भोजन का रसास्वादन करें।
सोफ़िया रिचर्ड्स के उन सभी से मिलने के लिए आने से बहुत प्रसन्न थी और उसने अपनी प्रसन्न्ता ज़ाहिर करते हुए महेंद्र से कहा, “मैं न्यूयॉर्क में रह कर भी कभी इस्कॉन टेम्पल देखने नहीं गई और देखा स्वामी रिचर्ड्स से मुलाक़त होनी भी थी तो यहाँ वृंदावन की पुण्य धरती पर”
“मुझे ख़ुशी है कि तुमको यहाँ आकर अच्छा लग रहा है। मैं तुमसे कहूँ मैं भले ही भारतीय मूल का हूँ पर मुझे भी इस तरह का एक्सपोज़र डैड ने कभी पहले नहीं दिया। आई विश टू से टू हिम अ बिग थैंक यू”
“मैं भी….”
“चलो हम दोनों ही साथ चल कर डैड से मिल कर उनका शुक्रिया अदा करें” कह कर महेंद्र उठ खड़ा हुआ। वे दोनों मामू सा के पास जब पहुँचे तो लिंडा और रमा भी वहीं उनके साथ थे। सोफ़िया की बात सुनकर मामू सा बेहद ख़ुश हुए और उन्होंने दोनों को आशीर्वाद देते हुए उन दोनों के सुमंगल भविष्य की कामना की।
रमा ने भी अपनी ख़ुशी का इज़हार करते हुए मामू सा से कहा, “मामू सा अब दिल्ली चलकर आप दोनों की इंगेजमेंट की दावत दे ही दीजिये अब इस शुभ काम में देर करना ठीक नहीं है”
मामू सा ने रमा की की बात ध्यान सुनी और बोले, “रमा बेटी उस समय तक नहीं जब तक सोफिया मुझसे साफ शब्दों में यह बात कुबूल नहीं करती है। कोई भी जल्दबाजी करना घातक हो सकता है”
रमा ने अपनी ओर से फिर कुछ भी नहीं कहा…..
क्रमशः


एपिसोड 40
जब ये लोग अगले दिन भोर में तैयार हो कर इस्कॉन टेम्पल पहुँचे तो वहाँ भगवान का श्रंगार हो रहा था। जैसे ही श्रंगार पूरा हुआ भोर की पूजा अर्चना शुरू ही गई। जितने भी भक्तगण वहाँ उपस्थित थे जिनमें अधिकतर विदेशी पुरुष और महिलाएँ थीं वे जोर-जोर से हरे कृष्णा हरे रामा हरे कृष्णा हरे रामा कह कर भजन गाने लगे तथा नाचने लगे। उसमें से कुछ तो भारतीय ड्रेस कुर्ता पायजामा और महिलाएं कुर्ता सलवार पहने हुईं थी। वे सभी दोनों हाथ ऊपर की तरफ कर भगवान के दरबार में अपनी हाज़िरी दर्ज करा रहे थे। उनमें से एक महिला सोफ़िया के पास आई और उसने सोफिया को भी दोनों हाथ ऊपर का नाचने और गाने को विवश कर दिया। सोफ़िया को हरे रामा हरे कृष्णा उच्चारण करके खुद भी अच्छा लगा उसके बाद तो उसे रोक पाना सभी के लिये मुश्क़िल काम हो गया था। वहाँ सोफ़िया के साथ-साथ अमेलिया और जेम्स भी थे उनको भी यह सब करने में खूब अच्छा लगा। अमेलिया ने तो मामू सा को पकड़ कर नाचने के लिये मजबूर कर दिया। मामू सा को नाचते हुए देख लिंडा और रमा ने भी उन सबका खुल कर साथ दिया। जब कीर्तन का कार्यक्रम समाप्त हुआ उसके बाद स्वामी रिचर्ड्स का उद्बोधन हुआ।
सर्वप्रथम इस्कॉन मंदिर वृंदावन के बारे में बताते हुए कहा:

1975 में बने इस्कॉन मंदिर को श्री कृष्ण बलराम मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर ठीक उसी जगह पर बना है, जहां आज से 5000 साल पहले भगवान कृष्ण दूसरे बच्चों के साथ खेला करते थे।
मंदिर में कई सुंदर चित्रकारी की गई है, जिसमें भगवान कृष्ण की शिक्षा का वर्णन किया गया है। यह दूसरे मंदिरों से थोड़ा अलग है। क्योंकि लोग यहां सिर्फ पूजा करने के लिए ही नहीं आते, बल्कि वे यहां आकर साधना और पवित्र श्रीमद् भागवत गीता का पाठ करते हैं।
मंदिर में तीन मुख्य वेदी (जिसपर भगवान को चढ़ाने के लिए सामग्रियां रखी जाती है) है। वहीं दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी और पेंटिंग की गई है। भारतीयों से ज्यादा यहां विदेशी पर्यटक अध्यात्म और ज्ञान की प्राप्ति के लिए आते हैं। यहां वैदिक ज्ञान के बारे में अंग्रेजी में भी बताया जाता है।
अलौकिक प्रेम अर्थात प्रीति :
ईश्वर एवं भक्त का प्रेम अलौकिक होता है। यद्यपि सकाम भक्त की ईश्वर से कुछ अपेक्षा होती है परंतु निष्काम भक्त मात्र ईश्वर से प्रेम करने हेतु प्रेम करता है, प्रेम करना उसका मूल धर्म होता है और ऐसे साधक को सर्वश्रेष्ठ भक्त कहा गया है | भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है। ‘योगक्षेमं वहाम्यहम्’ अर्थात जो मेरी निष्काम भक्ति करता है उसके मैं पूर्ण उत्तरदायित्व का निर्वाह करता हूँ।
ईश्वर से निष्काम भक्ति करने वाले की आध्यात्मिक प्रगति द्रुत गति से होती है और सकाम भक्त की आध्यात्मिक प्रगति अत्यंत अल्प गति से या नगण्य समान होती है क्योंकि उसके द्वारा की गयी साधना उसकी इच्छाओं को पूर्ण करने में समाप्त हो जाती है। परंतु जैसे-जैसे उसकी इच्छायें पूर्ण होती है और उसे अनुभूति आती है वैसे-वैसे उसकी भक्ति बढ़तीं है और ईश्वर के प्रति उसका निष्काम प्रेम बढ़ने लगता है।
गुरु-शिष्य का प्रेम निष्काम पवित्र और अपेक्षा रहित होता है। वस्तुतः शिष्य को तो अपनी आध्यात्मिक प्रगति की भी अपेक्षा होती है और सद्गुरु तो प्रेम की मूर्ति होते हैं और शिष्य के प्रति उनका प्रेम पूर्णतः निरपेक्ष होता है।

यह संसार ईश्वर का निर्गुण स्वरूप है इससे निरपेक्ष प्रेम किए बना सायुज्य मुक्ति अर्थात सर्वश्रेष्ठ मुक्ति असंभव है। अतः साधक ने प्रीति इस दिव्यगुण को आत्मसात करने का प्रयास करना चाहिए।
प्रीति के तत्त्व को आत्मसात करने हेतु सर्वप्रथम अपने गुरु बंधु से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए। सर्वप्रथम जिनके साथ सेवा करने में आनंद आता हो उनके साथ सेवा करना चाहिए। उसके अगले चरण में जिनके साथ सेवा करने में आनंद नहीं आता उनके साथ सेवा करना चाहिए और उस सह-साधक के साथ सामंजस्य स्थापित करने में जो दोष या अंह के लक्षण अड़चन निर्माण करता हो उसे सतर्क होकर दूर करने का प्रयास करना चाहिए। उसे अगले चरण में जो अन्य गुरु को मानते हों उनसे निरपेक्ष प्रेम करना चाहिए और तत्पश्चात जो किसी गुरु या संप्रदाय से न जुड़े हों परंतु साधक हों उनसे जुड़ाव निर्माण करना चाहिए। और अंत में जो साधना नहीं करते अर्थात सामान्य व्यक्ति से प्रेम करने का प्रयास करना चाहिए। जब सम्पूर्ण मानव मात्र से प्रेम करना साध्य हो जाये तब जानवर, वनस्पति एवं अचर जगत से प्रेम करना चाहिए। संत चर एवं अचर सभी से प्रेम करते हैं अतः वे ईश्वर की प्रीति सर्वत्र ले सकते हैं। संतों में प्रीति का तत्त्व अत्यधिक होता है अतः सर्व सामान्य व्यक्ति उनके प्रति सहज ही आकर्षित हो जाते हैं। प्रीति का प्रमाण जितना अधिक होता है उनमें आकर्षण भी उतना ही अधिक होता है। गोपियों ने प्रीति के बल पर सायुज्य मुक्ति प्राप्त की थी।
क्रमशः

एपिसोड 41
दोपहर तक वे सभी इस्कॉन मंदिर में रहे। स्वामी रिचर्ड्स से व्यक्तिगत बातचीत भी हुई जिसमें सोफ़िया ने अपने दिल की बात कहते हुए प्रश्न पूछा, “स्वामी जी अगर किसी व्यक्ति से पहली ही नज़र में प्रेम हो जाय तो क्या यह अलौकिक प्रेम की परिभाषा के भीतर आएगा”
स्वामी जी ने अपने संक्षिप्त उत्तर में कहा, “सोफ़िया ऐसा प्रेम अलौकिक की परिभाषा में उस समय तक परिभाषित न हो सकेगा जब तक कि यह मात्र शारीरिक सम्बंधो तक सीमित रहेगा लेकिन जब यह प्रेम शारीरिक सम्बंधो से ऊपर उठ कर भक्ति भाव में परिवर्तित हो जाएगा उस समय वही प्रेम अलौकिक की श्रेणी के अंतर्गत स्वतः आ जाएगा”
“स्वामी जी मेरा एक प्रश्न आपसे और है कृपया मुझे यह बताने का कष्ट करें अगर किसी स्त्री को यह ज्ञान न हो कि सामने बैठा पुरुष विवाहित है अथवा नहीं और इस परिस्थित में उस पुरुष से उस महिला द्वारा प्रेम करना सैद्धान्तिक रूप में अलौकिक प्रेम की परिभाषा के अंतर्गत आ सकेगा”
“पुत्री सोफ़िया कदाचित यह प्रश्न तुम्हारा यूरोप या अमेरिकन दृष्टिकोण को पूछ कर किया गया प्रश्न लग रहा है फिर भी मैं यह पूरा प्रयास करूँगा कि तुम्हारे मन की जिज्ञासा को में संतुष्ट कर सकूँ”, इतना कह कर स्वामी रिचर्ड्स कुछ समय के लिये रुके जैसे कि वह अपने मष्तिष्क के भीतर उस प्रश्न का उत्तर तलाश कर रहे हों उसके बाद पुनः बोले, “सोफ़िया भगवान श्री कृष्ण ने भी एक तरह से कहा जाय तो एक पराई स्त्री राधा से प्रेम किया लेकिन उनका यह प्रेम निश्छल और सांसारिक बंधनो से मुक्त तथा एक दूसरे के प्रति आसक्ति का भाव लिए हुए भी बिल्कुल भिन्न था। एक दृष्टांत के माध्यम से मैं अपनी बात तुम्हारे समक्ष रखने का प्रयास करूँगा और मुझे आशा है कि यह तुम्हारे मूल प्रश्न का उत्तर भी होगा। एक बार राधा ने कान्हा से पूछा कि प्रभु क्या यह संभव है कि एक प्रेमी अपनी प्रेमिका से प्रेम तो करे पर किसी भी रूप में वह अपने प्रेमी के ऊपर बोझ न बने। राधिका रानी के प्रश्न के उत्तर में श्री श्रेष्ठ पुरुष ने जो उत्तर दिया उसे सोफ़िया तुम बहुत ध्यान से सुनो, श्री कृष्ण ने उनसे कथा स्वरूप में क्या कहा:
नायिका अपने प्रेमी से कहती है, “मैं तुमसे मिलन करने को तो राजी हूँ किन्तु तुम झील के उस तरफ रहोगे और मैं झील के इस तरफ”
यह बात प्रेमी की समझ के बाहर है इसलिये वह कहता है, “तू पागल हो गई है? प्रेम करने के बाद लोग एक ही घर में रहते हैं”
नायिका कहती है, “प्रेम करने के पहले भला एक घर में रहें, प्रेम करने के बाद एक घर में रहना ठीक नहीं, खतरे से खाली नहीं। एक-दूसरे के आकाश में बाधाएं पड़नी शुरू हो जातीं हैं। मैं झील के उस पार, तुम झील के इस पार। अगर तुम एक शर्त मानते हो तो मिलन होगा। हाँ, कभी तुम निमंत्रण भेजना तो मैं आऊँगी। या मैं निमंत्रण भेजूँगी तो तुम आना। या कभी झील पर नौका-विहार करते अचानक मिलना। या झील के पास खड़े वृक्षों के पास सुबह के भ्रमण के लिए निकले हुए अचानक हम मिल जाएंगे, चौंक कर, तो प्रीतिकर होगा। लेकिन गुलामी नहीं होगी। तुम्हारे बिना बुलाए मैं न आऊँगी मेरे बिना बुलाए तुम न आना। तुम आना चाहो तो ही आना, मेरे बुलाने से मत आना। मैं आना चाहूँ तो ही आऊँगी, तुम्हारे बुलाने भर से न आऊँगी। इतनी स्वतंत्रता हमारे बीच रहे, तो स्वतंत्रता के इस आकाश में ही प्रेम का फूल खिल सकता है”
स्वामी रिचर्ड्स ने अपनी बात यह कह कर समाप्त की कि यह कथा सुनाने का तात्पर्य इतना भर ही है कि एक स्वस्थ और सच्चा प्रेम किसी भी प्रकार की सरहदें बनाना या सीमाएं खींचना एक अलौकिक प्रेम की परिभाषा से परिभषित नहीं हो सकेगा। रमा ने जब स्वामी रिचर्ड्स की बात को ध्यान से सुना तो उसने याद किया कि कुछ इसी तरह की बात उनके परिवार के पुरोहित ने उसकी और अभिनव की विवाह में सप्तपदी के समय कही थी। यही सोचकर उसने सोफ़िया से कुछ कहना चाहा लेकिन उसके पहले ही सोफ़िया ने स्वामी रिचर्ड्स से पूछा, “स्वामी जो मेरे मन में अभी कुछ शंकाएं शेष हैं इसलिए मेरा आपसे अंतिम प्रश्न यह है कि क्या आयु किसी भी तरह प्रेम के मार्ग में बाधा हो सकती है”
“नहीं प्रेम में आयु की कोई सीमा नहीं होती है मैं यहाँ तुमको यह कहना चाहूँगा कि इस प्रश्न का उत्तर भी श्री मुख ने यह कह कर दिया कि राधिका मुझसे उम्र की परिभाषा से कुछ बड़ी ही है लेकिन यह हमारे प्रेम को किसी भी प्रकार बाधित नहीं कर पाई”
अंत में सोफ़िया ने स्वामी रिचर्ड्स का हार्दिक धन्यवाद किया। सभी लोगों ने दोपहर का भोजन किया और वे लोग अपने आश्रम लौट आये। स्वामी रिचर्ड्स की बातों ने सोफिया तथा अमेलिया के दिमाग पर इतना असर किया कि वे पूरे रास्ते चुपचाप रहीं और अपने-अपने कमरों में आराम करने के लिए चली गईं लग रहा था जैसे कि उनके दिमाग़ में वे सब बातें घूम रहीं थी जिनका ज़िक्र स्वामी रिचर्ड्स ने अपने अभिवोधन में किया था।
क्रमशः।
एपिसोड 42
इस्कॉन मंदिर से लौटते समय मामू सा आगे-आगे मामी सा तथा सोफ़िया, जेम्स और अमेलिया के साथ चले आ रहे थे। पीछे-पीछे रमा और महेंद्र चले आ रहे थे जब रमा ने वही टॉपिक छेड़ दिया जिस पर कुछ देर ही पहले स्वामी रिचर्ड्स ने अलौकिक प्रेम को परिभाषित किया था। रमा ने यह सोचकर महेंद्र से कहा, “सुनो भइय्या अगर अपनी शादी को सफल होते हुए देखना चाहते हो तो इस बात का ख़याल रखना कि पति पत्नी को अपनी - अपनी ज़िंदगी अपने ढंग से जीने का अधिकार मिलना ही चाहिए अन्यथा शादी ख़तरे में पड़ सकती है”
महेंद्र ने रमा को आज पहली बार बताया, “मेरी और रिया के बीच मनमुटाव का यही कारण रहा वह मुझे समझ न पाई और कुछ हद तक मैं उसे। रिया ने मेरी स्वतन्त्रता को रिश्तों की डोर के बंधन में बांधने की जगह मेरे ऊपर ही नियंत्रण करना शुरू कर दिया जो मुझे बिल्कुल बर्दाश्त न था नतीजा यह हुआ कि हम लोग एक दूसरे से विमुख हो गए”
“भइय्या इसके ठीक विपरीत हमारे और अभिनव के बीच रिश्ते की डोर इसलिये इतनी मज़बूत बनी रही कि हमने उन्हें वह सब कुछ करने दिया और उन्होंने हमें पूर्ण स्वतंत्रता दी। हम दोनों के रिश्ते में ऐसी कोई भी बात नहीं है जो हम लोग एक दूसरे से छिपाते हों। आपको तो पता ही है कि सोफ़िया को वह लेकर आये थे लेकिन हमने उनकी किसी बात का बुरा न माना। अंत में वह हमारे ही रहे और आज सोफ़िया को यह अवसर प्राप्त है कि वह आपके जीवन में पदार्पण करे”
“भाभी सा हम आपको यह आश्वासन देना चाहते हैं कि अगर सोफ़िया अंत में मुझे अपना जीवनसाथी चुनती है तो उसे उसका आकाश मिलेगा और आप उससे कह सकतीं है कि उसे मुझे मेरा आकाश देना होगा। मेरी यही एकमात्र शर्त है”
“महेंद्र तुम चिंता न करो रमा जिस काम को अपने हाथ लेती है उसे हर हालत में पूरा करके ही दम लेती है”
“अगर यह काम आप करने में सफ़ल हुईं भाभी सा यह आपका देवर आपको वचन देता है कि वह जीवन भर आपका आभारी रहेगा और अगर आप मेरा शीश माँगोंगी तो वह भी मिलेगा यह एक सिसोदिया वंशज सपूत का वचन है”
रमा और महेंद्र आपस में बात करते हुए बाद में मामू सा के ग्रुप से आ मिले जहाँ अमेलिया और मामू सा में अलौकिक प्रेम को लेकर आपस में वार्तालाप चल रहा था। रमा ने यह देखा और महसूस किया कि स्वामी रिचर्ड्स के प्रवचन का सोफ़िया, जेम्स तथा अमेलिया पर अच्छाख़ासी असर हुआ। आश्रम आ जाने के बाद भी वे लोग आपस में चर्चा करते रहे। मामू सा भी पूरी तन्मयता से वार्तालाप में हिस्सा लेते रहे। मामू सा ने अपने पुराने दिनों की याद करते हुए कहा, “मैंने एक बार बहुत पहले पुणे में ओशो को सुना था और मेरे दिल दिमाग पर उनके द्वारा कहे हुए शब्द बहुत दिनों तक छाये रहे, मैं नहीं जानता हूँ कि इनका तुम लोगों के उपर क्या असर होगा। अगर सुनना चाहो तो सुनो:
“प्रेम तो प्रसाद है,
जो ऊपर से उतरता है ,
और तुम्हें अभिभूत कर लेता है,
और तुम्हारे हृदय को डुबा लेता है।
प्रेम में पड़ जाने का अर्थ ही होता है : अवश हो जाना।
प्रेम कोई कृत्य नहीं है कि तुम चाहो तो करो और चाहो तो न करो।
प्रेम में एक मस्ती आती है, जैसे कोई शराब में डूबा हो।
सारी दुनिया को लगता है वह बेहोश है,
वह जो प्रेम का दीवाना है,
लेकिन भीतर उसके होश का दीया जलता है।
जितनी गहरी बेहोशी दुनिया को लगती है,
उतना ही भीतर का दीया सजग होकर जलने लगता है। “
क्रमशः


एपिसोड 43
मामू सा उस दिन बहुत ही अच्छे मूड में मामी सा के साथ बैठे हुए कॉफ़ी पी रहे थे जब अचानक सोफ़िया वहाँ आ गई और बोली, “मामू सा मैं इस्कॉन टेम्पल के स्वामी रिचर्ड्स से बहुत प्रभावित हुई हूँ अगर मैं उनकी शिष्या बनना चाहूँ तो मुझे क्या करना होगा। सोफ़िया की बात सुनकर मामू सा बोले, “मुझे पता नहीं है लेकिन तुम मुझे समय दो मैं आज ही उनसे बात कर पता करने की कोशिश करता हूँ कि क्या यह संभव हो सकेगा”
मामू सा के पास से आते हुए सोफ़िया कुछ देर के लिये महेंद्र के कमरे में आई तो यह देख कर कि वहाँ पहले ही से अमेलिया बैठी हुई महेंद्र से अपनी कोई मेडिकल इश्यूज को लेकर बात कर रही थी। उसे देख महेंद्र ने सोफ़िया से कहा, “सोफ़िया आओ बैठो”
सोफ़िया वहीं उनसे हट कर बेड पर लेट गई। जब अमेलिया की बात महेंद्र से ख़त्म हुई तो अमेलिया ने उसका धन्यवाद किया और सोफ़िया की ओर देखकर पूछा, “सोफ़िया तुम तो अभी-अभी आई हो कुछ देर अकेले में महेंद्र के साथ रहोगी। मैं चलती हूँ मुझे पता नहीं था कि महेंद्र ने तुम्हें अपने पास बुलाया था”
“नहीं अमेलिया ऐसी कोई बात नहीं है महेंद्र ने मुझे नहीं बुलाया था मैं ही उसका टाइम खराब करने के लिये उसके पास कभी-कभी आ जाती हूँ। ये तो मुझे कभी भी अपने पास नहीं बुलाता है”
“इट्स नॉट गुड बिटवीन टू यंग लवर्स इफ़ेक्ट यू शुड मीट वेरी ऑफ़न”
अमेलिया ने जब यह कहा तो सोफ़िया उसके मुँह को देखती रह गई उधर अमेलिया बाय बाय कहते हुए कमरे से बाहर चली गई। जब सोफ़िया ने महेंद्र से पूछा, “अमेलिया क्या कहती हुई गई है”
“मैं तुमसे कहूँगा अब तुम मेरी बात अब मान ही लो”
“महेंद्र मुझे कुछ दिन और चाहिये। आई एम सर्चिंग माइ सोल”
“व्हेनेवेर यू से”
“थैंक यू माइ लव”
महेंद्र के पास से निकल कर सोफ़िया मामू सा के पास जाकर बैठने के इरादे से जब उसने मामू सा के कमरे पर नॉक किया तो मामू से ने आकर दरबाजा खोलते हुए कहा, “आओ बेटी आओ”
“मैंने आपको डिस्टर्ब तो नहीं किया”
“नहीं नहीं तुम आओ बैठो”
इसके बाद सोफ़िया जैसे ही अंदर आई तो मामू सा ने उसके कंधे पर हाथ रख कर उसे सोफ़े पर बैठने के लिए कहा। मामी सा ने भी सोफ़िया के हाल चाल लेने के लिये कहा, “सब ठीक तो है न सोफ़िया”
“नॉट सो गुड”
“क्या हुआ पेरेन्ट्स की याद आ रही है क्या”
“नहीं मामी सा अब मेरी वह उम्र नहीं है कि हर चीज के लिये मैं अपनी मौम ओर डैड का मुँह देखूँ”
“एक काम कर तू मुझे ही मौम कह लिया कर” मामी सा बोलीं।
भला ऐसे मौके पर मामू सा कौन चुप रहने वाले थे झट से बोल उठे, “सोफ़िया नो प्रॉब्लम जब तुम लिंडा को मौम कह कर पुकारोगी तो मैं ऑटोमेटिकली तुम्हारा डैड बन जाऊँगा”
“आई विश दैट डे कम फ़ास्टर”
मामू सा और मामी सा ताज्जुब भरी निगाहों से सोफ़िया की ओर देखते रह गए….!
इस्कोन टेम्पल के स्वामी रिचर्ड्स से प्रभावित हो कर सोफ़िया ने वृंदावन के दूसरे मंदिर देखने की इच्छा मामू सा से जताते हुए सोफ़िया ने कहा, “मामू सा एक बात तो बताइए कि इस्कॉन जैसे कितने मंदिर और यहाँ होंगे”
“बेटी यह तो राधा कृष्ण की भूमि है। देवभूमि है यहाँ तो घर-घर में मंदिर है, लोगों के दिलों में कृष्ण राधा निवास करते हैं। यहाँ आकर तो बाहर से आने वाला भी कृष्ण मय, राधा मय हो जाता है”
“फिर भी कुछ तो होंगे”
“हाँ अवश्य हैं न। तू आखिर क्यों पूछ रही है”
“इसलिये कि अगर मैं सब मंदिर तो नहीं देख सकती तो कम से कम कुछ ऐसे मंदिर देख लूँ जिनको देखने से मेरे मन को शांति मिले”
“ये तो बहुत अच्छी बात है”
“आप चलेंगे न मेरे साथ”
“मैं यहाँ पड़े-पड़े करूँगा ही क्या। चलूँगा आज ही तुझे एक ऐसी जगह ले चलूँगा जिसके बारे में यहाँ यह कहा जाता है कि अगर आप वहाँ नहीं गए तो आपका वृंदावन आना अधूरा है”
“वो कौन सा मंदिर है”
“जब हम वहाँ चलेंगे तो मैं तुझे उसके बारे में सब कुछ बताऊँगा”
“ठीक है” कह कर सोफ़िया अपने कमरे में जाने लगी तो उसे याद आया कि क्यों न वह महेंद्र को भी अपने साथ चलने के लिये कहे। हो सकता है कि उसका भी मन कर रहा हो। इस इरादे से जब सोफ़िया ने महेंद्र से पूछा, “मैं और मामू सा कुछ खास मंदिर देखने जाने वाले हैं क्या तुम चलना चाहोगे”
“अगर तुम कहती हो तो मैं ज़रूर चलूँगा” महेंद्र ने यह कहकर सोफ़िया के साथ चलने की बात पर अपनी सहमति जतादी।
क्रमशः



एपिसोड 44
सुबह-सुबह लगभग नौ बजे के क़रीब वे लोग बाँके बिहारी मंदिर के पास वाली गली में पहुँच गए। हर रोज़ की तरह उस दिन भी भीड़ भाड़ शुरू हो चुकी थी और अब तो होली करीब थी इसलिये कृष्ण भक्त अपने प्रभु के दर्शनों के लिये उमड़ने लगे थे। किशन लाल इसलिए बमुश्क़िल कार को गली के नुक्कड़ तक ही पहुँचा सका। वहाँ से वे सभी पैदल ही नगें पाँव श्रीबाँके बिहारी जी के मंदिर की ओर बढ़ चले। श्रीबाँके बिहारी मंदिर जिसके बारे में यहाँ यह विश्वास किया जाता है कि इसका निर्माण 1864 में स्वामी हरिदास (संगीत सम्राट तानसेन के गुरु जी) ने करवाया था। मंदिर के ऐतिहासिक पृष्ठभूमि बताते हुए मामू सा ने सोफ़िया और महेंद्र को बताया, “श्रीधाम वृंदावन, यह एक ऐसी पावन भूमि है, जिसके बारे में यह विश्वास किया जाता है कि जहाँ आने मात्र से ही सभी पापों का नाश हो जाता है। ऐसा आख़िर कौन व्यक्ति होगा जो इस पवित्र भूमि पर आना नहीं चाहेगा तथा श्री बाँके बिहारी जी के दर्शन कर अपने को कृतार्थ करना नहीं चाहेगा। यह मन्दिर श्री वृन्दावन धाम के एक सुन्दर इलाके में स्थित है। कहा जाता है कि इस मन्दिर का निर्माण स्वामी श्री हरिदास जी के वंशजो के सामूहिक प्रयास से संवत १९२१ के लगभग किया गया”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए मामू सा बोले, “इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि इसके मन्दिर निर्माण के शुरूआत में किसी दानदाता का धन इसमें नहीं लगाया गया। श्रीहरिदास स्वामी विषय उदासीन वैष्णव थे। उनके भजन–कीर्तन से प्रसन्न हो निधिवन से श्री बाँके बिहारीजी प्रकट हुये थे। स्वामी हरिदास जी का जन्म संवत 1536 में भाद्रपद महिने के शुक्ल पक्ष में अष्टमी के दिन वृन्दावन के निकट राजापुर नामक गाँव में हुआ था। इनके आराध्यदेव श्याम–सलोनी सूरत बाले श्रीबाँके बिहारी जी थे। इनके पिता का नाम गंगाधर एवं माता का नाम श्रीमती चित्रा देवी था। हरिदास जी, स्वामी आशुधीर देव जी के शिष्य थे। इन्हें देखते ही आशुधीर देवजी जान गये थे कि ये सखी ललिताजी के अवतार हैं तथा राधाष्टमी के दिन भक्ति प्रदायनी श्री राधा जी के मंगल–महोत्सव का दर्शन लाभ हेतु ही यहाँ पधारे है। हरिदासजी को रसनिधि सखी का अवतार माना गया है। ये बचपन से ही संसार से ऊबे रहते थे। किशोरावस्था में इन्होंने आशुधीर जी से युगल मंत्र की दीक्षा ली तथा यमुना समीप निकुंज में एकान्त स्थान पर जाकर ध्यानमग्न रहने लगे। जब यह 25 वर्ष की आयु के हुए तब इन्होंने अपने गुरु जी से विरक्तावेष प्राप्त किया एवं संसार से दूर होकर निकुंज बिहारी जी के नित्य लीलाओं का चिन्तन करने में रह गये। निकुंज वन में ही स्वामी हरिदासजी को बिहारीजी की मूर्ति निकालने का स्वप्नादेश हुआ था। तब उनकी आज्ञानुसार मनोहर श्यामवर्ण छवि वाले श्रीविग्रह को धरा को गोद से बाहर निकाला गया। यही सुन्दर मूर्ति जग में श्रीबाँके बिहारी जी के नाम से विख्यात हुई यह मूर्ति मार्गशीर्ष, शुक्ला के पंचमी तिथि को निकाला गया था। अतः प्राकट्य तिथि को हम विहार पंचमी के रूप में बड़े ही उल्लास के साथ मनाते हैं। युगल किशोर सरकार की मूर्ति राधा कृष्ण की संयुक्त छवि यानी एकीकृत छवि के कारण श्रीबाँके बिहारी जी के छवि के मध्य ऐक अलौकिक प्रकाश की अनुभूति होती है,जो श्रीबाँके बिहारी जी में राधा तत्व का परिचायक है”
मामू सा अपनी बात कुछ इस तरह रख रहे थे जैसे की उन्हें यह सब कंठस्थ हो और जिसे वह एक कथा वाचक के रूप में बहुत ही निश्चिंत होकर सुनाये जा रहे थे। बीच में दो एक बार रमा ने कुछ कहने की कोशिश की तो उसे हाथ के इशारे से चुप रहने के लिए उन्होंने अपनी व्याख्या जारी रखी, “श्री बाँके बिहारी जी निधिवन में ही बहुत समय तक स्वामी जी द्वारा सेवित होते रहे थे। फिर जब मन्दिर का निर्माण कार्य सम्पन्न हो गया, तब उनको वहाँ लाकर स्थापित कर दिया गया। सनाढ्य वंश परम्परागत श्रीकृष्ण यति जी, बिहारी जी के भोग एवं अन्य सेवा व्यवस्था सम्भाले रहे। फिर इन्होंने बाद में हरगुलाल सेठ जी को श्रीबिहारी जी की सेवा व्यवस्था सम्भालने हेतु नियुक्त किया। आनन्द का विषय है कि जब काला पहाड़ के उत्पात की आशंका से अनेकों विग्रह स्थानान्तरित हुए। परन्तु श्रीबाँके विहारी जी यहां से स्थानान्तरित नहीं हुए। आज भी उनकी यहाँ प्रेम सहित पूजा चल रही हैं”
इतना कह कर मामू सा बीच में पल दो पल के लिए रुके ठीक उसी समय सोफिया ने उनसे पूछा, “मामू सा इसका मतलब मैं क्या यह लगा सकती हूँ कि इस श्रीबाँके बिहारी जी के मंदिर में तब से अगाध रूप से पूजा अर्चना होती रही है और लोग इसी तरह अपने पूर्ण श्रद्धा और समर्पण के भाव से लगातार आते रहे हैं”
मामू सा सोफिया के प्रश्न के उत्तर में बोले, “हाँ कुछ हद तक यह कहा जा सकता है लेकिन कालान्तर में स्वामी हरिदास जी के उपासना पद्धति में परिवर्तन लाकर एक नये सम्प्रदाय, निम्बार्क संप्रदाय से स्वतंत्र होकर सखीभाव संप्रदाय बना। इसी पद्धति अनुसार वृंदावन के सभी मन्दिरों में सेवा एवं महोत्सव आदि मनाये जाते हैं। एक बात और बता दूँ कि श्रीबाँकेबिहारी जी मन्दिर में केवल शरद पूर्णिमा के दिन श्री श्रीबाँके बिहारी जी वंशीधारण करते हैं, केवल श्रावन तीज के दिन ही ठाकुर जी झूले पर बैठते हैं एवं जन्माष्टमी के दिन ही केवल उनकी मंगला–आरती होती हैं। जिसके दर्शन सौभाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं और उनके श्री चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया के दिन ही होता है”
मामू सा आगे बोले, “कहा जाता है की जो इन श्री चरणों के दर्शन प्राप्त करता है उसका बेड़ा पार होता है। एक दिन प्रातःकाल स्वामी जी देखने लगे कि उनके बिस्तर पर कोई रजाई ओढ़कर सो रहा है। यह देखकर स्वामी जी बोले– अरे मेरे बिस्तर पर कौन सो रहा है। वहाँ श्रीबाँके बिहारी जी स्वयं सो रहे थे। शब्द सुनते ही श्रीबाँके बिहारी जी निकल भागे। किन्तु वे अपने चूड़ा एवम वंशी, को बिस्तर पर रखकर चले गये। स्वामी जी, वृद्ध अवस्था में दृष्टि जीर्ण होने के कारण उनकों कुछ नजर नहीं आया । इसके पश्चात श्री बाँके बिहारी जी मंदिर के पुजारी ने जब मन्दिर के कपाट खोले तो उन्हें श्रीबाँके बिहारी जी मंदिर के पुजारी ने जब मंदिर में कपाट खोले तो उन्हें श्रीबाँके बिहारी जी के पलने में चूड़ा एवं वंशी नजर नहीं आईं। किन्तु मंदिर का दरवाजा बन्द था।आश्चर्यचकित होकर पुजारी जी निधि वन में स्वामी जी के पास गए एवं स्वामी जी को सभी बातें बताईं। स्वामी जी बोले कि प्रातःकाल कोई मेरे पलँग पर सोया हुआ था। वो जाते वक्त कुछ छोड़ गया हैं। तब पुजारी जी ने प्रत्यक्ष देखा कि पलँग पर श्रीबाँके बिहारी जी की चूड़ा–वंशी विराजमान हैं। यह उस बात का प्रमाण है कि इससे श्रीबाँके बिहारी जी रात को रास करने के लिए निधि वन जाते हैं। इसी कारण से प्रातः श्रीबाँके बिहारी जी की मंगला–आरती नहीं होती है। कारण–रात्रि में रास करके यहाँ श्रीबाँके बिहारी जी जो आते है। अतः प्रातः शयन में बाधा डालकर उनकी आरती करना अपराध माना जाता है”
रमा ने मामू सा की इस बात पर कहा, “जब मैं यहाँ अपने काकू सा के साथ आई थी इसी प्रकार की कहानी मुझे उस समय भी यहाँ के पुजारी जी ने सुनी थी”
इस पर मामू सा रमा से बोले, “कोई आये या जाये बृजभूमि पर इस तरह की कहानियाँ घर-घर प्रचलित हैं, तुम याद करो कि तुम्हें लोगों ने यह भी बताया होगा कि स्वामी हरिदास जी से मिलने के लिए बहुत बड़े-बड़े लोग यहाँ तक राजा महाराजा और बादशाह अकबर भी आये थे”
“जी मुझे याद पड़ता है कि यह वृतांत संगीत सम्राट तानसेन के ज़िक्र होने के साथ आया था”, रमा मामू सा से बोली।
मामू सा ने अपनी बात जारी रखते हुए कहा, “श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन सम्बंध में अनेकों कहानियाँ प्रचलित हैं। जिनमें से एक दो कुछ इस प्रकार हैं– एक बार एक भक्तिमती ने अपने पति को बहुत अनुनय–विनय के पश्चात वृन्दावन जाने के लिए राजी किया। दोनों वृन्दावन आकर श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन करने लगे। कुछ दिन श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन करने के पश्चात उसके पति ने जब अपने घर वापस लौटने कि चेष्टा की तो भक्तिमति ने श्रीबाँके बिहारी जी दर्शन लाभ से वंचित होना पड़ेगा, ऐसा सोचकर वो रोने लगी। इसलिए वो श्रीबाँके बिहारी जी के निकट रोते–रोते प्रार्थना करने लगी कि– 'हे प्रभु मैं घर जा रही हुँ, किन्तु तुम चिरकाल मेरे ही पास निवास करना। ऐसी प्रार्थना करने के पश्चात वे दोनों रेलवे स्टेशन की ओर घोड़ागाड़ी में बैठकर चल दिये। उस समय श्रीबाँके बिहारी जी एक गोप बालक का रूप धारण कर घोड़ागाड़ी के पीछे-पीछे आकर उनको साथ ले चलने के लिये भक्तिमति से प्रार्थना करने लगे। इधर पुजारी ने मंदिर में ठाकुर जी को न देखकर उन्होंने भक्तिमति के प्रेमयुक्त घटना को जान लिया एवं तत्काल वे घोड़ा गाड़ी के पीछे दौड़े। गाड़ी में बालक रूपी श्रीबाँके बिहारी जी से प्रार्थना करने लगे। दोनों में जब यह वार्तालाप चल रहा था उस समय वह बालक उनके मध्य से गायब हो गया और जब पुजारी जी मन्दिर लौटकर पुन श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन करने को मिले”
मामू सा की इस बात पर सोफिया ने अचरज ज़ाहिर करते हुए कहा, “मामू सा ऐसी कहानियों पर भाल कौन विश्वास करेगा”

मामू सा सोफिया की और देखते हुए बोले, “बेटी मैं भी पहले तुम्हारी तरह विश्वास नहीं करता था लेकिन जब से मैनें यह जाना है कि श्रीबाँके बिहारी इस तरह की लीलायें अपने भक्तों के बीच प्रेम भाव पैदा करने हेतु करते ही रहते थे तो मुझे यह विश्वास करना ही पड़ा क्योंकि यही विश्वास एक भक्त को उसके आराध्य से जोड़ता है अगर विश्वास की कमी हो तो कोई सम्बंध जीवन में सफल नहीं हो सकता” अपनी मूल बात पर लौटते हुए मामू सा बोले, “भक्त तथा भक्तिमति ने इसे श्रीबाँके बिहारी जी की स्वयं कृपा जानकर दोनों ने संसार का गमन त्याग कर श्रीबाँके बिहारी जी के चरणों में अपने जीवन को समर्पित कर दिया। इन्ही कारणों के चलते श्रीबाँके बिहारी जी के झलक दर्शन अर्थात झाँकी दर्शन होते हैं और श्रीबाँके बिहारी जी मन्दिर के सामने के दरवाजे पर एक पर्दा लगा रहता है और वो पर्दा एक दो मिनट के अंतराल पर बन्द एवं खोला जाता है और बंद कर दिया जाता है”
बीच में मामू सा को टोकते हुए रमा बोल उठी, “ मुझे भी यह दृष्टांत कुछ इस प्रकार सुनाया गया था कि एक बार एक भक्त देखता रहा कि उसकी भक्ति के वशीभूत होकर श्रीबाँके बिहारी जी भाग गये। पुजारी जी ने जब मन्दिर की कपाट खोला तो उन्हें श्रीबाँके बिहारी जी नहीं दिखाई दिये। पता चला कि वे अपने एक भक्त की गवाही देने कहीं चले गये हैं उस समय से ऐसा नियम बना दिया कि झलक दर्शन में ठाकुर जी का पर्दा खुलता एवं बन्द होता रहेगा”
पास ही खड़ा एक साधू जो मामू सा की बातें बहुत ध्यान से सुन रहा था बोल पड़ा, “महाराज आज मुझे कुछ आपकी चर्चा के दौरान पता लगीं जो की मैनें पहले कभी न सुनी थी। अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं भी आपकी इस चर्चा में शामिल हो सकता हूँ”
मामू सा उस साधू की बात पर बोले, “अवश्य मान्यवर हमें प्रसन्नता होगी अगर आपके पास भी कोई ऐसा ही वृतांत हो तो कृपया हमें अवश्य बताने का कष्ट करें”
मामू सा ने उस साधू का सभी से परिचय कराया और औपचारिकता पूरी हो चुकी तो वह साधू बोला, “परिजनों मैं विगत कई वर्षों से यहीं इस देवभूमि पर रह रहा हूँ और लोगों से मिलता रहता हूँ मैनें भी इस श्रीबाँके बिहारी मंदिर के बारे में कई वृतांत सुने हैं उनमे से एक मैं जो आपको सुनाने जा रहा हूँ वह इस प्रकार है कि स्वामी हरिदासजी के द्वारा निधिवन स्थित विशाखा कुण्ड से श्रीबाँके बिहारी जी प्रकटित हुए थे। इस मन्दिर में कृष्ण के साथ श्रीराधिका विग्रह की स्थापना नहीं हुई। वैशाख मास की अक्षय तृतीया के दिन श्रीबाँके बिहारी के श्रीचरणों का दर्शन होता है। पहले ये निधिवन में ही विराजमान थे। बाद में वर्तमान मंदिर में पधारे हैं। यवनों के उपद्रव के समय श्रीबाँके बिहारी जी गुप्त रूप से वृंदावन में ही रहे, बाहर नहीं गये। श्रीबाँके बिहारी जी का झाँकी दर्शन विशेष रूप में होता है। यहाँ झाँकी दर्शन का कारण उनका भक्तवात्सल्य एवं रसिकता है। एक समय उनके दर्शन के लिये एक भक्त महानुभाव उपस्थित हुए। वे बहुत देर तक एक टक श्रीबाँके बिहारी को निहारते रहे। श्रीबाँके बिहारी जी उन पर रीझ गए और उनके साथ उनके गाँव चले गए। बाद में बिहारी जी के गोस्वामियों ने उनका पीछा किया। बमुश्क़िल श्रीबाँके बिहारी जी अनुनय विनय के बाद ही वे पुनः वृंदावन आए। यहाँ के गोस्वामियों का यह मानना है कि कोई भी भगवान श्री से नज़र न लड़ा सके इसलिए ही विलकक्ष्ण व्यवस्था की गई है श्रीबाँके बिहारी जी की दर्शन झाँकी रात्रि मंगला आरती नहीं की जाती है क्योंकि नित्य रात्रि में ठाकुर जी रास में थक कर आते हैं तो वे विश्राम करते हैं। उस समय इन्हें जगाना उचित नहीं है। लोगों की आस्था इतनी है कि गत आश्विन शुक्ल पंचमी को दर्शनार्थ आये भक्तों में से एक जिन्हें आँखों से कुछ नहीं दिखता था, जिज्ञासा बस पूछा कि बाबा आप देखने में असमर्थ है, फिर भी श्रीबाँके बिहारी जी के दर्शन हेतु पधारे हैं। उन्होंने उत्तर दिया लाला मुझे नहीं दिखता है,पर बिहारी जी मुझे देख रहे हैं”
बाद में विचार विमर्श में कुछ इसी तरह की और कथाएं सामने उजागर हुईं जिन्हें सुनकर सभी को विस्मय हुआ पर जब मामू सा ने यह कहा, “रिश्ते आपसी विश्वास के आधार पर बनते हैं इसलिए प्रभु से अगर सम्बंध बनाना है तो मेरे विचार में इन कथाओं पर विश्वास करना ही उचित होगा। सोफिया यह बात मैं तुमसे विशेष रूप से कहता हूँ कि धर्म कोई भी हो, हर धर्म में यह बात बताई गई है की उसके निज़ाम में विश्वास करना सीखो तभी तुम प्रभु के करीब तक पहुँचने में समर्थ होगे अन्यथा राह से विमुख होने का खतरा हमेशा मंडराता रहेगा”
सोफ़िया ने जब श्रीबाँके बिहारी मंदिर की जब यह महिमा मामू सा तथा उस साधू के मुँह से सुनी तो वह बहुत प्रभावित हुई और एक टक दर्शन कर का लाभ उठा कर ही अपने आश्रम वापस लौटी। रास्ते मे मामू सा ने सोफ़िया को बताया, “इस देव भूमि में सब ठीक ठाक रहा हो ऐसा भी नहीं है। मथुरा में जहाँ श्री कृष्ण भगवान का जन्म हुआ वह उनके मामा श्री का कारागार हुआ करता था। जन्मभूमि होने के कारण वह स्थान एक पवित्र स्थान माना जाता है लेकिन जब पठानों ने भारत भूमि पर हमला किया तो हिंदुओं की आस्था को आघात लगे और उनका विश्वास अपने श्री कृष्ण में कम हो इस विचार से जन्म भूमि के मंदिर को तहस नहस कर तोड़ दिया। इतना ही नहीं जन्म भूमि मंदिर की ही ज़मीन पर एक मस्ज़िद बनवा दी। तब से वहाँ एक तरफ मंदिर बना हुआ है तो दुसरी तरफ मस्जिद। अगर तुम चाहो तो कल हम लोग वहाँ चले चलेंगे तथा तुम्हें एक और मंदिर जिसे यहाँ के लोग द्वारिका धीश मंदिर के नाम से जानते हैं वहाँ भी ले चलेंगे”
मामू सा की बात सुनकर सोफ़िया के ह्रदय में बहुतेरे प्रश्न उठ खड़े हुए जैसे कि श्री कृष्ण के मामा श्री ने आखिर श्री कृष्ण के माता पिता को कारागार में क्यों रखा था इत्यादि। जब सोफ़िया ने मामू सा से ये सब प्रश्न पूछे तो मामू सा ने कहा, “यह एक लंबी कहानी है जिसको जानने के लिये तुम्हें हिंदू धर्म और हिंदुओं की उत्पत्ति तक जाना होगा। अगर तुम कहोगी तो मैं तुम्हें वह सब भी बताऊँगा लेकिन धीरे-धीरे और कई टुकड़ों में क्योंकि किसी धर्म की उत्त्त्पति की बात सूक्ष्म में नहीं समझाई जा सकती है विशेषरूप से हिंदुत्व की गाथा जिसमें ब्रम्हांड की गाथा निहित हो”
मामू सा की बात ने सोफ़िया के मन में और भी कौतूहल पैदा कर दिया और उसने मन ही मन यह ठान ली कि अब तो वह इस भारत भूमि की हर बात जानकर ही चैन लेगी।
क्रमशः


एपिसोड 45
मामू सा से बात करके उस रात सोफ़िया आराम से सो नहीं पाई उसके हृदय में उथलपुथल मची हुई थी क्योंकि उसके चिंतन के लिहाज़ से ये बात परे थी कि क्यों कोई भला इतनी दूर से आता है और अचानक ही किसी धार्मिक संस्थान को आकर तहस नहस कर देता है और वहाँ के रहने वालों की आस्था पर कुठाराघात कर देता है।
सुबह होते ही जब वह मामू सा से नाश्ते की टेबल पर उसकी मुलाक़त हुई तो उसने फिर से कृष्ण जन्म भूमि मंदिर की बात शुरू की। जब कृष्ण जन्म भूमि की बात छिड़ी तो मामू सा के मुँह से अकस्मात ही अय्योध्या की राम जन्मभूमि का मसायल भी उठ खड़ा हुआ।
मामू सा ने जब बहुत ही संक्षिप्त में अय्योध्या कांड की चर्चा शुरू की तो मामी सा से नहीं रह गया और वह बोल पड़ीं, “सोफ़िया अगर तुमने अपनी इन उत्कंठाओं के उत्तर तलाशने हैं तो तुम मामू सा के साथ यहीं हिंदुस्तान में रह जाओ यहाँ इतना कुछ देखने, सुनने और जानने के लिये है कि शायद एक उम्र भी कम पड़े। जब मैं तुम्हारे मामू सा से फ्लोरिडा में पहली बार मिली थी तो मैंने इनकी चपलता और मासूमियत देखी थी। मैं इनके उन गुणों के कारण इन पर मर मिटी थी। बाद में जब मैं इनके कुछ और करीब आई तो अहसास हुआ कि यह व्यक्ति वह नहीं है जो ऊपर से दिखता है बल्कि यह तो अपने आप में बहुत कुछ छिपाए हुए है। तुम्हारे मामू सा क्या कुछ नहीं जानते वह ट्रेड और व्यपार के सभी तत्वों से वाकिफ़ तो हैं ही साथ ही साथ अत्यंत हो धार्मिक और भीरू इंसान हैं। तुम्हारे मामू सा ने यही नहीं अनेक काम किये हैं इन्होंने रामचरितमानस का हिंदी और अवधी भाषा से अंग्रेजी में अनुवाद भी किया है जिसे भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा कुछ साल पहले ही विमोचन कर जनता जनार्दन के लिये प्रेषित किया था। मैं इनके बारे में और क्या-क्या कहूँ वह सब सूर्य को दीपक दिखाने जैसा होगा। इस सबके बावजूद यह निजी जिंदगी में एक आम आदमी की तरह रहते हैं। सबकुछ खाते हैं पीते हैं और जैसे ही मौका मिलता है सूंदर लड़कियों को छुपी हुई नज़रों से देख भी लेते हैं”
जब मामी सा मामू सा के लिये यह सब कह रहीं थीं तो मामू सा मामी सा को आँखे दिखा कर यह जताने की कोशिश में थे कि भाई अब चुप भी हो जाओ बहुत हो गया लेकिन मामी सा उस दिन कुछ और ही मूड में थीं इसलिये मामू सा की खिंचाई करते हुए बोली, “आजकल इनका दिल अमेलिया पर आया उसको धार्मिक बातें बता कर पटाने में जो लगे हैं”
मामी सा ने जब अपनी बात कह ली तब मामू सा बोले, “सोफ़िया क्या तुम यह विश्वास कर सकती हो कि जो लिंडा कह रही है वह सच हो सकता है”
“अब मैं आप लोगों के बीच में पड़ कर क्या कहूँ लेकिन मुझे कुछ-कुछ मामी सा की बातें सही लगती हैं”
“व्हाट डू यू मीन सोफ़िया”
“नथिंग इन पर्टिकुलर मामू सा, लेकिन मैं मामी सा की एक बात से तो सहमत हूँ कि आप में बे सब गुण हैं जिनका ज़िक्र मामी सा ने किया। आप ही में नहीं बल्कि आपकी पूरी फ़ैमिली मेंबर्स में यह गुण हैं देखिये न एक वो अभिनव है जो मुझे यहाँ तक अपने चक्कर में ले आया और अब अपना हाथ छुड़ा कर न जाने किस कौने में जा छिपा है। मुझे एक ऐसे आदमी के साथ बाँध गया है जो सिर्फ़ अपने काम के बारे में सोचता है कुछ और नहीं लेकिन वह जैसा भी है अब मुझे धीरे-धीरे ही सही अच्छा लगने लगा है”
“यू मीन महेंद्र”
“यस मामी सा महेंद्र, आई एम फालिंग इन लव विद हिम”
“ओह दैट्स अ ग्रेट न्यूज़ फ़ॉर आल ऑफ अस” मामू सा बोल पड़े। मामू सा ने जब यह बात सोफ़िया के मुँह से सुनी तो पहले उन्हें विश्वास ही न हुआ इसलिये उन्होंने मामी सा से चिकोटी काटने को कहा, “लिंडा देखना कि मैं कोई ख़्वाब तो नहीं देख रहा हूँ”
लिंडा ने जब यह कन्फर्म किया, “आप ख़्वाब नहीं देख रहे हैं यह वास्तविकता है कि सोफ़िया महेंद्र से प्यार करने लगी है। हम यहाँ क्या कर रहे हैं लेट्स गो बैक। हम लोग दिल्ली में इस इवेंट को टू सेलिब्रेट करेंगे”
मामू सा भी बोल उठे, “पैक अप हम लोग अब जल्दी से जल्दी दिल्ली पहुँचना चाहेंगे”
सोफ़िया ने मामू सा से कहा, “नॉट अंटिल यू शो मी दोज टू टेम्पल्स अबाउट व्हिच यू टॉकड अबाउट यस्टरडे”
“ओके ओके, हम कुछ ही देर में निकलते हैं वे दोनों मंदिर देखने” मामू सा ने लिंडा से पूछा।
“चलूँगी न आज मेरे लिये इतनी खुशी का मौका है मेरे बेटे की खुशी में मैं अवश्य शरीक़ होऊँगी”
कुछ ही देर में सभी लोग कृष्ण जन्मभूमि मंदिर देखने के लिए निकल पड़े….
क्रमशः


एपिसोड 46
कृष्ण जन्मभूमि मंदिर के पास की दुकानों से मामू सा ने सबके लिये पूजा का सामान खरीदा और कृष्ण के प्रति भक्तिभाव मन में बसाये हुए मंदिर की ओर बढ़ चले। मंदिर के आहाते में आते ही मामू सा ने सोफिया को बताया कि:-
कृष्ण जन्म भूमि मथुरा का एक प्रमुख धार्मिक स्थान है, जहाँ हिन्दू धर्म के अनुयायी कृष्ण भगवान की पवित्र जन्म स्थान मानते हैं। यह स्थान बहुत समय से विवादों में भी घिरा हुआ है क्योंकि इससे लगी हुई जामा मस्जिद इस्लाम धर्म के अनुयाइयों के लिये धार्मिक स्थल है। भगवान श्री कृष्ण की जन्मभूमि का ना केवल राष्द्रीय स्तर पर महत्व है बल्कि वैश्विक स्तर पर जनपद मथुरा भगवान श्रीकृष्ण के जन्मस्थान से ही जाना जाता है। आज वर्तमान में महामना पंडित मदनमोहन मालवीय जी की प्रेरणा से यह एक भव्य आकर्षण मन्दिर के रूप में स्थापित है। पर्यटन की दृष्टि से विदेशों से भी भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन के लिए यहाँ प्रतिदिन आते हैं। भगवान श्रीकृष्ण को विश्व में बहुत बड़ी संख्या में नागरिक आराध्य के रूप में मानते हुए दर्शनार्थ आते हैं।
भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी इहलौकिक लीला संवरण की। उधर युधिष्ठर महाराज ने परीक्षित को हस्तिनापुर का राज्य सौंपकर श्रीकृष्ण के प्रपौत्र वज्रनाभ को मथुरा मंडल के राज्य सिंहासन पर प्रतिष्ठित किया। चारों भाइयों सहित युधिष्ठिर स्वयं महाप्रस्थान कर गये। महाराज वज्रनाभ ने महाराज परीक्षित और महर्षि शांडिल्य के सहयोग से मथुरा मंडल के मंदिरों का पुनरुद्धार कर सांस्कृतिक छवि पुन: स्थापना कर निर्माण कराया, वहीं भगवान श्रीकृष्णचन्द्र की जन्मस्थली का भी महत्व स्थापित किया। किसी समय में यह यह कंस का कारागार था, जहाँ वासुदेव ने भाद्रपदअष्टमी की आधी रात में अवतार ग्रहण किया था। आज यह कटरा केशवदेव नाम से प्रसिद्व है। एक समय का यह कारागार केशवदेव के मंदिर के रूप में परिणत हुआ। इसी के आसपास मथुरा पुरी सुशोभित हुई। यहाँ कालांतर में अनेकानेक गगनचुम्बी भवन एवम् भव्य मन्दिरों का निर्माण हुआ। इनमें से कुछ तो समय के साथ नष्ट हो गये और कुछ को विधर्मियों ने नष्ट कर दिया।
ईसवी सन् से पूर्ववर्ती 80-57 के महाक्षत्रप सौदास के समय के एक शिला लेख से ज्ञात होता है कि किसी वसु नामक व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक मंदिर तोरण द्वार और वेदिका का निर्माण कराया था। यह शिलालेख ब्राह्मी लिपि आज भी मथुरा में उपलब्ध है।
दूसरा मन्दिर विक्रमादित्य के काल में बनवाया गया था। संस्कृति और कला की दृष्टि से उस समय मथुरा नगरी उत्कर्ष पर थी। हिन्दू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म भी उन्नति पर थे। श्रीकृष्ण जन्मस्थान के संमीप ही जैनियों और बौद्धों के विहार और मन्दिर बने थे। यह मंदिर सन 1017-18 ई॰ में महमूद ग़ज़नवी के कोप का भाजन बना। इस भव्य सांस्कृतिक नगरी की सुरक्षा की कोई उचित व्यवस्था न होने से महमूद ग़ज़नवी ने इसे ख़ूब लूटा। भगवान केशवदेव के मंदिर को भी क्षतिग्रस्त किया गया।
संस्कृत के एक शिला लेख से यह ज्ञात होता है कि महाराजा विजयपाल देव जब मथुरा के शासक थे, तब सन 1150 ई॰ में जज्ज नामक किसी व्यक्ति ने श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर एक नए मंदिर का निर्माण कराया था। वह मंदिर बहुत ही विशाल एवं भव्य बताया जाता है। इसे भी सिकन्दर लोदी के शासन काल में नष्ट कर दिया गया।
मुग़ल बादशाह जहाँगीर के शासन काल में श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर पुनः ओरछा रियासत शासक बुंदेला देव जू वीर सिंह ने भव्य मंदिर का निर्माण कराया जिसकी ऊँचाई 250 फीट होती थी। उस समय इस निर्माण की लागत 33 लाख रुपये आई थी। कहा जाता है कि यह मंदिर आगरा से दिखाई देता था। इस मन्दिर के चारों ओर एक ऊँची दीवार का परकोटा बनवाया गया था, जिसके अवशेष अब तक विद्यमान हैं। दक्षिण पश्चिम के एक कोने में पानी के लिए कुआँ भी बनवाया गया था इस का पानी 60 फीट ऊँचा उठाकर मन्दिर के प्रागण में फब्बारे चलाने के काम आता था। यह कुआँ और उसका बुर्ज आज तक विद्यमान है। सन 1669 ई में औरंगजेब के शासनकाल में पुनः मंदिर गिरवा कर उसी सामग्री से मस्जिद बनवा दी गई जो आज भी मंदिर की दीवार से बिलकुल सटी हुई है।
सोफिया ने मंदिर से बाहर निकलते हुए कहा, “मेरी तरह सामान्य अमरीकियों और यूरोपियनों को इस बात का शायद यह ज्ञान भी न होगा कि कभी भारत इतना समृद्ध और गौरवशाली देश रहा था जिसके लिए यह भूमि बहार से आने वाले आतताइयों के लिए लूटखसोट का शिकार एक बार नहीं बनी बल्कि बारंबार इस धरा पर आक्रमण होता रहै"
मामू सा ने सोफिया की बात से सहमति जताते हुए कहा, “बेटी इतिहास इस बात का गवाह रहा है कि सत्ता के मद में डूबे शक्तिशाली व्यक्ति के लिए क्या सही क्या गलत इसका कोई महत्व नहीं होता है उसे तो केवल अपनी सत्ता पर काबिज़ रहने के लिए जो भी करना पड़े वह करता है”
कृष्ण जन्मभूमि से कुछ और सम्बंधित जानकारी प्राप्त कर लेने के बाद सभी ने मंदिर में पूजा अर्चना की और दोपहर के बाद वे लोग द्वारिका धीश मंदिर के दर्शनार्थ निकल गये। यमुना किनारे बना द्वारिका धीश जी का मंदिर जैसी कि यहाँ के लोगों में मान्यता है कृष्ण भगवान की याद में इसलिए विशेषरूप से बनवाया गया है कि बृज के लोग यह मानते हैं कि वे जब यहाँ आकर उनकी पूजा अर्चना करते हैं तो भगवान श्री कृष्ण जो मथुरा वृंदावन से विमुख होकर द्वारिका चले गये हैं यहाँ उनकी पुकार सुनकर लौट कर वापस आ जाते हैं।
रात को जब मामू सा सबके साथ बैठे हुए थे सोफिया को कुछ मौसम में गरमी का एहसास हुआ तो उसने अपना स्वेटर उतारते हुए कहा, “लगता है कि मौसम अब धीरे-धीरे बदल रहा है”
सोफ़िया की बात सुनकर मामू सा ने उसे बताया, “बेटी यह ऋतु राज बसंत के आगमन की दस्तक है। बसंत ऋतु का मतलब ही यह है कि भारत के इस भू भाग में मौज मस्ती का आलम आने वाला है। कुछ दिनों बाद रंगों का त्योहार होली मनाया जाएगा जिसमें सभी लोग एक दूसरे पर रंगों की बरसात करेंगे और चारों ओर वातावरण में प्रेम और आपसी भाई चारे के फूल खिल सकें”
“दादू सा क्या मुझे भी रंग खेलने का अवसर प्राप्त होगा”क्यों नहीं बेटी अवशय तू हम सभी लोगों के साथ यह त्योहार जो मनाने वाली है उससे पहले मैं यज चाहता हूँ कि क्यों न हम दिल्ली लौटने के पहले एक बार राधिका के जन्म स्थान को नमन कर लें और तुझे वहाँ जग प्रसिद्ध लट्ठमार होली खेलने का अवसर भी मिल जाएगा”
मामी सा बोल पड़ी, “हाँ हम लोगों को एक बार बरसाना अवश्य चलना चाहिए”
“तो कल सुबह ही हम लोग वहाँ के लिए निकलेंगे”, मामू सा बोले।
क्रमशः


एपिसोड 47
मामू सा ने वृंदावन से बरसाना जाते हुए राधिका रानी के बारे में बताया कि बरसाना राधा के पिता वृषभानु का निवास स्थान था। यहीं पर भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका राधा का जन्म हुआ था। बरसाना, वृंदावन से 45 किमी की दूरी पर स्थित मथुरा जिले का ही एक महत्वपूर्ण स्थान है। बरसाने की होली सम्पूर्ण विश्व भर में लोकप्रिय है। बरसाने में होली का उत्सव 45 दिनों तक मनाया जाता है जिसे देखने के लिए पर्यटक भारी संख्या में यहाँ आते हैं। यहाँ तक कि अब तो यूएस तथा यूरोप की क्या बात करें ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड तथा सुदूरपूर्व के देशों से भी लोग इस उत्सव में हिस्सा लेने और बरसाने की होली देखने आते हैं। रमा ने अभी मामू सा की बात सुनकर अपनी ओर से कहा, “एक बार मैं भी अपने काका सा के साथ बरसाना में लाड़ली मंदिर देखने के लिए आई थी।
“तूने उस समय लट्ठ मार होली देखी थी”
“जी नहीं मामू सा हम लोग दीवाली के दिनों में आये थे। उस समय लाड़ली जी का मंदिर बहुत ही सुरुचिपूर्ण ढंग से सजाया गया था”
“चल अबकी बार तू होली भी देख सकेगी”
“जी आपकी कृपा से देख सकूँगी” रमा ने अपनी बात कही, “अगर वह भी होते तो कुछ और ही आनंद होता”
“अभिनव को होली पर दिल्ली बुला लेंगे”
“बीकानेर हवेली में अगर होली नहीं होगी तो पिछले सौ साल का ट्रडिशन टूट जाएगा”
“अरे मैं तो इस बात को भूल ही गया था”
“मामू सा दिल्ली पहुँच कर मैं भी बीकानेर चली जाउँगी। वहाँ जाकर होली की तैयारी जो करनी होगी। गुजिया और नमकीन सब तो बनवाना होगा”
“ठीक है तू बीकानेर निकल जाना”
जब मामू सा और रमा की बातचीत चल रही थी तो सोफ़िया उनकी बातों को बहुत ध्यान से सुन रही थी। मामू सा ने उसकी ओर पलटते हुए कहा, “सोफ़िया होली का त्योहार बृज में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें सभी स्त्री और पुरुष एक दूसरे के ऊपर रंग डालते हैं और होली के गीत गाते बजाते हैं”
“मामू सा मैं होली खेलना तो चाहती हूँ पर मुझे डर लगता है जिस प्रकार मैंने कुछ कल रात इस त्योहार के बारे में इंटरनेट में देखा और पढ़ा है। रँग खेलूँगी तो नहीं पर दूर से देखूँगी अवश्य”
“जैसा तेरा मन करे” मामू से ने सोफ़िया से कहा। उसके बाद मामू सा को अपने बीए के दिनों की एक कविता याद हो आई जो उन्होंने सबको सुनाई:
“सूर्य चले जब से उत्तरायण
बदले पर होले हौले मौसम
ऋतु बसंत करे पदार्पण
कहलाये मधुमास का प्रथम चरण।
ऐसा है इसका बसंती व्याकरण
पतझर का लगता है मौसम
उमड़ेगा फूल पात पर हर छण
ऐसा होगा बसंत का दूजा चरण।
सेमल पलाश खूब खिलेंगे
अमराई बौराएगी साथ साथ
रंग प्रकृति में बिखरे बिखरे होंगे
फाल्गुन में दिल महके महके होंगे
ऐसा होगा बसंत का तीजा चरण।
होली के रंगों का है इंतजार
होगा बृज में रसिया जोरदार
राधे संग कन्हाई खेलेंगे फाग
रंग खेलें जिनके हों बड़े भाग
हो ऐसा बसंत का अंतिम चरण।“
रमा ने जब पूछा, “मामू सा यह किसकी लिखी हुई कविता है”
“यह तो बेटी याद नहीं पर बसंत ऋतु का इसमें जिस प्रकार का वर्णन है वह मुझे बहुत ही सुंदर लगता है”
लगभग डेढ़ घंटे की ड्राइव के बाद वे सभी लोग बरसाना पहुँच गए। वहाँ जाकर वे लोग ‘कंट्री इन रेसॉर्ट’ में जाकर रुके और वहाँ खाना पीना खाकर लाडली जी का मंदिर देखने निकल पड़े।
बरसाना के चारों ओर अनेक प्राचीन व पौराणिक स्थल हैं। यहाँ स्थित जिन चार पहाड़ों पर राधा रानी का भानुगढ़, दानगढ़, विलासगढ़ व मानगढ़ हैं। वे ब्रह्मा के चार मुख माने गए हैं। इसी तरह यहाँ के चारों ओर सुनहरा की जो पहाड़ियाँ हैं उनके आगे पर्वत शिखर राधा रानी की अष्टसखी रंग देवी, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चंपकलता, चित्रा, तुंग विद्या व इंदुलेखा के निवास स्थान हैं। यहाँ स्थित मोर कुटी, गहवखन व सांकरी खोर आदि भी अत्यंत प्रसिद्ध स्थान हैं। सांकरी खोर दो पहाड़ियों के बीच एक संकरा मार्ग है। कहा जाता है कि बरसाने की गोपियाँ जब इसमें से गुजर कर दूध-दही बेचने जाती थीं तो कृष्ण व उनके ग्वाला-बाल सखा छिपकर उनकी मटकी फोड़ देते थे और दूध-दही लूट लेते थे।
बरसाना में राधा रानी का विशाल मंदिर है, जिसे लाड़ली महल के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ सुबह-शाम भक्तों का ताँता लगा रहता है। इस मंदिर में स्थापित राधा रानी की प्रतिमा को ब्रजाचार्य श्रील नारायण भट्ट ने बरसाना स्थित ब्रहृमेश्वर गिरि नामक पर्वत में से संवत् 1626 की आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को निकाला था। इस मंदिर में दर्शन के लिए दो सौ से भी अधिक सीढि़यां चढ़नी पड़ती हैं। यहाँ राधाष्टमी के अवसर पर भाद्र पद शुक्ल एकादशी से चार दिवसीय मेला जुड़ता है। इस मंदिर का निर्माण आज से लगभग 400 वर्ष पूर्व ओरछा नरेश ने कराया था। यहाँ की अधिकाँश पुरानी इमारतें 300 वर्ष पुरानी हैं। जहाँ पर लाडली महल मंदिर स्थित है वहाँ से पूरा बरसाना गाँव आराम से दिखता है।
लाडली महल मंदिर देखने के बाद मामू सा सभी को लेकर राधा रानी के जयपुर नरेश के मंदिर को भी देखने गए। बरसाना में राधा रानी के मंदिर से महज कुछ ही दूरी पर जयपुर-नरेश का बनाया हुआ विशाल मंदिर भी है जो पहाड़ी के दूसरे शिखर पर बना है। राधा रानी का मंदिर देख कर सोफिया के मुँह से यह शब्द अचानक ही निकल गए, “इस मंदिर को देखकर ऐसा लगता है कि यह किसी राजा का भव्य राजमहल है”
सोफ़िया के यह कहने और मामू सा ने उत्तर दिया, “यह मंदिर जयपुर के महाराजा की प्रॉपर्टी है। उस समय यह रिवाज़ था कि राजा महाराजा विभिन्न धर्मिक स्थलों पर अपने भवन बनवाते थे जिससे कि जब उनकी रियासत के लोग इन धर्मिक स्थलों पर जायें तो वे लोग वहाँ आराम से रह सकें और उस जगह का आनंद उठा सकें”
“इसका मतलब तो यहाँ जोधपुर और बीकानेर के महाराजाओं के द्वारा बनवाये हुए मंदिर भी होंगे”
मामू सा ने इस ट्रिकी सिचुएशन से निकलने के लिये सोफ़िया से कहा, “बेटी होने तो चाहिए थे, लेकिन इतनी दूरी होने के कारण उनके बनवाये हुए मंदिर शायद यहाँ नहीं हैं”
“ओह आई सी”
जब बात होली पर्व की होती है तो बरसाना की होली लोगों के लिए काफी आकर्षण का केंद्र रहती है। इसका आकर्षण न केवल मथुरा–वृंदावन में बल्कि देश के विभिन्न भागों में यहाँ तक कि सात समंदर पार भी देखने को मिलता है। बरसाना गाँव में होली अलग तरह से खेली जाती है जिसे लट्ठमार होली कहते हैं। इस होली में पुरुष महिलाओं पर रंग डालते हैं और महिलाएँ उन्हें लाठियों तथा कपड़े के बनाए गए कोड़ों से मारती हैं।
क्रमशः
एपिसोड 48

बरसाने में दो दिन रुक कर वहाँ राधा रानी का मंदिर देखने और लट्ठमार होली देखने के बाद जब मामू सा दिल्ली वापस लौटने के लिए तैयार हो चुके थे कि उनके मोबाइल पर अभिनव के एक घनिष्ट मित्र पत्रकार तथा विचारक विमलेंदु द्विवेदी, रीवां निवासी का फोन आया, “सिसोदिया जी अभी सैनिक फार्म बात करने से पता लगा कि आप यूएस से आजकल भारत आये हुए हैं। हर बार की तरह यह मेरी हार्दिक इच्छा थी कि कम से कम एक शाम आपके साथ बिताई जाए कुछ धार्मिक चर्चा भी हो जाए लेकिन अबकी बार आपसे भेंट न हो सकेगी कारण यह कि हमारा एक कैम्प बरसाने में चल रहा है”

“मान्यवर विमलेन्दु जी मेरा अहोभाग्य कि आप बरसाने में हैं? मैं भी आजकल सपरिवार बरसाने में ही हूँ, आपसे मिलने की प्रबल इच्छा हो रही है। कहाँ रुके हुए हैं?”

“अरे महाराज हम कहाँ रुकेंगे हमारे लिए तो केवल एक ही स्थान है और वह है हमारे रींवा नरेश जी का मंदिर, हम यहीं कमरा नंबर पाँच में रुके हुए हैं”

“अगर आप बहुत व्यस्त न हों तो क्या हम आपसे मिलने आयें”

“आइये आपका स्वागत है। कुछ चर्चा भी हो जाएगी और सत्संग भी। आइये हम आपकी राह देख रहे हैं” विमलेंदु जी ने कहा।

मामू सा अपने साथ लिंडा, रमा, सोफ़िया और महेंद्र को लेकर रींवा हवेली आ पहुँचे। विमलेंदु जी से मिलने पर सोफ़िया का परिचय यह कह कर कराया कि वह महेंद्र की होने वाली पत्नी है और यूएस से आई हुई है। जब विमलेंदु जी सोफ़िया को आशीर्वाद देने के लिये उठे तो मामू सा बोले, “विमलेंदु जी ऐसे नहीं सोफ़िया को आप अपने मुखारबिंद से बसंत ऋतु की महत्ता के बारे में अगर कुछ बताएँगे तो वह इसके जीवन में काम आएगा”

“जैसी आपकी आज्ञा प्रभु” कहकर विमलेंदु जी ने ऋतुराज बसंत के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए बताया कि :-

“गीता के सातवें अध्याय के ग्यारहवें श्लोक में श्रीकृष्ण उद्घोषणा करते हैं कि मैं धर्म के अविरुद्ध ‘काम’ हूँ। मेरे भीतर कृष्ण का यह उद्घोष उसी दिन से धीरे-धीरे बजने लगता है, जिस दिन से फगुनहटी हवा चलने लगती है। यह बसंत के आने की मुनादी है जो हवाओं में बज रही होती है। यह मदनोत्सव की ऋतु है, जो सरसों के खेतों में उतर आयी है। यह सृजन का अनुनाद है जो आम और अशोक के पेड़ों में गूँज रहा है। जैसे-जैसे होली नजदीक आने लगती है, मन कुछ और करने को कहता है और यह हाल सिर्फ मेरा ही नहीं, प्रकृति के सभी चर-अचर कुछ और ही रंग में दिखने लगते हैं—

औरैं भाँति कोकिल, चकोर ठौर-ठौर बोले,

औरैं भाँति सबद पपीहन के बै गए ।
औरैं रति, औरैं रंग, औरैं साज, औरैं संग,
औरैं बन, औरैं छन, औरैं मन ह्वै गए ।।


बसंत की यही असली पहचान है कि हम कुछ के कुछ और हो जाते हैं। यह और हो जाना, जितना बाहर दिखता है, उससे भी ज़्यादा भीतर होता है। इस बदलाव की ठीक-ठीक पहचान भी कहाँ हो पाती है। बस अभिलाषाओं, आकांक्षाओं का एक ज्वार गहरे कहीं उमड़ता रहता है । कालिदास कहते हैं कि बसंत आता है तो सुखित जन्तु (चैन से रहने वाला आदमी) भी न जाने किसके लिए पर्युत्सुक (बेचैन ) हो उठता है। जहाँ भी कुछ सुंदर दिखा, मन बहक जाता है।

बसंत ‘काम’ की ऋतु है और होली ‘उद्दाम काम’ का उत्सव। प्राचीन भारत में वसन्त उत्सव काम-पूजा का उत्सव हुआ करता था। भारतीय सन्दर्भ में ‘काम’, फ्रायड-युग आदि के ‘लिबिडो‘ से अलग है। हमारे यहाँ ‘काम’ सिर्फ ऐंद्रिक संवेदन नहीं है। हमारा ‘काम’ दमित वासना की तुष्टि से आगे एक सर्जनात्मक आवेग है। यह हमारे जीवन का केन्द्रीय तत्व है। हमारे ‘काम’ में थोड़ा मान, थोड़ा अभिमान, थोड़ा समर्पण, विपुल आकर्षण और सर्वस्व दान का भाव निहित रहताहै। हमारी समस्त कलाएँ, राग-विराग, ग्रहण-दान, हमारे ‘काम’ से ही संचालित होते हैं।

हमारे धार्मिक ग्रन्थों में ‘काम’ को परब्रह्म की एक विधायी शक्ति के रूप में माना गया है। यह परब्रह्म की उस मानसिक इच्छा का मूर्त रूप है, जो संसार की सृष्टि में प्रवृत्त होती है। इसीलिए कृष्ण कहते हैं— “धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोस्मि भरतर्षभ“—मैं जीवमात्र में धर्म के अविरुद्ध रहने वाला ‘काम’ हूँ। साफ है कि जो इच्छा धर्म के विरुद्ध जाए वह ‘काम’ का विकृत रूप है। शास्त्र इसे अपदेवता कहते हैं। ब्रह्मसंहिता कहती है कि धर्म के अविरुद्ध रहने वाला काम साक्षात् विष्णुस्वरूप है। यह प्राणिमात्र के मन में ‘स्मर‘ या ‘काम’ के रूप में रहता है। ‘काम’ का यह रूप हमारे भीतर सत्-चित्-आनंद पैदा करता है।

‘काम‘ का दूसरा रूप है जो धर्म के विरुद्ध जाता है। यह रूप व्यक्ति के विवेक को हर लेता है और उसे उद्दण्ड बना देता है। पश्चिमी मान्यताओ में ‘काम’ के देवता ‘क्यूपिड’ माने जाते हैं, जो अन्धे हैं। यह प्रतीक है पश्चिम के उस विचार का जिसमें माना जाता है कि ‘काम’ मनुष्य को अन्धा बना देता है। हमारे यहाँ इसी कोटि के मदन देवता हैं जो व्यक्ति को इतना कामातुर कर देते हैं कि वह अन्धा हो जाता है। शिव ने इसी मादक मदन देवता को भस्म कर दिया था। ‘काम’ को ‘मनसिज’ भी कहा जाता है। यह ‘काम’ का भावात्मक रूप है। इसे पार्वती ने बचा लिया था। मनसिज, उद्दण्ड नहीं है। इसका स्वरूप सृजनात्मक है। यह सृष्टि का कारक है। यह हमारी शक्ति का स्रोत है। हमारे आनन्द की गंगोत्री है। हमारा ‘काम’ देह की सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है। हमारा ‘काम’ प्रीति का, आह्लाद का, पारस्परिकता का, रसिकता का शिखर है।

बसंत को कामदेव का सखा माना जाता है। भारत में बसन्त की कोई निश्चित तारीख नहीं होती। कवि केदारनाथ सिंह कहते हैं– “झरने लगे नीम के पत्ते, बढ़ने लगी उदासी मन की…” नीम के पत्ते जब झड़ने लगें, आम बौरा जाएँ, पलाश पर जब अंगारे दहकने लगें और अशोक के कंधे से जब फूल खिल उठें तो समझिए वसन्त आ गया। प्राचीन ग्रंथों में अशोक में फूल खिला देने के बहुत रोचक अनुष्ठानों का वर्णन मिलता है। अशोक के फूलों का खिलना मतलब बसंत का आना होता था। कालिदास के ‘मालविकाग्नि मित्र’ और हर्ष की ‘रत्नावली-नाटिका’ से पता चलता है कि मदन देवता की पूजा के बाद अशोक में फूल खिला देने का अनुष्ठान होता था। कोई सुंदरी शरीर में गहने धारण करके, पैरों में महावर लगाकर नूपुर सहित अपने बाँए पैर से अशोक वृक्ष पर मृदु आघात करती थी। इधर नूपुरों की हल्की झनझनाहट होती और उधर अशोक उल्लास में कंधे पर से फूट उठता। आमतौर पर यह अनुष्ठान रानी करती थी।

हमारा कोई प्राचीन काव्य बिना बसंत के वर्णन के पूरा ही नहीं होता। दरअसल हमारा जीवन ही वसन्त के बिना निरर्थक है। विशेष रूप से संस्कृत का कोई काव्य या नाटक उठाइए, किसी न किसी बहाने उसमें वसन्त आ ही जाएगा। ग़ज़ब तो तब हो गया जब कालिदास ने वर्षा ऋतु के काव्य ‘मेघदूत‘ में भी बसन्त को नहीं छोड़ा। उसमें भी यक्षप्रिया के उद्यान का वर्णन करते हुए, प्रिया के नूपुरयुक्त वामचरणों के मृदुल आघात से कंधे पर से फूट उठनेवाले अशोक और मुख मदिरा से सिंच कर उठने को लालायित वकुल की चर्चा कर ही दी. कालिदास सौन्दर्य और प्रेम के विलक्षण चितेरे हैं।

प्राचीन काव्य ग्रन्थों में बसंत की महिमा का अक्सर अतिरंजन हो जाता है। बसंत के प्रति कवियों का मोह इस कदर है कि जयदेव के ‘गीत गोविन्दम्‘ की पहली ही अष्टपदी बसंत को समर्पित है—-

ललित लवंगलतापरिशीलन, कोमल मलय शरीरे ।

मधुकरनिकरकरंबि कोकिल कूजित कुंज कुटीरे ।।

विहरति हरिरिह सरस वसन्ते ।

नृत्यति युवतिजनेन समं सखि विरहिजनस्य दुरंते ।।


(सखी राधा से कहती है—राधे! सुन्दर दिखने वाले पुष्पों से लदी बेलों के स्पर्श से मादक बनी, मंद प्रवाहित होते मलय समीर के साथ, भौंरों की पंक्तियों से गुंजित तथा कोयलों के संगीत से कूजित कुंजों वाले तथा वियोगियों को संतप्त करनेवाली इस वसन्त ऋतु में प्रियतम श्रीकृष्ण, तरुणी गोपियों के साथ नृत्य कर रहे हैं)

यह नृत्य बसंत का रास है। इसमें समर्पण और यौवन के आत्मदान का भाव है। इसीलिए सखी ऱाधा को समझाती है कि मान छोड़कर, सब कुछ कृष्ण को अर्पण कर दो…..श्रीकृष्ण रसराज भी हैं। उनकी लय, ताल, यति-गति और मति से एकात्म हो जाओ….यह समय फूलने-फलने का है। यह समय भीतर-बाहर कुछ नया रचने का है। यह नृत्य आत्मोत्सर्ग का नृत्य है यह समय हवा का हो जाने का है, फूलों का हो जाने का है….यह समय निसर्ग में खो जाने का है।

इसीलिए बसंत ऋतु प्राचीन भारत में उत्सवों का समय होती थी। वात्स्यायन के कामसूत्र में इस समय कई उत्सवों का उल्लेख है।उनमें दो उत्सव सर्वाधिक प्रसिद्ध थे—सुवसन्तक और मदनोत्सव। सुवसन्तक आज का बसन्तपंचमी है, और मदनोत्सव आज की होली। होली का त्यौहार विशुद्ध रूप से उद्दाम काम का त्यौहार है। यह उस मायनों में भारत का त्यौहार है। भारत की संस्कृति से मेल खाता हुआ। यह हर भारतवासी का त्यौहार है। होली की इस व्यापक स्वीकृति का एक कारण यह है कि इसके साथ कोई धार्मिक परंपरा उस तरह से नहीं जु़ड़ी है, जैसी दूसरे भारतीय त्यौहारों के साथ। होलिका दहन की धार्मिक परंपरा अगर है भी तो वह रंग वाली होली के एक दिन पहले हो जाती है, और उसका कोई प्रभाव रंगों पर नहीं पड़ता।

प्राचीन भारत में फाल्गुन से लेकर चैत्र के महीने तक बसंत के उत्सव कई तरह से मनाये जाते रहे हैं. एक उत्सव सार्वजनिक तौर पर मनाया जाता था तो एक दूसरा रूप कामदेव के पूजन का था। सम्राट हर्ष की ‘रत्नावली-नाटिका‘ में इस सार्वजनिक उत्सव का बड़ा मोहक चित्र है। मदनोत्सव वाले दिन पूरे नगर को सजाया जाता। नगर की गलियाँ, चौराहे और राजभवन का प्रांगण नगरवासियों की करतल ध्वनि, संगीत और मृदंग की थापों से गूँज उठते नगर वासी बसंत के नशे में मस्त हो जाते। राजा अपने महल की सबसे ऊँची चंद्रशाला में बैठकर, नागरिकों के आमोद-प्रमोद का रस लेते। यौवन से भरपूर युवतियाँ, जो भी पुरुष सामने पड़ जाता उसे श्रृंगक (पिचकारी) के रंगीन जल से सराबोर कर देतीं। राजमार्गों के चौराहों पर चर्चरी गीत और मर्दल नाम के ढोल गूँज उठते। दिशाएँ सुगंधित पिष्टातक (अबीर) से रंगीन हो जातीं। अबीर के उड़ने से राजमार्ग और महल के आसपास ऐसी धुंध छा जाती कि प्रातःकाल का भ्रम हो जाता है। ऐसा लगता मानो अपने वैभव से कुबेर को भी पराजित करने वाली कौशाम्बी नगरी सुनहरे रंग में डुबा दी गई हो।

दूसरा विधान था कामदेव के पूजन का. इसका एक चित्र भवभूति के मालती-माधव प्रकरण में मिलता है. इसका केन्द्र होता था –मदनोद्यान, जो मुख्यरूप से इसी उत्सव के लिए तैयार किया जाता था। यहां कामदेव का मंदिर होता था। नगर के स्त्री-पुरुष इकट्ठे होकर यहां कन्दर्प (कामदेव ) की पूजा और आपस में मनोविनोद करते थे। शिल्परत्न और विष्णुधर्मोत्तर पुराण आदि ग्रंथों में कामदेव की प्रतिमा बनाने की विधियां भी बतायी गयी हैं। कामदेव के बायीं ओर पत्नी रति, और दाहिनी ओर दूसरी पत्नी प्रीति की प्रतिमा बनायी जाती थी। शास्त्रों में काम के बाण और धनुष फूलों के बताए गये हैं।अरविन्द, अशोक, आम, नवमल्लिका और नीलोत्पल–ये उसके पांच बाण हैं। इन्हें क्रमशः उन्मादन, तापन, शोषण, स्तंभन और सम्मोहन भी कहा गया है।

हम भारतवासियों के लिए, कृष्ण को याद किए बिना, न तो बसंत का कोई अर्थ है और न ही होली का। होली का सर्वाधिक मनभावन चित्र, कृष्ण-कथा में ही मिलता है। कृष्ण के प्रेम में आसक्त गोपियाँ हर क्षण कृष्ण को अपने पास लाने की जुगत में रहतीं। होली का उत्सव उन्हें यह अवसर देता है। गोपियां कृष्ण का प्रेम चाहती हैं। राधा जलती-भुनती रहती हैं…… “भरि देहु गगरिया हमारी, कहे ब्रजनारी ….”—कृष्ण कहते हैं कि ‘पहले पूरा खाली करो ! प्रेम की ऐसी ही गति-मति है…..प्रेम पाना है तो गगरिया पूरी खाली करके जाना पड़ेगा……..प्रेम मनसिज है..प्रेम सृजन है..प्रेम उद्दाम है..प्रेम काम है, और काम धर्म के अविरुद्ध है !!

मामू सा, विमलेन्दु जी के सारगर्भित उद्बोधन पर इतने मगन हो गए कि वह अपनी सुदिबुधि ही खो बैठे। चलते-चलते उन्होंने विमलेन्दु जी को विशेषरूप से महेंद्र-सोफिया के वैवाहिक कार्यक्रम आने के लिए निमंत्रित करते हुए कहा, “विमलेन्दु जी मैं आपके इस विशेष सांध्यबेला के इस सारगर्भित चर्चा जिसमें कि आपने पुत्री सोफिया तथा अन्य को यह दर्शा दिया है कि ‘काम’ की उतनी ही महत्ता हैं जितनी कि किसी अन्य प्रक्रिया की। अभिनव और रमा यूएस आयेंगे यह हमारी हार्दिक इच्छा है कि इस अवसर पर आप भी वहाँ पधारें और इन बच्चों को आशीष दें”

विमलेन्दु जी हँसते बोले, “सिसोदिया जी आप बुलाएँ और हम न आयें यह तो हो ही नहीं सकता हम अभिनव और रमा के साथ अवश्य आएँगे”, यह कहकर विमलेन्दु जी ने सोफिया को अपने आशीर्वचन स्वरुप कहा, “जाओ बेटी जाओ होली के रंगों से अपने जीवन को रंग डालो”

क्रमशः



एपिसोड 49
बरसाने से दिल्ली वापस लौट कर मामू सा होली के त्यौहार की तैयारी में जुट गए क्योंकि यह एक ट्रडिशन बन गया था कि जब मामू सा सैनिक फार्म में होते तो होली खूब जोर शोर से मनाई जाती थी। इस साल जब कि सोफिया भी वहीं थी तो होली कुछ और ही तरीके से मनानी थी। दूसरी उनकी चिंता यह भी थी कि यूएस वापस लौटने के पहले ही वह सोफिया की शादी के लिए जो भी ज्वेलरी और कपडे वगैरह चाहिए थे उनका भी इंतजाम करना था। यही सोच कर उन्होंने एक रोज़ रंजीत राठौर साहब को फ़ोन कर जयपुर से ज्वेलरी और कपड़े वाले व्यापारियों को सैनिक फार्म में ही बुलवा लिया था जहाँ मामी सा और महेंद्र ने मिलकर जो आइटम चाहिए थे वे सेलेक्ट कर लिए। राठौर साहब जयपुर के लिए निकलने लगे तो मामू सा ने उनसे कहा, “रंजीत हम लोग तो होली के बाद यूएस निकल जायेंगे लेकिन मैंने तुम्हें जो जो सामान बताया है उसे तुम बाद में यूएस भिजवा देना और तुमको महेंद्र की शादी में शरीक होने के लिए यूएस आना है मैं कोई बहाना नहीं सुनना चाहता हूँ”
“जैसा आप कहेंगे हुकुम वैसा ही होगा” कह कर राठौर साहब ने मामू सा से विदाई ली।
कुछ दिन बाद जब मामू सा के साथ सोफ़िया का यूएस वापस लौटने का प्रोग्राम बना तो एक दिन मामू सा ने फोन कर मुझे और रमा को दिल्ली आने के लिये कहा। मैं तो जानबूझकर महेंद्र सोफ़िया के बीच नहीं आना चाह रहा था। आख़िरकार मामू सा के कहने पर मैं और रमा दिल्ली आये और जब सोफ़िया मेरे सामने आई तो हम दोनों के बीच हांग कांग के स्काई टेरेस के रेस्टारेंट में हुई मुलाक़ात से लेकर बीकानेर की मोहताना चौक में सिसोदिया हवेली की आख़िरी मुलाक़त तक के सभी दृश्य नज़रों के सामने से घूम गए।
जब दिल्ली एयरपोर्ट पर मैं रमा के साथ सभी को छोड़ने गया तो सोफ़िया ने नम आँखों से कुछ न कह कर भी बहुत कुछ कह कर सभी को उस समय अचम्भित कर दिया जब वह मेरे पैर छूने के लिये झुकी और बोली, “अब जब कि तुम महेंद्र के बड़े भाई होने के नाते मेरे लिये पूज्य हो पर सोफी कहकर क्या मुझे तुम आशीर्वाद नहीं दोगे”
उस समय मैं अपने आप को नहीं रोक पाया, सोफ़िया को मैंने अपने आगोश में लिया और उसकी पेशानी को चूमते हुए कहा, “सोफी आई लव यू ऐण्ड मे गॉड ब्लेस यू...”
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समाप्त

मेरे लिए एक और नई यात्रा की शुरुआत …एक नए रिश्ते की तलाश! घुमक्कड़ की जिंदगी में ठहराव कहाँ?

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‘मामू सा’ मेरे लिये ‘घुमक्कड़’ के बाद एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट था जो आज अपने चरम पर पहुँच कर फेसबुक की मेरी टाइम लाइन पर दर्ज़ हो कर इतिहास बन गया। इस प्रोजेक्ट के प्रतिपादन में जिन लोगों ने सहयोग प्रदान किया उनमें से प्रमुख रहे मान्यवर विमलेंदु द्विवेदी जी, राम शरण सिंह और मेरी धर्मपत्नी रमा सिंह, जिनकी इस धारावाहिक में एक अहम भूमिका भी रही। मैं इन सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। इस सुअवसर पर मैं अपने उन पाठकों का भी हार्दिक अभिनंदन करता हूँ जिन्होंने इस कथानक को प्रारंभ से अंत तक बड़े चाव से पढ़ा। लेकिन जिस तरह लोगों में पठन पाठन के प्रति लगाव कम होता जा रहा है यह वास्तव में एक चिंता का विषय है। हम तो लिख सकते हैं, लिख रहे हैं तथा यह वायदा भी करते हैं कि लिखते रहेंगे, पढ़ने वाले पढ़ें या न पढें।
फेसबुक के माध्यम से धारावाहिक का प्रस्तुतिकरण मेरे लिये एक अनूठा प्रयास रहा है। मैं यह मानता हूँ कि मेरा यह प्रयास आने वाले समय में मील का पत्थर साबित होगा तथा विशेषरूप से नए सहित्यकारों को एक नई राह दिखायेगा जिनकी रचनाओं को स्थापित प्रकाशकों द्वारा कोई स्थान नहीं दिया जाता है।
एस पी सिंह

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