एक थे चन्द्रचूढ़ सिंह ( पार्ट II )
कथाश:26
कुँवर ने शौक़त बेग़म का हाल चाल पूछते हुए कहा, "मैं इलेक्शन के काम मे लगा हुआ था इसलिये पिताश्री ने आपके आने की ख़बर ही नहीं की, नहीं तो मैं खुद ही लखनऊ रेलवे स्टेशन आकर आपको अपने साथ ही लेकर आता"
"अरे नहीं कुँवर आप क्यों तकलीफ करते, मैं गौहर और मुखिया जी के साथ आराम से आ गई थी। और बताइये आपके इलेक्शन की तैयारी कैसी चल रही है?" शौक़त बेग़म ने कुँवर से पूछा।
"अभी तो शुरुआती दौर है, सब ठीकठाक है। लगता तो नहीं कोई दिक्कत होगी। मौसी जी इस इलेक्शन के चक्कर में मेरी पढ़ाई बीच में ही रह गई नहीं तो मैं दो साल में डॉक्टरेट कर लेता। अब तो मैं भी बगैर पढ़े लिखे लोगों की जमात में शामिल हो गया हूँ"
"अरे छोड़िये भी आपको कौन किसी की नौकरी करनी है। आप तो अपनी मर्ज़ी के खुदमुख्तार हैं। आपको तो हुक़ूमत करनी आनी चाहिये, घुड़सवारी वग़ैरह सीखिए और मौज करिए"
"आपा, आज आपने वही बात कह दी जो हुकम को उनके प्रिंसिपल ने कही थी जब वह कॉल्विन ताल्लुकेदार में पढ़ा करते थे” बीच में ही गौहर बेग़म टोकते हुए बोल पड़ीं।
"गौहर जो हक़ीक़त है उससे क्या मुँह मोड़ना"
"जी आपा"
शिखा बीच में बोल पड़ी, "मौसी जी हम लोगों ने आपके यहाँ घुड़सवारी सीखी थी। यहाँ हाथियों को कैसे काबू करते हैं सबा वह गुर सीखेगी। हमारे यहाँ कई हाथी हैं"
"छोड़ मुझे महावत नहीं बनना है। हाँ, एक दिन तेरे साथ घूमने ज़रूर चलूँगी” सबा ने शिखा से कहा।
कुँवर ने अपनी ओर से सुझाव देते हुए कहा, "ऐसा करते हैं हम लोग कल ही हाथियों पर सवार हो अपनी अमराई में चलेंगे और वहीं दाल बाटी का प्रोग्राम रखते हैं। मौसी जी आप और छोटी मौसी जी आप भी साथ रहियेगा"
गौहर बेग़म बोल उठीं, "बड़ा मजा आएगा, कल हम लोग अपने साथ महारानी और रानी साहिबा को भी साथ ले चलेंगे। हुकम रहेंगे तो और भी मज़ा आएगा"
शिखा सबा की ओर देखते हुए बोली, "देखा, मेरा भाई तेरा कितना ख़्याल रखता है"
"मेरे लिये ये सब थोड़े ही हो रहा है, मैं तो उस दिन का इंतज़ार कर रही हूँ जब ख़ास मेरे लिये कोई प्रोग्राम कुँवर बनाएंगे"
कुँवर ने सभी के सामने कुछ जवाब नहीं दिया पर मन ही न एक प्रोग्राम ख़ास सबा के लिये बना लिया। कुछ देर वहाँ रह कर कुँवर जब चलने लगे तो शिखा बोली, "सबा तुम चलो आज मेरे साथ ही रहना"
सबा शिखा की बात सुनकर बहुत खुश हुई और बेग़म शौक़त की ओर देखने लगी। शौक़त बेग़म ने भी उसकी ओर देखते हुए कहा, "जा तेरा मन है तो जा, यहीं क्या करेगी? अपने कपड़े वग़ैरह लेती जाना"
गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "तू जा, मैं तेरे कपड़े चोबदार के हाथों भिजवा दूँगी"
शिखा, सबा और कुँवर कुछ वक़्त ऐश महल में बिता कर सूर्य महल आ गए।
कथांश:27
रात को जब गौहर बेग़म राजा साहब से मिलीं तो उन्होंने पूछा, "बच्चे कल अमराई जाना चाह रहे हैं, आप चलेंगे?"
"मुझे तो बताया गया है कि आप और शौक़त बेग़म भी जा रहीं हैं"
"कल पूरा परिवार रहेगा, महारानी और रानी साहिबा भी रहेंगी, आप चलेंगे तो हम सभी को अच्छा लगेगा"
राजा साहब ने जवाब दिया, "हम ज़रूर से ज़रूर पहुँचेंगे पर कुछ देर से, हमारी एक मीटिंग है उसे निपटा कर हम आपको अमराई में ही मिलेंगे। मुखिया जी को हमने सभी इंतज़ाम करने के लिये कह दिया है"
"आपका बहुत-बहुत शुक्रिया"
राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने पास बुलाते हुए उनसे पूछा, "हमारा एक सवाल है और हम उम्मीद रखते हैं कि आप हमें सही-सही जवाब देंगी”
गौहर बेगम ने कहा, “जी पूछिए हुकुम”
राजा साहब यह सोचते हुए कि अभी पूछना ठीक होगा है या नहीं आख़िर में गौहर बेग़म से बोले, "बेग़म बड़ी ईमानदारी से बताइये कि क्या कुँवर सबा को चाहने लगे हैं?"
"मैं तो डर ही गई थी पता नहीं आप क्या पूछने वाले है? अगर मैं कहूँ जी नहीं तो आप क्या कहेंगे?"
"हम कुँवर को क्या कह सकते हैं जब हम ख़ुद तीन तीन बेग़मों के साथ रहते हैं। हमारे दिल में मज़हब का कोई ख़्याल नहीं है तो हम बस ये जानना चाहते हैं कि उनके बीच कुछ है या नहीं?
"मुझे आपसे यही उम्मीद थी। अब अगर आप चाहते हैं कि हम सबा को रोक दें तो हम आपकी इस ख़्वाहिश को हुक्म मानकर अंजाम तक पहुँचा देंगे"
"नहीं बेग़म हम अपने कुँवर के ख़िलाफ़ कोई भी साजिश नहीं करना चाहते हैं, बस यह चाहते थे कि ये अभी बस ज़माने की निग़ाह से बच कर रहें, ख़ासतौर पर तब जबकि अभी इलेक्शन होने वाले हैं हम तब तक बस यह चाहते हैं कि कहीं कोई इसे मुद्दा न बना दे"
"मैं आपसे इन मुआमलों में इत्तफ़ाक़ रखती हूँ और आप चिंता न करें, मैं सब सँभाल लूँगी और वैसे भी अब कुछ ही दिनों में इनके कॉलेज खुलने वाले हैं। ये लोग यहीं से दिल्ली को रवाना हो जायेंगी, बस आपा कुछ दिन और रहेंगी"
"अरे बेग़म वे तो हमारी मुअज़्ज़िज़ मेहमान हैं वे यहाँ रहेंगी तो यह तो हमारी शान में चार चाँद लगने वाली बात है"
गौहर बेग़म ने उठते हुए राजा साहब से पूछा, "आपकी मेहमानदारी की दुनिया यूँ ही मिसाल देती है। आप अपने मेहमानों की खातिरदारी में कुछ भी कसर नहीं छोड़ते"
"बेग़म आपका बहुत बहुत शुक्रिया”
"हुकुम कुछ पीजियेगा?"
"नहीं बेग़म मन नहीं है। चलिये अभी कुछ देर हम शौक़त बेग़म के साथ गुफ़्तगू करना चाहेंगे, आज वह वैसे भी अकेली हैं। सबा तो शिखा के साथ है"
"जी बेहतर है।आइये मैं उन्हें ऊपर वाली अटारी पर बुला भेजती हूँ, हम लोग वहीं बैठ कर खाना खाएँगे”
"शायद यही बेहतर रहेगा"
इसके बाद राजा साहब और गौहर बेग़म ऊपर अटारी पर चले गए। ख़ानम बेग़म से ख़बर करा कर शौक़त बेग़म को भी उन्होंने वहीं बुलवा लिया। थोड़ी ही देर में शौक़त बेग़म भी तैयार होकर आ गईं। बातचीत का दौर जब चल निकला तो बेग़म शौक़त ने ऐश महल की तारीफ़ में न जाने क्या क्या कह दिया कि राजा साहब का दिल बाग़बाग़ हो गया और उनके मुँह से निकल पड़ा, "ऐश महल हमारे पितामह ने मेहमानों की ख़िदमत के लिये गंगा किनारे इसलिए बनवाया था कि जब वे लोग यहाँ आएँ तो उन्हें कांकर की मेहमानदारी ता ज़िन्दगी याद रहे। उनके दोस्त अक़्सर यहाँ आते और रात भर नाच, गाना और खानापीना होता। जिले का हर अफ़सर इस महल में ही आकर रुकता था। यहाँ तक कि जब देश का स्वतंत्रता संग्राम चल रहा था तब भी बड़े बड़े नेता यहाँ आकर रुके थे। इस तरह हमारा कांकर भले ही एक गाँव हो पर मेहमानदारी के लिये दुनिया भर में जाना जाता है। एक बार तो यहाँ शाम की दावत में यूनाइटेड प्रोविंस के लाट साहब भी आकर रुके थे"
तीनों लोगों ने मिलजुल कर खाना खाया। खाना खाते वक़्त भी शौक़त बेग़म, राजा साहब ने पुराने वक्त के और भी कई किस्से कहानियां याद कीं। आज तो राजा साहब इतने खुश थे कि उन्होंने अपनी विदेश यात्राओं के कई दिलचस्प वाक़्यात सुनाये जो पहले कभी भी गौहर बेग़म ने भी नहीं सुने थे।
गौहर बेग़म से जब नहीं रहा गया तो आखिर में वह बोल ही पड़ीं, "आशिक़ाना मिज़ाज़ तो आपका शुरू से ही रहा है, यह हम तीनों बेगमात को बहुत अच्छी तरह मालूम है पर आज आपसे जाना कि आपने दूसरे मुल्क के दौरों पर भी खूब गुल खिलाये हैं"
राजा चंद्रचूड़ सिंह भी आज बहुत खुश थे और इसी अंदाज़ में बेग़म से बोले, "बेग़म यह जिंदगी अल्लाहताला एक बार ही बख्शता है। यहाँ आकर हँस लो या रो लो वह आपके खुद के ऊपर है"
कथांश:28
अगले दिन तयशुदा प्रोग्राम के हिसाब से सभी लोग चार हाथियों पर सवार हो कर दो मील दूर अमराई तक आये जहाँ मुखिया जी ने पहले ही पूरा इंतज़ाम कर रखा था। तीन बड़ेबड़े शिकार वाले टेंट लगे हुए थे, एक तरफ खाना बनाने वालों के लिए इंतज़ाम था। रात को हल्की सी बारिश हुई थी इसलिये मौसम भी सुहाना हो गया था, सही मायने में पिकनिक करने के लिए यह बड़ा माक़ूल दिन था।
एक टेंट में महारानी, रानी, गौहर और शौक़त बेग़म थीं तो दूसरे टेंट में शिखा और सबा के साथ कुँवर थे। वहाँ पँहुचते ही सबको ठंडा पानी पिलवाया गया और उसके बाद एक-कप चाय। बाद में वे सभी बाग़ में घूमने निकल पड़े। अमराई मीठे-मीठे दशहरी आमों से लदी पड़ीं थी। सबा के लिये ज़िंदगी का यह पहला मौका था तो उसे सबसे ज्यादा मज़ा आ रहा था। वह चिड़ियों की तरह कभी इधर फुदकती तो कभी दूसरी ओर। उसने हाथों से डाल के पके-पके आम तोड़े जो वह बाद में खाना चाह रही थी। कुँवर ने जब उसे ये करते देखा तो बोले, “सबा, देखना पके-पके आम ही तोड़ना, कच्चे-कच्चे आम की चैंप गाल पर लग गई तो घाव हो जायेगा”
सबा ने भी इसी तरह के हल्के फुल्के माहौल को देखते हुए कुँवर से कहा, "हमारे चेहरे की जिसको इतनी चिंता है तो आप हमारी मदद क्यों नहीं करते?”
"तुम हटो मैं किसी को बोलता हूँ वह आम तोड़ कर ठंडे पानी में भिगो के रखेगा। जब खाओगी तो अच्छा लगेगा” कुँवर ने सबा से कहा और एक सेवादार से आम तुड़वाने के लिये कह दिया।
जब सबा बाग़ के भीतरी हिस्से में पहुँची तो उसे तीन चार बटेर दिख गईं फिर क्या था वह उनको पकड़ने के लिये ऐसे भागी जैसे कि कोई बच्ची हो। शौक़त बेग़म जो उसे दूर से निहार रहीं थीं उसे इन हरकतों को करते इतना अच्छा लग रहा था कि उनकी आंखों से खुशी के दो आँसू निकल आये और उनके मुँह से बरबस ही निकल गया, "आजतक मैंने अपनी बच्ची को कभी इतना खुश नहीं देखा। अल्लाह ये खुशियाँ उसके दामन में जी भर के डाल देना"
महारानी जो शौक़त बेग़म के साथ थीं उनकी यह हालत देखकर बोल उठीं, "बेग़म आपकी बेटी बहुत भोली है उसमें वह अल्लहड़पन है जो हमने कभी अपने बचपन में महसूस किया था। भगवान उसे हमेशा खुश रखे, यही हमारी दुआ है"
रानी शारदा देवी ने भी कुछ इसी तरह के अल्फ़ाज़ सबा की शान में कहे जिन्हें सुनकर दोनों बहनें शौक़त और गौहर बेग़म बहुत खुश हुईं। कुछ देर इधर-उधर घूम कर सभी झूला झूलने चली गईं।
सबा शिखा के साथ थी जब कुँवर ने अपनी राइफल से दो उड़ती हुई चिड़ियों को मार गिरा कर सबा को यह दिखा दिया कि वह एक बहुत बढ़िया निशाने बाज़ भी हैं। जब कुछ देर बाद एक सेवक उन दोनों सोनापतारियों को उठाकर लाया तो सबा को एक मौका मिल गया कुँवर की खिंचाई करने का और वह बोल पड़ी, "वाह-वाह क्या निशाना मारा है जवाब नहीं, इन आँखों के हम भी तो इसी तरह शिकार हो गए थे पर हमको तो किसी ने नहीं सहलाया था"
कुँवर अपने को जब नहीं रोक पाए तो बोल उठे, "सबा ऐसा कुछ नहीं है जब उस दिन पंचमढ़ी में तुम मेरे सीने से आ चिपकी थीं तो तुम्हें किसने सँभाला था"
"आपने और किसने"
"तो झूठ तो न बोला करो"
शिखा जो थोड़ी दूर पर थी पर दोनों के बीच हुई बातचीत सुन पा रही थी ताली बजाते हुए बोली, "मान गए, भाई मान गए। सबा तू एक ज़िंदगी और खुदा से माँग के जियेगी तब भी मेरे भइया की बराबरी न हो पायेगी"
शिखा की बात का कोई जवाब सबा के पास था ही नहीं बस इसके अलावा कि वह कुँवर के सीने से जा लगी। कुँवर ने उसे धीरे से सँभाला और वे लोग टेंट में लौट आये जहाँ राजा साहब भी आ गए थे और इन्हीं लोगों का इंतज़ार कर रहे थे।
मुखिया जी ने राजा साहब से पूछ कर सबके लिये खाना परसवाया जो सभी ने बड़े चाव से खाया। बाद में देशी घी में बना मूँग का हलवा परोसा गया।
एक सुहाना दिन राज परिवार के साथ बिता कर शाम होने के साथ शौक़त बेग़म और सबा ऐश महल लौट आए।
कथांश:29
गर्मियों के दिन थे इसलिये चुनाव प्रचार सुबह के समय ठंडे-ठंडे वातावरण में ठीक प्रकार से हो जाता था इसलिये राजा साहब और कुँवर दोनों अपने निश्चित प्रोग्राम के हिसाब से महल से जल्दी ही निकल जाते थे। दूसरी पार्टियों के लोग परेशान थे कि राजा साहब और कुँवर इतनी मेहनत करेंगे तो उनको हराना मुश्किल ही नहीं असंभव हो जाएगा। चूँकि किसी दूसरी पार्टी ने अपने पत्ते नहीं खोले थे इसलिये उनके पास सिर्फ़ देखने भर के अलावा और कोई चारा भी न था।
कुछ दिन गुजर जाने के बाद जब जुलाई में स्कूल कॉलेज खुलने लगे तो एक शाम कुँवर ने ऐश महल के पीछे वाले प्लेटफॉर्म पर ताजा-ताजा पकड़ी गई मछली और कुछ अन्य पकवान के साथ खाने का प्रोग्राम बनाया। उन्होंने सुबह ही मुखिया जी को सब इंतज़ाम करने के लिए कह दिया था।
सूरज डूबने के एक घंटे पहले ही कुँवर तैयार हो कर शिखा और सबा के साथ ऐश महल पहुँच गए। महल के गलियारे के रास्ते होते हुए वे पीछे जाने वाली सीढ़ियों से गंगा के किनारे आ पहुँचे। मुखिया जी ने अपनी ओर से वहाँ एक मोटर बोट पहले ही से लगवा दी थी जिससे कि अगर मेहमानों का मन करे तो वे लोग बोटिंग का भी मज़ा लें। नाव को देखते ही कुँवर बड़े ख़ुश हुए और उन्होंने मुखिया जी से कहा, "मुखिया जी महल में ऊपर मौसीजी और छोटी मौसी को खबर करा दीजिये कि हम लोग यहाँ उनका इंतज़ार कर रहे हैं"
कुछ देर बाद वहाँ शौक़त और गौहर बेग़म आ गईं। सबको बोट में बिठा कर कुँवर नदी में बहुत दूर तक चले गए। गंगा नदी का विशाल पाट और उस पर डूबते हुए सूरज की किरणें पानी की सतह पर जगमग करती हुईं अठखेलियाँ कर रहीं थी। गंगा नदी के दूसरे पाट पर दूर तक लगी हुई जंगली खरपतवार के बीच डूबते हुए सूरज का दृश्य अपने आप मे अनोखा था।
बहुत देर गंगा नदी में बोटिंग का मज़ा लेने के बाद जब बोट को एक जगह लाकर कुँवर ने खड़ा कर दिया और सबा से पूछा, "सबा बताओ कि तुम्हें हमारे कांकर में बोटिंग में उतना ही मज़ा आया जितना कि तुम्हें भोपाल के बड़े ताल में आता है"
कांकर कांकर है और भोपाल भोपाल है, दोनों का कोई मुकाबला ही न", बावजूद इसके, कांकर का अपना ही लुत्फ़ है” सबा ने जवाब देते हुए कहा।
शौक़त बेग़म को लगा कि सबा ने जो जवाब दिया वह अखलाखन ठीक नहीं था इसलिये वह बोल पड़ी, "कुँवर बहते हुए पानी मे बोटिंग का अपना ही मज़ा है। जो मज़ा यहाँ है वह भोपाल के बड़े तालाब में कहाँ"
इस पर शिखा बोली, "मौसी कांकर में सिवाय इस गंगा नदी और महलों के अलावा और है ही क्या? मैं तो यहाँ कुछ दिनों में ही बोर होने लगती हूँ"
"बेटी तुम अभी सुकून भरी जिंदगी की अहमियत नहीं समझती है, इसलिए तुझे शहरी ज़िंदगी की चटक मटक अच्छी लगती है। पूछना ही है तो हमारे दिल से पूछो कि यहाँ क्या रखा है?” अबकी बार बीच में शिखा को टोकते हुए गौहर बेग़म बोल पड़ीं।
सबा ने गौहर बेग़म की बात पर अपनी ओर से कहा, "जब इंसान की ज़िंदगी में मोहब्बत बेहिसाब हो तो जंगल भी मंगल लगता है पर जब ज़िंदगी में और कुछ न हो करने के लिये तो ऐसी जगह काटने को दौड़ती है”
शिखा ने सबा का हाथ दबाते हुए कहा, "तुझे तो यहाँ फिर बड़ा मज़ा आया होगा"
"वह तो है मैंने यहाँ आकर अपना एक-एक पल जिया है और राजसी ठाठ बाट भरी जिंदगी जी है। मुझे तो यहाँ आकर बड़ा अच्छा लगा” सबा ने कहा।
"अगर यह बात है तो सबा तुम तैयार हो जाओ तुम्हें और शिखा को अपने साथ कम से कम आठ दस लड़कियाँ और लानी हैं” कुँवर बोले।
सबा ने बीच में ही में उनकी बात काटते हुए कहा, "क्या एक से मन नहीं भरा जो दस-बीस और चाहिए?"
"हठ पगली कहीं की, मैं इसलिये कह रहा था जब कुछ लोग डी यू के रहेंगे तो इलेक्शन में यहाँ के युवा वर्ग से अच्छा संपर्क बनाया जा सकेगा"
"ऐसी बात है तो फिर तो मैं अपने साथ नौ-दस नहीं बीस-तीस लेकर आऊँगी। कुँवर उनके यहाँ रहने और खाने पीने का इंतज़ाम तो हो जाएगा न"
"तुझे यहाँ खाने पीने को कुछ नहीं मिल रहा है क्या?"
"नहीं मैंने तो यहाँ खूब ऐश किया है"
इस पर बोट को ऐश महल की ओर मोड़ते हुए कुँवर ने कहा, "सबा देखो हमारा ऐश महल कितना लाजवाब लगता है"
सबा ने ऐश महल की खूबसूरती निहारते हुए और अपनी खाला जान की ओर देखते हुए कहा, "इस महल में रहने वाली शख्शियत भी तो बेमिसाल हुस्न की मलिका जो है"
"वह हमारी सबसे खूबसूरत मौसी जी जो हैं” कुंवर और शिखा के मुंह से एक साथ जो निकला जिसे सुन कर गौहर बेग़म बोल पड़ीं, “मुझे अपनि बेटी और बेटे पर नाज़ है”
कुछ देर में बोट महल के पिछवाड़े आ गई और सब लोग उतर कर वहाँ पड़ी कुर्सियों पर आराम से बैठ गए। उसके बाद ऐश महल के बावरची ने उनके लिये एक से बढ़ कर एक लज़ीज़ डिश पेश की।
कुँवर और शिखा ने मिलकर सबा की खूब खिंचाई की। दो दिन बाद सबा और शिखा दिल्ली चली गईं क्योंकि उनके कॉलेज खुल गए थे।
कथांश:30
वक़्त धीरे-धीरे गुज़रने लगा। कॉलेज खुलने के साथ ही शिखा और सबा
दिल्ली चली गईं और कुँवर ने अपने क्षेत्र में पकड़ बनाना शुरू कर दिया। मौसम के
बदलाव ने जन संपर्क के काम में कुछ व्यवधान डाला पर बारिशों के समाप्त होते ही
राजा साहब और कुँवर ने अपने प्रयास दोगुने कर दिये।
एक दिन मुखिया जी ने राजा साहब से बातचीत कर शारदीय दुर्गा नवरात्रि के आयोजन
के बारे में बात की तो राजा साहब ने कहा, "बिल्कुल मुखिया जी अवश्य ही यह कार्यक्रम होना चाहिए। आप
शास्त्री जी से पूछ कर अवधूत आश्रम के मण्डलाधीश को निमंत्रित करिए और अबकी बार
होने वाले बिरादरी भोज की तैयारी में कुँवर को भी शामिल करिए जिससे कोई भी मेहमान
छूटने न पाए। एक बात और मुखिया जी कि खजूरगाँव वालों को भी निमंत्रण
अवश्य-अवश्य जाना चाहिए”
"जी महाराज"
'सूर्य महल' में शारदीय दुर्गा पूजन की भव्य तैयारी की गई। महल के प्रांगण में हर वर्ष की
भाँति इस वर्ष भी पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग बैठने की व्यवस्था मुखिया जी
के द्वारा की गई थी। कुंवर ने पूरी व्यवस्था का स्वयं अवलोकन किया और जब उन्हें सब
ठीक-ठाक लगा तभी वे मुखिया जी के साथ महल में वापस चले गए।
नव दुर्गा के प्रथम दिवस पर सबसे पहले रियासत के पुजारी शास्त्री जी का प्रवचन
हुआ जिसमें उन्होंने इस वर्ष होने वाले आयोजन का विस्तार में वर्णन किया और कांकर
राज परिवार की भगवान राम में अपार श्रद्धा का भी खूब बखान किया। शास्त्री जी यह
बताना नहीं भूले कि भगवान राम, माता सीता और उनके अनुज लक्ष्मण कांकर से कुछ ही दूर गंगा घाट पर पधारे थे
इसलिये भी वे हमारे कांकर क्षेत्र में बहुत आदर और सम्मान के साथ पूजे जाते हैं।
श्रीराम शृंगवेरपुर पहुँचे, जो निषादराज गुह का राज्य था। यहीं पर गंगा के तट पर उन्होंने केवट से गंगा
पार कराने को कहा था।
इलाहाबाद से 22 मील उत्तर-पश्चिम की ओर स्थित 'सिंगरौर' नामक स्थान ही प्राचीन समय में शृंगवेरपुर नाम से जाना जाता था। रामायण में इस
नगर का उल्लेख आता है। यह नगर गंगा घाटी के तट पर स्थित था। महाभारत में इसे 'तीर्थस्थल' कहा गया है।
इलाहाबाद जिले में ही कुरई नामक एक स्थान है, जो सिंगरौर के निकट गंगा नदी के दूसरे तट पर स्थित है। गंगा
के उस पार सिंगरौर तो इस पार कुरई। सिंगरौर में गंगा पार करने के पश्चात श्रीराम
इसी स्थान पर उतरे थे।
कुरई ग्राम में एक छोटा सा मंदिर है, जो स्थानीय लोकश्रुति के अनुसार उसी स्थान पर है, जहाँ गंगा को पार करने के पश्चात राम, लक्ष्मण और सीता जी ने कुछ देर विश्राम किया था।
चित्रकूट के घाट पर कुरई से आगे चलकर श्रीराम अपने
भाई लक्ष्मण और पत्नी सहित प्रयाग पहुँचे थे। प्रयाग को वर्तमान में इलाहाबाद कहा
जाता है। यहाँ गंगाजमुना का संगम स्थल है-। हिन्दुओं का यह सबसे बड़ा तीर्थस्थान
है। प्रभु श्रीराम ने संगम के समीप यमुना नदी को पार किया और फिर अपनी वन यात्रा
के अगले पड़ाव चित्रकूट पहुँच गए।
शास्त्री जी ने राम कथा को बहुत ही मार्मिक ढंग से इस क्षेत्र के साथ जोड़कर जो
वर्णन किया वह सभी भक्तगणों के मन को बहुत भा गया।
तदोपरांत हरिद्वार से आये हुए अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर का प्रवचन हुआ
जिसमें उन्होंने आने वाले नौ दिवस की महत्ता और मंत्र इत्यादि के बारे में बताते
हुए कहा:
“नवदुर्गा हिन्दू धर्म में माता दुर्गा अथवा पार्वती
के नौ रूपों को एक साथ कहा जाता है। इन नवों दुर्गा को पापों की विनाशिनी कहा जाता
है, हर देवी के अलग-अलग वहां हैं, अष्ट्र शस्त्र हैं परंतु ये सब एक हैं और उनका मुख्य उद्देश्य इस धरा पर न्याय
और शांति का पथ प्रशस्त हो यही उनकी मनो कामना रहती है।“
महामंडलेश्वर ने लगातार नौ दिनों तक अपने धरावाह
प्रवचन से कांकर के क्षेत्र को लोगों को बांधे रखा और विजयादशमी के दिन उन्होंने
राज परिवार के लोगों को आशीर्वाद देकर इस वर्ष के शारदीय दुर्गा पूजा कार्यक्रमों
को समापन किया। राज परिवार के कुल
पुरोहित शास्त्री जी ने हर साल की तरह इस साल भी राजपरिवार के
अस्त्र-शस्त्र का विधवत पूजन कराया और उसके बाद राजा साहब और कुँवर को आशीर्वाद
दिया।
सांध्यकाल में सूर्य महल के प्रांगण में बिरादरी भोज का आयोजन हुआ और उसमें
खजूरगाँव और कांकर रियासत के पुराने जानेमाने लोग और आसपास के इलाके के जानेमाने
राजपूत और राजा रजवाड़े भी कांकर राजपरिवार के सदस्यों के साथ शरीक़ हुए। सभी ने एक मत हो कुँवर के चुनाव
में उनकी विजय की कामना करते हुए उन्हें विजयी बनाने के लिए काम करने का वचन भी
दिया।
कथांश:31
दशहरे के बाद राजा साहब ने लोगों से मिलना जुलना और बढ़ा दिया। कुँवर ने इस बीच
सभी लोगों से संपर्क साध कर अपने चुनाव की तैयारी में एक कदम और आगे बढ़ाया।
दीपावली त्योहार के साथ ही भारत के पूरब में राजनीतिक उठापटक शुरू हो गई। भारत
सरकार भी अपनी रणनीति बनाने में जुट गई। एक दिन सेना प्रमुखों की मीटिंग सरकार के
शीर्षस्थ लोगों के साथ हुई जिसमें प्रधानमंत्री के ये पूछे जाने पर कि क्या हमारी
सेना किसी भी विपरीत से विपरीत परिस्थितियों में अपना काम करने के लिए तैयार है।
तो उस समय के सेना अध्यक्ष ने उत्तर दिया, "हम सदैव तैयार रहते हैं और हर उस काम को अंजाम देने के लिये
तैयार हैं जो काम को करने के लिये सरकार इज़ाज़त देगी"
इधर अन्तराष्ट्रीय मंच पर गतिविधियां अचानक तेज होने लगीं। पूर्वी पाकिस्तान
में बंगला देश के निवासियों ने मुक्तवाहिनी की रचना कर अपनी स्वतंत्रता का बिगुल
फूँक दिया। पूर्वी पाकिस्तान के जनमानस में वहाँ के हुक्मरानों के प्रति घोर
विद्रोह की ज्वाला धधक रही थी। सुअवसर देख कर वहाँ की प्रजा ने एक साथ मिलकर अपनी
स्वतंत्रता के लिए जोरदार संघर्ष छेड़ दिया।
जब पाकिस्तान ने भारत के ऊपर बंगला देश की मदद का आक्षेप लगाते हुए हवाई हमला
किया जिसमें आठ भारतीय हवाई अड्डों को यहाँ तक कि आगरा और दिल्ली के साथ बॉर्डर के
पास वाले हवाई अड्डों को नुकसान पहुँचाने के इरादे से निशाना बनाया तो भारत की
सेनाओं ने मुँहतोड़ जबाब दिया। बदले की कार्रवाई में भारतीय सेना पूर्वी पाकिस्तान
के भीतर तक घुसती गई और पूर्वी पाकिस्तान के लोगों को पाकिस्तानी अत्याचार से
मुक्त कराया। बंग बन्धु शेख मुजीबुर्रहमान जो कि उस समय पश्चिमी पाकिस्तान की एक
जेल में क़ैद में थे उनकी रहनुमाई में बंगला देश के लोगों ने एक नए देश के निर्माण
में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
पूर्वी पाकिस्तान का वजूद दुनिया के नक्शे से ख़त्म हो गया। पाकिस्तान की फ़ौज
के 90 हज़ार फौजियों ने हिंदुस्तानी फौज के सामने घुटने टेक दिए और उन्हें बंदी बना
कर देश के कई हिस्सों में रखा गया।
इस अभूतपूर्व विजयश्री के प्राप्त होने के उपरांत कांग्रेस दल की संसदीय समिति की
मीटिंग संयुक्त रूप से यह निर्णय हुआ कि जो चुनाव मार्च,
1972 में होने हैं उस सामान्य चुनाव को मार्च,
1971 में ही करा लिया जाए।
देश में राजनीतिक गतिविधियाँ अचानक तेज हो गईं। दिल्ली में एक मीटिंग के
बाद चुनाव में कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों की सूची जारी होते
ही राजनीतिक माहौल गरमा गया और कुँवर अनिरुद्ध सिंह के चुनाव लड़ने की आधिकारिक
घोषणा कांग्रेस हेड क्वार्टर से कर दी गई।
दिन भर तो राजा साहब और कुँवर अपने चुनाव प्रचार में लगे रहते और देर रात जब
थके हारे कांकर लौटते उसके बाबजूद अगले दिन की तैयारी करते। मुखिया जी और कांकर
राजमहल केअन्य पदाधिकारियों से देर रात तक मीटिंग करते।
एक रात जब राजा साहब रानी साहिबा के साथ सूर्य महल में थे तो कुँवर गौहर बेग़म
से अपने दिल की बात कहने के लिये आ पहुँचे।
गौहर बेग़म ने अनिरुद्ध से पूछा, "कुँवर मुझे साफ-साफ बताना क्या तुम सबा को चाहने लगे हो?”
अनिरुद्ध कुछ नहीं बोले तो गौहर बेग़म ने फिर पूछा, "कुँवर अगर तुम कहोगे तो मैं खुद भोपाल या दिल्ली जाकर सबा
को अपने साथ लेकर आऊँगी पर पहले तुम अपना मन पक्का कर लो। सबा को लेकर तुम क्यों
परेशान हो रहे हो, पहले मुझे पता तो लगे कि ऐसा क्या है सबा में जिसके लिये मेरा कुँवर इतना
परेशान हो रहा है"
अब अनिरुद्ध के पास कोई रास्ता नहीं बचा तो उन्हें यह बताना ही पड़ा कि वह सबा
को चाहने लगे हैं। इस पर गौहर बेग़म ने उस बात का ज़िक्र किया जो एक बार राजा साहब
ने उनसे दिल्ली में कांग्रेस के दफ्तर में हुई पहली मीटिंग में, जिसमें राजा
साहब को ही चुनाव लड़ाने की बात हुई थी, उस वक़्त राजा साहब ने उनसे कहा था, "गौहर बेग़म जब अचानक आज मेरे सामने ये सवाल आ खड़ा हुआ तो मुझे सोचने का मौका ही
न मिला पर मेरे दिल में एक बात बैठ गई और उसे लेकर मैंने कुँवर को ही सीट देने की
बात कही थी"
अनिरुद्ध ने पूछा, "वह
कौनसी बात थी मौसीजी?”
"बेटा उन्होंने तब यह कहा था कि समाज में उनका मान सम्मान है
अच्छी बात है पर राजनीति बहुत गंदी चीज होती है और वे जानते थे कि अगर वह चुनाव
लड़ने का फैसला लेते तो तमाम धार्मिक उन्माद से ग्रसित संगठन और पार्टियां मेरे और उनके संबधों को लेकर राजा साहब
का नाम सड़क पर उछालते इसलिये उन्होंने तुम्हरा नाम वहाँ टिकट के लिये चला दिया। अब
तुम सोचो जब लोगों को तुम्हारे और सबा के बीच मोहब्बत की बात पता चलेगी तो कितनी
छीछालेदर होगी उसे तुम ही समझ सकते हो"
"मौसी यह तो कोई बात नहीं कि लोगों से डर कर हम किसी से
प्यार करना ही छोड़ दें"
"बेटा मैं नहीं कह रही, ये ज़माना कह रहा है। अभी भी यहाँ के लोग हिन्दू-मुस्लिम
समाज के बीच शादी को ठीक नज़र से नहीं देखते हैं"
"मैं अब क्या करूँ?"
"तू कुछ न कर, बस मुझे कुछ वक़्त दे, मैं देखती हूँ कि क्या करना है?"
कथांश:32
एक रात जब राजा साहब ऐश महल में थे तब गौहर बेग़म ने कुँवर की यह इच्छा राजा
साहब पर ज़ाहिर की कि कुँवर ने शिखा से वायदा किया था कि चुनाव प्रचार के आख़िरी दस
दिनों में वह उसे और सबा को और कुछ उनके साथ पढ़ने वाली लड़कियों को बुलवा लेंगे। उन
लोगों ने कुँवर के चुनाव में भाग लेने की बात भी की थी। आपका क्या ख़्याल है?"
राजा साहब ने पल दो पल के लिए कुछ सोचा फिर बाद में बोले,
"चलो बुलवा लेते हैं, हम अपने कुँवर के दिल को नहीं तोड़ना चाहते हैं हालाँकि हमें
एक डर भी है कि चुनावी माहौल में कहीं कोई सबा को लेकर दिक्कत न खड़ी कर दे"
"अगर आप ठीक नहीं समझ रहे हैं तो रहने दीजिए"
"नहीं, नहीं बेग़म हमारे लिए हमारा कुँवर ही सब कुछ है। बस आप यह देखती रहिएगा कि
चुनाव के इस आख़िरी दौर में उसका दिल सबा की चाहत में सब कुछ न भूल बैठे'
"हुकुम उसकी आप चिंता न करें। दिल्ली वाली लड़कियों की टोली
का पूरा मैनेजमेंट मैं अपने हाथ में रखूँगी'
"चलिये हम कल ही कुछ इंतज़ाम करते हैं, शिखा और सबा को बुलवाने का"
दो-तीन दिन बाद दिल्ली से सभी लड़कियाँ एक बड़ी सी बस से कांकर आ गईं। वे सभी ऐश
महल में ही आकर रुकीं। उनके लिये चुनाव प्रचार की पूरी प्लानिंग गौहर बेग़म ने पहले
ही से कर रखी थी। गौहर बेग़म ने लड़कियों के पाँच ग्रुप बनाये जो हर रोज़ अपने अपने
विधान सभा क्षेत्र में चली जातीं और देर रात लौटतीं।
लड़कियों की टोलियों ने दिल लगा कर मेहनत की और विशेष रूप से देहात के इलाक़े
में महिलाओं के बीच जाकर कुँवर का खूब प्रचार किया।
एक दिन रात को जब ऐश महल में कुँवर और गौहर बेग़म के साथ लड़कियों के काम की
रिपोर्ट ले रहे थे तो सबा ने कहा, "खाला जान आप देखेंगी कि हमारे कुँवर बहुत बड़े मार्जिन से जीतेंगे जो अपने आप
में एक रिकॉर्ड होगा"
"तेरे मुँह में घी शक़्कर सबा खुदा करे ऐसा ही हो। आज मैं एलान
करती हूँ कि अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबको दिल्ली आकर एक बहुत धमाकेदार पार्टी दूँगी” गौहर बेग़म ने लड़कियों से वायदा किया।
इस पर सबा ने अपनी ओर से एक सुझाव रखा, "हम लोगों ने अभी तक देहात में बहुत काम किया है। अब हम
चाहते हैं कि चुनाव जब इतना नज़दीक आ गया है तो हमें कस्बों और शहरों में भी काम
करने की ज़रूरत है"
कुँवर ने सबा की इस बात को मानते हुए कहा कि सबा का यह सुझाव मानने योग्य है
और छोटी मौसी आपको इस पर विचार करना
चाहिए। गौहर बेग़म ने सबा से पूछा कि उसका क्या प्लान है। तो सबा ने बताया कि हम सब
जगह साइकल पर चढ़ कर प्रचार करेंगे जिससे यहाँ के युवा और युवतियों को हम लोगों को
देख कर एक अजीब प्रोत्साहन मिलेगा।
गौहर बेग़म ने सभी के लिये साइकल और रंग बिरंगे कपड़ों की व्यवस्था की। इस तरह
दिल्ली की लड़कियां कांकर की गलियों में चुनावी सामग्री बाँटते हुए जगह-जगह दिखने
लगीं।
जब वे सब अगले दिन फिर मिले तो कुँवर ने शिखा और सबा के साथ आए हुए सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि कल रात वाले
प्रोग्राम ने जनता के बीच एक अच्छा मैसेज दिया है कि अगर समाज को प्रगति करनी है
तो युवावर्ग के साथ के बिना कुछ भी कर पाना मुश्क़िल है।
जब कुँवर सबा से अकेले में मिले तो सबा को अपनी बाहों में भरते हुए बोले,
"हमको क्या पता था कि आप इतनी कमाल की चीज हैं। जिन्होंने इस
पिछड़े इलाके में अपने एक आईडिया से धूम मचा दी है"
"हम चीज ही ऐसी हैं। हम सूरमा भोपाली के गाँव के जो हैं। अभी
आपने देखा ही क्या है अभी आगे-आगे क्या होने वाला है उस पर अपनी नज़र बनाये रखिये"
कुँवर ने सबा को अपनी बाँहों में लेते हुए कहा, "हमारी नज़र तो तुम पर लगी रहती है"
"हटिये छोड़िये भी, अपना ध्यान अभी आप अपने चुनाव में ही लगाइए” कह कर सबा कुँवर की बाहों से छिटक कर दूर हो गई।
इसी बीच शिखा भी वहाँ आ गई फिर उन लोगों में इलेक्शन की व्यवस्था में किस तरह
के और सुधार किए जायं उस पर इधर-उधर की बातें होने लगीं।
आखिरकार चुनाव का दिन आ ही गया। राजा साहब का दिमाग़, महारानी का चुनावी प्रचार, रानी शारदा देवी का बूथ मैनेजमेंट, गौहर बेग़म की लड़कियों की पार्टी और जनता के सहयोग से कुँवर
ने अपने चुनाव में भारी मतों से सफलता प्राप्त कर कांकर परिवार और क्षेत्र के
लोगों के दिलों में एक विशिष्ट स्थान बनाया।
कुँवर अनिरुद्ध सिंह अपने पिताश्री राजा चन्द्रचूड़ सिंह जी के साथ मिलकर एक
लंबे समय से तैयारी कर रहे थे और युवा वर्ग का प्रतिनिधत्व कर रहे थे। चुनाव
परिणाम प्राप्त होने पर कुँवर ने अपना चुनाव एक शानदार तरीके से जीता। उनके सभी
विरोधियों की ज़मानत ज़ब्त हो गई, विरोध नाम की कोई चीज बची ही नहीं।
कांग्रेस ने इस लोकसभा के चुनाव में आशातीत सफलता प्राप्त की, यहाँ तक कि
विरोधी राजनीतिक दलों के श्रेष्ठतम नेता भी इस चुनाव में हार गए। मार्च,
1971 में लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस ने आशातीत सफलता प्राप्त
कर सरकार बनाई।
राजनीति में एक नई चेतना दिखाई दी। नव निर्वाचित सदस्यों के बीच जबरदस्त
उत्साह था। कुँवर को भी पार्टी में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई। उनकी
कार्यप्रणाली को देख कर प्रधानमंत्री जी ने उन्हें रेलवे विभाग की पार्लियामेंट्री
कमेटी का सदस्य मनोनीत कर दिया।
जुलाई 1971 में प्रिवी पर्स अबॉलिशन बिल लोकसभा में पारित हुआ और एक
प्रस्ताव के बाद सभी हिदुस्तानी रियासतों के पूर्व राजा, महाराजा, नवाब वग़ैरह के रुतबे समाप्त कर दिए गए।
इधर अनिरुद्ध सिंह ने भी भारत की राजनीति में आये बदलाव को बड़े सहज ढंग से
स्वीकारा। उन्हें जब कोई कुँवर कह कर संबोधित करता तो वह बड़े विनम्र भाव से कहते
कि अब न तो कोई राजा रहा और न कोई महाराजा।अब अपने देश के हर नागरिक को एक समान
अधिकार प्राप्त हैं। राजा चंद्रचूड़ सिंह जी के समर्थक अभी भी उन्हें राजा कह कर
संबोधित करते तो उन्हें भी वह बड़े प्यार और आदर सम्मान के साथ समझाते कि वे अब ऐसा
न करें यह संविधान का अनादर है। सूर्य महल में इस बदलाव को सभी ने स्वीकारा पर
महारानी करुणा देवी ने इसे सहजता से नहीं लिया। तब एक दिन चंद्रचूड़ सिंह ने अनिरुद्ध की उपस्थिति में
उन्हें बहुत समझाया कि हम लोग तो बहुत छोटी रियासत के राजा थे हमसे बहुत बड़े बड़े राजा रजवाड़े तो एक दम आसमान से जमीन पर आ गए हैं। जब कुँवर अनिरुद्ध ने अपनी माँ को बड़े प्यार से समझाया तब
जाकर कहीं उनकी समझ में आया। रानी शारदा देवी ने यह बदलाव बड़ी सहजता से स्वीकार किया। महल के भीतर काम करने
वाले लोगों ने फिर भी यह बात नहीं मानी और चंद्रचूड़ सिंह जी को राजा साहब और
अनिरुद्ध सिंह को कुँवर कह कर ही बुलाते रहे।
जब एक रात चंद्रचूड़ सिंह गौहर बेग़म के पास बैठे थे तो उन्होंने हँसते हुए कहा,
"गौहर बेग़म महारानी और रानी का ओहदा तो एक साधारण व्यक्तियों
जैसा हो गया और लोग उन्हें अब करुणा देवी और शारदा देवी कहते हैं पर आपके रुतबे
में कोई कमी नहीं आई। आप पहले भी बेग़म कहलाती थीं और आज भी बेग़म कहलाती हैं"
गौहर बेग़म ने चद्रचूड़ सिंह से कहा, "हमारा जो भी रुतबा है वह आपसे है जब तक आप हमारे और हम आपके
हैं, हमें हमारे
हुकुम से कोई नहीं छीन सकता है"
चद्रचूड़ सिंह मुस्कुरा भर दिए।
अनिरुद्ध सिंह को अब अक़्सर ही दिल्ली तो कभी लखनऊ रहना पड़ता था। एमपी बनने के
बाद उन्हें दिल्ली में अशोक मार्ग पर बँगला मिला था। अब जब लोकसभा का सेशन चलता तो
वे वहीं रहते। वहीं लोगों से मिलते-जुलते और उनका काम करते।
एक दिन शिखा सबा को साथ लेकर अनिरुद्ध से मिलने उनके बँगले पर जा पहुँची।
कथांश:33
सबा को देखे हुए एक अरसा हो चुका था इसलिये अचानक जब वह इस तरह सामने पड़ गई तो
न जाने कितने ही बीते पलों की यादें कुँवर के दिमाग़ में ताज़ा हो गईं।
शिखा ने पूछा, "भइय्या
जब से आप राजनीति में आये हैं, हम लोगों के लिये तो एक दम बदल ही गये हैं"
"नहीं शिखा, ऐसी बात नहीं पर हाँ जब आप पब्लिक फिगर बन जाते हैं तो आपका समय आपका नहीं
रहता है बंट ज़रूर जाता है। हम जिनके करीब रहना चाहते हैं उन्हीं से हम बहुत दूर हुए जाते हैं” कुँवर ने जवाब दिया पर निगाह सबा की ओर लगी रही।
कुछ देर ही शिखा और सबा अनिरुद्ध के साथ रह पाईं क्योंकि इसी बीच पार्टी हेड
क्वार्टर से फ़ोन आ गया और उन्हें मीटिंग के लिये निकलना पड़ा।
अनिरुद्ध का राजनीति में जिस तरह कद बढ़ रहा था उसे देख लोगों को लगा कि आने
वाले दिनों में वे बहुत कद्दावर नेता होंगे। बीकानेर, किशनगढ़ और रामगढ़ के भी राजपरिवारों के सदस्य लोकसभा का चुनाव
जीत कर आये थे पर उनकी लोकप्रियता इस क़दर न थी जिस तरह की अनिरुद्ध सिंह की।
अनिरुद्ध एक तो साफ दिल और नीयत के युवा नेता थे और उस समाज में जहाँ एक से एक
धूर्त बैठे हों तो ऐसे लोगों की माँग बहुत जल्दी बढ़ जाती है। अनिरुद्ध ने अपने
क्षेत्र में कई जगह आई टी आई खुलवा दिए जिससे वे बच्चे अपने घर रह कर ही विभिन्न
क्षेत्रों में कौशल प्राप्त कर सकें और नौकरी के लिए कहीं बाहर न जाना पड़े।
उन्होंने अपने क्षेत्र में एक ट्रैक्टर मैन्युफैक्चरिंग फैक्ट्री खोलने के लिये भी
प्रयास किए पर प्रस्ताव अभी तक केंद्रीय सरकार के पास लंबित था। केंद्रीय सरकार के
जल विभाग से बात कर अपने क्षेत्र में लिफ्ट इरिगेशन प्रोजेक्ट पर भी काम करने के
लिए कहा जिससे कि गंगा नदी के जल को उन क्षेत्रों तक नहर के माध्यम से पानी की
उपलब्धता सुनिश्चित की जा सके। उन्होंने इस विषय को लेकर लोकसभा में एक दिन पुरजोर
अपील भी की कि अगर यह योजना उनके क्षेत्र में लागू होती है तो इससे उन
किसानों को खेती किसानी के लिये पानी मिल सकेगा जिनके पास अभी तक कोई भी सिंचाई की
व्यवस्था नहीं है और वे लोग बरसाती पानी पर निर्भर हैं। उनके समकक्ष कई सदस्यों
ने इस बात के लिए खुले दिल से उनकी तारीफ़
की और यह पुरजोर अपील भी कि सरकार को उन सब जगहों के लिए लिफ्ट इरिगेशन
प्रोजेक्ट्स कर बारे में सोचना चाहिए जहाँ पानी की उपलब्धता अभी तक सुनिश्चित नहीं
की जा सकी है बाबजूद इसके कि वहाँ नदियों में पानी की कोई कमी नहीं है।
एक बार जब राजा चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुद्ध दिल्ली में साथ-साथ थे तो उन्हें बीकानेर के
पूर्व महाराजा ने एक शाम को अपने बीकानेर हाउस पर डिनर के लिये बुलाया। राजा
चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुद्ध जब वहाँ पहुँचे तो देखा कि महाराजा बीकानेर के
छोटे भाई कुँवर दीप सिंह भी वहाँ उपस्थित थे। सब लोगों ने सौहार्द और प्रेम के
वातावरण में डिनर किया और अंत में बीकानेर के महाराजा ने अपना मंतव्य बताते हुए
राजा साहब से कहा कि वे अपने परिवार के साथ कभी बीकानेर पधारें तो उन्हें बेहद
खुशी होगी। राजा साहब ने मज़ाक में महाराजा बीकानेर से कहा कि उनका कुनबा बहुत बड़ा
है जिसमें तीन-तीन तो रानियां हैं मैं किसको अपने साथ लेकर चलूँ किसे नहीं यह
परेशानी का सबब बन जाता है। महाराजा बीकानेर ने भी हँसते हुए कहा कि वे चिंता न
करें उनकी भी दो रानियाँ हैं इसलिये वे अपनी तीनों रानियों को साथ लेकर बीकानेर
तशरीफ़ लाएं। चन्द्रचूड़ सिंह जी ने पूर्व महाराजा बीकानेर का निमंत्रण सहर्ष
स्वीकार किया और आश्वासन दिया कि वह प्रोग्राम फाइनल कर उन्हें सूचित करेंगे।
इसके बाद राजा साहब चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर अनिरुद्ध बीकानेर हाउस से विदा लेकर अपने यहाँ वापस लौट
आये। रास्ते में उन्होंने अनिरुद्ध से कहा,
"कुँवर मुझे शक़ है कि महाराजा बीकानेर के छोटे भाई की कोई न
कोई लड़की है जिसके सिलसिले में वे हमें बीकानेर बुला रहे हैं" अनिरुद्ध ने उत्तर में कहा, "हो सकता है पर मैं ऐसा नहीं समझता"
इसके बाद बात आई गई हो गई और राजा साहब चन्द्रचूड़ सिंह और कुँवर कांकर वापस आ
गए।
देश की राजनीति में अहम भूमिका मिलने के बाद अनिरुद्ध की अपनी ज़िंदगी के मसायल
कुछ वक़्त के लिए पीछे छूट गए। जब कुछ फ़ुरसत मिली तो एक दिन गौहर बेग़म से कहा,
"मौसी जी सबा को कुछ दिन के लिये कांकर बुलावा लीजिये उससे
मिलने का मन कर रहा है उसे देखे हुए एक अरसा हो चुका है"
कथांश:34
एक बोझ लिये जब राजा साहब ऐश महल आये और उन्होंने अपने मन की बात जब गौहर बेग़म
से की तो गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "राजा साहब आप मर्द हम औरतों का दर्द कभी नहीं समझेंगे और
शायद यही दर्द हम तीनों के बीच एक बहुत बड़ी कड़ी सिद्ध हुआ है कि हम तीनों के बीच
कहीं कोई मनमुटाव या रंजिश का भाव नहीं है। आपने जिसको ठीक समझा उसको उतना समय
दिया। जितना हमारी क़िस्मत में था उतना साथ मिला और हमने इसे अपने कर्मों का
भाग्यफल मान कर जिया। मैं महारानी की बात से इत्तेफ़ाक़ रखती हूँ और आपसे यह गुज़ारिश
करती हूँ कि आप कुँवर की शादी में किसी भी तरह की जल्दबाज़ी न करें और जो महारानी
ने कहा है उसका पालन करें। राजा साहब एक वचन आप हमें भी दीजिये कि हमसे बगैर बात
किये आप कुँवर की शादी कहीं भी तय नहीं करेंगे"
राजा साहब आज अपने आपको बड़ी दुविधा में पा रहे थे कि एक बेटे पर उसकी तीन-तीन
माँ अपना-अपना हक़ जता रहीं थी और वह यह समझ नहीं पा रहे थे कि वे क्या करें, किसकी सुनें
किसकी न सुनें? आखिर में राजा साहब ने गौहर बेग़म से पूछ ही लिया,
"बेग़म हम वचनबद्ध होने के पहले यह जानना चाहेंगे कि कुँवर के
लिये आप क्या सोच रखती हैं?"
गौहर बेग़म ने हँसते हुए कहा, "हुकम मैं कैकयी नहीं बनूँगी, मैं कुँवर को उतना ही प्यार करती हूँ जितना महारानी। मेरा प्यार निश्छल है।
कुँवर भी मुझे उतना ही प्यार करते हैं जितना कि महारानी से। मेरा प्यार कुँवर के
लिए शायद महारानी से कुछ अधिक नहीं तो कुछ कम भी नहीं"
"मुझे यह जानकर बेहद खुशी हो रही है कि कुँवर सबकी आँखों के
तारे हैं पर फिर भी"
".....फिर भी क्या महाराज? कुँवर जितने मेरे दिल के करीब हैं उतने तो वह आपके भी नहीं।
जितना कुँवर को मैं जानती हूँ उतना तो आप या शायद महारानी भी नहीं जानती हैं।
लिहाज़ा आप मेरी शर्त मान लीजिये"
"पहले आप अपने दिल का राज़ ज़ाहिर करिए उसी के बाद हम आपकी
शर्त मानेंगे”
"चलिये तय रहा तो मिलाइये हाथ और आपका ये वायदा रहा कि कुँवर
की शादी आप वहीं करेंगे जहाँ मैं कहूँगी"
"वादा रहा, एक राजपूत का वादा बेग़म"
"चलिये अब आप अपने दिल का राज़ खोल ही दीजिए” गौहर बेग़म की आँखों में ऑंखें डाल कर पूछ ही लिया ।
"बता देंगे, ज़रूर बता देंगे। ठीक मौका तो आने दीजिये। अभी नही...”
"चलिये जैसी आपकी मर्ज़ी” कह कर राजा साहब ने बेग़म गौहर की ओर देखते हुए कहा, "बेग़म इधर एक अरसे से आपने कुछ सुनाया नहीं, आज कुछ ऐसा
सुना दीजिये जिससे मन खुश हो जाए''
"जो हुक़्म मेरे हुकुम का” कह कर गौहर बेग़म ने अपने दिल में उठते हुए गुब्बार को यूँ
हवा दी:
जब भी
किसी ने ख़ुद को सदा दी
सन्नाटों में आग लगा दी
सन्नाटों में आग लगा दी
मिट्टी
उसकी पानी उसका
जैसी चाही शक्ल बना दी
जैसी चाही शक्ल बना दी
छोटा
लगता था अफ़्साना
मैंने तेरी बात बढ़ा दी
मैंने तेरी बात बढ़ा दी
जब भी
सोचा उसका चेहरा
अपनी ही तस्वीर बना दी
अपनी ही तस्वीर बना दी
तुझको
तुझमें ढूँढ के हमने
दुनिया में तेरी शान बढ़ा दी
दुनिया में तेरी शान बढ़ा दी
कथांश:35
राजा साहब ने भी गौहर बेग़म से कौल ले लिया कि इस मसले पर वह किसी और से कोई
बात नहीं करेंगी। गौहर बेग़म ने भी यही कहा कि सिवाय कुँवर के।
इस बात से आश्वस्त हो राजा साहब ऐश महल से सूर्य महल आये और जो सवाल उनके मन
में अहम बन चुका था वह था अपने कुँवर और शिखा की शादी। तो उन्होंने अपने मन की बात
अपनी प्रिय रानी शारदा देवी से की, "रानी साहिबा हम सोचते हैं कि हमें एक दिन लखनऊ चल कर राजा साहब माणिकपुर से
शिखा बेटी के संबंध को लेकर बात आगे बढ़ानी चाहिए"
रानी शारदा देवी ने कहा, "आपने मेरे मुँह की बात छीन ली मैं भी आपसे इसी सिलसिले में बात करना चाह रही
थी"
"आप ही बोलिये कि आपके मन में क्या चल रहा है?"
"यही कि अब हमारे बच्चे बड़े हो रहे हैं और अब इनके विवाह की
बात शुरू करनी चाहिए"
"रानी साहिबा आप तैयार रहिये हो सकता है कि हमको बीकानेर
चलना पड़े"
"बीकानेर में ऐसा क्या महाराज?"
इसके बाद राजा साहब ने रानी साहिबा को दिल्ली वाली बात विस्तार से बताई। इस पर
रानी साहिबा ने कहा, "महाराज
कुँवर की शादी में कोई जल्दबाज़ी करना ठीक न होगा। आप जो भी करें
उसे बहुत ठोक बजा कर देख लें, उसके बाद ही कोई निर्णय लें"
राजा साहब थोड़ा चक्कर में आ गए कि यही बात महारानी और गौहर बेग़म ने भी कही थी।
उन्हें लगा कि कहीं कुछ उनके पीछे-पीछे चल तो नहीं रहा जिसका उनको ज्ञान नहीं है।
वह कुछ कहना चाह रहे थे पर कुँवर की शादी के प्रश्न को टालते हुए वे शिखा की शादी
के बारे में बात करने लगे क्योंकि कल रात ही वे गौहर बेग़म को कौल दे चुके थे कि इस
विषय में वह और किसी से बात नहीं करेंगे। शिखा की शादी की बात करते हुए राजा साहब बोले,
"हम आज ही राजा साहब माणिकपुर से बात कर मीटिंग तय करते हैं"
"जी वही ठीक रहेगा” रानी साहिबा ने भी अपनी
सहमति इस बात के लिए जताई।
राजा साहब ने मानवेन्द्र सिंह, राजा माणिकपुर से बात की और उनको अपने लखनऊ निवास पर अगले दिन शाम को आने का
निमंत्रण भी दे डाला। राजा साहब ने उधर कुँवर को भी दिल्ली में खबर कर दी कि वह भी
लखनऊ पहुँच जाए कल राजा माणिकपुर से कुछ जरूरी बात करनी है।
जब शाम के वक़्त राजा साहब माणिकपुर अपनी रानी रत्ना के साथ पधारे तो दोनों
मित्र खुल कर गले मिले और दिल खोल कर बातचीत की। बातों ही बातों में पता चला कि
कुँवर महेंद्र अगले हफ़्ते ही इंग्लैंड से छुट्टी पर आ रहे हैं। राजा साहब ने इस
मौके का लाभ उठाते हुए पूरे माणिकपुर राजपरिवार को कांकर आने का निमंत्रण दे डाला
जो राजा माणिकपुर ने स्वीकार भी कर लिया। राजा साहब ने अपने दोस्त मानवेन्द्र सिंह
से कहा,
"शिखा बेटी भी अगले हफ़्ते दिल्ली से छुट्टी पर आ रही है, तो यह मौका हम
सभी के लिये ठीक रहेगा"
राजा साहब मानवेन्द्र सिंह ने कुँवर अनिरुद्ध की तरफ बातों का रुख करते हुए
पूछा,
"....और सांसद महोदय आजकल क्या चल रहा है?"
कुँवर ने उत्तर देते हुए कहा, "सरकार ठीक-ठाक काम कर रही है और प्रधानमंत्री जी की निगाह आजकल अवध क्षेत्र के
विकास पर लगी हुई है। शीघ्र ही वह बहुत बड़ी बड़ी परियोजनाओं को लेकर इस इलाके में
तूफ़ानी दौरा होने वाला है”
"अरे यह तो अच्छी बात है अवध बहुत पिछड़ भी गया है इसी बहाने
कुछ काम हो जाये तो ठीक ही है। तुम भी अपने क्षेत्र में कुछ बड़े प्रोजेक्ट्स लगवा
कर अगला इलेक्शन जीतने की तैयारी अभी से शुरू कर डालो” राजा साहब माणिकपुर ने अपने विचार रखते हुए कुँवर से कहा
"मैं भी यही सोच रहा हूँ और इस दिशा में कुछ शुरुआती काम
किया भी है"
फिर दोनों मित्रों के बीच एक लंबी बातचीत हुई। राजा माणिकपुर ने कहा,
"हमारा क्षेत्र भी बहुत पिछड़ा हुआ है देखना कि एक दो
प्रोजेक्ट्स हमारे इलाके में भी लग जाएं तो लोगों को कुछ काम काज मिले। आजकल युवा
वर्ग में काम न होने के कारण बहुत असन्तोष व्याप्त है"
कुँवर ने एक सधे हुए राजनीतिज्ञ की तरह कहा, "अरे महाराज हम क्या कर पाएंगे आप तो स्वयं ही सक्षम हैं"
इस पर राजा माणिकपुर बोले, "हमारा कुँवर चन्द्रचूड़ अब पक्का राजनीतिज्ञ हो गया है अब इसकी शादी-वादी कर दो
नहीं तो ये हाथ से निकल जायेगा और कोई मेमसाहिब ले लाएगा तब तुम परेशान हो जाओगे"
राजा साहब ने भी मज़ाक में कहा, "अरे मानवेन्द्र तुम अपने कुँवर को लेकर अबकी बार कांकर आओ और अगर दोनों बच्चे
तैयार हों तो हम कुँवर महेंद्र को तो कम से कम अपने यहाँ की राजपूतानी लड़की से
बांध कर उनके इंग्लैण्ड से मेम साहिबा लाने से उन्हें रोक सकें"
"हाँ यह बात तो है। अबकी बार हम लोग इसे फाइनल कर ही देंगे” यह कह कर राजा माणिकपुर ने राजा चन्द्रचूड़ सिंह को आश्वस्त
किया।
आज की बातचीत में कुँवर की भूमिका अहम रही और रानी शारदा देवी ने कुँवर की
दिलखोल कर तारीफ की। राजा साहब ने भी यह मानते हुए कहा, "रानी साहिबा यही तो होता है जब बच्चे बड़े होने लगते हैं तो
वे अपने माता-पिता का गौरव बनते हैं"
"कुँवर मेरी आँखों का तारा जो है” कह कर राजा साहब ने रानी शारदा देवी और कुँवर दोनों ही मन
जीत लिया।
कथांश:36
जब कुँवर महेंद्र के कांकर आने का प्रोग्राम तय हो गया तो राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि वे दिल्ली चले जाएं और शिखा और
सबा दोनों को ही अपने साथ
लेते आएं। उन्हें कांकर किस लिये बुलाया जा रहा है इसके बारे में कुछ भी न बताया जाय।
तयशुदा कार्यक्रम केअनुसार जब राजकुमारी शिखा और सबा कांकर पहुँच
गईं तो राजा साहब ने राजा
माणिकपुर से फोन पर बातचीत कर उनको सपरिवार कांकर आने की दावत दी।
कुँवर ने जब देखा कि शिखा और सबा दोनों ही साथ-साथ आये हैं तो
उन्हें लगा कि ये गौहर मौसी का ही किया हुआ काम है तो वह उनसे मिलने ऐश महल जा
पहुँचे। वहाँ उन्हें सबा
दिखाई दी। जब वे दोनों एक दूसरे के सामने आए तो वे इस तरह मिले जैसे कि बरसों के बिछड़े दो दिल मिलते हैं। सबा कुँवर के सीने से इस क़दर
चिपकी कि जैसे वह अब उन्हें
छोड़ेगी ही नहीं। कुँवर ने प्यार से धीरे-धीरे उसे समझाया और उसे बताया कि उन्होंने किस तरह गौहर मौसी को इस मुलाक़ात के लिए पटाया था।
सबा ने अपनी ओर से शिकायत
भरे लहजे में कहा, "आप
दिल्ली में रहते हैं और आपसे यह नहीं होता कि कभी-कभी मिलने ही आ जाया करें"
कुँवर ने सबा को बहुत समझाया, "एमपी बनने के बाद अब उनकी ज़िंदगी निज़ी ज़िंदगी नहीं रह गई है। हर वक़्त लोगों की निगाह उन पर लगी रहती है। कहीं किसी
ने हम दोनों को साथ-साथ देख लिया तो बेमतलब ही बवाल हो जाएगा"
सबा ने डरते हुए पूछा, "इस तरह तो हम कभी भी न मिल सकेंगे"
"मिल तो रहे हैं जैसे यहाँ मिल रहे हैं वैसे ही मिलते रहेंगे"
सबा ने कुँवर के सीने पर थपकी देते हुए कहा,
"ये हमें मंज़ूर नहीं है"
वे लोग एक दूसरे से चिपके हुए थे तभी अचानक गौहर बेग़म वहाँ आ
गईं। दोनों लोग गुनहगार की तरह एक दूसरे से अलग होकर खड़े हो गए। सबा तो मन ही मन बहुत डर रही थी कि आपा उसे कहीं एक आध थप्पड़ ही रसीद न
कर दें पर ऐसा कुछ जब न हुआ तो वह ताज़्जुब करने लगी और लड़खड़ाती जुबान में बोली,
"खालाजान... बस... मैं यूँ ...ऐसे ही..."
गौहर बेग़म ने पूछा, "क्या ऐसे ही। इतना डरती है तो इश्क़ क्यों करती है? इश्क़ करने वाले कुर्बानी देने को तैयार रहते हैं, तेरी तरह डरपोक नहीं होते हैं। मुझे कुँवर ने सबबता दिया है कि तुम दोनों के
बीच क्या चल रहा है"
कथांश:37
कुँवर के दो तीन रोज़ कब गुज़र गए पता ही न लगा क्योंकि सबा जो कांकर में थी।
शिखा बहुत नर्वस थी कि पता नहीं कुँवर महेंद्र किस तरह के इंसान होंगे। कहीं
पुराने ज़माने के खूसट जैसे न दिखते हों। उसने अपनी यह चिंता अपनी सहेली सबा को जब
बताई तो सबा ने उससे कहा, "तू घबरा क्यों रही है? अगर तुझे पसंद न आये या वे पुराने ज़माने के जैसे लगें तो रिजेक्ट कर देना"
"तेरा क्या है तुझे तो मिल गया है न इस दुनिया का सबसे
हैंडसम इंसान कुँवर अनिरुद्ध सिंह इसलिये तुझे क्या चिंता?"
"यह बात तो है, मेरे राणा जी का कोई जवाब नहीं है"
शाम होते-होते राजा मानवेन्द्र अपनी रानी
रत्ना और कुँवर महेंद्र के साथ कांकर आ गये। राजपूत रीति रिवाज से सबसे पहले
महारानी करुणा देवी ने उनका स्वागत किया, उसके बाद रानी शारदा देवी ने और सबसे आखिर में गौहर बेग़म
ने।
कांकर महल के अंदरूनी हिस्से को आज बहुत सुंदर और कलात्मक ढंग से सजाया गया था
और यहीं कुँवर महेंद्र की पहली मुलाक़ात राजकुमारी शिखा से होने वाली थी।
जब सभी लोग अपनी-अपनी जगह बैठ गए तो राजकुमारी शिखा सबा और रानी रत्ना
जी के पास बीच में आकर बैठ गई। वह कनखी-कनखी कुँवर महेंद्र को देखे जा रही थी। पहली नज़र में कुँवर महेंद्र एक भले और सुंदर छवि रंग रूप के
मालिक लगे। उसे लगा कि वह उनके बारे में विचार कर सकती है। कुछ देर तक रानी रत्ना
शिखा से बात करती रहीं फिर उसके बाद वह उठ कर रानी शारदा देवी के पास चली गईं और
उनसे बात करने लगीं। वहीं
महारानी करुणा और गौहर बेग़म भी आ गई और जैसा ऐसे मौकों पर होता है महिलाएँ एक तरफ
और सभी पुरुष एक ओर हो जाते हैं जिससे कि लड़का और लड़की आपस में बात कर सकें और एक
दूसरे के करीब आ सकें। शिखा की किस्मत से सबा उसके आसपास ही थी जिससे कि वह कोई
उलझन महसूस न करे। सबा कुँवर महेंद्र को छेड़े ही जा रहा थी जिसे देख कुँवर ने शिखा से कहा,
"कुछ भी हो हमें आपकी सहेली बड़ी अच्छी लगी। बहुत ही हँसमुख
और जिंदादिल इंसान है"
राजकुमारी शिखा ने कुँवर की बात का कोई जवाब नहीं देना उचित समझा पर मौका
मिलते ही कुँवर से उनके शौक क्या-क्या हैं, पूछ ही लिया। बस इसके बाद दोनों के बीच आपस में बातचीत का
सिलसिला जो शुरू हुआ तो फिर उसने थमने का नाम ही नहीं लिया।
रात्रि भोजन के लिए जब सभी लोग चलने लगे तब राजा मानवेन्द्र और रानी रत्ना ने
कुँवर से अलग से मुलाक़ात की और राजकुमारी शिखा के बारे में उनके विचार जानने की
कोशिश की। कुँवर महेंद्र ने जब यह बताया कि राजकुमारी शिखा उन्हें पसंद हैं तो वे
राजा चंद्रचूड़ सिंह के परिवार के लोगों के बीच आये और उन्होंने कुँवर की पसंद के
बारे में बताया। उनकी बात सुनते ही कांकर राजपरिवार खुशी से झूम उठा। महारानी
करुणा ने सबसे पहले हीरे का एक हार कुँवर महेन्द्र के गले में पहना कर अपने परिवार
की स्वीकृति को दर्शाया। उसके बाद एक-एक करके रानी शारदा देवी और उसके बाद गौहर
बेग़म ने उन्हें कुछ न कुछ अपनी श्रद्धानुसार भेंट दी।
रानी रत्ना ने अपनी ओर से राजकुमारी के गले में कुंदन का सेट डाला और हाथों
में कंगन पहना कर उन्होंने भी अपने राजपरिवार की स्वीकृति प्रदान की।
इधर उधर की बातचीत जब समाप्त हुई और खाने का समय हो गया तो सभी लोग एक बड़ी सी
डाइनिंग टेबल के चारों ओर बैठ गए। शिखा और कुँवर महेंद्र आसपास बैठे और उनके ठीक
पास बैठी सबा। खाना खाते समय कुँवर महेन्द्र और शिखा एक दूसरे से घुलमिल कर बातें
करते दिखे।
सबा भी अपनी ओर से कुँवर महेंद्र की खिंचाई करने का कोई अवसर नहीं छोड़ रही थी।
अगले दिन सब लोग जब हाथियों पर बैठ कर अमराई जा रहे थे तो कुँवर महेंद्र ने
घुड़सवारी के अपने शौक के बारे में बताया कि वह तो इंग्लैंड में भी घुड़सवारी के
लिये हर शनिवार और रविवार जाते हैं। इस पर सबा बोल पड़ी, "फिर तो आपको कुछ रोज़ के लिये हमारा मेहमान बनना पड़ेगा। हमारा भाई भी बहुत
अच्छा हॉर्स राइडर ही नहीं बल्कि पूरे हिदुस्तान को ट्रेंड घोड़े सप्लाई करता है"
शिखा भी उत्साहित हो कर बीच में ही बोल उठी, "मैंने भी हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग उन्हीं से ली है"
"तो यह बात है और सबा जैसी हसीन लड़की अपने यहाँ बुलाये तो
भला हम कैसे मना कर सकते हैं" कुँवर महेंद्र
ने भी सबा के ऊपर तीर छोड़ते हुए कहा।
राजा साहब माणिकपुर दो दिन कांकर राजपरिवार के आतिथ्य में रहे और फिर लखनऊ वापस लौट आये।
कथांश:38
राजा साहब जब रानी शारदा देवी के कक्ष में थे और आपस में शिखा के बारे में बात
कर रहे थे तो उनके मुँह से निकला, "रानी शारदा आज हम बहुत प्रसन्न हैं कि हमारी बेटी को माणिकपुर राजपरिवार ने
अपने घर की बहू के रूप में स्वीकार कर पहला पग बढ़ा लिया"
"राजा साहब माणिकपुर हैं भी तो आपके बचपन के मित्र" रानी शारदा देवी ने जवाब में कहा।
"रानी, मित्रता अपनी जगह, बच्चों की ख़्वाहिश अपनी जगह। एक बार के लिये मान लीजिये कि कुँवर
महेंद्र को हमारी शिखा बेटी पसंद न आई होती तो मानवेन्द्र और रत्ना भी क्या कर
सकते थे?"
"यह बात तो है महाराज पर हमारी बेटी में ऐसी कोई कमी है ही
नहीं कि कोई उसे पसंद न करे"
"मैं आपकी इस बात से एक दम सहमत हूँ कि हमारी शिखा जहाँ एक
ओर देखने में चाँद का टुकड़ा लगती है वहीं हम लोगों ने उसको जिस तरह की शिक्षा
प्रदान की है और जिस तरह से उसका लालन पोषण किया है और उसे सब सांसारिक विधाओं में
पारंगत किया है उसकी भी कोई मिसाल नहीं है"
"जी महाराज शिखा को देख कर कोई भी माँ और पिता उस पर नाज़ कर
सकते हैं"
"जी रानी शारदा आपने हमारे मुँह की बात छीन ली"
"चलिये महाराज शिखा के जीवन का निर्णय तो हो गया पर अब आपको
अपने कुँवर के बारे में सोचना चाहिए” रानी साहिबा ने कुँवर अनिरुद्ध के बारे में कहा।
राजा चद्रचूड़ सिंह कुछ पल के लिये शांत हो गए और सोचने लगे कि अभी कुछ दिन
पहले तो रानी शारदा देवी जी यह कह रही थीं कि हमें कुँवर के विवाह में कोई
जल्दबाज़ी नहीं करनी चाहिए, ऐसा क्या हो गया जिसके कारण रानी ने अपनी सोच ही बदल दी? राजा चंद्रचूड़ सिंह ने यही बात रानी शारदा से जब कही तो उनकी प्रतिक्रिया
कुँवर को लेकर कुछ इस तरह की रही कि अब कुँवर अपने भविष्य की योजनाओं पर काम कर
रहे हैं और अपने समकक्ष राजनीतिक लोगों में अपनी पैठ बना चुके हैं तो यही समय
सर्वथा उचित है कि हम उनके विवाह के लिये कोई उपयुक्त कन्या ढूँढ कर विवाह की बात
आगे बढ़ाएं।
राजा चद्रचूड़ सिंह ने रानी शारदा देवी से कहा, "कुछ दिन पहले उनकी मुलाक़ात बीकानेर के महाराजा और उनके छोटे
भाई राजा दीप सिंह जी से हुई थी, हमें लगता है कि वे लोग भी हमारे कुँवर के बारे में कुछ इसी तरह विचार रखते
हैं इसीलिए उन्होंने हमें सपरिवार बीकानेर बुलाया है। हम लोग शीघ्र ही बीकानेर
चलेंगे आप वहाँ चलने की तैयारी शुरू कर दें"
"जी महाराज जैसी आपकी आज्ञा"
इसी बीच एक सेविका आई और उसने रानी साहिबा से कहा, "रानी जी कुँवर आपसे मिलने की इच्छा रखते हैं और बाहर आपकी
अनुमति चाहते हैं"
"अरे उन्हें तुरंत ससम्मान लेकर आओ” रानी शारदा देवी ने कहा।
कुँवर ने अंदर आते ही रानी शारदा देवी से पूछा, "माँ शिखा कहाँ है? आपको कुछ उसके बारे में पता है?"
राजा साहब बीच में ही बोल पड़े, "क्या हुआ शिखा को, वह ठीक
तो है?"
"जी महाराज वह बिल्कुल ठीक है और मुझसे पूछ कर ही वह ऐश महल
सबा के पास गई है"
कथांश:39
"जी रानी माँ मैं उससे वहीं जाकर मिल लेता हूँ” कुँवर ने रानी शारदा देवी से कहा।
"क्या कोई खास बात है?"
"ऐसी कोई खास भी नहीं फिर भी मैं उससे यह पूछना चाह रहा था
कि क्या वह हमारे साथ खजूरगांव चलना चाहेगी?"
"कुँवर क्या तुम खजूरगाँव जाने का मन बना रहे हो?" राजा साहब ने बीच में टोकते हुए कुँवर से पूछा।
"जी पिताश्री गौहर माँसा का मन कर रहा था, उन्हें वहाँ की याद आ रही थी"
"अरे उन्होंने मुझसे इस बारे में कभी कोई चर्चा ही नहीं की।
मैं उन्हें ले जाता अपने साथ"
"ऐसा नहीं है मैं कुछ देर पहले उनके साथ बैठ हुआ था तो नाना
और नानी जी की बात शुरू हुई तो इस पर अचानक उनकी आँखों से दो बूँद आँसू आ गए तो
मैंने ही उनके सामने प्रस्ताव रखा कि खजूरगाँव कौन विलायत में है चलिये अभी चले
चलते हैं"
"ओहो यह बात है। तुम लोग बात करो, मैं चलता हूँ मुझे महारानी से कुछ ज़रूरी बात करनी है।
तुम्हारे साथ-साथ और कौन जा रहा है?"राजा साहब ने कुँवर से पूछा।
"जी अभी तो किसी और से बात नहीं हुई है पर बहुत दिन पहले
गौहर मौसी जी ने अपनी इच्छा ज़ाहिर की थी कि वे भी खजूरगाँव चलना चाहेंगी"
"तो उन्हें भी साथ ले जाना” राजा साहब ने कुँवर की और देखते हुए कहा और उठ खड़े हुए।
इसी बीच कुँवर ने राजा साहब को बताया, “गौहर मौसी जी का प्रोग्राम मेरे साथ
मोटरबोट से चलने का है”
इस पर राजा साहब पूछ बैठे, "कोई खास प्रयोजन है या बस ऐसे ही?"
"पिताश्री अगर आपकी अनुमति हो तो मैं कांकर और खजूरगाँव के
बीच टूरिस्ट लोगों के लिये एक योजना पर काम करना चाहता हूँ"
"अरे कुँवर यह तो बहुत अच्छी बात है, अवश्य इस योजना पर काम करो, इससे हमारे क्षेत्र को बहुत लाभ मिलेगा"
"जी पिताश्री, जैसे ही कुछ फाइनल होता है तो मैं इस विषय में आपसे
बात करूँगा” कुँवर ने रानी शारदा देवी की ओर मुड़ते हुए पूछा, “रानी मौसी क्या आप चलना चाहेंगी हमारे साथ?"
"नहीं बेटा अभी तुम घूम कर आओ। हमें कुछ और काम महाराज ने
सौंपे हैं जो पूरे करने हैं। महाराज हम सभी को साथ ले कर बीकानेर चलने का मन बना
रहे हैं"
कुँवर ने कुछ जवाब नहीं दिया सिर्फ राजा साहब की ओर देखा।
राजा साहब रानी साहिबा के कक्ष से निकल कर सीधे महारानी के कक्ष में गए और
उन्होंने उनसे बात करते हुए कहा, "महारानी क्या बात है आज आपको पिताश्री राणा जी और माताश्री की याद अचानक कैसे
आ गई?"
"बस ऐसी ही, कुँवर से खजूरगाँव की बात चली तो मेरी आँखें नम हो गईं, चिंता की कोई बात नहीं है, महाराज"
"सुना है कि आपका वहाँ जाने का बड़ा मन कर रहा है, आप कहें तो मैं भी चलूँ आपके साथ?"
"आपकी मर्ज़ी वह आपकी भी तो ससुराल है"
"महारानी ससुराल सास और ससुर से होती है, अब वहाँ कोई भी तो नहीं है"
"ये बात तो है हुकुम” इतना कहने के बाद ही महारानी फफक कर रो पड़ीं।
राजा साहब ने महारानी को सँभाला और अपने सीने से लगाया, उनको तसल्ली दी, समझाया बुझाया और उनसे कहा कि वे कुँवर को जाने दें, वे उनके साथ शाम को खजूरगाँव ज़रूर चलेंगे।
कुँवर रानी साहिबा से कुछ देर बाद तक बात करते रहे और फिर बाद में ऐश महल की
ओर निकल लिये। ऐश महल में ही उनकी मुलाक़ात शिखा और सबा से हुई। कुँवर ने शिखा से
पूछा कि क्या वह उनके साथ खजूरगाँव चलेगी? शिखा ने यह कह कर मुआफ़ी मांग ली कि आज उसे कुछ थकान सी लग
रही है इसलिये वह खजूरगाँव उनके साथ न आ सकेंगी।
शिखा के मना करने पर खजूरगाँव चलने वाले अब चार सदस्य ही बचे और वे थे महारानी
साहिबा, गौहर गौहर बेग़म, कुँवर और सबा। कुँवर सबा से यह कह कर, "दो घंटे में वह और छोटो मौसी तैयार रहें हम अभी आते हैं” कुँवर और शिखा एक साथ ऐश महल से चल दिए।
सूर्य महल आते ही कुँवर महारानी के कक्ष की ओर आये तो उन्होंने देखा कि राजा
साहब भी वहीं पर हैं। कुँवर ने अंदर आकर अपनी माताश्री से पूछा,
"माँसा आपकी तैयारी पूरी हो गई हो तो हम चलें"
महारानी सहिबा ने जवाब में कहा, "कुँवर तुम चलो हम और महाराज शाम को कार से खजूरगाँव पहुँचेंगे"
"क्या पिताश्री भी चल रहे हैं?"
"हाँ, वह भी हमारे साथ चलेंगे लेकिन अभी नहीं शाम को"
"ठीक है माँसा तो मैं निकलता हूँ"
कुछ ही देर में कुँवर, गौहर बेग़म और सबा मोटर बोट से खजूरगाँव के लिये निकल पड़े।
खुला हुआ मौसम, मदमस्त चलती हुई हवाएं, गंगा नदी की मुख्य धारा के ऊपर तेजी से चलती हुई मोटर बोट
की यात्रा का अपना ही मज़ा था। कुँवर मोटर बोट को खुद ही चला रहे थे और उनका मन भी
आज बहुत खुश था। शायद इसलिये कि सबा उनके साथ थी। गौहर बेग़म और सबा को भी खूब आनंद
आ रहा था। मोटर बोट के इंजिन की आवाज़ के चलते आपस में बात करना मुमकिन नहीं हो पा
रहा था फिर भी गौहर बेग़म ने सबा से तेज आवाज़ में उसके कान के पास मुँह रख कर कहा,
"कुँवर आज पहली बार मोटर बोट से खजूरगाँव जा रहे हैं, वो भी भला किसलिये तुझे कुछ अंदाज़ा भी है, क्योंकि तू हमारे साथ है"
"मेरी वजह से मौसी"
"हाँ पगली कहीं की तेरी वजह से"
"ज़हेनसीब ये तो मैंने कभी ख़्वाब में भी नहीं सोचा था कि कोई भला
ख़ास मेरे लिये ये सब इंतज़ामात करेगा"
"सबा इसी बहाने कुँवर तुझे खजूरगाँव भी दिखा देना चाह रहे थे” गौहर बेग़म ने सबा से कहा।
"भला वह क्यों?"
"सो तुझे वहाँ पहुँच कर ही बताऊँगी"
कथांश:40
एक जगह गंगा के किनारे कुछ बच्चे कूद-कूद कर नहा रहे थे, उनको इस तरह कूद फांद करते हुए देख कर सबा को बहुत अच्छा
लगा और वह गौहर बेग़म से बोल उठी, "कितनी मस्ती कर रहे हैं बच्चे उन्हें देख कर मेरा भी मन कर रहा है कि मैं भी
गंगा में कूद कर नहाऊँ और खूब मस्ती करूँ"
"रहने भी दे अब तेरी वो उम्र नहीं है। अब तू जवान हो गई है
जरा ऐसी वैसी बात किसी और के सामने न कर बैठना” गौहर बेग़म ने उसे यह कहते हुए टोका।
उनकी मोटर बोट अभी कुछ ही और आगे बढ़ी थी कि कुँवर को कुछ मगरमच्छ नदी के
किनारे दिखाई दिए जो गंगा नदी की रेती में धूप सेक रहे थे। कुँवर ने उनके पास जाकर
अपनी मोटर बोट रोक दी ओर सबा से कहा, "लो देख लो इन मगरमच्छों को। क्या इनके पास जाकर देखना है"
"मुझे नहीं जाना है उनके पास। मेरा शिकार कर डालेंगे एक ही
निवाले में मैं उनके पेट में होऊँगी। मेरे लिये तो बस आप बस आप ही एक शिकारी अच्छे हो” सबा ने कुँवर के पास जाकर कहा।
कुछ देर वहाँ बिता कर कुँवर ने अपनी मोटर बोट एक बार फिर से शुरू की और
खजूरगाँव की ओर चलने लगे। खजूरगाँव का किला गंगा नदी के किनारे ही बना हुआ था ठीक
ऐश महल की तरह और बहुत दूर से दिखाई पड़ने लगता था। किले को देख कर सबा गौहर बेग़म
से पूछ बैठी,
"मौसी वो कौन सी इमारत है"
"वही तो है खजूरगाँव का किला। तेरे राणा जी का महल"
"यह तो बहुत बड़ा है"
"हाँ, ये किला कुँवर के पर नाना जी ने बनवाया था। एक वक़्त में इसकी बहुत अहमियत थी।
कहते हैं अंग्रेजों के ज़माने में एक रुपया जुर्माना यहाँ के लाट साहब ने खजूरगाँव
रियासत पर किसी वजह से लगा दिया। राणा जी ने एक रुपया तो जमा नहीं किया उसके ऐवज़ में रायबरेली शहर में एक
आलीशान इंटर कॉलेज बनवा दिया जिसमें आज भी बच्चे और बच्चियां पढ़ने जाती हैं" गौहर बेग़म ने यह वाक्या
सबा को सुनाया तो उसके मुँह से निकला, "वल्लाह ये तो बड़ा नेक काम किया राणा जी ने"
"बहुत बड़े दिल वाले इंसान थे कुँवर के पर नाना जी"
गौहर बेग़म ने सबा को बताते हुए कहा, "एक वक़्त में खजूरगाँव रियासत को रायबरेली जिले में सबसे
ज़्यादा मालगुज़ारी मिला करती थी"
इसके बाद तो न जाने और भी कितने ही किस्से गौहर बेग़म ने सबा को खजूरगाँव
रियासत के सुनाए। गौहर बेग़म ने बताया कि खजूरगाँव की एक बहुत बड़ी कोठी नाका
हिंडोला, लखनऊ और दूसरी रायबरेली शहर के ठीक बीचोंबीच बनी हुई है।
दोनों जगह खजूरगाँव रियासत के वारिस अभी भी रह रहे हैं।
सबा को भी लग रहा था वह सब कुछ जान लेना चाहती थी जिससे कि वह कभी कुँवर को यह
बता सके कि कितनी गहन जानकारी है उसके पास उनके ख़ानदान के बारे में।
यही सब बातें करते-करते कुँवर खजूरगाँव किले की नदी वाली दीवार के पास जब
पहुँचे तो देखा कि वहाँ उनकी ख़िदमत के लिये पहले ही से तीन चार आदमी बैठ कर उनका
इंतजार कर रहे थे। उन्होंने मोटर बोट देखते ही उसे किनारे लगवाने में मदद की और
सभी मेहमानों का सामान वगैरह उतारा और क़िले के भीतर उनको ले गए।
कथांश:41
खजूरगाँव किला का निर्माण बहुत पहले 1860-1865 के बीच हुआ था, जब तक आय के स्रोत ठीकठाक रहे यहाँ की देखभाल भी अवव्ल
दर्ज़े की थी पर रियासतों की कमाई के ज़रिए ख़त्म हो गए तो धीरे-धीरे ये महल और किलों
की देखभाल भी बदहाल होती गई। जो राजा राजवाड़े वक़्त के साथ बदल गए वही अपने किलों
और महलों की रँगाई पुताई भी करा पाए, जो नाचगाने में लगे रह गए उनकी जमीन जायदाद भी धीरे-धीरे
बिकने लगी। खजूरगाँव के राणा लोग समय के बदलाव को नहीं भाँप पाए अतः इतना बड़ा किला
और कई महल होते हुए भी इनकी माली हालत अब उतनी अच्छी नहीं थी जितनी कि कांकर
रियासत की। इतना सब हो जाने के बाद भी खजूरगाँव का किला अभी भी बेहद मजबूती के साथ
गंगा किनारे खड़ा हुआ अपने वजूद की कहानी कह रहा है।
गोधूलि बेला के साथ ही राजा साहब महारानी के साथ कांकर से खजूरगाँव आगए। कुँवर
पहले ही से वहाँ थे तो सभी प्रबंध चाकचौबंद थे। राजा साहब और महारानी महल के लोगों
से बात करके उस कक्ष में आराम करने के लिये चले गए जिस कक्ष में एक समय में राणा
और उनकी महारानी रहा करते थे।
देर रात खाने पीने की व्यवस्था की जिम्मेदारी किले के केअर टेकर शत्रुघन सिंह
की थी। गौहर बेग़म ने अपने लिये किले के सबसे ऊपरी वाले हिस्से में रहने का इंतज़ाम
एक अटारी में करवाया और वह सबा के साथ वहीं आराम फरमा रही थीं। अपने अकेले पन को
दूर करने के लिये वे धीरे-धीरे ठुमरी गुनगुना रही थीं जो सबा अपने दिल के ज़ज़्बात
के बहुत करीब पा रही थी उसके मन में भी यही चल रहा था कि किसी तरह कुँवर बस उससे
मिलने आ जायें।
हमरी
अटरिया पे आओ संवरियां,
देखा देखी बलम हुई जाए,
हमरी अटरिया पे....
देखा देखी बलम हुई जाए,
हमरी अटरिया पे....
प्रेम
की भिक्षा मांगे भिखारन लाज हमारी राखियो साजन
आओ सजन हमारे द्वारे सारा झगड़ा खत्म होइ जाए
हमरी अटरिया पे...
आओ सजन हमारे द्वारे सारा झगड़ा खत्म होइ जाए
हमरी अटरिया पे...
तुम्हरी
याद आंसू बन के आई, चश्मे वीरान में
ज़हे किस्मत के वीरानों में बरसातें भी होती हैं
ज़हे किस्मत के वीरानों में बरसातें भी होती हैं
हमारी
अटरिया पे......
कुँवर तो नहीं आये पर राजा साहब गौहर बेग़म को ढूँढते हुए ऊपर अटरिया पर आ गए।
उनके हाल चाल पूछे, यह जानकारी हासिल की कि बोट का सफ़र उन्हें रास आया कि नहीं। गौहर बेग़म ने जवाब
में कहा,
"जिसका माँझी खुद का कुँवर जैसा बेटा हो तो उसके सफ़र के बारे
में क्या चिंता करना। हुकुम यह तो आप सबा से पूछिए कि उसे नाव से दरिया का सफ़र
कैसा लगा"
"कहाँ है हमारी बेटी सबा?" राजा साहब ने सबा को जब गौहर बेग़म के साथ नहीं देखा तो उसके
बारे में पूछ बैठे।
"अभी तो यहीं थी। यहीं कहीं निकल गई होगी दरिया के नजारे
देखने के लिये। आप रुकिये मैं उसे आवाज़ देती हूँ, “सबा, बेटी सबा देख तो सही कौन आया है?”
गौहर बेग़म की आवाज़ सुनकर सबा तुरंत ऊपर अटरिया में आ गई जहाँ राजा साहब उसका
इंतजार कर रहे थे।
राजा साहब ने सबा से पूछा, "कहाँ चली गई थी मेरी बेटी?"
"कहीं नहीं हुकुम बस नीचे जाकर दरिया के ख़ुशनुमा हुस्न और
आसमान में डूबते हुए सूरज के बदलते हुए रंगों को निहार रही थी। अपना अकेलापन कुछ
देर के लिये भूलने की कोशिश कर रही थी"
"शिखा नहीं आई है न अबकी बार इसलिये तुझे अकेलापन लग रहा है।
एक दो दिन रह लेगी तो तुझे यहाँ भी अच्छा लगने लगेगा। यहाँ का किला बहुत बड़ा है, कल दिन में
कुँवर के साथ घूमने चली जाना” राजा साहब ने सबा के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा।
जब वे तीनों लोग बैठ कर गपशप कर ही रहे थे कि शत्रुघन सिंह आ गए और बोले,
"हुकुम खाना लग गया है, महारानी साहिबा आप सभी का डाइनिंग हॉल में इंतज़ार कर रही
हैं"
राजा साहब ने कहा, "चलो हम
लोग भी आते हैं। कुँवर को भी बुलावा लो”
कुछ ही देर में सभी लोग किले के डाइनिंग हॉल में मिले तो सबा तो वहाँ की सजावट
देखती ही रह गई। पुराने ज़माने की काली शीशम की लकड़ी की बनी हुई खूब लंबी सी
डाइनिंग टेबल जिस पर एक साथ चौसंठ व्यक्ति भोजन कर सकते थे।
डाइनिंग हॉल की दो आमने-सामने वाली दीवारों पर बड़े-बड़े आईने लगे हुए थे जो शायद
इसलिये लगाए गए थे जिससे कि जब झाड़फानूस में शमा जलाईं जाती होंगी तो पूरा हाल
जगमग-जगमग करता होगा, एक
दीवार पर पुराने ज़माने की पिस्तौल, बंदूक, तलवार, बल्लम, भाले और ढाल वग़ैरह बहुत करीने से लगी हुईं थी, उसके ठीक सामने वाली दीवार पर दो शेर की खाल, कई हिरन और बारहसिंगों के सींग बढ़िया डिजाइनदार तरीके से
लगे हुए थे, डाइनिंग हॉल के ठीक बीचोंबीच में बहुत बड़ा झाड़फानूस लगा हुआ
था, उसके साथ मिलते जुलते दो झाड़फानूस बीच वाले के अगल बगल लगे
हुए थे। लगता था कि बहुत पुराने वक़्त के थे क्योंकि आज भी उनमें मोमबत्ती ही जलाईं
जाती थी। रौशनी कम न पड़े इसलिये दीवार के
चारोंओर पीतल के नक्कासीदार और ग्लास पर सुनहरे काम वाले लैंप शेड्स में बिजली के
बल्ब भी शायद बाद में लगवाए गए होंगे।
राजा साहब बीच की कुर्सी पर, उनके एक तरफ महारानी साहिबा और कुँवर तो उनके ठीक सामने गौहर बेग़म और सबा बैठ
गए। एक के बाद लज़ीज़ डिशेज़ मेहमानों के लिये परोसी गईं।
राजा साहब बीच-बीच में महारानी साहिबा को उनके बचपन की बातें याद दिलाते रहे।
महारानी साहिबा ने भी खासतौर पर सबा से बात करते हुए इस किले में अपने गुज़ारे
दिनों के किस्से कहानियां सुनाई। आख़िर में ख़ालिस दूध में बनी खीर परोसी गई।
राजा साहब, महारानी और गौहर बेग़म आपस मे हँसी मज़ाक करते हुए बीच वाले
बगीचे में आकर बैठ गए। कुँवर ने राजा साहब की ओर देखते हुए कहा,
"आप लोग बैठ कर बातें करिये। मैं और सबा महल की छत वाली
अटारी पर जा रहे हैं कुछ देर वहीं बिताएंगे खुले आसमान के नीचे"
कुँवर और सबा घूमते-घूमते चाँदनी रात में किले की छत पर निकल गए और जब वे एक
दूसरे से नितांत अकेले में मिले तो बस एक दूसरे से लिपट कर रह गए....
राजा साहब ने महारानी और गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा,
“आप दोनों से मैं आज वह
कहने जा रहा हूँ जो मैं इधर कई महीनों से महसूस कर रहा हूँ। नहीं जानता कि इस
मुद्दे पर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी”
महारानी ने राजा साहब से पूछा, "महाराज ऐसी कौन सी बात है जो आप इतने दिनों से महसूस कर रहे हैं और हमको आपने
कभी बताई भी नहीं"
गौहर बेग़म ने भी कुछ वही कहा जो महारानी ने कहा, "हुकुम अगर ऐसी कोई भी बात जो आपको भीतर भीतर चुभ रही है और
आपने वह बात कम से कम मुझे नहीं तो महारानी को तो बतानी ही चाहिए थी"
राजा साहब गंभीर होते हुए बोले, "मैं जब तक किसी बात की गहराई में नहीं जाता हूँ तब तक किसी से भी उसके बारे
में कोई बात नहीं करता हूँ"
महारानी और गौहर बेग़म ने एक साथ कहा, "महाराज आप अपने दिल की बात हमसे आज कह ही डालिये"
राजा साहब दोनों स्त्रियों के चेहरे की भावभंगिमा देख कर मुस्कुराते हुए बोले,
"अरे परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे कई दिनों से
यह अहसास हो रहा है कि हमारा कुँवर सबा को चाहने लगा है"
कथांश:42
राजा साहब की बात सुनकर गौहर बेग़म ने चुप रहना ही बेहतर
समझा पर महारानी अपने आपको न रोक पाईं और बोल पड़ीं, "अगर कुँवर को सबा पसंद है तो हमें भी कोई एतराज नहीं है।
मैं आज ही उससे पूछूँगी कि आखिर उसकी क्या मर्ज़ी है। शिखा बेटी की शादी तो अब तय
हो ही गई है तो अब हम कुँवर की शादी भी जल्दी कर देंगे"
राजा साहब ने महारानी से कहा, "आप इतना जल्दी भी न कीजिये। पहले हमें पूरी तहकीकात कर लेने
दीजिए। यह सिर्फ कुँवर की मर्ज़ी का सवाल नहीं है, शौक़त बेग़म का क्या रुख है यह भी पता लगाना पड़ेगा। यह भी
विचार करना पड़ेगा कि कुँवर और सबा के बीच अगर कोई रिश्ते की बात चलती है तो हमारा
राजपूत समाज क्या कहेगा? कुँवर जितने हमारे हैं उससे ज्यादा वह अब जनता के पसंदीदा
नेता हैं"
महारानी से रुका न गया और वह बोल ही पड़ीं,
"महाराज आपने भी तो गौहर बेग़म से निकाह किया तब तो किसी ने
कुछ नहीं कहा पर जब मसला हमारे बेटे का है तो अब आप ऐसी बातें कर रहे हैं?"
"महारानी आप हमें गलत समझ रहीं हैं। हम बस यह कह रहे हैं कि
हमें कोई जल्दबाज़ी नहीं करनी है। रही बात कुँवर की तो हम उसकी हर इच्छा पूरी करने
के लिये तैयार हैं"
राजा साहब की बात पर गौहर बेग़म ने भी बस इतना कहा,
"महारानी साहिबा आप परेशान न होइए पहले मुझे इस मसले की जड़
तक जाने दीजिये और अगर सबा और कुँवर के बीच कोई भी बात है तो सबसे पहले मैं
चाहूँगी कि उनकी खुशियाँ बरकरार रहें"
"गौहर बेग़म हम आपकी बात समझते हैं और हम यह भी जानते हैं कि
कुँवर हम तीनों में सबसे ज्यादा वह आपसे प्यार करते हैं” महारानी ने गौहर बेग़म की तरफ रुख करके कहा।
राजा ने साहब ने महारानी को समझाते हुए कहा,
"महारानी आप निश्चिंत रहें कुँवर की खुशी में ही हम सब की
खुशियाँ हैं पर अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। कल ही महाराजा बीकानेर का फोन आया
था वह भी जोर देकर पूछ रहे थे कि हम लोग कब बीकानेर आने वाले हैं?"
इस पर गौहर बेग़म ने ही राजा साहब से कहा,
"महाराज आप बीकानेर के महाराजा साहब के यहाँ उस वक़्त ही
जायेंगे जब हम तीनों लोग आपके साथ चलने को तैयार होंगे। कृपया अभी आप उनसे कोई
वायदा नहीं कर लीजिएगा"
"नहीं गौहर बेग़म। रानी शारदा और आप दोनों से बात कर के ही हम
बीकानेर चलने का प्रोग्राम तय करेंगे” यह कहते हुए राजा साहब ने उनकी बात मान ली।
इसके बाद तीनों लोगों के बीच कुछ और भी मसायल पर देर रात तक
बात होती रही।
उधर दूसरी ओर कुँवर और सबा घूमते-घूमते किले के सबसे ऊपरी
हिस्से में चले आये और ऊपरी वाली अटरिया में आकर बैठ गए। चाँदनी रात, आसमान में पूर्णमासी का हँसता हुआ चाँद, दरिया के ऊपर से होकर बहती हुई ठंडी ठंडी मद मस्त हवा के
झोंके, किले की अटारी अपनी महबूबा से मिलने के लिये इससे बढ़िया और
कोई दूसरी जगह दुनिया में हो ही नहीं सकती थी। सबा कुँवर के साथ हाथ में हाथ डाले
घूमते रहने के बाद एक जगह आकर बैठ गई।
कुँवर ने सबा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा, "सबा तुम्हें पता है, जब तुम दिल्ली में थी और हमको मिले हुए बहुत दिन हो गए थे
तो मैंने गौहर मौसी से कहा था कि वह तुम्हें कांकर बुला लें"
"मुझे मालूम है मौसी ने मुझे बताया था। मेरे राणा जी अब तो
शिखा की शादी तय हो गई है, मुझे अपनी चिंता सताने लगी है कि मेरा क्या होगा?" यह कहते हुए सबा कुँवर के सीने से चिपक गई।
कुँवर ने भी सबा को अपनी बाहों में भरते हुए कहा,
"सबा तुम्हें मुझ पर भरोसा है तो तुम्हें इस बात की चिंता
नहीं करनी चाहिए। मैं मौसी से बात करके हम दोनों के रिश्ते की बाबत महाराज से बात
कराता हूँ। महाराज उनकी बात नहीं टालेंगे"
"मुझे बड़ा डर लग रहा है कि हमारे बीच कहीं ये ज़ालिम दुनिया
और ये हिन्दू-मुसलमान की बात न खड़ी हो जाय"
"ऐसा कुछ भी न होगा। तुम मुझ पर और छोटी मौसी पर भरोसा करो।
आखिकार महाराज ने भी तो छोटी मौसी से निकाह किया है कि नहीं। मेरे पिताश्री इतने
दकियानूसी ख़यालात के आदमी नहीं हैं"
"मैं यह सब कुछ नहीं जानती। मैं अगर जानती हूँ तो सिर्फ तुम्हें।
तुम बस मुझे अपनी निगाह से न गिरा देना"
"कभी नहीं जानम कभी नहीं” कह कर कुँवर ने सबा को अपने सीने से लगा लिया। सबा भी प्यार
के इज़हार में कहाँ पीछे रहने वाली थी उसने भी आगे बढ़ कर कुँवर के होठों पर अपने होंठ
रख कर अपने प्यार की गहराई को जताते हुए कुँवर से कहा, "एक लड़की के पास बस उसकी इज़्ज़त होती है और वह मैंने आज
तुम्हारे हवाले की है अब चाहे तुम मुझे अपनाओ या ठुकराओ अब यह तुम पर है"
कुँवर ने सबा को अपनी ओर खींचते हुए कहा,
"दिल जोड़ने की बात करो, जो बात दिल को लग जाये ऐसी बात कभी करना भी नहीं"
बस इतना सुनते ही सबा कुँवर के सीने से जा लगी....
दो प्रहर जब गुज़र गए तब गौहर बेग़म अपनी अटरिया में लौटीं तो
सबा को वहाँ न पाकर जरा चिंतित हो गईं। उसे ढूंढते हुए वे जब महल के ऊपरी हिस्से
में आ पहुँची तो सबा और कुँवर को देख कर कुछ तस्सली हुई और बोलीं,
"तुम लोग यहाँ हो और मैं तुम्हें न जाने कहाँ-कहाँ ढूंढती
रही?"
कुँवर और सबा गौहर बेग़म को इस तरह देख खड़े हो गए। कुँवर ने
गौहर बेग़म से पूछा, "आप तो
महाराज के साथ थीं। मुझे लगा आज आप नीचे ही रहेंगी"
"महाराज महारानी के कक्ष में हैं और वैसे भी सबा यहाँ अकेले
कैसे रह पाती?"
"मैं तो उसके साथ था"
"चलो कुँवर तुम भी चलो अब रात बहुत हो गई है"
"जी बेहतर है, अच्छा सबा और मौसी शब्बाखैर” कह कर कुँवर भी बाहर से निकल लिए।
कथांश:43
अगली सुबह जब नाश्ते के लिये सब लोग इकट्ठे हुए तो कुँवर की
निगाह में सबा के लिये कुछ सवालात थे कि उनके चले आने के बाद गौहर बेग़म ने उससे क्या कहा? इधर गौहर बेग़म के दिलो दिमाग़ में यह चल रहा था कि अब जबकि राजा साहब को सबा और
कुँवर को लेकर शक़ हो गया है तो इस मसले को अब बहुत नहीं टाला जा सकता है। उधर महारानी लगातार सबा को देखे
जा रही थीं जैसे कि वह मन ही मन उसे तौल रही थीं कि उसकी जोड़ी
कुँवर के साथ कैसी लगेगी? राजा साहब यह सोच रहे थे कि अगर कुँवर वाकई सबा को चाहने लगे हैं तो वह अगला क़दम क्या उठाएं? इन सब के बीच सबा सपनों की दुनिया में खोई हुई थी कि कल रात के बाद तो कुँवर को
उसने अपने जीवन का हिस्सा बना लिया।
सभी लोग अपने-अपने ख्यालों में व्यस्त थे जैसे कि वे एक दूसरे से बहुत दूर-दूर हों
कि अचानक कुँवर को एक दो नहीं लगातार कई छींकें आ गईं। महारानी
ने उनकी तरफ देखा और बोलीं, "लगता है कि तुम रात बहुत देर तक सबा के साथ बाहर खुले में घूमते
रहे हो इसलिये कुछ जुकाम हो गया है"
"ऐसा कुछ नहीं है माँसा, हो जाता है कभी-कभी वैसे भी छींक आना अच्छी बात है, इससे शरीर के सब अंग खुल जाते हैं" कुँवर ने महारानी को उत्तर में कहा।
इधर सबा को अचानक हिचकी आने लगी तो गौहर बेग़म पूछ बैठीं, "अब तुझे क्या हुआ सबा?"
महारानी ने सबा की ओर देखते हुए कहा, "बेटी तू थोड़ा पानी पी, लगता है कि तुम्हें कोई बहुत याद कर रहा है"
"मुझे कौन याद करेगा जो लोग याद करने वाले हैं वे तो सब यहीं बैठे हैं इतना कह कर सबा ने हसरत भरी निगाह से कुँवर की ओर देखा और ग्लास उठा कर पानी पिया।
राजा साहब की निगाह से कुछ छिपने वाला नहीं था पर फिर भी उन्होंने गौहर बेग़म की ओर
देखते हुए कहा,
"लगता है शौक़त बेग़म को सबा की याद आई होगी, इधर बहुत दिन हो भी तो गए हैं इसे भोपाल गए हुए"
गौहर बेग़म ने राजा साहब की बात से इत्तफ़ाक़ करते हुए कहा, "जी हुकुम मुझे भी यही लगता है पर अब शौक़त बेग़म को तो अपना मन पक्का करना ही पड़ेगा
कब तक वह बेटी को अपने घर बिठा के रखेंगी। बेटी तो वैसे भी पराया धन होती हैं"
"गौहर बेग़म आप बिलकुल बज़ा फरमा रही हैं अब तो शौक़त बेग़म को सबा के लिये कोई अच्छा लड़का ढूँढना शुरू कर ही देना
चाहिए" महारानी ने सबा की ओर देखते हुए कहा।
"महारानी साहिबा गुस्ताख़ी माफ़ हो पर हम लोगों के यहाँ तो रिश्ता उल्टा लड़के वाले लेकर आते हैं" गौहर बेग़म ने महारानी से कहा।
जब राजा साहब को यह लगा कि अब महिलाओं में ये चर्चा गंभीर रुख लेती जा रही है तो
वे बीच में बोले, "चलो
अभी तो यह तय करना है कि लड़के वाले कौन हैं जो सबा को अपने घर की बहू बनाना चाह रहे हैं? आपको इसके बारे में कोई जानकारी है गौहर बेग़म"
"जी हुकुम कुछ-कुछ अंदाज़ है पर मैं अभी पक्के तौर पर कुछ कह
नहीं सकती"
"चलिये गुजरते वक़्त के साथ यह भी पता लग जायेगा" कह कर राजा साहब ने भी बात को टालने की कोशिश की और कुँवर
से बोले,
"कुँवर तुम सुबह के वक़्त सबा को किला और आसपास की जगह दिखा
लाओ और दोपहर के बाद हम लोग आपस में बात करेंगे कि तुम्हारी क्या योजना है इस किले और महलों
के लिये, गंगा के किनारे डेवलपमेंट के लिये जिसका जिक्र तुम कांकर
में कर रहे थे"
कुँवर कुछ समझ नहीं पा रहे थे कि परिवार में उनको लेकर क्या चल रहा है फिर भी
उन्होंने राजा साहब से यही कहा, "जी यही बेहतर होगा"
कुँवर ने उठते हुए सबा का हाथ अपने हाथ में लिया और उसके साथ वह किले से बाहरी
हिस्सों कीओर निकल गए। कुँवर भी अपनी तरफ से सबा को यह दिलासा देना चाह रहे थे कि
वह उसके साथ मजबूती से खड़े हैं।
कथांश:44
कुँवर का सबा के साथ निकलना भर था कि राजा साहब ने महारानी
से कहा,
"महारानी आप कुँवर से बात करके हमें बताइये कि उनकी आखिर
क्या मर्ज़ी है? अब हम इस मसले को बहुत दिनों तक नहीं टाल सकते हैं। कुँवर
के भविष्य की हमें बहुत चिंता है"
"जी महाराज मैं मौका देख कर कुँवर से बात करती हूँ” महारानी ने राजा साहब से कहा और इसके बाद वे लोग अपने-अपने
कक्ष में चले गए।
दूसरी ओर कुँवर सबा को लेकर किले के परिसर के शिव मंदिर तक
आ पहुँचे। उन्हें देख पुजारी जी ने उन्हें मंदिर में बिठा कर पूजा अर्चना करवाई और
सबा को प्रसाद देकर आशीर्वाद दिया। शिव मंदिर से निकलते हुए कुँवर ने सबा को बताया
कि खजूरगाँव के परिवार में भगवान शिव का विशिष्ट स्थान है, इसलिये राजपरिवार और किले में रहने वालों के लिये यह मंदिर
आज से नहीं सदियों से प्रेरणा का स्रोत रहा है। साधारण जन समाज के लिये गंगा नदी
किनारे एक शिव मंदिर अलग है जिसके रख रखाव की जिम्मेदारी भी खजूरगाँव राज परिवार
की ही है।
शिव मंदिर से बाहर आने के बाद कुँवर किले के परकोटे की तरफ चल
पड़े और सबा को किले की संरचना के बारे में विस्तार से बताते रहे कि किले के चारों
ओर परकोटा बना हुआ है जिसमें किले के लोग और कुछ रियासत के पुराने जान पहचान वाले
लोग रहते हैं। इस किले में कुल छोटे बड़े सब मिला कर लगभग चौरासी घर हैं। इस किले
में राजपरिवार के रहने वाले सदस्यों के लिए चौरासी कमरे हैं कुछ नीचे कुछ पहली और
दूसरी मंजिल पर। कुँवर ने सबा को यह भी बताया कि हिंदुओं के लिये यह चौरासी का
आँकड़ा कुछ विशिष्ट महत्व रखता है इसीलिए अक्सर देखा जाता है कि विभिन्न जगहों पर
राजपूत समाज के लोग एक स्थान पर चौरासी गाँवों में अपने अपने कुनबे के साथ पाए
जाते हैं। कई जगह मंदिरों के निर्माण में भी चौरासी खंभे बनाये जाते हैं और शरारत
भरे अंदाज़ में सबा से कुँवर बोले, "एक और चीज भी होती है जो चौरासी से ही संबंधित है पर उसके बारे में जानकारी अभी नहीं, जब हम लोगों
की शादी ही जाएगी उसके बाद दूँगा"
कुँवर को चिढ़ाने के लिए सबा बोली, "ऐसा क्या है, जो अभी नहीं बता सकते हो?"
"कहा न अभी नहीं बता सकता हूँ"
"बाद में तो बताओगे"
"हाँ भाई, हाँ"
कुँवर ने सबा का हाथ पकड़ा और गाड़ी में बिठाया और उसे 'हथियान गाँव' लेकर
चल दिए। हथियान गाँव ऐसा स्थान था जहाँ रियासत के हाथी रखे जाते थे। कुँवर ने वहाँ
पहुँच कर सबा को बताया कि अब तो यहाँ एक भी हाथी नहीं हैं, जितने थे भी तो वे सब नाना राणा जी के स्वर्गवास के बाद
कांकर भिजवा दिए गए थे।
हथियान गाँव से निकल कर कुँवर सबा को बड़ा बाग़ दिखाने ले गए
जहाँ खजूरगाँव के पूर्व रियासतदारों और परिवार के सदस्यों की छतरियाँ बनी हुई थीं।
वहाँ सबा को हरेक राणा और महारानियों और रानियों के बारे में बताया। नाना राणा जी
की छतरी पर अभी भी काम चल रहा था। राजस्थान
से आकर पत्थर तराशने वाले कई कारीगर संगमरमर के ऊपर नक्काशी का काम कर रहे थे, उनके साथ उनकी पत्नियाँ भी काम कर रही थीं और बच्चे भी
वहीं खेल रहे थे। एक राजमिस्त्री की पत्नी ने कुँवर के पाँव छुए और पूछा,
"हुकुम जे का कुँवरानी साहिबा हैं, बड़ी ख़ूब लागे हैं"
कुँवर ने उससे कुछ कहा पर वह कुछ अलग समझी तो कुछ नहीं
समझी। चलते-चलते कुँवर ने उसके बच्चों को मिठाई खाने के लिये पैसे दिए और वहाँ से
वापस हो लिये।
रास्ते में 'खजूर' गाँव के प्रधान जी के घर कुँवर सबा को ले गए जिससे सबा को
गाँव की ज़िंदगी के रंग ढंग भी देखने को मिल सकें। प्रधान जी के घर पर पहुँचते ही
सबा को घर की बहुयें अंदर ले गईं। बड़ी बूढ़ी औरतों ने सबा की बलइयाँ लेकर दुआ और सौ-सौ रुपये की मिलनी दी। कुछ देर वहाँ
बिता कर कुँवर और सबा किले वापस लौट आये।
महारानी ने कुँवर को आते हुए अपने कक्ष से ही देख लिया था।
एक आदमी को भेज उन्होंने सबा और कुँवर को अपने पास बुलवा लिया। दोनों से पूछा कि
वे कहाँ-कहाँ घूमने गए थे। कुँवर ने महारानी को उन सब जगहों के नाम गिनवा दिए
जहाँ-जहाँ वे आज गए थे। कुँवर की बात सुनकर महारानी ने सबा को अपने पास बिठाया, उसे पहली बार ऊपर से नीचे तक गहरी नज़र से देखा और बाद में
सबा से बोलीं,
"मैंने सोचा कि मैं भी तो उसे आज बड़े ध्यान से देख लूँ जिसे
देख हमारा कुँवर अपना सब कुछ भूल बैठा है"
कुँवर ने महारानी से कहा, "माँसा अब तुम भी मेरी इस तरह खिंचाई करोगी?"
"नहीं बेटा नहीं ऐसी तो कोई बात मैंने नहीं कही है और न मैं
कह सकती हूँ। मैंने तो बस अपनी बेटी सबा को ध्यान से देखा भर है और मेरा दिल उसे
आशीर्वाद देने का कर रहा है"
"कौन रोक रहा है आपको"
महारानी ने अपने हाथ के कंगन उतार कर सबा के हाथों में पहना
दिये और माथा चूम कर आशीर्वाद दिया। सबा ने भी झुक कर महारानी के पाँव छूने की
कोशिश की तो बीच में ही महारानी ने उसे रोक लिया और अपने गले से लगा लिया। कुछ देर
बाद वे बोलीं,
"जा बेटा जा, जी ले अपनी ज़िंदगी, ये जिंदगी हर किसी को नहीं मिलती, जो नसीब वाले होते हैं उन्हीं को मिलती है और वे नसीब वाले होते हैं जिन्हें हम सरीखे माता और पिता मिलते हैं। जाओ अपने-अपने
कक्ष में जाकर आराम करो घूमते-घूमते थक गए होगे”
कुँवर और सबा महारानी के कक्ष से निकल कर गौहर बेग़म के कक्ष
की ओर मुड़ पड़े।
कथांश:45
अबकी बार खजूरगाँव किले में बहुत कुछ घटित हो गया, एक बारगी लगा कि दरिया में जो पानी एक अरसे से ठहरा हुआ था
अपने सभी तटबंध तोड़ कर बह गया। तीन चार दिन इस ख़ुशनुमा माहौल में कब गुजर गए किसी
को कुछ पता ही न चला। राजा साहब ने जब यह कहा, "कुँवर अबकी बार लौटते समय हम तुम्हारे साथ चलेंगे, रास्ते में हमें बताना कि इस एरिया के बदलाव के लिये
तुम्हारे क्या इरादे हैं?"
"जी पिताश्री” कह कर कुँवर ने चलने की तैयारी कर ली।
महारानी ने यह कहते हुए कि नाव में धूप लगेगी, सबा को और
गौहर बेग़म को अपने कार में बिठाया और कांकर के लिए चल पड़ीं।
कुँवर खुद ही मोटर बोट चला रहे थे और रास्ते भर राजा साहब
को अपनी उन सब विकास से संबंधित योजनाओं की जानकारी देते रहे जो उनके दिलों दिमाग़
में इस क्षेत्र के लोगों की भलाई के लिए थीं। कुछ प्रमुख योजनाओं पर कुँवर काम
करना चाह रहे थे वे थीं खजूरगाँव और कांकर में राजपरिवार की उस संपत्ति को किसी
नामी-गिरामी होटल मालिक से बात कर दीर्घ कालीन पट्टे पर देने की बात जिससे कि इन
पुरातत्व और ऐतिहासिक विरासत को बचाया जा सके और साथ ही साथ राजपरिवार के आय के
स्रोत में भी वृद्धि हो सके। कुँवर इस बात को अच्छी तरह महसूस कर रहे थे कि हर आने
वाला चुनाव अपने आप में एक चैलेंज होगा और लगातार मँहगा होता जाएगा। राजनीति में
जिस तरह के लोग आना चाह रहे हैं वे किस प्रकार के हैं और जो हैं वे किस तरह की
कमाई कर रहे हैं जो उनके बस की बात नहीं है। अतः यह आवश्यक था कि परिवार की आय के
स्रोत बढ़ाये जाएं।
कुँवर ने राजा साहब को यह भी बताया कि इस क्षेत्र में
पर्यटन के विकास हेतु खजूरगाँव और कांकर को नदी मार्ग से कानपुर और इलाहाबाद शहरों
से जोड़ दिया जाय जिससे कि जो पर्यटक यहाँ आते हैं उन्हें गत ज़माने के रहन सहन और
यहाँ की जनता से मिलने जुलने का मौका मिल सके, दूसरा यह कि वन विभाग से बात कर यहाँ गंगा नदी के एक किनारे पर मगरमच्छों के पालन और बचाव के
लिए एक पार्क बना दिया जाय, तीसरा यह कि गंगा नदी के दूसरे किनारे पर एक हिरण, बारहसिंगा, चीतल, काकड़ इत्यादि प्रजातियों के सरंक्षण के लिए एक डियर पार्क
बनाया जाय जिससे कि इस क्षेत्र के लोगों का विकास हो सके, चौथा यह कि गंगा नदी के गहरे पानी वाली जगहों में लिफ्ट
इरिगेशन की योजना पर काम शुरू हो जिससे कि इस इलाके में कृषि और खेती किसानी के
काम को बल मिले, पाँचवाँ हर ब्लॉक क्षेत्र में जूनियर हाई स्कूल या हाई स्कूल की व्यवस्था तथा
लोगों के लिये स्वास्थ्य केंद्र की व्यवस्था सुनिश्चित हो सके जिससे कि इस क्षेत्र
का समग्र विकास हो सके।
कुँवर ने राजा साहब को इस बात की जानकारी भी दी कि
प्रधानमंत्री शीघ्र ही अपने क्षेत्र के दौरे पर आने वाली हैं और अबकी बार हो सकता
है कि प्रतापगढ़ में जहाँ कि एक ट्रेक्टर फैक्टरी लगाने की योजना पर काम शुरू हो
चुका है, लखनऊ में हिंदुस्तान एरोनॉटिक्स की एक इकाई पहले ही चालू की
जा चुकी है उसी चीज को ध्यान में रखते हुए रायबरेली और सुल्तानपुर जैसे पिछड़े
क्षेत्रों में भी किसी बड़े उद्योग की योजना की घोषणा की जाय।
राजा साहब ने कुँवर के प्रयासों को सराहा और उन्हें
आशीर्वाद दिया कि वे अपनी योजनाओं को ज़मीन पर पहुँचाने में सफल हों। राजा साहब ने
कुँवर से कहा,
"खजूरगाँव और कांकर के किले और महलों हेतु वे शीघ्र ही कई
नामचीन होटल मालिकों से बात कर अपने इलाहाबाद और लखनऊ के रॉयल होटल के तर्ज़ पर कुछ
न कुछ इंतज़ाम करते हैं बाद बाकी योजनाओं पर तुम केंद्रीय और राज्य सरकार से लगातार
संपर्क में रहो और इन योजनाओं पर काम करने के लिये जोर देते रहो"
"जी पिताश्री, एक बात तो मैं आपको बताना भूल ही गया कि इस क्षेत्र के लिये प्रधानमंत्री
कार्यालय शारदा सहायक नहर योजना को शीघ्र ही लागू करने जा रहा है जिससे किसानों को
बहुत बड़ा लाभ मिलेगा तथा इस क्षेत्र में जल स्रोतों के उद्धार में बहुत मदद मिलेगी"
"अरे यह तो बहुत अच्छी ख़बर है” कह कर राजा साहब ने इस बात पर अपनी ख़ुशी ज़ाहिर की ।
कुछ देर रुकने के बाद राजा साहब ने अपनी बात को जारी रखते
हुए कहा, "जो राज नेता
अपने क्षेत्र के जन मानस की भलाई के लिए काम करता है उसे दुनिया और यह समाज बहुत दिनों तक याद करता है"
खजूरगाँव से कांकर तक की मोटर बोट की यात्रा में पिता पुत्र
के बीच कुछ और मसलों पर भी बात हुई पर राजा साहब ने सबा को लेकर कोई बात नहीं की।
इस बात को सोच कर कुँवर कभी-कभी चिंतित होने लगते पर उन्हें यह भी लगता कि जब
महारानी ने सबा को अपना आशीर्वाद दे ही दिया है तो देर सबेर उनकी यह मुराद भी पूरी
हो ही जायेगी।
इसी ख़्याल में डूबे हुए कुँवर ने कांकर पहुँच कर ऐश महल की
दीवार के किनारे वाले प्लेटफ़ॉर्म पर मोटर बोट लगाई। राजा साहब और अन्य लोग उतर कर
सूर्य महल आ गए।
राजा साहब के वहाँ पहुँचने के पहले ही महारानी, गौहर बेग़म और सबा पहले ही पहुँच गए थे और बैठकर चाय का आंनद
ले रहे थे। राजा साहब और कुँवर भी उन्हीं के साथ बैठ गए, चाय पी और राजा साहब ने कुँवर की योजनाओं पर सबके साथ
विचारविमर्श किया और सभी को बताया कि वह कुँवर की प्रगतिवादी सोच से बहुत प्रसन्न
हैं। राजा चन्द्रचूड़ सिंह खुद भी प्रगतिवादी विचारधारा के व्यक्ति थे जिस कारण वह
आज भी प्रदेश और अवध के क्षेत्र की अन्य पुरानी रियासतों और राजा रजवाड़ों की नजर
में आर्थिक रूप से अधिक मज़बूत थे।
कुछ देर वहाँ रुकने के बाद राजा साहब रानी शारदा देवी के
कक्ष की ओर निकल गए। वह अकेली बैठी कुछ सोच रही थीं, राजा साहब ने उनसे पूछा, "किस गहन चिंतन में हैं रानी शारदा”
"महाराज, जब से शिखा का संबंध माणिकपुर राजपरिवार से हुआ है बस एक ही
चिंता लगी रहती है कि सब ठीकठाक हो जाये और शिखा अपनी ससुराल सही सलामत जाकर अपना
वैवाहिक जीवन जीने लगे” रानी शारदा देवी ने राजा साहब के प्रश्न के उत्तर में कहा।
"अरे चिंता करना अब छोड़ दीजिए सब ठीक प्रकार से निपट जाएगा” राजा साहब
बोले और कुछ देर के लिए चुप हो गये, यह सोचने लगे कि खजूरगाँव में कुँवर और सबा के संबंध में जो उनकी चर्चा हुई थी उसका जिक्र
रानी शारदा देवी के समक्ष करना अभी उचित होगा या नहीं। इसी उधेड़ बुन में उनका
दिमाग़ लगा हुआ था कि रानी साहिबा ने पूछ ही लिया, "हुकुम खजूरगाँव के क्या हाल हैं, अबकी बार वहाँ क्या-क्या हुआ?"
कथांश:46
"ऐसा कुछ खास तो नहीं फिर भी इधर-उधर की बातचीत हुई। कई गाँव
के लोग मिलने आये थे उनसे मुलाक़ात हुई। हाँ एक दिन शाम के खाने के बाद हम, महारानी और गौहर बेग़म बैठ कर गुफ़्तगू कर रहे थे तो कुँवर के
बारे में ऐसे ही बात चलने लगी तो हमने कहा कि हमें सुबहा है कि कुँवर का रुझान कुछ
सबा के प्रति है” राजा साहब ने रानी शारदा देवी को यह सूचना दी।
“आपकी सूचना पर महारानी साहिबा की क्या प्रतिक्रिया रही” रानी शारदा देवी ने पूछा।
"कोई खास नहीं पर वह सबा और कुँवर के मुआमले में यही ख़्याल
रखती हैं कि अगर वे दोनों एक दूसरे को चाहते हैं तो हम सभी इस रिश्ते को स्वीकार
कर सकते हैं। लेकिन अभी कुँवर की ओर से या सबा की ओर से कोई ऐसा इशारा लगता नहीं
है इसलिए हमने यही कहा कि हम भी अब अपनी निगाह इस मसले पर रखेंगे"
"महाराज मेरी आपसे एक ही विनती है कि कुँवर की अगर इसमें
मर्ज़ी है तो हमें इस रिश्ते को स्वीकार कर लेना चाहिए"
"हम भी यही सोचते हैं। हमें एक ही चिंता सताती रहती है कि इस
रिश्ते का अपनी बिरादरी वाले कहीं विरोध न करें क्योंकि हम किसी भी सूरत में कुँवर
के राजनीतिक भविष्य के साथ खिलवाड़ नहीं कर सकते हैं”
"महाराज फिर बीकानेर चलने के प्रोग्राम का क्या करें?”
"रानी शारदा आप अपनी ओर से तैयारी रखिये हम आपको उचित समय पर
सूचित करेंगे कि क्या करना है?"
"मेरा भी यही विचार है और इन परिस्थितियों में यही उचित भी
लग रहा है"
राजा साहब ने रानी की बात सुनी तो, पर अपनी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और यह कहते हुए उठ खड़े हुए
कि वह अब ऐश महल जा रहे हैं।
इधर शिखा सबा से मिलने के लिये ऐश महल में पहले ही से वहाँ
मौजूद थी। शिखा ने सबा से खोद- खोद कर यह पूछने का प्रयास किया कि अबकी बार उसके
साथ क्या-क्या हुआ। सबा ने रिश्तों की नज़ाकत समझते हुए कुछ ऐसा तो नहीं बताया जो
कि किसी को बुरा लगता पर यह ज़रूर बताया कि वह कुँवर के साथ किले और महलों में खूब
घूमी, चाँदनी रात को
एक दिन मोटर बोट पर दरिया में वह कुँवर के साथ घूमने गई और उसको वहाँ जाकर बड़ा
अच्छा लगा।
जब शिखा और सबा आपस में बात कर ही रही थीं तो वहीं राजा
साहब भी आ गए और दोनों से बोले कि वे अब दिल्ली वापसी की तैयारी कर लें क्योंकि
कुँवर की एक पार्लियामेंट्री कमेटी की मीटिंग है तो उन्हें दिल्ली जाना पड़ेगा।
अबकी बार वे लोग भी उसके साथ चली जाएं तो आराम से दिल्ली पहुँच जायेंगी। शिखा ने राजा साहब से पूछा,
"भाई का कब का प्रोग्राम है"
"तुम उन्हीं से बात कर लो न"
"जी पिताश्री"
शिखा और सबा को बात करता छोड़ राजा साहब गौहर बेग़म के पास
आकर बैठ गए और बोले, "बेग़म
अब आप ही बताइए कि कुँवर और सबा के मसले में आगे क्या करना है? आपको तो पता ही है कि महारानी ने तो सबा को अपने कंगन पहना
कर अपने मन की बात बता दी है"
गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम मेरा तो यह विचार है कि अगर बच्चे एक दूसरे को चाहते
हैं तो इनकी शादी की बात आगे बढ़ानी चाहिए"
"आप ही पूछिये एक दिन दोनों को आमने सामने बिठा कर कि उनकी
क्या मर्ज़ी है?"
"जी बेहतर। मैं आज ही बात करती हूँ और बाद में आपको पूरी बात
बताऊँगी"
"अच्छा तो हम चलते हैं और कुँवर को हम आपके पास भेजते हैं"
“जी” कह कर गौहर बेग़म ने राजा साहब को विदा किया।
राजा साहब के साथ ही शिखा भी सूर्य महल लौट आई और रानी माँसी को दिल्ली वापस जाने की बात बताई।
कुँवर के आते ही गौहर बेग़म ने सबा को बुलवाया और दोनों को
आमने-सामने बिठा कर पूछा, "अब बचपना छोड़ कर तुम दोनों मुझे यह बताओ कि तुम एक दूसरे से वाकई मोहब्बत करते
हो और शादी के लिये तैयार हो"
सबा ने झट से जवाब दिया, "जी"
"जी, क्या जी साफ-साफ बोलो"
"मैं कुँवर से मोहब्बत करती हूँ और उनके साथ शादी के लिये
तैयार हूँ"
सबा से पूछ लेने के बाद गौहर बेग़म ने कुँवर की ओर रुख किया, “जी मैं भी” इतना ही कह कर
कुँवर चुप रह गए।
“कुँवर आप अपनी मोहब्बत का
खुल कर इज़हार कीजिये, यह पॉलिटिशियन वाली भाषा मुझे जरा कम समझ में आती है"
इस पर कुँवर अपनी जगह से उठे और सबा के पास जाकर उसका हाथ
अपने हाथ में लेकर बोले, "जी मौसी जी मैं सबा से बेहद मोहब्बत करता हूँ, बिना उसके अब मैं
नहीं रह सकता हूँ"
गौहर बेग़म ने दोनों को अपने पास बुलाया और दोनों की पेशानी
चूम कर अपना आशीर्वाद दिया।
कथांश:47
कुँवर अनिरुद्ध सिंह ने दिल्ली पहुँच कर शिखा और सबा को
उनके होस्टल में छोड़ कर वह अपने फ्लैट के लिए निकलने ही वाले थे कि शिखा पूछ बैठी,
"भाई, सबा पूछ रही है अब कब मिलने आओगे?"
कुँवर ने भी सबा की ओर देखते हुए कहा,
"तुम सबा को बता देना, जब आऊँगा तो बात कर ही आना चाहूँगा। वैसे मेरी अब वो उम्र
नहीं है कि मैं गर्ल्स हॉस्टल के दरवाज़े पर आकर खड़ा रहूँ"
कोई एक नेता दिल्ली आ भर जाए उसके बाद फिर न जीने की न मरने
की फुर्सत। कांस्टीट्यूएंसी के इतने काम, सरकारी विभाग अध्यक्षों के साथ मीटिंग, कभी पार्टी हेड क्वार्टर में तो कभी पार्लियामेंट्री कमेटी
की मीटिंग।और विशेषरूप से जब कोई एमपी अनिरुद्ध सिंह जैसा हो जो अपने काम के प्रति
कटिबद्ध हो तो उसके पास अपने व्यक्तिगत सवालों के लिये भी समय नहीं रहता।
देखते देखते समय बीतता रहा, इधर प्रधानमंत्री का कार्यक्रम तय हो गया कि वह अपने
क्षेत्र रायबरेली में 9 अप्रैल,
1973 को दौरा करेंगी। अपने इस दौरे के दौरान वह पार्टी वर्कर्स
के साथ तो मिलेंगी ही साथ ही साथ जनता के चुने हुए प्रतिनिधियों से भी मुलाक़ात
करेंगी। प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के साथ ही कुँवर अनिरुद्ध सिंह के लिये भी यह
दौरा बहुत महत्वपूर्ण था चूँकि जिन जिन योजनाओं पर कुँवर ने काम किया था उसकी सूची
तथा उसमें क्या प्रगति हुई उसकी पूरी जानकारी तैयार कर प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजनी थी। यह भी तय करना
था कि भविष्य में वे कौन से विषय हो सकते हैं जिन पर प्रधानमंत्री जी को अपनी
पब्लिक मीटिंग में बोलना है।
जब दिल्ली से फुर्सत मिली तो कुँवर अपने क्षेत्र लौट आये
जिससे कि वह अपने कार्यकर्ताओं के साथ बैठ कर पूरी योजना बना पाएं कि किस गाँव से
कितने लोग प्रधानमंत्री जी की सभा में पहुँचेंगे और उनके खाने पीने और यातायात की
क्या व्यवस्था होगी इत्यादि।
निश्चित समय और दिन 9, अप्रैल,1973 को प्रधानमंत्री जी हेलीकॉप्टर से रायबरेली आईं और गोरा बाज़ार में केंद्रीय
विद्यालय तथा इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट का उद्घाटन किया और उसके बाद
सुल्तानपुर रोड पर इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की एक नई स्विचिंग फ़ैक्टरी' का शिलान्यास किया। उसके बाद एक बड़ी जन सभा में उन तमाम
कार्यक्रमों की घोषणा की जो आने वाले दिनों में लखनऊ, रायबरेली, सुल्तानपुर और प्रतापगढ़ जनपदों में शुरू किये जाने वाले थे जिनसे यह आशा की जा
रही थी कि वे आने वाले निकट समय में इस क्षेत्र के समग्र विकास में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाएंगे। इंडियन टेलीफोन इंडस्ट्रीज लिमिटेड की रायबरेली इकाई के प्रथम
फेज में लगभग 5,500 तकनीशियनों और इंजीनियर्स को नौकरी मिलने की उम्मीद भी जगाई, साथ ही साथ
कुछ सहायक इकाइयों के आने से भी इस क्षेत्र के तुरत विकास में बड़ी मदद मिलने की
उम्मीद थी। इस सभा के अंत में एकत्र जन समूह ने एक स्वर से प्रधानमंत्री के नाम के
जयकारे लगाए।
प्रधानमंत्री भी अपनी इस रायबरेली की यात्रा से बहुत प्रसन्न
दिखाई दे रही थीं जिसके लिये उन्होंने कार्यकर्ताओं और इस क्षेत्र के सम्मानित
नेताओं का हार्दिक धन्यवाद किया।
कुँवर अनिरुद्ध सिंह तथा कांग्रेस पार्टी के तमाम
कार्यपालकों ने प्रधानमंत्री जी के इस कार्यक्रम को सफल बनाने में महत्वपूर्ण
भूमिका अदा की जिसकी क्षेत्र में भूरि-भूरि प्रशंसा हुई।
कथांश:48
कुँवर तो इस बीच राजनीतिक घटनाओं में इतने व्यस्त रहे कि
उन्हें अपनी निज़ी ज़िन्दगी के बारे में सोचने समझने के लिये कुछ समय ही नहीं मिला।
इधर राजा साहब के ऊपर राजकुमारी शिखा की शादी को शीघ्र निपटाने का जोर रानी शारदा
देवी जी के द्वारा बढ़ाया जा रहा था। इन सब सवालों के बीच से गुजरते हुए एक दिन
गौहर बेग़म ने राजा साहब के लिये संदेशा भिजवाया कि अगर मुनासिब हो सके तो वे ऐश
महल तशरीफ़ लाएं कुछ ज़रूरी बात करनी है। राजा साहब के आते ही गौहर बेग़म ने कुँवर और
सबा की आपसी रज़ामन्दी की बात बता कर राजा साहब को एक बड़ी चिंता से जहाँ मुक्त कर दिया
वहीं राजा साहब के ऊपर यह बड़ी जिम्मेदारी भी डाल दी कि वे इलाके के राजपूतों और
ब्राह्मणों को क्या कह कर समझायेंगे कि वह अपने कुँवर की शादी किसी ऐसी गैर
बिरादरी में कर रहे हैं जिसके बारे समाज में यह आम तौर पर कहा जाता हो कि लड़का
कहीं से भी व्याह कर ले पर बस दलितों, पिछड़ी जातियों में और खास तौर पर मुसलमानों के यहाँ तो शादी
कभी भूल कर भी न करे।
राजा साहब गौहर बेग़म की खबर पर जहाँ कुछ खुश भी हुए वहीं
उनकी समस्या भी विकराल रूप धारण कर उनके सामने आकर खड़ी हो गईं। बावजूद इसके, एक राजा के
रूप में कभी भी हार न मानने वाले व्यक्तित्व को धारण करने वाले इस व्यक्ति ने गौहर
बेग़म से कहा,
"हम दोनों की इच्छाओं के अनुरूप ही काम करेंगे। एक काम करिए
आप भोपाल जाइये और हमारी ओर से कुँवर के रिश्ते की बात शौक़त बेग़म से करिए और उनसे
यह भी कहिये कि हम इस निकाह के लिये तैयार हैं पर हमारी एक शर्त है कि कुँवर का
निकाह शिखा की विदाई के बाद ही सम्भव हो पायेगा क्योंकि हम नहीं जानते हैं कि यह
रिश्ता राजा साहब माणिकपुर के गले उतरेगा कि नहीं"
गौहर बेग़म ने राजा साहब की बात से इत्तिफ़ाक़ रखते हुए यह
माना कि इन दोनों की शादी के पहले शिखा बेटी की शादी हो जानी चाहिए तब तक इसके
बारे में हम कहीं भी इस प्रश्न पर कोई चर्चा समाज में नहीं करेंगे। गौहर बेग़म ने अपनी ओर से प्रस्ताव रखा कि वह जल्दी से जल्दी भोपाल
जाने की कोशिश करेंगी।
राजा साहब की बढ़ी हुई उलझनों और उन्हें परेशान देख कर गौहर
बेग़म ने राजा साहब के लिये एक जाम बनाया और उनके हाथ में दिया। राजा साहब ने जब दो
तीन जाम पी लिये तो गौहर बेग़म से कहा, "बेग़म हम कुँवर की खुशी के लिये सब कुछ करने को तैयार हैं, हम उसे किसी भी हालत में
दुःखी नहीं देख सकते हैं"
"मैं इस बात को अच्छी तरह समझती हूँ हुकुम"
"अब सारा दारोमदार आपके ऊपर है"
"आप मुझ पर विश्वास रखें, इस मसले को मैं ठीक ढंग से सुलझा सकूँगी"
"हमें आप पर पूरा भरोसा है” राजा साहब ने यह कह कर गौहर बेग़म के साथ खाना खाया और आँखे
मूँद गौहर बेग़म के आगोश में लेट गए। गौहर बेग़म को एक पुराना नगमा याद हो आया। जिसे उन्होंने अपने सुरीले अंदाज़ में
जब गाया तो राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ।
अगर मुझसे मोहब्बत है,
मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर एक आँसू,
मुझे मेरी कसम दे दो
अगर मुझसे...
मुझे सब अपने ग़म दे दो
इन आँखों का हर एक आँसू,
मुझे मेरी कसम दे दो
अगर मुझसे...
तुम्हारे ग़म को अपना ग़म बना लूँ
तो करार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छूपा लू,
तो करार आए
वो हर शय जो तुम्हें दुःख दे,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...
तो करार आए
तुम्हारा दर्द सीने में छूपा लू,
तो करार आए
वो हर शय जो तुम्हें दुःख दे,
मुझे मेरे सनम दे दो
अगर मुझसे...
नगमा सुनते-सुनते राजा साहब को कब नींद आ गई पता ही न लगा जब सुबह आँख खुली तो
उन्होंने गौहर बेग़म को सोता पाया।
कथांश:49
राजा साहब से बात कर के गौहर बेग़म ने भोपाल जाने का
प्रोग्राम तय किया कि कांकर से वह भोपाल के लिये निकलेंगी और उधर से सबा रेल गाड़ी
से भोपाल पहुँच जाएगी। सईद गौहर बेग़म से रेलवे स्टेशन पर जब मिला तो गौहर बेग़म ने
यही पूछा,
"सबा भी पहुँच गई कि नहीं"
सईद के यह कहने पर कि वह सबा को खुद दो घंटे पहले ही रेलवे स्टेशन से
शौक़त मंज़िल छोड़ कर आया है। सईद की कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ही खालाजान
का और सबा का प्रोग्राम भोपाल आने का क्यों बना इसके पीछे क्या कारण हो सकता है।
इस वजह से वह पूछ ही बैठा, "खालाजान कांकर में सब लोग ठीक से हैं, शिखा कैसी है? अचानक ऐसा क्या हो गया कि आपको भोपाल इस तरह जल्दबाज़ी में
आना पड़ा?"
"चल पहले हवेली चल वहीं पहुँच कर बात करुँगी” कह कर गौहर बेग़म ने बात टालने की कोशिश की।
शौकत मंज़िल पर पहुँचने पर जो सवाल सईद ने किया वही सवाल शौक़त बेग़म ने किया। गौहर
बेग़म ने उनसे भी यही कहा कि पहले मुँह हाथ तो धो लेने दो, कुछ नाश्ता वग़ैरह करवाओ तो फिर आराम से बैठ कर बात करते
हैं। कुछ देर बाद जब दोनों बहनें मिलीं तो आपस में बात हुई और गौहर बेग़म ने कहा,
"पहले सबा को बुला लो। आगे की बातचीत उसकी मौजूदगी में हो, वही बेहतर होगा"
जब तक सबा आती तब तक गौहर बेग़म ने अपनी बात रखते हुए कहा,
“आपा हमारी निगाहों के
सामने न जाने क्या-क्या होता रहा और हमें कुछ पता ही न लगा? हम उससे अनजान बने रहे और दो जवान दिल एक दूसरे से मोहब्बत कर
बैठे"
"गौहर तू अपनी बात खुल कर कर बता पहेलियाँ न बुझा"
"आपा मैं जो बात कर रही हूँ, यह उस वक़्त की बात है जब हम लोग पिछली बार आपके यहाँ आये थे
तब सबा कुँवर के जज़्बात से खेलते-खेलते न जाने कब उसके इतने करीब आ गई कि वह कब
उसकी हो गई हमें कुछ पता ही न लगा"
शौकत बेग़म ने गौहर बेग़म से अपने मन की बात कहते हुए कहा,
"गौहर तू क्या कह रही है, मुझे तो शक़ था कि शिखा हमारे सईद के पीछे पड़ी हुई थी और
इसके बारे में सईद ने एक बार इशारों इशारों में यह बात मुझसे कही भी थी पर मैंने
इस पर कभी गौर ही नहीं किया, यह मान कर कि बच्चे हैं ये सब थोड़ा बहुत आपस में चलता ही रहता है। लेकिन जिस
तरह से तू अब बता रही है उससे तो लगता है कि पानी सिर के ऊपर से बह निकला है"
"जी आपा"
इतने में सबा भी आ गई। गौहर बेग़म ने उसे बड़े प्यार से अपने
पास बिठाया और पूछा, "कैसी
है? पढ़ाई लिखाई कैसी चल रही है?"
"जी खालाजान ठीक चल रही है"
"कितने दिन तक अभी और पढ़ने का इरादा है?"
"जी मैं कुछ समझी नहीं"
"मैं यह पूछ रही हूँ कि बी ए पास करने के बाद क्या इरादा है?"
सबा ने एक बार शौकत बेग़म की ओर देखा और धीरे से बोली,
"मेरा बस चले तो मैं तो एम ए करूँऔर उसके बाद पीएचडी भी” सबा ने जवाब देते हुए कहा।
"लगता तो नहीं कि तेरे इरादे आगे पढ़ने वाले हैं"
"आप ऐसे क्यों कह रही हैं, आपको तो मेरे बारे में सब कुछ पता है” सबा ने जवाब देते हुए कहा।
सबा का जवाब सुन कर शौकत बेग़म ने पूछा,
"सबा बेटे ऐसे बात नहीं करते हैं। तुम्हारी खाला यह जानना
चाह रही हैं कि अगर तुम्हें पूरा मौका मिले तो तुम आगे क्या करना चाहोगी?"
"जी अम्मी मैं अभी और पढूँगी"
इस पर गौहर बेग़म ने पूछा, "तूने कभी इस मसले पर कुँवर से बात की है कि नहीं?"
"जी नहीं खाला जान मेरी कभी उनसे इस मुआमाले में बात नहीं
हुई है"
शौकत बेग़म बीच में टोकते हुए बोल उठीं,
"इसका मतलब हम क्या लगाएं कि तू कुँवर से बात तो करती है और
खूब हँस-हँस कर उनके बहुत करीब जाकर बात भी करती देखी गई है तो उनसे फिर तू किस
मसायल पर बात करती है?"
शौक़त बेग़म के सवाल से जब सबा घिरती नज़र आई तो गौहर बेग़म ने
बीच में कमान सँभालते हुए कहा, "अब पहेली बुझाने से कोई बात नहीं बनेगी आपा मैं बताती हूँ
कि आपकी बेटी सबा हमारे बेटे कुँवर अनिरुद्ध सिंह से इश्क़ करने लगी है और हमारा
बेटा भी सबा को दिल दे बैठा है। अब बस हमें ये पता करना है कि ये लोग निकाह कब
करना चाहेंगे। मैं भी आपके पास इसी मक़सद से आई हूँ कि अब आप सबा को हमको सौंपने की
तैयारी शुरू कर दीजिए"
शौक़त बेग़म ने सबा से पूछा, "सबा तेरी खाला को तो जवाब मैं बाद में दूँगी पर पहले बेटी
यह बता कि क्या तू कुँवर से मोहब्बत करती है या नहीं?”
सबा जब कुछ वक़्त तक चुप रही तो गौहर बेग़म बीच में बोल पड़ीं,
"बेटी जब इश्क़ करते हैं तो डरते नहीं हैं और जो डरते हैं वे
इश्क़ नहीं करते"
"बता सबा मैं तेरे मुँह से सुनना चाहती हूँ कि आखिर तेरे दिल
में क्या है?"
"जी अम्मी"
"क्या जी अम्मी?" शौक़त बेग़म ने फिर पूछा।
"जी मैं कुँवर से मोहब्बत करती हूँ"
"उनकी क्या मर्ज़ी है?"
"जहाँ तक मैं जानती हूँ वह भी मुझसे बेपनाह मोहब्बत करते हैं
और हमारे दिल में कोई खोट नहीं है" कह कर सबा चुप
हो गई।
"चल तेरी मर्ज़ी तो जान ली? गौहर चल मैं अपनी बेटी तुझे देने को तैयार हूँ पर एक शर्त
पर कि तू अपनी बेटी मुझे दे दे, मेरे सईद के लिये। मेरा सईद शिखा से बेपनाह मोहब्बत करता है"
शौक़त बेग़म की यह बात सुन कर तो गौहर बेग़म के तो तोते ही उड़
गए।
कथांश:50
गौहर बेग़म की समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या कहें, इसी बीच सबा बोल उठी, "अम्मी लेकिन शिखा की तो सगाई हो चुकी है कुँवर मानवेन्द्र
सिंह माणिकपुर के साथ"
गौहर बेग़म की जान में जान आई तो वह बोलीं,
"आपा यह बात कभी ज़ाहिर ही नहीं हुई कि सईद के दिल मे शिखा के
लिए कुछ चल रहा है, अगर यह
पता लग जाता तो आपकी बात मानने में मुझे कोई उज्र नहीं होता। तब हर लिहाज़ में मेरी
बेटी सईद की दुल्हन बन सकती थी और सबा मेरी बहू"
वास्तव में दोनों बहनों के सामने ये सवालात इस तरह से उभरे
कि वे समझ ही नहीं पा रहीं थीं कि वे इस मुश्किल से कैसे निजात पाएं। एक अजीब सा
डर दोनों के दिलों में बैठ गया था। इसके बावजूद वे दोनों ही चाहती थीं कि कोई बीच
का रास्ता निकल आये।
शौक़त बेग़म ने हुकुम के बादशाह का पत्ता अपने पास रखते हुए
कहा, "मुझे भी कोई खबर नहीं थी कि सईद शिखा का कुछ चक्कर चल रहा है। यह तो मुझे सईद
ने बाद में बताया कि शिखा उसे बहुत अच्छी लगने लगी है"
गौहर बेग़म ने अपनी बात साफ करते हुए कहा,
"आपा अब तो आप शिखा की बात भूल ही जाइये और सबा की बात करिए"
"देख गौहर मैं अभी कुछ नहीं कह सकती हूँ, जब तक कि मैं सईद से इस मसले पर बात न कर लूँ"
"सबा उसकी बहन है इसलिये आपका उससे पूछना बिल्कुल वाजिब है।
आने दीजिये, सईद से मैं
आपके सामने बात कर लूँगी" कह कर गौहर बेग़म ने कुछ देर
के लिए बात सँभाल ली।
शौकत बेग़म ने कहा, "गौहर तेरे बेटे और बेटी ने हमारे घर में तूफान ला दिया"
"आपा मैं तो बहुत खुश हुई थी कि शिखा और सबा की दोस्ती की
वज़ह से ही हम ज़माने से दो बिछड़ी हुई बहनें मिल गईं। उम्मीद पर दुनिया कायम है, उम्मीद रखिये
आने वाले वक़्त में भी जो होगा अच्छा ही होगा"
"खुदा करे ऐसा ही हो मुझे बड़ा डर लग रहा है कि कहीं कोई
तूफान फिर से न खड़ा हो जाये जो हम दोनों को फिर से अलग थलग करे दे” कहते हुए शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म के दोनों हाथ अपने हाथ में ले लिए।
उन दोनों के माथे पर शिकन की लकीरें साफ दिखाई दे रही थीं और निगाहों में एक
अनजाना सा डर।
कथांश:51
देर रात जब सईद लौटा तो शौक़त और गौहर बेग़म ने मिल कर उसे
सारी बात बताई और पूछा, "अब तुम ही बताओ कि क्या किया जाए?"
सईद ने कहा, "यह बात तो बरसों से चली आ रही है कि हिंदू मुसमानों की लड़कियां तो अपने घर में
ले लेते हैं पर अपनी बेटियों की शादी मुसलमानों के यहाँ करना पसंद नहीं करते। सबा
के मुआमले में भी मुझे यही अहसास हो रहा है और जो लड़कियां अपने आप किसी तरह किसी
मुसलमान के यहाँ शादी कर भी लें तो हिंदुओं की पूरी जमात हो हल्ला मचाने लगती है"
गौहर बेग़म ने सईद को बीच में टोकते हुए कहा, "सईद एक बात बता कि तूने कभी खुल के शिखा से कहा कि तू उससे मोहब्बत करता है? दूसरा यह कि सबा को अगर कुँवर अच्छा लगने लगा तो इसमें
कुँवर की क्या गलती? कुँवर
ने सबा के साथ कोई ज़बरदस्ती तो नहीं की"
"खालाजान नहीं मैं सोचता ही रह गया और शिखा किसी और की हो
गई। अब मैं क्या करूँ?”
"चल सईद एक चीज और बता कि फिर शिखा को कैसे पता लगता कि तू
उसे दिल ही दिल चाहने लगा है। भाई, हमारे ज़माने में तो लोग मोहब्बत खुल कर किया करते थे, कभी इकतरफ़ा नहीं और अगर किसी ने इकतरफ़ा मोहब्बत किसी से की
भी तो उसका कोई मायने ही नहीं” शौक़त बेग़म ने भी सईद से पूछा।
सईद क्या जबाब देता बस इतना ही कह पाया,
"मैं सोच रहा था कि अबकी बार मैं सबा से कहता कि एक बार फिर
शिखा को किसी बहाने अपने साथ छुट्टियों
में भोपाल ले आये तो मैं उससे बात करने की सोच रहा था"
इस पर शौक़त बेग़म ने कहा, "जब चिड़िया चुग गईं खेत तो अब रोने से क्या फ़ायदा?"
गौहर बेग़म ने भी बीच में बोलते हुए कहा,
"तू अपने लिये सबा की ज़िंदगी तो कुर्बान नहीं कर सकता है
मेरे बेटे?"
"मैं समझ रहा हूँ खालाजान"
"तो तू सबा के निकाह के लिये तैयार हो जा" शौक़त बेग़म ने कहा।
"उसके निकाह के लिए मैं तो कोई भी बात नहीं कह रहा। बस
ख़लाजान एक काम कर दो किसी भी तरह शिखा से एक बार मेरी मुलाक़ात करा दो। उसके बाद भी
अगर उसका वही फैसला रहा तो मुझे कोई एतराज़ नहीं होगा"
"तू क्या कह रहा है, कुछ समझ भी है तुझे?" गौहर बेग़म ने बीच में टोकते हुए कहा,
"अगर राजा साहब को ज़रा सा भी शक़ हो गया कि मैं किसी ऐसे
मुआमले में शरीक़ हूँ तो तू जानता है कि वह क्या करेंगे? सबसे पहले तो वह मुझे गोली से उड़ा देंगे और मैं नहीं जानती
कि उनका शिखा के ऊपर क्या कहर बरपेगा?"
सईद भी अपने दिल से मज़बूर बोल पड़ा, "फिर आप ही बताइए कि मैं क्या करूँ?"
शौक़त बेग़म ने बीचबचाव करते हुए कहा, "बेटा तूने हम सब को मुश्किल में डाल दिया है। अब तू जा खाना खाना खा ले। सबा को भी साथ ले ले। हम लोगों को सोचने दे कि
कोई हल है इस मसाइल का"
गौहर बेग़म ने भी सईद को याद दिलाया कि राजा साहब के अब्बा
ने अपने एक दोस्त को वचन दे दिया था कि वह अपने बेटे की शादी उनकी लड़की से कर
देंगे। राजा साहब ने, अपने अब्बा की बात न ख़राब हो सिर्फ़ इसलिये महारानी करुणा जी से शादी की। उसके
बाद उन्होंने अपनी मन मर्ज़ी की दूसरी शादी रानी शारदा देवी के साथ की।
गौहर बेग़म ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा,
"राजा साहब के परिवार के लोगों के लिए कोई भी दिया हुआ वचन
पत्थर की लकीर के समान है और जबकि शिखा की सगाई कुँवर महेंद्र से हो गई है तो मेरी
समझ के तो बाहर की बात है कि अब शिखा के मामले में कुछ हो भी सकता है?"
"जा भाई जा तू खाना खा और सबा को भी खिला दे। हमें अपने हाल
पर छोड़ दे” शौक़त बेग़म परेशान हो कर बोल पड़ीं।
कथांश:52
गौहर बेग़म की आँखों में भला नींद कहाँ आने वाली थी उनको यही चिंता सता रही थी कि
राजासाहब का अगर फोन आ गया तो वह उन्हें क्या जवाब देंगी? शौक़त बेग़म उनके साथ ही एक बिस्तर पर लेटी हुईं थीं, उन्होंने देखा कि गौहर बेग़म की साँस तेज-तेज चल रही है और वह पसीने से लथपथ हैं तो
उन्होंने तुरंत सबा और सईद को आवाज़ दी। सईद ने आते ही नब्ज़ देखी तो बोला, "अम्मी, खालाजान की साँस तो बहुत तेज चल रही है, लगता है इन्हें हार्ट अटैक पड़ा है इन्हें तुरंत हॉस्पिटल लेकर
चलना होगा"
सईद ने झटपट गाड़ी निकाली और वे सभी गौहर बेग़म को लेकर हमीदिया हॉस्पिटल, मेडिकल कॉलेज की ओर भागे। हॉस्पिटल में इमरजेंसी में किसी तरह ले देकर भर्ती
कराया और वहाँ के डॉक्टर्स
ने उन्हें तुरंत ऑक्सीजन लगाई और आईसीयू में ट्रांसफर कर इंजेक्शन वगैरह दिए। देर रात तीन बजे जब उनकी हालत में कुछ सुधार दिखाई पड़ा
तब सबने कहीं राहत की साँस ली।
अगली सुबह सईद ने कांकर फोन कर राजा साहब को गौहर बेग़म की बीमारी की ख़बर दी। ख़बर
सुनते ही राजा साहब तो सकते में आ गए पर फिर अपने आप को सँभालते
हुए बोले, "कुँवर अभी दिल्ली में है हम उसे तुरंत भोपाल भेजते हैं और शाम तक
हम लोग भी किसी न किसी तरह भोपाल पहुँच जाएंगे"
दोपहर की फ्लाइट से कुँवर भोपाल पहुँच गए। एयरपोर्ट से कुँवर सीधे शौक़त मंज़िल गए
वहाँ उनको कोई नहीं मिला बस सबा घर पर थी। कुँवर को देखते ही सबा उनके सीने से जा
लगी और गौहर बेग़म के आने के बाद जो कुछ भी भोपाल में हुआ उसकी जानकारी कुँवर को
दी। डरते-डरते यह भी कहा, "कुँवर मैं नहीं जानती कि अब हमारा क्या होगा। अम्मी अभी भी खालाजान की बात मानने को तैयार नहीं हैं"
कुँवर ने सबा को तसल्ली देते हुए कहा, "ये सब बात करने का यह कोई वक़्त नहीं है अभी तो मुझे छोटी मौसी की चिंता सता
रही है वह कौन से हॉस्पिटल में हैं, मुझे सबसे पहले वहाँ पहुँचना है"
"चलिये मैं आपको वहाँ ले चलती हूँ" कह कर सबा ने कार निकाली और कुँवर को लेकर वह हमीदिया हॉस्पिटल पहुँच गई। कुँवर जब शौक़त बेग़म से मिले तो उनसे यही पूछा, "गौहर मौसी का क्या हाल है?"
शौक़त बेग़म ने जवाब में कहा, "अभी तो कुछ कह नहीं सकते डॉक्टर्स ने ऑब्जरवेशन पर रखा हुआ है, आईसीयू में भर्ती है"
"क्या मैं उनसे मिल सकता हूँ?" कुँवर ने कहा।
कुँवर को लेकर शौक़त बेग़म आईसीयू की ओर बढ़ते हुए सबा से बोलीं, "तू हवेली जा, हो सकता है राजा साहब वहाँ पहुँचें कोई तो वहाँ होना चाहिये"
शाम होते होते राजा साहब, महारानी और रानी साहिबा सहित हवाई जहाज से सीधे भोपाल आ पहुँचे। आते ही वे लोग सीधे हमीदिया हॉस्पिटल गए, वहाँ गौहर
बेग़म की तबियत के बारे में शौक़त बेग़म और कुँवर से जानकारी ली। डॉक्टर्स से जब वे मिले तो उन्हें डॉक्टर्स ने
बताया कि फ़िलहाल गौहर बेग़म की तबियत स्टेबल है पर वे चौबीस घटों
के बाद ही कुछ कह सकेंगे।
राजा साहब समेत सभी लोग वहीं हॉस्पिटल में अच्छी खबर का इंतजार करते रहे। डॉक्टर्स
ने देर रात देखकर बताया कि गौहर बेग़म के हार्ट को पूरी ब्लड सप्लाई नहीं मिल रही है और लगता है कि उनकी एंजियोग्राफी करनी पड़ेगी तभी
वे कुछ कह पाएंगे।
अगले दिन डॉक्टर्स ने गौहर बेग़म की एंजियोग्राफी की और दो स्टेंट डाल कर धमनियों में रक्त प्रवाह में रुकावट को दूर किया। तीन दिनों तक उन्हें ऑब्जरवेशन में रख कर डिस्चार्ज करते हुए सलाह दी कि उन्हें दवाइयाँ नियमित
रुप से देनी हैं और आराम की सख्त जरूरत है। इसलिए उन्हें कम से कम एक महीने तक पूरा आराम करने की सलाह दी।
राजा साहब के यह पूछने पर कि क्या वे उनसे मिल सकते हैं तो डॉक्टर्स ने कहा,
"मिलिए पर उनके दिल दिमाग़ पर कोई जोर न आये इसलिये उनसे बातें न करियेगा"
गौहर बेग़म ने अपने पास शौक़त बेग़म, राजा साहब, महारानी, रानी शारदा देवी और कुँवर को देखा तो धीमी आवाज़ में कहा, "अरे आप सभी ने बेकार ही ज़हमत उठाई हमारे दिल का क्या, बहुत मजबूत है कुछ भी नहीं होगा। आप किसी तरह की चिंता न करें"
महारानी करुणा देवी ने गौहर बेग़म का हाथ अपने हाथ मे लेते हुए कहा,
"चिंता करना अब आप छोड़ दीजिए। अपने सब ग़म आप हमें दे दीजिये। बस आप जल्दी से जल्दी
ठीक हो जाइए और सही सलामत कांकर चलिये"
रानी शारदा देवी ने भी गौहर बेग़म से कहा, "आपके बिना हमारे हुकुम अधूरे हैं। अब आप जल्दी से जल्दी ठीक हो जाइए”
राजा साहब और कुँवर ने कुछ न कह कर भी गौहर बेग़म की आँखों में झाँक कर बहुत कुछ कह
दिया।
कथांश:53
जब तक गौहर बेग़म को डॉक्टर्स ने भोपाल से बाहर जाने की इजाज़त नहीं दी तब तक पूरा
कांकर राजपरिवार भोपाल में ही रहा।
इसी बीच जब शौक़त बेग़म को लगा कि गौहर बेग़म से आज वह अपने दिल की बात कह सकतीं हैं
तो वह उनसे मिलने उनके कमरे में आईं। उनके दोनों हाथ अपनी
हथेलियों के बीच लिये उनको प्यार से चूमा और बड़े होने के नाते प्यार से बोलीं,
"गौहर यह क्या किया, तूने इतना बोझ अपने दिल पर डाल लिया। तुझे क्या लगा कि हमें हमारी बेटी की खुशियाँ
प्यारी नहीं हैं?"
गौहर बेग़म शौक़त बेग़म के चेहरे को देख मुस्कुरा भर दीं। शौक़त बेग़म को जब लगा कि गौहर
के दिल पर अभी भी कोई बोझ है तो वह उनका हाथ लेते हुए बोली,
"सबा जितनी मेरी है उससे ज़्यादा वह तेरी है। मेरी बेटी तेरी बहू रानी बनेगी तो क्या मुझे ख़ुशी नहीं होगी? जा दे दिया मैंने अपनी बेटी का हाथ ज़िन्दगी भर के लिये तेरे
बेटे के हाथ में। अब ये तेरे ऊपर है कि तू उसे कब अपने घर ले
जाती है?"
गौहर बेग़म शौक़त बेग़म की बात सुनीं तो उनकी आँखों से आँसुओं की अविरल धारा बह निकली।
कुछ देर बाद जब होश सँभाला तो बोलीं, "आपा ये ख़ुशी के आँसू हैं। अब कम से कम मैं राजा साहब के
सामने सिर उठा कर तो जा सकूँगी"
"तुझे कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है, सभी लोग यहीं पर हैं। तू यह खुशख़बरी अपने आप उनको सुना। मैं उन्हें तुझसे मिलने
के लिये भेजती हूँ"
जब सभी लोग अंदर आये तो गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपका काम हो गया"
राजा साहब ने गौहर बेग़म की पेशानी चूम कर उनका शुक्रिया अदा किया और बोले,
“बेग़म हम किस तरह आपका
शुक्रिया अदा करें कह नहीं सकते, बस आप ठीक हो जाइए और सही सलामत हमारे साथ कांकर चली चलिये"
कुँवर जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने भी इतना ही कहा, "चलिये छोटी मौसी आपको कांकर चलना है। हमारे बहुत से काम हैं जो अधूरे हैं जो
अभी आपको अपने हाथों से ही पूरे करने हैं"
महारानी और रानी साहिबान जब मिलीं तो उनकी आँखें भी नम थीं और उन्होंने भी बस यही कहा,
"बेग़म साहिबा कांकर में सब आपकी राह देख रहे हैं"
कथांश:54
कुछ दिन बाद राजा साहब सबके साथ गौहर बेग़म को लखनऊ अपने कैसरबाग़ वाले 'कांकर हाउस' पर ले आये। गौहर बेग़म का इलाज़ राजा साहब की इल्तिज़ा पर केजीएमसी मेडिकल कॉलेज के 'लॉरी हार्ट रिसर्च सेंटर' के प्रोफेसर लाल ने अपने हाथ में लिया। इधर राजा साहब माणिकपुर को जब को जब
गौहर बेग़म की तबियत के बारे में और यह पता लगने पर कि कांकर का पूरा राजपरिवार आजकल कैसरबाग़ में है तो उनसे मिलने आये।
कांकर राजपरिवार के हालचाल
लिये और अपनी ओर से भरपूर मदद का आश्वासन दिया।
महारानी और रानी साहिबा एक दिन बीच में समय निकाल कर माणिकपुर हाउस रानी रत्ना से
मिलने गईं जिससे कि शिखा की शादी के बारे में बात आगे बढ़ाई जा
सके। रानी रत्ना ने उन्हें बताया कि उनके कुल पुरोहित ने शारदीय दशहरे के दिनों
में से षष्टमी का दिन कुँवर महेंद्र और राजकुमारी शिखा के विवाह के लिये शुभकारी बताया है। इस पर महारानी करुणा देवी ने रानी रत्ना से कहा कि उन दिनों में कांकर
राजपरिवार की प्रथा शारदीय नव दुर्गा के भव्य आयोजन की चली आ रही है इसलिये वे राजा साहब से बात कर बाद
में ख़बर करायेंगी। रानी रत्ना ने भी अपनी ओर से यही कहा शुभ
विवाह की तिथि तो दोनों परिवारों की सहमति से ही सुनिश्चित होनी चाहिए।
कुछ दिन लखनऊ में आराम करने के बाद जब प्रोफेसर लाल ने गौहर बेग़म को ख़तरे से बाहर
होने का सर्टिफिकेट दे दिया तो उसके बाद राजा साहब मय परिवार
कांकर वापस लौट आये।
एक दिन शाम को जब राजा साहब ऐश महल आये तो ख़ानम जान बोल पड़ीं,
"हुकुम आप हमारी गौहर को सही सलामत वापस ले आये इसके लिये हम किस मुहँ से आपका
शुक्रिया अदा करें। बस एक गुज़ारिश है कि हमारी बेटी को बस आप हमारे पास यहीं रहने
दीजिये अब कभी बाहर न भेजिएगा"
राजा साहब ने सोचा कि अब ख़ानम जान को क्या बताया जाय कि कितने अहम सवालात को
सुलझाने के लिये गौहर बेग़म को मज़बूरी के चलते अकेले भोपाल भेजा था, इन सब के बाबजूद राजा साहब ने ख़ानम जान की बात रखते हुए कहा, "जी ख़ानम जान हम आपकी बात का खयाल रखेंगे"
राजा साहब जब गौहर बेग़म से मिले तो उन्होंने उनके बालों को बड़े प्यार से सहलाया, उन्हें बहुत देर तक प्यार भरी नजर से ताकते रहे जब गौहर बेग़म को यह लगा कि राजा
साहब कुछ पूछना चाह रहे
हैं पर कुछ भी बोल नहीं रहे हैं तो उनसे रहा नहीं गया, बेचैन होकर पूछ ही लिया, "आप पूछिए जो भी हमसे पूछना चाहते हैं। हम खुदा से झूठ बोल
सकते हैं पर आपसे नहीं"
"बेग़म हम परेशान इस बात से हैं कि आख़िर वह क्या बात थी जो आपके दिल को इतना बड़ा सदमा दे गई कि आपको हार्ट अटैक पड़ गया" राजा साहब ने गौहर बेग़म को अपने सीने से लगा कर पूछा।
"मेरा खुदा मेरे साथ है पर हुकुम आप भी अपना दिल मज़बूत कर लीजिए, मैं नहीं चाहती कि आपको कुछ हो"
"ऐसी क्या बात है बेग़म?"
राजा साहब को गौहर बेग़म ने वे सब बातें बताईं जो भोपाल में उनके साथ शौक़त बेग़म, सईद और सबा के बीच हुई थीं। आख़िर में ये भी बताया कि जब मेरी तबियत ठीक हुई और जब
शौक़त बेग़म उनसे मिलने आईं तब
जाके वह सबा और कुँवर के निकाह के लिए तैयार हुईं।
राजा साहब के चेहरे पर एक शिकन की लहर सी आई पर उस पर काबू करते हुए बोले,
"शिखा ने कभी कुछ आपसे कहा, कभी कुछ सबा से सईद के बारे में कहा?"
"मैंने कहा न हुकुम, मुझे या शौक़त को इसकी बाबत कुछ पता नहीं है"
"हम आपकी हर बात पर विश्वास करके ही यह जानना चाहते हैं कि हमसे या रानी शारदा से शिखा के लालन पालन में कहाँ कुछ
कसर रह गई?"
"नहीं हुकुम आपकी और रानी शारदा देवी जी की तरफ से शिखा बेटी की परवरिश में कोई कमी नहीं हुई, अगर कोई ऐसी बात होती तो हम यह पक्का जानते हैं कि कोई कुछ न जानता पर हमको हमारी
बेटी शिखा, नहीं तो सबा हमें कुछ न कुछ ज़रूर बता देती। आप शिखा को लेकर नाहक ही परेशान हो रहे हैं उसने तो कुछ कहा ही नहीं बल्कि वह तो कुँवर महेन्द्र से मिलने के
बाद बड़ी खुश थी। सईद का कोई क्या करे अगर वह इकतरफ़ा प्यार करने लगा है?"
राजा साहब ने बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "छोड़िये भी, बस अब हमें यह करना है कि शिखा की शादी जल्द से जल्द हो जाय जिससे यह
मसला हमेशा हमेशा के लिये
ख़त्म हो जाय"
"जी मेरे खयाल में भी यही वक़्त का तक़ाज़ा है और यही हम लोगों को करना भी चाहिए"
कथांश:55
राजा साहब ने अपने कुल पुरोहित तथा दुर्गा मंदिर के पुजारी शास्त्री जी को एकांत
में अपने पास बुलाया और शिखा और कुँवर महेंद्र के विवाह की
संभावित तिथियों पर चर्चा
की पर ऐसी कोई भी तिथि नहीं निकल रही थी जो निकट भविष्य में हो। जितनी भी तिथियाँ निकल रही थीं वे सब की सब नवंबर के आख़िर या दिसंबर
के द्वितीय सप्ताह की निकल
रही थीं। राजा साहब ने वे सभी तिथियाँ नोट कर और शास्त्री जी को
समुचित विदाई देकर विदा किया।
एक दिन रानी शारदा देवी को लेकर राजा साहब माणिकपुर हाउस, कैसर बाग़ लखनऊ आये और उन्होंने शिखा और कुँवर महेंद्र के
विवाह की तिथि दस दिसंबर की तय कर दी। बातों ही बातों में पता चला कि कुँवर भी
अक्टूबर के अंतिम सप्ताह तक ही इंग्लैंड से भारत लौट पाएंगे। राजा साहब ने अपने मित्र मानवेंद्र सिंह, राजा साहब माणिकपुर को बताया कि अगस्त में रानी शारदा देवी और शिखा का प्रोग्राम
भी लंदन जाने का है। अगर कुँवर वहाँ कुछ समय इन लोगों के साथ बिता सकें तो और भी उत्तम होगा।
मानवेन्द्र सिंह ने कहा, "क्यों नहीं कुँवर को रानी साहिबा और शिखा से मिल कर बहुत ख़ुशी होगी”
इसके बाद राजा साहब रानी शारदा के साथ कांकर लौटने के लिये निकल लिये। रास्ते में
जब रानी शारदा देवी ने पूछा, "महाराज यह लंदन जाने की बात बीच में कहाँ से आ गई?"
राजा साहब ने उत्तर दिया, "हम चाहते हैं कि हमारी बेटी इंग्लैंड के माहौल से पहले से ही वाकिफ रहे जिससे उसमें किसी प्रकार की हीन भावना न
आये। आप उसके साथ रहेंगी और आप दोनों के साथ रहेंगे कुँवर अनिरुद्ध सिंह जिससे कि आपको कोई मुश्किल न हो"
राजा साहब के तर्क सुन कर रानी शारदा देवी चुप रह गईं।
कुँवर अनिरुद्ध सिंह इस बीच अपने क्षेत्र का काम निपटाते रहे। आईटीआई
लिमिटेड में उन दिनों साक्षात्कार चल रहा था क्योंकि फैक्टरी के लिये ऑपरेटर्स, सुपरवाइजर और इंजीनियर की एक बड़े पैमाने पर भरती होने वाली थी। उन्होंने आईटीआई
लिमिटेड के अफसरों के साथ अपनी जान पहचान बढ़ाने का निश्चय किया जिससे कि अपने क्षेत्र के पढ़े लिखे लड़के
लड़कियों को किसी प्रकार से वहाँ नौकरी मिल सके। वैसे भी आईटीआई लिमिटेड के कारण भारत के लगभग सभी प्रान्तों से अफ़सरों और उनके परिवारों के वहाँ आ जाने से सूने-सूने से रायबरेली शहर में जान आ गई थी।
लोगों का तो यहाँ तक कहना था कि जिस तिराहे पर एक ज़माने में गधे घूमा करते थे अब वहाँ पढ़े लिखे कुछ लोग तो
कम से कम नज़र आते हैं।
कुँवर ने आईटीआई लिमिटेड में जिन लोगों से जान पहचान बढ़ाई उसमें से कुछ उस वक़्त के
अफ़सर थे जो शुरू शुरू में आये थे। एक दिन कुँवर आईटीआई लिमिटेड के अधिकारियों के
बीच बैठ कर ऐसे ही बात कर रहे थे तो उन्होंने इस बात को माना कि जब से
आईटीआई लिमिटेड कारखाना यहाँ खुला है बाजार में पैसे का चलन बढ़ा है, लोगों के सोचने का तरीका बदला है अब तो कुछ खाने पीने के लिये रेस्तराँ भी खुल गए हैं, इस शहर में स्कूटर कार भी खूब दिखने लगे हैं। यहाँ तक कि जो लड़के और लड़कियां
फ़ैक्टरी में काम कर रहे हैं उनके बीच सम्पर्क भी बढ़ रहा है। धीरे-धीरे परिवर्तन की लहर अब रायबरेली और
उसके आसपास के क्षेत्रों में दिखाई पड़ने लगी है।
कुछ वरिष्ठ अधिकारीयों ने, जो स्वयं आर्डिनेंस फैक्टरी जबलपुर से आये थे, कुँवर से यहाँ तक
कहा कि अगर रायबरेली शहर के वातावरण में आमूलचूल परिवर्तन देखने हों तो प्रधानमंत्री जी को यहाँ आर्मी या एयरफोर्स का
कोई बेस खोलना चाहिए। जब सब जगह के खुले दिमाग और विचारों के
लोग यहाँ आकर रहेंगे तो एक नई कल्चर आएगी तभी पान की दुकान पर खड़े होकर गप्प करने की लोगों की आदत
बदलेगी।
कुँवर ने आश्वासन दिया था कि इस दिशा में वह रक्षा मंत्रालय से बात करेंगे। बाद में
पता लगा कि रक्षा मन्त्रालय ने यह मांग यह कह कर ठुकरा दी कि लखनऊ और इलाहाबाद में रक्षा मंत्रालय के बहुतेरे विभाग हैं, इसलिये रायबरेली में वे कोई नई यूनिट नहीं खोल सकते हैं।
आईटीआई लिमिटेड के आ जाने से इस क्षेत्र के लोगों के लिये दिल्ली के लिए कोई सीधी रेलगाड़ी भी नहीं थी।
लोगों को पहले लखनऊ जाना पड़ता था। रायबरेली के विधायकों और अन्य लोगों के कहने पर
रेल गाड़ी के प्रश्न को लेकर एक सामूहिक ज्ञापन लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मुलाकात की गई। ठीक उसी दिन तत्कालीन रेल मंत्री जी जो कि स्वयं बनारस के रहने वाले थे, वह एक प्रस्ताव बनारस और दिल्ली के बीच रेल गाड़ी चलाने का लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी से मिले। कुछ लोग यह बताते
हैं कि प्रधानमंत्री जी ने
उनसे केवल यह पूछा कि यह रेल गाड़ी रायबरेली कब पहुँचेगी, वह रेल गाड़ी जिसका नाम ही काशी विश्वनाथ था जो कि सुल्तानपुर होती हुई लखनऊ और बाद
में दिल्ली जाने वाली
थी, उसका रूट बदल
कर बाद में तत्कालीन रेल मंत्री जी ने रायबरेली होते हुए किया। ऐसे ही न जाने कितने
किस्से हैं जो आज भी रायबरेली के लोग जब मिल बैठते हैं तो बात करते हैं। बाद में दरियापुर में एक शुगर फ़ैक्टरी लगी
और रायबरेली से वहाँ तक
रेलवे लाइन भी बिछाई गई।
रायबरेली और आसपास के राजनीतिक क्षेत्रों में दो वर्गों राजपूत और ब्राह्मण समाज के बीच
हमेशा से ही वर्चस्व की लड़ाई बनी रही और यह आज भी बदस्तूर जारी है। यह कमी प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय भी अच्छी तरह जानते थे। सभी
लोग बस इस उधेड़बुन में लगे रहते कि किसी प्रकार ये दोनों समूह कांग्रेस के लिये काम करते रहें।
कांग्रेस की अपनी पहुँच हरिजनों और पिछड़े वर्गों के बीच भी ठीकठाक
थी।
राजा चन्द्रचूड़ सिंह जो स्वयं एक कुशल प्रशासक थे इन सब प्रश्नों से ता ज़िंदगी उलझे
रहे अब यही हाल कुँवर का भी था। अपनी दूर दृष्टि, बुद्धि और विवेक से वह भी स्थितियों को सँभालने का प्रयास करते रहे कि राजपूतों और ब्राह्मणों के बीच सामंजस्य बना रहे।
कथांश:56
कुँवर कभी दिल्ली तो कभी कांकर अपने क्षेत्र आते जाते रहे।
देश की राजनीति में एक अजीब तरह का ठहराव सा आ गया था। उन्हीं दिनों 12जून को प्रधानमंत्री जी के चुनाव को चुनौती देने वाली रिट
पिटीशन में इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस सिन्हा जी का एक जजमेंट क्या आया जिसने
भारत की राजनीति में तूफान खड़ा कर दिया। देश में इमरजेंसी लगा दी गई, प्रेस की आज़ादी छीन ली गई और साधारण नागरिक को उसके मौलिक
अधिकारों से वंचित कर दिया गया। देश में एक अजीब तरह का माहौल बन गया था। इसी बीच
सुप्रीम कोर्ट की एक खण्ड पीठ ने प्रधानमंत्री जी को जिस आदेश के तहत चुनाव लड़ने
से रोका था उसको अवैध करार कर दिया।
पार्टी बैक फुट पर थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री जी के करीबी
सलाहकार और विशेष कर उनके छोटे सुपत्र, जो कि कई सालों से एक कार बनाने की योजना पर काम कर रहे थे, वह भी बीच में मैदान में कूद पड़े और सरकारी तंत्र को सीधे
निर्देश देने लगे। इन सब बातों का घोर विरोध हुआ और सारा विपक्ष एक झंडे तले आ
गया। जगह जगह रैलियां निकाली जाने लगीं। इन सबको देख लगभग सभी शीर्ष नेताओं को जेल
में डाल दिया गया।
इस राजनीतिक ऊहापोह की स्थित में राजा साहब की समझ में नहीं
आ रहा था कि वह कुँवर को क्या राय दें कि कुँवर पार्टी के साथ डट कर खड़े रहें या
फिलहाल कुछ समय के लिए तटस्थ बन कर रहें। राजा साहब को कभी-कभी यह लगता था कि यह
लड़ाई कोई कांग्रेस पार्टी की नहीं वरन एक व्यक्तिविशेष की होकर रह गई है।
इस अफ़रातफ़री में सबा और शिखा के इम्तिहान का रिजल्ट आया
जिसमें शिखा और सबा दोनों ने ही अपनी अपनी परीक्षा फर्स्ट डिवीज़न में पास की। अपनी
पढ़ाई जारी रखते हुए उन्होंने डी यू में ही बने रहने का निर्णय लिया।
जुलाई आते ही कॉलेज खुल गए। जिस दिन कुँवर शिखा को छोड़ने
उसके हॉस्टल गए तो उनकी मुलाकात सबा से हुई। पिछली मुलाकात उन दोनों में तब हुई थी
जब गौहर बेग़म हमीदिया हॉस्पिटल, भोपाल में भर्ती थीं। इसलिए उन दोनों के बीच कोई खास बात नहीं हुई पर जब वे दोनों दिल्ली
में मिले तो सबा ने कुँवर से अकेले में मिलने की इच्छा ज़ाहिर की। कुँवर ने सबा से
कहा कि वह शिखा के साथ उनसे उनके फ्लैट पर आ जाये। उससे वहीं बात होगी।
जब शाम को शिखा और सबा कुँवर के फ़्लैट पर पहुँची तो कुँवर
वहाँ अकेले ही थे। शिखा से दिन में सबा ने वे सारी बातें बताई थीं जो भोपाल में
गौहर बेग़म के आने के बाद हुईं। उसे यह भी बताया कि सईद भाई उससे बेइंतिहा मोहब्बत
करते हैं। ये सब जान कर भी शिखा ने सईद के लिये कुछ नहीं कहा सिवाय इसके,
"सबा मुझे तो लगा कि तुम्हारा भाई मुझमें कोई दिलचस्पी नहीं
रखता है इसलिये मैंने उसकी ओर कभी दूसरी निग़ाह से देखा तक नहीं"
शिखा यह जान रही थी कि सबा कुँवर से अकेले में मिलना चाह
रही है इसलिये वह पास के शॉपिंग सेंटर से कुछ सामान लेने के बहाने निकल गई। जब तक
वह लौट कर आई तो दोनों को अलग अलग सोफ़े पर बैठ देख कुछ उलझन में पड़ गई। सबा शिखा
को देखते ही बोली, "कहाँ चली गई थी? मैं तेरा ही
इंतज़ार कर रही थी। चल, चलें नहीं तो बहुत देर हो गई तो हॉस्टल के गेट भी बंद हो जायेंगे"
शिखा सबा के साथ छेडख़ानी करते हुए बोली,
"तो क्या हुआ तू यहीं रह जाना भाई के कमरे में"
"चल हट पगली कुँवर नहीं चाहते कि उनके साथ मैं कहीं भी देखी
जाऊँ” इतना कहते हुए सबा ने शिखा
का हाथ पकड़ा और कुँवर के फ़्लैट से वे दोनों बाहर आकर टैक्सी से अपने हॉस्टल
चली गईं
तय प्रोग्राम के मुताबिक़ अगस्त के महीने में रानी शारदा
देवी, कुँवर अनिरुद्ध और शिखा दस दिन के लिए लंदन पहुँचे। लंदन
पहुँच कर कुँवर अनिरुद्ध सिंह ने कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह से संपर्क किया और
अपने लंदन में होने की सूचना दी। कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह की ओर से जब उन्हें
कोई संतोषजनक उत्तर न मिला तो एक दिन रानी शारदा देवी, कुँवर और शिखा उनसे मिलने उनके फ़्लैट पर ही जा पहुँचे। सभी को एक साथ देख कर
पहले तो कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह चकराए फिर उन्होंने सभी को आदर सहित बिठाया।
कथांश:57
कुँवर महेंद्र ने रानी साहिबा से पूछा,
"कैसा लग रहा है आपको लंदन?"
रानी साहिबा ने उत्तर देते हुए कहा, "लंदन का क्या कहना लंदन तो लंदन है जैसा सुना वैसा पाया।
परियों के देश सरीखा"
"आप कहाँ कहाँ घूमने गईं?"
"अरे बेटा यह प्रश्न तू मुझसे क्यों पूछ रहा है? पूछना है तो शिखा से पूछ जो तुझसे मिलने के लिए इतनी आतुर
थी कि कहने लगी कि मैं कुँवर से लंदन जाकर ही मिलूँगी"
"चलिये अच्छा है इसी बहाने हमसे मुलाक़ात हो जाएगी, कुछ बातें हो
जाएंगी जो कांकर में नहीं हो पाईं थीं यहाँ हो जाएंगी। राजकुमारी शिखा यू आर वेलकम
इन लंदन"
"थैंक्स" कह कर शिखा
चुप हो गई।
इसके बाद कुँवर अनिरुद्ध और कुँवर महेंद्र के बीच उनकी पढ़ाई
लिखाई के बारे में बात होती रही। रानी साहिबा ने कुँवर महेंद्र के घर का निरीक्षण
किया कि कुँवर महेंद्र किस अन्दाज़ में यहाँ लंदन में रहते हैं? शिखा ने भी एक पैनी निगाह कुँवर के रहन सहन के ऊपर डाली।
जब बहुत देर हो गई तो कुँवर अनिरुद्ध ने चलने की इजाज़त चाही। कुँवर ने कहा,
"बगैर डिनर किये तो मैं आप लोगों को जाने नहीं दूँगा। बताइये
कि आप लोग इंडियन खाना पसंद करेंगे कि यूरोपियन?"
कुँवर अनिरुद्ध ने हँसते हुए टालने की कोशिश की और कहा, "रहने दो अभी कुँवर, आप ज़िंदगी में बैचलर हैं कहाँ खाना बनाने के चक्कर में
पड़ेंगे?"
कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुद्ध को उत्तर देते हुए कहा,
"तो मैं कौन खुद खाना बनाने वाला हूँ मैं भी आप सभी को किसी
होटल में ले चलूँगा"
रानी साहिबा के मना करने पर कुँवर महेंद्र ने अपनी ज़िद छोड़ी
और रानी साहिबा से वायदा किया कि अगले दिन वह आकर उनसे उनके होटल में अवश्य मिलेंगे। अगले दिन कुँवर महेन्द्र रानी साहिबा से आकर मिले
और सभी को घुमाने के लिये ले चलने की बात की पर कुँवर अनिरुद्ध ने कहा कि उनका और
रानी माँ का आज इंडियन एम्बेसी में कुछ काम है इसलिये वह शिखा को अपने साथ ले
जाएं। रानी साहिबा ने भी इस पर सहमति जताई।
कुछ देर में जब शिखा तैयार हो गई तो कुँवर महेंद्र उसे अपने
साथ ले कर घूमने के लिये निकल गए।
कथांश:58
कुँवर अनिरुद्ध सिंह रानी माँ के साथ सुबह-सुबह जल्दी ही
इंडियन एम्बेसी के लिये निकल गए और उनके जाने के बाद जब कुँवर महेंद्र आये तो शिखा
तैयार ही हो रही थी। शिखा ने कुँवर से बैठने के लिये यह सोच कर कहा कि पहले ही दिन
से उनके ऊपर जोर चले "कुँवर आप बैठिए, मैं अभी तैयार होने में कुछ और वक़्त लूँगी"
जब शिखा तैयार हो गई तो वे दोनों घूमने के लिये निकल पड़े।
अगस्त के महीने में लंदन वैसे भी बहुत प्यारा लगता है, बसंत का ख़ुशनुमा मौसम जो यहाँ होता है। हल्की हल्की धूप जो
खिली होती है, फ़िज़ाओं में मोहब्बत ही मोहब्बत बिखरी होती है।
दुनिया भर के टूरिस्ट यहाँ इन्हीं दिनों में सबसे अधिक आते हैं। ऐसे रंगीन मौसम
में कुँवर महेंद्र और शिखा दिन भर लंदन में सैर सपाटा करते और शाम को रानी साहिबा
और कुँवर अनिरुद्ध सिंह के साथ डिनर करते और अपने फ़्लैट पर लौट जाते। यही क्रम
शिखा और कुँवर महेंद्र के बीच जब तक शिखा वहाँ रही चलता रहा।
दूसरी ओर रानी माँ के साथ कुँवर अनिरुद्ध घूमने निकल जाते।
एक दिन कुँवर महेंद्र ने कुँवर अनिरुद्ध सिंह से कहा कि अगर वे लोग फ्री हैं तो
क्यों न सब लोग मिल कर 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' उनके हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में चलें। वहाँ दिन में वे लोग हॉर्स राइडिंग भी
कर लेंगे और लंच भी साथ-साथ ले लेंगे।
कुँवर अनिरुद्ध सिंह को हॉर्स राइडिंग करने का प्रोग्राम
अच्छा लगा और उन्होंने यह भी सोचा कि उन्हें और शिखा को बहुत दिन हो गए हैं
घुड़सवारी किये हुए तो कुँवर महेंद्र के साथ चलने में कोई एतराज़ नहीं है। अतः सब
लोग तैयार हो कर कुँवर महेंद्र के 'विंबलडन विलेज स्टेबल्स' हॉर्स राइडिंग वाले क्लब में आ गए। कुँवर महेंद्र, कुँवर अनिरुद्ध सिंह और शिखा ने घुड़सवारी का आनंद उठाया और
वहीं लंच किया। लंच के दौरान कुँवर महेंद्र को याद आया कि एक बार सबा ने उन्हें
भोपाल आने के लिये कहा था तो यह याद कर बोल बैठे, "शिखा जब हम कांकर आये थे उस वक़्त तुम्हारी दोस्त सबा ने
जिक्र किया था कि भोपाल में उनके भाई का बहुत बड़ा कारोबार है और तुमने
वहीं हॉर्स राइडिंग सीखी भी थी"
"जी मैंने अकेले नहीं, भाई ने भी भोपाल में उसी के भाई के क्लब में हॉर्स राइडिंग
सीखी थी” शिखा ने जवाब दिया।
कुँवर अनिरुद्ध
सिंह ने भी कहा, "भोपाल में सईद का हॉर्स राइडिंग क्लब हाउस बहुत बढ़िया ऑउटफिट है, यहाँ राइडिंग करने के बाद एक बार वहाँ फिर जाने का मन कर
रहा है"
रानी माँ जो चुपचुप सी थीं वह भी अपने कुँवर की बात पर बोल
पड़ीं,
"तो इसमें बुराई क्या है कुँवर महेंद्र आप जब अक्टूबर में
इंडिया आयें तो एक बार कुँवर और शिखा के साथ वहाँ भी चले जाइयेगा। वह भी तो अपना घर
जैसा ही है"
"जी रानी माँ। सबा ने मुझे वहाँ आने का निमंत्रण भी दिया था
कांकर में जब उससे मुलाक़ात हुई थी’ कह कर कुँवर महेंद्र ने भोपाल चलने की बात पर सील लगाते हुए
कहा।
इसके बाद जब वे लोग लंच कर के उठ ही रहे थे कि वहाँ कुँवर
महेंद्र के कुछ अंग्रेज दोस्त लोग आ गए। उसमें से अधिकतर नौजवान लड़के लड़कियां थे।
उनमें से एक लड़की ने कुँवर महेंद्र को अपने सीने से चिपकाया और फिर देर तक किस
किया। कुँवर ने उसकी मुलाक़ात रानी माँ, कुँवर अनिरुद्ध और
शिखा से यह कह कर कराई कि यह एडिलेड स्टीवेन्सन है और लंदन में उनकी सबसे अच्छी
दोस्त है। एडिलेड के पिता लार्ड माइकेल स्टीवेंशन की यहाँ की सरकार और अपर हाउस
यानी हाउस ऑफ लॉर्ड्स में बहुत इज़्ज़त है। एडिलेड स्टीवेन्सन और अपने अन्य दोस्तों
से रानी माँ, कुँवर अनिरुद्ध
सिंह और शिखा का परिचय यह कह कर कराया कि वे उनके इंडिया से आये हुए मेहमान
हैं।
इसके बाद वे सभी लोग देर शाम तक वहीं क्लब में रहे। कुँवर अनिरुद्ध सिंह और कुँवर महेंद्र के दोस्त
आपस में खूब मस्ती करते रहे। एडिलेड स्टीवेन्सन बार-बार कुँवर महेंद्र के पास जाती
और बात-बात में अपनी नज़दीकी जताने की कोशिश करती। इसे देख शिखा के मन में कुछ कुछ
होने लगा। एडिलेड स्टीवेन्सन ने एक बार तो
शिखा को लेकर यह भी कहा, "शी लुक्स वेरी प्रिटी एंड क्यूट"
"या शी इज” कह कर कुँवर महेंद्र ने बात टालने की कोशिश की। कुँवर महेंद्र उससे आपस में खूब घुल मिल
कर बात करते रहे। बाद में कुँवर महेंद्र ने रानी शारदा देवी, शिखा और कुँवर
को गुड नाईट कह कर उनके होटल में छोड़ दिया।
शिखा को कुँवर महेंद्र और एडिलेड स्टीवेन्सन के बीच इतनी
नज़दीकी कुछ अच्छी नहीं लगी। रानी साहिबा ने भी यही महसूस किया पर दोनों में इस बात
को लेकर कोई चर्चा नहीं हुई।
कुछ दिन और बिताने के बाद कुँवर अनिरुद्ध अपनी रानी माँ और
शिखा के साथ लंदन से दिल्ली लौट आये।
कथांश:59
कुँवर तो अपने काम के कारण दिल्ली रुक गए पर रानी साहिबा और
शिखा लखनऊ के लिये हवाई जहाज से निकल गए। राजा साहब खुद तो किसी कारणवश लखनऊ नहीं
आ पाए पर उन्होंने मुखिया जी को रानी साहिबा और शिखा को सीधे कांकर लाने की
व्यवस्था कर दी थी।
कांकर आते ही राजा साहब ने रानी शारदा देवी से मिल कर लंदन
के दौरे के हाल चाल पूछे। रानी साहिबा ने सारी बातें विस्तार से बताईं और कुँवर
महेंद्र के रहन सहन के बारे में भी खुल कर चर्चा
की। जो वह एक बात अपनी ओर से बताना नहीं चाह रही थीं वह था कुँवर महेंद्र
का वह व्यवहार जो उन्होंने एडिलेड स्टीवेंसन के साथ देखा पर स्त्री हृदय आखिर कब
तक वह बात छुपाता जो दिल के कोने में कहीं घर कर गई हो। राजा साहब ने रानी साहिबा
की बात सुनकर अनसुनी सी कर दी तब रानी साहिबा से रहा नहीं गया और बोल पड़ीं, "आप मेरी बात पर कान भी नहीं धर रहे हैं और मैं मन में भीतर-भीतर ही सोच-सोच कर
परेशान हो रही हूँ कि यदि कहीं कुँवर के मन में एडिलेड स्टीवेंसन के लिए कोई भी
जगह है तो मेरी शिखा के वैवाहिक जीवन का क्या होगा?"
रानी शारदा देवी को परेशान देखते हुए राजा साहब बोले,
"रानी शारदा आप नाहक ही परेशान हो रही हैं। अरे कुँवर
महेंद्र खानदानी आदमी हैं अगर इस उम्र में उनके यार दोस्त न होंगे तो क्या हमारी उम्र
में पहुँच कर वे अपने शौक़ पूरे करेंगे?"
रानी साहब राजा साहब से बोलीं, "आप राजसी मर्द एक जैसे ही होते हो। आपने तीन-तीन विवाह
रचाये तो आप तो इसे यूँ ही कह कर हवा कर देंगे पर हुकुम यह जान लीजिये कि अब वह
पुरानी वाली बात नहीं चलेगी। मेरी शिखा किसी दूसरी औरत को कुँवर महेंद्र की ज़िंदगी
मे बर्दाश्त नहीं कर पायेगी। उसकी शिक्षा-दीक्षा पुराने ज़माने से बिल्कुल अलग है"
"रानी शारदा आप परेशान न हों, इस विषय में हम राजा मानवेन्द्र सिंह जी से उचित समय आने पर
बात कर लेंगे"
"ठीक है हुकुम। मैं यह मसला अब आप पर छोड़ रही हूँ"
राजा साहब बस मुस्कुरा दिये और रानी शारदा देवी के कक्ष से
निकल कर सीधे गौहर बेग़म के पास ऐश महल आ गए।
कथांश:60
गौहर बेग़म राजा साहब के चेहरे को पढ़ कर ही जान लेती थीं कि
उनके दिल में क्या चल रहा है। उन्होंने राजा साहब को आराम से बिठाया उनका सिर अपने
सीने के पास रख कर उनके बालों को सहलाया और धीरे धीरे चेहरे और माथे की मालिश की
और जब राजा साहब का मन कुछ हल्का हुआ तो राजा साहब से पूछा, "हुकुम वो कौन सी ऐसी बात है जो आपको इतना परेशान कर रही है?"
"नहीं बेग़म कुछ खास नहीं"
गौहर बेग़म समझ गईं कि राजा साहब अभी कुछ बताने के मूड में
नहीं हैं इसलिये उन्होंने भी बातचीत का रुख बदलते हुए कहा, "हुकुम एक नई ताज़ातरीन ग़ज़ल आज पढ़ने को मिली थी उसी को आज सुर
देने की कोशिश में लगी हुई थी आपके आने के ज़रा पहले तक"
राजा साहब पूछ ही बैठे, "क्या हुआ फिर, आप अपने प्रयासों में सफल हो पाईं या नहीं"
"हमारे लिए तो आप ही हमारे जजमान हैं और हमारे जज भी आप ही
हैं। सुन कर बताइयेगा कि बात बनी या नहीं"
"इरशाद"
इसके बाद सितार उठा कर गौहर बेग़म ने अलाप के साथ अपने सुर
बिखेरने शुरू कर दिए। सात सुरों और दिलकश अल्फाजों से जो चीज निकल कर पेश्तर हुई
उस पर किसी का भी दिल आ जाये तो कोई बड़ी बात नहीं।
"कुछ तो नया किया है हवा ने पता करो
बरहम हैं क्यूँ चराग़ पुराने पता करो
बरहम हैं क्यूँ चराग़ पुराने पता करो
मेरा भी एक अब्र के टुकड़े पे नाम है
आएगा कब वो प्यास बढ़ाने पता करो
आएगा कब वो प्यास बढ़ाने पता करो
किस किस ने सब्ज़ पेड़ गिराए हैं इस बरस
बारिश ने आँधियों ने हवा ने पता करो
बारिश ने आँधियों ने हवा ने पता करो
कुछ दिन से मस्लहत का जनाज़ा उठाए हैं
जाएँगे किस तरफ़ ये दीवाने पता करो
जाएँगे किस तरफ़ ये दीवाने पता करो
शोहरत की रौशनी हो कि नफ़रत की तीरगी
क्या क्या उसे दिया है ख़ुदा ने पता करो
क्या क्या उसे दिया है ख़ुदा ने पता करो
दुनिया पे कोई ऐब लगाने से पेशतर
दुनिया के सारे ऐब पुराने पता करो
दुनिया के सारे ऐब पुराने पता करो
'अंजुम' को हाफ़िज़े पे बहुत अपने नाज़ है
खाता है किस अनाज के दाने पता करो"
खाता है किस अनाज के दाने पता करो"
ये बोल सुनते ही राजा साहब के मुँह से निकला, "सुभानअल्लाह क्या बात है बेग़म आपकी आवाज़ ने इस ग़ज़ल में चार
चाँद लगा दिए। दिल ख़ुश हो गया"
सितार एक तरफ हटाते हुए गौहर बेग़म राजा साहब के पास बैठते
हुए बोलीं, "हुकुम चलिये अब बता ही दीजिये वह बात जो आपके चेहरे पर शिकन बन कर छाई हुई थी
कुछ वक़्त पहले तक"
राजा साहब ने गौहर बेग़म से कहा, "यह बात आपसे भी ताल्लुक़ रखती है इसलिये जरा ध्यान लगा कर सुनियेगा"
गौहर बेग़म को लगा कि पता नहीं अब कुँवर और सबा के रिश्ते को
लेकर ये कौन सा नया मसायल खड़ा हो गया। राजा साहब ने तरतीबवार वे बातें गौहर बेग़म
को बताईं जो आज रानी शारदा देवी ने उनसे अपने लंदन दौरे की बाबत उन्हें बताई थीं। राजा साहब की बातें सुन कर
गौहर बेग़म बोल उठीं, "इसमें परेशान होने की कौन सी बात है हुकुम। यह देख कर हर माँ परेशान हो ही
जाएगी कि उनका होने वाला दामाद उन्हीं की नज़रों के सामने किसी और के साथ बेजा
हरकतें कर रहा है। मेरे ख्याल में रानी साहिबा ने अपना शक़ अगर आपसे ज़ाहिर किया है
तो इस पर आपको गौर करना चाहिये। इस उम्र में आजकल के बच्चे अक़सर बहक जाते हैं"
( पार्ट II -- समाप्त )
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