Monday, January 27, 2020

एक थे चन्द्रचूढ़ सिंह ( पार्ट III ) ------ एस पी सिंह


एक थे चन्द्रचूढ़ सिंह ( पार्ट III ) ----- एस पी सिंह 




कथांश:61

राजा साहब ने गौहर बेग़म की बातों को तरज़ीह देते हुए निश्चय किया कि इस मसले में यह बेहतर होगा कि वे अपने दोस्त राजा मानवेन्द्र सिंह से बात करने के पहले एक बार शिखा से खुद बात करलें और शिखा को भी अगर कुँवर महेंद्र के व्यवहार या चरित्र में कोई खोट नज़र आता हो तो बात को आगे बढ़ाने से पहले विचार किया जाय। यह सोच कर राजा साहब राजकुमारी शिखा के कक्ष में उससे मिलने चले आये और पूछा "बता बेटी तेरा इंग्लैंड का ट्रिप कैसा रहा?"
"अच्छा था पिताश्री" कह कर शिखा चुप हो गई।
राजा साहब तो उसके दिल की बात जानना चाह रहे थे तो भला इस छोटे से उत्तर से कैसे तसल्ली करते इसलिए बात को कुरेदते हुए उन्होंने फिर पूछा, "कुँवर महेंद्र तुझे कैसे लगे?"
राजकुमारी शिखा पहले तो समझ न पाई कि पिताश्री की इन बातों के पीछे मक़सद क्या हैजब उन्होंने कुछ खुल कर बात की तो शिखा ने राजा साहब से कहा, "पिताश्री मैं दिल्ली में पढ़ती हूँ और मेरे विचार और माँ के विचार एक से नहीं हो सकते। उनकी सोच अभी भी पुराने ज़माने वाली है। मैं इन बातों को कुछ विशेष महत्व नहीं देती कि एडिलेड स्टीवेंसन कुँवर से इस तरह क्यों व्यवहार कर रही थीइंग्लैंड में यह सब मामूली सी बात है कि लड़के लड़कियां एक दूसरे से इस तरह व्यवहार करते ही हैं परंतु मैं कुँवर को एकदम क्लीन चिट भी नहीं दे रही। मुझे लगता है कि मुझे उन्हें समझने में कुछ वक़्त लगेगा"
"मैं तुम्हारी बात की कद्र करता हूँ और बहुत खुश हूँ कि तुमने आज अपनी मानसिक परिपक्वता का परिचय दिया”  राजा साहब ने इतनी बात कह कर शिखा के सिर पर हाथ रख कर आशीर्वाद दिया और बोले, अब वक़्त ही कहाँ बचा हैदिसंबर में तो तेरी शादी होनी है"
"मुझे कुछ न कुछ उससे पहले ही करना होगा पिताश्री” राजकुमारी ने राजा साहब से कहा, “अभी वक्त है। कुँवर इंग्लैंड से अक्टूबर के आखिर में इंडिया आ रहे हैं। मैं एक बार उनसे फिर से मिलना चाहूँगी"
"यह कैसे मुमकिन होगा?"
"मैं नहीं जानती कि यह कैसे मुमकिन होगा पर मुझे अपने भविष्य को देखते हुए कुछ न कुछ करना होगाआप चिंता न करें, मैं कोई न कोई रास्ता खुद ब खुद निकाल ही लूँगी"
राजकुमारी ने यह बात राजा साहब से कही। राजा साहब को भी लगा कि बच्चे अब बच्चे नहीं रहे ज़माना भी अब वह पुराने वाला ज़माना नहीं रहा इसलिये कुछ स्वतंत्रता तो बच्चों को अब देनी ही होगी। राजा साहब ने राजकुमारी से अपनी बातचीत पर विराम लगाते हुए कहा, "जैसा तू ठीक समझे अब तू बड़ी हो गई है। मुझे तुझ पर भरोसा है जो भी करेगी ठीक करेगी और दोनों राजपरिवारों की इज़्ज़त के अनुकूल ही करेगी। इस बात का ख्याल रखना कि राजा साहब मानवेन्द्र सिंह से हमारे बहुत पुराने पारिवारिक संबंध हैं बस उन संबंधों पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए"
"आप निश्चिन्त रहें पिताश्री और मुझ पर भरोसा रखें मैं कोई भी काम ऐसा नहीं करूँगी जिससे अपने या उनके परिवार की शान में कोई बट्टा लगे"

कथांश:62

कुँवर अनिरुद्ध जब दिल्ली से कांकर लौट कर आये तो एक दिन राजा साहब ने एकांत में उनसे बात की जिससे कि अब वह उनके खुद के तथा शिखा के विवाह के सिलसिले में अंतिम बात कर सकें। जब कुँवर उनके ठीक सामने थे तो राजा साहब ने उनकी आँखों में सीधे देखते हुए कहा, "कुँवर अब वक़्त आ गया है कि तुम्हारा भी विवाह हो और तुम भी अपना घर बसाओ। राजनीति में बहुत दिनों तक अविवाहित रहने से भी लोग गलत मतलब निकालने लगते हैं"
"मैंने तो आपसे कभी कुछ नहीं कहाआप जैसा उचित समझें वैसा निर्णय लें बस मेरी एक ही विनती है कि हमने किसी से वायदा किया है वह वायदा न टूटे बस इसका ख्याल रखियेगा क्योंकि मैंने भी आपकी तरह ही किसी को राजपूती वायदा किया है कुँवर ने अपनी बात रखते हुए कहा।
"मुझे बताओ कि तुमने किससे वायदा किया है मैं तुम्हारी इच्छा और वायदे का पूरा सम्मान रखने की कोशिश करूँगा"
"चलिये फिर ऐश महल चलिये, यह बात मैं छोटी मौसी के सामने ही करूँगा मैंने उनसे कहा था कि जब भी अगर मुझे अपने बारे में कोई बात करनी होगी तो वह उनकी मौजूदगी में ही होगी"
"ऐसी कौन सी बात है कुँवर"
"चलिये आप मेरे साथ चलियेकम से कम मेरा इतना कहा तो मान लीजिये"
"चलो भाई चलो अगर तुम्हारी यही ज़िद है तो चलो गौहर बेग़म के सामने ही बात करेंगे"
यह कह कर राजा साहब और कुँवर दोनों ही साथ साथ गौहर बेग़म के सामने आ बैठे। राजा साहब ने कुँवर से कहा, "कुँवर अब तो गौहर बेग़म भी यहीं है अब बताओ कि तुम क्या कहना चाह रहे थे?"
गौहर बेग़म कभी राजा साहब की ओर देखतीं तो कभी कुँवर की ओर उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि बाप बेटे में यह क्या हुआ जो दोनों ही उनके  सामने आ बैठे हैं। कुँवर ने माँसी के पास बैठते हुए उनके एक हाथ को अपने हाथ में लिया और बोले, "पिताश्री मैंने सबा से वायदा किया था कि अगर मैं शादी करूँगा तो सिर्फ उससे बस आपसे मेरी यह इल्तिज़ा है जो कृपया मत ठुकराइए। यह आपके कुँवर का वायदा था सबा से और मैं नहीं चाहता कि राजपूती वायदे पर और अपने खानदान पर कोई ऊँगली उठा कर कहे कि यह महाराज श्री का परिवार है जहाँ लोग वायदा करके भूल जाते हैं दगा करते हैं"
राजा साहब पहले तो कुछ चिन्तित से दिखे फिर अचानक जोर से अट्टहास करते हुए बोले, "बस माँगा भी तो कुँवर तुमने बस इतना ही माँगायह तो हम गौहर बेग़म से पहले ही कह चुके थे। चलो कुछ और माँग लो आज हम तुमसे बहुत खुश हैं। जिस पिता ने अपने बचपन के दोस्त का वायदा निभाने के लिये तुम्हारी माँ से सिर्फ़ इस बात के लिये शादी की कि उनके पिताश्री महाराज के वचन पर कोई आँच न आये तो तुम्हारे वायदे का कोई मान सम्मान क्यों कर नहीं रखेगा"
"मुझे कुछ और नहीं चाहिए पिताश्री"
"कुँवर बधाईतुम्हें हमारी ओर से हार्दिक बधाई” कह कर गौहर बेग़म ने कुँवर को बधाई दी और अपने सीने से चिपका कर उनकी पेशानी चूम कर दुआ दी। 

कथांश:63

अब राजा साहब की चिंता यह थी कि किस तरह कुँवर के रिश्ते की बात को राजपूत और ब्राह्मण समाज के प्रमुख लोगों के बीच कैसे पहुँचायें जिससे कि यह बात कुँवर के राजनीतिक भविष्य को लेकर कोई बड़ा प्रश्न न बने। इसके लिये एक दिन उन्होंने सूर्य महल में एक दावत रखी जिसमें कांकर और खजूरगांव क्षेत्र के प्रमुख लोगों को बुलवाया। इसी दावत में उन्होंने अपने हाई कोर्ट के वकील विवेक सिंह को भी बुलवा लिया था। इस दावत के दौरान ही राजा साहब ने कुँवर के सबा से रिश्ते की बात स्वीकारी। कुछ एक लोगों ने यह अवश्य कहा कि कुँवर किसी राजपूती राजघराने से शादी करते तो बेहतर होताबराबरी का एक रिश्ता बनता। इस पर राजा साहब ने शौक़त बेग़म के भोपाल के नवाबी खानदान से ताल्लुक़ातों की बात का ज़िक्र कर कुछ हद तक लोगों की इस जिज्ञासा को शांत किया। दावत के समाप्त होने तक सभी लोगों ने कुँवर के इस सबंध से जो राजनीतिक लाभ होने वाला था उसका भी ज़िक्र किया जैसे कि इस संबंध के होने से कांस्टीट्यूएंसी के मुसलमान समाज के वोट मिलने की उम्मीद बढ़ेगी और समाज में यह भी संदेश जाएगा कि कांकर राजपरिवार सही मायनों में खुले दिलदिमाग़ वाला परिवार है जिसकी सोच सिर्फ़ अपने राजपूत समाज तक सीमित नहीं है।
जब राजा साहब को विश्वास हो गया कि कहीं से कोई विरोध नहीं होगा तो उसके बाद उन्होंने माणिकपुर राजपरिवार को सूचित करने की ठानी। इसके लिये एक दिन वह और रानी शारदा देवी राजा साहब मानवेन्द्र सिंह और महारानी रत्ना से लखनऊ में मिले और उन्हें सबा और कुँवर अनिरुद्ध के रिश्ते के बारे में सूचित किया।
शुरू-शुरू में महारानी रत्ना ने कुछ विरोध किया पर जब राजा साहब मानवेन्द्र सिंह ने समझाया कि इसमें बुराई ही क्या हैसबा देखने भालने में सुंदर ही नहीं अति सुंदर है,  एक नवाबी ख़ानदान से आती है और सबसे बड़ी बात यह कि कुँवर अनिरुद्ध  सिंह उसे और वह उनको प्यार करती है। इस संबंध से कहीं कोई राजनीतिक नुकसान भी नहीं बल्कि लाभ ही मिलने वाला है। इन सबके बाबजूद राजा साहब माणिकपुर ने एक बात कही कि यह बेहतर होता कि कुँवर महेंद्र भी एक बार भोपाल हो आते और सबा के घर वालों से मिल लेते उनके समाज में रुतबे को समझ लेते तो और भी अच्छा होता। इस पर रानी शारदा देवी ने कहा,"इसमें क्या दिक़्क़त है कुँवर महेंद्र अक्टूबर के आख़िर में लखनऊ आने ही वाले हैं तो एक बार वह और कुँवर अनिरुद्ध दोनों ही भोपाल चले जायेंगे और वहाँ सभी से मिल लेंगे। दोनों ही घुड़सवारी के शौकीन भी हैं तो इसी बहाने कुछ शुगल भी हो जाएगा"
राजा साहब चंद्रचूड़ सिंह ने भी रानी शारदा देवी की बात से सहमति जताई और यह तय हो गया कि दोनों कुँवर मौका निकाल कर भोपाल घूम आएंगे।
राजा साहब ने यह बात कांकर लौट कर गौहर बेग़म को बताई तो उन्होंने भी यही कहा कि यह खयाल बेहतर है सभी परिवार वालों के बीच इसी बहाने मुलाक़ात भी हो जाएगी। राजा साहब ने गौहर बेग़म से बस इतनी गुज़ारिश की कि उन दिनों में वह भी कुँवर के साथ भोपाल चली जाएं जिससे कि शौक़त बेग़म को कोई उज्र न हो। गौहर बेग़म ने इसे खुशी खुशी कुबूल किया और यह भी कहा, "हुकुम आपने कहा और हमने किया। इसमें कोई खास बात नहीं है, मैं शौक़त आपा से बात कर लूँगी। एक बात कहूँ हुकुम कि हम चाहते हैं एक बार महारानी साहिबा भी हमारे साथ भोपाल चलें तो यह बेहतर होगा"
राजा साहब ने गौहर बेग़म की यह बात मानते हुए कहा, "ठीक है तो हम उनसे भी गुज़ारिश कर लेंगे कि वह भी आपके साथ अपने होने वाले समधियाने में एक बार घूम आएं"
जब कुँवर महेंद्र लखनऊ आये तो कुँवर अनिरुद्ध सिंह ने उनसे मिल कर भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया। कुँवर महेंद्र ने इच्छा जताई कि अगर राजकुमारी शिखा भी उनके साथ वहाँ चली चलतीं तो और भी बेहतर होता। कुँवर अनिरुद्ध  सिंह ने कुँवर महेंद्र से कहा, "यह कौन सी बड़ी बात है शिखा भी हम लोगों के साथ चलेगी"

कथांश:64

गौहर बेग़म के कहने पर राजा साहब ने महारानी से कहा, "गौहर बेग़म चाहती हैं कि जब कुँवर अनिरुद्ध और शिखा उनके साथ भोपाल में हों तो आप भी अबकी बार उनके साथ चलें"
महारानी करुणा देवी ने राजा साहब को उत्तर देते हुए कहा, "हुकुम हमने भोपाल पिछली बार देख लिया था जब गौहर बेग़म वहाँ हॉस्पिटल में भर्ती थीं। मेरे करने के लिए अभी कुछ भी नहीं है। मैं सोचती हूँ कि मेरा जाना अभी ठीक नहीं होगा। मैं उस समय ही जाना चाहूँगी जब सबा की गोद भराई का कार्यक्रम होगा"
राजा साहब ने महारानी साहिबा की बात सुन कर कहा, "यह भी ठीक है। आप रहने दीजिए हम गौहर बेग़म को समझा देंगे"
तय शुदा प्रोग्राम के तहत दोनों कुँवर गौहर बेग़म के साथ लखनऊ से सीधे भोपाल चले गए। उधर दिल्ली से शिखा और सबा दोनों ही भोपाल पहुँच गईं। भोपाल रेलवे स्टेशन पर एक बार फिर से जब सईद की मुलाक़ात शिखा से हुई तो उसके दिल में कुछ अजीब सा दर्द उठा पर उसने चेहरे से ज़ाहिर न होने दिया। सईद उनको लेकर शौक़त मंज़िल आ गया वहाँ गौहर बेग़म और कुँवर अनिरुद्ध सिंह और कुँवर महेंद्र पहले  से पहुँचे हुए थे।
शौक़त बेग़म इतने मेहमानों को एक साथ देख कर बेहद खुश थीं। उनकी खुशी का दूसरा कारण यह भी था कि उनका होने वाला दामाद कुँवर अनिरुद्ध सिंह भी सभी के साथ था। उन्हें लगा कि यह बेहतर मौका है जब कुँवर महेंद्र सभी लोगों से आपस में एक दूसरे से मिल लेंगे और एक दूसरे के बारे में जान भी लेंगे।
शौक़त बेग़म ने सईद को अलग से बुला कर यह ताकीद भी कर दिया था कि वह शिखा से बराबर की दूरी बनाए रखेगा और उसके लिये किसी तरह की परेशानी का सबब नहीं बनेगा।
कुँवर महेंद्र ने सईद से कहा, "कहाँ हैं भाई आपके घोड़े जिनकी तारीफ़ हमने एक अरसे से सुन रखी है?"
सईद ने भी जवाब में कहा, "चलिये जनाब हमारे अरबी घोड़े पूरी तरह तैयार हैं आपकी ख़िदमत के लिए"
जब सब लोग तैयार हो गए तो वे शौक़त मंज़िल के बाग़ बगीचों के बीच से होते हुए सईद के क्लब हाउस आ पहुँचे। अबकी बार शिखा और सबा के साथ साथ शौक़त और गौहर बेग़म भी सभी के साथ आई थीं जिससे कि कुँवर महेंद्र को अच्छा लगे।
सईद ने कुँवर महेंद्र से कहा, "जनाब आप खुद ही चुन लीजिये कि आपके लिये कौन सा घोड़ा ठीक रहेगा?"
कुँवर ने अस्तबल का एक चक्कर काट कर एक काले और सफ़ेद चित्तीदार घोड़े के ऊपर हाथ रखा और कहा, "मेरी तो यह चॉइस है"
सईद ने घोड़े की तारीफ़ में कहा, "यह हमारे अस्तबल की शान है और इसका नाम भी शहंशाह है। इसे बड़े प्यार से हमने पाला और बड़ा किया है"
कुँवर अनिरुद्ध ने अपने लिये वही पुराने वाला घोड़ा ब्लैक ब्यूटी चुना। शिखा और सबा ने भी अपने अपने लिये एक घोड़ा चुना और रेसिंग ग्राउंड की ओर निकल पड़े। शौक़त और गौहर बेग़म क्लब हाउस में ही बैठ कर इन लोगों की घुड़सवारी के करतब देखती रहीं और आपस में बात भी करती रहीं। बातों बातों में गौहर बेग़म ने पूछ लिया, "आपा अब सईद ठीक है। उसके दिलो दिमाग़ से शिखा का भूत  निकल गया कि नहीं"
"गौहर तू तो जानती है कि इश्क़ एक वो बला है जो लगाए न लगे और बुझाए न बुझे। फिर भी सईद के दिल में यह बात मैंने कूट-कूट कर बिठा दी है कि अब शिखा किसी और की अमानत है और खासतौर पर जब शिखा हमारी मेहमान बन कर अपने होने वाले शौहर के साथ यहाँ आई है तो उसे किसी तरह की शिकायत का मौका नहीं देना है"
"चलिये आपा आपने अपना फ़र्ज़ निभाया। हम लोगों के बस यही हाथ में है बाकी ऊपर वाला जाने   किसके दिल में क्या चल रहा है"
सईद के साथ ये सभी लोग बहुत दूर तक निकल गए यहाँ तक कि शौक़त और गौहर बेग़म की निगाहों से भी बहुत दूर थे। घुड़सवारी करते-करते कभी कुँवर अनिरुद्ध  सबा के साथ हो लेते तो कभी कुँवर महेंद्र शिखा के साथ-साथ। सईद इन सभी लोगों के साथ-साथ अपना घोड़ा दौड़ाता रहता। बीच बीच में जब शिखा कोई बात करने कुँवर अनिरुद्ध के पास आती तो कुँवर महेंद्र सबा के साथ हँसी मज़ाक करते रहते।

कथांश:65

एक बार ऐसा हुआ कि घोड़ा दौड़ाते-दौड़ाते हुए सबा अकेले बहुत दूर चली गई और उसके पीछे-पीछे कुँवर महेंद्र भी अपना घोड़ा दौड़ाते चले गए। ये देख कर शिखा और कुँवर अनिरुद्घ भी अपना-अपना घोड़ा दौड़ाते हुए उनके पीछे-पीछे चले आये। अब सब लोग घुड़सवारी कर क्लबहाउस लौटे और शौक़त और गौहर बेग़म के पास आ बैठे तथा चाय पी रहे थे। तब सबा को एक ओर ले जा करशिखा ने सबा से पूछा, "कुँवर महेंद्र  तेरे पीछे पीछे भाग रहे थे क्या बात है कहीं अब तेरा मन डोल तो नहीं रहा"
सबा शिखा की बात पर नाराज़गी से बोल पड़ी, "छी-छी शिखा तू ये बात सोच भी कैसे सकती है। मेरे कुँवर से तेरा कुँवर अच्छा नहीं है। मेरा कुँवर, मेरा कुँवर ही नहीं मेरा हुकुम भी है"
"मुझे लगा कि कहीं दिल न बदल गया हो?"
"शिखा तू बहुत पागल लड़की है। तू ऐसा सोच भी कैसे सकती है"
इस पर शिखा ने सबा को लंदन वाली बात बताई, "किस तरह कुँवर महेंद्र से एडिलेड स्टीवेंसन चिपक रही थी। कैसे बार बार कुँवर महेंद्र को चूम रही थी। कुँवर महेंद्र भी उसे अपने अगल-बगल ही रख रहे थे और खुले आम उसको प्यार कर रहे थे।  मुझे लगा कि कहीं कुँवर महेंद्र तुझ पर भी डोरे न डाल रहे हों"
"नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैमैं तो तेरे भाई पर मर मिटी हूँअब मेरी ज़िंदगी पर किसी और का कोई अख़्तियार नहीं है"
शिखा सबा की बात सुन कर बोल पड़ी, "इन मर्दों का कोई भरोसा नहीं है कब किसके ऊपर फ़िदा हो जाएं?"
"तेरा भाई ऐसा नहीं हैमैंने उसे करीब से जाना पहचाना है"
"मैं अपने भाई के बारे में नहीं कह रही हूँमैं कुँवर महेंद्र के बारे में कह रही हूँ"   शिखा बोल उठी।
सबा को शिखा की बातें अच्छी नहीं लग रही थीं, "तू यार पहले तो इतनी शक़्क़ी मिज़ाज़ नहीं थी। अब तुझे क्या हो गया हैजब से तू लंदन से लौटी है मुझे बहुत बदली-बदली सी दिख रही है"
शिखा कुछ सोच में पड़ गई पर हिम्मत जुटा के बोली, "मैं ऐसी नहीं थी जैसी अब हो गई हूँ। मुझको भी बहुत खराब लगता है जब मैं यह सब तुमसे कहती हूँ। पर मैं करूँ क्या मेरे दिल में एक शक़ का कीड़ा बैठ गया है जो मुझे ये सब सोचने पर मज़बूर करता है?"
"तू अपने भविष्य को लेकर कुछ अधिक ही चिंतित रहने लगी है यह ठीक नहीं है इससे तेरे स्वास्थ्य पर बुरा असर तो पड़ेगा ही और तेरे वैवाहिक जीवन में भी खलल पैदा करेगा"
शिखा बोली, "मैं जानती हूँतू बिल्कुल ठीक कह रही है पर कुँवर महेंद्र को लेकर मैं जितनी उत्साहित थी मैं अब उतनी ही हतोत्साहित महसूस कर रही हूँ"
सबा ने कहा, "शायद इसीलिए अरेंज्ड मैरिज कभी कभी असफल हो जाती हैं। दो दिल एक जब एक दूसरे से मोहब्बत करते हैं तो कम से कम इस तरह एक दूसरे पर अविश्वास नहीं करते"
"सबा तू किस्मत वाली है"
दोनों सहेलियों में यही सब बात चल ही रही थी कि तभी सईद भी इन लोगों के करीब आ चुका थाशायद अपने दिल के हाथों  मजबूर होकर। आते ही उसने शिखा से पूछा, "कैसा रहा आज का मॉर्निंग सेशन"
"ठीक ही था। क्या बात है बड़े उदास उदास से दिखाई दे रहे हो तबियत तो ठीक है?" शिखा ने सईद से पूछा।
इससे पहले कि सईद कुछ बोलता सबा बोल पड़ी, "भाई को क्या हुआ वह तो हमेशा मस्त रहता है। अपने काम में लगा रहता हैउसे घोड़ों से प्यार है और उसके घोड़ों को उससे"
सईद कुछ अधिक न कह कर बस इतना ही बोला, "क्या करें जब इंसान-इंसान से मोहब्बत ही न करे तो जानवर ही अच्छे हैंकम से कम अपने मालिक के प्रति वफादार तो होते हैं"
शिखा सईद की ओर देखती रह गई और वह दूर चला गया।

कथांश:66

शाम के खाने पर सब लोग डाइनिंग टेबल पर इकट्ठे हुए तो आपस मे हँसी मज़ाक का दौर चल पड़ा। भोपाल शहर के नवाबी रंगों की बातें भी चलीं। जब भोपाल की बात हो और शौक़त बेग़म भला अपने ख़ानदान की बात न करें ये तो हो ही नहीं सकता। उन्होंने भी नवाबी वक़्त के किस्से खूब सुनाए। अपनी जवानी के वक़्त केकुछ उसके बाद के कि कैसे-कैसे ठाठ हुआ करते थे उस ज़माने में।
कुँवर महेंद्र ने भी अपने इंगलेंड के दिनों के बारे में खूब बढ़चढ़ कर बताया। शिखा ने भी अपनी उपस्थित बनाये रहने के लिये कांकर के किस्से खूब सुनाए।
कुँवर अनिरुद्ध वैसे भी कम बोलते थे और वह आज भी चुप ही बैठे हुए थे। सबा उन्हें ही देखे जा रही थी। उन्हें देख गौहर बेग़म बोलीं, "हमारा कुँवर न जाने किन ख्यालों में डूबा रहता है कि उसके पास खुद के लिये भी वक़्त नहीं है। हमेशा बस पब्लिक के कामों के बारे में सोचता रहता है"
कुँवर अनिरुद्ध ने गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "मौसी जी ऐसी तो बात नहीं है"
"ऐसी ही बात है। पता नहीं निकाह के बाद भी ये हज़रत ऐसे ही रहेंगे कि इनकी देखा देखी सबा को भी चुपचुप रहना पड़ेगा शौक़त बेग़म बीच में बोल उठीं।
कुँवर अनिरुद्ध ने शौक़त बेग़म की ओर देखते हुए कहा, "नहीं ऐसी कोई बात नहीं मैं आपकी बेटी को कभी कोई शिकायत का मौक़ा नहीं दूँगा। बस मेरा आपसे इतना ही वायदा है"
कुँवर महेंद्र ने भी सईद को छेड़ते हुए कहा, "अरे सईद भाई आप कैसे खामोश गुमशुम से बैठे हैं। आप भी कुछ बोलिये। हाँएक बात तो बताइए कि आप हमें अपने निकाह में बुलाएंगे या नहीं"
सईद बड़े अनमने से बोल पड़ा, "कुँवर साहब आप लोग बड़ी क़िस्मत वाले हैं जिन्हें अपनी-अपनी मंज़िल मिली। हमें तो आसमाँ में दूर तक कोई सितारा नज़र नहीं आताकैसे कह दूँ कि हम आपको अपने निकाह में बुलाएंगे। हाँ अगर कोई रिश्ता लेकर आ ही गया तो ज़रूर बुलाएंगे"
बेटे के मुँह से इस तरह के बोल सुन कर शौकत बेग़म से रहा न गया और वह बोल पड़ीं, "मेरा चाँद जैसा बेटा है। उसका बढ़िया कारोबार है। माशाअल्लाह अच्छे खासे ख़ानदान से है तू कहे तो सही तेरे लिये एक रिश्ता नहीं हज़ारों आएंगे। इतना ग़मज़दा होने की भी ज़रूरत नहीं है"
गौहर बेग़म ने भी शौक़त बेग़म की बातों से इत्तफ़ाक़ रखते हुए कहा, "बिल्कुलएक नहीं हज़ारों लड़कियां मिलेंगी हमारे सईद के लिये"
"अभी तक तो एक भी ना मिली है खालाजान कह कर सईद ने शिखा की ओर बड़े ध्यान से देखा।
बातों का रुख दूसरी ओर ले जाने के लिहाज़ से गौहर बेग़म ने सईद से कहा, "सईद पिछली मर्तबा तूने ज़नाब बशीर बद्र से मुलाक़ात क्या कराई हम तो उनके मुरीद हो गए। क्या ये मुनासिब हो पायेगा कि एक दिन हमें उनकी हवेली पर ले चल"
"क्यों नहीं खालाजान, मैं कल के रोज़ ही बात कर आपको उनके यहाँ ले चलूँगा"
उसके बाद सभी लोगों के बीच देर रात तक हँसी मज़ाक होता रहा। जैसा अमूनन ऐसे बड़े घरों में होता है देर रात तक जागना और सुबह देर तक सोना। सभी लोग अपने अपने कमरों में आराम फरमाने चले गए।
शिखा और सबा एक ही कमरे में साथ-साथ थीं। उधर शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म एक साथ थीं। दोनों ही कमरों के लोग आपस में देर रात तक गुफ़्तगू करते रहे। दोनों कुँवर अपने अपने-कमरों में चैन की नींद सोते रहे।

कथांश:67

सबा और शिखा दोनों की आँखों में नींद नहीं थी। दोनों ही अपने-अपने ख्यालों में डूबी हुई थीं। शिखा कुँवर महेंद्र की हरकतों से मन ही मन नाराज़ थी और उधर सबा भी यह बात अच्छी तरह जान रही थी।
सबा को लगा कि उसके पास यह एक आख़िरी मौका है जबकि एक बार सईद के दर्द को शिखा से बयाँ कर वह अपना वायदा निभा सकती है। उसने शिखा से कहा, "शिखा एक बात बता तेरे दिमाग़ में जो कुछ कुँवर महेंद्र को लेकर चल रहा है तो क्या तुझे लगता है कि तू उनके साथ चैन सुकून की ज़िंदगी बिता पाएगी?"
"सबा मैं अभी कुछ नहीं कह सकती। मुझे कुँवर महेंद्र के बारे में न जाने क्यों ऐसे वैसे खयाल आते हैं मुझे लगता है कि वह कहीं न कहीं ग़लत हैं पर मैं यह बात पूरे यक़ीन के साथ नहीं कह सकती"
"एक बात और बता अगर तुझे कोई कड़ा फैसला लेना पड़े तो क्या तू उसके लिये तैयार है?"
"क्या मतलब?"
"अगर यह साबित हो जाये कि कुँवर महेंद्र ठीक इंसान नहीं है तो क्या तू कुछ तय कर पायेगी कि वह तेरे क़ाबिल नहीं हैं?"
"क्यों नहींबिल्कुल मैं अपने भविष्य के लिये जो ठीक समझूँगी वह मैं अवश्य करूँगी"
"तो सुन कल से मैं कुँवर महेंद्र के आसपास रहने की कोशिश करूँगी और तू उन पर अपनी निग़ाह रखना। अगर वह कोई भी ओछी हरक़त करें तो तू जो ठीक समझे वह करना"
शिखा ने कहा, "मैं भी यही सोच रही थी पर समझ नहीं पा रही थी कि मैं यह  बात तुझसे कैसे कहूँ?"
"तो ठीक है कल से हमारा प्रोग्राम शुरू होगा। एक बात का ख़्याल रहे कि इन सब चक्कर में कहीं मेरे और तेरे भाई के बीच कोई ग़लतफ़हमी न आ जाये"
"नहीं तू इसकी चिंता मत कर। ये मेरी ज़िम्मेदारी होगी। शिखा एक बात आख़िरी बार बतातेरे दिल में कभी किसी और से प्रेम करने की बात नहीं आई?"
"सबा यह कैसा उटपटांग सवाल है?"
"ये इसलिये कि कोई तुझे बहुत प्यार करे और तू उसकी ओर एक नज़र भर के भी न देखे इसलिये"
"देख सबा देखने वाले तो हर जगह खूबसूरत लड़िकयों को घूरते ही रहते हैं तो क्या हम हर उस लड़के से मुहब्बत कर बैठें?"
"शिखा मैंने ये तो नहीं कहा। मेरा मक़सद तुझसे बस इतना जानने भर का था कि क्या तेरे दिल में सईद भाई को लेकर कभी कुछ हुआ?"
"क्याकभी कुछ नहीं लगा और न उसकी नज़र में मुझे अपने लिये कोई प्यार दिखा!"
"तब चल सो जा। अब सो भी जा। कल देखते हैं कि क्या करना है?"
सुबह सुबह उठ कर कुँवर अनिरुद्ध सिंह तो सैर के लिये निकल गए। सबा भी उनके साथ मॉर्निंगवॉक पर चल पड़ी। रास्ते में उसने वे सब बातें उन्हें बताईं जो देर रात उसके और शिखा  के बीच हुई थीं। कुँवर अनिरुद्ध ने सबा की योजना के बारे में बात करते हुए पूछा, "क्या ये सब करना ज़रूरी है?"
"मेरे ख़्याल से बहुत ज़रूरी है नहीं तो शिखा की ज़िंदगी खराब हो जायेगी"
कुछ देर बाद कुँवर महेंद्र भी उठ गए। उसके बाद एक एक करके सभी लोग नीचे हाल में सुबह की चाय पर मिले। इसी बीच कुँवर अनिरुद्ध और सबा भी मॉर्निंग वॉक से लौट आये। शिखा की पैनी निग़ाह कुँवर महेंद्र पर बनी हुई थी जो ये महसूस कर रही थी कि वह हमेशा सबा की ओर देखा करते हैं जैसे कि उससे कुछ कहना चाह रहे हैं पर कह नहीं पा रहे हैं।

कथांश:68

जब आज सभी लोग हॉर्स राइडिंग के लिये निकले तो उन सब में सबा सबसे ज्यादा चहक रही थी। उसने आज अपने लिये वही घोड़ा चुना था जो कल कुँवर अनिरूद्ध के पास था। कुँवर महेंद्र अपने कल वाले घोड़े ब्लैक ब्यूटी पर ही थे। कुँवर अनिरुद्ध और शिखा जानबूझ कर पीछे-पीछे चल रहे थे। सईद इन दोनों के पीछे अपने घोड़े पर सवार हो चला जा रहा था।
सबा ने जानबूझ कर अपने घोड़े को ऐंड लगाई और उसे दौड़ाते हुए बहुत दूर निकल गई। उसे दूर जाते देख कुँवर महेंद्र ने एक बार तो पलट कर देखा कि कुँवर अनिरुद्ध या शिखा तो उसके पीछे नहीं आ रहे हैं और जब वह सन्तुष्ट हो गए कि वे दोंनों आपस में बातचीत में मग्न हैं तो वह अपना घोड़ा दौड़ाते हुए सबा के पीछे तेजी के साथ निकल पड़े।
कुँवर अनिरुद्ध और शिखा ने भी अपने अपने घोड़ों को ऐंड लगाई और दनदनाते हुए तेजी से कुँवर महेंद्र के पीछे-पीछे हो लिए जिससे कि वे उनके ऊपर निग़ाह रख सकें। कुँवर महेंद्र सबा के जब बहुत करीब आ गए तो उन्होंने सबा से पूछा, "आर यू ओकेमुझे लगा कि आपका घोड़ा बेकाबू होकर आपको ले उड़ा"
सबा जो इसी मौके की तलाश में थी बोली, "आई एम परफेक्टली ओके। डोंट वरी अबाउट मी"
"चलिये यह ठीक है मैं आपको लेकर चिंतित हो उठा था"
"आप नाहक ही चिंतित हो उठे"
इतने में कुँवर अनिरुद्ध और शिखा भी उनके पास आते हुए देख कर बोले, "हाँ भाई। आपके हमदम कुँवर जब हैं तो हमें चिंता करनी भी नहीं चाहिए"
"जीबज़ा फ़रमाया"
"बेहतरकह कर कुँवर महेंद्र कुँवर अनिरुद्ध और शिखा को देखते हुए बोले, "डोंट वरीशी इज फाइन। आई केम आफ्टर हर थिंकिंग शी इज इन डेंजर"
इसके बाद वे सभी अपने-अपने घोड़ों को कूल करते हुए धीरे-धीरे अक्टूबर की धूप सेंकते हुए क्लब हाउस पर वापस आ गए। वहाँ गौहर और शौक़त बेग़म पहले ही से उनके लौटने की राह देख रही थीं। सईद के भी वहाँ आ जाने पर उन लोगों ने एक कप चाय पी और हॉर्स राइडिंग के कम्पलीट हो जाने पर शौकत मंजिल वापस आ गए।
दोपहर के वक़्त शिखा और कुँवर अनिरुद्ध जब सबा से मिले तो उन्होंने कुँवर महेंद्र के व्यवहार के बारे में पूछा तो सबा ने बताया, "शिखा मेरे ख़्याल से तुम अपने मन से यह भाव निकाल दो कि कुँवर महेंद्र ख़राब इंसान हैं। वे मेरे साथ एक इज़्ज़तदार आदमी की तरह पेश आये। मैं नहीं कह सकती कि उनकी नीयत में कोई खोट है"
कुँवर अनिरुद्ध ने सबा की बात सुन कर शिखा से कहा, "अब तुम यह ख़्याल अपने दिमाग़ से हमेशा हमेशा के लिये निकाल दो। कुँवर महेंद्र के साथ अपने वैवाहिक जीवन की तैयारी करो। चिंता मत करोमें हमेशा तुम्हारे साथ हूँ कोई भी ऐसी वैसी बात नहीं होने दूँगा"
सबा ने भी जोर देकर शिखा को समझाया कि कुँवर महेंद्र के प्रति वह अपने मन में कोई दुर्भावना न लाये। सबा और कुँवर अनिरुद्ध की बातें सुन कर शिखा को तसल्ली हुई और वह बोल उठी, "सबा मैं किन शब्दों में तेरा शुक्रिया अदा करूँ मेरी समझ में नहीं आ रहा है। आज तेरी वजह से मेरे दिमाग़ की सारी उलझनें खत्म हो गई हैं"
कुँवर ने शिखा के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा, "चलो अच्छा हुआ कि समय रहते हम लोगों ने कुँवर महेंद्र के बारे में तेरे शक़ को दूर करने में मदद की। सबसे बढ़िया बात तो यह है कि अब तू उनके और क़रीब आने की कोशिश कर"
"जी भइय्या"
जब सईद और सबा का आमना सामना हुआ तो वह सईद से यह कहने में नहीं चुकी कि वह अब शिखा का ख़याल हमेशा-हमेशा के लिए निकाल दे। उसके दिल और दिमाग़ में वह नहीं केवल कुँवर महेंद्र बसते हैं।
शाम को सईद सभी लोगों के साथ ज़नाब बशीरबद्र के यहाँ आ पहुँचा। बशीर भाई और उनके घर वालों के बीच एक लंबी बातचीत का दौर चला। बशीरबद्र की भाभी जी ने सईद की मुलाक़ात अपनी एक दोस्त की भांजी शकीला से कराई जो भोपाल यूनिवर्सिटी से एम ए कर रही थी। शकीला से मिल कर सईद का मन कुछ हल्का हुआ। बातचीत में गौहर बेग़म ने बशीरबद्र की एक ग़ज़ल अपने नाम कर ली। उसे वहीं सुर देकर सबको सुना कर सभी का दिल जीत लिया।
होठों पे मुहब्बत के फसाने नहीं आते
साहिल पे समुंदर के ख़ज़ाने नहीं आते
पलकें भी चमक उठती हैं सोते में हमारी
आँखों को अभी ख्वाब छुपाने नहीं आते
दिल उजड़ी हुई इक सराय की तरह है
अब लोग यहाँ रात जगाने नहीं आते
उड़ने दो परिंदों को अभी शोख् हवा में
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते
इस शहर के बादल तेरी ज़ुल्फों की तरह हैं
ये आग लगाते हैं बुझाने नहीं आते
अहबाब भी गैरों की अदा सीख गये हैं
आते हैं मगर दिल को दुखाने नहीं आते
चलते-चलते वह हो गया जिसकी उम्मीद किसी को भी न थी। शौक़त बेग़म ने सईद के लिये शकीला का हाथ माँग के सबको सकते में ला दिया। शकीला ने भी सईद से रिश्ते के लिये हाँ भर दी। सब बात आनन-फानन में तय हो गई।

कथांश:69

देर रात शौक़त मंज़िल आ कर सभी ने सईद को मुबारक़बाद पेश की और दुआएँ दीं कि आने वाले दिन उसके लिये खुशियों भरे हों। शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का तहेदिल से शुक्रिया करते हुए कहा, "तूने अगर बशीर भाई के यहाँ चलने की जिद्द न की होती तो कुछ भी न होता और फिर कुँवर महेंद्र की ओर पलट कर देखते हुए कहा, "हम तो आपके भी शुक्रगुज़ार हैं कि आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ़ क्या लाये कि हमारे सईद की तो किस्मत ही चमक गई"
कुँवर महेंद्र बोल पड़े, "चलिये सईद भाई भी अब हम लोगों के साथ ही अपना निकाह कर लेंगे"
"कुँवर आपने यह क्या बात कह दी। आपने तो मेरे मुँह की बात छीन ली। मैं तो कहती हूँ कि तीनों शादी एक साथ एक ही जगह हो जाएं कितनी अच्छी बात होगी शौक़त बेग़म के मुँह से अचानक ही ये बोल निकल पड़े।
दोनों कुँवरशिखा और सबा तो हवेली के अंदर चली गईं पर शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ते हुए कहा, "गौहर जो बात जुबां से अचानक ही निकल जाए वह सच होकर ही रहती है। एक काम कर तू राजा साहब से बात करहम लोग सारा इंतज़ाम यहीं  नूर-ए-सबाह पैलेस’ में कर देंगे। बहुत ही आलीशान ढंग से तीनों शादियां एक साथ यहीं से हो जायेंगी"
"आपाआप कह तो ठीक रहीं हैं पर हुकुम इस बात के लिये तैयार होंगे या नहीं कहना कुछ मुश्किल है" गौहर बेग़म ने शौक़त बेग़म को जवाब देते हुए कहा, "मेरे खयाल में इस पर ठंडे दिमाग़ से सोचने की ज़रूरत है"
शौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ पकड़ा और बोलीं, "चल अंदर चल कर बात करते हैं कोई न कोई तो रास्ता निकल ही आयेगा। सबसे बड़ी बात तो आज यह हो गई कि हमारे सईद के चेहरे की रौनक़ दुबारा वापस आ गई"
देर रात जब दोनों बहनें आसपास ही एक ही बिस्तर पर आराम फरमा रही थीं। उस वक़्त गौहर बेगम ने कहा, "एक काम तो हो सकता है कि तू पहले बशीर भाई के ज़रिए से ये बात तय कर ले कि क्या वे भी शकीला की शादी दिसम्बर में करने के लिये तैयार हैं कि नहीं?"
"मैं एक दो दिन में उनके यहाँ जाऊँगी तो उनसे बात कर लूँगी"
"मैं राजा साहब से यह तो कह सकती हूँ कि वे दस तारीख़ को शिखा की शादी निपटा कर बाद में किसी भी वक़्त दिसंबर में ही कुँवर अनिरुद्ध के निकाह की रस्म सईद के निकाह की रस्म के साथ भोपाल में ही अता फरमाएँ और बाद में शानो शौक़त के साथ कुँवर का व्याह हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में रखें। क्योंकि कुँवर के राजनीतिक लोगों का भी ख्याल रखना होगा"
"चल ऐसे ही कुछ बात चलाना अगर मान जायें तो ठीक नहीं तो हम ही कांकर चले चलेंगेशौक़त बेग़म ने गौहर बेग़म की बात रखते हुए कहा।

कथांश:70

कांकर लौट कर गौहर बेग़म ने राजा साहब से कहा, "हुकुम आपके सब ग़म हमने अपने ऊपर लिये थे वे सब के सब ठीक ढंग से सुलझ गए"
और फिर बाद में राजा साहब को वे सारी बातें जो भोपाल में बीतीं एक एक कर सिलसिलेवार सुनाईं। राजा साहब मारे खुशी के फूले नहीं समाए और उन्होंने गौहर बेग़म को अपनी बाहों में लेकर खूब जोरों से घुमाया। जब मन की खुशी काबू में आई तब वे गौहर बेग़म से बोले, "शुक्रिया तो बहुत ही छोटा लफ्ज़ है, आज आप जो चाहें वह माँग लें"
गौहर बेग़म को भी लगा कि इससे उपयुक्त समय और कौन सा होगा तो उन्होंने भी राजा साहब से यह कह कर सब कुछ माँग लिया जिसका वह वायदा शौक़त बेग़म से कर के आईं थी। मसलन शिखा की शादी के बाद कुँवर का निकाह भोपाल में ठीक उसी दिन हो जिस दिन कि सईद का निकाह होना हो और यह कि बाद में कुँवर की शादी हिंदू रीतिरिवाजों से कांकर में जोर शोर और पूरे राजकीय तरीके से ढोल नगाड़ों के बीच हो।
अक्टूबर में शारदीय दुर्गा पूजन की इस साल विशेष व्यवस्था कांकर में की गई। इस वर्ष भी पूर्व की भाँति अवधूत आश्रम के महामंडलेश्वर महाराज हरिद्वार से विशेष रूप से पधारे। हर साल की तरह इस साल भी ब्रम्ह भोज और बिरादरी भोज रखा गया। बिरादरी भोज के अवसर पर कांकर राजपरिवार के कुल पुरोहित शास्त्री जी ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर महेंद्र की शादी की तिथियों की घोषणा की और बाद में सभी को यह भी सूचित किया कि सभी के आँखों के तारे और कांकर कुँवर तथा खजूरगांव के राणा कुँवर अनिरुद्ध सिंह का विवाह भोपाल के राजपरिवार की नवाबज़ादी सबा के साथ होना तय हुआ है। महामंडलेश्वर ने भी राजकुमारी शिखा और कुँवर अनिरुद्ध सिंह को आशीर्वाद दिया। समस्त बिरादरी ने राजपरिवार को इस दुहरी खुशी के लिए मुबारक़बाद दिया और राजकुमारी शिखा तथा राणा कुँवर अनिरुद्ध सिंह को हार्दिक बधाई देते हुए उनके सुंदर भविष्य के लिए प्रार्थना की।
दस दिसंबर को राजकुमारी शिखा का विवाह ख़ूब धूम धाम से कांकर में राजकुमार माणिकपुर कुँवर महेंद्र प्रताप सिंह के साथ सम्पन्न हुआ। कांकर राजपरिवार ने अपनी चहेती राजकुमारी शिखा बेटी को नम आँखों से विदा किया। विदा होते ही रानी शारदा देवी राजा साहब के सीने से चिपक कर ख़ूब रोईं। महारानी करुणा देवी और गौहर बेग़म ने उन्हें समझाया कि  रानी शारदा देवी यह समय रोने का नहीं है खुशियाँ मनाने का है। यह तो जग की रीति है कि बेटी विवाह के बाद पराये घर जाती है। अब तो आप अपने महल की शोभा बढ़ाने के लिये बहू रानी लाने हेतु भोपाल चलने की तैयारी करें।
तयशुदा प्रोग्राम के अनुसार कांकर राजपरिवार और खजूरगाँव के ओहदेदार और मंसबदारों के साथ भोपाल के लिये रवाना हो गया। भोपाल में एक शानदार जलसे में सईद का निकाह शकीला के साथ और कुँवर अनिरुद्ध का निकाह सबा के साथ जोशोखरोश के साथ नूर--सबाह पैलेस में सम्पन्न हुआ।
शौक़त बेग़म राजपरिवार के साथ ही भोपाल से कांकर आ गईं। बाद में पूरे राजसी ठाठबाट के साथ राणा कुँवर अनिरुद्ध सिंह का विवाह नवाबजादी सबा के साथ वेद मंत्रों के उच्चारण के बीच संपन्न हुआ। सबा ऐश महल से विदा हुईजिनका पुनः नामकरण कुँवरानी पद्मिनी हुआ। राणा कुँवर अनिरुद्ध सिंह और कुँवरानी पद्मिनी अपनी तीनों माताश्री महारानी करुणा देवीरानी शारदा देवी और गौहर बेग़म तथा राजा साहब के साथ शहनाई की मधुर धुन और ढोल नगाड़ों के बीच सूर्य महल में पधारे।
यथोचित स्वागत सम्मान के साथ कुँवर और कुँवरानी अपने कक्ष में आये। कुल पुरोहित शास्त्री जी ने विधिविधान से पूजा अर्चना कराई और उपस्थित लोगों ने उन्हें हृदय से आशीष दिया।
रात्रि की मधुर बेला में दो दिल मिल रहे थे, चाँद आसमान पर खिलखिला कर हँस रहा था। कुँवर अनिरुद्ध सिंह कुँवरानी पद्मिनी के चेहरे को अपने सीने पर रख बड़े प्रेम से निहार रहे थे। आज कुँवर ने पहली बार कुँवरानी पद्मिनी के भाल पर पड़ी एक शोख़ लट को हटाते हुए कहा, "पद्मिनी क्या आप मेरी एक इच्छा पूरी करेंगी?"
कुँवरानी पद्मिनी ने पूछा, "क्या मेरे हुकुम?"
"मैं चाहता हूँ कि कल से आप अपना केश विन्यास कुछ इस प्रकार करें कि आपके भाल पर की माँग ठीक बीचोबीच से निकलने की जगह कुछ बाएं की ओर हट के निकले। मेरी दादी साहिबा इस तरह का केश विन्यास करती थीं और मुझे वे बहुत अच्छी लगती थीं"
"बस इतनी सी बात हुकुम यह कह कर कुँवरानी पद्मिनी उठीं और आईने के सामने आ खड़ी हुईं और टेड़ी मांग निकाल कर सिंदूर दानी अपने हाथ में ले कुँवर से बोलीं, "लीजिये भर दीजिये इस टेढ़ी माँग में मेरे सुहाग का सिंदूर"

कथांश:71

वैवाहिक कार्यक्रमों से फुरसत पा कुँवर और कुँवरानी पद्मिनी हनीमून के लिये स्पेन और पुर्तगाल चले गए। कुछ दिन वहाँ बिता कर जब वे लौटे तो कुँवर अपने राजनीतिक काम में लग गए। इधर राजपरिवार में दो-दो शादियों के कारण क्षेत्र का जो काम छूट रहा था उस पर अपनी पैनी निगाह रखना शुरू किया।  
वक़्त का क्या वह तो अपने हिसाब से चलता ही रहता है। राजनीतिक उठापटक के बीच 1977 के लोकसभा के चुनावों की घोषणा हो गई। कुँवर की सीट से ही प्रधानमंत्री जी के कनिष्ठ पुत्र ने चुनाव लड़ने का मन बनाया जिसके कारण कुँवर का टिकट कट गया।  कुँवर अपना टिकट कटने से दुःखी थे पर राजा साहब ने उन्हें समझाया कि यह वक़्त विरोध का नहीं है बल्कि राजनीतिक सूझबूझ से काम लेने का है। जब कुँवर की मीटिंग प्रधानमंत्री से हुई तो उन्होंने कुँवर के काम की बहुत तारीफ़ करते हुए उन्हें राज्य सभा में नामित करने तथा कैबिनेट में मंत्री पद देने का वायदा कर कुँवर से अपने कनिष्ट पुत्र के लिये मदद की गुहार की।  
राजनीति का पहिया कुछ ऐसा घूमा कि कांग्रेस का समस्त उत्तरी प्रान्तों में सफ़ाया हो गया। प्रधानमंत्री स्वयं रायबरेली से चुनाव हार गईं। प्रधानमंत्री के स्वयं चुनाव हार जाने के कारण कांग्रेस की बहुत किरकिरी हुई। एक सज्जन जो कि रायबरेली के ही थे जब उनसे मज़ाक मज़ाक में किसी ने यह कहा कि कांग्रेस सब जगह से हार जाती उसका ग़म नहीं पर रायबरेली के लिये जिन्होंने इतना कुछ किया कम से कम रायबरेली के लोगों को उनको वोट देकर जितना ही चाहिए था। इस पर दूसरे सज्जनजो कि रायबरेली के ही रहने वाले थेउन्होंने तो यहाँ तक कह दिया, "कांग्रेस अगर रायबरेली से हार गई तो इसमें ताज़्ज़ुब की क्या बात है,  रायबरेली के लोग भी तो आखिरकार गेहूँ की रोटी खाते हैं" 
वाक़ई में उस समय देश के जिस जिस भाग में गेहूँ खाया जाता था वहाँ से कांग्रेस का बिल्कुल सफाया सा हो गया था। 
देश में जनता दल की सरकार बनी। पूर्व प्रधानमंत्री के ऊपर सत्ता के गलत उपयोग के आरोप लगे जिनकी जाँच के लिये शाह कमीशन नियुक्त किया गया, उन्हें जेल में डाल दिया गया। शाह कमीशन के दौरान जो कुछ हुआ सो हुआ परन्तु जनता दल के अंतर्कलह के कारण जनता दल की सरकार मात्र ढाई साल में ही गिर गई और देश में फिर से 1980 में चुनाव कराने की घोषणा हो गई। 
चुनाव प्रचार में सभी राजनीतिक दलों ने अपनी अपनी पूरी शक्ति झोंक दी। कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने देश भर में धुआँधार प्रचार किया। इसी प्रचार के अंतर्गत एक चुनावी सभा को संबोधित करने हेतु जब पूर्व प्रधानमंत्री जिला गोंडा पहुँची तो वहाँ के लोकसभा के सदस्य कुँवर आनंद सिंहराजा साहब मनकापुर ने उन्हें अपने जिले के पिछड़ेपन के बारे में बताया। उसी दिन रात्रि विश्राम के लिए वे मनकापुर कोट में रूकीं। उन्होंने राजा साहब कुँवर आनंद सिंह जी से वायदा किया कि अगर कांग्रेस पार्टी सत्ता में दोबारा आती है तो वह इस क्षेत्र के विकास के लिये कोई ठोस कदम अवश्य उठाएंगी। 
इन चुनावों में कांग्रेस एक बार फिर से विजय श्री प्राप्त कर केंद्र में सत्ता में आ गई। तत्कालीन प्रधानमंत्री ने अपने वायदे के मुताबिक़ कुँवर को कैबिनेट रैंक का मंत्री ही नहीं बनाया बल्कि उन्हें सबसे महत्वपूर्ण विदेश विभाग भी दिया।  
इसके बाद कुँवर ने राजनीति में मुड़ कर नहीं देखा और वह प्रधानमंत्री के बहुत ही नज़दीकी मंत्रियों की श्रेणी में आ गए।  
राजा साहब की सूझ बूझ और कुँवर की अपनी मेहनत रंग लाई। इस तरह एक लंबे अंतराल तक कुँवर ने अपने क्षेत्र के साथ-साथ रायबरेली के हितों का भी ध्यान रखा। 
रायबरेली में आई टी आई यूनिट के विस्तार के तहत बेल्जियम की बेल टेलीफ़ोन कंपनी के साथ सहयोग कर क्रॉस बार टाइप के एक्सचेंज बनाने का काम शुरू किया गया। इसके तहत लगभग पाँच हज़ार लोगों को रोज़गार मिला।  अप्रैल, 1984 को प्रधानमंत्री आई टी आई लिमिटेड के प्रांगण में पधारीं और उन्होंने क्रॉस बार यूनिट का लोकार्पण कर इसे देश को समर्पित किया। इस मौके पर उन्होंने यह माना कि आई टी आई के लिये क्रॉस बार टेक्नोलॉजी नई नहीं है और यह उनका कोई अंतिम कार्य भी नहीं है इसके बाद भी वे कई और काम करने की सोच रही हैं।     
इसी बीच एक दिन प्रातः काल  कुँवर आनंद सिंह जी प्रधानमंत्री जी से अपनी कांस्टीट्यूएंसी के उत्थान के संबंध में मिले और उन्हें उनका किया हुआ वायदा याद दिलाया। ठीक उसी दिन दोपहर से पहले कैबिनेट मीटिंग में जब आई टी आई लिमिटेड के विस्तार की योजना को लेकर तत्कालीन संचारमंत्रीजो केरल प्रदेश के रहने वाले थेने अपना प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष रखा। जैसे ही आई टी आई लिमिटेड के विस्तार की योजना के बारे में तत्कालीन प्रधानमंत्री जी को सूचित किया गयाजिसके तहत एक प्लांट पलक्कड़ और दूसरा बंगलुरू में लगाए जाने का प्रस्ताव था, इस पर तत्कालीन प्रधानमंत्री जी ने अपना अंतिम निर्णय लेते हुए कहा, "इनमें से एक संयंत्र उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले में लगाया जाए"   
बस फिर क्या था और किसकी हिम्मत थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जी की बात को काट सके। उसके बाद आई टी आई के कर्मचारियों और अधिकारियों ने बंगलुरू में संयंत्र लगाने के लिये होहल्ला कियाअंततः जो एक कमेटी साइट सिलेक्शन के लिये बनी थी उसने मनकापुरपल्लकड़ तथा बेगलूरु में ई एसएस ई-10B सिस्टम के एक-एक संयंत्र लगाने की संस्तुति दी।    
इस तरह आईटीआई लिमिटेड की तीन यूनिट उत्तर प्रदेश के हिस्से में आ गईं। 
रायबरेली में यूपी सरकार का उपक्रम यूपी टायर्स एंड ट्यूब लिमिटेड के साथ-साथ स्वदेशी कॉटन मिल तथा पेपर मिल इत्यदि भी इसी समय में वहाँ लगे। दरियापुर में एक शुगर फैक्ट्री भी लगाई गई। फुरसतगंज में सिविल एविएशन अकादमी खोली गई। फिरोज़ गाँधी कॉलेज को अपग्रेड किया गया। कुछ और भी महत्वपूर्ण निर्णयों के कारण अवध क्षेत्र का सर्वांगीण विकास संभव हो सका।  
उत्तर प्रदेश में भी सड़कों की स्थिति में सुधार आने लगा, किसानों की स्थित पहले से बेहतर हईस्कूलों और छात्रों के भले के लिये भी ज़ोरदार तरीके से काम शुरू किया गया। कुँवर के कुछ ख़ास प्रोजेक्ट्स जैसे कि बनारसइलाहाबाद और कानपुर के बीच रिवर क्रूज सेवा शुरू हो गई गंगा नदी के तट पर एक ओर पिकनिक स्पॉट और मगरमच्छ का ब्रीडिंग सेंटर तथा नदी के दूसरे मुहाने पर एक डियर पार्क शुरू हो चुके थेतीन लिफ्ट इरिगेशन की कैनाल के शुरू हो जाने से किसानों को खेती किसानी के काम में बहुत मदद मिलने लगी। 
गंगा नदी को निर्मल बनाने के अंतर्गत डलमऊ के घाट पर विद्युत शवदाह की व्यवस्था भी शुरू की जा चुकी थी।   
एक दिन राजा साहब को रात्रि के अंतिम प्रहर में स्वप्न आया कि अब यह उचित समय है जब कि उन्हें भी अपने पिताश्री महाराज चूड़ावत सिंह जी के पदचिह्नों पर चलते हुए राजपाट त्याग कर सन्यास ले वानप्रस्थ आश्रम में चले जाना चाहिए।  
बस यह विचार मन में आते ही राजा चंद्रचूड़ सिंह ने अगले दिन ही कुँवर अनिरुद्ध सिंह का विधिवत् राज्याभिषेक किया। देर रात गौहर बेग़म के साथ ऐश महल में गुज़ारीउनको समझाया कि वे कुँवर और कुँवरानी को उनके सहारे छोड़ कर जा रहे हैं। अगले दिन भोर में वे अपनी धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी तथा शारदा देवी के साथ कांकर छोड़ कर वन गमन हेतु प्रयाण किया।   
कांकर में रह गए बस अब राजा कुँवर अनिरुद्ध सिंह और उनकी रानी पद्मिनी तथा राजमाता के रूप में गौहर बेग़म। आज के दिन भी कांकर तथा खजूरगांव रियासतों के निवासी राजा चंद्रचूड़ सिंह के क्रियाकलापों की तारीफ़ करते नहीं अघाते और उनके सम्मान में यही कहते है कि अपने क्षेत्र के विकास और लोगों के लिये राजा चन्द्रचूड़ सिंह जी आजीवन ज़ोरशोर के साथ लगे रहे और उनके ही अथक प्रयासों के कारण  'कांकर अवध क्षेत्र में एक विशिष्ट स्थान रखता है। सभी लोग आज भी यही कहते हैं कि इतने अच्छे शासक और बेहतरीन इंसान के रूप में ऐसे एक थे चन्द्रचूड़ सिंह


समाप्त


कुछ कही कुछ अनकही अपनी बात:

आज यह कथानक सबकी खुशियों का ध्यान रखते हुए अपने अंतिम पड़ाव तक आ पहुँचा है।

कुछ बातें जो अत्यंत महत्व की हैं, मैं उन्हें यहाँ आप सभी के समक्ष रखना चाहूँगा।

राजपूत अपनी आन बान शान के धनी होते थे परंतु आजकल के बदलते परिवेश में यह आदर्श अपनी स्थिति में यह सही है नहीं कहा जा सकता है, फिर भी इस कथानक से जुड़े हुए सभी पात्रों के व्यवहार पुराने आदर्शों का वहन करते हुए दर्शाए गए हैं।

समाज के दो महत्वपूर्ण वर्ग कम से कम राजपूत और ब्राह्मण रैबरेली और अवध क्षेत्र के परिपेक्ष्य में हमेशा एक दुसरे के विरोध में रहे जिसके कारण उत्तर प्रदेश में एक नई प्रकार की जातिगत राजनीति का जन्म हुआ जिसमें दलित समाज एक तरफ तो पिछड़ा वर्ग एक तरफ हो गया। उच्च वर्ग के कुछ लोग अपने अपने स्वार्थ सिद्ध करने के लिये बंट गए जिसका राजनीतिक लाभ दलित और पिछड़े वर्ग के नेताओं ने सत्ता हथिया कर ख़ूब पूरा किया।

राजा चंद्रचूड़ सिंह की तीन तीन रानियां थीं इसके बावजूद तीनों से उनके संबंध एक जैसे थे। किसी भी रानी में कोई द्वेषभाव नहीं था। आजकल एक आदमी अपने वैवाहिक जीवन में अपनी सहधर्मिणी को खुश कर नहीं रह पाता। समाज में परिवर्तन आये, लोगों की सोच इस मुआमले में सार्थक होलेखक का बस यही प्रयास है न कि बहुविवाह के पुराने विचार को सही ठहराना।

समाज के जो लोग असरदार होते हैंउन्हें समाज में एकता के विचार को बल देना चाहिये न कि वे तोड़फोड़ की राजनीति करें।

एक नेता को किस कैसा होना चाहिए यह कुँवर अनिरुद्ध सिंह के चरित्र के माध्यम से जताने की कोशिश की गई है।

आजकल के युवाओं की सोच सकारात्मक हो इसके लिये सभी के चरित्र अपनी अपनी जगह एक उदाहरण हैं।

जीवन में एक सोच वाले लोग साथ-साथ मिल कर चल सकते हैं यह बात भी कुँवर अनिरुद्ध और सबा तथा कुँवर महेंद्र और शिखा के साथ साथ आने से स्पष्ट होती है।

जीवन में शक़ का कीड़ा न लगे इस अहम मुद्दे को भी अपनी तरह से शिखा के दिमाग में चल रहे द्वंद्व के माध्यम से दर्शाने की कोशिश की गई है।

अंत में वही परिवार तरक्की करते हैं जो मिलजुल कर चलते हैं।

10 इतना कुछ हुआ पर जो न हो सका वह था रायबरेली के बाज़ार में पोस्ट  के सामने धोबियाने मोहल्ले के गधों की मन्त्रणा करने की आदत ढेंचू ढेंचू चिल्ला कर एक दूसरे को बुलाने की आदत और दूसरा पान की दुकान पर खड़े होकर मुँह ऊपर आसमान की ओर करके औओ औओ करनाजगह जगह पान की पीक करना और वहाँ पर खड़े हो देश की राजनीति को चलाना। न बदला घोशियने मोहल्ले में आराम से स्कूटर मोटर साईकल चला पाना। हालांकि यह बात भी रही कि लोग न भूल पाए राम कृपाल की दुकान की जलेबी और समोसेडॉक्टर फ़ारुखी की होम्योपैथिक की दवाइयां और लालूपुर के ठाकुर धुन्नी सिंह चौहान का चौहान मार्केटमिली जुली गंगा जमुनी संस्कृति।

......वैसे तो कुछ और भी बातें इस कथानक में होंगी जो पाठक की अपनी अपनी सोच पर निर्भर करता है। 

एक और महत्वपूर्ण बात यह कि यह कथानक हमारे मित्र हरीश पाण्डेय जी जो इस समय आई टी आई लिमिटेड की रायबरेली इकाई में उच्च पद पर कार्यरत हैं, उनके सुझाव और पहल से ही लिखा जा सका।  मुझे प्रेरित करने के लिये उनका हार्दिक धन्यवाद।

यह कथानक मेरे उन व्यक्तिगत संबंधों को समर्पित है जो कि मेरे रायबरेली प्रवास (1975 से 1996) के दौरान वहाँ के लोगों के साथ बने। आप सभी लोगों ने इसे अपना प्यार दियाइसे सराहा और समय समय पर जो सुझाव दिए जिसकी वज़ह से यह अपने सुखद अंत तक आ पहुँचा। मेरे दिल दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था जिसके तहत यह कथानक सुखांत की जगह दुखांत में समाप्त होना था परंतु इस कथानक को हर दिन पढ़ने वाले हमारे मित्र सर्वश्री बी एन पाण्डेय राजन वर्मा निर्मल गर्ग और भी कई अन्य लोगों का आग्रह और हार्दिक इच्छा थी कि कथानक सकारात्मकता पर समाप्त होअतः मैंने वही किया जो हमारे मित्रों ने चाहा। उनके मार्गदर्शन के लिये मैं हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।

सबसे बड़ी बात तो इस कथानक के साथ यह रही कि यह सुबह-सुबह मित्रों के बीच हँसी मज़ाक और चकल्लसबाज़ी का केंद्र बिंदु बन कर रहा।

आने वाले दिनों में Hi! Buddies” में पुनः मुलाक़ात होगी, तब तक के लिए नमस्कारआदाबसत श्री अकालजै श्रीरामराधे-राधे, इत्यादि

धन्यवाद।




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