एक
थे
चन्द्रचूड़ सिंह
( पार्ट I )
एस. पी. सिंह
अस्वीकारोक्ति
मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस पुस्तक में
वर्णित व्यक्ति और घटनाएँ काल्पनिक हैं| वास्तिविक जीवन से इनका कोई सरोकार नहीं
हैं| तथापि पुस्तक में उल्लिखित यदि किसी व्यक्ति या घटना का
वास्तविक जीवन से सम्बन्ध है, तो यह मात्र संयोग माना जाये|
अपनी बात:
आप सभी मित्रों की कृपा से गत दिनों में आप सभी के सहयोग से मेरे दोनों कथानक ‘रिंनी
खन्ना की कहानी’ एवम ‘मैं उसकी ख्वाहिश हूँ’ फेसबुक पर धारावाहिक रूप में प्रकशित हुए और आशातीत सफलता प्राप्त की। हमारी अन्य पुस्तकें अब Amazon पर ‘ऑन लाइन’ भी उपलब्ध हैं, इसके साथ-साथ आप इन्हें ‘ज़फायर एंटरटेनमेंट प्राइवेट
लिमिटेड’ से आप इन्हें हार्ड/सॉफ्ट कवर में भी प्राप्त कर अस्कते हैं।
फेसबुक पर धारावाहिक प्रस्तुतीकरण में उपरोक्त दोनों रचनाओं ने एक इतिहास तो
कायम किया ही साथ ही साथ साहित्य जगत में इस उपन्यास की भूरि-भूरि
प्रशंशा भी हुई। इसी क्रम में यह कृति “एक थे चंद्रचूड सिंह” अब आपके कर कमलों में प्रस्तुत है, आप पूर्व की भांति इस
रचना को भी अपना पूरा प्यार देंगें ऐसी हमारी अभिलाषा है।
कहानी के विषय में यहाँ इतना ही कहना अधिक होगा कि राजा रजवाड़ों की कहानियाँ हमेशा से ही लेखन क्षेत्र
में आकर्षण का केंद्र रहीं हैं। यह कथानक अवध क्षेत्र उत्तर प्रदेश की पृष्ठभूमि पर ‘कल’ जो बीत गया और ‘आज’ जिसमें हम सभी जी रहे हैं दोनों को ही बहुत खूबसूरती के साथ
लेकर लिखा गया है। यह एक अनूठा प्रयास है। अपने आप में यह बिलकुल ही
नई किस्म की रचना है।
अपनी बात यहीं समाप्त करते हुए बस यही उम्मीद है कि आप इस कथानक को पढ़ें और आनंद उठायें।
बस इतना ही......
धन्यवाद,
गाज़ियाबाद
एस पी सिंह
10-07-2017
प्रस्तावना
लेखन के क्षेत्र में अब श्री एस पी सिंह किसी परिचय
के मोहताज नहीं हैं। इन्होंने अब तक अँगरेजी और हिन्दी में अनेक धारावाहिकों,
कहानियों की रचना की है। चाहे दो धड़कते दिलों में मुहब्बत का सैलाब हो या देश
अथवा समाज के विभिन्न वर्गों में एकता स्थापित करने की बात हो, इनकी लेखनी से ये
विषय बच नहीं सके हैं। देश की आज़ादी और अँगरेजी हुकूमत से पहले और अँगरेजी हुकूमत
के दौरान भी भारत छोटे छोटे राज्यों और रियासतों में बँटा था। इन राज्यों और रियासतों पर राजाओं और रजवाड़ों
की हुकूमत चलती थी। रजवाड़े अपने तौर तरीक़ों से शासन चलाते थे। प्रस्तुत
धारावाहिक “एक थे चंद्रचूड़ सिंह” में कांकर, उत्तर प्रदेश के स्थानीय
राजपरिवार का विशद वर्णन है। उनके रहन सहन, शासन शैली, प्रजा के प्रति आत्मीयता,
के दर्शन इस पुस्तक में बहुत ही सुंदर ढंग से मिलते हैं। श्री एस पी सिंह के लेखन में मुझे एक विशेषता
बार बार परिलक्षित होती है और वह है दो विपरीत समुदायों में एकता स्थापित करने का
भरपूर प्रयास जो कि वर्तमान समय में आवश्यक प्रतीत होता है। कुँवर अनिरुद्ध का
विवाह भोपाल की रहने वाली मुस्लिम शाही परिवार सबा से होता है और दोनों परिवार
बिना किसी हिचक इस रिश्ते को क़ुबूल करते हैं और दोनों परिवारों में मेलमिलाप का
सुखद वातावरण बनता है।
स्वयं चंद्रचूड़ सिंह की तीन रानियाँ हैं जिनमें एक
हैं गौहर बेगम। इन तीनों रानियों में पारिवारिक प्रेम और सामंजस्य एक मिसाल है।
कहीं भी इस बात की झलक नहीं मिलती कि यह प्रेम थोपा गया है। तीनों में वैचारिक
समानता के धरातल पर पारिवारिक निर्णय लिए जाते हैं। इसके साथ ही राजपरिवार की
राजनीतिक आकांक्षा के दर्शन भी हमें इस पुस्तक में मिलते हैं। कुँवर अनिरुद्ध के
लिए राजनीति विलासिता का साधन नहीं है बल्कि प्रजा के प्रति समर्पण है। कुँवर का
राजसी रहन सहन सार्वजनिक हित के काम में बाधक नहीं बनता है। इस धारावाहिक में हमें
सत्तर के दशक की राजनीतिक हलचल भी सुनाई देती है जो नवोदित पीढ़ी के लिए जानकारी
का साधन है।
पुस्तक का विधिवत् अध्ययन हमें सच्चे प्रेम, प्रजा
वात्सल्य, एक दूसरे के प्रति आदर और सम्मान के पाश में इतना बाँधे रखता है कि पाठक
पुस्तक का ओर-छोर पढ़े बिना रह नहीं सकता। कहानी में अविरल प्रवाह है जो समूची कथा
को सुपाठ्य और बोधगम्य बनाने में सक्षम है। आशा है कि पाठक श्री एस पी सिंह की इस
नवीन रचना का आनंद उठाएँगे। सच तो यह है कि यह पुस्तक उनके व्यापक अनुभव और इतिहास
के गहन अध्ययन तथा अथक परिश्रम का फल है। किसी भी रचना की सफलता तो उसके पाठकों पर
निर्भर है और पाठक इस कृति को अपने स्नेह से वंचित नहीं करेंगे।
बेंगलूरु
राम
शरण सिंह
10-07-2017
“एक थे चन्द्रचूड़ सिंह”
रामनवमी के सुअवसर पर राजा चंद्रचूड़ सिंह सूर्य महल के एक छोर पर बने मंदिर में पूजा अर्चना करने गए हुए थे और दूसरी ओर गौहर
बेग़म भगवान राम जन्म के उपलक्ष्य में भजन गाने में तल्लीन थीं।
ठुमक चलत रामचंद्र बाजत पैजनियां।
किलकि किलकि उठत धाय गिरत भूमि लटपटाय धाय मात गोद लेत
दशरथकी रनियां।
अंचल रज अंग झारि विविध भाँति सो दुलारि तन मन धन वारि वारि
कहत मृदु बचनियां।
विद्रुमसे अरुण अधर बोलत मुख मधुर मधुर सुभग नासि कामें
चारु लटकत लटकनियाँ
तुलसीदास अति आनंद देख के मुखारिंद रघुवर छबि के समान रघुवर
छबि बनियां।
रामनवमी का त्यौहार चैत्र शुक्ल की नवमी में मनाया जाता है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी
का जन्म हुआ था।
राम जन्म कथा:
हिन्दू धर्म शास्त्रों के अनुसार त्रेता युग में रावण के
अत्याचारो को समाप्त करने तथा धर्म की पुन: स्थापना के लिये भगवान विष्णु ने
मृत्यु लोक में श्री राम के रूप में अवतार लिया था. श्रीराम चन्द्र जी का जन्म
चैत्र शुक्ल की नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र तथा कर्क लग्न में कौशल्या की कोख से, राजा दशरथ के घर में हुआ था
रामनवमी पूजन:
रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदू धर्म की सभ्यता में महत्वपूर्ण रहा है। इस पर्व के साथ ही माँ दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी
होता है। हिन्दू धर्म में रामनवमी के दिन पूजा की जाती है। रामनवमी
की पूजा में पहले देवताओं पर जल, रोली और लेपन चढ़ाया जाता है, इसके बाद मूर्तियों पर मुट्ठी भरके चावल चढ़ाये जाते हैं। पूजा के बाद आरती
की जाती है।
रामनवमी का महत्व:
यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है। रामनवमी के दिन ही
चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान श्री राम जी का जन्म
हुआ था अत: इस शुभ तिथि को भक्त लोग रामनवमी के रूप में मनाते हैं एवं पवित्र नदियों में स्नान
करके पुण्य के भागीदार होते हैं।
आज का दिन गौहर बेग़म के लिये रामनवमी के साथ इसलिये भी महत्वपूर्ण था कि आज
संध्या काल में राजा साहब नौ दिनों के बाद उनसे मिलने आने वाले थे।
अब आप "एक थे चन्द्रचूड़ सिंह" कथानक पढ़िए और आनंद लीजिये।
धन्यवाद। एस.पी.सिंह
कथांश:1
वर्ष-1943, यूनाइटेड
प्रोविंस
राजा चंद्रचूड सिंह ‘कांकर’ रियासत अवध क्षेत्र के जनपद रायबरेली के
दक्षिण में और प्रतापगढ़ जनपद के उत्तरी दिशा में स्थित ‘कांकर’ गाँव के रहने वाले थे। उनके पूर्वज करौली
रियासत, जनपद धौलपुर से तक़रीबन तीन सौ साल पहले यहाँ आये थे और यहाँ आकर उन्होंने गंगा
के पूर्वी तट पर अपनी एक आलीशान पाँच आँगन वाली हवेली और एक शिव मंदिर की स्थापना की और साथ ही साथ गंगा के किनारेकिनारे कई एकड़ जमीन भी खरीद ली, जिस पर कालांतर में खेती बाड़ी की जाने
लगी। कई एकड़ ज़मीन पर आम, अमरूद, आँवला, अनार और फलदार वृक्ष लगाकर बाग़ बगीचे भी लगवा दिए। खादर की जो
ज़मींन थी, उसमें तालाब बना कर मछली पालन का काम भी साथ ही साथ शुरू करा दिया जो बाद में
मालगुजारी के लिहाज़ से रियासत के लिए वरदान साबित हुआ और साथ में आसपास के किसान
और दलित परिवारों के लिए रोज़ी रोटी का भी एक अमूल्य संसाधन बना जिससे इस परिवार की
प्रतिष्ठा को चार चाँद लग गए।
ब्रिटिश हुक़ूमत के दिनों में इस परिवार के मुखिया ने बाद में यहाँ के आसपास के
चौरासी गाँव की ज़मींदारी खरीद ली इस तरह उनके परिवार के मुखिया को राजा का दर्जा
हासिल हो गया और उनकी गिनती कुलीन परिवार में होने लगी और इस तरह वे भी राज
परिवारों की जानी मानी लंबी फ़ेहरिस्त में शामिल हो गए।
चन्द्रचूड़ सिंह ‘कांकर’ रियासत के आखिरी अधिकृत राजा थे जिनका राज्याभिषेक स्वयं
उनके पिताश्री राजा चूड़ावत सिंह जी ने अपने कर कमलों से कर उन्हें गद्दीनशीन किया था और उसके तुरंत बाद वे वानप्रस्थ आश्रम
के लिए अपनी पत्नी रानी महिमा सिंह के साथ प्रस्थान कर गये।
कांकर में एक प्रचलित
किवदंती के अनुसार कुँवर चंद्रचूड़ सिंह का विवाह रायबरेली जनपद की खजूरगाँव रियासत के राणा जितेन्द्र नारायण सिंह ‘देव’ जी की एक मात्र पुत्री राजकुमारी करुणा सिंह के साथ अपने बाल्यकाल
में किये गए वचन को निभाते हुए कर दिया था परंतु जब राजकुमारी कांकर पधारीं तो
उनके सांवले रंग रूप का होने के कारण वे रानी महिमा सिंह और कुँवर चंद्रचूड सिंह
के मन न भाईं। अपने पिताश्री के वचन का पालन करते हुए तथा अपनी कुलपरम्परा का मान
सम्मान रखते हुए अपने पिताश्री को यह वचन दिया कि वे कभी भी राजकुमारी करुणा सिंह
को कोई कष्ट न होने देंगे और उनके मान सम्मान में कोई कमी नहीं आने देंगे पर साथ
ही उन्होंने उस समय अपने पिताश्री से इस बात के लिए अनुरोध भी किया कि वे उचित समय
पर अपनी मनपसंद का एक विवाह और करना चाहेंगे, परंतु इस बात को सुनकर राजा चूड़ावत जी बहुत दुखी हुए उन्होंने कुँवर की इस बात पर कुछ कहा तो नहीं पर अंदर ही
अंदर बहुत आहत हुए और
उन्होंने उसी क्षण वानप्रस्थ आश्रम जाने का निश्चय कर लिया।
वर्ष -1970 का उत्तरार्ध
राज परिवार के वर्तमान मुखिया चन्द्रचूड़ सिंह जी अपनी दो धर्मपत्नियों महारानी करुणा देवी और छोटी रानी
शारदा देवी के साथ कांकर गाँव में ही नदी
किनारे वाली अपनी हवेली, जिसका नामकरण पूर्व में ही “सूर्य महल” कर दिया गया था, रहते थे। उनके महारानी करुणा देवी से एक मात्र पुत्र अनिरुद्ध सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय से
फिजिक्स में एमएससी करने के बाद अमेरिका से एप्लाइड फिजिक्स में रिसर्च हेतु कोलंबिया यूनिवर्सिटी गए हुए थे और
छोटी रानी से एकमात्र पुत्री शिखा डी यू के मिरांडा हाउस से बी एससी करने के लिये दिल्ली में थी। इसके अलावा
चन्द्रचूड़ सिंह को अपनी जवानी के दिनों चौक़, लखनऊ की नाचने वाली गौहर जान से जब वह एक जलसे में कांकर
आईं तो इस कदर प्यार हो गया कि फिर गौहर बेग़म बन कर वहीं सूर्य महल के पास ही नदी
के किनारे बने एक अलग भवन जिसका नाम ही ‘ऐश महल’ था, वहाँ रहने लगीं। कुल मिला कर यह कहा
जा सकता है कि उस वक़्त की अवध की अन्य रियासतों की तरह ही चन्द्रचूड़ सिंह जी की
ज़िंदगी भी बड़े ऐशो आराम से गुजर रही थी जिसमें काम धाम कम ऐश, मौज मस्ती और खाना पीना अधिकायत से था। आये दिन कभी इस
रियासत के तो कभी किसी दूसरी रियासत के राजा आ जाया करते और नाचगाना और खानापीना चलता रहता और उनके इन्हीं शौकों की बदौलत कभी
कभी तो चन्द्रचूड़ सिंह के दोस्त इंग्लॅण्ड वगैरह से भी आकर खूब मौज किया करते थे।
कांकर कहने को तो एक गाँव था पर एक बार आप ‘सूर्य महल’ में दाखिल हुए नहीं कि फिर आपको नहीं लगेगा कि आप किसी छोटेमोटे गाँव में हैं चूँकि महल में सुख सुविधा
के सभी सामान उपलब्ध थे।
अचानक एक दिन सुबह-सुबह ऐश महल से राजा साहब के लिये बुलावा आया कि गौहर बेग़म
ने उन्हें याद किया है। कुछ देर बाद राजा साहब ऐश महल आ पहुंचे और गौहर बेग़म से
पूछा,
“बेग़म ऐसा क्या हो गया कि आज आपने सुबह सुबह याद किया”
“हुजूर जल्दी में तो नहीं हैं न आप” गौहर बेग़म ने बड़ी अदा से राजा साहब से पूछा।
“नहीं कोई खास नहीं, आज हमें लखनऊ जाना था राजकुमारी शिखा आज दिल्ली से आ रहीं
हैं, उनको लेना था और कुछ अदालत का ज़रूरी काम भी निपटाना था”
“हुजूर क्या हम भी आपके साथ चल सकते हैं?”
“चलिये, अगर आपकी यही मर्ज़ी है तो चलिये”
“क्या कोई और भी जा रहा है आपके साथ?”
“छोटी रानी साहिबा साथ में रहेंगी”
“तो फिर आप उन्हीं के साथ जाइये, मेरा उनके साथ जाना ठीक नहीं रहेगा”
“आप फिर कभी चली चलिएगा”
“जी यही बेहतर होगा”
“ये तो बताइए कि आपने हमें याद क्यों किया था”
“रहने भी दीजिये, छोड़िए भी”
“नहीं-नहीं, अब रहने भी दीजिये”
“अगर आप नहीं बतायेंगी तो मेरा मन उलझा रहेगा”
“बस आपकी याद आ रही थी और कुछ नहीं”
“आप बताना नहीं चाह रही हैं तो और बात है, वैसे आप कुछ भी कह देंगी तो हमारे मन को तसल्ली बनी रहेगी”
“मुझे पता लगा था कि आप बाहर जाने वाले हैं बस सोचा था कि हम
भी सैर सपाटे पर आपके साथ चले चलेंगे, चलिए फ़िलहाल आज आप चलिए हम बाद में कभी फिर चले चलेंगे और कोई खास बात नहीं थी। आप
लखनऊ जा ही रहे हैं तो एक काम करियेगा कि हमारे लिए भी कुछ लेते आइयेगा”
"क्या यह तो बताइए"
"हाय अल्लाह अब हमारी हैसियत यह हो गई है कि हमें यह बताना
होगा कि क्या"
“जी अगर आप कुछ भी नहीं कहना चाह रही हैं तो ठीक है, हम अपनी मन मर्ज़ी के माफ़िक कोई माकूल चीज लेते आएंगे। अब
इज़ाज़त दीजिये देर हो रही है"
"खुदा आपका ख़्याल रखे और सफर कामयाब रहे” यह कह कर गौहर बेगम ने राजा चन्द्रचूड़ सिंह को विदा किया.....
कथांश:2
लखनऊ में राजा चन्द्रचूड़ सिंह अपनी बेटी शिखा से जब मिले तो उन्हें पहली बार
लगा कि उनकी बेटी यकायक बड़ी हो गई। हर पिता की तरह उनके मन के एक कोने में चिंता
होने लगी कि अब शिखा के लिए भी उचित वर ढूँढ़ने की कोशिशों को और तेज करना पड़ेगा।
चन्द्रचूड़ सिंह और छोटी रानी शारदा देवी अपनी बेटी को साथ ले अपने कैसरबाग निवास
स्थान 'कांकर हाउस' में रुके। कैसरबाग के परकोटे में अवध की रियासतों के लिये उनके रुतबे के लिहाज
से रिहायसी इंतज़ाम पहले ही इंतज़ामिया द्वारा कर दिया गया था कि जब कभी वे लोग यहाँ
आएं तो अपने ही निवास स्थान पर आराम से रुकें।
राजा चन्द्रचूड़ सिंह पूरे परिवार सहित शाम को अपने मित्र राजा साहब माणिकपुर
के निवास ‘माणिकपुर हाउस’ में उनसे
सपरिवार मिलने गए। दोनों परिवारों में अच्छा मेलजोल था इसलिये कोई औपचारिकता की
आवश्यकता ही नहीं थी। राजा साहब माणिकपुर मानवेंद्र सिंह और उनकी धर्मपत्नी
महारानी रत्ना देवी ने उन लोगों की खूब आवभगत की। शाम के समय जब सभी लोग साथ बैठे
हुए थे महारानी रत्ना ने शिखा से खूब खुल कर बात की और उसके शौक़ वग़ैरह और उसका आगे
क्या करने का इरादा है इत्यादि विषयों पर विस्तार से पूछताछ की। बातचीत में राजा
साहब मानवेंद्र सिंह ने पाया कि राजकुमारी शिखा अत्यंत मेधावी और अपने लक्ष्य पर
अर्जुन की दृष्टि रखने वाले व्यक्तित्व की धनी और सर्वगुण संपन्न युवती है, उनके मन में बस यही चल रहा था कि क्या अभी बात करना उचित
होगा या फिर कुछ समय इंतज़ार किया जाय।
इतने में राजा चंद्रचूड़ सिंह ने कुँवर महेंद्र के बारे में पूछा कि वह आजकल
कहाँ हैं और उनका क्या करने का इरादा है? राजा साहब मानवेंद्र सिंह ने बताया कि आजकल कुँवर महेंद्र
इंग्लैंड गये हुए हैं और लग रहा है वह वहीं से अपनी डॉक्टरेट पूरी करेगा। रानी
शारदा देवी ने महारानी रत्ना की ओर देखा और यह प्रस्ताव रखा कि दोनों राजपरिवारों
के बीच हम लोगों के जितने मधुर संबंध हैं अगर हम इन रिश्तों को कोई नया नाम दे पाएं तो उन्हें बड़ी प्रसन्नता
होगी। महारानी रत्ना ने इस बात पर उत्साहित होते हुए कहा, “रानी शारदा देवी आपने तो हमारे मुहँ की बात छीन ली, मुझे शिखा बेटी बहुत पसंद है”
राजा साहब चंद्रचूड़ सिंह ने इस पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“कुँवर महेंद्र का भी कोई जवाब नहीं वह तो हमारी आँखों के भी
तारे हैं”
बातचीत में दोनों ओर से ऐसी बातें कहीं गईं जिससे यह साफ हो गया कि वे लोग
कुँवर महेंद्र के साथ राजकुमारी शिखा के विवाह की बात सोच रहे हैं।
राजा मानवेंद्र सिंह ने यह प्रस्ताव रखा कि जब अबकी बार छुट्टियों में ये
दोनों बच्चे यहाँ हों तो इन लोगों को कुछ वक़्त साथ साथ बिताना चाहिये जिससे कि वे
आपस में एक दूसरे को समझ सकें और जब इन दोनों का एक दूसरे के प्रति रुझान हो तभी
आगे कोई बात करना उचित होगा।
यह सब चर्चा चल रही थी और राजकुमारी शिखा चुपचाप दोनों ओर की बातें बड़े ध्यान
से सुनती रहीं पर उन्होंने अपनी ओर से कोई भी प्रतिक्रिया नहीं दी। लग रहा था कि
उनके मन में कुछ और ही चल रहा था।
देर रात जब वे सब ‘कांकर हाउस’ लौटे तो घर के केअर टेकर ने बताया कि ऐश महल से फोन आया था
और बेग़म साहिबा पूछ रही थीं, "कांकर हुज़ूर कहाँ हैं?"
"तो तुमने क्या कहा?" राजा चन्द्रचूड़ सिंह ने पूछा।
"मैंने उन्हें बता दिया कि आप रानी साहिबा और राजकुमारी जी
के साथ माणिकपुर हाउस गए हैं और देर रात ही लौटेंगे"
"फिर उन्होंने क्या कहा?"
"कहने लगीं कि कोई बात नहीं"
इसके बाद बात आई गई हो गई पर जब राजा साहब और रानी साहिबा सोने के लिये बिस्तर
पर लेटे हुए थे तो रानी शारदा देवी ने अपने दिल की बात बड़ी शालीनता से रखी और कहा,
"बड़ी चिंता करती हैं आपकी बेग़म साहिबा, बहुत आशिक़ाना जो है आपसे। लगता है कि एक रात भी वह आपके वगैर नहीं रह सकती हैं"
राजा साहब ने रानी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, "हमें तो सभी प्यार करते हैं क्या आप नहीं करती हैं?"
"एक मिनिट रुकिये पहले मेरी इन तीन उँगलियों में से कोई एक
उँगली पकड़िए” और यह कहते हुए रानी साहिबा ने अपने दायें हाथ की तीन
उँगलियाँ राजा साहब के सामने कर दीं।
"यह क्या मज़ाक है रानी शारदा जी?"
"आप एक पकड़िए तो सही"
राजा साहब धर्म संकट में थे कि क्या करें क्या न करें इसी पशोपेश के बीच
उन्होंने तर्जनी उँगली पकड़ी और रानी साहिबा के चेहरे के भाव को पढ़ने की कोशिश करने
लगे।
तभी रानी साहिबा खुशी से झूम उठीं और बड़े प्यार से बोलीं,
"हम तो आपको दिलोजान से चाहते हैं पर हम यह नहीं जानते थे कि
आपके दिल के सबसे करीब कौन है? आज आपने मेरी तर्जनी पकड़ कर यह साबित कर दिया कि आपके करीब कोई भी रहे पर दिल
पर राज हमारा ही चलता है। हम आज अपने आप को बहुत खुश किस्मत मानते हैं। अब बताइये
कि हम आज आपको कैसे खुश करें?"
“इधर जरा, करीब तो आइये” राजा साहब ने रानी साहिबा को अपनी बाहों में लेते हुए कहा,
"जरा इधर करीब तो आइए। थोड़ा और। कुछ और....। अब
बताइये कि आप हमें कितना प्यार करती हैं?"
कथांश:3
अगले दिन राजा साहब रानी शारदा देवी और शिखा के साथ कचहरी
गये और अपने वकील विवेक राज सिंह से मिले, ज़मीन के संबंध में जो मुक़द्दमा इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ
बेंच में लंबित था उसके संबंध में पूछताछ की। विवेक ने उन्हें आश्वासन दिया कि
चिंता की कोई बात नहीं है और यह कि वह निश्चिंत रहें। विवेक सिंह की ससुराल भी रायबरेली के गढ़ी गाँव के ठाकुर साहब राजेन्द्र प्रताप सिंह के यहाँ थी और दोनों परिवारों में उठना बैठना था इसलिये
राजा साहब ने विवेक को निमंत्रण देते हुए कहा, “जब कभी ससुराल आना जाना हो तो हमारे गरीब खाने पर भी आओ एक
दिन शाम को कुछ रंगीनियत का मज़ा वग़ैरह लिया जाय”
विवेक ने अपनी ओर से वायदा किया कि अबकी बार जब गढ़ी आना होगा तो एक रात वह कांकर ज़रूर-ज़रूर आएंगे। दुआ सलाम के बाद राजा साहब जब हाई कोर्ट
की बिल्डिंग से निकले तो रानी साहिबा ने पूछ लिया, “विवेक से तो आप बहुत घुल मिल कर बात कर रहे थे जैसे कि आपकी उनसे बहुत पुरानी जान
पहचान हो”
“हाँ, इन लोगों से हमारे बहुत पुराने पारिवारिक
संबंध हैं। विवेक से पहले इनके पिताश्री बृजेश कुमार सिंह जी हमारे केस की देखभाल करते थे। अब वह हाई कोर्ट के जज हैं। इसलिए इन लोगों से बड़ी मदद मिलती रहती है”
“मुझे यह पता नहीं था, मुझे क्षमा करें” रानी साहिबा ने कहा।
“अरे रानी साहिबा आप तो बेवजह तकल्लुफ़ कर रही हैं”
राजा साहब और सब लोग उसके बाद चौक़, लखनऊ के सबसे बड़े जूअलर्स खुनखुन जी के यहाँ आ पहुंचे और उन्होंने अपनी बेटी शिखा से कहा कि उसे जो
सामान अच्छा लगे वह अपने लिये ले ले। उसके बाद रानी साहिबा की ओर देखते हुए बोले
कि वह भी जो चाहें वह जेवरात अपने लिये ले सकती हैं। रानी साहिबा ने एक माणिक जड़ाऊ सेट अपने लिये और
उससे भारी एक सेट महारानी
के लिए लिया। राजा साहब ने जब पूछा, “लगता है कि आज आप पूरी दुकान ही खरीदने के इरादे से आई हैं”
“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है। दूसरा सेट महारानी के लिये है”
“यह बात है तो आज हमारी भी एक फ़रमाइश पूरी कर दीजिए एक सेट
गौहर बेग़म के लिये भी ले लीजिए”
“जो हुक़्म” कह कर रानी साहिब ने अपनी टक्कर का एक सेट गौहर जान के लिये भी ले लिया।
जब शिखा की पसंद के जवाहरात भी निकल आये तो वे तीनों लोग
वहाँ से कांकर के लिये निकल लिये। देर शाम को वे लोग कांकर पहुंचे थे तो राजा साहब
सबसे पहले महारानी के पास आए और उन्हें जो जवाहरात वे लखनऊ से उनके लिये लाये थे
उनको देते हुए बोले, “यह आपकी छोटी
बहन रानी साहिबा की पसंद है”
“वाह यह तो बहुत ही सुंदर है आखिर वह हमारी छोटी बहन जो है
वह हमारा ख़्याल नहीं रखेगी तो कौन रखेगा?” महारानी ने रानी शारदा देवी की प्रशंसा करते हुए कहा।
“ये बात तो है” राजा साहब ने यह कहते हुए उनसे आज रात गौहर बेग़म के यहाँ रहने की इज़ाज़त मांगी।
“जाइये जाइये उनके सामने हमारी क्या बिसात?” कहते हुए महारानी ने ताना कसा।
“ऐसी बात नहीं है आज रात उन्होंने हमें अपने पास बड़े प्यार
से बुलाया है”
“उनकी अदाओं का जवाब हम लोगों के पास कहाँ?”
“अगर आप हुक्म करें तो हम आपके पास ही रुक जाते हैं और उनसे
हम कल माफ़ी मांग लेंगे”
“नहीं मैं तो बस आपको यूँही छेड़ रही थी, जाइये आप हमारी तरफ से बेफिक्र हो कर जाइये आपके ऊपर हमसे
अधिक उनका हक़ है”
“शुक्रिया” कह कर महारानी के बायें हाथ को राजा साहब ने चूमा और वहाँ से वह ऐश महल की ओर
निकल गए।
कथांश 4
राजा साहब अपनी कार से उतर कर ऐश महल में भीतर चले गए और ड्राइवर राम सिंह ने
गाड़ी महल के पोर्च में खड़ी कर दी।
राम सिंह के दो छोटे भाई श्याम सिंह और बदन सिंह महारानी और रानी साहिबा के
व्यक्तिगत ड्राइवर थे। वे सभी महल के परकोटे में दूसरे सेवकों के साथ ही रहते थे।
जब कभी गौहर बेग़म को गाड़ी चहिये होती थी तो श्याम सिंह या बदन सिंह में से कोई न
कोई उनके साथ चला जाता था।
राजा साहब के इंतज़ार में नज़रें बिछाए हुए गौहर बेग़म ऐश महल के पश्चिमी हिस्से
में उस जगह बैठी हुई थीं जहाँ से गंगा नदी की शांत बहती हुई जलधारा दूर तक नज़र आती
थी। हवेली के पिछवाड़े से कोई भी सीधा सीढ़ियों से गंगा नदी की तलहटी तक जा सकता था।
बरसात के दिनों में गंगा जब अपने पूरे शबाब पर होती तो हवेली की चार पांच सीढियां
ही डूबने से बचती थीं। वर्षों पहले बनी हवेली में ऐसा एक बार भी नहीं हुआ कि गंगा
चाहे जितने भी उफान पर हो और हवेली की सीढ़ियां पार कर हवेली की चारदीवारी तक उसका
पानी पहुँच पाया हो। बनाने वालों ने इन सब बातों को ध्यान में रख कर ही यह हवेली
नदी के किनारे एक पथरीले और ऊँचाई वाली जगह इस तरह बनाई थी कि गंगा के पानी की
ठंडक भरी गर्मियों में भी हवेली के मौसम को कभी भी गरम नहीं होने देती थी। गंगा
नदी हवेली के दो तरफ की चारदीवारी को छूती हुई बहती थी। शाम के वक़्त डूबते हुए
सूरज का अक्स नदी के ऊपर इस क़दर डूबता था जैसे मानो कायनात सारे ग़म अपने दामन में
समेट कर क्षितिज के पीछे चला जा रहा हो इस वायदे के साथ कि कल की सुबह हरेक की
ज़िंदगी में खुशियों की बहार ले कर आऊँगा।
हवेली में अंदर दाख़िल होते हुए राजा साहब ने गौहर बेग़म की खाला जान से पूछा, "ख़ानम जान आप ठीक से तो हैं न। कभी भी कोई तक़लीफ़ हो तो
ख़ाकसार को याद करियेगा"
ख़ानम जान ने जवाब में कहा, "हुज़ूर आप ही तो हमारे सब कुछ हैं। आपका ही दिया हुआ खाते पीते और ओढ़ते हैं। बाकी ऊपर वाले की निगाहें करम बनी हुई हैं।
आपके फ़ज़ल से खुदारा सब ठीक है"
"बेग़म कहाँ तशरीफ़ रखती हैं?"
"बिटिया तो न जाने कब से आपके इंतज़ार में अँखियाँ बिछाए बैठी
है। वहीं है, ऊपर वाली अटरिया में है"
"हम जाकर उनसे मिल कर उनकी ख़ैरियत का पता करते हैं, शुक्रिया ख़ानम जान" राजा साहब ने उनकी ओर देखते हुए कहा।
गलियारे से होते हुए हवेली के पिछवाड़े जाने वाले जीने के रास्ते तीसरी मंजिल
पर बनी अटरिया में जब आ पहुँचे तो दरवाज़े की ओट से देखा तो गौहर बेग़म अपनी मधुर
आवाज़ में ठुमरी दादरा गुनगुना रही थीं
लागी बेरिया पिया के आवन की,
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
दरवजवा पर ठाड़ी रहूँ
हो गई बेरिया पिया के आवन की,
रैन अंधेरी बिरहा की मारी,
रैन अंधेरी बिरहा की मारी
अँखियन बरसे बूंदिया सावन की,
लागी बेरिया पिया के आवन की......
जैसे ही गौहर बेग़म की नज़र राजा साहब पर पड़ी तो उन्हें देख कर गौहर बेग़म के
चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई। वे दौड़ कर राजा साहब के सीने से इस तरह चिपकीं जैसे
कि एक महबूबा अपने महबूब से एक अरसे बाद मिल रही हो।
“गौहर जान हम आ गए हैं, आपके सामने हैं, आपके करीब हैं”
गौहर बेग़म का ध्यान न जाने कहाँ था इसलिए राजा साहब ने उनका ध्यान अपनी और
खींचते हुए कहा, “देखिए तो सही
ज़रा हमारी ओर….” राजा साहब ने बहुत प्यार से सम्हाल कर उन्हें दीवान पर
बिठाया और खुद भी उनके पास बैठ गए।
जब कुछ समय बीत गया और गौहर जान ने होश सम्हाला तो शिकायत के लहजे में बोलीं,
“आप कहाँ थे, आपके बिना हमारी न तो सुबह थी न कोई शाम। हमें इस कदर तन्हा
छोड़ कर न जाया कीजिये”
“अब तो हम आपके करीब हैं। आपके पास ही तो हैं। आइये आप हमारे
पास और पास आइये”
गौहर बेगम खिसक के राजा साहब के और करीब आ गईं तब उन्होंने अपने हाथों से
उन्हें वह जड़ाऊ सेट पहनाया और कहने लगे, “ये आप पर खूब फबता है। इसकी खूबसूरती चौगुनी हो गई”
“है तो बहुत खूबसूरत, आपकी पसंद जो है, मुझे भी बेहद पसंद है”
“बेगम यह सेट आपकी बहन रानी साहिबा की पसंद का है उन्होंने
ही यह आपके लिये भिजवाया है”
“अरे वाह फिर तो आप उन्हें हमारी तरफ से शुक्रिया कहियेगा”
राजा साहब धीरे से मुस्कुराये ओर मन ही मन प्रसन्न भी हुए कि उनकी दोनों
धर्मपत्नियाँ इस मामले में गौहर बेग़म को उतना प्यार और सम्मान देती हैं जितनी कि
राजा साहब खुद देते हैं। राजा साहब को सोचते हुए देख गौहर जान ने पूछा शाम होने को
है और हम यह चाहते हैं कि आप आज रात यहीं गुजारिये। हमने आज अपनी आँखों को चौके से
उठते हुए धुँए के गुबार की भी चिंता किये बगैर आपके लिये बहुत बढ़िया पकवान बनाये
हैं"
“आज हम आपके यहाँ ही रहेंगे, आपकी नज़रों के सामने ही रहेंगे”
“यह बताइये कि आप क्या नौश फ़रमाएंगे?”
“जो आप पिलाएँगी”
“चलिये फिर नीचे ही दस्तरख़ान में चलते हैं, आप वहीं आराम फरमाइयेगा और हमने आज एक ठुमरी तैयार की है वह
हम आपकी खिदमत में पेश करने की इजाज़त भी चाहते हैं”
दस्तरख़ान में आने के बाद राजा साहब आराम से बैठ गए और उनके हाथों में जाम थमा
गौहर बेग़म सामने बैठ कर साजिंदों के सुर ताल पर ठुमरी गुनगुनाने लगीं….
बालम तेरे झगड़े में रैन गई....
कहाँ गए चंदा
कहाँ गए तारे
कहाँ गई प्रीत नई
बालम तेरे झगड़े में रैन गई......
खुल गये बदरा
छिटक गए तारे
तो अब गिनती नहीं
बालम तेरे झगड़े में रैन गई......
कथांश:5
एक दिन की बात है राजा साहब महारानी करुणा देवी के साथ थे।
महारानी ने राजा साहब से कहा, "राजा साहब आप सबकी मुराद पूरी करते हैं, क्या आप एक हमारी भी ख़्वाहिश पूरी करेंगे?"
"आप हुक्म तो करिये महारानी साहिबा आपके कहने भर की देर है"
"तो लीजिये पहले यह पढ़ लीजिये" कह कर महारानी ने एक किताब का एक मुड़ा हुआ पन्ना खोलते हुए किताब राजा साहब की
ओर बढ़ा दी।
राजा साहब ने
किताब हाथ में लेकर पढ़ना शुरू किया:
उमरिया धोखे
में खोये दियो रे।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।
धोखे में खोये दियो रे।
पांच बरस का भोला-भाला
बीस में जवान भयो।
तीस बरस में माया के कारण,
देश विदेश गयो।
उमर सब ....
चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।
धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।
बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।
लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।
बरस साठ-सत्तर के भीतर, केश सफेद भयो।
वात पित कफ घेर लियो है, नैनन निर बहो।
न हरि भक्ति न साधो की संगत, न शुभ कर्म कियो।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, चोला छुट गयो।
पूरी कविता पढ़ लेने के बाद राजा साहब ने महारानी से कहा,
"जिस किसी ने भी लिखा है, अच्छा लिखा है पर कबीर जी का लिखा हुआ तो नहीं है लेकिन
यही जीवन का सत्य है"
"किसने लिखा है वह तो हम भी नहीं जानते पर इधर कुछ दिनों से
हमारा मन उचट रहा है अगर आपकी इज़ाज़त हो तो हम पशुपतिनाथ जी के दर्शनार्थ नेपाल
जाना चाहते हैं" महारानी ने राजा साहब से विनती की।
"जाइये, जाइये अवश्य जाइये हम राजा साहब माणिकपुर को फोन कर देंगे उनके छोटे भाई की
ससुराल नेपाल के राणा अजेय सिंह के यहाँ है वे लोग आपके ठहरने से लेकर नेपाल के
दूसरे पूजा स्थलों को देखने की पूरी व्यवस्था करा देंगे। आप कब जाना चाहेंगी"
"हमारी इच्छा तो आपके साथ चलने की थी"
"महारानी आप अच्छी तरह जानती हैं कि जब तक कुँवर अपनी शिक्षा
पूरी कर नहीं लौट आते हैं तब तक हम यह राजपाट छोड़कर कहीं नहीं जा सकते हैं"
महारानी ने हँसते हुए कहा, "हम आप से कौन सन्यास लेने के लिये कह रहे हैं, बस हम तो सिर्फ़ यह चाह रहे थे कि इस बार आप हमारे साथ
देशाटन पर चलें"
"देखिये अभी हम न निकल सकेंगे चूँकि राजकुमारी शिखा भी अभी
यहीं हैं। आप ऐसा करिये अबकी बार आप घूम आइए हम अगली बार आपके साथ अवश्य चलेंगे"
"वायदा रहा"
"जी राजपूती वायदा रहा"
"तो हमारा इंतज़ाम करा दीजिये हम जितना भी जल्दी हो सके वहाँ
के लिए निकलना चाहेंगे"
"जी समझिये कि आपकी तीर्थ यात्रा का इंतज़ाम हो गया”
कथांश:6
कुछ दिनों के उपरांत महारानी करुणा देवी ने अपने ड्राइवर श्याम सिंह तथा एक
सेवक संतू और सेविका रनिया के साथ नेपाल के लिए प्रस्थान किया।
काठमांडू तक की दूरी एक दिन में आराम से तय नहीं की जा सकती थी इसलिए राजा
साहब ने महारानी के गोरखपुर में रुकने की व्यवस्था गोरक्षनाथ मठ के गेस्ट हाउस में
करवा दी जिससे कि महारानी को रास्ते में आराम रहेगा और इसी मंतव्य से मठाधीश मंहत
जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाएगा। उनके अनुदेश की प्राप्ति पर पशुपतिनाथ के
दर्शन और पूजा पाठ की भी उचित व्यवस्था हो जाएगी।
इधर सूर्य महल में अब रह गए थे केवल
राजा साहब, रानी शारदा देवी तथा राजुकुमारी शिखा।
राजा साहब सुबह-सुबह से ही राजकुमारी के साथ व्यस्त रहते। कभी बैडमिंटन खेलना, तो कभी महल की छत से गंगा नदी के विस्तार के दृश्यों को
देखना, कभी-कभी उनके साथ अपने मछली पालन केंद्र को देखने चला जाना, नदी में नाव में सैर करना इत्यादि। कुल मिला कर राजा साहब
और रानी साहिबा ने राजकुमारी शिखा के साथ बहुत अच्छा समय बिताया। दोनों ने मिलकर
भरसक प्रयास किया कि उनकी पुत्री का मन कांकर में लगा रहे।
एक दिन तीनों पारिवारिक सदस्य गंगा किनारे बने शिव मंदिर पूजा अर्चना के लिये
सुबह के समय ही आ गए। वहाँ पंडित तथा राज परिवार के कुल पुरोहित विजय शास्त्री जी
ने बहुत भक्तिभाव के साथ राजपरिवार को पूजा पाठ कराया।
राजा साहब ने पंडित जी से प्रार्थना की, "पंडित जी आपतो बहुत ज्ञानी-ध्यानी हैं आज शिखा बेटी हमारे साथ बहुत समय बाद भगवान के
दरबार में आई है तो हम चाहते हैं कि हम सभी आपके श्रीमुख से भागवत पुराण की कोई
कथा सुनें"
पंडित जी ने उत्तर में कहा, "महाराज, आपकी जैसी आज्ञा"
गणपति पूजन के साथ भागवत कथा का आरम्भ आचार्य पंडित विजय शास्त्री जी महाराज
के मुखारविन्द से कुछ इस प्रकार हुआ कि जिसमें सर्वप्रथम भगवत महात्म्य, फिर परीक्षित श्राप व शुकदेव जन्म का वर्णन था।
उसके बाद शास्त्री जी ने कथा के अगले चरण में कहा कि भक्ति से ज्ञान, वैराग्य पैदा होता है, संसार में पुण्य कार्य करना चाहिए, पुरुषार्थ प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना करनी चाहिए, जिससे भक्ति में वृद्धि होती है। शुकदेव महाराज ने राजा
परीक्षित से कहा कि भागवत कथा अज्ञान से ज्ञान और सत्य की ओर ले जाने वाली है।
संसार के प्राणी अनेक चीजों से पीड़ित हैं उसका एक ही समाधान है कथा का श्रवण करना, हरि नाम सुमिरन करना, इससे संसार की चिंताएँ दूर होती हैं, सभी समस्याओं का समाधान हो जाता है।
कथा में व्यास जी के अनुसार कहा गया है कि भगवान की शरण में आने से मनुष्य का
जीवन सार्थक हो जाता है, सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, व्याधियों और चिंताओं का एक ही समाधान है श्रीमद्भभागवत कथा
सुनना। दैविक, भौतिक, तापों से जो पीड़ित हैं उनके कष्ट दूर
हो जाते हैं।
विजय शास्त्री जी महाराज ने यह भी बताया कि भक्ति रूपी तत्व के जीवन में आने
पर व्यक्ति का आत्मबल बढ़ने लगता है तथा प्रभु की कृपा होती है। इसलिए मानव को अपने
जीवन में भक्ति भाव से ही रहना चाहिए।
उन्होंने संतों की महिमा बताते हुए कहा कि सच्चे संत के दर्शन मात्र से ही
मनुष्य के जन्म जन्मातरों के पाप नष्ट हो जाते हैं। आह्वान करते हुए उन्होंने ने
कहा कि मनुष्य को निंदा चुगली से बचना चाहिए ताकि बुरे व्यसनों में फंसकर जीवन
व्यर्थ न जाए।
कथा के अंत में पंडित जी ने राजा साहब से मुख़ातिब होते हुए कहा,
"महाराज अगर आपकी अनुमति हो तो अबकी बार शारदीय नव दुर्गा
में हर वर्ष की भाँति इस वर्ष भी विशेष आयोजन किया जाय और अबकी बार हमारी इच्छा
अवधूतमण्डलाश्रम, ज्वालापुर, हरिद्वार के प्रमुख श्री श्रीपति महाराज जी को आमंत्रित
करने का मन बनाया है"
"अवश्य बुलाइये पंडित जी, अति उत्तम सुझाव है तब तक तो कुँवर अनिरुद्ध भी अमरीका से
वापस आ जाएंगे। आयोजन भव्य हो बस इसका ध्यान रहे"
"जी हम इसके लिए मुखिया जी से संपर्क कर पूरी व्यवस्था करा
देंगे। महाराज हमें आपका आशीर्वाद शुरू से ही मिलता रहा है और हम आशा करते हैं कि
भविष्य में भी आपका वरदहस्त बना रहेगा"
"प्रभु जैसा चाहेंगे वैसा ही होगा" राजा साहब पंडित जी की ओर देखते बोले,
"अब चलने की अनुमति दें"
"कल्याणमेवस्तु राजन" कह कर पंडित जी ने राजपरिवार को आशीर्वाद दिया और वे सभी
सूर्य महल वापस आ गए।
कथांश: 7
शाम को मुखिया बहादुर सिंह, जो कि राजा साहब के महल के मुख्य कर्ताधर्ता थे, इस लिहाज़ से कि वही लठैतों से लेकर उगाही तक सारा कामकाज
देखते थे, को बुला कर पूछा, "मुखिया जी आपने पता किया कि महारानी साहिबा गोरखपुर पहुँच
गई हैं या नहीं?"
"जी महाराज, मैंने आधा घंटा पहले महंत जी के कार्यालय में फ़ोन किया था तो पता लगा था कि तब
तक महारानी साहिबा वहाँ नहीं पहुँची थीं"
"कुछ देर बाद दुबारा फ़ोन कर पता कर लीजियेगा और जैसे ही कोई
खबर मिलती है तो मुझे बताइयेगा"
"जी महाराज"
"देखिये कल दस बजे पाण्डेय जी और अकाउंटेंट साहब को बुलवा
लीजिएगा कल हिसाब किताब करना है और इनकमटैक्स के बारे में दरियाफ़्त करना है। बारह
बजे के आसपास कॉलेज के प्रिंसिपल को भी बुलवा लीजियेगा"
"जी महाराज"
इतना कह कर राजा साहब महल के ऊपरी भाग में चले गए। कुछ देर बाद आकर मुखिया जी
ने महाराज को बताया कि महारानी साहिबा सही सलामत महंत जी के मठ में पहुँच गई हैं।
"धन्यवाद मुखिया जी, मुझे उनकी चिंता थी। अगर दुबारा बात हो तो उनसे कहिएगा कि
वे किसी समय आज नहीं तो कल प्रातः वहाँ से निकलने के पहले हमसे बात कर लेंगी"
शिखा भी राजा साहब के पास बैठी हुई थी जो राजा साहब की बात पर बोल उठी,
"दुनिया में हर जगह मोबाइल फोन चालू हो गया है। आप चलते
फिरते कभी भी किसी से बात कर सकते हैं पता नहीं अपने देश में यह सब कब होगा?"
"होगा बेटी धीरे-धीरे सब होगा अभी तो हम रेडियो और ब्लैक एंड
व्हाइट टीवी के ज़माने में ही लटके हुए हैं। टीवी के लिये भी कितना ऊँचा एंटेना
लगाना पड़ता है तब जाकर कहीं थोड़ी बहुत पिक्चर दिखाई देती है" राजा साहब ने शिखा को समझाया।
बातों बातों में राजा साहब ने शिखा से पूछा कि वह हिंदुस्तान में अपना किस तरह
का भविष्य देखती है। शिखा ने उत्तर दिया, "सबसे पहले तो वह बी एससी अच्छे नम्बरों से पास करना चाहती
है उसके बाद ही वह यह सुनिश्चित करेगी कि उसे क्या करना है?"
"चलो अभी तो यह नज़रिया सही लग रहा है पर हर व्यक्ति को हमेशा
अपनी तैयारी आने वाले कल को देख कर करनी चाहिए"
शिखा ने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, "मेरा मानना है कि हरेक को अपने लिये छोट-छोटे लक्ष्य
निर्धारित करने चाहिए और उनको पूरा करने के साथ साथ भविष्य की योजना बनानी चाहिए"
राजा साहब के साथ रानी शारदा देवी भी बैठी हुईं थी। शिखा की बात पर बोल उठीं,
"शिखा तुम बहुत भाग्यशाली हो कि तुम्हारे पिताश्री राजा साहब
ने तुम सबको अपने अपने विचारानुरूप जीवन में तरक़्क़ी करने की स्वतंत्रता दी हुई है
नहीं तो राजपूत परिवारों में लड़की जवान हुई नहीं कि उसके मातापिता उसके विवाह की
चिंता करने लगते हैं"
राजा साहब ने रानी साहिबा से मुखातिब होते हुए कहा, "हमको भी शिखा बेटी के विवाह की चिंता होने लगी है इसीलिये
तो उस दिन लखनऊ में राजा साहब माणिकपुर के पुत्र राजकुमार महेंद्र के बारे में जानकारी की थी"
रानी साहिबा ने अपनी बात रखते हुए कहा, "जी, अबकी बार छुट्टियों में जब कुँवर महेंद्र आएँ तो हमें उन्हें अपने यहाँ बुलाना
है, जिससे अपनी बेटी उनको समझ और परख सके"
"लेकिन रानी माँ मैं अभी शादी वादी के चक्कर में नहीं फँसने
वाली हूँ, अभी तो मेरा सारा ध्यान अपनी पढ़ाई पर है"
"बेटी तू अपना काम कर और हमें अपना काम करने दे" कह कर रानी साहिबा ने फ़िलहाल इस बात को टालने की कोशिश की। जब यह सब बात चल ही
रही थी कि मुखिया जी ने आकर बताया कि महारानी साहिबा का फोन आया है और वह महाराज
से बात करना चाह रही हैं।
"फोन किस नंम्बर पर आया है?"
"महाराज नीचे ऑफिस वाले नंम्बर पर"
"चलिये हम वहाँ आ रहे हैं" कह कर रानी साहिबा की ओर देखते हुए राजा साहब नीचे की ओर
जाने लगे।
शिखा ने रानी माँ से कहा, "कल मैं अपना पूरा एक दिन और एक रात ऐश महल में गुजारूँगी गौहर बेग़म मौसी के
साथ। उनसे बात करके मुझे बहुत अच्छा लगता है"
"चली जाना पर बस एक बार महाराज को बता देना। गौहर बेग़म नेकदिल इंसान हैं। उनसे तू अदब और अवध के रवायत सीख। तेरे जीवन में बहुत काम आएंगे"
"जी रानी माँ"
महारानी से बात करके जब राजा साहब लौटे तो उन्होंने रानी साहिबा को बताया,
"गोरक्षनाथ मठ के महंत जी से भी हमारी बात हुई। उन्होंने
हमें आश्वासन दिया है कि वे महारानी का स्वयं ध्यान रख रहे हैं और कल अपना एक
वरिष्ठ पुजारी भी महारानी के साथ काठमांडू भेज रहे हैं"
"जी यह तो बहुत अच्छा रहा अब दीदी को कम से कम रास्ते में
कोई परेशानी नहीं होगी। पशुपतिनाथ महाराज के दर्शन और पूजा पाठ भी अच्छी तरह हो
जाएंगे। सभी लोग आपकी बहुत इज़्ज़त करते हैं"
"रानी शारदा जी हमने जीवन में यही कमाया है। आप भी तो हमें
बहुत चाहती हैं। बताइये हम सही हैं या नहीं?'
"आप भी न बस हर समय कुछ न कुछ छेड़खानी करते रहते हैं'"
राजा साहब रानी साहिबा के उत्तर पर मुस्कुरा भर दिए।
कथांश:8
भोर होते ही राजकुमारी बदन सिंह ड्राइवर के साथ ऐश महल आ पहुँची। चूँकि
उन्होंने अपने आने की सूचना पहले ही करा दी थी तो गौहर बेग़म भी नाश्ते की टेबल पर
उनका इन्तज़ार कर रही थीं। नाश्ते के साथ साथ बातचीत का दौर भी चल रहा था। शिखा ने
अपने दिल की बात करते हुए गौहर बेग़म से कहा, "मौसी जी आपको अगर यह कहूँ कि रानी माँ के बाद अगर मैं महल में सबसे अधिक आपको चाहती हूँ
तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी"
"मेरी बेटी मुझसे कहे कि वह मुझे सबसे अधिक प्यार करती है तो
भला इसमें बुरा मानने की कौन सी बात है। सच में कहूँ तो हम औरतों की ज़िंदगी में बहुत कुछ हर पल होता रहता है पर अगर मैं ये कहूँ कि मैं
यहाँ आकर बड़े सुकून से हूँ तो तुम क्या कहोगी?"
"जी मैं कहूँगी कि आप इस सरज़मीं पर बहुत ही किस्मत वाली
इंसान हैं"
"ठीक उसी तरह जैसे कि तुम कांकर हुकम की बेटी हो और हमारे
दिल के बहुत करीब हो। सही कहूँ तो हमें तुम पर नाज़ है" गौहर बेग़म ने राजकुमारी शिखा का चेहरा अपने हाथों में लेते
हुए कहा और उनकी पेशानी बड़े प्यार से चूम कर दुआ दी कि वह हमेशा इसी तरह खुश रहें।
"मैं आपसे अगर गुज़ारिश करूँ कि एक बार मेरे साथ भोपाल चलिये
तो क्याआप मेरे साथ चलना पसंद करेंगी?"
"भला तुम कहो और हम मना कर दें यह तो हो ही नहीं सकता पर
मुझे हुकम से पूछना पड़ेगा। भोपाल देखने का हमारा भी बहुत मन है। हमारी एक चचेरी
बहन वहाँ रहती हैं पता नहीं अब वह किस हाल में हैं?”
"यही तो मैं नहीं चाहती हूँ कि आप अभी पिताश्री को इसके बारे
में कुछ भी बताएं"
"बेटी ये कैसे होगा? उनकी इज़ाज़त के बिना तो इस हवेली में एक पत्ता भी नहीं
हिलता। पर तुम बताओ कि भोपाल चलने का मक़सद क्या है?"
"दरअसल हमारे साथ की एक लड़की है जो भोपाल की रहने वाली है और वह बहुत ज़िद कर रही
है कि मैं उसके साथ भोपाल चलूँ"
"तो जाओ न कौन रोक रहा है? मैं हुकुम से बात कर लूँगी"
"अभी नहीं बस आप वायदा करिये कि आप हमारे साथ चली चलेंगी"
"है तो बड़ी टेढ़ी खीर पर चल अपनी बेटी के लिये इस राज़ को राज़
ही रखूँगी पर चल पाऊँगी या नहीं अभी कोई वायदा नहीं करती"
"फ़िलहाल चलिये इतना ही बहुत है"
इसके बाद राजकुमारी और गौहर बेग़म के बीच इस तरह बातचीत चली जैसे कि दो दोस्त
मिल कर बातें करते हैं। राजकुमारी ने गौहर बेग़म को इस बात के लिये भी तैयार कर
लिया कि वह उनके साथ हर शाम बैडमिंटन खेलने के लिये हवेली में आ जाया करेंगी।
जब शाम घिरने लगी तो राजकुमारी शिखा ने हवेली के ऊपरी हिस्से में चलने की
फ़रमाइश की। गौहर बेग़म उन्हें लेकर सबसे ऊपर की अटरिया में आईं। शिखा तो गंगा नदी
पर शाम को गहराते रंगों को निहारती रहीं और जब पीछे मुड़ के देखा तो उन्हें लगा कि
बेग़म कुछ उदास हैं। राजकुमारी उनके पास जा बैठीं और बोलीं, "मौसी जी आज कुछ सुनाइये हमारा मन बहुत कर रहा है एक अरसा
हुए आपकी आवाज़ में कुछ सुने हुए"
"रहने भी दे मेरी राजकुमारी क्या करेगी ग़म के अफ़साने सुन कर"
"नहीं, नहीं मैं आपसे मिन्नत करती हूँ बस एक ग़ज़ल"
"साज और साजिंदे तो हैं नहीं चलो ऐसे ही कुछ गुनगुना देती
हूँ'"
तू
नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है
याद में दिल की ये वीरान हवेली चुप है।
याद में दिल की ये वीरान हवेली चुप है।
हर
तरफ़ थी बड़ी महकार मेरे आँगन में
अपने फूलों के लिए मेरी चमेली चुप है।
अपने फूलों के लिए मेरी चमेली चुप है।
बोलते
हाथ भी ख़ामोश हुए बैठे हैं
इक मुक़द्दर की तरह मेरी हथेली चुप है।
इक मुक़द्दर की तरह मेरी हथेली चुप है।
भेद
खुलता ही नहीं कैसी उदासी छाई
बूझ सकता नहीं कोई वो पहेली चुप है।
बूझ सकता नहीं कोई वो पहेली चुप है।
इतना
हँसती थी कि आँसू निकल आते थे
'सबा' ये नई बात बहारों की सहेली चुप है।
'सबा' ये नई बात बहारों की सहेली चुप है।
ग़ज़ल सुनके राजकुमारी के मुहँ से निकला, "वाह वाह सुभानअल्लाह आपने तो मेरी दोस्त ‘सबा’ का नाम कितने
सुंदर अल्फाजों से सजाया है, आपने इस ग़ज़ल को और क्या सुर था मैं तो आप पर कुर्बान हो गई"
कथांश: 9
अगले दिन महारानी करुणा देवी काठमांडू देर शाम तक पहुँच गईं। उनके साथ महंत जी
के एक वरिष्ठ सहयोगी तथा सेवक और सेविका भी साथ थे। वहाँ पहुंच कर वे सभी लोग राणा
अजेय सिंह जी के निवास स्थान पर जाकर उनसे मिले। राणा जी ने सभी लोगों की व्यवस्था
अपनी ही कोठी पर की हुई थी। सभी लोग लंबी यात्रा के कारण थकान महसूस कर रहे थे, अतः शाम होते ही पूजा पाठ, भोजन इत्यादि कर निवृत हो गए और अपने अपने कमरे में आराम
करने चले गए। वैसे भी पहाड़ों में अँधेरा होते ही जीवन शांत सा हो जाता है। नेपाल
के लिए वैसे भी एक कहावत प्रसिद्ध है कि 'जैसे ही हो सूर्यास्त उधर नेपाल मस्त'। मतलब अगर आप खाने पीने और कैसिनो जाने और जुआ खेलने के
शौकीन हैं तो वहाँ की रातें रंगीन हो जाती हैं वरना तो सूखी साखी सी।
कांकर में राजा साहब और रानी शारदा देवी ने अपनी पुत्री के साथ सुबह से ही
अपने बाग़ बगीचे, मछली पालन केंद्र और कृषि फार्म की व्यवस्था का अवलोकन
किया। दोपहर होते-होते वे आम के बगीचे के बीचोबीच बने फार्म हाउस पर आराम करने के
लिये आ पहुँचे। दोपहर के भोजन की व्यवस्था बहादुर सिंह मुखिया जी ने फार्म हॉउस पर
ही कर रखी थी। मुखिया जी ने देशी घी में बनी दाल बाटी बनवा कर राजपरिवार के
सदस्यों को खुश तो कर दिया और राजा साहब से वाह वाही लूटी पर वहीं वे मछली पालन
केंद्र की अव्यवस्था के लिये डांटफटकार के पात्र बने।
राजा साहब ने उन्हें समझाया कि मछलियाँ अगर तालाब के एक टुकड़े में अधिक दिनों
तक रहें तो उनकी बढ़ोत्तरी ठीक नहीं होती है। लिहाज़ा हर मत्स्य पालन केंद्र पर यह
व्यवस्था की जाय कि एक हफ़्ते के बाद उनकी जगह बदल दी जाए। इस काम को सुचारू रूप से
करने के लिये हर केंद्र पर एक लॉग बुक रखी जाए और उसमें से सैंपल मछली का वजन नोट
किया जाय। मछली कितनी बढ़ी और अगर कोई कमी पेशी है तो उसके लिए दाने पानी की
व्यवस्था ठीक की जाए। राजा साहब ने उन्हें यह भी सलाह दी कि अबकी बरसात के दिनों में अपने गाँव की ओर से आने वाली बरसाती नदी
पर बाँध बना लिया जाय जिससे कि किसी भी तालाब में सूखे की परिस्थिति में मछलियों
को कोई नुकसान न हो।
हर हफ़्ते में दो बार मछली का जाल डाला जाय और फिर उन्हें बाद में रेलगाड़ी से
कोलकता भेज देने की व्यवस्था की जाए।
राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि अबकी बरसात के सीजन में वे असम से बाँस की
उत्तम किस्म का प्रबंध कर रहे हैं जिन्हें हर तालाब की मेंड़ पर लगा कर एक ओट जैसी
पर्दी बना दी जाय जिससे कि गर्मियों में गरम हवाओं और आंधियों के समय पानी के भाप
बन कर उड़ जाने पर नियंत्रण किया जा सके।
राजा साहब ने मुखिया जी से कहा कि पिछले वित्त वर्ष में मछली के व्यापार से
रियासत को लगभग सवा करोड़ रुपए की लगान की वसूली हुई थी। इस वित्त वर्ष में इस आय
में हर हालत में कम से कम बीस प्रतिशत बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। इसी तरह आम के बगीचों
में समय रहते दवाई का छिड़काव करा दिया जाय जिससे दशहरी, लंगड़ा और फज़ली आम की फसल पर कोई दुष्प्रभाव न हो। अबकी बार
आसपास के गाँव वालों के यहाँ मुनादी करा दी जाय कि इस वर्ष से मार्च की पंद्रह
तारीख़ को नीलामी होगी और जो सबसे अधिक बोली लगाएगा उसे ही दो साल के लगान पर बाग़
उठाये जाएंगे।
इसी तरह राजा साहब ने अमरूद, अनार और आँवला के बाग़ से भी लगान को बढ़ाने की सलाह ही नहीं दी बल्कि उन्हें यह
भी कहा कि वे कुछ लीक से हट कर सोचें।
मुखिया जी ने राजा साहब की बातों को बहुत ध्यान से सुना और उनसे वायदा भी किया
कि उनके सभी निर्देशों का पालन होगा।
राजकुमारी ने राजा साहब के साथ घूमते हुए महसूस किया कि उनके पिताश्री अपने हर
काम पर कितनी पैनी नज़र रखते हैं तभी रियासत के ख़र्चे और आमदनी में सामंजस्य बना है
अन्यथा दूसरी रियासतों की तरह अपने यहाँ का भी हाल ख़राब हो सकता था। रियासत की आय ठीक है इसलिये राजपरिवार और उनके आसपास रहने
वालों की सही देखरेख हो पा रही है। महलों और हवेलियों की साफ सफाई और रँग रोगन हो
पा रहा है, देखभाल हो पा
रही है नहीं तो कभी के खंडहर हो गए होते।
दिन भर इधर-उधर घूमने के बाद राजा साहब अभीअभी सूर्य
महल पहुँचे ही थे कि एक सेवक ऐश महल से भागा-भागा आया और उसने हाँपते हुए टूटी फूटी आवाज़ में राजा साहब को बताया कि गौहर
बेग़म दुमंज़िले से नीचे गिर गई हैं, बेहोश हैं और उनको बहुत चोट आई है। राजा
साहब ख़बर सुनते ही परेशान हो गए और रानी शारदा देवी और राजकुमारी के साथ तुरंत ऐश
महल आ पहुँचे। वहाँ पहुँच कर गौहर बेग़म की जो हालत उन लोगों ने देखी तो राजा साहब
पल भर के लिये हक्के-बक्के रह गए। उनकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय?
कथांश:10
राजा साहब, रानी साहिबा और राजकुमारी ने गौहर बेग़म को अपने हाथों बहुत
सँभाल कर उठाया और उनको कार में लेकर वे लोग तुरंत ही राणा बेनी माधव सिंह जिला
अस्पताल, रायबरेली के
लिये निकल पड़े क्योंकि वही एक आसपास ऐसी जगह थी जहाँ उनका प्राथमिक उपचार हो सकता
था।
निकलते निकलते राजा साहब ने मुखिया जी से कहा, "मुखिया जी आप चंदापुर कोठी फ़ोन कर बता दें कि हम गौहर बेग़म
को लेकर आ रहे हैं कोठी से जाकर वे लोग डॉक्टर बोस को लेकर हमसे लगभग एक घंटे बाद
ज़िला सरकारी अस्पताल में मिलें"
सरकारी अस्पतालों की जो हालत होती है वह सबको पता थी कि अगर पहले से न कहा जाय
तो वहाँ किसी डॉक्टर के मिलने की उम्मीद ही कम थी इसलिये राजा साहब ने यह इंतज़ाम
किया था।
वे लोग जब बीच रास्ते पहुँचे होंगे तब जाकर कहीं गौहर बेग़म ने आँख खोली और
राजा साहब की तरफ इस कदर देखा कि जैसे पूछ रहीं हों कि उन्हें कहाँ ले जा रहे हैं?
राजा साहब ने उन्हें इशारे से कहा कि वे चुप रहें और कुछ न बोलें खुदा सब ठीक
करेगा।
रास्ते भर राजा साहब भगवान से प्रार्थना करते रहे कि गौहर बेग़म को कुछ न हो और
वे ठीक हो जायं। आज उन्हें पहली बार इस बात का अंदाज़ा हुआ कि ये महल, ये हवेली और ये राजपाट सब बेकार हैं जहाँ इंसान की हिफाज़त, देखभाल और इलाज़ के लिए कुछ भी इंतज़ामात आसपास न हों।
उन्होंने इसी बात को सोचकर अपने गाँव में एक अच्छा अस्पताल खोलने का मन बना लिया
था।
कुछ देर बाद उनकी कार रायबरेली की जिला अस्पताल के सामने आकर रुकी और तुरंत ही
गौहर बेग़म को स्ट्रेचर पर लिटा कर डॉक्टर बोस और डॉक्टर मलिक उन्हें आपरेशन थिएटर
में ले गए। लगभग एक घंटे की जद्दोजहद के बाद डॉक्टर बोस बाहर आये और उन्होंने राजा
साहब को बताया कि चिंता की कोई बात नहीं है। बेग़म साहिबा के सिर में अंदरूनी चोट
आई है और कूल्हे की हड्डी में क्रैक आ गया है। कूल्हे की हड्डी का आपरेशन तो कर
दिया है पर उनके सिर की चोट के इलाज़ के लिये दवाई दे रहे हैं जिससे उन्हें उम्मीद
है कि दिमाग के एक हिस्से में जहाँ खून की सप्लाई नहीं हो पा रही है वह भी शीघ्र
ही ठीक हो जाएगी।
राजा साहब ने डॉक्टर बोस से पूछा, "बेग़म ठीक तो हो जाएंगी"
"आप हम पर भरोसा करिये और उनके लिये ऊपर वाले से दुआ
मांगिये। बाकी हम लोग कल उन्हें दुबारा चेक करेंगे"
"अगर आप कहें तो हम उन्हें मेडिकल कॉलेज लखनऊ ले जाएँ” राजा साहब ने डॉक्टर बोस से पूछा।
"अभी इसकी ज़रूरत नहीं है अगर ऐसी कोई बात होती तो हम ही आपको
खुद सलाह देते। बाद में आप कभी उनका चेकअप एक बार मेडिकल कॉलेज में ज़रूर करवा लें” डॉक्टर बोस ने
सलाह देते हुए राजा साहब से कहा।
डॉक्टर साहब की बात सुनकर राजा साहब की जान में जान आई। उसके बाद उन्हें सबके
रुकने रुकाने की व्यवस्था के लिये चंदापुर के राजा साहब की कोठी में इंतज़ाम कराया
और वे रात भर अस्पताल में ही रहे।
खजूरगांव कोठी के कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह भी राजा साहब के साथ ही अस्पताल
में रहे। राजा साहब ने कुँवर वीरेंद्र विक्रम से कहा कि वे अपनी बहन महारानी करुणा
देवी का हालचाल ले लें और उन्हें भी खबर कर दें। महारानी करुणा देवी खजूरगाँव के
राणा साहब की एकमात्र सन्तान थीं और कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह राणा साहब के
चचेरे भाई के पुत्र थे इसलिये वे कुँवर वीरेंद्र विक्रम सिंह की चचेरी बहन हुईं।
कुँवर वीरेंद्र विक्रम ने राजा साहब को बताया कि करुणा बहिन ने हमें पहले
ही ख़बर कर दी है और उम्मीद है कि वह कल सुबह नहीं तो दुपहर तक सीधे यहीं आएंगी।
राजा साहब ने उन्हें धन्यवाद देते हुए कहा, "ये आपने ठीक किया"
राजा साहब ने अपने मन की बात कहते हुए रानी शारदा और राजकुमारी शिखा से यह भी
कहा कि परिवार के सभी सदस्य इस संकट की घड़ी में साथ रहते हैं तो एक दूसरे को संबल
प्राप्त होता है।
राजकुमारी शिखा ने राजा साहब से कहा, "पिताश्री मैं और माँ दोनों ही गौहर मौसी को आपसे ज्यादा
प्यार करते हैं आप चिंता न करें हमारी प्रार्थनाएं उनके साथ हैं उन्हें कुछ भी
नहीं होगा"
बेटी के मुहँ से गौहर बेग़म के लिए इतने अच्छे उदगार सुनकर राजा साहब गदगद हो
गए।
अगले दिन सुबह गौहर बेग़म साहिबा को डॉक्टर ऑपरेशन थिएटर ले गए उनकी पूरी जाँच
की और उन्हें खतरे से बाहर घोषित किया। जब बेग़म गौहर ने आँखें खोलीं तो सभी लोग
उनके पास थे। गौहर बेग़म ने महारानी करुणा का हाथ पकड़ा और उनके पशुपतिनाथ महाराज के
दर्शनों के बारे में जानकारी करनी चाही तो उन्होंने बताया कि वे उनके लिये वहाँ से
प्रसाद ले कर आईं हैं, वे
चिंता न करें भगवान सब ठीक करेगा।
इस बीच ख़ानम जान ने गौहर बेग़म का साथ एक मिनिट के लिये भी नहीं छोड़ा और वे
साये की तरह उनके साथ बराबर बनी रहीं।
ख़ानम जान ने अपनी ओर से ख़िदमत में कोई कसर नहीं की।
धीरे-धीरे बेग़म की तबियत ठीक होने लगी और उन्हें एक हफ्ते बाद अस्पताल से
छुट्टी मिल गई। राजा साहब उनको ऐश महल वापस ले आये। राजा साहब और सभी लोगों की
प्रार्थनाओं का असर था कि गौहर बेग़म दो महीनों में बिल्कुल ठीक हो गईं। बस याद रहा
तो सिर्फ इतना कि एक हादसा सा हुआ था और उन्हें चोट लग गई थी।
राजा साहब की तो दीन दुनिया ही मानो ठहर गई थी। जब बेग़म ठीक हो गईं तो
उन्होंने होश सँभाला।
इस बीच कुँवर छुट्टियाँ मिलते ही अमेरिका से कांकर आ गए थे। कांकर पहुँचने के
बाद सबसे पहला काम जो किया वह था गौहर मौसी के लिये जो शाल लेकर आये थे उन्होंने
खुद अपने हाथों से राजपरिवार के सदस्यों के सामने पहना कर ऊपर वाले से दुआ माँगी
कि वे एक लंबी उम्र जियें और सदैव खुश रहें।
यह दृष्य देख कर राजा साहब की आंखों में खुशी के आँसू झलक आये।
कथांश:11
कुँवर अनिरुद्ध के आने से सूर्य महल में खुशी का माहौल था। सभी लोगों की आँखों
के तारे जो थे कुँवर अनिरुद्ध। राजा साहब ने कुँवर के हाथों से एक प्राथमिक
स्वास्थ्य केंद्र का महल के बाहरी हिस्से में बने तीन कमरों के एक हिस्से का
उद्घाटन कराया कराया जिसमें एक डॉक्टर के बैठने की व्यवस्था तथा प्रथमोपचार की
सुविधा, एक दवाई की दुकान भी थी, जिससे कि आसपास के लोगों को प्राथमिक उपचार मिल सके। राजा
साहब के इस कदम की इलाके के लोगों ने भूरि-भूरि प्रशंसा की।
कुँवर एक मिनट के लिए भी दिन में महल में न बैठते वह कभी मत्स्य पालन केंद्र
पर तो कभी अपने बाग बगीचों में तो कभी अपने कृषि फार्म पर घूमते ही रहते। लोगों से
मिलते उनकी तक़लीफ़ सुनते और जो मदद हो सकती अपनी तरफ से वह मदद करते।
कांकर क्षेत्र के लोग अक्सर जब उनकी बात करते तो यही कहते कि कुँवर का हृदय तो
राजा साहब से भी बड़ा है जो गरीबों की दशा देख कर और अधिक पसीज उठता है। उनसे जो
बन पड़ता है वह करते हैं। इलाके में जिधर भी निकलते उनको लोग बड़ी श्रद्धा और सम्मान
से बिठाते और आवभगत करते। वैसे भी कुँवर अनिरुद्ध का आचार व्यवहार एक साधारण आदमी
की तरह का था और उनको तो यह अच्छा नहीं लगता था कि लोग उनको कुँवर या राजकुमार कह
कर पुकारें।
एक दिन की बात है जब वह शाम को मुखिया जी के साथ कांकर गाँव में घूम रहे थे कि
उनकी नज़रों के सामने ही मिठुआ जमादार के बच्चे को एक बिगड़ैल बछड़े ने सींग से घायल कर दिया, कुँवर ने उसे गोदी में उठाया और एक चारपाई पर लिटा कर महल
ले आये, वहाँ उसकी
पट्टी करवाई और उसे अपने साथ लेकर रायबरेली हस्पताल में इलाज़ कराया और फिर वापस उसे उसके घर पर छोड़ा।
आये दिन जब भी वे मिठुआ के घर के सामने से गुजरते तो उसके लड़के से बगैर मिले न
आते।
राजा साहब को उनकी हर गतिविधि की खबर तो मिलती ही रहती थी। वे भी कुँवर के इस
बर्ताव से बहुत खुश होते।
एक दिन दिल्ली से आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के ऑफिस के यशपाल जी का फोन राजा
साहब के लिए आया और उन्होंने यह खबर कराई कि कांग्रेस अध्यक्ष उनसे मिलना चाह रहे
हैं इसलिये वे दिल्ली आकर उनसे मिलें। राजा साहब दिल्ली से खबर मिलने के बाद अगले
दिन कांग्रेस के दफ्तर में जाकर यशपाल जी से मिले जिन्होंने उन्हें बताया कि
कांग्रेस पार्टी उनको आगामी चुनाव में संसदीय क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाना
चाहती है। इसी सिलसिले में आपसे अध्यक्ष महोदया मिलना चाहती हैं।
यशपाल जी राजा साहब को साथ ले अपने अध्यक्ष जी के पास ले गए। अध्यक्ष जी ने
राजा साहब से कहा, "चंद्रचूड़
सिंह जी आपको तो पता ही है कि कुछ महीनों में ही लोकसभा के चुनाव होने वाले हैं।
हमारी पार्टी आपके क्षेत्र से हमेशा से जीतती आई है और आपके परिवार का सहयोग हमें
हमेशा प्राप्त हुआ है। अबकी बार पार्टी चाहती है कि आप अपने क्षेत्र का
प्रतिनिधत्व करें"
राजा साहब ने आभार व्यक्त करते हुए कहा, "मुझे प्रसन्नता है कि कांग्रेस पार्टी ने मुझे इस क़ाबिल
समझा। मुझसे जितना बन पड़ेगा मैं उतना सहयोग पार्टी के साथ करूँगा। मेरी एक विनती
है कि आप मेरे स्थान पर अगर मेरे पुत्र अनिरुद्ध सिंह को चयनित करें तो मैं आपका आभारी
होऊँगा"
"हमारी नज़र में तो आप एक श्रेष्ठ वक्ता और साफसुथरी छवि के
इंसान हैं और आपका अपने क्षेत्र में बहुत नाम है इसलिए हमारा सुझाव है कि आप ही
कांग्रेस के प्रत्याशी बनें"
"मेरी विनती पर आप पुनर्विचार करें, मैं तो यही कहूँगा क्योंकि मैं ज़मीन से जुड़ा हुआ व्यक्ति
हूँ और यह भलीभांति जनता हूँ कि मुझसे अधिक योग्य मेरा पुत्र अनिरुद्ध है। वह आपकी
पार्टी के लिये एक श्रेष्ठ प्रत्याशी सिद्ध ही नहीं होगा बल्कि एक लंबे समय तक
पार्टी के साथ जुड़ कर लोगों की सेवा कर सकेगा” राजा साहब ने
अपनी ओर से यह विनती कांग्रेस अध्यक्ष महोदय से की।
"चलिये हम इस सुझाव पर विचार करते हैं और आपके पुत्र के बारे
में कुछ जानकारी कर हम प्रधानमंत्री जी से चर्चा करने के बाद ही आपको इस विषय में
कुछ बता पाएंगे"
"आपका बहुत-बहुत आभार” कह कर राजा साहब कांग्रेस अध्यक्ष के कार्यालय से चले आये।
कांकर लौट कर उन्होंने इस बात की चर्चा राजपरिवार के सदस्यों से की जब मौक़े
पर वहाँ कुँवर भी उपस्थित थे....
कथांश:12
राजा साहब ने जब कांग्रेस पार्टी का प्रस्ताव कुँवर
अनिरुद्ध को बताया तो उस समय महारानी करुणा, रानी शारदा और राजकुमारी शिखा सभी लोग उस्थित थे। शिखा से
मिलने राजा साहब उसके होस्टल में गए तो वह उसे भी अपने साथ लेते आये थे चूँकि
गर्मियों की छुट्टियां हो चुकी थीं।
कुँवर ने पिताश्री के प्रस्ताव पर अपनी नपी तुली प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
"मुझे राजनीति ने कभी भी प्रेरित नहीं किया। मैंने इसीलिये
साइंस पढ़ी। अगर आप मुझे इस झंझट से दूर ही रखें तो मुझे खुशी होगी"
रानी शारदा ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, "अगर महाराज स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं तो मेरी समझ में
कुँवर को चुनाव लड़ना चाहिए"
राजा साहब ने महारानी की ओर देखा और उनकी इच्छा जाननी चाही। महारानी जब
मुस्कुरा रह गईं तो राजा साहब ने उनसे पूछ ही लिया कि आख़िर क्या बात है? राजा साहब के बार-बार पूछने पर वह बोलीं, "मुझे तो हँसी इस बात पर आ रही है कि कोई आप दोनों को अपना
मेहमान बना कर अपने घर बुला कर न्योता दे रहा है और हम देख रहे हैं कि न तो महाराज
और न ही अनिरुद्ध चुनाव लड़ने के लिये हाँ कह रहे हैं"
रानी शारदा ने भी महारानी की बातों को दुहराया और जोर देते हुए कहा कि उनके
विचार और महारानी के विचार एक समान हैं।
राजा साहब ने शिखा की ओर देखते हुए पूछा, "बता बेटी तुझे क्या कहना है?"
राजकुमारी हँसते हुए बोली, "अगर आप दोनों चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं तो मैं खड़ी हो जाती हूँ"
राजा साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह सुझाव भी ठीक है पर तेरी तो अभी चुनाव लड़ने लायक उम्र भी
नहीं हुई है"
इतना कह चुकने के बाद राजा साहब का ध्यान कुँवर की ओर गया और बोले,
"अनिरुद्ध आख़िर यह बताओ कि तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाह
रहे हो?"
"क्योंकि मेरी विचारधारा में राजनीति के लिये कोई स्थान नहीं
है। दूसरा मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता हूँ। अगर
मुझे अपने पुराने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में काम मिलता है तो मैं वहाँ रह कर
पढ़ाना पसंद करूँगा"
"तुम ऐसा क्या समझते हो जिसके कारण तुम राजनीतिक
क्रियाकलापों से प्रसन्न नहीं हो?"
"जी पिताश्री आपको याद होगा जब दो तीन साल पहले राष्ट्रीय
बैंकों का अधिग्रहण किया गया था तो उस वक़्त माणिकपुर राजा साहब ने क्या कहा था कि
सत्ता का हर कदम देश और जनता को बेवकूफ बनाने के लिये होता है। देश का लाभ चाहे हो
या न हो बस उन्हें कुछ ऐसा करना है जिससे जनता उनकी वाहवाही करती रहे"
राजा साहब कुँवर की ओर देख रहे थे और मन ही मन यह भी तौल रहे थे कि उसके
विचारों में कहाँ तक सच्चाई है? कुँवर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "उसके बाद राजा साहब माणिकपुर स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़े
और अपने बलबूते डंके की चोट पर चुनाव जीते"
राजा साहब ने कुँवर से कहा, "तुम्हारी बात अपनी जगह सही है पर यह भी जानो कि भारत एक विशाल देश है और यहाँ
हर प्रदेश की अपनी भाषा है, लोगों की अपेक्षाएँ अनेक हैं जिन्हें कोई भी सरकार पूरा नहीं कर सकती है। भारत
तरक्की करते-करते ही आगे बढ़ेगा। खैर तुम इन सब बातों को छोड़ो और मेरे विचार से
चुनाव लड़ो"
"अगर यह आपका आदेश है तो मैं आपकी आज्ञा मानूँगा वैसे इसमें
मेरा कोई रुझान नहीं है"
"अभी हम हैं न इसलिये तुम चिंता नहीं करो बस अपना मन बनाओ और
बाकी सब हम पर छोड़ दो"
"जैसी आपकी आज्ञा"
कथांश:13
एक दिन सुबह के वक़्त राजकुमार अनिरुद्ध और राजकुमारी शिखा
महल के ऊपरी हिस्से में बैठे हुए चाय पर गपशप कर रहे थे। बातचीत के दौरान शिखा ने
कहा,
"भइया मेरा मन यहाँ देहात में बिल्कुल नहीं लगता है। यहाँ
क्या करें क्या न करें समझ में ही नहीं आता"
राजकुमार अनिरुद्ध ने राजकुमारी शिखा से कहा, "शिखा तू सोच और महसूस कर कि ऐसे ही माहौल में अपने पूर्वजों
ने अपना पूरा जीवन बिताया। आज मैं अमेरिका में और तू दिल्ली में रह रही है तो हमें
यहाँ तनिक भी अच्छा नहीं लगता तो उन लोगों का मन कैसे लगता रहा होगा। उन्होंने भी
कोई न कोई शौक अपने ज़माने के अपनाए होंगे। तू भी दिल बहलाने के लिए कोई काम शुरू
कर दे”
"क्या करूँ मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता?"
"कुछ भी, जो तेरा मन करे। एक बात कहूँ यहाँ जितनी शांति है, खुला-खुला आसमान है, शुद्ध ऑक्सीजन है वह भला बड़े शहरों में कहाँ? फिर भी मैं मानता हूँ कि यहाँ की जिंदगी बड़ी ही एकाकी सी
है। तू भी कुछ ऐसा काम कर जो तुझे पसंद हो और तेरे भीतर के एकाकीपन को जो दूर कर
सके। कुछ न हो तो पेंटिंग ही किया कर"
"हाँ ये आईडिया ठीक है"
"मैं भी सोच रहा हूँ कुछ नया शुरू करूँ जो आज तक नहीं किया
है"
"वह क्या?"
"हॉर्स राइडिंग"
"वह तो मैं भी सीखूँगी"
"चल हम लोग कुछ दिन के लिये बैंगलोर चलते हैं"
"बैंगलोर ही क्यों? घुड़सवारी तो भइया मैं और आप एक और जगह सीख सकते हैं"
"वो भला कहाँ?"
"भोपाल। मेरे साथ एक लड़की पढ़ती है। बहुत बड़े घर की है उसका
वहाँ बड़ा फार्म है वहीं चलते हैं"
"चल तो ये पक्का रहा भोपाल ही चलते हैं"
"गौहर मौसी को भी ले चलेंगे उनका मन भी बहुत कर रहा है भोपाल
चलने का"
"तुझे कैसे मालूम?"
"मालूम है, मेरी एक बार उनसे बात हुई थी"
"पर उसके लिये तो पिता श्री से बात करनी पड़ेगी"
"नहीं, वह गौहर मौसी खुद कर लेंगी”
"वाह क्या आईडिया लगाया है"
शाम के वक़्त अनिरुद्ध और शिखा दोनों भाई बहन मिल कर ऐश महल गए और गौहर बेग़म से
मिले। उन्होंने थोड़ा ना नुकुर करने के बाद भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया
और बोलीं,
"चलो इस बहाने ही सही अपने बिछड़े हुए मिल जाएंगे" गौहर बेगम ने इस योजना के बारे में
राजा साहब से विधिवत बातचीत कर ली और तीनों ने भोपाल चलने का कार्यक्रम बना डाला।
कथांश:14
भोपाल स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी तो राजकुमारी शिखा की दोस्त सबा उनके
डिब्बे के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई जो अपने भाई सईद को लेकर उन लोगों को रिसीव
करने के लिये आई हुई थी। शिखा से गले मिलने के बाद सबा ने सईद की मुलाक़ात शिखा से
कराई और शिखा ने राजकुमार अनिरुद्ध और गौहर बेग़म से। उसके बाद वे सभी लोग भोपाल
शहर की कहीं तंग गलियों से तो कहीं खुली-खुली सड़कों पर सर्राटे से भागती हुई कार
में, श्यामला हिल्स की तलहटी में फारेस्ट रोड के ऊपर वीआईपी
एरिया की ओर बढ़ चले और बड़े तालाब के किनारे बनी 'शौक़त मंजिल' पर आ पहुँचे।
'शौक़त मंज़िल' पहुँचने के बाद जैसे ही कार पोर्टिको में रुकी तो बढ़ कर एक खाबिंद ने दरवाज़ा
खोला और हवेली के अंदर से दो खाबिंद आये और उन्होंने मेहमानों का सामान उठा
मेहमानदारी में ले जाकर सजा दिया। सबा ने मेहमानों को एक बड़े से दुमंजिला ऊँचाई
वाले ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठने के लिये कहा, "आइये आंटी तशरीफ़ रखिये। आओ शिखा तुम भी बैठो और फिर राजकुमार अनिरुद्ध सिंह की ओर मुँह कर के बोलीं, "आप भी तशरीफ़
रखिये।
सईद ने सबा से कहा, "मैं ऊपर अम्मी को ख़बर करके आता हूँ। तुम मेहमानों के लिये चाय नाश्ते का
इंतजाम करो "
कुछ देर में ही चाय और बिस्किट्स लेकर एक नौकर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगा। इसी
बीच सईद अपनी अम्मी के साथ आ पहुँचा। सबा ने अपनी अम्मी का तार्रुफ़ गौहर बेग़म से
यह कह कर कराया कि अम्मी आप हैं राजकुमारी शिखा और राजकुमार अनिरुद्ध की माँसी।
जैसे ही सबा की अम्मी की निगाह गौहर बेग़म के चेहरे पर पड़ी, वह एक दम सकते में आ गईं, उन्हें लगा कि ये चेहरा तो कुछ जाना पहचाना सा है। गौहर
बेग़म भी सबा की अम्मी की ओर ध्यान से देखती रह गईं। सबा की अम्मी, ने आश्चर्य से कहा, "गौहर तुम"
"शौक़त, आपा आप यहाँ? ओह खुदारा ये कोई ख्वाब तो नहीं है कहीं?” गौहर बेग़म ने सबा की अम्मी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा।
उसके बाद गौहर बेग़म और शौक़त बेग़म एक
दूसरे से चिपक कर जोर-जोर से रोने लगीं। शौक़त बेग़म गौहर बेग़म के चेहरे को अपने
हाथों में लेकर दर्द भरी आवाज़ में बोलीं, "कहाँ चली गई थी तू गौहर? अब्बू और अम्मा ने तुझे इतना ढूँढा पर तू कहीं नहीं मिली, हमने तो फिर आस ही छोड़ दी थी कि अब हम ज़िंदगी में कभी मिल
सकेंगे"
"जी आपा, मेरा भी यही हाल था। हम कलियर शरीफ़ की मजार पर सर पटक-पटक कर रोते रहे, हमारी आँखें आप लोगों को ढूँढ़ती रहीं, रो-रो कर हमारा बुरा हाल था, हम तो नहर में डूब कर मरने जा रहे थे जब हमें मोहम्मद हनीफ़
चचा जान ने बचाया और वे हमें अपने साथ लखनऊ ले आये"
दोनों बहनें फिर गले लग कर खूब रोती रहीं और उन्हें कुछ समय तक तो ये ख़्याल ही
नहीं आया कि बच्चे उनके चेहरों को असमंजस की निगाह से देखे जा रहे हैं।
जब कुछ वक़्त गुजरा और हालात सामान्य हुए तो यह कह कर शौकत बेग़म ने सबा की ओर
देखा,
"ये बच्चे कौन हैं, कोई हमारा तार्रुफ़ इनसे कराने की तकलीफ उठायेगा"
सबा जैसे ही बोलने वाली थी कि बीच में ही टोकते हुए गौहर बेग़म बोल उठीं,
"यह है मेरा बेटा आँखों का तारा राजकुमार कुँवर अनिरुद्ध सिंह
और यह है मेरी प्यारी प्यारी
सी बेटी राजकुमारी शिखा"
इसके बाद शौक़त बेग़म ने शिखा बेटी की पेशानी चूम कर दुआ दी और अनिरुद्ध के
दोनों हाथों को अपने हाथों में ले चूम कर शौक़त बेग़म बोलीं, "बेटा तू सौ साल जिये यही मेरी दुआ है तेरे लिए” उसके बाद गौहर बेग़म की ओर पलट कर बोलीं, "शिखा का नाम
तो सबा हर वक़्त रटती रहती थी, कौन जानता था कि आप लोगों का हमारे यहाँ तशरीफ़ लाना कितना
मुबारक़ रहा कि हम बता नहीं सकते हैं दो बिछड़ी हुई बहनें एक अरसे बाद मिलीं। आज आप सब हज़रात से इन अजीब हालात में मुलाक़ात होनी थी। मेरे तो
नसीब ही खुल गए कि मेरी एक ज़माने की खोई हुई बहन
मिल गई"
उसके बाद सभी लोगों ने बैठ कर गपशप की और इधर उधर की बातें की। जब काफी वक़्त
गुज़र गया तो शौक़त बेग़म सईद की ओर देखते हुए बोलीं, "सईद इन हज़रात का सामान ऊपर वाले कमरों में लगवा दो ये हमारे
अपने घर कर लोग हैं कोई मेहमानदारी में थोड़े ही रुकेंगे। चलिये आप लोग हमारे साथ
आइये सामान सईद भिजवा देगा"
शौक़त बेग़म सभी को अपने साथ लेकर हवेली के ऊपरी हिस्से में आईं।
कथांश:15
रेल गाड़ी भोपाल पहुँची ही लेट थी इसलिये सभी लोग दोपहर का खाना खा पीकर
अपने-अपने कमरों में आराम करने के लिये चले गए। बस गौहर बेग़म की आँखों में नींद
नहीं थी। कुछ देर बिस्तर पर यूँही लेटे रहने के बाद वे उठीं और शौक़त बेग़म के कमरे
में आ पहुँची और बोलीं, "आपा क्या सो रही हो?"
शौक़त बेग़म ने गौहर को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए कहा,
"आओ बैठो तुमसे मिलने के बाद तमाम सवाल ज़हन में हैं जिन
मसायल पर हम बच्चों के सामने भला कैसे बात करते? इन हालात में नींद किसे आती है?"
"मेरा भी वही हाल है"
"....और कुछ बता अपने बारे में कि तुम राजा साहब के यहाँ कैसे
पहुँची?"
"एक लंबी दास्ताँ है। क्या बताऊँ, क्या क्या न बीती मुझ पर” यह कह कर कुछ देर
के लिए गौहर बेग़म थम सी गईं जैसे कि तूफान आने के पहले मौसम थम सा जाता है, अपनी आँखों की
कोर में आई एक आँसूं की बूँद धीरे से अपने दुप्पट्टे से पोंछीं और बोलीं, “पर आपा एक बात
जो मैंने अपनी जिंदगी से सीखी वो है जिसका कोई नहीं होता उसका अल्लाह होता है।
मुझे जब हनीफ़ चचा जान अपने साथ लेकर लखनऊ आये तो मेरा दिल बहुत घबरा रहा था। न
जाने मेरी किस्मत मुझे कहाँ ले जाये। भला करे हनीफ़ चचा जान का और उनकी बेग़म हमीदा
का जिन्होंने न मुझे अपने आँगन की बिटिया बना के ही रखा और मुझे पूरा प्यार दिया, पढ़ाया लिखाया और गाने बजाने के साथ-साथ नाच गाने की तालीम भी दिलवाई। जब हनीफ़ चचा
जान का अंतकाल हुआ और घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया तो मुझे हमीदा बेग़म ने, जो हुनर मेरे
पास था उसे देखते हुए रईसजादों के यहाँ गाना वगैरह गाने के लिये कहा। एक मज़बूर
इंसान क्या करे, क्या न करे? मैंने भी मन न होते हुए अपना पहला प्रोग्राम राजा साहब
चंद्रचूड़ सिंह के महल कांकर में करने का मन बनाया। चूँकि उनकी उस इलाके में बड़ी
तारीफ़ सुनी थी कि वे दिल के बड़े भले और नेक इंसान हैं। मुझे इस बात का रत्ती भर इल्म नहीं था कि मेरे हुस्न का जादू कुछ ऐसे चलेगा
कि मेरी ग़ज़ल अदायगी और नाचगाने पर राजा साहब पहली ही नज़र में मेरे हो जाएंगे। फिर
जो हुआ वह तो इलाके में तारीख़ बन गया। राजा साहब मेरे हुस्न पर इस क़दर फ़िदा हुए कि
उन्होंने फिर मुझे कांकर से वापस ही नहीं आने दिया और मुझे उन्होंने अपनी ज़िंदगी
का हिस्सा बना लिया। मुझे वहीं छोड़ हमीदा बेग़म तो वापस लखनऊ चली गईं पर मेरी ख़िदमत
में उन्होंने अपनी छोटी बहन ख़ानम जान को छोड़ दिया। तब से हम और ख़ानम जान दोनों ही
ऐश महल में आराम की ज़िंदगी गुज़र बसर कर रहे हैं"
"तू तो ये सब ऐसे बता रही है जैसे कि राजा साहब तेरे अलावा
और किसी को नहीं चाहते हैं"
"नहीं, ऐसा नहीं है उनकी दो रानियां और हैं। बड़ी महारानी करुणा देवी और दूसरी छोटी
रानी शारदा देवी पर हमारे बीच कोई दिक़्क़त नहीं है। हम सभी में बहुत गहरा प्यार है
और राजा साहब हम तीनों को एक ही नज़र से देखते हैं"
"....और ये बच्चे"
"दोनों ही बच्चे हमारे बच्चे हैं"
"हमारे मतलब?"
"कुँवर अनिरुद्ध महारानी करुणा देवी से और राजकुमारी शिखा
रानी शारदा देवी से"
"तेरा क्या?"
"मैं दोनों की माँसी, मतलब माँ के बराबर हूँ। और क्या चाहिए मुझे। मेरे हिस्से में ऐश महल है और महारानी
और रानी साथ-साथ सूर्य महल में और महाराजा हम तीनों के बीच बने रहते हैं”
"गौहर तू भी न...पर अगर तू खुश है तो हमें
क्या करना है?"
"मैं तो बहुत खुश हूँ"
"आपा अपने बारे में भी तो
अब कुछ बताओ न"
"बताती हूँ, बताती हूँ......"
कथांश:16
शौक़त बेग़म जैसे ही अपने बारे में गौहर बेग़म को बताना
ही चाह रही थीं कि सबा अंदर आई और बोली, "अनिरुद्ध और शिखा दोनों आपको ढूंढ़ रहे हैं
और आप यहाँ हैं, चलिए आप लोग बाहर आइये चाय पर सब आपका इंतजार कर रहे हैं”
सबा के पीछे-पीछे शौक़त और गौहर बेग़म भी आ गईं और सभी लोगों ने मिलकर
चाय पी। चाय के दौरान ही अनिरुद्ध ने सईद से भोपाल के बारे में कुछ बताने के लिये
कहा।
सईद भी बातों का बड़ बोला शेर था बड़ी
शान के साथ बोला, "अपने शहर के बारे में भला हम कैसे तारीफ़ के क़सीदे पढ़ें, उसे तो हम आप हज़रात को दिखा कर पूछेंगे कि आप लोगों को कैसा
लगा हमारा भोपाल?"
इधर से शिखा बोल पड़ी, "हमें कैसे पता लगेगा कि भोपाल आप ही का है?"
इस पर शौक़त बेग़म ने तपाक से कहा, "एक ज़माने में भोपाल हमारा ही हुआ करता था। नवाबी वक़्त के
ख़ात्मे के साथ ही खानदान के वारिसों में बँटते-बँटते हमारा हिस्सा बहुत कम रह गया है। फिर भी जितना बचाखुचा है वह अभी
सात पुश्तों के लिए काफी है"
गौहर बेग़म जो कि शौक़त बेग़म के बारे में जानना चाह रही थीं, वह अपनी ही
अदा में बोलीं,
"माशाअल्लाह मैं आप पर कुर्बान जाऊँ आपा। खुदा ने जितनी नेमत
आपको बख़्शी है काश वह सबके हिस्से में आती"
शौक़त बेग़म बोलीं, "अरे ये
बच्चे क्या जानें भोपाल के गुज़रे ज़माने की बात? चलो हम बताते हैं तुम्हें सिलसिलेवार कि भोपाल अपने वजूद
में कैसे आया?
आप लोग ये तो जानते ही होंगे कि एक ज़माने में यहाँ पर एक राजा राज करते थे
जिनका नाम था ‘भूपाल’ जिनके नाम से इस शहर का नाम पड़ा 'भोपाल'।
अट्ठारहवीं सदी में यह यहाँ
गोंड राज्य का एक छोटा सा गाँव हुआ करता था। समय गुजरने के साथ साथ यह शहर
उजड़ गया।
भोपाल शहर भी बसाया मुगल सल्तनत के एक अफ़्गानी ने जिनका नाम था दोस्त मुहम्मद
खान। उन्होंने इस शहर को अपने हिसाब से खुद की रिहाइश के लिए और उनके साथ के जो
लोग थे उनके लिए बनाया था। इस लिहाज़ से भोपाल को नवाबी शहर भी माना जाता है, आज भी यहाँ मुगलई रवायात और संस्कृति देखी जा सकती है।
आप लोगों को यह तो याद होगा ही कि हिंदुस्तान की तारीख में एक वक़्त ऐसा भी आया
जब कि दिल्ली की मुगलिया हुक़ूमत बेइंतिहा कमज़ोर हो गई थी। इस बात का फ़ायदा उठाते
हुए दोस्त मोहम्मद खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली। कुछ समय बाद गोण्ड रानी कमलापती
की मदद करने के लिए दोस्त मोहम्मद खान को भोपाल तिजारत में दे दिया गया, जो उस वक़्त एक
छोटा सा गाँव हुआ करता था। रानी की मौत के
बाद दोस्त मोहम्मद खान गोण्ड पर खुद काबिज़ हो गया।
तवारीख़ गवाह है कि 1720-1726 के दौरान दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गाँव की किलाबन्दी कर
इसे एक शहर में तब्दील कर दिया। साथ ही उन्होंने नवाब का ओहदा भी हासिल कर लिया और
इस तरह से भोपाल रियासत अपने वजूद में आई
मुग़ल दरबार के सिद्दीक़ी भाइयों से दोस्ती के नाम दोस्त मोहम्मद खान ने
हैदराबाद के निज़ाम मीर क़मर उद्दीन निजाम-ए-मुल्क से दुश्मनी मोल ले ली। सिद्दीक़ी
भाइयों से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया और दोस्त मोहम्मद खान
को निज़ाम की हुकूमत माननी पड़ी।
दोस्त मोहम्मद खान के खानदान के लोगों ने 1818 में ब्रिटिश हुक़ूमत के साथ इकरारनामा किया और भोपाल रियासत
ब्रिटिश राज का एक हिस्सा बन गई।
1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब भोपाल रियासत की वारिस आबिदा सुल्तान खुदमर्जी से
पाकिस्तान चली गईं। उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा सुल्तान को रियासत का मालिकाना हक़
मिला।
1949 में भोपाल रियासत को काफी जद्दोजहद के बाद हिंदुस्तान का
हिस्सा बना लिया गया और इस तरह भोपाल को उस वक़्त के मध्य भारत प्रान्त की राजधानी
होने का रुतबा हासिल हुआ।
कथांश:17
सईद अपनी अम्मी की बात ख़त्म होने पर बोला, "चलिए आज शाम आपको भोपाल घुमा लाते हैं"
शौक़त बेग़म ने झिटकते हुए कहा, "रहने भी दे इतनी क्या जल्दी पड़ी है अब तो ये लोग यहीं
रहेंगे, कभी बाद में घुमा लाना"
"ये लोग तो यहाँ घुड़सवारी सीखने के चक्कर में आये हैं” बीच में टोकते
हुए गौहर बेग़म ने कहा ।
"इनको कौन किसी के यहाँ जाना है, पीछे वाली पहाड़ी की ओर ही तो अपना क्लब हाउस और ब्रीडिंग
सेंटर और उसके पीछे ही घोड़ों के दौड़ने की जगह है। सईद जरा इनको ले जा और घुमा ला” शौकत बेग़म ने कहा।
“जी अम्मी” सईद ने राजकुमार और राजकुमारी की और देखते हुए कहा, “आइये चलें, सबा तू अम्मी
के साथ रहेगी या हम लोगों के साथ चलेगी”
सबा ने जवाब दिया, "वाह
भाई वाह। तुम लोग ऐश करो और हम घर में सड़ें, ये तो नहीं चलेगा"
"तो चल न” सईद के कहने पर कुँवर, शिखा और सबा उसके साथ हो लिए।
हवेली के पिछवाड़े से ही रास्ता था तो सभी लोग पैदल ही निकल पड़े। सबा रास्ते भर
हवेली और भोपाल की खूबसूरती की बात करती रही और शिखा अपने कांकर की। कांकर की
तारीफ़ सुन कर सबा बोली, "यार फिर तो तेरा मज़ा ही मज़ा है। जब मन किया ऐश महल में अपनी गौहर के पास चले
गए जब मन किया तो अपने फार्म और बाग बगीचों में निकल गए"
“सो तो है” शिखा ने भी छोटा सा जवाब दिया।
"मेरा मन तो तेरे यहाँ चलने का कर रहा है"
"चली चलना, हमारे साथ ही चली चलना अभी कौन से कॉलेज खुलने वाले हैं”
"चल देखते हैं अम्मी से बात कर लेंगे"
"अब तो वे मेरी मौसी हैं मैं ही बात कर लूँगी” शिखा ने यह कहते हुए सबा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और
बोली, “शिखा एक बात
बता क्या तेरे भइय्या के क्या-क्या शौक हैं और क्या वो किसी से कोई बात नहीं करते
हैं, उन्होंने अभी
तक मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया है”
कुँवर जो अभी तक बहुत खामोश से दिख रहे थे आज पहली बार सबा की और देख कर बोले, “समझ नहीं पा
रहा हूँ कि मैं ऐसा कह दूँ जो आपके दिल के करीब हो”
इतने में शिखा बोल उठी, "सबा तुम्हें क्या बताऊँ कि मेरे भाई के क्या क्या शौक हैं, मेरे भइय्या बड़े रंगीन मिज़ाज इन्सान हैं”
"तू क्या उनकी स्पोक्स परसन है, उन्हें ही बोलने दे न"
"चलो भैय्या तुम ही बता दो कि तुम्हें गाना गाने और सुनने का, फोटोग्राफी का और भी कई और जैसे कि बागबानी, मछली पालन, खेतीबाड़ी करने और कराने का शौक़ तो है ही और साथ में....” शिखा बीच में बोल पड़ी।
"....और साथ में, क्या कहना चाह रही है तू मेरे बारे में?" शिखा की ओर देखते हुए अनिरुद्ध ने कहा।
"कुछ भी तो नहीं भैय्या। हम लड़कियाँ समझ जाती हैं कि लड़कों
को क्या अच्छा लगता है"
"शिखा तू घर चल न तेरी शिकायत नहीं की छोटी माँ से तो मेरा
नाम भी अनिरुद्ध नहीं"
"यही कि कुँवर अनिरुद्ध सिंह वल्द श्रीमंत राजा कांकर चंद्रचूड़ सिंह के पुत्र रत्न...” अपने भइया की
ओर देखते हुए पर इशारा सबा की ओर करके बोली।
दोनों भाई बहनों की नोंक झोंक सुन कर सईद और सबा का दिल तो बाग़बाग़ हो गया।
वे लोग चलते-चलते अस्तबल तक आ पहुँचे थे। उन्हें देखकर अस्तबल के चौकीदार
हिमायत अली ने सभी को सलाम किया और बढ़ कर गेट खोला। सईद ने मेहमानों के बारे में हिमायत अली को बताया और उससे
पूछा कि अभी अस्तबल में कितने घोड़े बचे हैं?
हिमायत अली ने बताया, "हुज़ूर अभी होंगे तकरीबन चालीस-पचास के बीच। आज कुछ घोड़े बैंगलोर जाने वाले थे
उसके बारे में मुझे पक्की जानकारी नहीं है"
"मियाँ बूढ़े हो गए हो काम करते-करते। अरे भाई इतना तो
दरियाफ़्त कर लिया करो कि अब कितने घोड़े अस्तबल में बचे हैं?
"जी हुज़ूर"
"क्या जी हुज़ूर?"
"यही कि घोड़े कितने बचे हैं...?"
"जाइये कुछ कुर्सी वगैरह निकलवाइए, हम लोग अस्तबल का दौरा करके क्लब हाउस के पास आते हैं और
कुछ देर वहीं बैठेंगे"
"जी हुज़ूर"
"हमारे यहाँ भी एक से बढ़ कर एक सूरमा भोपाली के खानदान के
नायाब इंसान हैं, पूछो
कुछ तो जवाब कुछ देते हैं” यह कहते हुए सईद अस्तबल में दाख़िल हो गए।
वहाँ एक एक घोड़े से मेहमानों का तार्रुफ़ कराया जैसे कि कोई अपने बहुत अज़ीज़ से
मुलाक़ात कराता हो। घोड़ों के सामने से निकलते हुए सईद बोला, "जब तक आपकी दोस्ती इन हज़रात से नहीं हो जाती है तब तक इनकी
रास पकड़ना आसान नहीं होगा"
"भइया ये काम तो आप कल से
शुरू करने वाले हैं या आपका थ्योरी का क्लास चालू हो गया"
"अच्छा याद दिलाया, सबा शुक्रिया, मैं तो भूल ही गया था” यह कह कर सईद चुप हो गया और वे लोग धीरे-धीरे टहल कर क्लब
हाउस आ पहुँचे। वहाँ बैठ कर चारों लोगों में आम इंसान की तरह बातचीत होने लगी।
अनिरुद्ध ने घोड़ों के बारे में जितनी हो सकती उतनी जानकारी हासिल की। सईद ने
भी अपने इस बिजनेस के बारे में खूब देर तक अनिरुद्ध को बताया कि उनके तैयार किये
हुए घोड़े देश के मशहूर क्लब्स में भेजे जाते हैं जहाँ ये अधिकतर हॉर्स रेस में
हिस्सा लेते हैं और फिर उसके बाद ये रख-रखाव के लिये हमारे यहाँ वापस आ जाते हैं।
जो घोड़े रेस में हिस्सा लेते हैं वे अलग किस्म के होते हैं और जो शौक़िया खेलकूद जैसे कि पोलो
वगैरह के लिए जाते हैं वे अलग तरह के होते हैं। दोनों किस्मों के घोड़ों की ख़िदमत
और खानापीना यहाँ तक कि ट्रेनिंग बिल्कुल अलग किस्म की होती है।
अनिरुद्ध द्वारा यह पूछे जाने पर, "क्या पोलो के लिये घोड़े भी यहीं से जाते हैं?”
"कुँवर अनिरुद्ध आपको यह जानकर हैरत होगी कि पूरे हिदुस्तान
के घोड़ों की ज़रूरत हम अकेले ही पूरी करते हैं। हमारे पास घोड़े इम्पोर्ट और
एक्सपोर्ट करने का बाकायदा सरकार की ओर से लाइसेंस मिला हुआ है, हमारी अपनी ट्रांसपोर्ट फ्लीट है, अपना स्टाफ है जो इन घोड़ों की देखभाल हर जगह करता है” सईद ने अपने बिजनेस मॉडल के बारे में और भी कई पेचदार
जानकारियाँ कुँवर को दीं।
जब अंधेरा कुछ अधिक हो गया तब वे लोग हवेली की ओर मुड़ पड़े। कुँवर ने सईद की
तारीफ़ करते हुए यह कहा, "आई एम इम्प्रेस्ड”
यह पूछे जाने पर कि साल भर का टर्नओवर कितना रहता होगा। सईद ने हँस कर कहा,
"लगता है कि आप हमारे राइवल बन कर ही रहेंगे"
हँसते हुए वह यह भी बोला कि अभी-अभी तो आप आये हैं कुछ वक्त तो गुजारिये हमारे
यहाँ फिर सब कुछ आपके साथ शेयर करेंगे आपको पूरा एक्सपर्ट ही बना कर भेजेंगे।
रास्ते भर सबा की नज़र कुँवर की ओर ही लगी रही। वह कुछ बातचीत करना चाह रही थी
पर दिल की बात दिल में ही रह गई.....
कथांश:12
राजा साहब ने जब कांग्रेस पार्टी का प्रस्ताव कुँवर
अनिरुद्ध को बताया तो उस समय महारानी करुणा, रानी शारदा और राजकुमारी शिखा सभी लोग उस्थित थे। शिखा से
मिलने राजा साहब उसके होस्टल में गए तो वह उसे भी अपने साथ लेते आये थे चूँकि
गर्मियों की छुट्टियां हो चुकी थीं।
कुँवर ने पिताश्री के प्रस्ताव पर अपनी नपी तुली प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
"मुझे राजनीति ने कभी भी प्रेरित नहीं किया। मैंने इसीलिये
साइंस पढ़ी। अगर आप मुझे इस झंझट से दूर ही रखें तो मुझे खुशी होगी"
रानी शारदा ने अपना मत व्यक्त करते हुए कहा, "अगर महाराज स्वयं चुनाव नहीं लड़ रहे हैं तो मेरी समझ में
कुँवर को चुनाव लड़ना चाहिए"
राजा साहब ने महारानी की ओर देखा और उनकी इच्छा जाननी चाही। महारानी जब
मुस्कुरा रह गईं तो राजा साहब ने उनसे पूछ ही लिया कि आख़िर क्या बात है? राजा साहब के बार-बार पूछने पर वह बोलीं, "मुझे तो हँसी इस बात पर आ रही है कि कोई आप दोनों को अपना
मेहमान बना कर अपने घर बुला कर न्योता दे रहा है और हम देख रहे हैं कि न तो महाराज
और न ही अनिरुद्ध चुनाव लड़ने के लिये हाँ कह रहे हैं"
रानी शारदा ने भी महारानी की बातों को दुहराया और जोर देते हुए कहा कि उनके
विचार और महारानी के विचार एक समान हैं।
राजा साहब ने शिखा की ओर देखते हुए पूछा, "बता बेटी तुझे क्या कहना है?"
राजकुमारी हँसते हुए बोली, "अगर आप दोनों चुनाव नहीं लड़ना चाह रहे हैं तो मैं खड़ी हो जाती हूँ"
राजा साहब ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह सुझाव भी ठीक है पर तेरी तो अभी चुनाव लड़ने लायक उम्र भी
नहीं हुई है"
इतना कह चुकने के बाद राजा साहब का ध्यान कुँवर की ओर गया और बोले,
"अनिरुद्ध आख़िर यह बताओ कि तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ना चाह
रहे हो?"
"क्योंकि मेरी विचारधारा में राजनीति के लिये कोई स्थान नहीं
है। दूसरा मैं अपनी पढ़ाई पूरी कर शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहता हूँ। अगर
मुझे अपने पुराने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में काम मिलता है तो मैं वहाँ रह कर
पढ़ाना पसंद करूँगा"
"तुम ऐसा क्या समझते हो जिसके कारण तुम राजनीतिक
क्रियाकलापों से प्रसन्न नहीं हो?"
"जी पिताश्री आपको याद होगा जब दो तीन साल पहले राष्ट्रीय
बैंकों का अधिग्रहण किया गया था तो उस वक़्त माणिकपुर राजा साहब ने क्या कहा था कि
सत्ता का हर कदम देश और जनता को बेवकूफ बनाने के लिये होता है। देश का लाभ चाहे हो
या न हो बस उन्हें कुछ ऐसा करना है जिससे जनता उनकी वाहवाही करती रहे"
राजा साहब कुँवर की ओर देख रहे थे और मन ही मन यह भी तौल रहे थे कि उसके
विचारों में कहाँ तक सच्चाई है? कुँवर ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा, "उसके बाद राजा साहब माणिकपुर स्वतंत्र पार्टी से चुनाव लड़े
और अपने बलबूते डंके की चोट पर चुनाव जीते"
राजा साहब ने कुँवर से कहा, "तुम्हारी बात अपनी जगह सही है पर यह भी जानो कि भारत एक विशाल देश है और यहाँ
हर प्रदेश की अपनी भाषा है, लोगों की अपेक्षाएँ अनेक हैं जिन्हें कोई भी सरकार पूरा नहीं कर सकती है। भारत
तरक्की करते-करते ही आगे बढ़ेगा। खैर तुम इन सब बातों को छोड़ो और मेरे विचार से
चुनाव लड़ो"
"अगर यह आपका आदेश है तो मैं आपकी आज्ञा मानूँगा वैसे इसमें
मेरा कोई रुझान नहीं है"
"अभी हम हैं न इसलिये तुम चिंता नहीं करो बस अपना मन बनाओ और
बाकी सब हम पर छोड़ दो"
"जैसी आपकी आज्ञा"
कथांश:13
एक दिन सुबह के वक़्त राजकुमार अनिरुद्ध और राजकुमारी शिखा
महल के ऊपरी हिस्से में बैठे हुए चाय पर गपशप कर रहे थे। बातचीत के दौरान शिखा ने
कहा,
"भइया मेरा मन यहाँ देहात में बिल्कुल नहीं लगता है। यहाँ
क्या करें क्या न करें समझ में ही नहीं आता"
राजकुमार अनिरुद्ध ने राजकुमारी शिखा से कहा, "शिखा तू सोच और महसूस कर कि ऐसे ही माहौल में अपने पूर्वजों
ने अपना पूरा जीवन बिताया। आज मैं अमेरिका में और तू दिल्ली में रह रही है तो हमें
यहाँ तनिक भी अच्छा नहीं लगता तो उन लोगों का मन कैसे लगता रहा होगा। उन्होंने भी
कोई न कोई शौक अपने ज़माने के अपनाए होंगे। तू भी दिल बहलाने के लिए कोई काम शुरू
कर दे”
"क्या करूँ मेरी तो कुछ भी समझ में नहीं आता?"
"कुछ भी, जो तेरा मन करे। एक बात कहूँ यहाँ जितनी शांति है, खुला-खुला आसमान है, शुद्ध ऑक्सीजन है वह भला बड़े शहरों में कहाँ? फिर भी मैं मानता हूँ कि यहाँ की जिंदगी बड़ी ही एकाकी सी
है। तू भी कुछ ऐसा काम कर जो तुझे पसंद हो और तेरे भीतर के एकाकीपन को जो दूर कर
सके। कुछ न हो तो पेंटिंग ही किया कर"
"हाँ ये आईडिया ठीक है"
"मैं भी सोच रहा हूँ कुछ नया शुरू करूँ जो आज तक नहीं किया
है"
"वह क्या?"
"हॉर्स राइडिंग"
"वह तो मैं भी सीखूँगी"
"चल हम लोग कुछ दिन के लिये बैंगलोर चलते हैं"
"बैंगलोर ही क्यों? घुड़सवारी तो भइया मैं और आप एक और जगह सीख सकते हैं"
"वो भला कहाँ?"
"भोपाल। मेरे साथ एक लड़की पढ़ती है। बहुत बड़े घर की है उसका
वहाँ बड़ा फार्म है वहीं चलते हैं"
"चल तो ये पक्का रहा भोपाल ही चलते हैं"
"गौहर मौसी को भी ले चलेंगे उनका मन भी बहुत कर रहा है भोपाल
चलने का"
"तुझे कैसे मालूम?"
"मालूम है, मेरी एक बार उनसे बात हुई थी"
"पर उसके लिये तो पिता श्री से बात करनी पड़ेगी"
"नहीं, वह गौहर मौसी खुद कर लेंगी”
"वाह क्या आईडिया लगाया है"
शाम के वक़्त अनिरुद्ध और शिखा दोनों भाई बहन मिल कर ऐश महल गए और गौहर बेग़म से
मिले। उन्होंने थोड़ा ना नुकुर करने के बाद भोपाल चलने का प्रोग्राम फाइनल कर दिया
और बोलीं,
"चलो इस बहाने ही सही अपने बिछड़े हुए मिल जाएंगे" गौहर बेगम ने इस योजना के बारे में
राजा साहब से विधिवत बातचीत कर ली और तीनों ने भोपाल चलने का कार्यक्रम बना डाला।
कथांश:14
भोपाल स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी तो राजकुमारी शिखा की दोस्त सबा उनके
डिब्बे के ठीक सामने आकर खड़ी हो गई जो अपने भाई सईद को लेकर उन लोगों को रिसीव
करने के लिये आई हुई थी। शिखा से गले मिलने के बाद सबा ने सईद की मुलाक़ात शिखा से
कराई और शिखा ने राजकुमार अनिरुद्ध और गौहर बेग़म से। उसके बाद वे सभी लोग भोपाल
शहर की कहीं तंग गलियों से तो कहीं खुली-खुली सड़कों पर सर्राटे से भागती हुई कार
में, श्यामला हिल्स की तलहटी में फारेस्ट रोड के ऊपर वीआईपी
एरिया की ओर बढ़ चले और बड़े तालाब के किनारे बनी 'शौक़त मंजिल' पर आ पहुँचे।
'शौक़त मंज़िल' पहुँचने के बाद जैसे ही कार पोर्टिको में रुकी तो बढ़ कर एक खाबिंद ने दरवाज़ा
खोला और हवेली के अंदर से दो खाबिंद आये और उन्होंने मेहमानों का सामान उठा
मेहमानदारी में ले जाकर सजा दिया। सबा ने मेहमानों को एक बड़े से दुमंजिला ऊँचाई
वाले ड्रॉइंग रूम में सोफ़े पर बैठने के लिये कहा, "आइये आंटी तशरीफ़ रखिये। आओ शिखा तुम भी बैठो और फिर राजकुमार अनिरुद्ध सिंह की ओर मुँह कर के बोलीं, "आप भी तशरीफ़
रखिये।
सईद ने सबा से कहा, "मैं ऊपर अम्मी को ख़बर करके आता हूँ। तुम मेहमानों के लिये चाय नाश्ते का
इंतजाम करो "
कुछ देर में ही चाय और बिस्किट्स लेकर एक नौकर डाइनिंग टेबल पर लगाने लगा। इसी
बीच सईद अपनी अम्मी के साथ आ पहुँचा। सबा ने अपनी अम्मी का तार्रुफ़ गौहर बेग़म से
यह कह कर कराया कि अम्मी आप हैं राजकुमारी शिखा और राजकुमार अनिरुद्ध की माँसी।
जैसे ही सबा की अम्मी की निगाह गौहर बेग़म के चेहरे पर पड़ी, वह एक दम सकते में आ गईं, उन्हें लगा कि ये चेहरा तो कुछ जाना पहचाना सा है। गौहर
बेग़म भी सबा की अम्मी की ओर ध्यान से देखती रह गईं। सबा की अम्मी, ने आश्चर्य से कहा, "गौहर तुम"
"शौक़त, आपा आप यहाँ? ओह खुदारा ये कोई ख्वाब तो नहीं है कहीं?” गौहर बेग़म ने सबा की अम्मी को अपनी बाहों में लेते हुए कहा।
उसके बाद गौहर बेग़म और शौक़त बेग़म एक
दूसरे से चिपक कर जोर-जोर से रोने लगीं। शौक़त बेग़म गौहर बेग़म के चेहरे को अपने
हाथों में लेकर दर्द भरी आवाज़ में बोलीं, "कहाँ चली गई थी तू गौहर? अब्बू और अम्मा ने तुझे इतना ढूँढा पर तू कहीं नहीं मिली, हमने तो फिर आस ही छोड़ दी थी कि अब हम ज़िंदगी में कभी मिल
सकेंगे"
"जी आपा, मेरा भी यही हाल था। हम कलियर शरीफ़ की मजार पर सर पटक-पटक कर रोते रहे, हमारी आँखें आप लोगों को ढूँढ़ती रहीं, रो-रो कर हमारा बुरा हाल था, हम तो नहर में डूब कर मरने जा रहे थे जब हमें मोहम्मद हनीफ़
चचा जान ने बचाया और वे हमें अपने साथ लखनऊ ले आये"
दोनों बहनें फिर गले लग कर खूब रोती रहीं और उन्हें कुछ समय तक तो ये ख़्याल ही
नहीं आया कि बच्चे उनके चेहरों को असमंजस की निगाह से देखे जा रहे हैं।
जब कुछ वक़्त गुजरा और हालात सामान्य हुए तो यह कह कर शौकत बेग़म ने सबा की ओर
देखा,
"ये बच्चे कौन हैं, कोई हमारा तार्रुफ़ इनसे कराने की तकलीफ उठायेगा"
सबा जैसे ही बोलने वाली थी कि बीच में ही टोकते हुए गौहर बेग़म बोल उठीं,
"यह है मेरा बेटा आँखों का तारा राजकुमार कुँवर अनिरुद्ध सिंह
और यह है मेरी प्यारी प्यारी
सी बेटी राजकुमारी शिखा"
इसके बाद शौक़त बेग़म ने शिखा बेटी की पेशानी चूम कर दुआ दी और अनिरुद्ध के
दोनों हाथों को अपने हाथों में ले चूम कर शौक़त बेग़म बोलीं, "बेटा तू सौ साल जिये यही मेरी दुआ है तेरे लिए” उसके बाद गौहर बेग़म की ओर पलट कर बोलीं, "शिखा का नाम
तो सबा हर वक़्त रटती रहती थी, कौन जानता था कि आप लोगों का हमारे यहाँ तशरीफ़ लाना कितना
मुबारक़ रहा कि हम बता नहीं सकते हैं दो बिछड़ी हुई बहनें एक अरसे बाद मिलीं। आज आप सब हज़रात से इन अजीब हालात में मुलाक़ात होनी थी। मेरे तो
नसीब ही खुल गए कि मेरी एक ज़माने की खोई हुई बहन
मिल गई"
उसके बाद सभी लोगों ने बैठ कर गपशप की और इधर उधर की बातें की। जब काफी वक़्त
गुज़र गया तो शौक़त बेग़म सईद की ओर देखते हुए बोलीं, "सईद इन हज़रात का सामान ऊपर वाले कमरों में लगवा दो ये हमारे
अपने घर कर लोग हैं कोई मेहमानदारी में थोड़े ही रुकेंगे। चलिये आप लोग हमारे साथ
आइये सामान सईद भिजवा देगा"
शौक़त बेग़म सभी को अपने साथ लेकर हवेली के ऊपरी हिस्से में आईं।
कथांश:15
रेल गाड़ी भोपाल पहुँची ही लेट थी इसलिये सभी लोग दोपहर का खाना खा पीकर
अपने-अपने कमरों में आराम करने के लिये चले गए। बस गौहर बेग़म की आँखों में नींद
नहीं थी। कुछ देर बिस्तर पर यूँही लेटे रहने के बाद वे उठीं और शौक़त बेग़म के कमरे
में आ पहुँची और बोलीं, "आपा क्या सो रही हो?"
शौक़त बेग़म ने गौहर को अपने पास बैठने का इशारा करते हुए कहा,
"आओ बैठो तुमसे मिलने के बाद तमाम सवाल ज़हन में हैं जिन
मसायल पर हम बच्चों के सामने भला कैसे बात करते? इन हालात में नींद किसे आती है?"
"मेरा भी वही हाल है"
"....और कुछ बता अपने बारे में कि तुम राजा साहब के यहाँ कैसे
पहुँची?"
"एक लंबी दास्ताँ है। क्या बताऊँ, क्या क्या न बीती मुझ पर” यह कह कर कुछ देर
के लिए गौहर बेग़म थम सी गईं जैसे कि तूफान आने के पहले मौसम थम सा जाता है, अपनी आँखों की
कोर में आई एक आँसूं की बूँद धीरे से अपने दुप्पट्टे से पोंछीं और बोलीं, “पर आपा एक बात
जो मैंने अपनी जिंदगी से सीखी वो है जिसका कोई नहीं होता उसका अल्लाह होता है।
मुझे जब हनीफ़ चचा जान अपने साथ लेकर लखनऊ आये तो मेरा दिल बहुत घबरा रहा था। न
जाने मेरी किस्मत मुझे कहाँ ले जाये। भला करे हनीफ़ चचा जान का और उनकी बेग़म हमीदा
का जिन्होंने न मुझे अपने आँगन की बिटिया बना के ही रखा और मुझे पूरा प्यार दिया, पढ़ाया लिखाया और गाने बजाने के साथ-साथ नाच गाने की तालीम भी दिलवाई। जब हनीफ़ चचा
जान का अंतकाल हुआ और घर का खर्च चलना मुश्किल हो गया तो मुझे हमीदा बेग़म ने, जो हुनर मेरे
पास था उसे देखते हुए रईसजादों के यहाँ गाना वगैरह गाने के लिये कहा। एक मज़बूर
इंसान क्या करे, क्या न करे? मैंने भी मन न होते हुए अपना पहला प्रोग्राम राजा साहब
चंद्रचूड़ सिंह के महल कांकर में करने का मन बनाया। चूँकि उनकी उस इलाके में बड़ी
तारीफ़ सुनी थी कि वे दिल के बड़े भले और नेक इंसान हैं। मुझे इस बात का रत्ती भर इल्म नहीं था कि मेरे हुस्न का जादू कुछ ऐसे चलेगा
कि मेरी ग़ज़ल अदायगी और नाचगाने पर राजा साहब पहली ही नज़र में मेरे हो जाएंगे। फिर
जो हुआ वह तो इलाके में तारीख़ बन गया। राजा साहब मेरे हुस्न पर इस क़दर फ़िदा हुए कि
उन्होंने फिर मुझे कांकर से वापस ही नहीं आने दिया और मुझे उन्होंने अपनी ज़िंदगी
का हिस्सा बना लिया। मुझे वहीं छोड़ हमीदा बेग़म तो वापस लखनऊ चली गईं पर मेरी ख़िदमत
में उन्होंने अपनी छोटी बहन ख़ानम जान को छोड़ दिया। तब से हम और ख़ानम जान दोनों ही
ऐश महल में आराम की ज़िंदगी गुज़र बसर कर रहे हैं"
"तू तो ये सब ऐसे बता रही है जैसे कि राजा साहब तेरे अलावा
और किसी को नहीं चाहते हैं"
"नहीं, ऐसा नहीं है उनकी दो रानियां और हैं। बड़ी महारानी करुणा देवी और दूसरी छोटी
रानी शारदा देवी पर हमारे बीच कोई दिक़्क़त नहीं है। हम सभी में बहुत गहरा प्यार है
और राजा साहब हम तीनों को एक ही नज़र से देखते हैं"
"....और ये बच्चे"
"दोनों ही बच्चे हमारे बच्चे हैं"
"हमारे मतलब?"
"कुँवर अनिरुद्ध महारानी करुणा देवी से और राजकुमारी शिखा
रानी शारदा देवी से"
"तेरा क्या?"
"मैं दोनों की माँसी, मतलब माँ के बराबर हूँ। और क्या चाहिए मुझे। मेरे हिस्से में ऐश महल है और महारानी
और रानी साथ-साथ सूर्य महल में और महाराजा हम तीनों के बीच बने रहते हैं”
"गौहर तू भी न...पर अगर तू खुश है तो हमें
क्या करना है?"
"मैं तो बहुत खुश हूँ"
"आपा अपने बारे में भी तो
अब कुछ बताओ न"
"बताती हूँ, बताती हूँ......"
कथांश:16
शौक़त बेग़म जैसे ही अपने बारे में गौहर बेग़म को बताना
ही चाह रही थीं कि सबा अंदर आई और बोली, "अनिरुद्ध और शिखा दोनों आपको ढूंढ़ रहे हैं
और आप यहाँ हैं, चलिए आप लोग बाहर आइये चाय पर सब आपका इंतजार कर रहे हैं”
सबा के पीछे-पीछे शौक़त और गौहर बेग़म भी आ गईं और सभी लोगों ने मिलकर
चाय पी। चाय के दौरान ही अनिरुद्ध ने सईद से भोपाल के बारे में कुछ बताने के लिये
कहा।
सईद भी बातों का बड़ बोला शेर था बड़ी
शान के साथ बोला, "अपने शहर के बारे में भला हम कैसे तारीफ़ के क़सीदे पढ़ें, उसे तो हम आप हज़रात को दिखा कर पूछेंगे कि आप लोगों को कैसा
लगा हमारा भोपाल?"
इधर से शिखा बोल पड़ी, "हमें कैसे पता लगेगा कि भोपाल आप ही का है?"
इस पर शौक़त बेग़म ने तपाक से कहा, "एक ज़माने में भोपाल हमारा ही हुआ करता था। नवाबी वक़्त के
ख़ात्मे के साथ ही खानदान के वारिसों में बँटते-बँटते हमारा हिस्सा बहुत कम रह गया है। फिर भी जितना बचाखुचा है वह अभी
सात पुश्तों के लिए काफी है"
गौहर बेग़म जो कि शौक़त बेग़म के बारे में जानना चाह रही थीं, वह अपनी ही
अदा में बोलीं,
"माशाअल्लाह मैं आप पर कुर्बान जाऊँ आपा। खुदा ने जितनी नेमत
आपको बख़्शी है काश वह सबके हिस्से में आती"
शौक़त बेग़म बोलीं, "अरे ये
बच्चे क्या जानें भोपाल के गुज़रे ज़माने की बात? चलो हम बताते हैं तुम्हें सिलसिलेवार कि भोपाल अपने वजूद
में कैसे आया?
आप लोग ये तो जानते ही होंगे कि एक ज़माने में यहाँ पर एक राजा राज करते थे
जिनका नाम था ‘भूपाल’ जिनके नाम से इस शहर का नाम पड़ा 'भोपाल'।
अट्ठारहवीं सदी में यह यहाँ
गोंड राज्य का एक छोटा सा गाँव हुआ करता था। समय गुजरने के साथ साथ यह शहर
उजड़ गया।
भोपाल शहर भी बसाया मुगल सल्तनत के एक अफ़्गानी ने जिनका नाम था दोस्त मुहम्मद
खान। उन्होंने इस शहर को अपने हिसाब से खुद की रिहाइश के लिए और उनके साथ के जो
लोग थे उनके लिए बनाया था। इस लिहाज़ से भोपाल को नवाबी शहर भी माना जाता है, आज भी यहाँ मुगलई रवायात और संस्कृति देखी जा सकती है।
आप लोगों को यह तो याद होगा ही कि हिंदुस्तान की तारीख में एक वक़्त ऐसा भी आया
जब कि दिल्ली की मुगलिया हुक़ूमत बेइंतिहा कमज़ोर हो गई थी। इस बात का फ़ायदा उठाते
हुए दोस्त मोहम्मद खान ने बेरासिया तहसील हड़प ली। कुछ समय बाद गोण्ड रानी कमलापती
की मदद करने के लिए दोस्त मोहम्मद खान को भोपाल तिजारत में दे दिया गया, जो उस वक़्त एक
छोटा सा गाँव हुआ करता था। रानी की मौत के
बाद दोस्त मोहम्मद खान गोण्ड पर खुद काबिज़ हो गया।
तवारीख़ गवाह है कि 1720-1726 के दौरान दोस्त मुहम्मद खान ने भोपाल गाँव की किलाबन्दी कर
इसे एक शहर में तब्दील कर दिया। साथ ही उन्होंने नवाब का ओहदा भी हासिल कर लिया और
इस तरह से भोपाल रियासत अपने वजूद में आई
मुग़ल दरबार के सिद्दीक़ी भाइयों से दोस्ती के नाम दोस्त मोहम्मद खान ने
हैदराबाद के निज़ाम मीर क़मर उद्दीन निजाम-ए-मुल्क से दुश्मनी मोल ले ली। सिद्दीक़ी
भाइयों से निपटने के बाद 1723 में निज़ाम ने भोपाल पर हमला बोल दिया और दोस्त मोहम्मद खान
को निज़ाम की हुकूमत माननी पड़ी।
दोस्त मोहम्मद खान के खानदान के लोगों ने 1818 में ब्रिटिश हुक़ूमत के साथ इकरारनामा किया और भोपाल रियासत
ब्रिटिश राज का एक हिस्सा बन गई।
1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब भोपाल रियासत की वारिस आबिदा सुल्तान खुदमर्जी से
पाकिस्तान चली गईं। उनकी छोटी बहन बेगम साजिदा सुल्तान को रियासत का मालिकाना हक़
मिला।
1949 में भोपाल रियासत को काफी जद्दोजहद के बाद हिंदुस्तान का
हिस्सा बना लिया गया और इस तरह भोपाल को उस वक़्त के मध्य भारत प्रान्त की राजधानी
होने का रुतबा हासिल हुआ।
कथांश:17
सईद अपनी अम्मी की बात ख़त्म होने पर बोला, "चलिए आज शाम आपको भोपाल घुमा लाते हैं"
शौक़त बेग़म ने झिटकते हुए कहा, "रहने भी दे इतनी क्या जल्दी पड़ी है अब तो ये लोग यहीं
रहेंगे, कभी बाद में घुमा लाना"
"ये लोग तो यहाँ घुड़सवारी सीखने के चक्कर में आये हैं” बीच में टोकते
हुए गौहर बेग़म ने कहा ।
"इनको कौन किसी के यहाँ जाना है, पीछे वाली पहाड़ी की ओर ही तो अपना क्लब हाउस और ब्रीडिंग
सेंटर और उसके पीछे ही घोड़ों के दौड़ने की जगह है। सईद जरा इनको ले जा और घुमा ला” शौकत बेग़म ने कहा।
“जी अम्मी” सईद ने राजकुमार और राजकुमारी की और देखते हुए कहा, “आइये चलें, सबा तू अम्मी
के साथ रहेगी या हम लोगों के साथ चलेगी”
सबा ने जवाब दिया, "वाह
भाई वाह। तुम लोग ऐश करो और हम घर में सड़ें, ये तो नहीं चलेगा"
"तो चल न” सईद के कहने पर कुँवर, शिखा और सबा उसके साथ हो लिए।
हवेली के पिछवाड़े से ही रास्ता था तो सभी लोग पैदल ही निकल पड़े। सबा रास्ते भर
हवेली और भोपाल की खूबसूरती की बात करती रही और शिखा अपने कांकर की। कांकर की
तारीफ़ सुन कर सबा बोली, "यार फिर तो तेरा मज़ा ही मज़ा है। जब मन किया ऐश महल में अपनी गौहर के पास चले
गए जब मन किया तो अपने फार्म और बाग बगीचों में निकल गए"
“सो तो है” शिखा ने भी छोटा सा जवाब दिया।
"मेरा मन तो तेरे यहाँ चलने का कर रहा है"
"चली चलना, हमारे साथ ही चली चलना अभी कौन से कॉलेज खुलने वाले हैं”
"चल देखते हैं अम्मी से बात कर लेंगे"
"अब तो वे मेरी मौसी हैं मैं ही बात कर लूँगी” शिखा ने यह कहते हुए सबा का हाथ अपने हाथ में ले लिया और
बोली, “शिखा एक बात
बता क्या तेरे भइय्या के क्या-क्या शौक हैं और क्या वो किसी से कोई बात नहीं करते
हैं, उन्होंने अभी
तक मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया है”
कुँवर जो अभी तक बहुत खामोश से दिख रहे थे आज पहली बार सबा की और देख कर बोले, “समझ नहीं पा
रहा हूँ कि मैं ऐसा कह दूँ जो आपके दिल के करीब हो”
इतने में शिखा बोल उठी, "सबा तुम्हें क्या बताऊँ कि मेरे भाई के क्या क्या शौक हैं, मेरे भइय्या बड़े रंगीन मिज़ाज इन्सान हैं”
"तू क्या उनकी स्पोक्स परसन है, उन्हें ही बोलने दे न"
"चलो भैय्या तुम ही बता दो कि तुम्हें गाना गाने और सुनने का, फोटोग्राफी का और भी कई और जैसे कि बागबानी, मछली पालन, खेतीबाड़ी करने और कराने का शौक़ तो है ही और साथ में....” शिखा बीच में बोल पड़ी।
"....और साथ में, क्या कहना चाह रही है तू मेरे बारे में?" शिखा की ओर देखते हुए अनिरुद्ध ने कहा।
"कुछ भी तो नहीं भैय्या। हम लड़कियाँ समझ जाती हैं कि लड़कों
को क्या अच्छा लगता है"
"शिखा तू घर चल न तेरी शिकायत नहीं की छोटी माँ से तो मेरा
नाम भी अनिरुद्ध नहीं"
"यही कि कुँवर अनिरुद्ध सिंह वल्द श्रीमंत राजा कांकर चंद्रचूड़ सिंह के पुत्र रत्न...” अपने भइया की
ओर देखते हुए पर इशारा सबा की ओर करके बोली।
दोनों भाई बहनों की नोंक झोंक सुन कर सईद और सबा का दिल तो बाग़बाग़ हो गया।
वे लोग चलते-चलते अस्तबल तक आ पहुँचे थे। उन्हें देखकर अस्तबल के चौकीदार
हिमायत अली ने सभी को सलाम किया और बढ़ कर गेट खोला। सईद ने मेहमानों के बारे में हिमायत अली को बताया और उससे
पूछा कि अभी अस्तबल में कितने घोड़े बचे हैं?
हिमायत अली ने बताया, "हुज़ूर अभी होंगे तकरीबन चालीस-पचास के बीच। आज कुछ घोड़े बैंगलोर जाने वाले थे
उसके बारे में मुझे पक्की जानकारी नहीं है"
"मियाँ बूढ़े हो गए हो काम करते-करते। अरे भाई इतना तो
दरियाफ़्त कर लिया करो कि अब कितने घोड़े अस्तबल में बचे हैं?
"जी हुज़ूर"
"क्या जी हुज़ूर?"
"यही कि घोड़े कितने बचे हैं...?"
"जाइये कुछ कुर्सी वगैरह निकलवाइए, हम लोग अस्तबल का दौरा करके क्लब हाउस के पास आते हैं और
कुछ देर वहीं बैठेंगे"
"जी हुज़ूर"
"हमारे यहाँ भी एक से बढ़ कर एक सूरमा भोपाली के खानदान के
नायाब इंसान हैं, पूछो
कुछ तो जवाब कुछ देते हैं” यह कहते हुए सईद अस्तबल में दाख़िल हो गए।
वहाँ एक एक घोड़े से मेहमानों का तार्रुफ़ कराया जैसे कि कोई अपने बहुत अज़ीज़ से
मुलाक़ात कराता हो। घोड़ों के सामने से निकलते हुए सईद बोला, "जब तक आपकी दोस्ती इन हज़रात से नहीं हो जाती है तब तक इनकी
रास पकड़ना आसान नहीं होगा"
"भइया ये काम तो आप कल से
शुरू करने वाले हैं या आपका थ्योरी का क्लास चालू हो गया"
"अच्छा याद दिलाया, सबा शुक्रिया, मैं तो भूल ही गया था” यह कह कर सईद चुप हो गया और वे लोग धीरे-धीरे टहल कर क्लब
हाउस आ पहुँचे। वहाँ बैठ कर चारों लोगों में आम इंसान की तरह बातचीत होने लगी।
अनिरुद्ध ने घोड़ों के बारे में जितनी हो सकती उतनी जानकारी हासिल की। सईद ने
भी अपने इस बिजनेस के बारे में खूब देर तक अनिरुद्ध को बताया कि उनके तैयार किये
हुए घोड़े देश के मशहूर क्लब्स में भेजे जाते हैं जहाँ ये अधिकतर हॉर्स रेस में
हिस्सा लेते हैं और फिर उसके बाद ये रख-रखाव के लिये हमारे यहाँ वापस आ जाते हैं।
जो घोड़े रेस में हिस्सा लेते हैं वे अलग किस्म के होते हैं और जो शौक़िया खेलकूद जैसे कि पोलो
वगैरह के लिए जाते हैं वे अलग तरह के होते हैं। दोनों किस्मों के घोड़ों की ख़िदमत
और खानापीना यहाँ तक कि ट्रेनिंग बिल्कुल अलग किस्म की होती है।
अनिरुद्ध द्वारा यह पूछे जाने पर, "क्या पोलो के लिये घोड़े भी यहीं से जाते हैं?”
"कुँवर अनिरुद्ध आपको यह जानकर हैरत होगी कि पूरे हिदुस्तान
के घोड़ों की ज़रूरत हम अकेले ही पूरी करते हैं। हमारे पास घोड़े इम्पोर्ट और
एक्सपोर्ट करने का बाकायदा सरकार की ओर से लाइसेंस मिला हुआ है, हमारी अपनी ट्रांसपोर्ट फ्लीट है, अपना स्टाफ है जो इन घोड़ों की देखभाल हर जगह करता है” सईद ने अपने बिजनेस मॉडल के बारे में और भी कई पेचदार
जानकारियाँ कुँवर को दीं।
जब अंधेरा कुछ अधिक हो गया तब वे लोग हवेली की ओर मुड़ पड़े। कुँवर ने सईद की
तारीफ़ करते हुए यह कहा, "आई एम इम्प्रेस्ड”
यह पूछे जाने पर कि साल भर का टर्नओवर कितना रहता होगा। सईद ने हँस कर कहा,
"लगता है कि आप हमारे राइवल बन कर ही रहेंगे"
हँसते हुए वह यह भी बोला कि अभी-अभी तो आप आये हैं कुछ वक्त तो गुजारिये हमारे
यहाँ फिर सब कुछ आपके साथ शेयर करेंगे आपको पूरा एक्सपर्ट ही बना कर भेजेंगे।
रास्ते भर सबा की नज़र कुँवर की ओर ही लगी रही। वह कुछ बातचीत करना चाह रही थी
पर दिल की बात दिल में ही रह गई.....
कथांश:18
"आपा तो बताइए आप क्या बताने वाली थीं जब सबा अचानक आ गई थी" गौहर बेग़म ने पूछा।
"बताती हूँ, बताती हूँ। जब तू हम लोगों को कलियर शरीफ़ में नहीं मिली तो अब्बू और अम्मी
बेहद परेशान हुए और वहाँ कई दिन इंतज़ार करने के बाद हम लोग सहारनपुर अपने घर लौट
आये”
इतना कह कर शौक़त बेग़म चुप हो गईं जैसे कि अंधेरे में
कुछ ढूँढ़ रही हों। जब उन्हें कुछ याद आया तो वे फिर से बोल उठीं, "सहारनपुर आते ही मोहल्ले में सभी लोग तुम्हारे बारे में बार-बार पूछते तो
अब्बू सबको जो हम लोगों के साथ बीता वह बताते पर उनकी बताई बात पर कोई भी भरोसा
नहीं जताता और उल्टे यह तोहमत लगाते कि अब्बू अपनी बेटी को कलियर शरीफ़ के उर्स में
किसी रईसजादे को बेच कर फुरसत पा गए हैं। अब्बू जब ये सब सुनते तो उनके दिल को चोट
लगती और उन्हें ये सब बातें बहुत ही नागवार गुजरतीं"
"फिर क्या हुआ?"
"होना क्या था कुछ दिन तक तो अब्बू ये सब सुनते रहे, एक दिन परेशान
हो कर उन्होंने आरा मशीन, दुकान और मकान बेच दिया और रातों रात बगैर किसी को बताए
सहारनपुर को छोड़ कर भोपाल आ गए"
"फिर"
"यहाँ आकर अब्बू काम की तलाश करते रहे, जो पैसा सब
बेच कर मिला था उससे वह कोई काम शुरू करना चाह रहे थे। एक भले इंसान जिनका नाम था
लाला भगवान दास उन्होंने अब्बू की बड़ी मदद की और उन्हें लेकर वे बेग़म साहिबा से
मिले। बेग़म साहिबा के बड़े जंगलात थे। उन्होंने उसी जंगल में अब्बू को कुछ ज़मीन
मुहैय्या करा दी और जंगलात से लकड़ी काट कर बेचने की इजाज़त भी दे दी। बस फिर क्या था अब्बू ने धीरे-धीरे आरा मशीन लगा ली और नक्कासीदार फर्नीचर बनाने का भी काम शुरू कर दिया"
"आपा जो इंसान अच्छा होता है तो किस्मत भी मदद करती है, अपने अब्बू का क्या कहना वे तो खुदाबन्दे थे पाँचों वक़्त
की नमाज़ अदा करते थे"
"एक दिन की बात है कि बेग़म साहिबा को किसी ने बताया कि अब्बू
तो नक्कासीदार फर्नीचर के जाने माने कारीगर हैं और उनके बनाये फर्नीचर भोपाल शहर
में खूब चल रहे हैं। फिर क्या था खान बहादुर के साथ एक शाम बेग़म साहिबा अपनी कार
से आईं और उन्होंने हममें न जाने क्या देखा कि अपने सबसे छोटे बेटे हमीदुल्लाह के
लिये हमारा हाथ माँग लिया। बस इसके बाद तो हमारी दुनिया ही बदल गई। निकाह में हमें
ज़ेवरात के साथ-साथ शौक़त महल मेहर में मिला। वहीं हमारे सईद और सबा हुए। सब ठीक ठाक
था कि एक दिन हमीदुल्लाह खान बहादुर को दिल का दौरा पड़ा और बस एक झटके में ही
हमारी दुनिया में अंधेरा छा गया। हमारी तो समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या किया
जाय उस वक़्त सईद इंटर में था और सबा आठवें क्लास में। वो तो भला हो सईद के दोस्त का
जिसने उसे घोड़ों का फ़ार्म और क्लब हाउस खोलने की सलाह दी और हम लोग फिर शौक़त महल
से इस पहाड़ी वाली हवेली में आ गए। हवेली के पीछे ही पहाड़ी वाली ज़मीन पर क्लब हाउस
बना लिया था। तब से हम लोग यहीं रह रहे हैं"
"आपा आपके साथ भी वैसा ही हुआ जो हमारे साथ। आपको खान बहादुर
मिले और हमें राजा साहब इस तरह हम दोनों ही अच्छे लोगों के बीच हैं"
"ये बात तो है गौहर। जब ऊपरवाला मेहरबान हो तो सब ठीक हो
जाता है। देख न सबा को शिखा न मिली होती तो हमारी मुलाक़ात कैसे होती जो खुदा करता
है ठीक ही करता है"
ये सब बातें हो ही रही थी तभी सभी बच्चे क्लब हाउस से लौट कर आ गए। पास आते ही
सबा बोली,
"लो अम्मी हम तो दिखा लाये इनको अपना फार्म और क्लब हाउस। बस
कल से इनकी ट्रेनिंग शुरू"
शौक़त बेग़म ने कहा, "जिस
मक़सद से ये लोग आए हैं वह तो पूरा होना ही चाहिए"
"उसके लिये अम्मी मैं इन लोगों को अपने साथ ले जा रहा हूँ
पहले इनके कपड़े और बूट वगैरह तो घुड़सवारी के लिए इनके पास होने चाहिये। आप लोग भी
चलतीं तो अच्छा रहता" सईद बोला।
"एक काम करो तुम आज इन लोगों को ले जाओ, कल हम इन्हें अपने साथ लेकर शौक़त महल चलेंगे और फिर रात को
बाहर ही खाना पीना करके लौटेंगे” शौक़त बेग़म ने सईद से कहा।
"जैसी आपकी मर्ज़ी"
कथांश:19
सईद और सबा अनिरुद्ध और शिखा को लेकर भोपाल के पॉश मार्किट एमपी नगर में ले गए और वहाँ से दोनों के लिये हॉर्स राइडिंग किट ख़रीदी और लौटते समय बड़े
तालाब के किनारे-किनारे घुमाता हुआ रात को लगभग साढ़े आठ बजे शौक़त
मंजिल लौट आया।
सब लोगों ने मिल कर खाना खाया और फिर आपस में बातचीत की। शिखा और अनिरुद्ध ने
राजा साहब से फोन पर बात भी की और उन्हें शौक़त मंज़िल की बातें बताईं। राजा साहब ने
उसके बाद गौहर बेग़म से भी बात की और अपनी ओर से मुबारक़बाद दी कि उनकी बचपन की जो
बहन खो गई थी, बच्चों के
कारण उन्हें मिल गईं। जब गौहर बेग़म ने कहा, "आप आपा से बात करना चाहेंगे"
तो उन्होंने इतना ही कहा कि जब वे उनसे मिलेंगे तो दिल खोल कर बात करेंगे और
यह वादा भी किया कि बच्चों के वहाँ रहते वे दो एक रोज़ के लिये भोपाल आएंगे।
जब यह बात गौहर बेग़म ने सभी को बताई तो सबके चेहरे खुशी से खिल उठे। शौक़त बेग़म
को इस बात से बहुत खुशी हुई कि राजा साहब ने भोपाल आने का दावतनामा कुबूल फ़रमाया।
खाने के बाद जब सबा सबके लिये पान पेश कर रही थी तो सईद ने गौहर खाला जान से
एक फरमाइश की कि आपके गले की और ग़ज़ल अदायगी की बहुत तारीफ़ सुनी है तो आज एक ग़ज़ल हो
जाये। शौक़त बेग़म ने भी अपनी तरफ से जोर देकर कहा, "जब बेटा कह रहा है तो एक ग़ज़ल हो ही जाए"
साज़ तो नहीं था फिर भी गौहर बेग़म ने ग़ज़ल सुनाई जो सबके दिलों में उतर गई:
जब रात की तन्हाई दिल बन के धड़कती है
यादों के दरीचों में चिलमन सी सरकती है|
लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
यूँ याद तिरी शब भर सीने में सुलगती है|
यूँ प्यार नहीं छुपता पलकों के झुकाने से
आँखों के लिफ़ाफ़ों में तहरीर चमकती है|
ख़ुश-रंग परिंदों के लौट आने के
दिन आए
बिछड़े हुए मिलते हैं जब बर्फ़ पिघलती है|
शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है|
ग़ज़ल की तारीफ़ में सभी ने कुछ न कुछ कहा पर सईद ने पूछा,
"खाला जान ये ग़ज़ल आपकी खुद की लिखी हुई है"
गौहर बेग़म ने जवाब में कहा, "नहीं मियाँ, यह ग़ज़ल तो आपके शहर के ही मशहूर शायर बशीर बद्र जनाब की है हमने तो
बस इसे अपनी आवाज़ देने की कोशिश भर की है"
"आप मिलना चाहेंगी जनाब बशीर बद्र जनाब से"
"ज़हे नसीब, क्या ये हो सकता है?"
"आप चाहें और न मुमकिन हो, वो भी भोपाल में यह तो हो ही नहीं सकता। मैं इस शनीचर के
रोज़ के लिये उनको दावतनामा भेज कर आपकी मुलाकात मुक़र्रर करता हूँ"
देर रात तक महफ़िल सजी रही, जब सबकी आँखे नींद से बोझिल हने लगीं तो वे आराम करने के लिये गए।
कथांश:20
अगले दिन सुबह-सुबह घुड़सवारी की ट्रेनिंग शुरू हो गई।
सबसे पहले तो सईद ने कुँवर अनिरुद्ध और राजकुमारी शिखा की घोड़ों से मुलाक़ात कराई, उनके नाम, कामधाम के बारे में बताया और फिर यह बताया कि किसी भी जानवर पर सवारी करने के
पहले उसके बदन को सहलाया जाता है जिससे वह आपके और आप उसके करीब आ सकें। उसके बाद
दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए आप उसे उसकी मर्जी के खाना खिलाइये उसके करीब आइये उससे
कुछ प्यार भरी बातें कीजिये। जब वह आपको और आप उसे अच्छी तरह समझने लगे तो फिर
धीरे से उसकी रास पकड़ कर रिंग में लेकर आइये। अपना बायाँ पैर का पंजा ऐड़ में
फ़साइये और एक झटके में घोड़े की काठी पर बैठ जाइए। घोड़े की पीठ थपथपाइए, उससे कुछ बात करने की कोशिश कीजिये। जब आपको लगे सब ठीक है फिर धीरे से उसे
चलने के लिये कहिये।
इसके बाद सबा के साथ अनिरुद्ध और शिखा के साथ सईद
घोड़े पर बैठ साथ-साथ रिंग में चलने लगे। अनिरुद्ध से मज़ाक करते हुए सबा बोली, "ये अरबी घोड़ा बहादुर है जो कभी कभी अपने सवार को गिरा देता है इसलिये सँभल कर
ही रहियेगा मेरे राजकुमार साहब"
सबा की बात का कोई जवाब तो अनिरुद्ध ने नहीं दिया बस उसकी ओर भरी निगाहों से
देख कर अपने मन की बात कह दी। कुछ देर के बाद सबा अनिरुद्ध से बोली,
"अरे वाह आप तो बड़ी जल्दी ही सवारी करना सीख जाएंगे"
अब कुँवर से न रह गया तो उन्होंने भी पलट कर जवाब दे ही दिया,
"जब सिखाने वाला इतना माहिर हो तो सवारी करना हम सीख ही
जायेंगे"
"शुक्रिया मेरे राजकुमार"
"सबा तुम मुझे बार बार राजकुमार कह कर शर्मिंदा न करो, मुझे खुशी होगी कि तुम मुझे अनिरुद्ध ही कह कर पुकारो” कुँवर ने सबा से कहा।
"चलो आप कहते हो, राजकुमार न सही क्या मैं आपको 'राजा' कह कर बुला सकती हूँ"
"हे अभी हम कोई राजा वाजा नहीं हैं, तुम हमें खाली अनिरुद्ध कह कर ही बुलाओ”
"चलो आप नहीं मान रहे हो, वह आपकी मर्ज़ी, हम तो आपको कुँवर जी कह कर ही बुलाएँगे” सबा ने भी अपनी ज़िद पकड़ते हुए अपनी बात रखी।
इतने में अनिरुद्ध ने घोड़े को ऐड़ लगा कर रास अपनी ओर खींची तो बहादुर उन्हें
ले उड़ा। अनिरुद्ध को दूर जाते हुए सबा चिल्लाई, "सईद बहादुर कुँवर को लेकर भाग गया है कहीं उन्हें आगे जाकर
पटकनी न दे दे"
सईद बोला,
"तू चिंता मत कर मैं उनके पीछे-पीछे जाता हूँ तू शिखा के
घोड़े को सँभाल”
सईद ने दूसरा घोड़ा लिया और अनिरुद्ध के पीछे भाग लिया। इधर सबा ने शिखा के
घोड़े की रास अपने हाथ में पकड़ी और धीरे-धीरे शिखा को राइडिंग के गुर बताने लगी।
सबा ने शिखा से कहा, "तेरे भइय्या का आज ही टेस्ट हो जाएगा कि डरपोक हैं या बहादुर"
"मेरा भाई है वह भी राजकुमार, देख लेना बहादुर को काबू करके ही लौटेगा” शिखा ने सबा को उत्तर देते हुए कहा।
सईद अनिरुद्ध के पीछे पीछे अपने घोड़े को दौड़ा कर उनके बगल में जा पहुँचा था, उसे लगा कि
कहीं बहादुर अनिरुद्ध को पटकी न मार दे, पर ऐसी कोई बात नहीं हुई।
अनिरुद्ध बाकायदा बहादुर पर सवारी करके ही क्लब हाउस वापस लौटे।
अनिरुद्ध के सही सलामत वापस आ जाने पर सबा ने ताली बजा कर ख़ुशी जताई और
अनिरुद्ध से बोली, "वाह
मेरे कुँवर जी वाह"
अनिरुद्ध और शिखा ने घोड़ों के साथ तकरीबन दो घंटे की कवायद की। वे लोग बाद में
क्लब हाउस आ गए। वहाँ सभी लोगों ने नींबू पानी पिया और कुछ देर बाद चाय पी।
दोपहर होने के पहले ही ये लोग शौक़त मंज़िल लौट आए। कपड़े वग़ैरह बदल कर के घर
वालों के साथ लंच किया और फिर कुछ आराम। शाम को बाहर चलने का प्रोग्राम तो पहले ही
तय हो गया था इसलिये चार बजे के करीब दो गाड़ियों में सभी लोग शौक़त महल देखने के
लिए जा पहुँचे। एक कार में सबा, शिखा और अनिरुद्ध थे और दूसरी में सईद उसकी अम्मी और खाला जान गौहर थीं।
शौक़त महल मध्य प्रदेश के भोपाल शहर के इक़बाल मैदान के बीचों-बीच चौक क्षेत्र
के प्रवेश द्वार पर स्थित है ।
इस महल का निर्माण सन् 1830 ई में प्रथम महिला शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने कराया था। यह महल इस्लामिक और यूरोपियन
शैली का मिश्रित नमूना है। यहाँ पश्चिमी वास्तु और इस्लामी वास्तु का नायाब संगम
देखने को मिलता है। शौक़त
महल समन्वयवादी स्थापत्य का उत्कृष्ट उदाहरण है। इस महल का अभिकल्पन एक
फ़्रान्सीसी वास्तुविद ने किया था। यह महल लोगों की पुरातात्विक जिज्ञासा को जीवंत
कर देता है। इस महल में नवाब जहांगीर मोहम्मद ख़ान और उनकी बेगम नवाब सिकन्दर जहां
अपने शुरुआती दौर में रहे थे। उनके बाद शासिका बनने के पहले शाहजहां बेगम अपने
शौहर नवाब उमराव दूल्हा के साथ रहती थीं। शौक़त महल के सामने एक विशाल गुलाब
उद्यान हुआ करता था।
जब वे लोग गौहर महल देख कर निकले तो कुँवर ने सबा से उसके पास जाकर धीरे से
पूछा,
"एक बात बताओ तो सबा कि यहाँ की लड़कियाँ अपने मुँह पर ये
कपड़ा क्यों बाँधे रहती हैं?"
सबा ने भी छेड़खानी भरा जबाब दिया, "सही-सही बताऊँ या बस दिल रखने के लिये'"
"सही-सही बताओ'
जब से कुँवर भोपाल आये हैं सबा अपनी ओर से हर वो कोशिश कर रही थी जिससे वह
कुँवर के करीब ही नहीं और करीब दिखे, उसने कुँवर की खिचाईं करते हुए जवाब दिया,
"आप जैसों की निगाह से बचने के लिये, वो सब जानती हैं न, सबा आपके साथ जो है"
कथांश:21
शौक़त बेग़म शौक़त महल देखने के बाद सबको साथ लेकर गौहर महल आ गईं। गौहर महल
भोपाल शहर के बड़े तालाब के किनारे वीआईपी रोड शौकत महल के पास बड़ी झील के किनारे आज भी मजबूती से खड़ा है और हर आने वाले का दिल जीत लेता है।
गौहर महल में कदम रखते ही गौहर बेग़म का बचपना मानो लौट आया हो। वे कभी इधर तो
कभी उधर भागमभाग कर, कभी इस दरीचे से बड़ी झील को ताकने जातीं तो कभी किसी दूसरे
दरीचे से झाँकतीं। उनकी इन हरक़तों पर शौकत बेग़म ने पूछा, “गौहर तू ठीक तो है?”
"हाँ मैं बिल्कुल ठीक हूँ। आपा, न जाने मुझे यहाँ आकर ऐसा क्यों लग रहा है कि इस महल से
मेरा कोई पिछले जन्म का नाता है” गौहर बेग़म ने
जवाब दिया।
"तू पगला गई है, अब चुप चाप हमारे साथ रह और महल की खूबसूरती को निहार” इतना कह कर
शौकत बेग़म ने गौहर बेग़म का हाथ थामा और महल के उपरी हिस्से की और चल पड़ीं, गौहर महल
वास्तुकला का ख़ूबसूरत नमूना कुदसिया बेगम के वक़्त का है। इस तिमंजिले महल को
बनवाया था भोपाल रियासत की तत्कालीन शासिका नवाब कुदसिया बेगम ने 1820ईसवी में।
कुदसिया बेगम का नाम गौहर भी था इसलिए इस महल को 'गौहर महल' के नाम से जाना जाता है। यह महल भोपाल रियासत का पहला महल है। इस महल की
ख़ासियत यह है कि इसकी सजावट भारतीय और इस्लामिक वास्तुकला को मिलाकर की गई है। यह
महल हिंदू और मुग़ल गंगाजमुनी तहज़ीब का एक अद्भुत संगम है। इस महल में दीवान-ए-आम और दीवान-ए- ख़ास हैं। गौहर महल के आंतरिक भाग में नयनाभिराम फ़व्वारे
थे जो कालान्तर में नष्ट हो गये हैं। फ़व्वारों की हौज़ अब भी विद्यमान है। महल के
ऊपर के हिस्से में एक ऐसा कमरा है जिससे पूरे शहर का नज़ारा दिखता है और इसके दरवाज़ों पर कांच की नक्काशी की गई है। गौहर महल की दीवारों
पर लकड़ी के नक़्क़ाशीदार स्तंभ, वितान और मेहराबें हैं। स्तंभों पर आकृतियां और फूलपत्तियों का अंकन है।
आंतरिक हिस्से में बेगम का निवास था जिसकी खिड़कियों से बड़े तालाब का मनोरम दृश्य
दिखाई देता है।
भवन की दूसरी मंज़िल पर एक प्रसूतिगृह था, जिसकी दीवारों पर रंगीन चित्र बने थे। जिनको आज भी देखा जा
सकता है।
गौहर महल से निकलते निकलते शाम का धुंधलका होने लगा था। शौकत महल घूमतेघूमते
सभी लोग थक गए थे लिहाज़ा बड़ी झील के किनारे बैठ कर कुछ समय के लिए वहीं सुस्ताने लगे।
कुँवर और शिखा ने बड़े तालाब के किनारे बैठने के बाद सबा के साथ कुछ देर बोटिंग
का लुत्फ़ उठाया।
उसके बाद वे लोग ‘नूर-ए-सबाह’ देखने गए जो कि भोपाल के
सबसे खूबसूरत महलों में से एक था जिसे नवाब हामिद उल्लाह लहान ने अपने बड़ी बेटी के
लिए 1920 में बनवाया
था। इस सफेद रंग के आलीशान महल की रंगत देखनी हो तो इसे पूर्णमासी के दिन जब चाँद
आसमान में खिलखिला के हँस रहा हो तब इसे पूरे शबाब में देखा जा सकता है। सन 1983 में नादिर और यावर रशीद, जनरल ओबैदुल्लाह खान के पड़ पोते जो कि इस महल के मालिक थे, ने 2011 ई में 'जेहन नुमा पैलेस’ होटल खोलने के लिये एक जाने माने ग्रुप से इकरारनामा किया। तबसे आजतक जेहन
नुमा पैलेस अपने आप में भोपाल शहर और नवाबियत की कहानी कहता है। आज इसे भोपाल शहर
का अव्वल दर्ज़े का होटल माना जाता है।
शौक़त बेग़म को देखते ही जेहन नुमा होटल के स्टाफ ने बढ़ कर उनका इस्तकबाल किया
और उन्हें पूरी इज़्ज़त बख़्शते हुए एक बड़ी सी टेबल पर बैठने के लिये दरख़ास्त की।
शौक़त बेग़म और गौहर बेग़म टेबल के एक तरफ और उनके एक बगल में कुँवर बैठे और उनकी ठीक
बगल वाली सीट पर सबा जाकर बैठ गई इससे पहले कि कोई और बैठता। इन लोगों के सामने
वाली सीट पर सईद और राजकुमारी शिखा बैठ गए।
डिनर के दौरान सबा कुँवर के साथ छेड़खानी करती रही कभी यह कहते हुए कि ये भोपाल के खास नरगिसी क़बाब हैं जिन्हें जरूर
कुँवर जी चखना, तो कभी भेजा मटन फ्राई की तारीफ़ करती। कुँवर भी समझ रहे थे
कि सबा का रुझान उनकी ओर बढ़ता ही जा रहा है। कुँवर ने भी टेबल के नीचे हाथ कर सबा
की बाँह में चुटकी काटते हुए कहा, "लगता है कि भोपाल के मच्छर जरा ज्यादा ही शोख़ होते हैं जिनका खून मीठा होता है
उसे वे रात भर परेशान करते हैं”
शौक़त बेग़म ने कुँवर की बात पर एक वेटर को बुला के लोबान जला कर रखने के लिये
कहा। शौक़त बेग़म की बात पर शिखा सबा की ओर देख कर शैतानी भरी मुस्कुराहट में बोली,
"सबा, शौक़त मौसी जी ने मच्छरों का तो इंतज़ाम कर दिया है, तुझे कोई और
तो दिक्कत नहीं है”
सबा भी शिखा को शैतानी भरा जवाब देते हुए बोली, "काटने भी दे, कितना खून चूसेंगे कल सुबह तक पूरा हो जाएगा'
इसके बाद शिखा फिर से सईद से गुफ़्तगू करने लग गई। एक शानदार शाम गुजारने के बाद
वे सब देर रात शौक़त मंज़िल लौट आए।
कथांश:22
अनिरुद्ध और शिखा को भोपाल आये हुए तक़रीबन बीस दिन हो गए थे। हॉर्स राइडिंग
में कुँवर तो कुछ हद तक माहिर हो गए थे पर शिखा के बारे में ऐसा कुछ नहीं कहा जा
सकता था। वह अभी भी घुड़सवारी के गुर सीख ही रही थी।
एक दिन कांकर से मुखिया जी का फोन आया और उन्होंने गौहर बेग़म से बात करके
बताया कि राजा साहब दिल्ली पहुँच रहे हैं और कुँवर जी से कहिएगा कि वे भी सीधे
दिल्ली पहुँचे। दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के दफ़्तर में लोकसभा के इलेक्शन के
बारे में अहम मीटिंग है। गौहर बेग़म ने कुँवर से बात की और कुँवर पिताश्री की
आज्ञानुसार दिल्ली के लिए निकल गये।
दिल्ली में राजा साहब और कुँवर की मुलाक़ात आर पी सिंह से हुई जो एक मशहूर ब्रिटिश एयरक्राफ्ट कंपनी में कार्यरत थे
और भारत में उनके आवासी प्रतिनिधि भी थे।
आर पी सिंह बस्ती जिले की एक छोटी सी रियासत या यूँ कहें जमींदारी के मालिक थे, जिन्हें
दिल्ली की राजनीति की हलचल की अच्छी जानकारी थी। जब उनसे ऐसे ही कुँवर के भविष्य
को लेकर राजा साहब ने बातचीत की तो पता लगा कि हिंदुस्तान की राजनीति करवट लेने के
लिये तैयार हो रही है। पूर्वी पाकिस्तान में गृह युद्ध जैसे हालात बन रहे हैं इधर
कांग्रेस में भी बड़े परिवर्तन हो चुके हैं। राष्ट्रपति के चुनाव ने इशारा कर दिया था कि देश में आने वाले वक़्त में कांग्रेस की हैसियत बहुत
बड़ी होने वाली है और इसे कुछ अहम काम करने पड़ेंगे। कांग्रेस ने इस प्रयास के
अंतर्गत युवा शक्ति को जोड़ने का काम भी शुरू करते हुए कुँवर अनिरुद्ध सिंह को टिकट
देने का मन बना लिया है। मेरे विचार में कुँवर को यह चुनाव अवश्य लड़ना चाहिए इससे
अच्छा मौका फिर आगे नहीं मिलने वाला है।
दिल्ली में राजा साहब और कुँवर की मीटिंग कांग्रेस अध्यक्ष के साथ बहुत अच्छी
रही और उन्होंने राजा साहब से कहा, "जाइये और आप इलेक्शन लड़ने की तैयारी करिये, कुँवर अनिरुध्द सिंह की सीट पक्की है"
दो दिन बाद राजा साहब और कुँवर जब भोपाल पहुँचे तो राजा साहब का स्वागत शौक़त
मंज़िल में ऐसे किया गया जैसे किसी दामाद के पहली बार घर आने पर किया जाता है। शौक़त
मंज़िल के दरवाज़े से ही उन्हें बड़ी शानोशौकत के साथ घर के अंदर लाया गया।
हवेली के बीच वाले हिस्से के बड़े से ड्राइंग रूम में उनकी ख़ातिरदारी की गई।
वहीं उनकी मुलाक़ात शौक़त बेग़म से, बेटे सईद और बेटी सबा से कराई गई। शौक़त बेग़म ने राजा साहब से कहा,
"हमारे पास लफ्ज़ नहीं हैं कि हम किस तरह आपका शुक्रिया अदा
करें कि आपने भोपाल आने की तकलीफ की और आप हमारे गरीबखाने पर तशरीफ़ लाये, हम तहेदिल से आपके शुक्रगुज़ार हैं। हम इस बात के लिये
भी शुक्रगुज़ार हैं कि आपने हमारी गौहर बहन को अपना हमदर्द बनाया और अपनी बेग़म का
रुतबा दिया"
राजा साहब ने भी अपनी ओर से शौक़त बेग़म का इतने अच्छे इस्तकबाल के लिये
शुक्रिया अदा करते हुए कहा, "हमें भोपाल आकर बेहद सुकून मिला है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि हमारी बेग़म को
उनकी बिछड़ी हुई बहन मिल गईं। अब इस दुनिया में कम से कम हमारे अलावा उनका कोई तो
है जिसे वह अपना कह सकती हैं"
"जी शुक्रिया"
राजा साहब ने फिर सबा को अपने पास बुलाते हुए कहा, "इधर तो आओ बेटी। भगवान इतनी खूबसूरत बेटी सबको दे"
इसके बाद घर परिवार के लोगों ने कुँवर को एमपी के इलेक्शन में कांग्रेस का
टिकट मिल जाने पर बधाइयां पेश कीं और उम्मीद ज़ाहिर की कि वे खुदा के फ़ज़ल से
इलेक्शन में शर्तियाँ जीत हासिल करेंगे।
सबा से अपनी खुशी रोके नहीं रुक रही थी वह उठी और उसने कुँवर से हाथ मिलाते
हुए उन्हें मुबारक़बाद दी।
उसके बाद तो सब लोगों से एक-एक करके राजा साहब ने मुलाक़ात की और चाय नाश्ते के बाद वह गौहर बेग़म के साथ उनके
कमरे में आराम करने के लिए चले गए।
राजा साहब अगले दिन सईद के साथ हॉर्स राइडिंग के लिये निकले। कुँवर, शिखा तथा सबा भी उनके साथ थे। सईद सोच रहा था कि राजा साहब
ने शायद पहले घुड़सवारी नहीँ की होगी पर क्लब हाउस पहुँचते ही उन्होंने सईद से कहा,
"सईद बेटे तुम्हारा सबसे तेज तर्रार घोड़ा कौन सा है?"
सईद ने एक काले रंग के घोड़े की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा,
"हमारे अस्तबल का सबसे तेज तर्रार घोड़ा यही है जिसे हम लोग इसकी
तेजी की वजह से शेरखान कह कर बुलाते हैं"
राजा साहब ने सईद को एक तरफ हटाते हुए शेरखान की पीठ पर हाथ रखा और बाद में
उसके गर्दन के बालों में हाथ डाल कर सहलाया और फिर सईद से कहा,
"शेरखान को तैयार करो हम भी देखना चाहते हैं कि हमें
घुड़सवारी आती भी है या नहीं"
उसके बाद राजा साहब शेरखान पर सवार हुए और देखते ही देखते सब लोगों की आँखों से ओझल हो गए। जब
कुछ समय बाद वे लौट कर आये तो शेरखान उनके काबू में था। सईद से
रहा नहीं गया और बोल पड़ा, "अंकल आप तो बहुत अच्छे घुड़सवार हैं यह आपने कब सीखी?"
"जब हम कॉल्विन ताल्लुकेदार, लखनऊ में पढ़ते थे उस ज़माने में हम लोगों को घुड़सवारी सीखना
कंपल्सरी हुआ करता था” राजा साहब ने सईद की ओर मुड़ते हुए कहा।
उसके बाद कुँवर और शिखा ने अपने घुड़सवारी के करतब दिखलाये। शिखा की ओर देख कर
राजा साहब बोले,
"शिखा अभी तुम्हारी ट्रेनिंग पूरी तरह नहीं हुई है। कुँवर तो
फिर भी कुछ सीख गए हैं"
सईद की तरफ इशारा करते हुए शिकायत भरे लहज़े में शिखा बोली,
"सईद ने मुझे सिखाया ही नहीं है ये तो कुँवर को सिखाने के
लिए पीछे ही पड़े रहते थे"
राजा साहब ने सईद से कहा, "अरे भाई शिखा को भी अच्छी तरह ट्रेनिंग देकर एक्सपर्ट बना
दो"
"जी जनाब” कह कर सईद चुप
ही रह गया।
कथांश:23
शाम को जब राजा साहब वहीं भोपाल में थे, एक दिन ज़नाब बशीरबद्र सईद के दावतनामे पर शौक़त मंज़िल में
तशरीफ़ लाये। उस दिन शानदार महफ़िल सजी और गौहर बेग़म की चंद ग़ज़लें सुनकर ज़नाब
बशीरबद्र ने उनकी गायकी की खुले दिल से तारीफ़ की। बातों ही बातों में कांकर, तिलोई, अमेठी, टिकारी, खजूरगाँव, रायबरेली वगैरह के बारे में बातें होने लगीं तो जनाब बशीर
बद्र ने अपने कानपुर के दिनों की याद करते हुए बताया कि वे अपने नाना के यहाँ जाकर
खूब मौज करते थे।
गौहर बेग़म ने जनाब बशीर बद्र से बातचीत में अर्ज़ किया, "एक आधा ग़ज़ल हमको भी लिख कर दे दीजिए हम भी कुछ आपकी लिखी
हुई पढ़ लिया करेंगे। आपके ता ज़िंदगी शुक्रगुज़ार रहेंगे"
"जी बिल्कुल, बस आप खाना वग़ैरह लगवाइए और मैं राजा साहब के साथ बैठ कर
आपके लिये ग़ज़ल तैयार करता हूँ” बशीर बद्र ज़नाब ने शौक़त और गौहर बेग़म की ओर देखते हुए कहा।
कुछ देर बाद जब गौहर बेग़म लिविंग हाल में आईं तो जनाब बशीर बद्र ने उनको गजल
थमाई जिसे पढ़ कर गौहर बेग़म के मुँह से निकला, "वाह-वाह क्या चीज लिख दी आपने ये मेरी सबसे पसंदीदा ग़ज़ल बनी
रहेगी"
"ख़ुशबू की तरह आया वो तेज़ हवाओं में
माँगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
माँगा था जिसे हमने दिन रात दुआओं में
तुम छत
पे नहीं आये वो घर से नहीं निकला
ये चाँद बहुत लटका सावन की घटाओं में
ये चाँद बहुत लटका सावन की घटाओं में
इस शहर
में इक लड़की बिल्कुल है ग़ज़ल जैसी
फूलों की बदन वाली ख़ुशबू-सी अदाओं में
फूलों की बदन वाली ख़ुशबू-सी अदाओं में
दुनिया
की तरह वो भी हँसते हैं मुहब्बत पर
डूबे हुए रहते थे जो लोग वफ़ाओं में"
डूबे हुए रहते थे जो लोग वफ़ाओं में"
राजा साहब जब तलक भोपाल में रहे तो घर के सदस्य कभी यहाँ तो कभी वहाँ घूमते ही
रहे। शौक़त बेग़म ने एक दिन राजा साहब से पूछा कि अगर उनका मन हो तो सब लोग कुछ दिन
भोपाल की गर्मी से बचने के लिये पंचमढ़ी चले चलें। राजा साहब ने कहा,
"हमारे लिये तो भोपाल का मौसम ही बड़ा ख़ुशगवार और सुहाना है, जैसे यहाँ
छोटा और बड़ा ताल वैसे ही हमारे यहाँ माँ गंगे हैं पर बच्चों के साथ कुछ अच्छा वक़्त
गुजरेगा चलिये चले चलते हैं"
बस राजा साहब के हाँ कहने भर की देर थी सब लोग तैयार हुए और कार से होशंगाबाद होते
हुए पंचमढ़ी के लिये रवाना हो लिये। वहाँ पहुँच कर वे लोग वहाँ के अंग्रेजों के
वक़्त के 'हेरिटेज गोल्फ व्यू' में रुके। वहाँ के सुकून भरे मौसम और वादियों में घूमते हुए
सभी लोगों को बेहद अच्छा लगा।
राजा साहब जहाँ गौहर बेग़म और शौक़त बेग़म के साथ अधिक वक़्त बिताते तो दूसरी ओर
सबा और अनिरुद्ध तथा शिखा और सईद मिल कर कभी इधर तो कभी उधर घूमने निकल जाते।
पंचमढ़ी जो कि सतपुड़ा पर्वतों के बीच मध्य प्रदेश का एक मात्र हिल स्टेशन है
जहाँ गर्मियों के मौसम में अच्छी खासी रौनक रहती है। एक दिन शाम के वक़्त सबा ने
अनिरुद्ध से बात कर ‘प्रियदर्शिनी पॉइंट’ देखने का प्रोग्राम बनाया और साथ में शिखा और सईद को भी
अपने साथ ले कर निकल पड़े। रास्ते में सबा कुँवर से हर रोज़ की तरह छेड़खानी करती पर
कुँवर अपनी ओर से कुछ भी न कहते। जब रास्ते में सईद और शिखा कुछ आगे निकल गए तो
सबा ने कुँवर का हाथ पकड़ा और बोली, "कुँवर आप कैसे ठंडे इंसान हो, मैं आपके करीब आना चाह रही हूँ और एक आप हैं कि मुझसे दूरी
बनाए रहते हैं"
कुँवर जो अब तक सबा की हर कोशशि को अनदेखा कर दिया करते थे आज उसकी आँखों के
भीतर झाँकते हुए पिघल ही गये और सबा को अपनी बाहों में लेकर बोले,
"ऐसी बात नहीं है पर मुझे शौक़त मौसी से बड़ा डर लगता है कि
कहीं वह मुझे तुम्हारे साथ देख कर कुछ और ही मतलब न निकाल बैठें"
"कैसा मतलब?"
"वही कि हमारे बीच कुछ चल रहा है"
"फिर क्या होगा जो उन्हें पता लग जायेगा तो लग जाने दीजिए।
मैं तो आपको वाकई में बहुत चाहती ही हूँ"
"बहुत जल्दी में लगती हो"
"वह इसलिए कि कोई और बाज़ी न मार ले"
"इसका मतलब यह कि खुद पर भरोसा नहीं है"
"खुद पर तो है पर आपकी ओर से डर लगता है"
"मैं कोई शेर हूँ जो तुम्हें खा जाऊँगा। चलो छोड़ो भी, एक काम जो तुम
कर सकती हो वह यह करो कि तुम मुझे तुम कह कर पुकारा करो, तुम्हारे मुँह से ये आप-आप अच्छा नहीं लगता"
"नहीं, अल्लाह कसम यह हमसे न होगा, हम आपको कुँवर कह कर ही बुलायेंगे"
"इतना भी तकल्लुफ आख़िर क्यों"
"वह इसलिये कि हम आपका रुतबा किसी से कम नहीं करना चाहते हैं
आप हमारे लिये बेहद ख़ास हैं"
"नहीं मानोगी तो तुम्हें जो समझ में आये वह कह के बुलाओ"
"ठीक है इसका मतलब यह हुआ कि हमने अपनी जगह आपके दिल में बना ली है"
"अगर मैं कहूँ हाँ तो क्या करोगी?”
इतना सुनते ही सबा कुँवर के सीने से जा चिपकी। कुँवर ने भी उसे अपनी बाहों में
लेकर उसे आश्वस्त किया कि उसे चिंता करने की ज़रूरत नहीं, वह भी उसे उतना ही चाहते हैं जितना कि वह उन्हें।
उधर सईद और शिखा साथ-साथ चलते बहुत दूर निकल गए। जब शाम को सब लोग डिनर के
पहले मिले तो राजा साहब ने सबा से पूछा, "हमारे कुँवर के बारे में क्या ख़्याल है?"
"जी मैं कुछ समझी नहीं”
कथांश:24
"जी मैं कुछ समझी नहीं" सबा ने दोबारा राजा साहब की और देख कर कहा।
बीच में गौहर बेग़म बोल पड़ीं, "अरे सबा हुकम ये पूछ रहे हैं कि तुम्हें कुँवर अच्छे लगते हैं"
"जी उन्हें कौन नहीं चाहेगा, हम चीज ही क्या हैं उनके सामने?"
गौहर बेग़म इस पर बोल उठीं, "ये हुई न दिल वालों जैसी कोई बात"
राजा साहब गौहर बेग़म की बात के बाद कुछ न बोले पर अपने मन के भीतर ही भीतर
कुँवर की शख्शियत पर नाज़ करने लगे।
दो दिन पंचगढ़ी में बिताने के बाद सभी लोग भोपाल लौट आए। इधर कांकर से निकले
हुए बहुत दिन हो गए थे तो एक दिन राजा साहब ने गौहर बेग़म से पूछा,
"अब हम कांकर वापस जाना चाहेंगे आपका क्या ख़्याल है"
"आप बताइए"
"अभी शिखा की हॉर्स राइडिंग की ट्रेनिंग चल ही रही है तो हम
चाहेंगे कि आप अभी कुछ दिन और रुकें, कुँवर को हम अपने साथ ले जाएंगे क्योंकि हमें उनके इलेक्शन
की अब चिंता सताने लगी है"
गौहर बेग़म ने कहा, “आपका जो हुक़्म होगा हम वही करेंगे"
तीन चार दिन और रह कर राजा साहब और कुँवर भोपाल से लखनऊ के लिये निकल लिये।
जाते-जाते राजा साहब ने सबा से कहा, "आम का सीजन आने वाला है दशहरी तबियत से खानी है तो एक बार
शौक़त बेग़म को साथ लेकर वह गौहर बेग़म के साथ कांकर ज़रूर आये"
शौक़त बेग़म ने भी राजा साहब के भोपाल आने के लिये फिर से शुक्रिया किया और
कांकर आने का वायदा किया।
राजा साहब ने कांकर पहुँचते ही कुँवर के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी। आसपड़ोस
के ग्राम पंचायत के प्रधानों की मीटिंग बुलाई और उनसे कहा कि कुँवर अगला चुनाव
लड़ना चाह रहे हैं। जब सभी लोगों ने कुँवर के लिए काम करने का वायदा किया तब जाकर
राजा साहब को चैन आया। कुँवर और राजा साहब ने अलगअलग गाँवों का दौरा करना शुरू
किया। एकएक दिन में वे दोनों ही कम से कम बीस से पच्चीस गाँव जाते और लोगों से
मिलते जन संपर्क करते और व्यक्तिगत जान पहचान बढ़ाते, कुँवर की क्षमताओं का कोई ज्ञान पहले राजा साहब को भी नहीं
था पर उनकी ये याददाश्त देख कर वह बेहद खुश हुए कि जिस व्यक्ति से कुँवर एक बार
मिलते तो उसे अपना बना कर ही छोड़ते, साथ ही साथ यह कि वह हर व्यक्ति का नाम अपने मन में सँजो
लेते।
राजा साहब और कुँवर जब प्रचार के अपने कार्यक्रमों में व्यस्त थे तो इधर एक
दिन उन्हें खबर मिली कि कुँवर के नानाजी की तबियत बहुत खराब है। राजा साहब महारानी
करुणा देवी और कुँवर के साथ खजूरगाँव के लिये निकल पड़े। वहाँ पहुँचने पर डॉक्टर्स
ने उन्हें बताया कि राणा साहब की किडनी फेल हो चुकी है और फेफड़ों में भी पानी भर
गया है और उनकी हृदय गति भी ठीक नहीं है। राजा साहब के बार-बार पूछे जाने पर कि क्या उनको इलाज़ के लिए बाहर ले जाएं।
जो डॉक्टर इलाज़ कर रहे थे उन्होंने बताया कि राणा साहब को उन्होंने बहुत पहले ही
कहा था पर वह खजूरगांव छोड़ कर कहीं नहीं जाना चाहते थे और उन्होंने ज़िद पकड़ ली थी
कि वे अपनी अंतिम सांस खजूरगांव में ही लेंगे।
राणा साहब की हालत और बिगड़ती गई और कुछ दिनों में ही वह स्वर्ग सिधार गए। राजा
चंद्रचूड़ सिंह वहीं रुके रहे और महारानी के दुःख की इस घड़ी में वे उनके साथ बने
रहे। राणा साहब के अंतिम संस्कार के लिये मिलने आने वालों की भीड़ आने लगी।
महारानी के पिताश्री राणा साहब के अंतकाल की ख़बर सुन कर गौहर बेग़म शिखा को
लेकर कांकर आ गईं। वहाँ से वे सभी लोग रानी शारदा देवी के साथ राणा साहब के अंतिम
संस्कार और अन्य कार्यक्रमों में शामिल होने के लिए खजूरगांव पहुँच गए।
कुँवर अनिरुद्ध सिंह ने राणा साहब के मृत शरीर की दाग क्रिया कर अग्नि के
हवाले किया। राणा साहब की पुत्री एकमात्र महारानी करुणा देवी थीं इसलिए राणा की
पदवी कुँवर अनिरुद्ध सिंह को प्राप्त हुई और तेरहवीं के बाद बिरादरी भोज में
उन्हें गद्दीनशीं किया गया।
राजा साहब के परिवार का रुतबा खजूरगाँव रियासत के उनके परिवार में मिलने की
वजह से समाज में और बढ़ गया जिसका लाभ उन्हें अनिरुद्ध के इलेक्शन में मिलने वाला
था।
कथांश:25
कुछ दिनों बाद जब स्थिति सामान्य हो गई तो शौक़त बेग़म सबा के
साथ एक रोज़ कांकर आ गईं। कांकर में सबा को देख कर राजा साहब बहुत खुश हुए और बोले,
"आज ही दशहरी की ताजा-ताजा खेप आई है मन भर खाओ और यहाँ देहात के इलाक़े में मौज
करो"
"जी" कह कर सबा ने
राजा साहब का शुक्रिया अदा किया।
शौक़त बेग़म सबा को लेकर ऐश महल आ गईं और शिखा सूर्य महल अपनी माँ रानी शारदा
देवी जी के कक्ष में चली गई। शाम होने को आई और तब तक सबा की मुलाक़ात कुँवर से जब
नहीं हो पाई तो वह कुछ उदास हो गई। पहले तो उसे यह अच्छा नहीं लगा कि वह यहाँ ऐश
महल में थी और शिखा वहाँ सूर्य महल में।
शाम होते ही जैसे ही कुँवर अपने जन संपर्क कार्यक्रम के बाद महल लौटे और शिखा
से मुलाक़ात हुई तब शिखा ने उन्हें बताया, "भइया सबा भी आई है"
"कहाँ है?" कुँवर ने पूछा।
"ऐश महल में गौहर मौसी के पास"
"चल मेरे साथ उससे मिल कर आते हैं नहीं तो वह यहाँ आकर बोर
ही हो रही होगी"
"जी चलिये"
कुँवर ने अपनी गाड़ी निकाली और शीघ्र ही वे लोग ऐश महल आ पहुँचे। महल की चौपड़
में उन्हें ख़ानम बेग़म दिखीं और उनसे जानकारी कर वे दोनों गौहर बेग़म के ड्रॉइंग रूम
में उनका इंतजार करने लगे।
सबा अपनी खाला जान गौहर के पास बैठी हुई थी उसकी निगाह जब कुँवर पर पड़ी तो
उसकी जान में जान आई और बोली,
"कुँवर जी मैं आपको कह नहीं सकती कि मैं आज बहुत खुश हूँ क्योंकि मुझे यहाँ आकर
पता लगा है कि आप खजूरगाँव रियासत के राणा बन चुके हैं तो मैं अब आपको राणा जी कह
कर ही बुलाया करुँगी”
शिखा भी वहीं कुँवर के साथ खड़ी थी। उसे शरारत सूझ रही थी तो वह सबा को चिढ़ाने
के लिये बोल पड़ी, "ये
मेरा तो भाई है मैं तो इन्हें भाई ही कह कर बुलाती हूँ तेरा मन करे तो तू भी
इन्हें भइय्या कह कर बुला लिया कर"
"मारूँगी शिखा, भाई होंगे तेरे, मेरे तो ये राणा जी हैं"
"अरे सबा अभी से तूने तेरे-मेरे करना शुरू कर दिया, पता नहीं तू
आगे जाकर क्या करेगी?"
"कुछ नहीं करूँगी मैं तेरे साथ वही सुलूक़ करूँगी जो अभी करती
हूँ तू मेरी दोस्त है और दोस्त ही रहेगी"
कुँवर इन दोनों की छेड़छाड़ भरी बातें चुपचाप सुन रहे थे और मन ही मन खुश भी हो
रहे थे। दोनों के बीच आते हुए बोले, "बंद भी करो ये बेकार की बातें और काम की बात बताओ कि गौहर मौसी कहाँ है?"
"अंदर हैं खालाजान के पास"
"क्या हम उनसे मिल सकते हैं?"
"मज़ा आ गया इस 'हम में अब हुकम वाली खनक लगती है” यह कहते हुए
सबा फिर से कुँवर से छेड़खानी करने की कोशिश की, “आइये मेरे राणाजी, आइये न, अंदर आइये न"
सबा के पीछे-पीछे कुँवर और शिखा भी शौक़त बेग़म के जनानखाने में
मिलने चले आये।
( पार्ट I --- समाप्त )
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