Friday, March 27, 2015

जा पहुंचेंगे श्मशान.....



कलम से____

अबके कहां ऐसे खेत खलिहान
सिगरा जग हुआ है सुनसान
किसान हो गया है परेशान
हुआ न गेहूँ और न धान
मिट्टी में मिली शान
रीती आँखों से
देखता है रहता अब आसमान
न जाने अभी कितने और
जा पहुंचेंगे श्मशान.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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