Monday, March 23, 2015

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं




कलम से____

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं
शूल चुभके करते हैं क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

बरबस ही उस निशा की याद हो आई
कोशिशों के बावजूद सो पाया मैं नहीं !
जगा पाया न तुम्हें प्रयत्न सौ बार कर
नींद प्यारी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

तन बदन मेरा दर्द से कराहता रहा,
उठ हृदय से कण्ठ फिर घुटता रहा
निकट रह कर भी, तुम दूर बहुत दूर रहीं
नींद गहरी सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

आश्वस्त बहुत मैं था, जगा लूँगा तुम्हें
घाव अंत:स्थल के दिखा दूगाँ तुम्हें
थकी मांदी सी पड़ी, स्वप्न में खोई
बेहाल सी, सोती रहीं तुम रात भर !!

दूर तुम थीं नहीं, आती जाती सांस पर
जीवन की घुटन महसूस, मैं करता रहा
एक ज़िद्दी लट को, भाल से तुम्हारे मैं
हटाता रहा, पर सोती रहीं तुम रात भर !!

भाल से लटें हटाते रात पूरी कट गई
यामिनी न जाने आखिर कहां खो गई
चूमने लगीं पलकें भोर की पहली किरन
नींद अँखियों से तुम्हारी जाकर तब गई !!

नींद प्यारी थी तुम्हें, अंतस दव्दं को मेरे समझा नहीं
शूल चुभके करते है क्या, तुमने यह कभी जाना नहीं !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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