कलम से____
झोंपड़ी
के बाहर और भीतर
रात भर
बरसात होती रही
खाट कभी इधर
कभी ऊधर खींचीं
रजाई बिस्तर
सब हैं भीगे भीगे
फाल्गुन में यह कैसा
मौसम हो चला
ओलों से ड़र
लग रहा है
फसल है तैयार खड़ी
होगा क्या नज़र तूने
अगर टेड़ी करी
काम सब बिगड़ जाएंगे
रास्ते पर जो आए थे
खेल सब खत्म हो जाएंगे
कृपादृष्टि बनाए रहो
बस तुम और न बरसो
हमें चैन से रहने दो
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
झोंपड़ी
के बाहर और भीतर
रात भर
बरसात होती रही
खाट कभी इधर
कभी ऊधर खींचीं
रजाई बिस्तर
सब हैं भीगे भीगे
फाल्गुन में यह कैसा
मौसम हो चला
ओलों से ड़र
लग रहा है
फसल है तैयार खड़ी
होगा क्या नज़र तूने
अगर टेड़ी करी
काम सब बिगड़ जाएंगे
रास्ते पर जो आए थे
खेल सब खत्म हो जाएंगे
कृपादृष्टि बनाए रहो
बस तुम और न बरसो
हमें चैन से रहने दो
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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