Monday, March 30, 2015

ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।

ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।




कलम से____

छलकते हैं पैमाने होठों से लगाऊँ कैसे
ऐसे में अपनी यह गज़ल सुनाऊँ कैसे।


दर्द के साये में ज़िदंगी मनहूस सी लगती है
ज़ख्म से टीस उठे तो तुमको बुलाऊँ कैसे।

पढ़ सको तो पढ़लो ज़ज़्बात इन आँखों में
तेरे सामने मैं आँसू बहाऊँ तो बहाऊँ कैसे।

इश्क हो जो तुमसे गया है उसे छिपाऊँ कैसे
चले दूर गये हो तुम ये तुमको जताऊँ कैसे।

छलकते दर्द हैं इस दिल से छिपाऊँ कैसे
ये खामोश गज़ल सुनाऊँ तो सुनाऊँ कैसे।



©सुरेंद्रपालसिंह 2015

http://spsinghamaur.blogspot.in/



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