Saturday, June 27, 2015

चला गर गया मैं, कब लौटूँगा मालूम नहीं......

चला गर गया मैं,
कब लौटूँगा
मालूम नहीं......




कलम से____

खत़ लिखे हुये एक अरसा गुजर गया
कलम उठाई भर थी
झर झर के मेघ आ गये
कहने लगे भीग जाओ मेरे साथ
खत़ का क्या है फिर लिख लेना
चला गर गया मैं,
कब लौटूँगा
मालूम नहीं......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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