Sunday, June 7, 2015

दिल की सुनने को न मैं, न तू राजी है।



कलम से ------

फूल खिलते ही खरीदार आ जाते हैं, 
बागबां के दिल को ठेस दे जाते हैं, 
हर हसीन चेहरे की दास्तान निराली है,
दिल की सुनने को न मैं, न तू राजी है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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