कलम से____
आज फिर से तुम मुझे
जवां दिखने लगी हो
मैं थक सा गया हूँ
मन को और भाने लगी हो
समय की मार से
ढ़ीले पड़ रहे हैं क़दम मेरे
फिर भी तुम साथ
चल रही हो मेरे
आज फिर से तुम
जवां दिखने लगी हो
जीवन के इस मोड़ पर
तुम्हारी स्नेहिल छाँव में
बोझिल पलकों के तले
तुम और भी आज
सुंदर लग रही हो
सोचता हूँ
मिलूँगा एकांत में जब तुम्हें
सुनाऊंगा एक दिन
कृतघ्न युग की दास्तां
झेला है जो तुमने मेरे लिए
झुलसे हुए रिश्तों के बोझ को
कितना मुश्किल होता है ढ़ोना
यादें वो सब अंतस चीर गईं
चहुँ ओर हो रहा है जब अँधेरा
चेहरे पर पड़ती सूरज की रेखा
तुम्हें मेरे फिर से निकट कर गई
आज तुम मुझे फिर से ......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
आज फिर से तुम मुझे
जवां दिखने लगी हो
मैं थक सा गया हूँ
मन को और भाने लगी हो
समय की मार से
ढ़ीले पड़ रहे हैं क़दम मेरे
फिर भी तुम साथ
चल रही हो मेरे
आज फिर से तुम
जवां दिखने लगी हो
जीवन के इस मोड़ पर
तुम्हारी स्नेहिल छाँव में
बोझिल पलकों के तले
तुम और भी आज
सुंदर लग रही हो
सोचता हूँ
मिलूँगा एकांत में जब तुम्हें
सुनाऊंगा एक दिन
कृतघ्न युग की दास्तां
झेला है जो तुमने मेरे लिए
झुलसे हुए रिश्तों के बोझ को
कितना मुश्किल होता है ढ़ोना
यादें वो सब अंतस चीर गईं
चहुँ ओर हो रहा है जब अँधेरा
चेहरे पर पड़ती सूरज की रेखा
तुम्हें मेरे फिर से निकट कर गई
आज तुम मुझे फिर से ......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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