कलम से____
गुलों से महकते थे जो कभी
अब गमज़दे से लगते हैं
न जाने रोग कैसा है लगा
अब बुझे बुझे से दिखते हैं
मुरझाने को तो हर गुल
खिल के मुरझा जाता है
वक़्त की मार से पहले ही
जो मर जाये वो
मुर्दादिल कह लाता है
जीने को तो लोग
हर हाल में जीते हैं
कुछ मर मर के जीते हैं
कुछ हँस हँस के जीते हैं
किसी के ग़म को
अपना बना के जिओ
अपनेपन की बात दिखे
वरना तो ये ज़िन्दगी
खाली खाली सी दुकान लगे.......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
गुलों से महकते थे जो कभी
अब गमज़दे से लगते हैं
न जाने रोग कैसा है लगा
अब बुझे बुझे से दिखते हैं
मुरझाने को तो हर गुल
खिल के मुरझा जाता है
वक़्त की मार से पहले ही
जो मर जाये वो
मुर्दादिल कह लाता है
जीने को तो लोग
हर हाल में जीते हैं
कुछ मर मर के जीते हैं
कुछ हँस हँस के जीते हैं
किसी के ग़म को
अपना बना के जिओ
अपनेपन की बात दिखे
वरना तो ये ज़िन्दगी
खाली खाली सी दुकान लगे.......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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