कलम से____
20th May, 2015/Kaushambi
ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
ज़ख़्म नफरत के बीज ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे ज़ुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये दिन रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
हम ही बीच में रास्ता भूल गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
20th May, 2015/Kaushambi
ताउम्र काटा किये फसल ख़ून की
ज़ख़्म नफरत के बीज ऐसे बो गये।
बेगुनाह कैद में रहे ज़ुल्म किये बगैर
दाग़ किसके आके समंदर धो गये।
देख कर मज़बूरी इन्सान की
शाम से ही पहले परिन्दे सो गये।
ढूँढा किये दिन रात परीशां हो गये
मंजिल मिली तो रास्ते खो गये।
यादें अनगिनत साथ यूँही चल पड़ीं
हम ही बीच में रास्ता भूल गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://
No comments:
Post a Comment