कलम से....
18th May, 2015/Kaushambi
दिल्ली के लोग
मस्त अधिक होते हैं
खाते पीते रहते हैं
कुछ ज्यादा खाते है
थोड़ा ज्यादा ही पीते हैं।
जो खाते हैं
वह जग जाहिर हो जाता है
इधर-उधर नज़र आ ही जाता है
लाख छिपाने की कोशिश हो,
अमीरी भला कहीं छुपती है
वो तो दिख ही जाती है
जोर फैशन का रहता है
सोना-चाँदी यहाँ खूब बिकता है।
हम तो लखनवी हैं
नज़ाकत जहाँ बसती है
नाजुक से लोग यहाँ रहते हैं
यहाँ भी खाते पीते हैं
पर लिमिट में रहते हैं
हुस्न गली-गली रहता है
लोगों को दीवाना करे रहता है
लैला की उगंलिया मजनू की पसंलिया
कोई ऐसे ही थोड़े कहता है
कहते हैं
बेगम जब पीक निगलती थीं
तो गले में उतरता दिखता था
हाँ, अब उतना न सही फिर भी
हुस्न गली गली दिखता है।
दोस्तों, दिल्ली दिल वालों की रही है और रहेगी,
लखनऊ, अपने अंदाज और अदा के जानिब जाना जाता है, कुछ ऐसा है, वैसा ही रहेगा ।
मुश्किल होती है उनको जब कहना पड़ता है,
बाजारे हुस्न, अदब, नज़ाकत, नफ़ासत से रंगा लखनऊ है अपना
दिल्ली भी अपनी और दिल्ली का दिल भी अपना
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
18th May, 2015/Kaushambi
दिल्ली के लोग
मस्त अधिक होते हैं
खाते पीते रहते हैं
कुछ ज्यादा खाते है
थोड़ा ज्यादा ही पीते हैं।
जो खाते हैं
वह जग जाहिर हो जाता है
इधर-उधर नज़र आ ही जाता है
लाख छिपाने की कोशिश हो,
अमीरी भला कहीं छुपती है
वो तो दिख ही जाती है
जोर फैशन का रहता है
सोना-चाँदी यहाँ खूब बिकता है।
हम तो लखनवी हैं
नज़ाकत जहाँ बसती है
नाजुक से लोग यहाँ रहते हैं
यहाँ भी खाते पीते हैं
पर लिमिट में रहते हैं
हुस्न गली-गली रहता है
लोगों को दीवाना करे रहता है
लैला की उगंलिया मजनू की पसंलिया
कोई ऐसे ही थोड़े कहता है
कहते हैं
बेगम जब पीक निगलती थीं
तो गले में उतरता दिखता था
हाँ, अब उतना न सही फिर भी
हुस्न गली गली दिखता है।
दोस्तों, दिल्ली दिल वालों की रही है और रहेगी,
लखनऊ, अपने अंदाज और अदा के जानिब जाना जाता है, कुछ ऐसा है, वैसा ही रहेगा ।
मुश्किल होती है उनको जब कहना पड़ता है,
बाजारे हुस्न, अदब, नज़ाकत, नफ़ासत से रंगा लखनऊ है अपना
दिल्ली भी अपनी और दिल्ली का दिल भी अपना
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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