Tuesday, May 5, 2015

गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !


गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो
नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !



कलम से____

2nd May, 2015/Kaushambi

गहन अंधेरे हैं बहुत चरागों का पता दे दो

नजर कुछ भी आता नहीं नज़ारों का पता दे दो !

चुप्पी तेरी बरदाश्त अब होती नहीं है
भटका हूँ बहुत मेरे सवालों के जबाब दे दो !

रंग देखे हैं खूब फिजाओं में पलाशों में
खुशबू की चाहत है गुलाबों का पता दे दो !

न रोको परिन्दों को खुले अम्बर में उड़ने से
पर कटे हैं तो क्या उनकी हसरतों को उड़ान भरने से मत रोको !

बिना खिड़की के बंद कमरों में ए रहने वालो
शहर की तंग गलियों को हवाओं का पता दे दो !

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

http://spsinghamaur.blogspot.in/

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