कलम से____
कैसी अजीब फितरत है इन्सान की
कभी खराब कभी भली लगती है धूप भी
मौसमी फितरत के यह रंग निराले हैं
कभी बरसात तो कभी धूप के लाले हैं
हम भी देखो कितने नसीब वाले हैं
गरमी सरदी बरसात से भरे परनाले हैं।
मेरी प्रार्थना में प्रभु तुम हो
तुम ही रखवाले हो
तुम ही तारणहार हो
ध्यान धरो चहुँओर हुआ हा हा कार है
बरस जाओ बरस बरस कर तब जाओ।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
कैसी अजीब फितरत है इन्सान की
कभी खराब कभी भली लगती है धूप भी
मौसमी फितरत के यह रंग निराले हैं
कभी बरसात तो कभी धूप के लाले हैं
हम भी देखो कितने नसीब वाले हैं
गरमी सरदी बरसात से भरे परनाले हैं।
मेरी प्रार्थना में प्रभु तुम हो
तुम ही रखवाले हो
तुम ही तारणहार हो
ध्यान धरो चहुँओर हुआ हा हा कार है
बरस जाओ बरस बरस कर तब जाओ।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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