कलम से____
हाज़िरी अभी भी कम है
मोह रज़ाई का छूटा नहीं है
आती जाती सरदी से
लोगां भीतर घर में ही हैं
दिन तीन चार और लगेंगे
हाज़िरी पार्क में तभी बढ़ेगी
दीन दुनियां तबतक ऐसे ही चलेगी....
भगवान के यहाँ भी भीड़ में
कुछ देर और लगेगी
फूल चढ़ाने वालों की कमी
उसे भी खटकेगी
पत्थरदिल देवता की आँख
फिर भी न पिघलेगी
भक्तों की भीड़ लगी रहेगी....
अंधों को भी कोई
समझा पाया तम का
होता है कैसा साया
यह तो सूरज है जो
प्रकाश लाता है
जीवन सबका महका जाता है
अंतस की पीर न कोई
समझा है और न कोई समझेगा
शीष मेरा भी व्यर्थ न झुकेगा ....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
हाज़िरी अभी भी कम है
मोह रज़ाई का छूटा नहीं है
आती जाती सरदी से
लोगां भीतर घर में ही हैं
दिन तीन चार और लगेंगे
हाज़िरी पार्क में तभी बढ़ेगी
दीन दुनियां तबतक ऐसे ही चलेगी....
भगवान के यहाँ भी भीड़ में
कुछ देर और लगेगी
फूल चढ़ाने वालों की कमी
उसे भी खटकेगी
पत्थरदिल देवता की आँख
फिर भी न पिघलेगी
भक्तों की भीड़ लगी रहेगी....
अंधों को भी कोई
समझा पाया तम का
होता है कैसा साया
यह तो सूरज है जो
प्रकाश लाता है
जीवन सबका महका जाता है
अंतस की पीर न कोई
समझा है और न कोई समझेगा
शीष मेरा भी व्यर्थ न झुकेगा ....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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