कलम से____
सूरज की चमक से
आँखे चुधिंया गईं हैं
दूर है बहुत
पर
आज अच्छा लगता है
बदन सिकता हुआ
बसंती ब्यार में
महका महका सा लगता है
आओ बैठो साथ मेरे
पल दो पल
यह मौके हर रोज़ नहीं मिलते
जब यह धूप सुहानी सी लगे
चेहरे धूप में ऐसे न कभी दिखेंगे
धूप से ढ़क कर इससे बचेंगे
काश मौसम के मंसूबे बदल जाएं
बसंती धूप की दोपहरी
कुछ दिनों के लिए ठहर जाए..
कैसी अजीब फितरत है इन्सान की
कभी खराब कभी भली लगती है धूप भी
मौसमी फितरत के यह रंग निराले हैं
कभी बरसात तो कभी धूप के लाले हैं
हम भी देखो कितने नसीब वाले हैं
गरमी सरदी बरसात से भरे परनाले हैं।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
सूरज की चमक से
आँखे चुधिंया गईं हैं
दूर है बहुत
पर
आज अच्छा लगता है
बदन सिकता हुआ
बसंती ब्यार में
महका महका सा लगता है
आओ बैठो साथ मेरे
पल दो पल
यह मौके हर रोज़ नहीं मिलते
जब यह धूप सुहानी सी लगे
चेहरे धूप में ऐसे न कभी दिखेंगे
धूप से ढ़क कर इससे बचेंगे
काश मौसम के मंसूबे बदल जाएं
बसंती धूप की दोपहरी
कुछ दिनों के लिए ठहर जाए..
कैसी अजीब फितरत है इन्सान की
कभी खराब कभी भली लगती है धूप भी
मौसमी फितरत के यह रंग निराले हैं
कभी बरसात तो कभी धूप के लाले हैं
हम भी देखो कितने नसीब वाले हैं
गरमी सरदी बरसात से भरे परनाले हैं।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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