Monday, February 16, 2015

कहा उससे, मैंने भी बहारें देखी है


कलम से____

पतझड़ की हवा कुछ ऐसी चली
मैं तो खाली खाली सा हो गया
साथ में है जो यहाँ पेड़ खड़ा
हरा भरा मुस्कराता रह गया।

कहा उससे,
मैंने भी बहारें देखी है
चंद रोज़ का करो इतंज़ार
ऋतु बसंत मुझ पर भी
मेहरबान होने वाली है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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