Wednesday, February 18, 2015

यह पलाश रंग बदलता रहता है होलिकोत्सव के यह आसपास।


कलम से____

मौसम न मारीं हैं अबके
उल्टी पलटी अनेक
कभी सर्दी कभी लगे गर्मी
पर निश्चिंत रहो
खिलेंगे पलाश अनेक
आने तो दो हवाओं
को रंगत में
बिखरने तो दो
होली के रंग
गालों पर
गोरी के लगने तो दो
इंतजार इतंजार
बस कुछ और करो।

हमारे घर की खिड़की
से दिखता यह पलाश
रंग बदलता रहता है
होलिकोत्सव के यह आसपास।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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