Tuesday, February 24, 2015

अब तो आजा कन्हाई अखिंयाँ पिरान लगीं है



कलम से____

अगंड़ाई फिर से ली
मौसम ने
कोहरे की चादर है छाई
उनकी सुरितया आज भी
नज़र न आई
छिपा छिपी का खेल
है तुमने जो खेला
राधे ढूँढे तुमको
रास रचैया
कैसा है यह मेला?

अब तो आजा कन्हाई
अखिंयाँ पिरान लगीं है
सखियों संग राधे पुकारे
गलियाँ तुझ बिन सूनी पड़ी हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

No comments:

Post a Comment