कलम से____
अगंड़ाई फिर से ली
मौसम ने
कोहरे की चादर है छाई
उनकी सुरितया आज भी
नज़र न आई
छिपा छिपी का खेल
है तुमने जो खेला
राधे ढूँढे तुमको
रास रचैया
कैसा है यह मेला?
अब तो आजा कन्हाई
अखिंयाँ पिरान लगीं है
सखियों संग राधे पुकारे
गलियाँ तुझ बिन सूनी पड़ी हैं।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
अगंड़ाई फिर से ली
मौसम ने
कोहरे की चादर है छाई
उनकी सुरितया आज भी
नज़र न आई
छिपा छिपी का खेल
है तुमने जो खेला
राधे ढूँढे तुमको
रास रचैया
कैसा है यह मेला?
अब तो आजा कन्हाई
अखिंयाँ पिरान लगीं है
सखियों संग राधे पुकारे
गलियाँ तुझ बिन सूनी पड़ी हैं।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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