कलम से____
अभी अभी दिल से है निकली।
गुज़री रात
बदरी एक पिया से बिछड़ क्या गई
अखिंयों से दर्द दिल का कह गई
आगंन की तुलसी को पुनर्जीवित कर गई
भोर से ही खोज में था मैं लगा
पाती एक शाख से अलग हो,
बात अपनी कह गई।
पतझर के मौसम में जो मैं गई
फिर मिलूँगी नये परिधान में
विरह की घड़ी को बीत जाने दो
कान में मेरे आकर वो कह गई
बात कुछ यह कह गई।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
अभी अभी दिल से है निकली।
गुज़री रात
बदरी एक पिया से बिछड़ क्या गई
अखिंयों से दर्द दिल का कह गई
आगंन की तुलसी को पुनर्जीवित कर गई
भोर से ही खोज में था मैं लगा
पाती एक शाख से अलग हो,
बात अपनी कह गई।
पतझर के मौसम में जो मैं गई
फिर मिलूँगी नये परिधान में
विरह की घड़ी को बीत जाने दो
कान में मेरे आकर वो कह गई
बात कुछ यह कह गई।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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