On this friendship day:
आज सुबह की चाय पीते हुये कुछ इस तरह उनकी याद आई........
बाबूजी, उस समय लगभग 86 वर्ष के हो गए थे। चलते फिरते थे और उन दिनों मैं हमारे ही पास कौशांबी में आए हुए थे। वैसे तो वो बहुत खुश रहते थे, हमारे पास। पर दो कष्ट हमेशा उनको सताते थे। एक तो आसपास उठने बैठने वालों की सत्य कहूँ तो चमचों की कमी( गांव में कोई न कोई सेवा में लगा रहता था) और दूसरा यह कि घर छंटवे मन्ज़िल पर था। उनको लिफ्ट से आने जाने में उलझन लगती थी। हमेशा कहते थे कि मुझे यहां ऐसे लगता है जैसे कि औरंगजेब ने एक शाहजहां को मुस्समन बुर्ज में कैद कर दिया हो।
उनको शाम को मैं अपने साथ घुमाने ले जाता था पास के पार्क में। वहाँ बैठ कर पुरानी पुरानी बातें करने में उन्हें अच्छा लगता था। एक दिन, मैं उनको सीधे सड़क पर कुछ दूर ले गया। बीच में एक जगह वह रुक गये और कुछ देर खड़े रहे, मुझे लगा आज कुछ अधिक ही सैर होगई, थक गये होंगे। रात को मेरी धर्मपत्नी रमा सिंह ने गर्म तेल पाँव के तलवों में लगा के पैर दबा दिए तो उन्हें बहुत अच्छा लगा।आँख नम हो चली न जाने किसकी याद उनको आई होगी।
अब जब धीरे धीरे ही सही हमारी उम्र भी सरकती जा रही है तो ऐसी बातें अक्सर याद आने लगीं है। जाने अनजाने में ही सही पर हर व्यक्ति का आचार व्यवहार उम्र के साथ अपने माता पिता जैसा होने लगता है। यह बदलाव स्वतः ही होने लगता है और पता भी नहीं लगता है।
क्या खूब अल्फाज़ हैं यह.....
"वो एक तुम्हीं तो थे,
जो पास मेरे बैठे थे,
न जाने ये कौन था,
मेरी रूह को छूकर अभी गुज़रा है ..........."
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
आज सुबह की चाय पीते हुये कुछ इस तरह उनकी याद आई........
बाबूजी, उस समय लगभग 86 वर्ष के हो गए थे। चलते फिरते थे और उन दिनों मैं हमारे ही पास कौशांबी में आए हुए थे। वैसे तो वो बहुत खुश रहते थे, हमारे पास। पर दो कष्ट हमेशा उनको सताते थे। एक तो आसपास उठने बैठने वालों की सत्य कहूँ तो चमचों की कमी( गांव में कोई न कोई सेवा में लगा रहता था) और दूसरा यह कि घर छंटवे मन्ज़िल पर था। उनको लिफ्ट से आने जाने में उलझन लगती थी। हमेशा कहते थे कि मुझे यहां ऐसे लगता है जैसे कि औरंगजेब ने एक शाहजहां को मुस्समन बुर्ज में कैद कर दिया हो।
उनको शाम को मैं अपने साथ घुमाने ले जाता था पास के पार्क में। वहाँ बैठ कर पुरानी पुरानी बातें करने में उन्हें अच्छा लगता था। एक दिन, मैं उनको सीधे सड़क पर कुछ दूर ले गया। बीच में एक जगह वह रुक गये और कुछ देर खड़े रहे, मुझे लगा आज कुछ अधिक ही सैर होगई, थक गये होंगे। रात को मेरी धर्मपत्नी रमा सिंह ने गर्म तेल पाँव के तलवों में लगा के पैर दबा दिए तो उन्हें बहुत अच्छा लगा।आँख नम हो चली न जाने किसकी याद उनको आई होगी।
अब जब धीरे धीरे ही सही हमारी उम्र भी सरकती जा रही है तो ऐसी बातें अक्सर याद आने लगीं है। जाने अनजाने में ही सही पर हर व्यक्ति का आचार व्यवहार उम्र के साथ अपने माता पिता जैसा होने लगता है। यह बदलाव स्वतः ही होने लगता है और पता भी नहीं लगता है।
क्या खूब अल्फाज़ हैं यह.....
"वो एक तुम्हीं तो थे,
जो पास मेरे बैठे थे,
न जाने ये कौन था,
मेरी रूह को छूकर अभी गुज़रा है ..........."
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://
— with Puneet Chowdhary.
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