कुछ कहीं, कुछ अनकही !
Monday, August 24, 2015
सो रहा है हमवतन यहाँ कोई
सो रहा है हमवतन यहाँ कोई
न बोलता है न बोलती है रूह उसकी
न खटखटाओ इन दरो-दीवारों को
दर्ज हैं यहाँ बेइन्तहा दर्द की दरारें.......
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