Wednesday, August 26, 2015

निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े!

चाहती हूँ काश मुझे कोई ऐसा मिले
मन जिससे बार बार मिलने को करे
मथ ड़ाले मेरे भीतर के समंदर को
निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े!






कलम से____

कैसा होता है मन सुन्दरता का मानसरोवर
कैसा होता है तन सुन्दरता का शिखर
चाहती हूँ काश मुझे कोई ऐसा मिले
मन जिससे बार बार मिलने को करे
मथ ड़ाले मेरे भीतर के समंदर को
निकाल ले मणिरत्नम हैं जो वहाँ पड़े

लंबे अरसे से तलाश है मुझको
मुझे एक शक्सियत ऐसी मिले
देखते ही जिसे मुझे कुछ ऐसा लगे
मिट गए सब पाप इस जीवन के
कट गए हों सब बंधन जैसे
मिल गया हो मोक्ष इसी काया में

इसी आस में जीवन चले
चाहती हूँ, काश मुझे कोई ऐसा मिले........


©सुरेंद्रपालसिंह 2015


No comments:

Post a Comment