कलम से____
कितना करीब का
रिश्ता था मेरा तेरा
गर्म हवा कुछ ऐसी चली
फूल नाजुक से थे सूख गए
कुछ तुमने उठाये
कुछ हमने उठाये
किताबों में रख के
हम दोनों भूल गए
गिर जातीं थीं जब
किताबें बुकशैल्फ से
उठाने में न जाने
कितनी बार सिर
हमारे टकरा गए
"सारी" कहके लगता था
गुनाह सारे धुल गए
फिर वहीं से दासंता
शुरू क्या हुई
जब जब वो सूखे फूल
किताबों में मिले
तार मन के झंकृत कर गए
रास्ते तुम्हारे अलग
हमारे अलग हो गए
भूलीबिसरी यादों के
सहारे ही हम यूँही
भवसागर उतर गए .......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
कितना करीब का
रिश्ता था मेरा तेरा
गर्म हवा कुछ ऐसी चली
फूल नाजुक से थे सूख गए
कुछ तुमने उठाये
कुछ हमने उठाये
किताबों में रख के
हम दोनों भूल गए
गिर जातीं थीं जब
किताबें बुकशैल्फ से
उठाने में न जाने
कितनी बार सिर
हमारे टकरा गए
"सारी" कहके लगता था
गुनाह सारे धुल गए
फिर वहीं से दासंता
शुरू क्या हुई
जब जब वो सूखे फूल
किताबों में मिले
तार मन के झंकृत कर गए
रास्ते तुम्हारे अलग
हमारे अलग हो गए
भूलीबिसरी यादों के
सहारे ही हम यूँही
भवसागर उतर गए .......
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://
No comments:
Post a Comment