कलम से____
डिबिया में किया बंद है एक धूप का गोला
मेरा मन होगा तब, मैं खोलूँगा !
आसमान जब नीचे उतरेगा
तब ही अपने पर, मैं खोलूँगा !
पगडंडी ओ गाँव की तू लगती है अपनी सी
पदचापों के गीत सुनाना तुम, मैं सुन लूँगा !
बीहड़ जंगल करीब से देखे हैं बहुतेरे
नीरवता उनकी कांधों पर, मैं ढ़ो लूँगा।
नन्हा बिरवा तुलसी का एक
अपने मन के आँगन में, मैं बो लूँगा !
जब राह में मिल जाएंगे राम मेरे
पग उनके पखार मैं, जल पी लूँगा !
प्रबल ज्वार प्रेम का उमड़ पड़ा है
तटबंध संभालो अब, मैं लव खोलूँगा !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
डिबिया में किया बंद है एक धूप का गोला
मेरा मन होगा तब, मैं खोलूँगा !
आसमान जब नीचे उतरेगा
तब ही अपने पर, मैं खोलूँगा !
पगडंडी ओ गाँव की तू लगती है अपनी सी
पदचापों के गीत सुनाना तुम, मैं सुन लूँगा !
बीहड़ जंगल करीब से देखे हैं बहुतेरे
नीरवता उनकी कांधों पर, मैं ढ़ो लूँगा।
नन्हा बिरवा तुलसी का एक
अपने मन के आँगन में, मैं बो लूँगा !
जब राह में मिल जाएंगे राम मेरे
पग उनके पखार मैं, जल पी लूँगा !
प्रबल ज्वार प्रेम का उमड़ पड़ा है
तटबंध संभालो अब, मैं लव खोलूँगा !
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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