कलम से____
कभी पास बैठ कर तो देखो
फूल कैसे है खिलता
जब है खिलता
तो कैसे है महकता
चुपके चुपके वो
अपनी व्यथा है कहता
जब वो है चटकता
खिलखिला के है हँसता
कभी वो बेकरारी से
इंतजार किसी का है करता
कभी वो किसी भँवरे के
राह देखा है करता
कभी वो बागँवा की राह है तकता
कभी वो फूल चुनने वाले का
इंतजार करता है रहता
कभी वो मुरझा के
बिखरने की चाह है रखता
फूल है इसलिए वो हर किसी को
खुश करने की कोशिश में लगा है रहता
कांटों में खिलके भी मुस्कुराता है रहता ....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
कभी पास बैठ कर तो देखो
फूल कैसे है खिलता
जब है खिलता
तो कैसे है महकता
चुपके चुपके वो
अपनी व्यथा है कहता
जब वो है चटकता
खिलखिला के है हँसता
कभी वो बेकरारी से
इंतजार किसी का है करता
कभी वो किसी भँवरे के
राह देखा है करता
कभी वो बागँवा की राह है तकता
कभी वो फूल चुनने वाले का
इंतजार करता है रहता
कभी वो मुरझा के
बिखरने की चाह है रखता
फूल है इसलिए वो हर किसी को
खुश करने की कोशिश में लगा है रहता
कांटों में खिलके भी मुस्कुराता है रहता ....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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