कलम से ____
मैं ठहरा गँवार इसी जगह खड़ा रहा
तुम थे तेज तर्रार बाहर जा बड़े हुए।
भारत माता के चरणों की रज मैं लेता रहा
तुम अमरीका में ज्ञान ध्यान में लगे रहे।
मेरी भाग्य रेखा में था बैलों का इक जोड़ा
संपत्ति और मायाजाल में तुम उलझे रहे।
मैं बैठा इक मंदिर नतमस्तक भगवान समक्ष
तुम वहाँ संसार बसा गुणगान दूसरों का करते रहे।
खेतों में जब लहलहाती है फसल, आखँ मेरी खुशी से छलक जाती है
धरती माँ की याद जब जब आती है , आखँ तुम्हारी भी भर आती है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
मैं ठहरा गँवार इसी जगह खड़ा रहा
तुम थे तेज तर्रार बाहर जा बड़े हुए।
भारत माता के चरणों की रज मैं लेता रहा
तुम अमरीका में ज्ञान ध्यान में लगे रहे।
मेरी भाग्य रेखा में था बैलों का इक जोड़ा
संपत्ति और मायाजाल में तुम उलझे रहे।
मैं बैठा इक मंदिर नतमस्तक भगवान समक्ष
तुम वहाँ संसार बसा गुणगान दूसरों का करते रहे।
खेतों में जब लहलहाती है फसल, आखँ मेरी खुशी से छलक जाती है
धरती माँ की याद जब जब आती है , आखँ तुम्हारी भी भर आती है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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