Monday, August 24, 2015

सूत्रधार कौन?





सूत्रधार कौन?

नाटक के सारे पात्र
नर नारी मिल कर
पत्थरों में आत्मा के संचार का प्रयास हैं करते
फिर भी नदियाँ रोती हैं
समुद्र हुंकार नहीं भरते
शब्द बासी नहीं पड़ते
प्रेम मुक्त रहता संदेह के दायरों से
ख्वाब हुकूमतों के मोहताज़ नहीं होते
बुलबुले फूटने के लिए जन्म नहीं लेते
धरा की हलचल और प्रकृति की भाषा
अनचाही वस्तुओं में शरीक नहीं होती
एकाकीपन के सारे हौसले पस्त नहीं होते
नाटक के सभी पात्र गर सजीव होते
मृत प्रायः हैं सभी समाप्ति की ओर
अपरिभाषित बंधनों से दूर बहुत दूर.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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