कलम से____
उड़ उड़ के थक जाता हूँ
आसमान के तारों को
हाथ नहीं लगा पाता हूँ
आकाश दूत को
साथ नहीं ला पाता हूँ
निराश हो बैठना फितरत है मेरी नहीं
सांस भर फिर गगन में उडान भरता हूँ
सोच कर अबके जाऊँगा
कुछ ऐसा कर जाऊँगा
नाज़ करेगी दुनियाँ
काम कुछ ऐसा कर पाऊँगा...
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
उड़ उड़ के थक जाता हूँ
आसमान के तारों को
हाथ नहीं लगा पाता हूँ
आकाश दूत को
साथ नहीं ला पाता हूँ
निराश हो बैठना फितरत है मेरी नहीं
सांस भर फिर गगन में उडान भरता हूँ
सोच कर अबके जाऊँगा
कुछ ऐसा कर जाऊँगा
नाज़ करेगी दुनियाँ
काम कुछ ऐसा कर पाऊँगा...
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://
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