Sunday, July 12, 2015

उड़ उड़ के थक जाता हूँ




कलम से____

उड़ उड़ के थक जाता हूँ
आसमान के तारों को 
हाथ नहीं लगा पाता हूँ 
आकाश दूत को
साथ नहीं ला पाता हूँ
निराश हो बैठना फितरत है मेरी नहीं
सांस भर फिर गगन में उडान भरता हूँ
सोच कर अबके जाऊँगा
कुछ ऐसा कर जाऊँगा
नाज़ करेगी दुनियाँ
काम कुछ ऐसा कर पाऊँगा...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/

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