Smart City Jhansi
Smart Cities in UP(India): Jhansi
झांसी के बारे में मुझे हमेशा एक बात याद आती है जो कभी बचपन में बाबूजी ने एक बार इसी शहर में बताई थी। उन्होंने बताया था कि झांसी के बाद रेल से चलने पर पहले उत्तर प्रदेश फिर मध्य प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश आते हैं और वैसे भी यह क्षेत्र बुंदेलखंड का हिस्सा है। जब मध्य प्रदेश ने 1956 रियासतों के विलय अपना दावा झांसी के ऊपर पेश किया तब भारत के गृहमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत जी हुआ करते थे। पंत जी ने नेहरू जी से साफ शब्दों में कह दिया कि झांसी उत्तर प्रदेश की नाक है उसको हम कभी भी उत्तर प्रदेश से अलग नहीं होने देंगे।
झांसी का गौरवशाली इतिहास है जो हमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता रहता है। कृषि के क्षेत्र में असीमित संभावना होने के बावजूद जल संसाधनों की कमी के चलते यह इलाका बहुत पिछड गया है।
प्रदेश सरकार को यदाकदा जब इस क्षेत्र की याद आ जाती है तो एक दो योजनाओं का उद्घाटन हो जाता है। वरना यह क्षेत्र विकास के पथ में पिछड़ ही गया है।
इसे ऐतिहासिक शहर को भी सुना है अब Smart City बनाने की योजना है। अगर कुछ हो जाए तो हम प्रदेश वासियों को बहुत प्रसन्नता होगी।
झांसी को अमरत्व प्रदान करने वाली आदरणीय सुभद्रा कुमारी चौहान जी के परिवार से हमारे परिवार का बहुत नजदीकी संबध है। मेरी मौसी जी का व्याह सुभद्रा जी के पुत्र के साथ हुआ था। इस विवाह में मैं भी शरीक हुआ था तब मैं मात्र आठ वर्ष का था।
झांसी अब विकास के रास्ते पर चल निकले यही आकांक्षा है। इसके इतिहास पल जो भी कहा जार कम पड़ जाता है।
झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है।
उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि मी. के क्षेत्र में फैला झाँसी पर प्रारंभ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस समय इसे बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था । झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा। इस दौरान राजा बीर सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने झाँसी में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया।
९ वी शताब्दी मै, झॉसी का राज्य खजुराहो के राजपूतचन्देल वंश के राजाओं के अन्तर्गत आया। कृत्रिम जलाशय एवं पहाडी क्षेत्र के वास्तु शिल्प खन्डहर शायद इसी काल के है। चन्देल वंश के बाद उन्के सेवक खन्गार ने इस क्षेत्र का कार्यभार्र सम्भाला। समीप स्थित "करार" का किला इसी वन्श के राजाओं ने बनवाया था।
१४ वी शताब्दि के निकट् बुन्देला विन्ध्याच्ल् क्षेत्र से नीचे मैदानी क्षेत्र मे आना प्रारम्भ् किया और धीरे - धीरे सारे मैदानी क्षेत्र मै फ़ैल गये जिसे आज् बुन्देलखन्ड के नाम् से जाना जाता है। झॉसीकिले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिह देव द्वारा कर्वाया गया था। किव्दन्ति है कि ओरछा के राजा बीर सिह देव ने दूर से पहाडी पर छाया देखी जिसे बुन्देली भाषा मे "झॉई सी" बोला गया, इसी शब्द् के अप्भ्रन्श् से शहर का नाम पडा।
१७ वी शताब्दि मै मुगल कालीन साम्राज्य के राजाऔ के बुन्देला छेत्र् मे लगातार् आक्र्मण् के कारण् बुन्देला राजा छ्त्रसाल् ने सन् १७३२ मे [[मराठा] साम्राज्य से मदद् मान्गी। मराठा मदद् के लिये आगे आये। सन् १७३४ मे राजा छ्त्रसाल् की मृत्यु के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहायी हिस्सा मराठो कोदे दिया गया। मराठो ने शहर् का विकास् किया और इसके लिये ओरछा से लोगो को ला कर बसाया गया।
सन् १८०६ मई मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और मराठा के बीच् समझोता हुआ जिसमे मराठो ने ब्रितानी साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। सन् १८१७ मे मराठो ने पूने मे बुन्देल्खन्ड् छेत्र् के सारे अधिकार् ब्रितानी ईस्ट् ईडिया कम्पनी को दे दिये। सन् १८५७ मे झांसी के राजा गन्गाधर् राव् की म्रत्यु हो गयी। तत्कालीन् गवेर्नल जनरल् ने झांसी को पूरी तरह् से अपने अधिकार मे ले लिया। राजा गन्गाधर राव कि विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि राजा गन्गाधर राव् केदत्तक पुत्र को राज्य का उत्राधकारी माना जाये, परन्तु ब्रितानी राज् ने मानने से इन्कार कर दिया। ईन्ही परिस्थितियों के चलते झांसी मे सन् १८५७ का संग्राम हुआ। जो कि भारतीय स्वतन्त्र्ता संग्राम के लिये नीव् का पत्थर साबित् हुआ। जून् १८५७ मे १२वी पैदल् सेना के सैनिको ने झांसी के किले पर कब्ज़ा कर लिया और किले मे मौजूद ब्रितानी अफ़सरो को मार दिया गया। ब्रितानी राज् से लडायी के दौरान् रानी लक्ष्मीबाईने स्वयम् सेना का सन्चालान् किया। नवम्बर १८५८ मे झांसी को फ़िर से ब्रितानी राज् मे मिला लिया गया और झांसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गये। सन् १८८६ मे झांसी को यूनाइटिड प्रोविन्स मे जोडा गया जो स्वतन्त्र्ता प्राप्ति के बाद १९५६ में उत्तर प्रदेश बना।
उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा. मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
१९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है। इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० द्वार थे। इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं।
कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था।
किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।
झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है।
मैं इधर काफी दिनों से झांसी नहीं गया हूँ और last time 2005 में गया था GSM Rollout के दौरान वहाँ हमारा एक Tower damage हो गया था। मैनें तब महसूस किया था कि प्रगति तो हुई है पर इस क्षेत्र को कुछ अधिक की जरूरत है जो होना वाकी है। बहुत पहले 1964 में गया था उससे तो बदला बदला नजर आया था। चलिये Smart बन जायेगा तो चार चांद लग जायेंगे।
झांसी से मात्र 18 किलोमीटर दूर है मध्यप्रदेश का शहर और पुरानी रियायत ओरछा का महल तथा दर्शनीय राम मंदिर इत्यादि। बेतवा का किनारा बहुत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।
Tourism के लिए बहुत scope है।
Smart City बनेगा तो क्या क्या होगा अभी देखना वाकी है। जो भी होगा भले के लिए ही होगा ऐसी आशा ही करना उचित है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot/
झांसी के बारे में मुझे हमेशा एक बात याद आती है जो कभी बचपन में बाबूजी ने एक बार इसी शहर में बताई थी। उन्होंने बताया था कि झांसी के बाद रेल से चलने पर पहले उत्तर प्रदेश फिर मध्य प्रदेश और फिर उत्तर प्रदेश आते हैं और वैसे भी यह क्षेत्र बुंदेलखंड का हिस्सा है। जब मध्य प्रदेश ने 1956 रियासतों के विलय अपना दावा झांसी के ऊपर पेश किया तब भारत के गृहमंत्री पंडित गोविंद वल्लभ पंत जी हुआ करते थे। पंत जी ने नेहरू जी से साफ शब्दों में कह दिया कि झांसी उत्तर प्रदेश की नाक है उसको हम कभी भी उत्तर प्रदेश से अलग नहीं होने देंगे।
झांसी का गौरवशाली इतिहास है जो हमें 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की याद दिलाता रहता है। कृषि के क्षेत्र में असीमित संभावना होने के बावजूद जल संसाधनों की कमी के चलते यह इलाका बहुत पिछड गया है।
प्रदेश सरकार को यदाकदा जब इस क्षेत्र की याद आ जाती है तो एक दो योजनाओं का उद्घाटन हो जाता है। वरना यह क्षेत्र विकास के पथ में पिछड़ ही गया है।
इसे ऐतिहासिक शहर को भी सुना है अब Smart City बनाने की योजना है। अगर कुछ हो जाए तो हम प्रदेश वासियों को बहुत प्रसन्नता होगी।
झांसी को अमरत्व प्रदान करने वाली आदरणीय सुभद्रा कुमारी चौहान जी के परिवार से हमारे परिवार का बहुत नजदीकी संबध है। मेरी मौसी जी का व्याह सुभद्रा जी के पुत्र के साथ हुआ था। इस विवाह में मैं भी शरीक हुआ था तब मैं मात्र आठ वर्ष का था।
झांसी अब विकास के रास्ते पर चल निकले यही आकांक्षा है। इसके इतिहास पल जो भी कहा जार कम पड़ जाता है।
झाँसी भारत के उत्तर प्रदेश प्रान्त में स्थित एक प्रमुख शहर है। यह शहर उत्तर प्रदेश एवं मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित है और बुंदेलखंड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। झाँसी एक प्रमुख रेल एवं सड़क केन्द्र है और झाँसी जिले का प्रशासनिक केन्द्र भी है। झाँसी शहर पत्थर निर्मित किले के चारों तरफ़ फ़ैला हुआ है, यह किला शहर के मध्य स्थित बँगरा नामक पहाड़ी पर निर्मित है।
उत्तर प्रदेश में 20.7 वर्ग कि मी. के क्षेत्र में फैला झाँसी पर प्रारंभ में चन्देल राजाओं का नियंत्रण था। उस समय इसे बलवंत नगर के नाम से जाना जाता था । झाँसी का महत्व सत्रहवीं शताब्दी में ओरछा के राजा बीर सिंह देव के शासनकाल में बढ़ा। इस दौरान राजा बीर सिंह और उनके उत्तराधिकारियों ने झाँसी में अनेक ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण करवाया।
९ वी शताब्दी मै, झॉसी का राज्य खजुराहो के राजपूतचन्देल वंश के राजाओं के अन्तर्गत आया। कृत्रिम जलाशय एवं पहाडी क्षेत्र के वास्तु शिल्प खन्डहर शायद इसी काल के है। चन्देल वंश के बाद उन्के सेवक खन्गार ने इस क्षेत्र का कार्यभार्र सम्भाला। समीप स्थित "करार" का किला इसी वन्श के राजाओं ने बनवाया था।
१४ वी शताब्दि के निकट् बुन्देला विन्ध्याच्ल् क्षेत्र से नीचे मैदानी क्षेत्र मे आना प्रारम्भ् किया और धीरे - धीरे सारे मैदानी क्षेत्र मै फ़ैल गये जिसे आज् बुन्देलखन्ड के नाम् से जाना जाता है। झॉसीकिले का निर्माण ओरछा के राजा बीर सिह देव द्वारा कर्वाया गया था। किव्दन्ति है कि ओरछा के राजा बीर सिह देव ने दूर से पहाडी पर छाया देखी जिसे बुन्देली भाषा मे "झॉई सी" बोला गया, इसी शब्द् के अप्भ्रन्श् से शहर का नाम पडा।
१७ वी शताब्दि मै मुगल कालीन साम्राज्य के राजाऔ के बुन्देला छेत्र् मे लगातार् आक्र्मण् के कारण् बुन्देला राजा छ्त्रसाल् ने सन् १७३२ मे [[मराठा] साम्राज्य से मदद् मान्गी। मराठा मदद् के लिये आगे आये। सन् १७३४ मे राजा छ्त्रसाल् की मृत्यु के बाद बुन्देला क्षेत्र का एक तिहायी हिस्सा मराठो कोदे दिया गया। मराठो ने शहर् का विकास् किया और इसके लिये ओरछा से लोगो को ला कर बसाया गया।
सन् १८०६ मई मराठा शक्ति कमजोर पडने के बाद ब्रितानी राज और मराठा के बीच् समझोता हुआ जिसमे मराठो ने ब्रितानी साम्राज्य का प्रभुत्व स्वीकार कर लिया। सन् १८१७ मे मराठो ने पूने मे बुन्देल्खन्ड् छेत्र् के सारे अधिकार् ब्रितानी ईस्ट् ईडिया कम्पनी को दे दिये। सन् १८५७ मे झांसी के राजा गन्गाधर् राव् की म्रत्यु हो गयी। तत्कालीन् गवेर्नल जनरल् ने झांसी को पूरी तरह् से अपने अधिकार मे ले लिया। राजा गन्गाधर राव कि विधवा रानी लक्ष्मीबाई ने इसका विरोध किया और कहा कि राजा गन्गाधर राव् केदत्तक पुत्र को राज्य का उत्राधकारी माना जाये, परन्तु ब्रितानी राज् ने मानने से इन्कार कर दिया। ईन्ही परिस्थितियों के चलते झांसी मे सन् १८५७ का संग्राम हुआ। जो कि भारतीय स्वतन्त्र्ता संग्राम के लिये नीव् का पत्थर साबित् हुआ। जून् १८५७ मे १२वी पैदल् सेना के सैनिको ने झांसी के किले पर कब्ज़ा कर लिया और किले मे मौजूद ब्रितानी अफ़सरो को मार दिया गया। ब्रितानी राज् से लडायी के दौरान् रानी लक्ष्मीबाईने स्वयम् सेना का सन्चालान् किया। नवम्बर १८५८ मे झांसी को फ़िर से ब्रितानी राज् मे मिला लिया गया और झांसी के अधिकार ग्वालियर के राजा को दे दिये गये। सन् १८८६ मे झांसी को यूनाइटिड प्रोविन्स मे जोडा गया जो स्वतन्त्र्ता प्राप्ति के बाद १९५६ में उत्तर प्रदेश बना।
उत्तर प्रदेश राज्य के झाँसी में बंगरा नामक पहाड़ी पर १६१३ इस्वी में यह दुर्ग ओरछा के बुन्देल राजा बीरसिंह जुदेव ने बनवाया था। २५ वर्षों तक बुंदेलों ने यहाँ राज्य किया उसके बाद इस दुर्ग पर क्रमश मुगलों, मराठों और अंग्रजों का अधिकार रहा. मराठा शासक नारुशंकर ने १७२९-३० में इस दुर्ग में कई परिवर्तन किये जिससे यह परिवर्धित क्षेत्र शंकरगढ़ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। १८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में इसे अत्यधिक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
१९३८ में यह किला केन्द्रीय संरक्षण में लिया गया। यह दुर्ग १५ एकड़ में फैला हुआ है। इसमें २२ बुर्ज और दो तरफ रक्षा खाई हैं। नगर की दीवार में १० द्वार थे। इसके अलावा ४ खिड़कियाँ थीं। दुर्ग के भीतर बारादरी, पंचमहल, शंकरगढ़, रानी के नियमित पूजा स्थल शिवमंदिर और गणेश मंदिर जो मराठा स्थापत्य कला के सुन्दर उदाहरण हैं।
कूदान स्थल, कड़क बिजली तोप पर्यटकों का विशेष आकर्षण हैं। फांसी घर को राजा गंगाधर के समय प्रयोग किया जाता था जिसका प्रयोग रानी ने बंद करवा दिया था।
किले के सबसे ऊँचे स्थान पर ध्वज स्थल है जहाँ आज तिरंगा लहरा रहा है। किले से शहर का भव्य नज़ारा दिखाई देता है। यह किला भारतीय पुरातत्व विभाग के संरक्षण में है और देखने के लिए पर्यटकों को टिकट लेना होता है। वर्ष पर्यन्त देखने जा सकते हैं।
झांसी का किला उत्तर प्रदेश ही नहीं भारत के सबसे बेहतरीन किलों में एक है। ओरछा के राजा बीर सिंह देव ने यह किला 1613 ई. में बनवाया था। किला बंगरा नामक पहाड़ी पर बना है। किले में प्रवेश के लिए दस दरवाजे हैं। इन दरवाजों को खन्देरो, दतिया, उन्नाव, झरना, लक्ष्मी, सागर, ओरछा, सैनवर और चांद दरवाजों के नाम से जाना जाता है। किले में रानी झांसी गार्डन, शिव मंदिर और गुलाम गौस खान, मोती बाई व खुदा बक्श की मजार देखी जा सकती है। यह किला प्राचीन वैभव और पराक्रम का जीता जागता दस्तावेज है।
मैं इधर काफी दिनों से झांसी नहीं गया हूँ और last time 2005 में गया था GSM Rollout के दौरान वहाँ हमारा एक Tower damage हो गया था। मैनें तब महसूस किया था कि प्रगति तो हुई है पर इस क्षेत्र को कुछ अधिक की जरूरत है जो होना वाकी है। बहुत पहले 1964 में गया था उससे तो बदला बदला नजर आया था। चलिये Smart बन जायेगा तो चार चांद लग जायेंगे।
झांसी से मात्र 18 किलोमीटर दूर है मध्यप्रदेश का शहर और पुरानी रियायत ओरछा का महल तथा दर्शनीय राम मंदिर इत्यादि। बेतवा का किनारा बहुत मनमोहक दृश्य प्रस्तुत करता है।
Tourism के लिए बहुत scope है।
Smart City बनेगा तो क्या क्या होगा अभी देखना वाकी है। जो भी होगा भले के लिए ही होगा ऐसी आशा ही करना उचित है।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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