चुभा के शूल वो न जाने कहां गये
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।
कलम से____
16th April,2015/Kaushambi, Ghaziabad
चुभा के शूल वो न जाने कहां गये
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।
उनके ही चमन आज वीरान हो गये
खिलानी थीं कलियां पर बबूल वो गये।
कांटे बोये थे उन्होंने हमारी रहगुजर
राहें खिली रहें फूलों सी उनकी दुआ हम कर गये।
पाक दामन था हमारा फिर भी दागदार हो गये
उनके दामन के हर दाग लेकिन हम भूल गये।
कर सकें न कोई हम तमन्ना-ए-इश्क में
जान कर वो शूल ऊम्मीद के चुभा गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
16th April,2015/Kaushambi, Ghaziabad
चुभा के शूल वो न जाने कहां गये
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।
उनके ही चमन आज वीरान हो गये
खिलानी थीं कलियां पर बबूल वो गये।
कांटे बोये थे उन्होंने हमारी रहगुजर
राहें खिली रहें फूलों सी उनकी दुआ हम कर गये।
पाक दामन था हमारा फिर भी दागदार हो गये
उनके दामन के हर दाग लेकिन हम भूल गये।
कर सकें न कोई हम तमन्ना-ए-इश्क में
जान कर वो शूल ऊम्मीद के चुभा गये।
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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