कुछ कहीं, कुछ अनकही !
Saturday, April 25, 2015
बमुश्किल काटी है ये रात भोर होते ही लौट आना...
बमुश्किल काटी है ये रात
भोर होते ही लौट आना...
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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