पुरवाई.....
कलम से...
23rd April, 2015/Kaushambi, Ghaziabad
पुरवाई.....
अबके गाँव जाना,
कुछ अजीब लग रहा था,
वैसे भी एक अंतराल के बाद
जाना मुमकिन हो पा रहा था ।
पुरवाई का एक,
झौंका क्या आया,
गुज़रा वक्त जो याद हो आया,
बचपन बिताया था,
जो यहाँ दादा-दादी के सहारे,
वो नहर के किनारे दूर तलक,
जाने की रहती थी एक ललक,
थक जाने पर पाती बाबा के,
कंधे पर, घर वापस आना, लटक।
हर रात चाँद,
निकलता था
हवेली के पिछवाडे से,
जूगनू गीत सुनाते थे,
पोखर ऊपर आते थे,
अम्मा की थपकी से हम सो जाते थे,
रातभर सुंदर सपने जो आते थे।
पुरवाई के एक झौंके ने,
सारी यादों को जगा दिया,
नींद से क्यों उठा दिया,
सोता रहता तो अच्छा था,
सपनों मे खोया रहता,
वो अच्छा था।
पुरवाई के एक झौंके ने....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http:// spsinghamaur.blogspot.in/
23rd April, 2015/Kaushambi, Ghaziabad
पुरवाई.....
अबके गाँव जाना,
कुछ अजीब लग रहा था,
वैसे भी एक अंतराल के बाद
जाना मुमकिन हो पा रहा था ।
पुरवाई का एक,
झौंका क्या आया,
गुज़रा वक्त जो याद हो आया,
बचपन बिताया था,
जो यहाँ दादा-दादी के सहारे,
वो नहर के किनारे दूर तलक,
जाने की रहती थी एक ललक,
थक जाने पर पाती बाबा के,
कंधे पर, घर वापस आना, लटक।
हर रात चाँद,
निकलता था
हवेली के पिछवाडे से,
जूगनू गीत सुनाते थे,
पोखर ऊपर आते थे,
अम्मा की थपकी से हम सो जाते थे,
रातभर सुंदर सपने जो आते थे।
पुरवाई के एक झौंके ने,
सारी यादों को जगा दिया,
नींद से क्यों उठा दिया,
सोता रहता तो अच्छा था,
सपनों मे खोया रहता,
वो अच्छा था।
पुरवाई के एक झौंके ने....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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