Tuesday, August 18, 2020

"पुरवाई" द्वारा एस पी सिंह

पुरवाई 


एस पी सिंह 



जैनन

कुछ रोज़ पहले 'ज़ैनन' से मुलाक़ात हुई। वह बझेड़ा गांव, साठा चौरासी, पिलुखुआ, हापुड़ (यूपी) की रहने वाली थी। बहुत बड़े बड़े ख्वाब लिए वह कैनेडी स्पेस सेंटर, फ़्लोरिडा क्या जा पहुंची कि उसकी ज़िंदगी बदल गई...

आपकी मुलाक़ात उससे हो सकेगी "पुरवाई" के सेट पर। कुछ दिन इंतज़ार करिये....






देश प्रदेश की राजनीति :

ग़ाज़ियाबाद लोक सभा कांस्टीट्यूएंसी एक वर्ग के लोगों के लिए इतनी सेफ कांस्टीट्यूएंसी है कि बस अपना नॉमिनेशन फ़ाइल करिये और मौज करिये। समाज के कुछ प्रतिष्ठित लोगो से संपर्क साध लीजिये चौरासी साठा बस आपके पीछे खड़ा हो जाएगा। राज नाथ सिंह दो मर्तबा एवं जनरल ( रिटायर्ड ) वी के सिंह भी दो मर्तबा ऐसे ही थोड़े जीते हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे कि तिंदवारी विधान सभा कांस्टीट्यूएंसी राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह राजपूतों के नेता जी के लिए या कानपुर देहात अरुण नेहरू जैसे कश्मीरी पंडितों के लिए, वही कानपुर देहात ( चौबेपुर का इलाका जहां से विकास पांडे अपना धंधा पानी चलाता था )। इन नेताओं का अपने अपने क्षेत्र में ग़ज़ब का कंट्रोल था। जैसे कि जवाहर लाल नेहरू जी का फूलपुर, इलाहाबाद, चौधरी चरण सिंह का बागपत से जाटों के समर्थन से। मैंनपुरी मुलायम सिंह यादव और सैफ़ई शिशु पाल सिंह यादव अहीरों के समर्थन से। राजीव गांधी अमेठी, सुल्तानपुर से। भदरी के राजा भइय्या रघुराज सिंह कुंडा, प्रतापगढ़ से।

देश में और भी कई कांस्टीट्यूएंसी ऐसी होंगी लेकिन हम ठहरे यूपी के रहने वाले इसलिए अपने प्रदेश की ही बात कर सकते हैं।

कभी कभी राजनीति में ऐसा भी होता है कि आपके विरोधी आपके लिए ऐसे चक्रव्यूह की रचना करते हैं कि आप अपने इलाक़े में ही रहकर चारों खाने चित्त हो जाते हैं। जैसे कि हेमवतीनंदन बहुगुणा और अटल बिहारी वाजपेयी जी के विरुद्ध राजीव गांधी, अरुण नेहरू वग़ैरह ने 1984 के जनरल इलेक्शन्स के दौरान बनाई थी। हेमवती नंदन बहुगुणा इलाहाबाद एवं टिहरी गढ़वाल से और अटल बिहारी वाजपेयी जी लखनऊ एवं ग्वालियर से चारों खाने चित्त हो गए थे।

जनरल वी के सिंह के इसी इलाके चौरासी साठा की कहानी जानिए "पुरवाई" धारावाहिक के ज़रिए से दिनांक 23/08/2020 से।

( उत्तर प्रदेश में असेम्बली के चुनावों की सुगबुगाहट शुरू हो चुकी है )

....और मिलिए "ज़ैनन" और "ज़रीना" से.....

एस पी सिंह
19/08/2020




"पुरवाई"

हमारे ऑफिस में कार्यरत एक सहकर्मी तोमर चौरासी साठा के इलाके का रहने वाला है। उसकी शादी में शरीक़ होने के लिए उसने बड़े प्यार से हमें बुलाया। मैं अपने अन्य कई साथियों के साथ उसके गांव गया और बारात में शामिल हुआ। दूसरी बार पिलुखुआ के एक इंजीनियरिंग कॉलेज में स्किल डेवलपमेन्ट के प्रोमोशन के सिलसिले में एक सेमिनार में चीफ़ गेस्ट की हैसियत में जाने का मौका मिला।

इस तरह बस मैं दो बार ही चौरासी साठा के इलाके में गया।मुरादाबाद, रामपुर, नैनीताल, बरेली से आते जाते पिलुखुआ से निकलना तो कई बार हुआ। एक दो बार वहां के बाज़ार में रुक कर घर के लिए चद्दर, तौलिया वग़ैरह खरीदे लेकिन जो बात सबसे अच्छी जो लगी वह थी दो धर्मो के लोगों के बीच का प्यार जो हर गली, हर नुक्कड़ पर दिखाई दे जाता है। लोग अख्खड़ क़िस्म के दिखते हैं, भाषा भी खड़ी बोली जो कानों में चुभती है ठीक वैसी जैसी मेरठ, बागपत, बड़ौत, मुज़्ज़फरनगर के इलाकों में बोली जाती है।

चौरासी साठा के बारे में असल में जानकारी तो तब मिली जब बातों बातों में श्री Surendra Pal Rana ने विस्तार से इलाक़े की राजनीतिक पृष्ठ्भूमि और दोनों बिरादरी के लोगों के बीच के प्यार और सद्भाव के बारे में बताया। श्री राणा ने यह बताते हुए कहा, "सर जी, क्योंकि मैं हमेशा पिलखुवा शहर से होकर बड़ी भाभी के घर व पिता जी की मौसी के घर जाता था तब रास्ते में चौरासी वाले ठाकुरों की हवेली पड़ती थी जहॉ आज भी आप जाकर वह सब देख सकते हैं जिसका मैंने ज़िक्र किया है"

बस फिर क्या था मेरा खुरापाती दिमाग़ चलने लगा देखते देखते "पुरवाई" कथानक की भूमिका बन गई और एक एक करके मेहताब सिंह सिसोदिया और उनके प्रपौत्र तथा अन्य लोग जैसे कि अमर सिंह सिसोदिया, शममशेर खान सिसोदिया, शीला सिंह सिसोदिया, ज़ारा बेग़म सिसोदिया, ज़ैनन, ज़रीना, असीम आदि के चरित्र उभरने लगे।

धन्यवाद सहित,

एस पी सिंह
20/08/2020


"पुरवाई"
(दुःखती रगों के रिश्तों की कहानी)
एक धारावाहिक

अपनी बात :

मैं जब 'पुरवाई' नामक कथानक पर शुरूआती काम कर रहा था तो एक रोज़ मेरी बात श्री Surendra Pal Rana से हुई जिनके माध्यम से मुझे चालीस साठा क्षेत्र के बारे में वे जानकारियां मिलीं जिन्हें हासिल करने के लिए मुझे दर दर भटकना पड़ता फिर भी वस्त्विकरूप में कोई सूचना नहीं मिल पाती।

जब मैंने अपनी कहानी के बारे में श्री राणा को बताया तो उन्होंने मुझे आश्वस्त किया कि कहानी जब पूरी होगी तो समाज की सोच में क्रांतिकारी परिवर्तन की राह दिखा सकेगी। जिससे आपसी भाई चारा तो बढ़ेगा ही देश भी तरक़्क़ी के रास्ते आगे बढ़ेगा। देश के लोग खड़ी बोली की महत्ता को भी जानेंगे और समझेंगे। जब तक किसी विषय पर बातचीत या चर्चा नहीं होगी तब तक उसकी खूबसूरती कैसे ज़ाहिर होगी।

मैं तो ब्रज भाषा भाषी क्षेत्र का रहने वाला हूँ फिर भी मैं उस बृज भाषा को जो वृंदावन या मथुरा में बोली जाती है उसे नंम्बर एक दूंगा जब कि जो बृज भाषा हमारे ग्रामीण आँचल में बोली जाती है मुझे खुद बहुत उज्जड लगती है। लेकिन उस उज्जड पने में भी एक प्यार टपकता है। मैं यह बात एक उदाहरण के साथ आपके सामने रखना चाहूंगा।

हमारे एक मित्र देवदत्त मिश्रा के दादा जी धौली पियाऊ, मथुरा के रहने वाले थे। देवदत्त के बड़े भाई लक्ष्मी दत्त की शादी मथुरा की एक लड़की से हुई। वह लडक़ी (जिसे हम भाभी कहने लगे थे) व्याह के बाद उस कॉलोनी में अपने पति के घर आई जहां हम भी रहा करते थे। एक दिन की बात है मैं घर से निकल कर साइकिल से कहीं जा रहा था कि हमारी उक्त भाभी ने हमें देखा और कहा, "लाला जी आज तौ तुम बड़े जँच रये हौ। तुम कितकूँ जाइ रये हौ, हमकूँ भी साइकिल पै घुमा देओ"। यह मथुरा की तरफ बोली जाने वाली बृज बोली है यही बात कोई हमारे ग्रामीण क्षेत्र की भाषा में बोली जाए तो कुछ इस प्रकार से होगी, "ऐरे मौंड़ा आज तू ख़ूब जम रयौ है, कितकों जाय रयौ है, हमउँ कौ साइकिल पै घुमाइदै"। अब जो बाहरी क्षेत्र का व्यक्ति दोनों भषाएँ सुनेगा तो वह शर्तिया कहेगा कि मथुरा वाली बृज भाषा बहुत कर्णप्रिय है।

मैं बहुत लंबे समय तक अवध में रहा तो मेरे बोलने चालने का लहज़ा हिंदी उर्दू का मिक्स हो गया है। मैं कभी भी अपने लेखन को भाषा के दायरे में नहीं बंधित करना चाहता हूँ इसलिए आपने यह नोट किया होगा मैंने जो जहां जिस भाषा का शब्द फिट हो गया उसका खुल कर उपयोग किया है। मुझे जहां लगता है कि वहां अंग्रेजी का शब्द ठीक लगेगा तो मैं अंग्रेजी के शब्द इस्तेमाल करने से नहीं चूकता हूँ। रही बात "पुरवाई" की तो मेरे दिमाग़ में एक बार यह बात भी आई कि जितने भी डॉयलोग इस धारावाहिक में इस्तेमाल हों वह पिलखुआ में बोली जाने वाली खड़ी बोली में हों। पर जब मैं यह प्रयोग करने बैठा तो मेरे हाथ कांपने लगे कारण यह था कि सहारनपुर, रुड़की और हरिद्वार में रहे हुए मुझे एक अरसा हो चुका था और मुझे उस तरह की खड़ी बोली पर पूरा अधिकार नहीं था। अगर कोई यह काम कर दे तो मैं शर्तिया यह प्रयोग करना चाहूंगा। प्रिय Surendra Pal Rana से गुज़ारिश है कि वह यह काम अगर मुमकिन हो तो वह अपने हाथ में लेने का कष्ट करें।

मेरा मानना है कि अपने यहां पानी, भाषा, खाना पीना उठना बैठना , पहनावा हर दो कोस पर बदल जाता है। इसलिए बोलने वाली भाषा लोगों के सामने अपने बदलते हुए रूप में आती है। कोई भी व्यक्ति किसी भाषा को असभ्य नहीं कह सकता चूंकि वह उसका मर्म नहीं समझता है। जो जहां रहता है जो भाषा उसके कानों में उसके जन्म से पड़ती है वह उसे प्यार करता है और करना भी चाहिए।

आइये बात करते हैं, अब अपनी कहानी "पुरवाई" की। इस कथानक में खड़ी बोली भाषा के प्यार के मुद्दे को भी अपने ढंग से उजागर किया जाएगा। बस इंतज़ार करिये, आपके हर सवाल का जवाब दिया जाएगा। अपना धैर्य न खोइए, बस कुछ और सब्र रखिये।

श्री राणा से बातचीत के दौरान मुझे ध्यान आया कि जब डीपीएस के बच्चों का ट्रिप यूएस जा रहा था तो कुहू का कितना मन था कि काश वे लोग किसी एस्ट्रोनॉट से मिलने का अपना सपना पूरा कर सकें। ऑर्लैंडो इंटरनेशनल एयरपोर्ट, फ़्लोरिडा पर लैंड करने के बाद कुहू ने हम लोगों को फोन कर के बताया कि अगले दिन वे लोग अपने टीचर्स के साथ नासा जा रहे हैं तो हम लोगों की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था।

मेरे दिमाग में तभी से नासा को लेकर कुछ चल रहा था। जब मैंने "पुरवाई" कथानक के पात्र चुन लिए और उनका नामकरण कर लिया। मुझे लगा कि मेरी कहानी की नायिका "ज़ैनन" एवं "ज़रीना" का जो चरित्र उभर कर मेरे दिलो दिमाग पर छा गया है वह बेमिसाल इस लिहाज़ में हैं कि हिंदुस्तान की ग्रामीण क्षेत्र की एक लड़की जिसने अंतरिक्ष के बारे में रिसर्च करने के सपने देखे थे और एक दिन किस्मत से वह नासा पहुंच गई। उसकी छोटी बहन ने हिंदुस्तान में ही रहकर कुछ ऐसा करने की ठानी कि वह अपनी बड़ी बहन से भी बढ़कर ऐसा काम करे कि वह इतिहास बना सकने में सफल हो।

जानिए "ज़ैनन" और "ज़रीना" की कहानी "पुरवाई" कथानक के माध्यम से। बस दो दिन बाद ही...23/08/2020 से।

एस पी सिंह
21/08/2020





अस्वीकारोक्ति

"मैं एतदद्वारा घोषणा करता हूँ कि इस कथानक में वर्णित व्यक्ति और घटनाएं काल्पनिक हैं। वास्तविक जीवन में इनका कोई सरोकार नहीं है तथापि कथानक में किसी व्यक्ति या घटना का वास्तविक जीवन से सम्बंध है, तो इसे मात्र संयोग माना जाए"

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कलमकार की कलम से :

मित्रों,

हमारे बहुत ही घनिष्ट मित्र श्री Ashok Kumar जी ने कुछ रोज़ पहले आदेश किया था कि मैं एक धारावाहिक ग्रामीण जीवन पर लिखूं। मैंने उनके इस विचार का स्वागत करते हुए इस कथानक "पुरवाई" की कहानी का ताना बाना बुना है। हो सकता है कि उनके सपनों में ग्रामीण जीवन की वही मुंशी प्रेमचंद जी के ज़माने की तस्वीर रही हो लेकिन वास्तविकता में हिंदुस्तान के ग्रामीणांचल में बहुत बदलाव आया है। अब हमारा ग्रामीण परिपेक्ष्य अब वह नहीं रह गया जो एक शताब्दी पूर्व हुआ करता था। चुनावी राजनीति की उठक पटक ने आजकल के ग्रामीण परिदृश्य को एकदम बदल कर रख दिया है।

यह कथानक ग्रामीण क्षेत्र के उन पढ़े लिखे नौजवानों की आशाओं और आकांक्षाओं को लेकर लिखा गया है जिनके सामने जीवन के संघर्ष में पुरानी मान्यताओं का सम्मान करते हुए, समाज में अपने लिए सम्मानजनक स्थान सुरक्षित करते हुए आगे बढ़ने की लालसा है।

मैं नहीं कह सकता हूँ कि यह कथानक आपकी आकांक्षाओ पर कहाँ तक खरा उतरेगा। कल दिनांक 23 अगस्त से फेसबुक पर आप इसे पढ़ें और आनंदित हों यही हमारी कामना है। अपनी टिप्पणी लिखेंगे तो हमें प्रसन्नता होगी तथा धारावाहिक को एक दिशा भी प्राप्त होगी।

बस और कुछ नहीं ...

धन्यवाद सहित,

एस पी सिंह
22/08/2020

आदरणीय अग्रज S.P. Singh साहब !

फेसबुक से जुड़ने के बाद आपके कई धारावाहिकों को पढ़ने का मौका मिला मुझे. कई भाषाओं पर अच्छी पकड़ है आपकी. धारावाहिक लिखने की अद्भुत कला है आपकी. देर से मिला आपसे, दुख है कि आपसे मिलकर और सीख कर मैं खुद लिखने में असमर्थ हूँ फिलहाल. आप जैसे कुछ गिने चुने मित्रों से सम्पर्क कायम रहे, इसीलिये फेसबुक से जुड़े हुए हैं अन्यथा अब तक इस प्लेटफार्म से हट गये होते.

मेरा आग्रह भी यही है कि ग्रामीण जीवन शैली में आये बदलाव को आप अपने धारावाहिक में रेखांकित करें.सचमुच, हमारे गाँव अब वो नहीं रहे, जो हमने अपने बचपन और युवावस्था में देखा था और जिया था.गाँव आज न तो शहर है और न ही गाँव. संक्रमित है शहरीकरण से और ग्रामीण संस्कृति से मुक्त भी नहीं है. बदलाव स्वाभाविक प्रक्रिया है.

संचार माध्यमों के प्रसार, जातिगत राजनीति, रोजगार के लिये नगरों में पलायन, शहरों का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश वगैरह ने ग्रामीण जीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है.आपके लेखन में इनका संकेत भी यदाकदा परिलक्षित होता है,इसलिए हमने आपसे निवेदन किया कि आप एक धारावाहिक गाँव को केन्द्र में रखकर लिखें ताकि ग्रामीण जीवन की विषमताओं से भी लोग अवगत हों.
आपने उम्र को ललकारा है,उसे चुनौती दी है.

आयु में मुझसे श्रेष्ठ हैं लेकिन आपकी सक्रियता काबिलेतारीफ हैं. ईश्वर से प्रार्थना है कि आप दीर्घायु हों और युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करते रहें.

#पुरवाई शीर्षक प्रिय लगा मुझे. आपने अनुज मानकर जो आदर दिया है, आपका बड़प्पन है.आभारी हूँ आपका.... सादर अभिवादन.



Wednesday, August 5, 2020

रिन्नी खन्ना की कहानी मेरी जुबानी ---द्वारा --- एसपी सिंह

रिन्नी खन्ना की कहानी मेरी जुबानी ---द्वारा --- एसपी सिंह 


05-08-2016

इंतज़ार करिये....

Facebook पर एक नया प्रयोग....



06-08-2016

रिंनी खन्ना,

क्या करने वाली है?

कुछ और इंतज़ार।


दो शब्द

 

बहुत दिनों से मेरे मन में चल रहा था कि ऐसा क्या है कि अधिकतर टीवी धारावाहिक लोकप्रिय भारतीय जनमानस में इस कदर लोकप्रिय क्यों हो रहे हैं। जब भी इस विषय में सोचता तो पाता कि यह तो ठीक है कि दर्शक की निग़ाह में उन्हें यह धारावाहिक शायद इसलिए अच्छे लगते हैं कि उनकी एक कहानी में रुचि बनी रहती है और एक निश्चित समय में उन्हें मनोरंजन भी प्राप्त होता रहता है। अक्सर लोग इन धारावाहिकों को खाना खाते वक़्त या सोने के पहले देखना पसंद करते हैं। चिंता मुझे तब होती है जब ये धारावाहिक मात्र मनोरंजन हेतु हों तो ठीक है पर इन धारावाहिकों में अक़्सर समाज और परिवार के उस घिनोने रूप को दर्शाया जाता है कि वह गले नहीं उतरता।

भारतीय संस्कृति अपने उच्च आदर्शों के लिए पुरातन समय से मानसपटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ती आई है और अधिकतर परिवार इन्हीं मूल्यों के अधीन रहते हुए अपने अपने जीवन का निर्वहन करते हैं। आज विश्व इस स्वरुप को देख ही नहीं वरन सराह भी रहा है।

ऐसे में इस तरह के धारावाहिकों को दिखाने से हम अपने जनमानस के ह्रदय में पारवारिक और सामाजिक ताने बाने को इतने विकृत रूप में दिखा कर शायद ठीक नहीं कर रहे हैं।

हमारी नई पीढ़ी को बहुत आशायें हैं अपने जीवन से, हम इसमें कैसे सहायक हों तथा उन लोगों को कैसे प्रोत्साहित करें जिससे कि वह स्वतंत्र हो अपना मार्ग स्वयं चुनें, यह भी इस कथानक का मूल तत्व है।

स्वस्थ परम्पराओं का समावेश हमारी आधुनिक जीवन शैली तथा रोज़मर्रा के जीवन में हो यह आवश्यक है और इन्हीं मूल्यों को लेकर मेरा यह एक अनूठा प्रयास भर है।

हाँ, एक बात और प्रयोग के रूप में यह धारावाहिक फेसबुक पर प्रसारित हो चुका है और पाठकों ने इसे तहेदिल से स्वीकारा ही नहीं वरन खुले दिल से सराहा भी है।

यहाँ यह कहना भी सर्वथा उचित होगा कि प्रकाशक पहले ही कथानक तीन खंडों में प्रकाशित कर चुके हैं, पाठकों की बेहद मांग पर उनका एक संकलित संस्करण प्रस्तुत करने का विचार सराहनीय ही नहीं वरन पाठकों को पुस्तक को यथोचित कम दाम में भी उपलब्ध करा सकने में सफल होंगे।

मैं इस पुनीत कार्य के लिय प्रकाशक को हार्दिक धन्यवाद प्रेषित करता हूँ।

यह तुच्छ भेंट उसी स्वरूप को बनाये हुए आप सभी की सेवा में समर्पित है। आशा है कि आप सभी पाठकों का इसे आशीर्वाद प्राप्त होगा।

धन्यवाद।

ग़ाज़ियाबाद-201010                                एस.पी.सिंह

दिनांक: 5thमार्च, 2017          


प्रस्तावना 

रिंनी खन्ना की कहानी श्री एस पी सिंह की क़लम की धार से प्रवाहित एक ऐसा धारावाहिक है जो लेखन के क्षेत्र में मील का पत्थर है। इससे पूर्व श्री एस पी सिंह ने अँगरेजी में तीन उपन्यास प्रकाशित किए हैं जो भारतीय वास्तुकला के जीवंत उदाहरण हैं। इनकी अनेक रचनाओं को पढ़ने पर यह सगर्व कहा जा सकता है रचनाकार में भारतीयता का मोह कूट कूट कर भरा है। इनकी रचनाएँ क्षेत्र, धर्म, जाति, संप्रदाय की सीमाओं को लाँघते हुए पाठक को भारतीयता के मंच पर आसीन कराती हैं जहाँ पाठक भारतीयता के सागर में तैरते हुए विभिन्न संस्कृतियों की लहरों का आनंद उठा पाता है।

जहाँ तक रिंनी खन्ना की कहानी की बात की जाए तो यह स्पष्ट है कि रिंन्नी खन्ना संघर्षों से उठा एक ऐसा व्यक्तित्व है जो बचपन में माता और पिता की साया से वंचित है लेकिन यही अभाव उसके व्यक्तित्व को सँवारता है। वह मर्यादित मुक्त जीवन जीने में विश्वास करती है, ऐसा जीवन जहाँ कोई रोक टोक हो बल्कि अपने जीवन को सँवारने का पूरा मौक़ा दे। रिंनी खन्ना अपनी योग्यता, कर्मठता, परिश्रम के बल पर अपरिचित का विश्वास जीत कर उसे अपना बना लेती है और जिंदल परिवार के कारोबार को सात समुंदर पार स्थापित करती है। उपन्यास में ऐसे मौक़े भी देखने को मिलते हैं जहाँ रिंनी का व्यवहार बचपना सा लगता है और आगे चल कर वही रिंनी परिपक्वता का परिचय देती हुई अपने कौशल से सबको क़ायल भी कर देती है। एक ओर जहाँ रिंनी में नवयौवन का अल्हड़पन है, मौजमस्ती का आलम है वहीं दूसरी ओर पारिवारिक जीवन के प्रति वचनबद्धता भी है, पति के प्रति पूर्ण समर्पण है। उपन्यास के एक भाग में रिंनी सरिता की वेगवती धारा प्रतीत होती है तो दूसरे भाग में अविरल गति से प्रवाहित सलिला लगती है और तीसरे भाग में नदी की मंद मंद प्रवाहित कल कल करती जल धारा लगती है। हमारा जीवन भी तो ऐसे ही होता है जहाँ इसके एक चरण में उच्छृंखलता तो दूसरे चरण में उत्तरदायित्व का बोध और तीसरे चरण में संपूर्ण कार्यान्वय का भार होता है। इस प्रकार रिंनी संपूर्ण व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करती है।

जीवन एक विचित्र पहेली है। सब कुछ हमारी मर्ज़ी से घटित नहीं होता। यदि जीवन को गुलाब का फूल कहा जाए तो काँटों की चुभन से इनकार नहीं किया जा सकता। जीवन को सर्पिल मार्गों से हो कर भी गुज़रना पड़ता है जहाँ अनजाने ऐसी परिस्थितियाँ जीवन के चौखट पर दस्तक दे जाती हैं कि मनुष्य वहाँ हतप्रभ हो जाता है और सब कुछ किसी अदृश्य शक्ति के हाथों में चला जाता है रिंनी भी इसका अपवाद नहीं है। आतंकवाद के क्रूर पंजे उसकी हँसती खेलती दुनिया को तबाह कर देते हैं। कभी हार मानने वाली रिंनी हार जाती है लेकिन फिर भी धैर्य से काम लेती हुई जीवन नैया को खेने का पतवार थाम लेती है।

यह धारावाहिक हमें देश की विरासत से परिचित तो कराता ही है, साथ ही भारतीयों की व्यापारिक सूझबूझ का लोहा भी मनवाता है। इस उपन्यास में पाठक को मनोरंजन के साथ ही पारिवारिक और बौद्धिक सूझबूझ का पूर्ण परिचय और सबल संदेश मिलता है। अंत में मुझे यह कहने में कोई हिचक नहीं है कि अनेक विशेषताओं को अपने आग़ोश में लिए यह एक पूर्ण और सफल धारावाहिक है।

 

                                                                                      राम शरण सिंह

 

 

रिंनी खन्ना की कहानी ......

 

 

 मित्रों की बेहद मांग पर

 

07-08-2016 को एक अनूठे प्रयास के अंतर्गत फेसबुक पर धारावाहिक के रूप में यह “रिंनी खन्ना की कहानी उसकी जुबानी” प्रस्तुत की जा चुकी है। इसको संकलित रूप में पेश करने में मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है।

यह प्रयास उन मित्रों और पाठकों से जुड़ने में का प्रयास है जो किसी कारणवश इस कहानी से पहले से नही जुड़ पाए।

धारावाहिक का स्वरुप बना रहे इसलिये मूल कथानक के कथांश क्रम को मूल रूप में ही रहने दिया गया है। जहाँ-जहाँ अंग्रेजी भाषा का उपयोग मूल कथानक में हुआ था उसे हिंदी देवनागरी लिपि में परिवर्तित कर अपने हिंदी पाठकों के लिए यह सुलभ और सहायक हो, मात्र इस विचार से मामूली बदलाव किए गए हैं।

अंत में बस प्रभु से यही प्रार्थना है कि मैं, अपने उन प्रयासों में आप सभी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकूँ, जो भारतीय समाज को स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हुए आजकल के युवक और युवतियों के मन में अपने भविष्य को लेकर जो चिंताए चल रही हैं उनका कोई सर्वमान्य हल निकाल पाने में यह पुस्तक सहायक सिद्ध हो।

बस यही और कुछ नहीं। आप कहानी से जुड़ें और देखें कि आगे क्या होता है:--------

 

 कथांश–1

           

रिंनी खन्ना, जी सही सुना आपने मेरा नाम रिंनी खन्ना ही है। आप से कुछ रोज़ पहले मुलाक़ात हुई थी तब मैं आपको समझ नहीं पाई थी। अब बहुत बेहतर समझती हूँ मैं, आप सभी को......

यह कहानी एक रिंनी खन्ना की नहीं वरन उन तमाम रिंनी खन्ना जैसी लड़कियों की है जो आज समाज में अपनी-जगह बनाते हुए एक आम ज़िंदगी जीना चाहती हैं।

रिंनी ने एक विज्ञापन क्या दिया, शांत तालाब में जैसे सैलाब गया। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। आखिर उस विज्ञापन में ऐसा क्या था जिस पर इतना बवाल हो गया।

रिंनी ने बस यही तो विज्ञापन दिया था एक अदद मर्द की ज़रूरत है जो उसके साथ रह सके जिंदगी बसर कर सके

समाज सेवी संस्थाओं ने तो रिंनी के ख़िलाफ़ मोर्चा ही खोल दिया। कुछ मनचलों को यह विज्ञापन बहुत पसंद आया। कुछ बुजुर्गवार ने यह कह कर दुत्कार दिया कि तौबा यह कैसा ज़माना गया है। मसलन जिसके मुँह जो आया उसने कहा।

रिंनी इन सब से बेख़बर अपनी ही दुनिया में ज़िंदगी जी रही थी। उसकी सोच सबसे निराली जो थी। उसका मानना था कि जिंदगी जब तक अपने हिसाब से जी जाये तो ऐसी ज़िंदगी का क्या मतलब? खासतौर पर किसी का ग़ुलाम बन कर रहना कम से कम उसके लिये मुनासिब नहीं था।

बहरहाल, रिंनी ने यह तय कर लिया, कि वह किसी की नहीं सुनेगी और अपने मन की कर के रहेगी। लिहाज़ा उसने उन आवेदनों पर गौर करना शुरू किया जो उसके विज्ञापन के उत्तर में आये थे

आवेदनों के गट्ठर से उसने कुछ का चुनाव किया और एक-एक कर आवेदकों को विभिन्न जगहों पर बुला कर इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू की

उन आवेदकों में जो पहले नंम्बर पर आया, उन सज्जन का नाम था, सुनील। सुनील को उसने होटल पार्क में लंच पर बुलाया और एक लंबी चर्चा की। पहले तो अपने बारे में बताया कि उसने आईआईएम (अहमदाबाद) से एमबीए किया है और वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर पोस्ट पर कार्यरत है और उसका एनुअल पैकेज लगभग 30 लाख रुपए है और निकट भविष्य में वह अमेरिका जा कर वहीं बसने की सोच रही है।

रिंनी ने सुनील से पूछा, "आपका क्या विचार है?"

 

कथांश-2

 

जी मैं कुछ समझा नही" सुनील ने अनजान बनते हुए पूछा।

"मेरा मतलब है कि मैं शीघ्र ही अमेरिका जाने वाली हूँ। क्या आप मेरे साथ सकेंगे?” रिंनी ने अपना प्रश्न सीधे-सीधे पूछ लिया।

"सोचना पड़ेगा, इतना आसान नहीं है कि मैं अभी कह दूँ कि मैं आपके साथ चल पडूँगा

"क्या मैं यह समझूँ कि आप मेरे साथ आना नहीं चाहते या कोई मज़बूरी है?" रिंनी पूछ बैठी।

"जी नही, मैं आपको अभी किसी भी ढंग से समझ नहीं पाया हूँ। मुझे कुछ वक़्त लगेगा"

"चलिये यह भी सही है। एक दूसरे को जानना बहुत ज़रूरी है" रिंनी ने कहा।

सुनील ने शुरुआत की और धीरे-धीरे उसने, वह सब, स्वयं के बारे में, परिवार के बारे में, अपनी पसंद और नापसंद और भी बहुत कुछ जो वह बता सकता था, सब कुछ रिनीं को बता दिया।

.......और फिर उसने अपनी निग़ाह रिनीं के चेहरे पर गढ़ा दीं जैसे कि वह भी रिंनी के बारे में सब कुछ जानना चाहता है, इससे पहले कि वह यह बता पाये कि क्या वह रिंनी के साथ अमेरिका सकेगा या नहीं?

रिंनी भी तेज तर्रार युवती थी, सुनील का आशय समझ गई और बोली, "मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी कि पहले हम एक दूसरे के बारे में जान तो लें, उसके बाद ही कोई निर्णय करना ठीक रहेगा"

इसके बाद रिंनी ने भी अपने बाबत सब कुछ बताया कि वह एक उन्मुक्त स्वभाव की और ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीने में विश्वास रखती है। यह भी कि उसे किसी भी प्रकार खाने पीने या खुले आम जिंदगी जीने में कोई उज्र नहीं है। उसने यह भी बता दिया कि उसके माता-पिता की मृत्यु पिछले चंद सालों पहले ही हुई है और ऐसा कोई सगा संबंधी नहीं है जिन पर वह भरोसा कर सके।

रिंनी के बारे में इतना जानकर सुनील ने संतोष जताया और अफ़सोस भी कि उसका कोई सगा संबंधी विश्वास लायक नहीं है।

सुनील ने रिंनी से कहा,लगता है यही अवधारणा कि आपका अब कोई नहीं है आपको मज़बूर कर रही है एक विश्वसनीयसाथी की तलाश करने के लिये"

"जी हाँ। एक तो यह दूसरा इसलिए भी कि मैं स्वतंत्र विचारों की समर्थक हूँ इसलिए भी मेरे लिए यह ज़रूरी है जानना कि जिसके साथ मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहती हूँ वह व्यक्ति कैसा है, उसका स्वभाव कैसा है, क्या मेरी और उसकी जोड़ी बन पायेगी या नहीं? क्या हम लोग साथ-साथ ख़ुशी-ख़ुशी रह पाएंगे या नहीं?"

"आपने बिल्कुल सही फ़रमाया और यह ज़रूरी भी है विशेषरूप से जब आप एक दूसरे मुल्क़ में जाकर बसने की सोच रही हों", सुनील ने उत्तर देते हुए कहा, "मेरे भी मन में यही प्रश् उठ रहे हैं, जिनका समाधान मुझे करना है कि वास्तव में क्या हम लोग खुश रह पाएंगे?"

 

कथांश–3

 

"लगता है कि आप मेरे साथ अमेरिका आने में रुचि नहीं रखते हैं रिंनी ने सुनील से कहा, "चलिये इस पॉइंट को बाद में देखते हैं, पहले यह बताइये कि आप क्या पीजिएगा आप मेरे मेहमान हैं?" 

"मैं तो कोई सूप लेना चाहूँगा, क्लियर सूप क्रीम के साथ मेरे लिए ठीक रहेगा" सुनील ने कहा।

"दोपहर का वक़्त है और गर्मी भी अधिक है अगर आप बुरा मानें तो क्या मैं ठंडी बियर ले सकती हूँ?” रिंनी ने सुनील की ओर देखते हुए पूछा।

सुनील ने उत्तर दिया, "आप अपनी मर्ज़ी की खुदमुख्तार हैं, आप लीजिये जो आपको पसंद हो। मैं सूप ही लेना चाहूँगा"

रिंनी ने वेटर को इशारा कर अपने लिये ठंडी बियर और सुनील के लिए क्लियर वेज सूप क्रीम के साथ का आर्डर दिया।

.........और फिर सुनील की ओर देखते हुए कहा, "हाँ तो हम यह बात कर रहे थे कि आप आख़िर मेरे साथ अमेरिका क्यों नहीं पा रहे हैं?"

"बात यह नहीं है कि मैं अमेरिका आपके साथ आना नहीं चाहता हूँ। अमेरिका जाना हर उस इंजीनियर का सपना होता है जो बाहर जाकर ज़िंदगी की शरुआत करना चाहता है। पर मेरे विचार इस मामले में कुछ अलग हैं। मैंने आई आई टी(कानपुर) से फर्स्ट क्लास फर्स्ट में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग पास की है देश ने मेरे ऊपर लाखों रुपये ख़र्च किये हैं। मेरे ऊपर देश का कर्ज़ है, जब तक मैं यह कर्ज़ उतार नहीं  देता तब तक मैं अमेरिका जाने की बात सोच भी नही सकता हूँ", सुनील ने जबाब दिया, "मेरी यहाँ भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय में अच्छी ख़ासी नौकरी है। तनख़ाह भी अच्छी खासी है। मुझे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीं हो रही है तो बाहर अमेरिका अपने देश-धरती से दूर भला क्योँ जाऊँ"

"यह तो बड़ी दकियानूसी वाली सोच है। ऐसे अगर मैं सोचूँ तो मेरे ऊपर भी देश का अहसान है और मुझे भी अमेरिका नहीं जाना चाहिए"रिंनी ने अपना पक्ष रखते हुए सुनील से प्रश् किया?

सुनील ने जबाब में कहा,शायद यही फ़र्क है मेरी और आपकी सोच में। यह सोच मेरे जीवन में कूट-कूट कर भर दी गई है। मेरे पिता जी, जो कि हरयाणा के एक छोटे से शहर में 1947 के राष्ट्र विभाजन की त्रासदी झेलते हुए आये और फिर एक प्राइमरी स्कूल के टीचर के पद पर नौकरी करते हुए मुझे तथा मेरी छोटी बहन को पाला पोसा और अच्छी शिक्षा देकर जीवन में हम लोगों को आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरी माँ की उस रेल गाड़ी पर उतपातियों ने हत्या कर दी जो कि पाकिस्तान से भारत आने वाली आखिरी रेल गाड़ी थी

"ओफ़ यह तो बहुत ही दुखदाई दौर रहा आपके साथ कुझे आपके साथ पूरी हमदर्दी रखती हैरिंनी ने कहा।

सुनील ने बताया,मैं आपको क्या बताऊँ कि वह कितना मुश्किल का समय रहा होगा जो  मेरे पिता जी ने कैसे बिताया, मैं जब याद करता हूँ तो मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरे दुखों का अभी अंत नहीं हुआ| बमुश्किल मेरी बहन की शादी रोहतक के एक संभ्रांत परिवार में एक पढ़े लिखे नव युवक के साथ तय तो हो गई पर शादी के कुछ दिन पहले ही मेरे पिता को हर्ट अटैक आया और मेरे पिता जी की आकस्मिक मृत्यु हो गई

"सो सॉरीरिंनी ने संवेदना के दो शब्द सुनील के पिता की मृत्यु पर कहे।

"इस सब के बाबजूद मैंने अपनी बहन की शादी की। मेरी बहन के परिवार वाले बहुत ही सज्जन लोग हैं। आज मेरी बहन बहुत सुखी जीवन बिता रही है। मैं जब यह सब आज सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे माता-पिता ने जो अच्छे काम अपनी ज़िंदगी में किये और जो संस्कार हम लोगों को बचपन से ही दिए यह सब उसकी वज़ह से है और भगवान की कृपा भी हम पर बनी हुई हैयह कह कर सुनील ने राहत की साँस ली।

रिंनी ने सुनील की दुख भरी कहानी सुनी और अपनी ओर से सहानभूति भी जताई। पर वह अभी भी यह नहीं समझ पा रही थी कि इन सब बातों का और सुनील के अमेरिका चलने से क्या मतलब है?

रिंनी सुनील की आँखों में देख कर जानना चाह रही थी कि सुनील के दिमाग़ में आखिर क्या चल रहा है?

सुनील भी जान रहा था कि रिंनी कोई बच्ची तो नहीं है और उसके दिमाग़ में मेरे बारे में बहुत कुछ जानने की उत्सुकता बनी हुई है।

सुनील ने रिंनी को बताया,अब मेरी सारी जिम्मेदारियाँ पूरी हो गई हैं और अब मैं भी ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहता हूँ इसलिये जब आपका विज्ञापन देखा तो मैंने आपसे मिलने का निर्णय लिया। मुझे लगा कि हम मिल कर आगे की राह पर एक साथ चल पाएँगे। पर आपकी ज़िद्द कि आप अमेरिका जाना चाह रही हैं तो यह कहीं कहीं मेरी सोच के साथ मेल नही खाती।"

रिंनी ने भी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, "अमेरिका तो मैं जाना चाहती हूँ। इसमें कोई शक़ नहीं और शायद जाऊँगी भी पर मैं अभी आपके विचारों से मेल मिलाप नहीं बिठा पा रही हूँ इसलिये मैं आपके साथ कुछ गुफ़्तगू और करना चाहूँगी हो सकता है मुझे आपकी बात अच्छी लगने लगे। चलिये पहले हम लोग खाना खाते हैं मुझे बहुत भूख लगी है। खाने के दौरान हम लोग अपनी बातचीत जारी रखेंगे।"

यह कह कर रिंनी ने सुनील का हाथ अपने हाथ में लिया और बुफे टेबल की ओर बढ़ चली। सुनील ने भी कुछ अजीब सा महसूस किया। किसी हम उम्र महिला ने उसे इतने करीब से पहली बार जो छुआ था। सुनील अचंभित-सा बस रिंनी के पीछे पीछे हो लिया.....





मित्रों की बेहद मांग पर " रिंनी खन्ना कहानी उसकी जुबानी..." जो कि विगत दिनांक 07-08-2016 को एक अनूठे प्रयास के अंतर्गत फेसबुक पर धारावाहिक के रूप में प्रस्तुत की जा रही है, का अब तक दिनांक 21-08-2016 का संकलित रूप पेश करने में मुझे बेहद प्रसन्नता हो रही है।
यह प्रयास उन मित्रों और पाठकों को जोड़ने में भी सहयोग करेगा जो किसी कारण वश इस कहानी से प्रारंभ से नहीँ जुड़ पाये थे।

धारावाहिक का स्वरुप बना रहे इसलिये मूल कथानक को प्रकाशन को date wise ही रहने दिया गया है।

अंत में बस प्रभु से यही प्रार्थना है कि मैं अपने उन प्रयासों में आप सभी का आशीर्वाद प्राप्त कर सकूँ तथा एक स्वस्थ मनोरंजन प्रदान करते हुए आजकल के युवक और युवतियों के मन में अपने भविष्य को लेकर जो चिंताए सता रहीँ हैं उनका कोई सर्वमान्य हल भी दर्शा पाऊँ।

बस यही और कुछ नहीँ।आप कहानी से जुड़ें और देखें कि आगे क्या होता है:--------

रिंनी खन्ना की कहानी उसकी जुबानी......

07th August, 2016

रिंनी खन्ना, जी सही सुना आपने मेरा नाम रिंनी खन्ना ही है। आप से कुछ रोज़ पहले मुलाक़ात हुई थी तब मैं आपको समझ नहीँ पाई थी। अब बहुत बेहतर समझती हूँ मैं, आपको......

यह कहानी एक रिंनी खन्ना की नहीँ वरन उन तमाम रिंनी खन्ना जैसी लड़कियों की है जो आज समाज में अपनी जगह बनाते हुए एक आम ज़िंदगी जीना चाहतीं हैं।

रिंनी ने एक विज्ञापन क्या दिया, शांत तालाब में जैसे सैलाब आ गया। किसी ने कुछ कहा, किसी ने कुछ। आखिर उस विज्ञापन में ऐसा क्या था जिस पर इतना बबाल हो गया।

रिंनी ने बस यही तो विज्ञापन दिया था कि एक अदद मर्द की ज़रूरत है जो उसके साथ रह सके।
समाज सेवी संस्थाओं ने रिंनी के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया।कुछ मनचलों को यह विज्ञापन बहुत पसंद आया। कुछ बुजुर्गवार ने यह कह कर दुत्कार दिया कि हाय यह कैसा ज़माना आ गया है। मसलन जिसके मुँह जो आया कहा।

रिंनी इन सब से बेख़बर अपनी ही दुनियाँ में ज़िंदगी जी रही थी। उसकी सोच सबसे निराली जो थी।उसका मानना था कि जिंदगी जब तक अपने हिसाब से न जी जाये तो ऐसी ज़िंदगी का क्या मतलब? खासतौर पर किसी का ग़ुलाम बन कर रहना कम से कम उसके लिये मुनासिब नहीँ था।
बहरहाल, रिंनी ने यह तय कर लिया, कि वह किसी की नहीँ सुनेगी और अपने मन की कर के रहेगी। लिहाज़ा उसने उन आवेदनों पर गौर करना शुरू किया जिन्होंने उसके विज्ञापन के उत्तर में आये थे।

आवेदनों के गठ्ठर से उसने कुछ का चुनाव किया और एक एक कर आवेदकों को विभिन्न जगहों पर बुला कर इंटरव्यू की प्रक्रिया शुरू की।

उन आवेदकों में जो पहले नंम्बर पर आया उन सज्जन का नाम था, सुनील। सुनील को उसने होटल पार्क में लंच पर बुलाया और एक लंबी चर्चा करी। पहले तो अपने बारे में बताया कि उसने आईआईएम से (अहमदाबाद) MBA किया है और वह एक मल्टीनेशनल कंपनी में सीनियर पोस्ट पर है और उसका एनुअल पैकेज लगभग 24 लाख रूपये है और निकट भविष्य में वह अमेरिका जा कर वहीँ सेटल होने की सोच रही है।

रिंनी ने पूछा, "आपका क्या विचार है?"

क्रमशः

8th August, 2016

“जी मैं कुछ समझा नहीँ !" सुनील ने अनजान बनते हुए पूछा।

"मेरा मतलब है कि मैं शीघ्र ही अमेरिका जाने वाली हूँ। क्या आप मेरे साथ आ सकेंगे?” रिंनी ने अपना प्रश्न सीधे सीधे पूछ लिया।

"सोचना पड़ेगा, इतना आसान नहीँ है कि मैं अभी कह दूँ कि मैं आपके साथ चल पड़ूँगा।"
"क्या मैं यह समझूँ कि आप मेरे साथ आना नहीँ चाहते या कोई मज़बूरी है?" रिंनी पूछ बैठी।

"जी नहीँ, मैं आपको अभी किसी भी ढंग से समझ नहीँ पाया हूँ। मुझे कुछ वक़्त लगेगा"
"चलिये यह भी सही है। एक दूसरे को जानना बहुत ज़रूरी है "रिनीं ने कहा।

सुनील ने शरुआत की और धीरे धीरे उसने, वह सब, स्वयं के बारे में, परिवार के बारे में, अपनी पसंद और नापसंद और भी बहुत कुछ जो वह बता सकता था, सब कुछ रिनीं को बता दिया।

.......और फिर उसने अपनी निग़ाह रिनीं के चेहरे पर गढ़ा दीं जैसे कि वह भी रिंनी के बारे में सब कुछ जानना चाहता है उससे पहले कि वह यह बता पाये कि क्या वह रिंनी के साथ अमेरिका आ सकेगा या नहीँ?

रिंनी भी तेज तर्रार युवती थी, सुनील का आशय समझ गई और बोली, "मुझे यह बात बहुत अच्छी लगी कि पहले हम एक दूसरे के बारे में जान तो लें, उसके बाद ही कोई निर्णय करना ठीक रहेगा "
इसके बाद रिंनी ने भी अपने बाबत सब कुछ बताया कि वह एक उन्मुक्त स्वभाव की और ज़िन्दगी अपनी शर्तों पर जीने में विश्वाछस रखती है। यह भी कि उसे किसी भी प्रकार खाने पीने या खुलेआम रहने में कोई उज्र नहीँ है। उसने यह भी बता दिया कि उसके माता पिता की मृत्यु पिछले चंद सालों पहले ही हुई है और ऐसा कोई सगा सम्बंधी नहीँ है जिन पर वह भरोसा कर सके।
रिंनी के बारे में इतना जानकर सुनील ने सन्तोष जताया और अफ़सोस भी कि उसका कोई सगा सम्बंधी विश्वाकस लायक नहीँ है।

सुनील ने रिंनी से कहा, "लगता है यही अवधारणा कि आपका अब कोई नहीँ है आपको मज़बूर कर रही है एक विश्वगसनीय साथी की तलाश करने के लिये"

"जी हाँ। एक तो यह दूसरा इसलिए भी कि मैं स्वतंत्र विचारों की हूँ इसलिए भी मेरे लिए यह ज़रूरी है जानना कि जिसके साथ मैं जीवन में आगे बढ़ना चाहती हूँ वह व्यक्ति कैसा है, उसका स्वभाव कैसा है, क्या मेरी और उसकी जोड़ी बन पायेगी या नहीँ? क्या हम लोग साथ साथ ख़ुशी ख़ुशी रह पाएंगे या नहीँ?"

"आपने बिल्कुल सही फ़रमाया और यह ज़रूरी भी है विशेषरूप से जब आप एक दूसरे मुल्क़ में जाकर बसने की सोच रहीँ हो", सुनील ने उत्तर देते हुए कहा, " मेरे भी मन में यही प्रश्न उठ रहे हैं, जिनका समाधान मुझे करना है कि वास्तव में क्या हम लोग खुश रह पाएंगे?"

क्रमशः

9th August, 2016

"लगता है कि आप मेरे साथ अमेरिका आने में रूचि नहीँ रखते हैं," रिंनी ने सुनील से कहा, "चलिये इस पॉइंट को बाद में देखते हैं, पहले यह बताइये कि क्या पीजियेगा, आज आप मेरे मेहमान हैं?"

"मैं तो कोई सूप लेना चाहूँगा, क्लियर सूप क्रीम के साथ मेरे लिए ठीक रहेगा", सुनील ने कहा।

"दोपहर का वक़्त है और गर्मी भी अधिक है अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं ठंडी बियर ले सकती हूँ?” रिंनी ने सुनील की ओर देखते हुए पूछा।

सुनील ने उत्तर दिया, "आप अपनी मर्ज़ी की खुदमुख्तार हैं, आप लीजिये जो आपको पसंद हो। मैं सूप ही लेना चाहूँगा"

रिंनी ने वेटर को इशारा कर अपने लिये ठंडी बियर और सुनील के लिए क्लियर सूप क्रीम के साथ का आर्डर दिया।

.........और फिर सुनील की ओर देखते हुए कहा, "हाँ तो हम यह बात कर रहे थे कि आप आख़िर मेरे साथ अमेरिका क्यों नहीँ आ पा रहे हैं?"

"बात यह नहीँ है कि मैं अमेरिका आपके साथ आना नहीँ चाहता हूँ।अमेरिका जाना हर उस इंजीनियर का सपना होता है जो बाहर जाकर ज़िंदगी की शरुआत करना चाहता है। पर मेरे विचार इस मामले में कुछ अलग ही हैं। मैंने आई आई टी से फर्स्ट क्लास फर्स्ट में इलेक्ट्रिकल एन्गिन्नेरिंग से पास किया है । देश ने मेरे ऊपर लाखों ख़र्च किये हैं। मेरे ऊपर देश का कर्ज़ है जबतक मैं यह कर्ज़ उतार नहीं देता तबतक मैं अमेरिका जाने की बात सोच भी नहीँ सकता हूँ", सुनील ने जबाब दिया, "मेरी यहाँ भारत सरकार के ऊर्जा मंत्रालय में अच्छी ख़ासी नौकरी लगी हुई है। तनख़ाह भी अच्छी खासी है। मुझे किसी प्रकार की कमी महसूस नहीँ हो रही है।"

"यह तो बड़ी दकियानूसी वाली सोच है। ऐसे अगर मैं सोचूँ तो मेरे ऊपर भी देश का अहसान है और मुझे भी अमेरिका नहीँ जाना चाहिए" रिंनी ने अपना पक्ष रखते हुए सुनील से प्रश्नम किया?
सुनील ने जबाब में कहा," शायद यही फ़र्क है मेरी और आपकी सोच में। यह सोच मेरे जीवन में कूट कूट कर भर दी गई है। मेरे पिता जी जो कि एक हरयाणा के छोटे से शहर में 1947 के राष्ट्र विभाजन के बाद की त्रासदी झेलते हुए आये और फिर एक प्राइमरी स्कूल के टीचर के पद पर नौकरी करते हुए मुझे तथा मेरी छोटी बहन को पाला पोसा और अच्छी शिक्षा देकर जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते रहे। मेरी माँ की उस रेल गाड़ी पर उत्पातियों ने हत्या कर दी जो कि पाकिस्तान से भारत आने वाली आखिरी रेल गाड़ी थी।'

"ओह! यह तो बहुत ही दुखदाई दौर रहा आपके साथ मैं पूरी हमदर्दी रखती हूँ “ रिंनी ने पूछा।
सुनील ने बताया, "मैं आपको क्या बताऊँ कि वो मुश्किल का समय मेरे पिता ने कैसे बिताया, मैं जब याद करता हूँ तो मेरे रौंगटे खड़े हो जाते हैं। मेरे दुखों का अभी अंत नहीँ हुआ बमुश्किल मेरी बहन की शादी एक रोहतक के सम्भ्रान्त परिवार में तय तो हो गयी पर शादी के कुछ दिन पहले ही मेरे पिता को हार्ट अटैक आया और मेरे पिता जी की असामयिक मृत्यु हो गई।"

"सो सॉरी” संवेदना के दो शब्द रिंनी ने सुनील के पिता की म्रत्यु पर कहे।

"इस सब के बाबजूद मैंने अपनी बहन की शादी की। मेरी बहन के परिवार वाले बहुत ही सज्जन लोग हैं। आज मेरी बहन बहुत सुखी जीवन बिता रही है। मैं जब यह सब आज सोचता हूँ तो मुझे लगता है कि मेरे माता पिता ने जो अच्छे काम अपनी ज़िंदगी में किये और जो संस्कार हम लोगों को बचपन से ही दिए यह सब उसकी बज़ह से है और भगवान की कृपा भी हम पर बनी हुई है” यह कह कर सुनील ने रहत की साँस लीं।

रिनीं ने सुनील की दुख भरी कहानी सुनी और अपनी ओर से सहानभूति भी जताई। पर वह अभी भी यह नहीं समझ पा रही थी कि इन सब बातों का और सुनील का अमेरिका न चलने का क्या मतलब है?

रिंनी सुनील की आँखों में देख कर जानना चाह रही थी कि सुनील के दिमाग़ में आखिर क्या चल रहा है।

सुनील भी जान रहा था कि रिंनी कोई बच्ची तो नहीँ है और उसके दिमाग़ में मेरे बारे में बहुत कुछ जानने की उत्सुकता बनी हुई है।

सुनील ने रिंनी को बताया, "अब मेरी सारी जिमेद्दारियां पूरी हो गई हैं और अब मैं भी ज़िंदगी में आगे बढ़ना चाहता हूँ। इसलिये जब आपका विज्ञापन देखा तो मैंने आपसे मिलने का निर्णय लिया। मुझे लगा कि हम मिल कर आगे की राह पर एक साथ चल पाएंगे। पर आपकी ज़िद्द कि आप अमेरिका जाना चाह रही हैं तो यह कहीँ न कहीं मेरी सोच के साथ मेल नहीँ खाती।"
रिंनी ने भी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, " अमेरिका तो मैं जाना चाहती हूँ। इसमें कोई शक़ नहीँ और शायद जाऊँगी भी पर मैं अभी आपके विचारों से मेल मिलाप नहीँ बिठा पा रही हूँ इसलिये मैं आपके साथ कुछ गुफ़्तगू और करना चाहूँगी। हो सकता है मुझे आपकी बात अच्छी लगने लगे। चलिये पहले हम लोग खाना खाते हैं मुझे बहुत भूख लगी है। खाने के दौरान हम लोग बातचीत जारी रखेंगे।"

यह कह कर रिंनी ने सुनील का हाथ अपने हाथ में लिया और बुफे टेबल की ओर बढ़ चली।सुनील भी ने कुछ अजीब सा महसूस किया। किसी हम उम्र महिला ने उसे इतने करीब से जो छुआ था। सुनील अचिम्भित सा बस रिंनी के पीछे पीछे हो लिया.....

क्रमशः।

10th August, 2016

रिंनी ने बुफ़े टेबल के पास जाकर एक प्लेट उठाई और सुनील की ओर बढ़ा दी। सुनील ने बड़े ही स्वाभिक रुप में कहा, "पहले आप"

रिनीं ने प्रत्युत्तर में कहा, "आप मेरे मेहमान हैं, पहले आप"

"नहीँ, नहीँ लेडीज़ फर्स्ट प्लीज"

"पहले आप पहले आप में खाना ठंडा हो रहा है। लखनऊ के नबाब लोंगो के बीच ठीक लगता था यह अदब, हम लोग साधारण से लोग हैं। लीजिये भी न रिंनी ने जोर देते हुए कहा”

"आप नहीँ मानेंगी, चलिये आइये” कह कर सुनील ने प्लेट रिंनी के हाथ से ले ली। जब रिंनी ने भी अपने लिए प्लेट उठा ली तो सुनील ने कहा, "अब और आगे न कहिये पहले आप पहले आप"

रिंनी ने कुछ कहा तो नहीँ पर मन ही मन सुनील को धन्यवाद जरूर दिया। रिंनी ने अपने लिए मन पसंद डिशेज में से थोड़ी थोड़ी भोजन सामग्री ली और सुनील की ओर इशारा कर के कहा अब आप भी जो चाहैं ले लीजिये। सुनील ने भी मनपसन्द डिशेज में से भोजन अपनी प्लेट में लिया और फिर दोंनो टेबल पर आकर बैठ गए।

सुनील के मन में कहीँ यह ख़्याल आ रहा था कि रिंनी अब उसके टेबल मैनर्स पर पैनी नजर रखेगी। उसने बड़ी सावधानी से छुरी कांटे का प्रयोग करते हुए रिंनी के साथ साथ भोजन लेना शुरू किया।वह किसी भी तरह का रिस्क नहीँ लेना चाहता था कि रिनीं उसे गँवार समझे।

रिंनी धीरे से बोली, "चलिये इतनी तो तस्सली है कि आप भी मेरी तरह नॉनवेज ले लेते हैं। मुझे लगा था कि कहीँ आप प्योर वेजीटेरियन न हों"

सुनील को इसकी अपेक्षा थी कि रिंनी यह प्रश्नल पूछेगी जरूर, वह भी जबाब देने के लिए तैयार था, उसने कहा, "हम लोग पाकिस्तान के फ्रंटियर इलाके के मूल बाशिंदे हैं और नॉनवेज ख़ूब खाते पीते हैं"

"मतलब आप पीते भी हैं", रिंनी ने सुनील की आँखों में आँखे डालते हुए पूछा।

सुनील के दिल में तो एक बारगी आया, कह दे कि तुम आँखों से पिलाओ तो भला कौन मना कर सकता है। पर अपने दिल के जज़्बातों पर काबू करते हुए बोला, “हाँ, पीता हूँ ख़ूब छक के पीता हूँ दूध, दही की लस्सी और वो भी बड्डे गिलास विच। कदी कदी फलों का जूस भी"

इतनी सादगी से कही गई बात पर मन ही मन रिनीं भी सुनील को दाद दे रही थी पर ऊपरी मन से बोली, "तो मैं यह मान लूँ कि आप बियर और वाइन नहीँ पीते'

सुनील ने चुप रहते हुए सर हिला के जबाब दिया कि नहीँ, नहीं।

रिनीं तो टेस्ट ले रही थी उसने बड़े प्यार से कहा, "अगर मैं कहूँ कि मेरे कहने पर एक सिप ले लीजिए तब भी नहीं"

सुनील ने जबाब दिया, "तब भी नहीँ,कदापि नहीँ"

"चलिये जाने भी दीजिये यह कौन सी मुई इतनी अच्छी चीज है कि जिसके लिये मैं आपको नाराज़ करूँ। मैं भी आज आपका साथ दूँगी और अब और मुझे भी नहीँ पीनी है” रिनीं ने बहुत प्यार भरे अंदाज़ में यह बात कही और बियर का गिलास अपने सामने से सरका दिया।

रिनीं और सुनील ने कुछ अपने बारे में और कुछ अपने दोस्तों के बारे में गपशप की और एक दूसरे को जितना समझ सकते थे, समझने का प्रयास किया।

रिनीं को महसूस हुआ कि सुनील एक भोला भाला और चरित्रवान इंसान है और धीरे धीरे इन्हें वह अपने सांचे में ढाल पाने में सफल होगी। सुनील को भी लगने लगा कि रिंनी दिल की बहुत साफ़ इंसान है और एक दो आदत अभी जो मुझे नागवार गुजर रही है, उनको बर्दास्त किया जा सकता है।

लंच के बाद दोंनों ने डेजर्ट में फ्रूट आइसक्रीम ली और बहुत देर तक बातचीत का दौर चलता रहा। दोनों ही एक दूसरे से बात करने में आनन्दित महसूस कर रहे थे। एक लंबा समय बात करते करते कब गुजर गया इसका अहसास ही उन्हें न हुआ।

रिंनी ने जब अपने मोबाइल की घड़ी में देखा तो उसके मुँह से अचानक निकल गया, "ओह माय गॉड शाम के चार बज गए'

सुनील ने भी जबाब दिया, "बातों बातों में इतना वक़्त गुजर गया पता ही न लगा"

रिनीं ने सुनील की आँखों में झांकते हुए धीरे से कहा, "अब हमें चलना चाहिये"

सुनील ने भी जबाब दिया, "जी अब चलना ही बेहतर होगा आपका बहुत समय जाया किया"

रिनीं ने सुनील का हाथ अपने हाथ में लिया और बोली, "Time spent today is an investment and not a waste” और फिर सुनील के हाथ को अपने होंटो तक लाके किस kiss किया और कहा “हम फिर मिलेंगे”

सुनील आत्मविभोर था, कुछ हक्का बक्का सा। वह कुछ भी नहीँ बोल पाया, बस रिनीं की मस्त आँखों में खोया खोया सा महसूस कर रहा था।

रिनीं और सुनील दोनों साथ साथ होटल के पोर्च में आये। रिंनी का ड्राइवर, रिंनी को देख कर कार ले आया और रिनीं धीरे से कार में बैठते हुए सुनील से बोली, "हम एक बार और मिलेंगे, मिलेंगे न?"

सुनील ने होश संभालते हुए कहा, "बिल्कुल मिलेंगे, ज़रूर मिलेंगे"

रिनीं ने कार का शीशा नीचे करते हुए सुनील को वाय वाय कहा। सुनील ने भी वाय कहा।
.........और इस तरह रिनीं की कार होटल के बाहर जाती हुई सुनील की आँखों से ओझल हो गई.......

सुनील असमंजस में था, कुछ समझ नहीँ पा रहा था कि रिंनी के दिल में आख़िर क्या चल रहा है? फिर मन हल्का करते हुए सोचने लगा, देखते हैं आगे क्या होता है? सुनील ने भी अपनी गाड़ी की चाभी बेल बॉय को दी और गाड़ी आने तक पोर्च में ही खड़ा इंतज़ार रहा। गाड़ी आते ही, वह गाड़ी में बैठा और अपने घर की ओर निकल लिया।

दूसरी ओर रिनीं भी अपने घर के लिए पहले ही निकल चुकी थी। घर पहुंचने के बाद ईजी ड्रेस में आने के बाद वह ड्राइंग रूम में बैठ कर सुनील के बारे में सोचने लगी। उसका मन कह रहा था कि सुनील एक अच्छा इंसान है पर उसकी अमेरिका न चलने की हठधर्मिता को लेकर वह चिंचित भी थी। उसको लग रहा था कि ऐसे इंसान को जहां आराम से टेम (tame) किया जा सकता है, पर कभी कभी उनको झेलना मुश्किल भी हो जाता है।

इसी उधेड़ बुन में उसका मन उलझा रहा। कुछ देर बाद उठी और किचिन में जाकर अपने लिए चाय बनाई और फिर अपने बेड रूम में चली गई। चाय पीते पीते उसकी नज़र उस फोल्डर पर पड़ी जिसमें कुछ और लोगों के आवेदन भी रखे हुए थे।

चाय सिप करने के साथ साथ उसने वह फोल्डर देखना शुरू किया।

फोल्डर में उसकी निग़ाह राज कपूर की फ़ोटो और डिटेल्स पर गई। कुछ देर तक उसने राज के बारे में डिटेल्स को ध्यान से पढ़ा। उसे लगा की राज से मिलने में कोई हर्ज़ नहीँ है, एक बार उससे मिल लेती हूँ फिर उसके बाद ही सुनील से मुलाक़ात करना ठीक रहेगा।

रिंनी ने राज को फोन कर मुलाक़ात करने को कहा।
क्रमशः

11th August, 2016

रिंनी ने राज के साथ मीटिंग के लिए नीमराना हेरिटेज रिसॉर्ट का चुनाव किया और एक वीकेंड पर शुक्रवार की शाम उसने होटल में चेक इन किया। वैसे तो वह इस रिसॉर्ट में पहले भी कई बार आ चुकी थी। पर इस बार यहाँ आने का मक़सद और ही था। राज के डिटेल्स में उसने यह पढ़ लिया था कि वह एक वेल टू डू फ़ैमिली से आता है। वह यह अच्छी तरह जानती थी कि जब मुलाक़ात वो भी ऐसी बातों के लिये जहां जीवन साथी की तलाश करनी हो तो हमेशा अपनी पोजीशन स्ट्रॉन्ग रहनी चाहिए।

अगले दिन शनिवार को दुपहर के भोज पर राज ने रिनीं से मुलाक़ात तय की थी।राज इसलिये वह अपने घर से दस बजे लगभग निकला, क्योंकि ग्रेटर कैलाश से नीमराना लगभग 120 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वह जानता था कि दिल्ली-जयपुर हाईवे पर ट्रैफिक अधिक रहता है और कम से कम दो घँटे का समय नीमराना तक पहुँचने में लगेगा।

नीमराना फ़ोर्ट के गेट के सामने उसने अपनी लग्जरी कार बी ऍम डब्लू पार्क की और किले के मुख्य द्वार के रास्ते वहाँ पहुँचा जहाँ रिंनी उसका इंतज़ार कर रही थी!

रिनीं ने जैसे ही राज को देखा तो वह उसकी ओर बढ़ चली और गर्म जोशी के साथ हाथ मिला कर स्वागत किया। धीरे धीरे चलते हुए वो दोनों लोग होटल के डाइनिंग हाल तक आ गए। रिंनी ने एक टेबल की ओर इशारा करते हुए राज से पूछा, "क्या हम लोग यहाँ बैठें? यहां से बाहर का व्यू भी बहुत सुंदर दिखता है"

राज ने भी एक सभ्य और सुशील इंसान का परिचय देते हुए कहा, "अगर आपको यह जगह अच्छी लगती है तो यह वाकई अच्छी है। हम लोग यहीँ बैठते हैं"

रिंनी और राज दोंनो टेबल पर एक दूसरे का सामने बैठ गए।

राज ने रिनीं से पूछा, "क्या आप यहाँ अक्सर आती रहती हैं?"

"हाँ, जब मेरा मन दिल्ली की भीड़भाड़ से उकताने लगता है तो चेंज के लिये आ जाती हूँ। आपको यह जगह कैसी लगी?" रिंनी ने राज से बातचीत में पूछा।

"मैं तो यहां पहली बार आया हूँ और वास्तव में कहूँ तो इस ऐतिहासिक किले ने मेरा दिल जीत लिया और मैं आपकी पसंद का मुरीद हो गया" राज ने रिंनी के चेहरे पर अपनी नज़र स्थिर करते हुए कहा कुछ ऐसे कि वह यह जानना चाह रहा ही कि उसकी तारीफ़ रिनीं को अच्छी लगी या नहीं.......

रिंनी ने शांत स्वभाव से कहा, "जी मुझे यह जगह नैसर्गिक आनंद देती है इसलिए मुझे बेहद पसंद है"

मन ही मन राज ने अपनी पीठ ठोंकी और चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कुराहट भी। बातचीत कुछ थम सी गई थी यह बात रिंनी ने महसूस की इसलिये उसने पहल करते हुए राज से पूछा, "आप क्या पिएंगे?"

"गर्मी बहुत है, आप समझ सकती हैं कि मौसम की दरकार है एक अदद ठंडी बियर", राज ने उन्मुक्त भाव से अपनी चॉइस बता दी।

रिंनी ने वेटर को बुला कर ऑर्डर दिया, "साहेब के लिये एक ठंडी बियर और मेरे लिये एक फ्रेश स्वीट लाइम प्लीज"

क्रमशः

12th August, 2016

राज ने कौतुहलवश पूछ ही लिया, "आप तो फ्रेश स्वीट लाइम ले रहीँ है"

"जी मेरे लिए यही ठीक है" रिंनी ने जबाब दिया।

"तो मैं भी फ्रेश लाइम ही ले लूँगा"

"नहीँ आप बाहर से आये हैं और मौसम भी गर्म है आप बियर ही लीजिये" आँखे तरेरते हुए रिंनी ने कहा।

राज ने बात को आगे बढ़ाते हुए पूछा, “आप अपनी बैकग्राउंड के बारे में कुछ बताना चाहेंगी"
"क्यों नहीँ?” रिंनी ने वह सब बड़े साफ दिल से अपने बारे में सब कुछ राज को बता दिया जो कि सुनील को बताया था।

रिंनी ने राज से पूछा, "आप कुछ अपने बारे में भी बताइये न"

राज ने बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए रिंनी से कहा, "वैसे तो मैं अपने बाबत सारे डिटेल्स आपको भेज चुका हूँ फिर भी अगर आप कहती हैं तो मैं फिर बयान करता हूँ" राज ने रिंनी की आँखों में देख कर बताया, "मैं अपने पिता की दूसरे नम्बर की संतान हूँ, मुझ से बड़े मेरे भाई साहब हैं जिन्हें दुनियाँ राम के नाम से जानती है। मेरी एक छोटी बहन भी है शिवानी, उसकी शादी रामपुर के एक खत्री परिवार में हुई है। मेरे बड़े भाई साहब की शादी मुरादाबाद के सम्पन्न मेहरोत्रा घराने में हुई है। मेरे दो भतीजे हैं जो दिल्ली के डीपीएस स्कूल में पढ़ रहे हैं। हमारा परिवार जॉइंट फॅमिली में अपनी कोठी में ग्रेटर कैलाश में रहता है और हमारी ज्वेलरी की बहुत बड़ी एक दुकान करोलबाग में और दूसरी चाँदनी चौक में है। रिंनी जी आप भी तो खन्ना परिवार से हैं"

रिंनी ने राज से कहा, "जी आपने सही फ़रमाया हमारा परिवार भी लखनऊ का जाना माना परिवार था पर अब उस परिवार का कोई भी नही बचा है बस अकेले मेरे"

इतने में वेटर बियर और फ्रेश लाइम लेकर आया।राज को बियर और रिंनी को सामने फ्रेश लाइम सर्व किया। बातों का सिलसिला कुछ थम सा गया।

रिनीं ने पूछा, "आप कुछ स्टार्टर्स लेंगे?"

राज ने मेनू कार्ड पर निग़ाह डाली और रिनीं से पूछा, "आप नॉन वेज तो लेती होंगीं"

"जी, मेरे लिए कोई फिश की डिश मंगा दीजिये और अपनी चॉइस का भी आर्डर कर दीजिये' रिंनी ने सुझाव दिया।

राज ने वेटर को इशारा कर स्टार्टर्स का आर्डर दिया और मेनू कार्ड को बहुत ध्यान से देखने लगा। मेनू कार्ड के कवर पर नीमराना किले की शानदार फोटो थी और किले का इतिहास भी।

राज ने नीमराना किले के बारे जानने की इच्छा रिंनी से जताई। रिंनी ने कहा, "मैं बताती हूँ आपको इस किले और रिसॉर्ट का इतिहास। यह मेरी जुबान पर है। मैंने यहाँ आते जाते इन दरों दीवारों को बहुत क़रीब से देखा पहचाना है।"

नीमराना किले के बारे में कुछ भी बताने के पहले रिंनी एकदम खमोश हो गई जैसे कि अपनी यादों से कुछ ढूंढ कर कोई नायाब चीज बताने वाली हो।

रिंनी ने नीमराना किले के बारे में बताते हुए एकबारगी लगा कि वह भूत काल में गोता लगाते हुए कुछ समय के लिये खो गई हो।रिंनी ने किले के बारे में बताना इस तरह शुरू किया जैसे कि इतिहास का वो पन्ना खोलने जा रही हो जिसकी जानकारी आम आदमी को नहीँ होती है.........

क्रमशः

13th August, 2016

रिनीं ने किले के बाबत राज को बताया कि 1464 ई में बना नीमराना किला-महल 1986 में शुरू हुआ भारत के सबसे पुराने हेरिटेज रिसॉर्ट्स में से एक है। यह एक ऊँची पहाड़ी पर स्थित है और यहां से आसपास के सौंदर्य और शानदार प्राकृतिक दृश्य दिखते हैं। यह निमोलामीओ नाम के साहसी स्थानीय सामुदायिक नेता के कारण प्रसिद्ध हुआ, जो दिल्ली-जयपुर राजमार्ग पर 122 किलोमीटर की दूरी पर है। कहते हैं यहाँ के शासक पृथ्वी राज चौहान की वंशावली और उन्ही के परिवार से हैं। चौहानों की यह राजधानी तब मंधान (अलवर के पास) से नीमराना स्थानांतरित कर दी गयी, जब 1467 में राजा धूपराज ने शहर को स्थापित किया। आजकल नीमराना किला एक प्रमुख विरासत स्थल है। जब आप इस होटल के अंदर कदम रखेंगे, तो वास्तव में लगता है कि आप एक बिल्कुल अलग दुनिया में पहुंच गये हैं। यहाँ का माहौल काफी लुभावना है और इसमें उस ज़माने के फर्नीचर, पुरानी कलाकृतियां और भित्ति चित्र देखे जा सकते हैं। लगता है कि वक़्त जैसे ठहर गया हो और आप धीरे धीरे इतिहास में चलते चले जाते हैं।

कहा जाता है कि समय के साथ बदलाव न अपनाने और राज्य के वित्तीय संसाधन में गिरावट के कारण इस अनमोल विरासत को मात्र कुछ ही लाख रुपयों के लिये नीमराना होटल्स ग्रुप को बेच दिया गया था। पर इस ग्रुप ने कड़ी मेहनत और सूझ बूझ का  परिचत देते हुए ठीक ठाक कराया 

 


शाम के धुंधलके के पहले ही उसने चाय पी और जेट रेड कलर का इवनिंग गाउन और मैचिंग सैंडल पहन कर और क़िले की रौशनी की छटा को देखने के लिये निकल पड़ी। क़िले के चारदीवारी के भीतर घूमते हुए और चारों तरफ सुहावने दृश्यों को देख कर उसका मन कुछ हल्कापन महसूस कर रहा था। घूमते घूमते उसकी मुलाक़ात रवि जिंदल नाम के एक व्यक्ति से हुई, जो कि जिंदल परिवार का सदस्य था और जिनके स्टील के जगह जगह देश और विदेश में कारखाने और व्यवसाय था।

रिंनी ने हँसते हुए उत्तर दिया, "जो मुझे करना चाहिए था। पहले बंगलुरू में IBM को ज्वाइन किया। दो एक साल उनके साथ काम किया। फिर दिल्ली NCR में मुझे एक और मल्टीनेशनल के साथ ब्रेक मिला और मैं दिल्ली आ गई। दिल्ली शूरू से ही मेरे दिल के करीब थी तो मैं दिल्ली आ गई और फ़िलहाल अपने जॉब को एन्जॉय करते हुए ज़िंदगी जीने की कोशिश में लगी हुई हूँ"


कंपनी वालों ने उसे भरोसा दिलाया चूँकि उसका ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा रहा है, अगर उसको भविष्य में कभी भी जरूरत पड़े तो वह बिना किसी झिझिक के कंपनी ज्वाइन कर सकती है। रिनीं ने भी कहा उसने भी कंपनी में इसे अपना मान कर काम किया है और जब कभी भी जरूरत होगी तो वह बेझिझिक दोबारा हाज़िर होगी। उससे यह भी पूछा गया कि वह कब रिलीव होना चाहेगी। रिंनी ने कहा अगले सप्ताह बुद्धवार तक।


वृहस्पतिवार को ठीक 6 बजे रवि की कार आ गई। रिनीं तो तैयार ही थी कार में बैठ कर रवि के घर के लिये निकल ली। रिनीं ने एक मैसूर सिल्क की हल्की ग़ुलाबी रंग की साड़ी मैचिंग ब्लाउज़ के साथ पहनी थी। तैयार होते वक़्त उसने अपने आप को बार बार शीशे में निहारा कि वह कैसी लग रही है? वह जानती थी कि आज शाम की उसकी मुलाक़ात बहुत अहम है और भविष्य का सारा दारोमदार इस बात पर टिका है कि वह रवि के माता के प्रश्नों का जबाब ठीक दांग से दे पाती है या है या नहीं? वह अपने आप को मानसिक रूप से नहुत स्ट्रोंग मानती थी।


"तुम चलो हम लोग आते है रवि ने सतीश की ओर देखते हुए कहा। और फिर रिनीं की ओर मुड़ कर बोला, "मेरे बाबूजी बहुत ही साधारण व्यक्ति हैं। मेरी माँ की बिज़नेस पर पकड़ शरू से ही रही है और दीन दुनियाँ की ख़बर वही रखतीं हैं। बहुत पैनी नजर है उनकी, झूठ बहुत जल्दी पकड़ती हैं। जरा सावधान रहने की ज़रूरत है। वैसे चिंता करने की कोई आवस्यकता नहीँ है, मैं हूँ न"
रिनीं तो बैठक की साज सज्जा और बनावट देख कर ही मन्त्रमुग्ध थी, उसकी नज़र में तो अमेरिका के राष्ट्रपति की बैठक भी इसके सामने फ़ीकी सी लगी। कितना बड़ा झाड़फानूस लगा हुआ था, लगा कि बेल्जियम से मंगाया गया होगा। हाथी दांत के बनी हुई सोफेसेट की किनारियाँ और सागौन की लकड़ी के ऊपर पच्चीकारी और कीमती जड़ाऊ पथरों का काम, शालीन लेकिन मनमोहनेवाली टेपेस्ट्री, कश्मरी कालीन और भी न जाने क्या क्या। रिनीं की निग़ाह जिधर भी पड़ रही थी बस वो सभी चीजें उसकी कल्पना में समाती जा रहीं थी।

"यह कहना जदीबाज़ी होगा कि क्या किया जाय जिससे कंपनी तरक्की के रास्ते पर चले। इसके लिए कंपनी का एग्जिस्टिंग इंफ्रास्ट्रक्चर और दूसरे संसाधन तथा वित्तीय हालात को जाँचना होगा और फिर ही कोई दूरदृष्टि से उचित निर्णय करना उचित होगा।...हाँ, फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि अपने उत्पाद की श्रेष्ठता कायम रखते हुए अपने competitors को कैसे मात देनी है उसके लिये हमें एक योजना बद्ध तरीके से काम करना होगा। साथ ही यह भी देखना अनिवार्य होगा कि देश की राजनितिक सोच उद्द्योग के प्रति कैसी है?"