Thursday, January 29, 2015

एक नीम अपने आगंन हो, होती है इच्छा सबकी,



एक नीम अपने आगंन हो, होती है इच्छा सबकी,
कुछ की पूरी होती, रह जाती है कुछ की आधीअधूरी।

कलुआ जाटव का आंगन खाली है
एक पेड नीम का हो इच्छा भारी है।

विरवा होगा तो चिडियां भी आएंगीं,
जीवन की आशाएँ पूरी हो जाएंगी।

नीम नीचे खाट बिछा सोने में लगता अच्छा है,
नीदं आए गहरी और मजा खूब आता है।

उधार किस किस का कब कब देना है,
चिंता इसका बिल्कुल नहीं सताती है।

नीम का एक विरवा जो मै लगाऊँगा,
फल उसका पीढी दर पीढी पाऊँगा।


©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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बार्डर पर शहीद हो रहे हैं अफसर फौजी आला क्यों हो चुप अब किसका करदें मुहँ हम काला !


कलम से_____

बार्डर पर शहीद हो रहे हैं अफसर फौजी आला
क्यों हो चुप अब किसका करदें मुहँ हम काला !

गणतंत्र का जश्न मनता रहा यहाँ, एक आला अफसर और जवान मरता रहा वहाँ।

हमारी श्रद्धाजंली।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

पीताम्बरी ओढ़नी ओढ़के सजाई सेज है पीली सरसों हँस रही देख प्रकृति का खेल।


कलम से____

कहने को आया बसंत मन भरभाया है
लगता कुछ ऐसा मध्यम मध्यम क्षण है।

बह रही ठंडी बयार चुभती चुभती सी है
बस यही मधुमास का पहला चरण है।

पीताम्बरी ओढ़नी ओढ़के सजाई सेज है
पीली सरसों हँस रही देख प्रकृति का खेल।

प्रिये मधुर मधुमास का जो व्याकरण है
प्रकृति का वैभव उसी का अनुकरण है।

छू बसंती वायु सिहरन जागती जो
बस वही मधुमास का पहला चरण है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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वैसे भी बरगद को.... कहते हैं बहुत लंबे समय तक रहना है अकेले ही।



कलम से____

हरा भरा पेड़ था
बरगद का
जो अब सूख गया
सबसे ऊँची टहनी पर
अभी भी
एक गिद्ध राज
कभी कभी
उसके भाई बंधु
और भी
आ जाते हैं
वहाँ विश्राम करने को
सूखे से बरगद
का साथ निभाने को

वैसे भी बरगद
को....
कहते हैं बहुत लंबे समय
तक रहना है
अकेले ही।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Good morning

Monday, January 26, 2015

नेता भारत का ईमान अगर न बेचे अपना हो जाए समग्र भारतवासी का पूरा सपना।


कलम से____

उत्सव का माहौल अब समाप्त हुआ
चलो देखें हमने अभी तक क्या किया।

तरक्की हुई देश की धीरे हुई परंतु हुई
मोदीजी गति प्रदान करने में हैं लगे हुए।

एक दो तीन करार पर बात आगे है बढ़ी
व्यापारिक बात बिगड़ेगी नहीं देखते है अभी।

परमाणु संयंत्र लगें उत्पादन विद्युत बढ़े
देश तो अब इतनी छोटी सी आस करे।

हित किसान के सधें आगे के काम बनें
जनमानस की जाकर तब सांस सधे।

दिल्ली दंगल पर निगाह सभी की है लगी
देखो अबके किस्मत किसकी है खुलती।

नेता भारत का ईमान अगर न बेचे अपना
हो जाए समग्र भारतवासी का पूरा सपना।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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कितनी सरदी है पड़ रही माँ,

कलम से______

कितनी सरदी
है पड़ रही
माँ,
थोड़ा और सो लेने दो

अभी नहीं
आज रहने दो
कल
चली जाऊँगी
एक दिन
और सही
छुट्टी मना लेने दो
बस आज....

चल उठा बेटा
सकूल जाना है
प्रिसिंपल मैम का सर्कुलर
आ गया है
सकूल तो जाना है
उठ....

आज जाकर
पूछूँगी मैम इतने सबेरे
आप कैसे उठ जाते हो
छोटे छोटे बच्चों पर
तरस क्यों नहीं आता
निदिया रानी से भी है
मेरा सवाल
उठा दिया करो
सुबह सुबह......

चलो चलें सकूल...

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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बादलों से घिरी है रात, कहाँ जाओगे गरज़ती हुई है बरसात, कहाँ जाओगे।

कलम से_____

बादलों से घिरी है रात, कहाँ जाओगे
गरज़ती हुई है बरसात, कहाँ जाओगे।

वह घटा उठी धुआँ-धार, कहाँ जाओगे
मूसलाधार के हैं आसार, कहाँ जाओगे।

अंधेरे बढ़ चले हैं बहूत, कहाँ जाओगे
नहीं रौशन हुए हैं चराग, कहाँ जाओगे।

सरद बहूत है यह रात, कहाँ जाओगे
दुशाला भी नहीं है साथ, कहाँ जाओगे।

रास्ते गुम हैं अकेले हो, बड़ा जोखिम है
प्यार की आओ करें बात, कहाँ जाओगे।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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नापाक इरादे हों जिनके उन पर ऐतबार कभी तुम मत करना, लड़ते लड़ते मर जाना हार कभी तुम स्वीकार मत करना।


कलम से_____

नापाक इरादे हों जिनके उन पर ऐतबार कभी तुम मत करना,
लड़ते लड़ते मर जाना हार कभी तुम स्वीकार मत करना।

गणतंत्र दिवस पर दिल्ली है भीगी भीगी सी पर चिंता की कोई बात नहीं है, उत्साह बराबर बना हुआ है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

चंद मुहरों की तलाश में खुदवा दी हवेली पत्थरों पर ढूढंने से अब दूब नहीं दिखती।


कलम से____

गर्दिश ही गर्दिश है चहुँओर छाई हुई
पेडों से भरी अमराई नहीं मिलती।

पढ़ने को बहुत कुछ मिल जाता है
रामायण अब घर में नहीं मिलती।

फर्क कोई नज़र नहीं आता है
हर रोज़ कोई चला जाता है।

बुजुर्गों की ज़रूरत वैसे नहीं पड़ती
शादी ब्याह में ज़रूरत मगर है दिखती।

पूछ लेता है जब कोई गोत्र का नाम
सीधे मुँह आवाज़ नहीं निकलती।

गाँव पता पुरखों को सब भूल बैठे हैं
पत्थरों पर नाम लिखे नहीं मिलते हैं।

चंद मुहरों की तलाश में खुदवा दी हवेली
पत्थरों पर ढूढंने से अब दूब नहीं दिखती।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, January 25, 2015

हम मंजिल की ओर चलें...


कलम से____

गाड़ी जब आएगी
तब आएगी
हम इतंज़ार क्यों करें
चलें अपनी राह चलें
मंजिल भले दूर हो
पास आ ही जायेगी
बस
हम मंजिल की ओर चलें....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Prision and Lake

Krishna

एक दोस्त का फोन सुबह सुबह आया



कलम से_____

एक दोस्त का
फोन सुबह सुबह आया
कहने लगा
गणतंत्र दिवस पर
दिल्ली में
कर्फ्यू होगा
ओबामा जो आ रहे हैं
अपने यहाँ

चलो चलें
मसूरी
वहाँ
इतंजार कोई
करता होगा

सूरज
आसमां से
झाँकता होगा

राह में
बर्फ बिछा
वहाँ कोई
इतंज़ार में
आँखें बिछाये
बैठा होगा.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Thursday, January 22, 2015

शोला अल्हड़ प्रेम का दिल में धड़कता जो था



कलम से_____

हम लोग, जो छोटे शहरों से आये हैं, उन्होंने जीवन के विभिन्न रंग देखे हैं, जिसमें भारतीय रेलों ने भी बहुत अहम रोल निभाया है। हम लोगों का घर भी एक छोटे से रेलवे स्टेशन शिकोहाबाद जंक्शन के पास ही था। स्कूल आना जाना रेलवे प्लेटफार्म से ही हुआ करता था। आज की यह कविता बचपन के इन्टरमीडिएट तक साथ पढ़े मित्र योगेन्द्र कुमार भटनागर के और उन दिनों की यादों के नाम........

रेल 
भारतीय रेल की
रफ्तार अचानक
बढ़ है गई
बाहरी दुनियाँ की
हवा इसे भी
लग गई

फटी फटी आँखों से
निहारा करते थे
वो भाप वाले इंजन
को शंटिग करते
कभी कुछ डिब्बों के साथ
आगे और कभी पीछे
चलते हुए
कितना अपना सा लगता था
वह प्लेटफार्म
हर रोज़ स्कूल जाते वक्त
स्टील गर्डर का बना पुल
टिकट घर के बगल से
गुज़रते हुये ज्योती हलवाई की
जलेबी की दुकान
सुरेश की पान की दुकान
ललुआ के इक्के में
दुअन्नी में शहर के चौराहे
तक की सवारी
फिर स्कूल
और
फिर वही लौटने का सफर
कभी कभी
गार्ड की केबिन में बैठकर
घर तक का सफर
एक हाथ बस्ते पर
दूसरा उसके हाथ पर
वही गीत जुबां पर

जीत ही लेंगें बाज़ी हम तुम
खेल अधूरा छूटे ना
यह प्यार का बंधन
जन्म का बंधन टूटे ना.......

शोला शबनम का

शोला अल्हड़ प्रेम का
दिल में धड़कता जो था

उस चंचल शोख सी
लड़की की आँखों में
दुनियाँ अपनी सी दिखती थी.....

अब सुपर फास्ट
बुलेट ट्रेन .....
.............सब पीछे छूट गया

Today incidentally is also birthday of industrialist Kamalnayan Bajaj ji (23-01-1915).

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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गैरों के किये वार जख्म कहाँ देते हैं, वो अपने ही हैं जो रूह तक हिला जाते हैं.....

"बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ"



कलम से____

आज ही प्रधानमंत्री जी ने ही
पानीपत, हरियाणा से
शुरूआत की है
"बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ"

मेरी शुभकामनाएँ
इस पुनीत कार्य के लिये
और
बधाई भी....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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राजनीति के लिए यह बहुत है ज़रूरी, झूट बोलना और छलना बन गई है हमारी भी बहुत बड़ी मज़बूरी !!!



कलम से____

ख्वाब दिखाते हैं हम इसलिए नेता हैं,
आँसूं आँखों में जो ला सकते हैं इसलिए वो अभिनेता हैं !!!

जनता की बातें पहले हम सुनते हैं,
भलाई के प्रोग्राम बनाते हैं बात और वादा कर भूल जाते हैं !!!

हमारी भी मज़बूरी भी समझो यारो,
किस किसको हम क्या दे पाते हैं काम कुछ अपने आप हो जाते हैं !!!

राजनीति के लिए यह बहुत है ज़रूरी,
झूट बोलना और छलना बन गई है हमारी भी बहुत बड़ी मज़बूरी !!!

जितना बड़ा नेता हमारा होगा,
झूट बड़ा उसे बोलना ही होगा यह न करेगा सफल नेता वह नहीं बनेगा !!!

ख्वाब पूरे हों काम तो हम करते हैं,
यह बात अलग है कुछ जेबों की भरने का भी प्रयास कर लेते हैं !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Ever 'n Ever !!!

परछाईं सा रहूँगा सदैव तुम्हारे साथ....


कलम से____

मत घबराना कभी
तुम,
साथ तुम्हारा कभी न छोडूँगा
थामा जो है
यह हाथ,
हमेशा थामे रहूँगा

चाहे आए
आंधी,
चाहे आए
बरसात,
उजाला
हो या
रात

परछाईं सा रहूँगा
सदैव तुम्हारे साथ....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Tuesday, January 20, 2015

एक हिचकी क्या आई लोगों ने यह कह दिया आखिरी वक्त में इसे अब किसका इंतजार है !!!


कलम से____

एक हिचकी क्या आई लोगों ने यह कह दिया
आखिरी वक्त में इसे अब किसका इंतजार है !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
 

गांधी टोपी वालो अब रास्ता कर दो खाली आएगा इनवेस्टमेन्ट जो लाएगा खुशहाली।



कलम से____

मौसमी सरदी अभी कुछ दिन और रहेगी
रणभेरी दिल्ली के चुनाव में खूब बजेगी।

तीनों दलों ने उतार दिए हैं अपने लम्बरदार
देखना है अब आगे बनेगी किसकी सरकार।

वायदे कराने हैं जो चाहे कुछ भी करवालो
करना है भला किसी का नहीं सुनो मतवालो।

बिजली फ्री मिलेगी पानी के साथ साथ
घर भी दे देगें तुमको जो तुम दोगे साथ।

विकास की धार बहेगी गंगा नदी जैसी
मलिन बस्ती में मिलेगी सब्जी सस्ती।

यमुना की सफाई की बात न करना यहाँ
बहने दो उसको जैसी बहती रहती है जहाँ।

सफाई करते रहेंगे चतुर्थ ग्रेड के कर्मचारी
नेता ठहरे जो नम्बर एक के व्यभिचारी।

सडकों का जाल बिछेगा गली गलियारों में
नहीं चलेगा बस गरीब वहाँ अपनी कारों में।

अपने देश में न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी
झोंपड़ी हटाके बनेगी बिल्डिंग तीस मंजिली।

गांधी टोपी वालो अब रास्ता कर दो खाली
आएगा इनवेस्टमेन्ट जो लाएगा खुशहाली।

बार खुलेगा रात भर डिस्को ड़ांस हुआ करेगा
हनी सिंह की धुन पर अब इंडिया डांस करेगा।

दस फरवरी को मिलना तब लड्डू खायेंगे
तब तक रोज़ शाम दारू मुर्गा रोटी खायेंगे।

धन्यवाद हूँ देता सबको साथ निभाने के लिए
लोकतंत्र के इस दंगल मेें शरीक होने के लिए।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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 — with Puneet Chowdhary.

Monday, January 19, 2015

मीत मेरे कर लेना मेरा इंतजार...



कलम से____

................ पार्क
की इस बैंच
को
रहता है
इंतजार।

मेरा वह अब
आता ही होगा
इसी आस में
सूरज आकर ठहर गया
कुहासे के पीछे...

करता रहता हूँ
मैं
बसंत पंचमी
का
इंतजार
जब मेरा फिजीशियन
दे देगा
परमीशन
फिर से बाहर जाने की
घूमने की
अपने मन माफिक
फिरने की.....

तसल्ली रख
चार रोज़
और सही....

मीत मेरे कर लेना
मेरा इंतजार...

मिलूँगा वहीं
पार्क की बैंच पर।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

चली चलो की बिरिया है, यादें जो हैं अमानत तेरी, तेरे ही पास छोड जाएगा।


कलम से____

चली तेज हवा तो दीपक बुझ ही जाएगा,
बुझते हुए भी तुझे आबाद होने की दुआ दे जाएगा।

परिन्दा थक गया भले ही हो,
सफर आसमां से जमीन तक का पूरा कर ही चैन पाएगा।

शाख से गिरने के पहले,
फूल अपनी खुशबू से, बाग महका ही जाएगा।

चली चलो की बिरिया है,
यादें जो हैं अमानत तेरी, तेरे ही पास छोड जाएगा।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, January 18, 2015

Sun and Fog

मुद्दत से चला आता है हर शाम, ग़म ताज़ा नहीं है


कलम से_____

मुद्दत से चला आता है हर शाम, ग़म ताज़ा नहीं है
तुम्हें शायद इस बात का अन्दाज़ा नहीं है !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
 

अपने उसूल कभी यूँ भी तोड़ने पड़े ...... खता उसकी थी हाथ मुझे जोड़ने पड़े...




अपने उसूल कभी यूँ भी तोड़ने पड़े ......

खता उसकी थी हाथ मुझे जोड़ने पड़े...

  
यदा यदाही मोबाइलस्य
ग्लानिर्भवति सिग्नलः

आउट ऑफ रीच सूचनेन
त्वरित जागृत संशयाः ।

विच्छेदितं संपर्का: कलहं मात्र भविष्यति।
तस्मात चार्जिंग एवं रिचार्जिंग कुर्वंतु तव सत्वरं।

मनसोक्तम् चॅटिंगं।
हास्यविनोदेन टेक्स्टिंगं।

सत्वर सत्वर फाॅरवर्डिंगं।
अखंडितं सेवाः प्रार्थयामि

टच स्क्रीनं नमस्तुभ्यं अंगुलीस्पर्शं क्षमस्वमे।
प्रसन्नाय इष्टमित्राणां अहोरात्रं मेसेजम् करिष्ये॥

इति श्री मोबाईल स्तोत्रम् संपूर्णम्
ॐ शांति शांति शांति:
॥शुभम् भवतु॥

"रोज सुबह शाम इसका ३ बार जाप करें तो Internet की सर्विस अखंड बनी रहती है और
आपका Mobile सदा निरोगी रहता है।"



























पोस्टकार्ड


कलम से____

ख्वाब में
रात्रि के अंतिम पड़ाव में
यादों की परतों के नीचे से
कुछ दिख गया
पोस्टकार्ड
वही पुराना
अंग्रेजों के वक्त का
लिखावट
देवनागरी में थी
कुछ जानी पहचानी
सी लगी

18/12/1947
मेरे प्यारे ....
सदैव प्रसन्न रहो।
------
--'-------'-------

-----
-----------

शुभेच्छु,

------------

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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उर तंत्री में स्वर व्यथा के भर जाती हो।

                                               

कलम से____

तुम जब जब आती हो,
नव अंगों का
शाश्वत मधुर वैभव लुटाती हो।

निशब्द पर करते नूपुर छम छम,
श्वासों का थमता स्पंदन-क्रम,
जब जब तुम आती हो
मन भीतर
अग्नि प्रज्वलित कर जाती हो।

ठगे ठगे से रह जाते मनोनयन
कह न पाते चलता रहता जो अंतर्मन,
जब जब तुम आती हो,
सोये से मन के
स्वप्नों के फूल खिला जाती हो।

अभिमान अश्रु बन बहता झर झर
अवसाद मुखर रस निर्झर,
जब जब तुम आती हो,
हिम शिखर
पिघला ज्वार उठा जाती हो।

स्वर्णिम प्रकाश में हो पुलकित
स्वर्गिक प्रीत का बन द्योतक
जब जब तुम आती हो,
जीवन-पथ पर
सौंदर्य-रस बरसाती हो।

जागृत हुआ वन में मर्मर,
कंप उठतीं हैं अवरुध्द श्वास थर थर,
जब जब तुम आती हो,
उर तंत्री में
स्वर व्यथा के भर जाती हो।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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विकास कर हिन्दोस्तां को अमेरिका बना देगें, गरीब की गरीबी खत्म कर महलों में बिठा देगें



कलम से____

लोग कपड़ों की तरह विचार भी बदल लेते हैं
चले बस तो क्या कहें ईमान भी बदल लेते हैं।

कल यहाँ आज वहाँ चलो आराम से वहाँ चलें
जहां दिखता कमाई का जरिया तो वहीं चलें।

पूछेगी जनता कह देगें कुछ भी जो दिल कहेगा
सुनाने को है पास हमारे जो जमाना सुनेगा।

बिजली चौबीस घंटे देने का वायदा कर देगें
बीमारी में इलाज फ्री करवा कर सांस लेगें।

विकास कर हिन्दोस्तां को अमेरिका बना देगें
गरीब की गरीबी खत्म कर महलों में बिठा देगें।

झूठ बोलना सीखना हो तो कोई इनसे सीखे
राज नेता बन घर भरना इनसे जो चाहे सीखे।

दोस्तों आस्तीन के सापों से बच कर रहना
अपना वोट चुनाव में बहुत संभल कर देना।

न देना चाहो वोट किसी को भी, है एक आप्शन
वोटिंग मशीन में अबकी बार है, ऐसा प्राविजन।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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होता जब दंगा फसाद नहीं दिखता कोई भी अपना पास, बहुत घबराता है दिल लौट गाँव जाने को बहुत है करता।


कलम से____

मैं अपना नहीं दोस्तों का दर्द हूँ बांट रहा
कह कर छोड़ा घरवार अभी मैं जा रहा।

दूर होते चले गए रिश्ते नाते सब छूट गए
लौटना चाहते हुए भी हम लौट न आ पाए।

पैसा कमाया काम धंधा जमाया इसी में रह गए
घर बसाया यह लाये कभी वो इसी में लगे रहे।

इतनी दूर हम आ गए अब यहाँ के होकर रह गए
बच्चे गाँव जाना चाहते नहीं, वहाँ कभी नहीं गए।

अब सब कहते हम यहीं रहेंगे, जाना है तुम जाओ
न जमीं अपनी न आसमां अपना कोई बतलाओ।

न जाना अपनी जमीन से बाबू कहते कहते मर गए
गलती थी करी जो हम सबको छोड़ यहाँ आ गए।

होता जब दंगा फसाद नहीं दिखता कोई भी अपना पास
बहुत घबराता है दिल लौट गाँव जाने को बहुत है करता।

क्या कहें क्या करें समझ कुछ न अब आए
है सब छूट गया लौट के उल्लू घर कैसे को आए।

हर चलती सांस पर लगता सांस अब निकलती है
पहुँचे मिट्टी कैसे गाँव सोच तबीयत मचलती है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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भगवान न कुछ लेता है न वह कुछ देता है



कलम से____

भगवान न कुछ लेता है
न वह कुछ देता है
जो आप चढ़ाते हो
भेंट समझ
वह
पुजारी का भोजन
होता है।

फूल
जो हो आप
चढ़ाते
झाडू से हैं
झाड़े जाते
फिर कूड़े के ढेर में
जाकर बजूद
अपना खो देते।

पत्थर के देवता
ऐसे ही नहीं पसीजते
न वह कुछ कहते
न ही वह कुछ बोलते।

हँस बोल लिया करो उससे
जो बोले
जो हँसे
इन्सानों की दुनियाँ
है भरी पड़ी इन्सानों से
ढूँढ लो उसे जो तुम्हारी सुने
सुनकर हँसे या रो पड़े.........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Good morning dear friends.








जैसे जैसे हम बूढ़े होते जाते हैं, सुंदरता भीतर घुसती जाती है।

~ रॉल्फ वाल्डो इमर्सन

Friday, January 16, 2015

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें........



कलम से____

फिर से प्यार करें रिश्तों में दरार जो आ गई थी उसे दूर करें

फटे हाल हो बिताये हैं कुछ दिन मालामाल हो गये चल ग़म ग़लत करें 

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें

ज़माने की ओर न देख इसने कब चाहा लोग यहाँ मिल कर चलें

यह तो हम थे अच्छे बुरे वक्त में भी साथ रहे चलो चाँद की सैर करें

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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ग़म दिल में चले आते हैं इन्हें रोकें तो कैसे यह घर वो है जिसमें कोई दरवाज़ा नही है !!!

प्रजातंत्र कौं खेल खेल रये जे खूब खिलाड़ी हैं बाकी भैय्या लोग लुगाई तौ सिगरे अनाड़ी हैं।




कलम से____

(एक नया प्रयोग है यह बृज भाषा में। हो सकता है पसंद आए। तो आशीर्वाद दीजिएगा)

बहती नदिया चलौ हमऊँ हाथ धोयलें
नैय्या तो चलैगी ही कमाई कछु करलें।

सिगरे नेतन कौ बस्स एक काम
नदी में आवे बाढ़ घर में बाढें दाम।

लूट लूट कें करि रये हैं खूब कमाई
काम न कछु करिवे कौं है रयी गुन्ड़ई।

कस्मे वादे रोजीना करि रये नये नये
बिजुरी चौबीस घन्टनकौ खेल है नयो।

दम भरिवे कों भरवाय लो कछु कहलवाय लो
चुनावन के दिनन में रंग कोई सौ लगवाय लो।

हैवेकों कछु नाय होयगो कहिवे कौं कछु कहलवाय लो
नेतन कौं जेब आपनी है भरनी चाहो तौ तुम झाडू लगवाय लो।

प्रजातंत्र कौं खेल खेल रये जे खूब खिलाड़ी हैं
बाकी भैय्या लोग लुगाई तौ सिगरे अनाड़ी हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Thursday, January 15, 2015

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें........


कलम से____

फिर से प्यार करें रिश्तों में दरार जो आ गई थी उसे दूर करें

फटे हाल हो बिताये हैं कुछ दिन मालामाल हो गये चल ग़म ग़लत करें 

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें

ज़माने की ओर न देख इसने कब चाहा लोग यहाँ मिल कर चलें

यह तो हम थे अच्छे बुरे वक्त में भी साथ रहे चलो चाँद की सैर करें

चलो हम फिर से प्यार करें ग़म दुनियाँ के भूल चल हम साथ चलें........

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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In winter don't take bath everyday.

आज सेना दिवस है


 
कलम से____

आज सेना दिवस है। यह रचना सैन्यबलों के साहस और शौर्य को समर्पित है।

कहाँ खो गई वो आवाज जो दम भरती थी
सीना चौड़ा छप्पन इंच का है जो कहती थी ।

कर रहा दिन प्रतिदिन पाकिस्तान गोलाबारी
ठोक दो दुश्मन को कर पूरी एक बार तैय्यारी ।

खिच खिच रोज रोज की हो बंद एक बार हो जाए
फिर शांति अगर वो चाहे उस पर वार्तालाप हो जाए।

पाल रहा सर्प आस्तीन के वह समझ अभी न पाए
बच्चों ने दी कुरबानी फिर भी उसकी समझ न आए।

मरना मारना है खून में इनके आधार ही गलत है
किस किस को भारत समझाए समझ बात न जब आए।

रहा है पिट्ठू अमरीका का सुनता उनकी नहीं है
सामने इनके कुछ भी कहना कारगर नहीं है।

जो जैसी भाषा समझे उस भाषा में अब बात करो
न समझे बने अनाड़ी तो सिर धड़ से कलम करो।

न रहे बांस न बजे बांसरी, कहावत चरितार्थ करो
बहुत किया बरदाश्त लीला इनकी अब समाप्त करो।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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..............धूप।



कलम से_____

आज बंद दरीचों
के पीछे से
झाँक कर देखूँगी
मुखड़ा तेरा
दो तीन रोज़
से देखा नहीं है
तुम्हें

......................धूप।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Tuesday, January 13, 2015

कनहाई को देखो कभी सीधे न दिखेंगे टेढ़े हैं हमेशा टेढ़े ही रहेंगे।


कलम से____

बहुत अच्छा बदलाव आ रहा है
संसार में वेजिटेबल्स
का चलन आ रहा है
लोगां के दो कोर्स
वेजिटेरियन हो गए हैं
एक हम इन्डियन
नये नये
नान वेजिटेरियन बन रहे हैं।

हैं शौक निराले
अपोजिट चलने का मजा
अपना है
जब जग चले दाहिने
तो हम बाएं चलते हैैं
कहीं ब्रिटिश कहीं अमेरिकी ट्रेन्ड्स
कहीं धोती कहीं जीन्स
आइसक्रीम कहीं कुल्फी
का मजा ही अपना है
सब घूमें
क्लाकवाइज़ तो एन्टीक्लाकवाइज़
का मज़ा ही अपना है
सामने से धक्का मारने
और पीछे से धक्का खाने
में मज़ा दोगुना है।

हम न सुलझे हैं
न सुलझेंगे
धागे उलझाने का मज़ा दूसरा है
उड़ती पतंग को लगंड़ से गिराना
हो लडाई किसी की
टांग फसाने में मज़ा अपना है।

टेढ़े रहने का मज़ा अपना है
कनहाई को देखो कभी सीधे न दिखेंगे
टेढ़े हैं हमेशा टेढ़े ही रहेंगे।

फिर भला हम कैसे सीधे रहेंगे....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Happy Makar Sankranti

Happy Lohadi ji.

लोहड़ी दी लख लख बधाइयाँ जी।

Lohri Folk Songs:

Sunder mundriye ho!
Tera kaun vicharaa ho!
Dullah Bhatti
Dullhe di dhee vyayae ho!
Ser shakkar payee ho!
Kudi da laal pathaka ho!
Kudi da saalu paata ho!
Salu kaun samete!
Chache choori kutti! zamidara lutti!
Zamindaar sudhaye!
Bade bhole aaye!
Ek bhola reh gaya!
Sipahee far ke lai gaya!
Sipahee ne mari itt!
Sanoo de de Lohri, te teri jeeve jodi!
(Cry or howl!)
Bhaanvey ro te bhaanvey pitt!

Translation:

Beautiful girl
Who will think about you
Dulla of the Bhatti clan will
Dulla's daughter got married
He gave one ser of sugar!
The girl is wearing a red suit!
But her shawl is torn!
Who will stitch her shawl?!
The uncle made choori!
The landlords looted it!
Landlords are beaten up!
Lots of simple-headed boys came!
One simpleton got left behind!
The soldier arrested him!
The soldier hit him with a brick!
(Cry or howl)!
Give us Lohri, long live your pair (to a married couple)!
Whether you cry, or bang your head later!

Happy Lohadi ji.

क्यों याद दिलाते हो उनकी जिनको हम भूले बैठे थे !!!


कलम से____

क्यों याद दिलाते हो उनकी
जिनको हम भूले बैठे थे !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Health Care in India

While watching a prime time programme on NDTV yeterday on Health Care in India, I could notice that all Indians are a worried lot as far as costs of treatment in private hospitals is going up every day, nexus of industry and health officials, no single regulatory boy to over see this sector, non availability of quality doctor's with aim to provide caring and dedicated services and above all high cost of medical education ultimately vitiating the environment in hospitals.

Govt. of India and State Governments need to formulate proper policies on priority. The anguish of a practicing medical professional can be gauged when he says that he never allowed four of his offsprings to pursue medical education as I wanted them to be a good humanbeings rather a crook.

I don't know exactly which way the programme aired yesterday will help but to me it was an eye opener.

In India everything is up for sale and hardly any serious act in place from the government of the day.

Comments invited.
 

देशहित के नाम पर व्यापार हो रहा है बेवकूफ़ बनाने का काम चल रहा है।


कलम से____

रुपये की कीमत गिरती कभी है सवंरती 
इन्सान की असली कीमत जरूर बढ़ गई।

पालिटीकल पार्टी को नज़र आने लगा
वोट की कीमत अचानक जो बढ़ गई।

अगले इलैक्शन तक देखना क्या होगा
जो न हो बस वो काम कम ही होगा।

एक एक के पीछे पार्टी वर्कर लगे रहेंगे
वोट डालने वालों के ठाठ बड़े रहेगें।

पैसे का है खेल गुरू तब तक देखना
अवमूल्यन हो जाएगा कितना देखना।

देशहित के नाम पर व्यापार हो रहा है
बेवकूफ़ बनाने का काम चल रहा है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Good morning

ख्वाबों की दुनियाँ में दुकान लगाये बैठे हैं



कलम से____

ख्वाबों की
दुनियाँ में दुकान
लगाये बैठे हैं

खरीदार
तुम भला कब
आओगे
सजाई है
यह महफिल
तेरे लिए

बात अपनी
कहने
और मेरी
सुनने
कब आओगे

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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