Thursday, April 30, 2015

........आग धधकती रहे........





कलम से....

........आग धधकती रहे........

बटलोई की बनी उढ़द की दाल,
देशी घी मे लगा हींग का छौंक,
चूल्हे पर सिकी फूली-फूली रोटी,
अरहर की सूखी,
लकडियों की,
धधकती आग जलती रहे और,
आग कम पड़ने लगे,
तो फूँकनी से फूँकना,
अम्मा की आँखो का धुआँ से पिराना,
मुछे याद है,
चूल्हे की आग धधकती रहे,
याद है, मुछे सब याद है ।

आग कोई सीने में धधकती रहे,
मुझे याद है ।

माँ तो चली गयी,
उसको भी तो कर दिया था,
आग के हवाले,
धधकती आग के हवाले,
धधकती आग सीने आज भी है,
याद उसकी आती रहे,
मुझे याद है,
आग कोई सीने में है जो धधकती रहे,
मुछे याद है,
मुछे याद है ।

(हम लोग गाँव, गर्मी की छुट्टियों मे ही जा पाते और जितने दिन भी वहाँ रहते, खूब मौज करते थे।

थोड़ा-बहुत उस गुजरे वक्त का जो याद है, उसे ही पिरोया है । आप सभी को अच्छी लगे तो मै धन्य समझूँगा।

ग्रामीण अंचल की बातें है, जिस किसी ने इन्हें जिया है, उनको पसंद आऐगा।)

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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प्रकृति रंग विहीन हो जाएगी,






कलम से ____

28th April, 2015/Kaushambi

प्रकृति रंग विहीन हो जाएगी,
पशु पक्षी त्राहि त्राहि करने को विवश,
झरनों की कल कल शांत हो जाएगी,
मानव विहीन मानवता तब कहाँ जाएगी ।

गीत कोई भ्रमर नहीं गाएगा,
पराग ले कोई तितली रंग न फैलाएगी,
धरा तब जीवन विहीन हो जाएगी ।

रुद्र नारायण को शृष्टि रचियता रूप में आना होगा,
समंपूणॆ धरा को पुनः नये रूप मे सवाँरना होगा ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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प्यार की आओ करें बात, कहाँ जाओगे।





कलम से_____

26th April, 2015/ Kaushambi

दिल्ली में मौसम अचानक आया परिवर्तन और झमाझम बारिश शुरू हो गई है...

बादलों से घिरी है रात, कहाँ जाओगे
गरज़ती हुई है बरसात, कहाँ जाओगे।

वह घटा उठी धुआँ-धार, कहाँ जाओगे
मूसलाधार के हैं आसार, कहाँ जाओगे।

अंधेरे बढ़ चले हैं बहूत, कहाँ जाओगे
नहीं रौशन हुए हैं चराग, कहाँ जाओगे।

सरद बहूत है यह रात, कहाँ जाओगे
दुशाला भी नहीं है साथ, कहाँ जाओगे।

रास्ते गुम हैं अकेले हो, बड़ा जोखिम है
प्यार की आओ करें बात, कहाँ जाओगे।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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अब कहाँ है वो पीपल ?




मेरे गाँव का एक पीपल 
मेरी माँ की दुआओं से सजा पीपल 
मेरी तमन्ना और मन्नतों का पीपल 
अब कहाँ है वो पीपल ?

जिस पीपल पर मोहल्ला पूरा
अर्पण करता था गुड़, बतासे, चीनी के शक्कर पाले
कच्चा दूध, लौह बाण धूप,
तेल से भरे दीपक की सौग़ात लेकर भी ख़ुश था पीपल
लाल धागों लिपटी मन्नतों को परवान चढ़ाता था पीपल
कभी जो प्रेम पत्र के छिपाने का गवाह रहा पीपल
अब कहाँ है वो पीपल ?

घर होने की दुआ पूरी कर गया पीपल
बेटी की बिदाई के गीत सुनकर भी साथ था पीपल
माँ का बताया “भूत” भी छुपाये रखा पीपल
यक्ष, गंधर्व, विष्णु सहित देवताओं का ठिकाना पीपल
सैकड़ों फ़ैसलों की अदालत बना पीपल
अब कहाँ है वो पीपल ?

मिश्रा सर के ऑक्सिजन वाला पेड़ पीपल
गुड्डी के आईस-पाईस में छुपने का पेड़ पीपल
अब कहाँ है वो पीपल ?

तरक्की के रास्ते हम यूँ चले कि
कभी ये जाना ही नहीं
अब कहाँ है वो पीपल ?
गर तुमको पता हो तो बता दो
अब कहाँ है वो पीपल ?

कागज़ के फूलों के भी अपने उसूल होते हैं





कलम से____

कागज़ के फूलों के भी अपने उसूल होते हैं
खुशियों में आपकी वो भी श़रीक हो लेते हैं !!!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Saturday, April 25, 2015

सुर लहरी पर तुम आ जाओ ........... आ जाओ !!


सुर लहरी पर
तुम आ जाओ
........... आ जाओ !!




कलम से ____

24th April, 2015/Kaushambi, Ghaziabad

रात्रि प्रहर है
है चंद्र धवल
नदप्रवाह है प्रबल,
मन में है
ऊथल-पुथल,
वेग हो रहा प्रबल,
शान्त है मन नहीं
रहा है, खूब मचल !!

 सुर लहरी पर
तुम आ जाओ
........... आ जाओ !!

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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बमुश्किल काटी है ये रात भोर होते ही लौट आना...


बमुश्किल काटी है ये रात
भोर होते ही लौट आना...


©सुरेंद्रपालसिंह 2015


पुरवाई.....

पुरवाई.....





कलम से...

23rd April, 2015/Kaushambi, Ghaziabad

पुरवाई.....

अबके गाँव जाना,
कुछ अजीब लग रहा था,
वैसे भी एक अंतराल के बाद
जाना मुमकिन हो पा रहा था ।

पुरवाई का एक,
झौंका क्या आया,
गुज़रा वक्त जो याद हो आया,
बचपन बिताया था,
जो यहाँ दादा-दादी के सहारे,
वो नहर के किनारे दूर तलक,
जाने की रहती थी एक ललक,
थक जाने पर पाती बाबा के,
कंधे पर, घर वापस आना, लटक।

हर रात चाँद,
निकलता था
हवेली के पिछवाडे से,
जूगनू गीत सुनाते थे,
पोखर ऊपर आते थे,
अम्मा की थपकी से हम सो जाते थे,
रातभर सुंदर सपने जो आते थे।

पुरवाई के एक झौंके ने,
सारी यादों को जगा दिया,
नींद से क्यों उठा दिया,
सोता रहता तो अच्छा था,
सपनों मे खोया रहता,
वो अच्छा था।

पुरवाई के एक झौंके ने....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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जिंदगी देखते-देखते किसी और की हो जाती है...

एक धड़कन दूजे से मिल असरदार हो जाती है,




कलम से .......

22nd April, 2015/ Kaushambi, Ghaziabad

ऐसा कैसे होता है, 
जिंदगी देखते-देखते किसी और की हो जाती है,
एक धड़कन दूजे से मिल असरदार हो जाती है,
ऐसा कैसे होता है,
जिंदगी देखते-देखते किसी और की हो जाती है।

खाते है कसम ऐसा न होने देंगे,
जिंदगी वेबस्ता मुश्किलात मे बदल जाती है,
ऐसा कैसे होता है,
जिंदगी देखते-देखते किसी और की हो जाती है।

मौत आने से पूँछेंगे दुबारा आना कब होगा,
जबाब मिल जाए तो अच्छा न मिले तो भी अच्छा,
कहने को तो होगा यही,
चलो अच्छा हुआ जो भी हुआ,
मौत को आना ही था एक दिन,
अब ए जिंदगी उनकी हुई जाती है,
ऐसा कैसे होता है,
जिंदगी देखते-देखते 
किसी और की हो जाती है...
 

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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खुशियाँ मिली हैं, इतनी



Tuesday, April 21, 2015

राधिका की चाहत बस इतनी ही थी





कलम से____

जिन्दगी के जिस मोड़ पर मिलना था
उस मोड़ पर मिल जाते तो अच्छा था
तुम मेरे और मैं तेरी हो जाती तो अच्छा था

राधिका की चाहत बस इतनी ही थी
उसे पूरा कर जाते तो अच्छा था.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Monday, April 20, 2015

भैय्या अबहीं सोवत हैं कुछ देर बाद फुनवा किया जाये।


नेता



कलम से_____

............................भैय्या
अबहीं सोवत हैं
कुछ देर बाद
फुनवा किया जाये।

यह जबाब भैय्या के
पीए ने फोन कालर को दिया
वक्त था, दिन का ग्यारह बजे।

यह एक भैय्या की नहीं
सभी की कहानी है,
जो आज राजनीति में हैं।

खासतौर पर अपने
उत्तर प्रदेश में।

नेता के लिए
इशेन्शियल क्वालीफिकेशन्स
आपके पीछे दस बीस लठैत
बंदूकधारी चार पांच खुली जीप
और स्वयं के लिये
चमचमाती एसी एसयूवी
इतनी हैसियत कम से कम
एक इलैक्शन लड़ने के लये
पांच करोड़ एमपी के लिये
दो करोड़ एमएलए के लिए
पचास लाख ब्लाक प्रमुख के लिये
कम से कम बीस लाख रुपये
ग्राम पंचायत प्रधान के लिये
सुबह का नाश्ता
दोपहर का खाना
शाम की दारू
और मुर्गे की टांग,
इस सबकी हो व्यवस्था
पीछे चलने बाली भीड़ की खातिर
जरूरी है,
अपनी जाति बिरादरी के
कम से कम दो लाख वोट
एमपी के लिये,
एक लाख एमएलए के लिए,
और इसीतरह,
ब्लाक प्रमुख और प्रधानी के लिये
नहीं है, अगर इतनी हैसियत
तो वक्त न खराब कर यार मेरे
आज की राजनीति आपके लिए
नहीं है।

पब्लिक प्लेटफार्म पर
माइक लेके गरियाना जरूरी है
डीएम एसएसपी तो अब पानी भरते हैं
इनकी औकात बस अब इतनी है
जो नेताओं के जूते साफ
घर में पानी भरते हैं।

जनता की निगाह
आप पर तब उठती है,
बड़ी मुश्किल से,
वो 'आप ' पर मेहरबान होती है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Sunday, April 19, 2015

बुला रहे है अपने

बुला रहे है अपने 




कलम से .....

बुला रहे है अपने
करीब मुझे पवॆत, नदी और नाले,
कभी जो थे हमारे ।

दूरिया,
कुछ इस कदर बढ़ी,
कभी दुबारा न मिलेजो कहते थे 'सदा तुम रहोगे हमारे'।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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चोरी पकड़ न ली जाये कहीं आँखों आँखों से बात करते हो

कलम से____

चोरी पकड़ न ली जाये कहीं 
आँखों आँखों से बात करते हो
इकरारे मोहब्बत इक बार कर लो

क्या इतना करने से भी ड़रते हो


©सुरेंद्रपालसिंह 2015

सुबह सुबह आज उनसे मुलाकात हो गयी

सुबह सुबह आज उनसे मुलाकात हो गयी,



कलम से....

सुबह सुबह आज उनसे मुलाकात हो गयी,
जो कभी रहते थे अपने धर के पिछवाडे,
बोले यार कहाँ खो गये थे
कहाँ गायब हो गये थे
रोज मिलते मिलाते,
कहा मैंने भी उनसे कुछ ऐसे
चला गया था इक हसीना के पीछे दिल लगाते लगाते,
कैसा रहा एक्सपीरयेस लगाने के दिल का, पूछा जो उसने
अनायास ही निकला मेरी जुवाँ से,
नहीं रास आया मुझे ऐ दिल का ए देना दिलाना,
है राह बहुत ही मुश्किल,
दिल की तंग गलियों मै
चलना चलाना ।

मै और मेरी जिन्दगी यूँही
गुजरेगी किसी की मुहबबत बिना बहुत अछी,
मै यूही बहुत खुश हूँ
और खुश ही रहूंगा,
तूमसे बस मिलते मिलाते ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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खुश रहता वो जो हर हालात को जीना जाने है ।



भूली बिसरी यादें,
किसी को सताती है,
किसी को याद भी नहीं आती है


कलम से....

भूली बिसरी यादें,
किसी को सताती है,
किसी को याद भी नहीं आती है,
दूसरे कैटेगरी के लोग ही प्र॓कटीकल कहलाते है,
पहली वाले, संटीमेनटल और बेकार जाने जाते है ।

जो वक्त के साथ बदल जाते है,
केवल वही प्रगतिशील कहलाते है।

दोस्तों, फैशन का जमाना है,
हर रोज, एक नयी चीज को आना है,
कुछ दिन तक दुपटटे-सलवार का जमाना था,
दुपटटे को मारो गोली,
अब जीनस-पैनट को अपनाना है ।

हवा मे उडता जाए,
मेरा लाल दुपपटा मलमल का,
एक सुन्दर बीते युग का गाना है,
लेकिन न सुहाये अब नौजवानों को उनको लगता ए पुराना है ।

वक्त बदलता रहता है,
खुश रहता वो जो हर हालात को जीना जाने है ।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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जाने भी दो मत रोको मुझे कल सुबह फिर आऊँगी मैं

जाने भी दो
मत रोको मुझे
कल सुबह
फिर आऊँगी मैं



कलम से____
19th April, 2015/ Kaushambi, Ghaziabad
कल शाम मिली थी
जाने के पहले
कहने लगी
जाने भी दो
मत रोको मुझे
कल सुबह
फिर आऊँगी मैं
सुबह बन कर
अभी मुझे
परिधि के उस पार
जाना है
अभी जाने दो
जल्दी में हूँ.....
©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Saturday, April 18, 2015

जिदंगी , तू मुझे हमेशा चलती फिरती नज़र आती है फिर आज यह अजीब सा मंजर क्यूँ है?




जिदंगी , तू मुझे हमेशा चलती फिरती नज़र आती है फिर आज  यह अजीब सा मंजर क्यूँ है?


कलम से_____

18th April, 2015/Kaushambi, Ghaziabad

जिदंगी 


तू मुझे हमेशा
चलती फिरती नज़र आती है
फिर आज
यह अजीब सा मंजर क्यूँ है?

हर रोज़ तेरी बंद
खिड़की देख लेती हूँ
अहसास हो जाता है
तू या तो शायद अब
यहाँ नहीं रहता है
या फिर तेरी
तबीयत खराब है
उम्र के इस पड़ाव पर
अक्सर ऐसा होता ही रहता है

जब तुम ठीक हो जाओ
आना बैठेंगे फिर उसी बैंच पर
लाफ्टर क्लब के मैम्बर्स को
हँसते देखेंगे
साथ उनके मिलकर
हँस न पायें शायद
मुस्कुरा ही लेंगे
अपने पल दोबारा जीने पर

रहेगा इंतजार मुझे तुम्हारा.....

ए जिदंगी।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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किसी दिलवाले से मुलाकात इस तरह बड़ी बेमानी है।




कलम से____

एक हार्ट सर्जन ने
धड़कते देख दिल को जोर से
यह कह दिया

इसकी तो ओपन हार्ट सरजरी
करनी जरूरी है।

दिल ने भी खुले मन से
यह कह दिया
कर ले अपनी मनमानी तू भी
किसी दिलवाले से मुलाकात
इस तरह बड़ी बेमानी है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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Wednesday, April 15, 2015

चलो चल कर देखते हैं



कलम से____

वाकई बड़ा सन्नाटा पसरा है इस शहर में....
बड़ा सुकून है यहां...

चलो चल कर देखते हैं

 कदम दो एक वहां.......

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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जान कर वो शूल ऊम्मीद के चुभा गये


चुभा के शूल वो न जाने कहां गये
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।



कलम से____

16th April,2015/Kaushambi, Ghaziabad

चुभा के शूल वो न जाने कहां गये
देने को आये थे फूल, उसूल हमें दे गये।

उनके ही चमन आज वीरान हो गये
खिलानी थीं कलियां पर बबूल वो गये।

कांटे बोये थे उन्होंने हमारी रहगुजर
राहें खिली रहें फूलों सी उनकी दुआ हम कर गये।

पाक दामन था हमारा फिर भी दागदार हो गये
उनके दामन के हर दाग लेकिन हम भूल गये।

कर सकें न कोई हम तमन्ना-ए-इश्क में
जान कर वो शूल ऊम्मीद के चुभा गये।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Sunday, April 12, 2015

माली की कैंची चलने ही वाली है बस दो एक दिन की और छूट है !!






कलम से____

माली की कैंची चलने ही वाली है
बस दो एक दिन की और छूट है !!


©सुरेंद्रपालसिंह 2015

आवाज़ देती रही हमेशा तूझे मेरी हर सांस


बेईमानों के ही हक़ में होते रहे हैं फ़ैसले
चलते रहे हैं वो चाल ही हमेशा एक खास।



कलम से____

13th April /Kaushambi/Ghaziabad

पतझर के मौसम में कोशिश की थी हंसने की एक बार
मिलता नहीं है मधुमास का रंग हर किसी को बार बार।

बाबज़ूद इसके ज़िदंगी मेरी रहती है क्यों उदास
तेरे ख्यालों की रौशनी सदा है मेरे साथ।

ये कोई और बात थी कि तू न सुन पाया
आवाज़ देती रही हमेशा तूझे मेरी हर सांस।

बेईमानों के ही हक़ में होते रहे हैं फ़ैसले
चलते रहे हैं वो चाल ही हमेशा एक खास।

पूछा नहीं क्यों उलझ के रह गया हूँ रिश्तों के जाल में
दम तोड़ती रही है हर बार मेरी वो इक आस।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Friday, April 10, 2015

तेरे बिन हम अधूरे हैं, बिन मेरे तेरी जिन्दगी अधूरी है....


तेरे बिन हम अधूरे हैं
बिन मेरे तेरी जिन्दगी अधूरी है....


कलम से____

11th April
Kaushambi

ये शाम अधूरी है
ये ज़ाम अधूरा है
तुमसे दिल की बात अधूरी है
ये चाँद अधूरा है
ये रात अधूरी है
मचलते जज्बात अधूरे हैं
तरसते ख्वाब अधूरे हैं
तड़पती तन्हाई अधूरी है
दिल की ख्वाहिशें अधूरी है
ये जुस्तजु अधूरी है
उमड़ते अरमान अधूरे हैं
पैगामे-मोहब्बत अधूरी है
तेरे बिन हम अधूरे हैं
बिन मेरे तेरी जिन्दगी अधूरी है....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Thursday, April 9, 2015

कौन सोता है रात को



कौन सोता है रात को


कलम से____

कौन सोता है
रात को
रात कहती है
जागता रह मेरे लिए
करीब आ पास आ
अंधेरों के परे भी
एक दुनियां है
चमचमाती हुई
चमकते तारों की
जुगनुओं सी
दिखती है
आकाशगंगा।

एक दीप जलाकर
बैठा हूँ मैं
अंधकार है
जो मेरे आसपास
मेरे भीतर
उसे मिटाने के लिए।

रात ऐसे ही
गुजर गई
सुबह तक
तेरे इंतजार में....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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Wednesday, April 8, 2015

Kaushambi, Ghaziabad



Kaushambi, Ghaziabad
                                                                      Uttar Pradesh





Kaushambi, Ghaziabad
9th April, 2015

In Kaushambi Ghaziabad we have one Shri Mittal, who is working sincerely on improving the quality of life of Kaushambians. Yesterday, during morning walk time, he met residents of Kaushambi.

He took pain to explain because of 'no action'
attitude of the District administration, he has filed a number of PIL cases in Honb'le High Court at Allahabad and also he has taken up a legal case in NGT against various authorities in UP. He hoped that with the help ofrom courts he may be able to help the society in improving the quality of life.

I was just wondering that NGT has passed an order on restricting the use of 10 years old Diesel vehicles in Delhi and New Delhi areas. Now people in government are saying they don't have adequate resources to implement the orders of NGT. With every day passing quality of air in and around NCR is becoming worst and now GOI has also awakened after international community made its complaints about it. I think in times to come only battery operated vehicles will find it's way in.

I don't know how this country would be run. As an individual we approach the officer and they don't act, then we approach the Honb'le Courts to intervene and again back to square one position.

Are we a civilised and manageable nation or not? To me, this question remains unanswered. I don't know how do you feel about it?

चलेंगे साथ साथ हम और तुम........

चलेंगे साथ साथ
हम और तुम........



मुझे आज से अपनी बात कहने का अवसर मिला है और श्री एस डी तिवारी जी का आदेश है। इसी श्रंखला में अपनी बात रखता हूँ। कल दिनांक 10 अप्रैल के लिए मैं अपने लघु भ्राता हरिहर सिंह जी को अपनी रचना रखने को आहुत करता हूँ।वह अगले चार दिनों तक रचनायें आपकी सेवा में लेकर आयेंगे।

कलम से____

07:30 Hrs/ 9th April, 2015
Kaushambi Central Park

मुझे फिर वही जगह
मिल गई
वही पार्क की बैन्च खाली दिख गई
हक अपना जताया
ऐसे जैसे वो मेरी हो गई।

हम लोग
अक्सर उनको अपना
बना लेते हैं
जो हमारे नहीं होते
जिनको देना होता है
साथ वो कभी
पुराने नहीँ होते।

वो भी आज पास आ गये
बैठ कर हाथ मेरा
अपने हाथ
दिलासा दे गये
हूँ न मैं तेरे लिये
इस दुनियां जहान में
चलने का वक्त
आयेगा जब
चलेंगे साथ साथ
हम और तुम........

आ तब तक जी लें
कदम दो एक साथ तय कर लें।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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सूर्यास्त कल का बहुत कुछ कह गया


सूर्यास्त
कल का बहुत कुछ
कह गया


कलम से_____

सूर्यास्त
कल का बहुत कुछ
कह गया
बादल फिर
धिरने लगे
बेमौसम मार सहते सहते
खेत खलिहान चौपट हुये
आस का दीपक
भी बुझ गया
विश्वास अब
तुझसे भी उठ गया
मैं जीते जी टूट गया।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Monday, April 6, 2015

ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।

                                                ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।


कलम से____

प्यार में यहाँ कुछ भी पुराना नहीं है
यहाँ अब सब कुछ नया लगने लगा है ।

प्यार में हालात यूँ भी होने लगे हैं
ज़ज़्बात कम जिस्म मचलने लगे हैं।

इश्क मोहब्बत के ख़्यालात पुराने हो चले हैं
किताबों के पन्नों में दम तोड़ते दिख रहे हैं।

जाने अब यह कौन सा दौर है आया
छोटी-छोटी बातों पे रूठना आदत में उनके शुमार है।

इन हाथों की लकीरों में रखा क्या है
हर कोई यहाँ अपने सवालों में उलझा पड़ा है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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गिरह खोल दो आसमां मेरा मुझे देदो....


गिरह खोल दो
आसमां मेरा मुझे देदो....



कलम से____

दिल की गिरह खोल दो
आज़ाद मुझे तुम कर दो
कैद से अपनी

फिर देखो
कितनी ऊँची उड़ान
भरती हूँ
जश्न आज़ादी का
कैसे मनाती हूँ
उडूँगी थक जाऊँगी
बैठूँगी पल भर के लिये
फिर उड़ जाऊँगी मैं
दूर कहीं दूर
फलक के उस पार
बस एक बार
बंधी हूँ जिस बंधन में
गिरह उसकी खोल दो
गिरह खोल दो
आसमां मेरा मुझे देदो....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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घर के रहे न घाट के......

घर के रहे न घाट के ....



कलम से____

अपनों के बीच रहते हुए भी
धीरे धीरे हम पराये हो गये।

लड्डू बंटे जब विदेश चले
सदा को अपनों से कट गये।

गोरों के बीच हम आ गये
गेंहुँआ रंग अपना भूल गये।

यहाँ पूरी तरह हम रमे नहीँ
दिलो जान से सदा रहे वहीं।

मूल्य जो प्यारे थे हमें कभी
चोट खाकर हो जाते थे दुखी।

न हम यहाँ के बन सके
न हम अपनों के ही रहे।

घर वापसी मुश्किल लगती है
रंजिशे यहां बढ़ती हुईं सी हैं।

घर के रहे न घाट के हम हो गये
माँ बाप संबधी सब छूट गये।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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Saturday, April 4, 2015

जैसे भी हैं हम, वैसे ही बने रहने दीजिए


जैसे भी हैं हम, वैसे ही बने रहने दीजिए


कलम से_____

जैसे भी हैं हम, वैसे ही
बने रहने दीजिए
क्यों कहते हो

चालीस साल
पीछे चलो
ब्लैक एण्ड व्हाइट
के जमाने में
हमारा वजूद तब भी था
रंगीन
आज भी है
कल भी रहेगा
किताबों के पन्नों में
यादें बन कर
दिलों में बने रहने दीजिए...


©सुरेंद्रपालसिंह 2015

Friday, April 3, 2015

सब खो गया है होता था जो प्यार पुराना


सब खो गया है
होता था जो प्यार पुराना

कल शाम अचानक स्वर्गीय महेश चन्द्रा जी ( आई टी आई मनकापुर के निवास के दौरान की एक बात पर) के परिवार की याद आ गई। श्रीमती चन्द्रा जी हमारे गाँव के पास की ही रहने वाली थीं। होली के दिनों की बात है, उनके यहाँ उनके बच्चे जो बाहर पढ़ते थे, आए हुए थे। खाना खाते समय की घटना, श्री चन्द्रा जी ने मुझे सुनाई थी, पूडियां बनाने की जिद बच्चों ने की कि माँ पूड़ी तू ही बनाएगी तो खाएंगे नहीं तो खाना नहीं खाएंगे। तेरे हाथ की पूड़ी का कोई जबाब ही नहीं है।

बस यही ध्यान धर कुछ मन में विचार बन गया।



कलम से_____


व्याम करते करते,
कुहू से,
उसकी मम्मा यूँ बोली,
देख चक्की में आटा
ऐसे पिसता है
बचपन में यह काम
हमको घर में ही करना पड़ता था
इससे कमर का
मोटापा भी कंट्रोल में रहता था।

कुछ देर बाद कुहू बोली
मम्मा हल्ला-हुप करने
से भी कमर पतली हो जाती है।

अपना ब्लाउज सिलने
बस बैठी ही थी
कुहू आ गई और पूछने लगी
क्या कर रही हो मम्मा
कहा अपने लिए ब्लाउज
सिल रही हूँ
बचपन माँ ने
हमको सिखाया था।

क्यों सिलती हो
बाज़ार में अब तो
बुटीक जगह जगह
हैं खुले, वहां से
सिलवाया करो न।
मुझे अपने लिए सिलना
अच्छा लगता है
काम अपना करने से
दिल को सुकून भी मिलता है।

सर्दी का मौसम
जब आया
नेट से पता ढूंढ़ा
ऊन 'ओसवाल ' की
मिलेगी भला कहाँ,
बड़ी मुश्किल से मिली
पर मिल गई
ऊन स्वेटर के लिए,
सलाई का डिब्बा ढूंढ़ा
निकाल चलने लगे
हाथ एक फंदा ऊपर
दो फंदे नीचे
फिर एक फंदा ऊपर
स्वेटर बनता देख,
कुहू बोली, मम्मा मिलते हैं न
स्वेटर बाज़ार में,
फिर क्यों बुनती हो
परेशान रहती हो
मेरा प्यार हर फंदे में
समा जाए सर्दी से तुझे बचाए
तू मुझसे बंध जाए
इसलिए बुनती हूँ
स्वेटर मैं तेरे लिए।

यह भी बचपन में
माँ से ही सीखा था।

होली पर गुजिया
बनाते वक्त भी
वही सबाल कि
बाज़ार में सब मिलता है,
मम्मा बोली गुजिया
न मिलेगी ऐसी
जैसी बनाती हूँ मैं
इन हाथों से
इतने प्यार से।

धीरे धीरे कुहू बड़ी और हो गई
होस्टल से लौट दिवाली
मनाने को घर आई,
घर की बाई सा खाना
बनाने लगीं थी
उम्र का तकाज़ा भी था
कुहू बोली मम्मा
पूड़ी तुम ही बनाना
तुम्हारे हाथों की पूड़ी
का क्या कहना
तुम्हारे हाथ की ही
बनी खाऊँगी नहीं तो
खाना नहीं खाऊँगी
धीरे से उठ मम्मा चली
पूरी बेलने
बेलते बेलते उसे फिर
अपना बचपन याद हो आया
अम्मा के हाथों की बनी
पूड़ी का कोई जबाब ही न था
प्यार से हर पूड़ी जो बनी थी
स्वाद का तो क्या कहना
अब्बल ही बनी थी
मुलायम मुलायम और मज़ेदार भी।

बच्चों को, अब कौन सिखाता है,
घर का बना ही सामान पहनना
घर का बना ही खाना खाना
चलो बाज़ार
इस बाज़ार की दुनियां में
सब खो गया है
होता था जो प्यार पुराना
आया है अब, यह नया ज़माना.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015

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आज बदरा फिर रो पड़े



आज बदरा फिर
रो पड़े




कलम से____

आज बदरा फिर
रो पड़े
नयनों से अश्रु बह गये
पी घर न आये
न जानेकहाँ रह गये?

जब पी घर
लौटेंगे
उत्सव सा माहौल होगा
बुझा मन है जो
फूल सा खिलेगा....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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ख़त तेरे आज भी तूफानी मिज़ाज़ रखते हैं

ख़त तेरे आज भी तूफानी मिज़ाज़ रखते हैं




कलम से____
ख़त तेरे आज भी तूफानी मिज़ाज़ रखते हैं
बहुत सभांलके खज़ाने से सिरहाने रखते हैं।

तन्हा चलने का इरादा बनाया है क्यों
हम तो ज़माने को साथ ले के चलते हैं।

गरज़ नहीं मुझे किसी मयख़ाने की
आँखों से अश्कों के पैमाने बरसते हैं।

जब भी उठती है महक तेरी यादों की
सूखे हुये गुलाब किताबों के परीशां बहुत करते हैं।

मिल ही जायेगा इक दिन इस दिल को मुकाम
इस इरादे से फलक तक ऊँची उड़ान भरते हैं।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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रात पूनम की


रात पूनम की


Wednesday, April 1, 2015

तेरी याद घिर आई है।

तेरी याद घिर आई है।



कलम से----

रात आई है तो फिर से
तेरी याद घिर आई है।

चाँद जब दूर फलक पर डूबा
तेरे लहजे की थकन याद आई है।

दिन गुज़रा है लोगों से उलझते हुये
रात आई तो फिर किरण याद आई है।

ख्यालों में जब भी मोड़ आया
तेरे गेशू की शिकन याद आई है।

जब ख़तूतात से भरा बस्ता खोला
तेरे ख्यालों की मासूमियत नज़र आई है।

जब भी तन्हाई में दिल रोया
बस एक तू ही तू याद आई है।

रात आई है तो फिर से
तेरी याद घिर आई है।

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
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फिर कोई देवता आयेगा




कलम से____

अशोक चक्रवर्ती
देखते देखते
विचार मन में
अचानक उठा
कैसी कैसी व्यवस्था
राज्य सूचना
जानकारी के
लिए करता था
गुप्तचरों की जमात
आमात्य और आचार्य
राजा स्वयं भी
भेष बदल कर
निकाला करता था
प्रजा के हाल जानने हेतु
तब जाकर कहीं
एक सुदृढ
न्याय व्यवस्था
बन पाती थी।

यही सुना था
राम राज्य में
ऐसा ही
होता था।

यही अकबरी
दरबार में भी।

अंग्रेजी साम्राज्य में
भी शुरूआती दौर में
कुछ ऐसा ही था
शनैः शनैः
नया रूप
पनपा न्यायालय
बन गये
सूचना के क्षेत्र में
क्रांति आ गई
राजा के स्थान पर
हुक्मरान आ गये,
पेड सरवैन्ट,
आई टी ने तो
कमाल कर दिया
उस पर तुर्रा
जन प्रतिनिधि
और जागरूक
जनता
सभी मिल लड़ने लगे
अपने अपने स्वार्थ
की लड़ाइयां
बेचारी जनता
हार गई, टूट गई
बोझ तले दब गई
आवाज समाजवाद की
कभी साम्यवाद से
पूंजीवाद से
कभी टोपी सुफैद
कभी हरी
कभी लाल हो गई
कभी वो 'आप' की हो गई
और अक्सर सरेआम
बाजार बिकती रही
नाज़ करते थे जिस पर
वही मुन्नी बदनाम हो गई।

हालात दिन ब दिन
बद से बदतर हो गये
करे क्या अब कोई
समझ के परे हो गये।

प्रजा दरख्वास्त
लेकर है खड़ी
सूचनाओं की
झड़ी है लगी
कार्यवाही कब होगी
बस इंतजार में
हाथ जोड़े है खड़ी।

दारू की दुकान
या हो वो राशन की
लाइन होती ही
जा रही लंबी
पब्लिक परेशान है
आस में बस खड़ी है।

आप फेसबुक पर
कुछ भी लिख दो
हुक्मरानों तक
पहुँचा दो
फिर भी कुछ
नहीं होगा
जो भाग्य में
बदा है, वही होगा।

फिर कोई देवता
आयेगा
देखो भला शायद तब ही
कुछ हो पायेगा.....

©सुरेंद्रपालसिंह 2015
http://spsinghamaur.blogspot.in/